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भषण] ९२९७5००१ ,--आरूतिविशेषेषु आदरःपरदं करोति, आत्मत्यप्रत्ययं चेतः, देवप्रत्ययात , प्रथमः कल्पः, अनुतिष्ट आत्मनो नियोगं, स्वनियोगमयुन्यं

` कुरु ,अपि हा, अह प्रिदेवितेन, वसंतावतारसुचकं, शरकांडप।दुगेदस्यलेयमाभाति मुखेन सीता शरप्॑दुरेण, पदं, गृहीतार्था, लब्धक्षणः, अस्ति मे विशेषः, उपचारापिकमं परमाम, आत्मनः सदेन, पर्याप्मेतावता कामिनां, एतावान्‌ मे मतिषिभवो भवैतं सेवितुं! 5 भाणो ढः ८0००8) 158:--अचिराषिष्टितराज्यः शत्रः प्रकतिष्वरूदमुलत्वाव & अय वीक्ष्य रघरं प्रापिष्टितं भकतिष्वाव्मजमात्मातित्तया, अतिमानमासुरस्वं . पुष्य रि मानोः परियहादन्टः & दिनाति निहितं तेजः सवितेव हुताशन : , अहौ सर्व. स्थानानवद्यतारूपापिरेषस्य& अहो सर्वास्ववस्थासु रामणीयकं आङतिविरेषाणां, र्या- भायते युष्मासु यः कौचनमिवाभिषु & हन्मः सेलक्यते घ्म विशुद्िः ्याभिकापि षा, आपरितोषादिदुष। &८. ५०१ पंडितपारिनोषप्रत्यया मदजातिः आकान्ता तिक्र. याप तिलकैर्तरद्विरेफौ जनैः $ प्रदिरेफौजनमकिवितरं, कुतो विभवः स्निग्धस्य सस्ीजनः स्यम इत्त॑नमाख्यातुं & स्ग्धिननसापिभक्तं हि टःखे सद्यवेदनं भवति , तत्वाववोमकरसो तर्कः & कामी स्वतां प्रश्यापि, अपि शरीरमति & मेनका कषवेषेन शरीरीभता शकता, प्रथमं लोकयवाद एव @& असति त्वपि वारुणीमदः प्रमदानामधूना विडवना, प्रणयमयान्यक्षराणि विवतिरितानि & श्ा्गतकमितिरदरः, समानुरागयोः & तुस्याल्राग पिशुनं, धृतिपुष्यमयमि-

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; वदधराति & च्ु्वधाति धृति तदूपाटोकदुितम , कर्मगृहीतेन ककेन % शोप्ेण गृहीतस्य कुभीलकस्यास्सि वा प्रतिवचनं, तस्याः प्रणि- तेवां मन्ये & कितु प्रणिपातलघनादहमस्यां र्थमवलेबिष्ये, निसर्गनिपुणाः लियः श्रीणामाशिक्षितपटृत्वं , उचितः प्रणयो वरं विहतं % तदूतनायानुग॒ नापि त्वं॑संवंषिनो मे प्रणयं वितु, उपचार - विषिर्मनस्िनीना 2110 प्रियवचनशतोऽपि योभितां ४७ ण्ठ ४९688 ००००1५०४ = 8 १०९०१९०० ०४ विद्ष. कं 9 हण्ड ४0७ ०४]९५४ 178 10४९; विदषक'8 {68 8100४ ५४७ (1 विद्षक'8 नण पदट४प््ण्९ते णा 80८ ( चनन ) ; "6 @०१०९।४४0४ 0 » ब्राह्मण! ०7५8 एण्ड एप्छण्डत भ्ठ #6 ००५७ ४४९ 018 णत्षण्वप्लणद् पापना 0 = ॥13 एलरन्; नल प्6 6 व०्पषा० पश्टुष्णर९, ००० परिवितो चाप्यगम्यः, तन्न वो विदितमः -@#<--#06868 3० पाषण्ड = 0010678 = &० ४0 (08 = ४€ शप्ठः

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फ्6 ९४००१०६ ता 9हुष९्छभ्र = (नालप्तेठ ४8 [ष्य ५6 कणर ४४४ भ८ाःप०क्राल्वेद्ाण् छपा १९५] 8७86 00४५० ५0 91] ४०६९ 10 8९९ 760त66त ए5 फषन्लाभ्‌ [न्‌] 0 रज्ञ ककफ8, 07 ५४०८३ ४76 8) १५८ # #, त. ति. 8४06, ४06 पश्चाद्ूलः 9 धल 7658 {0ए 1४1१६ ९९७ 15 0680 70 = एणद्वाण्ड्ठ जप४ #)8 = 00नूह ४8 0077860 8 †0४प 80 171 88 8107 2 (पाठ ४8 88 08896 प०व८ 106 ©1५०8॥४6९8 97 {06 (४8९,

20071, 9४84 26 ५५ 20४९1१५7 1896. |

हएत

1

अथ

. मारखिकाथिमित्रम्‌

---> °> ०० <== प्रथमोङुः

रकैश्वये स्थितो ऽपि प्रणतबहुफले यः स्वयं कृतवासाः कान्तासंमिश्रदेहो <प्यिषयमनसां यः पुरस्तादययतीनाम्‌

वेदादीनां विशुद्धानां विद्यानां जन्महेतवे

पा्ैतीपरतन्त्राय परस्मे वस्तुने नमः

भाग्यं नाम समग्रमीदशमातिस्नेहैकपात्रं यतो नीरं काटयवेममुदध तप्पुध्वंसे नियुज्य स्वयम्‌ नित्यं नन्दति नतेनैरभिनवैः कान्तरवसन्तोत्सवैः सेतानाभ्युदयैः कुमारगिरिभ पालो नृपालोत्तमः

अत्र कविः कालिदासः प्रारिप्सितस्य भ्रन्थस्यावित्नेन परिसमाप्त्यथैमि-

देवतास्मरणपूर्वकमाशिषं प्रयुङ्क्ते---एकैडअयं इत्यादि ईशः पर- मेश्वरः सन्ममगत्मिकनाय सन्‌ प्रशस्तो मार्गः पन्था मेोक्षमागैस्तस्यालोक- नाय दशनाय वो युष्माकं तामसी तमःसवन्धिनीं ( अज्ञानामिकां अधका- , रप्रचुरां ) वृक्ति प्रवृत्ति व्यपनयत्वपाकरोविति सेवन्धः। कयभूत ईशः यः प्रणतबहुफले वहूनि ( स्वगौपवगौदीनि ) फल्मनि यस्मात्तत्तथो- क्तम्‌ प्रणतानां प्रणामं कृतवताम्‌ भक्तानामित्यरयः तेषां बहुफलं त- र्मिन्‌ एकैश्वर्ये ईश्वरस्य भाव एश्र्यम्‌ एकं मुख्यम्‌ अनन्यसाधा- णामित्यर्थः त्च तदैश्वर्यं तस्मिन्‌ ( परमेश्वरत्वे ) स्थितोऽपि ( तद्विशिष्टो ऽपीत्य्यः ) अणिमयिश्चरययुक्तो ऽपीत्य्थैः स्वयमात्मना

(9 ) 8, एकैस्वर्यस्थितोऽपि प्रणतबहुफलो. ( २) 4. ४, प. ५. परस्तात्‌

#-4 वैन्य.

४.१९)

अष्टाभियेस्य छ्रत्स्नं जगदापे तनुभि्विभ्रतो नाभिमानः सन्मागा लोकनाय व्यपनयतु वस्तामसी ृततिमीश्ः॥ १॥ ( नान्यन्ते ) स॒त्रधारः--( नपथ्याभिमुखमवल्येक्य )` मारिष इतस्तावत्‌ ( प्रविदयं ) पारिपारर्बंकः-- भाव अयमस्मि

कृत्तिवासाः कृपतिश्वर्म वासो वसनं यस्य स॒ तयोक्त तेनअर्किचन इत्यर्थः ) यः कान्तासमिश्रदेहो ऽपि कान्तया च्रिया

संमिश्र: संमिकितो ( सक्तो ) देहः शरीरं यस्य॒ ॒तथोक्तस्तादशोऽपि

सन्‌ अर्धौगीक्तनारीदेहः ) | अविषयमनसाम्‌ विन्दन्ते विषयाः ब्दादयो येषांतान्यविषयाणि तनि मनांति येषां ते तयोक्ताः तेषां यतीनां संयमिनां परस्तात्परः श्रेष्ठः दिक्शब्देभ्यः सप्तमीपञ्‌ चमी प्रयमाम्यो दिग्देशकल््वस्तापिः ' इत्यस्तातिप्रत्ययः। अष्टाभिस्तनुभि पृथिव्यादिमतिभिः कृत्लं सर्वे जगष्टोकंबिभ्रतो पि धारयतो्पि यस्याभे

मानः प्रणयो ममत्वं भवात एषु विशेषणेषु विरोधालुकरेणान्येश्वरस्य `

ल्ेकातिशापितं व्यज्यते अत्र प्रणतवहफलकैश्वयैस्वित्या कान्तासंमिश्र णेन जगद्भरणेन ईश इत्यनेन रोकोत्तरः कश्चिद्राजास्मिन्नाटके वर्ण्यत इति सूच्यते सन्मागीलोकनायेत्यनेनात्र कश्चिन्मागीभिनयः प्रतियत इति सूच्यते मार्गो नाम नाटचविेषः ययेोक्तम---“ भार्गोऽ दे शीतितद्वेधा कयितं नाटचवेदिभिः तत्रमार्गौ भवेन्ना नाटचेदोक्तल- क्षणम्‌ इति एष नान्दीश्छोकः नान्यादिलक्षणं तु

र्यान एवामिहितम्‌ अत्र पदादिनियमोऽपि वा ' इति विकल्पात्पदा- दिनियमामावः अव प्रस्तावनां वरिवुस्तद ङयोः प्ररोचनामृखयोः भररोचनां

प्रस्तौति -- नान्यन्ते सृञ्रधार इत्यादैना मारिष इतस्तावत्‌ ग- ` गम्यतामिति शेषः नटः सूत्रधारेण मारिष इति वाच्यः " सूत्री नडेन ` मावो तेनासौ मारिषेति ' इत्युक्तत्वात्‌ | परि पाशं यया भवति तया `

(१) सवै. (३). नः (३) 8. ©. १५५ सूत्रधारः (* ) 9७.५44

अद्धमतिषिस्तरेण, ) 0, ©. ४५ गरिगान्वकः

(३)

. भूत्रधारः--अभिरितोऽस्मि विद्परिषदा कारिदासम्रयितवस्तु ~ मालकािमिवरं नाम नाटकमसिन्वसन्तोत्सवे प्रयोक्तव्यमिति तदारभ्य तां सेगीतम्‌ पारिपाश्वैकः- भौव तावत्‌ प्रथितयशसां भासंसीमिछकविपुत्ादनिं प्रन्धानतिक्रम्य वतेमानकवेः कालिदासस्य क्रियायां कयं परिषदो बहुमानः सुञ्रधारः--अयि विवेकनिश्रान्तमभिहितम्‌ पर्य | =: 4... पुराणमित्येव साधु सबं चापि काव्यं नवमित्यवद्यम्‌

ब्तंत इति परिपाश्चैकः नट इत्यर्यः परिमुखं ' इत्यत्र चकाराष्क्‌ (सूत्रधाराकििद्नगुणको नटः पारिपाश्चकः) अभिहितोऽ"मी- स्यादि ! विद्रत्परिषदा बिद्‌ षां विपश्चितां परिषत्सभा तया अनेन सभा- प्रशसा क्ता कालिदासग्रथितवस्तु काल्दिसेन . ग्रथितं वस्तु कथा (अभिनयपदा्थजातं ) यस्मिस्तत्तयोक्तम्‌ माखविकाभिमित्रम्‌ अ- ` धिकत्य कृते प्रन्ये ' इत्यण्‌ यथा मालतीमाधवम्‌ ( माल्पैकासदहितोऽ- भिमित्रः शाकपार्विवादित्वात्‌ समासः तमापिर्त्य कृतो प्रन्यः अण्‌

द्द्रसमासत्वे किरातअजुनीयवत्‌ छप्रत्ययः स्यात्‌ प्रयोक्तव्यमभिनेतन्यम्‌। अभिनयश्च यद्यपि तत्रत्यपात्राणामेव तथापि तदुपलक्षितग्रन्यस्यापि उपचर्यते )। वसन्तोत्सव इत्यनेन कालनिदे शः कृतः। संगतिं नाम कार्यत्रयम्‌ | तदुक्तं संगीतरत्नाकरे --' नृत्तं गतिं तथा वाद्यं त्रयं सगीतमुच्यते ' इति आरभ्यतां प्रयोक्तु यलः क्रियताम्‌ मा तावत्‌ मा इति निवारणे भास-कविपुत्र- सैमिछछकाः कवयः प्राक्तनाः प्रचन्धान्रूपकाणि अति करम्योछङ्व्य परिदत्येत्य्थः। कालिदासस्य कालिदिसनामघेयस्य कवेः क्रियायां कृतौ रूपके कथं घहुमान आदरातिशयः कयमिति आक्षेपे विवेकशनांं विवेकदुर्वटम्‌ ( विवेको विश्रान्तो निवृत्तो यस्मात्‌ निष्ठान्तस्य परनिपातः ) विवेकडान्यमित्यरवः क्रिय्रिशेषणं चेतत्‌ पुराणमित्या-

(१) 4. 8.9. +. ?. विद्वत्‌. (२) ` 8. ©. अ... 2, 1९४4 + मातावत्‌ & ) 4, भासकविसौमि्काभेमित्रादीना. 8. ७५

4. धावकसौमिद्टकविपुत्ा्दीनां. }५, माससौमि्टकंकंविपुत्रादीना, ( ) ॥, (@."1. स्तौ कि छ्तो बहुमानः }४. परिषदो.

४, अकमय 4

५५५५५ ११५९५५७५, ` "क ) |

सन्तः परीक्षयान्यतरद्जन्ते मढः परप्रत्ययनेयबुदधे; पारिपाञ्ंकः-- आर्यमिश्राः प्रमाणम्‌ सू्रधारः--तेन हि त्वरतां भवान्‌ शिरसा प्रथमग्‌ दीतामाज्ञामिच्छामि परिषदः कर्तुम्‌ देव्या इब धारिण्या; सेादक्तः परिजनोऽपम्‌ ( इतिं निष्करान्ती 1)

प्रस्तावना | ५. >... ५५, ५... ६५.०७५ ९१.०.१५

दि सर्वं काव्यं कवेः कर्म कतिरित्यर्यः पुराणमित्येव पुराणत्वदिव साधु रम्यं भवति नवमिति “वत्वादेव अवयं गमं भवति कितु सन्तो विद्वांसः ( सद सद्धिवेकरिनः ) परीक्ष्य पुराणं नवं काव्यं गुणतो दोषतश्च परामृश्य अन्यतःत्तयोरेकं पुराणं नवं वा गुणयुक्तमिवयर्थः भजन्ते स्वीकुभन्तीतयर्यः मृटो ऽस्तु परपत्ययनेयवुद्धिः परस्यान्यस्य ` प्रत्ययेन ज्ञानेन ( विश्वासेन तच्छदधादर्शनेनेतियावत्‌ ) नेया प्राप्या बद्धिर्थस्य तयोक्तः ( तथा प्रेञावताम्‌ गुणदोषाकेव भैरवागौरव- योस्तत्रतरे नव्यप्राचीनत्वे इत्यतोऽज प्रन्ये बहगुणवत्वात्‌

प्रवातः स्यात्‌ नतु नव्यतवेनानादर इति भावः ) अनेन कविकान्यप्रशंसा कृता शिरसेस्यादि एवं परिषदः ( प्रसायाभिनया्थै तदाज्ञां निषु प्रकृतपात्रप्रवेशनाय कयां प्रस्तौति ) शिरसा मूध्नौ प्रथमगुदीतां पूः स्वीकताम्‌ शिरसा ग्रहणेन भक्त्यति शयो गम्यते परिषदः सभाया आज्ञां शासनं कर्तुं निर्तेपितुमिच्छाम्यभिलषामि अत्रोपमामाह- धारिण्या देव्याः धारिणी नाम कवानायकस्य पतनी तस्या आज्ञां सेवा दक्षः परिचयौनिपुणोऽयं ( पुरोवतीं अनंतरमेवरंगभमौ प्रवक्षय॑तं रा्ञी- परिजनं अंगुल्या निर्दिशक्नाह ). परिजन इव परिचारको जनः परि. जनः अनेन प्र्िपहेतुः प्रयोगातिशयो नाम लाङमुक्तं भवात प्रस्ताबना कविरिदानीमङ्मारभमाणः कयोपयोगितया प्रमं मिश्र-

(१) ^, ©. ०५५. दति,

€.

(५ )

( ततः प्रविशति चेटी )

चे - आणतष्दि देवीए धारिणीर अडरप्पैउत्तोवदेसं चलिअं णामणट्रअं अन्तरेर्णं कीरिसी मालविरएत्ति णद्भारिअं अज्जगणदासं पुच्छिदुं ता जावं सीद सार गच्छम्दि (इति परिक्रामति ) ( कं )

( तरतः प्रविशत्यप॑तचेटी आभर णहस्ता )

भ्रथमा--( अन्यां ष्टा) ह्म कोमुरीए कुदो दे इअं ॒धीरदा जं समीवे वि अदिक्तमन्ती इदो दिटिण देति। (ख) ` दविततीया--अम्हो बडलावलिओ सहि देवीं दं सिपपिसओसादो आणीदं सप्यभदासणाहं अङ्गुलीयं सिणंद्ध िंञज्ाअन्ती तुह उवालम्भे

( ) आज्ञघ्रास्मि देव्या धारिण्या अचिरप्रवृत्तोपदेशं चलितं नाम नाट्यमन्तरेण कीदशी माह्छविकेति नाटबाचायंमायगणदासं प्रष्टुम्‌ ` तावत्सगीतशालां गच्छमि (ख) हला कौमदिके कृतस्त इयं धीरता। यत्समीपे ऽप्यति क्रामन्तीतो दृष्ट ददासि

विष्कम्भं नामायपिक्षेपकं प्रस्तौति ततः प्रबिशतीत्यादेना ` अन्तरेणेत्यय निपात उपदेशार्थे वतेते चलितं नामनत्त

(नाट ) विशेषः तदुक्तं“ तदे तचचलितं नाम साक्षाद्यदभिनीयते व्यपारेश्य

पुरावृत्तं स्वामिप्रायप्रकाशकम्‌ ' इति ( वृषपवदुहितुः शिष्ठाया ठतिश्वतुर्भिः पदैः समन्वितं छलिकं नामनाटकं अचिरमुपनीता पदेश | धृतनियमा कीदशं पदे शं गृह्णातीति जिज्ञासां नःट चाचार्य समीपे सखीप्रेषणमिति द्रष्टव्यं ) धैर्यम्‌ चांचल्यं प्ररेतविषयमपेक््य विषया न्तरे ऽनासक्ततेत्यथेः। ) यत्स्मपिनाप्यतिक्रामन्तीतो ष्टि ददाति अहो (१) प. ¶. बकुलावलिका. ( ) 1. अविरोवणीदा. ८३) 8. पि. ©. ¶. ख्लिअं ( उ्लिकं) (४) . अन्तरे ८( उषदेकषगहणे ) „ष (५) दाव ( तावत्‌ ). ( ) 2. ००. ततः ( ) 8. तै, ©. 1. आामःणहस्ता द्वितीया केरी. (८) 8. पि. ©. 1. अन्या.(९) }९, समीवेण. (१०) प, [णष्ललेाक्णद्5. (११) ए, प. ©. 1, णा ( नाग ). (१२) 8.14. 0. णिब्भाटअन्ति ( निभाटयर्ता )*

पडिदण्हि | ( )

बकलाबछिका--( विलोक्य ) ठाणे ख्वं सज्जदि दिद अङ्कलीअएण उन्मिण्णकिरणकेसरेण कूमुमिदो मिअ दे अग्गहत्यो पैडिभादि ( ) क:

कौमुदिका हला पथ्यिदासि (ग) |

बकु ०- देवीए एवय वअणेण नद्ाआटिअं अञ्जगणदासं' उवदेसग्गहः णे कीरिषी मालविएत्ति पुच्छिदुं ( ) च्व ।(ष) 4. (क ) अहो वकुलवलिका सखि देव्या इदं रिन्पिसकाशादानीतं , सर्पमुद्रातनावमङ्गुलीयकं स्निग्धं निध्यायन्ती तवोपाकूममु, पूतितरस्मि

( ) स्याने खल्‌ सज्जति ट्टे: अनेनाङ्गुर्छधकेनोद्धिन्नकिरण- केसरेण कुस॒मित इव ते प्रहस्तः प्रतिभति

( ) सखि कुत प्रस्ितासि

( ) देव्या एव वचनेन नाटचाचार्थमायगणदासमपदेशग्रहणे कीदशी ` मालविकेति प्रष्टुम्‌

(आकस्मिकदर्शने हषौश्चर्ययोतकं अहो इत्यव्ययं ) वकृत्मवलिका साति इदं देव्याः शिन्पिसकाशादानीतं नागमुद्रासनायमङ्गुीयकं (नागमृद्रया ना- गविषहारकमणिखवितया मुद्रया नामांकनयेोग्ययंत्रमेदेन सनां युक्तं अनेन विषहारकमणिना विद्‌ षकस्य कत्रिमविषापदारो भविष्यतीति चतुर ङक व्यक्तीभविध्याति ) लिग्धं निध्यायन्ती पश्यन्ती तवोपकम्भे पतितास्मि ` अनेनाङ्गुलीयकेनेद्धिन्नकिरणकेसरेण कुसृमित इव ने ग्रस्तः नाटकाचा- `

(+> ७. ©. रे, 1, १७४4 प्रवमा ५०व द्वितया ०॥ १११००४४ णि ककु, ४०4 कौम. (२) †. कि. 9. 1, ०५, (३) 8.8.¶, ` ४५५ दे (४) 8, (७. 1, पि, ०, ( ) २, १५११ तृमक्छ तुम उण, (६ ) `

6. ५११ सुणाहि. (५) ए, ७. प. 1, ०० (<) ति. नाढमाः ( १) ` 1, ©* 1, ।५७॥ पृचच्वं 11८79 ४०५ रष, स्वि ५५ ००, ।४8॥ पुच््छिवि,

( ७) कमु ०-- सहि ईरिसेण वाव्वारेण अर्पोणिहिदा वि दिध किल सा

| भटरिणा। (क) .

बङ०-- आनं देवीए परस्सगदो सो जणो चित्ते दिष्टो (ख ) कौमु०-- कहं विअ (ग) बकु ०-- सुणाहि चित्तसार गदा देवी प॑चग्गवण्णराअं वित्तरेदं

1 आअरिस्स ओलोअन्ती चिद्रइ तरि अन्तरे भद्र उवरि ( घ)

कमु ०-- तदो तदो ( ) बक ०-- तदो उवआराणन्तरं एक्तासणोवविदरेण भद्रिणा चित्तगदा

देवीए परिअणमज्ज्ञगदं आसण्णञअरं तं पेकेवअ देवी पुच्छिदा (छ)

कौम ०--किवेअ | ( )

व्यापरेणासंनिष्ितापि [ ~ | कय + ( ) सचि ईशेन व्यापरिणासनिरितापि दष्टा किर साभा ^“. ( ) आम्‌ देव्याः पाशचंगतः संननश्वितरे दः > ८.२ ==:

(ग) कथमिव

( ध) णु चित्रशालां गता देवी प्रत्यग्रवणरागां चित्ररेखामाचारय स्यावल्छेकयन्ती तिष्टति तस्मिन्नन्तरे भर्तोपस्वितः।

(चं) ततस्ततः ^~

( ) ततश्चोपचारानन्तरमेकासनोपविष्टेन भत्र चित्रगताया टेव्या प्रिजनमध्यगतामासन्नतरां ( चरां ) तां प्रक््य देवी पृष्ट ` (ज) किमिव।

. र्यमार्यगणदासं ष्टम्‌ उपदेशग्रहणे कीटशी मालिकेति सलि ईशेन

"चा 0 कक कक्‌ ^

व्यापारेणासिनिदहितापि सा कयं भत्र ट्टा ( ईदरेन अभिनयशिक्षण व्यापारेण कर्मणा तदभ्यासाय अन्यत्रावस्थितेरावरयकतवात्‌ तस्याः तत सनिधिसंभव इत्याह असन्निहितेति देव्याः अन्तः पुरस्य वत्यर्थ; कथं

(3)8. 6. पि.ण. साकं माणा दद्रा (२), ©, पि,

सो जणो देवीर &५ ८३) 8, ©. 4. ४५१ नदा. (८४) पि. ०० क&

४04 नि भटा. ८५) 8. 6. 1, च. ०, तदो अ. (६) 8.

५७. 1, आस्ष्णपरिआरिथं & म. आसण्णदारिमं ). (८५) 13. ©, पि. प. किचि 4

4

११५४.

(#) |

बकु9-- अपु] इअं दारिआ तह आसण्णा आसिहिदा रकिणामहे अत्ति। (क)

कौम ०-- भाकिदिविपेसेस॒ आअरो पदं करेइ तदो तदो (ख )

बकु०- तदो अवहीरिअवअणो भद्र किदो देवीं पुणोवि अणाब न्धिदुं पउत्तो तदो कुमाीए्‌ वसुलच्छीए्‌ आचक्खिदम्‌ आवत एसा माखप्रिएत्ति ( )

कौमु ०--( सस्मितम्‌ ) सरिसं क्खु बालर्भीवस्स तैदो वरं कोहि ( )

बक ०-- किं अण्ण | सेपदं मालविंआ सवितेसं भट्रिणो दंसणपहा- दो रख्खीअदि ( )

( ) अपूर्वेयं दरिका तवासन्ञालिलिता किनामघेयेति

( ) आकृतिविशेषेष्वादरः पदं करोति ततस्ततः

( ) ततोऽवधीरितवचनो भनत्तौ शङ्कितो देवीं पुनरप्यनुबन्ध् प्रवृतः ततः कुमार्या वसुलष्षम्याख्यातम्‌ आउत्त एषा मालवकेति ^... ( ) सदशं खल्‌ बालभावस्य ततः परं कयय

( ) किमन्यत्‌ सांप्रतं मालविका सविशेषं भवै शीनपयाद्रक्ष्यते

भत्र द्षटेत्यक्तिः प्रकतकयप्रसंगार्यः अनेन कयोद्रातेन तस्याः भतरं प्रवेशो भविष्यतीति प्राकूपृचितं असूचितस्य प्रवेशो नास्ति इति नाटकसंप्रदायात्‌ तत्मृ चनं ) आमेत्यभ्युपगमे ( आमइत्यगीकारे ) जनो देव्याः पा्खगतश्िवे ष्टः ( प्रत्यग्रः वर्णस्य रागो यत्र चित्र- ` रेखायां ताद्षौ ) भरत चोपस्थितः आसन्नदारिकां अपूरवेथं दारिका आसन्नाच देव्या आनिविता किनामघेयेति

(१ ) 4. अपृन्व्वा ( ) 8. ७. ¶. देवी आसण्णा नि, आसण्णा देवीए ( ३) 7, 0. ¶1. अकिदिविसेते ( आखतिषिशेषे ). ( ) ४, 2. 00. ( ) पि. ०४, अकि 8०५ 4. पुणो पणो वि गिन्बषि, (६) ॐ. ५* प. 1. अज्ज. 97 अज्जउत्त 12. ध, ४५५ जाव देवी कदि दाव. (*) ए. ~. अ. 4. छं (<) ति. वदोकरं १०१8. 9. 7. कदो अकर. `

(५)

कौमु ०--हस अगुचिद अप्पणो णिंओञं अहं वि ददं अङ्गुलीः

अञ देवीए उवणरस्सम्‌ ( इति निष्क्रान्ता ) ( )

०-( परिक्रम्यावलोक्य ) एसो णद्राआरिओ अज्जगणदासो" सेगीद साल्मदो णिक्रमाद` जाव से अत्ताणं दंसेमि ( इति परिक्रामति ) (ख)

( प्रविस्य )

गणदास्षः- कामं खल्‌ सर्वस्य कुखविद्या बहुमता पुनरस्माक

नाटचं प्रति मिथ्यागौरवम्‌ कुर्तः। देबानाभिदमामनन्ति मनयः कान्तं क्रतुं चाषं

( ) हला अनुतिष्ठ आत्मनो नियोगम्‌ अहमष्येतद कुंलीयकं देव्या

उपनेष्यामि

( ) एष नाट्याचाययं आर्यगणदासः सेगीतशालखतो निष्क्रामति यावद स्मायात्मानं यामि

( अवधीरितं देव्या प्रयुत्तरादानेन अवज्ञातं वचनं यस्य अत एव शंकितः शंका मद्र चनश्रवणे पि कयं नोत्तरं दत्तमित्यत्र केनचित्‌ कारणेन भवितव्यं

ग्वा

4.

८,

नवेत्याकारकः संशयो जातो यस्य तारकादेलात्‌ इतच्‌ ) आर्यं एष इत्यादि

अपुव्वा इअं दारिभ ' इत्यारम्य ' दे सणपहादो रक्लीअदि ' इत्यन्तेन वाक्यकदम्बकेन गम्यमानो मालविकागोचरो राज्ञो ऽभिल्ाषो+त्र नाटके बीजः मित्यनुपस्येयम्‌ सखि आत्मनो नियोगमनुतिष्ठ एष नाटचाचार्यः संगी तशाल्ातो निर्गच्छति देवानामित्यादि मुनयो भरतमतङ्गादय इदं नायब

(१ ) 8. ©. ‰. परि. अत्ताणो. (२) प. अत्ताणो णिओओ अणुचिद्र. (३) 4. 2. देवीए अंगुलि &०. (9४) 8. ७. प्रि, ¶. ०, (५ ) 8. ७. ४. 1, गिगच्छदि. ( ) 8. ©. ४4५ गणदासः 0616. (५ ) ‰. ©. वि. 7. ४44. अपि. (< ) 3. ©. 4. कुतः | तथाहि ३१, तथारि- (९ ) 2१. शान्तम्‌.

= नद+^ १,

(०)

सद्रेणेदमुमाक्ृतव्यतिकरे स्वादे विभक्त द्विधा ेगुण्योदधवमत्र लोकचरितं नानारसं दश्यते `~“ ` नाटचचं भिन्नरुचेजंनस्य बहुधाप्येकं समाराधनम्‌

देवानामिनद्रादनां क्रतुं यज्ञं (सकल्पं च) आमनन्ति (एतदनि चक्षुषः प्रीतिकरी देवानामभीष्टय संकल्पयो परािरितयर्य) कीदशम्‌ कांतं (शान्तं) सीम्यम्‌ पशुविशसनादिरहितमित्य्ंः पुनः कीशम्‌ वचाघषुषं चकषुरनुभाव्यम्‌ ( तेन वास्तविकयज्ञादस्य विशेषः ) अस्य नाटेबस्य क्रतुत्वनिरूपणं चतुरमद सारनाटयवेदविहितकम॑त्वादिति मन्तव्यम्‌ तथा कुमारसंभवे-“ कर्म यज्ञः फलं स्वर्गः ' इति अत्र॒ चतुर्ैदसारत्व भारतीये प्रतिपादितम्‌“ सवंशाखत्रायंसेपन्नं॒सरवरिल्पपरद डनम्‌ नाट्-

सज्ञमिमं वेदं सेतिहासं * करोम्यहम्‌ एवं सेकल्प्य

रन्‌ नाठचवेदं ततश्चक्रे चतुर्वेदाङ््‌ संभवम्‌ जग्राह

त्सामभ्यो गीतमेव यजर्वेदादभिनयान्रसानायर्वंणादपि

बद्धो नाय्यवेदो महात्मना एवं भगवता सृष्टो ब्रह्मणा ललितात्मना उत्पाद्य नाटबवेदे तु ब्रह्मोवाच सुरेश्वरम्‌ इति ` प्रकारान्तरेणाप्यस्य करतुत्वं प्रतिपादितम- प्रयोगं यश्च कुर्वीत प्रेते चावधानवान्‌ याग- तिर्वेदविदुषां या गतियंज्गयाजिनाम्‌ या गतिर्दानशीत्मनां तां गात प्रापुयान्रः ' इति पुनः कीद्‌ शमिदं नाटच्‌ रुद्रेणेश्वरेणेमाकत- व्यतिकरे उमया पार्वत्या कृतो' व्यतिकरः सेवन्धो यस्य॒ ॒तथोक्तस्त-

सिमन्साङकं आमदेहे दविधा लमस्यताण्डवरूपेण लं तम्‌ ( च्रीपुंसयोनत्ययोर्भेदात्‌ मनतंनं गी स्रीनर्तनंकृतमित्यर्थः ) तथा चोक्तं॑संमीतविदाविनोदे -* उदण्डताण्ड- बमुद नरितलास्यलील कतुं स्वयं युगपदेव समुतसुकात्मा यकामिनी कलितिकम्रतरार्धकायः सोयं विभाषे विभुरादिनटः सराणाम्‌ ' अत्र नाटबे त्रेगुण्योद्रवं त्रयो गुणाः सत्वरजस्तमास्येव , ५५ | चतुर्वणादि त्वासवा्ये ष्यञ्‌ तस्मादुद्भवमृदतं लोकचरितं ल्मेकानां लोकस्यानां ( प्रशस्यानां ) रामाद्यनुकायौणां चरितं ( चेष्टितं ) सुखदु :ख-

( 3 ) स्वगि; ( २) १. समाराधकम,

ना का

नीक

(भ.

बकु०--( उपगम्य ) अज्ज वन्दामि (क ) गण०-- भद्र चिरं जीव

बकु ° -- अञ्ज देवी पुच्छदि अवि उवदे सग्गहणे णादिकास्सादं बो तिस्सा मालविएत्ति ( )

गण०-- विज्ञाप्यतां देवी परमनिपुणा मेधाविनी चेति किं बहुना

+ , ° ष,

यद्यत्पयोगविषये भाविकमुपादश्यते मया तस्ये

1 - ५०.९१५ +^... (क ) आयं वन्दे ( ) आर्यं देवी पच्छाते अप्युपदे ग्रहणे नातिष्किश्यति वः

शिष्या मालविकेति १० "८६. ‰.८..2 4

मिश्रात्मकं चरित्रं नानारसं नाना बहुविधा रसाः प्रीतयो यस्मात्तयोक्त म॒ इस्यते ज्ञायते सामाजिकैरनुभयत इत्यर्थः स्मकानुकारयस्य चरि तं सुखदुःखमिश्रात्मकमपि नाट्येनमिनीयमानं सत्सुखरूपेभेव प्रतीयत इति भावः पुनः कीटशम्‌ नाटचं नटनप्रयोगः एकमप्येकैकमपि भि न्नरुचेर्भिन्ञा बहुविधा रुचयः प्रीतयोयस्य स॒ तयोक्तस्तस्य जनस्य बहुधा बहुप्रकरेण शृङ्रहास्यदिरूपेण समाराधनं सेतर्षकम्‌ तया चोक्तं भारतीये --त्रैरोक्यस्यास्य सर्वस्य नाट्यं भावानकीर्तनम्‌ धमे धर्मपरत्तानां कामः कामोपसेविनाम्‌ अर्यौपजीविनामर्यो धुतिरूदि चेतसा मरू | नानाभावोपसंपन्ने नानावस्यान्तरात्मकम्‌,। ोकवत्तानुकरणं नाटचमेत

, न्मया कृतम्‌ ॥एतद्रसेषु भवेषु सर्वैकमंक्रियासु सर्वोपदेशजननं नाट मेत द्रविष्यति तज्ज्ञानं तच्छित्पं नसाविद्यान सा कल | नासौ

योगो तत्कर्म नाटबर प्स्मन्यन्न टर्यते इति यद्यदित्यादि प्रयोगविषय ऽभिनयर्वे मया तस्थै मालविकायै यदयद्राविकं भाववत्‌ ( शुं गाायवस्याविशेषाय दितंठक्‌ ) अतइनिठनै इत ठन्‌ नुत्यमित्यरथ;।

(१) 8. 6. प. 1. जेत्य, (२) 8. ©, ¶. अज्ज ( आये).

(२) पि. इ्िनावि, ‰. हशयति, 8. 0. क्किष्यते. (३) 8. ७. ४. ¶. 204 भद्रे. ( ४) 2. विभाव्यतां.

~ ११)

तत्तद्विशेषकरणात्प्त्युपदिशतीव मे बाखा ५॥

बकु०- ( आत्मगतम्‌ ) अदिक्रमान्तिं विअ इरावदिं पेक्तैीमि

( प्रकाशम्‌ ) किदत्या दाणि वो सिस्सा जैरस्सि गुरुअणो एवं तुस्सदि

(क)

गण ०-- मद्रे तद्विधानामसुलभत्वातृच्छामि कुतो दे्व्यास्तत्पात्र मानीतम्‌

बकु ०--अत्यि देवीए वण्णावरो भादा वीरसेणो णाम सो भद्िणा अन्तपील्दुगगे मरन्दौइणीतीरे इाविदो तेण सिप्पाहिआरे जगा इअं दरिएति भइणीर्प उवाअणं पिदा ( )

( ) अतिक्रामन्तीमिवेरावतीं प्रेषे कृतार्यदानीं वः शिष्या स्वां गुरुजन एवं तुष्यति

(ख) अस्ति देव्या वणीवरो भ्राता वीरसेनो नाम मत्रीन्तपाच्दुर्गे मंदा- ५५ स्थापितः तेन शिल्पाधिकारे योग्येयं दरिकेति भगिन्योपायनं ता।

ययोक्तं --* आङ्किकाभिनयप्रायमल्पवाचि ससालिकम्‌ भावानामास्पदं नित्यं पदार्यव्यञ्जनात्मकम्‌ ||इा॥ उपदि श्यते बोध्यते तत्ता्ैशेषकरणात्तस्य तस्य भाव्रिकस्य विशेषेणातिशयेन करणं निवन तस्मात्सा बाल ( बाल्या- .. वस्थापन्नापि वयसा) मे प्र्युषैदि शचतीव अनेन तस्या नृतये प्राविण्यातिशयो गम्यते (यो हि विशेषज्ञः शिक्षकः इतिसंप्रदायात्‌ )। अतिक्रान्तमिवेरा- वतीम्‌ पञ्यामि (इरावती अप्सरो विशेषः) (वणैतो ऽवरः तविितुः वैरयागर्भजा- तत्वात्‌ तस्यावरत्वम्‌ ) वीरसेनो नाम भ्रौ नर्मदातीरे ‹न्तपाल्दुर्गे स्यापितः।

(१) पपि. अदिकतं ( अतिकतां ). (२) पि. पेच्छामि ( ष्रश्यामि ). (३) पि. जाए (यस्यां) (१) 3.9. 9.¶. दे्यातत्‌. (५) मि. 0. (६) 8. ७. 1. अन्तवालदुगे णम्मदातीरे. }१. णम्मदातीरे अन्तवालदुगणे. णम्मदाकले. 12. मंगणीदीरे. (५) प. ४4 माणि. ( < ) 8. ©. 4. बहि ( प. मकण ) देवीर्‌

( ९३ ) भोम. =

„मातवा ( प्रकाशम्‌ ) मयां भद्रे यशस्विना भवितव्यम्‌ यतः : पात्रविशेषे न्यस्तं गुणान्तरं रजति शिल्पमाधातुः :: जलमिव समुद्रशु क्तौ मुक्ताफरूतां पयोदस्य ०---अह कर्हिवो सिस्सा | (क ) गण ०--इदानीमेव पञ्‌ चाङ्गाभिनयमुपदि श्य विश्रम्यतामित्यभिदिता दीर्धिकावल्गेकनगवाक्षगता परवा्मासेवमाना तिष्ठति

बक०- तेण दि अणुजाणादु मं अज्जो जाव से अज्जपरितोस- णिवेदणेण उच्छाहं वहवोमे ( )

(क) अय कुत्र वः रिष्या

(ख) तेन ह्यन॒जानातु मामार्यः यावद स्या आर्यपरितोषनिवेद नेनोत्साहं वधेयामि

तेन शिल्पाधिकारे कल््विद्याधिगम इयं योग्या दापिकिति भणिता भगिन्या देव्या उपायनं प्रेषिता अनूनवस्तुकामनुनमनल्पं विरिष्टं वस्तु वृत्तं यस्याः सा तथोक्ता तां संभावयामि मन्ये पाञ्चविशेष इत्यादि आधातुरूपदे- टुः शिल्पं कल्याविद्या पात्रा्शोषे विशिष्टपात्रे न्यस्तं निहितं सत्‌ गुणान्तरं गुणविशेषं व्रजति प्राति अत्रोपमामाह पयोदस्य मेषस्य जलं समुद्र शुक्तौ न्यस्तं सत्‌ मुक्ताफलतां भीक्तिकत्वामिव || अय किम्‌ अय कुत्र वः शिष्या इदानीमित्यादि पञ्राङ्ाभिनयं पञ्च अङ्गानि यस्य॒तत्त- यक्तम्‌ प्रेरणापित्यर्वः तस्याभेनयः प्रयोगस्तमिदानीमदैवोपदिस्य

(१) 8. ७. प. ¶. आछ्तिविशेषपरत्ययात्‌. २. आङतिपरत्ययात्‌. (२) 98. 68.2.14. मद्रे मयापि. (२) पात्रविशैषन्यस्तं, (9) 8. 0.4. अज्ज {0 अह 200 पि. 90 अह इ. (५) 8. 6७. 14. दाणि. (६) 38. 6.17. पचागादिकमभिनयं. परचागमभिनयं. (५) 8.0. ति. 1. ४५ मया. ( < ) अप्रवातं पुरोवातं, ) ३. ४4 पृणो. ( १० ) १. अज्जस्स प्ररितोस. &८५

( %8 ) मग ०--दस्यतां ससी अहमपि लब्धक्षणः स्वगृहं गच्छ ( इतिनिष्करान्ती ) मिश्रविष्कम्भकः (ततः प्रविशत्येकान्तस्थ परिजनो मन्त्रिणा केखहस्तेनान्वास्यमानो राजा )

राजा-- ( अन॒वाचितकेखममात्यं वि्मरेक्य ) बाहतव किं प्रतिप

~ , द्यते श्रदर्भः। “~:

अमात्यः -ओत्मविनाशम्‌ राजा-- पदे शमिदानी श्रोतुमिच्छामि

शिक्षयित्वा प्रवातं प्रशस्तो वातो यस्मिन्देशे तयोक्तस्तम्‌ प्रेरणस्या ङु पञ्चकमुक्तं सगीतरल्नाकरे -' न्तं तथा कैवारो मर्मरो र) (बागडं) तया गीतं चेति समाख्याते प्रेरणस्याङ्पञ्चकम्‌

स्यातकरैवारं जागरं विना ( चित्ताकिश्रहस्तपादिरगैश्वष्टारिसाम्यतः

पात्रा्यवस्याकरणं पश्रांगो.ऽभिनयो मतः इत्यक्तपञ्रागकं आदिपदेन

भवेदाभिनयो ऽवस्यानुकारः चतुर्विधः आंगिको वाविकशचैवमाहार्थ साविकस्तया ' इत्युक्तचतुरंगकं अभिनयं पात्रादेः चित्तादिभैः साभ्य करण प्रकटो वातस्तमासेवमाना भजमाना ) इति अत्र

रूपनुान्तरोपक्रमकयनेन चङ्तिकनततं साकल्येन परिचितमिति सूच्यते तेन हि पुनरनु जानातु मामार्यः यावदस्या आर्यस्य परितोषनिवेदनेनोत्साहं वर्धयामि रब्धक्षणो लब्धः प्राप्तः क्षणो निर्व्यापारस्थितिरविश्रमो येन तथोक्तः स्वगृहमात्मगृहं गच्छमि मिश्रविष्कम्भकः ततः प्रविशतीत्यादि ( अन्वास्यमानः पश्वादु पवेशनेन सेव्यमानः | न्वापितमरूधत्योत वत्‌ अनुपूरमकासतेः सकर्ममकत्वम्‌ ) बाहतवेति त-

स्यामात्यस्य सज्ञा | वैदर्भो विदर्भराजः कि प्रतिपयते किं कायं मन्यते ` सेदे सेदि टावं श्रोतुभिच्छामि अनेन वैदभेणेदं प्रतिलिवितं प्रदयुत्त- ` (१) ए. 0. पि. 1. 4. विष्कमः (२) 8. 9. पि. 4. न्विति, (३) |

.बाहतक, ( ) 8. 9. (7. कहतक. (५) ए. 6.१. 1. चे (९) 1. निदेशं, 8. ७. निर्दर, ( * ) 8. 9. 4, ज्ञातं

| |

| $) अमात्यः इदमिदानीमनेन प्रतिलिखितम्‌ पयेनादमादषटः (पि-

तृच्यपुत्रो भवतः कुमारो माधवसेनः प्रतिश्रतसंबन्धो ममोपान्तिकमुपागच्छ न्नन्तरा लदीयेनान्तपाेनावस्कन्य गृहीतः त्वया मदपेक्षया सकलत्र

०५४

सोदर्य मोतैयितव्य इति?। त्न बो विदितम्‌ भेमिषरेषु

रज्ञां पततिः अतोऽ मध्यस्थः पूज्यो भवितुमर्हति पनरम्य ग्रहणविषवे विनष्टा तदन्वेषणाय प्रथतिष्ये अ्थीवर्यमेव माधवसेनो ' पूज्येन मोचयितव्यः श्रयतांमैमि संधिः "जर

सत्वेनाभिलिखितम्‌ पूज्येन पृजर्देण त्वया अभिमित्रेणेत्ययं; | अहं . वैदभं आदिष्ट आज्ञप्तः तमेवादे शं विवृणोति-- भवत इत्यादिना भवतस्तव॒ वैदभस्य पितव्यपत्रः . पितृध्रातुसुतो माधवसेनो नाम भतिश्रुतसेबन्धः प्रतिश्रतोऽडीकृतः संबन्धः कन्यकाप्रदानरूपो येन तथोक्तः ममोपान्तिकं मत्समीपे ( अक्ष ( आक्नोमत्रस्य तरस्य समपि ) उपसप॑न्नप गच्छन्ञागच्छन्नन्तरा मध्ये त्वदीयेन ववत्संबन्धिना ( वदर्भसंबन्धिना ) अन्तपलेन ( अन्तस्य परयैन्तस्य पालेन रक्षकेण ) सीमादु गैरक्षकेणावस्कन्य पयि प्रहत्य गृहीतो निरुद्धः ( अवरुध्य निगृहीतः ) बन्दीकत इत्यर्थः माधवसेनसूवया भवता वैदर्भेण मदपेक्षया ( अ्निमित्रे) मय्यपेक्षा इच्छा स्नेह इत्यर्थः तया हेतुना सकख्त्रसोदर्यो भायौभगिनीसहितः। “वोपसजेनस्य' इतिसहशब्दस्य सादेशः मोक्तव्यो विसजेनीयः इति समाप्तौ एतावता वैदर्भेणाभिमित्रपेषितपति कायानुवादः कृत ` इत्यनुसं धेयम्‌ इतः परं प्रत्यत्तररूपं वैदभभवचनमच्यते-- एतन्ननु शो विदिः तमित्यादि एतद्वक्ष्यमाणं वो युष्माकं विदितं नन्वित्यत काकुरनुः सेधेया तुल्याभिजनेषु समानवंशेषु ज्ञातिषित्यथंः ( तथा माधव सेनः अस्माकमेकान्वयजः ततर ज्ञातिभिःसह वैरं विशेषतो नुपाणां भवत्येव |

( ) प्रतिेखित, २) 8. ©. 2. 7. उपसर्पन्‌. ( ) प. मोक्तन्यः (४) 8.6. 0. त्वो विदितं, }प. एतन्न नु वो विदितं , तन्नषो विदितं. (५ ) 4. भूमिभरेषु. £, म॒मोरिव हष. 0. ( ) ‰. प्रवृत्तिः ( ) 4. १. ००, (< ) 8. 6. सोदरी; 7, सोदरा. ( ) 3, ७, ¶, यतिष्ये. (१०) 8. ©. पि, अथवा अवश्यं, ( 3१ ) 8, ©, नि, 7, ४५ सया. (१२) ४4 मम.

न्द (९६) + 'मो यंसाववं विमुञ्चति यादि पञ्यः सेयतं मम श्यालम्‌ मोक्ता माधंवसेनं ततो ऽहमपि बन्धनात्सथः हंति

राजा--( पैरोषम्‌ ) कयं कार्यविनिमयेन मपि व्यवेहरत्यनात्मन्ञः। वा्हतव प्ररत्यामित्रः प्रतिकलचारी मे वैदः तद्यातव्यपक्षे स्थितस्य

` पूरवसंकल्पितमुमूलनाय वीरसेनपरमुखं दण्डचक्रमाजञापय धि "ऋ | कथि , ` थुः - अमास्य;-- यदाज्ञापयति देवः (१५१५६) £ `)

राजा-- अथवा किं भवान्मन्यते अमात्य; शाख्रदष्टमाह देवः कतः

अतः कारणादस्मिन्‌ विषये पूज्यो ऽभनिमित्रो भवान्‌ मध्यस्य: मध्ये उभ- यपक्षसाहाय्यस्याभवे स्थितः ) राजञां वृतिर्वतेनमीदश्येवधोतै यत्तन्न बो विदितमिति सबन्धः अतो.ऽस्मात्कारणाद वास्मन्नरये पूज्यो भवान्मध्य- स्यः समो भवितुमहीति अस्य माधवसेनस्य सोदयं पुनः स्वसा पुनर््रहण- विवे विनष्टा तिरोहिता ( सेोदरेत्युक्तिः प्रकतकयोपयोगिनी तचप्रेस्पषटं भविष्यति ) तदन्वेषणाय तस्या अन्वेषणाय गवेषणाय प्रयतिष्ये अय वोत पक्षान्तरे ( माध्यस्थ्यं विहाय माधवसेनपक्षपातित्वं कर्तव्यं चेत्‌ तवाह अयोति अय माध्यस्थ्यं विहाय माधवसेनपक्षपातित्वे मया वैद- भण हेतुकत्री पूज्येन मान्येन भवता अश्भिमित्रेण प्रयोजककर्त्रौ माधव सेनो वद्यं मोचनयिस्तदा अयमभिसंधिः अभिमुखः पणः उदेशो वा ) मोचयितव्यो त्याजयपितव्यः [' अभि संधिर्निश्वयः भै यै साचिबमित्यादि पूज्यो भवान्संयते त्वया निगितं मम श्यालं पत्नीभ्रातरं ीर्यसचिवं भैर्वस- चिवनामानं विमुश्रति यादि त्यजति चेत्‌ ततस्तस्मात्कारणान्मया सदयः सपदि माधवसेनो बन्धनात्‌ ( निर्गत्मत्‌ ) मोक्ता मुक्तो भविता मृशते कर्मणि छ्ट्‌। =

( ) 8. ७. 1. आर्यसंचिवं मुंचति. ( ) ६. मोक्तामाधवतेनस्ततो मया &५. ( ) 9. ७. च. 7. ०0. (१) 2. 00. सरोषम्‌. (५) 8. न्याहरति. ( ) 8. 0७. 1. कहतक. ( * ) 93. 0. च. 1. 4 ( < ) ०४. ( ) 0. सम॒न्मकनाय. ( १० ) 2१. वीरसेनमषं, ११) 9. 0. >. 1. ०,

८4 ( ९७ (क (५ 4 अविराधिष्ितराज्यः शः प्रृतिष्यरूढम्‌ खुत्वा

राजा- तेन ह्यवितवं॑तन्त्रकारवचनम्‌ इदमेवं निमित्तमदाय “` समुदयोज्यतां सेर्नपापिः

अमात्यः-- तया ( इतिं निष्क्रान्तः |} ( परिजनो ययाव्यापारं राजानमभितः स्थितः } ~~> ~ ^ | ( प्रैविरं ) बिदूषकः--आणत्तोहधि तत्तदोदा रण्णा गोत्तम चिन्तेहि दाव उ- बाञं जह मे जदिच्छादिद्रपडिकिदी माखकरआ पच्छकंखदं सणा ोदित्त मए विं तत्तहा किदं जाव से णिवेदोमि ( इति परिक्रामति ) (क) 1 राजा--( विदूषकं दष्टा ) अयमपरः कारयौन्तरसचिवोऽस्मानुप- |

= 1 जि कअ कः 3 92 0 वा =

नव॑संरोहणशिथिरस्तरर्वि सकरः समुद्धतम्‌

(कं) आन्ञपतो ऽसमि तत्र भवता राज्ञो गौतम चिन्तय तावदुपायम्‌ यथा मे य्च्छाष्टप्रतिकतिमालगविका प्रत्यक्षद शना भवतीति ।. मयापि तत्तया कृतम्‌ यावदस्म निवेदयामि

(जैक्तेति शीत्मर्यत॒णतत्वान्न तयोगे कर्मणि षष्ठी ) इति सिखिता्समप्तौ ` प्रत्यमित्र: स्वभावतः शत्रुः अत्र प्रकत्यमित्रतवं वरिषयानन्तरत्वादिति , मन्तव्यम्‌ ( यातव्यप्षेयुद्धार्थममियास्यमानपक्षे शत्रुपक्षे इति यावत्‌ दं उचते ऽरिरेभिरदं डाः पैन्यानि तेषां चक्रं समुदायं ) अचिराधिष्टितेत्या- दि ( प्ररत प्रनादिषु अचिरािषठितराज्यः अविरमाप्तयधिकारोऽरूढ- क्ैूठत्वाद टटमृलत्वाक्नवसंरोपणदिविलः नवाधिसेदणेन शिविलः छयमृकः

| समृद्धरतमुत्पाटयितुं नाशयितुं सुकरः ) तेनारूटमृलत्वेन हेतुना तन्त्रकारवचनमय॑ शास््रकारवचनमतरेतयं हि सत्यमेव भविष्यतीति शेषः

(१) 8.6. >. +. सेरोपण. (२) पर. ४44 कवन. (३) प. ` ४) ष. सेनाधिपतिः ( ) 2. ५७ ७१४५।६७४ 90© विद्षकः ( ) 0. 0. 1. ४५4 विद्षकः ( « ) 8. 6. 2.4.

६५ :

(९८) विदूषकः ( उपसूत्य ) वदु भवं ( ) राजा--( संशिरःकम्पम्‌ ) इत आस्यताम्‌

( विदूषक उपविष्टः ) राजा--कचिरदुपेयोपायद हीने व्यापृतं ते प्रज्ञाचक्षुः दूषकः - पओभसिद्धि पच्छ ( ) ५९ राजा-- कथमिव बिदूषकः--( कर्णे ) एव्वं विअ * (ग )

( ) वर्धतां भवान्‌ ( ) प्रयोगसिद्धि पृच्छ (ग ) एवमिव

हिशब्दोऽवधारणे ' हि हेतावधारणे ' इत्यमरः इदमेव वैदर्भस्य ` कार्यविनिमयरूपमेव वचनं वाक्यं निमित्तं हेतुमुपादायावलम्ब्य समुद्योज्यतां ्रव्त्यताम्‌ मयाच तत्तया कृतम्‌ अव गम्यमानं राज्ञो मालविकाद हीनौ त्सुक्यमारम्भो नाम प्रथमावरस्येति मन्तव्यम्‌ अत्र बीनारम्भयोः समन्वया- न्मुखसंधिरित्यनुसेधेयम्‌ उपेयोपायद शने उपेयस्य साध्यस्य मालविकासा क्षाद हीनस्योपायद शने साधनन्नाने ते प्रज्ञाचक्षुः प्रतिभाद्ष्टिः किचिदीषदपि व्यापृतं प्रसृतम्‌ अपि प्रश्रे ( उपायेन हेतुविशेषेण उपेयस्य प्राप्यस्य प्रकरणदिह दश्यस्येत्य्यादरीने साक्षात्करणे इय्ये्ण्यन्तात्‌ स्युट्‌ निमि्तर्ये सप्ताम इीनायेत्यर्थः ते तव प्रैव चक्षुः पदार्थपरिच्छेद कत्वात्‌ ुद्धिनेतरं व्यापृतं स्व्रिषयग्रहणाय सम्य कच्चित्‌ मालिकाया ह्यद नाय उपायं किविचिन्तितवानित्यर्यः) अत्रगम्यमानस्य माल्षैकारूपस्य बीजस्य विन्यासादु पक्षेपो नाम सेध्यङमृक्तं भवति ( प्रयुज्यते ऽस्मै इति प्रयोगः ` तस्य मालाविकादशनरूपस्य सिद्धि पृच्छ किमुपायवितनपुच्छयेति भावः) कर्णी एवमिव एतद चनं नियतस्य व्यापारान्तरभेदयस्य गृद्यतरार्थस्य

(१) 8. 6. प. 7. उपगम्य. (२) }प. अपि किंविद्येयोपाय &५, 20 ए. ©. 1. कञ्चिदुपायोपेय & ( ) २. ४4 जा, आः (४) ए. 6. 7. ५4 ( इत्यवद्यति )

६, शाजा-- साधुं वयस्य निपुणमुपक्रान्तं इदौनी। दुरधिगमतिद्धावप्य सिन्ञारम्भे वयमाशंसामहे कुतः ` अथ सप्रतिबन्धं प्रभुरधिगन्तुं सहायवानेव -.\..- दृश्यं तमसि परयति दीपेन बिना सचक्षुरपि ९॥ ( नेपथ्ये ) ` अलमलं बहु विकथ्ये राज्ञः समक्षमेवावयोरधरोतैरव्यक्तिभविष्याति राजा- सखे वन्नीतिपादपस्य पुष्पमुद्भिन्नम्‌ बिदू०--फलं विं अदेरेण देक्खिस्ससि ( ) ( ततः प्रविशति कश्चैकी )

( कं ) फलमप्यचिरेण द्रक्ष्यति

~ ककमा नारण्यो

प्रयोगे कविना प्रयक्तम्‌ तयोक्तम्‌ कर्णे एवमिवेत्युक्वा ज्ञाप्यः पश्चा त्मसङ्तः ' इति नाटयाचर्येण गणदासेन हरद त्तस्य विवाद म॒त्याप्य शिष्य प्रयोगद दनात्‌ तन्निरणये ऽवधुते गणदासेन स्वशिष्यया मालवरिकया भिनयकरणसमये तस्याः प्रतयक्षद दीनं भविष्यति तचानुपदं शयिष्यते ) ` इदानीमित्यादि अस्मिन्नारम्भे माखविकासाक्षाद ेनोयोगे दुरधिगमपि- द्वावपि दुरुभसिद्धौ सत्यपीदानीं वद्र चनश्रवणानन्तरं वयमाशेसामहे सि दविमपेक्षामहे अथमित्थादि सप्रतिबन्धं सप्रतिरोधमथै ( बाधकवा ध्यं ) प्रयोजनमधिगन्तुं रन्धं सहायवानेव जनः प्रभुः समर्यो भवति ( व्यतिरेकेण सहकारिसम्पन्नस्य कार्यहेतुलं समर्ययितुमाह दृश्यामि ` त्यादि सचक्षुरपि चक्षुष्मानापे अनेन दषटिकारणसम्पत्तिदे शिता दीपेन

(१ ) ०४ साधु. ( ) 4. ग) &०व 2. ©. 16४व ध्र उपक्रोतं. , (२) 8. 9. ¶. प्प्रतिवधं काये. (४) 0. अले. (५) 4. विक्त्यनेन, ( ) 8. 9. तर. 7. अधरोत्तरयोः. (५ ) 8. ©. 24. 1. " ४10 ( आकर्ण्य ). ( < ) 8. 6. पि. †. सरवति &५ ( ) 8. 6. ¶. ' ४1१ इदं. (१) 23. 6. 4. 2. 4. 00. ( ११) 4. कनिकेयः 9॥ प्रणष्टा,

(२० )

कश्चकी - देव अमात्यो विज्ञापयति अनुषिता प्रभोराजञौ एत पु नैरदत्तगणदासी

उभाव्रभिनयाचार्यो परस्परजयोदयंतौ |

तं द्ष्टूमिच्छतः सा्ञाद्वावावित् शरीरिणी १० राजा- प्रवेशयतीः। ` कञ्ुकी -- यदाज्ञापयति देवः ( इति निष्क्रम्य पुरनस्ताम्यां सह प्रवि

टः ) इत इतो भवन्ती ५.4... हरदत्तः ( राजानं विशिक्य ) अहो दुरासदो रामम तवोदि | चन परिचितो चाप्यरम्य- ~... अकितमुपोमि तथापि पाञ्बेमस्य

सचि्निधिरिव प्रतिक्षणं मे मवाति एव नवो नबो ऽयमक्णोः ॥११॥

~“ आलेकदतुपदार्येन विना तमसि अन्धकारे अनेन चटिपतिबन्धो दातः दितः स्वितमितिशेषः द्यं दरष्टुं योग्यं दुतरूपवत्‌ वस्तु द्रव्यं पडयात दर्शने आल्मेकवान्‌ दीपारिः सहकारी गृह्णाति हूतरूपयोः ' इल्युकतैः ) इदानीं इत्यादिना सहायवानेव इत्यन्तेन तस्य बीजस्य बहुखकर णात्परिकर इति सन्ध्यङ्मक्तं भवाति नेपथ्य इ* त्यादि ( नटानां पातवेषपरिप्रहादानं नेपथ्यं )

कृत्वाट्म्‌ ( तत्साध्यंनास्तत्यर्यः निषेधार्थकालं शब्दयोगे ल्यप्‌ ) अल- मिति प्रतिषेधे ` अलंखल्वोः प्रतिषेधयोः प्राचां क्त्वा इति क्लाप्रत्ययः अत्र बीनस्यददीकरणात्‌ परिन्यासो नाम ॒सन्ध्यङ्कमृक्तं भवति उभावि- त्यादि शरीरिणी मर्तो सालाद्रावी प्रतयक्ञभावाविव नृत्याभिनयार्याविव पारोचित इत्यादि अयं राजा परिचितः सेस्तुतश्च नं भवर्तीति

(9) 98.06. करि. ¶. ४44 इति, (३) 8. ७. प.¶. जपैविणौ. (१) 8. 6. प. 1. ज्यतौ. ( 9 ) विवादिनौ. (५) पि, 0. (६) 29.69. नर. 7. 0. (*)9. 6. त. 7. गणरातः ( +.)

अक्टोक्य. ( ) 23. 9. प. 4. ०. ( १९) 2. अगम्यः (११) जह

१. भ्न |

( 70): गणदास;-- महत्खल्‌ पुरूुषाकाशमिदं ज्योतिः तया हि

द्वारे नियुक्तपुरुषानुमत प्रवेशः

सिहासनान्तिकचरेण सहोपसर्पन्‌ | ५१५५५ तेजोभिरस्य बिनिवर्मितदृष्टिपाते - “+ ¬. „4. वकयादते पुनरिव भ्तिबारितो ऽस्मि १२॥ + | ` कञ्चुकी--एष देवः उपसपैतां भवन्तौ

उभौ - उपेत्य ) विजयतां देवः।

| राजा- स्वागतं भवदुबाम्‌ ( परिजनं विल््ेक्य ) आसने तावद - जभवतोः।

शै

{ उभौ परिजनोपनीतयोरासनयोरूपविषट ) शाजा-- किमिदं शिष्योपदेशकारे य॒गपदाचा्यौभ्यामत्रोपस्थानम्‌

४५2 4८4 + ९८ ९४५ (५1

~+

किं परिचित एव | ( परिचितलाच्च भयहेत्य्थीत्‌ ) अरम्यो ऽसीम्यश्च कितु रम्य एव ( तेनापि भयहेतुः अत्रभयहेतोर भवि पपि भयवर्णनात्‌ विभावनारंकारः केवलं भयहेतुत्वमपि तु आश्चर्यलमपी- त्याह एवेति टष्टचरोएव अयं प्रत्यक्ष दस्यो राजा सकिलनिधि- सि प्रतिक्षणमक्ट्णोर्नत्रयोर्वेषये दशने इत्यथः नवो नवः नव प्रकारः प्रकरे द्विवचनं भवति ) तथापि चकितं सभयं यथा भवति तथास्य पाच समीपमुपैमि शेषं स्पष्टं द्वारेनियु त्यादि ( दारे नियुक्त पुरुषेण दौवारिकेण नित्यपिक्षतया ऽसमस्तविरेषणत्वे पि समासः। अनुमत सभ्यपगतः प्रवेशो यस्य अनिवारित इत्यर्थः सिंहासनान्तिकचरेण राज सन्निहितपरिचारकेण कञ्चकिनासह अनेनाभयलवं प्रीतिभाजनतवं चोक्तम्‌ उपसपैन्नन्तिकं गच्छन्‌ विनिवर्तितः दु :हत्वात्‌ निवारितः स्वस्मिन्‌ दष्ट पातो नेत्रविकषपो वैस्ताददौरददंैरियर्थः अस्य॒ राजतेजोभिः शरीरकां

| (१) 7. &. पृद्षाधिकारं; पृषषाधिकरणं ). ( ) 8. ©. प. 4. अभिमत". >

कु कथक _ ~ =

9५,

गण०-- देव श्रयताम्‌ मयौ तीयंदिभिनयविया शिक्षिता दत्त प्रयोगो पिम देवेन देव्या परिगृहीतः

राजा-- ददे जने

~ गण ०- सो ऽहममुना हरदत्तेन प्रधानपुरुषसमक्षं नायं मे पादरनर्षी तुल्य इत्यधिक्षिप्तः

हृर₹०- देव अयमेव मयि प्रयमं परिवादरतः अत्रभवतः किल मम समद्रपल्वच्योरिवान्तरमितिं' तदत्रभवानिमं मां शाले प्रयोगे विमृशतु देव एव नौ विशेषज्ञः प्रान्निकश्चं

विदूषकः -समत्यं पडण्णाद ( ) गण०--प्रयमः कल्पः अवहितो देवः श्रोतुम

राजा- तितु तावत्‌ पक्षपातमत्र देवी मन्यते तत्तैरेयाः पण्डित कौरिकी्रदितायाः समक्षमेव न्याय्यो व्यवहारः \,. -!

( ) समयं प्रतिज्ञातं

तिमिः प्रभविरवा पुनरपि प्रतिवारितो निवारितो ऽस्मि ) विनिवर्तितदयि पतिर्विनिवारेतदापरसरिरस्य राज्स्तेजोमिः पुनः प्रकाशविशेषैस्तु वाक्या. दते प्रतिषेधवक्पं विना प्रतिवारिति इव निरुद्ध इवास्मि सृष्॒ सुखेन ` आगतं आगमनं भवद्रवाम्‌ भवतोरियर्यैः क्रिययायमपरैतीति सम्प्रदानता। ) ` तीयोद्भिनयरिदेत्यादि तीवादिशिष्टुरोरभिनयविया _ नाटविदय

(१). ०. (२) 3.6. 4. सतीर्थात्‌. (३) 8.9.14. शिक्षिता. ( 9) 8. 9. पष. दत्तप्योगश्वास्मि, 1. दत्तपरयोगश्चास्मि देवेन देन्या &९. ( «५ ) 1, प्रि. बाढं. ( ) 28. 0. पि. 1. ततः किम. (*) 2.6. पि. ¶1. अयं मेन & (<) 3. ©. च. 7. १० अबि. (१) 8. ७. पि. ¶. ०0. (१९) 8.9. ति. ¶. परिषा- कर. ( ११ ) 7. अस्तीति &. 00. इति. ( १२ ) 4. विमर्शयतु. (११) 8.6. क्षि. 7. ०0 च. (१४) 98. 9. ¶. तिष्ठ तावत्‌ &. ‰१. तिष्ठ वावत. (१५) 8.6. 2. 7. अस्याः. (१६) 2. ~^. कौरिक्यासहितायाः

"न्क

2. | ६३३)

विदू ~ सु भवं भणादि ( ) आचायों -- यदेवाय रोचते

राजा-- मेदरल्य अमुं प्रस्तावं निकेय पण्डितकौशिक्या सार्षमाहूय-

तां देवी

-- यदाज्ञापयति देवः। ( इति निष्क्रम्य पखिराजनेकया |

देव्या सह पुनः प्रविरय ) इत इतो देवी' धारणी

देबी-( परितराजिकां वि्मेक्य ) भअवदि हरदत्तस्स गणदास स्स संरम्भे कहं पेक्खसि ( )

९९८

परिज्राजिका-- अलं स्वपक्षावसादशङ्या पैरिदीयते प्रतिद्र- न्दिनो गणदासः।

रि >

( ) सुष्टु भवान्भणति ( ) भगवति हरदत्तस्य गणदासस्य सेरम्भे कयं पर्या

शिक्षिताभ्यस्ता ( सुती्यात्‌ पन्दरस्यानात्‌ विशिष्टाघ्यापकात्‌ आख्या- तोपयोगे इत्यपादानता देवेन दत्तप्रयोगः प्रयोगाधिकारः नाटबाभिनया- धिकार इति यावत्‌ यस्मै तादृशः देव्या परिगृहीतः आत्मपक्षीयत्वेनाभ्यु- पगतः | ) दत्तप्रयोगश्चास्मि दत्तः शिष्येभ्यः प्रतिपादितः प्रयोगो वि नियोगो येन तयोक्तः (प्रश्रं वाद प्रतिवादि नौ प्रति विवादानुगत विष यपुच्छां करोति ठक्‌ विवादनिर्णायकः ) प्रयमः कल्पो मुख्यः पक्षः न्याय्यो युक्तः व्यवहारो विवादः ( वादि प्रतिवादिनः प्रतिजञोत्तरादि कार- णानां सदसद्विवेचनेन जयपराजयसंपादको नुपादीनामनुमित्यादयात्मकः विचारापरपयौयो व्यापाये व्यवहारः ) कथं मन्यसे अनयोः कतरस्य पराजयं विचारयसीत्यवं : अङं स्वपक्षेत्यादि अत्र॒ परित्राजकायाः

(१) 2.6... सह (पि प्त) प्ररिानिकया देन्या सहं प्रविष्टः (२) ए. ©. पष, 1. मवती &७, ^. इतो देवी धारिणी. (३) ए. 6, पि. ¶, परिहीयते प्रतिवादिना ( प्रतिवादिनो ) & पराजीयते केनविद्गणदाजञः

{ €>

( 4.2 (क). परित्रा ०--अयि राज्गीशब्द भाजनमात्मानमपि तार्वविन्तयतु भव- ` ती पञ्य

° अतिमान्रभोसुरस्वं याति भानोः परि्रहादनङः अधिगच्छति महिमानं चन्द्रोऽपि निशापरिगृहीतः 9३ बिहुष ०--अविह अवि वषठिवी पीठमदिअं पण्डिअकोपिदईं पुरो कदुअ देवीः ( ) राजा-- पर्याम्येनाम्‌ वैषा

) यद्यप्येवं तयापि रानपस्मिहोऽस्य पधानलमृपदरति ‰^ `

( ) अपिंहा अपिहया उपस्थिता पीठमर्दिकां पण्डितकौशिकीं पुरस्कृत्य देवी ५५१ कन 1

स्रीत्वात्प्रकृते प्राते संस्कृताश्रयणं सिित्वारिति मन्तव्यम्‌ क्तम £ देबद्विजनरेनद्राणां छिङ्किनां संस्कतं वचः ' इति यद्यप्येवं रानपरिः ्रहोऽस्य हरदत्तस्य प्रधानलमुपहरति राज्ञः परिग्रहः स्वकीयत्वेन स्वीकारः अस्य प्रभत्वे महिमानं वर्धयते ) "न सुर

त्यादि स्पष्टोऽ्यः ( राज्ञा स्वकीयत्वेनाङ्गकारस्य हः भवदीयपरिग्रहस्यापि तयात्वे दृष्टान्तेन समर्थयितुमाह अतिमात्रभासुर- त्वमिति भानोः सू्किरणस्य परिग्रहात्‌ रात्र स्वस्मिन्‌ सेक्रमादनकः भासुरो ऽप्यतिमात्रभासुरत्वे दिवातनवन्दहिमपेक्ष्य पुष्यति धारयति तथा ` चद्रेपि निशया परिगृहीतः सेवद्धो दिवातनचंद्रापक्षयेत्ययौत्‌ महिमानं महात्म्यं अतिमात्रभासुरत्वे अधिगच्छाते प्राति अत्र॒ भानुः षि

(१) 8. ७. अ. ¶. षारिणी, (२) १. ००. ( ) 28. ©. ‰, ब्हुचण ` प्रभुत्वं ). ( » ) 8. 9७. च. 7. गफ €. ०76 नन्‌, ( ) 4. 2, मास्वरत्वै, ( ) मानपीरयहादहनः ( « ) प. अवि. (८) 8.6.9.7 देवी. (१) 98. 9.1. वचो शरणा &. १. षरि

( ९५ )

मङ्गलालक्ृता भाति कोशिक्या यतिबेषया

६. यी बि्रहवत्येव सममध्यात्मविदयया १४ "` ` ` ` ^ “`

पारिव्रा ०--( उपेत्य ) विजयतां देवः राजा--भगवत्यभिवादये „= मेहासारप्रसवयोः सदृशचक्षमयोद्वयोः धरिणीभूतधारिण्योभेव भतो शरच्छतम्‌ १५॥

देवी- नेदु अज्जउत्तो ( )

राजा-- स्वागतं देव्यै (परिव्राजिका विरोक्य ) भगवति क्रियता- मासनपरिग्रहः

( ) जयत्वार्यपुत्रः

हादन्दः इति क्रावित्‌कः पाठः असगततया उपेक्ष्यः अन्हः परि्रहाभावे सूर्यस्थैवाभावात्‌ कुतो भासुरत्वं स्यात्‌ उत्तरवाक्ये तु चद्रस्य दिवापिसत्वात्‌ माहात््याभावमात्रे निशाभवि दितं इह तु तत्‌ सेभव इति विवेच्य) अपि हेत्यव्ययमाश्वर्ये द्विरक्तिरादरवदयोतनाय आधे उपस्थिता देवी पीठ मरदिंकां पण्डितकैषिर्की पुरस्कृत्य धारिणी पीठमर्द नाम॒ कामपुर्‌ षार्यसहायो नायकसमीपवरतीं पुरुषः कथ्यते तथाचोक्तम्‌ पीठमर्द समीपस्यः कार्याखोचनकेविदः ' इति अत्र विदू षकः परिहासेन परितरा निकायां पण्डितकौशिक्यां तद्धर्ममारोपयतीति मन्तव्यम्‌ ६.२० ` मङ्ल्मरुंकता मङ्कुलं शोभनं यया भवति तयालकृता भूषितेषा धारिणी यतिवेषया यतेः परित्राजकस्य वेष इव वेषः काषायदिधारणं यस्याः सा तयोक्ता तया कौशिक्या समं सार्धं भाति प्रकाशते अत्रोपमामाह- विग्रहव त्या आरीरिण्याध्यात्मविद्यया समं त्रयीव त्रिवेदीव ( अध्यात्मविद्या व्रेदान्तपरतिपादयविव्यया बरह्मिकयज्ञानेन समं॒त्रैकर्मप्रतिपाद कवेदत्रय मिव मेगलेन धर्मेण मङ्ल्र्द्रव्यैश्चालंकृता ) विग्रहवतीव विभक्ति विपरिणामेन योजनीयम्‌ महासारेत्यादि महासारप्रसवयोः महा-

` >

(न्न ® +) | ( सरवे थयोचितमपविशन्ति ) राजा--भगवत्यत्रभवतोैरदत्तगणदासयोः परस्परेण ज्ञानसघर्षो जातः तद त्रभवत्या प्राश्निकपदमध्यासितव्यम्‌ पारत्रा ०-( सस्मितम्‌ ) अँल्मलमपालम्भेन पत्तने विमाने ऽपि ग्रामे रलनपरीक्षा

राजा--मेमेवम्‌ पण्डितकौशिकी खल्‌ भगवती पक्षपातिनावहं देवी

आचार्यो- सम्यगाह देवः मध्यस्या भगवती नौ गुणदोषतः परि च्छेतुमहि राजा-- तेनहि प्रस्त॒यतां विर्वोदः।

पारेव्रा०-- देव प्रयोगप्रधानं हि नाट्यशास्त्रे किमत्र वाग्व्यवहारेण कयं वा देवी मन्यते | देबी- जई पृच्छमि एदाणं विवादो एव्व मे रुञ्धड ( )

( ) यदि मां पुच्छसि एतयोर्विवाद एव मे रोचते

~

न्सारो वरः प्रसवः सेतानं ययोस्ते तयोः सदशक्षमयोः सदी समाना क्षमा सदिष्णुत्वं ययोस्ते तयोः शेषं स्पष्टम्‌ भवतु पर्याम उरभ्रसंपातम्‌ किं मधवेतनदनिन मा चण्डि अन्योन्येत्यादि प्रत्यायपितव्यम्‌ बो धयितन्यम्‌ इत्यर्यः प्रतिपर्वादिणोण्यन्तात्‌ तव्यः बोधार्यत्वात्‌ नगम्यादे

(१) 8. ७. परि, ¶. ०. ( २) 8. 6. प. 1. परस्परं विज्ञानसं- पिणो मंगवत्या &८, ४०५ 1. विज्ञानसंधर्षो. ) 2. ७. पि, 1. भगण ००७ अलम. ( ४) 8. ७. पि, 7, सति 91. विदिमानेऽपि. (५) 8. ७. पष. 1. नैतदेवम. ( ) 2. 4, भवती, ( ) 4. विवादवस्तु, ( < ) 2. ^, ५06 86५19166 कयं &८. 190 ४0७ ०४ 9 ४५४५ ४10

( २७ )

©. ५०-३५4 ॥. ५-१-99

गण मां देवी समानविदयतः परिहीनमनुमन्तुमरहेति बिदूष०- देवि देक्खामो रब्भसेवादं कि मृहावेअणदाणेण

(क) देबी--णं कलहप्पि ओसि (ख ) विदू ०-- मा चण्डि अण्णोण्णकंलदिदाणं मत्हवविणं एक्रदररिस

अणिन्निदे कुदो उवसमो (ग ) राजा-- ननु स्वाड्तैष्टवाभिनयमुभयेच्वती भगवती ` ` ` १५५१

परित्रा ०--अय किम्‌ राजा--तदिदानीमतःपरं किमाभ्थां प्रत्याययितव्यम्‌

परित्रा ०-- एर्तदेव वक्तकामास्मि | "छिष्ठा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था ^~. .

सं क्रन्तिरन्यस्य विशैषयक्ता |

( ) देवि पर्याम उरुभ्रसंवादम्‌ किं मुधावेतनदानेन (ख ) ननु कलहप्रियोऽसि | ( ) मा चण्डि अन्योन्यकल्हितयोर्मत्तदस्तिनेरेकतरस्मिन्ननिर्जिते

कृत उपयमः शः ) षछिष्ठेत्यादि कस्यवित्कस्यापि पुरुषस्यापि क्रिया शिक्षा

विदयाभ्यास इत्यर्थ; आमसंस्था आत्मनिष्ठा सती ष्टा संगता रम्या भवतीत्यर्थः अन्यस्य पुरुषस्य संक्रान्तिः शिष्येषु क्रियासेक्रमणम्‌

(१) 8. ७. द. 7, 2. देवि मां समान ( 8 ©. 1. विद्यवा, 2. विद्यातः ४०५ ०८678 विद्यतया. ) ८२. (1. प, परिभवन &. (५, ए, परिभवनं ) ( ¶, पष, अवगतु, 8. (७, अवगमयितुं & 1, मतुं &. 0111618

अनुमत 01, अवमंतुं ) अर्हसि. &. मां देवी .... परिभवनीयमनुमंतुं अर्हति.

(२) ९. ©. 1, भो देक्खामो. प, भोदि पेक्खामो. ( ) 1 उअरंभरि ( उदरभरि ). (४) पि. भाष्वं, 3. 6.1. माश्ववं चंडि.(५) 723. 9. प. 4. कलहन्विआणं. ( ) 8. ७. पि. 1. अतिशयं. ( ) दम्या, (<) 8. 6.पि. 1. तदेव. (९) 2.4. शिष्टि,

(2 3 9

यस्योभयं साधु चिन्षकाणां धुरि प्रतिष्ठापयितव्य एव १६॥ `

-- सदं अज्जं भअवदीए वअणं एसो पिण्डिदत्यो णिण्णओत्ति। (क)

हर ०--परमचितं नः। ~^ -- देवि एवं स्थितमेव

देषी-- जदा उण अमेहाविणीं सिस्सा उवदेसं मलिणेदि तदा अरिअस्स दोसो णं (ख) „~ राजा-देवि एवमापर्येते ५“ “~^ ++ | >गणदी ०८ विनेतुरद्रन्यपरिग्रह एवै बुद्धित्मधवं प्रकाशरथीति

( ) श्रुतमार्याम्यां भगवत्या वचनम्‌ एष पिण्डितार्थ, उपदेश दशनेन निर्णय इति

( ) यदा पुनरमेधाविनी शिष्या उपदेशं मङिनियति तदाचार्यस्य नो = | ६.२ गतः

सेक्रन्तिशब्दो (जन्तभावितण्य्ंः विशेषयुक्तातिशयवती यस्य पुर- षस्योभयमात्मसिद्धिः परसंक्रमणं साबु रम्यं पुरूष एव शिक्षकाणा मुपदेशकानां धुर्ये प्रतिष्ठापायेतव्यः प्रतिष्ठां प्रापयितव्यः श्रतमार्याभ्यां भगवत्या वचनम्‌ एष पिण्डितार्थः निष्कृष्टार्थः ) उपदेशद दीनान्नि णय इति अत्र माखविकाद हौनसेदेहनिणैयादुक्तिनौम सेध्यङ्कमक्तं भवति यदा पुनर्मन्दमेधा शिष्या उपदेशं मलिनयति तदाचार्यस्य दोषो नु

(9 ) 8. ७. प. ¶, दसणदो. (२) 3. 6. प. 1. परममिभतं ४०५ 4. प्ररमदयितं. ( ) 4. देव. ( 9 ) 28. 6. १.1. ००, €+ 8.9. 2९.41. मदमेधा. ( ) ए. 6. पि. 1. 1५९ 1४8६ णं #&€, (= ) 2. 4. उपवद्यते, प, आपिदयते &. आपतति, ( < ) 3.0. 2. 7. ७व ४118 8{श्छडौ। 88 9 9६ {06 ४०९८ 8}€€५॥ 6 इण (१९) 8.0. 2.4. र्रिपहोऽपि. ८१) १. ००५ इति

मिक (८२

4. ~.

` "कदम. (2९ )

देगी--८ गणदयसं विलोक्य जनान्तिकभ्‌ ) कहं दाणि अलं अन्ज- उत्तस्सं उच्छाहकालणं मणोरहं पुरिअ ( प्रकंशंम्‌ ) विरम णिरत्यआ- दो आरम्भादो। (क)

बिदू°- मु होदि भणादि भो गणदास संगीरदआवदेलेण सरस्सदईं उवाअणमोद आई खादअमाणस्स कि दे पर्छहणिग्गहेण विवादे - ण। (ख)

गण ०-- सत्यमयमेवार्यो देवीवचनैस्य श्रूयतामवसरपराप्तमिद्‌

[8 क)

( ) कथमिदानीम्‌ अलमार्यपुत्रस्योत्साहकारणं मनोरथं पूरयि त्वा विरम निरथकादारम्भात्‌

( ) सुष्टु भवती भणते भो गणदास सेगीतकापदेशेन सरस्व त्यपायनमोद कान्खादतः किं ते स॒र्भनिग्रहेण विवदेन

नि 91, 8 1 दिः करि $ २५.८.42 {24 का.

नुः प्रश्रे ( अद्रव्यस्यावस्तुनो मंद मतेरिति यावत्‌ परिग्रहो विनेयतया स्वीकारः कृदभितो भावो द्रव्यवत्‌ प्रकाशते इत्युक्तेः परिगृहीतमद्रव्यमपिं सपात्रं भवतीत्यर्थः विनतः शिक्षकस्य बुद्धः प्रतिभाया लाघवं सीन्दयं प्रका शयल्यद्भावयति ) ( संगीतकपदेन संगीतरूपलक्ष्येण उपलब्धानि

~त द& १५ ~ €"

नित्यानुशीलनेन अनुभूतानि सरस्वत्या उपायनभूतानि उपदौकनद्रन्याणीव

मोदकानि खादमानस्य भक्षयतस्तव॒सुखनिग्रदेण सुखतिरस्कारकारेण वि वादेन ष्ककलहेन किं तदनुील्यतस्तव ईदक्षलदे प्रवृततिरनुचिते

(१) 8. 6.4. एष. ( जनातिकं प. स्वगतं ) कंहंदाणि ( गणदासं

४. विोक्य प्रकाशं ) अलं &९. 120. कहं गणि गणदासं विलोक्य जनांतिकम्‌ )

अलं &०. 4. ( गणदासं विदटोक्य जनातिकम्‌ ) कहं &०, ( ) ‰. ४५१. एदस्स. ( ) 8, ७. ¶. ४५ प्ररि ४०१ ^ . रक्खिअ रक्षयित्वा ). (४ ) 8. ©. 17. सगीदअपदोव्छम्भिअ. १. सं.. पदं ठस्मिअ; 20. 4, सगीदोव- देसं आरदिअ. ) 2. 4. किदे 06010 सरस्सदई &, ) पि. सुह ( सुख ). ( ) प, वाक्यस्य, (< ) 8. ७. पि. 1, इदानीम) ‰* 9,

[मी ( ३० ) | छञ्धास्पदो ऽस्मीति विबादभीरो- स्तितिक्षमणस्य्‌ परेण निन्दाम्‌ ^ यस्यागमः केवर जीगिकायै' | तं ज्ञानपण्यं बणिजं बदन्ति १७॥ द्वी --अइरोवणिदं बो सिस्सा अवरिणिद्िदस्सं उबवदेसरस् अण्णं पआसणं ( ) ^ गेण ०---अत एव मे निर्बन्धः

( ) अचिरोपनीता वः शिष्या अपरिनिष्ठितस्योपदेशस्यान्या- य्यं प्रकाशनम्‌. = <+**. (<. ३८1

त्यर्थः | ) छल्धास्पदो ऽस्मीस्यादि ( अहं ल्ब्धास्पदः प्राप्तपर- तिष्ठो ऽस्मीति हेतोर्विवाद भीरोर्विवादे कदाचित्‌ पराजय्यादित्याशं कया ततो भीतस्य परकरतुंकां निन्दां द्ीविहिताकारयोगे वा . षष्ठीति कर्तरि तृतीया तितिक्षमाणस्य सहमानस्य यस्य॒ जनस्य केवल्जीविकयि आत्मजीवनमत्रा्यं आगमः शास्त्रज्ञानं लभोपायश्च भवाति तं ज्ञानमेव प- ण्यं विक्रेयं यस्य॒ तादशं. वाणिजं जीविकाभेगभीरुतया अपङ्ष्टपण्डित मित्यर्थः वदन्ती पण्डिता मन्य॑ते ) ( अचिरोपनीतायां शिष्यायां पुनः प्रतिष्ठितस्योपदे शस्यान्याय्यं प्रकाशनम्‌ ) अचिरोपनीता वः शिष्या तद- परतिष्ठितस्योपदे शस्य पुनरन्याय्यं प्रकाशनम्‌ ( अचिरेण आदा उपनीता उपदेशग्रहणाय दीकषिता ते शिष्या मालविका इत्यर्यः अतो ऽचिरोपनी तत्वेन सम्यक्‌ शिष्षितेति गम्यते अपरिनिष्ठितस्य स्थैर्यमप्रा्तस्य उप- ` देशस्य शिष्ये संक्रामणरूपव्यापारस्य आवेदनं ज्ञापनं प्रकृते ऽभिनयद शनेः

(१ )?. ^. जीविकैव. ( ) प, अहरोवणीदाए तिस्सा उण पटिष्िस्स उवदेसस्स अण्णाअं पआसणं, (३) 8.6. 1.2. (१) ^.

2०. ५५ ता. ( ) 4. पशव्य ४9 असमाप्तस्य, ( ) 8. 9. 4, ४५५ उण, (*) 4, ०४,

"^ नर ( ३९ ) देबी- तेण दि दुवेवि उवैदेसं भअवदीरं दंसह ( ) परित्रा ०--नैतल्याय्यम्‌ सर्व्स्यप्येकाकनो निर्णयाभ्युपगमो

दोषाय दे्ी--( आत्मगतम्‌ ) मूढे" मे जग्गति वि सुत्तं विअ करेसि ( इति सासूयं परावर्तते ) ( ) ( राजा देवीं पिरानिकायै दशयति ) परित्रा०--( विलोक्य } | आनिमित्तमिन्दुबदने किमत्रभवतः पराङ्मुखी भवसि , ममवन्त्यो ऽपि हि भतृषु कारणकोपाः कुटुम्बिन्यः ॥१८॥

( ) तेन द्वावप्युपदेशं भगवत्यै दीयतम्‌ (ख ) मूढे मां जाग्रतीमपि सुपतामिव करोषि +..„

सदसत्वबोधने अनायमनुचितमित्यर्थः एतदुक्तिश्च राज्ञा माल्पकायाः कथंचिदपिद दीनं भववित्याशयेन गणदासस्य तदभिनयनिवारणार्थेति द्रष्टव्या ) ( जाग्रती मालविकाया राजसमीपे निगहनरूपे स्वकर्तव्ये अप्रमत्ताम्‌ सुप्तं प्रमत्तामिव ) अनिमित्तमित्यादिं ( हे इदुवदने प्रसन्नमवि अत्रभवतो मान्याद्राज्ञः सकाशात्‌ किं कथं अनिमित्तं पराङ्म- खी विमुखी भवसि कुटुबिन्यः सत्कुलच््रियो भतेषु प्रभवन्त्यः प्रभुतवत्यो पि कारणादेव कोपो यासां तादृश्यो भवन्ति मधा तथा कारणाभवे किमिति तव राज्ञः पराङमखत्वं ) अत्र देवी कोपेन वस्तविच्छेदे प्राप्ने विदू षककतं प्रोत्सादनमुत्तराङ्गोपयोगितेनाविच्छेद कारणवाद्िन्दुरित्यन्‌

८१ ) ए, [ष्लनलाकण्९. (२) 3. ©. प. ३. १५१ देवी, (३) 2०. ^. 8. 9. पि. ¶. जनतिकम, (9) 8. ७. 2, 4. 4. 20, ४११ परिन्वाजिए. (५ ) 2, किं मं 804 ^. कि 9 म, (६) ५. ७, 0 ॥॥ + 01.

गी (३२ )

विदुष ०--णं सकौरणादो एव्व अत्तणो पक्खो रक्लिदव्बो ति ( गणदासं विलोक्य ) दिष्टिंआ कोवव्वाएण देवीए परित्तादो भवं ।* सपिकिखिदो वि सव्यो उवदेसेण णिरैणादो होड (क) ` गण ०- देवि श्रयताम्‌ एवं जनो गृह्णाति तदिदानीम्‌ बिबादे दशं पिर्ष्यन्तं कियासंक्रान्तिमात्मनः यदि मां न.नुजानासे परित्यक्तो ;स्म्यहं त्वया १९ ( आसनोदुत्तिष्ठति )

दे शे-- ( स्वगतम्‌ ) का गई ( प्रकाशम्‌ ) पहवदि आभरओ' पिस्सजनणस्स ( )

21५5. गण -- विटेभपदे शङ्कितो ऽस्मि ( राजानं विलोकय ) अनुज्ञातं देव्या तदाज्ञापयतु देवः कस्मिन्नभिनंयवस्तुन्युपदेशं दर्शयिष्यामि

राजा--यदादिशति. भगवती .... परेवा ०-- किमापि देव्या मनसि वर्तते तच्छङ्कितासिमि

( ) ननु सकारणमेव आत्मनः पक्षो रक्षितव्य इति दिष्टा कोपव्याजेन देव्या परित्रातो भवान्‌ स॒शिक्षितोऽपि सर्वं उपदेशेन .

\ निष्णातो भवति हिः (ख) का गति प्रभवत्याचार्यः शिष्यजनस्य

सेषेयम्‌ ) विवाद इत्यादि स्पष्टोऽयं: ( अपदेशो निरारतिस्तत्राश- डा जाता यस्य तारकादित्वात्‌ इतच्‌ कदावित्‌ शिष्यशिक्षाद शने निवारितो भवेयं इति शंङ्। स्विता सा राया एतद्चनेन दुरीरुते त्ययैः ) ( शर्मिष्ठायाः शुक्राचार्यस्य पल्याः कति कूदाभिदितभावत्वात्‌

( ) 2. कारणागे. ( ) 21. 8. 9७. ¶. उवदेसद॑सणे. (३) 2. णिज्णो ( निपुणो ) & ©, ‰#. णिल्हादो ( निन्हादो ). ( ४) 3. 8. पि, प्र. द्शंपिष्यामि. ( ) 8. ©. पि. ¶. ज्त्यातुभिच्छति. (६) &., 2, अग्नो, (ज) 8.06. ति. 7. अपदेश &०, (< ) 9.6. पि. 7 अषलोस्य, ( { ) 20. अभिनेय^. ( १०) 238. 68... क्तः

"` नन | ( ३३ )

देबी-- भण विस्सध्दं णं पहरविर्॑सं अत्तणो परिणस्स ( ) + राजा-- मम, चेति ब्रूहि ` देबी-- भअवदि भणं दाणिम्‌ ( )

परित्रा ०- देव॑ चतष्पदोद्धेवं धकितभैदाहरन्ति तत्रैकार्थसेश्रयम्‌- ! “~ भयोः प्रयोगं पयामः तावता ज्ञायत एर्वात्रभवतोरूपदे डतारतम्यम्‌ \! `

आचर्य यदाज्ञापयति भगवती

बिद्ष०- तेण दुवेवि वगा पेख्खाघरए सेगीदरअणं करिअ अततभरवदो दूदं पेसु अहवा मुद सदो एव्व णो उद्भावइस्सदि (ग)

( ) भण विश्रन्धम्‌ ननु प्रभविष्याम्यात्मनः परिजनस्य ( ) भगवति भणेदानीम्‌

(ग) तेन द्वावपि वगो प्रेक्षागृहे सेगीतरचनां कृत्वा अत्रभवतो दूतं प्रेषयतम्‌ अयवा मृद ङ्‌ शब्द एव उत्थापयिष्यति

कृतमित्यर्थः चतुरः पादेभ्य उत्तिष्ठतीद्युत्यं उत्तरपदद्विगुः चतुष्प दीयुक्तमित्यर्यः छाञकं तन्नामधेयकं नाटकं दुष्प्योज्यं दुःखेन प्रयो अभिनेतं योग्यमदाहरन्ति कथयन्ति पण्डिता इति शेषः उभयोैरदत्त गणदासयोः एकार्थः तद्रूप एकस्य उदेश्य: संश्रयो यस्यैतादडो प्रयोगं . क्रमेण उभयकर्तृकं तन्नाटकप्रयोगं अभिनयं पञर्यामः प्रार्थनायाम्‌ लेट्‌ ) तेन है द्वावपि वग। प्रेक्षागृहे सगीतरचनां कृत्वा तत्र॒ भवतो दूतं प्रेषयतम्‌ अथवा मृद डुशब्द एव उत्यापयिष्यति विजयी

(१) 8. ७. पि. 1. वीसद्व. (२) प. . पहवदि प्रम्‌ &५, ( ) प, मणेदानीम, ( ) 8. ७. ४५१ शर्मिष्ठायाः इतिः &. पष. ¶, शर्मि- छायाः क्ति &०, ( ५) 8. ©. पि. 1. चतुष्दोत्य. (६ ) ए. ©. प. ¶. उलिकम्‌. * ) 2. 1. ४५११ दष्प्योज्यम्‌. < ) 20. 4, तत्रभवतो (९ ) 8. ©. प्र. ॥. ^. २०. उपरैशान्तरम्‌. (८१०) ए. ©. ` ¶, 204. दि. ( ११ ) 2० गदु. ( १२ ) प, तत्तमवदी. ८१३) ^ 12०. विसज्जेह विसर्जतम्‌ ).

४,

क. ( ३४ ) इरद ०-- तया ( इव्युत्तिष्ठतिं ) ( गणदासो देवीमधल्येकयाति )

देबी-( गणदासं विल्येक्य ।) 'विअई होहि णहु विभअपञ्चिणी अहं आअरिअस्स ( कं ) ( उभौ प्रस्थितौ ) +: परतरा निर्णयाभिकारे बरवीमि सर्वडवौढठवामिव्यक्तये भविगतने पथ्ययोः पात्रयोः प्रवेशो.स्तु , ,.. ` “" इमौ नेदमप्यौवयोरूपदेश्यम्‌ ( इति निष्कान्त )

देवी --( राजानं 'विल्ेक्य ) जद राअकज्जेमु विं ईरिसी उवांअ णिडणदा अज्जउत्तस्स ता सोहण भवे ( ) |

राजा-देवि

( ) विजयी भवं खल विजयप्रत्या्॑न्यहमाचार्यस्य

( ) यदि राजकार्येष्वपीदस्युपायनिपुणतार्यपुत्रस्य ततः शो भनं भवेत्‌

भव ( तार्तम्यनिश्चयकरणस्याधिकारे स्थितेति शेषः ब्रवीमि उपदि- . शामि ) सबौङ़त्यादि ( वीडु पौष्टवाभिव्यक्तये सर्वेषां अंगानां सष वस्य सैन्दयैस्याभिव्यक्तये प्रकाशनाय विगतनेपय्ययोः आहायौभरण सज्जारहितयोः पात्रयोः अभिनेययोः नायकयोः प्रवेशः रंगभूमौ समागमो.ऽ स्तु ) अत्र गुणवत्वस्य गम्यमानतद्विल्ेभनं नाम सेध्येगमुक्तं भवति

( १) 8. ©. प. ¶. धारिणीम्‌. ( ) 2३. विहं होहि, ५०१ 8. ७, ¶. जयी भोदु अज्जो | विअअपच्वि्णा (1. विअअन्भत्थिणी) अअं अग्जस्स 2०. णहि विजअप्रचत्थिणी अहं अज्जस्स होमि ( ) १4 “अभिनय (४) 20. 4. विरल. (५) 4. 8. 6.1. ०0 अपि. (१) 9. 6* पि, ¶. अवलोक्य. ( « ) 2०, 4. ४१ इदरेभ्‌. ( < ) पि, ०, वि, 0.4. श्वं. (९) 4. 3.9.¶, ०0. उभि, (१९) 2. 0. 2१. 1, अ.

+ ५" आरि ~ "क जः

( ) अकमन्यथा गृहीत्वा खलु मनाखिने मया षथुक्तमिदम्‌ भ्रायः समानविद्याः परस्परयशः पुरोभागाः २०

( नेपथ्ये मृद ङध्वानेः सवे कर्णं ददति ) परित्रा ०--हन्त प्रवृत्तं गीतकम्‌ तथा ह्येषा

जीम॒तस्तनितविशङ़्िभिमयुरै- रुद्यबरनुरा सेतस्यपुष्करस्य `." ` ४...

५८. निच्दिन्पपारेतमध्यमस्रोटथा- = 1. `; मायरी मदयति ,माजेना मनाते २१ ~~त

यदि राजकार्यैष्वित्यादिं अत्र गृटा्ेद्धिद नादु द्रेदो नाम संध्यंगमुक्तं भवति अखमन्यथागृहीखेत्यादि स्पष्टो र्यः ( परस्परयशसि अ- न्योन्यकीर्तौ पुरोभाग देषकद शनं येषां ते ) जीभूतस्तनितेस्यादि ~.“ नीमतस्तनितविेकिभिर्नीमतस्य स्तनितं गर्जितं विशेकंत * इति

#

तयोक्तास्तैरुद्ग्रवैरुत्कटैः ( हर्षात्‌ ) मुरः शिखंडिभिरनुरसि -

तान नितस्य पुष्करस्य वादयभांडमुखस्य माय॒री मयूरप्रिया माजेना सि मदयति हैयति कीदशी मार्जना उपहितेमध्यमसखरेत्या उप- दिवम योनितो मध्यमस्वरो मध्यमसंज्ञकस्वरस्तस्मादुत्ति्युदे तीति तथोक्ता

निद्ादवती मधुरगभीरेत्ययेः ) मार्जना

नाम पुष्करवादनाविशेषः तथोक्तं भारतीये षोडशाक्षरसंपन्नं चतुमगिं

तथैव | द्विेपनं षट्करणे त्रियति त्रियं तथा त्रिगतं त्रिप्रचारं त्रिसंयोगं त्रिपाणिकं | शारधंपाणिप्रहतं त्रिप्रहारं त्रिमाजेनं एभिरगैस्तु सैपन्नं वाद्यं पुष्करजं भवेत्‌ तत्र मायूरी चार्धमायूरी तया कार्मारवीति तिखस्तु मार्जना जञेयाः पुष्करेषु स्वराश्रयाः गांधारो वामके कार्यः षड्जो दक्षिणपुष्करे मध्यमश्चोध्वेके कार्यो मायूयास्तु स्वरासत्वमी ॥। वामके

(८ १) वि, संमीतम. ( २) 3, ७. 4, अनुगमितस्य, ( ) {1 उपचित. (४ 90 91्7198४९९ }.

( ३६ )

राजा-देवि पामानिका भवामः। देबी-- ( आत्मगतम्‌ ) अहो अविणओ अञ्जउन्तस्स ( कं ) ( सर्वे उत्तिष्ठन्ति )

विद्षकः- { अपवार्य ) भो धीरं गच्छह्म मा रु अत्तभेदि धारिणी विसंवादइस्सदिं ( ) राजा--

धैरयांवखम्विनमपि त्वरयति मां मुरजवाद्यनादों ऽयम्‌ अवतरतः सिद्धिपथं शब्दः स्वमनोरथस्येव २२॥

( इति निष्कन्ताः सर्वे ) इति प्रयमोऽङ्ः |

(क ) अहो अविनय आर्यपुत्रस्य ( ) भो ध्रीरं गच्छामः। मा खल्वत्रभवती धारिणी विर्सवादयिष्यति

पुष्करे षड्ज ऋषभो दक्षिणे तथा धैवतश्ोर्ध्वगेतरार्थमाधूय निदि. . डोदृबुधः ऋषभः पुष्करे वामे षड़जो दक्तिणपुष्करे पैचमश्वोर््वग

कार्यः कार्मारव्याः स्वरा अमी इति भोः धीरं गच्छामः तत्रभवती धरिणी विसंवादयिष्यति ( विसंवदिष्यति विप्रलप्स्यते अन्यथा मेस्यते | ) ध्या बाबेनमित्यांदे अयं मुरजवायरागो मुरजवाद्यस्य रंजकत्वं धर्यावलेत्रैनमापि मां त्वरया संभ्रमयति सिद्धिपयं सिद्धिमार्ममवततरतः परापरुवतः स्वमनोरय स्यात्मवांच्छितस्य शब्द इव ध्वनिरि अत्र बीजस्य

(८ ) ^, साद्मवाहिका, 8. ७. पि. ¶. ४११ तस्याः 20 सामवायिकाः

- 24 ?० सामाविकाः (२) 8. 0७. परि. ¶. स्वगतम्‌, (३). .^. 9,

0.1. गच्छ. (४) 8.8. पि. ¶. तत्तभमोदि 9 माव अत्तमोरि. (५) क्षि. रमः, 3. 6.4. रावः

( ३७ )

पुनरावर्तनात्‌ समाधानं नाम सध्यंगमुक्तं भवति अत्रैव सुखागमस्य गम्य मानत्वात्पाप्तिनौम संध्यं गमक्तं भवाति अत्रोपक्षेपादिषु सेध्यंगेष कतिचिदेव कविनोक्तानि नेतराणि तथापि दोषः ' न्यनमप्यत्र चैः कैश्चिदंगैर्नाटये दृष्यति यद्युपात्तेषु संपत्तिराराधयति तद्विदः ` इति वचनात्‌ [ति प्रयमांकार्ये समाप धपि तमसामाप्यैवोत्तरांकादौ

: सगीतरचनाया अत्रैव निपातनादंकावतरणं ना- मार्थोपक्षेपकं उक्तं भवति तय चोक्तम 'अंकावतारस्त्वंकान्ते पात्रेणांकस्य सृचनात्‌ ` हाप इति श्रीकाटयवेमम्‌ पविरचिते कमारगिरिराजीये मालवेकाभिमित्रन्याख्याने प्रथमो ऽकः

{ )

द्वितीयङ्‌ःः। ( ततः प्रविशति सेगीतरचनायां कृतौयामासनस्यः सवयस्योः राजां धारिणी परिव्राजिका विभेवतश्च परिवारः ) ~~ ^^, ^^

राजा- भगवति अत्रभवतोराचार्यथोः प्रयममुपदेशरं कतरस्य

द्रक््यामः+ परित्राजिका- ननु समाने पि जानवृद्ध॑भवि वयो धिकत्वाद्ण-

दासः पुरस्कारमहति राजा-- तेन हि मौद्रल्य एवमेीत्रभवतोरावे्य स्वनियोगमशुन्यं कुर कचु की--यदाज्ञापयाति देवः ( इति निष्क्रान्तः ) ( प्रविर्य )

गणदास्लः--देव शर्मिष्ठायाः कतिर्यमध्या चतुष्पदां तस्याश्चतुर्य वर्मन: प्रयोगमेकमनाः श्रोतुमर्हति देधं

राजा-- आचार्यं बहुमानाद दितो ऽस

ततः प्रविशतीत्यादि * भगवति अवभवतेः ' इत्यादिना * गण- णदासः पुरस्कारमर्हति ' इत्यन्तेन राज्ञ॒ उपायेन माल्यकादइीनप्रवर्तनं प्रयत्नो नाम द्वितीयावस्थितिरिति मन्तव्यम्‌ अत्र बिन्दु प्रयलनयोः समन्वयात्प तिमखसेषिरित्यनुसंधेयम्‌ देव शभिषटठाया इत्यादि शर्मिष्ठा नाम पर्वणो राक्षसराजस्य दुहिता तस्याः कतिः कान्यम्‌ छयमध्या येन

तालकालेन मध्या मध्यल्ययुक्ता चतुष्पदा चत्वारि पदानि खण्डानै

(१) पवि. ०. (२) पि. 1ण्लनाष्ण्टु९. (३२) 8.6. ¶. उषदेशो दृश्यतां ( 1. उपदेशं दश्यतां ४8 ४1४७१०४४ ४९ ). (* ) 8. 68. ¶. ०0 वृद्ध ( 1. 88 धल १७ ). ( ५) ति. ( 1.४5 भत्मिध् ९९ ) बद्रत्वात्‌. ( ) भ. तेनहि. ( « ) 9. ७. प. ¶. शव. (<) 1. 6. 24.17. भपणस्व, (१) १.1. ४१0 अति. (१) 28.98. 4. तस्याश्चतुष्पदवस्तुकं ( वर्णकं ) 2०, चतुर्थवस्तुक्थयोगं & ११ ) 8. ©. 1, ५४६८ देवः 0610719 नतं &५, ( १२ ) 1, ४१५ ( कद्मकेशय परत. )

4

|

4

` "थ वक “१०. 2 = - कक ना +

(^ ३$ )

\ : ` ( निष्क्रान्तो गणदासः) राजा--( जनान्तिकम्‌ ) वयस्य = नेपश्यगैहृगतायाश्चक्षुदेशंनसमुत्सुकं तस्याः „+ संहतुमधीरतया व्यवस्सित्‌मिव मे तिरस्कारणीम्‌॥

^-^ 2

विदूषकः अपवार्य ) भो उवष्टिं णअणमहु सेणिहिद सक्खिअं ता अप्पमत्तो दाणि पेक्ख (क )

( ततः प्रविशत्याचारयपरत्यवक््यमाणाङ्‌ सी्ठवा मालविका )

(कं ) भो उपस्थितं नयनमध॒ सन्निहितमाक्षिकं तदप्रमत्त इदानीं पर्य “^

यस्याः सा तथोक्ता तस्याः कतिसंबन्धिनश्चतर्थवस्तनश्चतर्थस्य तर्यस्य

वस्तुनः प्रबन्धस्य प्रयोगमाभिनयमेकमना अवहितः सन्‌ श्रोतुमर्हति अत्र

$ कका इक्क "~ ,

शुङ्ारस्य प्रतिपादयमानत्वाह्ययमध्येतुक्तम्‌ तया चोक्तं भारतीये---शुङ्ार हास्ययोरमध्यल्यः करुणे विलम्बितः वीररद्रादुतवीभत्सभयानकेष द्रुतः ' इति नेपथ्यपरिगताया हाते नेपथ्यपरिगिताया यवनिकान्तरि तायास्तस्या मालविकाया शनसमत्सकमवलोकनोतकाण्ठतं मे चक्षर धीरतया तरलतया तिरस्करिणीं यवनिकां सेदर्तमपनेतं व्यवसितमिबोयु क्तमिवे अन्रष्टर्थविषयेच्छाया गम्यमानतवद्विखसो नाम सेध्यङ्म॒क्तं " भवति ततः प्रविशतीत्यादि आचायविह्ष्यमाणाङ्पीषटवा आचा- येण गणदातेनविक््यमाणमङ्ानां सीष्ठवं यस्याः सा तथोक्ता ) सीव नामा- डानां शोभनावस्या यथे क्तम्‌ ' अन्‌ चनीचचरतामङ्गनां समपादताम्‌ कटिकूर्परशीरषासकण्ठानां समरूपताम्‌ रम्यां प्रतीकविश्रान्तिमुरसश्च

(१) पि. 2. प्रि गृह &. 4. परिणतायाः ( ) -4.. तिरस्करणम्‌. “^

(३) 8. (७. १, ¶. ०9. ( ४) 4. पलवल ( संनिहितमाक्षिकं ) &.

‰, 29. संणिदिदं मक्विभं च. ( ) 1. प, अवेक्ष्य &५. ५५ 3, ©, प्रत्यक्षमाणा.

"(९ ॥.

( ४० ) बिद षकः- ( जनान्तिकम्‌ ) पेक्खदु भवं से पडिच्छ न्दादो परिदीभदि महुरदा ( ) राजा--( जनान्तिकम्‌ ) वयस्य ,. चिच्रगतायामस्यां कान्तिविसंबादशङ्के मे हृदयम्‌ संप्रति शिथेरसमाथिं मन्ये येनेयमालिखिता २॥

9 गणदासः- वत्से म॒क्तसाध्वसा सत्वस्या भव

राजा--( आत्मगतिम्‌ ) अहो सर्वस्थानानवयती रूपविशेषस्य तथाह (८.८.८६ ˆ | श्क् न,

("क ) पश्यतु भवान्‌ खल्वस्याः प्रतिच्छन्दात्परिदहीयते मधुरता ।,

सम॒न्नतिम्‌ अभ्यासोपहितामाहुः सैष्ठवं नृत्यवेदिनः ` पञ्यतु भवान्‌ खल्वस्याः प्रतिच्छन्दात्परिहीयते मधुरता अत्रापवार्यत्येतन्नियत श्राव्यार्यभेद स्यापवारितस्य विवक्षितत्वे कविना प्राकप्रलयुक्तमिति मन्तव्यम्‌ | ययोक्तं वसन्तराजीये * अर्यस्त्वेकेन विज्ञेयो नियतश्राव्य इष्यते द्विवि धः परिज्ञेयो जनान्तश्चापवारितिः ` अत्र ` पररैरलक्ष्यव्यापारं कयि तो ध्य ऽपवाप्तिः उक्त्वा प्रागपार्येति पश्चादेनं प्रयोजयेत्‌ इति चिच्रगतायामित्यादि। मे इदयं मनश्चित्रगतायामारेख्यगतायामस्यां मालविकायां कान्तिविसंवाद शङ्कि कान्तेः शओभाया विसंवाद विषयासं शङ्त

इति तथोक्तम्‌ ( एतस्या ईदृशी कान्तिभवेन्नवेति संदेहयुक्तमासीदिति शेषः ) सेप्रतीदानीम्‌ साक्षादङनवेलायमित्ययः इयं मालविका येन चित्रकरेणालिखिता ते चित्रकारं शियिरुसमाधिं शियिलप्रयत्नं मन्ये जा नामि मक्तसाध्वसा परित्यक्तभया सभाकम्परहितेत्यर्यः सत्वस्था ( सत्वे स्वभवे प्रकतौ वा तिष्ठति स्या--क अव्यग्रा इतिं यावत्‌ ) सत्व

(१) 8. ७. 2. ¶, वि (अपि) णिः पररि (२) अपवार्य. (३) स्वगतम्‌. (४)... 8. 0.7. सर्वास्विवस्थास्वनकद्यता ख्य ¶. ( ख्यस्य ) विशेषस्य, ( ) 2. 4, 00. तया हि.

( ४९ )

दीघां शरादैन्दु कान्तिं बदनं बाहू नतावसेयोः ~. ` ` \“ संक्षिप्त निबिडोन्नतस्तनमुरः पार प्रमृष्टे इब

भै =

मध्यः पाणिमितो नितम्बि जघनं ,पादावरालदगुरी छन्दो नतेयितु्येथेव मनसं; शिष्ट तथास्या वपुः ३॥

१५.८५५

माङबेका--( उपगन कृत्वा चतुष्पद्‌ वस्तु गायति |)

गृणयुक्ता अविक्ता भवेत्यर्थः ययोक्तम्‌-- चित्तस्याविकतैः सत्वं विकृतेः कारणे सति इति अत्र विकतिकारणं नायकसंनिधिः॥ अहे) इत्याश्व्यै सर्वस्यानानवदयता सर्वषु स्थानेषु सर्वावयवेष्वनवदयता निर्दोषता रमणीयते त्यर्थः दीचौक्षमिस्यादि वदनं मुखं दीघक्षि दर्षि आयते अक्षिणी ` लोचने यस्य ( षचूसमासान्तः ) तत्तथोक्तम्‌ शरदिन्दुकान्ति शरदिन्दोः शरचन्द्रस्य कान्तिरिव कान्तिर्यस्य तत्तयोक्तम्‌ (प्रसन्नमित्यथः) बाहू भुजा. वेसयोः स्कन्धयोर्नती नम्रौ ( क्वमानावित्यर्थः ) मध्यो ऽवलप्रं पाणिमितः पाणिना हस्तेन मितः परिमितः ( पाण्यपलक्षणेन मष्टिमितः ) जघनं नितम्ि नितम्बातिशययुक्तम्‌ पादौ चरणावरालडङ्गुटी अराल्य आकुञ्निता अङ्गृक्यो ययोस्तौ तयोक्तौ अस्या मालविकाया वपुः शरीरं नतंयितुनत्ता चायस्य ( मनसः ) छन्दो ऽभिप्रायो यया यादशस्तथा तेन प्रकारेण शिष्टं संगतम्‌ ( यादशांगरी्ठवे सति न्तेनं सुनिपुणं भवाति तथैव अस्या वपुरदेहः शिष्टं सेहतम्‌ स्वतःसिद्धसैन्दर्यादिगुणकतया संबद्धं इत्यर्थः ) अनेन नर्तक्या नुत्तारम्भोचितावस्यानविशेष उक्तः तथां चोक्तं ॑वसन्तराजीये--“ अङ्कस्य चतुरखत्वं समपादौ लताकरौ आरम्भे सर्वनृत्तानामेतत्सामान्यमिप्यते ' इति उपगानं रागि (गा. नात्‌ प्राक्‌ कर्तव्यं वसंतदिरागानुगतं स्वरविशेषं आलपाचारि ` इतिं ख्यातं ) कत्वा चतुष्पदवस्तु चतुष्पद संज्ञकं प्रबन्धं गायति वर्व-

(१) 2. ७. 8. कान्तिवदनं. (८२) 8. ©. वैशयो. (३) 1. ५.८ अमितच, ४) 8. ७. परि. 7. मनसि. ८५) ?. उपवहनं ९14 8, कपोतकं. ( ) १. चतुष्यदवस्तु ४१ 8. ©. “1. चनुष्पदवस्तुकं, .

( ४९)

दुष्टो पिओ तरिंस भव हिअअ णिरासं

अद्या अपङ्ओ मे पैष्फूरह्‌ किंपि वामो

एसो सो चिरादैो कहं ` उवणंडदम्बो

णाह मं पराहीणं तुड्‌ सतिण्हूम्‌॥४॥ (क) ( ईैति यथारसमभिनयाति )

(क ) दुलभः प्रियस्तस्मन्भव ददयनिराश- ८५८५६) ..-.... महो अपाङो मे प्रस्फुरति किमपि वामः | ८५५५) एष चिरदृष्टः कयमुपनेतव्यो ^~ \..^ ~^. ^ {ॐ} नाय मां पराधीनां त्वयि गणय सतुष्णाम्‌ नापः गा पराषीनां लि वन

ति प्रबन्धः। प्रबन्धो रूपकं वस्तु निबन्धस्याभिधात्रयम्‌ ' इत्युक्तत्वात्‌ अहो ( अहह इत्यव्ययं हर्षे एवमाशशाया वैकल्यसंभावनायामपि ) अपाङ्ो मे परस्फुराति किमपि ( किचित्‌ अनिर्दिषटेतोः ) वामः खरी- णां वामाक्िस्पदनं हि अभीष्टसमागममूचकं तया पुनरात प्रियसमागमे मे भावी वामा्षिस्कुरणात्‌ तयाशंसे इतिं भावः ) एष विरष््टः कयं पुनरूपनेतन्यः ( एवं आत्मनो शनाभिलाषमभिधाय सेकल्पोपनीतं नायं संवोध्याद ) नाय मां पराधीनां त्ववि परिगणय सतुष्णाम्‌ ( एतच पद्यं चतुष्पद वद्धं प्रकतार्वानुगुणं एतदेव दवारीकत्य मालविकिया आत्मा नुरागो नृपे दर्शितस्तचचाप्रे विदूषकवाक्ये स्फुटीभविष्यति अत्र चतुर्षु पादेषु चतस्त्रो ऽवस्या वैरग्यौप्सुक्य संकल्पात्मसमर्पणरूपा दशिता) ततो गानानन्तरं ययारसं रसानुकूलमाभिनयति अत्र रसोऽयोगविप्रलम्भ- शृङारः ययोक्तम्‌--, अप्रतिविप्रलम्भः स्यादानोजीताभिलाषयोः विप्र म्भस्य भेदाः स्युरयोगो विरहस्ततः प्रवासः शापः करुणा भानश्चेति षण्मताः ' तत्र ' सेप्रातेः प्रागसङ्खो ( अभावो ) यस्तमयोगं प्रच-

(१) पि. ४0५ मे. (३) अम्महे. (३) पष. परि 9१. ४०१ 8. ७. ¶. इुरह किंपि वामओ. (१) फ. ४१५ उण. (५) 4. ज्य दवौ, (६) 2, ५44 ग. ( *) 2. 6. 9.17. ५५५ क्वः

( ४३ ) बिद्षकः-- जनान्तिकम्‌ ) भो चडप्यदवत्यु अं दैवारीकदु तुड उर्व्विदो विओ अप्पा तत्तदोदीए (क) राजा- सते एववैवयोैदयम्‌ अनया खल्‌ 8 „6 जनमिममनुरक्तं बिद्धे नयेति गेये ` .. ज्व बचम्‌मभिनयन्त्या{ स्वाङ्निदेशपएवेम्‌ +=;

( ) भोः चतुष्पदवस्तुकं द्वारीकृत्य व्वय्युपस्यापित इवात्मा तत्र- भवत्या | (५५.५१.५५ ४५६ + (८ ¦

र,

क्षते ' इति अत्र चतुष्पदयां पाद चतुष्टये क्रमेण निवैदः सविस्मयो दर्षश्चि- न्ता दैन्यं चेति सेचारि ( वितादि ) भावास्तत्तदनुभवैमुखरागादिभिः सम्यक्प्रकाशिता इत्यनुसंधेयम्‌ तेषां लक्षणमुक्तं वसन्तराजीये- इष्टां विरहस्वाधिनिन्दापदवमाननैः दरिद्ताडनाक्षेपपरव॒द्धबवलेपनैः निष्फल- निर्वेदो भावितादिषु ' अत्र इष्टार्थविरहजनितो िर्विदः

निःखवासस्वावमाननैः दैन्यगद्रदवैस्वर्ैरभिनेयो भवेद- यम्‌ हर्षो मनःसमृष्छासो गुरूदेवमहीम नाम्‌ प्रसादाभ्रेयसङ्काञ्च भवेदि- टवैलामतः ' अग्रटारवलामजनितो हैः अपाड्स्फुरणस्येष्टायेलभ हेतुत्वात्‌ मुखनेत्रप्रसन्नलप्रियोक्तिपुखकोद्रमैः दानत्यागपरीरम्भैरमि- नेयो भवेदयम्‌ इष्टालभारिष्टनाश्चादनिष्टातिश्च दैन्यतः वित्तस्यैका- ग्रता चिन्ता ' अत्र चिन्तेष्टालभजनिता स्मरणं चानुपस्मतिः सेतापोच्छरासनिश्वासा मान्यमिद्वियकर्मणाम्‌ अधोमुखत्वमित्यायैरभिनेया भवेदियम्‌ अनोजस्तवं तु मनसो दैन्यमित्यभिधीयते मनःतेतापदारि. दरचिन्तौतसुक्यारिमिर्भवेत्‌ ' अत्रीतमुक्यजनितं दैन्यम्‌ | * अङ्कानाम- पि दीयिल्यं देहसंस्कारव्जनम्‌ अश्रितं भरते ¶स्मन्वै अनुभावाः प्रदर्ी- ताः ' इति जनमिममित्यादि नाय स्वामिन्‌ इमं जनम्‌ मामित्य-

(१ ) ए. ७. 7. ४५१ वअस्स. (८ २) ?. चउप्पदं. वत्थु. (२) 2० 4. दवारं करिअ. ( ) 8. ७. च. 1. उवक्खिदो. ) प, 9४. (८ £ ) 2५. एवमेव ममापि.

( ४४) प्रगयगतिमदृषठा धारिणीसंनिकषा

दहमिच सकुमारप्रा्थनाव्याजमुक्तः ( मालविका गीतान्ते गन्तुमिच्छाति ) बिद्षकः- होरे चिद किचि विसर्मर्दो कर्मभेदो तं दाब पुच्छिस्सम्‌ (क) गण ०-- वत्से" स्वीयतामुपदे शविशदधौ* यास्यसि ( मालविका निव स्थिता )

राजा--( आत्मगतम्‌ ) अहो सर्वास्ववस्यीसु चारुता शोभानरं पु- ष्यति तया हि

णनि : ` 2 24219 (क) भवति तिष्ठ किचिद्धो विस्मृतः कर्मभेदः तं तावत्‌ प्र्ष्यामि $ ९१ पक्के; (त ६.८; १. 0 (५

थः अनुरक्तं ल्िधम्‌ त्वयीति शेषः विदि जानीहि गीते वचनं * णाह म॑ पराहणिं ' इत्यादि वाक्यं स्वाङ्‌ त्म. -

डारीरप्रद होनपूवं यया भवति तयाभिनयन्त्या हस्तादिभिः

( स्वांगंनिर्दि श्य इममित्युत्वारणकारे इदं पदार्थतया स्वस्यांगे निदिख्ये- तयर्यः ) अनया मालव्रिकया धारिणीसंनिकषौद्धेतोः प्रणयति मम लेह प्वृत्तिमदषटाज्ञात्वा अनुभावानामप्रकाशनादिति भावः सुकुमारप्रार्यना व्याजं सुकुमारा मृदुल्य रसनीयेत्य्थ॑ः सा चासौ प्रर्यन। पैव व्याजोऽपदेशो

(१) ३. अवि {07 इव. (२) त. निष्कमितुं ( 8. 9. ¶. निष्कात्तुं ) आरब्धा, (३) २. चिद किंवि। वो &८; 4. 2० चिद किंपि &८. (४) 8. ८. पि. 4. विसुमरिदो कम्मभेदो 810 4. 20 विसुमारिदं कम्मेदेण ०१९ ( 8०७ कममेदेण ). ( ) 7. & . शाव १८७ पुच्छिस्सम्‌, ( ) 8. ५. ¶. कत्ते क्षणमात्रं स्थित्वोपदेशविशुद्धा यास्यसि, 2१. भद्रे उदेशविशदधा यातु- मति. ( ) 4. शुद्धौ. ( < ) 13. 9. ¶. ०४ ( ) स्वगतम्‌, ( )

स्वौवस्यासु. ( ११ ) {. शोभां !

( ४५ )

बामं संधिस्तिमितबर्यं न्यस्य हस्तं नितम्बे कृत्वा श्यामाविटपसदृशं स्रस्तमुक्तं द्वितीयम्‌ पादाङ््टाटुकितकुसुमे कुदटिमे पातिताज्ं सृत्तादस्याः स्थितमतितरां कान्तमृज्वायतार्थम्‌ देवी-- णं गोदमवअणं वि अज्जो रए करेदि (क) गणदासः--देवी' मैवम्‌ देवप्रत्ययात्संभाव्यते स॒क्ष्मदरदीता गीतम स्य परयै ~ ` ^ मन्दो ऽप्यमन्द तामेति संसर्गेण बिपञितः। पङ्च्छिदः फरस्येव निकपेणाविरं पयः

( ) ननु गौतमवचनमप्या्यो इदये करोति ^ †` “` ¦

॥, .' ६; +~

यस्मिन्कर्मणि तयोक्तम्‌ अहमक्त इवोदित इव बाममित्यादि संघे स्तिमितवख्यं सधौ मणिबन्धे स्तिमितं निश्च वल्यं कङ्णं यस्य तथोक्तः तं वामं सव्यं हस्तं नितम्बे न्यस्य निधाय उयामाविटपसदशं फलिनीशाखासंनिमं द्वितीयं दक्षिणं इस्तं सस्तमुक्त सस्त .शियिङं,. यथा 1 तथा म॒क्तं छम्भितमित्य्यैः कृत्वा विधाय पादाङगछछा

पादाङ्गृधरन्‌ललितमम्‌ष्टं कुसुमं यस्य तत्तयोक्तं तस्मिन्कु्म स्फटिक खवितस्यले पातिते व्यापारिते ऽक्षिणी यस्मिन्कर्मणि तयो क्तम ऋज्वायतार्भेम ऋज अवक्रमायतं दीघं अर्धं शरीरस्योर्ध्वभागो ` यस्य तत्तयोक्तम अस्याः स्थितमवस्थानं नत्तान्नर्तनादतितरामत्यर्थं कान्तं ` मनोहरं भवति ( अस्या नुः्यादनितराम्‌ ऋजु सरलं आयतां दीर्घाि- ` इारीरस्येत्यर्यात कान्तं स्थितं यद्वा पातितमानषि नेत्रमेवायतमर्धं यस्य ता- सत्‌ कान्तं बभृवेत्यथैः ) | अत्र वाक्यस्य विशेषितत्वात्ुष्पं नाम संध्य. मुक्तं भवति मन्दो ऽप्यमन्दतामेतीति स्पष्टो; | अस्य वाक्य.

+ (१) 8.७. पि. 1. ५५ मा. (२) ति. वैप्रत्यवात्‌, (२) पि. 0. (४) ©. निक्षे,

+

( ४६) ८९.५4 ५८५५

( विदूषकं विल्गेक्य ) शृणमो' विवक्षितमार्थस्य

भिद्‌ ०-( गणदासं विलोक्य ) संद्खिणीं दाव पुच्छ पच्छा जो मए कर्मभेदो लक्रिखदो तं भणिस्सं ( )

गणद्‌ा ०-- भगवति ययाद्ष्टममिधीयताम्‌ दोषो वौ गुणो वौ परिव्रा०-- ययाशाखरं सर्वमनवद्यम्‌ कुतः + अद्ैरन्तानिहतवचनेः भचितः सम्यगर्थः ` पादन्यासो कयमनुगतस्तन्मयतवरं रसेषु ~ "~ ` शालायोनिमृदुरभिनयस्तद्विकल्पानुवरततौ = = `^ भावो भावं नुदति बिषयाद्रागवन्धः एव |

( ) साक्षिणीं तावत्पृच्छ ककु ` > पश्वादयो मया कर्मभेदो कक्षितस्तं भणिष्यामि | ` ४.८५ ^+

स्योपपत्तिमत्वादु पन्यासो नाम संध्यङुमक्तं भवति कौशिकीं तावतयच्छ ` पश्चायो मया कर्मभेदो इष्टस्ते भगिष्यापि अङरित्यादि अन्तनि- हितवचनैरन्तरनिहितान्यम्यन्तरस्थापितानि पदानि वैस्तैरङ्ै- हस्तादिभिः ( वचनमंतरेणापि विक्षेपविशेषेण अन्तर्गतवचनैः ) अत्राभ्यासपाटवाद ङ्गानां स्वत एवान्तर्निदितवचनत्वमुतप्रोकषेतभिति मन्तव्यम्‌ अर्यो गीतार्यः सम्यक्‌ साधु सृचितः प्रकाशितः पादन्यासः पादस्य न्यासो विन्यासः ल्यमनुगतो+नुसृतः ख्यो नाम तालमानम्‌ ताले ` तराख्व्तीं यः कालोऽसौ ल्य ईरित ' इत्युक्तत्वात्‌ अत्र पादन्याषस्य ` स्वतो ल्यानुसरणमम्यासपाटवादिति मन्तव्यम्‌ रतेषु रसविषयेषु तन्मयत्वं तादात्म्यम्‌ रसात्मता भवतीत्यर्थः अत्र रसशब्देनोपचारात्परितोषाति `

(१) पष. ११ ततः ४०१ 8. अ. ¶. तत्‌. (२) }8. ४09 वयं, (३) 8. ७. पि. ¶. कोमिरं. ( 07 भिक्वुणीं ). (४ ) 8. ७. प. 4. कम्मभेदो दिके. (५) 8.७. पि. 41. गणोकादोषौवा. (६) 8.9. 1. 04 इति. ` (= ) पि. यथा टं ४५ 8. ७, ¶. वया दतं. ( < ) 8. 9. 4. वदति.

1 ¢ `;

( ४७ ) गण ०--देवः कयं " मन्यते राजा-- गणदासं वयं स्वपक्षशेयित्मभिमानाः संवृत्ताः ` गण०- अर्यं नर्तयितास्मि। `^“ इपदेशं विदुः शुद्धं सन्तस्तमुपदेशिनः श्यामायते युष्मासं यः काज्रनमिवाध्चिषु ॥९॥ देबी- दिष्िआ परिक्वआरदिणेण अज्जो वडुंह ( )

) दिष्टया परीक्षकाराधनेनार्यो वर्धते

शयवत्वादिभावाः कथ्यन्ते प्रकतरसस्यैकलवाद्र सेथिति बहुवचनानुपपत्तिः प्रसङ्त्‌ अभिनयः प्रयोगः ययोक्तम्‌ -- प्रयोगो यस्तु नाटचादेर्भवेद भिनयो हि सः ` इति शाखायोनिः शाखा योनिः प्रभो यस्य स॒ तयो क्तस्तयाविधः सन्‌ ( शाखातुल्यपाणिरेव योनिरुत्पाततिसाधनं यस्य हस्तश्रित इत्यर्थः ) मृद्‌: सुकुमारः शाखानाम नत्तहस्तानां मान प्रचारः यथेक्तम्‌-‡ शाखा तु नृत्तदस्तानां या मात्रा विवनर्तने ' इति तद्वि कल्पानवत्तौ तस्याभेनयस्य तस्य अभमिनेयनायकादे विकल्प्यन्ते इति विकल्पाः देहादि चेष्टादयर्तषामनुवृत्तौ अनुसरणे भावस्तद्‌गतो.$ वस्याभेदः स॒ एव अभिनेयनायकारिगत एव॒ रागबन्धोऽनुरागसंब॑धो विषयादन्यस्मादिति शेषः भावं हदयं तुदति आकषंति विषयान्तर. संसर्गराहित्येन स्वप्रवणं करोतीत्ययैः ) विकल्पो भेद स्तस्यानुवतिरनुगतिः .्ापिः तस्यां सत्यां भावः अभिनीयमानो निर्वदादिर्विषयादाश्रयात्‌ प्रतात्स्यायिन इत्यर्थः भावं पुवौभिनीतं संचारिणं नुदत्यपाकरोति रागवन्धो रञ्जनत्वयोगः एव पूर्वं यादशस्ताटश एवेत्यर्थः उपदेशं बिद्ुर्त्यादि उपदेशिनः शिक्षकस्य युप्मासु युप्मादशोषु विवेकि

(१) 2 ५१ कवा. (२) 8.७, पि. ¶, ग. (३) }२. स्वपक्षे &८, ( ) 2० अथ. ( ) 4. विद्वत्सु. ( ) 4, पएर्क्खारा &५, ( परी क्षारा &, ) ( ) †. वदद ( वर्धताम्‌ )

+. 8. ©. ¶. सगतम. ( ¦ ) 83. 9. ४. 1. जात्तारः (१) 2.1 ९\ ०2१ |

॥1

(४८)

गण०्- देवीपस्यरहश्च मे' ृदधिदेतुः ( विदुषकं विल्मेक्य | ) गौतम वदेदानीं यत्ते मनसि वर्तते

विदू ०-- पुटमोपदे सदं सणे पुदमं बद्मणस्स पूजा इच्छिदैव्वा साउणै वो विस॒मरिदा। (क) „~ध

परि०---अदो प्रयोगाभ्यन्तरः प्रश्नः 1... ~ १५८८.

( स्वे प्रहसिताः * ) " ( माखविका चै स्मितं करोति )

राजा--( आत्मगत्‌ | ) आत्तसारश्चक्षुषा स्वविषयः यदनेन

स्मयमानमायताकयाः किंचिदभिव्यक्तदशनरोभि मुखम्‌

असमग्र लद्यकेसरमुच्छरसदिव पडङ्जं दृष्टम्‌ १०

) प्रयमोपदेशद शने प्रये ब्राह्मणस्य पूजा एष्टव्या सा पुनर्वो विस्मृता

व्वित्यर्यः इयामायते मलिनीभवति लोहितदित्वात्‌ क्यष्‌ ' 1 ¢ वा क्यषः ' इति व्िकल्पादात्मनेषदम्‌ अयि पण्डितंमन्ये किमन्यत्‌ मोदकखण्डने ऽपि असमर्था किं जानाति प्रसन्नचन्द्रपादसद्शः केश पाकेरेतान्‌ भीषयसि प्रयमोपदेशदर्डाने प्रयमे ब्राह्मणस्य पूजा एष्टव्या सा त्या विस्मृता अव परिहासस्य गम्यमानत्वान्नमोति सेध्यङ्कम॒क्तं भवति स्मयमानमिस्यादि रप्टोऽयैः ॥. अववा पण्डितपिताषप्रत्यया ननु

(१) पि. एव & 8. 6. ¶. अपि 0" वमे. (२8.

~ पि. 17. ^. काक्वा. (३) 8.6. पि. ¶१. गे & ^. वोपटक्िदा

(१). 4. प्रात्निकः (५) 20 २0११. विदषकः-अह पण्डितं मण्णे कि अण्णं | मोदअखण्डणे वि असमय्या नुमं कि जाणासि परसण्णवन्दपादसरितिदि केसपासेहं एदाणं भीमिअसि. (६ ) 8. ©. हसिता: ( « ) पष. ०४. (< )

भी +

* कु कक क.

( ४९ )

शण -- महवब्राह्मण खलं नेपथ्यसंगीतकमिदम्‌ अन्यया कथं त्वामचैनीयं नार्चयिष्यामः |

बिदू०-- मए णाम मद्धचादएण विअ सक्खघणगान्निदे अन्तरिति

नलप्राण इच्छिदं (क )

परित्रा०-- एवमेव

बिदू०- तेण दि पण्डिद परितीसपञ्या *मूटजादी जदि अत्तहो दीए सोहणं भणिदं तदो से इमं पारितोिभं पञच्छामि। इति रज्ञो हस्तातकुटकुमकर्षति ) ( )

देबी ०-- चिट दवि गणन्तरं अजाणन्तो किति तमं आहरणं देसि (ग) बिदू °--परकेरंभं त्ति करिअ (घ)

^ 1 1 (क ) मया नाम म॒ग्धचातकेनेव शष्कघनगीनते «न्तरिक्षे जल्पा-

नमिष्टम्‌ > ५.2. , ( ) तेनहि पण्डितपरितोषप्रत्यया मटजातिः यतो(तरभकवत्या शोभनं भणितं ततोऽ स्यै इदं पारितोषिकं प्रयच्छामि

“` ( ) तिष्ठ तावत्‌ गुणान्तरमजानन्किमिति त्वमाभरणं ददासि

( ) परकीयमिति कत्वा

मढजातिः। अनेन मालिकानिर्गमनदेतुना देवीवचनेन राज्ञो हितरोधनाननि-

(८१) 1. 8.6. (4. प्रथम ) नेपध्यसवनमिदम, ४५ प. प्रथम्‌

नेपथ्यप्रदर्शनमिदम. (२) 3. ७. 17. दक्षिणीय. (३) 8. 6. ¶. जलपाणेण ( 1, 01 जलपाणं इच्छ्दा ) चादआइतं. ध, 16848 6

9॥०७।ण६ 80९ 9 = विद्षक 1४ ९००५।५०६६{०0 ७1४11 {118

००१४५१४६ ५€ 8९८) ° पररिाजिका 2/५ 1९४५1१६ अहवा णिः वेणि, (9) प. संतोसष. (५) ॥. ७. 2४. {. ४५१ णं. (६) 2५ तत्तहोदीर्‌. ( * ) 2० गेण्हिदं. (< ) 8. ७. ०. (९ ) 8. ©. नि. 4. 4. २०. ००. ( १९ ) 8. ©. पि. 7. किणिमि्ं. ११ ) 4. 29 प्रर्कीमं.

#

‰२.५

(6 ५० )

देबी--( आचाय विलोक्य ) अज्ज गणदास णं ' दंसिदोवदेशा दे सिस्सा। (क)

गण ०-- वत्ते प्रतिष्ठस्वेदार्नम्‌ 1

( मालविका सहाचार्येण निष्क्रान्ता )

विद्‌ ०--( जनान्तिकम्‌ राजानं ` विल्येक्यौ ) एत्तिओ मे मदिविहबो भवन्तं सेबिदुं | ( ) «^^...

राजा ०--अर्मलं परिच्छेदेन अयं हि

भाग्यास्तमयभिबाक््णो हदयस्य महोतसवाव्रसानमिब

द्वारपिधानमिव धृतेर्मन्ये तस्यास्तिरस्करणतं ११॥

दू ( जनान्तिक ।) सीहु पमं द्ददुरो वि वेज्नेणं उव णीअमाणं ओसहं इच्छसि ( )

( कं ) आयं गणदात नन दर्शितोपदेशा ते शिष्या ( ) एतावान्मे मतिविभवो भवन्तं सेवितम्‌ (ग) साधु ववं दरिद्रातुर इव वैयेनोपनीयमानमीषधमिच्छसि

रोधो नाम सेध्यङ्मक्तं भवति भाग्यास्तमयमित्यादि तस्या मालिं कायास्तिरस्करणं तिरोधानमक्ष्णोर्नेतरयोर्भाग्यास्तमयमिव भाग्यस्य भागधेय- स्यास्तमयामिव हदयस्य मनसो महोत्सवस्यावसानमन्तमिव धृतेः परतिद्री.. रपिधानमिवं द्वारस्य प्रवेशमार्मस्य पिधानं तिरोधानमिवं मन्ये संभावयामि तस्या अददीने नेवं विफलमिव इदयं निरानन्दमिव सेत्तोषमावृतमिव मन्ये ) अत्रारतेगम्यमानत्वादविधूतं नाम संध्यङुमक्तं भवति दरिद्र श्वातुरो वैयेनदोयमानीषधमि

(१ ) पि. 20 ०.८२) 28. 6. 4. एहि गच्छवः (३) 8.6. ¶. 9१. (9) &. मि. (५) 8. ©. पि. 1. अह. (4) 2 ए. ७, ¶. तिरसकारिणीम. ( ). #, ०. ( < ) 8; 0७. ए. साह. पि. ०7 & 4. १५५ अहह. ०६०1७ ( ) ष. उटिदे विभि आदे. (१) 8. 6. त. 1. केज्जेण ओसहं दाअमाणं (8. ©. ¶. उष्यार्दाभिमाणं ).

^) ( प्रविंङ्य ) हृर₹०- देव मदीयमिदानीमवलोकयितुं पयोग क्रियतां प्रसादः राजा--(आत्मगतम्‌ ) अवसितो दर्शनार्थः ( दाक्षिण्यमवलम्ब्य प्रकाशम्‌ ) हरदर्तं पर्यत्स॒का एव वयम्‌ हर .-- अनुगृहीतोऽस्मि

( नेपथ्ये ) -स श्च बैता०-- जयतु जयतु देवः उपारूढो मध्याः तया हि ^... पत्रच्छायासु हंसा मुक्कितनयना दीधिकापद्चिनीनां सौधान्यस्यथेतापाद्ररुभिपरिचयद्वेषिपारावरानि 1." बिन्द्रक्षपान्पिपासुः परिपतति रिखी भ्रान्तिमद्वारियन्त्रं ~~ ` समभ्रस्त्व(भव नृपगुणदप्यत सप्तसा; १२॥

च्छसि पञ्जच्छायेस्यारि ( हंसा दीर्धकापानिनीनां वाप षरोजिनीनां- दल्च्छाातु मुकुल्ितिनयनाः संत॒ आसते इति शेषः सधान अर्थ तापद्रङिरणात्यर्थसंसर्मकृत तापाद्रल्भिपरिचये वडभ्यनुश्ील्ने द्वेषि णो द्वेबयक्ता अननत्क्ताः पारावता यत्र तथा भतानि शिखी मयर विपास॒ः सन्‌ विन्द्त॒तपाज्जलकणानामुलषेपाद्‌ भ्रांपिमद्‌ भ्रमणयुक्त ` जयतं धाराधत्रं परिषरति गच्छति हे नप सप्तसप्तिः स्यः गमैः समग्रः सेपुभ॑स्त्वमिव उखैः किरणः समग्रः सन्‌ दीप्यते भाति ।)॥ अविध अवध अस्माकं पुनर्भोननवेलेपस्विता उचित वे्यतिक्रमे

4

(१) १. 6. १. ¶. [फ्छा्लौषद्नु<, (२) 8. ©. ^), स्वगतन. (३) 98. 8. 1. १५५ मे. (१) 1३. ७.1, ७») (५) ए. 010), ०0 जयतु. ९० & . सुताय भत्‌ मायंदिनी सव्या देवस्य | तथादि। (६) 2० मध्यमः; मध्यः ( ) 1, ?० बिन्द््लोात्‌ & 4. विन्कषेपान्‌. (< )~ 8. 6. ४» 1, प्रितरति. ( ) 2. 0. ४, 4 समथः )

= # 4

क,

( ५९)

बिषू ०-- अविहा अविह। अद्ौणं उण भोअणवेत्म संउत्ता उइदवेलादिक्रमे चिइच्छआ दोसं उदाहरन्ति ।* ( )

राजा-- हरदत्त किं भणति

हर०-- नारसत्यवकाशो मद्रवचनस्य

रजा ( हरदत्त विलोक्य ) तेन हि व्वदीयमुपदेशं शवो र्थं द्रया मः विश्राम्यतु भवान्‌

हर्‌ ०-- यदाज्ञापयति देवः ( इति निष्क्रान्तः ) देशो--णिव्वटरदु अज्जत्तो मञ्कणविहिम्‌ ( ) विद्‌ ०-- मोदि वितेतेण पामोअणं तुवरे$ ( ग)

( कं ) अविध अविध अस्माकं पुनर्भोननवेलपस्थिता उचित-

..... बेलातिक्रमे चिकित्सका दोषमदाहरन्ति ।:. :. ¦

( ) निर्वतंयतवायपुत्रो मध्याहुविधिम्‌ ( ) भवति विशेषेण पानभोजनं त्वरयतु

चिकित्सका दोषमुदाहरन्ति किमिदानी भणसि (अत्र मध्यद्भुपमये अन्यस्य वचनस्यावकाशोस्तीति काक्रा प्रश्रः) | निवंतेयत्वार्यपुत्रो म-

(१) 8. ०1१). ०७ अविहा. (२) 12० १€४५ अत्तहोदो ५।६।। सेउत्ता, 7" बह्मणस्स भोअणवेला अत्तहोदो सञत्ता | उहद &०, ४५ 8. ©. (7. अह्माणं भोअणवेटा अचहोदो उददेटदि कमेण &९ 4. ण्हाणमोअणवेत्म उर्वाःग अनहोदौ उडद &८. ( ३) 3. ७. प. ¶. 16५व ४५ {गोण्ड 8])€७८।\ ०[ (06 [10 1) (118, ०१०,।५।1१६ राजा. १, ४१५8 (हरदं विद्धोक्य ) & दाणि ५{८८॥ कि. ( 9 ) 2५ नास्तिमद्रवनावसरोऽ्र 9. (३, "1, लाभ्तिचान्यस्य वचनावकोशोऽत्र & प, नांत्तिवचनत्यायस्याक्कारोऽ्र.( ) . प, ०. (६ ) 8. 6.1. ०0. (* ) 9. 6. 1. किरन्यतामः भवान. (< ) 2" अज्जो. ( ) 0 मज्जण, ८१९ ) ०0 पराण, ( ११) 5. 6. 2२, ¶्. वुषरविवु.

( ५३ )

परित्रा०-- ( उत्याय ) स्वस्ति भवते ( शपरिजनया देव्या सह निष्क्रान्ता | )

बिद०--भो केवलं रूवे सिप्ये विँ अदुदीआ माल्विआ ( )} राजा- वयस्य अव्याजसुन्दरीं तां विज्ञानेन ककितेन, योजयता ` परिकल्पितो विधात्रा बाणः कामस्य बिषादिग्धः १३॥ किं बहुना | "चिन्तयितव्यो स्मि तेः | ^ ^. ^ <”“ "4 ^“

*“ - ६५

बिदू०-- भवदा वि अहं दिद" विपणिकन्दु विअ मे उदरन्भन्तरं टज्खई | (ख)

राजञा--एवमेव भवान्सुहदर्ये तरताम्‌ बिद्०-- गहीदक्खणो नचि रिंद मेहोवरष्दजेष्डा पराहीण-

(क ) भो केवरं रूपे शिल्पे ऽप्यद्वितीया मालविका ( ) भवताप्यहम्‌ ददं विपाणिकन्दुरिवि उदरमभ्यन्तरं दह्यते

ज्जनविधिम्‌ अञ्या सु. रं मित्यादि ललितेन सुभगेन विज्ञानेन सं ` गीतकल्परिज्ञानेन विपणिकन्दुनौम पण्यवीधथिकायां पिष्टपचनपात्रम्‌ कन्दु स्वेदनी स्त्रियाम्‌ ' इत्यमरः एबमेबेत्यादि एवमेवेत्थमेव ` यथा भवान्भोजनरूपे स्वकर्थे त्वरते तया सुहदर्थे मदर्थे मालपरैकापुनदं ` शने त्वरताम्‌ अव दष्टनष्टस्य बीजस्यानुपसर्पणात्पारेसपं इति सेध्यङ्मुक्तं भवति भवानपि स॒नाषेद ङ्‌ ( सनापरिसरचरो व्रीहड्‌ ) इव आमिषरलपो

(१) 8.०. ¢. (इतिदेन्या सह &९. ), पि. ( हप सपरिजनया देव्या 4५. ) (२) पि. ४५५. वअस्स. (३) 4 सिष्य अ, (१) 8. ७.4. उकसिषितौ. ) प. १५५ स्वे, ( ) {०५0 ते, ( ) ०). (<) 8. ©. 1. हिअअ, (९) 8. ७, 7. अम्मदय, ४१५ प. ५०१ अपि. (१९) त्वरयतु. (८ ११ ) ष, गहीगे क्वणो, (१२) 8. 0. १, 1, 4 मेहावछीष्द्र ( प, शद्धा ) जोण्हा & ४५५ माछ्रिजा &{191 तत्तहोदी.

( ५४) दसणा तत्तहोदी भवं वि स॒णोपारिचसये `विहंगमो विअ आमिसलोलवो भीरओ अवादुरो भपिअ कञ्जतिद्धि पत्ययन्तो मे रोअकि राजा--सले कयं नंतुरो भविष्यामि ~~~ सवोन्तःएरबनिता व्यापारप्रातिनिवत्तहूदयस्य सा बामखोचना मे स्नेहस्यैकायनोभता १४ ` (ति निष्कान्त ) ५. इति द्वितीवोऽकः

१) #र

( ) गृहीतक्षणो ऽस्मि. किंतु मेघोपरुद्धजयोत्स्नेव पराधीनद ना ततभवती भवानपि शनोप्रिचरो विहङ्म इव॒ आमिषल्ेलृपो भीरूक श्रात्यातुरो भत्वा कार्यसिद्धि प्रार्षयमानेो मे रोचसे

भीरुकश्च तस्मादनात॒रो भूत्वा कार्यसिद्धि प्रार्थयमानो मे रोचसे अत्र सान्त्वनस्य गम्यमानत्वात्प्य पासनं नाम ॒संध्यडमक्तं भवति सर्बान्तः एरेतव्यादि या स्नेहस्य प्रेम्ण एकायनीभूता एकं केवलमयने स्यानम्‌ आश्रय इत्यर्यः तद्भूता मालिकाया निष्क्रमणेन कयाविच्छेदे ` सति सर्वान्त पुरेत्थादिना रो राज्ञो ऽभिल्यषातिशय उत्तरङ्कथा

हेतुतवाद्वन्दुरित्यनुसंधेयम्‌ श्रौकाटयवेमभृपविरािते कुमारगिरिराजीये ` मालविकाभिरमत्रव्याख्यने द्वितीयो ऽङ्‌:

(१) 8. 9७. पर. ¶, सृणापरिवरो ( प. सरो). (८३) 98. 6.1, निने विअ ५।५ विहगो बिअ. ( ३) 8. ७. ओ, 1. 5९१६९०९९ ` ०१११९८९ 1€7७ ( ) 8, ©. ¶. अचार गजि && पि. ता अणादूरो | ५) 8. ७. पि. 1. ००. ( ) 8. ७, }र 1. कंथमनातुरो, ( ) 43. ७. 1. शज्यापारं प्रति &५.

( ५५ ) तृतीयो ऽदः ततः प्रविशति परिव्रिजिकायाः परिचारिका )

परिच;०--आणत्तद्चि भअवदीए समाहिमदिए देवीए उवाण- अत्थ बीनपूरअं गेण्हिअ आभच्छेति ता जौव॒पमदवणपलिअं महु अरिं अण्णेसामि परिक्रम्यावलोक्य ।) एसा तवणीञसोअं ओलेअरन्ती चिद्वि जाव णं उपसप्पामिं | ( )

, ( ततः प्रविशव्युद्यानपालिका )

प्रथमा--( उपपुत्य ) महुअरिरं अवि रहो दे उञ्जाणवणंव्वावारो (ख) द्वितीया--अद्यो समाहिमदिआ साहे साअदं ते (ग)

( ) आन्ञप्तास्मि भगवत्या समाधिमतिके देव्या उपायना्थं बीजपरकं ¬> गृहत्वागच्छेति तवयावत्प्रमद वनपालिकां मधुकरिकामन्विष्यामि एषा

तपनीयाश्ञोकमवलोकयन्ती तिष्ठति यावदेनाम्‌पसर्पीमि >+ ५४६. 6 मधुकरिके (ख) अपिं सृखस्त उद्यानवनव्यापारः “¦

(१५ (न

) अहो समाधिमतिका सखि स्वागतं ते (१८... ९५

कविरिदानीमङान्तरमारभमाणः कथासंघटनायं प्रथमं प्रवेशकं नामा योपक्षेपकं प्रस्तीति तः प्रविशतीर्यादिना समाभतिके (देव्याः) उपा

.(१ ) प. 7. ४५ समारितिका. (२) 2. 6. परि. 1. समार्हितिका 4. समाभृतिका ५] ५१7००६॥. ( ) २०. ४५ जहा समाहिमदिष, 1 000. समाहिमदिए. ( ) 8. ७. प. ¶. 2० देवस्स; २४ ०1, (५ ) ^. 20 सभाअणयं. ( ) 23. 4. ता दाव, ध, जावं &. (+. तं दाब, (७) ष, च, ( < ) 3. 6. ¶. 4. 2०.१५१ महुअरिआ. (९ ) ए. ©

^. 2. ¶. सेमर्विमि, ( १९ ) ए. 6. 1, आलि महु, .. अवि (

अवि ). (११) ‰. सुविहिदो. (१२) ८४ 4 त. उज्जाणन्वावारो, , 1

( ५६)

समाधिमतिका-- हला भअवदी आणवेदि अरित्तपाणिणा अद्या | रिसनणेण तत्तहोदी' देव" दक्खिदव्वा ता बीनपूरएण सुस्सृषिदुं इच्छमि त्ति (क)

करिका- णं संगिहिदं बीजपूरअं केहि दयि अण्णोण्णसंघः रितिदाणं णद्राभरेआणं उवदेसं देक्खिअ कदरो भअवदीए पसंसिदो ्तिं। (ख) समाथिमतिका- दुवे वि किं आअमिणा पओअणिडणा किदु सिस्सागुणविसेतेण उण्णमिदो गणदासो ( )

मधु ररिका--अह माखविआगअं कोलीणं कि सुणीअदि ( ) समायिमातिका--बलिभं क्ख॒साहित्गंसो तरसं भद्र "केवलं

( ) सखि भगवत्याज्ञापयति अरिक्तपाणिनास्मादशजनेन तत्र- भवती देवी द्रष्टव्या तद्वीनपूरकेण शुश्रषितुमिच्छामीति। `

) ननु संनिहितं बीजपूरकम्‌ कयय तावदन्योन्यसंधूर्षितयो नौटयाचारययोर पदेशं दष्टा कतरो भगवत्या प्रशंसितः

( ) द्वावपि किलागामिनौ प्रयोगनिपुणौ कितु शिष्यागुणविशे षेणोक्रमितो गणदासः

( ) अय माल्विकागतं कौलीनं किं श्रयते

यनाय बीनपुरकं गृहदीत्वागच्छोति अय मालविकागतं कौलीनं लोकबाती किमिति श्रयते (देव्या रक्ष्यतेच ) ततः परं जने इति प्रवेशकः॥

) 4 8. ©, 7. ?० अत्तमवं दक्िदन्वो, (२) 1. पक्त सुस्सु- सिदृ ). (३) 8. ७. ¶, 8१५ 20 ^. दूवेणं सगीदओवदे्णिमिततं & ९, (४) ए. 6. दि. ¶. कण. त्ति. (५) ¶. (क्व्‌ १।।९।११६।१७). ( ) पपि, मालविओआए उवदे्ो पसंसिदो, 1. सिस्साए विसेतेण उण्णमिदो उवदे- सौ गणदासस्स. &. 12. ५, गणदासो उण्णमिदोवदेसो. ८५) 4, च. 2०. क्ति. (< ) ५, चठ किल. ४0०५ 3. 09. 1. बादं किल. (१) 8.09. षि, (1, [णनो ४०६९, ( १९ ) पि, ११ कितु. |

4 ८.

1 देवीं धारिणीए चित्तं रक्खन्तो धहुत्तणं दंसेदि मालिं वि इमे मु दिअहेसु अशहदम॒त्ता विअ माल्दीमाल्म मिलभमाणा लक्खीअदि अदो वैरं जाणे विसज्जेदि मं ( )

मधुकारिका-- एदं साहावलम्बिदै वीजपरअं गेण्ह ( )

समाधिमतिका-- ( नाटयेन गृहीत्व ) हला तुमं वि इदो पर्सल्दरं साहुजणसुस्स॒साए फरं अणुहविस्ससिं' ( इति प्रस्थिता ) ( ) . मधुकरिका- सहि समं रएव्व गच्छ्मो अहं वि इमस्स चिरा- अमाणकुसुमोभीमस्स तवणीआसोअस्स दोहल्णिमिततं देवीए विण्णवेमि'”

9 "क = नक ११ तकनक

(ष) समाधिमतिका -नुज्जई अदिआरो कसं तुह ( ) ( इति निष्कान्ते ) कि, = 1 पेशोकः

1 ++ 4. (न. +

( ) बल्वत्वल साभिखषो तस्यां भर्ता केवरं देव्या धारिण्या- =

शित्त रक्षन्‌ पुभत्वं दशयति माखविकाप्येषु दि वसेप्वनुभूतमुक्तेव मालतीमाला म्लायमाना रक्ष्यते अतः परं जने विसज माम्‌

( ) एतच्छाखावुबितं बीजपूरकं गृहाण १/०; ५५.८८..०

( ) हल त्वमपीतः पेशकतरं साधरुजनशुश्रुषायाः फलमनुभवति

( ) सखि सममेव गच्छावः अहमप्यस्य विरायमाणकुसुमोद्रमस्य तपनीयाशोकस्य दोहद निमित्तं देव्यै विक्नापयामि + ( ) यज्यते अधिकारः खल तव ,

|

) ष. ००, ( ) सक्खमाणो, 29 4. रम््विद. ( २) 3. ७. ¶, ४44 सत्तणो ४०१ ^. 2० अरिटासदंसणे. &८. ( 9 ) 1. अणुटूदमुच्छा, ( ५.) पि. म्ना. ) ए. ७. 1. अवरं, ( « ) 3. (©, 1. साहावलंबि, 89 4, एणं साहावलंबिणं, ( < ) प. तह | ( हति नाग्येन बीजपूरकं गृहीत्वा )* ( ) पि. अदो & 4. 0४; 20. अदो वरं. ( ° ) 2० विषुदरं & 2४ णण. (११ ) ए. 6. प, 4. पावहि ४०१ 120 4. लेह. ८१२ ) पष. इका, ( १३) 8. @. ०७. ( १२.) ^. "कुत॒मस्स. १५) 8. ७, णिवेदेमि. १६ ) 4. ०४. ( १५ ) प, ४0 हि,

<

£

( ५८ )

ततः भविति कामयरमनोनिस्ो राजा विदूषकश्च ) राज्ञा-- ( आत्मानं विलोक्य ) शरीरं क्षाम स्यादसति दाथेतालिङुःनसुखे भबेत्साखरं चक्षुः क्षणमपि सा दृश्यत इति तया सारङुाक््या त्वमसि कदाचिद्विरहितं `" भ्रसक्ते निर्णे हृदय परितापं वंहति किम्‌

बिदू ०- अलं भवदो धीरदं उम्भ परिदेविदेण दिलु मए ॒तत्तहोदीए्‌ माल्विआए पिअसही बडउल्यवलिआ सुणौष्दा तं- अत्थं जो भवदा संदिष्ो )

राजा-- ततः किमुक्तवती

( ) अलं भवतो धीरतामु्डित्वा परिदेवितेन दृष्टा खल्‌ मया तत्न- भवत्या मालपरिकायाः प्रियसखी बकुत्मवलिका श्राविता तमयं यो भवता संदिष्टः

ततः प्रदिश तीत्यादि कामयमानावस्यः | कामयमानानां कामिनामवस्येवाव स्था दशा यस्य तथोक्तः शरीरामित्यादि दयितालिङनसुखे परि यापरिष्वङ्सुखे 4सत्यविदयमाने ( सति ) शरीरं वपुः क्षामं स्यात्कशं भवेत्‌ ( सेभावनायां जङ्‌ शरीरक्षामता संभावितैवेतयर्थः अनेन स्मरजा क- शावस्या सूचिता तथा चालिदनसुखविमृक्तस्य कडतोचितैवेत्य्ंः ) क्षणमपि क्षणमात्रमपि सा माल्मविका इङ्यत इति लक्ष्यत इति चक्षुः सास्रं सबाष्पं भवेतस्यात्‌ हे इदय चित्त सारङ्ाक्ष्या हरिणनेत्रया तया

(१) ए, ७. मद. (२) 8. ५, पष. 7. बनसि, ( ३) 8. 9. त्ष. ¶. ०४, शब्‌. ( ) 8. ©. 7. ०0 ते, पि, सुणाविदो अअं अत्यो 9 ते अत्यं 8त्‌ 0. मए तं अत्थं, { ) 29, 10४6००००

किक ५1 `

ऋ? )

बिदू ०-- विण्णवे्े भद्रं अणुगहीदद्यि इमिणा णिओएण किदु सा तवस्सिणी देवीए अहिअदरं' रक्खिअमाणा णाअरकरखदो णिहिं विभ सुहं समासादइदव्वा तहवि घडडस्सं ति ( )

शजा--भगवन्संकल्पयोने प्रतिबन्धवत्स्वापि विषयेप्वभिनिवे्यं तया प्रहरसि यया जनोऽयं कालान्तरक्षमो भवति ( सविस्मयम्‌ )

9 ^.

खजा हूदयप्रमाथिनी ते विश्वसनायमायुधम्‌।

मृदु तीदगतरं यटुभ्यते तदिदं मन्मथ इश्यते त्वपि ॥२॥

( ) विज्ञापय भतौरम्‌ अनुगृहीतास्म्यनेन नियोगेन किंतु सा तपस्िनी देव्याधिकतरं रक्ष्यमाणा नागरक्षितो निधिरिव स॒खं समासा- .“. दयितव्या तथापि घटयिष्यामीति

कि ^~

मालविकया कदाचिञ्जातु विरदितं वियुक्तं नासि भवसि ( मनसस्तदे- कायनत्वात्‌ ) अतस्तस्मात्कारणात्‌ ( तन्मयत्वेन ) निर्वाणे . सुखे प्रसक्तं प्रस्तुते. सति किं किमथ परितापं सेतापं व्रजसि प्रामोषे ( अनुभवति ) श्रविता तम्य यो भवता संदिष्टः। ( श्राविता मया यद्वता सेदिष्टं ) नागरक्षित इव निधिः अत्र॒ तपस्विनीति करूणापात्रमुच्यते तपस्वी करूणापात्रम्‌ ' इति हत्युधः अत्र प्रापतिसंभावनया प्राप्तयाशा नाम तुतीयावस्या मृचिता अनया प्रायाशया बिन्दोः समन्वयाद्रभ॑ताधि रिति मन्तव्यम्‌ कररुजेस्यादि ( ददयप्रमाधिनी हदयनिष्पीडिका रुजा रोगः क्र | ते विश्वसनीयं कुसुमायुधतवेन अपीडाकरत्वात्‌ विश्चासपात्रमायु घं श्रे वा क्र कृमुमशतत्रेण भवता हदयस्य पीडनं अतीवासम्भरवमित्य- यः| हे मन्मय लेके मृदु कोमलं सदेव तीक्ष्णतरमातितीक्ेणं यदुच्यते

(9 ) पि. ०१, ४१५ 8. &. 1. भद्रारअं, २) पि. अहिअं रक्खतीए, ( ) 8 9. 1. रक्िदाणं विअ णिदिणं सुहं &५,; ^. ष, विअ मणी ५।५व ए. मणि विअ. (४) 3. ७. ¶, जतिस्सं, ( ) पि. प्रतिबन्धवत्स॒चापि & ^. 23, ©* ००. चापि. ( ) प, अभिनिवेशकारी कि. ) 8, 6. पष, ¶, 1४८८1४०९

:. बस्थापयतु भवानात्मानम्‌

( ६० ) बिद०--णं भणामि तरस साहणिजञ्जे किदो उवक्खेओ त्तं | तौ

पग्जवत्यावेदु भवं अत्ताणं ( )

राजा--अयेमं दिवसशोषर्मुचितव्यापारपराड़मखेने चेतसा क्र नु खल यापयामि

विदू ०--* अज्ज एव्व वघन्दपुदमावदारसुह ओंणि रक्तकुरबआणि उवाअणं पसिअ णववसन्तावंदरावदे सेण इरावदीए णिडणिआमदेण पत्विदो भवं ' इच्छामि अज्जउत्तेण सह दोतदिरोदणं अणुहविदुं तति भवदा बि से पडिण्णादं ता पमदवणं एव्व गच्छद्य | (ख )

शाजा-- क्षमामिदम्‌ | िदू ०-- कहं विअ ( ग)

(क ) ननु भणामि तस्मिन्साधनीये कृतो मयोपक्षेप इति तत्पं

(ख ) अयैव वसन्तप्रयमावतारसुभगानि रक्तकुरबकाण्युपायनं प्रेष्य नववसन्तावतारापदे शेनेरावत्या निपुणिकामुखेन. प्रर्वितो भवान्‌ इच्छाम्यर्यपुतरेणसह दोलाधिरोदणमनुभवितुमिति भवताप्यस्यै प्रति ज्ञातम्‌ तत्प्रमदवनमेव गच्छौवः

( ) कयमिव 6 ततिदँ त्वयि टइयते तव शस्त्रस्य मृदुत्वात्‌ तापकल्वाच्च तयात्वमिति भावः ) ननु भणामि तस्मिन्साधनीये कृत उपक्षेप इति (संस्तंभयतु)

(१) ‰. 8. ©. ¶. ४११ कञ्जे. (२) 2. 4. ०४०, चि, ‰. 2० उका- आओवक्लेओो सि (^. ०10. पि); 1. म? उवाओवक्खेओ ति; #. ©, उवाओ ति. (३) प. ०५. ता, 3. ७. अत्तभवं) ^. 2५ अत्ताणं तत्तेमवं, ( ) 8. ©, ०9. उचित, ( ५) 8. ७.28.1. षि णिष्रा. (१) 8.9. 1. ¶, जा. (ज ) ए. ७. प. ¶4. ४0 णे मव, (<) 8.6... 0). षसन्द्‌ ( ) 2. 4. सृजभणि, ( १९ ) ए. ©. 2. 1. ` व्ववदेतेण, &५, ( ११ ) 8. ©* 2, 1, ०,

( ६९ ) शजा-- वयस्य निसगनिपुणाः स्त्रियः कयं मामन्यसंक्रान्तइदयमुपल्य छयन्तमपि ते सखी लक्षयिष्यति अतः पडयामि।

इचितः प्रणयो बरं विहन्तुं बहवः खण्डनहेतओ हि दषाः इपचारबिधिमंनस्विनीनां तु पृ्यधिकोऽपि भावशून्यः॥३॥

५.

(1 ॥*. =

बिदू०--णारूहदि भवे अन्तेउरंपडिद्िदं दक्खिणं रक्तपदे पिहदो .

कादुम्‌ | ( ) शजा--( विचिन्त्य ) तेन हि प्रमदवनमार्गमादेशय 1 बिद ०- इदो इदो भवं ( ) *( उभौ परिक्रामतः )

थह ~= =,"

( ) नार्हति भवानन्तुरमतिष्ठितं दाक्षिण्यमेकपदे पृष्ठतः ८.6.15 ९५५५५५५५ 3

(८ ) इत इतो भवान्‌

~~~ ~~~

अत्र * कृत उपक्षेपः इत्यनेन कपटोपायकल्पनाया गम्यमानतवेन अभता हरणं नाम सन्ध्यङ्मुक्तं भवति ( निसर्गेण स्वभावेन निपुणाः परचित्त ज्ञानदक्षा अन्यस्यां सेक्रान्तं हदयं यस्य वृत्तिगतत्वात्‌ अन्याशब्दस्य पु वदावः तादशं मामुपलाल्यन्तं बाह्यव्यापारेण आनुकूल्यमाचरन्तं ते तव सखी इरावती लक्षयिष्यति ) उचित इति प्रणय इरावत्याः ्रर्यना विहन्तुं परतिषेद्धुमुचितो खो वरं मनाकूप्रियम्‌ अयं पक्षः किंचि त्सधुरित्य्ैः दि यस्मात्कारणातखंडनदेतवः ( अभिमताननुष्ठानरूप स्य प्रणयखंडनस्य हेतवः ) ईष्यकोपकारणानि बहवोऽनेके ट्टा मया लक्षिताः ( कल्पयितुं शक्या इत्यर्यः ) खंडनहेतुदर्शने ध्यु पचारविशेषः प्रलेभ्यतामित्यत आह उपचारेति भावशून्यः प्रेमरदित उपचारिषि- रिष्टाचरणं पूर्वाभ्यधिको.धपि पूरवैस्मादु पचारपिपररतिशयितो पि मनस्विनीनां

(१) 8. ७. >. 1. ०0 प्डि,+ (३) 4. राजा निष्कामति.

४१११

विदू ०- पयन्दो किर एदा पवणचलिदाहि पलवल तुकि विअ भवन्तं एदं पमदवणं पविसेदि ( ) 7 राजा--( सयं रूपयित्वा ) अभिजातः खल्‌ वसन्तः सखे प्य आमत्तानां श्रवणसुभगैः कूजितैः कोकिलानां \ 4.1... सानुक्रोशं मनसिजरुजः सह्यतां पृच्छते यूल अदुः च॒तप्रसवसुरभिदेक्लिणो मारुतो मे <. सान्द्रस्पर्शः कर तर इव व्यापृतो माधवेन “+. बिदू ०--पविस णिव्वुदि त्महाअ ( ) ( उभी प्रविशतः )

( ) वसन्तः किठैताभिः पवनचलितामिः प्छवाङ्गुीभिस्त्वरयतीवं भवन्तभेतत्प्रमद वनं प्रविशेति

( ) प्रविश निवंतिखाभाय

6

तु प्रशस्तमनसां पुनः विवेकवतीनामिवयर्यः उपचारिषि्नं भवति कित्वपचारविधिरित्र्थः अत्र नजर्व॑स्तद्िरोधः इत इतो भवान्‌ एत- त्ममदवनं पवनदरचलिताभिः पवांगुीमिस््वरयतीव भवंतं प्रवेष्टुम्‌ अमत्तानामिस्यादि ( श्रवणसुभग श्रुतिषुखदायकैरामत्तानां कोकिं लानां कूनितैर्मनसिज रुजः कामवेद नायाः सह्यतां सेदु योग्यतां सानुक्रोशं यथा तया मामिति शेषः पृच्छतेव माधवेन वसन्तेन चृतप्रपवसुरभिरा्रकुसु- ममुर्गधिरेक्षिणो मल्याचनिकृष्टो मारुतो मेङ सान्द्रस्परः करतल इव व्यापृतः रुग्णस्य करतलेन स्पश ल्येकसिद्धः माधवेन मल्यवायुनेवा

) 8. ७, प. 1, णं एवं पमदवणं पवणव ३. दर ) चाह. भवतं प्वेभिदृ, ^. 0110, एदाहि. ( ) स्यशं निक्प्य 01 स्वर्शसुखं श्पपित्वा. ( ) ए, 3. 1. उन्मत्तानां.

( ६३ )

०--भो वअस्स अवहाणेण दावं दिं देहि एदं दखु भवन्तं विोहइदुकामाए पमदैवणलच्छीए्‌ जुवईवेसलज्जात्त अं वसन्तकुसुमणेवत्थं गहीदं ( ) राजा-- ननं विस्मयादवैरोकयामिं

(न

^ ्माक्रान्ता तिखकक्रियापि' तिरुकेरेग्र द्विरेफा नै 1... सावज्ञे मुखप्रसाधनविधौ श्रीमोधवी योषिताम्‌ ५॥ "कद. ३.५५५.५

^" ( उभावुंद्ानशोभां निर्वंणेयतः) ( ततः प्रविशति परयत्ुका मालविका )

( ) भो वयस्य अवधानेन तावद्‌ दुष्ट देहि एतत्खल््‌ भवन्तं वि- रोभयितुकामया प्रमद वनक्षम्या युवतिवेषल्ज्जायेतुकं वसन्तकुसुमनेपथ्यं गृहीतम्‌

कारीत्यर्यः ) मधुलक्षम्या रक्ताशोकैत्यादि विम्बाधरे बिम्बामिवा- धरस्तस्मिन्‌ ' विशेषणं विशेष्येण बहलम्‌ ' इति विशेषणसमासः | * उप- मितं व्याप्रादिभैः सामान्याप्रयोगे ' इत्युपमितसमासस्तु कविभिरत्र प्रायेण नाङ्गीकृतः अलक्तको तक्षा रक्ताशोकरुचा रक्ताशोककुसुमस्य रुचा

{

८. मत्यारूयातविशोपकं दरवकं श्यामावदातारुणम्‌ ~^ <

कान्त्या विेषितगणः विशेषितो (तिशयितो ( तिरस्कतो ) गणो रगो

यस्य तथोक्तः ( रक्ताशोकल्तयैव अधरयोग्यो ऽलक्तकरसो निष्पादित इत्यर्यः ) इयामावदातारुणम्‌ शामं चावदातं चारुणं तयोक्तम्‌ वर्णो वर्णेन !इति कर्मधारयः कुरबकं कुरबकपुष्पं प्रत्याख्यातविंशेषकम्‌ |

(१) 8. 6. १. 4. 00. मो वअस्स; (29 00). मो). (२) 8. 6.4, 4. ००. (३) तवि. मधुल. ( ४) पि. ०0. (५) प, ०4 तत्‌. ( & ) ४५ तथाहि. (* ) पिच 07 अपि. (< ) 4. २2. कीन,

~ ) क्षि. ४१५ नाय्यैन, 8, ©, 1. इति {0 उभौ 96 निङ्पयतः

\,. 1. रक्ताशोकरुचा विगोपितगुणो बिम्बाधरारुककः 5.1.

°.

( ६४)

भाङ्विका-- अविण्णौदा्िअं द्रारं अहिरसन्दी अत्तणो वि दाव छज्जेमि कुदो बिहवो पिणिद्धस्सं सहीअणस्स इमं" वुत्तं आचक्िखदं जाणे अप्पडिआरगरूअं बेअणां केत्तिअं कालं मअणो मै णडस्सदि तति ( कैतिवित्पदानि गत्वा ) कौ णु पव्यिदद्धि (ईति स्मृतिम भिनीय ) आर संदिड्ृह्ि देवीए गोदमचावल्रदो दोल्मपरिभद्राए सरूजी मे चरणा तुमं दाव गदु अं तवणीआसोभस्स दोहलं णिबद्ेहिं जदि सो पञ्चरत्तव्भन्तरे कुसुमं दंसेदि तदो अहं ( अन्तरा निश्वस्य ) अहि त्सपूरइत्तअं पसादं दाइस्सं ति जव णिओअभूमिं पृदमं गदा होमि ञ्नौव अणपदं मह चलणालंकारहत्याए बडउल्मवलिओआए आअन्तव्वं धैरिदेवइस्सं दाव विस्सद्धं महत्त अं इति परिक्रामति ) (क )

(क) अविवातददयं दतोरममिरनो ऽपि ताबहठम्ने कृतं ) अविज्ातहदयं भतौरमभिरुषेन््मनोऽपि ताबहणज्ने कुतो

+<, विभवः स्निग्धस्य सखीजनस्येमं वृत्तान्तमाख्यातुम्‌ जने प्रतीकारगुरु

५... वेदनां कियन्ते कारं मदनो मां नेष्यतीति कृत्र ननु परस्थिता-

स्मि आम्‌ संदिष्टास्मि देव्या गीत्तमचापरखदोलपरिभरष्टायाः सरुजौ मे

चरणी तं तावद्रा तपनीयाश्ञोकस्य दोहदं निवंतैय यद्यसौ पञ्नरात्रा-

भ्यन्तरे कुसुमं दर्शयति ततेऽहमभित्षपुरायितुकं प्रसादं दास्यामीति

: यावन्नियोगमूरमं प्रयमं गता भवामि यावद नुपदं मम चरणारकारहस्तः या बकुलावलिकयागन्तव्यं परिदेवयिष्यामि तावदव शरवधं मुहूर्तकम्‌

प्रत्याख्यातं तिरस्कतं विशेषकं पत्रभङो येन तयोक्तम्‌ अनेकः सक्तो द्विरेफो भ्रमर एवाञ्जनं येषु

( ) &. ?. अणहि ( 2. मि ) ण्णाद. ) 4. 7? सिणिद्धमणस्स &० 2), सिणिद्रसहीअणस्स. (३) 298. 0. 7. ०७. (४) प. १० इति. ८५) `. आः काहिं क्ख पत्थिद्छि, (९) 8. 9. ¶. 2. ( विचिन्त्य ); 4. ( आत्मगतम्‌ ). (*). 3. 9. ¶, ‰. मा, पवि. आद्न्नि. ( <) 98. 6. प. ¶. सष्नो मह चलणो, 2०. # रिभ सङ्कमोमि अहं चलणे वालव. ( ) 8. 6. 1. 4. 2. ०, (१९) 1. ^, प्रि. १५१ ति (११) 2. दव, 7. ता जाव. (१३) 9.6. 7. ध. दाव. (१३) 8.७. ¶. ता परिरेविस्सं दाव,

[का क्क. ~ `, "क ना ताबा

( ६५ ) बिद़०-- ( दष्टा ) वसत एदं क्खु सीहुपाणुव्वेनि अस्स मच्छ ण्ड उवणदा ( ) + ` राजा--अयि किमेतत्‌ बिद्‌०--एसा क्खु णादिपज्जक्तवेखा पञ्नुस्सुओं विअ एअआइणी भालविभा अदूरे वटरदि ( ) राजा-- ( सहधम्‌ ) कयं माखविका विदू ०--अह इई ( ) शजा--शक्यमिदानीं जीवितमवरम्बितुम्‌ त्वदुपङम्य समीपगता परियां ह॒दयमुच्छ्सितं मम विज्कबम्‌ सैर्वरतां पथेकस्य जलायथिनः ^“ ` सरितिमारकितादिष सारसात्‌ «^...

~ -~- -------~- ~~ ३१ सीधु पानेदेनितस्य , "त ( ) वयस्य एतत्खलु सीधुानेद्ेड मतस्यण्डकीपनता ५.५.

( ) एषा नातिपयीप्वेषा पर्युःसुकेवैकाकिनी मात्विकादूरे वतते 1 (ग) अय किम्‌

*9

1 1 1 सि =" +

छकक्रियापि तिलकस्य छलाटिकायाः क्रियाक्रन्तोछङ्किता परिभूतेत्य्॑ः। माधवी मधुसंबन्धिनी श्रीरदंमीः शोभेत्ययैः योषितां स्रोणां मुखप्रवाध- निधौ मुखालङ्कारकरणे सावज्ञेवावमानेन सहितेव अवमाननां कृतवती वेत्य्ैः ( इद्यु्र्षा ) मत्स्यण्डिका नाम शर्करावशेषः तदु परस्ये- त्यादि ( आरपितात्‌ शब्दायमानात्‌ सारसात्‌ तत्स्वनमाकण्यैत्यर्थः तर्वृतां वृक्षच्छायाच्छन्नां सरितं नदीमिव त्वत्‌ सकाशात्‌ समीपगतां प्रि-

(१) 2 0०. 8. 6* 4. हीही षदं क्खु; २०. 4. ०0. कषु) (र) प. 10४6०४०6 (३) 8. ©. 1. अवटबरयितुं. ( ) 2 तरवतं पथिकस्य जलार्थिनः सलिलमृद्रसितादिव सारसा ( ) 4. सरति,

( ६६ )

अयं क्र तत्रभवती

बिदू ०--एसां तरूरादमञ्जादो गिङ्गन्ता इदो एव्व पैिद्न्ती दी. सद (क )

शजा--: वयस्यं पर्याप्येनार्ं

..:.. विपुलं नितम्बबिम्बे" मध्ये क्षामं समुन्नतं कुचयोः

8 -॥

094

अत्यायतं नयनयो मंम जीवितमेतदायाति चे पुवैसमा्दवस्यान्तरमुपारूटा तत्रभवती तथाहि

९५ शरकाण्डपाणडुगण्रथखियमा भाति परिमिताभरणा

मूधबपरिणतपत्रा कतिपयङसुमेव कुन्दखुता बिद्‌ ०-एसा वि भवं विअ मअणव्वादिणा परिमिग्रा भविस्सदि (ख) राजा-- सौहार्दमेव परयति

1 १.८ ०.८५ ५4.५.94. 0५-४५-५५ ©+ )

( ) एषा तरूरानिमध्यान्निष्करान्तेत एब परिवतंमाना उद्यते ( ) एषापे भवानिव मदनव्याधिना परिमष्टा भविष्यति | ¡` `

याम॒पलम्य श्रता जलानां परिपासोः प्यिकस्येव मम विद्धं इदयं उच्छ तितमिव हषण स्फीतमित्य्थः ) अत्र संवित्यमानार्धस्य प्रपि; क्रमो नाम सध्यङ्मृक्तं भवति विपुखमिति ( नितंबदेशे श्रोण्यां विपुलं स्यु मध्ये क्षामं क्षीणं कुचयोः समुन्नतमुत्तङ्ं नयनयोरत्याथतमेतन्माल्यिकावु

रूपं मम जीवितमायाति ) शरकाण्डेति माधवे शाखे परिणतं पक्वं पत्रं यस्यास्तयाभृता कतिपयकुसुमा परिमितपुप्पा इन्द लतेव ॒परिमिता-

(१) 8. 6.7. अ). (२) २. ५५ गं &. ^. ०५ एता, (३) पपि, अहि 101 परि &. 2. ~, इदो एव आअच्छदि. (*) . »पप ( विलेक्य स्वम्‌ |). ( ) ‰. 0. ¶. ५०. (६ ) पि, भण, (+) 13, ©. ¶, -केशे. (€ ) 4. कम्मात्‌ [01 पू्स्मोत्‌ आकुटा {ण. उपारूढा &, ०।५ तया हि &. १५. अतिमनोद्रं

|

( ६७ )

भाल ०--अअं सो ललिअदोहदपिक्ली अग्गहीद कुसुमणेवत्यो उ- क्ैठिदं` मं अणकरोरे' असोओ जाव से“ पच्छायसीद ले स्पदे णि- सण्णौ अत्ताणे विणोदोमि ( )

विदू °- सुदं भवदा उक्रण्ठिदन्ि तति तत्तहोदीए मन्तिदं (ख )

राजा-- नैतावता भवन्तं प्रसन्नतर्क मन्ये कृत

अनिमित्तोत्कण्ठामपि जनर्यति मनसो मर्यवातः॥ ( मालविकोपविष्टा ) ` शाजा-- वयरस्यं इतस्तावत्‌ आवां र्तान्तरिती भवावः विदू ०--इरावादं विअ अदूरे समत्येमि' | ( ) ` राजा-- नदि कमलिनीं दु ग्राहमवेक्षते " मतङ़जः।

( इति विखोकयन्‌ स्थितः | )

( ) अयं स॒ खछ्तदोहदपेक्षी अगृदीतकृसुमनेपथ्य उत्कण्ठितां मामनुकरोत्यशोकः यावद स्य प्रच्छायशीतङे शिखापछ्के निषण्णात्मानं विनोदयामि

( ) श्रते भवता उत्कण्ठितास्मीति तत्रभवत्या मान्नितम्‌ „(ग ) इरावतीमिवादृरे समर्थये |

भरणेयमाभाति ) अयं सकृमारदोहदापेक््यगदीतकस॒मनेपथ्य

उत्कंठितां मां ( उत्कंठिताया मम }) अनकरोत्यशोकः बे)देत्यादिं ( कुरबकरजसां तुदुप्पपरागाणां ` बोढा बहनकर्ता तेन सुरगधिसत्यर्यः

(१ ) १. सृउमाल 97 टित. ) ‰. उकंषिए मह. 13. ७. {. उकंटिकाए मह सोअ 9०५ 010. असो ओं, ( ) }प. [४५७ला18०६९. ( ) 24. एवस्स. ) 2. &. ५५१५ मविअ. ( £ ) 4. प्रसं्तकंता. ( ) + ©. 2. 1. शीकर. (< ):8. 0. ४. 1. स्वे. (६; ) 8. 9.14. वेक्वामि. १९ ) प. ठच्धवा. (१) ) ४. अभिक्तते. `

| न्ट ५8द-2) 9

ष्ट्य

बोढाङ्कुरबकरजसां किसर्यपुमेःसीकगानुगलः } ५५४.

( ६८ ) भा ०--हिअअ णिरवलम्बणादो' मणेोरहादो विरम किं मं आते.

सिः | (क) ( विदूषको राजनमवेकषिते ) ,.: , 4 राजा-प्रिये पर्य बमतां स्नेहस्य ५५५५५ ओौत्मुक्यहेतुं विव्रणोषि त्वं

तत्वाबबोधेकरसो तकैः। ^^ ` ^~ तथापि रम्भोर करोमि छष्ष्य {८ मात्मानमेषां परिदेकितानां १० रिद्‌ ०-- संपदं भवदो गिस्संसअं` भविस्सादे एसा अष्पिम- अणसंदेसा विवित्ते णं* बउलावारेआ उवष्टिदा ( )

( ) हदय निरवलम्बनान्मनोरयाद्विरम किं मामायासयसि

( ) सांप्रतं भवतो, निःसंशयं भविष्यति एषार्पितमदनसेदेशा विविक्ते ननु बकुलवलिकोपस्यिता

किसलयानां नवपछ्छवानां मिनत्ति-भिद अण्‌ तेन मन्दः सीकरैरनुगतः तेन शीतलः पश्चात्कर्मधारयः मख्यपर्व॑तसंसर्गी अनिलो नास्ति निमित्तं यस्यास्तादश्ीमपि अनिमित्तं उत्कंठां जनयति ) हदय निरवलंबनादति भूर्मिगताद्‌ ( अतिभूमिलधिनस्ते ) मनोरयाद्विरम किं मामायास्य ओ- चर हे रंभोरु त्वभीत्सुक्यस्य कारणं निवृणोषि कय- तर्को ऽपि अनुमानैशेषो ऽपि त्वस्य वस्तुस्वाभाव्यस्यावबोधो नि श्चय एव एकं फलं यस्य तयाभतो भवति व्यभिचारादि संभवादिति भावः अनुमानमात्रेण वस्तुत्वनिश्वयो भवतीत्यथं; तयाप्यात्मानं एषां तदुक्तानां परिदेवितानां विलापानां लक्ष्यं उदेश्य करोमि त्वदुक्तप रिदेवनं मामुदिद्यैवेति तर्कयामि अरपितेस्यादि अर्पितो मया सैप्रेधितो

( 9 ) 2५. णिप्कलादो &५ ए. ©. प. 1. 8५५ अदिभूमिहटषिणो ( र. तै). (३) 8. 6. त. 1. माभाति. (२) 8.9. %. षीहते, पि. अपेक्षते, ( ) प. वामत्वं [07 वामतां ४०५ 1. ७. 1. पर्य महत्वे स्नेहस्य.

(५) 2४. ०, ( 2० गिस्सं्मो, ( ज) 4. ४१0 ¶ना ( एका), + ^+, १. > ^+: = (^. = `

( ) | राजा-- अपि स्मरेदस्मदम्यर्थनाम्‌ | १. बिद किदाणि एसा दासीर दुहिदां दाव॑शरूअं संदेसं विसुमरेदि | अहं वि दाव विसमरेमि | (क )

प्राविश्य चरणालङ्ारहस्ता ) बका ०-- अवि सुहं सदीए्‌ (ख ) माङ०-- अद्यो बउखवारेर्ओं सहि सागदं उवकिसि | ( )

बका ०--( उपविर्य ) हला तुमं दा जोग्गदाए णिउत्ता ता एक्क चरणं उवणेहि जाव सारततअं सणेउरं करेमि ( )

माङ०--( आत्मगतम्‌ ) हिअअ (८ अरं उवद्टिदो अअं विहवो त्ति कहं दाणि अत्ताणं अं अहवा एदं एव्व मह मिचुमण्डणं भविस्सदि ( )

~~ `

) किमिदानीमेषा दास्यां दुदिता तावद्ुरुकं संदे शं विस्मरति हम्‌ तावन्न विस्मरामि धत +^ $ ५.०५...

( ) अपि सुखं सख्याः | ( ) अहो बकुल्यवलिका षि स्वागतं ते उपविश

९..९-९१.८

4.५

यावत्सालक्तकं सनपुरं करोमि ' (0.

( ) हदय सुखिततया अलमुपस्थितोऽयं विभव इति कथमि. .:

दानीप्रात्मानं मोचयेयम्‌ अयवेतदेव मम मृल्युमण्डनं भविष्यति

8 = १4. (१) प. ४9 असौ. ( ०. अस्मद्‌ ). ( ) २. 4. सुता. (३ ) 2. पि, वृह. ( ) 2४. 8. ७. ¶. ०. अहं &८,; दि. ०0. वि. & 4. 2२० गणि †0† दाव. ( ) 4. ०0. चरण. ( )4. ४५५ उतटिआ,. ( ) 2" ४१९ देवीए &९. 4. देहलकरणं. (< ) ए. 0. फ, ¶, सृदिदा, ( ) ए. 9. 1. ०४. ति ( १९) फ, 8१4 दभि.

५।.८.( ) सखि त्वमिदानीं योग्यतया नियुक्ता तस्मादेकं चरणमुपनय |

£ =

*०)

बकुला ०-- कि विओरेमि उस्सुका कलु इमस्स तवणीआसोअस्स कुसुमेोग्गमे' देवी ( ) राजा---कथमशोकदोहदनिमित्तो धयमारम्भः। बिदृ-०- ` किं क्खु जाणासि अकालुणादो देवी इमं अन्तेडरणे- क्त्येण संजोअद्स्सदि तति (ख). माङ०- हला मारेसेदि दाव णं ( पादमुपहरति ) ( ) बकुखा०--अयि सरीरं सि मे (` नाट्येन चरणसंस्कारमार- भते ) (घ) रजा-- ५.. चरणान्तानितेितां प्रियायाः ~+ सरसां प्य बयस्य रागरेखाम्‌ ^... ~ ~ प्रथमामिब पट्बप्रसूति `~ हर दग्धस्य मनोभवृहमस्य १३

रिद्‌ ०--चरणाणुरूवो क्स तत्तहोदीए अदि आरो उवकरिन्तो (च)

( ) किं व्रिचारयसि उत्सुका खल्वस्य तपनीयाञ्ोकस्य कसुमो- द्रम देवी

(ख) किं खलु जानास्यकारणादेवीमामन्तशुरनेषथ्येन -

संयोनपिष्यतीति १४॥ ¢ ८; £ ¢ ^ ४.५.१९ ५.)

( ग्‌ ) सखि मर्षय तावदेनम्‌ | = १५५४. + र, २, (दक्र ++

( ) अपि शरीरमा मे ५4 ५.८4 ५. ( ) चरणानुरूपस्तत्रभवत्या अधिकार उपक्षिपः ०,६१.० [ +

मदनविषयकरो सेदेशो भवदुक्तरूपो यस्मै ( यस्याः ) तादी चरणान्ते

( ) 1. सम॒ग्गमे; ४. म॒ञ्हुग्गमे, (२) }६.किणु खु जाणाति तुमम्‌) माकाटणे ... नोअहस्सदि मि; 8. 6. ¶1. किचुण जाणासि ,.. „^ अड स्सदि, (३) प. ४५५ इति, (४) 8 ७. 2.1. ०४. (4) 29 अककाते.

9, ५" = कष 1.

( ७९ ) शंजा--सम्यगाह भवान्‌ ' | नवकिसख्यरागेणाय्रपादेन बाङा {+ | ~ स्फुरितनखरुचा द्वौ हन्तमहैत्यनेन | 4 4 अकुमुमितमशोकं दोहापेक्षया बा ग्रणमितंरिरसं बा कान्तमाद्रापराधम्‌ १२॥ <. 4: बिद़०-- * पहरिस्सारे तत्तदोदि तुमं अवरद्वम्‌ (क ) ` राज्ा--“ प्रतिगृदीतंˆ वचः सिद्धिद शनो ब्राम्हणस्य ६... ५५ ( ततः प्रविशाम यक्तमदेरीवती चेटी ) 1.

इरा ०-दज्जे णिडणिए सुणामि बहुसो मदो किर इयि आजणस्ं विसेमण्डणं ति अत्रि सो लोभवादो अं“ ( )

( ) प्रहरिष्यति तत्र भवति त्वामपराद्म्‌

) हञ्जे ( चेदि ) निपुणिकं शुणोमि बहशो मदः किङ द्रीन- नसय विदव्डनमिति अपि सत्यो लोकवादो धम्‌ ` मिति अपि सत्यो ल्ेकवादो श्यम्‌ `` ` `

7 ५५५

, त्यादि ( वयस्य प्रियायाश्चरणान्तानैवेशितां सरसामाद्र रागरेखां हर ` दग्धस्य शिवकोपानलमस्मीम्‌ तस्य॒ मनोभवद्रूमस्य कामरूपतरोः प्रथमां प्व्रसूतिभिव परय ) ( भो वयस्य चर णानुरूपस्तत्रवेत्या अल्कार्‌ उपक्षिप्तः ) किं नु खल्‌ जानाति त्वम्‌ मम कारणादेवामामन्तः पुरनेष- थ्येन 'तयोजयतीति नबेकिसखयेत्यादे ( बालम मालाभिकानेन प्रत्यक्ष दरथेन नवकिसख्यरामेण नवपट्वताग्रेण स्फरितनखरूचा प्रकाशित- नकान्तिना अग्रपादेन दोहद पेक्षया कृसमेोद्रमार्थमषधप्रदानानरोभ५नाक्‌

+ , (,१.) २. 4. सम्यगभिहितं भवता. (२) 8. 6.4. आः. (३) 2. (रिरि (9) ९. ^. ॥3. ७. 1. पारड शसा वततहोदीर अवरध्वु. (५) ¶" 4१. ०५५ मूर्व्ना. (६) 2. 4. परि . (9 129 4 . उन्मत्तषेषा. (८) 8. @, 2. 7. ५५. पिते. (९) ५. अ. (१) 2. 3. ५५,

( ७९ ) निषु पुंटमं लोभवादो एव्व अग्न सयो संबुत्तो ( कै )

इरा ०--अलं षिंणेहभणिदेण कहेहि कुदो दाणि अवग दोलय-

धरं पुदमं गदो भद्रौत्ति। (ख) निपु०--भद्रिणीए अखण्डदादो प्रणञआदो ।( ) ` इरा ०---अकं सेवाए मञ्छत्यद' परिगेण्डीर् भणादि ( )

निपु ° --वसन्दोवाअणलयेलवेण अन्नगोदमेण कहिदं तुवरदु भद्रिणी ( )

इरा ०--( अवस्यासटशं परिक्रम्य ।) हञ्जे" मदेण किल्म्रामिअमाणं अत्ताणं अज्जनउत्तदंसणे हिअअ तुवरेदि चरणा उण भणे पसर

रन्दि। (छ)

"क ग्यः नष ~

( ) प्रयमं लेकवाद एव अद्य सत्यः सेवत्तः ( ) अलं स्नेहभणितेन कथय कुत॒ इदानीमवगतं दोलगृहं प्रथमं गतो भर्तेति" `“ ˆ“ `

( ) भष्टि्या अखण्डितात्प्रणयात्‌ ( ) अलं सेवया मध्यस्यतां परिगृह्य भण ( ) वसन्तोपायनलोलपेनार्यगौतमेन कथितम्‌ त्वरतां भद्विणी

( ) हञ्जे ( चेटि ) मदेन करभ्यमानमामानमार्वुवदर्ने इदयं

त्वरयति चरणी पुननं मर्गे प्रसरतः

सुमितमपुष्पितमशोकं ओआद्रपिरादधं॑प्रणयकतापराद्धं अभिनवापराद्धं॑बा

८१ ) पप सकित्तणासतिणा सिगेदेण अल, 1. अलं मह तिणिहेण, 8. 9. सथितिसंक्तिणा &. ) 8. ७. अवगमिद; 1. अवगमिदन्वं; ५. अवग- मिदन्वो, (३) 23. ७. वि. 11. ४4 णते, (४) 2. 4. गेग्दीभ; 98 ७. गदुअ, ( ) ^, २. इला. ) 4. 2. मिलाअमाणं, 8.9. (7 निाअमाणं, ( « ) 2. ४५५ मह. ( < ) 9. 8. ¶. ओगलन्ति

4

1

^ - > ", शि

कक का ~ (क # +

=

निषु ०-- णं पत्तद्य दोलाघरअं ( ) इरा०-- णिडगिए अज्जउत्तो एत्य दीसदि ( ).

--भद्िणी' ओल)अदु * परिहासणिमित्तं कहं वि* अदिङ्ेण ५५

अद्ये वि इमं पिअङ्ल्दापरिक्रित्तं असोभसिलापद

पविंसाह्य ( )

इरा ०--( तया करोति )

निषु०--( विलोक्य ) ओखोअदु भट्विणी चूदडूरं विचिण्णन्दीणं पिपीकिओआदं दंसिदं ( घ) |

इरा०-- कं विअ ¡ ( )

।नेषु०- एसा असोअपाअवच्छाआए मालक आए बडलावक्ि च- लणाुकारं णिवद्रेदि ( )

(क ) ननु प्राप स्वो दोलगृहम्‌ 4 (~ <^.

( ) निपुणिके आधपुत्रोऽत्र दश्यते

) भद्िन्यवल्येकंयतु परिहासनिमित्तं कृतराप्यच््ेन भत्र भवितः व्यम्‌ आवामपीमं रियङुरुतापरिकषिप्रमशोकशिलपद परविंशावः।

( ) अवलोकयतु भद्विनी च॒ताङ्रं , विचिन्वन्त्योः पिंपीकिकामभिं

कः +

दं्टम | <}. ५4 ०५ १५ {रि १५१५५५६ , =^ (था ), + ६६ ¶ै

च््् म्‌

०५ # छ. +

( ) कथमिव ( ) एषाशोकपाद पच्छायायां मालप्रैकाया बकुलावलिका चरणा. चक्र निर्ैतैयति | ९५.६-८०.५.०.५५५-१. लै ~ | ५५4 8. | कषक, 3 5 =,

प्रणतद्िरसं कान्तं प्रियं द्वौ हन्तुं ताडयितुमहति ) कथय कुत

(१) 2. ^. ०0. ए. ७.4. णं मणी. (२३) 2० 4. मद्िणीर्‌ ) 2० 4. गम्मे गृढेन; 2". 8. ©. 1. गुढेन. (४) पष, ०४, (५) 8. 6७. >. 7. तह 19" तंयाकंरोति. ( ) .&. देतणं ( दंशनं ), ( ) 4. २. 8.6.17, कि तरिश

४३.

( ७४ )

हरी ०--( शङ्कां रूपयित्वा ) अभूमी इअं मालविआषु कहं ' एत्थं तक्केमि ( )

--तक्नामि दोलापरिव्भट्राए सरुअचरूणाएं देवीए असोअदो- हलि आरे मालि णिउत्तेत्ति अण्णहा कहं देवी सं धारिभं णेउर- जुअलं परिअणस्स अणुजाणिस्सदि ( )

इरा०-महदी क्खु से संभावणा ( ) निपु०--किं उण णँ अण्णेसीअदि भद्र ।( घ) इरी ०-- हञ्जे मे चरणा अण्णदो पवद्न्दि मदो विओरेदि आसंकिद स्स दाव अन्तं गमिस्सं ( मालविकां` निर्णयं आत्मगतम्‌ ) ठणे क्खु कादरं मे हिअअं ( च)

बङ्कु०--( मालविकाय चरणं शेयन्ती ) अर्व रोदे दे` अअं

राओरेहाविश्णासो ( )

( ) अभूमिरियं मालविकायाः कथमत्र तर्कयसि

( ) तर्कयामि दोल्यपरिन्रष्टया सरुजचरणया देव्याशोकदोददा- धिकारे मालविका नियुक्तेति

( ) महती खल्वस्याः संभावना \~~ ` ~ ~

( ) किं पुननौन्विष्यते भता | ^ 1

) हञ्जे मे चरणावन्यतो प्रवर्तेते मदो मां विकारयति आ-

^ शङ्कितस्य तावदन्तं गमिष्यामि स्याने खल कातर मे दयम्‌

८१, 1 ६५. ५.

) अपि रोचते तेऽयं रागरेखाविन्यासः |

इदानीमवगन्तव्यो दोलगृहं प्रथमं गतो भर्तां वेति ( कुत इदमवगतं दोलागृह प्रयमं गतो भता वेति ) पिपीलिकाभिदं्टम्‌ भावेक्तः सखि

(१) 2. 4. कि तकति. ( २) 4. 2. ०. (३) 8. 8. 8. ¶. भन्मणुजाणिस्सदि, ( » ) 8, ©. प, ¶. भ. उण. ( ) ०. मणो &५. ) प. ४१५ इति; 8. ७. माहविका-( आत्मगतम्‌ ) &€, (५ ) -4 1. 6. 7. ००. ( < ) 8. 9. ¶. कि वि. (६ ) ४. 90, देभञं ७. 4. ०५. जम

1 + +

( ७५ ) माल ०--हला अत्तणो चरणं गदो" त्ति लज्जेमि णं पसंसिदुं "केण पसाहणकल्ाए अदहिविणीदासि ( ) बक ०-- एत्य अहं भट्रेणो सिस्सद्धि। (ख) बिद्‌ ०--तुवरेहि दवै णं" गुरूदक्लिणाए ( ) माङ०्-- दिद्िआ गन्विदासि (घ)

बकु ०--उवदेसाण॒स्वे चलणे लम्मिअ अज्ज दाणि गब्विदा भविस्सं ( रागं विलोक्य आत्मगतम्‌ ) इन्त सिद्धं मे दौ ।“ ( प्रकाशम्‌ ) सहि एक्रस्स दे चलणस्स अवसिदो राअणिक्ेोः केवलं मुहमारुदो रम्भइदव्वो अहवा पवाद एव एदं ठाणं ( )

राजा-- सखे पर्य परय |

( ) सखि आत्मनश्चरणं गत इति लज्ज एनं प्रशंसितुम्‌ केन प्रसाधनकलायामभिविनीताकष

(, कक >?

( ) अत्राहं भतः शिष्यास्मि = ~` ८५५ ८. {~ | गरुदक्षिणधि 7 ~ 24. ¢ ॥: "(ग ) त्रय तावदेनां गुरूदक्षिणायै | (0 2 ₹-६. (घ) दिष्टया गर्वितासि ^^ , "ए

५....५।..८ ) उपदेशानुरूपी चरणी र्च्धयेदानों गर्विता भविष्यामि हन्त सिद्धं मे दौत्यम्‌ सचि एकस्य ते चरणस्यावसितो रागनिक्षेपः केव

मखमारूतो लम्भापितन्यः अथवा प्रवातमवेतत्स्थानम्‌ = = "1 का ५, 4

2

मै चरणावन्यतः प्रवतत मदश्च मां विचारयति उपदेशानुरूपी

११) ए. 6. पि. ¶. 017). गदो; 4. 20 गदं. (२) 4. 2० ४५ करेहि; पि. तेण. ३) 2० सिप्यसाहणकलाअं. 9 ) ^. 2० ए. ©, व. १५५ कवु. (५) 4. 2. 2. 6. ¶. गणि. ( ) पष. “स्वा चलणा ( ) पि. इत्थम; ए. 68. ¶. सिद्धो मेदव्यः (< ) 20. °विक््वेवो. (९) कि. ०. (३८) १, 4. ०0. 006 प्श्य

~~ +

१,८.१५

. £

: ^..५..( ) मन्त्रयितव्यमेव मया मन्त्रितम्‌

कः आद्रोखुक्तकमस्या चरणं मुखमारुतेन बीजपितुम्‌ ` प्रतिपन्नः प्रथमतरः सेप्रति मे १३॥

` १.९ # 3 ५. 1,

विदः०- कुदो रे अणुसओ ` भवदो रं “कमेण अणो दव्वं ( )

बकु ०-- सदि अरुणसद पत्तं तरि सोहदि दे चरणो स्वहा भद्विणो अङ्कपरिवद्िणी होदि ( )

( इरावती निपुणिकामुखेमवक्षते ) गजा--ममेयमाशीः। 9/4 4. ६५. माल०- हली अवअणीभं मन्तेति | ( ) कषक ०--मन्तिदव्वं एव्व मए मन्तिदं ( ) माङ ०-- पिआ क्खु अहं तुह ( ) बकु०--ण केवलं मह | ( )

( ) कृतस्ते {नुशयः चिरं भवतैतत्करमेणानुभवितिव्यम्‌ ( ) सखि अरूणशतपत्रमिव शोभते ते चरणः सर्व॑या भर्तुर ङ्परिवर्तिनी भव ˆ ` ~

) सखि अवचनीयं मन्त्रयसे

४.१.५+ ( ( ` 4 { म.

( ) प्रिया खल्वहं तव ( ) केवलं मम

चरणी र््ध्वाद्य गर्विता भविष्यामि आद्रालक्तकामित्यादि मृखमारः

(१) . ¢ 1. शोषयतः; शोषयितुं ( २) ?. चिरं भवदा षदं अणुदोकन्वं अहरेण; ए. ७, ¶. एवं भवदा विरकमेण .अणुमविदन्वं. ( ) 2. ^. 0४. | (१) ७, पष. ¶, क्लं. (५) ॐ. ७. प. ए, निषुणिकाम, (६) ष, मा भव्णीअं मन्तेदि, ए, ©. 1, ४५१, इडा ४० ४18, 2

[~ से 0

( ७७ )

माॐ०- कस्स वा अण्णस्स | ( क) बल्ः०-- गुणेसु अहिणिवोपिणो भद्विणो वि ( ) भाङ०---अलीं मन्तेसि एदं एव्व मयि णत्थि ( ) बदु०-- सवं तुइ णत्यि भ्िणो किसिसु 'इसिपरिपण्डरेसु अङ्कसु दीसइ ( ) जिषु ०--पुटमं भणिदं विअ हदासाए उत्तरं (

ऋः / लिः ह. अक्‌ ०--अणराओ अणुराएण परिकिखदन्वो ति सुअणवअणं. पमाण्करोहि ( )

माङ०-- किं अत्तणो छन्देण मन्तेसि ( )

( कं ) कस्य वान्यस्य 1 { ) गुणेष्वमिनिवेकिनो भतुरपि = ५५.५.०० | ( ) अङक मन्त्रयसे एतदेव मयि नास्ति (५. ५५. ०४.६०५ ( ) सत्यं लपि नासिति। भर्तुः कशेष्वीषत्परिपाण्डुरष्वङेषु दख्यते। ( ) प्रथमं भणितामिव हताशचाया उत्तरम्‌ ^५.८५५.> जनु , (छ) अनुरागो नुरागेण प्रीक्षितव्य इतिं सुजनवचनं प्रमाणी- +~" „. करु 9 ८4

( ) किमात्मनरुछन्देन मन्त्रयसे कीर

तेन वीजपितुं शोषयितुं प्रयमतरो मुख्यतरः प्रतिपन्नः प्राप्तः भतं कृशेष दर ( वर ) पाण्ड्रेष अङ़ेष॒ द्यते प्रयमं गणितमिव हताशाया उत्तरम्‌ नहि भर्तुः खल्वेतानि प्रणयमृदूनि िबान्तरितान्यक्षराणि दुजति

८१) ए. 9. ¶. सुन्दर"; ए. वर. (२). 8. ©. 7. गुणितं; 1 गणितं, ( ) 4. पडिच्छिदन्वो ( प्रतिच्छेतन्यो ); पष» वच्छेटन्वो प्रत्येश््यः ); ¶ण्निन्वो + ५१) शा (4 ५1.1.52 ९८...

नि ८४) -ऋभ्‌( ~~ ४८. + ५६ * ८९. ०५१, 1. ९,

+ 2 + रै +

“4 ("+ ) भावज्ञानानन्तरं प्रस्तुतेन

( ७८ )

बकु ०--णदि णदि"। भट्रिणो क्लुं एदाई पणअमओआहईं अक्लराईं विम्बन्तिदां ( )

माक०--हला दें विचिन्तिअ मे हिअअं विस्ससाे (ख)

०--मद्धे भसरसंबार्धो भविस्सदि स्ति वसन्दावदारसन्वस्सं किण चदप्पसवो ओदपिदव्वो | (ग )

माङ०- तुमं दैव दुज्जादे° अच्वन्तं सहार्या होहि ( ) बकु ०-- विमदसुरही बेउलवलिभ क्खु अहं ( ) राजा-- साधु बकुल्वलिके साधु

(४36 (3; &. £ प्रत्याख्याने दत्तय क्तो त्तरेण

५५५५ €+ ५.४ [3

( ) नहि नहि भतः खव्वेतानि परणयमयान्यक्षराणि बिम्बान्त- सितानि | ९१५६; «^ = ५५५ >

( ) सवि देवी विचिन्त्य मे हदयं विश्वसिति “^ ` > ) मुग्धे भ्रमरसंबाधो भविष्यतीति वसन्तावतारसर्वस्वं किं चत-

| प्रसवो ऽवतं सयितन्यः | २,३५१९.५५.९५..

( ) त्वं तावदु जीते यन्तं सहाया भव

( ) विमद सराभे कूलावकिका खल्वहम्‌

1. 04 4 # > { ५५4. {5 = ५७.५५

दुःखे दुजौतं व्यसने क्कीवे असम्यग्नातवस्तुनि इति केशवस्वामी भावज्ञानेस्यादि ( भावस्यास्या अनुरागस्य ज्ञानानन्तरं प्रस्तुतेन कृत

( 9 ) ^. ?. ०. णहि, ( २) 8. 9. प. ¶, मिदृआाह, ( ) प.

वत्तन्तरिदाहं; 3. ७, 1, विप्येरिदाहं ( विपरिरितानि ). (४) 24. 4. 38. ७.

त्पादो. (५ ) 1. अच्थि; >. 4. 0109.) 8. ©. ममरसंपादौ कसन्तोदारं (¶. न्ताव्दार ) संमदो गणि (¶, 000. दाणि ) णवचुदप्यस्षवौ ओदसणिज्जो. (६ ) 8. 6. 7, जाव. ( * ) २०. ११ मे. (<) ?. अचन्तसहाहणी 1, गच्छन्स्स् सदाढ्णी, 13, 0. ओर्दीतणीज्जो. (९) ०. बउकिजावलिभा णं अहं,

( ७९ ) 144 ज्व (~ हि + {^ ४,

बाक्येनेयं स्थापिता, स्वे निदेशे < ननू 4) ५५, स्थाने प्राणाः कामिनां दृत्यधीनाः 98

2५

इरौ ०- ञओ' पेक्ख करदं एव्व बडउल्वल्ाए एदं * पदं मा. छाए ( ) निपु०--भ्रिणि णिन्विआरस्सं विं उस्सुअत्तणजणओ उवदेसो।(ख) इरा०- ठाणे क्खु सेकिदं मे हिअअं गदीदत्या अणन्तरम्‌ विन्त इस्सं (ग) ०--एसो दुदी पि दे णिवुत्तपैरिकम्मो चरणो जाव दुवे वि सणेडरे करोमे इति नाव्चेन नूपुरयुगलमामच्य ) हल्य उद्वह णवि" देवीए असोअविआसइत्तअं णिओअं (घ )

(क ) हञ्जे प्रय कारितमेव बकुलवलिकयेतत्पदं मालविकायाः ।.. ˆ“ #् #^ ^ (.ख ) भर्विनि निर्विकारस्याप्युत्सुकल्जनक उपदेशः ^“

( ) स्याने खल शङ्कितं मे हदयम्‌ गृदीतार्यानन्तरं ` चिन्तयि- ष्यामि | ५०६५ {^ भ, | "५.५ (जक ^ ५५५१

कौ

( ) एष द्वितीयोऽपि ते निरवत्तपरिकमां चरणः यावद्‌ द्वावपि 4 ५५ करोमे हल्य उत्तिष्ठ अनुतिष्ठ देव्या अशञोकविकासवितृकं ` |

प्रसङ्केन प्रत्याख्याने तया निराकरणे कते सतीत शेषः ्तोचिततोत्तरेण वाक्येन स्वे मदर्थौभ्यथनप्रद शैनरूपे निदेशे तत्मरतिपाखनरूपे इयं माल- ` बिका ्यापिता। कामिनो जनस्य प्राणा दत्यधीना यत्‌ तत्‌ स्थाने ऽतीवयुक्त- मिव्यर्यः भर्ने नि्षैकारस्यापि उत्सुकल्जननमुपदे शः यावदेनं नूपुर.

(१) एषि, ग. ( ) कारिदन्वं बउलावलिओआए मारविओआ प्रदं. ( ) 20,

.&. ०४.; ¶1. एदर्सि. ( 9 ) 8, ©. प, 1. णिन्विआरस्स ( प. 010. )

-अहिआरस्स उददोवदेसो. ) ?. 4 . समन्त ; 8. ©. ¶. सेवृत्त. (९ ) ए, 6५} ¶. णं ( एनं ) सणेउरं. ( « ) . ४१ दाणि.

( ८० ) इरा०- पुरो देवीए णिओभे तति हेदु दाणि (कं) चकु०-- एसो उवारूढराओ उवभोअक्खमेो पुरदो दे वद्र ( ) माङ्०-- किं मद्र ।(ग) |

घकु०--( सस्मितम्‌ ) दाव भद्र एसो अमोअसादावलम्बी पवगुच्छो ओदंसीहै णं ` ( ) 1,

िदृ०--अवि सुदं भवदा (च ) | शाजा- सखे पर्याप्तमेतावता कामिनाम्‌ "~ "~+ ~ ५५५(* ५,१४०.४ अनातरतकण्ठितयोः प्रसेद्धचता ^<“ ^^

१4 समागमेनापि रतिने मां प्राति परस्परप्रापिनिराङयथोषरं

~<: शरीरनाशो पि समानुरागयोः १५॥ | ९८७. १५.५५

( ) श्र॒तो देव्या नियोग इति भवविदानीम्‌ +“ ^^ ` ` ,

( ) एष उपारूढराग उपभोगः परसत वरतेते। सि

(ग) कं भती।

( ) ताबद्भतौ एषोऽओकञशाखावलम्बी पलवगुच्छः। अवतं `

( ) श्रुतं भवता

शोभितं करोमि अनानुरेत्यादि अनातुरोत्कग्ठितयो अनातुर नर्त उत्कण्ठितः कामोत्कण्ठित इत्यर्यः प्रसिद्धबता संभवता समागमेन परकेणापि मां प्रति मामनु मतपक्ञ इत्यर्वः रतिनं शङारो न॒ भवति

(१) पि. ०००. ति. (३) 8.6. 1. चिद. (३) 9. ४११. दाव, ( ४) प. ००0. (५) 8. 6. 1. ५५4 मालविका जिषे नागरयति, ( ) 2० 4. अनादरौ*. ( « ) ए, 6 समानरागेयौः ` ` `

(८९)

( मारुविका रितपड्कवावतंसा सखीलग॑ओोकराये पादं प्रहिणोति ) राजा--बयस्य

भावाय कणकिपल्यमस्मादियमन्न चरंणमपंयति ` इभयोः सदशविनिमयादा्मानं बञ्चितं मन्ये १६॥

9८७, ५०५. मआछ०-- भवि णाम अद्याण संभावना सफलम भवे ( )

धषु०-- दल णत्यि दे दोसो ` णिग्गुणो अअं अलोभ जई कूसुमोन्भदैमन्यरो भवे नो दे" चरूणसक्वारं रेदं ( )

(कमे

( ) अपि नामावयोः सेभावना. सफला भवेत्‌

( ) सखि नास्ति ते दोषः। निर्ग गोऽयमशोको यदि कुसुमोद्वेद मन्थ. रो भवेद्यस्ते चरणसत्कारमरुभत

एकानुरागस्य रसांभासत्वात्‌ तया चोक्तम्‌, एक्त्रैवानुरागश्च बहुसक्ति-

योषितः अनैौचित्यप्रवत्तत्वात्‌ शृङ्गाराभास उच्यते | इति ( एताक्ता एतादशश्रवणेनैव कामिनां अभीष्टमितिशेषः एकस्य अनातरस्य अपर स्य चोत्कठितस्य एतयोर्विषमानुरागयो नौयकनायिकयोः प्रसिद्धबयता कंचि जनिष्पदयमनेनापि समागमेन मां प्रति वरं किं तु समानुरागयोः परस्परप्रासि निराश्चयोः सतोः शरीरनाशोऽपि वरं तया एतस्या मथ्यनुरागवत्वात्‌ मागमाभवे मम देहत्यागोप्यभीष्टः ) आदायेत्यादि कर्णकिसल्यं कर्णपूरा किसलयम्‌ अत्र कणं शब्देन कर्णपूरो रक्ष्यते कणेभूषण

) 2 जअ. ( २) ८, अरोकताडनाय. ( ) ^. 2. द, ०1 ४0१8, 860}. ( ) 7. ४00 166 वामो क्खु एसो असोसो जो वभूनअं प्रमाणी कटय ( न्यंजकं प्रमाणी रत्य ) कसुमग्गमं गं सेदि &५.; (५) ¶. ४१५ भञअं जेन्व, (६ ) 2. 4. समन्भेदं; 1. 3. ७. गम. ( ) }>, & ईरित. (< ) पि. अलङ्कारं. ( ) 8. ४, ©. ¶. देमिभ ( प, भक्भत. ९, द्मे 2; र, ्भिवः,

9१

|

~ टि ॥। + 6. {=

1. 4. शजा-- 08. अनेन तनुमघ्यया मुखरनपुराराविणा ~+ नवाम्बुरुहकोमलेन चरणेन संभातरितः। यदि सद्य एव कुसुमे नं संपत्स्यसे ~ ` ` वृथा बहसि दोह ऊ, स्तकानिसाधारणम्‌ १७॥ ~~ “^ सखे वचनावरपवैकं रेटुमिच्छाि विदू ०- एदि णे परिदासइस्सं ( ) ( उभी प्रवेशं कुरुतः ) निपु०--मर्िणि भद्र एत्य परविदि (ख ) इरा ०--एव्वं पुटम्‌ चिन्तिदं हिअएण (ग ) बिदर° --( उपमुत्यं ) हर्दि नुत्तं णाम अत्तहोदो पिवभस्सो

ॐअ असोओ बामपादेण ताडेदं ( )

( ) एदि एनां परिहासयिष्यामि

( ) भ्न भत्ता प्रविशति

( ) एवं मम प्रमं चिन्तितं हदयेन

( ) भवति युक्तं नामात्रभवतः प्रियवयस्यो ऽयमशोको वामपादेन ताडयितुं

चरणार्पणयोस्तुल्यरूपपरिवर्तेन वश्नितं अकृतायं मन्ये यस्ते चरणस त्कारं लब्धा ( क्च्ध्वा ) अनेनेत्यादि लङ्तिकार्मेषाधारणं चारू

(+) 8. ७, पि. ¶. मुङ्कैः. (२३) 8.0. 1. मषा. (३)8 ७. "1, “अवकारा०, २. “अनसर'. ( ) ^. माटविभाए 07 मम. (५) ` 8. © १.17. जेव्व. (६) चि, ०४. &. 4, 2 १4 ग, (*) 8. ७. प. 1. 4. ०0. जअ, ( < ) प, "अपम णं &

+ ` (भ

( ८३ )

इभे-( ससंभ्रमम्‌ ) अह्यो द्य (क)

बिद्‌ ०-- बउलवल्ए्‌ गहीदत्याए तुए अत्तहोदी ईरिसं अविणअं करन्दी कीस णिवरिदां ( )

( मालवेका भयं रूपयति ) निषु--मर्िणि देकैख किं पञजुत्तं अज्नगोदमेण ( ) इरा ०-- करः बद्मबन्धु अण्णहा जीविस्सदी ( )

. ०-- अज्ज एसा देवीर्‌ णिओअं अणचिद्ाे एदार्स अदिक्रमे परवदी इअं पसीदतु भद्र ( आत्मना सममेनां प्रणिपातयाति। ) ( )

शजा--यदेवमनपरार्दधासि उत्तिष्ठ भद्रे इति हस्तेन गृहीत्वो - त्यापयति )

( ) अहो भर्ता |

( ) बकुल्मवल्कि गृहीतार्थया त्वयात्रभवतीदामाषेनयं कुर्वती : .

कस्मान्न निवारिता | "^^ षन ४. १८४५. ५.१ ( ) भर्िनि प्य किं प्रयुक्तमार्यगैत्तमेन ( ) कयं ब्रह्मबन्धुरन्यया जीविष्यति

( ) आर्यं एषा देव्या नियोगमन॒तिष्टति एतस्मिन्नतिक्रमे परवती यम्‌ प्रसीदतु भता

कामिसाधारणं चारुकामिजनतुल्यं दोहलं पादनिक्षेपरूपं वृथा मिथ्या वहसि जुत्तणाम ' इत्यत्र काकुरनुसंधेया भयं ङूपयतीति अत्र भयकयना

(१). ^. वारिदा, (२) ?. ^. निरूपयति, (३) 8. ©. पष, ध. वक्व. (४) 20 00. (५) 8. ७.7, 2, षतं ( प्रवृत्त), (६) 8. ७. पि. 1. १११ खु; 2०. &. &प सः. ( ) १, होदि, («८ ) 8. ७. पि, †. ( इत्यात्मना सैनां &< ). ( ) पि, ११ एना,

(£)

विदू ०--नुजनर देवी एत्य माणइदत्वा ( ) शाना--

किसकूयमृदोश्चिकासिनि कठिने निितस्य पाद्‌ पर्कन्धे। चरणस्य ते बाधा संप्रति बामोङ बामस्य.॥ १८ ( मालविका लज्जां नौटयति ) इरा ०-- `अहो णवणीदौदिअओ अज्जउत्तो ( )

भाङ०-- बडउलावकिए एहि अणद्टिदं * अत्तणो णिओअं देवीर्‌ णि बेदेद्य | ( )

क्षु ०--तेणेदि विण्णवेहि भटरारं विसज्जेदि ति ( )

1 71

राजा--भद्रे यास्यसि मम तावदुतपननावसरमरधतव श्रूयताम्‌ बङ्०--अवहिदा सुणाहि आणवेदु भद्रा ( )

( ) युज्यते देव्यत्र मानयितन्या ( ) अहो नवनीतददय आर्थपुत्रः ५१५ ^; \ “५५,

( ) बकुलावकिके एदि अनुणितमात्मनो नियोगे देव्यै निवेदयाबः। ( ) विज्ञापय भर्तारं विसर्नयेति |

( ) अवहिता शुणु आज्ञापयतु भर्ता

संभ्रमणं नाम सेध्यगमक्तं भवति किश्चलयेत्यादि | स्पष्टोः अत्र प्रियोक्त्या सेगृहो नाम सेष्यद्ुमक्तं भवात अहो अविनीतइदयो धयभारथपत्र

(१). ^. लज्जते; ष, शप्यति, ( ) २. ५० सास्यम, ( १) 98. ७. नि. ¶. 2० गवणीदकष्य. ( ४) 4. ४4 स्व. (५, 8.9, 10 ^ ५। (४1111 २०, 4, (१,१\॥) हि,

( ८५ )

राजा-- ©) (८.५५५.५७५

धृतिपुष्पमयमापि जनो बघ्नाति तादृशं चिरात्मभूति `." स्परोमृतेन पूरय दोहदमस्याप्यनन्यर्चेः॥ १९॥ ` "`` `

€` (न १५.५.१ ९।५4

इरा०--( सहसोपसृत्य ) पूरेहि परेहि णं ' असोओ कुसुमं दंसेदि अअं उणं पुष्फड फक्ड ( )

( स्वे इरावतीं दष्टा संभ्रान्ताः ) शजा--८ अपवार्य ) वयस्य का प्रतिपत्तिरत्र ` बिदू०- कि अण्णं जङाबलं एव्व ( )

कौ,

( ) पूरय पूरय नन्वदोकः कुमुम दर्शया अयं पुनः पुष्यति

फलति

(ख ) किमन्यत्‌ जङ्ावल्मेव ^, \ ,

५" भै 0१५ 4

( दयाद्रीचित्ततात्तयातवोमक्षा ।सेचछुनोक्तियिं ) धूतिषुष्पेति ( अयं भादशः जनः चिरात्प्रभृति धृतिपुष्पं धृतेः पुष्पं बध्नाति अतोऽनन्य रुचेरनन्याभिलाषस्यास्य मादृशस्य जनस्य दोहदं अभीष्टं स्पशौमृतेन पूरय पूरय पूरय अदकः कुसुमं दयात ( अशोकः पुष्पं दर्शायति ) अयं पुनः पुष्प्याते फलते ( विकाशते किन्तु फलति फरिष्यः तीत्यथेः ) अत्र सेरब्धवचनात्तोटकं नाम सेध्यङ्ुमुक्तं भवति बयस्ये- स्यादि का प्रतिपत्तिः को विचारः उपाय इत्यथः अत्र भीतेर्मम्य मा्मतवादद्धेगो नाम संध्यङुमुक्तं भवति मया आत्मनो. वश्चना बचने प्रमाणीकृत्य व्याधगीतरक्तया हरिण्येवाशंकितया विज्ञातमेतत्‌ एतदित्यनेन रात्ता कपटाचरणं परामश्यते प्रतियोजयेदानीं किमाप

(१) 8. ©. 7. ¶. असोभौ कुसुमं दंसो. ( २) 12० 4. अअं उण कैवलं पुप्कड फल्ड अ; पष. अअं उण पुफदि छव; 1. 9. 1, अअं जण छत्तंमिदो एव; ( 1. 804 पुष्कड फल जेन्व ), ( ) 7, ४0५ ( सरणं ),

( ८६ )

इरा ०.- ' बउत्मवलिं साहु उवक्घन्तम्‌ मात्म तौ दाणि तुमं सञ्जउन्तं सफलपथ्यणं करेदि ( ) इभे--पसीददु भद्िणी का अद्ये भत्तुणो पणपदधिगहस्स ( इतिं नेष्करान्ते ) ( ) इरा०-- भविस्ससणीआ पुरिसा मौ क्ख अत्तणो वश्चणावभर्ण पमाणीकररि बाहगीदरतताएं हरिणीए विअ असंकिदां एदं विण्णादं (ग)

( ) बकृलावलिके त्वया साधू प्रान्तम्‌ मालगिके तावदिनानीं त्व सार्पं सफलप्ायनं कुरु

( ) प्रसीदतु भध्धिनी के आवां भवैः प्रणयपरिग्रहस्य

५०.२९. ५६.१.३४ २९०५.५५५

( ) अविश्चसनीयाः पुरूषाः मया खल्वात्मनो वश्चनावचनं प्रमाणी- कृत्य व्याधगीतरक्तया हरिण्येवाशाङ्तयैतन्न विज्ञातम्‌

4५.५५.4७ | (2 १.११ 2 , +

कर्मगृदीतेन कर्मणि चौैकर्मणि गृहीतेनापि कुम्भीरकेन चोरेण संधिच्छेद ने सेषेः पिदितभृमिः सधिस्तस्य छेदेने भेदने सुरङ्करण इत्यर्यः शितिः तः अभ्यपतो {स्मीति वक्तव्यं भवाति किमपि प्रतियोजय उपपन्न

( ) ए. 6. 1. १५ साह. (८ २) 2. 4. 8. ©. पि. †. ४4 वृ. ( १) 8. ७. प. 1. ०0. मालविर ता त॒म; &. 2. शव 9 कधि; ` 2. ७. दाणि करहि अग्जरम्तं सफलपत्थण. ( ) 20). व्यसंगस्स ( प्रसंगस्य ). (५) ९. 4. ०४. इति. ( ) 2. 4. ४५१ भह. ( * ) 8.06. भ. 1. ०0, ( < ) प. ४५५ असिता बाहनणगीदगहीदवित्तार विभ इरिणीर्‌ एवं विण्णादं; 8. 9. 1. अश्वित्ताए पिअधरिणारि हिअअभसलं किं | एव्वं विण्णादं मए वाहइनणगीदगहीदवित्ताः अविसंकिशाए हरिणी विभ विणासो चि। १) पि, काहनणगीर्गहीदचनित्ताए; 70, ०, नण) ( १९ ) प, भ.

( ८५ )

बिद्‌०-- ( जनान्तिकम्‌ ) पैडिओजोहे दाणिं किप कम्भः गरहीदेणं कुम्भीलएण सेधिच्छेअणतिक्खिओ हि त्तं वत्तव्वं होदि (क )

राजा- सुन्दरि मे माखविकार्ी कश्चिदयं: मया लं वविरायसीतिं केयेचिदात्मा विनोदितः

इरा ०--विस्ससणीओ सि मए विण्णादं ईरिसं विणोद वत्यु अं अज्जउत्तेण उवलद्धं त्ति अण्णहा मर्दभाईणीए एव्वं ण॒ करीअदि

(ख)

बिद्०--मा दाव अत्तदोदी अर्चहोदो दक्रिखण्णस्स अरोहं भणादु संमावत्तिदिद्ेण देवीए परिअणेभ संकदा वि जई अरहो उवीअदि एत्य तुमं एव्व पमाणं ( )

( ) प्रतियोजयेदार्नीं किमपि कर्मगदीतेन कम्भीलकेन सीधि- + च्छेदनशिक्षकोऽस्मीति वक्तव्यं भवाति = =^,

( ) विश्वसनीयो पसि मया विज्ञातमीदु ॒विनोदवस्तुकमायंपत्र णोपलब्धमिति अन्यया मन्दभ॑गिन्यैवं क्रियते ८.५८

) मा तावद त्रभवत्यत्रभवतो .-दाक्िण्यस्योपरोधं भणतु समा- `“ पत्तिच्टेन देव्याः परिजनेन सकथापि यदयपराधः स्याप्यते$त्र त्वमेव

प्रमाणम्‌ ठय ६५.04. ०१. ५०१ 1

¬+-% (२११

मनुपपन्ञं वा उत्तर कुरवित्ययैः विश्वसनीय ऽसीत्यत्र॒विपरितलक्षणानुसंधे-

(१) 8. ©. 7. मो पडिवज्जेहि कपि उत्तरं, (२) अ, ०५१ कि, ए. 9. †. किं मणई उदकान्दमूले विमि . विमरिदिेण ( उदकान्त. मूले विपथिके विमथितैन ) कुमलिण्ण ( 8. ७. सेदेसो रक्खिदन्वो त्ति) (

. सेषिच्छेदो सिक्िविदन्वोधि ). (३) 20 4, ४५५ एत्थ. ति. "रेज &८.

( 9“) 8. 9. प. 1. माकविकया (५) 8. ७, प. ¶. ११५ वथाः. (€ ) 8. 9. ¶. भविस्सः, (७) 3. किवि; २. 4. एतारिसिं. (< ) प. क्क्खमाः; 3, 9. ¶. दुक्खन्वावारिणी ट्वं करेमि; 2० 4 , दुक्खतरं एवं (७ छव ) करेमि. ) 2. तावदा. (१० ) पष. ततमअदो. (११) 8. ©» मबिदु; प. भणिदं (१२) 8. ७. ¶; समीवद्धरिण, १२) 8. ©. पररिगथिजजणेण; "7. परिअररित्यिजाजणेण ( १४. ) २०. अवराहे, ^. अक यहो, 1, वारिभदि; >, (३, सकदा अहिमुभा ( 9. अवराहो ) स्खभाअद्‌,

( ८८ )

इरा १-- णं सकहा. णाम दोदु ¦ किति" अत्ताणं आभाषदस्सं (इति रुष्ट प्रस्थिता ) ( )

राजा ( अनुसरन्‌ ) पधी चक |

( इरावती रश्नासदिं तचरणा व्रजत्येव ) शजा- सुन्दरि शोभते प्रणयिज्ञननिरपेक्षता ८०... इरा ०- सठ अविस्ससणीअदहिअओ सि ( )

९५७५.५५६०.० ५. ५७9 3९

राजा शठ इति मये तावदस्तु ते `“ ` 1... “परिचयवत्यव धीरणा प्रिये चरणपतितया चण्डितां -> .~ ~)

बिसृ नसि मेखल्यापि याचिता २०

इरा ०--रअ पि हदाता तुमं एव्व अणसराई ( रशनामादाय रा- जानं ताडयितुमिच्छति ) ( )

( ) ननु संकया नाम भवतु किमित्यात्मानमायाषविष्यामि ( ) शठ अविश्चसनीयडइद योऽपि ( ) इयमपि हताशा लमेवानुमरति = ` ,

^ ५.)

या मा तावद त्रभवतो दक्िण्यस्योपरोध भणतु शदइत्यादि दहे प्रिये परिवियवति परिचयः सेस्तवो स्य स॒परिचयवान्‌ अतिशायने - मतुप्‌ तस्मिन्माधि शठ इति गृदविंप्रियकारीति अवधीरणा तिरस्कारोऽस्तु अतः अतिपरिचयाद वङ्गा ' इति वदन्ति तस्मादियमवधीरणा यक्तैवे व्यर्थैः हे चण्डि अत्यन्तकोपने चरणपतितया मेखलया रशनया याचि-

(१) केसिभं काकं. (२) प. शवा. 4. 2. 0०1०. एति, ( ) प, सदासि) {. ©. ¶" सेदानित, (४) 2. 4. भ्रणयनननिरपेश्षता; पष. प्रणयिनि जने &&, ( ) &. चष्डतां; 2६. चण्डितां

तै ८4 © (4५० १९५... वाष्पासागा हेमकाग्रीगुणेन कि तर ६, श्रोणी विम्बादग्यपेक्षाच्युतेन =-द५०५= ( ९,५१५.५६. चण्डी चण्डं हन्तुमभ्युदयता मां" = ~ : ` “^ बिदुहाञ्ना मेघराजीब विन्ध्यम्‌ २१ इरा०-- किं मं एव्वं" भूओ वि अवद्ध करेमि °( इति सरशनं हस्तमालम्बते ) ( ) ८५८४११५५ ` ८42 ^ अपराधिनि मायि दण्डं संहुरासि किमुद्यतं कुटिकेशि वधयसि बिरसितं त्वं, दासजनायात्र कुप्यसि ॥२२॥ 1

+ (ज चः रि पिक

(क) किं मामेवं भयोऽप्यपराद्धां करोषि | ०५५2 = ८०५

# 1

शेषः ( सखीयाचनेन कोपत्यागस्योचितत्वेन कोपाभवे चावधीरणात्यागो ~< युक्त एव तन्नकरोषीत्यनुवितमिि भावः ) बाष्पासारेत्यादि बाष्प ~< ` आसार इव यस्याः श्रोणीनिम्बात्‌ प्रशस्तनितम्बस्थानुदुपेक्षया असावधाने. च्युतेन गर्तिन.विनुदाम्ना विदुन्मा्येव हेमकार्चगुणेन स्वणेरशनया चण्डमुग्र ( ययास्यात्तया ) मेघराजीव मेघमालेव इयं चण्डी कोपना विन्ध्यं पर्वतमिव मां हन्तुमुद्यता उदुक्ता) किं मामेवं भूयो ऽप्यपराद्ां करोषि अप. राधिनीत्यादि स्प्टोऽ्वः॥ नू नमित्यादि इदं तद्र शनासंहरणमनुन्ञात

५. तपि प्रार्वितापि तामवधीरणां विसृजसि त्यजसि किमिदं युक्तमिति . =+:

८१ ) ए. ६, एवेरावत्ती; 1. वयस्यैरावती; प, हइयमिरावती; 4. यैषा, ( ३).8. ©. ४. 4. अन्युपेक्ञा &०. ) पि. वाहं, (४) 2. 4. ०90. (५) ए, ©, ¶. अवधीरिअं; ^. अवरद्रं ( अषरोधं ) (६ ) 8. ७. 2५. 7. 1980 ( सरशनं हस्तमवलबयति ) ४67 राना ४9610 फ़, ( ) पि. अद्य. ( < ) 2. ४१५ ( आत्मगतम्‌ ). ( ) रप, इदम्‌, १३

&\च

| >

(९० ) इरा०-- खु इमे माखामेआएं चणा जे दे हरिसंदोदलंपृरयिस्स- न्ति ( इति निष्कान्ता सचेटी ) ( कं ) बिदू ०--भो उदेहि उर किदैप्पसादोषि ( ) राजा--( उत्याय इरावतीमपद्यन्‌ ) कौं गतेव प्रिया विदू °- वअस्स दिद्विआ इमस्स अविणअस्स अपिसादिदा गदां तौ वअ सिग्घं अवक्रमाम जाव अङ्कार रासि विअ सौ अणुक" करेइ (ग) राजा-अहो मनसिंजैवैषम्यम्‌ | ` ˆ ˆ ^“ | मन्ये प्रियाहुतमनास्तस्याः प्रणिपातरुक्कनं सेवाम्‌ एष हि प्रणयवती सा शक्यमुपेक्षिदुं कुपिता २३ ` (इति निष्कान्तः सह वयस्येन ) ** “^ "1

इति तीयो ऽङ्‌ः।

९.4 ¢

( ) खन्विमौ मालविकायाश्चरणौ यौ ते दष॑दोहदं पुरयिष्यतः।

(ख) भो उत्तिष्ठ उत्तिष्ठ कतप्रसादो धसि 1 08.४१ ( ) वयस्य दिष्टया अस्यविनयस्य प्रसादिता गता तदावां ड्मपक्रमावः यावद्‌ कारको राशिमिव सा अनुवक्रं करोति > _ करोति ~

मनुमतम्‌ मत्परर्यनया इति शेषः वयस्य दिष्टचा अनेनाविनयेनाप्रसन्ना गतैषा तावदावां शीधमेवापक्रमावः यावद कारको राशिभिवानुवक्रं (पतिगम- न) प्रतीपं करोति मन्य इत्यादि प्रियाइतमना मालमिकादतमनाः

( ) पष. माठविआचलणा,. ( २) 2० पररिसि, 20 करिस, 4 . इस्ति.

¶, वितेसेण. ( ) 2. ^. ससी निष्कान्ता ); ३. सहेथा. (४) "8. ©. पि, ¶, ०0, मो & ००. उदेहि. ( ) ए, 6. 4. अकिं &. (६) ए. ©. हेत; 1. तत्‌, (७) 2. 4. ०४, ( < ) पि. अष्यसण्णा;

. 8. 6. 1. अपप्यसारिदा, ( ) १, ४५५ एता. ( ° ) 8. 8. अत्तिणा,

¶, महदाव [0 ता वं, (११) 28. 6७.94. 4. ००, (१२३) 2, तत पडिगमणं, ( १२३ ) २१, 1. मदनस्य; ७, मदन. (१४) 98. 9. ¶. एषं प्रणयवती सा नहि शक्यम्‌ ८८. ( १५.) 1. ^, ( इति परिकन्य निष्कान्ताः र्वे ) 28. (3, ( हति निक्रान्ताः सर्व )*

८.९९ )

प्रणिपातलङ्कनं प्रणामातिक्रमं तस्या इरावत्याः सेवामनुकूलचरणं मन्ये सेवायाः फलमाह कुपिता कुद्धा प्रणयवती प्रेमवती सा इरावती एव- मनेन क्रमेण प्रणिपातलद्ुनरूपेणोपेक्ितुमीदासीन्येन वर्तितुं शक्यं हि शक्या खल शक्यमिति निपातः ( तदतिक्रामणीं प्रसादनविंशेषं प्रणा- मधिकामिते यावत्‌ सेवां मन्ये तादृशी सेवैव प्रसादनाया अलं नान्येत्य्थः साहि कुपितापि मयि प्रणयवती अत उपेक्षितुं तस्याः प्रसादनमिति शेषः शक्यम्‌ ) अत्र बीजानुसेधानादाक्ेपो नाम सेध्यङ्कमृक्तं भवति इद मनुसंधानमेवोत्तराड्‌कयोपयोगितवाद्विनदुरित्यनुसंधेयम्‌ इति श्रीकाटयवेमम्‌- पविरदिते कुमारगिरिराजीये माखगिकाभिमिन्न्याख्याने तृतीयो ऽङ्‌

(२)

चतुर्थो ऽङ्ः ( ततः प्रविशति पर्यत्को राजा प्रतीहारी ) शजा- आत्मगतम्‌ ) ` `

1, ५१,.८५५.६

संप्राप्रायां नयनविषयं ङूढरागः प्रयः ~: हस्तस्परे मुकुलितं इब व्यक्तरोमोद्रमत्वा- त्कुयोल्छन्तं मनसिजतरमां रसन्ञं फरस्य 9 ( प्रकाशम्‌ ) सखे गीतम

भ्रती ०- जेदु भद्र असंणिदिदो गोदमो ( )

राजा--८ आत्मगतम्‌ ) अये" माखविकावृ्तान्तजञानार्य प्रेषितः

( प्रविरयं ) बिद़०-- वटुं भवं ( )

( ) जयतु भता असंनिहितो गीतमः। ( ) वधेताम्‌ भवान्‌

कविरिदार्नामङ्ान्तरमारभते-- ततः प्र बेशती यादना तानिति। मरकत इव सजातमुकुल इव कान्तं कामनायुक्तं कुथौदि ति प्रार्थनायां ( शंसायां ) लिङ्‌ अत्र प्रसञ्जितं बीजं प्रकरीस्याने कृतमिति मन्तन्यम्‌ असंनिहितोऽत्र गौतमः सा खलु तपस्विनी तया पिङ्तयक््या सारभाण्ड-

(१) 8.6. पि. 41. ब्रमूः. (२) 8.6. पि. 1. खर्शीः+ (३) ए. 9. 1. कसुमित. ( ) ?. रोमोदगत^. (५ ) 7. ‰. कौत, (६) 13. ७.2. 1. १९) मेद्‌, (५) 8.0. 9.1. नाः. (<) पि, (1. 0 मया, ( { ) 8, ©, ४५५ विद्षकः, (१०) 9. ©. 4. नेद्‌ नेद्‌ 904 2, 4 नेद्‌,

(९१) राजा--जयसेने जानीहि क्रं देवी धारणी कयं सरुजचरण तवाद्विनोयत इति प्रती ०- जं देवो आणवेदि ( इति निष्क्रान्ता ) ( ) राजा-- सखे* को वृत्तान्तस्ते सख््यास्तत्रभवर््याः बिदू ०-- जो बिडालगदीदाए परहुदिआए्‌ ( ) शाजा-( सविषादम्‌ ) कथमिव

विदू०--साखु तवस्सिणी ताए पिङलच्छिए सारभण्डभूषैरए मि- म॒हे विअ णिक्िखत्ता ( )

राना-- ननु म्ंपर्कमुपलभ्य | बिदू०--अह इं (घ)

( ) यदेव आज्ञापयति | + ( ) यो बिडाल्गृहीतायाः परमृतिकायाः।

(ग ) सा खल तपस्विनी तया पिङ्लाक्ष्या सारभाण्डभूगहे म॒त्यमख इव निक्िप्ता ५4 \

( ) अय किम्‌

भृगृे गुहायामिव निक्षिप्ता शुणोतु भवान्‌ परिरानिकया मे कयितम्‌ ह्यः पूर्व्यः किल तत्रमवतीरावती रुजाक्रान्तचरणां देवीं सुखपृच्छका आगता तयोक्तम्‌ ( ततस्तया व्याख्यातं मदो वा उपचारो वा त्तव परिजनस्य वह्छभत्वं जानत्यपि पृच्छति ) मन्दो व॒ उपचारः

(८ ) 2. 04 तावत्‌ , 8, ©. तावत्‌ | वा देवां कथं वा &०, 8०१ ¶, तावत्‌ कासो &. ( ) 8. ७. पि. 7. ०. कयं वा. (३) 8. ७. षि. 4. गँत्तम. (४) ए. ७. प, {7 तत्रमवत्यास्तेसल्याः ( ) 4. 2०. -माडमूमि" 204 8, ©, 1. -माडगेहमुहे परिक्िता, (८५) 8. मे; ( की # ¬.

> | @१३,

( ९४ )

राजा--गीत्तम एवं विमुखो.स्माकं येन चण्डी कृता देवी .

बिद्‌०--मुगदु भवं परिव्वानिओं मे के हि किंल तत्त होदी इरावदी रुजाविहैत्यचरुणं देवि पु्हपुच्छिआ आअदा ( )

शजा--ततस्ततः।

बिदू०-- तदो सा देषीए॒पुच्छिदा। किं णै लक्िदो जणो वह्ल- हो त्ति। ताए उत्तं। मदो वा उवआयो वा जं दे परिअणस्स वह्हत्तणं ॥. जाणन्ती वि पुच्छसी त(स] 4 राजा-- निर्भेदाते पिं मालार्वकायामयमुपन्यासः शङ्कयति ~ 4.4 (८4८. 2 =, _ ५.६.62 + + 0.९ ( ) शृणोतु भवान्‌ परित्रानेका मे कवयति ह्यः किक ॒तत्र-

` भवतीरावती रुजाविहस्तचरणां देवीं मुखपच्छकागता १५.५५ = ४५६, # ^ )

(ख ) ततः सा देव्या पृष्टा | किं लक्षितो जनो वह्भ इति | तयो क्तम्‌ | मदो वा उपचारो वा यत्परिजनस्य वह्छभव्वं जानन्त्यपि पृच्छसीति

ति

4, व्‌ 1

यत्परिजने संक्रान्तं वह्णभव्वं ज्ञायते ~ निर्भदादते ऽपि 4 ;; नापि ततस्तयानुबध्यमानया भवतो कृता

~ ; ( धरिणी ) राजाविनयमिरावत्याः सकाशा्ज्ातत्रती्यर्थः किमतःपरम्‌

(१) 8, ७. 7. ¶. ०. ( २) पि. परित्वानिभार भे कहिदं. (३ )

पष्‌, स्भक्रत ४५ 8, ध. 4, ( शुनायमान ). ( °) 3. 6.

; ¶, २०. सुहं पच्छ (५) 2. 0108 ५118 86९न) ४० २७४१8

` + निग्फण्डु न्€भः विद्षक 1 00६ पपम कत

-- ४10५ ४0०१९. (६) ३. 9. ¶. कि अच्णो वि अणलंकिदो हिभअनेणो

; बहो ति &. परि, #ि णु ओलोषदो षहहनणोति, (५ ) 120 &. भ॑रो वौ

~ उकओआरो जं दे परिअणस्स वहदत्तणं तं नाणति ति प, मेदो,. जं प्रिमणे

सक्तं षचहत्णं नाणी अदि, ४०५ 2. 9. 1. तदो शार उत्तम्म॑तीर मंतिदम्‌ `

. ¦ कुदो वा उवओआरो जं परिअणे सेकतं बहहृत्तणं जाणिस्सदि ति |, (< ) 2४. 9१ भो & 1. अहे. (*) 23. 9. ¶. ००. अदि |

(१९ )

| ०- तदो तार अणुवन्धिज्जमाणाएं भवदो अविणअं अन्तरेण परिगहीदत्यां किंदा देवी ( ) राजा-अहो दीर्घरोषता तत्रभवत्याः अतः परं कथय ` `

बिद ०--अदोवरं किम माख्विभा बडखावक्िआ णिअलवदी अदिद्रस॒ज्जपादं पादाल्वासं ण।अकण्णआ विअ अणहोन्ति ( )

राजा-कष्टम्‌

,&., भै ~

मधुरस्वरा परभृता भ्रमी विबुद्ध चतसङन्यौ ~... : कोटरमकाखवृष्टचा प्रवरुपुरोबातया गमिते <... +~.

= ~~~ +~ [अ रि ष्क.

ˆ बयर्सय अप्यत्र कस्यचिदुपक्रमरस्यं गतिः स्यात्‌ <...

बिद्‌ ०-- कदं भविस्सदि जं सारभाण्डघरप वाउदा माहविओआ देवीए संदिद्रा मम॒ अङुरीअरमुदं अदेक्खिअ मोत्तव्वा तुए॒हदासा मावे बड खवलिओआं अं त्ति ( )

` (क ) ततस्तयानुवध्यमानया भवतो विनयमन्तरेण परिगृरहातार्या कता ४. दवी ] ५५. ५८.52

( ) अतः परं किम्‌ मापिका बकुलावलिका निगख्वत्यावद- ¡५८ ्सूर्वपादं पाताल्वासं नागकन्यके इवानुभवतः

( ) कथं भविष्यति यत्सारभाण्डगृहे व्यापता माधविका देव्या <~ <^ संदिष्टा ममाुलीयकमुद्रामद्ा मोक्तव्या लया हताशा मालविका बः ,

कुलावलिका चेति मधुस्बरेत्यादि ( मधुरस्वरा मघुरनादा परभृता कोकिला भ्रमरी तत्तु

) 2०. गिबेषि &० 4 च, अणृकिन्नमाणा सा ( २) 8. 8. ¶. प्रिद. ( ) 7. किं अदो वरं, ४०१ 13. ©. 1. कि अवरं. ( ४) 3.6, पिष, १९68६. (५) 2. मधुररवा परभृतिका; मधुरस्वरा प्रभति, ( ) ए. (५. प, ¶, ००0.; २. वयस्याप्यन्नोपकमस्य कस्यचित्‌. &८, (८ « ) 13. ©, भमौडन्वावारिदा, 20 †. मांडगिहन्वावारिदि. (८ < ) पि. अगृखीजअ &५* 8. ©, “मुदम 324 †7, मुदि. ( ) 70. ०.

)

राजा--( निश्स्यै ) सखे किमत्र प्रतिकर्तव्यम्‌ +८७५२य बिदृ०--( विचिन्त्य ) अत्यि एत्य उवाओ ( ) राजा--क इव

विदू ---( सदृष्टिक्षेपम्‌ ) को वि अदिष्ठो सुणादि कष्णे दे कदे मि ( ` उपष्छिष्य कर्णे" ) एव्वं विअ ( इत्यविदयति ) ( )

राजा-( सहर्षम्‌ ˆ ) सुषु चिन्तितम्‌ * प्रयुज्यतां सिद्धये ( प्रविङ्य )

प्रती०-- देव पवादसअणे देवी णिसण्णा रत्तचन्दणधारिणी परि अणहत्यगदहीदेणं चलणेण भअवदी कहार्दि' विणोदिअमांभा चिड्ड (ग)

| राजा---'` अस्मत्प्रेव॑योग्यो ऽयमवसरः

( ) अस्त्यत्रोपायः ( ) कोप्यदष्टः शृणोति कर्णे ते कथयामि एवमिव

( ) देव प्रवातशयने देवी निषण्णा रक्तचन्दनधारिणा परिजन दस्तगृदीतिन चरणेन भगवत्या कथाभिर्विनो्यमाना तिष्ठति

ल्ये मालाविकाबकुलावलिके इत्यर्थात्‌ विवुद्ध चृतसेगिन्यौ व्िकापितसहकार- सक्ते मदाश्रिते इतिध्वानैः प्रबलपुरोवातया वृष्ट्या कोटरं वृक्षकोटरं त-

(१) 8.6. पि. ¶\, ४५५ सपरामर्शम . (२) 23.6.9.¶7 00,

प्रति, ( ३) प, ४५ इति. ( °) 3. 6.1. मण. कर्वे (५)4.? 0). (६ ) १. गण) चितितम. (*) 8.6. 17. ५44 (8. 6. अनुष्टितं & {, अनष्टेयम. ). ( < ) ए. 8. ¶, "वारिणा. ( १) 8. ७. प. ¶, इत्थगदेण, ( १०) ?. 4. प्डिन्वाजिआा. (११) .8. ७. †. 1ण््ल०४०९७. ( १२३ ) 3. ©. 1. ५५५ तस्मात्‌. ४५ त. तेनदि, (१२३ ) 3. 6. 4, प्रयाणं,

¦

| ( ९७ ) बिद ०-- गच्छदु भवं अहं षि देवि पेकिखिदुं अरित्तपाणी भविस्सं ( ) राजा--जयतेनायास्तावत्संवेदयय गच्छं बिद्०- (क ) दोरि एव्वं विअ इत्यवे निष्क्रान्तः ) | (ख)

राजा---जययेने पवातशयनमार्गमादे शय भ्रती०- इदो इदो देवो (ग ) ( ततः प्रविशति शयनस्था देवी परिव्राजिका विभेवतश्च परिवारः )

देशी--भ अवदि रमणिज्जं * कहावत्यु तदो तदो ( )

परि०--( सदषटक्ेपम्‌ ) देवे अतःपरं पुनः कथयिष्यामि अत्र भवोनीरवरः संप्राप्तः

देबी--अद्यो अज्जउत्तो ' | ( इत्यत्यातैमिच्छति ) ( )

॥।

( ) तद्रच्छतु भवान्‌ अहमपि देवीं द्रष्ुमरिक्तपाणिभविष्यामि . ' ( ) भवति एवमिव

0 शतो दः ` 4. ( ) भगवति रमणीयं कयावस्तु ततस्ततः ) अहो आयपुत्रः।

ल्य नित्रिडान्धकारं इति ध्वनिः गमिते प्रापिते ) अत्र राज्ञः कणी वि-

| दूषकीक्त उपायो नियमेन माकविकाप्राधिदेतुतवाननियतापिर्नाम चतुर्थाः

+ ~+ +

(१) 3. 6. . मो. (२) 4, सपाय, 8. ©‹ ¶, संविरितं &. प्प; अस्मद्रहस्यं विदितं कुह. ( ) 8. 0. प. 1. तह ( करणं ) एवं विअ होषि; 9 ) 4. 2. अदिरमणिज्जं, ( ) 1. अत्रभवान्‌ विदिशैन्वरः ४१५ षृ अत्र भगवान्‌ विदिशेवरः, ( ) 8. ७, पि. 1, भरा, (ज ) ए, ©. अभि 90 इति

१३

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# + # =. * #ै & | | 0 ^ #९२ 1 (न (+ 1

राजा--अलमलमुपचारयन्त्रणया , वव अनुवचितनूपुरबिरहं नाहैसि तपनीयपींटका छम्ब „~ चरणं रजा परीतं करूमापिणि मांच पीडयितुम्‌ परि०-- विजयतां देवः।

धारिणी-- जेदु अज्जउत्तो ` ( ) शजा--( पख्रानिकां प्रणम्योपैश्य * ) दोषे अपिं सद्या वेदना

धारिणी-- “अव्य मेः वितेसो ( ) ( ततः प्रविशति यज्ञोपवीतवद्धाङगृष्ठः संभ्रान्तो विदूषकः ) ` बिद ०--परित्ताअदु परित्ताअदु भवं सप्पे्णं ददेन्न ( ) ( सर्वे विषण्णाः ) राज्ञा~--कष्टम्‌ ` भवान्परिघरान्तः

( ) जयववाुपुत्रः। ( ) अस्ति मे विशेषः | ( ) परित्रायतां परित्रायतां भवान्‌ सर्पेण दष्टो ऽस्मि

वस्या सूचिता अत्र पूर्व॑ प्रकरीस्यानोक्तबीनस्यानया नियताप्त्या सम- न्वयादवमर्शोनाम चतुर्वसंभिः प्रतिपादित इतिं मन्तव्यम्‌ परिनिनहस्तग तेन चरणेन अहो भतौ अनुचितोति ( अनुचितनुपुरविरहं सततत परिचितनूपुरसंगमित्य्ंः रुजा परीतं रोगव्याप्तं चरणं तद दीनेन र. गाक्रान्तं मां पीडयितुं नार्हसि ) अद्यास्ति मे विशेषः तत इति

(१) 3.6. प. 4. पटिका. (३) 8. ७. न. 7. [9५७ 00906 09 5[66०0५8, ( ) 8. 6. ¶. १५ च. (१) ४. ४११. वै, ( ) पि. ४०११ अज्ज . (६ ) 2. १५१ शर्णि, ( ) 2०. भगक्डा सप्येण सदेन, ५०१ 8. 6. †. सप्येणद्नि दके, (< ) 8. 0७. पि.

¶, १५५५४

(९ 3

` विद्० देक्खिसं' त्ति आअआरपुप्फग्गंहणकारुणादो पमदवणं गदो (क) देवी दद्धीहदधीं अहं एव्व बह्मणस्स जीविदसंसंभणिमित्तं जादा (ख ) बिव्‌-०-- तरिं असोअत्यवअस्सं कालणादो मए पसारिदे दक्ख णहत्ये कोडरणिग्गदेण कालेणं सप्परूविणीं दद्ोच्चि णं एइं दुवे दंत पदाईं ( इति दंशं शयति ) ( ) परि०- तेन दि दंशच्छेदः पूवैकर्मेति श्रयते ख॒ तावदस्य क्रिय ताम्‌ "` , "^ : | "छदो देशस्य दाहो बा क्षतेवोरक्मोरक्षणम्‌ ` ` ` ` एतानि दष्टमाजणामायुष्यौः प्रतिपत्तयः `...

(1. 5 ~ 9. ^ ` 0... 1 ऋ,

( ) देवी द्रह्यामीत्याचारपुष्पम्रहणकारणात्प्रमदवनं गतोऽस्मि ( ) हाधिक्‌ हा धिक्‌ | अहमेव ब्राह्मणस्य जीवितसंरायनिमित्तं जाता। ८:

( ) तस्मिन्न शोकस्तवकस्य कारणान्मया प्रसारिते दक्षिणहस्ते को. टरनिर्गतेन कालेन सर्परूपिणा दष्टो पमि नन्वेते दवे दन्तुपुदे „^.

# # 4.८.-+~^

यज्ञोपवीतेन बद्धोऽङु्ो यस्य तथोक्तः अत्र॒ कपटकल्पनाया गम्यमा-

नत्वा्लनं नाम सध्यङ्मुक्तं भवात तस्मिन्न शोकस्तबककारणात्प्रसारिते दक्षिणहस्ते कोटरनिरगतेन सर्परूपेण कारेन दष्टो ऽस्मि छेदो दशस्ये-

(9 ) दक्खिदुत्ति. ( २) 8. ७. ¶. 00 ग्गहण,. (३) ‰. ४११ प्रर्तिा- अद्‌ पर्तिअद्‌. (४) &. 00. (५) 2० ससए &९. १. जादा ००4 8. ©. 1. जादा बह्मणस्स. ६) 8. ©. 7. असोअत्थपुप्फकाल. ४१ व्यवअकां , ( ) पष, ००. ( < ) 8. 9. 7. एसारिदो द्क्खिणहत्थो तदो &९. ८९) 2. अग्गहत्ये, 4 . हत्थे, (३) 8. ©. 1. [०४९१९४९ १. स्प्परूवेण किण. (११) 8. ©. पि. 4. णंष्दाणि द्वे दंसणपदाणि ( 8. 6. ००. दस्ण ). ( १२) 8. 6. ¶. तेन... कियताम्‌. (१२) 4, 78848 ४16 १6786 8११ ५16 {911०५1० २४१ ००1४ ५९ 919७9 18८ 10 {6 [०६5 57९५५५५ ४५, (१४) प. मोचनम्‌, ( १५) 2. आयुषः,

10

~ १,

(^०*

संप्रति विषरवदयानां कर्म |

राजा--जयसेने किप्रमानीयंतां भरुवतिद्धिः

प्रती ०- जं देवो आणवेदि ( इति निष्क्रान्ता |) (क) `

विदू °-- अहो पावेण मिच्णा गहीदोच्चि ( )

राजा--मा कातरो भूः अविषो ऽपि कदाचिदंशो भवेत्‌

बिद ०-- कहं भाईस्सं* सिमतिमाअन्ति मे अङ्ाहं ( 'विषवेगं रूपयति ) ( )

देी- "दी ही आहिअं दं मिदं विअरिण हत्य अवलम्भह णं (घ)

( परिजनः" ससंभ्रममवलम्बते )

बिद्०-- राजानं विलोक्य ) भोः भवदो बात्तणादो पिअवअ- स्सो हि तं व्रिभरिअ अपुर्ताए मे जणणीर्‌ जोअक्वेमं वहेहि ( ).

( ) यदेव आज्ञापयति

( ) अहो पापेन मृब्युना गृहीतोऽस्मि | = „4.4 ४५. ( ) कयं भेष्यामि सिमििमायन्ति मेऽङ्गानि

( ) ही दही आधिक्यं दारितं विकारेण हतम अवलम्बध्वमेनम्‌

( ) भोः भवतो बाल्यात्‌ प्रियवयस्यो ऽस्मि ते विचायपुत्राया मे जनन्या योगक्षेमं वह

स्याद धवसिद्धिरिति तस्य भ्रैयस्य नाम अनेन सेतापः सच्यते

( १) 8. 6. पि. 1, 1४(लत) ११६९७, ( ) 2. ००. अपि. (३) 4. 106 ])7648 भाहस्सं ७९ भविष्यामि, (४) 9. ७. प. ¶. ५4 इति (५) 8.७. ¶, हा हा दंसिदं विआरेण अवटंवध णं | ( ¶, बह्म 0 णं ) पपि. हा दंसिदं असहं विआरेण ( दारतमशुमं विकारेण अवलेवध बह्मणे ४११ 2. हीही अमृ दंसिदं ( असुखं दं & ८, ) .. अवलबह ण. (६) }४. ¶, परिानिका & ए. ७. पारिपाध्विका. (५) }3. 6. 1. भो बाठष्यिभवअस्सोह्धि दे (1. तुर) अविेण ( अधिकारेण ) अपृत्ताए जणणीए & ‰, भो बहारेषि &, ( < ) 4. मृष्टा ६५ 120 मृष्दाए मे

( ९०९ )

राज्ञा-- मा भेषीः ' अचिरात्तं षै्श्िकित्सते स्थिरो भव ( प्रवेर्य ) जय ०- देव आणावदो भ्रवसिद्धि विण्णवेदि इह एव्व आणीअ

3 (4 गोदमो त्ति ( ) १.४

> = 1 नि "|

राजा--तेन दि वथूरमतिगृहीतमेनं तत्रभवतः सकाशं प्रापय जय तहा | ( ख)

बिद्‌ ०--( देवीं विलोक्य ) भोदि निवेअंवाणवा जं मए अत्तभवन्तं सेवमाणेण दे अवरद्धं ते मैरिसेहि ( )

देबी-दीहाऊ होहि ( ) निष्क्रान्तो विदूषकः प्रतीहारी )

` शजा- - प्रकतिभीरुस्तपस्वी शरुवसिद्धेरपि यथार्थनाम्नः सिद्धिं न. भन्यते |

( ) देव आन्नापितो भरुविद्धि्वज्ञापयति इहैवानीयतां गौतम इति ( ) तया। ( ) भवति जीवेयं वा नवा | यन्मयावभवन्तं सेवमानेन ते ऽपराद्ध

` तन्मष्यस्व |

( ) दीघायुभव

विषवेगं विषप्रापं रूपयति प्रकाशयति विषवेगास्तु वसन्तराजीये कयिताः- ५" ; = |

) प. ४५ गौतम, ४१५१ ५९] स्थिरोभव 1616 2{॥€]' {६. (२ ) 7१. 4. चिकरिम्सिष्यति ४५१ 13. (७. विकित्सविष्यति. ( ) ‰. ‰. प्रतिहारी ४।| {017014}1, ( ) &, 2. ०४. ( ) प. ४५ सो, (६) 12. वर्षवर प्ररि & पच. ०४). वर्षधर. (५ ) 12० ४११ तं सन्वे, ( < ) ५, निम्कान्तौ.

(८१) 20. 4. धुव. सि्दिं मन्ये, }. श्रवसिभ्डिमपि यथार्थं नामानं सिष्दिमतं

मन्यते,

45२ “` जय०-- जेदु भद्र भुवतिद्धी वरिण्णवेदि उदकुम्भदहाणेण सष्प भृदिअ किंपि कप्पइदव्वं तं अण्णसीञदुत्ति।(क)

देबी--इदं सप्पमुिअं अङ्गुलीअअं पच्छा मम इत्ये देहि णं

(ख) ( इति प्रयच्छति ) ~

राजा---जयसेने* कर्ममिद्धावाडा प्रतिपत्तिमानय ^*^*~+८4 ` प्रती०-- जं देवो आणवेदि ( इति निष्क्रान्ता ) ( ) परि०--यथा मे* हदयमाचष्टे तवा निर्विषो (न राजा भृयदेवम्‌ [४ | | ( प्राविर्य ) जय०-- जेदु भद्रौ णिवुत्तविसवेगो गोदमो मृहुत्ेणौ पकिदित्यो संवृत्तो ( )

=

( ) जयतु भर्ता प्रुविद्धिरविज्ञापयति उदकुम्भविधानेन सर्पं द्रितं किमापे कल्पयितव्यम्‌ 1 तदन्विष्यतामिति ।, (को ६५८.

(- ( ) इदं सर्पमदरितमङुलीयकम्‌ पश्चान्मम हस्ते देद्येतत्‌ ˆ `` ` ¦ ( ) यदेव आज्ञापयति

( ) जयतु भर्तां निवृत्तविषवेगो गौतमो मृहूर्तेन प्रकतिस्य संवृत्तः

' वैवर्ण्य वेपयुर्दाहिः फेनः स्कंदस्य भञ्जनम्‌ दुःखं जाड्यं मृतिश्चेति वि. वेगाः स्युरष्टधा ` यन्मया तत्रभवन्तं सेवमानेन अपराद्धं तन्मृष्यताम्‌

(१) ए. ©. प. 1. 29. किहाणे | सप्यमृदिभं कंपि अण्णेसीद्‌ | . (२) 8. ७. 4. ००. & पष, इति अंगृर्टीयकं ददाति 9०५ ४५१ प्रविहार गृहीत्वा ` प्रस्थिता, (३) पप. ०. (१) 8.6.14. ०. भे. (५) 8.9.14. 7९०४६. ( ) कि, देवो. ( ) 12४. णिदृत्त.. गोचमो मुहत्एण पकिरितव श्व सवुत्ो, 120, 4. णिवुच..^ गोत्तमो प्िदित्यएव्व &८,

( ९०६ )

देगी-दिष्ठिमा वैअणाआदो भृत्तन्चि ( )

श्रती °--एसो खण अमो वाहतओ विण्णवेदि राकज्जं बहु मन्तिदव्वं ता दंसणेण अणुग्गहं इच्छामि ति ( )

देबी--गच्छदु अज्जउत्तो कञ्जसिद्धीए ( )

राज्ा--आतपाक्रान्तोऽयमदेशः शीतक्रिया चास्या रुजः प्रशस्ता

तदन्यत्र नीयतां शयनीर् | देबी--बालेओ अज्जउत्तवञ्जणं अणुचिटह ( ) परिजनः- तर्द ( ) ( इर्ति निष्कान्ता देवी परित्रानिका परिजनश्च )

राजा-- जयसेने गदेन पथा मां प्रमदवने परापयं

प्रती०--इदो इदो देवो (छ)

राजा--जयसेने समापतकत्यो ननु गौतमः

( ) दिष्टबा वचनीयान्मुक्तासिमि

( ) एष पुनरमात्यो वाहतको विज्ञापयति राजकार्यं॑बहु मन्व ` यितव्यम्‌ दर्शनेनानुग्रहमिच्छामीति

( ) गच्छत्वार्पु्रः काय॑सिद्धये | ~ ^~. < 9:

( ) बलिका आरयपुत्रवचनमनुतिष्ठत

(च ) तया।

(छ ) इत इतो देवः।

इति दरितमङाभे विकारेण अवलम्बध्व ब्राह्मणम्‌ विवृत्तविषवेगो

(१) पि, ००. (२) 8. ७.2१. 7, ००.८३) 38. ७. ०, च, ८४) प्रि. ©. शयनम्‌ ( ) 8. 9. ¶. पालिआा, 28. बाटिआओं ४०व 4 , बालिशा. ) अज्जउन्तस्स सदेसं, () ४११ पए्ररिजनस्तथा प्रकान्तः ). {< ) पि. ०, इति. (९ ) २०. गुदपथेन, #. 8, ७. ¶, 20 ०, सां. ( १० ) 8, ७. ¶. “काम्यो. & 2. करणीयो.

4

धती ०--अह (क) राजा

"> रनज >^

9 १).

इशरधिगमनिमित्तं परयोगमेकास्तसःध्यमपि मत्वा

संधिग्धमे सिद्धौ कातरमाशङ्ते चेतः ५॥ ( प्रविस्य ) विदू ०-- बहदु भवं सिद्धाईं दे मङ्ल्कग्नाई* ( } राजा--जयसेने त्वमपि नियोगमशन्यं कुर ती०-- जं देवो आणवेदि ( इति निष्क्रान्ता ) ( ) राजा-- वयस्थ क्षद्रा माधविका खल्‌ किंविद्विचारितमनया विदू - देवीए अङुटीभअमुदं देक्लिभ कदं विआरीअदि (घ)

०४५१ शजा--न खल मुद्रामधिकत्य ब्रवीमि। एतयोर्रद्धयोःकिं निमित्तो यं

| , मोक्षः वि देव्याः परिजनमतिक्रम्य भवान्संदिष्ट इत्येवमनया ११

बिदू °-- णं पुच्छिदो पुणो मन्दस्सवि भे तरस्सि पचुष्पण्णा

मदी | (च)

, (क) अव किम्‌ |

) | < ,( ) वर्धतां भवान्‌ | सिद्धानि ते मङ्लकार्याणि

( ) यदेव आज्ञापयति ( ) देव्या अङ्गुलीयकमुद्रं इष्टा कयं विचारयति ।, ,

पी कलि 0 ( ) ननु पृष्टोऽस्मि पुनर्मन्दस्यापिं मे तस्मन्परयुत्पन्ञा मतिः |<

गौतमो मृहूर्तमत्रेण परकतिस्यः संवृत्तः इष्टाधिगमेत्यादि ( इष्स्या

(र. ८०.)

( ) व. हदयम्‌. ( २) ९, &, नेद्‌ & 8. ७* 4. १७५५४ ( ३) 8, ©. 1. -कम्माह; ( मम कज्जाहं ). (४) 8. 09. त. 7. गौतम. (५) 8, 9७. ति. 1, मुदि. (६) 8. 9. ॥. त्वोदयोः & प. एतयोरयोः ( ) 08. ७, प. 1. ००. अयं, (<) 8. ©. न. 1. कवा. (९) 8. ७. 1, मेदस्सवि पूणो मे तह पच्चुप्यणं जतं आति, २. पच्चुप्यण्णुद्धिणा कहिदं, ^. पच्चुत्तरपभ्वुप्यण्णवुद्धिणा मर काहिं,

. तर $ कायौसेद्धिपथः सृदमः स्नेहेन पकः ते॥ ६॥ ८. _ - ८4

“` ऋका "छः `

( ९०५ )

िद्‌०- भणिदांः मए देव्वचिन्तए विण्णाविदो राभा सोवसगणे

बो णक्लत्तं सव्वबन्धणमोक्खो करीअद्‌ त्ति ( ) राजा-ततस्ततः,

बरिदू०-- तं सुणिअ देवीए इरावदीवित्तं रक्खन्तीए्‌ राआ किल मो. एदित्ति अहं संदिष्टो त्ति तदो जुज्जइदि तति ताए संपादिदो अत्थो (ख)

राजा- ( विदू षकं परिष्वञ्य ) सखे प्रियो ऽहं तव राजा (व्द् सले पियो दं (तन्‌

॥,; (८ (व. 4 +

नाहि बद्धिगुणेनेव सुहदाम्ेद शनम्‌

4.27)

( ) भणिता मया दैवचिन्तकैर्विज्ञापितो राजा सोपसर्गं बो नक्ष: .

रम्‌ सर्वबन्धनमेोक्षः क्रियतामिति |, |, „1

०५“ ५4९. ९~#

८, {८1

ˆ ) तच्छत्वा देव्येरावर्तीवित्ते रक्षन्त्या राजा किरु मोचयतीत्यह `“

५५१. ५,

संदिष्ट इति ततो > इति तया संपदितोऽः।

धिगने प्राप्तौ निमित्तं कारण एकान्तसाध्यं निःपन्देदेन संभवदुत्पा्तिकसा ध्यभेव रूपमाप प्रयुज्यत इति प्रयोग उपायस्तं सिद्धये साध्यनिष्पादनाय

सेदिग्धमेव कार्यं स्यान्नवेति कृतसंदेदं मत्वा चेतः कातरं यथा तथां आश

ङ्ते पृनर्भन्दस्य मे तस्मन्प्रवयुतन्ञा मतिः ( पुनम॑न्देनापि प्रत्युत्पन्न

द्विना मया कवितम्‌ उपसर्गेण ज्योतिषेक्तक्ररम्रहवेधमृचितः बोपद्रबेण

सहितनि्र्थः। )। नहि बद्धीस्यादि ( मुदां बुदिगणेनैव अर्यददनं किन्तु स्नेहेनैव पृष््मः हद्रादनुद्धावनीयः कायंतिद्धिपयः अभीटिसिद्ध

(१) 4. 2. ०४ ५06 8५९९८} कणत 1€व्व्‌ ४6 9116

19 ९०१४०९०५ 100 116 १७०१५ 8066 विद्षकः*

(२) ¶. मणिदं ५५ ^. 2. ०0. भणिदा मए. ३) 8. 0. .\. 2.

0०५ ५७ 8[06७८}1 ४116 २९५५ ५।५ (०॥०५५1०द ४[५५०५।\ ०{ बिदृषकं 1) ७०।५४५५५।७५५ भाप ५४८ ५०५४०, ( ) <, पलक््यते,

११

2

१४६.

( ९०६ )

बिदू०-- तुवरदु भवं समुदघरए ससा" मालिं ठाविअ भवन्तं पचुग्गदोद्ि ( कं )

राजा--अहमेनां सेभावयामि गच्छाग्रतः

विदू ०--एवु भवं ( परिक्रम्य ) इदं समुदघरभं ( )

राजा--( साशदधुम्‌ ) वयस्य एषा कुसुमावचयव्यग्रहस्ता सख्यास्त हरावत्यौः परिचारिका चन्द्रिका वैमागच्छति इतस्तावदावां भित्तिगदी भवावः।

बिद्‌ ०- कैम्भीकएाि कामणं पडिदर्णीआ खु चन्दिआ ।(ग) ( उभौ यथोक्तं कृरुतः )

, रजा गौतम कयं नुते सखी मां प्रतिपाख्यति एहि एनां गवाक्षमाश्रेत्य विरोकयामि

बिदू ०-- तह ( ) | ( उर्भ विलोकयन्ती स्थितौ ' ) ( ततः प्रविश मालविका बकुलावंकिका )

( ) त्वरतां भवान्‌ समृदरगृहे ससखीं माविकां स्यापयित्वा भव न्त प्रत्युद्रतो.ःस्मि। 9

( ) एतु भवान्‌ इदं समृद्रगृहम्‌ (ग) कुम्भीकः कामुरकैश्च परिहरणीया खल्‌ चन्द्रिकां ( ) तया।

कपाय उपलभ्यते उद्भाव्यते इत्यर्यः ) सखी सहितां अहो इत्यामन्त्रणे

( ) 2. ७. पि. ¶. सहीसदिदं, (२) 1}. 0. 1. बेहक. (३२) प. ०0. इरावत्याः. (9) 8. ७. पि 7. संनिरुष्मागच्छति, ( ) 8.6. परि. 7. ४५ अहो, (६) ^. ०0. (*) 8.09. 7. यथास्मि. ( ) 4. ०0. ( ) 2१, विषटतः. ७६

( ९०७ ) ब्रु०-- सदि पणम भ्रं जो पस्सदो पिष्दो देक्खीअदि (क) सैजा- मन्ये प्रतिकर्ति मे दशयति >~... माङ०--( संध ) णमो देˆ ( द्वारमवलोक्य सविषादं ) ह्र विष्पलम्भेसिं ( )

राजा- संवे दर्षविषादाम्यामत्रभवत्याः प्रीतोऽस्मि

सृ्योदये मवति या सूयोस्तमये पुण्डरीकस्य

बदनेन सुबदनायास्ते समवस्थे क्षणादृढे ७॥ ~=. बङ्कु°--णं एसो चित्तगदो भन्न (ग) | इभे--( प्रणिपत्य ) जेदु भद्र (घ)

|

( कं ) सि प्रणम मर्तार्‌ ।.यो पाश्वतः पृष्ठतः दृयते | “^^ (ख ) नमस्ते सवि मां विप्रलम्भयसि ( ) नन्वेष चित्रगतो भता

( ) जयतु भतौ

` श्योदय इत्यादि ( ¶डरीकस्य दमस्य सूयी मे यावस्था विकाशरूपा

सर्यीस्तमये या संकोचरूपावस्या भवात ते विकाशसंकोचानमिके दव समवस्ये सुवदनाया मालविकाया वदनेन क्षणादूटे धुते )। सखि तदा

(१) ए. ©. ४6 86७०४७५९ ; 1. ७. गृ, 169 1४ 2197 णमो दे 219) छ1{}) माटविका8 866८). (२ ) "8. ७. पष, ¶, 010, 804 169 &{9 "गमो दे | राना-शङ मे प्रतिति निर्दिशति

(३) 8. 6. प. 7. ग. (४) ए. ©. ¶, ४११ जोपस्सदो ( 1,

४4 पिष्दो ) केक्वीअदि; 3. ७. ६. 1, मालविका--८ सहपै द्रारमवलोक्यं ) & ( ) 2 1049०9००, ( ) ए, ©. पि, 1१ भर

( ६०८ ))

माछ०-- हला सदा ससभमं उक्रठिआ अहं भ्िणो सूवदसभेण तह वितिण्हल्मि जह अज्ज विभाविदो चित्तगददंसणो भद्र (क )

बिद ०-- मुदं भवदा अत्तहोदी चित्ते जह दिद्रो भवं तह अदिदधो तति मन्तेदि मुधा दाणि मञ्चुसा वरअ रअणमभण्डं जोव्वणगव्वं वहेति (ख) + राजा--सखे कुतृहल्वानपि निसगशत्शैनः खीजनः पद्य

कारस्नेन निवेणेयितुं रूप १.०५ ५०५५५. मिच्छन्ति तत्परवेस॒मागतानाम्‌ ५.१. \. ९५. „51... ( ) सखि तदा समंभ्रममुत्कंठिता अहं भर्तृरूपदर्शनेन तथा नं , © वितुप्णस्मि ययाद्य, विभावितश्रित्रगतद डोनो भती

( ) श्रतं भवता अत्रभवती चित्रे यया दषो भवांस्तथाष्ट इति मन्त्रयते मघेदानीं मनुषेव रत्नभण्डं यौवनगर्वं वहसि

संभरमदृष्टे भर्तरूपे यया वितुष्णास्मि तयायापि मया भावितो धवितुष्ण दशनो भता ( सखि ससंश्रमदष्टे भर्त॑रूपे यया सतुष्णास्मि तया अद्यापि मया विभावितो वितुष्णद हनो भता ) तत्रभवती चित्रे यया दृष्टस्त

वा दष्टो भवानिति मन्त्रयते ( तत्रभवती चित्रे यथा ४० भवान्‌ इति मन्त्रयते ) कात्स्नथेनेत्यादि ( प्रियेषु

(१). 6. 7. तर्हिसंममेषटिदा भदट्िणो रूवस्स तह पितिण्डद्धि जह अज्ज भाविदौ अवितिण्हदंसणो महा. 1" हटा तदा समृहटटिदा भद्िणो रूवस्स तह वितिण्दह्ि नह अज्ज विभाविदौ वचित्तगददंसणो भटा २० इहा तदा संमृदशेदा अहं मद्ेणो ङ्वदैसणेण तह वितिण्डद्वि जह अज्ज विमाविदो चित्तगदो एव्व भटा | }६. हला तदा सेभमदि भदविणो सुवै नह ॒वितिण्दम्दि तह अज्जवि भावरिदो अवितिण्हदंसणो भदा. (२ ) . सुदं भवदा अत्तहोदीए दि जह वितेण

तह दिन्नो भवं ति मन्तिदं 13. ©. {. सुदं भवदा किं अन्तहोदी तुए जह दिध तह विशे भवं &५, }६. सुदं भवदा तत्तहोदी विपे जह दिने तह दिने मवं वि मन्ते

(*९ 3 च॑ प्रियेष्वायतखोचनानां समम्रपंतानि बेखोचनानि ८॥ भारभ हला का एसा इसिप्पर्डित्तवअणां भद्िणा सिणिद्धाए दिः णिज्ज्ाईंआरे ( ) | बकु०--णं इअं प्स्सगदा इरावदी ( ) भाङ०- सहि अदक्खिणो विअ भ्र मे" पडिभा्े। जो सव्व देवीजणं उन्जिअ एक्काएु मुहे बद्धल्क्खो ( )

क्कु ०--( आत्मगतम्‌ ) चित्तगदं भट्रारं परमत्यदो गेण्हि्ं अ- भणादि होदु करिस्सं दाव एदाए ( प्रकाशम्‌ ) हर भद्िणो बह्छहा एसा ( )

माङ०-- तदो कि दाणि अत्ताणं आआसे (सासूयं परावर्तते ।) (५)

( ) सखि कैषा ईषत्परिवृत्तवदना भ्रा जिग्धया इष्टया निध्यायते

( ) नन्वियं पाश्रगतेरावती

(ग ) सखि अदक्षिण इव भर्ता मे प्रतिभाति यः सर्वं देवीजनमु- न्किवैकस्या मुखे बद्धलक््यः |

) चित्रगतं भर्तारं परमायैतो गृदीतवामूयति भवतु क्रीडि- (५. ष्यामि तावदेतया सखि भर्तुवहटभेषा

( ) ततः किमिदानीमत्मानमायासयिष्यामि

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आयतलोचनानां व्यापारितनेत्राणां स्त्रीणामिति दोषः विल्येचनाने ततपूवं

(१). नतु; 8. ©. ननु. (२) 8. ©. `वर्तीनि; पष. 1. वृत्तीनि, (८ ) परासपरिवसिदवदणेण, (४) 38. ७. 1. 19४6८१०९, ०५ >. ७०. महर, (५) 12, प्रमत्थ, (६) 3. © नि. 1. संकप्िअ, (७) फ, ^, ०, ( < ) 8, च, ©, 7, आञात्तिअ,

( ९० )

राजा-- सखे पश्य भर भङुभिन्नतिककं स्फुरिताधरोषट , सासूयमाननामतः पारेव्तंयन्त्या | , कान्तापराधकुपितेष्वनयः बिनेतुः संर्दाशतेब रुडिताभिनयस्य रिक्ञा तरिद्‌ ०--अण॒णअसञ्जो दाणि होदि ( ) ` माङ०--अञ्जगोदमो एत्य एव्व तेवदि णं ( पुनः स्वानान्तराभि मुखी भवितुमिच्छति ) ( ) बकु०--( मालविकां रुद्रा ।) खु कुविद दाणि तुमं (ग)

माङ०-- जई चिरं कुविदं एव्वं मं ` मण्णेति एसो पञ्चाणीअदि कोवो ( घ)

( ) अनुनयसज्न इदानीं भव “^> ५. ५४८०८ ( ) आर्यगीतमेोश्रैव सेवते ननु `: :; + (ग) खल्‌ कुपितेदार्मौ त्वम्‌ ^ ( ) यदि चिरं कुपितामेव मां मन्यसे एष पानीये कोपः

समागमानां एव पूः तैः नेत्रः पूर्वः ) समागमो येषां कतप्रयमदर्श नानां प्रियाणामित्ययंः रूपं लावण्यं कार्त्स्येन समग्रवत्या निर्वर्णपितु द्रष्टुमिच्छन्ति सेत्सुकानि $ ५८.५७) संपूर्णव्यापारवन्ति भवन्ती- ति शेषः इष्टविषयद शने ओत्सुक्ये सत्यपि समग्रतया स्रियो पडय- न्ति लज्जाशीलत्वादिति भावः ) पार्र॑परिवृत्तवदना चित्रगतं भर्तारं परमार्यतः संकल्प्यामृयति श्रूभङ्केत्यादि ( विनेतुः शिक्षकस्य इति कर्तरिषश्ठी | कान्तापराधकुषितेषु कान्तस्य योऽपराधः अन्यच्ीसेगमादिकता

( 9 ) ए. ©. विषयेप्यनया. (२). 9. 1. ¶्च्छ; | फ. स्वये पसेवरि. ( . | > + (11.

( ९९९) शंना--(उपेच ) `

कुबर्यनयने 4 त्रार्पित्त ४४०१ वि कुप्यसि कुबख्येनयने चित्रापिततवेष्टया किमेव मयं ।. ।... नन तव साक्षादयमहमनन्यसाधारणो दासः १०

२-%*५ 0 1, 9) (., (न वछु०-- जेदु भद्रक) | मा०--( आत्मगतम्‌ ) कहं चित्तगदो भ्र मए अमसूइदो

( त्रीडवदनमञ्चलि करोति ।) (ख) ( राजा मदनकातयं रूपयति |) जिदू०--किं भवं उदासीनो विअ | (ग) शाजा--अविश्वसनीयत्वात्सख्यास्तव बिद्‌ °-- अत्तदोदीए अअ तुह अविस्सासो ( )

राजा--श्रूयताम्‌ |

( ) जयतु भता

( ) कयं चित्रगतो भता मयासूपितः ( ) किँ भवानुदासीन इव

(घ) अतभवत्यामयं तवाविश्वासः ?

+ ५५८.‰. "धन स्7 "

पराधस्तत्र कुपितेषु नपुंसके भव्रे क्तः लक्िताभिनयस्य मनोहरस्य ` कोपव्यंनकचेष्टारोषस्य कर्मणि षष्ठी शिक्षा उपदेशो ऽनया मालविक- या॒सदरशितेव तत्र हेतुगर्भविशेषणं पूरवर्धं ) ॥/ कुप्यसीत्वादि ( वित्रार्पितचेष्टया किं कस्मात्‌ कुप्यसि मह्यमिति शोषः ननु अहं साक्षा- दनन्यसाधारण एकभक्तिकः इत्यर्थः तव॒दासः ) भवत्यामयं तवापरि-

८१ ) ए. ७. 4. कथय किमिदं मे & ५. किमेतत्भे 9 किमेव मयि, 2. 4 . किमेव मयि. (८२) ष, ( इति सप्रणयवदनं &९, ); 8. (, 11, प्रकाशं | सत्रीडवदनं. ) 2. ^. निरूपयति, ( ) 3, ©. 1. कहं 9 अञं तुह; 2. 4. मा दाव अच्वहोदीअं तृह्‌ & ८,

( ५५२ )

पथि नयनयोः स्थित्वा स्थितां तिरोभवति क्षणां+

त्सरति सहस्रा बाहरोभ॑ ध्यं गतापि ससी तब

मनसिजचजा हिष्टस्येवं समागममायया ~^ मिब सखे विश्रब्धं स्यादिमां प्रति मे मनः १२

धकु०--सदि बहुसो किल भद्रा विप्पलद्धो दाणि दीव अत्ता वि- स्ससणिज्जो करीअदु ( ) मार०--सहि मह उण मन्दभग्गाए्‌ सिविणसमाअमो भद्टिणो दुहो आसि ( ) कु०- भद्र देहि से उत्तरं (ग ) राजा- - 4२ | उत्तरेण किमात्सैव पत्रवाणाध्रिसाक्षिकम्‌ | ˆ ` `“ ^ तवर सख्ये मेथा दत्तो सेव्यः सेविता रह{॥ १२॥

( ) सलि बहुशः किल भताँ विप्रलब्धः इदानीं तावदात्मां वि- श्वसनीयः क्रियताम्‌ ( ) सखि मम ॒पुनर्मन्दभाग्यायाः . स्वप्रसमागमोपि भरतुर्दुलभ आसीत्‌ | {+ ६९ = ( ) भत देद्यस्या उत्तरम्‌

श्वासः अस्मिन्वाक्ये काकुरनुतंघेया पथि नयनयोरित्याहि उः क्तरूपेण बहशप्रतारणेन अविश्चासकारणाचरणादिमां मालविकां प्रति मे मनः कयं विश्रन्धं विश्वस्तं स्यादपि तु कयमपि प्रतारिकायाः प्रतारणा वश्यं भावेन तत्रविश्चासस्थैव युक्तत्वादिति भावः। इउत्तरेणेस्यादि

(१) 4, स्क, (३) 2. 4. 8.6. अबला सती. (३) 9. 3. 1. कथमपि. ( ४) पप. विक, (५) 9. ©. ध. क्र णि दाणि शव; दव एत्य &९.; 4 . गवअव्यं &<.; ( ) 3.6. ४५५ वू. ( * ) पि, करैर,

^

>

( ६५३ )

कु०--अणगदीदद्ि (क ) जिद्‌०-- ( परिक्रम्य संभ्रमम्‌ ) बउलावक्ए एसो बालसोभः

हक्लस्स पञ्छवाईं रभि हरिणो दि णिवारेम णं ( )

, बककु०-- तद ( इतिं प्रस्विता ) (ग) राज्ञा--वयस्थं एवमेवास्मिनरक्षणे हितेन त्वया भवितव्यम्‌ | ‡* ` “^ विदू ° - एवं वि गोदो संदि स्सीअदि' ( ) बदु ०--अस्ज गोदम अहं अप्पओआते चिद्धामि तुमं॑दुवाररक्खंभो

होदि (च ) विदू ज॒ज्नद। (छ)

( ) अनुगृहीताः स्मः | ) वकुलावाछिके एष वाखशोकवृक्षस्य पछ्छवानि लङ्यति हरिः ^.“}

+ णः | एहि निवारयाम एनम्‌

(ग) तथा|

( ) एवमपि गौतमः संदि स्यते | १. % >. १८५५५ ९५५१७५५ =? ( ) आर्यं गौतम अहमप्रकाशे तिष्ठमि ववं द्वाररंक्षको भव

( ) युज्यते

[ उत्तरेण कि उत्तरसाध्यं नास्ति पचबाण एवाभिस्तापकत्वात्‌ साक्षी

यत्र तद्या तया अनेनाभिसाक्षिकतेन दुरभदयत। दशिता मया इदानीं

(१) परि. ०. (३) 8. ©. ¶. असोअपहवाह. ३) 2. 4. दषिदं आअच्छदि; 8. ©. ¶. अदि ठंषिदं हच्छेदि. (४) १. 00.; 0 4. ता हि. ( †,भण।४ (8 ४०१ ५16 ४० जामग्णण्् 80९९५168, ( ) 4. २. ०. ( ) 8. ©. प. 1. एवमम्मद्रक्षणन्षणे &०. 8. (* १]. एवमेवास्मिनक्षणीयेऽबलेनितेन &८, ( < ) >. एदं वि. (९) ‰?. 4 . १५ णे (नन्‌ ). ( १. ).8. 8. ¶. णिदिसीअदि. ८११) पे, ४0 परिक्रम्य, १३) दृवारक्खी.

9५

(१६ )

( निष्क्रान्ता बकुलावलिका ) बिद्‌ ०- इमं दाव फङिहत्यलं' अस्सिदो' होमि ( इति तथा क- त्वा ) अहो सुहष्कारिदा सिलावितेसस्स ( इति निद्रायते ) ( क+) ( मालतिका ससाध्वसं' तिष्ठति ) राजा- बिसुज सुन्दारे संगमसाध्वसं, तञ चेरात्परभूति प्रणयोन्मुखे ५५८. परिगृहाण गते सहकारतां ०५५; {.. स्वमतिमुक्तरता चरितं, मायि १३ माङ०- देवीर भएण अत्तणो वि" पिअं कादं पारोमि ( ) राजा--अयिं भेतव्यम्‌ ।* माक०--( सेोपालम्भम्‌ ) जो भाएदि सो मए भद्विणीदंसणे दिषसमवत्यो भद्र (ग)

( ) इमं॑तावत्स्फदिकस्यलमाश्नितो भवामि अहो सुखस्परशता शित्मविशेषस्य |

,-५.. ,.८ ( ) देव्या भयेनात्मनो.धपि प्रियं कतुं पारयामि #‰) (+ (ग) योन बिभेति मया भ्ठिनीदशने दष्टसमवस्यो भती

आत्मा तव सख्यै दत्तः रहसि निर्जने ऽस्याः सेविता सेवकं एव भक्ष्या. मिन तु सेव्य इत्यथः ] बिसूजत्यादि [ विरात्ममुति बह काल्मवाधि तव प्रणयोन्मृखे प्रणयसमुत्सुके सहकारितां सहचारतामाम्रवक्षवन्न गते मपि त्वमतिमुक्तल्ताचर्तिं माधवीलतासादश्यं बन्धनाशेषेणेति शेषः परिगु-

(१) 1. ७. ¶. व्वन्भे, } क्लम्भम्‌ (२) 8. 0७. 1. संतिगै. (३ ) प. ससाध्वसा, 4. साध्वसं. ( ) 1. 4. नन्‌. ( ^) 3. ©. ॥. दैवी भअदो. ` ( ) 2४ ००. अवि. ( * ) 8. 9. ¶4. ०. ( < ) 4. ?2. १९९०४. (१) 2. 4.०0. (१०) पि. 1. -तमत्थो ( शतामर्ष्यो), 28. 9. समाकथो; ‰. दिशे समवत्यो

3

| ( ९९५ )

~ # [8 गोट स्वकानां . + 3 दाक्षण्य नाम बम्ब बैम्बिकानां कुखत्रतम्‌ +“ ^ 1 तन्मे दीघोल्षि ये प्राणास्ते त्वदाशानिबन्धनाः १४॥ *4 ``

तदनुगृह्यतां चिरानुरक्तोऽ यं जनः ( इति संशेषमुपजनयति ) ( मालविका नाटेनं परिहरति )

राजा-( आत्मगतम्‌ ) रमणीयः खल़्॒नवाङ्नानां मदनविषय व्यापारः तया हि + 4

हस्तं कम्पवती रुणद्धि रशनाव्यापारलोखङ्गु <<. + | स्वो हस्तो नयति स्तनावरणतामािडग्यमाना बरात्‌। ~. | पाठु पदमलनेत्मुन्नमयतः साचीकरोत्याननं ^. «4

५५4 \..व्याजेनाप्वभिलषप्रणसुखे निबेतेयत्येवे मे १५॥ - ~+: ^^ ^“ “4... ( ततः प्रविशतीरावती निपुणिका ) ˆ“ इरा०--दञ्चे गिडणिए सच्चे तुमं परिगदत्या चन्दि भए्‌ समुद घर अलिन्दए सदो भाई अन्जगादमे दिषो ्ति। (क) कक - 0: ^ ( ) हञ्जे निपुणिके सत्यं त्वं परिगतार्था चन्द्रिकया ९। समुद्रगृहा- डिन्दे शपित एकाकयार्यगौतमे इष्ट इति " “^^ ~°" ५०५. ^ ५८4

` हाण दाल्लिण्यमित्यादे [ दे निबोष्टि नाम संभावनायां प्रकाश्ये वा दाक्षिण्यं सर्वदयितास्वानुकूल्यं नायकानां कुलत्रतमवरयपालन)धो नियमः यद्यपीति शेषः तत्‌ तयापि ये मे प्राणास्ते वदाशानिवन्धनास्तवा- काला परवशा इत्ययः | वैबिकास्तदरेश्या राजानः हस्तमित्पादि

` (१) 8. ©. ¶. नायकानाम्‌ . (२) ˆअनुरकहृदयो &८. ( ) 2, -4.

अभिनयति; (उपनयति); (४) पि. ०, ( ) 8. ७. पि, 1, ^ , “अवतारः

( & ) 8. &. अ. 4. कम्पयते. (५ ) 2. ©. ¶. "अगुः ; पवि. अगृरटी. (<) 2. 1णप्लजाभ्ण्ू (९) 2. 4. चक्षुः, (१०९) 7, 4. पह चंदिआए संदि समुद &, ( ११ ) }१. अलिदसहदो) 8, ©, 1 कालि षदो, (१२) ॥, ©, ^. ०४, (माह,

( ९९६ )

निपु०--अण्णह कहं भष्रिणीए्‌ विण्णावोमि' ( )}

इरा०- तेण हि तदं एव्व गच्छामो संसओआदो मत्त अज्जउत्त पिअवअस्सं पुच्छिदुं (ख) ,

निपु०--सावसेसं विअ भद्िणीए्‌ वणं | (ग) ~ # / 9 इरा ०--अण्णं अं वित्तगदं अज्जउत्त पसदेदुं (घ) निषु०--अह कहं दाणि भ्रौ एव्व प्पसीदीदि ( ) +

इरा०-- मदधे जारिसो वित्तगदो भं तारिसो एव्व अण्णसंकन्ता

अओ अज्जउत्तो केवलं उअआरादि क्रमं पमन्निदुं अंअं आरम्भो (छ)

( ) अन्यथा कयं भट्टिन्यै विज्ञापयामि

( ) तेन हि तत्रैव गच्छामः संशयान्मक्तं आरपुत्रस्य प्रियवयस्यं

„* "क्छ

ष्टं | ५५० 6५१. .४५द, =

( ) सुवोषमिव महिनया कचनम्‌ <^

(ष ) अन्यच्च चित्रगतमार्यपुत् प्रसादयितुम्‌ | ¢ ( ) अय कयमिदानीभरतँव प्रसायते ' “~ (८५५५५

( ) मुग्धे यादशश्वित्रगतो ननु तादश ॒एवान्यसंकरान्तहदय आर्य पुत्रः केवलमुपचारातिक्रमं प्रमाजितुमयमारम्भः॥ ५४,

(44 ~~ [1 22: १.१

[ रशनाव्यापार्ेला गु रशनायां व्यापारे तदूग्नन्यिमोचनरूपचेष्टाां

“-( ) 2० किं अण्णहा, 4. कि अली; (२). 89.17. किण्णाषीअदि, ^ . विण्णधिदं. ( ) 2० 4. णिमृं. ( ) 8 ©. प. 4. ०. ( ) 2. 4. ६५1७ 1४8. ( ) 20 भटर, ( = ) ‰, ०४. भहा, 3. ७. ¶. णु भटा एव अगु" & ( < ) ए. 9. 4. अणुणीभदि) २. ^, किण ( ^, ०४) ) प्णुणीअंदि, ( ) 9. 9, 1, 4. ‰, 9८४, ( १० ) 2, &^ जद्लाण

= ~ (1 =

(. ६५७.)

निथ॒०--इदो ददो भ्धिणी (क )

( उभे परिक्रामतः )

` ( भरविह्य )

चेटी- जेदु मद्िणी | देवी भणादि णै मे एसो मच्छरस्स काश तुह वैखु बहुमाणं ददु वअस्सिआए सह णिअलबन्धणे किंदा माखवि जइ अणमण्णेमि अज्जउत्त वि त॒हकिंदे विण्णावहस्सं जं तुह इच्छिदं तं मे भणादि त्ति (ख)

इरा०--णाअरिए विण्णवेहि देवि" का वअं मर्रिण णिओजेदुं परिअण्णिंभलणेण द॑सिदो मइ अणग्गहो कस्स वा अण्णस्पं पसदेण अअं जणो वडदि त्ति (ग )

चेटि-- तह ( हति निष्क्रान्ता ) ( )

( ) इत इतो भष्टिनी | ॥..

( ) जयतु भिनी | देवी भणति एषः मत्सरस्य कालः तव खलु बहुमानं वर्धयितुं वयस्यया सह निगडबन्धने कृता मारिका यद्य नुमन्यस आरयपत्रमपि, त्व कते विज्ञापयिष्यामि यत्तवेष्टं तन्मे भणेति ^~.

) नागरिके विज्ञापय देवीम्‌ का वर्यं भट्टिनी नियोजयितुम्‌ | परिज- \. ` ननिगडनेन दर्दितो मय्यनुग्रहः कस्य वान्यस्य प्रदे नायं जनौ वधेत दते। `

( घ) तथा।

समुत्सुकतेन व्यग्रागलीर्यस्य तं हस्तं रुणद्धि रों गृह्णाति बलाद्धठेनाछि-

(१ ) 2, 4. ०7. 006 इदो. ( ) ‰. ^ . इति. (३) 8. ©. 4. णमे एसो मस्सरस्स कालो तव बहमाणं वहेद्‌ &; प. मस्सरस्स एसो &८, (४) `. तेण, (५ ) ए, ७. ¶, 4. 720, ०0. ( £ ) 2, 2० भज्जउत्तस्स पिअं कादं तह करेमि. * ) 8, ७, 1. ००1६ 86४४९९९, (<) 2. जपे ने. ( ) 2०. 4. मर्ण, (५ <) ?. 4. णिग्गहेण, (११) 2. ७. १. ५४, ( ३२ ) 2५, &, ४44 भणादि

7

(८)

निपु° --( परिक्रम्यावलोक्य | ) भरणि एसो द्वारदे से' समदधर अरस विपणिगदो विअ बलीवदो' अज्जगेोदमो आसीणो एव्व गिदाआरि `. ८.) इरा ०--अच्चाहिदं * क्खु सावसेतषविसविआरो भवे" ( ) निपु०- -पसण्णमृहवण्णोः दीसइ अवि धुवसिद्धिणा विइच्छि दो। ता से असङ्णिज्जं पाव ( ) विदू ०--( उत्सवप्नायते ) भोदि माखविए्‌ ( ) पु०-- सुदं भट्िणीए कस्स एसो अत्तणिओअसंपादणे विस्स साणिज्जो हदासो सव्वकालं इदो एव्व सेोत्थिवाअणमोदणएाहं कुच्छि पुरि संपदं मालवं सिबिणविदि ( ) 1 =

(क ) भध्रिने एष द्वारदेशे समद्रगहस्य विपरणिगत इव बलीवर्द आर्य गौतम आपीन एव निद्रायते ५१.५.९८,८ ८८८०4

( ) अत्याहितम्‌ ने सावजोषविषविकारो भवेत्‌

( ) प्रसन्नम्‌ खव्णौ इश्यते अपिच धरवसिद्धिना चिकिसितः। तदस्याशङ्नीयं पापम्‌ | ^ =^ = + >>

( ) भवति माचपरिके ५.१

( ) श्रुतं भद्िन्या कस्यैष आत्मनियोगसंपादने विश्वसनीयो हताशः सवैकालमित एव स्वस्तिवाचनमोदकैः कुलि पूरयित्वा सप्रतं माल्विकां स्वभायते ` ˆ

ग्यमाना स्वी हस्तौ स्तनावरणतां स्तनावरकलत्वं नयति पक्ष्मखनेत्रमाननं

( ) 2. ७. 4. दवारे, ‰* ?. दृषारोच्छले , 2१, द्वार्देते, ( ) 8. (३. 1. ^. वंसो; ४१५ ^. ?. ४१५ विस्सद्धो. (३) 23.09.17. कि णु ख॒ अचाहिदं | सावसेषो विअ विस & ०, (४) १, साषसेसो &८. (५ ) विसो & 12० विसवेओ. ) ^. ?. परसण्णमृहो. ( « ) 7?) अत्तेणीणो ह्दासो सन्वकालं &८. ^, अत्तणीणो अन्मषहारसेवादपिक्वी. ^ ५१५8 कितवो ) इासो ओदरिओ हदो. 2० ससक्रारं ) ( सन्वकालं ) &५. 13. (७. अत्तणीणो. ( 1. १११ एस कितवो ) अन्भवहारि ( 98. ©. ४५वं दावे ) किदन्धो ( 9. 6, ४५५ सक्रामो ) इदो &५,

(९ )

जिद ° इरावदिं अदिक्रमन्दी होहि ( )

निषु °-- सुदं' अच्वाहिदं इम मुअङ्भीरुअं बेह्मबन्धुं इमिणा भुअङ्कुडिङेण रद॑ण्डकदरेण तम्भन्दरिदा भाअईस्सं ( )

इरा०-अरुहदि एव्वं किदग्धो उवदवस्स ( ) ( निपुणिका विदूषकस्योपरि दण्डकाष्ठं पातयति )

बिद ०-- सहसा प्रबुद्ध ) अविहा अविहा भो दव्वीकरो मे उवरि पडिदो ( )

राजा--( सहसोपसुत्य ) सरे भेतव्यं भेतव्यम्‌

9

( ) इरावतीमतिक्रामन्ती भव

( ) श्रुतमत्याहितम्‌ इमं भुजंगभीरुकं बह्मबन्धुमनेन भुजंगकु टिकेन दण्डकष्टेन स्तम्भान्तरिता भीषयिष्यामि | ~... (1. 3

( ) अर्हत्येव कृतंन्न उपद्रवस्य

( ) अविधा अव्रिधा भो दर्वीकिरो उपरि पतितः। 1 `

पातं चंबपितमन्नमयत उत्तोख्यतो साचीकरोति वक्रं स्थापयति अतो व्यानेन छलेन ममामित्मषपूरणसुखं अभिलाषस्य पूरणेन यत्सृखं तन्नि वर्तयति निष्पादयत्येव ) हञ्जे निपुणिके सत्यं लवं परिगतां चंद्रिका याम्‌ | अत्याहितं नाम जीवानपेक्षि कमं | अत्याहितं महाभीतिः कमं जीवान पक्षि ' इत्यमरा्िहः अत्र दोषोद्वाटनादपवादो नाम ॒संध्यद्मुक्तं वति अत्रैव रोषभाषणात्सफेटोनाम सेध्यङ्‌मुक्तं भवति दण्डकाष्ठेन स्तम्भान्तरिता भीषपिष्यामि ' उवदवस्स ' इत्यत्र क्रचित्‌ असादेः इति ` प्राकृते कर्मणि षष्ठी अवत अवत अब्रदरेजनादुक्तिनाम सेध्यङुमुक्तं भ-

(१) 8.6७... 2. वं. (२) ए. 6.1. 2. 6. 000. (3) 98. 6. 7. ५५५ अत्तणो, ( 9 ) 8. 0. ¶. ०, & . किल. (५ ) 29 4. किंदवो. ( ) #. ©. ¶. 90. ४०५ म, ४44 बस्स. (५ ) पि. पष्य, ( < ) 8. 6. 1, ०,

( ६२० )

माल०--( अनुवृत्य |) भद्ध मा दात्र सहसा गिद्ध | सप्यौ त्ति भणीभदिं ( ) इरा ०-- हद्धि हद्धि भद्रा इदो एव्व धावदि (ख ) `` ५) --( सप्रहासम्‌ ) कहं दण्डकं एदं अहं उण जाणे जं दसं करिअ सप्पस्सं विअ दंसो किदो तं मे फलदं ततिं ( ) ( प्रविर्य पटाक्षेपेण ) धकुला०“ मा दावै भद्रा पविसदुँ इर्ह कुडिलगई सप्पो विअ दीसदी ( ) इरा०-- रोजानमुपसुं ) अकि" णिविग्घमणोरहो दिवासंकेदो मिहुणस्स ( )

( ) भर्तः मा तावत्सहसा निष्क्राम सर्पं इति भण्यते

(ख) हाधिक्‌ हा धिक्‌ भरता इत एव धावति

( ) कयं दण्डकाषठमेतत्‌ अहं पुनज यन्मया केतकीकण्ट , कैदं कृत्वा सर्पस्येव दंशः कृतस्तन्मे फलितमिति ८८ "^ " ^“ (घ) मा तावद्भर्त प्रविशत इह कुटिगतिः सर्पं इव इयते

( ) अपि निर्विरमनोरयो दिवासंकेतो मियुनस्य ~

वि, "० चक

वति भैः मा तावत्सहसोपसर्पं प्रसीदतु भष्िनी कि नु खल्‌ दर्दुर

(१) 8. ©. ¶. गिक्मिस्सति ( 7. 988० 1१७70 ४८११९ णिक्कमद्‌ भ्रा ). (२) 8. 6.4. 4. 2. मणोदि, (३) 2० 4. ०. कंसं कर्थ; प. सप्यस्त उवरि अअसो किदं; 23. 0. 1. सम्यस्स ( 1. १1४७१५१8 सप्यदंसो ) अअसो किदं, ( 9) पि, ००, ( ) 1, 4. 44 ससंभ्रमम्‌, (६) 8, 6.1. वृ. (५) 9. 4. कहि स्प्यो माश्ख प्रकिसि, (मा कु मा क्खु महरा विसि अ. ( <) पष. ०७. ( ) पि, स्तेभतिरिता सजानमु- वेत्य ; ( १० ) 83. ७. ¶. ५५५ सहसा ४९१ रानानम्‌ . ( ११) 2५ „4. अवि तिष्दा मणोरहा दिषा सकेदमिहूणस्स.

4 ^ 4

| ¢) रिती इद (१९ ) ,४८ ^ ऋ) ६९८7८ ` | सरवे इरावतीं षट संभ्रान्ताः ) ५.2 राजा-प्रिये अपूरवोऽयमुपचारः ~+. (|-.4.1५.6.¡:~

इशा ०--बउत्प्रवलिए दिद्टिमा दुच्चाहिआरविसओ संपुण्णा दे प्रण्णा | ( )

बकु ०--परसीददु भट्टिणी किं मए किदं त्ति देवो पुच्छिदव्वो दुरा वाहरन्ति त्ति किं देव्यो पुटविं वरिसिदुं सुमरि ( )

बिद्‌०--मा दाव | होदरं दंसणमेत्ेण अत्तभवं पणिपादलङ्कणं विसुमरिदो होदी उण अज्ज वर पसादं गेहदि ( )

इरा ०- कृविदा वि" दाणि “किं करिस्सं | ( )

राजा-- अस्थाने कोप इत्यनपपन्नं त्यि तथा हि

+ द६-१५ ~< , >) को = ¬ यः 9 नि +

~

(क ) बकुलमवकिके दिष्टया दुत्याधिकारविषया सेपू णौ ते प्रतिज्ञा

(ख ) प्रसीदतु भद्विनी | किं मया कृतमिति देवः प्रष्टव्यः दर्दुरा व्या- हरन्तीति किं देवो पुथिवीं वर्षितुं स्मरति ।“

[7 ¢. (५) (=,

(ग) मा तावत्‌ भवत्या दशेनमत्रेणात्रभवान्प्रणिपातलङनं वि. स्मरतः भवती पुनरदयापि प्रसादं गृण्ाति | <› ¬~ ~, 4 ` ( ) कुपितापीदानीं किं करिष्यामि 4

व्याहरन्त्यक्रोशन्तीति पृथिव्यां देवो वर्धितुं विरमति ( दुदरा व्याहरन्तीति किं देवः पृथिवीं वर्धितुं स्मरति | भेकशद्भश्रवणेनैव किमिद्रो वषैणाय प्रवर्तते अपि तु नैव यदा तस्थेच्छा तदैव वातै अतः देवेच्छैवात्रकार

(१ ) 20, 4. ००. (२) 2. दि. ०. ५06 86०४७०९९, ( ३) कणु खु दुरा वाहरन्ति चि देवीए पुटवीए वरिमिदं षिरमाटि, 2. कि द्रा वाहरम्तिति /,.¡ देवो पुटि विसुमरेदि; 4, ०1, 16 8९।१८७१५९. ) . 2०. ^. अत्तहो -दीए. ( ) 23. 0. च. 1, 29. 4. तुम... गेण्डेदि, ( ) १. ०, (७ ) २५ 4. ४५५ अह, 4 ग,

(वीर्‌ / कदा मुखं बरतनु कारणाहृते तवागते क्षणमपि कोपपात्रताम्‌ ¦ ^. ५. 1.4, अपर्वणि ब्रहकलुयेन्दु मण्डला `” विभावरी कथय कथं भविष्यति १६॥ इरा ° -- अङ्के ति सुदं वारिदं ' अज्जउत्तेण अण्णसंकन्तेसु अह्माणं भाअहेएु सु जदि उण कृष्पेअं" तदो हस्सा भवें* ( ) राजा-- लमन्यया कल्पयसि अहं पुनः सत्यमेव कोपस्यानं पड्यामि कुतः" नाहाति छतापराधो प्युत्सबादिव सेषु परिजनो बन्धमरं इति मोचित मयेते प्रणिपतितु मामुपगतते १५७॥*

( ) अस्यान इति सृष्ट व्याह तमायपुत्रेण अन्यसकान्तष्वस्माकं भागयेयेषु यदि पुन॒ः कु्येयं ततो हास्या भवेयम्‌ ` = ` {६६ {

णं कि मम प्रतिज्ञयेतिभावः ) कदेति ( हे वरतनु तव मृखं कारणादते अपराधारिरूपं हेतु विना कोपपात्रतां कोपभागितां क्षणमपि कदागतं अपि तु अपराधं दषरैव कुप्यसि नान्यया कदापीव्यर्यः कारणाभवे कोप स्यानुवितत्वं इष्टान्तेन दटयति अपर्वणि पूर्णिमाप्रतिपत्सधिकालभिन्न विभावरी रात्रिगरहकल्षेन्दु भइल कदा भवति अपि तु नैव तथा कोपकारणं विना इदं कथं भवति तत्कयवेत्यर्थः) नाईैतीस्यादि ( #- तापराधो.धपि परिजन उत्सवदिवसेषु बन्धनं नार्दति संय॑तु योग्यो भवति इति हेतोर्मया मालविकाबकुलावाछके बन्धनान्मोचिते ते

नमस्कतुं मामुपगते नान्यकारणादिति वाक्यशेषः|) भो अनर्थः सपतितः

(१ ) २. 4. भणिदं, 8. ©. 1. अवधारिं. ( २) 8. 6.1. अहै. ३) कृषिस्सं 904 भविस्तं. (४) प, ०. (५) 4. पि. दण्डमः 4. बन्ब्दम्‌. ( ) सभाजयपित्‌. ( « ) ४04 विद्षकः -दयाह्‌ खु एतो भीश्ओो अ.

‰२३) इरा०- णिडणिए गच्छं देवि विण्णवेहि दि भवदीए्‌ पक्ख- वादो णं अज्ज त्ति (क ) निपु०-- तह ( हति निष्क्रान्ता ) ( ) बिदू०-- आत्मगतम्‌ * ) अहो अणत्यो संपडिदो बन्धव्भ- रे गिहकवोदोः चि्ठाए“ मृहे पडिदो ( ) ( प्रविर्य ) निपु०-- अपायं ) भरिण जदि च्छादिाए माहविआए आच क्खिदं एव्वं एदं णिव्वृत्तं त्ति ( इति कण कथयति ) ( ) इरा०--( आत्मगतम्‌ ) उववण्णं एव्वं बैंदयबन्धुणा किदो अअं ` पओ ( विदूषकं विल्येक्य प्रकाशम्‌ ) इअं इमस्स काम-

) निपुणिके गच्छ देवीं विज्ञाप्य दष्टो भवत्याः पक्षपातो

नन्वयेति ^+“ ०.0. 19. नः (ख ) तथा ( ) अहो अनर्थः सपतितः बन्धभ्रष्टो गृहकपोतो चि्ठाया भखे पतितः

( ) भद्िनि यटच्छादृष्टया माधविकयाख्यातम्‌ एवं खल्वेतन्निं त्तमिति | | ५4. {< +^

बन्धश्रष्टो गृहकपोतः पारावतो बिडालिकाया आलोके पतितः ( बिडालिक-

(९) 8. ©. †‰. गच्छि; 2०. & . ०. (२) 2. 4. दद्र मवदीए प्रक्खवां दित्तण अज्ज तति; ए. ©. ¶, एक 16016 प्रक्खवादो ५१ अवदहिदं ( अवधृतं ) मे हिअअ 0९016 अन्जत्ति; दिदपक्खपादं अवगदं दे हिअअं त्ति. (३) स्वगत म्‌. -( १) 2, भोः, (५) 23. ७.2. 7. 20 बन्धणन्मद्रौ, (६) ए. ©, 1. गेहकवोदओ. ( « ). 8. 6. पि. 1, बिडालिआाए. ` (< ) 4, मंदारलताटस्नो विअ कवोदो चिठा मुहे एडिदो. ) £. त्ति; 8. ©. ¶. णिमित्तम्‌. (१९) 8. 9. (. सत्वं जेव्व; ४० 4. }. 0०. (११) फ. ४१५ स्वं अअं एत्थ &14 00, अअं $ किदो, ( १२) उन्भिण्णो ८१३ ) प, भप,

५.8,

( \९४ ) तन्तसचिवस्स णीदी (क )

बिद्‌ ०--होदि जदि णीदिणं एक्तं वि अक्खरं पदेअं तदो भाथत्ति वि विसभरेअं (ख )

राज्ञा--( आत्मगतं ) कयं नु खल्वेस्मात्सकटादात्मानं मो्धामि | ( प्रविद्यै )

जय ०--( सवेगम्‌ ) देव कुमारी वसुलच्छी कन्दु अं अणुधाबरन्दी पिङ्ल्वाणरेण बलिअं तातिदां अङ्णिसण्णों देवीए पवादकिसल्यं विअ वेवमाणा णं किं विं पकिदिं पडिवज्जई ( ) |

( ) उपपन्नमेव ब्रह्मबन्धुना कृतोऽयं प्रयोगः इयमस्य कामत

न्त्रसचिवस्य नीः ९०.८.०2 ४) ( ) भवति यदि नीतेरेकमप्यक्षरं पठेयम्‌ तदा गायत्रीमापि विस्मरयेम्‌ |... : (+ ^“ १६.१.५५.

) देव कुमारी वसुलक्ष्मीः कन्दु कमनुधावन्ती पिङ्कलवानरेण बल- ¬ वत्त्रूतिताङ्निषण्णा देव्याः, प्रवातकिंसख्यामिव वेपमाना किचित्परकृतिं प्रतिपदयते

या आलोकितः ) भवति यदि नीतिगतमेकमप्यक्षरं पठेयम्‌ ( भवति यदि नीतौ एकमपि अक्षरं पठितं ) तदात्मानं गोहत्या प्रापितोभवेयम्‌ परि त्रातस्त्वया स्वपक्षः अहमिति शेषः अत्र देव्यनुग्रहरूपकार्यसंग्रहणादादानं नाम सेष्यङ्कमृक्तं भवति इदं मालविकाक्तमदयानपक्िकानुसरणमुत्तराङ्ो

( ) प, णीदिगदं, ( २) }प. णे मए अत्तमवे पेतिदो हषे 1. मए अत्त- मवं संसिदो भवे ( मया..संभितौ &५. ). ( ) 8. ७, संसिदो ( संशितः ) ( ) 1. अपवार्य; स्वगतम्‌. ( ) 2. 4. 0, ( ) प. मोचपिष्यामि, ए. ७. ¶. ००. आत्मानं ४५१ ५७५५ मोच्यावरैः मोचयामहे. ( +) ¶. ०५५ सावेगं जयतेना &114 0101४ सावेगं ७९)०७; 3. ७. सकेगा, (< ) भणगुहोन्ती. ( १.) .. 4. उत्तातिगः, 3..09. 1, विततापिका. (१० ) अके &, ( 11 ) 2०, पवाद्चढ*. (१२) 2० &., दाणि ति 9 . यकि,

1/0

( ९२५. )

राजा-- कटम्‌ कातरो बार्भावः।

इरा० --( सवेगम्‌ ) तुवरदु अज्जउत्तो णं समास्सासइदुं मा

से सेतसिजणिदो व्रिआरो वड्दु (क )

शाजा- अ्जयमेनां सज्ञापयामिं ( इति सत्वरं परिक्रामति )

विदू °-- साहु रे पिङ्ल्वाणर साहु परित्तादो तुए सपक्खो। (ख)

( निष्करान्यौ राज विदू पकश्च इरावती निपुणिका प्रतीहारी )

माङ०-दल देवि चित्तिं केवदि मे हिअअं जणे अदो

' व्रं किं वा अण॒इवरिदव्वं हुविरसदि त्ति ( )

( नेपथ्ये )

` अच्वरिअं अद्रिअं अपुण्णे एव्व पञ्नरत्ते दोहलस्स म॒उलेहि सेण- दधो तवणीओआसोओ जाव देवीए ण्विदेमि ( घ-)

1

| | - 1. "| ५" षाक श्र षः ^ (क) त्वरतामायंपुत्र एनां समाश्वासयितुम्‌ मास्याः सत्रासजनितो विकारो व॒र्धताम्‌ 9

(ख) साधु रे पिङ्ल्वानर साधु परित्रातस्त्वया स्वपक्षः

(ग) सखि देवीं चिन्तयित्वा वेपते मे हदयम्‌ जाने ऽतः परं

कि बानुभवितव्यं भविष्यतीति {. ५५५ ( ) आश्वर्यमाश्चरयम्‌ अपूणं एव पञ्चरात्रे दोहदस्य, मुकुर

"न

सेनद्धस्तपनीयाशोकः यावदेव्ये निवेद यामि

| पयुक्तताद्रिनदुसत्यनुसंधेयम्‌ (- [अ श्रीकाटयवेमभपविरचिते [9 पयुक्तववाद्विनदुसि्यनुसंधेयम्‌ इति म्‌ कुमारगिरिरा-

(१) 8. ७. "9५५४. (२) 23. ©. 4. 4. 2० साव. (२) 2... " .6, अहं. ( ). 120. & , निन्करान्तो वयस्येन राजा 40; निक्रान्तः हक्यस्यो गाना & (+) 8. ७, ¶. ०.. (६) 4. वितअंदीए, («) 8. ७. ¶. किः " अदो &&, ४४4 ०, वरं वा; 2. ^, ०, वा, (<€ ) 8. ७. 1. भण.

( ९२६ )

( उभ श्रुत्वा प्रहष्ट' ) बकुला ०-- अस्ससदु सदी सच्चप्पइण्णा देवी ( } माङ०-- तेण हिं पमदवणपालिआए पिडदो होमं ( ) बकुला०-- तह (ग) ( इतत निष्क्रान्ते )* इति चतुर्थो ऽङ्ः

(क ) आश्वितु सखी सत्यप्रतिज्ञा देवी (ख) तेन हि प्रमदवनपाल्कायाः पृष्ठतो भवावः। (ग) तथा।

जीये मालविकश्निमित्रव्याख्याने चतुः

7- > 0, (न नौ: ~ 1 (भ +~

( ) 2४. ६५१. मवतः (२) ए. पिअसही, (३) 29. ००. 8. ७.7, (४) 8.9. पि. 1. हेभि, (५). 9. ¶. ( इति निष्कान्तः स्वे ); ८५, इति निष्कान्ता

( ५२९७ )

पञ्चमो ऽङ्‌: ( ततः प्रविशत्युयानपाल्िका )

इद्यान ०--उवक्खित्तो मए किद सक्नारविहिणो' तवणीआसोअस्स वेदि.

आबन्धो जाव अण्द्िदणिओअं अत्ताणं देवीए णिवेदेमि ( परिक्रम्य |) अहो देव्वस्स अणकम्पणीआ मालेआ तस्सि तह चण्डि देवी | इमिणा असोभकुसुमवृत्तन्तेण पसादर्सुमुदी भविस्सदि कर्दि खु हुव देवीं ( विलोक्य ) अद्यो एसो देवी परिथणन्भन्तरो किवि जदुमु दालज्छिदं चीर्म्जसं करे गेह्विअ चंउस्साल्दो कुञ्जो सारसओ णिक्रम- दि पुच्छिसं दाव णं (क) ( ततः प्रविशति यथानिर्दिष्टः कञ्जः ) उथान ०--( उपसंत्य ) सारसअ करहि पत्थिदोसि (ख )

(क) उपक्षिप्तो मया कृतसत्कारविधेस्तपनीयारोकस्य वेदिकाब- ` ` ¦ ` न्धः यावदनुष्ठितनियोगमात्मानं देव्यै निवेदयामि अहो दैवस्यानुकम्पनी- ` + या मालविका तस्यां तथा चण्डिका देव्यनेनाशोककृसमवत्तान्तेन प्रसाद- ^ . समखी भविष्यति कूत्र न॒ खल भवेदेवी अहो एष देव्याः परिजनाम्य- ~ नतरः कामपि जतुमृद्रा्न्छितां चीरमञ्चषां कुर, गृहीत्वा चतुःशालतः , | कुम्जः सारसको निष्क्रामति प्रक्ष्यामि तावदेनम्‌

(ख) सारसक कृत्र प्रस्ितोऽि।

* -

कविरिदानीमङ्न्तरमारभमाणः कथासंघटनार्थ प्रयमे प्रवेशकं नामा- यपक्ेपकं प्रस्तौति -ततः प्रिरातत्यादि उपक्िसो मया कतस-

' (१) 8.9.14 सक्कारविरहिणा (२) 4. 2०. भित्ति; ४.७. भिषिवेदिआ. (३) 1.9 हरिसदोहदवुत्तणेण; ^, कुसुमन्थवएण ) 3. ७* 1. ०1. सु; &. २०. प्रसादाहिमृही, ( ) प, 1०४७16]0904९. (६) 4. २०. णप, (७) देवीपरिजण &०. (< ) 8, ७. प. 0. (१ ) ए. ७. 2. 4. चतुस्ताठादो कुञ्जो ( पि. सारसकौ ) णिकमदि ( १९ ) कवि. भा, {16 0४६९४ धत 168 ५6 जामरकण 8५५० 81008 फा ५16 2००५९

“4

( ९९१८ )

सारसकः- मह अर्पि विव्जापारअणं अणुचिद्रन्तागं बह्मणाणं इयं णिच्चदक्रिलिणा मसिओआ। दादन्यरा। तां अज्ज पुरोदिद स्य इत्यं पाविदुं (ग)

इदान ०--- किं णिमित्तं ( )

सार ०- जदप्पहुदि स॒दं' सेणावडर्णौ जण्णतुरगरक्खणे णिउत्तो भद्िदारओ वसमित्तो त्ति तदप्पहरि तस्स आउसो णिमित्तं अद्रौदसस॒व- ण्णपरिमाणं दक्खिणं देवी दक्रिवणीरहिं पडिग्गाहेदि ।* ( )

--भह कां देवी किं वा अणुविद्धरि ( )

सार०--मङ्ुलघरे आसणत्या भविअ विदव्भविखओआदो भादुणा

वीरसेणेण पेसिदं ल्मििअरेहि' बाचीअमाणं रह सुणदि ( )

( ) मधुकरिके विद्यापारायगमनुतिष्ठतां ब्राह्मणानामियं नित्यदलि-

^५^..णा 3 4 दातव्या तामार्यपुरेितस्य हस्त प्रापपितुम्‌ 1

(क) किं निमित्तम्‌ | ` ( ) यदाप्रभृति श्रुतं सेनापतिना यज्ञतुरगरक्षणे नियुक्तो भर्वृदारको

सुमित्र इति तदप्रभृति तस्यायुषो निमित्तं अष्टाद दत्षि णां देवी दक्षिणीधैः परिग्राहयति “* ^ “^~ ४४७४७६९

(ग) अय कुत्र देवी किं वानुतिष्टति ( ) मङ्लगृहे आपनस्वा भूत्वा वरिदर्भविषयद्‌ श्रता वीरसेनेन प्रेषितं

८.५५ लिपिकारिवच्यमानं ठेखं श्रुणोति

त्कारविधिस्तपनीयाशोकस्य वेदिकाबन्धः तस्यां तथा चण्डीकृतां देव्य.

( ) महूअरिए विज्जापारगामीणं बह्मणाणं इमाणि दक््िणा णिक्काणि तां पुरोहिदस्स हत्यं पादु 120. महअरिए विज्जाप्रारआणं...हमा &^, 8. 0. 1. महुअरिए विज्जाचरिओाणं इमे..मासि ( 8. ७. ) अज्ज .पाव्डस्सं.. ६. मह्‌ अरि९ विज्जामरिओआणं बह्मणाणं गि्चदश्खविणा माडिआ पूरोहिदस्स हत्य पावदस्सं. (३) 8.6.14. १५५ अह. (३) 24, ०५०, सदै. (१) प. सेणावर्वा 8, ७. 7. ०19. वसुमित्तो, ( ) १. आउसणिभित्तं, 8. 6. 1. आउस- व्यं, ( ) प. गिक; ए. ७, ¶. अटरसद, (५) 8. 6. 1. दक्विणा शरं परिणा होदि. [07 दक्विणां &९, ( < ) 7. & , १५५ नुज्ज, ४१4 ०, | किंवा &९, ( ) 27. लिकिथिरीहि )१. लेहकरोहं ४०५ ४५।७ लेहं ४क09 (018. ( ° ) कैखपत्तं

तक

^

~र ` (५ (2 ६/९ ( ^ {५,. तकर). 1 उदान ०--को उण विदन्मराअवुत्तन्तो” ( )

सार०--वसीकिदो किल वीरतेणप्पमहेोदे भ्रिणो विजअदण्डेर्हिः विदन्भणादो मोहदो आँ से दाआदो माहवसेणो ददो तेण महासारा-

: णि रअणवादणाणि सिप्परिमि इदं परिअणं अं उवाअणीकरिअ भट्टिणो

संओआसं पेषिदो रैवो किक ्रारं दक्रिखस्सदि त्ति (ख)

उदयान ०-- च्छ अणचिटर अत्तणो णिओअं अहं वि देविं पे. क्खिस्सं (ग )

( इति निष्क्रान्तौ ) `प्रवेशकः

( ) कः पुनर्वद भराजवुत्तान्तः 3

( ) वीकृतः किल धीरतेनयमुर्भरविनयदण्डे्िर्मनायः मो- „. चितश्वास्य दायादो माधवसेनः दूतश्च तेन महासाराणि रलनवाहनानि -*

शिल्पकारिकामूपिष्ठं प्रजनं चोपायनीकत्य भतुंः सकाशं प्रेषितः श्वः किल भतौरं पश्यतीति " ` ~ «1:

( ) गच्छ अनुतिष्ठ आत्मानो नियोगम्‌ अहमपि देवीं परक्िष्ये

नेनाशोककुस॒मवृन्तान्तेन प्रसादसुमुखी भविष्यति कुत्र खल देवी भवेत्‌ अहो एष खल्‌ देव्याः परिजनाभ्यन्तरः किमपि जतुमृद्राखाज्छितां मञ्घां गृहीत्वा चतुःशाखतः कुञ्जः सारसको निष्करामातै मधुकरिके

बिद्यापारायणमनुतिष्ठतां ब्राह्मणानां नित्यदक्षिणानिष्काणि आर्यपुरोहित-

स्य हस्त एव वितरीतुम्‌ यदाप्रभति श्रुतं सेनापतिना यक्ञतुरंगरक्षणे

न्‌ 6

(१) 8. ©. प. 7. २५ सुणीअदि, (२) 8. ७, 4. वकि. ८३) ए. ७. 4. किल, (४) पि. रभणाणि &५ ( ५) ९२० &. 8. ७. ¶. दारिका, (६) ए. ७. पष, 7. ०५. अ, (७) पिर ०. {06 8९४६९१०८ सुवो &०© 8१५ ६१॥६6 1981. ति 1616; 8. ©. 1, ०फ. [१७८ चि, (< ) त. अहं वि देवीर सओआसं गच्छद्धि तुमं वि अणो णिओओ अणुचिदर | ( ) ३. ४५५ इति,

९6

=

( ६३० )

ततः प्रविशति प्रतीहारी ) `

प्रती ° ---आणन्तद्यि असोअसक्कारवावृदाएं देवीए विण्णवेहि

अग्जउत्तंः इछि अज्जउत्तेण सह असोभरुकलस्म॑पसूणस्मच्छि

पचक्खीकदु त्ति तौ जव धम्मासणगदं देवं पडिवालेमि ( इति परिक्रामति ) ( कं )

( नेपथ्ये वैतालिकाः )..-.“.., तिरः

१,१५५५.८..९-० - अरथमः--दिष्टबा दण्डेरेव रिपुशिरसु वर्तते देवः +.{~

+ > परभूतकरब्याहाः घु स्वमात्तरतिपधुं ++ मन नयाति सिदिशधातीरीया^ष्वनेड्‌ः इबाङ्वान्‌ | ^...

~ ६५५.) विनयकरिणामालानाई सुपोढबलस्य ते ~ =~&+ ` _\ : बरद बरदाराधावृक्णः सह वनता पपुः १५. वरदाराधावरृक्षः सतबनता रिपुः॥१॥ .

( ) आङपासम्यशोकसत्कारव्यीपतया देव्या विज्ञापयार्पुत्रम्‌ इच्छाम्यार्यतुत्रेण सहाशोकगवृक्षस्य प्रम॒नलक्ष्मी प्रत्यक्षीकर्तुमिति तदाव- दधमासनगतं देवं प्रतिपालयामि †““

नियक्तो भर्पदारको वसुमित्रः इति तद प्रभृति तस्यायर्निमित्तं अष्टशतस- वर्णपरिमाणां दक्षिणां देवी दक्षिणीवैः परिप्राहयति दक्षिणीयो दक्षिणा्हः। कडङ्रदक्तिणाच्छः ' इति छप्रत्ययः युज्यते। कुत्र देवी किं वा- नुतिष्ठति ( अत्र दत्तस्य अशोकविकासस्य वर्तिष्यमाणस्य शशिल्पिदा- रिकावन्तातस्य निद दीनं ) ततः प्रिर तीत्यादि आन्नपतास्म्यो- कसल्कारवत्सल्या देव्या विज्ञापय आरयपत्रम्‌ इच्छाम्यावपत्रेण सहा्ोक ` वृक्षस्य कलमलक््मीं प्रत्यक्षीकतुमिते तस्मायावद्धमाषन्यितं देवं प्रतिपा- ल्यामि परभूतत्याःद ( आत्तरतिगहोतरतिनामपत्नोको गृहीतसंतोषश्च विदिशातीरोयानेषु ॒विदिश्ाख्यनदीकूलस्यारामेष्वनेग इव काम इव॒ अनं-

(१) ए. ^. ०.; 3. 68. ¶. देवीए असोअ &९. ३) 2३, ०, (३ ) पपि. भ. ( ४) २. 4. च्क्लपसू्ण , ( ५) 2, ००, (६) नि भआलानतवं गतैः प्रबलस्य ते,

४.५.६.८

4०

# ^ १, 2

>, |

1 (९२३९ )

दितीयः-- ॥॥ बिरचितपद्‌ बीरग्रीत्या सुरोपम सूरिभि 1.

अरितभभयोमेष्ये कत्य स्थितं, कथ त्शिकान्‌ | ५. तव हूतवतो दण्डानी निद भेपते; श्रियं

८८ { परिधगरुभिद्‌भिः शौरेः" प्रसद्य रुकिमिणीम्‌ २॥

` श्रती०-- एसो जअसदस्‌उदप्पत्थाणो भद्रा इदो एव्व आअच्छदि

अहं वरं दाव इमस्स पमुहादो" किति ओसरिओं एदं रमुहालिन्द तोरणं

समस्सिदा होमि ( इ्येकान्ते स्थिता ) ( ) ( ततः प्रविंशतिं सवयस्या राजा )

# (1 4.

( ) एष जयजशब्द स॒चितप्रस्थानो भर्तेत एवागच्छति अहमपि तावदस्य प्रमलाक्िविदपसत्य समाश्रिता भवामि |

५५४ ५. [3

गवान्‌ प्रशस्तांगवान्‌ परभुतकल्व्याहारेषु परमुतानां कोकि्यनां बेदिनां कल्व्याहारेष कलोक्तिष मधं वसंत माधु नयसि हे वरद अभीष्द उपोटबर्स्य सम्थतैन्यस्य उजितसाम्ध॑स्य ते तव रिपुः शत्रुः विजयक- र्गा पिनयदा्तनां आलनाकैः धनसाधने: वरदारोधवक्षेः वरदाख्य- नदीतीरस्यवृक्षैः सह अवनतः नघ्रतामनुकूख्तां गतः) [अरर तति क्रधकैशिकानिविदरभान्मिध्यकृत्य आक्रम्यत्थर्थः | मध्ये पदे निवचने इति गतिसं्ञायामर॒“ कगापिप्रादयः ' इति समासः समासान्तरं वत्वो- ल्यवितिल्यवदेशः। ( सुरोपम रेवतुल्य परिघगुरूभिः परिघाखवदटै भिबहमिः चतुर्भिरियियात्‌ रुदिमणी इतवतः डौः कृष्णस्य ॒विदर्भपते श्रियं दण्डप्रधानसैन्यैः इतवतः तव॒ एतयोरूभयोश्चरितं सुरिभि पण्डितै बैरशरत्या शूरभक्त्या विरचितपदं कीर्पितमाहास्य॒क्रथकैशि-

, (१) 3 ७. ‰. 1. विणो; (२) देवो 1५5४ 0 भटा; (३) 8. ७. मुहादो, (४) पि लोआदो 101 क्रिषि ५५4 8 (3, 11. ०00 1४. (५) ॥. (3. समोर, ( ) प. ख-वेतरिदा 1.01 ए९,.स्तिडा, (७) 7. 4, ०10. इति (<) 8. ७. पि. 1, प्रविध्य सवयस्य,

(. ६६२.)

राजा-- कान्तां विचिन्त्य सुरुभेतरसंप्रयोगां

श्रुत्वा बिद्र्मपातिमानमितं बै! =

धाराभिरातप इवाभिहतं सरोजं , “~~ ˆ ` टुःखायते च॑ हृदयं सुखमन्युते ॥३॥ ` `

बिद्‌ ०-जह अहं* पेक्खामि तह एक्रन्तसुहिदो भवं भविस्सदि ।(क) .

राजा--कथमिव।

बिद्‌ ०---अज्ज किल देवीर पण्डितकोसिई भणिदा भवा जइ तुमं* पसाहणगव्व॑* वहति तँ दं तोहे मालयेभाएु सौरे विवादैणेव- तवं ति ताए श्रं सविसेसालकिदा मागे रतहोदी कदावि पूरण भव- दों मणोरहं' ( ) नकाः रि

( ) यथाहं पड्यामि तथा एकान्तसौवितो भवान्भविष्याति

(ख ) अद्य कि देव्या पण्डितरकौशिकी भणिता भगवति यि त्वं प्रसाधनगर्वं वहसि तद दीय मालविकायाः शरीरे विवाहनैपथ्यमिति तया सविशेषालुंकृता मालग्रिका तत्रभवती कदावित्पूरयेद्रवतो मनोरयम्‌

कांस्तदाख्यविषयं मध्ये कृत्य अधिष्ठाय स्थितं अनेन तव॒ विदर्भश्री- हरण कृष्णस्य रूकरमिणीहरणमिव तवातीवयशस्करमिति भावः )

कान्तां बिचिन्येत्यादि सुरभेतरसंपरयोगामसुलभ (दुभ) समागमम्‌ |

(१) पि. मम मनः (२) 8, ७, ( ¶, ५5 ध) १।८९१०५।१५९ ) इह

वेस्वामि. ( ) ?, ‰, 010. अहं ४५ 1९९५ देक्खाभि, ( ) पि, ०, तह & ^. सन्वहा [0 1४. ( ) ९0. &* 3. ©. 1. धारिणीए ०१ >, ३५५ छ्वं, ( ) 8. ७. 1. तुमेजदि; (1. ५५५ सं, ( ) परसाहणणेउणं (< ) 8. ७, 7. ००, ( ) 12. 4, वैदब्मअं. (३०) }३. ०, अ, 3. ७. ¶, वदो [7 ताए अ; ४५ ।€#५ तत्भोदीए ६{४९7 मालकिज, ( ११ )

8. 0. 1 छपा, (१२) पि, ४५५ वि, ५३) 7, 4. ५५८ षह (2०. `

दि {७८ इ. ) 06 ७" परए,

1

चै „9

„ॐ

(*६३३ )

[1 + +^, ६१६, < “4 वै जनौ +न

राजा--सखे मदपेक्षानुवृत्यौ निवृत्तेष्यीयां धारण्याः पूवैचरितैः स॑भा- व्यत दतत्‌ ‡; <“.

ग्रती ०--( उपगम्य ) जेदु भद्र देवी विण्णवेदि तवणी आसोअस्स कुसुमसोहौगदं णेण मह आरम्भो सफलो करीअदु ति (क)

राजा-- नन्‌ तत्रैव देवी

प्रती ०---अह इई जहरूदसमाणसहि अं अन्तेऽरं विसन्जिय माल विआपुरोएण अत्तणो परिअणेर्णं सह देवं पडिवाल्दि ( )

राजा--८ सहर्षं विदूषकं विल्गेक्य ) जयसेने गच्छाप्रतः |

प्रती ०-एदु एदु देवो ( इतिं परिक्रामति ) ` (ग ) विदू०-( विलोक्य | ) भो वअस्स किचि परिवुत्तजोव्वणो विअ बसन्दो पमदवणे लक्ीओहे ( )

|

1

(क ) जयतु भत देवी विज्ञापयति तप॒नीयाशोकस्य कुसुमसी भाग्यदञ्ेनेन ममारम्भः सफलः क्रियतामिति =} ~ 44

(ख ) अथ किम्‌ ययार्हसमानसुलितमन्तुरं विसृज्य मालवि- > कापुरोगेगातमन परिजनेन सह देवं प्रतिपाख्यति ++. ५4 +...

(ग ) एतवेत देवः।

) भो वयस्य किवित्परिवृत्तौवन इव वसन्तः प्रमदवने रक्ष्यते |

न. 0 - "1 ~क २/९

दुःखायते सुखादिम्यः कतुंवेद नायाम्‌ ' इतिक्यञ्‌ अत्र माखनिकारूपबी- जानुसंधानात्संधिनौम निह णसंध्यङ्मुक्तं भवति कथमिवेति प्रश्रे अत्र

(८ ) प. 8. ©. मदयपेक्षामनप्राप्य; 1. मदपेक्षामनरङ्य, (२) 8. ©. पि. ˆ.“ ¶. अनया धारिण्या, (३) 3. ७. ६. 1.५५ एवः मदपेक्षानुरत्याप्यनया संभान्यमेः तत्‌, (9४) 8 (७, 1, 7९१७१४५ (५) ?०, ^, सोहा; पि, सम; 3. 6. कुसुमोगगमसिरिं अज्जञःणसह ¶्चक्लीकादं इच्छामिति, (६ ) 8. ¶. जह + तुह सम्भाणसुहं, अ) 2०, &, अन्तेउरजणं, ( < ) 1, [ पण्डिककोसिकीए ] सम, (९) 2, 4. 010, इति परिकामति, (१९) {2 किति,

( ९३४

राजा-- ययाहं भवनु , (८...) ५५.५५. अगे कः 2 बिभुज्यंमानसहकारम्‌ परिणामामिमु खमृतोर्सुक्यति यौवन, चेतः ^ ` ^

बिदृ०--( परिक्रम्य ) भो" अञ सो दिण्णणेवत्यो विअ कुम त्यबएदिं तवणीआसोओ। ओलोअद्‌ भवं ( )

शजा-- स्याने खल प्रसवमन्यरोऽभयेदयमिदानीमनन्यसाधार्णी शोभार्म॑दहति परय „5

स्बौशोकतषूणां प्रथमं सचितव्रसन्तवबेभवानाम्‌ निवत्तदोहरेसिमिन्संक्रान्तानोव कुसुमानि ५॥

~ (क) भो अयंस दत्तनेपथ्य इव कृमुमस्तवक्रैस्तपनीयाशोकः अवलोकयतु भवान्‌ | = 1*“-.4..‡ ~^ +“

कार्यान्वेषणाद्टिरोधो नाम सेध्यड्मक्तं भवति तत्रभवती धारिणी कदा- _ चित्पृरयेद्रवतोऽपि मनोरयम्‌ अत्र कार्थोपद शना्पव॑भाव इति सेध्यङ्मुक्तं भवति अग्रे विकीणकु (चकेरेयादि ( अग्रे पुरतो विकीर्मीनां व्याप्ता- नां कुरबकाणां फलजालकः एलपमूहै भिद्यमान) वच्व्यमानः सहकाय यत्र तादशमतोवैसंतस्य इदं परिणामम्‌ खं परिणतेः परिपाकस्य आरंभात्मकं यौवने चेतः समुत्सुकयति उत्कंठितं करोति ) सर्वा शोकतरू०ामि- त्य,दि ( प्रयमं सवितवपंतविभवानां ज्ञापरितवसंत सेष्तीनां सर्वाशोकल- तानां मध्ये निर्वृत्तदोहदे निष्पन्नौषधे प्राप्तमाटवरकापादस्पर्ची इति यावत्‌ अस्मस्तपनीयाश्ोके मुकु जाने सर्वालाित्यनुषेगः सेक्रान्तानीव

अन्येषां दोहोदाभावात्‌ सर्वेषां मुकुलानामेकज समावेशादिव पुष्पश्राचयीमि

(१) ¢. ^, यथादघं ( 120. ०10. इतं ) भवानाह, (२) # विकीर्णं खं कलजाछनिभज्य", ( ) ४. 1. जाल्कमिद्य , 8. ७, जालकहीय. 10). भज्य (9) १, अहो, (५) 12. अयं ७५।०५॥७ प्रसव ‰।५ }६. ७८।७॥७ अभूत्‌, ५०५ ०५॥१ ©0॥१ [016६6 ६।५ 8९1८५1९९ ला अभृत, ( ) 1. ( ५७ चप 81८61 1४६{९९ ) पुष्प्यति, (अ) 9 (३, 1, छतानां, (<) 8. 0.1. म॒कूलानि

( -९‰३५ )

बिद०-- भो विसद्धो होहि अद्येस॒ संणिहिदेसुं वि धारिणी पस्स- परिवर्िणं मालपरेभं अणमण्णेदिः | ( )

राजा--( सहम्‌ ) सखे पश्य "` मामियमस्युपातिषटति देदी बिनयादु पस्था भियया > + वि्मूतहस्तकमस्या नरेन्द्ररृ्टम्या वसुमतीव 4 ( ततः प्रविशति देवी परि्राजिका मारिका विभवतश्च परिवारः )

| माङ०--( आत्मगतम्‌ ) जाणामि णिमित्तं कोदु आरकारस्स

तह वि विसिणिपत्तगदं सारं विअ वेवदि मे हिअअं अवि अंदविख- णेदरं वि मे णअणं बहुसो फुरदि ( )

षिद्०-- भो वअरस्घ॑ विवाहणेवत्येण सविसेसं खु सोहदि अंदोदी

मालवे (ग)

[९ ६५१५१.१९- कि ` क,

) भो विखन्धो भव अस्मामु सनितेप्वपि धारिणी पश्चपरिव-

तिन मालतरकामनुमन्यते | - (ख) जानामि निमित्तं कौतुक तथापिं विसिनीपत्रगतं सलिलमिव वेपते मे हदयं अपि दक्षिणेतरमपि मे नयनं बहुशः ` स्फुरति , (ग) भो वयस्य विवाहनेपथ्येन सविशेषं खलु शोभतेतरभवती | मालविका ` त्याहायः ) मामियमिति ( विस्मृतदस्तकमख्या प्रियया मालव्रिकया

(१) पि. ५५५ तह। ५५ 8. 6. 1. णि मोः. (२) 4.2०. 4. उवगदेनु; 9. 9. तदहगदेसु. ( ३) 3. ©. परस्सपतिदिअं. ८४) 2०. 4, ` अणुणेदि. (५) 8, ©. "7. अन्‌त्थिता; प. ^ , अन्‌थथिता, देवी वचनादनत्थिता. (८६ ) पि. 4. विस्तृत, (७) २, पएरििाजिका देवी &८; 8. ७. प. 4

धारिणी मालत्रिका पखिनिका ५. (८ ) 1. १११ मह, (९) 8. ७. पि, 7, =. , | ५५ मे हिअअं ७९०1८ बित्तिणि &५. 8. ७. प. 1. विअ सण्लिं. (१०) 8* <: (3.4. 2. ^. 00. अ. 2. 818० मे; 8, ©. ¶. ००, वि ०१ तव्‌

थिः गअणं, (3 ) 2. 4, असंदेहं {0४ वस्त, ( १२) नि, १४,

( \३६ )

राजा--पर्याम्येनम्‌ पैषौ

अनतिकछम्बिुकूलनिबासिनी कघुंभिराभरणैः प्रतिभाति मे। . उड्गणेरुदयोन्मुखचान्दरिकां -गतेहिमेरिब चैत्रविभावरी देबी--( उपेत्य ) जेदु अज्जउत्तो ( ) विक्‌ ०-- वदद मोदी ( ) परित्रा ०- विजयतां देवः राजा-- भगवति अभिवादये परित्रा ०---अभिप्रेतसिद्धिरस्तु

देबी--८ सस्मितम्‌ ) अञ्जउत्त एसो दे अदिं तरुणीजणसहाअ- स्स असोओ स्केद्घैरअं किदो ( )

बिदू*-- भो आराहिदो ति (घ)

( ) जयत्वायैपुत्रः

( ) वधंतां भवती

( ) आर्यपुत्र एष तेऽस्माभिस्तरुणीजनसहायस्याशोकः संकेतं कल्पितः | - ५.६.३९२ ` "व

( ) भो आराधितोऽसि

अनृत्यिता अनुगतेति यावत्‌ देवी धरिणी नलेन्रलक्षम्या नुपश्रिया अनुगता वसुमतीव मामभ्यत्िष्ठति ) ति खम्बीत्यादि ( अनतिचछ्बिदु कूलनि-

(१) 2. 4 . ५५१ आमारणालंख्ताम. ( ) ?. ०४) कैषा; 8. ७. प. भ, या. ( ३) 2, बहुमिः.-( ४) मचखकौमृदी. ( ) 8, ७. प. ¶. ह्व, ( ) 8. 9. 1. 1९]0न७१. ( ) 2० 4. प. कमो; 8. 6.7. गेष्म.

वियोग

\ +“ धारिणी ८६... अननृज्ञातसंपको ) रजनीव नो ९॥

( ६३७ ) राजा--( सत्रोडमशोकमभितः परिक्रामन्‌ )

नायं देव्या भाजनत्वं नेयः + ` सत्काराणामीदशानामशोकः। =` ˆ `

> -

[ति )

` ++ ^" “^. यः सावज्ञो माधवश्रीनियोगे... " (*

८.१ पुष्यः शंसत्यादरं सस्मयत्ने ¬, ९८०५८। बिदू०-- भो विसद्धो भविअ तुमं इमं जोव्वणवादं पेक्ख (क ) देवी-कं (ख ) विदू ०-- भोदि तवणीआसोअस्स कुर॒मसोहम्‌ ( )

( स्वं उपविशन्ति ) शजा- मालवेकां विलोक्य आत्मगतम्‌ ) कष्टैः खल सेनिधि- ५८.

रथा रुनमिव अहं रथाङ्नमिव भिया सहचरीव मे

4

(क ) भो विक्लव्धो भूत्वा त्वमिमां यौवनवती पर्य (ख ) काम्‌ (ग ) भवति तपनीयाशशोकस्य कुसुमशोभाम्‌

वासिनी परिहितानतिदीधेवसना )। नायं देया इत्यादि ।( अयमशोको देव्या इटशानां सत्काराणां सम्मानानां भाजनं नेयः प्रापणीयः इति न। अपि तु नेयएव तत्र हेतुतेन द्वितीयार्धं योऽशोको माधवश्रीनियोगे वसेत संपदो नियोगे सपुष्पलभवनरूपे आदेशे साव्ञः ठृतानादरः सन्‌ लगप्रयल्ने तव प्रयाते पुष्पैः विकाशैःकरणैः आदरं शसति सूचयति) अहं रथाङ

(१) 2. ग. तुम; ^, ०10. इमं, ए. 6. ¶, ग. तमं हमं. (२) 8. 8.1. २. ^. ००. मोदि; 2. ^ असोअङमुमसोह. ) ©. 4. कष्टं, ( ) 2, ^, ४५५ ममाद्य,

१६

( ५३८ )}

( प्रविर्य )

की-- जयत जयनं देवः अमात्यो विज्ञापयति तस्मिन विदर्भं रजेपियने दवे शिल्पकारिके मर्गपरिश्रमादलधुकरे इतिˆ कत्वा नं परव शिते संप्रति देबोपस्थानयोमये, तदाज्ञां देवो दातुमदैततिं'

राजा- प्रवेशय ते

कञ्च की- यदाज्ञापयति देवः (इति निष्कम्य ताभ्यां सह प्रविंहय |) इत इतो भवत्यौ

प्रथमा--{ जनान्तिकम्‌ ) हला मदणि र॑ अपुतव्वं इमं राअउलं पविसन्तीए पसीदारे मे हिअअं ' (क )

द्वितीया--' जोपिणी{* आत्थ वखु लोअप्पवादो '* आमि पुं दुक्ले वा हिअअसमवत्या कहेदि त्ति ( )

( ) सखि मदनिके अपूरमिमं राजकुलं प्रविशन्त्या प्रसीदति मे दयम्‌ ४९ ...-१

( ) ज्योच्तिके असिति खल ल्मोकप्रवाद आगामि सुखं दुतं वा हदयसमवस्या कययतीति १)

त्यादि ( अहेरथाङ्नामा चक्रवाकं इव मे मम प्रिया मालिका सद चरीव।

(१). 4. ( ततः प्रविशति कंचुकी, 2. काचिकेयः 0 कंचुकी ), (२) पि. विजयता; जयति, जया; ^ . जयत. (३) प. ०१५ देव, (*) पि

` . ०४. 8४7 ¶. ४4 कि, ( ५) 2. 4 . ३. “विशयो ( ) 20. #.

४१५ 17. ( 95 81) ४८९71४४ ५€ ) शरक. ( « ) 2. 4, अहसशरीरे (<) 2५. पै. (१) पि. ५१ सदये. (१. ) 8, 6. ¶. ०७. (११) पि, भ, ( १२) प, ०0, (३३) 2. 4. रजणिए, (१४) 2. &. अन्मंदरगदो अप्या, 13. ©. 17. अभ्मैदर ( 8. ©. अन्भं, ) सगदो अप्या ( १५.) . +. ४१५ हन्ने. ( १६ ) ए. &. 9११ महवि एव्वं एव; 8. 68, (1, महि एव्वं, ( १५ ) 2४, लोमवादो,

+

क! १" १०२११,

(५३९ )

ग्रथमा--सो' सच्चो दाणिं होदु (क ) `

` कञ्चकी--एष देव्या सह देवस्तिष्ठति उपसर्पतां भवत्यौ ( उभे उपसर्ष॑तः ) ( मालका परिव्राजिका चेटयौ ष्टा परस्परमवलोकयतः )* इभे--( प्रणिपत्य ) जेदु भद्र जेदु मणी (ख )} ( राजाज्ञया उभे उपविष्ट | )

रजा कस्यां कल्मयामभिविनीते भवत्यौ +! “1 इभे-- भद्र सेगीरदे अभिविणीदे' ह्य ( )

राजा-देवि गृह्यतामनयोरन्यतरा |

देबी- मारूिए्‌ इदो पेक्ख कदरा दे सगीदसह आरिणी ' रुइ ५. 49

(क ) सत्य इदानी भवतु।

( ) जयतु भां जयतु भद्विनी

( ) भर्तः संगीति ऽभिविनीति स्वः। `

( ) माल्यविके इतः पर्य कतरा ते संगीतखहकारिणी रोचते

चक्रवाक्येव निकटस्यैवति ध्वनिः धरिणी नौ अवयोरननुज्ञातः सपक अनभ्युपगतसयोगा रजनीव प्रति्बेधिकेति शेषः नानुज्ञातः प्रति-

1 = 9

(१) 8, 9. 1. ०. सो. (२) 2. ^. 8५१णो. (३) ४७,

| ©. 1. उपरस्वाम . (४) 2. ©, 1. मालविकां पचराजिकां दष्टा &५. १८५.

(५) 8. 9. 1. 166४ ( ) २, ^, 20 राजा-स्वागतम इतो

निषीदतम्‌ 1, ४०५ राजा-निषीदतमः; राननिर्देशाव; 3, ©. प्रविष्टे, 720. ^, ८1... 10, रनाज्ञया. () 2, 4. अमियोग) भवत्योः (< ) 8. 6. ‰,7 2, ` 6. संगीद९. ( ) 28.6७. 9. 17. 2. ^. अन्भदरे. (१०) 8.06

णु. दक्खंदरा {07 देक्ख कंदरा, ११) ?., ^. 8. ©, 4, सहाहणी,

~

( ५४० )

इभे--( माखविकां दष्टा ) अद्यो भद्रदारिआ (- व्ैणिपत्य . तया सह बाप्पं विकिरतः ) ( ) |

सर्वे सविस्मयमवत्मेकयन्ति )

राजा-- के वौ भवत्यौ का वेधम्‌ |

इभे-- देवे अद्याण भद्दारिभ एस (ख)

राजा--कयमिव

इभे- सुणादु भद्र जोसो भद्रिणा विअअदण्डोहं विदग्भणाहं वसीकरिअ बन्धणादो मोदो कुमाल माहवसेणो णाम तस्स इअं कणी- असी भईणी माल्विआ णाम (ग)

देबी-- कर राअदारिआ इअं चन्दणं क्खु मए ॒पादुओवैओएण

दूसिदं ( )

राजा--अयत्रभवती कयमित्॑भूता ^> “> = ®^"

( ) अहो भतंदरिका

( ) देवअस्माकं भतैदारिकैषा

(ग) शृणोतु भर्ती यः भर्त्री विजयदण्डैर्विदर्भनायं वश्ित्य बन्धनान्मोचितः कुमारो माधवसेनो नाम तस्येयं कनीयसी भगिनी मालि का नाम

( ) कयं राजदारिकेयम्‌ चन्दनं खल्‌ मया परुकोपुयोगेन दूषितं | "क,

षिद्धः सपक यस्याः पक्षे मुनिदापात्‌ प्रतिषिद्धः सेपककौ यस्यामिति विग्रह.

(१ ) 1०. ^. 8 ©. 4, भ्टि. (२) 8.0.14. जेद नेद्‌ भहिदारिभा { इति प्रणिपत्य .विसृजतः )} षृ, ( इति प्रणम्य ) नेद्‌ नेद्‌ मदारिभ ( तवा. सह ‰&५. ); 20 विसजतः. ) 20, 4. ग). ( ) 2०. ^. णिः वा, ए). केयंवा. ( ५) 8. 6.4. ०); प. भह (६) 2. इ; 8.68. ¶. ग, (५ ) 8. ७. 1. बहिणिभा, (< ) 2, ^. अन्नो. (१) 98. 9. 1. अषदेततेण; 7. 4, परिभोएण, |

( ९.४९ )

माङ०--( निःश्वस्य आत्मगतम्‌ ) विदिंणिओएण ( कं ) द्वितीया-- सुणादु भद्र दाआदवसंगदे अद्याणं* भट्रदारएु माहव- सेणे तस्स अमच्चेण अज्जस॒मदिणा अद्यरिसं परिअणं उज्जि गदं

आणीर्दां एसा ( )

राज्ञा-- श्रुतपूर्वं मयैतेत्‌ ततस्ततः

द्वितीया--भर््रं अदोवरं आणीमो ( )

परित्रा ०---अतः परर्महं मन्दभागिनी कथयिष्यामि

डभे-- भट्रदारिरं अज्जकोपिईए विभ सरसंजोओ'" ( )

[= पा एव्न। (च).

उमे--जदिवेसधारिणी अज्जकोसिईं दक्खेण विभावीअदि भञ- वादे बन्दामो (छ)

( ) विंधिनियोगेन

( ) डणोतु भत दायादव गते ऽस्माकं भतृदारके माधवसेने तस्यामात्येनायसुमतिनास्माशं परिजनुमुच्छितवा गूढ मानीतेषा

( ) भर्वैः अतः परं जानीमः

( ) भर्तृदारिके आर्यकौशिक्या इव स्वरसंयोगः

(च ) ननु सैव + ^ (छ) पतिवेषधारि्ार्थकौशिकी दुःखेन विभाव्यते भगवति वन्दा.

ऋः) #:

{ १) 2. 4. विहिणो. ( ) पवि. ०0. सुणादु मा, 84 1684 भटृद- आद &८ ( ३) 8. 6. 1. वि, ००, (४) ९. ^, अवणीदा+ ( ५) ४. एतावव्र॒ ४4 00, ततस्ततः, ) 12. ^, एषि एव 0 मद्रा. (५) 8. ©. ¶. जाणामि, (<) ५, ततः प्रं ०0. अहं, (९ ). 220. “भाग्या, (१०) पि. ०, (११) २० 4. अन्ना कोसिकीए. (१२) 12 20 सुणीअदि; 8. ७. 1. ४४७ णं सा एव्व | 0616 ४4 16६ ७०0, भाठषिका अह वि. ( १३) 2, ©, 1, णमो ३.

( ९४९ )

` परिव्रा०-- स्वस्ति भवतीभ्याम्‌ „“ शाजा- कयमाप्तवरगो ऽय भगवत्यौ: ।१ परित्रा ०-- एवमेतत्‌ विदू०-- तेण हि कहेदु भअवदी अत्तहोदीए्‌ उ्तन्तौवसेसं (क ) परिव्रा०--( स्र््यम्‌* ) शरयता तावत्‌ माधवसेनसचिवं सुमति

ममा्रजमवगच्छ राजा उपर्रितमै ततस्ततः। ५८0") 1 ८०. पररा०-- पत इमां त॒यागतभ्रातकां मया सार्धमपवाह्य भवत्संबन्धा- पेक्षया पयिकर्सौथं विदिशागामिनमनप्रविष्टः

राजा-ततस्ततः

परित्रा०--स चाटव्यैन्तरे निविष्टो गता वागिगननः

शजा--ततस्तंतैः। ~+“

परिव्रा०--ततश्रं ~. 9 ४५.

`“ 4..." तूणीरपंरिणंड मुजान्तराल- 01

( ) तेन हि कवयनु भगवत्यत्रभवत्या वृत्तान्तावशेषम्‌ `

भेदः अतः परं जानीमः त्णीरपटेत्यादि ( तुणीरपदरेन परिणद्धं

कव. (१) 2. 4. मवत्याः. (२) 8.0. पि, ¶. वन्तं ( 9.09, ३११ दव असें. ) ( ३) 3. 6७. (1, ( सवि्कवम ); (४) 8. 8.¶ 0 ६्ला८))8026. ( ) 3, 6. ¶. उपलक्ितः; 2. ^, "उपलश्म्‌. ( ) ए. ७. ग. (७) पि. सापे, (<) 2. बैव्िशि. (१)8. 9. गन्तन्यमतेरेण; 1. ^, अर्न्यन्ते. १० ) २. 4. ४00 अध्वश्रमार्तो विन्न मितं, ¶. इव विन्रमिन॒मारब्ः ११ ) प. 8. ©. किंचान्यत्‌; क्लिभूयः (१२ ) ¶. 8४१५ क्वान्य. प. छ. च. ( १३ ) २, “बच, (१९) नि प्रिद. ( १५ ) ए. "करण, ( १६ ) 7. ध. पिच्छ, (१५) 2. 4. (1. “कारि

1 (६४२ )

|

| # ५,५१५.८

$ 7 कोदण्डयाणि निनदत्पातिरोधकाना-

| “~ , मापातदुष्प्रसहमाबिरभूदनीकम्‌ १०

( जलिक मद-कवति १२ | विदू ०-- भोदि" मा भे अदिक्घन्तं क्स भअवदी कहेदि (क) . 4 `

राजा--ततस्ततः। परिव्रा०--ततो मृहुतं बद्धवुदवस्ते पराङ्मुलीकताः- सार्थवाहयोद्धार- स्तस्करैः। 4...

` शजा- भगवति अतपरमिदार्ीः कष्टं श्रोतव्यम्‌ 3.: 9,6८.9

च. परित्रा०-- तत मत्सीद्‌युः | ¢" ऊर ४: 4 “4 इमां परीप्सुदु नाति" पराभिभवकातराम्‌ 1.4.

भदभ्रिय प्रवभतुरातण्यमसु नगत; ११॥ ` (१८५८० | प्रथमा-- ` 'दंदो गदो तादो मरणं ( ) |

( ) भवति मा बिभेहिं अतिक्रान्तं खलु भगवती कथयति ( ) अहो गतस्तातोमरणम्‌

भजान्तराकं यस्य आपा्ण पारणिपयतं खम्बिनं दोखयमानं शिखिनो मयूरस्य पिच्छानां बहांणां कल्पेन शोभि कोदण्डपाणि धनुष्पाणि

प्रतियेधकानां दस्युविशेषाणामनीकं सैन्यं आपातदुप्प्रसहं प्रबरुसेयोग-

` मात्रेण अव्य॑तदुःसदं यथा तथा निनदत्‌ शब्दायमानं सन्‌ आविर. . भूत्‌ ) भवति मा बिभेहि अतिक्रान्तं पुनरत्रभवती कथयति इमा नित्यादि दुजते आपदि पराभिभवकातराम्‌ परेषां शत्रूगामभिभवं

* 9 ) पि. विनदव्र, ( २) 20, +\. ००. ( ) 3. ७. 1. अत्तरोदी; पर. तत्तदोदी, ( ) 4. ( ४।८७) ४४४९ ) मुगयोद्रारः 1, ए. ७. पष. वष्दायुधाः ( ). 8. ७. ए, ¶. मृताः, 2, 4. ४५।॥९ तस्करैः 1619 धिः ॥118, ( ) 2१, हन्त; 1. ४५१ इन्त, (* ) 3. 6. ¶. अतः; पि इतःपरं, ( < ) 2१. कषटतर; कष्टतरमिदानीम, ) पि. समतिः, ( १< ) 20, ‰. 8. 9. 7. दविः. (5) ) प. 70. हंहो ( प्र. अहये ) हदो सुमदी; 8. 0.4. हा हृदो सुमदी णं; हदो तादो अन्जसुमदी अह्याण

(88)

दवितीया--भदो क्ख भद्रिदारिाएु इअं समवत्या संवृत्ता ( कं ) ( परित्रानिका बाष्पं विकिरति ) राजा--भगवतिं तनुमुतमीरशी लोकयात्रा शओोच्यस्तत्रभवा- न्सफलीकृतभतंपिण्डः ततः दः (१

परित्रा०-- ततोऽ मोहमुपगता यावत्सनञामुपलभे तावदियं दुर्लभ दर्शना संवृत्ता

~ 8 4 १८५६५) 3

राजा--महत्वल््‌ कृच्छरभनुभतं भगवत्यीं ‰.०,८६2 परित्रा ° भ्रुः शरीरमभिसात्कता पुनर्नवीकंतैैधव्यदु :खया मया त्वदीयं * दे शमवतीर्येमे काषाये गृहीते

राजा- _य॒क्तः सज्जनस्पैषा पन्थाः ततस्तैः ˆ" "< `

परिव्रा० --तत इयमप्याटेम्यो वीरतेनं॑षीरतेनाेवीं गता देव. गृहे लन्धप्रवेशया मया पुन दष्टा इत्येतदवसानं कथायाः

~

( ) अतः खल भतंदारिकाया इयं समवस्था सेवृत्ता

~ 9 ^, १५५2. ५.4.40)

आक्रमणं तस्मात्कातरां दुःखितामिमां मालविका परीप्सुः पर्यु परित्रातु मिच्छः * आग्जञप्युधामीत्‌ ' इतीत्वम्‌ अत्र च्ेपोऽम्यासस्य ` इत्य- भ्यासलोपः पर्यातिः स्यात्परित्राणं हस्तधारणमित्यापि ' इत्यमरः भतं परियः स्वामिभक्तः प्रिेरिषैरसुभिः प्राणैभतुरानृण्यमनृणत्वं गतः प्रातः

(१) 8.6. ¶. तदो. (२) `. विसृजति, 8. 9. 4. सृजति,

) 2५. ^. ०). (४) 13, अ. प. 4, त्यजा. (५ ) 20. -&. शोवि.- तन्यः; प. शोच्यं, ( ) मर्तप्रतिज्ञः; 8. 0. 1, १५५ तपस्वी, (* ) 2, ‰. ए. ¶, ०0.; पष, ततस्ततः ( < ) 2३, लभे, 1, प्राति, 9, 6. प्रतिलेभे. ( \ ) }३, संप्रवृत्ता, ( १०) 120, कष्ट. ( ११) 8. ©. 1. तत्रमः वत्या, ( १२ ) 120, 4. भात्‌ ° ( १३ ) पि, “भत, 3. ©. ¶. ०, वैषन्य, (११४ पि. त्वदीयदेश, (१५) ए. ७.1, ०0. (१९) 8.09... सेयमारविकेस्यो वीरसेन वीरसेना्च ( 3. अ. 1, ००१, ) देवीं गता देषगिहे हन्धप्रवेशया (13. 6, 1. ३५५ मया) दृत्येतदवसानं कथायाः, (१५) ष, ०,

९४५ )

भाकं०--( आत्मगतम्‌ ) किं णु खु संपदं भद्र भणादि (कं)

2 १००... ५५.

राजा-अहो परिभवोपहारिणो' विनिपाताः कतः | “^ >~ "^~

प्रेष्यभावेन नामेयं देवीशब्दक्षमा सती "` ` ` स्नानीयबसखरक्रियया पत्रौ०। बोपयुज्यते १२॥ देशी- भअवदि तए अभिजणवदि मारकिअं अणाचक्खन्तीए्‌ अस. पदं किंदम्‌ | ( ) परित्रा -- शान्तं पापं शान्तं पापम कारणेन खुं मया नैभृत्यं मदलवतम्‌ 1420 ~ ~+ ~ दे्ी-किं विअ ते" कारणम ( ) ५५{ ५...

परित्रा०-- ˆ इयं पितरि जीवति केनपि लोरकैयात्रागतेन सिद्धादेशेन ˆ "

साधुना मत्समक्षदिष्टा सेवत्सरमात्र' ` प्रेष्यभावमनुभूय ततः सदशभरतुंगा- मिनी भविष्यतीति तदवडथं भाविनमादेशमस्यास्त्वत्पाद शुश्रूषया परिणी मन्तव्य कालप्रतीक्षया मर्थ साधुक्तमिति पश्यामि | >...

4. ------------------------ (च 41, ~

(कं) किंनु खल सांप्रतं भर्ती भणति (ख) भगवति त्वयाभिजनवततौ मालग्रिकामनाचक्षमाणयासाप्रतं कृतम्‌ 4.6

| अहो इतः समतिः प्रेष्य भानेरयादि देवीशब्दक्षमा देवीशब्दयोग्यां

+ (१) 8. ©. पररिमिवप्हारिणो. (२) 4. पररर्णो. (१) 8.0. मि. धू. ०19, 0)6 शान्तं पाप्रम्‌ . (४) पि. केन कारणेन. (५) 23. (३, पि. पू, नै्ग्यम्‌; नैत्यम्‌. (€) (0. ^. अत, २० (एथ). कि वा कारणम्‌, ( ) 2. ^. ४५५ सजा--पदि वकन्यं त.कथ्यतां, ( < ) 12). ६१५ श्रयतां

१६) पर््द-यन्ती 10१7 पितरि जीवति (१०) 8.3 पि, देव (१ १):

ए, ©. 1. शिवादेशकेन, ५, सिष्ादेशकेन, (१२) 8. 9.4" न्यिः; 4. समादिष्टा. (१३) 8, ७, 24, 1, ५५1६6 इयं 161९, ( १४) तदेवं भाति; 8. 1. ०१४, 17011 {1118 [४० विज्ञ प्रयति 19 कुकी "3 8 [60011 &110 1880 118 1611,411010 8[0660॥ 8100& 1४0 ४18. ( १५) पि, परिणत, ( ११ ) २. 4. ४५ तत्‌.

१९

| + "प

| 2,

( \४६ )

शजा--पुक्तपिक्षं ति ^ भी रिः

इश्च को रेव कयान्तरेानतरिपम्‌ ¡ भमो सो ।निदरभग तमनुय उेयमवधरितभस्माभिः देवस्य तावर भिप्रेतं श्रोतुमिच्छति

रजा मैतं तत्रभवतो पनमाभेनयमिदानीमब

स्यापपितुकामोऽस्म += # >`

(५. > ५4) ४६८८ \^(९\

¡ पृथश्बरदाकूखे तिष्टमुत्तरदक्षिणे |

(लि. ^‰..१-५

नक्तं दिवं भिभज्योभो शीतेष्णारणाविब १३ कश्चङ़ी- रेव एवममात्यपरिषदे निवेद यमि €५६..६ ( रानादुलयानुमन्यते ) ( निष्क्रान्तः कञ्चकी | )

प्रथमा--( जनन्तिकम्‌ ) भद्दारिए दिदि भट्रदारभ अद्धरग्ने पटिद्धं गमिश्सदि ( )

( ) भर्तृररिके दिष्टया भर्तृदारको धराये प्रतिष्ठां - |

सतीयं मालिका प्रेष्यभावेन परिचारकत्वेन उपयुज्यते किल पोर्ण बा धौतकौशेयभिव वेत्युपमायाम्‌ उपमायां विकल्पे वा इत्यमरसिंहः स्नानीयवस््रक्रियया स्ननीयवस्त्रकरणेन भगवति त्वयाभिजनवती माल. विकामनाचक्षाणयासाप्रतमयुक्तं कतम्‌ तौ धा तौ यज्ञ. सेनमाधवसेनी पृथक्पाथैक्यनोत्तरदक्षिणे वरदाकूङे वरदा नाम तत्रत्या नदी तस्याः कूरे उभे तीरे शिष्टां रक्षताम्‌ भर्तृदारिके दिष्टा भरतृदारः

(१) पि. प्रतीक्षा, (३) 2. 4. प्रविश्य कंवुकी &०..अंत्तितिमिदममात्यौ ` &, (१) 8. 6, ¶. उपस्थितमभतः ( अवधासिभस्माभिः ); पि. अनहटितममत्‌ ११ ०, अस्माभिः. ( ) 2०. ^. अभिमते, 1. 0. 2, ` ¶, अभिप्रायं, ( ५) 3. ७. ००, (६) 2, 6. 9. ०. (५) 2 इयोराज्यं . स्यापयितुमिच्छामि. (< ) 13. ©. 1. दिनं, ( ) 8. 8.4. 2४. विज्ञापयामि. ( ) प, ४१५ महिणा, ( ११ ) पप, गमविभ्यते,

+ 3 ऋः + @# 3 4 '# भवुक ८7, +न .1.42-4 ~~ @# ) ^. ४» &८. 6/7 21-4 4 1“

( ९४५ ) माषट०- एदं दाव बहुमन्तव्यं जं जीविद संसआदो पुत्तो ( ) ( पुनः" प्रविङय )

(ॐ कटुकी -- विजयतां देवः देवै अमात्यो विज्ञापयति ।`कल्याणी ` देवस्य बुद्धः मन्तिपरिषदो्येतंदेव डनम्‌ कृतैः ~.

^ द्विधा विभक्तां ्ियमुदरहन्तो `

११४ | 70 | | वी 2 श्युरं रथाश्वातिव संम्रहीठुः। कर) ५५५ 4 (= +

^ चौ स्थास्यतस्ते नृपती निदेडो ^.4..

८. परस्परावधहनिषिकारौ १४॥ ^ ^ + - {+

शज्ञा-- तेन दि मन्त्रिपरिषदं ब्रूहि सेनापतये' वीरसेनाय चलि". स्यतामेवं क्रियतामिति --यदाज्ञापयति देय: ( इति निष्क्रम्य, सप्राभेतकं ङेखं नः

गृहीत्वा पुनः प्रविदपै ) अनुष्ठिता प्रभोराज्ञा अयं पुनरिदानीं देवस्य सेनापतेः पुष्पामित्रस्य सकाशात्सभ्रीमृतको लेखः प्राप्तः प्रतयक्षीकरोलेनं देवः।

छ"

( ) एतत्तावदरहु मन्तव्यम्‌ यज्जीवितसं शयान्मुक्तः

को.ऽराज्ये प्रतिष्टां गमयिष्यते | द्विधा बिभक्तामित्या{द ( उक्त प्रकारेण द्विधविभक्तां सेगृहीतुः संयन्तुः धुरं रथाश्चाविव श्रियं वहन्तौ धार- यन्तौ तौ यज्ञसेनमाधवसेनौ नृपती परस्परावग्रहे युद्धादिना आक्रमणे

(१) 2०. एवि. (२) 86. भणिक्न्वं, (३) 2. 4 0. पनः (४) 2, 4. ०. 8१ 8. 9७. 1. देवस्वं ४{१९। अमात्यौ {७7 देव, ` ( ) 20. अहो. ( ) 2"). एवसेवदरशन, (८७) 13.6७. 4.14. 2५. भ, (<) ¶. न्पतेः; 8.6. पि. मृपते, ( « ) ६. उपग्रहृ, ( १० ) 8. 0७ }३. 1. सेनान्ये, ( ११) पि. 4. करष्यतौ 8. ©. कथ्यतां. ( १२) 120. 4 . तथा {07 ६16 8€11€11९. (११) 8.6. पि. प्रतिः. (१४) 9.9. दि. 4, ०. पृनरिदानीं. ( १५)

8. 6 1.0 1 सो तरीयप्राभृतकं &८,

( ५४८ )

शना सहवोाव वचर परिगृह्य प्रामृतकं परिलनायापंयति ` खं नाटबेनोदरषटयति ) ०८.

हेवबी--८( आत्मगतम्‌ ) अद्महे तदोमृहं एव्व णो हिअअं सुणि स्स दाव गुरुअणस्ते कुसल्ाणन्तरं वसुमितस्स वृततन्तं अहिअर य॑खु मे पुत्तओ सेणावदिणौ णिउत्तो ( )

शाजा--( उपविश्य वाचयति ) स्वस्ति मबा पुष्पमित्रो बरैदि शस्यं * पुत्रमायुष्मन्तमभिमित्रं सेहात्परिष्वज्य अनुद हीय विदितमस्तु योऽसौ राजमययज्ञेदीक्षितेन मया राजपुत्रशतपरिवृतं वसुमित्रं

^“ गोप्तारमादिश्य सेवत्सरोपावतंनयों " निरगलस्तुरगो " विपैः सिन्धोदंकष

णैरोधसि चरन्ञश्चानीकेन यवनानां ° प्रार्थितः | तत उभयोः तेनयोभेहानासी त्संमदं | =...

----------^ "व ५.५८. €+ ५०१०५५६ ५५११ [+ {#८। डः ~ ५य्ब' {^

( ) अह्महे ततोमखमेव नो हदयम्‌ श्रोष्यामि तादुरुजनस्य

करुरालानन्तरं वसुमित्रस्य वृत्तान्तम्‌ अधिकारे खल मे पुत्रकः सेनापतिना

नियक्तः | 3

निर्विकारी द्वेषरदिती संतौ ते तव निर्देशे आन्नायां स्थास्यतः ) अद्ये

“` इति हर्षे अतिभारे खल पुतकः सेनापतिना नियक्तः यज्ञशरणा

दित्यादि अत्र राजयज्ञो नामाश्चमेधः राजपुतरशतपरिवृतं राजपुत्राणां

\ ^ (9) ८. 4. सहसोपसूय प्रमृतक ¢. भरामतं ) सोपचारं शिरसि श्वा प्रिजनायार्पयति ठेखं नाग्येनेद्रषटयति; 8. ©. ३. 1. उत्याय प्राभतके

सोपचार गहीत्वा टेखे (8, 0. सल्ल, }. टेप {€ सोपचारं ) परि.* अर्पयति परिजनः उद्धाग्यति, उद्वेजयति. ८२) 7. 4. 8.0. 1. गृष्जण. &. (३) 8. 6. 1. अदिभारे, 2. अद्षिरे( ४) 9. 0.9. 1. ०४, मे, ( ) ३. ७. ¶. क्ेणवदी, ( ) प. ५५५ लेखं सोपचारं गरीवा. (७ ) }प, वैदिशस्तत्रत्यं, (८) प, ०११ ब्द. (१) 8. 8. }\.1. शनयज्ञ,” (१०) 13. 0. (1, संवसराय निवर्तनीयो, ५. संवत्सरोषार नियमो, (११) 8.9.17. त्रंगमो, &. तुरगो. (१२) 8.6. 1. विसभितः ८११) 8. ©. 4. द्षिणे रोषति, ( १४) 8. 9. ३, 1, पषनेन्‌,

( ९४९ ) देवी विषादं नाटंथति ) राजा--कयमीदशां संवृत्तम्‌ ( शेषं पुनवाचियति ) , , ` 0 = ततः परान्पराजित्य बसमित्रेण धन्विना। ` ° भ्रसह्य स्हियमाणो मे बाजिराजो निबतितः १५

देबी- दाणि आस्ससदि मे हिअअ ( )

राजा--( ठेखशेषं वाचयति ¦ ) सो{हमिदानमिंशुमतेवै सगर चैत्रेण प्रत्याइताश्चो यक्ष्ये | तदिदानीमकारहीनं विगतरोषचेतसा भवता बधूजनेन सह यज्ञसेर्वेनायागन्तव्यमिति | = ~^ ^^

राजा-- अनुगृहीतोऽस्मि

एरित्रा °-- दिष्टया पुत्रविजयेन दम्पती वर्धेते (देवीं वि्गेक्य ) | भन्रास्ति वीरपत्नीनां छाष्यानां'" स्थापिता धुरि वीरसूरिति शढब्दोध्यं तनयाच्वामपस्थितः १६ `

( ) इदानीमाश्चपिति मे हदयम्‌ |

शतेन परििषटितम्‌ तथा श्रतावश्चमेधप्रकरणे ' शतेन राजपर्रैः सह

इति ततः परः नित्याद्‌ ( दियमाणः परैरिति शेषः मे मम वानिरा जः अश्वश्रष्टः अश्चमेधीयत्वलक्षणाक्रान्ततवात्‌ श्रं प्रसद्य बलेन निवर्तितः प्रत्यादतः इत्यर्थः ) अनेनाश्चस्तं मे हदयम्‌। भत्र सस्यादि (मत्रा खानि. ना अश्चिमित्रेण वीरपत्नीनां वीरः पतियासां तासां छघ्यानां स्रीणां धूम्र स्था पितासि तनवाद्धेतोः रसति वीरमतित्ययं शब्दः त्वःमपरिथतः प्राप्तः )

(१) ?. निक्प्रयति; ^, रूपयति. ( ) 8. ©. ¶. 00. शेषं, ( ) 8. 9. पष. 1. आभ्ससिदं मे हिअअं, (८ 2) ६, शेषं पनर्‌ &८. (८ ) प. “अंशुमता सगरपृत्रेणेव &९. ) 2. 4. काठर्हानं* (*) 2. ^, संतर्शनाय. ( < ) ‰, षति, ( ) 8. 9. पि, ¶, ०, (१) ?, 4. "लाष्यायां.. 4.1.“

3 |

0

( ५५० )

षिदू०-- हेदि परितुदेद्यि जं पिदरं अणगवो वच्छ ( ) पारेव्रा ०--करभेन यूयपतिरँनुकतः 4.14.

कुकी रेव मयं कुमाः - नैताबता वीरबिजुम्भितेन 1.11... | चित्तस्य नो विस्मयमादधाति .::: 14.44 यस्याप्रधृष्यः प्मवस्त्वमुचचै- +... ६५4८: वेदरपां दग्धुरिबो जन्मा १७॥

राजा--मैदरन्य यज्ञतेनरयालमुररीैत्य मू्च्य्तां सर्वे बन्धनस्याः कत्र की--यदाङ्नापयति देवः *( ईति निष्क्रान्तः ) देबी--जयतेगे गच्छ इराैरिष्पमुहाणं अन्तेउराणं पुत्तस्स बँतन्तं

णिवेदेहि ( ) ( ) भवति परितुष्टोऽस्मि यतितरमनुगतो वत्सः |

( ) जयसेने गच्छ॒ इरावतीपरमु वेभ्यो ऽन्त पुरेभ्यः पुत्रस्य वृत्ता न्तं निवेदय

भगवति परितष्टोस्मि यापतरमनजातो कत्सः। मै ताद तेति ।( एतावता शत्रुपराजयपूर्वकाश्वाहरणरूपेण वीरविनुभितेन _ शरवेष्टितेन नोस्माकं वित्तस्य विस्मयं आदधाति अविस्भयाधानकत्वे हेतुमाह अप्रधृष्य ~~~

(१) 8.6. ¶, धारिणी-भोरि &८. १४०८ 1). मे. पप. देवी-भअविदि प्रितुदरद्धि अणनदो मे षच्छओ., (२) 98 6७. 2,7., ?. 4. रजा भोगस्य ( 1, }. ७. †. नन ) कलमेन ( ?. 4 . खल्‌ ) यूथपतितुर्तः (३) 8.0. ¶. युयप्तिः (४) 8. ©. 7. ?. ^. छ. चवि अय कुमाः (५) परस्य, (६) 28.09. 9. 17. अध्रैः(*) 89. पि. 4, ऊरीरय. (< ) ६, मोचयत. (१९) 2०9 ^. तथां 07" यदा... ८१. ) 8. 6. 4. मेक {9 हरावरि ( ११ ) 7. &. ५५५ विभम, `

( ६५९ )

( प्रतीहारी तयेति प्रस्थिता ) हेवौ-- एदि दाव ( ) भ्रती ०--( प्रतिनिवृत्य ) इं द्धि ( ) देबी--( जनान्तिकम्‌ ) जं मए असोअदोहल्णिओए भालकिभा- पइण्णौदं तं से अहिजगं गिवेरिअ मह वअणेण इरावदि अणुणे हि तुए अदं स्चादो बेभंसइदव्वेत्ि ( ) प्रती ०--जं देषी आणवेदि (इति निष्क्रम्य पुनः प्रविश्य ।) भद्िणि पुत्तमिअअगणिमित्तेग परितोषेण अन्तेउसणं आहरणाणं मञ्जूप हि संवुत्ता (घ) देबी--कि एत्य॑ अद्रिं साहारणो ताणं" मह अथं अ- व्भुदओ ( ) (क ) एदि तावत्‌ ( ) इयमस्मि | ( ) यन्मयाश्ञोकदोहदनियोगे मालविका प्रतिज्ञातम्‌ तदस्या अ-

भिजनं निवेद्य मम॒ वचनेनेरावतीमनुनय त्वयाहं सत्यान्न भ्रशयि- तन्येति 1.1

( ) यदेव्याज्ञापयति भर्धरिनि पुत्रविनयनिमित्तेन परितोषेणान्तः पुरणामाभरणाना मञ्च षास सुवृत्ता ८६८४ १५११ ९, ९, ८१ ७०५ ०५.

नः #

( ) किमत्राश्व्यम्‌ साधारणः खल तासां मम चायमभ्यदयः

=१,५५॥

अन्येवपितुमशक्थो यस्य वीरस्य अपान्दग्धुरमेवंडवानलस्येव ऊरूज- न्मा ऊरुतो जन्म यस्य ओैऋरषिः अय उरु ्रे्ट जन्म यस्य

(4) 8. ७. प्रि, 1, ०४. तयेति; 2. 4, प्रति -तह ( इति &९. ) (२) पर परिवल्य, ¢, उपसृत्य, ) 1. 4, 1१८५1५४9. ( ) 2, 4. ४५५ ५५ 1९५4 0 (16 10 छपर ९२६६. ( ५) २. ^. परिः १५५ वि, ( ) 3. ©, 7. ५५५ च, (७) एवं क्रं 071 कि श्यः 8.9.14. अं कि &५, ( < ) प, साहारणो क्वु, 8. ५७. †, साहारणो अभ्भुदओ. ) 9. ©. 7. भन्तेउराण, ;

(१)

प्रती ०--{ जनान्तिकम्‌ ) भरिण इरावदी उणं विण्णवेदि सरि सं" क्खु पहवन्दीए्‌ दे बअणं पुदमसंकष्पिदे नुग्नइ अण्णहा कादं ति (क )

देबी--मअवदि तुए अग॒ण्णादा इच्छामि अज्नसुमदिणा पुदमं्॑क- षिदं अज्जउत्तस्स मालबरिअं पडिवादेदुं ( )

परित्रा ०--इदानीमपि त्वमेवैस्याः प्रभवति

देी--(माल्विकां दमे गृहतः 1) इमं अञ्जउत्तो पिअणिबेदणाणु ख्ूवं पारितेतिओं पडिच्छदु ( )

( राजा सत्रीडं जोषमास्ते ) ५.८ देबी--( सस्मितम्‌ ) किं अवधीरोरे मं अज्जउत्तो ( )

गवन ¢ 84 ( ) भ्रिनि इरावती पुनविज्ञापयति सदशं खल्‌ प्रभुवृन्त्यास्तव वचनं प्रथमसंकल्पितं युज्यते <न्यया कर्तुमिति! ^ ( ) भगवति त्वयानुज्गते च्छाम्याधिसुमतिना प्रयमसंकल्मितामारप- पुत्राय मालबिकां प्रतिपादयितुम्‌ ( ) इदमायपुबः पियनिेदनानुरूपं पारितोषिकं प्रतीच्छतु ( घ) ्रिमतधीरयिममाधपत्ः |

तवाभू पस्त्व प्रभव उत्यतिकारणं उत्पत्तिस्यानं एतादशेत्वक्तिकस्य- बीर चेष्टितं उवितमेवोति विस्मयाधानकवं इति भावः यज्गसेनशालमु- रीरुत्य ग्रहीत्वा तेन सदेत्यथैः तस्याभिनवबद्धतात्‌ प्रयगृक्तिः ) अत्र किमाश्वर्यम्‌ साधारणो.न्तुराणां मम चायमम्युदयः ्िने इरावती

(१) 2. 4.०. (६) 2.4. 6. 1. ©). (३) पि, रषी पहवन्तीए तह वअणं सेकष्थिदेण &८, 3. ७. 1. क्व पहुवीए पहवन्तीए तव वअण | संकप्विदेण &०. 12०. ^, कलु दैवी विण्णवेदि पढमं संकविदं &०५ . (१) ८०. 4. 8. 9. 7. अशग॒मदं; अणमदा. (४) 8. 9.4. कि. (4) 8, ७. 7. ००. एव, (६) 2. 4. ०१५ माल्विओ. (* ) 8.. 0.2. 1. बीड माटधति (८) 2. 4. ४04 त. (१8. 06. 9.1. 9, `

( ६५३ )

विदू ® --भोदि एतो स्मेअव्ववहारो सव्यो णववरो लग्नादुरौ. होदि ( क)

( 0&-ट {4 ८८4 २५ ~+ ( राजा विद्षंकमवेक्षते )* .~- (~ ~~ ८1/40. बिद ® --अहवौ देवी पणअविसेसं दिण्णदेवीसदं माखनिभं अत्तः

भवं पडिग्गहीदु इच्छदि ( )

देवी - एदि राअदारिआए्‌ अदिजणेण एव दिण्णो देषीसदो किं पुणरुत्तेण ( )

परित्रा०-- मा भवम्‌

( ) भेवति एष रोकग्यवहारः सर्वो नववरो कज्नातरो भवति ( ) अयवा देव्या प्रणयविशेषं दत्तदेवीशब्दां माखविकामत्रभवा

नप्रतिग्रहीतुमिच्छति ` ` ` “^ ./^““ ~

( ) एतस्या राजदारिकाया अभिजनेनैव दत्तो देवीशब्दः | किं पुनरुक्तेन ^“

विज्ञापयति सदशं खल प्रभवन्त्यास्तव वचनं प्रथमसेकल्पितं युज्यते {न्ययाकतुमिति इदमायपुत्रः प्रियनिवेद नानुरूपं पारितोषिकं माल- विकां प्रतीच्छत अत्र प्रीत्यत्पादनत्परसादो नाम सध्यङ्मृक्तं भवतिं भवतिं एष ल्ोकव्यवहारः सर्वोपि नववरो ख्ज्जातरो भवतीति अथवा देव्या प्रणयविशेषं दत्तदे वीशब्दां माखविकां तत्रभवान्म्रतिग्रदीतुमिच्छति

(१) ¶. अत्थि क्खु छोअप्यवादो सत्वो नणो णववरो लन्जदरो होदिति) 2... एषो लोअधणवग्धरो छज्नउलोहोदि पे, 1. ^. एव्वं लोअप्पयषादो &८. (२३) 2. &. ४५५ वि, २. 4. लन्नाटुओ, ( २) ©. ¶. ४५ त्ति. (४) र. अयक्ष. (५) ९१५ द्वा ट्वं विअ होदि एसो लोअप्पवादो सन्वो णववरो लन्जारो होरितति। ८६) 8. ©. 4.4. अह; £. इमे देवीर्‌ दिण्णदेवीसदं; 20. अहवा इमे देवीए पणम &. (७ ) 3. 9. ग. 2७84 वं किदप्यणः &८, ( < ) 8, ७. 1. ४११ अ, ( ) 8. 6. ‰* श्व 81४७7 दिण्णो.

(१.

( \५४ ) ५५१५४१६... 2

` "क ५८ ¢, छध्याकरसमुत्पन्ना मणिजातिरसंस्छेता :..\ जातरूपेण कल्याणि नं हे` सेयोगमहैति १८॥ देबी--( स्मतौ ) मरिपेद्‌ भअवदी अब्भुदअकहाए मंद किदं जअसेणे गच्छ दाव कोसेअपत्तोणं ` उवणो ( ) प्रती ०--जं भद्िणी आणवोद ( इति निष्क्रम्य पञ्नोणौ गृहीत्व परविरय ) देवि एदभू ( ) देवी--( मालविकामवगुण्ठनव्तीं तवा ) अज्जउत्तो" दाभिः इमे ` पडिच्छदु ( ) | राजा-देवि वच्छासनाद प्रयुत्तरा वयम्‌

( ) यद्घ्धिनी आज्ञापयति देवि एतत्‌ ( ) आर्यपुत्र इदानीमिमां प्रतीच्छतु

अप्याकरेत्यादि स्पष्टोऽयं: अत्र छन्धार्यस्य स्थिरीकरणात्कतिर्नौम सेध्यङ्मुक्तं भवाति मर्ष॑यतु भगवती अभ्युदयकथयोचितं ल्य्॑ितम्‌ जयसेने गच्छ॒ तावत्‌ कौशेयपत््ोर्णयुगलमुपनय हन्त हर्षे प्रतिगु-

) ष. अप्याकर...त्न्नो मणिजातिपुरस्छ्तः, 8. ७. ¶. अस्माकमस्सव ¦

`“ मूणर्मणिनातिपुरछ्तः ¡ } 1. ©. }२. 1. सहि ३) 2. &, ००, (४)

प, उदं 07 मए; ¶. पम अवगृधिं; 8, ७, पढमं & (५) पि. पर्तण्णजु अलं; 1. पत्तोणंनुअलं, ए. 0. कोतिं, ( ) 2०, &. तह णिः 06 86०६९००6; पपि, वेवी 01 मग्िणी ( ) 8. ७, च. 1. 4, निष्कान्त, (<) पि, ४५१ पनः ( ) ^. देवि श्यं छि. ( १० ) 2४. ४५ तं. (११) 29. अवख, ( १२ ) 2, 4, 19६००1१० &९. (१३) 8. 6. अन्जज््त॒ ` इअं पडिच्छिआा, ¶, अज्जञत्त इम पडिच्छीअद्‌; 2. 4, ००, इमे, ( १४) 8. ७. प, 1. लच्छासनात्‌ ( प. प्रश्चा एव, 8. 9. 4. प्त्यनुरका ) बयं ( अपवार्य ) हन्त ( प. प्रतिगृहीता, 8, ©. 1, प्रतिगृहीतं )* 1 ^. १. 1

( ९५५ )

परित्रा०--हन्त प्रतिगृहीता बिद ०--अहो देवीए अत्तहोदो' अणुऊलदा ( ) ( देवी परिजनमवल्ोकयति ) ~“ परिजनः-( मालविकामपेत्य ) जेदु भद्विणी (ख ) ( देवी परि्रानिकामवेक्षते ) परित्रा ०--" नैतवित्रं त्वा | (४ परतिपक्नेणापि पतिं सेवन्त मवत्ससाः साच्व्यः। ` अन्यसरितां शतानि हि समुद्रगाः प्रापयन्त्यञ्धम्‌ ॥१९॥ ( प्रपिशय )

निपु०--जेद्‌ भद्र इरावदी विण्णवोदे जं" उवआरादि क्षमेण तदा भद्िणो अर्परद्धं तं' सअं एष्व भद्विणो अणुं णाम मए आ-

( कं ) अहो देव्या अत्रभवतोऽनुकूकता ( ) जयतु भद्विनी

हीता वहीकृता अत्र वाज्छितावापतरानन्दो नाम हु मुक्तं भवति प्रतिपक्षेणेस्यादि ( भर्तवत्सला स्वाम्याराधनतत्परा नाये: प्रतिपक्षेणापि

(१) ए, ७. प. 7, ०, (२) 5, ७. ¶. ४११ धारिणीए्‌ इति परिजनं &८, 0101198 देवी ); 4. ०110, 000 देवी परि &९. ८४० देवीं पएचिानिकां & ३) 2. ७. 1. 1९९४६ ( ) कप. निरीक्षते

8. 6.7. निर्वणयापि, (५) 8. © 7. ४११ देवि, ) 4. ०, (4) 8. ©. चि. 1. अगि नटं ( 4. रसं &8 216170891९6 ). (<) ३, ७. पर. 7. उदषिम्‌ ( ) 2, ७.7. ६००९५. (१०) ए, ७, ¶, ४4 हि. ( ११ ) पष, अवरद्रा; 2०५ ^, अहं अवरद्ा; 8. ७. 1\ रहं मष्िणो अवरद्राः (१२) 8. ©. 7. णं सो अत्णो मद्रा अणुपदं मद्विणो अअणुरूवं एव मए आअरिदं संपदं पुण्णमणोरहो मद्रा जादो सेपसादमेरेण &५. २०.

& मदविणो अणुकलं मए &0. 2०, ^, 01. {00 तं &९, & 76४ र्पदं पूण्णमणोरहो मदा | अ्हवि &,, 20. २१ अहंवि 0910919 मभ्णि,

कक ˆ ` ` कका 1 -- -

५.१

शु

५१८५ ७१.१.५५. ~ च्द्र अक

# धि ~ 1 11. (२.95 (... # ~ [ 9 ~ ककन द्् +~

( ९५६ ) , रिदं सेपद पुण्णमणोरहेण भद्विणा पसादमेत्तेण संभावइदब्व त्ति (क) `

देबी--णिडणिए अवक्ष्सं ताए सेदेसं अग्जउत्तो अणुजाणिस्मदि (ख) निषु०--अगुगहीदन्नं। (ग) ५4. "+= परित्रा ०- देव॑ अहममना भवत्सेबन्धेन चरितायै माधवसेनं सभाज- पितुं इच्छापि यदि मे तव प्रसादः।

देबी--भअर्वेदि जुत्तं अद्ये परिचडइदुं ( ) राजा-- भगवति मदीयेषु क्खेषु॒तत्रभवतस्त्वामुदिश्य प्भाजना- ्षराणि पातपिष्यामः

परित्रा०-- युवयोः सेहेन परवानयं जनः

( ) जयतु भर्ता इरावती विज्ञापयति यदुपचारातिक्रमेण तदा भतुरपराद्धं तत्स्वयमेव भतुंरनुकूलं नाम मयाचरितम्‌ सपरत पणैमनो- स्येन भर्त्र षाद मतर सेभावयितव्येति

( ) निपुणिके अवश्यं तस्याः सेदे शमार्यपुत्रो नुजञास्यति

( ) अनुगृहीतास्मि

( ) भगवाति युक्तमस्मान्परित्यक्तुम्‌

सदाथ तृतीया प्रतिपसखिया सहापि पातं सेवते ततर चा॑नतः खषद्रगा `

(१) वसन्ते सेविदं अज्ज &८, ¶, प. दे सेविदे, ए, वाए सदे, (>) }8. जानि स्सारि, ^+ ताए सेविदं नाणिःसारे अज्जो, (3) 1. 4, ने देवी आणवेदि (इवि निष्कान्ता |). (४) ०, देवे; १, देव अमुनायुक्तसवं ' ‰५. 1. देव अमुकत्वतसंब ८६८, 1, ५७. देष वट्क्ता त्वं &८, (५) त्वदाज्ञया दृटा नयतसाफल्यं कतुभिः च्छामि; प. सभाजयितृं गच्छामः ( ) 4. भअवदीए ४४५ 2०, &, ०५ #0 ४18 अवसिदकन्नाए. ( « ) 9, 6. प. 1. ०५ छव, (<) 8.6. ` %, श्मननानि यातविष्यामै, ( { ) 9, (७ प. ¶. स्ते.

( \५७ ) देवी--आणवेदः अज्जउत्तो भूओ वि किं पिअं अणुचिद्ामि (क) राजा--किर्मतः परम्‌ तथापि भवत्वेवं तावत्‌ ^. <4. 4\42 =. त्वं मे प्रसादसुमुखी भव चण्डि नित्य- मेताबदेव मृगये परतिपक्षहेतोः" ^ ^ ~““ ' “^ *-“

( ) आज्ञापयत्वायंपुतरो भूयोपि किं प्रियमनुतिष्ठामि

नयोऽन्यसरिच्छतान्यापि अब्धि समद्र प्रापयन्ति ) जयतु भर्ता इरा- वती व्रिज्ञापयति यदुपचारातिक्रमेण तदा भतुरपराद्धं तत्स्वयमेव भर्तुरनु कूटं नाम मयाचरितम्‌ पणमनोरयेन भ्रौ प्रसादमात्रेण सेभावयियव्येति निपुणिके अवश्यं रोषमायपुत्रो हास्यति आज्ञापयतु आर्यपुत्रः किं ते भूयोपि प्रियमनुतिष्ठामि त्वं प्रसादेत्यादि हे देवि त्वं मे मम नित्यं सर्वदा प्रसादसुमुखी प्रसदेन प्रसन्नतया शोभने मुखं यस्यास्तथोक्ता भव भूयाः एतावदेवेदमेव हदये मनसि प्रतिपादनीयमपेक्षणीयम्‌ इतःपरं ` भरतवाक्यम्‌ आशास्यमित्यादि प्रजानां जनानामभ्यधिगमात्संप्रा्तः परिग्रहादित्य्थः तस्मात्परभुत्यारभ्यान्निमितर ९स्मिन्ञायके गोपरि रक्षके सति तासां प्रजानामाश्ास्यमपेक््यवस्तु ( ईतिविगमप्रभुति अतिवृष्टयादि रा्ै- त्यादि ) संपद्यत इति सेभवतीति न॒ संभवत्यवेतयर्थः अनेन आदोसनरूपेण इाभरसनेन प्रहस्तिनाम सेध्यङमुक्तं भवाति यदुक्तम्‌

^ प्रशस्तिः इाभदसनम्‌ ' इति सर्वनाटकप्रयोगान्ते भरतेन सर्वैकाल- साधारणे आश्चीवैचने कर्त्ये सति अत्र प्रजानामाशास्यसिद्धि प्रति गोषु

9 ) पि, अज्जउत्त किदे भओ पि अं उपहरामि, (२) 8, 6. दप. ¶. ४१५ ३, ) 8. ©, ¶, उवअरिस्सं. ( ) प, ०10, कि... .तावत्‌ ; 8. @. 1. मम तावदेताषदेव प्रियं, ( ) प. देवि (1. देवि 98 ४1४६४५१९), (६) 2, इदये ( ) प. प्रतिपादनं.

( ऋभ€ )

4 „. . भरतवाक्यम्‌

भाशास्यमोतिविगमयभ्रति प्रजानां

संपत्स्यते खलु गोषरि न्चिमेत्रे २० ( इति निष्क्रान्ताः स्वे | )

इति श्रीमत्कालिदासकृतं मालविकाभिमित्रं नामनाटकं समाप्तम्‌

रभिमित्रस्य कयनं तत्कालराजोपलक्षणमिति मन्तव्यम इति श्रीकाटय- वेम पविरचिते कुमारगिरिराजीये मालविकाभिमित्रव्याख्याने पञ्चमो ऽङ्‌:

श्रीमत्काटयबेमस्य कृतिवज्ञानशालिनः। कुमारगिरेराजीया जीयादा चन्द्रतारकम्‌

(१) 2, &. ०४, ( ३) प. अभ्यषिगमावे, ( ) १. सेषद्यते,

(0 ` ` णा. # ॥(¶ (.

ए.1. माटविकाधिमित्रौ अपेतो यरस्मिस्तन्‌ माठत्िकापिमितरं नाटकम्‌ ह: एषभ्ठणाकः8 एप6. 19प्ततवप्टणष | (1) कमि च+ ग्त्‌-- कात धण्ण्डा, सरामाकछन्त्‌ उमर (द्वान्छ ) कणफष्छफक्छक कठो) एलेवड फकणामिति = एल्डण्डुञ ४० इपएुगा८न्प७8, एप €" २५६ शशा कण्छाह भूत्-हु४षप७ण४; फ10, भकष 118 एरक 28 पादवत्‌ कान कष 9 9 एथरर्ल्ते ( पल्ष ए्णाप्टत्‌ एकव कापा 8 06 10१९६ ), 8{8708 8६ (6 88९९668 = ग]086 = 01048 219 छष्छाटत्‌ {0 = फणणत्‌_ ०0)९8 5 10 फा०ण 6 18 ०० इश €०ात०॥ प्रणो 16 णमह ४6 फण्‌ = प्णोण्छाह फ] 118 लाह शजिःणड 16 1७07 एत 86४16 0 ४२1६०७88 10 ०प्वछा 0 ®8016 णप 1० एनत #ल ष्पा हरन्त, सग्धरा. 45 नार््दा, ४५५०170 {0 {116 6878 01 ालम००, 0प्टा४ ४० (नय अऽ ल्लः लटो (नर पदा३ ( ) एमर्डणाः (19780819 १०९३ | १०४ ९बा] +॥18 98 नान्दीं एष फला८ 10एकलव्ना 0 #6 कपालः ` कलु ( मंगलाचरण ), 7४४ 116 एषा अलप पदा 8 ¡ह मतिश्च ( प्दनियमोऽपरि वा) प्रा 118 09}९८॥7० 18 १०४ १४11१. 2868468 1† ५४९७ (06 ४९86 ॥0 ४6 9 7676 मगलातरण, नाद्यंते १०४1१ 19.76 79 71680, 1106 . [०6४ 66, 28 क. 078: ०पलः = १01}:8 ६त१८९७३९8 118 = 6द्वालमण ६0 गिवण 8 5 ॥0 इपर])०86 ६8६ 06 79 ७६ 16 9 १९९०४९७ शिव 29 16 प्षछताक्षजणक्ष एलोर्लं पिष्ति 16 स0ा8]119 कालि. ४९४ 8 १७१०४०० ६० ब्रह्मा 9० विष्णु ९०७७ ००४ भजः 1688 (४०४ 1४ फ०क्ोला० 80) इद्वा 0 05 एन एन॑ धी ६०१९१९३७ कालि जाप फोन 8 00796 18 80864 ८० 06 १९७, १७. =४ वणतष्ठवप्ठ्तमण 9]०७॥ एड जनत, = क6 कलमा गृकृन्डपकेष पप पड ^^ ३२५ | १७७९ 0051548 7 प्रणतवहूफले एवै वेयै स्थितोऽपि & यःस्वयं छ्िवासाः ; का ५५ १५ समित्देहोऽपि ५५५ अविषय &.; ०५०१ अटामि : &०. ००व यस्य नामिमानः) 4 ४40 एद धलाः6 18 २९४] नुत (00 10 एकं 9४ बहु एवौ वं &८. पिभ | ( $णन्णप्फक्षा [0कला ) ९00818६8 9 न्वा ्लपोत्लड एद --अणिमा ` देषिमाप्राः प्राकाम्यं महिमा तथा ईशित्वं वशित्वं तथाकामवसापिता ५--

५५५१ ५, | ५०९ ११2९, ०4 (} १९,, ~~ 9 & >४-५०. ^-^ ९५ ५५. ~~ ५, | 1 1 2. |

रिक्रमोषशीय 1. 1.यस्मिन्नी"वर हत्यनन्यविषयो ' &. "7७ २९४त;०् प्रणत ...को &९. 15 ००६ त्माश्19 ४8 च6 फए्णृपलक अपि ग्थ्‌] 1019 1106 15 1०5६ पोमत्छफ; ©{ 5 गृहिणीपदे स्थिता ' शाक. 1४. 18. ०५ 07, 6४ 86678 19 185० [र्छामन्वे ३६ छतिवासाः -- बरणीलाड ६० क्० कृषणक्रलः लृनृोषय कन शिव 3 $णृण्ड्लव ०, कातासंमिभर &०, ग्थाला४ ४0 ध© ००९ णवाण्वण्डक् शिव 115 (009७1, #116 पद्व कन ॥09 9 ४6 ४० एलण्ड पठ १० ४8 [६ ००6 {6816 ; : (अधनारौने^वर, अर्धनारीश' &८. अविषयमनसां 4९.- पिषय- 49 ०४९९४ 8ला86 868४४] कल्छकप९. = ¶078 अजक ९- | ४४०६. ७9 कान्तासंमिभ्देह 4५. पुरस्तात्‌ 0१०२०४५. प्रस्ताव्-1" ४९१० „,\ # भानल कश्व्वोणद कालो 38 [ष्डलिःश्वे णो ए, आक्ण्वेद्; एको रागिषु राजते प्रियतमादेहारधहारी हरः नीरागेषु जनौ विमूक्तललनासंगो यरमतप्र : ५:-- शाकंतल 1.1. ' श्रुतिविषयगुणा &५..२.“ अष्टामि :&९.116 6६५४ 008 #76 1216 १७ = नशन ७०8, ( उमा, जत्या, १९, १६, ४१ . कोलः 07 शः ) #6 इण, 6 6जा, अत ४6 शष्लालिणटठ [७०४

पृथ्वी, जल, तेज, वायुं, गगल, सुर्य, वद्र, & यजमान ). यजमान 1१०४५] » लऽ भ10 लणमु$ एः९8॥8 #0 कृश्ण 8 8८0९8, = ५0८6 लमल, 8 कपप = तो€१४, -- शकृ तह. {. 1 १७० --

जलं वन्हिस्तथा यष्टा सूयकद्िमसौ तथा

आकाशं वायुरवना मर्तयौ रौ पिनाकिनः ४180 <:-- भविष्यपुराण :--

शिवायक्षितिमृतये नमः भवाय जलमूर्तये नम :

ददरायाप्निमृ्तये नम : उग्राय वायुमुतये नम : |

भमियाकाशम्‌र्तये नम : परशपतये यजमानमूतेये नम :

महादेवाय साममर्तये नमः: ईशानाय सूर्यमूर्तये नम : सन्मार्गालोकनाय &.-- [9 0709 ७४४1७ १० ४० 8९७ {० %। ००, ( ४© कष) ह०्न्ते + ल्लः चन कृषो) गाल ४8 ४१७ 0 168 19 {:5 कणा] कृषी) १४: मोपपतैमण १9१॥ = ४९०।१४११७). [प मार्ग, {१6 6०फा०९०॥१(०॥ काटयवेम १1७० &०]]०७७5 11५ पीहु वे ४१०१ 9 १४०९९; १११९. (०; ६०१ ६18 18 10 #<८०ातेक66 तै चह रणड (१५४ ध,० नागी 6१०८।९ 1 कान्यार्थसूचका( ५" रगभसाध्य मधुरैः शोकै : का- न्या्सूुचकैः! &, ) ४5 1 पण (26 6006) ए्जणक्९७ ४६ {जताण४ 11718. 7 2.11. एणा कण्ण [रलः ४/6 १८४त)णह वः छण] भल मार्गं 5 पतमक॑००व ॥:5 5८5९ 70६ (09 जपेफक्षकृ ००५, कवा ७९९ चकर ०»

1

व्ण कृष्णलः #९ प्ठष्कण्डु इनणलशा, तामसी(तमस हाप तामसीं) -891008 ण्ट 16 तमन्‌. एष्णृण्फ-००6 ५७ ५८९ -सत्व ण्डा ००९०९88 , रजस्‌ 9 29881008 ४0 तमस वृषभा तक्ष 1१९88.--

एष्णृशंटड 9 ४१6 क0प्‌त, 8000०86 ४0 8 १७ २68१1४6 ४त-

0 6076 ब्रद्य ४०१ माया का हावाः 8 0 ४6 ध्ल्लाः ४०

` 0णणश्श्वृ्छणनिकग = स्धप्रणष् प्म. बद्या, विष्णु शिव- 716 धण०्त ,

४५ पतप, ए९ु९86ा४8 ॥11९86 वपा प्रइ 169ृ6्त र्न, 7018 एरा४७ 7ाप्७-- ४९७ 6 876 बि रोधाभास. नदी( नन्द्‌ )-- 8919त16060 & पण एष्णण्हुप्ल-- ( नेदंति देव्ता यत्र): | आशीनमस्कियार्पः शोकः कान्यमुखोदितः कान्यार्थसुचकः ) नादीति कथ्यते प्राज्ञैः पदादिनियमोऽपिवा अर्थतः शब्दतो वापि मना कायाथसुचनं मांगल्याशखचकराञ्जकोकंकैरवशेपिना यत्राशामिद्रादशभिर्टादशभिरेव वा| + द्वाविंशत्या परैर्वा सा नादीति प्रकीर्षिता |

[ष७ 078 का] ४७ ००४८९ नद (कभा 18 0066४00 0४8 ०0 768] {०००१४६०

नाल्य्ते--ना्दी परित्वा सूत्रधारः सूत्रं धारयते ' यस्तु सूत्रधारः उच्यते (्रधाननटः स्थापकः-1 6 ११७८१०१. ४6 8४86 0०510688;706 8096 ८९०४६. प्र ००६६ ४०४९४ एत्थ" प१. नेपच्यं ( ने- 10० ९० & प्व -4&"९्ब४९)- 0५४ 38 87868118 {9 ५6 81४४ ७०५९ 1 ) भणण प्फ, ०८ ( 2 ) व७88 कपना; “उदारनेपथ्यम्‌ता राज्ञा. 6१९1६ ९8०8 06 {जपाः मारिष ( मृष्‌ ४९ ए6८पध )-4 पव्गृव्पा ध्यय कल ४९ सूत्रधार १११९९७७०8 1:8 5815६8०८ पारिपा्वकं ); 19 10 18 \णप

` 9११०९७७९ सूत्रधार ०७ माव. सूत्री नेन भावेति तेनासौ मारिषेति च). पारिषा-

स्वकः ( पारि पाश्वं ०८ परारिवार्त्वे वर्तत इति सूत्रधाराकिविद्नो नरः )-- 4४ ४5988101 #0 #06 फक्क्ूछाः 9 ४16 [श्व . 2. 3. प्ररिणदा परिषद ०षद्ाणात

प्रालषा ४06 [५५6 १००४ ४06 8९. प्ररिषीदन्ति अस्यामिति. 17५ 1१५९ 10616 1167 816, 19066 8०16066. एप्मप ४16 016 9 ४७ सूत्रधार (०५२५8

४४७ ४०९०००९, (6 शूड8ं०प विद्रन्‌ 0००7७ परिदा {० ००४) 2198. भगृभा$ 9 ए549}58 ०६ (० ००९७५. कालिदासेन प्रथितं वस्तु यस्य वस्तु - (अभिषेय)8१।)००४ प४{७, [010४; ग--द्शन्य 66 #16 ४०० ५1८५ ४0५ ५109०५68 6८७७५ {16 ३५१५०४1 ४५१8 9 ५४५४८ ९०५०१०७१५०४३

©7० 9 =कापिला८छ०९७ 1 वत्तु. ०{:-- वेणीसंहार 1. “उदारकयावस्तृगौरवात्‌ नाटकं-- 73 ;5 ००००१ (१००० 1८०05 दृश्य 0 अमिनैव कान्य भढ; नाटकं प्रकरणं माण : प्रहसनं डिमः न्यायोगसमवाकारौ वीव्यकेहामुगा दश 1. 04 :- नाटकं ख्यातवृकं स्यात्‌ ¶चसंिसम वत विद्ासर्व्यादिगुणवन्‌ युक्तं नानाविभूतिभिः

10 & नाटकं 80706 ०४९ 860६70९४ पप 6 कृष्ट्तलफाण्डा+ #त ४6 |

०ाड हपएणाप०४५९. = प्रला७ कष्व्वनफाप४०४ ७९।१०९०४ 1 शुयार्‌ (10)

जः णलः कृष्टण ४४०प४ 1४ रविः (त्ल्म ००९७ नारक

६३ ^५..810त 5668 ॥0 18४९ 66 कापाला] छप) ०९ ५७ ष्रल हरम

शि

1० पर तणचण्वण्ठ०, :-- वीरशुगारयोरेकः प्रधानं यत्र वर्ण्यते प्रख्यातनाय-

कोरेतं नाकं तद्दाहृतम्‌.

वसंतोत्सव --11\० श्ा००] {5७६;१४] 10 कल८भप० {7० 996४६ मृण नोत सप्फप्भोु ८००८8 ०४ ४1८ 98४ 09 ` 9 ४6 पकः 09 काल्युन

€5 [6९9] क0ा०७) 199. 11056 १७८९६ 0 88109 8] ])6978 {0 ₹© ८्ल ४१प५९त्‌ + {९86 त४१३ ४प्रोहभः लल 19 ॥€ जप प्रभा ००७०० 111॥168.1 16 ०0ह्छाएका८९8 लशाुमणल्वे जिः 5 ल्कम्‌ -( 1 ) ¶० ॥प९}) & 9) ०१ पलप (0 ४४।))6 (0 हल्छपष्ठे पिलछ्वेनत्र 9 भ0४, 80108 8१ त्‌8९2868 ; ( 2) 1० कणडो 0011-9])०॥ (० 86०7९ ‰8 पदडप०४० 9] एण ; = कत्‌ ( 3 ) (9 ९४४ फणद्ु० 0०० पन्च ऋध) 8१०१३] ७०० {० 8९6१6 {१९ द्ध ९९४ बृ ०९8७ ; पल्लनण चन लिजकः०६ मताऽ वन्दिताति सुरेःद्रेण ब्रह्मगा शंकरेण | अतस्त्वं ब्रहि नो

टि मृते मतिप्रदा भव | चतम वसन्तस्य माकंदकूसुमे तव सचेनं परिवास्य

सर्वकामा्ंतिद्धये निर्णयर्मिधु | .+180 तणप्णष्य ६९ कृशं कर ऋण ` ४९४ रत्नावली. 0 तप (015 ल्छनल्मृाते+ (0 फ०्वेलतन प्माक्ग्ब.

एमानान्छठ 08048 नत्र 1<{075 बसतोःसवे प्रयोकन्यं 9), ०४।ते ४९ १०४ ०व ( १९१०७९८९.) सेगीतकं ( सं+गीतकं ) --1)© ®फतज नण णद, पभणठणहु 8४ कत्र. 1 0955 चटा) +€ प८०त)ए६् माव गमा ताक्त्‌ पणि » ग्लर्‌ & 4१10९ १५०४ मा तावत्‌ ( 1/6ौ 1६ १०॥ 9 श) = ; फणौ 80 ) 9] [<98 ग्लान रण १8 फ१्८्‌। ४8 {6 प्रिरिपास्व॑कं ४एभण्वु ऽप # ११०४७ (५ रुतधार्‌ ९४१०००१ त्णोक्र्ते) 6४ फण 7 इष्टो) १86 जातेह तभच्ट१]ा 17111 भला) 16 101त 0 {6 सूत्रधार ६४८ 1४ 15 {६6 गृष्लश् ४.) ४19 ४०१७१९७ {9 क)1010 1६ भ5 {06 तृण एणा #० 1९१०6. यः षां तेषां-0{ ८७।५७।७१ न्त्‌ एकक, 10४०णच्त्‌, मास ४7९ {116 पष 68 9 १८९४१ [त्न प०ाणह 15 तजन ° पज 00४ {16 00505 ५० ०18० 9 पल 6ण्णण्म्जयड, = प्ा्प०पी। अणव

४५ 4 केषकवेन्य्‌ १५५६. क. १. कनक ४५.४.१६ ©. #. +

ये-

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` 96 जलकष 60:40 २९०त धावक 7 [194५९ भास कट) = काश्व पड ४9 ४० ०४८७ ०६ काटिदास्‌, 5 धावक ४९४० ००।० ०१ नागानेद, रना-

बली ४४१ ०४०१. 1९] 16 ७२1००७९ [४58 जहि ४० फभ० 118 {700 श्रीहर्ष ७10 10011516 7 ६0९ {४ (टपा फ़ ? एणौ (क) 18

००६ 878 75 धावक नण ४16 8876 88 {16 ४४: ०६ नागानदे &८,

` मित्-फग्ण. प्रवे (प्र + वेष्‌ )-- (0००, कणप आतिकम्य-

एकपद भयः, तारषशुभ्पाण्टु. वर्तमानकवि :--+ ०५६ ०116 [6७९६ वथ, ऋजल० ०७६ बहुमान :-- एर्व, 10९ १९००४ कृतौ कं कृतो बहुमानः

( परिषदा )-- फ» १०९७ ४16 ०९6०९ 90 ६०९७ ९४१ {0 ४6

| {| | | 191 2 (^ न्नणृक्डा०प वयु

(+) +) ~ =^ ॐ: + + ^ , ६. १,१.

~ पितो हाप १. | ` विेको विन्तो यस्मात्‌ तत्‌ तथा ( निष्ठातस्य परनिपात : )-4. {००197 बहुरीरै- वा आहितागन्याद्वु शब्देषु | भ०त5 11८5 आदित अपि &८

छलफल 0 (06 6010 ए0पकते पथ 96 कृष्णं षड 0 1980 ४8

मदपरीतः परीतमद्य : | अभिहितम्‌ &. १०० 8१९ गृणे कण्ण;

णण एलापक्षर 18 $ 10 लातक्ट्‌ कठणाणल.

(2) छल पणद् ( व्नण०डप्म ) 18 106 &००त ण] १९९४०8७ 1४18 ०1१. कणप 38 (0कक््प्तमा प्पकजाकी एषा (गः 8४ ७९6 (त त, १.१ 1 ४१९ तप९ दकष फकप्रमा तमु प्ल ००७ ०१ ४6 कनल, = (0९ न्नः - ४९84 085 118 {०१8६१७०४ हुपव्‌हत्‌ ४6 (ए०्परनन्प रम ०४९8. इंद्रवजा.

पुरा नवमिति पुराणं- फन ७४ परभा णम, ७०७९ णव इति- ४९५३०७०. अवद्यम्‌ ०४ 8४ 16 शृणेप्छ 9, 16066 8४ #0 ४९ €०१९११९. वद. ८९९१४ छपा ४० [०8९. ?. 4. परप्रत्ययनेन नेया \ जु दवि्यस्य, परि+$न्न्‌- ¶0 866 10पत €दभर्थणाा, = 0९०९6 0 = @दभ्या०९. आर्यमित्राः--1४५ 1000 प४४1९ ०९, = ( प्रग्कणष्छणी७ = 89९८४08 ). आर्यमिच्रा :& प्रजार्थे मिश्रम्‌ )- 7106 ॥00प्फश01९ 8[9७८।४078 876 {19 भणतः (0९8 पवद) , 108 १०९७ ००४ र्मः (० सूत्रधार, तेनाहि-

80 भल, प})6प कणप 8०क एना ९6 70 पान प्व,

(3 ) 1 1०9 €&९८प॥९ ( कन णिपप ) "9 जवल ९०६१७००९

( 9९०॥४॥08 ), १1१९९५ 7ल्व्लर्ल्त्‌ कन ०९ 169, 98 18 इला पक्षण# ४८ << धारिणी, शशा एषण 70 ४।१९०१०१०९, (1003 0 कृपण

| पः पयण). ॥.

अव ए०ण्वण्डु ४0 ॥€ नाभललः १४६ 18 [पऽ कणलधं०& ५1९6

| ०५७०, सेवायां कुशलः.

1118 [०९ भं कछवप्लणड लोक्ावललः को ॥€ 8 18 } छक

88 प्रथोगातिशव- (016 0 {1५ १७ ८:०१8 9 प्रस्तावना 7 भना) षौ ग्जिकक्षा९ 15 उपला ९९व९वै पप०ीला प्ट पभ्णाजलाः {४४

6

8 तोलाला 15 शप्रतेवलणकु एष्णणद्टो¢ (16 रिद. 1.6 = ज))लशा८ ४१९ सूत्रधार ६०८४ छप [ण्ण ६५५ वत्त ००७ ०» ९४०४८७८ ६० चड [लज

5णलाटटवपद्ठ ५४४८ भ) 1४8 2009160 1५०वब्ब्‌ 118 ०४४, ४1४. ५४1८1४६

74:-- यदि प्रयोगे एकाभ्मिन्‌ प्रयोगोऽन्यः प्रयुज्यते | | तेन पराजप्रवेश>त्‌ प्रयोगातिशयस्तदा ( 8.7. 802 ) 0. एषोऽयमित्युपकषेपात्‌ सुत्रधारयोगतः पाजप्रवेशो यनव प्रयोगातिशयो मतः | ८: शाद्ूतल-1.5, प्रस्तावना ( प्र+स्तु )- 4 पष्ठ [ष्यप्वम, 81) 111४7५4०८५५५१ वःभण्द्वणठ ( पप] 80०९४ ४४५ प्मण्डहुलः ४० ०४५ 01 ५।७ ४५४५४ ; 0:- नटी विद्षको वापि प्ारिपारेर्वकं एव वा | सूत्रधारेण सहिता संछा यत्र कूर्वते ॥| चितरैरवाक्यैः स्वकार्यो.यैः प्रस्तुतालोपिभिर्भिथः आमं ततत्तु विज्ञेयं नाम्ना प्रस्तावनापि सा

आमुख 15 ०००६)७्‌ पा० {07 प्रस्तावना, 8.7. 300 1६88 ०8९७ ०त8:--

उदघात्यकःकथोदधातः प्रयोगातिशयस्तथा | प्रवर्तकाक्गलते पच प्रस्तावनाभिदाः [ 8.7. 301 ]. + ¶)) 8 ;5 9 ध6 पप्प्‌ ६०. २११९, ७१}. -शा ूतल.1.5 तवस्मिगीतरागेण' &५, ५॥;९] काटयवेम ०५९७ ४७ 9 {०७।७००९ ०६ प्रयोगार्पेशय,\ १००६४ साहित्य गकार "८५708 1४ 88 8 10819006 अवगत,

१.5५ यती विद्‌-1० श्थश्थु-- 4 {९०४७ #ला ४०६. अचिरप्रवचोपदेश-- 1 |) 1८|) 1086एप्८प्जाप 185 0660 1846] = (फ प्लातस्व्‌ ( ४० ४ञः ) ३. ९, ४४6 96 18 एलाणड णी पल्ल्लणपु. ०18 छते 06९ 18

21५ &००५ चटितं-- ^ 1८14 9 १४००९, ४१९. त्णणप्डाध्छ्. नस्वि

{ नगरस्य हदं शत्यं ष्यञ्‌ )-( 1 ) 09णलण्ह ( ४५ ३९०8७ भकोव्छछर रलो; ( ३) {116 8८1696९ ४१४ वेढ्णलाणड्ठ भः चठल्णद्वु 1. 6, 8८०16 इत ( भुगोल्ाड नारं भि्नर्वैः &०. 1८४ }* नाट अतरेग--अन्तरेण -ए़; ग्छष्ुश्पपे ९०१०८८1६, ४म९6 ;9 ४6 १४०८९.अत्ततत अन्तरेण &&. ्णष्थाप कल्प १७, ५००६५. 545

(01५८१४७ {16 6०00 [११९६1५९ 1.1.1.1. 1.10 3.8] ] 0-698-06) 19 {00086 १०५३. = 1716 ठणपप९प(७(० ३५ ठक लकापा अत. एकता४8 पणेत, भा्माद 19 १५११०६ उपदेशारथे ७००३०७७ १८ १०८४ १०४ ६1*७ 8 2००५१ 8.9 86086, उदेशारथे ( 19 ५४० ७०४० ए"०- $ {7166, एष्ष्छलो ' ) 8 1 80085 ४6 = त०तण्छ सकृ, कभ नत्तविशेषः. 19 ४09 त्णणपलाकाक प्रावत्त-एपपणतवे ९४०

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7

38 # 98 एढत्लह #णत क)४६ 18 १९ चाष्ट 166 18 & ००८२ ; 80 ६९ १९१.

पाण्डव 9678 ६0 06 क7छण्ट, 106 6879६ पुराव॒त (४ ०14 ४०१ ।श्टुकणवभ्प स्वैणाफ़ ) 18 ००२८९५६ ४०त्‌ 19१8 &०० 86088. प्रिक्रामति-- १०1४8 ४।०य४ ( (७ ७५०६९ ). संगीता शाला. >^ < ५५५

आभरणं हस्ते यस्या सा. हटा--.4 1श ०६ ४११२०8३ ४०1० €808.

५६ :--इंडे हंजे हलाद्वाने नीचां वेगी सखीं प्रति प्५1०० " कुत: &०.-- फण)

876 ‡0प 80 76-०८्८ण]01९त्‌. धीरता प्ालकणाणष्टु < हए, 8€1008688 70 कश्ल्वाण् सणि 6 980० 9 पठ ्णणत्‌ ॥0कदप्वेञ उ०पारतपणषटु.

अतिकरामन्ती -- ९97०६. इतो &०.--12० ००४ ९३७४ ४. 19०९6 ३० एण १८९५४.

` 41०0086 81] फ४००७०प॥॥8 २९७त णाञ ° ( नाग ){9 सप्प॒ (सर्पं )- फराध »

20. अहो- 4 29४०० शतकाण्डु इण. ( 00, क़, ए०७ड कु इतण] 1, त्‌--49 9786५, ०३९१ 0९76 {0 8 हणवड्ण त. = सर्पमुद्रासनाथं--

868] 07 11167). > 81131६6 18 शद्टा९२९त्‌. 7018 1०६ एश्क8 100 { [09-6 19 26 0 पण) ४९४, 0€प विद्षक एछ€णत8 ६0 [8१७ 8098९ ४८.

ज्ििग्धं--८1०5न्‌5. निध्यायन्ती--1०0८1०8 ४४, ९०प६्€० [19 णद्ट; "विर निदन्यौ

दहतः स्र गोदुहः ` २५१ निदच्युरकयुगपत्मरना इव..6. स्थाने &९.--] ०७1» शण्पाः &ष8 38 छन्हि ए्णृनः ०४]९९४. उङ्ध्दकिरण-

कैसरेण ( उभिनच्ना किरणा एव केसरा यस्मात्‌ )--ए० भ]0;०}॥ 1976118

( 9 868 ) 9 7४5 071691६8 {ण कुसुमित इव --43 £ 3 11०88०८.

( कसुममस्य सेजात इहापि तदस्य सजातामेप तारकाय इतच्‌. 1४ 33 उच्क्षा. ) अग्रहस्त हस्तस्य अग्रं -तत्पुरष )-- ¶० {०७ 97 ५४९ 1182, 1. ९. १0 8०8६९०8. उपदेशग्रहणे &.--० शश्व्लणणह् = उणशपप९क०प > €. प्र] ३07४ एप 9०6 85 8100० 06861 .7.इंदशेन

8 9०९) €णमुणलण, कवण्टश्हाणट मालविका 3० 0४७३० &९. पण्वलः

| गणदान्न 8०१ धप ल्< ०६ ४७ ४०७ &1०&'8 81६१४. असनिर्तापि--

प0ण्की, 1६९6 ००६ 106 रष्क ( ध० णद). दष्टा किल &०.--8)9 ४७ ट्ट, कलु इथ. (किक इति एर्वे ~ (0 इध 0 ए0हा180.). कौमु.

९४०8 186 ¶0पदो, पण्ड 8 १००० ॥€ः ७९8६ 0 1६९९? माटविका००४ ४८ श्ण ४८ 8116 क88 866 17 01. आम्‌ -- 40 1४६श¡९८- #४ ०६ ०७७९० "00 ‰०8› ०६--विक्र° 117, “आम्‌ ताप्मिूर्वश्या वचनं स्वाति ` भार्सात्‌ः शाकु. 111. “आम्‌ ज्ञातं. पाश्वै गता पारर्वगता-7) 11० 8:१०. पर्थू ममूहः-पारर्वः--4 ००1००४०० ०६ 108.वित्रशाटा--¶1० 0;०६९8 8८०0०. प्रत्य- ` अरवर्णरागां चित्रलेवा--76 0७ ०४ फ<्‌) 1०९8 {06 स्गरप्णण्डटु ` भलाछ ( का ) परत ( कल्य ). उपचार : ( उपचरति यस्मिनिति )-- | थाणा, रणकण्यकु गक००९. त, शाकुं, 171. नोपचारमहपि' &. 1 “उपचारं ताव्मतिपद्स्व. 415० रघु.111.2..उपचाराजलिष्ि्दस्तया.परिजिनमन्यगतां

8

च्छक 10 च19 फा त७६ जा वृषल) 'इ कतलाते९०१७. 8. अपूवा - कर. एर०ता४. ब्‌ ए. काश ष्टवे ४15 0 * पिट -०06, पतौ ह्ला एर्मजत्ठ (न पएृवै दृष्टा ). 2०८३४ फु ९५४. 06 11९ कल) वति णम संह एरिर सप्०ाप णडा, क०ण्तेजणो'. 1 १० १०६ 866 कण पट्टकरमे तण

१४; १७ १९०५७ 21१.12००६;४. काठिरास ॥%७ ०४८त अपूर्वं हरण्छने 19. ०; <.-- शाकुं. 1. अभिन्ञानशाकुतलं नामाप नाटकं परथोगऽधिक्रिवताम्‌,

&15० ११४. 111.*अपूर्वोऽयमुपचारः "79९७७ क] = एताः ००६ ०६ ऋ९७ ण्ठ तन्म. ¶0५ कलः प्दवाण्डठ अपूर्व्या शो१८ ५५ 8976 8086 २४ 18 ५0० गृ [णिः पण्ड 0 स्क 80 कणत + दपृाष्छ् 18 95० {07 छलः रल 0401, आद्तिविशेषेषु &५.-- 6०० †०ल ४{11४6४ ६४९००; कवापकजप फक्त्भोक = जाम्क्ड = [गरल िच्यड,

(पदं 1०४७1८० 81०८८ ००1०१९18. आक विशेषाः) विशेषाश्च ता आकूतय 5 > ३.( भः आकती विशेषः विशिष्टा आक्ूतवः--पटसधष्०्ेःफ् ( १९०१ ) २. )५~ {ण ण8. अः--अतिधिविशेष, अवधीरितवचनः--अवधीरितं वचनं षस्य सः-]णत्‌- ` \ ४.५१ १८ णहु ०० ४६९४० ५४5 9 (० 05 ¶०९७।००. अनुद ( 9. 2. )-419 1९88, ¡ पकम ॥प९, पाण्ट. :--काडवरी 69--' पुनःपनन्वानुबध्यमाना. 4150. 133,207,238. निर्वेध (८9, 7. )-10 [९७७ &६,, †8 1०89 ९००0 19 38०७- एत पलपपा०, 1९ निर्बखिषित्‌ ( ण्पिणत 10 फण व्ताक्चग्छड } 5 ००४ 6011९९४ 8&8 {16 २००४ बध्‌ €109$ #< 1४० अनिट्‌ १००१७. वसुलक््मी 88 1106 ‡०००६८८ हरल पारगा आउत्त (भगिनीपतिः) --106 अऽ }05- ४४०१). ल: 8. 6 सदृश खट्‌ &८.--1। 8 ¶४५३४ ए6सणद भध, सि-णणपतछ 02४18 लो१त फक्प७ धा ०र्छाः, सदश 08 06 परत्व 1४)) ४6 हछ111 ९७ छह 708- ८९191. सविशेषम्‌) [14 भर्ूरदरशनपथात - ०४ 9 ५० "90९ 1४ ९९ ; 9101941 १९ 15 ०४९ते ९1७ १७८8४०5९ 1६ कड ४४० &००१०७ {997 (मतिर्थांनां ).९.9.अनापिष्ठ आःमनो &.--1.0०)६. ०८ ४५१७ {0 ए0प 0 तेण ; #1{दाणत्‌ कण्ण एषम जा :---शाक, 1. 'स्वनियोग अशुल्यं कु" ०८८११ 10 097. [19068 > ताक, ०८्टपा8 8006 €त16008. 116 7००# जषद्व एलथर्णद्कणड - उभवषव हलनथा भृत 1० परस्मैपद, = दशंयामि--1ति २७९ {0 १06 प० ०५८८ {८५९ कुलविद्या ( कूलागता विद्या )--प्रिशण्पा्भ वकद { 1गर ) ` बहूमता--{ 15 ) ष्ठो एषय्ल्त्‌, एञल्वे प्ण्ठो). पुनरस्माक9 ९४७९ }0 कण्टा, र. परक, प~ (तयापि पुनरस्ति विष्वासः'. मिथ्या गौरवम्‌--ए4]89 ( ६०००१1९8 ) पकृण+१०९० ; प्थकृष्य, = =

" (4) 8५६०5 व्लद्रभयपे ( फला) ) ४5 > ]ज्णु ( शिक्छ्यः(९ } 89611006 #9 &०48. 11118 15 दढ तन्वे ( वाशवन्वे ) # ४० तत्ीसल् १8 शिव 9 15 0त्‌ॐ म)९) + प्रलावल्व्‌ कध, १५ उमा ( ४५ नो 18 छप) १००१ उमा, प्र (1५ ३) + इज्छः 9

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{ कभह ) व्णण्तष्छ ४6 कण्णते कतौ 9868 णण ४8 # > { एषा ) १०१1४९8 अप्त फते छप गकण०यड = इल०्60 ४8, 8८6 #{ 13 ४6 जणा ( 6४ ) भणप्ड्यानाह 9 पना तार्टाडणुक श्ाः९त (४९8. शादूलविकरीडित+

मुनयः ४76 ४० प्णवलयडष्भत्‌ मरत ४०१ = ०7 ©8, १8

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09४ 1 880ा९त्‌ ६९६४8, 1668, ४0 २९870. कुमार, 11. 13 ^ त्वामामनंति रक्तिं पुरषार्यपरवार्िनी' 9150 ४. 18.; मटी,-ड 111. 5. महावरि.1ए. 30 चाक्षं

~-चक्षुषान॒मान्यं --* ४० ४९ ९०1०7०१ ४० ९०. कतं कतुं चाक्षं - ४५०४

९28९8 &०05§ 98 70 प८}1 &8 8 88677069 १०९8, 16 जणा वः6€००8 एल 6 ०286066 अणा] क्प्ल, ए0ण ४06 भत एण+७8 कांतिं

४०१ चाल्ुषं ४7. ९४००६ 98 1४४ 6 [88886 एाश8 ४0 8 ९० जच कः>] 88066 12 ९078 0 06 ए९६्$१०त कः कष्ण ४8 एलणष्ट नतः ४०१ 05४९९801 ४0 ४०९ ९ु6--9 धरा०९, ४08४ 28 0 इथ, जन © एपतत08॥6 14988 0 ४6 ९16 8861066 ए600101996त, 1706 २९8१. शतिं ( १०१९६, फाध०ण४ शप्ठए्छा ) 2180 &0०68 ४0 णछर७ ४6 &9708..10 उमार्नन्यतिकरे-- 778 गर्थाा5 10 ४16 तपशाक्ति 79 णण शिव 82 ‰;3 8, ४6 1४ 8:१6 शिव णथण्ट {16 8876 88 पार्वती, 1. 6. 8 1४ 846 38 {616 क016 ४०७ स्ट ००९ 38 916. {078 7768 28 €रसा0७ 10९७ 07 035 ०61०१७१, ५. कान्तासंमिन्नदेहः' 7 ४6 6४6ा८००. वि + अति + - 70 ८०:४७. शिवा§ {0०02688 {ए 0णभपष्ट भणत ण्डा6 +... ‡8 जथा] ००. प618 पटु प्डज्छन्ल्व्‌ 28 त9णलाणह्ु 80 अण्ण का 0718 +. +:

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` 186 हष्०प०१ ) 25 ५३116 लास्य. 1४ 15 ०}}०8९१ ६० तांडव ४6 09 0081605 816 9 ५9०66 9 शिव 204 118 {ा०क्शड,

५६ :-दशल्प 9 ° मधुरोद्रतभेदेन तद्वयं द्विविधं पुनः| लास्वतांडवद्पेण नाटकायुपकारकम्‌ ॥'

ज्रगुण्योदधवं( तरयाणां गुणानां समाहारः त्रिगुणमेव बैगुण्यम्‌. )-- = गशण६ छि ४€ 766 == एतण्लएक = पृण्ः०७७ = ( सत्व, रजस्‌, ४०१ पमस्‌ ) ०४०8. नार्चं- अवस्याभिनयः, रसः ~ 1956९, 86०४१ ०१९०४. 4.8 2 0))) 6८४ 9 एण्ड, 8 रसा 9७ हरणा] ९००८७7७160. (3) शुगार--110१०, (२) वीर--पशः७5), (३) करण-- 1००१९०९8, (2) सैद-- ४४ (५) हास्य-- अ, (६) भयानक, (ॐ) अदूत--रण्णः$९, 820 बीमत्स्॒ ~ ^} : -

"१ ^<. ९६. ५। 1 कि , ¢ = + ५, ५०९५ के ९6 , 0 4 ~ ¢, 4 4 दः , $ ककन ५५

10 0 श्रण्भै. शान्त -#५०१०।1४१ ०" वात्सत्य--?४श०४] ¶९फतेला०९७७ 15 इठा० ६९४ €0णकवनश्ते ४8 (6 पण्लौ). बहुधा - 7० ४५ वण्यणते नाध भिन्नष्वैः. 2.11 भद्रे- 6००१ 105, आयं केव पृच्छति 11.1.41... 1.1 1.1 १180 £००0. हि ( 4 हच्ण्लभाफ़ पभरलफ 2. )-70 ४९ धणप्फश्ण © {70प णले ( 9 ?. )--1० भण गः ४0 ध्छपो९. 8०9 ४७

8868 876 811८01९ ४५७, 116 णिका 38 = पद्य प१९ ४०१ ५९ कलाः 28 तकण१९. 6 गणाः कण्पावे ४5 एनैध्ल. विज्ञाव्यता-- 194 6 15 3४0८०१९, विभाव्यताम्‌ 18 ४101}; 76901 06 †जत्छः एधसिषा९ ; ४०८००७९ विभावय १८९8 ॥0 09 ०6 पछ » च्छति ९०४ वा्ि०प कणेष्व्९ ते पन ^ पमण, कण 168 पाशो कलय णह 15 ^ कृष » कद एलणार गाल पते. किं बहूना-- पलछ 6 ०८९६त णह फप८0; ६0 एण ४५ पथ्ला व्गणलंश्लु

(5 ) 1 (९ गुलाः ता वप्या ४९ 7कू1९8९ ४७४०४ ( ड़ रतु 9 ७५४०६), 816९7 86111016 181 86११० ( प्0ष्लपलण+ ९२१९७81 96 01 82००००४ ) ४०६१४ {० एलः 9 २९, ४६४ 106 0, ४5 1 स्९, ५९०7068 6 1 करछ॑प ॥¶ 1ण०कणह् पण आर्य.

16 10106 अगि ५० बाला 18 "71:९4. प्रयोगविषय ( प्रयोगाय ) भाविकं ( भावाय हितं )-- ४४।९०८ः 3 ९९।९८16१ एण ००४ # श्लिषु + < भाविक, प्रत्यक्षा इव यद्वावाः श्रियन्ते भृतभाविनि;। तद्धाविकं कान्यप्रः 2. 10. 2.12. अतिकामन्तीं &५-- 1 8९ ४6 ०प॑५ण् ०ण॑ ( अतिकरामंतीं ) इरावती 8. 1 णाः 56 की ऽप] ०58 इरावती, इरावती क४8 1119 ८००० (प~ ल्छकणन्त्‌ ) वपव ण्ह. ए. 1४9००) र्ृभ०ह इरावती अन्तरो विरीषः | 11; ;8 उचरक्षा. छृतार्था { इतिरना )-- ननातिकम्‌ (1०0;०१०५७1० }-~ 45146 ( # &००४९ ) . ए्ः-- उक्तस्या्रवणं कायत्पिारर्वस्थैः स्यात जनांतिकम | ( भरत ) छः, ल्िपताकेकरेणान्यानपवायतिराकथां | अन्योन्यामजणं यत्स्याज्जनान्ते तज्जनातिकम्‌ 8.1.425. %1, 2० ;118 €> 1994100 ° जनौतिकम्‌ १०९७ ००४ 9697 वृण ०४६४, 1 8 ०६ ०५८०९] ५५६ बकूलावाछिका 8०४1 ® प४ 6 ७०००७७७ ०१ फनः छात ४प४ जण्णोते ००४ 116 ४० वमन ४९४ श्नि म॑ 8 एलीणारे गेणेदास. अपवासितिं--अपवारितकेनापवा्य- ^1५\, ४510९, ४० ००१७ ( 9ृण. अकारा ), 1४ ८1976 ००४६५००६४५। ४४४ जनान्तिकम्‌, 1४ 8 भृ

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8०) 3 क्थ ५४६ 0१] #6 6३० ११२९७३९१ पु [6 11. फ्थः-- = निगूढभावस्यक्तमपवारितकं भवेत | ( भरत ) तद्धवेद्प वारिति रहस्यं तु यदनस्य परावृत्य प्रकाश्यते | निपताककरेणान्यमपवायोतराकथां || 8.7.6 प्रकाश-- 1०१, ०4०15. र्तोऽर्थो यस्याः यया सा छतार्था- ६०००९७०1 1प्थक. यस्या-- ६५9 1०५९६१९ ०7 108०९४६९]. गुद्रैवजनः ( कर्मधारय ). सा विषा यासां तासां-- ९8०8 167 11४ 0९३०१००, 11158 पथ. असुल-

भत्वं. देव्याः ४९४५०. पाते-- फणी = ०रश्छौ 098०”

` ^ "नकल [

त्यात 198 मालविका. वर्णावरः ( वशनावरः )- 0 पश०९ ००७॥९. वर्णा 5 ७8 वणः 7 पराश. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैशय & शूदर, 07 ५४९९९ एशा8०छ ०८ ४1&्ाथः ०९ ०1 डफ 8 हणा 018 ९४३८९ 88 णश्‌ ४8 8 हापा भक ५16 1णलिजर 08868. पप्र # एधा ५०पव्‌ कण हा] ०8 एष9फप ४० €्ला » हप] 9 ४४७ स्तिय, वैश्यं 0, कषति, ००७ क्षत्रिय ५४७९ 94 कश, ००6 वैश्य णः शुद्र ०७५९; ५० {०‰. मनुस्मृति, 171. 19. 13. 8० वीरसेनः भएचछा8 16 एण्य ण्य धारिणी१७ 1४।।७८ » वेय ०7 शूद्र पणभा,

अन्तपाल्ूर्गं अन्त-प्णिणधश, पाल-6णभाप, दुी-0४)-4 ¢ 79 गणका 9 {णलः हिप. 4 0 ४6 तछपनछः ००९8 लापच्णपु* भदाकिनी ( मंदमकति अक्‌ णिनि )- 75०1] पशु९७6य॥8 1116 तष्ट 0 {७69 9 1 0976 2४ 1९86}068 ५४७ एन ४8. --रधु. उ-48 & प्ेघ-67. ५५01019 ४0 वायुपूराण, {४ 18 का 10त6कृ6्ण्वलण पर्छ 76 १०६ [३५१।,। ॥:11 * 11. 111 विष्णुपुराण 2. 184 २८०४ पमः७ 1४ 18 पलंप्नः ५४७ णफला ००८ ॥16 1४४७. मंदाकिनी 9 ४५७ 6 86४४ 1098896 18 2 एः 1810 {70 १९ विन्ध्या २५०६९ 80 10 फ8 एश 9 ५06 06९८४. 18 8180 [7006 ६४४ ३८८० वाप ४७ ४०४] 1786166 ०६ 16 प्रापवणड 81] छष्लः [ण्कोड भं वल्डाहणकतण्टु भण 6860764 एषा 0 = ५6 ०8४ = 8808 ०४6 ( 88 ४७ ५१० ष्णा फ़ गगा ५४ [९७७४४ ), 1४ 160६ ४6 १३९६ [९९७ 197 नर्मदा 9७ 1)ए, {21 ४0वे शशः 8९०८8 ¢}. शिल्पाधिकारः (शिल्पस्य-शिल्पविषयकोऽधिकारः ) ४,५०५७8 ४06 पन्८ण09प्०ण ४8. प्तष्ठ ४७ दाष 1ल9 &५, दारिका ( ट+ण्वुल. )-^ &;५, उपायन ( उप्‌+इ+इण्‌ गतौ )- 4 १९००५.

2.18. आछृतिषिनयमरत्ययात्‌ ( आछतिश्च विनयश्च तयोः प्रत्ययात्‌. आछतिः # &०० {97 , विनय-९०(€ ५००१०५॥, &००ब कला )--, पप्वहुणद् जप © &००व {००५ ४०१ जा1+#6 ५०४५८८४, 4 ५००७।५९ {० ००४५ ४४. भमः भप, 9: -शाकू ° आाङतिमनुगृहणन्ति गृणाः' ५।४० "त्राङधतिस्तत्न गुणा

#८ | ६१. ^ त्त ट्ष =, \ [6 दु: "कन £ + \ ४९ (१), वे भै 1/0 ~ त्त ( (#५५५ षर

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बसन्ति.'न ( छन-- शिभः, वस्तु भणी, पणः] ०१ कले» पण्ड 8 ००१९, पणभा, १०७०००५ &€. ) ऊने वस्तु यस्या स्तादरशी. मयापि &०.- 1 ४7 87७ ( १९७६6 ) ४० 6 8०८०६881, कष ०४०७ 6 ल०णकप्लमः,

( 6 ) 716 ( भता ) छव्मलोालः 109 ९त ६० भठ्ना०६ २९- लए २8108 ल्कक्टा 6२८611९९, 98 106 कदल्या 9 9 6)०फवे, (वप्म्‌नते) 1४0 868-806]] &८प ८२९७ ४6 ०४{पा७ 9 # €, आर्या.

आदधातीति आधात, ५: वितरतिगृरः प्राज्ञे विद्यां ययैव तथा जडे &०.

छत्तररामचरित्र. जलमिव &.--र्था8 ४० १४० २०६००, 0४ त१०ृ)8 कंप, 8116 1४0 ४06 868-8)16]] प्रवह ४6 भपनृ८&छ 9 धल बम्लतंश & प्ल त्पणड

(स्वाति), ०१०८० 0९०९. भर्तृहरि स्वात्यां सागरशुकिमध्यपतितं सन्मौकि- कं जायते." पंचांगाभिनयं - 4५४०६ ९२)10:॥९॥ ( ०००७5४०६ ०६ ) ९७ ९१५७. अभिनय ~^: 18 {16 [०१६४० 60फवाप्ंणण कन) 18 9 णः ६०९९, (1) (छपा, ल०्ण्शा०ते ४0 १९५००; ( 2 ) ००, व्०णक्छुण्वं 08; (3) छर78०९0०३, 000९९ ७त्‌ ११९७8, 0९०४ &६, (4) [ल्यप्‌ त्णाश्छु6ते ५७ फडणा्िक्० 1पन्ला ण्‌ †न्लणदह; भले ४8 कलश 8०, पप्रष्ठ &९. एः = लीपप्ठय = &८. = एव९, = (जणणश्छष्छा- अभिनय -4 ५४४६ 1४ 0101 ४6 प, ४06 ९९, ४06 कुशेणण, ७७४, ४० 1848 876 द्वृष्भा़ कणाकन्त ( वमयी ). 1४ 38 8150 सपक्ष ०९ते 98 9 0रगा ठ०ाशाड्णट 9 9९९ 98, 0 = जठ) &7७ वकल १६ #०त्‌ ; अणडण्डः विन्नस्यताम्‌-1४० "९७ २०७७११९ 1प9५९९. दीषिका & `` कीषिकाया अवटोकने यस्मातादृश गवाक्ष गता)- 6००४० तेण ` , छरगज्न ( व्नफफक्षाते8 ४16 एरक 9) कठिन भ. गवाक्ष ( गौ+अत्ति इव ०. गवानां किरणानां अक्षीव) -#. क०0०, [णे गः ०४- नप्ठणानः 10 826 [८ ४06 शु6 भं 9 ००. प्रवति प्ररो वातस्तम्‌ ०: प्ररषटो वातो यत्र तम्‌, 1100 78 ००१९ 18 9] [मृ 16९. अयवाते ०८ पुरोवातं ७० 918० &००१. अग्रवातं - ए०४८ भप, पिको, भते १८७ भ, © ध्रवातशयनस्था देवा! माल. 1४ 4; ५7९ 1006७ ५५ ०धालयः ७७०७९, छप भ्त १1५० * 18 076 9०४८९. आसिवमाना तिष्टति-- 18 ०्णागाण््ट. शीष. का... तिष्टति- ४: (०००४०१४ प्र०प४6 ; 816 ७8४४ १०५४ &{ ५५ [५५ .9. भ) ‰0 10)0916 ४५6 6810०९88 06 एण्य 46. ' & ' {९ प्त जह ०१८1००६० ४५ [९५९ जभ" , से (अस्याः ) प्ण अनः ४9. धल 98 99. 00९५१९७ हिलण४रड १०१ ्षण्ह णिवेद्णेण 1208905 8:5९ वप्भाकिण्ट उच्छाह, आयं &०.-- पण्णा पल कणप णमा 92६19 {8110 वरधयामे-वध्‌ 1. 4. ( ४४५ 2. *1909 © $व्न्छयते पिषठ 4018६ १५१ (00००४), १५ १89 19 10०890० ०४१९), करल 1॥° एषष्ण-

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४९९ पणा ) 1] 8180 १०. यावत्‌ पुरानिपातयौः ट्ट ( पा.)--7४९ एष्चडला६ 18 २86 79 {06 8०56 01 17170616 †पपा€ कध पुरा & यावत्‌. यावत्‌ भक्ते) षरा भुक्त 10686 (० क0वालापचणालड 800 कलभ ण, 2. 14. ठब्धक्षण; -(छब्ध, क्षणो नि्न्यापारस्थितिः येन )-1708{ 188 &०{ 161507९. :-शाकुतट- ' लब्धल्ञ- णोऽस्मि ` ( विद ०). 7018 णा काथ ° सण ', 7०८ णाम कृष्य 1978 ४० #)8 07त २16. 1008. ००७ गृहीतक्षणः- ४५४ 11. निष्कतिः - ` ( ए. कप्य, )

विष्कंभकं : विष्कंम : )--^प प६शग]पव७ ४४ {06 एण्डाण्णणड ४० ०४ 8 वेष््य& 89 [€णिएणकत्‌ ००९ छा = 0016 लोषालला8, पपतताा णषु

मध्यम ) 1४७० ( नीच ) 10 €0पाक्त ॥16 8० 6 800 वाशकजणड प6 कात एक्‌ एतन सपकक्िपोणह ६0 प्6 8पत९९९ क४४ 088 ` ०्थ्छपप्रकत्‌ ०6 णाछाएश्‌इ 9 ४6 868 0 186 18 लु ५० भुगृन्ण ४६७, ००. 8, 10. 90768 16 पऽ :-- पी वत्तवर्तिष्यमाणानां कथांशानां निदर्शक ९.“ ^“ सिर्थसतु विष्कंम आदावंकस्य दर्शितः मध्येन मध्यमाभ्यां वा परात्राम्यां संप्रयोजित : शुद्ध स्यात्‌ तु संकीर्णो ( मिन ) नीचमध्यमकस्पित :

भरत ४8 १००५९५१ जगद्धर 1 0:8 0०016087 0 माटती माधव १९१००९४.

४४०० कुतोऽपि स्वेच्छया प्राः सेवंधेनोभयोरपि विष्कंभकः विज्ञेयो यस्तु कान्यार्थसूचक : विष्कंमस्तु द्विधा सोऽयं शुद्र : संकीर्णं एव | शुद्धो मध्यमपात्रेण संकीर्णो मध्यमाधमै | 1.5. हि ` कि भ्व प्रवेशक :--11 ०४०११०७. 42 7४1€]०त९ ४९१९ णि [पश्णि०ः ५१8. उन 1४6९8 ( 87५11 85 867982६8, एप्?0००§ &८, ) ६6 कएषपा]०४७ गा क्ट्वुकण६- = 7 > 19 ४७ ४०९९6 111 6१९08 ००४ "6860४४९ ०0 6 8४४९6, ४४ 6 ४70 166 )016 18 6886०४४] 0 कल [ष्णु पणवला8॥8ण०दोणहु ज} 1011058 ; 116 {९ विष्कभकं ९०१९८४७ ॥116 8101 9 ५6 पप एकञ्च ४0 ४८६8, 11118 28 मिन्नरविष्कभक, ¶1€ 5:0679066 ०७४७९९५ विष्कंभक & प्रवेशकं :- (1) विष्कंभकं १४४ ९016 ४६ {16 एर्व पपण्ड्ठ 1. एर्नणि'© #6 878४ ४6 © ए6॥कल्ला 80 ४० 8618, ४४ प्रवेशक ०९१८ = ०0८८ण१8 ४६ ४16 ॥९्ह्ाप- ४10 (€ तष 86 जः {06 €त ४४८ 1४७४ ४५४. ( अंकद्रयतार्व॑तेय : ). (४) विष्कभक 19 ५०९ फ़ ९878०678 नकलः पाठितोषण्ड पवतर 324 प्टिपणय 0६०, एप पका ४४५ णप 01४6198 = ०1००6

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ऋ}, 1}€ प्रवेशक 8 १6४६ 1ण0 तो भ४6शा8 21006 ; ४00 परोप पलार ४० ५५८१४८५० 88 शद ४० मिन्न प्रवेशक, 3. 7. १९6०० + ५४०७ :-- प्रवेशकोऽनुदाचोक्त्या नीचपात्रप्रयोनित : | = ` अंकद्र्यातावज्ञेयः शेषं विष्कंभके यथा ९०४. अनदाततोक्त्या नीवोक्त्या नीचेनैव नीचाभ्यां वा पात्राभ्यां प्रयोजित : एव कारेण संकीर्णप्वेशकन्युदास : | जगद्धर ४18 ©. "0 मालती, १९०७७ 16 (198 :-~ यन प्रयोगवाहृल्यादेके ऽर्थो समाप्यते बहुवत्तान्तोऽत्पकथे : विधेय : प्रवेशक : अंकानामंतराटेष॒संकिपार्थग्योजनै : || भ्यव कथाव द्रो विज्ञेयोऽयं प्रवेशक : ¦ एकातस्थः ( एकांतस्थित : ) परिजनो यस्य फर 8 पशपत नवताण्ड ४६ ५1818066 ( 8{४०वण६् ४४२६ ). ट्वो हस्ते यस्य स; (न्यापरिकरण बहु° ). अन्वास्यमानः-60श्ध05 {116 8५५०8०६ १९; ५५ 1. 56. ' अन्वातितमहन्धत्याः &. अनुवाच्‌ ( १४०8६] )--10 1७६ ६० ०९४७} ( एर्धणि९ १९७४ ४।०० ) र: विकर अनवाचय तावत. वाहतव--1॥५ ४४०6 #6 णणड्थः प्रतिपद ( 4. 4. )--10 ५४४१० ४८६ {0 कषात8. किं प्रतिपयते-- ५५४ ५०८३ ॥9 [70]०86 0० कध १०७३ 6 शभ 9 स्शृ, ५: मद्रा 1. 18. निवि प्रतिपन्नवस्तुषु सतामितद्धिगोचवृतं ), 8180 शारतल एए नजाने किं तातः प्रतिपःस्यते ( नति ) इति. ' प्रप्यते-- 1.4. 2... 26 ६००६ ५० ५५४९ ? लिर- 6 फणन्वन्छा एनान माक्वा भर७ ४6 (थतम अभिमित्र, 1४ ५४७ ` ७६५१४१७ ०० (6 ४४०६ ०६ ४० वेत्रवती ०००१० बटवा, आतमविनाशं ( प्रतिपद्यते ) -- (घ७ भ्थु$ 1० प्श ) 108 ०७० तरर, 1, 9. 0 प्ट का 0९७ ४85 ०४ ९०७००४०४. निदिश्यते इति निदेशः --14५ = 1०७१०४०१, = भृष्लंदलन००. प्लस, भण ९०७०७७0 तछा पप्८४त०. 106 8926 85 संदेश, व~ ०४६), ९२19०876 ' परण, अभिसाषिः ' २. 15. इद-- ३४९१8 0? ४५ गाककणह् ठणालय8 णा ४6 ]नल,

भपितन्यपुजो..माचायेतन्य हति' 19 ५५ ( अनुवाद ) १००अ्‌१।४००४ ° अधनिै- 1. 1 ध्र) ४० बेधनात्सद्यः 38 };5 णु ##. पितृन्यमातृमातामहिता- भहा एते निपाताः निपातं 15 9 फणे 0 पावे 11867 काणक 9० 1001० पितु्ाताल्यित्‌ | न्य ४११९ ॥० वित्ति # भो०क् #@ [ज्मः 6 {५1)6: प्रतित्रतःसवधोयेन सः-- ४४१ एप्णणकल्वे (४ = सध्नः ०॥० ) # 961 ्00)8| 81114066 ( का अभिगित्र). अंतरा 0४ ५५ ग्भ, इमन्तपालेन-~ "७०५५ ६००१. अवस्कद्य-- ५५१५४९५. गृहीतः- 1

| मदपेकया -- ०५४ ग्भ्य {ण ({ अभ्निमित्र). बो नः

> ४. 15 #

विदिते--1४ 8 ००४ पण्ताछकण ४0 ‰0प : 3. ९, इृ०प ए०डमतिकलत्‌ पणत 18 86 च्छ प८॥०० 38 ` च्छपा००० कं ४6 शपकिठ; ला. र्णाढ (नवचनं अरिवितो चाप्यगम्यः ` &€. 1. 11. 106 १€९त1०६ 7. २2००५१४ & ४१४४ +€ €्गण 7७०६९०7 8 तन्न वो विदित्तं 11676 ४6 १९६४९ 28 = प०१९६॥००ब्‌

छु *७ स्नपा +8107 -88 काकु; (4. ०९६२११९० ९86 20 802) पश्चाद

11... 10 1 9९1. ). व: एाप781 18 ०७९१ 8] 0क:०४ 7657९५४, तुल्याभिजनेषु ( तुल्यो लने येषां तेषु. तुत्यवशेषु )--26808 अप शण श्वृपक्नो़ पज ्षाङ्ग ४5 माधवेन & $ 8९)

नवो &--ए०८ ०४] ५०० जथ] एण०फ = #76 (्णणतप्लौ पंणट8 प०क्त्ोप३ 06०७8 सृप किण ‰९ द्वृप्थाफ ००6 श्ण, वैदर्भ ०९६०8 ४६८ अभधिमिन्न 8४००1 ००६ 8189110 माधवसेन, 10190810 76905 तन्न वो वि दितं यत्तल्याभिनेनेष ममिधरेषु राज्ञा वृतिः & शः1)95 (४ ;--माधवतसेनः अस्म; कमेकान्वजः पत्र ज्ञातिः सदं वैरं विशेषतो नृपाणां मवत्येव-020-श४भाशा8 शू पष्ट णय 6 8806 शिप करणात पकप 08 कणापाट्मे वल ०06 80०पथः, कणृश्लक्षाङग 35 कण्णात्‌ ४७ भुाल्छा ४6 ©४56 © 0६8. 89 णप ०९९ प०४ णलि 7४ छपा फ४७ा, 27, ?००द४,३ 76870 39 ४6 परक 6ताण ००1५ 06 ˆ {29 ए०प ००४ 00 क्र {194 +€ ०००९०७६ 16968 फक प8 = 68078 06 8876 8] 28 16 ५४७ ९४111 { 70791591 ) . सवैसहा वसुमर्तां &. 7109 38 ०0 2४८6 {गः {06 स्मा शतकाणडठ ण्णृभ्भाति. 1४15 स्वेसहा- ¶गनश्धण्ट €्श- चण. एए कण्व एलः ५6८ 978६. = मध्यस्थ.- प्रण सोर्दया ( सो

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-# फलतु कध ०प४ य, मोचमितन्यः 38 ८४८७३] णण मुच्‌ 08.४६

{8 ०३१७] ६००४ पूज्येन ( आपिमित्रेण ). & मया वैदर्भेण ° ;8 एपप्य- ४१० ५९८०४. अभिसोषिः-- (0०8, ९004००8.

2. 16. (7 ) कण्ण कथलः का] च्छ ए०फला णभ, 6 फो. अलः ठ: मर्यं 15985 ( मैर्यसावैव ) 9७० ४8 198 1९९ ऽन्ते णि इ०ण, ४6४ 1 ५५० 921) पण्णल्कभ्न्ो २61९986 माधवसेन ९००. (2 आर्या.

(6 6००४०४०८ 5०77०808 मीर्यसावैव ४० ०6 ५९ 10© ०४७ #8 = छण॑फलन० ४, सावैव-~ 099 क]00 18 = भकश्कु8 का) +06 पण्ड तण सावि #190050;7 & वा #0 &०, 74, एष्य भध्था १०४ = ५४4 3

16

कपकृ0राणा कला ०0६ (00 षत्‌ 06 कड (6 अणष्नः #1© मर्यं ण्ठ पटहीषुत्र, पद्व ४० एष्णेकछर ५४४६ 16 ज8 प्रण म००७त अत्निमित्र ४० एकरप पिनि सष्लक्षण्ड [५.40 ४० प्श १६०5४ 5 ( अत्निमित्र 8 ) ध्नः ~ पुष्पार्मत्र-- ४४ १४ ऋप्एते९७त {6 185¢ ° ४४७ मीर्याऽ-वृहद्रथ, ४१ एपा€्ते ॥;8 = पत्छछह पि 018 80113 वरछपा; धते 8६ ६४९ ।फकृप्ड०णा४ माधवेन, ४6 तश एणा ण्न अप्निाकितरि ४8 तण्ड, ४6 तण्ड ४५ वि. दर्भा$ ४8 भा लभत णिः ४8 एण्कृननप-क'8 1.41 २०९०४ 7 अग्निमित्र.

संयन्‌ ( संयम्‌ )-एकनण्व; ¢. वेणी, 1. मोक्ता- ०८००६ (णपा ०।४- ( कर्मणि लट्‌ )-- 0851 १6 9756 {०।प7९.माधवसेनः मया मोक्ता +. ०. मोक्यते माधवसेन 71] ४४ ००९९ ^ 8९४ ४६ ]0ल।क़ ००९. 1४० णा (+... | मोक्ता माधवसेनस्ततो मया बंधनात्सद्यः ; मुच्‌ ( 6. 0. )-- 19 1)9९४।० ४0 वनन कणि <न क्, 106 एक मोक्ता तकण भ्ल ४९,{ 1 ) $ष्म =

४९७ ०1,(2) 4 ००० 19 तुपर्ण्णण ०६०४, ( 8150 फक कषप 9 वलार्य-

माधवेन ). 07 ४४७ ०8७ ०१ ४16 80८०8811 १6 {०8६९५ ०१ ४06 हण्ा४१्८(मा- भवतेनस्य अहं मोक्ता & थः पाणिनि 627. ( लोकान्ययानिष्टाखलर्थतृणाम्‌ )

10 ०७७७ 9 ६1686 क०त§ ६16 १०८०४१९ छण्‌ ००६ {€ दुल १९ 18 प७७व्‌ (तच्छीले नतु षष्ट कितु द्वितीया.) कार्यविनिमयेन &- 1०९8 १९ 991)18) †9]0 एभटभण कध) ४00४४ 106 ०२०१५०६० 9 ००८९१९९७. वीनिमय ( वि+ नि+मे 1. 4. )--ए२०,०६०, 09६० ज्यवह्‌--10 १०५]. गणे च्छंणह # १८९] कः+ , 1०८९४» ४6 ०9९ , लः शार (तस्यां तवं साधूनाचरः.' अनात्मज्ञः ( आत्मानं जाना सः )--1॥%४ १०९७ ०४ णक 98611. 9:--शाकुं = ४1. मा तावदनात्मज्ञे देवेन प्रतिषिष्देऽ' &. प्र. छृत्यमित्रः -- 50". प्ररुत्यामित्रत्वं विषयानतरत्वा्- 18 & ४४०१४] शालपङ़ १५९००8७ 118 {शा१०फ 18 01०86 ¢ ०1०९. दः-अमरकोश. विषया्नतरो रा- जा शत्र --^ भ100 15 3 17706ब्‌1816 161१9००८ 38 # रणड .( अ- नतर ०४ १8५४४ {७7. ५०८० अनतरत्व-- ९६) )०प)००, ष्णं

विषय --०फ४०, ध्म, प्र्यमित्रः प्रङुत्या अमित्रः ); ¢ श्ररूत्य- +.

मित्रा हि सतामसाधवः;।०५“तस्यमित्राण्यमितरास्ते.' अमितर!ऽ ०। ण) 8 ०९९ते ४5 798 ००1०९. प्रतिक्ूलचारी- 0०० ११४६ 8648 } 78617 1 गुणुणभप्र ४० ०००. यात- न्यालां ( यातुं योग्यानां ) पे स्थितस्य ( वैदर्भस्य )-- ४० ९००६३ 1० ५४० कृष्व (१४६ १०१} {76 ७९ोर८छ ] 16 ४० ७० १५१०८}६७व; 1, ९, #}9 098 00 १७७7760 8 ४१०१० 0०6]. एूर्वसकस्पितं प्ण पष) ४8 भो ५0१७70 2900; उन्मूटनाय णः ४२ १९१००५१० दण्डचकम ¶9

17

सकछ४०9 का] 06 इणकण०४९त्‌ ००१०९०५० १४ फः इदमेवं निमित्तमादाय ( ४१७ 1988 87९७०), 0९1०5 ). ऊ्मूलनाय - 70 २००४ ०४४, # ४९ ४०४६९. स्थितस्य. वीरसेनः प्रमुखो यस्य॒ तत्र. दंडचयत अनेनेति | सैन्यानि तेषा चक्र समुदायम्‌ -17॥९ 0४57० (९ भषण ~. कंडो यमे मानभेदे लगुडे दमसैन्ययो

व्यूहभेदे प्रकडिऽन्वे कोणमंथानयोरपि अभिमाने यहे दंडश्ंडाशौ पारिपास्बके | इति विस्वः | चकः कोके पुमानङ्कीवं जे सैन्यरथांगयोः राष्ट देमाःते कूभकारोपकरणास्रयोः

जलावर्ते पि इति मेदिना

9 9 29; &6 ४४९ दंडा एव चक्रम्‌. अयवा--0८, ००१. शाचेण ( नीतिशाख्ेणार्थशा सखेण )ृटम--शाखरेण दृष्टं यथा तथा वा ( गु. ४० आहं 9व१, २५०८१1०६ भह ) -- १६ 8 ३० ३८८०१४०८ कध ( कणा भल्ड] ) 86९८९. ४४ गण 8९७ अथात्‌ 18 षड 10. [शुण्ड कनेः एनाा+1८ब्‌ 8८१६०९९.

2. 17.(8 ) 8669०88 9118 101 1४५५६ 186 700४ 39 ( ४6 ९8718 °} ४18 5०0९8, छा शानपाद, 1845 प्शरशा [00886880 9 10&तजणर 1४६्श, 35 ९85 *0 २००४ ०प्ै, [४९ 9 धह 10086 00 &000प्प४ 1४8 छण] एलणड फक] 1019१४९. आर्या

अविरं अधिष्ठिते राज्यं येन, प्रकी: (9. )-- {1} 11०88 प्ण इत्था, गोणा, ४106 00 प्पाप्ंस॑ला8. [2 ] प] इपणुल्छण ण्ट ०६ रघु 10. 10. अथ वीक्ष्य रपुः प्रतितं प्रछतिष्वामजमात्मवि रया &०.* ५०9 मदिनाथ ०० १७ 59०. प्रानीितं ~ रूढमूलं ` &. अलूटानि मूलानि यस्य सः तस्य भावः अरूढमूलत्व. तेन््र कारवचनं - तन्त्र ८९४०३ 9" मन्थ. 0७७ नीतिशाख १६ कटो) 1475 7१1९8, कृनोतल्म्‌ इलं ९४०6 तः ९०९४७. वचन -- १९८९४ ४०1९, वा०प्क, तैन 4&<€--1)€ 116 7१16 0 ( 0660४ ) 0 ४9 [1/1-2,.1-., ( 01000 ) "08 0 एणा1९8 क| 06 (0९ ( |] 06 ६706 ( भविष्यति ). 30108 ४३6 फ़ 06 ५९ * भवतु ). निभित्त- २१७४८२६, 9] [€ ०९१७९. समुदयोज्यताम्‌-९"९]) 97९0, [४४ | १७. २९४१०९88 , तथा--1८ 81911 06 १००७. 10. ४०९४० 1०६८०४९ तथा ऋ0]त ६००. €०१८ कि कणप नोक्षक्ष्छटाः, अतपात ४6 प१त१९३॥००त 8६871 {07 यदाज्ञाप्रयाी देवः. अमात्य :( अमा -१०६९५४०य ४४१ त्य ~ एन 9" * ) अमा-सहवास्य, 0111091} 0००8१४४ ४६९४०४५ ए]०प ४१९ ६०९, ४७ 1४ ९९९ ५०००९९० ००1‡ » '9178+®, यथान्यावारं ( स्वम्य न्या- ` पररमनुसूत्य)*- 46001108 ¢ ५५७११ ९8]९८॥1१७ १०६९8 ०५८य०७००8 ). विदषकः ~ वरल प्कलौठपड तछपाकृक00प ४० ८००0विलणनन पित्‌ ४06 0७०, कठ | शरण चतः छु 008 पप्य 0688, 9०९6०068, 69४68 = &€. णह 1

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18

9] 87801 $ {00} 16 १०९४ ००१ भ{ण्ुललः भद्षण( 86086, 0-- कुसुमवसता्भिधः कर्मवपूर्वेषमाषायै हास्यकरः कलह्रतिर्विद्पकः स्यात्‌ स्वकर्मज्ञः || 8. 7. पथा<& इति (४०४ १०६७५००) ~ 19 ००५४. उपाय» ००;००४५. यदच्छ्या बट प्रतिशतिर्यस्याः सा- फा) ०९९ एत॑णा० क७ 8९6 गु एकु १९०६९०६. रत्यज्ञं दर्शनं यस्यास्तादृशी - 8१०८1 ॥० ९9००१117 १९९. तेत्‌ १९१०९७६. तथा -्रलिा$ 0 €ल्छण्णया ४6 ०६5 २७१०९७४

विद्षक. कायोौतर &. अन्यत्कायं कायौतरं, तन्न सापैवः ( नर्मसचिव )-¢. ०४१४ .

846 10 $ १06760८ भीः [ 1०१८ 9? ].?. 18. सशिरः केपम्‌ ~ » ००५ ५०.) ९७0.कंचचित्‌ 18 ०७९ 1. 29700५०६ » १०९७१०१०. न:--रषु ४. उपे- योपायदर्शने &.--18 ‡०ण ८6०४8] ९९ ९१९९ [ 0९ 1 10९ & ] 1 9४५ 10४ ०४४ ८९४०8 {0 ४6 _ ०9]९५ 06७ {0९ षव्कवाण्डु

उपायोपेय &€, ०१९९४०8 18 $0९ ९७ 8016 ॥0 एतश १९ ४06 अद ५१११०९८०४)1९ ०९४०8 ? प्रज्ञाया : चक्षुः- 216४६] ९९. 458 बहूहि ज्ञा एव चक्षुर्यस्य सः )1४ ०९९8 एत ०४०, आः ~ फफ, क) ला९ 38 ४5 ०९८९७४9 धशधए ४४४ १०९७४००. विद्षक (७।६९७ 1६ ४0 ण४प¢ 8 . अराति ५४४ ४06 हण्ड तपते अनः कषप ४06 पडत ^ फर ४लशरशः ४6 88 श्ल ४11९ ४0 89 ००४ &&. ` जः 90 ९०१०४१त१९४०४. < मृ राराक्षप्त 1. “आः एष मयि स्थिते. ' ^15° वेणीतेहार 1.“ आः वुथामगलपाठकः | प्रयोगतिद्धि-ऽ०००९88 0 ५० ®) ०76, विदूषकं ८९९०8 ५१8 = (9 1.4. ४१०] ०0४ डर 110 क)6्नः 16 88 ४९6) 8016 # पणते ००४ ४४७ १९४३, ४४ 8}0प]व 0104 80४४ 1४8 8०५०८८७8, प्रयोग पर्छते ४८७७ प. ीनप्ट०४ 8600868 फ़ {€ ०6 1 व] कणा; ( 1) ए्फिणिन्तज, १९४००; 2: 1प७. प्रयोगप्रधाने हि नादरधशाल्नै ' ; (2 ) २190, १५१९७

90006726, ( 7 (€ [९७९०६ 958१९. );( 3) ¶09 १८३९९ गर दषृलाोककाव्थे

ए०।०४ 9 # पण] वौ; 1009: तदत्रभवानिमं मां शाले प्रयोगे विमृशतु, 17.15. साधु- फण), भ०11-0०09०, रश ०10९, 0८७४०.नि वुणे-0ान््छत्‌5, १८।१०।४. उपका्ा-8०% ००, दुः ेनािगम्यत डम दूरथिगमा, दूरषिगमा तिदिर्वभ्य तत्मिन्‌- (४6 5०९०९88 10 कतो 18 तार्णिव्ण४ १००, आरभ; ~ पण्वल्न् ण्ड, ५: रघु. 1. 13. ' आरमसदशोदयः `; ५९० रत्नावहि -“आभिस्मिन्‌ स्वामिनो वदधिहे तौ." क्य~ 16 ण्ट धथ णषम्‌ ४७ एप्प ४५ अआगरेस्‌- ¶० ४०९.

(9 ) 09] ६४॥ कृलष्णा करो0 }65 8 (तकण) 3 बोर ¢ 8 एण 9०86, ९७९८ ०४७४१०}७8, = & ८१० ६6पह्# प्ले जाप) सज

१०५४ 10४ €प्टशा१७ ०४}५५४ कध 8 0 09 इन), 19 तनय 19०४ 1४४. आर्या,

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19

प्रातविधेन सरितं. प्रभः- प्रभषति ¢ पष 8 ©00517प७्व प्रभुरपि सपतिवेधम्थमधिगेतु सहायवानेव योग्यः यथा ) स्वक्षुराप सतमसं दर्यं द्रष्टुं दीपरवानेव ( योग्यः ). 7४15 11प७४६68 भ) 38 एण०क्9 ५००८३ 85 अन्वयन्यपिरेक ( ४७० ६:९8 700०9००8, ००९ १०७. ध१७ &४व 6 गलाः पश्ष्धर७). 78 23 2 (ण्ण दृष्टान्त, नेपथ्ये --- 8०:४१ = ४४७ = ०प्प्छण, ४6 धमण = पण्णण, ४४७ 05680९४०. अलमले &०--4 ०५७ 10 ¢६०८887१७ ०४8०. अलमन्यथा गृहीत्वा" &- 1. 20. अक्ष्णः समीपे समन्षं ( अन्ययीमाव ) . नीतिषादषः ~ 106 7९8 9 101112०९. नीति पण 16 ध्वा 70 9 शद्टुणत ०५१९४] 8७286 ०६ 01; ५०8. अधरस्यात्तरस्य वा न्यकि.-- 7७ 4०८७३०० ०६ 1०. ला0प्ु ४० इषकृला०पा क, ( 1४ 111 ०८ १८८१० गोले ०६ ०३ 18 प्णिःमः & 111५) इपफश्ण०ः ). व्यिः - रघु. 1. 10. उद्विन्नं ~ 8४०४ 1०४४, छणलण ज, इग ०४६७. कंचुकी ( कंचुकोऽस्यास्ताति )-4 ५०४४०४० 1812 ( 700०४ @ोकाद८ाछाः 30 वकक्ा28 ).

09ः-- अतःपुरचरो वद्धो विप्रो गुणगणागिवतः सर्वकार्याथकुशलः केचुकौत्यमिधीयते ।।

( घट पण्डा 06 9 8181070, एश गप &. प. 1. 1. 8. ए. 3. ) (तेवाकारापरिणतिरहो खीषु कथोऽधिकारः' ९.20. प्रमोराज्ञा-६ 68 ४० ४४५ ०१०४ 9 ४५७ ४० ४6 पणाः &००प४ ४6 8ददाण् १७४४० पा ९४४ १६०१०७४ ६06 णह 9 विदर्भीऽ 1० ४५४९ इति {४6 आज्ञा 15 ४७८८९; ४४ 5 प्ट 18 ४06 २€व१९७४ 9 6 पाणाडल्डा, कोणो6 ४८ ४६९ [भ 18 ४४९ 1५0९ु06०व९०४ कपपफक्म क्वाएछ ४७ कंचुकी ५० ४७ ण, 86१९8] ९414095 168 २७78 10 88 > [07086 0888889 8100 फ), हरदत्त- गणदासौ & एतौ

( 10 ) फ॥116 66 876 6 ४० श्वगण 9 भध८त्ण, ९०० श्ष्टलः 0 6 लग फः ४७ जकन, काण्ड ४० #€€ ००, 1 06780, 10 278 28 1४ ग€ा€ ४6 10* 87728 8 9 ४७० 61१81 &11041008. अनुष्टप्‌

पू 06 छलः 1644196 ००1 ४6 पध९०8)216त 28:-- = 116 1616 ४76 इर्‌, & गण्‌. = }9 क;8॥ 0 866 ०प. 19 ९78४, = एजता = ए०्०सृध्०8 = त्ा8(16 1 शु्८०९०४४४०0 ४० 19०४९४४ ०9 हभण रलम = ण्ट श्लो (धाः, ४8 1 धल का6 86006०5 10८९6, 106 अकार 1४ ५8

+ उलेक्षा. ( प्रच्स्वोत्कटा ईक्षा ). ५. उत्तरराम 111. + प्रवेशय तौ-- ००९७ ५४९२, 90 ४6 २०, दुराप्तद्‌ः ( द्ःखेनासादयितुं धोग्यः ) ~~ ्षिन्म # ४6 07०५0०4. राजमाहिमा ~--3्नणव०्णः 9 ५४० णद.

1. = ` = ५५.4१ १५.४7 9. > 4. \ £ 0५ ,

20

(11) प्ण 16 18 ००4 किक # 76, पणः }8 16 8{60; $] का ४९ = भृाणड्लो) 5 1९8९००6 = ( १९ ). 1.९ ४७ १९९६ {07७ भाः ( 0८७४ ), €श्शक ००९५४ 16 9016878 0 प्ण ९68 पन पुम्िताथा ५15० ०५।०० ओपच्छंरिक

चन &८.-भः 8५1४. तन्न वौ विदितं ५० ६७ १०८ ०९००-- ८. 21. पुषोऽपिकारो यस्य॒ तत्‌-- ६८५१1०8 1५ » २०५०. अविकारः अपि करणं ) -«^ ४५५९ महत्तलु पुरषापिकारमिदं ज्योतिः- महत्बलु॒पुषषामिकरणमि- बं ज्योति : , महत्खलु पु्ाधिकारमिदं ज्योपिः- ५१९९४ ३५५८० }# ५४७ |००7७ पण ४06 षण 98 ०७४०, 1 ५6 ५१० प्लवा पद्वु पुदषाभिकरणम्‌ + ७९५५७. अभिकरण-स्थान, अगिकार ७५०८६ &७०८४॥|$ २४९4 ४५ 86756 अधिकरण,

( 12 9) 7 1086 €. ९९ ज्र४5 911०6 ध+ कल्म) ( हण्डे ) शम ४य्छवे 8४ ६५९ तका, 1116 अवरकण्लणद् ( (ककप्वड ४४७ हण्ड ) 1८40 106 ६160४०४ ५४४ ( ४।फ8 9) ०१९७ ३००६ };8 पमाम्‌,

४४९९ एल्ला १९]५।}९व 8९००५ ५96 5 शीप्ला५७ ४४४ 1088 ४१९१६ 0 £४४८७ +.1-@, ५.८4 वसततिटक.

एणः दरार नियुक ५०, ४१० तारानाथा'§ €]019191100 1 ४6 ककषशल्छ+ो विनिवाितो (५५९०) हरिपातो ( ४।५४५९ वैस्तादशैः पनरव -- | 8५ ( ००९७ 7१076 ), 1९9 ८४४ ०८९३७१०४ 05 ॥९ण पणृ्ोश्व एनण्ड ४६ प०० ५७ १००६०९९) ५४ {९ १९०००१., आसने तावत्‌-- ०७४ 195९ {0 8९४६5 4९, [४ 18 196 8४०६९ जण ४6 ०३५१९ $ 16 ०९, (० ०प्पेहाः 8९६६5 फ७४ले{. उपसपेताम 18 कण्ण ०७८४८९७ पललः सुपू ज्मः उपसुष्‌ + ^^ शिष्योप्देशकाले -- ५४ # {10९6 छल) एकप ०१६४४ #9 ४९ 1फरप्पठक्तणह कण्ण एष. | युगपद्‌-ऽ;००४।- ४४१९००४}. आचायन्याम्‌ - 15 ००१ ०५४५९7. २. २२. तीथं (गुरः )-4 ए्ल्कृध्णः

( तीर्यते अनेन वा ) ~ तीं शाखाव्वरकषोषायनारीरन : सुच अवातरारषैनुशौवु पातोपाच्यायमंनिषु ( हापि मेदिनीं ), ~ (11

४५० ४१८ ०१ 16])7९86019110् );[ 97. 81 619) 79111}; 5 7९441 दृत्तप्रयोगश्वास्मि देवने १५५५ 1/5 ९४ [119४६०0 प्रयोगामिकारः ` (11४ एष्लृ०ह रण्णणितश्ते णण छर फ़ उण्णा

प्यथ 218 पष्ठः ७० ४०६ ६०० ते फक्‌, पदगतः ५१०७

0५7००2८५, सोऽहम्‌- 10५4 7; ठ, » फक का = कणठ ऋ0।6क्वशा न, पुषपसमल्ं ~ 1 ५1५ १८७९०५९० 11७ 7०6७] ९१०४8 ( 0१ प९ [1.1.32

१४० १८५०;४६ अदि ६1१७5 8००० {०९० ०००.अभिक्षिप्तः- 1०७०५०५. परिवादरतः

१.

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"शाद्व % ५१७ ०86 ( 0 76 ). परिवद्‌ -10 9]१०४।६ पऽः ०65, रधु. ४.४५.मा भूत्रीकारनबापतारः ' 1००६ 1:८६ ४० ५००३७ "2९. प्रिवादकरः~ ००४६० 90 लु 9 9005108 ००९. अत्रमवतः:8 0676 ०७९१ 07 गणदास ३० 8, 8] एणं ९३ा 86786. विशेषज्ञः ८०४४ (५ ९।६९ 6१67 85 871 ३९९. ४१ ०८ ४8 9 आप्र, (1) . तनभ्ल्भ; (२ ) (तपल गः वक्णा०88९णा प्राश्निकः (० गर्छ परश्च युक्त )-49 पाण1€, 1०१९९. <-1178 अहो प्रयो ्रात्निकः 11. °" तद्गवया प्रा्रिकपदं ५. समथ प्रतिज्ञातं - ९।।७०॥०७७॥ 9 9? 09881. प्रथमः कल्प; ( कल्प्यते ऽनेनेति );-^ एश &०० ( ७९७८ ) 910798१९, कल्प 8 81061118 61१6 71९, 1९166 & 1000881 07 80९७४१०१. -- मनुस्मृति 111. 147 एष वै प्रथमःकल्पः प्रदाने हन्यकन्ययोः '; १18० शाङेतक ४11. उदारः कल्पः ' 11606 168४ ९०56 (0 10110, तिष्टतु €&०--1.@ 2४ 6 ( 5।४ ) 07८ 9 16; कभा 9 ०००९६. पक्षपातः 2५४. मन्यते 07 मन्येत (५0510678. 9. ०1१ ( 806] ) ९००8११०५.

प्छ छ111 एलण6ण 0676 {181 हरदत्त ४8 =8{7न0126व ४४५ 1४ &०१ गणदासत ४6 पष्व्छ; 80 0५ षट, 18068 ४0 2४०4 & $ शप्ञलाजप फ़ ४€ वृप्च्ला, 106 वभ्लंणड् ०४३९8 8190 9९ए ४0 ४४९७ €6॥ ५४४९ 19४6 णा = (ज्पमप्प्ल िद्षक) एण ४0 800 18 8}7क08769६ 10त1टा९०९९) (16 ण्ठ 8३1६8 ४16 = [ १९5666 ४९ पृण्श्छा &०0 (९ 1५9०९ कौशिकी, ४० ४३ ६180 100170९ 19 ४७ कः 98 का ४९ हल्ला लाल ला, वको पिृषारणक #8 कौशिकी 18 ९९11९ ला५ा¶ &8 & 1687160 [6800 ४१ 6४४७ ४64 ६० 6९७१९ 7 कष) फक्त, 6 ४6 २९९] ०१९८४ (०ण्ष फला ४१४८

8॥€ 80००1 88818 6 णह कोलारलः ४6 पृपल्ला कणपाव एपण्ड क्षप ०११८१८]९, शाराण् भभजात |प्४ १4१७९ कातो = 0ककण्छाः 2

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{का ॥06 ५९४ ६9४ ५1686 ३७६७8 कला6 [080700126त 16 [णह ४०व्‌ {€ 4१९९० 1€8ष्८४र्शौ, (8 €बलो) 18 द्एला कृषका 018 0 ४0; ९४6} पल 38 9 १०९७५८०. न्याय्य--( कयापि अनेन इति )-- 3०७५, 797©. न्यायादनपेते यत्‌ तन्नवाय्यं पाणिनि : -- 1650. धर्मपथ्र्थ न्यायादनपेते. व्यवहारः-- "1५1, + १९७1४609; :-- मृच्छ < 9, अकं ज्जया व्यवहारसूवां पच्छा. * व्यवहार : न्यान्यः-- 1० ४५४] षणी] 1/ष्मृनः णः ¡०8५ ?. 23. प्रस्तावः-- ( प्र + स्तु ) -- 4097, ९६86, 106तेटप, १०४९ &{ 18806 ; ०८५१७0०. ( उपस्थितं वस्तु ). संरंभः--0०१.५९०. पश्यसि-- 11५४, अलं-- 0०९९०. स्वपक्षस्य अवसादस्य ४४ -- ४९

~ 0 विः. ` " जक" `; [य १, 11 |; १५ ५५ कन | < "क {क = 2६ ~. 2५९ 1. 111 + #५.५ ननद 0५ ५०4 दै ` चै ५५५) | ५४. ४.5 | ५)

{९०१ 6५४ ४.१ -/ ) 17 का 5५११३ ५८ ^^+६१ ८* ५५५ "न्क =

^ ^ ४४६ कृण ०6९९ का ४९ १९०००४७. परिहीयते ( प्रिह ५७०१७ )-- ~ 0९ णण, ५] ०; ४. "ब : विच्छंदात्‌ परिहीयते „क्यः $स्यागमधुरता.० 1५ ६५६७७ (6 वान्रड ५५ ०भणुर् र, 1, प्रा | जीयते केनपिणदास : 19 (०० 91}. ४. 24. राजपरिधहः- 6०११] प, ६४७ | ५१००९ 9 ५८ ५:५६. से ( अस्य ) -ष्णश$ ४० हरदतत, प्रधानत्वं-3पभभतधं

| ४0१६।०६९. उपहरति ( उह )-19 छश, एष्व्डछणम ण्डः ४७९१ का भथ ४४९ १५८९७ ६०५४५१९. 16 स्च्छताण्ड अपहरति ०३ ००९७ फर वकृ छण ( गणदास } 9 ५8 8प 6०" 7४06 १०७९० ०९७०३ ४१५४ ५००६४ गणदासत 15 १८५०९1] ऽपृनपमः हरदत्त, ४७ का] \ + (4०४46 भा ४८००४०४ = ४९ न्भ 9 ४७ ण्ड्व 9 हरदत्त.

` ^ ` शज्ञीरब्दभाजन-- 1५ 19146 ४४० ६५७ १०८९४; 90}. पृष्भाङ्षण्ड ¦, आत्मान-( 1१०४००४ ०७९ २, 6 ४७००॥०७ {0पण †णः 9] &9०त७७ 9,

(13) 706 #"6 {18108 सपल७ प्श्य णि ४९ शर्ण ०9 ५06 80०; क)1]6 ४6 फज्छय 9180 भण्ड र्ठणण्छ्व

छक ४6 ४४४ १८१०।८७ &७४॥०८६88 ( 8008 ९7686 ०२०९९००७ ). आर्या. प्रश९ ४6 ण्ट, हरईतत, ४० १०९०० & गणदासत = ग्शृल्छपण्श | ¢ 5०, {16 १९, ४6 0४४ & ५७ ८०००. अतिमान्- मातामतिकौतं अिशापिता मात्रा प्रमाणं ) यस्य तत्‌; अतिमात्रं तद्धा स्वरःव च. अतिमात्र-- ५४०७९01" ४४७ 706 ८१९४81९, 19०1०४४९, ९०९७8 9९, 0९००५ ०५९४००२९. भास्वर ( भास्‌ + वरच्‌ 3 [11 ईश्वर, स्थावर )- 8019108 ४. 1. मासरं ( मास्‌ + घुरच्‌ ) 18 ध1ए९ण ४5 &9 €4०।१४९०६ भास्वर मदिनाय. रधु ४. 30. ( भनभासामिदो घुरच्‌ पाणिनि 3141. भंगुर, भासुर मेदिर ), प्रि्रहात्‌ & ~ {1148 एशंशा§ 0 ६७ चमप ०छ ०६०४ ४४६ पाकषा80118 105 1०5४6 ४0 ४७ 8७ #४ §प००७९५. £ रषु [प्र, 1. दिना- न्ते निहितं तेजः सवितेव हूताशनः' ४०१ ५४५ 00 १४७१९०४. सौरं तेजः सायमग्नि सकमते | “आरिःयो वा अस्तं यत्नगनिमनुपरषिशति | आग्नि वा आध्यः सायं © प्रविशति" इप्यदिश्ुतिप्रमाण. » .1. भानुः परिप्हादहु : 8 ९।७४)01९, ७९९७०४९ 19 १९७47 ७० ॥११९७ ०१०]१\०॥, अनलः ¢ चन्द्रः ५०१ भानुः & निशा का ४९ 08178 कल्ला ))16)) 106 तण्ड 18 809. एच४ पर ०00७ ०७०४], 88 क९]] 88, 70७ 8] णु १6 भणते ४0 5)10 ए०्णत्रकन चन्द्र 18 सूर्य. 1४ ४४५ ५७6 भानुः पिहाद : 4५ ४150 {७ 18 ०४७ ०४~ 10102 #४४ ।६१९ {0 (०९ अहुः (४ प९प्४७६ जे ) का हरदत्त ( १४७८५11० ०1 ). 13०४ 8०6} ©७७8 76 90४ ००४०४}, कज

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^ ७, ५५. 23

| 3० #+8 1९9010६ ५०९ 'चषल्कणाणह 28 एला एशल्पाव्‌, एप ००९९ ॥6 ३9०५००8 गक्ष}. २1१6. 601. 116 अलकार 15 दष्टा, अगिहा अपिहा-^० 2०॥671€00109 8100 फ& 8077188. ए;06 "18780811 (10. ६०७ 9180 प्वतेलः # अगिधा- ' प्रन), एवाः ५8६९ 96, ४6 ९९०1००8, '88 8 ०६ प४२०४ 8&8105६ १8०६९ ६० "€ णह. विद्षक ४028 *]]8 ४७ णह 0७ श्श्शपा, ४० 16 ४९)&१९8 06076 ४6 १०८७४.

प0९ [लः कदाष्छ ०५ 9009९४३ ९००१ ३3 धला6 कथ पतक इणा- एषं5€ 7 ४७ ¶्णफोणह ४०९ पपल्ल. पीठमर्द -016 ]10 8488568 #16 11670

०४ पप्ा०$ 1 8660६ 015 70180688; 8० पीरमार्धिका 8 1४त़ 19 2581888 #06 06006 79 श्छपणंणड्ठ एनः 10रल, 1116 कषश्छ्वलाः प5 एष कणा] 8० 1090 1४ कऽ {01001 16 8881818106 ४४४ "6 1088 1०5७ मालविका 88 १७९७1०९१, ०१ 1४ ७४8 816 0 10076व्‌ \/ 2५५)

विदषकं ४४७ 198००७०६ 9 मालविका ४16 4०७७०. ( 1४ )

फ्श-- द्रानुवर्तिनिस्यात्तस्य प्रासागिकेपिर तेषु ्कैवित्दरुणहीनः सहायए्वास्य पीटमर्दाख्यः 0८ पीठमर्दः समीपस्थः कायाटोचनकोविदः 0 प्राताकानायकस््वन्यः परटमर्गो विचक्षणः तस्यैवान॒चरो म्तः र्िविद्नश्चतदरणैः दशरूपपरि. 11. 10 196 २९५०: तत्तहोदि धारिणी धारिणी १७ ००४ ६००१. 2. 25. (14 ) पश्यामि, &०.-1 8९6 6 # 109, &08]160पञफ़ १९८०९६९१ 8० 1४ ०००88४० कौशिकी ०84 29 ४१७ 87४ 8 880९४7९, शण€व8 83 1{ 806 66 ५06 10087086 ॥ए४त 9 ५९१४8 &{{९०त€व 199 216090)381681 1076 19 ४०] 1 अनष्रप.

-5- ‰.{.

मेगल यथा तथा अलटेकता. याणां समाहारः त्र्या ( शः-- जयी वै विद्या क्वो ` यजेषि सामानि ). आत्मनः संबद्रा [ आत्मामे अषि (छता ) वा}अच्याःमा चसा विद्या ^. +. अध्यामविद्या-7४७ ६००1९0९७ ° ४6 1018 ( 8 प}"€०० ) 8] ( ब्रह ) अध्या्न- 1४५ 8 पएश७ 8४ 7080116566त 85 {16 17007 रतप] इला 006 =` ` (प

7619607 >शक्ण्भ) ४6 1961710991 82 6 3९०९ 8००1. अक्षरं बरह्म प्रमं सवमावोऽध्याःमंमुच्यते | ए. 8. 3. स्वस्यैव ब्रमण एव अंशतया जीवरूपेण मावो मवनं एवाःमानं देहं अधिकर्त्य भोकःवेन वर्तमानः अध्यामशब्देनोच्यते ); ~ ` दाशो कक्ष 8 06 उणा, {176 17वदश्ा पलट; 108 7081 16818॥100 ( ४8 22 अपक्राणतष्म चनह ) + अध्यात्म-16०४. 70० अलंकार 38 उत्पेक्षा. ` ( # > 8* ०८ 9 + ४०४९7९५ 9 ३९४ {16 1० धारिणी ( ५४८

: भन 4 8 + १1. 4 4, + = "1 ४9

| \ ५१९१५ न. य; ८५ \ =. भो ३९] , ^. ` 24

वृपद्छप ) ४।8० = भतधारिणी ( ५० श्वत शपण्लः कल लाल्ब्षण) ), जा कज ॥७॥0, ६० कृष्ठवेपरलणणड &१९ कद्प्ठकौ रिजक, कणे

भ)0 1४९७ ६1७ ६५००९ ९766 = णफनम ७४०७ ( एरर 2. अनप. प्रसव-008]) 08, 070406०४. ( ०१४. &॥ त)€ ९तै & (जफृणपाते, 2-

क्रमो, ४. 1. कैवलं वारिप्रसवा भव, 1110 1706४९९ ४४8 १6 8९86 ०9 (१6 ४९०९८॥११७. 715 ४0८९७ महासारप्रसवयोः & सदशक्षमयोः ४० ४७ ४०१७

8००त्‌ ॥०() ६। (४० १०९७० & ५० ९७0. सदश क्षमा ययोस्तयोः धारिणी मृतधारिणी तयोः, ४41. २४०१६ 1०8 ४१४६ ५८७७ = अत ४प।९७ #९

०७९ ६9 {9416 #6 १०९८०. # शै्जत्‌ कण = इप्रलक्ष) ४४० ४७ ९०7१०८८ इपृ०्डप्त० = कलो = भकृकश्काह = 0 76. क्लः एः ९५9९8.

„. शरद्-^ ९; ५ः--रु, ड. 1. 1 पणा एड ४० भगत्‌ ४१९४१} ९९1९७ महासारप्रसवयोः ५8 » 1019 अभगश्टेष १1580191 1 धो णडः -महान्सारो विद्यते ८.“ यस्य महासारः, महासारः प्रसवो यस्या : सा . 1706 °ला कथ ऽणडदवश्छलते 0 # क. एका) ए7्5 न) 11६6 ११ €०त९<€ 19 ४€ ९७७6 द; १९८९०8९ ४0 88 {9४ ४6 लका) एशपेड 6 छ्‌ शका भप 38 फत्ता

97 ००21; ०७०॥ पृथिवीं शासतस्तस्य ....शरदामायृतं वयौ. त्वं जीवः शरदच्छते

#150 उत्तर, 1. 15. शरद 20018 1. . का न)

7087 }8ए6 0076 (0 पलक * दै कल्ढः ' {00 ४४७ ए6लणोकषः 19०७

,त पल्ल ०ा ०६ १16 एलान 800 {16 = भधणठाला८8, एर ४६ #6 = एकला४ 96 11116१6 कोलाऽ००४ १९८६0०0 पलेए पपठ 8९४5०, लः-

--' प्रश्येम शरदः शतम्‌ जीवेम शरद : शतम्‌ ' &० +159 भी तुञ्यापिक्ा प्रच प्रावसाके ज्यास्त पाहि आहेत. शरच्छतं 18 ०५८०९१४ ४९ ६०९. मछिनाथ, रघु 11. 8. दावं चचार. देशकाटाध्वतन्याः कर्मसेज्ञाद्यकर्मकाण, पाणि.

| नि. 555. स्वागतं -- ८१०००१९, ४०१९०४ {16 ११७१९. ?. 26. ज्ञानस्यतसषर्षः--

¢ १७7०6 ४/0 पणा ०४19 ।६००छोर0े८, श्राज्तिकयदं &<--- रज्य

{०छात ०५९०] ४6 7081४०0 # वद्र ( षणा 6 ) भः पीर ष्वेहाक्क ४९९५, ). अङं &५, 8५"० +४०१।8. पत्तने &०,-- पभ 9 पए,

०९००७७०, वेत ` छलः द्र प्रण कौशिकी, ०१५ ०? ००व९५५ नल -- श्नः) + पण भा) (099. पंडित &९.- १०० 76 (ल ४४७ [७४००९

कौशिकी. प्०८ ५१९ ए7९प१९४॥७ पृित 35 ४०५ दर # कृष्णक णर १०७

80 {१8 1]] 60706 पण्तेभः अविमृदटिथेयाशदोष, ( अविमृष्टः प्राधान्येना निग विषेयांशो यत्र तत्र ) ~ वपुार्षरूपामलक््यजन्मता ॥.. 1.3 शाेन--७५५1. नौ गुणदपिषः &०,- ०। 9 19099 ४0. पोककणाक

घः शा) र्छाशट०९९ ( 1. ९, 9७ 8 ]्तह्टपढा(६ ). छणाः पल (8 = भात्‌

वथणनःः8. ए. 1. लः #९.-- 10 फषल्छडपा 0प्रः फलः) 87त १७ ,

जलत 18 कण्ण 88 6 कष्व्छलचणाड एलं त०, धार क्यात्‌ ००१ 0ष्६ नः 9ः ४० प्रयोगः प्रधानं ( ०४७ भणण्६ ) यस्मिन तत्र॒ ०८ प्रयोगः

्रधानः ( 6४७ ) ` यस्मिन्‌ त~ (१ 8८९1106 0 १४००६ @ार्ना 0०0०88४8 , " ` १५४८

गशुधरकला४000. वाग्न्यवहारः ( वाचा न्यवहारः )-- पश्‌ 00णष्णणाम्‌ [५ १,११ १५५) 4) ` कंथं वा च८.--16 ९९८) 8)10ण1त ४6 7४ (्णाषणपक््तमा कऽ कृश्ट्नार्भ पखिजिकां ४७ © 1४९९ #8}:6, 6८8७6 0९ {गानकण्ट कष08कछाः 0 ४6 वृष्ट ३8 ४० परिव्राजिका क्त्‌ ००४ #6 [ण््. 80 ए, एषणा ४३ ॥6व्ता पष्ट ४ल७ भृ०छ8 ००. 2. 24, मां देवी समानविदयतः परिहीनमन्मतुमर्दति- 0 छह च०॥ #0 तकाव ( 9110 ) ४0 क़ ए6०ह ( 8प०8९त्‌ ) पलितिणः ७९ क0© निारक्तऽ = ४06 8876 कार्णाल्डडाठण काण ०९. सा---विक्र० वा. ओजस्वितया परिहीयते शच्या. ' 4180 1"78 777. प्रतिच्छं- दाव्रिहीयते अस्या मधुरता. ४". ए०तः४ १०85 देवि मां अभिनय- विद्यतः प्ररिमषनीयं मल अर्हसि.-- २1०86, १० 7०४ (गणशंतलः ४8# णा ०6 व्भृष्छाह भं एल एष्ट 0 [निह कछ चलण्हु, ©. 5. ¬९०त देवि मां समानविद्यतया परिभवनीयमवगमपिनुं (7 अवगन्तुं 9 अवमन्तुं ) अर्हसि- ४०८ 8110014 ००४ 086 06 8618109 ९०४ ष्टण पणद्वणद्ठ 6 ४0 ४6 श्वृष्भ्‌ 7प कनंणौ [व्ण फ़ ४6 8149 ०९ ( 16 गान क8 ॥06 806 वा रडडा0ण 88 7078 ). ¶01९ एव्ध्ताण्ठ

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मा देवां समानवि्यतः प्ररिमवनीयमनमेतु मर्हति 17 197 ¶णच्ण का]

29 ` ९०86६ {0 ड़ #€ं०९ 100६९ पमण ४8 ९808116 तर्ककः एक ००७ क}0 गाजकरड 6 शा6 कारकल्डडणा का षणा. 01, ष्णश्च

#००५ एण भः. देवि मा...वि यतः प्ररिमवनमनुगन्तुमर्ह॑सि- 1४ 18 ००४ 1"0- `

शः शि" क0प #0 छ्ककषःत 76 88 ९80४016 एनणद् १९७४४९त ०06 &९. उरभ्रसपार्ते- 106 ५००४७8४ 10600९७0 एण 7975. उरभः उह+ममाति उना शंभुना र्यते कच्छा वा )-^ "*. मेटोरभरोरणोर्णायुमेषिवृष्णय एडक ( अमरः) . संपात ~ (०४५९७) ०००1 16 ०8७१ 7 #उरभ्र ४०0 ००१ संवाद्‌, 06०५७ 7, 2००४8 7७४19 ९६४०००६ 06 ४५0९] #6त ७९. 0 = ९60पा8७ विदूषक ‰&1७ ५18 ४6 ॥क0 तक्षला््क प88६678 कक्षह ` 20 18 ७४४५] {०९०९७ णश्छ. उद्रमरि &५५.--फ०णत ४७ 8180 ०० १९.९१०. वेतन 8०५४८ 1 ) 89141 &(2) २०९15 0 8७86०6९. 377. ४०1४

(11114111 1111 11111 1 11.111

पेन, 00छ९ा, 18 धक75भि९त 1040 मक काकपक्ष 60 न्० तफ 9 6४0, 1018 806०५ 35 वत 19 न्भूणद ऋ) ५06 वनपोप्रजछ गं ॥।

॥)

८८+ *. ५५4 #

26

विदृषक; ५: साहित्यदर्पण; ' कुसुमवसंताद्यामिदः कर्मवपरवैवभाषाचचैः हास्यकरः कलहरति भिद्षकः स्या.स्वकर्मज्ञः भोजनकरमम॑ज्ञः कलहापरिः-1५।६;०६ १०1६)१४ 1० 8००७४१९९. चंडी -4 988 00916 कणद्फ फ०ाद्, 1४ 18 र्ठ पन्ते छक # ॥्रशन्ात्‌ 8 195 पछ 88 & {छा 0 ७0९५०००४. कालिदास ०७९8 ४6 19 ४6 1४९ ०००७० एश ०10७0. छ. विकर. 1ए. 38. ' चेडी मामवधूय परादपातं जातान्‌- तापेव सा. 410 1०९. 7. 20. ए. 20 रघु 19. 5: मेष. 10% बिद्षकं गध्लशः = १९]७8 00 प्ल फलक शवकामण्ड ४6 १०९७० ५१९ (श चंडी, कलहितयोः~ ( कलहोऽनयोः सनात इति कठ- हितौ ) ~ 7४५६ ५०६७ # वृप्ड्तानाा णहु; (2 +. एकस्मिन >५-- एणी रणं पल 7 वृर्लोल्वे वणकण छि ४6 ०४, वा 1९08 <. कलहप्रियाणौ }४ ५० एप], ७०४ पण्डा 18 कयलभ. स्वागकतौषटवाभिनयं

स्वागे सौधवेनाभिनयः )- 119९ )*९०।०] &९७{1००)9॥०08 _ ८७त 39 धल ०० 0919005. सौष्टवातिशयं - 109 ९६८९७७२७ 7906 39 नए जक.

1

१५००. प्रत्याययितन्य- ( {१०८ प्राति +इ ५४०. )--1० 0० ११०९. किमतःपरं &-

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प्भ्ाणष् ०ण्छः & षका ७० 9 ल्डोलाः णिः एलणु 1910266 ( कफड्तपठ ९४ ). अपरिनिशितस्य 4०1४ 18 १० णलः (0 80० {ग (४६ 1 णतचठ-

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1५. थता अणः

99/16 ०१९६६००१ 1८००८४1. अतएव 41४ 8 १७ ४१४६ [ 30 पकृ प०३1९, निर्बृध :--1 फणाधणणक कशकन९४, ल~ शाकु, 171. सहि अतो ज्जेव णिव्वधो | सहीजण &९ ( सलि अतएव निवेषः स्नी- लनसंषिभक्तं हि दःखं सद्यवेदनं भवाति) .#. 31, सर्वज्ञस्य, &०-१४०. ००१९५०४ ण्ठ कोणम्‌ 9 १९५७५०४ ०९, १०४. ४7 १555१९९, {009 जभ ४क्नक४ 28 19016 ४० ४९ कणत, निर्णयाम्युपगमः ( निर्णयौगकिारः )- ४६१०६ ०0४ ४1०86} ४० १९५१९. ०१९१५००१ कल्पते *५० दोषाय मदे &०-- 100") 1 कय भ106 ककर ४्९, छ) १० १०० पणः 6 वनस्य १) १०४ ४५}६७ © (५ ४९ द्वण०ा ०४ कतपाः लन्षण्छडी पच्ल्य ४97 एछफकणौः ( तेन हि द्वावापि &©. ) क्छ (० ॥८८्०ु) ४० ण्ठ अजह 0नक्न्‌ा 9४द६ ६6 कृल्प छ४००९, ४४। परिव्राजिका एण्ड 1 ४०9 १०४४०४. {07 {४6 ४६ '8 १००००५९, = {४5 25 जदो 8४ {त्क। ज्मः

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विष्यामि आत्मनः परिजनस्य; यदि रानकार्येष्वपि, & अहो अविनयः आर्य पत्रस्य &९. ) ` ४० ` गन्म ६६ ६9 वृप्ल्लण- 08त & 8470) 8१866 2090 प्# ६४९ 1णल्ह्टण९ क0160 विव्षक & ०४९8 ७8०१७व {० 011५6 माटविका

19 ९७९९९. एप 8106. १०९४. ००४. छट] इक 80, (88084108 =

कस?1१४१10४ 096 18609 २९९) ४२५५. 00, सासूयं -^ "81, 1९०1०१७४. प्रावर्तते-17 88199. | 18 ) प्फ, 0) पत०ण-ध्ट्हत1्तत; 6: एण पा णपः 966 {मि 8 100 छताः का प्ा6प 8 ९४प8९? प८पड€-1९९8,) पाक्ष ` ४९ वमणोप्श्लः छश. पलः ४०७४५०१8 फा 8016 6860, 101" 06170 कण्टा आर्या. प्रचि ( पराच्‌) -- 7160 ण, ४१९११८त. परावित मुखं यस्या : सा पराचितं (परावतं परागतं मुखं ) यस्याः सा. प्रम्‌ 1. ए.-- 0 [४५७ व्ण

` ए0कशाः भरल; एष्टण्म) ०र्ल ( ७०४] = &0र6ा)8 ` 261116९९, छप 8016- ` पणस पक णणात्लछधंर० ) :~ शाकु, 1“ यदि प्रभविष्यामि आमन: &८. माटी, 1४. प्रभवापै निजस्य कन्यकाजनस्य महाराजः , ' वेणी. 11. तप्र

भवति अनुशासने देवी मर्तु ° 294. ' विधिरापै येभ्यः प्रभवति" 8180 6०5 प्रभवामि आर्यः. शिष्यजनस्य. ` मर्तैष॒-11\9 1०५९।१० 18 ॥€ा७ वैषधिक. कारणेन कोपौ यासा ताः -4.17, 291" वहुव्रीहि अविद्यमानं निमिते यथास्यात्तथा..३2 सुशिक्षितो ९६४९४ ४1९ ५९]] 117. (11111. णु ९01011६ 180१९1०० एवे जनो < -¶1 8 छा1] 290]016 फ्लू कुणप

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( ४१६९४ } ४४६९ €]9686०६४४०४, अभिनेयवस्न्‌-- 8०४}९९४ 1१४६ | पणः (०.16 ४७९. वढणकछण्या ` प्लूकण््ठ [9 38 विधरन्धं -०००११९०६. `

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वर्ः-- 2. ~ , ~ वरग्यः-- 009 ४४६ नजुः ४० ४५ (एष बणपरिज्षागृहं ¶0© ००5७ भ)&७ ४6 त१"९७७ ०६ ५०० प्क 96 १००९. # पण्ण्ड् 2000. 10194 १८९१३०६ 18 २५४ &००९. 0. 2.35 ( २० ) एण्णण्डी) ]ण्वद्वाण्ड काणो, 7015 ३8 ००४ ७०६० 1१४९}}1&९०४ 1४4, ००७, अक्णभभा एन ०००8 9 कव नण ४76 [९४1०४ ०1 ०५५५ ६००।७'8 ४५. गीःवा-- प्वद्काणह ०० कण्ण , एषण ४० पण्ठोक्य-

11 1 ०००७०६०४ ००0 एङ ०००५४ प्रायः ^ हण्ण्शश + ५५५५. # 4

31

एषण००6००. = पुरोभागा --एरप्य णकणट्, 2९905 ( एष्छप पुरोभाग 1#--170९ 8९४ 9 अञ्न णद 006'8 00 6886 9078६, ९0८९ ]€व०प्ड. ) थः- रघु उ. 2४. ^ प्रियोपमोगचिन्देषु पौरोमाग्याभिवाचरन्‌ . काणिदास 185 &180 ०8७ ४738 कछ 7४ शाकुं = ४, 6 8686 * इा{-क्ान्प

कि पुरोभागिनि स्वावन्यमवलटबते, * दोषैकट्क्‌ पुरोभागी ` ( अमर ).

पुरः एवं भजते सेवते इति धणुन. ) 4

( 91 ),176 वश्नु मायूरी 80700, 16}1 ए7०८९९व्‌8 {निप 06 ४1ह्0- ५८१6 त16 ००१९ 9 ५6 कप्प, प्व्डगातश्त्‌ एक ४6 २९०५०८६३ कध) चभ ०९८४8 णएणणक्त्‌ 8पञृश्छन्णट्ठ 1४ ४0 6 06 स्प्णणाण्ड ४6 वन्छत, &1846608 च06 पणत. प्रहर्षिणी.

&८:-२6९५००६३ 878 8प][9०8६6त्‌ ४० १४०९९ 6व्शणा़ कफल पाल लड {06 पणणं पकप-61०ण08. मयूरैः - 10686 णड ४6 पनणदडपठ ९९९९०९६७ 88 08 प३९त्‌ #0 प्क 8प्टा। 8०818. पुष्कर: ( पुष्णाति पुष्यते अ- नेन वा + करन्‌ )-- ^ पप". निन्हादिनी-- 19. उपवित: ( मयूरस्वरान्‌- नादनेन बहर्लाभृत : ), मध्यमस्वर : तन्नामधेय : स्वरस्तस्मादत्था--उद्वा ). उ- पवित--0 17९0 1०९६९६७, १९९७1०००, 608 180 [१५८१ ९१. ^ ¶038 1687६ 29 एलः क्षण ४6 गलया,

निषादषंमगाधारषद्जमव्यमपैवताः | पंचमश्येदमी सघ तंजीकेटोत्थिताः स्वराः

(1) ष्डजन (सा) धत 0. 6 1०१००९१ णु 268९06८8, (2 ) ऋषभ (री) फ़ (०७, (3) गधार (ण) ४०४, (4) मध्यम्‌ (म) णा ५८००००४8. (5) पंचम (षृ) फ़ ९८४६००७, (6) पैवत ध) ४००६९७, ४०0 (7) निषाद्‌ (नी) शश९्‌०४०६७. लय 28 पद्वु" धल 7 पड) कोलो 38 णा {07९6 ४०08 :-- (1) द्रत ( १००६), (४) मध्यम्‌ ( 209 ), ४०व ( 3 ) विलेबित (9०४ ). मारजना- पर06 एश्वण्णणड शणदर गं पपाठ ( कध 28 ९81९त 10 अकच मृदेगावर थाप पडली." ) मदयति -619406४8. 19 7७80108 मादयति (1४-

४०२५९६९8 ) 8 ००४ 80:४6 ४0 ४७ 66 70 १०९8 16 & 156 &००त 86086,

7.36, सामाजिकाः-8००ण्ण६ 0 ४6 (ष्क + (1.९४ ०8 10 ४06 9886० ण्‌, सामयिकाः ( प्तमयः प्राः अस्य समयमनुवर्तते इति टे )-(©0्णणि्णोणह् ४० ४06 शहछटपफटण६ ; (९्कृण्ड ४० भम ण०००४, सामवापिकाः -- 21688 १116 88706 88 यः २९७१०. अपवार्य 38 8४711 1076 ©009 विका पण जनौपिकम्‌, 1४ ललक ६0 8076 श्ल चतपव शच्छक्ण्् ४९ कनाल एन्णृाढ

` धौर-(५1]#, 9०७1५. मा खल विसेवादयिष्यति--168४ 816 11 09०8 ऊप

५५

कैः

#० #€ ताक्षृकृणपरते ९००९ (काष्ठ फणः कका ) शादु ४1. स्मणीयः खल्वपि :विकिनिा विसेवाक्तिः , ' 1५०७५४६) 16०08

तजमवती धारिणी विसंवादयिष्यति-- फी पशे #०० वेता 0 ककण 6९1, का) वलस्८६ पजणष = -१५५९१६ पिसिवदिन्यति--प भपप्क कलाः

समा०००४. गुपड 15 ४180 ` ण्ण = सकतेणड्, र्थ ~~विक> परि. ' किमि- दाली तज्रमवती उर्वशी भवतो मनोरथानां कमं कर्शयित्वा फे `वित्िवदाति पए। 8006 वाड्वकृकमं ०० # ® {०४९ ' |

मा--^ एषपल० ०9 एष्णषफकठण "( श्णरटो$ ता पठद्कनिण ) ष्छत्षोत

10:0९ कापि) ४१५ 169118९ 8150 भो { ) 6 1 "ल्ल, ( ४) 80118, ( ) ४, {१४५७ ४०१ ( ) ४४७ एणलपन्कषौ 1००त, 19 भ्ठ = उटाछे

1,68, ५१६८ १०६१ ; एकी क्प्ठ णि ४79 ५५५१९ शाकूर प. . माक. स्यापि तसिन हंगदीतैलामिभवि कणशीरषस्य हस्ते पतिष्यति

( ) पण्णा 1 एषण ०४ दरापि ( ४।६७४ ४० ४७ लभा ) #18 8009 ध१6 वषपर 7१४९8 726 19567) 116 6 ००8७ जक वस्म वच्छछ्लाणद्ठ धौल 6४ 091९४ ` र्यौ.

पू8 9९९०0 6१०४1 1४९९ 9९९) ९०९१6 0 #6 ४५९७ वाल्य जनातिकम्‌. ०४ 9७ 18 » पशु ४० 6 शृष्टल्लै, 9 विद्षक त) 58 ७९1६ जनान्तिकम्‌ 1४१ फणति कै 5 90. 4 अप्पा ९४56 9150 ०0 19 4०४ 1. गणा७ॐ क्ट पणदठुड कको 2 विद्ध. ५५ 0४ #6 सप ¦ मनोरथं "( 144 ४6 ०७१४ णं ४९ ५१४ ) :--रघु ? क. 2; = (8) श्रोजाभिरामध्वनिना रधन ध्मपत्नीसंहितः सहिष्णुः |

ययौ अनद्धातसुव्ेन मागे सवेनेव पूर्णेन मनोरथेन. | ` 7. अ. 7४५ नज्डणडु एषण णि8 £ 8 ०३।।स्व अकावतार, 00९9 ४ष

86६ ४६०४९ एक 2९८९००३ &॥ ४16 €फते ६८ [ष्ट्ठल्वाण्ह ८१, 18 फण लग्ण्णफत कध) ४6 का 1४ 18 ०) अंकावतारं >. * अंकावतारं

९५०8 ४09 &०९;90०० णिः ४१५ पक भ्ठ. ` र्ण :--साहित्यक्पंणे :-~

अकति सचितः परा तदेकस्याविभागतः |

(^ ^ इति स्मृतः

अकावतारस्त्वकौते पातौ; कस्याेभागतः |

एभिः संसूचयेत्‌ मुच्य दृष्य्मकैः प्रदशयत्‌ 0८ ९४१४71७ »।१० शाल्व 4 ५, ५०१ महावीर 11 ९४५. =.

47 11.

2. 38. सेगीतरवनायौ &०-- ^.शः ४४० ००४०७६२६] ( 70९७१०५] ) का180&€ 60४8 280 ९66४ 6001646त. विभवतः ( विभवान्‌रूपः ) परिवारः + ॥५.. त... तन्‌ &- 1 पणः "प्व पल एकमत्र ऋत ९५४ 0 ६ण०क16वक्6 38 ध्वृ , ३, 6. णप धणश &76 ९4०४ 79 168". वयोप्रिकत्वात-- 0 &०००प४०४ ° ४३8 ए6- ३०६. गवः १६९. पुरस्कारं &०- भयर 7"९५०१०००९. &-- §पॐ २०४७ ०४ अनुतिष्ठ आत्मनो नियोगं &-- «०४ 1. शर्भष्ठा-7)9 १९६१५७४ वषपर्वन्‌ + €०प 8४10४ देवयानी &१ ४0० 9 ° यथाति,. 806 88 #08 ४०४०९88 ४०७ 6५6 16) मालविका ४8 &००& ४9 शो ४. 806 38 कला-0०क० 79 *महामारत, 9:-- शाक्रंतल 1४. 6.

ययातेरिव शर्मिष्ठा मतुर्बहमता मव.' लय--मध्यलय ०" लयमच्य ( वाप धप6 )

8 ए्शलताछते 07 1०९७ 807९8. एताः पप्छान कृक््ठणोक्षड १९ तन्ण. &-- 3प"४ 11. 9 चतुष्पदवस्तुकं प्रयोगं-- 116 श्ण

1909 6्०ण४8ण््ठ 9 10 1९6 {० 1०९8). (05 मात्रा 0978 8७ 30 8०१ #6 ®शतःण्व 87119791 38 1०४६. एकमनाः--एकस्मिन्मना इति, ¢ पच्छष्ाभः वहूतीहि. बहूमानात्‌- (०४४०६ "९९४ 81९0४ 0: ४४७ ए९०९्‌॥० ( 07 ०८). = बहूमानात्‌-- फश््ि 2180 भिः ४0 "06 8107 . 9 ५6 1666.

7. 89. (1) शाम श्व्ट्भः ४० एशानि ४९, 100 38 70 ४06 ण्ठ ००, = चाछप्डठी) षणकृष््लप०९, 18 88 1४ सला २6४ ( वरभप्ठणड ) पष्डक् ४५6 (णयना. आर्या,

नेपथ्यगुह 8 6169. तिरस्करिणी तिरस्कियते अनया + ल्युट्‌ तिरस्करोति + णिनिः )- + ००१९०. संनिहित &-- ( संनिहिता मक्षिका यत्र )~ 06 ४९७ 18 2697. धारिणी 38 (0009७त मह्षिका ( ०९}. 4.8 8 68 8069 ४0 कक०8८ो॥ 0७ पाप5४ 06 ठथाछपि] &00प४ ४6 ५९७ © ४५७ 06601९6, 80 विद्‌ ° ५७78 © + एचक्6 6वभर्णणाङ़ ४५ ७8७69 ४6 १०९९. अप्रमत्तः-- १1000४४ 1008 ४७

४०18166 गणपः प०6; ८७०५००8. च--एण+, आयचार्यपरत्यकेक्य &०~~

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34

1: 11, 8. 8... 3... 7.5.23... एष्ट, ¢ शाकु ए. प्रत्यवेक्षिताः प्रमदवनभूमयः. परतिच्छदात्‌ &- 7 1 2.5 1.1

¢. 40. (६) ४69 ४8१ १०८४७ ककल एष्छणता ०9 फलः 86 0780 59 {6 कलपाह कणप #6 0णफत्‌ त्र्य जः [1.8 1 ; १9... त, 21... 3 पृश ९6४ 00णठल ४1109, आर्या,

चिन्न & -- 806 ४8 8660 }़ 76 70 ५९ एणा वितवाद्‌- 10159 ह्ुष्ट्०९०।. शिथिलः समाधिर्यस्य-- ए)) 056 60फद्शछण प्ठणश्ाते्

६० 0४09 #0 ४6 तेग 88 901 ९९4 70 आपद -प्श०ड ४0 कध १४४ 16 (0०६ ५९ प्टभाि ७४8 पाठो 8004 9 ४९ ०६ 7० 1९ प्र 1८8 (0७ पटो 095 ९६९९९१९ ४6 कला वा०. (97809013

सप1५०४००-‹ अनिपृणलेख्यसाभरीं मन्ये एतस्याः कौतिलेखने वा या सामी अपेक्षिता सा तस्य नासीदिति मन्ये समाधिः 16 (५६९० #० ९४० करण- सामयी- 31५67918. :--रपघु ° 1. 29. तं वेधा विदधे ननं महाम्‌तसमाधिन्प समाधोयते उत्याद्यते अनेनेति समाविः मुक साव्वसं यस्याः सा मुक्ताव्वता मव 09. 88 ए०८7 †<78- मुगधसात्वसा भव ( उष्य शव 06 }ककये ) कभक 70 8९5९. सत्रे स्वभावे प्रतौ वा तिष्टतीति सत्वरुथा- (०7०7०९९३, ४००३४४०7 ४९्‌, " ` सतो मावः सत्वं 111५४ ७0100 ००८३ ००६ 96 ४6 पत ४० 9 अल४न्व. अहो &--0४ ०] ८७०९७ ( कृ्ववकणा ) च्छु पठ

४1] (०णतो#००8. :--शाकुं ° ` ४1. ‹“ अहो सर्वास्ववस्थासु रामणीयकम्‌ आ- छतिविशेषाणाम्‌. अवस्था-- ६५०५९. अवस्थान--& 0] ५७।०९॥ ( पप$ }, स्थान--081#109. 196४ ` 18 - एकल,

ए. 41. (3 ) पलः ८6 195 &०४ 1०0 ९९७ ४2त ॥98 {96 शूलते ६1८ ४०४] 10000; फलाः क्षा 78 8८९ प्ाज्ठत्‌ ४६ #06 81कणोतल+ ; ४७६ ९10€8# 18 600 ]996£ 87 ` 83 [०१०७००४ ` एप्डाि; 06 81068 &75 १४ जल १०6तव क; एला जहौ ऋक 26 फलकड्ाच्ते फ़ (6 कणत ; एलः कए क७ शृण -( गणु -ष००ब९द ) 5 © #6&॑ ४8९९ ६0९ 8) €पाएल्पे ; ४५ ०० ४8 0660 छज्णातन्व्‌ {प 88 0 इण (6 श्ण 19 ४09 पणत्‌ 9 ४७ वछठणद्ठु चकमंडः, #

शार्दूविक्रीडित अंसयोरंसमागयोः पार्ष्वे &-70था रश० 50 अ000 ५४१५ कणु

97769९0 &८. प्राणिभिवः--पाण्युपलक्षणेन मृषटिमितः ; भित | {16 &6# मेय. 171० ९५००४ अमित जघनं -( 7} ४७ # 109 ) ;9 &180 & ६०० १७५९;०६, नितंब-81०7५ ¢ ४५४७ (७ 1७ 11209 9

35

नर्तयितुर्मेनसि यथैव छंदस्तयास्या वपुः न्िष्टमस्ति ". उपवहल &०१ उपगान पाल 10 = त्डठ ^ कष्भुा्णापक्षप अप्ह्णड्कः ' पाकाः 2 धप9 0609 ` 9श््ाणणाणह्ु ४० &0& १1००१. कपोतकं --& ८००१९ ०१ 7०14० ४119 8०१8३ ` #ण्भ्फलः तष्डण्ड (6 09०8 कथका कथप्धणष्टु,

2. 42. (4 ) 7४9 ००९ ४७०र्स्व 18 काप {0 ग्विाछ } 6 पतप , कनै, जां ती0ण केण 106 कन्न) ८७९८४ ४0 11179 ; ९10, ४6 कफल द्गाण्डाः शं गणक 16 शु® ५५००8 ०४ 807९ &0८०पण४. प्रि५ण 18 75 ०6 , 86७ #6 100 प्र + #0 6 20]07०86)6 ? = 10, तकृलणत्‌रणौ 98 8 €्कावहछा 106 ४0 8 ‰746४४ = 100०६ 07 ५१९९.

कः अपग 4--716 ५९०४४०६ 9 ४९७ 1४ 6 79 धा ००8० 0 ०णक्षते #2त 9 6 शष्ट ००७ 7 ९886 फल 28 87०8७ # 016

8076 &००५ ०1९, किमपि--ए०ः 8079९ ०४०७७ फ)101 ९87०८ एलाएशए७ €. 806 ०९8०8 †98# ४6 ॥एप्मेणणद् णड एषण 80७6 &००त्‌ {0 06 क) 8106 88. 70 106 हटनणड् पणन ॥6 एषछ्डला॥ कफटणणा #900688. 17078 छा56€ १187188 {छपा ध्लाणद्वुड 10 ॥06 0 पा' 11968 ए-( 1) नैराश्य ( पाशः), (2 ) -आशा (0०९), (3 ) संकल्प ( ‰#५७०४ ), 82१ ( 4 ) आत्मसमर्पण = ( फवा०६& ०0९४ जरः), इति यथारसं -- ४५ ४०89 क्रणःत३ ( रो]6 अण्ण ) 806 द८्जातपान्चर 90९07 ४0 ४५06 शनशत्तण्डा, 06 ७५वाण ततः यथारसं 4५ £ ४06 अण्ण 2७ 0४७ 806 &९. (7018 18 8180 7 &€९07080८6 ५6 1786106 मा अण्ण कणु 800 0४ णत्‌ पलः १४०९९ भा दच्जर्णाकप्०णड कदच्छडएड 9 पाल इलााणाटा+इ (6 800४. एफ शत॒ 20.057 प०५१९३॥९०५ 11616 अभिलाषविप्रटमशुगार.

शृगार 18 ४० 108, सभोग ( 10१७ §60६्णड०४ 19 ` पजा ) ४० विप्रलेम ( ००७ 1 शशुभा्ण ). 106 [कलाः 28 ष्ट [०१8 शाद अभिलाषविरहे्याप्रवासशापहेतकः इति प्रचविधः (कान्य ° २. 100. ) अभिलाष 18 समः ४४6 तणाः 06८60 9 096 = 10१७8 0 क्वो ०लाः 0 ४6 १९७७ 0 पणत एनी 00 #76 ००४६ 6४ [गणवत्‌ पिण्क 08 6856 1 पश 06 अधथाण्ठ णक {णा 6०५) ०८०८, प्रवाति 1161 {06 ९४०8९ ६९77" 8९४१३४०४.

गूणभ७ 38 9180 9 6 त०त विप्रल्मः--

यूलोरेकतरस्मिन्‌ गतवति छकारं पुनर्कभ्ये | विमनायते यदैकस्तदा भवेत्‌ कटणविप्रलंमः वाचस्पतिमित्र. ४. 432. द्वारं इर्वा- 1५16106 88 {06 ०५01 प४. द्रारीङत्य 1४5 ५1७ 88719

86

४6०86. दारीङत्वा 18 ००१ ९०१९५४ चतुष्यदाषस्थार्क--चत्वारि पदानि एव चत- ख्ञोऽवस्था यत्र तादृशं प्यं ( 6 ८००७००० ) चतुष्पदे स्थिता अवस्थाः- ककि्तणह् ४० 60णजभपज त०डड्णड 11०९8 पतालभौर९ {00 पमण 8५८68, 98 106 हताय, त्वयि &०--प्रनः 1०69 1098 88 ३६ क€6 पात्छक्राण शक्नो ४६ १० 1. 6. ०१११९ ल्ल 0च्छः ४० १००. एवं &०--8प्लो। 18 {16 81868 ( व्लेभ्नणय ) 9 जणा 0व्डत ; 1, ९, 1०४६ 88 [ 1856 ¢006८6ेए६्तव्‌ 10१७ {0 भः , 80 8)6 ०४ कृष्य ४१६8९166 ६0 ९.

(5) खलु नाथ इमं जनमनुरक्तं विद्धि ` इति वचनं गेये स्वागनिर्दशपूर्व भभिनयन्त्या तया धारिणीसनिकर्पाद्णयगतिम टा सु कुमारप्रारथनान्यानं ( यथा तथा ) अहमुक्त इव, |

(5 ) * प०७, 0०90 10तत, धाह 5 एशरण 15 १५७60 6स्व्‌ # शकय, ® 1119 ह्णा णद ४१०५८७९ 0705 8९००8 9 06८ 00 11708 1 कड &8 1६ 76 80076886 प१त९६ ४06 [ष्ट 8 हश्धड स्स्व ००४ 0०कापड् ४9 ०ुृन्णणह ( ०पन्र४ ) णिः छलः 10५6 छक्ाण्ह ५७ चह णशद्णण्णपे००त धारिणी, मादिनी.

वचनं &--‰ 9१८७७०४६ {6 कणात8 19 ४06 0, 86९००४० 7 ५५ 10068008 ४€ 1०008. स्वस्यगस्य निर्वेश पूर्वो थथा स्यात्तथा-- ९88१६ (6 इलाध पला४ 6 11०05. ए. 44. सुकुमारा प्रार्थना एव व्याजः धस्मिन्‌ कर्मणि यथा तथा.

(1) फिवित्‌ ( किमि ) बो विस्मृतः कर्ममेदः--3०७ ( 76९1 ) 90110) 18 1{0्0छण 8 तभा 6५७०६,

पीन २९०१; ण६्8 :--

(1) क्िंविद्विस्मृतं कर्ममेदेन-' 7०४ ४१९ गिदटणधैकय हापनणण्ड जठ 9 ४6 ७७९८} 80706 ७6 ( ¢ 68 0606881] एर्पणि ® ) ' 9 - एव्म 8 कृष्णश ए९०त णहु, कोला ४6 1 पडतपप्लाच्थ्‌ ५३5७ 29 प्रत्ययी

तुतीया ( 47 108 प्र ९०४४] 6886 01 10०00 68{0४ )

(9) किचिद्विस्मृत कर्ममेदः--००७ [097४००1४ &0¢ 18 †गद्ु०+७प छि १०. 118 # 180 ९००१. क्रिचिद्विस्मृत कमभेदः--' १०० 9१९ {०7~ ०४४७० 8००6 कृकप्ठपान्र पपन जवम ' ऋ] १18० ००. एष ' किकी श्मृतं क्रमभेदेन ' 18 10099511. 7168 18 0 कमभेद ४80७७ 19 ४४५ ज)0016 भैना. ४७ ०७8७ ००1१ ४९ हेत्वर्थीं तृतीया ०0 ५४

००५ 6१त60४, कमभेद $ ००१ ४6 ९४प७९ 9 विस्मृति, ४४० +००० ४०१ {017 २५०५०६४ =" मेद्‌ ` (७४९ पण्नएत्भन्वे " एषठ "

1) --यशवणट विरोष्‌ ४8 7 ^ पूष्पभेद्‌. ' उपदेशविशुदौ &.- एण ४०

भल एण्य सज्य. 70807060100 38 पेश्लाभ९त्‌ ४० 06 प२९ ( {२७७ ष्म #प]४ ). 709 र्ड्ताण्ड उपदेशविशुद्रा यास्यति --69 1९ उ०प

&78 ¶९८ो४6त 88 707 = ‰& ३० #06 7णडप्पला०ण ( पपष+९्त्‌ ॥० १००), ^

वि 0 00008 (20100610 चादता 29 ४९ .7088१५९। 90९8४०९९ ( फणा] = एषच्डपत्फ ) क)116 शोभा 8 पल रस्छाण४। भृटकाकष०९ ( 86८ त९०६७ 8188 ). शोभोतरं (अन्यैव शोमा) --1०१€867 ०2016 68 प्४१.

८.५१ ए. 45. (6) ए४८ 10्लोालः धाक [हाः पक्षलणद् ०6 38 16

०5६१९, 7 फ76ो1 धीर ]०ण्ड् (पल) # भा धो ४०प 38 1६९१४ 8091४, 87 1 10]1 80९6, किटिः कम्लंणहु ०४ ४९ 7 [€ रा ४० ऋध) 78८९1613 ९०।)९५५९व एण्णणतै ध16 ३४ ( नाणका पड 7 ०110701688 8 16 कह६ ) ३१ फतह 6 गलः) एल्डलप)। 1४६ ४06 एतभाटो) ०४ श्यामा ५्५्७ु€ ` पण १०७१० 19०86, 0४5 161 1५1] ॥७ः ९6७8 00 ६०.

एकछणछाह 06 0क्छा8 ०० कफल 9९ जहातु एप७७७९ब्‌ ४९ पण पसः 1९७६. मंदाकाता.

तस्या हस्तं नित न्यस्य सिथितं--प९ ५१९ ०६००४ न्यस्य ५५ रत्वा सा ००४ तस्याः 7९) 18 80 €5870]16 9 कर्तरिषष्ठी, न्यस्य ॥€76 38 पुकरालीनक्रिया ५४५ स्थितं अपरकालीनक्रिपा. सधौ स्तिमितानि बल्या- नि यत्र. स्नस्तम्तं--आदौ सस्त .पश्वान्मु्तः ( विरेषणोभयपदकर्मधारय ) च्ल- स्तं यथा तथा मुक्त--1.<५1& १०७४ {16 ०४४७४ 80 88 {0 80 10086). वकण €> [19०8 1118 $ सस्तानि मुकानि यस्मात-ए"०० ण} ६19 98718 0876 2116. ' ००४ 8 ष्टा ६०० २५९५. श्यामातिप &५.- श्यामा 8 ००८००] 1पलणत्र१न्व 70 धा कृष 9 [णव० गाध) बा- धानी, 4 फणपभा 28 कलक त्ण्णृष्मश्त कातो ४8 तव्शृशः; नमेव. 104 श्यामास्वगं उत्पश्यामि |'; ५1७० रघु. 11. 1६. श्वा- माता. कुसुममारनतप्रवाढाः स्रीणां हरंति धृतमूषणवाहकात्तिम्‌. " ऋज्‌ तदायतं चाषे यत्र तत्‌ आयताध,( थ: कुमार. 111. 45, पयेकवेधसिथरपूर्वकाय ऋर्वायतं सन्नमित भयोसम्‌, ) 8००५8 0 06 ४५]2}116 161७ (6 ०1 {6 ४० ष्ण ४6 प्ट ४0 ४७ कभ प्ल पाटा भधान धाढकित (1. भटूलित + 0०४ पन 0 15 06द८ा) 16 एन वृष 10 ए९गु- हु काप ४06 ०द्णा९ कृ0पणड हापा ०९४ पट को] 06 वेगण्डु 8५०७. प्ण कात पल पोषण जन 814 पु ५०९. पातितेऽक्षिणी यस्मिस्त- ्पातिताज्ञ. स्थितम्‌--६०९ पाणिनिः 30५0 नपुसके भावे कः | ककीबत्वाविशिे

' >>

६.4

९०.

मावे कामसामान्ये कः स्याद ' % जल्यिवं, शयितमः, हापितम्‌, आलिवतिमः हव्ये ( अवधा )-19 ॥64 0. नन्‌-1८ 8 १८५] १७००।७४।४६ 89068. नतु 120 ०५. १७८७ कशा०ण्ड ४४० भणते 6७० 9 गतिम

१06 वणका 1०९९० ४४४ गणदास ००६५४ ००८५ ५० },४ १७ १५८४००५ माटतिका ४6 कपे विदरषकं 0 28 पलाश पपी ९० ए्ीठनक 00ञछा १९ ६09 0294 9 ४06 पृण्ण्छण #० ४९० मालविका ००४४ 9 8४६ #)© 1०६*85 87 85 0085016. प्रत्यये 699९०४७४ ; ४४४॥ ककत 16958 {0 » <€6"18;0 एलथीर्थ ( प्रतीयते ) ज्ञायत अनेनेति, देवपरत्ययाव्‌ ~ १४१४

पो #ष 18 7965६ '8 {80१४7 1, ©, 28 16 38 (जानक ७० ४०० णा ४१6 ४1 णु 1४ 88 ०881016 पमं 06 पकक 09१6 1682६ = करपी

१88 ( १९००९०००-सूक््मदरशिता) {0 ४१. 0--3णुम अआङतिप्त्ययात्‌ ५. 1. ५18० शाकु. 1. आत्मन्यप्रत्ययं चेतः &, ए0119०80४'8 ९४०७४१०४.

010 ५४७ (००११९००७ क)100 ४४७ ण्व 1९0०898 70 विद्षक ( निहिता्मत्ययात )' १०९ शृणृ्छः 0 ००७०४ ०25. दैव ्रत्पयात्‌ 28 8189 ०४ 8 &००0 ९8010.

( 7 ) ए*छछ » वणात्‌ ४८४०8 ललश०७७७ ४06 ९००४४५०४ + 186 [067807, 89 {07914 जपः 28 1409 ५७७ छिन ९००१७५४ धम

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९७६९४१0० ४७ 10रना1००४8 ०६ ४6 087 8 ॥1© पपठ तक्षणलणडटु. ४णणः शाखा ८४ 96 धथ 10 ४06 86086 9 ° 970 17 76) 86086

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१०४७७, तद्विकल्यानुवृततौ वस्य अभिनयस्य ) विकल्पस्य (भेदस्य ) अनुवतत +#8 ०6 ७०४६ भिा०क्ड्व 30०0४06, अमिय: ५४५०६ ) 8. 2. 0९8०७ #८४-:“ मवेदमिनयोऽवस्यान॒कारः क्ष चतुर्विधः कागिको वाचिकश्चैव माहार्यः साविवक्रस्वशा 1.1. त, अ... , अद्धिलाय ` अभिनयो रप्तमावादि्येनकचेष्टाविशेषः ' -

अन्यद्ावाभ्रयै न्य नत्तताललयानयम्‌ भयं पएरदायीभिनयो मार्गो देशी तथापरम्‌

एष प्लर्नम ( पिपा नार्यै, );6}) 6 50766 88 रत्ता- श्रये -98 18810 86076148 {07 1४8 8878 ) 18 [08701706, हष्छवणतेश्त्‌ 00 शलश तरभौ700 9 ४6 श्नाण््ड 2० कत्रा तरिल्छण 18 = पोङच०१ ०४] 000१७ कात श्णा४+6त पषाण #€ ७१०१ िचशत्भ$ ७० पम 469 9 ४४९86 38 ०-०५, &९०४९ 9० ५७९ 0०४ ‰8 0/8 7 हास्य & 19 ५४९ तौडव ४०१ एल 96 ऽप

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` विभवेलानुमवेन व्यक्तः सहचारिणा तया

रततामेति रत्यारि स्थायभावः चेतताम्‌ 8 2. 76.

विभाव--& ४१ ५000160४ }16ौ। 0००९8 07 १९१५०९७ 8 4 1.3

1४? 61८5 07 ०07 प्णणत ( रत्याययुद्बोषका लोके विभावाः कान्यनार्ययोः ). 1४8 करण ऽपफतवारा$००8 9९ आटबन उददीन, ४७ ७४६60१६ लोप८य०8॥8668 )10)) 9883६ {9 रस ( 8७०४००६ ). आकलेबन 28 क्तो) 8 रस॒ 98 1४ क्रश७ 90क्ः-कृलषठण का पण कापी = कमिः6००७ ४० 10 छा जत्‌, 8 इरा ९४ 38 - एप०तेप८९क्त, ध6 फकप्श्‌ छण = ०९-

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माव मनीगतं साक्षात्‌ स्वगतं व्यजयति ये

तेऽनुभावा इति ख्याताः यथा भर्ग : कोपस्य न्यंनकः उद्वुदधे कारणैः स्वैः स्ैवहिरमावं प्रकाशयन्‌

लोके यः का्स्पः सोऽनुभावः कान्यनाटघयोः || 8. 7. 102

प,46 701, 809097८8 ००6७ ०४ मालती» 15. 35, 76 न्यमि- चारिमाष १५५७७ ५० १००५० (९ स्थायीमाव-५४७ १००००७९. ०१ इष, एः १०७५००० 1 अयोगविप्रहमशुगार 10ग्लो$ कपय 8 #6 ७००४ | 11. 8. 7 7.3.75. 1 3.1 5... १०८९५ #6 पणणते $००४, भठ्ठ्णकृकणः6ते कः) सल = च्यक 0 {०९11०६8, 50०) ४8 }07 , १९०८५१० कैट कते ४6 _ ए०७त 97 १९च्००्ब

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४७९ विषय 7४ 1&॥€ ९]&प56 19 ॥४€ 8€08 ०9 स्थायभिव,

रञ्जते मनो यस्मितिति रागः, . 41. स्वपक्षे ( स्वपक्षत्रिषये ) शिधिलोऽभिमानो येषां तादशा 0४" 01 ०४००४ 9}00प६ छपा [0706९६९ 0180) गणम 2000४ छाः 000९6 = ( हरदत्त ) 188 660 88]६8०९0. शिथिल ४७०६ ९५1५९४6 स्वपक्षाभिमान 7४ # एलः 0 ९०१ शिथिलस्वपक्षामिमानाः + = #7. 41 १००७४ 8 0888966 88 शिथिल & 79 013 0ण्णक्णा, पाणण = ध्8

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एणः अष्णाशः 1१९8 रघु 1. 10 हेम्न : संलक्ष्यते ह्यस्नौ विशद्धिःश्या. भिकापि वा; ५० शाकु. 1. 2 आप्ररितोषाद्विदृषां साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानं 150 कुमार्‌, 1. 20.

लोहितरयामद्‌ःखानि हर्षग्धसुखानिच |

मुर्छा निद्रा छपा धूमाः कषणा नित्य चर्मणी

तेभ्य : क्य | श्यामा मवति श्यामायते, परीक्षकाराधनं -- ६५४९६५८०

हिष्ड0्क्ण 9 ( कषीणाः ४0 ) ४06 1०१९8. 9 :-- उत्तर, 1. 19

थार वा जानकीमपि आराधनाय लोकानां मूचतो नास्ति मे व्यथा. ` वद्धिः--

8०८०९९88, ४१९६०९० ००॥, 786, :--शिशपाल 1, परवद्विमत्सरि मनो 1६ मानि

ना, ` %. 48. वो विस्मता-1॥० ६७४०४१८ 18 ०४७ {9 6 105्प्णरड 6

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(1 ) 171८ [ृ्डा्णण ८९ कृल्ल्लो 98 हाण्टण कारयवैम ००४ 60116७61. ( 2 ) 115 शद्००६९ १०९७ ००६ इपः६ #)€ प्‌ 50००६) 0 काटिदास'8 1५१८०६६८. ( 3 ) ¶)6 कलणा + 15 {०० शश) ®श्छ) 1० #९ चा पध्छह्ठाः 0१ 8 0 पी०्छण ॥0क्ाति5 6900 1४6 ४५ कौशिकौ #)09 भ8७ 80 0८} = १€8]6तल्व 9 स्छ्णाा लकृष्लभा गलो चिः दृषक (० &०४ 8 णव कटट्णकालन्व पणणणटो, फलः भर 18766, ( 4 ) {1 8प]})०5€ 80 एला शलाक ९९, 6 शतछड ०० ष्णु कौरशिकीऽ न्माण् 110 9 909 दहर) 6९, भात भारक ४९ कणठ 7055 ०8 पललः गः विदः-- तेन हि पडितपरितोषपत्य- या मृढजातिः 4०. परिा.-- एवमेव. ( 9 ) 106 ०७७ 9 भी 3 ९0८1९0४ 16} 8 80009 }-}७ काडिदास' ५६१०००४ ४९ अ7]०86त # ११४८९. ४१०४ ४05 6419 ( अपि प्ण्डितंमन्ये &. }) ४७

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7. 49. नेपरथ्यसंगीतकम्‌ 15 €[?191:16त 80716 88 ^ & ९0१०९७६ ध6 ^~ ^" 3 कषणण्डठ प्ण 3. , ९, 0०द्०ला४ 10 एरर, प़७ कछणाति 096 कणष्ञपृव्व्‌ <} > 3०८ 0 १७8९८९७ 0 6 07311219 1४ एष्ल नेथ्यसंगीतक्र; ४४ प५5 33 » रसंगीतकं, & 00८९४ ०) ४१९ ०1७ = 8६9०. 8४ $ कश्या स्मरा णल्टाला6 1४ 83 ^ 4 _ (लायात्‌ (0ाट्टतं 19 (9 < 1

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- ^ 4१ परपु पलोषछपक्ा 16 नप एकम. ' 8 १९९१३१८ ४8 खदु प्रथमं नेपय्यतवनमिदम्‌- 1018 $ध८८8०९

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44

1/1 11.1.51 1. एला. भर्तृहरि. 1.52, 121 & रघु ४. आ. छा "9 रतोष

; मया नाम... ...चातकाधितमः; »\९* मया चातकायितं *% # ७।१०९० षादिल्घा उपमा ( चातकेन सदशं मया आचरितम्‌ ) , विकि 1. ^ अतः खल भवता दिन्यरसाभिलाषिणा चातकवतं गृहीतम.

पडितानां प्ररितोष एव _ प्रत्ययो. यस्या सा-- फ॥०९९ ९००४९७० ( 8९6 एथ ) 18 ४४७९ ०) ५9 89186८० 106 भ.

मूढजाति ~ 81९] 0९80158 1156 84 70 58€}{ "1}०86 क} = #€ #{४११त्‌ १४१७ ४० १९७०१ पण ४९ ४5 नित्जा = 1लवा6त्‌ ॐत ६५६७

#1€₹ ०019०४8 {छ कपा, ' द-- णप मूढः परपत्ययनेयवुद्विः ~ ` 1. 2. शोभनं गृहि --18 १०००१९१ &००१. पारितोषिकं--परितीषः प्रयोजनमस्य हाप ठञ्‌, ( प्रयोजनं फलं कारण च. ) गृणातरं- 00०९९ छा फलत

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( 11 ) 1 श्णाडविनः एला वाणृकला११८९ ( एलणते ® सके ) ४8 {16 ०७५८78६10० ६७6 &००प ] चल} €$ ८8, (5 कते #₹ ६१९०५१५. 1७४ ४४। 9ा फक ॥6अा४ १० ५06 ११८६ ५७ १०० भं कनृण्यड 7 १7

अस्तं अयः ( एम इति अयः ) - अरतमयः | अश््णोः , हदयस्य ` & धते : ~--1 1449७ ६०१५६५०४ ४८ ८४४71९8 ५॥४६ # उभोन्व एकदेशीय

45

4 अन्वय; पजष्ट् ४४९ 886 38 लर ४४१ ००१ ९०0००१९. धाम : ~ प्रभ. ०९७8, १1९9507९; --रषु पा, 10. धृतेश्च धीरासदशी &. विक्रमो. 11. 8, ५. चकुर्वधाति धृति, ? 1४ फषफ़ ७९ धमर6 8180 19 ४06 86086 9 =“ नानन्व्ा- ०९88 -0ाः €०पाश्द्९, ' 706 प्ड्म्वाण्ड = तिरस्करण 13 ४९४५७ (99 तिरस्करिणीं 88 (०१87180 81808 1076 6६५९७) ४० 86४8 0811 {७ ०0९८8 इरि आतुरः --1+‰6 0० 8०01, कणप १९७०७ 1116 71९1 ७० ८७ णठ 9 पः 6०0 विदः प्राल्छाः #9# #6 ण्ट क8068 18४ 06 0015 ठप प्श्वृणष्छ्व्‌ शीष 8 पण्य एलैकव्टा एः षणडलाः णत मालविका 8००1१ 0९ ॥भूरटा एक फो 0116 ॥6 प्रडला श०णात्‌ १० ००००६. . 51. अवतितः ( अवसो ) ~ ४०१९१. दर्शनस्यार्थः ~ {716 ०४ु€०४ ४6 इला 0 ॥6 ०६१९ 8€6- | +. अवतत &. प्ण भधा छल्वण 716 ०0९८४ ६0 06 8ल्ना 18 70 1076 © ४06 19061९७ 9 प्ण 8९७०६ 8 @णतत्त्‌ ( ०ण्छाः ). ' दाक्षिण्यं अवरव्य ~ एण ०० ( ९०४ ) ०1५९०९९8 = अनुगृहीतोऽस्मि-- 1 क्ष छप्रटी ०291;&€त णप. 018 = पल्द०08 = 00काण्ट् प्06 पक्षा ^ #४० १० णिः कण्ण एण ४०००३ &९. वैताटिकः विविधः तालः वितालः

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हंसः दस्‌+अच्‌, वणीगमः ) ~ 11० &००९७. 16 एर्व 3 ६७ ०४९७४ 9 ८०७०४ 91] प७०1 0 ४०९ 888१६ ०९४8, 1४ 18 8पर])[०8<त ४6

6 ९16७ 9 ५७ ००व ब्रह्मन्‌ , & 19 ४18० 8त (० 1 ६0 ४१९ मानस्त (७४७ ५16 & [0708411 ५७ भण 8६४3३०४ 8४ हल का #6 €.

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46

एणा कृणलटाः ता इणु पताह पठि कन, 6--शाकु, षा, 27.

हतो हि क्षीरमादपमे तन्मि वर्जयत्यपः. ' मेष. 1. 11. सैं ( सुधया निभितं )-

1,11.9 भ)1(6 ३6 = प्ा्050; 160९6 # 886 0 कणिक 16 १०५५९. 0--रघु अ. 3.५ सौधवासमुटजेन विस्मृत सातरिराय कलनिस्बृहुस्तप वठमिः-भी ( व्यते आच्छाद्यते +अभि बा ङीष्‌ ) - ॥५५ १०० १०९६ {16 ००९४ {7४०6 9 # ५४९), स--क्रिक्रमो. (11. 2 "पूजितः सूत पलमयः तरि्धपारावताः ' परिचय ^०१०५।५६५००९, पि" व= ०५६१8 ९७६ बिरल्लपाद्र्‌ 11 ५१० 0 ४९ ०००७५०९ पररित- ति~ प०श्छा8 ४७०४ &०.; ४९८४१86 १४ (1०8 ००६ कदलः -ृषावलाद्ड = पठि १६. ¶3 18 १०४ 8 गछाः &०० ग्८९पा ०६, समत्र; ७० ४९ प्मला काकी नुप गुणैः. सप सत्यो यस्य सः -0५० १५५ 1998 86१९० 1०8९8, (१७ ४०५. [$ .आथधा- ४119. ००९ ०४ ६४७ ७0०, ९८४ 1. 8०16 १८०१ १५ अरिहा ( अभि-» ए*"५- लर हषर्ल ४८व हा एषा्लेन कणप ) ४9 8९०७७ ^ 9

ऋ0ातलाः &८, ' ४०४ [ ५।॥१॥ ४७५६ ४५ इष्ण फटममणह ५४४ 3 हच्छा अपिधा ४५ 8५ १८४ #०णापे ४6 भका ०००९ ०९९. गः--तक्रमो, 11

° परि--अषिहा अशरिहा | भो फिनु खदु एतद भुजेगनिर्मोकिाभेव सेमुवे नो निपातम्‌.” ५15० शाक. ४1. ( नेष्ये )‹ भो वयस्य अगिहा अगिहा. ! 1५ #6 व्ल &{1९ 0०णृ् ४6 राप १९४41०६8 {16 0०/ पष् #ल = क्ठषकोण्ड् एवस पपछव्‌ 18 & ॥९॥ला ०४५. ¶06 एपपफपणद् तरिंदषक्र ०४।प७॥[ ६५६७३ ४व- ४४11129 ६।* ०0 पक पड जक्षतं #0 ९३6९०86 19 अवेडाः # 76. +

उ्ित क्नाति & ~ ॥५०.६९ प5५४] (० ( पाणण ) 18. ७9०8

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६१८७६९५ ५।९ 7011 8169098 ०५ ०।४ कध) ३४८ नास्ति 4५ ~ 06७ ;8 79 700 0८ णक १0148, 1 भक्णडता = ९स्ाक्०ऽ 115 "छते (अन मध्यानह- समये अन्यस्य वचनस्यावकशोः स्तीति कान्का प्रश्नः ` ष) 19 ००६ ग्ल ००, (५1१४118 २९१५1०६ रिरन्यतां भवान. 18 100६. [४ जण्द्व४ ४७ ४6 लालः विरन्यत।ं भवता त्िरमतु भवान. श्वौ द्रक्ष्यामः एण ५४५ १[९८०)१९७ ६४७ {५० 10409 19 #0€ १८६, © &७ ।७५ ५० ९०१८1११७ ५११४६ {06 सत

१४11011 88 ९०५१५४९ (16 ०९४६ पड 94 ६6 वर्लकजण भक 7 क्प ४“

१९ 7८9; मञ्क्मणतिरहिम ( मन्यान्दविभिम्‌ ) भुणल्धड #9 चठ ४९४्थः ४00५ मंज्जणविदिम, भ॥€४ ५७ वृपन्छा ५१७६8 ५४७ ण्डु ८७ 1 ४०अ९द्‌ हल्पण्टठ पण्लाः धजो ( ४8 06 तथुशन्ल्णच्न्व

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47

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कीषा९) 80011. होदि - &८.-- क्फ ए९ प्ठावलात्त्‌ शकलः मवती 19 शेषेण प्रानभोजनं त्वरयतु भवाति विशेषेण पानभोजन त्वर्यतां. आद्रि ततीया--ए ०1११11०.

7. 53, ( 13 ) काल पणत प्रलाः काह एल्पक 1ग्ल ष्ना्<९, © लाल४॥्छा 1४8 160त6ा16ते 6 = शप्ण्क ०9 ४6 लण्त | 105 ४९७०७९8 ९त 78) ( त7ए€व 79 ) 980४. आर्या ` १४ अलकार ४०९ 28 निदर्शना; ध-रघु 1 2. ‹क्व सूर्यप्रभवोवश | > && शाक. 1. 16. इदं किटान्याजमनोहरं वपुः तपःक्षमं साधयितुं इ- च्छा ` भवभापी. इदमिह मदनस्य जयित्रमखं ' &५. ५8150 ४१7९ ए०४0070- 3 80706 {€ 77०81. चिताषेतन्यो ऽस्मि- ०८ ००६१४४० {भ९ एथाए-° = } | + [१० उण्णा ०००७१७१७ ००. शाकं, ४1. राजा-- सखे न्नायस्व माम्‌, 10 {16 ५56 0ध्टणश्‌ 2. 2. ४४५ 8६९०४ 18 &ध16ए ६००३६४९ 195(7प०७०१९]. अहमपि &०.-1॥९ विद्षक., 18 10०९088 कश कहुर8 #116 1६2 ५० ४६९ 113 1९11688 ९०्वाल्ठप 1०६० 6008 वलाम, 217. 28९78 सष्ण डत, पाक 79 णता णु 8 गलपन्तङृ 16 णप] ४© १९४९८४९त ४¶ ४€ पप्<छण ३०१ {€ 06 0६ 5001 89९ 1 0 पणाञछण॥ ' 18 ००1 &००१. विप्राः ( #. & 7. प्रण --

४0 ध्०७8९॥ 00819658 ) -- 218116६ [1१8. कद्‌; £ ८४. ( स्कंदति-~ स्कंदे: सलोपश्च इति कः )-^» ०१७, 8" "0४ 29. उद्रस्यान्यतरं- गू6 प्म एना. हृदयाभ्यतेरं 1& ००४ &००१ 76901०६. एवमेव &८-45 १०४. ९76 €{९११४१०४8 ‰0प४ ३0प २१९६] 50 8000त 8000 एणाः {1611015 08111688. भि

गृहीतक्षण :-क्षण ^. क्षणोति दुःखं + अच्‌ --क्षण क्षणोति दःखं + अच्‌ )--14. ५४6 एर्व त०फप ए, ७१९७ 16187716. 078 छत ०८८प्प्ड णश पश्वृप्लण्तफत पप श्राद्ध ८शलफ०णड 0678 ४७ यजमान ४०७४ ) २९१०७8१8 06 भपप 0

इ॥९॥ †9ः (6 ल्लालपा०णङ ४0 1७ 118 [686 0 ४70 ४6 कणप आसने क्षण : कर्तन्यः, ? 110) 18 ©0४]7€ भध ५५ एष्भछकप

8998 तथा. ` शौनकस्मति 198 ॥© {0700 प]9 1०३ :-- गृहीत्वामुकशर्मस्यामुकगोजस्य चामुके भादर तु कै्वदेवाथै करणीयः क्षणस्त्वया || इत्येवं शराद््त ब्रुयात्‌ तं प्रातु भवानि वदेत्माप्रवानिति इतरस्तंप्रति द्विज : पित्रादेर्यनेनैव इणीत्‌ विधिना दविजान

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48

24". २५०,४ 910 १००९७ दक्ञस्मापि, ७, १६, ' उदयास्तमये यावन क्षणिको मक्त ` ४१ नागोजीभटु8 ५०१०१०४४ ४0७९-0 क्षणो नि- ्यापारस्थितिस्तयु्तो भवेत्‌, [०००७ गृहीतकण : ०५०७५ 96 1९60 रश (पपा 7100 6 एप्त फोणड 0 ११४६ ९955 19 #6 86058 ०, " य़ 165प6 18 ४4 कपत प8[०58॥ ' ' [ ])6त&6 कप्त (० १० 0णपः कणा ॥.' 8१९० ४७ ब्राह्मणाला क्षण देणे ` ४०१ क्षण वेण 5 » ९०४१०. ल्पता किं भाप 168) 0 श्राद्ध ०७५०४. ल~ शाकृतल, 1. कि मोदकावंडिकायां तेन हि अयं सुगृहीतल्षणः ` ०७० 8०४ 1. लब्यक्षणः स्वगृहं गच्छामि,

2.54. शूना( स्वि अधिकरण कः संप्र. द्ध; )-^ 91*०846"-४००९९ आमिष (1) 4 ९४, ४० गरष्ट न्मुमु०७०४; ( 2 ) 21५७). अत्यातुरो &&. ~ 1४६७ ( &०प३९ब ) ४० 866. कणप इगु ४४५ ३१५५७७8 9 ४ल रणाः एण एश पाप्टो १5५५९७७९. क्क मला तुश्च

भो मौन वाते

(14 ) व+ 1गर्शु-कुल्त्‌ ०0० 195 ए्छ०य6 ॥06 इने कुष्ट ०६

8080४09 ज])086 0९४ 38 त;१७१९त मिण 91] ४७ = ०ण्ठणृभ्णड कध 168}९८{ #0 6 कणन) 9 16 भाप. आर्या,

1 ४९ 1690०६ व्यापारं परनि प्रति 11 ४४१०९ ८0 #9श 98 9 1006

एण्तलण फतेन्लाण्डोर हण णणह व्यापारं, निदत्त (परांङभूर्वाभूत ) ~ "0०४९ ४810९. एकं अयनम्‌--116 8०1 76804. "106 नन्डंणह एष

४०४ 15 ०९115 विंदू-- 70५ एशण्णर्णह एष पल [णः # तकणड 000 15 307070४ एषणल, 9) 0१७७०, '

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2. 55 .उपायनायेदं उपायनाथे-० १९७००५०९ : 70 देन्या उपायनाथं क्ष0/ 9 2177, २४०१४. 1138. 768 देवस्स संभाजनाथै ~ 000०० 18 कभक ( ४6 णु ). एप #1616 38 10 ` वर्छालिशा९6 10 ध्6 इश्व थ्‌ 118 णध्शहरक्, 8 #0 10४70९8 २४ 6७ कांकछठण 80 ` 70056 ०८1१ 16 69010168, 80 06 76४व;णद् ‰१०४6त्‌ 27, एत) 39 118 06

6० 1. 6. कणा 18 8 = &००ते ०७, 88 कट शा = पते 19 प्र इव्वृप्न

४०१ पखिनीका ४४ & ४९।प७] 0धलाएारक की) ४6 १०७०० ४0 वृ 86 06 06810 7 {16 णण ३२६. क, ए90ता४ 8608 ४0 08१९ 811 0४]न् 6 फणत अर्थपति फपल) 18 8180 ००४ ्ाएण०त188, बिं पूर्यत इति बीजपू्रकं ( 18 तापाणपपए७ ॥लतपापक्#0प )--4. लष्मण 19 कधा ४6 ०९ महाद्ग, प्रमदवनं ~ प्रमदानां वनं ०" प्ररो मदो यत्न तत्प्रमदं, प्रमदं पद्रनं प्रमदवनै, 10 ४५ ९486 9 कणःत5 छत ३१ हं ४6 8०७] आं 5 9101#605त 7 & ९०१्‌0४०त्‌ 06 #6 ९0 ००७ 38 ८७6१ 88 97 शुभ्रा ठर फला 16 ००८8१ ९488. 9: गंगदत्तः रघु 1 ए,

“वैदोरिवेधो हृदयं विदे." तषनमिव पतं तपनीयं तस्य विकारः ; तपनीयश्वासौ अशोकः 6०19-1 लाज ) अशोक, सेभावयामि ( 7० एष २९७०५४8 ) 13 ४०५ ४1& 8 कताव (19 ग्णभत-श्लज्ड०४. उपप्र्पामि (1 शना भुण०४० ४० ) भण्ड १६6१४] 1९78. अपि सुखो & ~ ‰76 कण्ण 8णण्ध ०० णना ४) कणप &४7060 ११४९8 सुषु आगतं स्वागतं- ०५०१९. .56.नन 1०१९० 45 {97 &५. तावत्र. ~ ए"8. सघतितयोः ~ 1४11 68८} 006 = ( स+ धं ~ 170 #1९, ००००९. ) किंल्-एम श्भा, © 97९ ८०१. आगमोऽ- स्यास्तीति अगामिन-आगमः 14. 4४ ४9411098] 1076 ४६४०१९१ त०कप {भ ४०९०8078. )-- 168706त. शिष्याया गुणविशेषेण ~ 6880 9 6 86ल भ्‌ फला 9 ४०८ एणा. उन्नमित : ~ ९8 पल्लाभिःल्त्‌ पला (.# भ०७९त ६० अधःङत : ). किमिति & ~ पछ 8 2४ +9॥ षाः 9 6०४०१४1 &€. कौटीन ~ 8८९०१९1, ८0०, ( कुलादागतम्‌ ~ 7४४ ४०००४ 40 > 1; 9 कौ पनया हयोऽरदतीति ~ 1४९५ 100 १९६२४१०४

39

8 7089 17 {16 ०0० गं ४6 [एष्णाट). नः: मेष, 119 मा कौलीनाचकित- नयने मप्यविन्वासिनी मृ: &. साभिलाषः ( अभिलाषेण सहितः )~ ५५५७८०4. 7.54 .प्रभत- 18 ११९९०१९ ८९, 7 0 {० ५० & धण्. १, 2,०;४ प्दणवेलाह ३४ * ४6 हष्दाह््ि 9 ४७ 7985099 मालविका क)०४ १०९७ ००६ & {० © &००त 66. पशलतर ~ ल्ल ` 08. समा, 1४९88 ६१३६ 10 छपर 90 ४6 प४ ४०५४ मधू, 08 &7ग्छा, © कण्णाते ७४ लला िप४ ( पह 9 पमण 79 106 ०९४४ कजत ).

चिरायमाणकुसुमोद्र मस्य चिरायमाणः कूसुमोद्रमो घस्य )- ०९७ 00क€- 0९97 15 ०१९०५९१. ( चिरायते असां हति चिरायमाणः ) 48 7९४08 {76 1०101९०४ ४९ _ ९००10०४ _ 0०७७०१६ ९००१६०४ न्ड) ` कैद

( दोहे आकषं ददातोप )--1.008108&. {7118 ५४८१ कशकृलपभाक स्व्छणड कण (0९, = 6 लाल+ दोहदाह पदा ४७९ &ः--

खीणौं स्पर्शापपर्यगविकसापि बकुलः सीधृगंद्षसेकाव्र प्रादाघातादशोकस्तिलककुरवकौ वीक्षणारिगनाभ्याम ||

मंदारो नर्मवा्यात्पट्‌गृदृहसना्यैपको वत्करवाता |

च्वूतोगीतान्नमेरू विकसति पुरो नर्तनावकाणकारः ४1७० न: नैषध 111. 21, महीरह्य देोहदतेकशकेराकालिकं कोरकमृद्धिरन्ति, ` ४150 मेध 78. | प्रवेशक-& » 1४९1०१6. १1१९9. 8प्वृ$ 2. 13 & 1# [४ सम पहला ९०७७ 19 ४6 एशद्वाणण णह 9 ४6 त्म १५४

7. 58. कामयमानाम. अवस्था इव अवस्था यस्य ( ^० यप" बहुबीरै)~ 19 88६8 » ृलाक०ण अणो कानि 10१४७ 1४ # 10९6 -अलः ।४९, 4

( 1 ) 7016 ४०९१ ष्णु 16 168 प्ला८ 18 ०0 एन्बडपत्छ कषे एल०र€'8 709०९ 06 ९९6 पभ 06 पि] 9 ध्ला8 6९09056 86 ॐ. 0१ इल्ला €षल {णि 8 ०फला४; एण्य 09 ए९णलः ल्म) कलृग्धकलते पिणक ४४६ †#जण-९ल्ते जल क़ (©, नो कल्ड १9 उण्प शिल दकु 0 ४16 1०८७४ ४1198 18 80 न्धः २०१. शिषारिणी.

स्यात्‌ -1४ १४४ ४6 1. 6. ४6 16800 ४0 © 80, प्रसक्तं (पर +सन्ज) ~ 1५4४. लम्बन प्वारतण्ड, पणणछ्म्त ०/०, लः, > 1 4 0श्रसक्तसगीत~ भू दंगघोष मालती ४1 7. एकणवन्मः लवपष्चणड 1 .., ध्रापे निर्वा. णस्य प्ररे सी ~ ५५५ ७०५५9 0२७8 ०८ 60 थाच ००

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53

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55 ४९७, 6०5१७ ०० ६९००८४६ 10९९. 64. अविज्ञातहद्यं ; 4:- शाक, 71. तव जाने हृदयं.” 118 38 6 809] व8व९००७ ०६ 1गलऽ का ११९९८ 6 1०९७ 5 गृगृणभ 6 एष. महार ( भर्तारं ) °ण्टण॥ ४० ४० मटारअं ( भतारकं ), ४8 6 ण्व 28 शण ४6 1०््व्‌ 7 मालविका, ००४६ 16? ॥०७०७१. अमिलषन्ती 10०० {०7, आत्मनोऽपि &०--¶ = 88}1876त €षढ० ०) 86. कि पनः. न; 4&८.~ प्ण्क पटो 1688 8९6 1 ए0क्शः &. {6 = ९0फ07०८४०० ४0 िशत8 38 णि #6 6 द््वणण् (6 शद्ग =. ९.८.६९ चण 9 शाकुं 1]. ^ स्निग्ननसविम्तं॑ि दुःखं॑सदवैदनं भवति, <... 4150 कादबरी, आत्मापि मे यस्य उपहासं जभयति, विभवः-ए०भध. अप्रति- ^. 1.५4

कारगुरवीं ( अविद्यमानः प्रतिकारो यस्याः सा, अपरतिकारा अत एव गुवीं )- प्‌ 98 णठ 20. णात, १९७६ ए९००९० पशा ०क७४०. चापल-- प५ी०९७8, प्णरछ्‌6र००३ कृनत {प ००88. 2--कमार द्विजातिभावादपपन्नचाप

कादंबरी, * स्वविन्तदततिरिव चापलेभ्यो निवारणीया. ` परिभ्र्टा-५।1०० १०७०. हें ( दोहं -" ०४९०४ ददातीति )-3०।७१७०।००. पंचरात्राभ्यन्तरे (पचान रीणां समाहारः पे परात्र तस्याभ्यन्तरे )- फा + 8१० 0/8. अन्तरा निः- ष्वस्य-51)1् 2० ४6 ¡०९९81 मालविका 808 ९8 820 8) १९8 ०५४ श्छ शं 0०6 (न्फ ४6 ७९०४९०८९ = ९९७०8681 [719४8 ४86 ६16 पतिन १० क्ण ६0 हक्णफि शाः तल्ड6 88 वृषः6 3फकृष्णछधणालु कण्वे फन 2 08६ र्णं 000060६ 1१6१8 ©8०९ 70 छलः फ;9त 0016 806 ल्गपते पनः

"9 कणप अहिलासपूरहत्तं ( अमिलाषपूरयितुकै ) अभिलाषपूरायितरकै- पन ऋण्णाति हानि १७७०९. नियोगम्‌मि-70 ४९ [18८6 616 [ 096 ४० = €व्टप्॑र = क़ कण्ण ०, 90०60 1966. अनुपदं प्रष्ानां पश्चात्‌ ) &०.-8)6 80811 10110 0९. विश्रव्धं -एःश्श.

7.65. सीधुपानो &-- पछ 38 ०९ 6 ( २९४7 ) 07 ००७ 11028 8178080 छक वप्त ण४. 09 ४25 अर, 29०0६ ४४७ 6 णा०ाण्ड ००९--

सीधुपाणुन्वोजैअस्स & विद्षक ५९8०8 ६१४४ ६० 1० 10 38 1 ४0९४€ ०7 २०४९०९४९ एए 178 १880० 9 मालातिका, क] ४० ( 6 ४88००९१, }1@0 16 86९8 106 81006, [05६ ४8 8 पो 38

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56

90९ श्ट फठाछ स्ीणहते चद कृणवत्‌ प्फ १०६० ( तगु ) %0 1०88 शी ४०त्‌ ४9८ सध 9 सिता ऽह, 1६ 18 #०६ कते नाजर 6 1४6 88० &2त्‌ = 88 80 <भोलव्‌ ००९७० ३8 0० }०७७ते 8190919 16७७४1६ 79 कंद० ४9 ° 99४ ( मत्स +अंड ). ४४५ 9ा०क्ाण्ठ णय ४6 वैरोषिकः--

मत्स्यडिका संडसिताः कमेण गृणवत्तमाः

यथायथा 1 नैर्मल्यं मधुरत्वं तथा तथा

बाट्केव मशं सूक्ष्मा सुस्निग्धा सितर्षिगला

मःस्य!डाङतिसादर्ययोगान्मत्स्यंडिका स्मृता ४150 वाग्मट 1. 5. 49, इष्याः क्षतक्ञीणाहिता र्कपित्तानिलापहाः

मत्स्यडिका सैडसिताः कमेण गृणव्त्तमाः `

80: मत्स्येडिकादयस्रयो ष्याः वथा क्षीणदतहीता रक्तपित्ानिहापराश्

चथा कमेण गुणवत्तमाः धौतगुडादपि मरस्यंडिका गुणकरीनिर्मलतरत्वात | ततोऽ पि खंडो गुणवत्तरः } सेडादपि शर्करा गुणवततमा निर्मटतमत्वादर

¶116 ०86 8ष्ुकाः &8 8 ०६0१०16 १६78६ 106 सदभीम | ` 14१० #8 0706 छप ४6 गामग्लणष्क »७७8 पिणक

ण; केशिराजः-मद्यति नहि भय जातुचितः पीतमचयं | पिवति धृतसमेतां शर्करामिव सयः १२॥

4०१ ४५ {गान काण्ड ५०४ योगरत्न ( मदात्ययचिकित्सा ) भयं रत्वा यदि वा ततज्ञणमेव लेद्यावर ( 9० तत्षणमवलेडि) शर्करा सघुतां सदयापि जातु मयै मनागपि अयितवीर्यमपि सीषु (सिध्‌ + ) ~ अप+ पनीत किण फणेष्छ- ९8. ५--रघु 2४. 52. उद्वेजितं ( ०४०७. ?, 2, ) - _ ४००४७ 18 ०७६९ ः- शाकै, 7. मत्स्यडिका ( मत्स्य + अड + इका ) = | 1 ०8 एश 0णणह कध 9 ०७९, ६06 २०७९ क्ज्+ 9 शकन्धु ०१५७७९8 3 पष्ण्‌ए6्व; 98 शकं ~+ ओषु शर्कषु & पाक 0४5 ६09 गा०कण्ह नपभ्व00 ०0 (15 ७००५८००९. मद्यपानकिन्दकस्य धवा म. तस्यंडिका काणितमुपकारकं तथा मदनातुरस्य तेव स्वयमृपगता ( अताकैतमुपस्विता ) सात्विका, अपि (प्रक) ~ 4 भ्ण णण वृष्क,

१९8७९. परयत्ुका ~ एण््डडा, 10*९-शनरः विक्र, 7, 16, पयुस्सु कौ कथयसि भ्रियदर्शनां तां आते प्रश्यति परूरषसं तदर्थे ' & एकां अकतीति पकाकिनी 06 10 &०९ 81006. कथं - 4 ४६०16

` शोजक्राणह उपा, अथ किं ~ १९७, ०२८४ ( 80 ). शक्य & - 1६ 1 एण्ड छक {0 8७90 118 अव्बितं 18 ०४७१ 99856]; :-- उचितः प्रणयो बरं विहतं & ! प्रणयो वर्‌ विहृतु छप ०४68 ५66-०४

(6 ) ४४एाण्ड्ठ 1680४ तठ कणप कक्ष प्ण एलेगर्त 38 ०९४7, ष्ण तेशूष्ट्छ्छछते 06४ 083 1890 01880011 6 8 चरला 18110 0 जथ &लिः 0010६ पठण ४16 068 0 @8068 08 8 ण्डा ह्ण7०००१९व ४९68 15 ४४ 1४70. दरूतविलंबित,

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(८ ) 8१०8 ४6 एशट्राठ् कनः प७, भशातला 70 ४06 कक्षं, कृष्ण णछाणौ 6 0768518, 100 ९१९8, 06८६ ९०९5 क़ 188. आर्या,

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7.64. ललित &५-एव्भप्छणड 9 10ण्लेड 1 1०ण्डाणहः <--19# ९७७९. 17 " वया वहापै हदं ललितकामिसाधारणम. ` ल- क्ति दोहदं अपेक्षत प, अगृहीत &^ ~ ४४६ ४98 ००४ एष ०9 ६७ वेर

11५कन8 &८ माटविका 19८४8 ६1४६ 16 38 प०९बड 00 ४०९००४४

#)6 7101-9} 17161६ 01 १८७८९ 1९ ५० अशोक प्रकृष्टा छाया यत्र प्रच्छायः [का कं

अत एव शीतह्ः -0५० 18 पलः 82806. र“ प्रच्छायसुलमनिद्राः , &५. 1" शा ङ्तल. उत्काभ्ि ~ 10१690६. प्रसन्नः --0लभ. मालती.

^ ्रसरप्रायस्ते तकं

(9) (णक क) 1४ ४06 कुरबकं नगान, #णते लोकस्ते #९ एका ला<ह क{€ा 166१९ फण 6 कृण गं कह चटछते- 1७९९७, 116 मलय ४५९६७ [0०१०९६8 प०९४७०९७8 1 ध06 फः४त शन्ल 11111... आयां.

किंसलयपुरभेदात निर्गताः सीकराः (मध्यमपदलोपी ). पुर ~ 0. भेद 04. भेद्‌-. 0१6०४. अविद्यमानं निमित्तं यस्याः सा अनिमित्ता, अनिमित्ता सा उत्कं भटय 15 5०] ०७९१ 1० ४९ +€ "९5९४ निलगिरि. समर्थये -- 1 भणण

( &०८७७ ). कमलिनीं &९.--7) लेशुणक्षण६ १०९६ २०६ 687९ {0 9

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मतगजः मतंगादपेर्जात इति )--४1५१,५०।७ ४7७ $ण]१्‌०४े ९७९९० पणि #6 8१७ मतंग, 1५ शकुक्०४४ 105७ = णिः [भण्ड कृत्ठश्छफ ५: रवितो गजः पद्मस्तदृद्यान्‌ बाधितुं धरुवं | सरो विशापि स्नात; भजस्नानं हि निष्फल, नानी ०२71960 इयर =" तमन्यम

59

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(10. ) ०० ॥0 ५४ १,७९]०8€ €$€ जा ए0णए प<ढअ€88; 27६७8 ४४5 प०६ प€ 7७९ 0970०९88 = एलाल्लराणह ४€ पधपप्रा, हप्र, 1०१९, 0086 #01्08 876 16 ४116 ह्व 9 ९०६९० ४१९९, [ फस पङ 8617 ४७ ०४}€@४ ५€8€ 81118. इटवा.

तत्वस्यावबोध एकरसो यस्य सः , रसः-- 7४९ ९00४78९1 ९1180 [ष्णृण्लः- धा. तत्वावबोधः--६ ०००1609 ° ४6 पण). लः शाकु, 1. 2 कामी स्वतां पश्या, ` 106 ०७1७0९७ = भं ४०४५ 25 ००६ ५6 भाभा 9 प588 लाटः ८688 0 1066५८6

20 अक्क8 76.

निःसंशयं ( निर्गतः संशयो यस्मिस्तत. ५९०७११४ निर्गतः संशयो यस्मि- न्‌ कर्मणि यथा तथा )-~ तथाश्प्ाफ़ ३४९८४] = (जणाएत्य णत्‌, रला गकषाछा ०३९ ४8 & 10०. ए0ाः चप)6 , शाकु. 1. छतं भवतां नि्म॑क्षिकं ` ७०८८७ निर्म्षिकं 18 51111191} ०७९त. 1 8९८९])६ ॥€ 7८वत्‌- ण्ड्व निःसंशयः , पप 06 8४९) 858 8 तत्पुटष €0ए0ण्ण्ते कालो ४76 १०६ 801)107228त ६० १०. निःसंशयः - संशयस्य अभावः .

अपितमदनसदेशा ( अर्पितो मदनस्देशो यस्यै )--170 क]10घ) 1०९७ ` 16886 {+ ००६०5४९१. ‡. 69. तावद्गुद्कं 1 80 पाप्रट}) 3एकृनाश1८6. योग्यतया नियुका- ४० ४९९ एष्टा) ध] 90 प्व भा ध८ल्छपप६ ए०पाः 8४

७९७७ 9 णिपिााणठ #6© ग्ण. तर एकण्को१ आते 8006 00लाड शव्५ 88 "णप 0५१6 एष्ला = पआरदसल्त्‌ फण ४6 श्पृष्णाधि कपि ४९ पृण्ल्ा. ' 0 (८०प'७ अस्मि्ापरिकारे 18 ४९ ००९७७१००. देन्या &-- देन्या धारिग्याः समतया यूता ( धारि. णसिमाख्तापि ) + 070) १०९७ १०४ भुणा 60 ल्छतल्ट , ४० &००९. सनृप्र&०. ५: कुमार 111. 26, ' पादेन नापैक्षत सुश्री संपर्कमा्सिजित न॒पुरेण. + सुखिततया अद - 12०9 ००४ १९60 $०४)8९्‌† ७९८९०४९ 4, मृत्यु मंडनं -# ०५1५। भाक 61041101. (78 वल #0 {6 (ण5०पा 9 = १८८०४१६ भग ४8 कात्‌ 708 प्ाल्ते कलाल किनि पला ५७४४) काला) कल ५१७ फणा ति. 08८५0 पप,

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06७8. {1018 ४00० एढ, » 878 001018 0108 876 66 ४० ४७ †णोपिोल्व १०8 ०६ = करछथिः ४0 णद = एष्षष्ठपकष ए००क16व्व6 ® ४6 एष्य दे एण ४० ४७ &€०७४। ए०लग = एष्शरकभोःण्् अपात ४०९ पतः ०१०३ छः-विक्र. 1. राजा--प्रतिगरीत व्राह्मणवचनं ' 180 ४०११९७७० ४० विदष- ‰15० रघु 1. 44 अमोघाः प्रतिगृहणन्तौ अर्व्यानुपदमाशिषः ' , युक्तमदा ( यु- क्तो मदो यस्याः सा सदेन युक्ता )-1 & 8६16 0 १०४०२१९४००. (कर९ प्क 96 8०8९७ ४9 ४४९७ ०६०8७ ०४ कणप कण्वे वपणः )- + हसा ०86 10 ४16 86086 9 * ए्णलय, 9४. ' ८४४ 066

7४ णक ४06 ८०06७100 10 ५6 86086 भा ' 39 0; ‡४ 88 ४१९] ०७९१. विशेषमंडनं--8९०४। 07118116 ( 88 862 # ९४ श्र ६० ४6९४०६९७ ). लोकप्रवादः --ए०ुप्णः ०ू्रण०ण; 1ए. 12, असति त्वयि वारुणीमदः प्रमदानामधुना विडंबना. *

फ. १. अलं &०.-^ ष्फ ॥08 ५१ 9न्००. अखि ताव--षए०० = एण४०६९, पणदक्डशंगद, ०86 = = #6 हइलानश 86086. 060 6 एश्भ्ताण्ह = भद्ेणो ( मर्तः) 8 &८<शुगश्वं 698 + 07 16 पाणण 1056 ०9 15 फभुव्छत ४0 908 ००. ' सेडिते ३४ 10९७ = ॥०४।१७४ 68०8 018-8]00074९, ९1०88, © 10९ * &2त 38 &€श्भाङ़ ध6त ००७४1९8. मध्यस्थं & शन्ा 1४6 9 चणप्त ए6€9०० ( -8180067). मध्ये तिष्टतीति मध्यस्थः बसन्तपायन &०-- ६.68 0 ४० 0प्शछ 9 = कणाश170एणह एध; 8०१ ०6०६ ४10 €&8 0168 ०४ ४26 ०९688700 ४0© ४व१9४ (141... भः--स्वस्तिवायनमोदकैः &. 179 1४. मशं हपतीति छोटृप: --10॥. ००७ 00 38 &०ढ 108 0 5718467 887 807164010; " 0९०८९ ह्ा९6्व काम्यमासः एष्ण्णण्. दशंने--दर्शनाय, 10५81156 18 ०४९१ 07 #6 प४१८; ;-~ + धर्माणि द्रपिनं हन्ति, ` नं प्रसरतः ( अवलगतः अवसेजतं : ) --1)० २०४ 1०5७ {००.7.1१ 3. नन ~ पण 0. 1४ ॥५8 8 60८१७ {0168 परिहास निर्मैत्तं- एः ६9 ५९४० 1०४०, प्रिक्िषः-६५१५०१, ७८८०४०९.

०१. वतताकुरं &८-- फाल कलभलाभण्डठ 0 पाडण्ट्ुठ-भूभाणण, कड ४९ {160 ४४8 ( एत्वे फथ्चृन्तव्भाक), + 9 कोन 8८९८ ण६् र्लिः [ालपन्पाह 6 08४, एडो पनछु 9 क)11)6 कल 6 कल्ला 0६ ४09 ण्ह क6 0४56 06 १०१- एन्न्न्ढ०१ 5ह)४ माटतिका ४०१ ४९ (नण, कक 08 82६ 8}0)त ०१6७५१६ ©कण००४ ४6 भव प्ण 1 ४११५५ {€ ५180 }8्त 8206 8प७1ठाक्छ पकप ४6 ण्डु 10९6 जः माटविका, ४१५५ 1४ ७1|| 9]]0€४7 †{"07 इरावती" 9९९०) ४७10 ४४४ धीन ४१ 1; ~ इरावती -हन्नै, .,.. . आशंकितस्य तावदतंगाध्याम * ४०१ 1११५४०२ “स्थाने खट्‌ शकितं मे हृदयं , &५ ४१, ?ए9णता४ ४8 ४6 निोजक्ण्ड ००४6 ०० 119; " 1५ 8 ते०ण्णचो<७ ४6 प्ते ४०४७ [राण ०४ ४९७४

११४६ &6 लव }€6. गकु ४ष्ठ ००७0) 9 ककण ४७ "४9 हमले 06 पाष ६66 18 8 शएशाफ 8४०पा ४6 १०6 पल. लु

९०४१ ०१९ 118 16४९5 1719 वजाजक हानषान्ः १९७॥३ 0 पल्फन्मोर९७. ` 706 प्रार्त ` पिपरटिआदंसणं ' 70९१ 06 1७0पला6ते 19४0 भ्णशत+ पिर्षी- टिकादशनं ५" पिपरटिकादशनं, 7116 {०घ्णलाः १९४१1०६ 18 18९7४18 खरणाटकारं निर्वतंयति--19 61107701 © १८८०१४०० मालविका 6९1. 0.44 अमृमिः &८.-1 118 18 710६ ["णृ€' [166 मालविका ४० ४७ क्९पा; --शा कृ, ४1. ' अभूमिरियमविनयस्य, ' अनज्ञा- 7० ५०

महती खट्‌ &०--67०७६ 1१९९१ 18 {118 1090 #0 06, 9 शाकु, ए. अनुगृहीतोभ्मि अनया मघवतः सेभावनया. ' 15० रधु. ४. 11 प्रा्ोऽति संभावयितुं , १15 38 कप अफ भ्ण ल्भ ००8४. प्रत्‌ -- 19 }"०००९१. मदो मां विकारयति --1१(०५८४१०४ ७०१७४. ११०९०।७ 0 9. (€ स्ट्भ्वाण्् मनो मौ क~ पणत 5 "४ त०४७1; 0 परत ६९8 16 [१०३९ ५०१ भणण. आशंकरितस्य 4५. --~ 1 पण्डा णड १०१४७ लोल्मश्व्‌. स्थाने--38प क) + 7९५४ ।० माटकिका, ` कातर--© ००९९१. 70 #)0) ०४; भरारी " वरा 8९९1# ६० १८.४५१. रागरेवाविन्यासः --7)९ नण »्स्व 11068; ९०1०४ [४"1ण. 2.5. प्रसाधन - 111५ १२४ १९००१०१०. अभिविनीत (५५०९५. 17116 भ्तेताक्षम अभि १०८७ ४०४ भृष्लः {16 = पल्मषण्डु. लः १८158 5 हावज्ञेवर मृखप्रसाधन ' &५ अन्न &^--^8 ४५ १०९७५२०४ [4 माटाकिका ७४४५ १0६ एला कलाः००४३ ०७ बकुलावलिका १४५९७ ७त४४०- ४७ णा [४ ६७ क्त्वे पन गुठि ४४०४६ #@ णहु» 1०१९

ता, 5... | 1 1 1 7

63

८८.23 वि गव पटेटणाष्ण प्वण्द्ह 10 साः ४९ ४६, गुरुदक्लिणाये गुरवे देया दक्षिणा गुरोद्तिणा ०४९१ 98 ०}५।१० ह्णा ४९९ ). दिषटबा-- प्रव ( 716 डपा नग = दिष्टि--1० ००७ )-

35 ०७९्त्‌ 79 1९ सछच्छ 8 छतरश्णः 111९ यदच्छ्या, सिद्धे मे दत्वं

( इत्या: क्म )--175 प्तेगाल्ताक़ कर्णलाड (0 ४6 = ल्न्फणाष्डाक का }16 806 38 096 विद्षक. 008४6 {16 प्त्ष्वप्९8

विद्षकं ५१००६००८ (७ एफ. बकुलावलिका 0९978 ६१४ 816 88

00४७ तप्र 1व्कुण्ध मालविका 1० 8 ९0णतान) 8४ {० पण्ड कण्लारा९न, 706 प्ण सिद्धो मे दर्पः 18 70४ कर्णलध्णार केवले &<-- 6] ५११५६ 15 १८९९७७्‌ 18 {9 ४० _ 1९ )णत्‌ ०६ ४९ णदी 18 16068887 18 {0 110 116 174 ४१९ प्छ

५९ एष्ण०९९ ०६ ¶ष19६ ९ग९णा [1.8 ५; १1१1 "76 ९०107). लमपितन्यः ( स्वार्थोणिच्‌ ). (९

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विलासा यस्याः सन्तीति विलासिनी. विलासः--एाभ्णि ०८ 1्गु ०एशप€०४, 8००70प5 =&०8४९. बाधा-- २००. नवनीतहूदयः- प्०५ 80४ 1८ एण्ड 18 06 16877 &८. नवं नतिं नवनीतं - ४1१ 00प्ट॥४ एण (19 एण््लः ०६ ; ०८०८५ शद्ण्यभ्तर्ल =" एण्ण्ल, ' ४8 पंकज &८. नवनीतहूदयः- 3 ९७7 "४ नवनीतकल्पहृदय. उत्पन्नावसरं आत्वं &५--ए8६ 11986 ना -- 0 १९4०७8४ 107 116} = 89 ०]न तणा 028 [0165676 1४8 ( #४5 ‰५;१९0 ). उत्पद्ची ऽवसरो यस्य तत प्राघकाल. आधिनो भावोऽथितं. आज्ञा- प्यनु-- १०४ ४6 [1५86€व ६० तवा१९५६, = ]४६्९€ (6०९8 70 {116

1105 ०४ $ण्शामः 65० 8 आज्ञा ४16 ४७४४ (€०णणड णण +

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ण्णः ६००८), मिका.

धतिपुष्पं &५-- 7018 @800 १०९३ ००६ 86 त्म. पुष्पे 1€५£ 8 इ४०४गा (0 ७९ ६०६ ५८ एण माटविका'» (०

70 1

पण्ड को ४5 ९दृणक, भृतिः--णल -- ज्ञानाभीशागमाचैस्तु संपू्णस्यृहता धतिः '-- 1७ ७५९६९ ए€ण्॒ भ०(७१९्ब (कक 19५६७ ४५4 18 8 0०78 [6००४०९०४ श्लिष = ०० क्कि 1. 8. नच ब॑धाति धृतिं तदरपालोकटूर्ललितम्‌, ' अनन्य &- अन्यस्यां शविः ° अन्या शविः यस्य॒ ताद्शः-- १०९७ २०४ 1४० ४) ६101096 6)56 ०7. }00. १०९७ ००८ 1०५९ ४० ०४८. 1909. अशोकः &- गू)\€ ( ण्प्पाण्डा ) अशोकं ७7) छण] ४९७ 09७5 भ6 चंड ०४७ (प्८ पण्ड) का ००६ कण एण जत पणकलह एण तिणि ४180, १16 प्ण जप ०9 पिप 088 8 अक दलि ४७ ४८ नावप ४४६ मालविका कण्वे ण्व्डाः तण ४४७ हण्ड. 38 70078 ०६ 1९91० ०००४९०७8 [ 88 ए. ए०ता४ ५)६९७ | ५५५ ए्णण प:8 9१९९०). इरावती ४९7८ कध०४७ 60 8196 # ६४०१ {9 ६९ ण्डः 0. एणकः 0898 ६09 गिानकःण् ००४७ ०४ (05 :--

४७ 8७ ०५०० १०००७ अशोकः कुसुमं दर्शयसि अयं खल पुन रुत्ंभित एव | उत्तमिन--1१५४९०६ 1005 १८५ ण६ 18 [01 €९लि9)€ १९५४०8७ 1५४ इरावती फ;50 65 0 १० 8 0 ५६०४ ४6 दण :--उत्तरराम, पुष्प्यत्‌ पृष्करवासितो ' ‰&५.

प्रतिपिः--16५००१७७. ष्म प्रतिवद-7० ५०४९ भन्‌ का #०--प्09 0 06 0006 ००७. जटघाबल-1706 धधा 0 1९88. (धण६ ४० ४५०18. जडघा-- 1 ४५ (५४ एष 14» 9, 86. के आवां &०.-- फ) ४7९ 0 6 ५१०० पार पण» 19९ ? परिह -एष०णः प्रणयप्रसंगस्य ( प्रणयस्य प्रसंगः प्रातिः ) के आवा....पसंगस्य-- 10 #€ 0 00706 19 15४९ क) ६6 जपे ? अहौ अविष्वसनीयाः प्र्षाः-- प्क पण्णा ( {५165 ) 9८ ७९४ ? ९, = एनक्ण6 ५५७०1४68 प्रणयप्रसग ४१ ५०४8५१८०४४॥ ७९०४६110

मया खलु &०-- एश णण 1४ ४0० कणापेर }016}1 कला 1०६७०१७ ।० वन्न ९, ४५ प8प8[0९त६००, 98 1 ४, 1 पत ४००॥ ण्ठ चड़ [४८५ 1.8 शि ता त, 3 1५92941 १०५१5: आत्मनो वंचनववनं प्रमाणीर्त्याचिक्षिप्ायाः श्रिय गृहिण्या हृदयराल्यं छतं | एवं धिज्ञातं मया ज्याधेजनगृहीतवित्ाया अविराकताया हरिण्या हव विनाश इति '- ४५५ [एप्णृप्ल्व्‌ ४० अजक 95 ४४८ छत

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9 8 एलरर्छ्त्‌ भ0 3 श्णधट्व्व्‌ छण एनाल्रण्डव भण्प्तह ऋध्ठछतेङपे # तेल्ल्छ 0शा. वाव ण्ण ण्ठ नीक ४6 भथछ #8 कपण [६8 8 ए०पशृश्<पण् ९०४०6 = 11०86 068 198 एल्ला भादप्ल्ते $ 0प्णाछा, 0 प्ल्मताण्ट 28 एष्छणथार 8. आत्मनः ४१४०8 {०9 इरावत्याः, 1४ 18 # १४६७० कः कणप वंचना #७ च्छा ़कण्ते. 48 & हलश्‌ एणा5 8 इपफगतफक€ भणते # ९9०ण्त्‌ अपात ००६ © छण्पान्लौश्ते 8४ ३०१०९००४ कणत, ऋद्धस्य राजपुरुषः ` 0 18 ००८ 9016. 06 ण्डा

उपकल्छपा्छुः 18 00 ३6९०प०६४७त्‌ णिः ४७ ह्वष्ण्यणत्‌ ६४६, = कपोला

{6 फच्डणाणह् 38 नाच्छ 8० 8 0क८८प्ाकल 06 810र९त. देवदत्तस्य गुकुलं. " &.159 मर्तृहरि वैराग्य.--' खलेषु संसर्गमुक्तिः " प्रमाणीरत्य --प्श्नण व्णान्व ण. ‰. 84, प्रतियोजय किमागि- 0989 = 8001४, कर्मगहीतेन &०--& धणं ९४९)0४ २४ 9 एथ 8९४ ( ०६ 10 पड 19 ) 800प्ात शकर धा 16 अष 1१०४७०९ ४0 16० ( 06 18 ४6 8०१७९०४ 9 ) ॥००७6-एछ्थर कर्मगृहीतेन-- 09४४ 7 ५७ एश ४०६, ४०६५४ २७-०४०१९ कुमीककः-- 4 भ". शिक्षकः ( शिक्षत इति ) 8 16७, 9 80७४. 16 प्ण 2180 6 0:88015९0 ४8 शिक्षयति इति- 4 76९५०» 86086 ००४ अगग6भ्णा6 ४९. कर्मगुहीतेन &-48 9 धप ८8०00 २७त-०४०१6१ 188 0 1९९४४ 80716 80८} 6७०७6 26 28 18 प्थ्छतञ्डाः 9 ४06 ॥0णञ्ल-ष्भ्तणह ००४ एत्ठश्ब्डि०णक [०पड०-एाट्भतछा) 80 ए0प 0र्ठण४ 19७ = इ०पानण्द्ठ ४0 06 ४28 266 0 गण्षा8, 7, 2४0ता८5 [जण ००७6 भृणष्भाऽ ४9 06 पर0ल्ठछञधाफ़ 20 ०४ ०६ 9०6. 2-- विक्र 71-, विद्‌ -~ सरेप््ेण गृहीतस्य कूभीरकस्यास्ति वा प्रतिवचनं 19780861"8 18708 11079 18 ४०४ ण्डाफ़ ६००९.

भाटविकाया &-1 ४४१९ ०0 ०0} ०४ 8 7९8 माल ०7८ 1 19९४ 0 {७७७४ कू8{80९्छः 3०9 माल. माटविकाय 13 वैषेयिक सभी, चिरा- यति चिरयसि-- १०० 9९19१९१. विनुद्‌--10 ५००8९, पथः विस्व भनीयो ;सि-- ९०० 278 16 ४०४९, भं €०प86 88त ०णल्भा, विनोदवस्तुकं -- 00४) ९५४ ००७6060. = मदभागिन्या- प{9#प०९५७ ४8 18४ ५6 10९७ 9 प्ण जप्‌ ५४०8ि76त ४० शप०नथ, एवं- 11 प8 ३. (= नर प०९५०७ 7686006 1618. {116 869६४ = 6वा धप २५०१७; अविस्वसनीयोऽसि | मया शो विनोदवृत्तान्त आर्यपुत्रेणोपलन्ध हृति

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अन्यया दुःखन्यापारिण्येवं करोमि | ०५ ४० ००४ 9४ 9: ण्त्‌, बवे ण्ण &६, कनपल 38 8 एणा 525 भ्लणक गल्ताण्ड्ु,

मा अन्रभवतो &५ ण्णः 1४48907 गण ००४ ४० <्०णनवनः ( इषु ) 8 098 ०ग1॥6०688 115 ४०४, {706 ९९१) = उपरोधं- 06४००७०४ ध्ण्पण्९, ००5६१०6 35 ००४ # &००व २९०.त।०६. समापतिदष्ट--3० ©) ४०९6 ०7 ४५५१९०४]. अन्न त्वं &०--17060 1 ५४ ०४86 ठय 6 ९७११०१६० ( भप्णणु ). 7, 88. सेकथा-- 000४०७४०, धभ, अपराधः स्थाप्यते- 18 7९९।६०१९१ [ 86८ १०७ ] 85 871६. किमिति- फ) [ ०५०९७७1» ] सदानित सदान -संदा-अस्य संजातमिति )-- ९५4८७, रणाय, सडह - ९१. सेदानित &--10०्ी। ४७" {०९ © €णक्ष्ाल्व्‌ छु हप्वार, १075 १९९वःण०ह 38 एलटः ४४० सदित, प्रणापिनन &०-( 1018 ) 70९९९ ४०७४708 # 5प]711 ८० = ( प्रणयिन्‌--0०6 }99 ४४९७ श्वृप्लछौ, ) ः-कूमार., 111. 66. ^ प्रतिगृहीतं प्रणयिगप्रियत्वात्‌ 6 शार ¦ 4५4 अकात्रयप्रणयिनस्तनयात वहतः ५18० प्रणयिषु वा दाल्लिण्यम, ` शट- ¢. 70०९. 1४ 88 €्टणक फर्क 79 = वत्छा०४॥८ 8006068. शोऽय- मेकत्रवद्वमावो यो दृरितवहिरनुरागोऽमिप्रियमन्यत्र गूढमाचरति | --09५ ४० 8608 प०।६;०१] प्ठकक्षपेड का0्लाः 68७0 का6 = €॑शफशा कषणा

#0 80 9००00. लः--रधुर १111. 49. श्रुवमस्मि शटः शुचिस्मिते विदितः कैतववत्सलस्तव. '

(19 ) ०० फक्त 8710 ( 1.6४ धाला€ ) एतणाः पषण तक्के ( €प]११्५७७९त फ़ ४6 कका ) = " इवएद्ठणड ' (०8 ९. एष 9) भणत 0०९, एणण १० ००४ वा र€ 7४ ण्‌ कन्ण् कातिटभ॑स्त्‌ इवान 9 णण [भाण ४४ जपः 16४ ( वकण एण ४6 व्ल 2). मद्धिका.

(16 ०८७०8 ४४# पराण 98 कऽ 10 #0ः का) ४स, इरावती प्ा्०४ शोण पडाल्टभ्प्पे छाप एण कोला 806 कड दातत 006 09 0० §६ ( मेखला ) ०४ # १० 80, †४ ऋ्ज्णाते |, फल्त्नणण्ठ फलाः 0 पेकाल््ुभते लः णते ( 0९6 मेकला ). पणा नखला [7९९18 ४० © 6800796 19 †6 8९56 9 * सिक्र्ठ तिच्‌ ४४७७7 ' "070 पृरिचयवत्यव ५० भश न्व हण फण परिव पवती प्रिचयवति--71© {0४० पण्डा {51०8 अकषीरणा = भ)16 च)० 1४ला वृष्ण मवि, 1 0४55 रणलकृप्स॑ल्वे 1 [जिलः जण

88 एलका फरल 8७8९. 1४ कछण]ते © तार भृणृष्णतट ¢ कडु " कका

७०२ तवश ' ५४ * कणप पेडच्छुभ्प्पे (कथे २७ कठ भः

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णीः ' &०--88 8108 &००त ००४८१४७४ ४९४न९6० मयि ४०१ मेख-

घ्या. अवधीरणा--8"९४ ४१. चंडि--0 अण्टष्फ़ ०००. 1४ ग्ण 09 पाश १७४९्‌ 88 01 , ए6े०र6ते, 10१९, ' एण 3४ 38 ००४ भएष्णृप १6 1676. चंडी --4 णा ( फा 86186 €0वर्डाा€०४ 9९०1ए९त्‌ 70 1४ }.

वृतां 38 18067 8 1४५१ 16807. मेखटयापि--17॥ 1०५५७ अपि "शण 8४४ जण 806 ए6००९8 ४0 पृ0णाः 00 86६, अ+ ( इरा { 8 8 6016 20 1.8 070 10" 27867 ); 0608 इरावती- # 008. (५ 8४ ९९००1८8 ण्व 16 16886 02086). - हताशा--८०६०॥ ०४९. वक्र

(21) (08 भण््फ [ध्व काण) रपट {6 (10 6९8 ) ( ध91982 ४९878 ) 18 8000 0 अप 6 ०6 अणटपाङग को ४6

$्तिणद् 9 &णवहण = कप्वा€ कणठ] 0४5 &6लवच्छन्‌ भाप तवतकण {णण ४९ 1198, 38 {16 11०९8 ©तणतव 6 ४06 विध्य ०प्णच्डण काप

॥18 188) 9 10४08. > शालिनी.

2. 89. बाघ्याणामासारो घस्य सा ( ^० 1" श्दण्य० बहुवीहि ). शरोणीविव ` ( श्रोणीप्रदेश ) 8०१४. 7. नितेबविब,' अन्यपेक्षा-0961688688, "0 १९६७ चंड ४8 8 84}. १०९1१1४४ मा १०७७ ००४ &१७ क्षण &००त 86086 दामन-- 07681), &87189 ( 160५6 ४0५ अा्टध्श् » 10०४ ). कि माँ मयोऽपि &- 99 कण्ण पश्ठ 6 0० 910 तलः ‡क्पा। ?

09 ए0प तषे ए७ 796 1060 नद0श् ९685109 82819. भूयोऽपि 1088 {96066 + राजानं ताडयित इच्छति ` ४०४०. आंबते-- 8०1०5 ण.

[न (>. ५. 3

(28 ) 0४ श°्ण्णु-पभप्€्त ००९, फफ १० ण्य कादा ०४९०१९१ एपण8॥96०६ पठण 06 00 कणा हात्र ? = एण 10९16986 कणाः ७6०४४००, 861] उ०प 876 शद णपा श्‌्ए९, आर्या.

| उद्यतं--1०४०१९१. कूरिल--00"1, विलसितं-- 197 {1१७88,

7 0पाः००४९९३8, वर्धयसि &-- ए०प 86०४ 0४0 कणा 8० भणद्वत काका

8 ‡0पः 818९९ &{ ००९९. ( पुनः )--^»4 ९४. ननमिदानीं &--

066 ( पण्क)}) 9 एठपा6्त्‌, 106 णद लढ8 ४३६ का एल। 16 काज ४६९8 एर्लाणि€ 06 018 प] कठणात्‌ ४6 इणश्‌़ {ग १९५

^ 0 ४9 वृष ्ट'९९8 क) विदूषक 8 1०४० ४९०, एयः--'छृतप्रसादोऽसि,", 7. 2००0४ 16945 आत्मगतं ५1076 #98 8९५ ४० ग्छणवला8 ३४ प्प्थ 1 + एम (4० 9॥ पड प्रपथः ' ०, # 33 कृनणणद्वन्व

-4 10

74 पतला एषकष्था( लोाएपा०७।8०९8 ४0 7०5६७१७ 06078 इरावती, + 600९०६8 {0' 188 10110560, 14 8ल्ला8, पि, 0€0 018 प्लाएषलबध०ण | अनुमतं &०, 15 १०.८७ ९० कात्‌) कर; ए००त६ पणा सगय १९०६४07 0 }9४6 015प४१९१{००१. #. 90. खल &०-8४:प पष्ण्णन्भा. स्पशंदोहल- 11५ 1078९ ४००८). छृतप्रसादोसि-9९७ण४)फ 8४0. ए४०्यः {6 8906 कलाः हजण कष्ठ का पाकप४ [प्ण उण्य जिः कण्ण ५०)४. दिष्टा &-- ए०००४॥९] 8006 1096 2००९ 1910004 4. 2. ष्णो स्टककात 0 पड 1फष्णृषल (ण ण्णः). अस्य अविन- यस्य ४95 16{676006 19 ६1४६ '5 फकृष्णपलत अककण भ्लाक्ज्य माल < ४४१ 5;5८870111& 8 ‰्त० = ढ्क्वे ४9 छ४क््छय, विद्षकं ०७९७ {€ कणत प्रसाद ( णटकश्चप्‌ ) 10 त्छणल्भ कभु १०९४२1१ पलाछ-क़ ५४६ ४6 18 जितपणमशङ्‌ भृषण्ध्वे ४७ कृप्णनछ- प्छण॥ शप कतौ ४6 काची इरावती ०४५४ 86 कह १४ भा कृष्णेण ४४१6 १००९. 1018 इला1९०९९ 8 पर्॑लक्ते णि 0 © 88716 [०९०8७ 10 क}016}। 96 प्ल लते ५७ 978४ ०४७ मो उतिष्ठ & कर एषपका( धपत इत किलाह ध्यक कड " 1४ 38 ह०्०्त ४५,५६ इरावती ४8 ¡ &०06 णण = क1६10प = लेण गल्सण्लेोन्ब पड प्रपत९ा&छह 168 800 (0फक्त8 06 णद कडप्दभ्वाण्ट् ४४ [०811970४ क, 98 ३४ कठपोत्‌ वितांशै। पह णड 9 66०5७ णिः 97171 ४8 (०प+ माल ०; 1 800९ ४४ ००४ १०४७ 80 ¢ कण्ण ४9७ ४९6० 80 टाक वः प्िव्णा४ तानालद्कषपे » 10१६ 8णत्‌॑ प्र्जीशरछकषणड का इरावती. 10;5 10६6४५०0 १०९३ ०५६ भक्षाः 6 &००त्‌. फला #५ पण्डु) 0४ हर्या कालः ९९०8९ जिः गी९०९९ ## कण्ण ४९ शोक्ष {0 छथः लाः ००६ एलं पल्ल्मालोल्वे २४ जण्ण ४९ पोछप्रए९ णिः लछ्णत्णपाणद्ठ {१ 6 8०९, ९5१८8 ३४ १०८७ ००६ भगो ४४।प78] ४0 १०९६ 1४ 8 कण ९ो ९००९. ‰1@ 8० फोष्लो गमप 160 10 ४6 ण्ठ 70 18 1शर्लकीणि, 1४ 1 एषण फभ्तत्थ कम ९1974046 1४6 विद्‌ कछणाते फणा धक {० वार्यणि 6 ४०६ ४17 ६० 80पलणद्व नेहढ क़ 015 1960०86 9 कपत १}6नत. पभ ६४७ 86716006 8 फल ]१९॥6त 19 7, 2५०९४ क्कु अरि

11] 06१९८०९९ ४० इरावती!8 पशचभत ४9 ण्ठ एष्ट ४५ अप्रसादिता ` ७०४) १९४२ ०४१९०0०५;}€ते ›. यावदंकारको «५ 9९ कण्णोत्‌ ७४६७ शौणदुाल१९ = त्णणा४ 16 ४6 कषणम अभिः ४५ कषणम 975, तेप ३७ 7००९ करूणा स्छपछते #6 कष , 760 ¶४8, ००९७ पाह फलः उछणुःभ्लोक) {मः 60 १98 ००9 9

75

4 ककछप्ा९8 1६8 1९ ९००८३९६. 0 पपणडु 13 ए९८०त ०१ 168 स९४०६/९७- शण्डे (0चा७€ 1४ 13 ऽकधषात्‌ £. 6६९6856 €] 10०९०५९ 10 ६७००8. <- शहल्मघव 111. 30.

भौमस्यास्तादूदयकटिलर्जुवमौढं कमात्स्यात्‌ मात वै ( ) रथदशमितै ( ) छोचनाभ्यां (२)

दिग्भिः (१०)

4 एकप 108 शशा] 1पप९००९ वेपपंष् #ः8 ९पंठते कक कामश ४७९८8708. ०:-चुहर्तदिता, ४1. ४० मुहूरततत्व 1, 5. ..

बक्रारोप्यद्रमक्षीज्नग (अ) वसु (< ) नवमेऽभि खिकेतो प्यवृष्टी

दयुग्मेऽतोऽहिभीः स्यान्मुखल्गपरयो श्चान्ययो श्वोरभीतिः `

भाग्य ( पूर्वाफल्गुनी ) दयु कैब ( उत्तराषाढा ) कुग्ि

इह केऽ ( रोदिणी ) स्त्य॑तक्त्पिन्य ( मघा ) क्री

पिच्यन्राह्म ( रोहिण ) द्विप ( विशाखा ) ब्र्तपि खल्‌ न-- हहा ( अरवणश्रष्टायां ) ऽमलः सन्‌

५11. 2. 9 9 1 तवैप्पण्ठ ५४6 (०प१8९ लाप पटए्णप््ठण, = पणणण्ड भकना २४०४ ४५ल१ &०० ०ए ४७१ ०१०९०८७ 86९8 ४9 ४९ कृल्‌ पशणनिणणह्त्‌ भण छ, प्र००९ पथ्पष्भाक ८४७ शपा कणी०९०५९ 9 प्6 भ्ण 878 185 १€९००७ 070रश 0:31. विद्षक १७६०8 प0णह्ठ = ठा पो) ४086 शण ०४1१ ग्छणत 8008 छप ६0 06 ण्ठ, ए, ९४०१;॥ पणार ४०४६ ४18 €] क०णतव ४७ ५४७ ताकिल्णक्त ४6 कक्ष 6०पण भाटविका 676 २९००५1७0 * इरावती, 8६ 10868 ०६ ४७६०६ 19 भ5 86086, ] पण्ड 1४ कण्ठते ४6 एड ४0 भृ ४४७ ६००९४] 86086 1616, 1, €, 88 {1९ 21878 18 कण०००8 39 2:38 ७० २४००. 0०१७७ 80 816 ०पात दःए७ 070 ( ४९ णहु ) इष्टम २४७प16 ‰# &४€ कलह 0 गलणाछ. {10० 8 8180 8170४ भष्णुभल0९88 1४ 0००69798 इरावती ७४५ 16 19९६ 4978 88 8106 18 1997९७००६७१ 19 ४७ ॥०४प्लणलल्व ४116 ४८ 14०९४ 1578 8180 18 २७५,

( १3 }) 1, ग}108€ 687४ 15 ४१786६6 फ़ ४061०१९प मालविका 4 ५00506४ [त भी हु0पण्टठरण एष्ण्भक(ज ४8 > 01606 8619109

76

( १००७ प९ }, पाच ७६१४८९16 #0 पा, 8106 8, 806 चछ ४6 ०९६९०॥९त ४8 एथणह कण्डु आया.

प्रणिपात ५५ तया छतः प्रणिपात तस्याः # 9०४९८४१९ ९०४१० ४९९, 4:-- विक्रमो 71. “कि तु प्रणिपातलघनादहमस्य परैयमवल- विष्ये . शक्यम--२,५१।५५८०--गस्यते. :--8प्‌"४--* उचितः प्रणयो वरं विहत ' ४2१ ताडापितुं युक्तं ", ०४७ 1 ४१५०४६)'8 २९900 9 धल 86९००ते 1०९, एलज्क् 9 ४06 प्म 06 कणोत ०629 पप 806, (26064 98 806 8 10 7९, ९४००१०६ ४6 पद्ोल्न॑ह्व्‌ 9७ एलण्ड भण. = वढकणलु पणवल- 8८०१8 पता 10 पण8 सव्थ्वाण्ट 1० धारिणी ४०व ण्ण ४९८०. ण, काम इन्लपञ 0060 ४० कलः जण्ण, =

४.

2. 92 पर्युत्सुकः (कामयमानावस्थः )--1,0९-102, रथ णड ०08, :-- ऽपर 11. कामयमानावस्थ

(1) ॐश्षि 06 ४९७ 19९९, भ01©) ४४5 {०7० 365 २००४ काच गथ %0 [नः धा्छण्ड्॥ ४06 प०6व०5 फु {बलोह ( ४० ४७ ) 0९ 86 ८6 भाप ४6 करणु पफ वडा, क0©0 एण जति शण 8 29 ४0७ 80916 0 10र९ 060 806 0४8 ॥0€ "9६९ ग्ण ९१७8, ॐव ऋ}160 ४४ ५6 पण्यो ४७ ४४०१, [ण 0 ४०१8 ४४८ 80876 9 ४४6 पकाः ( पाड्णठतु ) ऽ्णताणद ९०१, फक ५86 ४२९९

986 06, 10 80) 18.2०२, ४०86 ५6 9० 1४8 मदाकरान्ता,

आनित्य-- 9५" "९४०२१ ०, रूटश्वासी रागः एव प्रवालः. व्यक्तो रोमोद्रमो यस्यं सः | तस्य भावः, + ४6 ६४}6 1४ ४8 कर्मधारय, ५6 पन णकप०ण त्व कषापे 96 प००९८८७७अ. हृस्तस्पर्शे &५. ¢ :--विक्र> 1. 12. स्पृष्टः सरो- भविकरियमेकूरितं मनसिजेनेव, ` कुर्याव ( आशंसायां लिडः ).-76 ०८९) 28 ॥€ा€ ०566 7 ६16 ०]४९ ६१७ 86086. कुर्याति 18 ४४१९७४०० &8 8 ९७६०४ छक 90196 160 18 ०0४ ००१७५६४. 106 ९०07४ कान्तं (18०8) 88 ०४ ६१९४ [ष्णम 105 18 रूपकं ४०१ ००४ उपमा, सखे गौतम 80078 {116 9।86०६-०११०१९त०७७8 9 ४७ णह # 0 38 कमो] 2080706 19 ध€ ५०००६४४ 9 माटमिका, #. 93. जयसेने &०५.-- 086१९ 1116 0046 ° 86070 8 3 00873616" ४086 18 ०० ८०76 16व ९१. वा-4180. सर्ज &९.-- 9 18 806 ए९ह्पाणह ४९8१ ०४ ध८ठ०प्प 00 एलण् ०,७००1१. ¢ --शाकूः ° 111. न्‌ खल्वात्मानं विनोदयामि. ` ४1. हतासु दृटिं विनोदयामि. ` 150 कथमात्मानं विरदाकूकमधुना विनोदयामि. ` यो &५.- प्र© 86 98 ४४६ 9 9 6िप४ा6 दप्लो०० ०४प््ो० णा ०४४, विद्‌ 06808 ६18 806 18 70 28 70186789916 # (०णतान्चि०ण ४७ {१४६ 9 (१९६०० &९. प्रैभृतियंस्याः सा ( अत्पार्थे कन्‌ ). तपस्विनी अनुरकेप्या )--7 7०07 1457 <&;-मराटी, ` बापडी, ' पिगलान््या ( पिगले अक्षी यस्याः सा ) 0० ०-९€व ०४०6, प्िगल--& ५००0४५०४ 9 $नो०क्, णकः ०५ 16

ति | # १.०.५१ ^ ++ 1 4 -)9

+, {०५.५८ 4, 6". 28 4

(# ८/6 (नह ^ १९, ११ 1. = {६८ ^ पथलातण ४० ६८ व१९९ धारिणी, = धर, २५०0४ 5५8 ६५४ (8 चण 8 ०४९ 1676 80 फलाः 891 नण [6७ ०७०६. 8१४ धारिणीं ॥%४ धि (प 8}10 0 ४0 [0088९88 80 एफ {प [06 ४०९०६४, 00 ६06 तछण्ाक 506 १1११8 ९०० ४०१ (०्पलाकच्ण, 806 ९०४४९०४९ © 09०» मणदास'8 ४11] 19 छलः एप ४० फषड०णकछा४ 9 लाः पक्वे जह 9150 ४५ 8४57 इरावती ४8 छा]] 6 श्ल प्पीलः ०. :--10 [ष्, चेदी- देवी भणति मे एष मत्सरस्य कालः | तव खल ' &५ साररमाडभूमिगृहे ( सारभूतानि ॒भांडानि--सारमांडानि, भूमौ भूमेरन्तगृहम, सारभांडानां भूमिगृहम्‌ )--4. श्थाक्षः 7 क) २७1०९०1९ (ण्ट 6 ९४. सार एनाद४्सु. ननु &९.-- ४8 16 १०७ ४० ४67 ‰६००४1९पद्७ रज क़ ९००४१९४ ( ०४.४०). नन्‌-अत्, अथ किम्‌- ५०८ ०७९. 2. 94. विमुखः (विगतं निदत्त मख यस्य सः )--पभणणद 118 968 धण7०९त्‌ अजक 70, 111 मृजड्न्त, विहस्त--प९]1५88, ०१७7०७7७प. जां &९.-- 0086 {००४ 18 त्छातरत्ल्व्‌ 161}91688 7 © ०. {71€ २७४त;०६ शनायमाणचरणाम-- ॥० ४४5 0५० ३४ {००६. सुन्ठपृच्छिका सुखं पृच्छतीति )--146. ४8 वृप्शाः ४6 1691४00. कि लक्षितो ७५.- १/7 ७४8 ००४ ५6 वकाः ००७ 8९७४? मदो वा &.-108 38 शलः 00 6९०प्ण४ णणलकण ०६ ( ६7७ ) {०पप्षक पड ए०प एप 6 8 पणटछनम+ छजणहठो कणप अड 8876 0 {16 10९७ (०४५8 $ ०पए 865४४ ( माल = ), इरावती १।४०।९ ४७ धारिणी ४४०. ४००५1९१&७ ०६ ५१७ 198 10९७ भभ, {7018 + १०४९ एव्म ४७ उ४ध्त ४० 09०5५८०० इरावती, 106 सदकवाणडट भदो व॒ उपचारः &.- ००५१ ४९४० अण्ण ल्क ०कक्षाते8 शं ४७ ०४ 09 ००४ 00क ४९ 1०ण्€ पाकणडलिपल्ते #0 कणः ०९7१४०४ ०८ पथ १150 ०९७४ " [हो 38 ४९ १९९९५०४ 9 ( कथ ४५ ४०६ ) ३०४. &०.-निर्भदात्र &०.-- फा ११०४५ ‰०४ ०००४ ०8 --- 8{१४.{०४ ०४}७8 ४0 ००७ 6189 8प्४16ा09 कप्ैः स्लुभ्पते ४० मालिका, निद, ए1:० ५५४००००१. मालिकाया --वैषेपिक स्मा. उप- न्यास 3५००००१. फ, 95. अनुबध्यमाना-- ७००६ 1११५७७००; «^, ?, 5. बकुला --ततोऽव्धीरित &०.--अनुबद्ुं प्रस्त: ' 00 ६७ ०६७ पलार), अविनयमन्तरेण-- पा प्ते ४० उणप्पः 3प०ा॥९ ४०४; :-1. ?. 8. नाघं अंतरेण ' ०१ ६५५ ०४७ ५७7७०. परिगृहितार्था-- ५७ 1००७ दीर्घरोषता -- 1४५ 1०४६ ००५।०१९ १७७७४॥५।०७७8. निगलवत्यौ-- ४.०६ \० 1०499. अदृ्टसर्यपाद ( दृष्टं सूर्यपादं यत्र )- ४०० ५० १७० ५५. पाताल- वास--1५७१५५००७ 1० ४४८ ०५६४० प्ण, ६५५०५७० फन्ध 9 ५४४

एकक कक ~ ` ~ ` "न्क नका

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79

न्ना, नागकेन्यका इव 11७ ६५० १४०६४६० १6 ०९४७, 7806 न्व्‌ एनण्डर कन्णडुणडन्त्‌ णः फलम एषण ४० 5ण्‌णृ०४७वे 1७ 19 ४१९ पर्ल १९६ 1००5 ( पाताल ).

(२४) 1४९ 8९6८ 8णह्ण६ ९८६०० ॐत ४6 ४९९ ४8४ ह+ 0४ #€ ०€९त 8० 0198800, 858 एल्छण तेप्र्छा ४16 0नाणत णि एणक्षणफथु 800 8८८०8015 8 एानगल्ण+ ००६ &न6 आर्या

विबुद्ध ( ०००९१ ). चूते संनतः विबुद्चूतस्य संगो ययोः--अकाल-

वृष्टया--अविद्यमानः कालो यस्याः सा, अकाटा चासौ वष्टः, प्रबलपुरोवातया ( पुर

वातः पुरोवातः, 9 77९2०18" तत्पुरष ; प्रबलः पुरोवातः यस्मिन्‌ ) ः-- रघु षा. 38. ' आशाः पुरोवातमवाप्यमेधः.' अप्यत्न-08 827 १९४३९ 06 ०8९ 7 18 पा्6ः ( स्शाश्शण्ड् लय )? ' उपृक्म--& ४४1४६ एश, 760960४. सारभडे न्यापृता- फ) 18 19 00976 9 ४06 (९०5०७ १००86. 96

किंमन प्रतिकर्तन्यं-- ए} 76160 ५४० 200४ 10 ४078 ८886 ? सह. षिक्षेपम-- > £1966. अदृष्टः श्रणोति- फा] ०१७0९97 प्रयुज्यतां सिद्धये

1.6४ ३४ 08 एण 1४४० गृ€क५०४ १८ तण्ा्‌,००य४ ( ५४6 एप्त ०७€ ). प्रवातशयने निषण्णा--191& 7० ७त ( % 802 ) ४९ ०®४ 1९९2९. प्रवातः ( प्ररुष्टो वातो यास्मिन्‌ )-^» भप्फ 11906. ‰& 11969 €ग ०8९ ४0 ४06 छएणणप्छा४ त. < ;-- " प्रवातनाटोत्पट ` &५. चरणेन~

उपरलक्षणी तृतीया. रकचेदनधारिणा -~ 88706870 71), 760 88081 016} 38 -काध000# कण पिक्दट००९, 81४ क०प००8 80 0701888 876 8प]7]०86्त्‌ #० ४8 ॥€81€त कश) एल्डणल्कपस्त्‌ का 1४ . ए€४ ४6 एषण्लभ्‌ ६०४ 8९0प76त 3४5 2] 11680, 18 ५6 ग्शार्ण १४ ९8. तस्मादस्मतव &०.- : -- शाक. 1. अवसरोऽयमात्मानं प्रकाशयितुं." ¢. 97. अरिकिपाणी- पणः 8०००९- ण्ठ 0 6 ४४०; म: 7. अरिक्तपाणिना अस्मादशजनेन &५. ` 8180 ^ अरिक्तपाणिर्न पश्येत राजान देवतां गुरुम. ` सवेद्य -प&णः०& (०फप्ण- ४१९७९ 5740, कथावस्तु - 116 8ए1}९2४ पचला 106 शता. ५06 ०७8 वस्तु कालिदास (118 88 फ]] 83 77 15 ०१४९ ०8. 1. काटिदास. यथितवस्तु. अनलवस्तुकां. 11, चतुष्पदवस्तुकं. विवादवस्तु. ` विकर. 1. ' सद्रस्तुपुष- बहुमानात. ` शाकु, 1. कालिदासययितवस्तुना." रघु. ४111. 48. कि वस्तु, ' ४. 18. किंवस्तु विद्रनगुरवे प्रदेये. . 9९. उपवारयंत्रणा-- 1९ ध्ण४1९ ( 14४, एण्ड 9) ०षलाःरंणह 6ला€ ००४7, युत्रणा-२०५९, (०णएणा०ण, ध्णणाड 0 8081 1700 ००] १1809. 108 कणत 38 इ€णलाश् ०६९१ 79 8 ०७०४७. यंत्र- -& 0४0०६, यंज्रणम्‌-^ 20001009] कराष्टो णकणदु,

८3) 0४ 5७९८१०५७ ०४७ } 3४ १०७७ ००४ ९८००७. इज्य

80

पण्चोोर कण्ण बकु जम, कत) 5 कृाष््छव्‌ ०0 ४७ हनदल 7० ४४1, त्‌ फ) ४8 ४९४९, ( एाण० ) कपजप+ ध्पते०७, य्‌ 918० ७. `

अनुवितो नृपुरस्य विरहो यस्य तादृश 5 &0 क] ४४४ ४6 ४०101०8 4 ५० ५६०० >. तपनीयस्य विकारः तपनीयं, तपनीयस्य पीटकं अवटैबत इति, परीत ( प्रि + ) ०५००१९8९ एफ 9०, कंल- मापिणि-- कले भाषत इति तत्सबुद्धौ --अपि सद्या वेदना--18 ४७ 99 धा, ४४1५? अस्ति मे विशेषः-- 17168 38 ०0१०० ( ४५ एणः ); :-- शाकं° 17., शकुन्तला-अस्ति मे विशेषः '. सं्रातः--५००७५. कृ पररि म्नौतः- फन 19१७ 5०१ 1९९ 59०७० ? ‰, 99. आचारपुष्याणि &^-- आवाराथं पुष्पाणि-06शशण०णा१्‌ ( ०यपथणणकपकी ) 00 कशा. :--रघरु ° 71. 10. अवाकिरन्वाललता प्रसूमैरावारलाजैरिवपौरकन्याः, ' जीवितसंशयनिमिततं--19 ९९०७९ पणटूलः ^0 9 एण्ड ष्ण०,8 18. संशये निमित्त, ५: भर्तृहरि क्षये कारणम्‌ ४". २५०१;७ 769017् अग्रहस्त 0" दक्षिणहस्त 6 ५४४६० ४० लकष * {€ {नगष्छृभ्य४ 9 ४6 ४६०१ ' 0 ४6 प्ण ४४त्‌ ' ( अयश्चाः सौ हस्तश्च ) (767९ 18 ४० एष्णृपंनक 79 891ए् * ज्णृध्य 0 +€ ४४2. ' ५९००६ ६० ४6 पर णवप ००४00 ५6 16 0४० 18 6जनतेछाछ्तवे ४० 06 फण णत ९0णवृप्छणतकक प०१४ ४0 $ 2०० ४४ ण. प्रसासिति ५०. 1०686१७ ०08०1०४९. {176 76910 दंशनं दंत ष्फ ९४० संत्ीलः १००६ ४८९. दंतपदे 209८७ ४७७), 005१८ अतृ 6 1९868 ४० प्रा }:8. 1, 9. 1४ (८8 ४०1५९. दंशच्छेदः -0१०४0४६ 9 ५५५ 1४५५९. पूष कर्म पूर्वकर्म --176 9४ ( ४९७१) धभ ५० ४5 9००९.

(4) एन कण्ण म॑ प्न 6 एषण ३६ (तण्ड ००६ ४००३ गिण ४6 ०००१-1 ©66 8.76 ४५ प्ल6तः68 जः ४06 करण 9 ४४७ 1४ 9 ५५०७७ 10 876 ] प5४ एल. अनुष्टुप्‌

06 ९1९68 8०६६९७१९ 1676 #6 क्ल 88 & कल०० 9 जतत फा ९२6१९०९७ ° ४९ कूणाव 36 कपग०७९त ४० ००७; ४० पृरिाजिका

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हितवेगोदयस्तस्मात्पुमान्सद्यो जहात्यसून

4180 0170876 ॥116 ०ण००08 9 वप ्०0न8० 80196008, वु 88 88०४ 19 015 उण्णा 887 8--' ला 6 भण तण ४6 971768४ 6 8080० 9 6 [नव्य एक किलो फहट 8 11ह्8ज्पा€ प्या 1 ९7186 806 १९ कणपणत्‌, ४06 €्लह०ा (06 क०१०१०९ब्‌ एष ४0 ४06 भणााल्बप्रजय फत्ा८ ४, 6४00116४. ४७ पप४6 भार्म, '

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11

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यथादचोऽर्थो यस्य तद्यथाथै, यथाथ नाम यस्य यथार्थनामा,

इरैवाःनीयताम्‌ &- 1४ ;8 9०४४ प) 1 जयसेनाः ®श्€ः 6६ ४6 ए०,०८०-०्छा, = ०त९ाः ४16 19186 ०१७१९७६९ विदूषक 86०४७ 0 18१9 0998 ६९६९०. ४0 80716 छीन 1806 क्षो6ा 06 पण 18 68 16त ४0 पण ककड 10 ७6 ०860] # 0 10 19८७ माटलमत्रिका ०० ४9 ९००99109, (70७6 2006878 00 = ०न८९्७भक 9 1 }1<8४प६् धुव सिद्धि »०१ प्ररििाजिका 1० ४18 1०४ #७४ ५४७ १88१९०७ एज यथाहृदध भाच & 168०8 811} १००४५ ४४६ प्रिानिका प्ण 18१९ ९66 ४४[६&प 19६० ८०8१९००९ विद्षक. 7. 102. "€ प्रारुत उद कमविहाणे शक, 06 ण४छा१९४९त्‌ सधक 88 ^ उद कुभविधाने ? 07 उदकूभपिधाने ' उदनकुभ- विधाने-- ४०८ ४५० €०1709006 ०६ ४16 1680196 ए/6 उदकुम { फश््ल-*ए, 1४7 पिाम्वे काप ककण ). उदकुभपिषाने--ए० 00ण्ल्ाण ( एग्ध्यण्ड् ण्डाः ) ४०७ फण्ण्ः फष्लाक्षा. एप ४16 २९९तणद् उदकुंभविहाणेण १०४४ 6 1604616 उद कुभविधनिन-8 016 (शाकण णं उदकुभ. प्छ७ ४6 = प्छणवनःण् उदकुंभपिधानिन ००1१ 1१९ ००. 96786. उदङुमविधाने &०--3०ण९४ 1४ 8€ा]60४- फक 18 #0 6 १8० 10 ६८ ०भ6ण० उदकुंम, (16 10५81९७ 18 0676 ०86: ४० 9० ०४९५४ ०८ एषण 0०9९; नः- महामा = ' चर्मणि द्रीमिनं हति". # छक 8180 6 [त्मा ृशन्ते {96 ०प्वाणशकृ 8७56 ^ [9 ४0९ 0भ€प्यछणक 9 उद्‌कुम 80060118 चरण अशृ फक 28 ४0

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ससरत्नावलिः -- नागं विधाय मतिमानद्यु चारणपूर्वकम नागं करेण संस्पृ*य मत्रानरतान्िर्चरेत ` जीनागस्य प्राणा इह प्राणाः भरीनागस्य जीव इह स्थितः | ॐ“ भीनागस्य सर्वैररिथाणि इह स्थितानि भीनागस्य वाङ्मनः प्राणा हृहायान्तु स्वहा इति श्राणपविष्टापित श्रीनागं नमस्कर्यात्‌

84

एवं ्राणप्रषिष्टां वै कतवा नागं निधापयेत्‌ उवरकुममुवे रम्ये पत्रे ताम्रमये शुमे सर्षपैः पूरिते रकसूतरवेितकंधरे स्थापयेद्षहस्तेन संस्पृश्य मनुमुच्चरेत्‌ अथ मतरः | ह: सर्पकुलाधिपतये श्रीनागयामृतमू्तये इृटृहृट्‌ सर्पविषं शमय शमय नमस्ते स्वाहा

हति मंतरेणाभिमंभ्य चाश त्तरशतं सुधीः | नागमद्र। तः रत्वा पृजयेत्सस्तुवीत नागराज नमस्तुभ्यं गरदोषनिवर्हण भूतेशाभरणमेष्ठ विषं संहर ते नमः तत उद्वास्य ते नागं तोयेनानेन सेचयेत्‌ विषं निरभिषतां याति सर्पंदरस्यतत्षणात्र ¶1)8 18 1००५४ &8 मागमुद्राविधान, ^199 मैरवतंत्रः-- घटमेकं समादाय मृन्मयं चावणं शुभं कन्याकाततसुत्रेण वेष्टनं तद्रले चरेत्‌ कोशातक्यन्निकः पाया सूर्ववह्यभृतामयोः शेलुः शिरिषः किणिही हरिर क्ौसाहूया पर्न बा त्रिकटुकं वृहत्यौ सारिषै बला | कल्कमेष। कुमार्याश्च रतेन पररिकःपयेत्‌ 1 रदेपयेत्तेन बहिरभागं तु धूपयेत्‌ तद्रन्मधृकमधुकपद्मकेसरवंदनैः || | मौनेन जलमाहृत्य नद्यास्ताम्रधेन ते धः पूरयेन्मत्रमिममुचारयं यत्नतः नमः पृरषसिहाय नमो नारायणाय यथासौ नाभिजानाति रणे छष्णः पराजयम्‌ एतेन सस्थवाक्येन सिलं चा्तायताम्‌ | हस्तेन तं घटं स्पष्ट उत्तराभिमुखः स्थितः एतेन मंघ्रराजेन जलं तदभिमंरयेत | नमो वैडर्यमाते हृल्‌ रक्ष मां सर्पविषेभ्यः गौरि गौधारि चौडाछि मातंगि स्वाहा

्मन्‌र्वनृजाय विनतानेनाय काश्यपाय पक्षिराजाय नारायणवाहनायाभूत- हरणाय नमो गरुडायेदं जलममृतसूपं कुर कुर दर्वाकिरा्यादिलपन्नगानां विषं संहर नमो नारायणायेति

पिष्यल्यौ ध्यामकं मासा खपूरः कददस्तथो | परचवल्कवरायर्टनागपुष्पैलवाटुकमः

जीषकर्वभकोशीरं सितापश्रकमप्पलम्‌ कुमार्या स्नातया दमे कषिपेत्सचृ्यं मैरषि

सुरसामाकवकुशीशरीष।वुदानिवकैः | वद्धकर्वेन तोयं सेचयेच्छतवारकम्‌ ||

सर्पदशटपरवेशं तु मंजमेनं पटनपुनः श्न्‌रवनज इत्यादि यावद्रोमाचहूर्षणम्‌

विषमुक्तो भवेज्छन्तु स्तक्षकेणापि दंशिषः अपमूःयु विनाशाथं सिचेच्छिरसि मानः |

सप बाधाप्रशमन विषरोगनिवारणं | उदकुभविधानं ते भया देवि प्रकीतितम्‌

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इष्टाभिगमो निमित्तो यस्य सः- १०४६ {07 1/8 ०1} ९0४ प)6 भक० ९०६ ०१ ४0७ १९७०१ ०००४. एकौतसान्यं ( एकतिन--निश्वयेन साधयितुं थोग्यं ) ₹. 1. साधु ०४1१ शप] ०१९४० शप्लपनो &००त, एषण ४७९ फल्डणाणह 0०10 ७७ गथ २१६०९; ज)९ साच्यं १०९७ ००४ दार # 46 ५९४, कापरं-- ^ ४५।0०॥ १७ ४१) ००४९७ १०५0 णद वेतः, मंगलकार्याणि-- १०४१ & 08016108 १७11९88. {1116 82४7 ४१४६ छणोतवे छपणड्व ०४ &००५ 1 पठ १० ००. मंगलकायि ४7७ 79110०8 कणा }६$ 1०४७०१७व जए ४४७ एषज्मन्क्त ४16 (एशपणतपन, = किणश्ु6 ठमशण०णङु, = इदछाल्व्‌ ध768ते = ठलर्कजणक्‌ ४०१ 8; ०४068 876 ६।नभ९० 19५) ०4०. ४, 1. मम कार्याणि ~ 4५17४ ९०४०७१०६ (० ८९. नियोगे &.-& १०१९ 867 लाः अ), 91; -- ००६७ ०४ 11. राजा-तेन हि ..स्वनियोगमशुन्यं कुद, कु दा-४७५० भ७०।६००१४१९ घल &८ -119 96 104 ०४९४० कण पपू) ( 0०८ [एभश्णह माटेषिका)१ 07 {५ 7९९0 ' माधविका 18 १०।1-1७8१९0. 8109 ण्ड ००५ ७४१९ ०४१९ 80 [णवा ( एप ००४६ 1६९७ 11068१९ धिकपा ००९९ 2? 1706 नष्मै ।नाक0 8 फ४६८7४]. खलु &९.--1 १० ००५ भवम १००४६ #४9 ४९४]. प्रिजनमतिकम्य--1४ [1९९0९५७ 19 )शः ४।।९०१५०४७. प्र्टन्यम्‌-- 816 १।०४।१ ॥५१९ ४९।६९५१. पुनमेदस्य &०.- ०६ लभ फताणड = ४४६ 1 7 & १प])-1०४९व ०७०४, 1 1०4 > पर्षत्‌ पोलरशंढ, विद्धक. ०९।७ ४1०9७ भद्‌ का, त्वेक. २. 1. प्रषयुतवन्नमतिना--1 ५१४ 76447 कः ००७५९7७. . 105, रवितरक- ५४ अूपणणडुभ, » 9००६।०- ७४} ९. प्षोपृरसगें &.-? ०८ ४७।७9 15 ४५६७०६० एम कृणणः

87

"शशं 38 शरल्ठाराएह 89817090 णी पशा८€ ककल कण्ण वर्णु शपरसर्मेण सहितं सोपसगं. सर्वबधमोक्षः-- 116 7९1५४86 07 91] {18८ 816 00160. इरावतींकितं रक्ष॑त्या- 08119 ४० 8879 इरावती '8 1991108, ००४ ४० &ा 99 ४0 नः ८०१. 708 28 कला 85 धारिणी 8 ५176600 2४ ४06 50 ७५४ अन्मयाशोकंदोहलनियोगे ` &, 8०४५. ततो सा देन्या पृष्टा किन लक्षि- तो जनो वह्लमो इति ' &--1"7"8. देव मणति | मे एष मत्सरस्य कालो ' &५. 80 कऽ ६6 २९8] 0)87804नः 9 ४6 १०९००. राजा किल &५-- ` शे

860४ 169 0 80 ६1४४ ३४ {16 एण्ड स}0 स88 76168810 भान. युज्यते--1४ :3 78४. तय संपादितोऽथं:--ऽ॥७ तत ४४ क1९0

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(6) जणा णि ४४९ 0066 {0706 पत्ला^८४ १०९६ 006 866 0.9... 2... क... "{ ५४४६ 16808 ) . ४० ध© | $न्छमणाडाफन (= भाक 2) ४४० { ५९७;7७ ) ०0}९48 18 ०:500९७७त & 66०० 8180. अनुषटुम्‌,

गुण-- ०००९ ए४०९. अर्थ--0४)&५॥ ४० ०6 86600 11576. 9: विक्र 7. अति स्नेहः खट कार्यदशौ '. ?, 106. स्थापपित्वा-- ५१०६ 71५९0. -- 006 ४0 ५९७४ 07 766०९७. रषु = 7. 20. ^ प्रतयुद्रता पाथिव- अर्मपल्या. अहमेनं & 1 &० 71९465७ ल, 106 शडमा४ ४७९१ {9 17209095 {५4प78. कूसुमावचये न्यग्रौ हस्तौ यस्याः सा-- ४४०४० ४५०05 #7€ ट्त = 19 ००]19९1ण६ °$. मित्तिगृढौ ( भित्यतरितौ )~ ००५९७1९ 6) ४6 कश्‌], कंमीलकैः &५-- 1016768 8 10७४ 800 #ण्छतं चंद्रिका ( धण्न्णा् ). 01 6०्पा विद्षक €6 प्ण | ०9 ४6 गणप चंद्रिका, कठो ४४ ४16 ष्णुः पकर ४6 2०५. इरावती. कथं-- पण, 70 क) पाका, ( धणड)०प्न ) ` गव क्षमाभित्य &--1,0 ८४ &० #० १6 ०त०न ‰०त ७९९. क, 107, प्रणम भत) 7978 49 {06 11४6०७७8 01 {09 णहु ४४४५ ४8 70 प्6 कृाशल्छकपणड- | ४०००९-पास्वतः- 8 7०५ 6:0९, ०९7 २०४, पुष्टतः-5०)१०१. विषाद्‌- थु ०९. | ४००, प१७०१००५०९०१, १९ृ१०द०४८ु. (¶) प्रर १४०७ चन 1गलु-+१ब्९् ०6 198, [7 & पनथ

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497 या ०००००४।००० समवस्था -8100)197 ५८४१९. 0. 108. तदा पत्रं

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&-- ए९०६ ४९ पापक्वा भपस्रण्णद 1 70 80 प्रोतो) अ. १७ का अद्धो (४6 ण्ट *8 1 ४75 एल्लः \०-तभ 10भह्तणद्ठ ०४ एप भला्रशक 1० ४6 लप मालतिका ००९९६०७ 0 ४118६ अः ८०४१९४० ९5) {1०९७8 १६५ १००४ ‰{ ५४६ ६०6 910 0 ६५१७ # {01} रा6क 9 ४06 ४५ प४] णद ४3 86 ९0 पव १० ००७, क® रन्न 1. 9.1... 2. णह 19 भोल दषप्वरण कला 806 09 (०06 ९76 9 भण्ड ४७ ,, ५.५.. अशोक, 1018 ९९०8७ 11४6 86७79] 0६0७8 185 80 7५} 80१ €२७त ~ 00 ४6 १४०१5 9 ९०४5 ०००९ 9 धानय अदु कध ४6 ०४४९८ ए, २५४०१४४ २७४११०६ पण्डा # अणः ०४ १०७७ 19 ०० शक 87070९8 ४9 ४6 नणडशः # ध6 क्कणन्‌. विभावय 1.0० ^ 4्शाण्ड ००, 8९० ०)०8<5. अनिमेषचक्षुषा दर्शने विभावनं, 1४ ४४8 & 511४ 81806 ००१४९19४ 8150. °: विक. 7ए.‹ खशविमावितपियिः . ` चित्रि यथा 41 तथा दष्टो भवान्‌ कशा ०0 866० ७0 = ( 88.196 ४8 १0४. &76 ५०16 ( 866 ) 1४ #16 [८९ , 1, ९, ५/4 १९५7७ ५०४1३ हिः १७ थः ६७९८९ 88418801 पण ४6 १९७ मूधा इदानीम्‌ ५०८--

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०००७५००९ यथा मंजुषा रत्नमाड़ं मुधा बहति तथा त्वं यौवनगे दथा वहति- | ₹819 १० ए०प ०० ४6४7 ४06 एप46 ककण, 1०७४ # 6७७४

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८8 ) ^100णह्" पश तवल्डाा७ 0 अपवत्‌ त्मणाभवशक चल सिक्स ०१ ६०७७ क्}107 ध)0९ ०९७६ 0 ४06 पत ६०९, भतो + ४16 1००६ -९$ ००९ १० ००४ 91} पि ०० धम" 1०*ल४, उवेन्द्रवज्ा

च-च ०" च-तु 20685 41000. ' निर्वर्णयितुं -10 शौषप्त ००४९7, ०८४००१०९ ९०4०5, तदेव पुष यस्मन्कमीण यथा तथा तपुषे, तत्पं समागताः, तदेव पूव समागतं यै स्तेष। ताभिः पूष समागतानौ. रधु. 11. 49. रते वितथप्रयत्नः ' १.1. ततपसमागमान। -स एव पूर्व; समागमः यैस्तेषां. . 109. अग्रेण सहितं समध, समयं यया तथा पतंती समपा्तीनि- १५२०६ 1915. ( ८९११५०९. ) 706७ 38 विरोधाभास †० आयतद्ोचनानां &समथपातीनि, ४००» आयतलोचनानौ 36 # 0०४ लणौकाक सकर स्निग्धया &=~ ¢ 00००० कम6800 कात धर अप्नः, = 5ण्ा+ 1.

89 हिलि निष्यायन्ति & #" शाक; 7 स्निग्ध ॒वीक-

| जभन्यतोऽपि &, अगद्चिणः एणटण् ९०8. उज्छ्ित्वा-170 ®टा ७०१ ५, \- अद्धलक्षः- 585 15 &928 715611९ ००. परमार्थतः ( प्रमाथं ) गृहीत्वा- प्रभ ४० ४९ (०९. न: शाकु. 11. 18. प्रिहासविनध्थितं सखे परर

भर्थेन गृद्यतां वचः. कीदिष्यामि-1 फः] एथ 1०४०. = वह्मा-3 ००० ४२. असुया-गुणेषु दोषाविःकरगम.

7. 119. (9) फल पप्णणणष्ट भकु 067 066 पछ 6९ <बा०प्शङ्‌ 80

| 88 # एत्वछा तिलकं पणः ( ०० १६ ) एफ प° एणतण्ड ४० गुन

छिष्छकड 8० 80 फक 10ण्टाः 1 वृषपर्शा) 806 088, 98 का, 800 #16 108 पतण ॥€ एषव्ल्कृष्छा 7 ४०७ हष्न्न्णि वका अष्णं 70 908 0 णमः 8४ ४5 णा

` [गः वसंततिलकं

भ्रभगेन भिन्नं तिशकं यस्मिन्कर्मणि वथा तथा. स्कृरितो ऽधरोो य- स्मिन्यथा तथा. इतः-ए"०० #:5 पः"९०६०, कान्तस्यापरापैः कुपितानि तेषु-

एष्णृशः भणष्णोपस ४0 ४७९ ताकृाष्कृक्त णार पलक = ण्त्‌ पड

लए 1०98 0४१6 ९0071६० » विप. कौतापराध पण 9180 6 ०१98- 8019७ 98 कांता अपराधास्तैः 1.07] ०९ ६०४० {पा ( (०्पाफा १९ [गरड 19 107७ 371०8 ). कुपित 13 प8९त्‌ 88 8 81817806 पतप 39 ४9 86086 कोप. विनेतुः-०४)०५1१९ दशणध९७, 1ष्णृषत॑व्त एफ #6 ए75- छगृध्ाः. ठलिताभिनयस्य-0) ००४१७ &००५५९. शिक्षा ( शिक्षण ) -1ण७४ष्प०- ४०. अनृनयसज्जः अनुनयाथं सज्जः ) एष्व 0 = एष्णूवषणय, अरत्यानी ~ 70 १४४० ४४०४, 14789. प्रत्यानीयतो कषः 18 06६७. ०० {6 ष्ण ४४४ 06 ण्ट 18 [०५१००९९ ०० ४४६ 6८०प्फ४,

. 111. ( 19) 876 १0०, ०४ 1जपञ-शु9व्‌ भा, धष ४08 हणाद, शंक एए कठिण एणृछडहणैरते 70 कालप इप्स्लु

फलाः९ 1 एकाक कणप 81856 ००४ (0पाप०ण ६0 ०४४७8 ( ¶दनप- श्ण ९९०४९५१ ४० १०८ ). आर्या,

चिचा्पितं &--भः रधु. 11. 31. चित्रार्वितारंम इवावतस्थे, ' किमे- वमधि ४७४०४1१ १७५४९ ९}: 85 किं एवं आरै ४०५००७९ किं एव मयि णह्ठड 06 7०6 सुणडर कुप्‌ पण्डा सव्वणं मद्यं ( 6१९.) अन्येन साधारणः अनन्यसाधारणः शाकुं. 1४. उ्कंठासाधारणं पररि. सोषमतमवामि, ' ^10 कादं. केन} वा अभ्येन सह साधारणं करोमि दुः, 12

90

भदलकातये -) ००१००७००७8 0† 105९. उदासीन इव -8न्श 80 अकृनाल6 , णतारिला €, प८०८6१९त. अत्र भवत्यामये पवाविन्वासः-1)० १०४ वाक्धण् हाः 1४4१ -801 80 फपल)? 1.

7. 112. ( 113 दग्णण्ड पिल्वृष्छणतिक काकण पन पदर पतु कहो 916 ;58])7ल€ध78 70 ताला पक पिके, 08 रण 6०6 काक

४16 &१४७]) पु 8115 5प्तवेनण]ए; ०८०९० 6 क, }फ {06 षण 1056 पफवेलः (५७ वेलोपज्य 9 पठण, ठक

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रण्ड 9 9 वाक्य 0 शत्ठ्छप्णा लाः ल्मः (6 पृप्ल्छा. 2 ४४ 8116 1९]0168७0४8 0 धल ४० 009४६०० ४8. 3९6 देव्या भयेन &५ 2. 114

( 12 ) फ0€6 18 #९€ पल्ट्ल्डम्ि कणडकछा ?. [ण ४6 षल्छात०

9 #6© 76 णा 105९5 ] ४९९ ह्रल पड एल अर्थ = 0 उण्णा = पिलाव्‌, १०४६ &8 }167 10085६6 [प्र ४8 86४०४ 19 86८6, आर्या,

पंचवाणा यस्य प्रचवाणः, पंचवाण एवापः पंचवाणाध्निरेव साक्षी यम्मि न्कर्मणि यथास्यात्तथा ( बहू्रीहि ४९९१ ४8 9 #तएता}, ) 116 ४९ वक °ण्फ१ #'७ अरषिदमशोकं चूतं नवमाटिका | नीकोषटं पंचैते प॑चबाण- स्य सायकाः ` 115 कर्घालड 0 # 6 7 धल पाः १ह6 त्मलफज्छक णि 76) ५6 एतत९.ह्वाः0०क ॥९}६९8 106 [णप ४6 चै पोल ४८०५९ 07९; फ. 1 2. एव बाटाशोक &--(मणएकार कंपाः कपद्ताकक्भे ०४४४८७78 00 शंप ०९०४5०१ 9 शाकल, 111.“ अन॒सुये, यथैष इतो दत्तदुषटि्त्सुको भ्गपोतको मातरमतिविष्यति एहि सेयोजयाव एनम्‌ | '

हषयति -ए"०७४८8 प. एषे - 1198, ४8 ‰0प ४९ वार्ण] (0 [षठ ४७९॥ ५16 गृ1०४।४. १, }. रक्षणन्तगे- 1 १९७१५५४ = ४४५ = कद्ुष्ुष्छन्ण

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91

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18 4 छण ४० हए० ६५७ वाप्८०६०० ६० गौतम विदूषक १९४०७.

0४४ 16 १17९8त्‌ 1078 {1713 पप्र )8 अविद्यमानः प्रकाशो यस्मि स्तस्मिन्‌ अप्रकाशे-1" (8 ११८. . { ] 4.स्किकस्थल--075 8४४] 8०९४ विशेषा शि-

छा ०८ शिलाया विशेषः शिखाषिशेषः-५प५८पोक् ( ०५५1]७प४ ) 8५099 साध्वसं- ^ {८५1५.

(13 ) ७९5 ए, ०0 एष्डप्रघणि 006, धौ6 पणा, 46४ ४४७ ४7४ ०१ ४९ अतिमुक्त ५७९९ ६०७१३ २०९, १०२०५७१ 88 1

#0 एण # 100 ५००७ ४०१ 8१6 ४88प्6त्‌ ४16 (णणवाप्०ण 0811 0-४"66 द्रतवि्टंबित,

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शण्डः ००५७९. तव्र॒विराद्ममुति प्रणयोन्मुखे धश ४९ 008४प-

का विसुज.-15प्प88 ०७808 ८6 &; ४८१ ४५6 मपि सहकारत। गते &९. ४5 9 86]091816 ०18०056. सहकारत गते- 1९४ 1 8१७ एष्८म७ 11}६९ ११४१2०-६८९९. अतिमक &०-- 4५४ ०९ ६७80118 ४06 क्ष &८. 48 ४98 €€९)€' ९0118 ना नाण्डज एठपप्व्‌ घाल फञद्कु० ५७७ 80 १० एण ल्ग ‡०प३९]१ ए0पात्‌ 1९, 1. €, 1९९ 0९ » ५1089 60०४9०९. पारयामि-शकरोरम- 470 916. हृष्टा समवस्था यस्य- 88 869 70) 8 अप्रा] ( {16 88&0€ ) 86818 ( फ1॥1 10९ ). ४. 1. दृटसामर््यः -प्तभ्व्‌ 8 पलक ष्णि

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7.115.14५) 00 कणप अणफ-कएन्व्‌ ०९, एनगाप९ा०88 18 कणा ०9.

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०४ ध०8०ताण्टु पानद ४७१४ 8 8य७्त ००५ कृष्षस्योहः 1१4. कष्ठवतं - 4 ५४1 १०७ 07 ०४०8७7९४००९ ६४४६ 0०९०००४ 9७ ऋडान्#हत्‌, अप्रिमिन्र ०७५०४ १७६ 8811868 २९७7५ 015 ( ९६६९०६०४ + ऋज ) ५७ ७४०८७ च४त्‌ णरंगग्ण 95 [४ भलर ष्णो = भोमाक०००. हवाशा निधनानि येषां ते खदाशनिवेषनाः- ०९५०१५५६ ०४ फ़ ४०९७ णा ्ुच्प््णह $००, 1, 6. [ ४१५ पछ प्ण (1७ जण ०४ ५6 ४०06 ४४ उणा 9}\11 ९&०४ १०१. सेश्लेवमुपजलनयापि- 4.०७ ०१790०० 80०8 ६०४६४ 09 19 &०पदह्॒ ४० 6४५७. रमणीयः &८--©४४८०४६ 1०९९७त ४७ ४6 कण्‌ १७०४३ ( 8०0०8 ) 9 कणप कजपड) [७६९ = 1०₹७.

( 15 ) 8४०, प्श्य. ह्र, क्ष्वेड मीं ( प्क 9 ४४०, +€ पणद्ुशड कत 876 कव्ुशः ४७ ००८यृ७४०४ ४४ ६0५ हत्त क्ल छनण्डु ९०७१४०९५ = एनभ{००6 = ( भहु०१०४४ ५७ = क| ) = 806 १७६७6 167 9०98 ००७ णः ७७९०८; भ6 रष एलः ६०8 " [डकण्डु शर

19568, 00 188 1, 906 धप्छञ 1४ भ्क्ु. {1४ शल्छ चवमः 7९1७१०8 9 पर्वा ०७७]8 806 01108 = ७०००६ ५५ भष ४१

{181४७४४ 9 १८५१२८९. शारदूलतरिशिडित,

पक्ष्मछवक्षुरानन प्रातुमुन्नमयतः ( तत्र ) सावी करोति, पक्मल-प५११०६ 1०४ ०१५-।५।५७, ब्याजेन-(1 ५५७ 8॥0 9 1०8५8 1, 6. ४०७५८७५५

४७ प्ण पु १९4०८७४ 96 १९ 09 ४8 ष्ठो 1९९5१८९ ४8 916 ०८५ ४४5७ 07 ४०४०६ प्फ १००७९७६. निवैर्दयति (स पएादयाप्रै ) 4०५५०1० [01180९8 "1०९8 ४१००५४॥. सुत्यं त्वं &५- श७ १०४ ४५१३ ००००३. ९{--किक्र, 11. इष्जे निपाणिके सत्यं त्वया भणितमिंदं परविशन्नार्य माणव कसहाय आर्यपुत्रो दष्ट इति, ` प्रिगतार्था -)4५49 ४००० , ४४७ ७८४४७ 0 ६1६8 आदिद -1 ५४५७ 07 1818664 8५४४ (०7७8 # 1००७९. | .116.सशयान्मु - 1८७५५९५ 7 [ल] ( ११७८ {७ 1190; पलथमिक्ण्डू ८७बिदू- षक 8 1५16 ७७५७{७ 70५ १०५६॥ 7 ७५।६५-०१५७. णद्ध ४७ ५०५ ४० च्‌ छः प्ण 0७ १५0९7 + [५५५ अर्गअं ( अन्यच्च ) ५५ इरावती" ७[८७५। 38 ०५००7०6७. सावरोषनिव ~ «065 ४5 ३८ = जला७ ४6० { ००१४५१९ ) ्.-- शृण सावशेषं मे षचःः- पणः ००७ 10 सात्‌ चिन्गततं &०-- ६1978 ४० ५७ =लपह 9 ६।८ पढ अक्षमः ४००8९. धा दशः - तादश :4५--0८ #€ {16 ३2.106, ल6 99 = फडल्नःभ

08609००० 0०६०९०० ५।० 19१६९ ०० ५७ १९९। ८, उपृचारातिकरम भरमार ममायमारमः-1016 ५५८५८५५ ( ०४ जप [7 ) ४9 १५५५७ ५५

98

` हष्व्डअंछः ° एष्णृभः (शश००४फ ( उपचार ); उपचारः - ८९९08] 80 र्ण ण्य, (एशर्फठणकृ. सः विक. 1४ . पप्रादषेण्यैरेवे सनौर्मम राजोपचारः , * 17४५

परवारातिकम "७ ।० इरावती थण 606०६ = (0४9 6

| 9 1.1... 1.9 मा

४9 (श्वल एड एष््डौकप्रणह ४०७ ४७.

2. 117. नमे एषो मत्सरस्य कालः &०--718 8४०8 ४0७ २०) ०९०४०४७८ धारणी, 48 8116 15 800० ४० 8४४6 5039८ &० 200४ ४४७ ण्'9 105७ 0 मालविका 0 ४6 एकाक एशद्ाणणाण६, 809 0४8 एक ४018 धर, 1६ 9006878, 806 ण) ला पणते ४0 इष्ण ४6 ण्ह १९57७ छा प्ण नालण चणटन्ान, 6 ४४ ४6 पंडोः ०9 न्रा 8 0-क्8. एण्४ ४६४ ५6 इछ यन, 806 १०६७ = ००६ कक 0 गरिव्ण्व्‌ 6 श्निण्ुढऽ रावर्ता, 27. २8141618 80]){0051४10४ ॥€ा€ ६118४ ४16 णद ४80 १९१०९७४९

¢ ५०७ धारिणी ४० 11४9०४९ माटतिका ५०१ बकलावलिका , 18 & "०५५1०88 «<

06 पृप्न्मया अफ श्वल 0 उणङ्क ४४८ 806 38 एष्व 0 88८1066 ढाः णल्लाछ४ 0 06५86 दपण; 06:86 ४०९ 010 मत्सर ( 16810 पश ) ००1१ 2१७ 0०७ ४00 8702 ५1७. तव॒ &€.--119 1०५८४5७ ‡0पयः 00019006. = यहि अनमन्यत्े- 11 7०ण (एप्प, ( प्व 10९ा८्ड्ञ०या 0 वणप ७९0) धल) 1 8४४1 ८्द्‌प्७७६ ४06 इछ ४6 पजाना6्ते 00७ शः एण्य (४ एकप्वे०्छ कणप णिः ण्णः ७१प्हु0त ७९०४ र०पाः ). 20. २७०1४ इण. 65 ' वस्सा पहिए माटविभाए मोअणं ' प्पथ्डणोण्डठ ^ २०८ ए. छा इत्णह {"6७ 9 माटविका ४४१ ४9 609०100, क्^। 0068 ०0४ &€& ६० ८०९ ४४7४].

नागरिक--14. 10०8०87) &8 = ०]08न्ते 0 पाष्टः, 4 9 8076 कप्र०क्पर०ा, 8 फ) भं ४४5६6. 105 कणत पश्डप 06४18 ४6 8806 फटडणाणट 28 ४06 एण्ड) कणत ००४०४९८७. ५००५७ नागरिका--५ &७४६1० ४४ ८०८५७००३ 197. 1४

फण 06 8150 8 [0706८ ०५०1 96. कां वयं &८.-- 00 876 6 ६0

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यज्ञतरंगरक्षेण- एण १५।६३०४्‌ ९४76 {16 8867106; 0788 {४४६ भ४४ 1९6 109 § 0१ ४४९ €. फोर धाक्‌ ०६ एशि हत्‌ & सकला 9९6, # 880 रं 009७ ५४8 {0 16 16४ 10086 106 शवा ५१४६ जड 10 कशप्छ पठ 07०86त & 0106 10 19 #6 णशद्वोफन्ण)००वे १० रलमपछयड,

नियक्तः-- ^ [‰०१०४९५ आयुषो निमित्त--ए०१? ०८ 0 ४6 ण्म #8 15. अष्टादश &-79० ४6 भणण 18 ह्णन ०००७. दाक्षिणीय-- ०॥फ ४० १९८७९९७ दक्षिणा. प्रतियाहयुति- 6४०९९७ ध)<€0 ६० १९५९९. मंगलय्रह--& 197 ६४० ४००8७ 8९{ #ष्{ णि ६१००७ ०११०७९8, 1४ ००८७४ 6 देवगृह 07 8०७ आते) ००९. विदर्भं विषयात - 10 {9 60पण४फ 9 विद, छलिपिकार--^+ नन्पा. वाच्य मानं-- 9010) 18 ४६०६ १८१. ‰. 1१9. विजयदड-- ०ते०यड कतकः ४१० 1. वीरसेनप्मृखं दंडचक्ं &.--दायादः ( दायं अत्तीपि )--6.109४४0, १७९।००. तैन-माधवतेनेन, महासाराणी -ण एस रज्क. ` सनवाहनार् रत्नवाहनाै -- ७७8९15 ८०३8, शिल्पकारिकाभ्‌पिष्ठं ( शिल्प कारिका भयिष्ठं यस्य सः परिनि नः )-- ण्डक त्ण्णडक्धण्ड्ठ पः धान्त » *७ 2. 1980. अशोकसत्कारन्यापुतया-- ४०८०६०१ ;५ ०००८६ अशोक, प्रसृनलक्मी- पू)€ छष्पत्त {ककल -4 110 ला, # ४०, » 0०65००, प्रत्यक्ली -10 ४०९88 07 #० 866 नि ००५'8 ०७० ९९8. धमार्पनम्‌-१ ०१६०९१४ ४९५५. नेपथ्य ( कुशीटवकुटंबस्य स्थली नेपच्यमिन्यते )-1 "७०४, दिष्टया # ५], ४१. रदरव ४० पाए शधणदुध 9 अ= अरि &०--3 ६५४१8 8८ (96 ७४ €५०1168.,

(1 ) १००, छ}0 ६१७ नपा 19 दषित्ते००8, ४० 9०४४ ०{ विदिशा, †० णलो पला 5 पत 5००६ (1फकेकतणम) नश्वन्ाणछः

="

101

, 4 © €प्लो६०08, 888 {€ शण 11६९ +€ हण्ते 1०१९ = गि. (ण

€ण्छ्क = 9 १०, कप एन्णाद्रलः, 90086 86) 18 19८68860, 13: 090४ (्०द्ठछपालः का) ४6 ४१९९8 +€ एण 9 {४५ वरदा, कठो , ( ४१९९७ ) एषा ४09 फश्च ५06 10068 9 ०४ १16010४8 लन, ४18. हरिणी,

¶08 #िष्डौ (0 11068 कषक ए6 णष्टाक९।९्ते 10 {क भः ४९6 करप शकण कक. ( 1 ) 7००, ध्व्ाणट पलदी ४6 $ कक्षण६8 9 ४6 ५०९008, 0888 ४7€ = शृ 0 ४06 &&"५९०8 &. ( 2 } ००, चाण तथाद्व४४ ( वलह्षार्णाङक) 2४88 "6 कण्ण ४6 9706058 क15) & प्रभृत &८ -कलाश्चते व्याहाराः कल- न्याहाराः , परमृतानां कलन्याहारा येषु (^ ष्छणानः बहुवीरि ).

9 प्रभतानां कलन्याहारेष्‌. कल-8९९६ ५१ ०१०६१००१. अनेग इवांगवान--

14४6 ४९ &० 1०१ 29 गि्ा एश ०88९886 9 ०त्‌ङ़ ` ( अंगवान्‌ ) १०० 89 ०6 अपण [6 ००6 ककण --& एण पग 96 ०70 अनग& अंगवान्‌ 10676 38 2180 & [एप ०४ आत्तरतिः- १0४४ ४९8 90}0१€0 ५७६६७४० रपी -ए1९४5प78 #€ 8 मदन, बि- दिशा - 7४५ पण्शः विदिशा 28 30 ४2७ ०४ कटो +6 ल्त विद्शिा { {46०85 ०6८, भित्सा ) 1४ ०९१९०. वरद ~ 2०06 वर्धा णण 9 ४० गोदावरी. आलानानां अङ्का येषु तैः , ए. 1. आला- ` * ( निः ( आलानसाधनैः )- 110) 86१९ {0० एष्ण०७० काण्ड ०8४8 उपोदक 1०88 शा 28 0 ०८ 0086 8) 18 = 19८९98- ९0. 05 र€ा86 111 78178168 }8६ 38 68115 सहाटकारे ( 8& ०१९ ). 1९ ृप्ण०प ४४19 रशाऽ€ 18 {08 क्र )0116 ६0९ 28 कणुगाण्् 10 8 ७0 06०, 118 1010668 €०९8 ०० 6 एषण} ४06 वरदा ४४९७ 8०४९५४९ ४06 €४७फ क़, १४७ 1६ ४०९ विदर्भाऽ.

¢. 131. (9) 706 लज उण्प 0०0 गश ।१९ कथकैशै- काऽ, ४४१७ €€॥ 19४0 ४९868 16४7760 ( ०68 ), ०) कण्ण

०.5 ०9९, पप पलप 10७ 10 10610689 १०८, }0 तदृणं २९ 1076 ४6 विदर्भा 9 15 ९९६} का 8 01४8० कृकणः शतणक

४० शौरि ( छ्ष्ण ) 09 ५००६ भक हक्गिमिणी गलणु ४15 भाप)

४8 8098 28 20 1700 087, हरिणी, विरवितपदं ( 1वरवितानि प्रगानि पद्यानि यस्मिस्तव. ) -- }10 38 दननणश्य

9 ४००६ 9 1४ ८०४९० १४० ४०४}९०४ (४०९ ८०. 1५ 15 ०७९१ (०1684१४

भव्ये शत्य स्थितं-- 1164 ७१४५8, 0५४४६ [1५८6त ४6 7१16 ; 1 €. काल। 5 (€०फ9\ ४० ४0#) गलदश्षताक्ह ४१९ छपृा०68 णप एन] फल ५७७ ५८९)1०१९व ०४८८ ५८०. मन्येय अगिरू्य अगिष्टाय, 11५ क्थकैशिकं ५००४॥११ 8 +©. #9106 | ४७ ॥५ विदं ९०णण्धाप; ४1१०. रषु, ए. 39. षणव मटिनाथः* 0० ४५१४ पलास. तव ५०१ शौरिः ५०५ ५०६९६९९ ०४९६०१५५] उभवौ दंडानामना ङः. प्रर अनीकं ८९९8 ¶;९;5109 ९०11९९१०, काते पम ^ चणक परिष इष गृहभिः -- 20९५] 9 ०४९५ १९९५०९७ शौरि ( छष्ण ) 1 ण्णः +"०७६. पि 4१ त्क एषः दाक 2११९ ( )10)) 3 ल्भोल्ते अडत्तर्‌ अन्व ) ०:-शाङ्रु 1. 15. एकः छत्सनौ नगरपरिप्रंगुवादु्ुनाकि, ' #18० रतुर ६५ शोदि-शूरस्य गोत्रापत्यं पुमान्‌ शौरिः. ३५.४४ कण पर हतकः, सक्िणी १५०८४४८ मीस, ५९ ४1४६ 9 ५८ विद्मा. ` 81७ ७४७ १९४८०४१स्त्‌ ४९ ‰+0°' ४0 गि पराध , १०४ 8)16 8९८1७॥}; 1० रस्ते छण १० ५९०४ 1; [6४ ष्च प्रणा 1०9 धमूर6 [2 ककष, कत) बहराम ९४706 8०१ 8०९५०106 एश गी र्मिः कणप तलारपल्त्‌ कडा ष्ठलः 19 ४४६९. = एण पड 0९88७ 10 975 चच 7 ६९ तकल कोलिदास पना० जला रहात, काला लपतत वोता, फठ्जेष्ड 0 अपिमित्र ( चरिताऽ. 11४० ४५९ श्रो दरष परित, ५७ विकमगदेचरित्, £ बाणम ` बिल्हण पलृल्छणलः ) कलो ४5 एलाणाफ छरा ६6 विद्र १९३८६०९१. 11686 पलाकए्ड फशा€ 0४7 पोष ४18 ७८्तछप्तड क्ककते चका ` अपनिमित्र 1 ५० पुराणा* जयशदसूतितपरस्थानः ( लवशदधैन ` सूषितं ` ्श्थानं यस्य सः )--प5 प्पशणालप॥ 0८० [४1५०१९ #/ 11८७७ कणाच दील | ( ५५ 81०१5 र०(०$-जयश द्‌ ). 7) जयशद ॥०७९ एणाणतश्व्‌ [११ 38 {16 ए^णल्ट्ुकप< 9005 पण १५8. मुलाटिद &. (मुखे स्थितं आदे तस्य तोरणं )--1९४ ४९ [9०४ ०९४०} ४४६० #९ 9०] ०१९ (प्ण (4) ¶€11906 मुखाटिद्‌ 15 ६19 १४8९ ८६ 10 ४6 स्म 9 # | 0०96. ` वरणं --+7५।॥ &१।९४ ५. 0.

7. 132. (3) 'एण््तणड् भं फक एरा० रहते ककष पे 8 ;9 छान

1. १.1, १११ लका १६ ५१४६ ५1९ णटु 9 ५१९ विदर्भा 19 0०४1९ १०५ (6 पु {0८९७ णा कप 1किलेऽ क्षम १8 कशो अ१(४१०।१०6, 11४9 4 9 10118 इदैत्पलोत छक भोाजकथाड 9 प, ४७ 9 9 ऋ, वलेततिक्क, ' ` 4

109

| सुभेतरसयोगा तरसंधयोगं सुमादितरः संप्रयोगः यस्थाः )--दृ्हभसमागमाम्‌. ४९ ऽपः शसृछूछ्ते {० ।९ 5००. द्ःवायते--3-खी भवति

एवात सुषि 6०९९ भ्ण. ( एकत - अव्यत, सर्वथा ). प्रसाधन-

शर्ैः--\4€ ५४७ 8)६311 19 ९०5०९८५ ( ९०5९० १९८०४३०४ ) ४6 ४१९१४५०४ वैद्भकं {ण्पिपव्‌ आप 2५८3 ल्वाप््छण ९०८९ तरिाह ८. 13 | ए0606७8े ©{--विदषक्र 9 8१८८।\ एनृण्ण, भो विव्राहनेधध्येन सविशेष ;

मे शोभते मालषिकौ ` सविशेष --एतपपटणावण्‌र, = पण्दुण;8<ल४पकु 7. 1338. मदपेत्ानुरःयाः `ङया-०४ ' ४८००८१६ ०६ 67 ०४८११८७ ` कपो प्ट्ुकप्प 0 प्ण

१०९. ( मदयेल्ञाणामनद्या मदपेलाया अनदतियस्यास्तया ). उतर; नाहं जनको नाधि नानदति संततिः; ` १. 1. मदपेक्षामनप्राप्य-8 9१77 1 0४ 6 वण्टणप्र००. पूर्वं चरितैः--8) ४७ 1७४१०८७ ०५५७. सौभाग्यं -- 82५४; ` भम आरंभः-- पणवना्व1णद्व 9 ५४०8४ ४० अशोक ४० एण ०0 ¦ १०४०७. नन्‌--0? ०००१७७. अथ ि-- 7 ९७, ७२५८] 80. यथाईतमानसु- ` द्वितं ( अर्मिनतिका-तो यथाईः; यथार्ह: संमानस्तेन सुखितं )--24०१० "ए क| &०४8९॥ ) ९१५६ ०००५१९९ 103 ४९ 0ज0० पल्‌ 1 ४५५०५४७० 16 पलप णश, . भालकिकाप्रोगेण--मालतिका पुरोगा ( {०७-*०००० ) यस्मिस्तादृशैः. पररि 8 इत्तयौ वन. यौवनः ४४० ४११४५०९१ 1 ?००॥. ‰, 14, वथा आह मवान्‌- ` [१ 8 8 ककण §४त्‌, इ०प ७४१७ इत पल चण

4 ) घथःह 06706 प8, [पं ४05 एलापकष] 8685800, 19 कलो ५७ कुरबक्त 0०७8 ४९ 8८४५६९७५ ६१०४ 814 ५11€ ५५४०० ४९68 876 0९60४ द्ण्कण 0 & १७0९ 9 {५५।८३, ४० 116) ( एय, पाथर ०९ ) 18 भवह ४० ३65 01086 ००६९३ 106 16. ४९१०8. आर्या

विकीर्णं &०.--विर्कार्णानि कुरवकानि धर्मिन्‌ फलानाम्‌, जादेन विभज्यमाना;

हष्टकाराश्च यस्मिस्तत. कतोः--वतंतस्य, अये ०५४ ४६७ 8180 ५४

शर्क &. भ्ल कणणते फल ५४६ ४७ कुरवक 00९08 &76 ७०९४६९७त ०9 ४0७ ००६७ 8106 , पाठ ८८८७ 816 ७०४ + 10० 38 षप, 06 एणणृण्पपतव्‌ कषक 9180

> ~^

४४. (

088०1९५4 ७5 विकीर्णानि कुरवकफलानि तेवा जाछेन विभज्यमाना: सहकाराः ।.

, यस्मिन तत्र---1४ १५ ५6 ०४०० ४८८ ९८ ५७५६ पण्य) ४७ | सूरवक पि क०६त 0१७ पड. एप 1015 ००4९ 38 ००४ ४6०९) ४8 | हं ८०६ 9 लख्कृल्ः एष # का४०४ ६१४८ ककला8 194७ १9 धल मा 609००. ०: अमर~' पातः कुरको ज्ञेयो रकः कुरबकस्नूतः ',

| दकल न्परधप ताबडीकोरौरी, इतत नेपन्यः--7० क०ष्य

104

१०९७९ 188 1669 ९5०. नेदथ्यं- -1४ ०० ज्णोन्न्ध०

०८४५४०७०४७ = {जण # १८५०९. कुसुमस्तवकैः--8) 6 एत्रणटन 2०5७8. तपनीयाशो केः--तपनीयमिवाशोकः, प्रसवमंथरः--31०् ४९७7 १०678 { मेदगामीं तु मंथरः ), वद्वं &५--81००० ५१७ ००७ ०० 1९७००४8 ४19१००१ ००६ ००७०० + ०५४०८ ( ००३५ल०द ). अन्यैः सा- कारणा अनन्यसाषारणा.

(5 ) 76 05678 9 9] (४५ अशोक ६०९७९, 19\ 8 प्ण काकोभान्े ४09 &107ए 9 ४७ अतण, ५८९, ६9 1६ भ५०९, ५५०७७८० ४० ४४७ अशोक

0088 10919 १७७१७ 086 66० {०1811९4 (.॥॥

7. 135. 75 ' उच्रक्ला, वित्रन्धो मव-~1५४० ०००,१४९. अस्मासु संनि- हितेभ्वपि -- ४१५४ 10116 ४7७ ¶7851 ०७४7, धरिणी ५1०५४ मालविका ४०

8४९०५ ०७९४८ 167, विदषक १४०8६ 16 10किप्छा०७ ति धह = एनकशज्प्य

&१त 1197 गपा ०४७ ( २११७ १५४ {. ६०५ [1. ) ५१४५ 8116 0०5८ 8१९ पणन १०४५७ ए] ॥७ए 010 दाऽ मालविका ५५५ ४19६ #9

118. १. }. अनुनयति-(०५२९७, ११९५४३ 16951019. 1५७५५००८, अनुमानयतिं --18 १४1०६ ५७ ५०४७७०४.

( 6 ) परश७ १०९९०, &{४७०१्व्‌ फ़ ४०१७, काप प्व्मृन्मै, ४1868 0 &€७॥ ( ६० 16661९९ ) 11७ ४७ ७४1) {७०१6 8 ७०११७४७ 9 ७भ]ध 9 ४५७ 1०पवे 1जप्व्‌ड, 0, ४8 1४ भलः९, 099 {ज~ ६०४५९४० ४०1 ५४७ 1०४०8 19 ॥9 ४8०१. आया,

18 ;5 न्यतिरेकालेकार ५५०१ ५, उपमा. विनयाद विनयेन पषिनये, विस्मृतं हस्तकमलं ( हस्ते कमलं ) यया-- ४० ५५8 णष्ण्णन ४० १०1 (&५. 0५ ६० {१९ लक्त्मी ५४८०८५० ५५ (णह भा & 194४5 छम ४४०१. 9 :--र्घु* 1४. 0, |

' छायामंडललक्ष्येण मह्या किल स्वयम्‌ | पद्मा पद्मातपत्रेण मेने साप्राज्यदीक्षितम्‌ '

नानामि &०.-- नपाल 806 ५४७ प17७९द पणि फक्त वृच्श्यः | 9 09 1१७0008 0 8016 पशश 1४8 09 ६6 ®6्ल मे वेत्य ६1 र्क्छे ४0 67 ७४००६ 96 ०8111४९1} ६०1१. 8५४ ४४७ 1४० 8०००0 भल

7१०४५१1९. कौतुकालंकार-- ०१५५ ( द6 ) १०८७७. कौतुक--ए०७५१० | ००५१81०0. [१ ४180 ००७९० {५76011५ १७७७. चितिनौ --100०9, इ्षिणेतर- ~, 8०७ ४०७ ०४ 11, # अहो अपोगको ' &०, प्षविशेषं ` =-१०[भ 11, \

105

| ॐ. 156. (7) फल्मण्द्‌ अर दकाल ( दुकू) ०६ ०६ तेछक्ण 150 छि, 2० 0४ ण्टट ` क़ & {छक ०ाकणला{8, 6 अणक {0 6 111६6 कः \ ष्ट ण, चैने 1 कठो छठ पत्ना 8 प्डः भणण 6 प8९, (ह्सानः पप लर तण्ड गा उवा, 1166 पणण {१०७६ ( 5 ). दरतविटवित,

उदय &. --उदये उन्मृखश्व्रौ यस्यां सा उदयोन्मुखचंदि का. उदये उन्मुः शा चंररिका यस्यां सा, ( 1 < 05४ ०९७९ का ९०६ » वटर ९०8४१00) ` भृतं ( ०? हतं ) हिमं येषां तैः, अमिप्रत- ९51" ०४९५. सकेतगृहं --1३९०१९८- 008, , 719९6 9 8ल्ला७# ९९०8. कल्पितः ( संकस्पितः )--1०6१९त१ 0 ` त९अष्ट०€्प. तरणी &८.-तरण्य एव॒ जनस्तरणोजनः, तदणीजनः सटायो यस्य (बहु ) तरणो जनस्य सहायस्य ( तदयु, )* (71०९ भुणएषप्टण्ध तदर्णाजन १. 7068098 इ0प्रण्ट्ठ 1१68 9 ४6 19, भाला 6 38 9 ०८८ एल96066

भालविक्रा, ` शेठ+९९० ०4

ॐ. 151. (8 ) 1४33 ०० च;5 अशोक शन्णत्‌ ००६ 96९ 6 त्ंल्ल कण्ठो 100०5 फ़ ध,< पृप्श्टा --796 अशोक, छ॥०, प९६भत]९88 चल गवलः भं रश] वले, ( 0० ) पाश्0116818 175 7880९6४ णाः + रणाः इडल008 ङु ( प्ण एषी) ) 00९३, शालिनी,

नायं &९--1६ 5 २०४ &. 3. ०. © पृण ` पदशश ९७ &९. ईदृशानां &.-0{ श्ल) शृल्लभि कका प्०ण 88 38 कतक एए #6 वृष्टये लः शरस 18 ४0 81६6 1779. 00 कलऽ. सावज्ञ-- ९8701988, २०४ एष्ण्ण्ड् षतो ¶०श एत धोणड 800 काण €0प+्लण, माधवश्री - 6081 मक्ष. नियोगः--07१9. यौवनवती -प्र०४०९ नश््थः ४णत 6णभु शाकर8 विट्षक, 0 0०05९ यौवनवती ॥© ०९४8 माठविका, 28 का] ४6 हरवला ४९ (0६8 8]€ब्५्‌ = एलठकर, एष ¶९86०१९त्‌ ४९6 4०९७०, क्र 76 1९०त$-२५५१ क्श. संनिधिप्रियोगः-- 8९४४४०४ (फण्ण्ड ) एषण्सापाक्त. & | ८9) भण 1९१9 चक्रवाक; "5 ९10१९ 18 171६6 18 781९ ; णत्‌ धारिणी, 9110 १०९७ 2०४ &]]0क़ छपा प्प्णा, 28 119 #5 फक 6 ०३९.

9 + कि. 4 प्र ^. नत ` र्थौगनामा-र्थागो नाम यस्य सः-- फ1086 0806 18 9 कृषा 8 छक्र

1 (१. ९. ण) €छ] ), १९०९९ चक्र 0" चक्रवाक ~ 1९१९ ००8९. अननुज्ञात &५-- षऽ पजणह # 176 णकण्छ० ४४६ 0० [न्त०ह ९०४९ चक्रवाकं 14

-©1०5९ भ<क०ण , शृच्लंन प्त, 1४ हल ०8 © 1०८०५१९. 2. 139,

{ ४८०1७ ). स्वरसंयोगः---1“11. = (०णरफलया ०9 अकल = इतणड

106

चक्रवाका "०७ ॥णण्टो) 70 पण एष्ण्सप्णक्त्‌ वपप्ण्डु #९ गौनर मकण 4 ०५०१००४ ४९ ८०४९१. ° :-शावुँ = 1४. शकृन्तला--( ननौपिकम्‌ ) हृदा प्श्य ` निनीप्रौतरितमपि सहचरमपरयन्त्यातुरा चक्वा्यारौति दष्करमहं कौमा ` 4150 रघु 24. * र्थागनाभ्नोरिव भाववधनं बभृव यतेम परस्पराश्रयम्‌. | #180 विकर ° 1४. 18. रथौगनामन्‌ वियुतो रथागभोणिविबया | अयं त्वौ पृच्छति ` रथी मनोरथशर्तैरत

2. 198. विदर्भविषयोपायने ( विदर्भविषयादपायनीम्‌ते परेषिते-- 11४६ भक९ 8९1४ ४8 7९868 णय {9 विदर्भं (छप, 1४ 18 एलः #० चब]७ 3४ १8 ४५}८८४ १९ १५70६ शित्पकारिके धा 00 3 {6 1०6१७ & 72४०४ #लछ8 ४0 1४१७ ६६९), तस्मिन्‌ ४6०६ €१०४। तस्मिन्‌ कले छः तद[ ४७ 8)0017 ९०४४४86 ४) १४५ गोम णहु सपाप्ै- 4 ५४४ ९, ४६ ५७ धप९ फोट (९ भा ए९त ७५९. शित्पकारिकि-7ण० णऽ (भेलान्व) कटल्मणा- = ` 81164 19 9118. अलसशरीरे- 1५86 [€ा8008 ४16 197१५ ( १०४९४९९ ). देवोपस्थानयोग्ये-- (० ४81 (१०४? 007९) कण्ण ४१९8. इतिरुत्वा-89

४५:9०. लोकवादः "०१४9५ 8951६. आगामि-^ 17०५८४६, आगामि \ | ०.--1)46 81816 0 यत 1701९9168 {प0ा९ 0890688 णा क९. ८० 1०4८०68 प्पा० 089०९७5 ०९. अभियोगः ` `

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अभिविनीत--1०५।००१९१. ९, 140. चंदनं खट मया &५-६७१७॥, ११९९ ॥% +=

€» १€)6व 06 $ ०81४६ 1४ 98 9 8804}& { भाश ).. इर्यभूता-- प४5 १6१०९८९ ६० प्ल), 9 8॥७16. 2. 141. विषिनियोगः-९०७७ ५९, =

दायादवशंगते- प०४०६ {911९४ 1110 #9 [कथ 108. 1095708. उन्दित्वा 8९१६ _ ४७१९, 168810 ५8:0९. पुतं शरुतं त्रतपूव--प्च्छष्धे भाणः

१९५०० १०१९९, ००१० 81०6). शाकं ४. वीणायाः स्वरसेवोगः श्रयते `. द्ःखेन-- +) ( ४१८४ ) कलमा, = विभान्यते--1 ८५५५९ ०४६ १५८०६०४;२५५. 2, 145. आप्तवर्गः-(धप्णेर 0००8. अनमवत्याः-दमलिऽ ४० माटविका, दत्त॑तशेषं-- 171 गशणभ णाण्ट् [षष एला ऋलत०्प्णौ+

व्धम्‌- 8० (८ प०१९४।००१ )}. तथागत &-- फर )०७० षणा पत्पपल्छते (0 ४४४ €0णकात्०ण, अपवाद्म-- (भण भकु, सवतकणः मवत्सवेधापिक्षया-- पथ्शाण्् 7 शकक कुणपः तणणफषल्कण. | १यिकसायथं-- 1 ए०दः प्छलोलः अनुप्रविष्टः-भपल्य निवि्टिः-- ०८१०], ¶० 1५ ४१६०८ 4 विन्रभितं % 9 [०८००९ गतोऽध्वा येन स॒ गताध्वा-

107

छष्त 4्ष्छर्लान्त्‌ 9 कषण ५06 ०४त्‌. पमु (10 ) फल भल्ल > अपण एकवणव 9 कणा-भुलाञ फा ५४९ ००८० 0९फ९्लय = ध्लाए = अए08 14606 = ( ९८०३६्त्‌ ) ४४७ पणपग्डाः-उ908, = कलबाण् 5 0 660 श्वलाऽ ॥पट्ाण्ड १० णलः ॥द्ला8, >पत्‌ का 0०8 70 धाथ ४०९8, 1088 ण्णप़ ०णछः कड एथ प्त ६0 एड <. = | वसंततिकक

| ५. ४, 1. नणीरबेध 4५. ०७४०8 6 89716. ए. 1, आकर्णं. &५ प्शणडण्ड ०० ०८० ६७ ०००७. ९. 143. वद्धयुदाः-ए०६१४० 0४. 5 प्राङमुषी छ्ता-- ©७ एण ५० &7* सार्थवाहः धश्रया ०३,

16 ॥.

4 (71) 0९ ५५६ एष्ण्छालः प, 0 ककष ९४८ ४0 5 ` 1०्व, किण ४० उठ एलः पाष ताञ, 00 कथ अदत्‌ ०६ कण 0पाा प्ण, नृल्पत्व 6 १७०४ ४0 08 10प्व्‌ ३४ ४06 ९०७४ ०६

४15 0९० 1119. अनुषटम्‌.

परिप्सुः- 490०३ ४0 पर्ल, दूनति-” 0750९88. ए, 144. समवस्था तदत्ता-- ८५8 ४९९४ २6०९६ ४0 8प्८]1 & ९0तप्च ज. तनुमृ्ता-- 07 ०९18.

लोकयान्ा-- (०८३७ 116 ०10. तन॒ &८--1)8 18 ~ 008 18 06 गपा ०0४४२

९०८८९ ०६ ००113. , सफ्लीरुतभर्तृडः ( सफटीचख्तो मर्तिडो येन सः )--

1086 1083 {पत्‌ ६0 ०86 ४16 20756]8 ( 9६ 10० ) 9 5 08516.

मोहमुपगता- एमा ०८० » ७१०००. संजञामुपलमे _ दर्धसण्डते ` 1४६० 50० संज्ञामुपटभे-- ९८६०।०९व्‌ (८०४ . 8७००७०९७३. दूरकम क<-- प्र ४8 ००६ 06 ६९००. कच्छे -0फन्ण्. अभि- की

सात्रङ-19 ५०४5;&० 8९, (०४८४. पुलर्नवीख्त॒&८--रण ६७ उछातछक

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1.कव ९६ 0८ १९४६ प्क १०७०७५०. अवतीर्य -प५१;०८ ८००९. काषाय-- £ पमान छक्र ५८९08 ( ०४ प्वता0;5४ 00018 8 पप्र 9 ४०७ वभक8 एचक्छवा ण्ठ ५४५ प्य 0६ एछृह्काग्णड प्दाताल्०४७- सन्यासीऽ 0? ५७ 17९86४४ 4४7 ). = पंथाः--(0४8०. 211, 907४ 76०

066 ४०४४ उप्वताडप कड 681९6५८ ४४ ६16 क€पम्व्‌ कोल ४16 तत्धॐ ४३ 1160. [४ ५४8 106 80, प्र व5 = छण [्ठ्वप्ला०. आपरत्रिकः--

4 {07९91 गता--6०४० 190 ५५ ॥४7१& ०६, लब्धप्रवेश-- प्श्णण्ड &० &व59००. अवसान-- 12५0, (०५०५००००, 2. [ 45. किन्‌ खल

द-प ४६ प्ण 05 पठञ्च ००? ए, रणत मोडल ४० ०१८७ ०६ दणि [ णठ्फ ] 15 कललः ४6 णद ५८ १४॥ प्यक लाः फा पठ भमि एव्वपणड्‌ एलः पण ०१ ९८6 ७५८७ 1 ४€ १४१६ भजकञ, [ चण, पताणद् पजा हक्य ४०४३० ४9 6) पण्द्वञ विल्लङजण कलिः 6 ४४ 0ल्भते {16 १००१९ अजक षः |

शाकुं ४. ' शकुं किन्‌ खलू आर्यपुत्रो भणति 1

अहो--^198 ! प्ररिभवोपहारिणो विनिपाताः--6१)४४ ९8 नि- ` पाताः ) पण्डु ०५) पप्णो ८८ ( १५६४६५०८). परिभवस्य ~ ५.1, परिमवोपनिपापिनः--0००० ०९०,४९. १, 1, परिमवप्रहारिणः (५1०10९8 = अप9 ०६५००; शाकु ४, रधोपनि- पातिनः अनर्थाः ' | 98 ( 12) ल्ल 06 पल 9 9 १०९८० 88 306 8, 6 ४86 19- 0५५ ४€€४ ०७६ ॥\४€ 818१९, 28 अधा दभ ०७०४ 8 ०७6 ७7 ४७ एप्प0०86 एक इभ्ल०६. अनष्टु.

्ेष्यमावेन--8 9 ७1५९७. प्रण ( प्त्र॑--1,५९९, ` उर्णो-- ०० )-- 81} &१८०९०६. अभिजनवत्ती-- ४०४७1७० ५५१. शाकः 1. 18. अभिजनवतो भर्तुर्ाव्ये स्थिता गृहिणीपदे. ` शातं परापं--0० जवे ४४ 1 अ०णव्‌ ४५ ५५[न्रल जं व्ण 8 9 अप. कारगेन-- एजः 9०४७ ` ( &००व ) ८५७००, मैमत्यम्‌-81५५०. ए. 1. न्पून्यम्‌--11:11८5००८९७ ४: ४०१ सैभत्यम--४०4०5४, पण्णा, लोकवानागतेन-- 0५५1७ [णु 701{4.1 {0्, 1, & कल [ग्णद् 19 (05 जभ कमत, लोकयात्रा 18 ५6 #५भ ४018 116, ४: 3णुछ, ईदश लोकयाच्ा &&, ` ४५.11 111 ०५५5 देवयान्नागतेन रशिवददिशकेन॒ &०-छ {०१००-६ णद ०७०७९ भ] ४4 ००५५७ (० ४५ ५०1 -००८७अ००. तिद्वदिशन ( सिद्ध अद्धो यस्य तैन )~ 07 ५;भोल एष्नलप्यद्पपकषा 0९8, = भ]0०56 = (0णद्ुपर लछम ००४ ४९ ` ५15९, साधू-^ प।४।४९ [«ष०्०४ ४९, ००७ = [०७७९०1४ कपल ००९8 {0 कणप, 0--रत्नावलि 1४ 16} ९५५५८४। स्वय ४५४, सदशभतं «० ण्पेतवे पणोन्ल्व्‌ कपि पातन चकते सः शाक 1४. 12. संकलिषितं &०-मर्तारमात्मसदशं सुख्तै तावन * = `

{१

अव्ययं भाविनं--४र्य-णणण्टठ ५०९, ४०९ पमाः, अदेश एत्मृणन्छु, परिणमत ९००४, ४८०६ {181न्व, काट &०-1५

५०[०५१४।१५५ 9 ५५ एषण ५५७. 2. 146. अपेक्षा ५१६ एण,

109

कष्ठ कारट्ण०४ परविश्य कंचुकी ? 10, 2५०0148 व्वाकचण ` -कंवुकी 06७ 1015 १]6०४०९6 }©४ 16 19५0१०९८७ ४8 ४79 1४458 18 ०० फ6ा6 फञछ०पल्त्‌ कोड 06 कल्य - तिल त्छप्वः, 36468 कथौतरेण &० नान्य] 5110608 ४0४6 16 28 4 [अ४दणणड् ४० #6 ३५००००४ 9 पतिाजिका ४०१ थण 0 08 (णण 0 वला च्छः 18 २०९३8९७ क160 पृरिजिका'ऽ ५०००१८४६ णपा 06 ण्य, बधोतरेण अतसं -- 0 98 ३९]०४१५६०१ ०८ एप ०० पालष6ण४ = अज 4 1 कनन 8),] 9 ॥113 18 16 [गाजक्षाण्ठ ०९७७8९9 9 ४0०6 प्षापाइच्मः,

दर्भगतं &८-- पा श्वभ्य ४० ( ४०७३८१३ ) ५९. = अनृषेयम्‌-- ॥४४ ( गण्ड) (० ४५ १००९. अवधास्तिम--18 ५००४७१०५७५१. अभिप्रेतं 0००. दराब्यं-- ०16 &०१७००५७४॥, २५९ ०६ ५०७ ८७०. = अवस्थाप- वितु--19 ९४।९॥।७॥ "44 हः, 1 # 7.

(13) 1. पल्ण पपात, इलृकभलुङक 0 नल पणतालप भणत 8००४७८४ ४४०१६३०६ ४५९ वरदा, ४5 ५५ ५००1-१५१५५ ०४७ ( {000 9) ४०६ धल क्न न9९त ००७ ( ५५५ उप ) गण वाश्व एलफल्छ्य

, 1४७ , ५४७ ०६५४ ५५4 ५५७ ५४). अनुष्टुभ्‌,

लक्तं द्वं विभज्य--1416. 4167 वापकाण्षट ( ४५ शग वभ ) 9

०३६४ ४४१ पम, अमात्वपरिषद्‌--५०५५। ५६ पा050918, (६००८६६४, प्र

ति गनिव्यात- 1 ०५ ००५५।०।५५८५. #, 1 4. जीवितसथवः -॥49198 ५०

४0 ५४०६& ४५ 118 119 ५।१& 1प ४७ ७०७७८३७० 9 118 छगल +8 * कंल्यार्णी--ध ५५९1०५8) ८०४।५. बु्ि-- व. दशन ७, [५६९५६७२

(14) एव्छतणटठ ४७ मपणड तएवल्व्‌ ४0 षण (कृष्य) ८७ ०४७8 ०९५०८ एष्डतण्ड ४७ ०६९ ५५०९ णद) ४८०1688 ०५ ध८८०पण४ 9 पप्य कन्य) भा १०१७ १.

४४८ वणप १५८८-9 ५५७, ( उ्देहवजा,

उद्रहतौ हेती- 80418 ०}. संधरहीत -- 0४6 119 10148 एश18, 0668 006 #10 ५०।७८६४; 16७ ५][011८3916 9०६" (० 0०4६० ५० ८. परस्पर «०--परस्रस्यावधरहे निर्विकार -,०० ६० ५७ ००१०७ 9 - ४५ ~ €6}) ०५७८. प्रा भतक-- [1 ०५००।, ` स्व ` ~ 48 ॥०१५४७१,-{0७ ५०५१५५५५१८८ पुष्पमित्र, देवस्य + ॥५५ » 1९9[५८४

पपि वतय ४44नव (७ पुष्यमित्र, 0५ ५५५ ०५५०६ तेनाप ४९५ ४५८०

119

गणा ९.18. , 148. सोपचार ७०८८०००. उदरेढवति- 02९०४, `

ततो मुखमेव &०.--0५ १५५ 8 (५१०ब (0७१७६४० एथ वे४७।१०१ ४७ ३४६०४ लपृच्छणड्ठ ०९७४8 0० ५००८ अविकारः 1०१०६ ५१० क, अतिमित ण्ट ४९७ 0960 अण्वा कातो 18 सिला ०0 भटठत्र 13 पालः 0४ रण 86६ 118 809 ६0 ४७ ५४०७ 9 ४४७ 0७6.

अ.) 94 अतिभारः--68]0015:019 ५॥५"६०. यज्ञशरणाव्र--ए्जय) ४५७

8961106४] ९०४३००० ( ००५८०७०९ )- ०--शार्कु, 1४. अप्रिशरणम्‌ ' & मिक 111. अनिवरणात, अनुदरवति--०४. विदितम्त--

19 ४०० ४0 3००. राजसुययज्ञ- + 8४048८७ ०र्धमणः

०] "फ़ पणएलाडा फजणक्ठो5, २४४७य०१९व तपण [अ१०५९७.

दीक्षित-0००७०९५।०५. आदिश्य - 472००५०६. संवत्सरोपरावर्तनीयः- 1 ४6 छाणणड्०४ ४४८६ भल $€, = निरर्गल- 0१९८ त्य तान्य, एः- ४४७ 1७८ 1००86. = यवनानामस्वानीकिंः = &८-- ५७ ५५०९१४०

7०प४४व 9८03 ४५ 0८८४8, 1018 = 1प्लवलत४ फक्क 85७ ६४५1४०५५} रल ट०& ५७ अभिमिना» 1 ९५५०४ 9४ ६॥७ ४००९

काटिदास, “10५ 1५८४, 91८०8 = ५४०१5 10 (ण्डा भः ४७

21५८7१9 9६8 एर्० 6 <ण्वे भं ५७५ उत्वे व्लणन्पक्‌ 8. 0. भणते

8७6४५1६ ५५ २५१} ४०१ = 81५. [४ ४9 धण्डड 9 &००४ ( ४. ©. 240 ) पषल्छ फ्ष्ड पक कः 15 ठभन््‌ हिकः, # ४५६४ एव्मण् 9 ४४७५ कफल, 19 ५५७ ल्भ्य 0०६ 9 ४७ 9९८0० (्व्ण॑पष्फ 1. ©, + ४0७ 2४४०४७३ 0०यवृष्डल्व 4४ ४० 0कषथप १००८४ 180 8. ©, ; ९०७00 ०० ००ल६७व्‌

धल, ७०४ पल पप ७४९७ ए७पाभप्९त्‌ प्रा ४४९ तिठप्रलः कष्णकत्रव्ठड प्र कठ {०१४81008 9 ४५ 1०५०-३} ४५५४8. ' 7. ^ "७ अन्वानीक-- (भण,

109००७०, = रोवस--~ 2४०४ प्राधतः-- ©) ४।५९व्‌ ३९य९्त्‌, ४।७९}६०५.

-- रघु. 72, 56. त्यां जवनवानिगतेन राज्ञा ' ५५ संमर्दं -- ७१८५४ ००४।९॥, ८८० अपणद्टा०, नः--रघु, 1. 57, बभूव युद्धं तुमलं जय विणोः ' &. ५150 रधु ४. 61 &५. 8.

7. 149. (15 ) (एल ष्णु कल्ला जार) ४१५६ ७७8 एला?६ दध 6त ४७४१८ ४9 ५९ 9) जिर) 1७8८0स्त्‌ रमित {9

एप्प) भध्लिः 1४ दु ०लार०यत 15 ९०, अनुष.

111

आश्वसितं ~ 87681105 96917, 1918 8 ९88९. अशुमत्‌- ४७ 0 सगर -५४त {€ दिलीप, सगर ७8४8 8० 81160

कण 18 एलण्ड एण्य गर्‌ ( एणं 3) = श्वण्णणअशण्व्‌ . 10 ४3 पमल #€ कः8 3 18 क्रलः, पठ क्पणण- , 99 अ9606९8 5१८९८७1] एण ४४ 116 प्ण ४6 0ण्णतः6- ¦ €0# ००९, 18 00788 ण्या 107४ ४० दकः€्त ४0 पाताल, ०६१४8 60000 8008 फएशा९ 16शकशणा?० इश( 8687670 °

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हीनं हामैः यथा तथा ).-- 110०४ वलाभ्क. पर. 1. काटहीन-( का- लेनहनिं यथा तथा ) फः ॥0०ण४ 910 काण ६०6 0 958 कफश. विगतरोः वचेतसां -- ए; णपा = फ70त 766 = प्न आष्टा, 27, २990४ एन ग्य ४६ 06 एष्णृणण ०9 विगतरोषचेत- सा श्ण्णत ००17 ४७ ८०९९९1०० इणणृण्यण्ट अभिमि ४४ केडभृगष्छल्वे 158 निताला8 कण 8९४ छण "९ एणा वसुमित 83 09709 ४९ लछ्पाष्लः, एप 1 पणः ५४४ ४९ स्षात्रय ए96०४8

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119

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(17) पण रल कक कष्य कमान रभण्यः वक 10 काणतेप्८ चड०णहलाद 0 छपा पफोणत्‌, क)०86 [त्ति कते प्रणष्ड 8४119115 800९८ }8 #;8्लो६, ४8 अवि ( ४6 भण) -४०छ ००९)

४06 "6 ५४४६ उ०गाहण€8 कालः | . इद्रषजा,

वीरविजंमितेन वीरस्य--र्वारथस्य विलपितेन )-- कालश शपाप्णा 9 ` प्लणभ. 80०९ ४७९ वीरस्य विजंभितेन ( चेष्या )-- "6 608 86 कोलो त०९७ 7०४ 0४ लार, अप्षुष्यः- पच्छा 971९, प०४७8811871९. ऊदटज मा--00ालः 55 तभाष्वे अवि » 809 9 <यृवन ।7 118 16 आर्षी ४१०१ 9980१) मगु. 706 8०5 छतविं १९९४०१९ (16 १५8९९१०४ भयु 70 नतला १० ॥८्८०च्छाः #€ा# 169 0 करय एङ पलप किलः, शरक्र शला #)6 6ोरतिष्ला + #€ कक, आहषी 3४ गतः #0 कषटड्लाःए९ [लः लप्राक० #तला९।क्ते 7 कलक हष एला०९ 6 कात ७४ 5 फण कच = ल्भात्त्‌ ओर्व, ०१ एनागकण्ड फण ॥€ 80०8 9 तवीय णला6 शप्टाः का 01949688, १7 तजक 18 7811) [१०९८८५९ 8 की्रपठ कड पर्ठ्डह्लाक्त्‌ वच्छ ४6 ककत, = 19 70 ओर्व, ¢ {16 [98०४० ४6 5008 9 भृगु ( भार्गवाः ),

०४5४ 1४ 390 6 णव्लय 99 ३४ गणफभंणते = 0ण्णल्व्ल्व, फक्कण्टु 6 1५८6 9 10786.

` थज्ञसेनशालं- 718 18 ५९ मर्यसातैव र्णलशा९त्‌ # 9 १५ 1- 7 उरराश्त्य ( आदाय ) -!१५०१;०४. अंतःपुराणौ-7० ४१० णता [१ ॥९ क्छ, 7. 151. यन्मया प्रतिज्ञाते -1॥6 [7०९७ ला८९एशशतकत्‌ #0 8 च८ कषणकंन्दे ` ९० ४९ पणप्े ०८६. ०६; अमिलाषप्रयित्‌कं प्रसादं शस्यामीति ? & `

भम वचनेन इरावतीमनुनय १९१०९७८ ( 765०५१० ) इशक्तीं ०१ पम ७९।।४॥१(

71 ४४0९). भ्रशयितन्या-ऽ।॥०1१ १४६७ ( ) ला ४७ ००. ४. 1. तया ख- अयं संवादो शष्टन्य हापि- (18 भ्ालरणला४ शकपात्‌ ऋण 9 कणप १, फ़ ३०४. भेनृषा &०-- 6५5} ९६ 1४४९ [ 6८००९ &€ 1. ९. 1 एकत कर्ट्छज्श्त्‌ प्रोकणङ्न कफकपाला+8 कण धनप, साधारणो 4--10)8 धतंण्णकृत 3 ९०० ` 7१0० #0 कल & ८९. अभ्युदयः 40००७ एटतवलंण), कण्ड्‌, लंक), 7.1 सदशं &०-11 15 004 एणृष ११६ 300 ९1९80 १0080000 [णा११०, 15 एष ष्णु ४१४४ $०0ण ९1९५ 0शापल्ते कष्ण),

॥.

पा पा ०.८ नआ जि कि) ¬ मः 3

118

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1० पलनण, {= कर पणतजर्प्ते नन्‌, 6 ज०।७००७ जण्पात पन) (1 पतव # श्दष्ण्व्मणक उण्णा कड ' प्रताद्‌

मत्रेण-0४1 १००००५।१५८००. _ अनुज्ञास्यति - ००४ चरिता- यं ४8 ०६ 218 ०९४ = शव्ट्मणाोनन्वे, ४95 हज ४18 0687760 ०४०५४. समभाजयितु-19 एषम (ष्ण ) पएव्गृष्छौड १० ( ४८). ¢: शाकुं. ए. ऋषयो देवं समानापेतुमागता इति. ` यदि ते ्रसादः- अण्ण नपय उण अण्न 80 पत्रलो िज्छाः 19 , &\९ ८०७ 1645७ (0 पगृ. त्वामुदिय- भधा षः भः ३४ इछा (णाल = भता५8 ( ०७७७6 ) पण १०४. परवान्‌ 1°€ण्व०्णा, + (0) प्भ्क्ठ भक, वन्छाः ००९ एष्णूधणाह कणत 09206 = 0 भक्िधह 296. 350 णप्छो १० 1 पनम 9 १०४४ णण पण्डा. ताऽ अन्िमित्र प्णाण्ट, पना७ 8 ०० » क्कण्ड ४० पन प्णण०णा जा तथ्य ४०७ ( शलो 9 हुति ४० ज्ज ) 9 ४७

| 1.1. क. 8... ...1. वसतातिरक, वड 146. ०५ ।ग्णाष्यण्व्‌ 190) प्डण्भा़ ध्णागुश्ते 8 ०६

श्ण ४४ 09 अण्ुदाः 25 भक्ष ण्डु ००६९ ४० नः छणपात्यृषलयध ४6 तण्ड प्श्वप्न्डड एलः ४0 6 भरूध$ १९ 0: स्श्त्व्ण्लभ््०य. प्रतिपक्षहेतोः-ए० ४० 88७ ए0प्ः पर], 1. ९. ¢ मालतिका. .158. आशास्यम- ्टाचडण्ड (४०८० ), ०" धणे १० 06 49-

छं७१ ( ४7 ०९ ). काययवेम ५४६९३ 2४ 7४ प्रजानां ४०१ शसेभ०8 1४ णि अवेक््यवस्तु ¶06 तन्डा्छ्वे ०णच्०४ 8 इण]. ` इतिः-

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एः अतिवृ्टिरनावाशः शलमा मूषकः शुकः प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयः स्मृताः 800 २6४१ 9 ४16 86007 1106.

स्वचक्तं प्रचकं सतैता ईतयः स्मृताः ©५--रघु. 1. 68, निरातंका निरीतयः &,

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1 पा) 1 ध6 इव्णलभ्‌ उणो ५छत 97 भो 98 कायान 6०0 ?

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26 (१७ ५०१४६१५४] 1068 ०1 :-- स्वपक्षशियिलभिमानाः, अभ्यन्तर, आगामिन्‌, कौटीन, अलं परिदेवितेन, मन्मथ, उचितः प्रणयो वरं वितु, सह्यतां, लन्ज्‌, शक्यमिदानीं जीवितमवलबितुं, मे मात्पकिकायां कच्िद्थः, म॒द्रामधिकृत्य, प्रभ, कांतापराधकूपितेष्‌, विनेत्‌ः, कप्यसि कमेः वमधि, चिकित्तित, अन्निसात्‌क, त्वमेवास्याःप्रभवाते, कुसुमित, माधवसेनं मोक्ता अदं, एकायनीभता, स्यामायते.

27 पाल ल्क ४६इ ५06 गाम्क्णह कणत8 98 ०86 10 माल- विकाभिमित्र :--

भाविक, प्रार्थित, प्राभुतक, आरंभ, सिद्धादेश, आत्मनीन, ८, म्रतिपत्ति, तिरस्करण, तिरस्कारणी, क्रिया, संक्रति, सामानिक, `

रागबन्ध, आराधन, परिग्रह, परिच्छेद, पर्॑त्सक, अव्याज, सभाजन, विभावय्‌ , संभावय्‌, प्रयोग, नाट, कौलीन, तपस्विनी, उपक्षेप, प्यवस्था- पय, उपचार, प्रतिष्ठित, दाक्षिण्य, मत्स्यडिका, पीठमर्दिका, लक्ष्य, परि क्षिप्त, अभिविनीत, परिकर्मन्‌, वंचित, धृति, उपरोध, समापातति, अन्य पक्षा, विनुद्‌, सारभांडभृगरद, रुजाविदस्तचरणा, उपन्यास, उपक्रम) ८९ , आतपुक्रांत, प्रत्यद्रम, समवस्वा, परमार्थ, वस्त, उदासीन, निर्धना, अन्यसंक्रांतहदयः, निर्भेद, अत्याहित, मार्ग, उपक्षिप्त, दं इचक्र,

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( \\८ ) (ठ, >

यातव्यपक्ष, शिल्पकारिका, दंड, प्रसवमंयर, संकेतगृह, उपस्थान, अभियोग, स्वरसंयोग, अपवह्‌, अनुप्रविश्‌, गताध्वा, च्येकयात्रा, परिणमंतम्‌, विदर्भेगतम्‌ , संमर्दं, चरितार्थ, ईति, निर्वदधुम्‌ ,

28 १०४७ 81118 10688 {50 ०धालाः ता ६8 0 {16 94706 १1० अः 0 0 8प््ःजाड ४0 {06 जाम्ण्षण्द --पात्रविशेषन्यस्त &५.1. 6 | अ-

चिरधिष्ठित &५. दर्यं तमसि प्यति &.। पंकच्छिद फलस्येव निक- षेणाविं पयः श्यामायते युष्मासु ( विद्वत्सु ) यः काचनमिवा्निषु आमत्तानां श्रवणसुभगै &.। क्र रुजा हदय &८.। कुतो विभवः स्निग्धस्य सखीजनस्येमं वृत्तांतमाख्यातुम्‌ कार्यसिद्धिपयः स॒क््मः स्नेहेनाप्युपलम्यते |

निसर्गशालीनः स्त्रीजनः विस्मृतहस्तकमल्या नरन्द्ररषम्यावसुमतीव 29 @००॥७ ४९०९8 {छि ०६९ कता (78 8 प्तः अच्छः #0 †996

निन्मण्ड :-इमं भुजंगभीरुकं ब्रह्मवेधुमनेन भुजंगकृटिलेन दण्डकाष्ठेन स्तंभांतरिता भीषयिष्यामि; अपिहा अपिहया भो दर्वीकरो मे उपरि पतित बकुलावछिके एष वाद्यडोकवृक्षस्य पट्टवानि हरिणो रंघयितुमागच्छति एदि निवारयाव एनम्‌ , प्रतिपन्न प्रयमतरः संप्रति सेवावकाशोयम्‌ देव्या इव धरिण्याः सेवादक्ष परिजनो ऽयम्‌

30 61९6 ४०६७ {16 {गोलक ण्् शर्मिष्ठा चतप्पदा, चतुर्यवस्तुन अपि पंडितं मन्ये &०.८ 20". २५०१४ »००व०६ एन० ), नेपथ्य सेगीतकम्‌ , गृहीतक्षण, अरिक्तपाणिना----" द्रष्टव्या, ब्रह्मवेधु, वणीवर, शठ, दानिण्य, चंडी, परभृतिका, रक्तचंदन, आचारपुष्प, योगक्षेम वर्षवर, सोपसर्ग, पचबाणाभिसाक्षिकम्‌ , बिक, केवलमपचारातिक्रमं प्र मामयमारंभः, नागरिकि, विपणिगतो बलीवदं इव, स्वास्तिवायन, अपरवैणि गृहकल्षेदुमंडला विभावरी कथय कयं भविष्यति, परित्रातस्त्वया स्वपक्ष क्रयकैरिकान्मध्य कृत्य स्थितम्‌ , दक्षिणेतरमपि नयने बहुशः स्फुरति, अहं रवांगनामेव प्रिया सह चरीव मे अननुज्ञातसंपकौ धारिणी रजनीव नौ सफलीकृतभतुपंडः, पुनर्नवीकृत्वैधव्यदुःखया, युक्तः सज्जनसथष पया, लोकयात्रागनेन मिद्धादेमोन मारिषा, निधो दिप सेधसि चरन्नश्चानीके यवनानां प्रार्थितः, सो {मिदानीमशुमतेव सगरः पत्रेण प्रत्याहताश्चो यक्ष्ये विगतरोषचेतसा, वहुरपां दग्धुरिवोरुजन्मा, पैचांगाभिनय, चलित, पुरुषा "9४ अध्यात्मविद्या, अंतपाल, चतुष्पदं वस्तु, मार्जना, अन्याजसुंदरी, `

गुण्य,

{ ५९९ )

31 19 गाणर्ण्ड् ०७88९९8 8६8४8 क]1700॥ ए८तफ5` एठप एण @70 हए एप 16050105, ४7808181 [०७९9९९8 66 पकतल्डडधृ (सवरूपय ( ₹. 1. अपूर्वेयं ) दारिका किंनामधेयेतिं ("स्तै पुष्यति भानोः परित्रहादनलः ( ,. 1. भानुः पररह. दहुः)) अङंस्वपक्षावसाद शेकया पराजीयते केनचिद्‌ गणदासः ( »1. परिहीयते प्रातवादिना गणदासः ) ददर व्याहरन्तीति किं देवो पृथिवीं वर्धितुं स्मरति ( १.1. ˆ विस्मरति , यस्यागमः केवलजीविकैव ( 1, जीविकायै ) सांप्रतं भवतो निःसंशयं ( ».1. निःसंशयो ) भविष्यति असुखं दर्शितं विकारेण ( ».1. ` दष्टं विषरेण ) कातासंमिश्रदेदोप्यविषयमनसां यः पुरस्तात्‌ ( ».1. परस्तात्‌ ) यतीनाम्‌ आचार्यबहुमानात्‌ ( *.1. आचार्यं बहुमानात्‌ ) अवहितो स्मि नेपथ्यगृहगतायाः ( ».1. ` परिगतायाः ) चर्षुः . द्वारपिधानमिव धृतेर्मन्ये तस्यास्तिरस्करणम्‌ ( , ९. ) तिरस्करिणीम्‌ ! चसंतस्त्वरयतीव भवंतमेततप्रमदवनं प्रविशेति ( ».1. प्रवेष्टुम्‌ ) सरितं ( ».1. सछिकं ) उद्रसितादिव सारसात्‌ ` प्रणहितशिरस ( १.1. प्रणिहितशिरसं ) वा कांतमाद्रोपराधम्‌ ` चताकूरं विचिन्व॑त्योः पिरषीष्िकमिदेष्टम्‌ ( ,. 1. पिपीलिकानां शनम्‌) अनातुरोत्कंठितयोः ( १.1. अनादरोत्कंठितयोः ) &०. एतानि दष्टमात्राणामायष्याः ( ». 1. आयुषः ) प्रतिपत्तयः। तदा सरसंभ्रममृत्कठिताहं भर्तृरूपद दीनेन न॒ तयावितुष्णास्मि यथा द्य विभावतधित्रगतदङ्नो भर्ता ( *.1. सर्ंभ्रमदृष्टे भर्तरूपे यया सतष्णा- स्मि तयाद्याप मया विभावतो वितुष्णद शनो भता ) कास्यन निर्वर्णयितुं रूपमिच्छन्ति तत्पुवेसमागतानां ( १.1. ततपूरवंसमागमानान्‌ )

कस्य एष आत्मनीनो हताशः ( ».1. कस्य एष आत्मनियोगरसंपादने विश्वसनीयो हताशः |)

ती .

( ९९५ )

केतसत्कारविषेः ( *.1. कतसत्कारवरिषिः «८. सैस्कारव्रिधेः ) तपनीया- शोकस्य वेदिकवेधः। चि 1 विदयापारगमिणां ब्राह्मणानामिमानि दक्षिणानिष्काणि ( २.1. वरिद्यापा- ` रायणमनुतिष्ठतां ब्राह्मणानामियं नित्यदक्षिणा मासिका दातव्या ) अहो परिभवोपहरिणो ( ९.1. परिभवप्रहारिणो ) विनिपाताः कारणेन खल्‌ मया नैरभत्यं ( ».1. नैर्ैण्यं ) अवलंबितम्‌ अधिकारे ( ५.1. अतिभारे ) खल सेनापतिना मे पुत्रको नियुक्तः

32 दविक ५१७ नानक ण् हाणणद्ठ ४८ 0ज्ण्नडः ना ०७८७४ :-- त्रयी विग्रहवत्येव सममध्यात्मविद्या

पत्तने विदयमने ऽपि ग्रामे रत्नपरीक्षा

अत्रभवती धारिणी विसंवादयिप्यति

असखं दारितं विकारेण दष्टं विषारेण

नहि कमलिनीं दृष्टा ग्राहमवेक्षते मतंगनः। `

विमर्दृस॒रभिर्मन्‌ बकृलवचिका

तावदावां शीघ्रमपक्रमाबो यावदं गारको राशिमिव सानवक्रं नं करोति ` ततः सा देव्या पृष्टा किंन लक्षितो जनो वभ इति तयोक्तं मदो

बोपचारो वा यत्ते परिजनस्य वभवं जानत्यापि पृच्छसीति `

सखे मदपेक्षनुवुच्या निवृ्तर्याा धारेण्याः पुैचरितैः संभाव्यत एतत्‌ अहो सर्वास्ववस्थासु चारुता शोभां पुष्यात

ननु भैौत्तमवचनमप्यारयो हदये करोति

देवप्रत्ययात्संभाव्यते सृक्ष्मदर्दिता मौत्तमस्य कि मां भयोऽप्यपराद्धां करोषि

मटः परप्रत्ययनेयुद्धिः

प्रभवन्त्योऽपि दि भरतुषु कारणकोपाः कृट्बिन्यः | अलं बह विकथ्य रान्न समक्षमेवावयोरधरोत्तरव्यक्ति भविष्यति |

तवन्ीतिपादपस्य पुष्पमुद्भिन्नम्‌ ( भावो भावं नुदति विषयाद्रागबन्धः सं एव आत्तसार श्वत्मुषा स्वविषयः मया नाम मृग्धचातकेनैव शुष्कघनगर्निते (तरिके जच्पानमिष्टम्‌ |

तेन हि पेडितपरितोषप्रत्यया मदजातिः

( ९२९९ )

अवितो दर्शनाय: उचितवेलातिक्रमे. चिकित्सका दोषमुदाहरन्ति ` विपणिकन्दुरिव मे उदराम्य॑तर दह्यते गृदीतक्षणो.ऽस्मि भवानपि शनोपरिचिरो विदंगम इव अतयातरो मूता कार्यसिद्धि प्ार्- ` यमानो मे रोचसे | शिष्यागुणविदेषेणोलमितो गणदासः केवलं देव्याश्विततं रक्षन्‌ प्रभुत्वं दज्ञेयति ला तपिनी देव्या अधिकतरं रक्ष्यमाणा नागरक्षितो मणिरिव सुखं समासादयितव्या उचितः प्रणयो वरं विहन्तुम्‌ उपचारविधिर्मनस्विनीनां तु पू्वाभ्यधिको पपि भावः एतत्सीधुपानेदेनितस्य मलस्यीडिकोपर्यिता

क:

त्वं देव्या योम्यतया नियुक्ता

अयवा एतन्मे मतयुमंडनं भविष्यति प्रयमामिव प्छवप्रसू्ि हरदग्धस्य मनोभुवदरमस्य परिगृहीतं सिद्धिद शिनो ब्राह्मणस्य वचः प्रयमं लोकवाद एव अदय सत्यः संवृत्तः संकीरनाशंसिना स्नेदेनालम्‌ अलं सेवया मध्यस्यतां परिगृह्य भण अभूमिरियं मालविकायाः

^ महती खल्वस्याः संभावना

, अत्रादे भरैः शिष्यास्मि

लरय तावदेनां गुरुदक्षिणयि

हन्त सिद्धं मे दौत्यम्‌

केवलं मुखमारूतो रभयितव्यः

गुणेष्वभिनिविनो भतरपि

(६२३ )

प्रवम मणितमिव हताशाया उत्तरम्‌ नः 0 + अनुरागोभनुरागेण ्तयष्ठव्य इति सुजनवाक्यं प्रमाणीकुर 1

किमात्मनश्छदेन मंत्रयसे |

भर्तुः खल्वेतानि प्रणयमदरूनि विवांतरितान्यक्षराणि 6 9५ #

मुग्धे भ्रमरसंबाधो भविष्यतीति वसंतावतार सवसं किं चतस ऽवत सयितव्यः। ` ,

लवं तावहुजौते ममात्य॑तसहाया भव

कारितमेव बकुल्मवल्िकया एतत्पदं मालविकायाः

निर्विकारस्याप्युत्सुकत्जनक उपदेशः |

गृहीताथौनंतरं चितयिष्यामि

पयौप्तमेतावता कामिनाम्‌ ५४

एतस्मिन्नतिक्रमे परवतीयम्‌ | ५: 9.

नवनीतददय आर्यपुत्रः। `

धृतिपुष्पमयमपि जनो बध्नाति तादक्गं चिरात्‌ प्रभृति

नन्वशोकः कुसुमं दर्शंयति अयं पुनः पुष्प्यति फरति . +

जंघा बलमेव | 1.

मया विज्ञातमीटशं विनोद वस्तुकमायपुत्रेणोपरब्धमिति

मा तावद त्रभवत्यत्रभवतो दाकषिण्यस्योपरोधं भणतु समापततिच्े> देव्या परिजनेन सेकथापि यद्यपराधः स्थाप्यते ऽतर त्वमेव प्रमाणम्‌ |

शट इति मयि तावदस्त॒ ते परिचयत्यवधीरणा प्रिये। `

नूनमिदानीमनुज्ञातम्‌ 0, खल्विमी मालिकायाश्वरणी यी ते स्यदंदोहलं पूरिष्यतः। उत्तिष्ठ कृतप्रसादो ऽपे

दिष्टा अस्याविनयस्याप्रसादिता गता |

यो बिडालगृहीतायाः परभृतिकायाः 0

निर्भेदादुते ऽपि मालविकायामयमुपन्यासः शंकयति 1 ` मात्मेकाकुलावाटिके पाताख्वासं नागकेन्यका इव अनुभवतः 1 अलमलमुपचारयंत्रणया ` दंशच्छेदः पूर्वकर्मेति श्रूयते ` | कार्यसिद्धावाशु प्रतिपत्तिमानय ` नः

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