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Full text of "Sankhiki Ke Siddhant"

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सांख्यिकी के सिद्धान्त 





लेखक 


देवकी नन्‍्दन एलहँस 
रीडर, वाशिज्य विभाग, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग 














किताब महल, इलाहाबाद : बम्बई 


प्रथम संस्करण, १९५५ 


लेखक की श्रन्य पुस्तके 
3. 248८702 ?27:00]20$ 4॥ 5६2(48(4८5 


2, (007 5028059705 ( ०0-2प:००४ ) 


प्रकाशक--किताब महल, ५६ ए,, जौरो रोड, इलाहाबा< 
मुद्रक--अनुपम प्रेस, १७, जीरो रोड इलाहाबाद 


बिक 
दा शब्द 

आधुनिक युग में सांख्यिकी का महत्व तथा उसकी उपयोगिता निविवाद है। 
आज का युग ही सांख्यिकी-युग कहलाता है। कुछ समय पूर्व तक हमारे देश की विदेशी 
सरकार तथा देशवासी भी समंकों की ओर उदासीन थे | स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात्‌ 
भारत में संयोजन का युग आरम्भ हुआ और देश के आर्थिक विकास की बहुत सी 
योजनाएँ आरम्म हुईं | संयोजन के युग में सांडियकी का महत्व सर्वोपरि है। वास्तव 
में बिना समंकों के किसी प्रकार की योजना का निर्माण तथा उसका कार्यान्वित होना 
असम्मव है। क्‍ 

हे का विषय है कि अब भारत में सांडियिकी तथा समंक शनेः शनै: उस 
स्थान को ग्राप्त कर रहे हैं जो इन्हें पहले ही मिलना चाहिए था | अब सांख्यिकी देश 
के लगमग सभी विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। जब तक 
हमारे विश्वविद्यालयों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी था तब तक इस विषय को पढ़ने में 
पुस्तक सम्बन्धी विशेष कठिनाइयाँ नहीं होती थीं। शिक्षा का माध्यम हिन्दी हो जाने 
पर, छात्रों तथा शिक्षकों को जिस प्रमुख कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है वह है इस 
विषय पर हिन्दी भाषा में लिखित पुस्तकों का अभाव । प्रस्तुत पुस्तक इसी कठिनाई 
को दूर करने का ग्रयास है। पुस्तक में यथा सम्मव शुद्ध. हिन्दी शब्दों का प्रयोग किय। 
गया है ओर सुविधा के लिए साथ साथ अंग्रेजी के पर्याववाची शब्द भी दिए गये हैं । 
हिन्दी शब्द अधिकतर आर्चाय रघुवीर, थ्रार्चाय श्रधोलिया तथा आर्चाय बल्दुआ द्वारा 
निर्मित 'सांख्यिकी शब्द कोष! से लिये गये हैं, 

छात्रों के लिए पुस्तक को विशेष रूप से उपयोगी बनाने के लिए प्रत्येक श्रध्याय 
के अन्त में, अभ्यास के लिए तत्सम्बन्धी प्रश्न भी दिए गये हैँ। इनमें श्रधिकतर का 
हल लेखक द्वारा लिखत ?/2८00४] 770070]270$ 470 5(90450705 ($९८074 6१- 
४४07) में मिल सकता है । 

प्रस्तुत पुस्तक, यदि सांड्यिकी को हिन्दी भाषा में पढ़ने श्रथवा पढ़ाने में सद्दा- 
यक सिद्ध हो सकी तो लेखक अपने प्रयत्नों को सफल सममेगा | 


प्रयाग देवकीनन्दन एलहँस 
१५ जून, १६५५ 


विषय-सूची 


अध्याय १९ 
परिचय तथा परिभाषा 
(२९७) (2४ ४) 9508॥थ!77(00/५) क्‍ 
परिचय; समंक तथा सांख्यिकी--समंक; सांख्यिकीयरीतियाँ ( $:8/5082८4) 
7८7005); सांख्यिकी की परिभाषा; सांख्यकी के भाग; सांख्यिकी और अन्य ज्ञानों 
का सम्बन्ध; प्रश्नावल्ी । पृष्ठ (१--११) 
अध्याय २_ 
सांख्यिकी के काय तथा महत्व द 
(7 770!]7 0०४७० 7४200१70'७१२९८४८ 0४ 57'07]50708) 
सांख्यिकी के कार्य; सांख्यिकी के महत्त्व; सांख्यिकी की परिसीमाएँ; सांख्यिकी 
की अविश्वसनीयता; प्रश्नावली | पृष्ठ (१२--१९) 
अध्याय ३ 
सांख्यिकी अनुसंधान का आयोजन 
(श.2घग]र२० & 97'8779702८0., छाप00ए/एश) 
अनुसंधान का उद्देश्य ओर क्षेत्र; अनुसंधान का आयोजन; सांख्यिकीय 
इकाइयाँ (5६2080९०) ५४४७) परिशुद्धता परिमाण (668/८९७ ०६ ४८८पा३४८ए); 
प्रश्नावली । पृष्ठ (२०--२५) 
अध्यया ४ 
सामग्री संकलन 
(00॥.ए8टाप00 67 70070) 
प्रत्यक्ष स्वयं अनुसंधान (6व76८६ 27807%.7 [0५725022707); अप्रत्यक्ष 
मोखिक अनुसंधान (4700॥76८६ 0780 7८5:282:07 ) ; अनुयची-प्रश्नावली 





( ८ ) 


द्वारा (0ए $८60प/८ (००४४०००५४४८); स्थानीय प्रतिवेदनों द्वारा (07 |0८ब. 
7००07/5 ); प्रतिनिधि सामग्रो (72/0725८०:७४४० 020४ )--संविचार-निद्शन 
(१०॥७९०४३४४० 50778); दैव-निदर्शन (थात०0 $&7778); निदशन 
प्रवरण (5८]९८४००४ ० 5४770]6 ); सांख्यिकी नियमितता नियम ([४ण ० 
आ4050९47 728 ५]४70ए ); महांक जड़ता नियम (49 ० 6709 ०0 
9726 ग्रणप0०१$ ); द्वितीय सामग्री संग्रहण ( ००0]९८९०॥ ०६ ६८९०7व0५४ए 
0268 ); द्वितीय सामग्री उपयोग ( ७४४8 $2८07027ए 8० ); सामग्री के 
आवश्यक गुण (720९55४४ए &।:077५०5 ०६ 0209 )-- सामग्री-विश्वसनीयता 
( ॥0)904॥7ए ० १909 ); सामग्री-अनुकूलता ( 50४८20]0ए ०६ १2/2); सामग्री 
पर्यात्ता (३0९०१००८ए ०६ 0909) प्रश्नावली । पृष्ठ (२६--३६) 


अध्याय ५४ 


एकत्रित सामग्री का सम्पादन 
(5णपा6 06 ८0/8एफ0 087५) 
परिशुद्धता ( ४८८०८४८ए ); उपसादन ( 27970०57779007 ) सांख्यिकीय 
विज्लम ( 50805:0०॥) ८६०१5 )--मूल विश्रम ( ६८:07$ ०६ ०7877 ); प्रहस्तन 
बिश्रम (९६078 ०६ छात्यणपाशा07 ); अपर्याप्तता-विश्रम ( &८ए078 0 
7790८002८7 ); निरपेज्ष और सापेक्ष विश्रम (४950०८९ #0ते इटॉब्ाएट 
८::०४६ )--निरपेज्ष विश्रम; सापेक्ष विश्रम; अमिनत और अनमिनत विश्रम _ 
( 27355९0 270 प्रग०958९0 ९४ए075$ ); प्रश्नावल्ी । पृष्ठ (१७-४५) 


अध्याय ६ 


सामग्री का वर्गीकरण और सारणीयन 
(7,55७ एछ0870!'प 8५० 7'४80,07"00'४ 079 9.67 8) क्‍ 
वर्गीकरण--गुणों के अनुसार ( 9ए &:7700०(८8 ); वर्गान्‍्तरों के अनुसार _ 
( 9ए ८]४४४ 7(677०/$ ); अपवर्जी रीति ( ०६४०0०५७४ए९ ४7८८४०० ); समावेशी 


रीति ( 4707$ ए८ ॥7720000 ) सारणीयन--उद्देश्य; सावधानियाँ; विभिन्न प्रकार 
के सारणीयन-एक-गुण सारणीयन ( 9786 ६४०पाौ४८४०॥ ); द्वि-गुण सारणीयन 


( ६ ) 


(00प००-६४००]०४४०४); त्रियुण सारणीयन (६६८0]० ६४७प०७४४०४ ); बहुगुण- 
सारणीयन ( 778770]0 ६४००प०४०7 ); सरल सारणीयन ( 87]6 ६2909- 
007 ); जग्लिसारणीयन ( ८0777]65 ६४४पा७४07) प्रश्नावत्ती । 
पृष्ठ (४६--५६ ) 
अध्याय 9 
सांख्यिकीय माध्य 
(७70 775770.8॥, ९४३२ 68 (७58) 
परिभाषा; अच्छे माध्य के गुण; विभिन्न प्रकार के माध्य; 
भूयिष्ठक-- (४006) परिमाषा; भूयिष्ठक निकालना; भूथरिष्ठक के लाम तथा 
कमियाँ । 
मध्यका--(०0८0[2) परिभाषा; साधारणश्रेणी का मध्यका निकालना; वर्गित 
समूह का मध्यका-खंड़ित (08८76६८) श्रेणी का मध्यका; संतत ( ८०प्रात्प0005 ) 
श्रेणी का मध्यका, मध्यका के लाभ तथा कमियाँ । 
चतुर्थंक, दशमक ओर शततमक ( वृषप्द्वाता65, तल्‍ली28 बाते फ़ुल- 
८८725:) विभिन्न प्रकार की श्रेणियों में इनकी गणना समान्तर मध्यक 
( &776८0/८ ४ए८४०४८ )--परिमाषा; साधारण श्रेणी का समान्तर माध्य 
निकालना, खंडित श्रेणी का समान्तर मध्यक निकलना; संतत श्रेणी का समान्तर मध्यक 
निकालना; ऋजु रीति ( 6[7९८:77९:700 ) लघु-रीति ( $9070-८५८ ४7६704 ) 
समान्तर मध्यक के लाभ तथा कमियाँ । 
भारित समान्तर मध्यक--परिभाषा; गणना की रीतियाँ; ऋजु रीति तथा 
लघुरीति; भारित समान्तर मध्यक का उपयोग । 
गुणोत्तर मध्यक ( 22077८0070 70227 )--परिमाषा शुणोत्तर मध्यक 
निकालना; भारित शुणोत्तर मध्यक, शुणोत्तर मध्यक के लाभ; कमियाँ तथा उपयोग | 
हराक््मक मध्यक ( 02770004८ एा८थ7 )-परिमाषा; हरात्मकमध्यक 
निकालना; भारित हरात्मक मध्यक; हरात्मक मध्यक के लाभ, कमियाँ तथा उपयोग | 
माध्यों की परिसीमाएँ ( 77080078 06 2ए८:०४८७ ) प्रमापित मृत्यु 
ओर जन्म अचे ( ऋिद्यातंब्रावाडटत तेददा। बाते फंए0 290९४ --श्रशोधित 
: अर तथा प्रमापित अ्रघ निकालना; प्रश्नावली । पृष्ठ (६०--१२५) 


( ९१० ) 


अध्याय पर 
अपकिरण और विषमता 
(/57087१500 5४० 5६८5ए)८5५5) 

अपकिरण ( 0992९7:807 )--बविग्तार ( /६726 ); चतुर्थक विचलन 

( (०४:6 0९ए०३३४07 ); चतुर्थक विचलन के लाभ तथा कमियाँ; माध्य विचलन 
( 76980 त8०१8८[00 ); विभिन्न श्रणियों का माध्य- विचल्लनन तथा साथ्य विच्वलन 
गुणक निकालना; माध्य विचलनों के लाभ तथा कमियाँ; प्रमाप विचल्लनन तथा उसका 
गुणक ( 8800 ४0 १6ए]६0४०7 ब्यते 78 ८०९०॥0९४६ ) विभिन्न श्रेणियों का 
प्रमाप विचलन निकालना; प्रमाप विचलन के लाम तथा कमियाँ; अपकिरण के मापों 

का परस्पर सम्बन्ध तथा तुलना | जिषमता ( 5६४०४७॥०८७$ )--परिभाषा; विपमता के 
लक्षण; विषमता का माप ([70045प7८0९८४६ 0६ 5:०५7८६७ ) विषमता के गुणक 

( ०0०6गट6760 60 5६८षा१८५$ ); घनात्मक तथा ऋणात्मक विषमता; विपमता 

के उपयोग; प्रश्नावत्ी | पृ४ ( १२६--१८० 

अध्याय € 
देशनांक 
(शण)४8५5 एए५४8छ8२०9) 

द परिभाषा; मूल्य-देशनांक रचना; पदों का चुनाव; पदों की संख्या; पदों के 

गुण; वस्तुओं का वर्गीकरण; प्रतिनिधि स्थानों का चुनाव; मूल्यों का उद्धरण ( 9:0९ 

१८०४६075 ); आधार का चुनाव ( $6)९८४०४ ० 598० ); मूल्यानुपात की 
गणना ( ९४८प०४४०४ 0६ 9706 :८ 20४९७ ); शंखला-आधार रीति में मूल्या- 
नुपात की गणना; खाध्य का चुनाव; भारित करने की विधि ( 472८07१0080: 
९०४2 7579); मूल्यानुपातों और शृंखलानुपातों का सम्बन्ध (#2]9007 ०ए€(/एल्शा 
7706 ॥2]40ए८5 ब्राते ॥ ५ उटीब्रात२९5 ); वत्कम्यता परीक्षा ( +०ए८४- 
आ09]0ए ५८९४ ); समय उत्रम्यता ( (76 #९४८:४ ०३३० ) खण्ड उत्क्रम्यता 
( 78८0070 4८ए८7४॥०॥॥४9 3); फिशर का आदश सूत्र (7]586०४5 06 
(57779 ); निर्बोह-व्यव-देशनांक रचना ( ८०05४0ए८७००7 ०६ ८०५६ ०६ 
]0708 4065 ४रप770675$ ); कटठनाइयाँ, रचना; व्यय रीति ( 4227०22८ 
€59670]00०:6 776:70०0 ); परिवार वजय रीति (8077 9७प026६ 7067700); 








( ११ ) 


ओद्योगिक उत्पादन के देशनाक (7799०९$ 6 धातेपडपतत्वां 70व7९०६७४09 ); 
व्यापारावस्था देशनांक ( 700[९८४ 0६ +ैप३४४९४४ ८०%व0075 ); देश- 
नांकों के उपयोग ओर उनकी परिसीमाएँ; प्रश्नावल्ली । पृष्ठ (१८१--२३३) 
अध्याय २० 
सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपण 
(27005767५ 0 7( ९७28 5७छ।थ 7४ 7१7((0ल्‍४ (8 7087'/) 

सामग्री के चित्रों के रूप में प्रस्तुत करने के लाभ; चित्रांकन के नियम; विभिन्न 
प्रकार के चित्र; विभा चित्र ( 6[798708079  964927%877$ )--एक विमा चित्र; 
सरल दण्ड चित्र ( 877]०-097-0227900$ ) अन्‍्तर्विभक्तदरड-चित्र ( $प०- 
ठरा१८१० 5७&27-0098859705 ); द्वी-विभा-चित्र; आयत ( #6८६४॥26$ ); वर्ग 
( 80५2765 ); चइत (८८८5 ); तिविभा चित्र; घन ( ८००८३ ); चित्र-लेख 

( 0८008742॥77$ ); मान-चित्र लेख ( ००४027%705 ); अश्नावली । 
पृष्ठ (२३४--२७०) 





अध्याय ११ 
सामग्री का विन्दू-रेखीय निरूपण 

(१/७7०?६छ७॥५ ५ १७?१४८७४७5४7४७7(०२ 0७४ 7.8720) 

चित्रों तथा बिन्दु-रेखों की रचना; प्राकृत-स्केल लेकर सामग्री-प्रॉकण 
( काल्िक-चित्र ) ([700778 ० 80078 ४६॥08 09 40५:9| 8८४।८)-- 
एक चल के लिए निरपेनत्ष कालिक-चित्र ( 2080[प7७ 7800782807---076 
ए००७790!6 ) कूंट आधार रेखा (£2]58 925८ |॥76 ); दो या अधिक चलों के 
लिए कालिक-चित्र ( 98007787870$-- 0900४ 77076 ५५७।॥०।८५ ); विचलन 
का विस्तार दिखाने की रीति; अन्तर दिखाने की रीति; बारंबारता-चित्र (६72८00८॥८ए 
04982 79705 )--दशण्ड-चित्र (990"09279॥75); असंतत-वक्र (82007700फ0$ 
८७:ए८४ ); संतत बक्र ( ८0909प005$ ८०४ए८5४ ); विभिन्न प्रकार के सैद्धा- 
न्तिक वारवारता वक्र (776०%ाए८र्श £7८6७८४८ए ८पाए८७ ) प्रसामान्य 
वारंवारता वक्र ( 7०0णवन्‍7स्‍ ६८०१०९४८ए ८एाए०८ ); विषम वारंबारता वक्र 
( 8६6 ६८तृप८०८ए ८ए४ए९८ ); विषम बाहु वारंवारता वक्र ( ४--६४४7६० 
0: €डफव्णाटए 35ए076:0८॥ (०व०2८४८ए ८८४४९ ); अध्यंबाहु वार॑वारता 





( १२ ) 


यक्र ( 0--.809[0०0 £7८0०००८ए ८एए९८ ); संचयी वारंबारता वक्र ( ८प०००|०- 
(२८ ६९०१८८०४८ए ८०४०९ ); अनुपात स्केल में बिन्दुरेख (87299758 ० इथ० 
3८9८5 )--छेदा-स्केल और छेदा वक्र (082800॥77ल्‍८ 5०८शै७ 2एते 4098987- 
(770८ ८०४२८$ ); अनुपात स्केल की विशेषताएँ; प्रश्नावज्ञी | ए४ (२७२--३१३) 


अध्याय १२ 
काल श्रेणी का विश्लेषण 
(2 ७॥,४७78 08 पा ७7५ 588 [[58) 

सुदीर्ध कालीन उपनति (5०८पोद्वाः ८7००); श्रातव विचरण (४८५३०7% 
४०790078); चक्रीय उच्चावचन (८एटॉटशो गीएटाए4४०075 ); देव या 
अ्रनियमी उच्चावचन (३छ007 07 ८९ -गीए८०४०४४००७ ); दीघे- 
कालीन उपनति की माप ( 70९285प7ठए670 ०0६ इ5९८पौोद्वा थे )-- 
निरीक्षण द्वारा उपनति अ्न्वायोजन ( ६८०० ६7072 9ए 4787०९८४४07 ); चल- 
माधष्य की रीति ( 76000 छा एछा0एशाप्ठ्ठ &४८7०४४८$ ); चल-माध्य रीति 
का सिद्धान्त ( (7605ए 06 ॥70श8 ४ए४४८०९९ 7706:70व4 ); अल्पतम-वर्ग 
रीति ( 776000 ०६ 625६ $0प७7८$ ) अल्पकालीन उच्चावचन की माप 
( 07245प7९00९7६ 0६ 5707 फ़थ्याएते गीपल॑पश्र/0०05 ); आतंब उच्चा- 
बचन की माप ( 7९28$प7ठख6८ाए 00 5९३5074] गएटप्र7075 )--श्रातंव 
देशनांक की रचना करने की मासिक माध्य रीति ( छाला00 ०0 छा6या।ए 
2ए279268 [0 ८07790९ 2 8८३४०7५) 47065) झतंव देशनांक की रचना 
करने की चल-माध्य रीति ( 77८000व4 0 ४700779 ४ए९३४॥९९३४ (0 ८0779प८ 
» 804507% 7065 ); :ंखलानुपातों की रीति ( ८700 0६ ॥[४६ ॥९[३- 
४४८४ ); चक्रीय और अनियमी उच्चावचनों की माप ( 77248877८छ८्य: 0६ 
(एट९४ बाते हाःलछपौद्ा गीपटापश0785 ); प्श्नावली | पृष्ठ (३१४--३५०) 


अध्याय १३ 


सहसंबंध का सिद्धान्त 
(८७08४ 0४8 (0४४७! 07१0७) 
सहसम्बन्ध की परिभाषा; धनात्मक तथा ऋणात्मक सहसम्बन्ध ( 7090४८ 
भयाते क6ए॒ब्रधए८ ००06 4४०7); विक्षेप चित्र ( 5८४४८८ 074387277 ); 


५ ९३ ) 


सहसम्बन्ध बिन्दु-रेख ( ८०0640707 8797 ); सहसम्बन्ध शुणशक (००- 
2ग्ट८ताा ०६ ८0770]4:07 )--सहसम्बन्ध शुणक की गणना; कार्ल पियरसन 
का सूत्र ( 620] ?62750725 407704); ऋजु रीति तथा लघु रीति ( ठ#€८६ 
बगते 5807:-८प६४ 77/८:700 ); काल-शे णी में सहसम्बन्ध का अध्ययन ( ४:ए0५ए 
०६ ८०४7९५४४०४ 70 2 ४४0९ 5०:८५ ); दीघकालीन परिवतेनों का सहसम्बन्ध 
(००0+7९4007 ०६ 078 ६776 20278 ०5); अल्पकालीन प्रदोलों का सहसम्बन्ध 
( ००४7८ ४४०४ 0६ ४7070 ४॥76 ०5८॥90078 ) ;वर्गित-श्रेणी में सहसम्बन्ध 
गुणक निकालना ( ८४८ण4९०07 0६ ८0-०वट॑ढफ 06 ०0फरावएंठय 7 2 
270प7९0 5९47८5); लबघ्ु तथा ऋजु रीति; सहसम्बन्ध शुणक का सम्भाव्य विश्रम 
( 77072्०८ ढाा0: 6 ००८ीटांधग: 06 ८07769४07 ); कालान्तर-रीति 
द्वारा सहसम्बन्ध गुशक की गणना (८८०00 0६ ०0४7८67 0९ ०0770]9- 
(070 9ए ४2775 7760॥00 ); संगामी विचलन गुणुक *( ८0670८6४६ ०0६ 
८07८प्र0:67६ऋ 6८ए१४/४075 ); प्रश्नावली । पृष्ठ (१४१--४ ११) 


अध्याय १४ 
भ्रन्तगंणन 
(०788 ?(7,0700]५) 
अन्तर्गणन का अर्थ; अन्त्गंणन का उपयोग । बिन्दु रेखीय रीति (222[0॥0 
702:00); बीज गणतीय रीतियाँ ( ४/8००:७४८ ४76:2005 )--अन्तर्गणन की 
मान्यताएँ; वक्र अन्वायोजन रीति ( 776:00 0०0६ ८प४ए९ 8६078 ); परिमितान्तर 
या न्यूटन की रीति (ाल्य7क्‍08 ०६ 8708 ठ66६६८८0८९5 00 र८णज्र(0728 


796:00); लैग्रांज की रीति ( ,82:2726?8 07८7700 ); प्रश्नावली । 
पृष्ठ (४१२--४४१) 


अध्याय १५ 
सामग्रो-निवंचन 
(7फ5४९ए०0,60770४ 07 0279५) 


निर्वचन का श्रर्थ; निर्व॑चन में प्रारम्भिक सावधानियाँ ( ाटप्रांगद्रतं2३ 
(0० 77067972:2007 ) मिथ्या-सामान्यकरण ( ६9[8८ 867672]45400775 ); 


( १४ ) 


देशनांकों का गलत निरवंचन; सहसम्बन्ध शुणुक तथा सम्बन्ध गुशक का गलत निवचन; 
प्रश्नावल्ी । पृष्ठ (४४२---४५२) 


अध्याय १६ 


भारतीय समंक 
([००३४७)४ 87'07345770.5) 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जनगणना ( 70०ण ४८०7 ८८7६०७ )-- जनगणना 
का महत्त्व; जनगणना का उद्देश्य ओर उरुकी रीतियाँ; भारत में जनगणना को पद्धति 
१९५१ की जनगणना; भारतीय जनगणना के तथ्यांक; मारतीय जनगणना को कमियां । 
जीवनसमंक ( ए१:8| ४:2४0800८$ ); औद्योगिक समक (३0त0800४॥| 80208- 
४0०७ )--निर्माण उद्योगों की संगणुना ( ८९४8०३४ 66 एाश्य/शिटापा पा ह 
[)6050०5 ); औद्योगिक उत्पत्ति समंक ( आ्वधा८8 0६ ३7684] 
०प७०प ) | कृषि समंक ( 28870एए/४ #्व ४८$ )-- क्षेत्र समंक ( 27९० 
8(29057405 ); अस्थाई बन्दोतस्त वाले ज्षेत्र; स्थाई बन्दोतस्त वाले क्षेत्र; पैदावार 
समंक ( ए०१ 5:%७:०5 ); पुरानी रीति ( ६80007%&] 776000 ); देव- 
निदर्शन रीति (#श्यतं070 $5चगएणग्रढ्ठ 77९00 )। मुल्य समंक्र ( [70८ 
80205005 )--कैंठाई के समव कृषि मूल्य ( ॥ए०४६ 97069 ॥; अन्य मूल्य ; 
मल्य-समंकों की कमियाँ; ४.य-देशनांक; एकानामिक एडबाइजर का बहुशों मल्य 
देशनांक ( 4८०४077० #6ए55728 ए|0९8%06 97706 47665 ँष्ण 6५ ) 
अल्पशो मल्य देशनांक (#टथव 9706 7वै८5 एप7०९०४७ ); मजदरी समंक 
( ४०26 5४75040$ )--अश्रोद्योगिक मजदूरी समंक; कृषि मजदूरी समंक; कृषि 
मजदूर अनुसंघान ( 287र०पपा३। 48007 ध्यवृप्गाए); राष्ट्रीय आय 
(79%/07%]| 4700776 )-राष्ट्रीय आय की-रीतियाँ; राष्ट्रीय आय सामग्री की 
परिसीमाएँ; भारत की राष्ट्रीय आय; आगणन की कठिनाइयाँ राष्ट्रीय-निदर्शन अधी क्षण 
( 72079] $2709]6 5०:ए८ए ) भारत में समंकों की सामान्य कमियाँ 
प्रश्नावर्ली । पृष्ठ (४५३--५०२) 

सां र्कोय शब्दावली ( ४४0870%]| ६6४४05 ) पृष्ठ (५०३--५४१७) 

गणितीय सारणी ( 779/९70200८4) (००]25 ) पृष्ठ (५१८--५२४ 














अध्याय १ 
परिचय तथा परिभाषा 


( ा00प८007 बाते [26#7667॥ ) 


संख्याओं का उपयोग प्राचीन काल ही से बहुत देशों में होता आया 
है | उस समय शासक अपने देश की सेना तथा खाद्य-पदार्थों की मात्रा के बारे में 
अनुमान लगाने के लिए संख्याओं का प्रयोग करते थे। अब से लगभग ठाई हजार 
वर्ष पूर्व, भारत में मोर्यवंशी राजाओं में, देश के बारे में बहुत सी सामग्री अंकों के रूप 
में एकत्रित करने की प्रथा थी। इसके पश्चात्‌ गुप्त साम्राज्य के अनेकों शासकों ने 
विभिन्न ज्षेत्रों में संख्याओं का अयोग किया। मसुग़ल-साम्राज्य में भी विशेषकर अकबर 
के समय भारतवष में बहुत से ज्षेत्रों में संख्याओं का उपयोग होता था। “आइने 
अकबरी' नामक पुस्तक में मूल्य, वेतन, जनसंख्या इत्यादि के बारे में बहुत से समंक 
मिलते हैं। अन्य देशों में भी इसी प्रकार संख्याओं के उपयोग के बहुत से प्रमाण 
मिलते हैं । 

परन्तु ग्राचीनकाल में संख्याओं के उपयोग की सीमा बहुत संकुचित थी। 
सामाजिक शाझ्रों में तो अंकों का प्रयोग बहुत ही कम होता था। पिछले कुछ वर्षों से 
अंकों के आयोग की सीमा बहुत तेजी से बढ़ रही है। ओर अब तो संख्याएँ. लगभग 
सवेव्यापी हो चुकी हैं । आधुनिक संसार में संख्याओं का महत्व निविवाद है। व्याव- 
हारिक जीवन में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें संख्याओं के उपयोग की 
आवश्यकता न पड़ती हो | व्यक्तियों की आय ओर राष्ट्रीय आय, वस्तुओं के दाम, 
उनकी मात्रा, खेल-कूद या पढ़ने में प्रात कुशल्ता आदि, सब ज्षेत्रों में संख्याओं का 
उपयोग किया जाता है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक सम्यता 
बिना संख्याओं की सहायता के टिक नहीं सकती | फ 

संख्याओं का इतना अधिक उपयोग होने का कारण है उनके द्वारा प्राप्त होने 
वाली सुतथ्यता ( 76८७४07 ) । जैसे-जैसे विज्ञान का विस्तार होता गया, सुतथ्यता 
की आवश्यकता बढ़ती चली गई | इस आवश्यकता की पूर्ति अधिक सही नाप लेने 
वाले यन्त्रों और संख्याओं द्वारा की गई। आज यह स्थिति है कि हम ऐसे ज्ञान को 





२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


जो यन्त्रों द्वारा नहीं नापा जा सकता और संख्याओं के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा 
सकता, पूर्णरूप से विश्वसनीय नहीं समझते । यह सच है कि अंकों के रूप प्रस्तुत तथ्यों 
को ही ठीक मानना ओर अन्य तथ्यों को ग्रलत समझना कहाँ तक उचित है, यह नहीं 
कहा जा सकता, पर आधुनिक विचार-धारा इससे कितनी प्रभावित है इसका अनुमान 
लगाया जा सकता है | 





समंक तथा सांख्यिकी# 

समंक ( 50909/0$ ) 

किसी अनुसंधान या प्रयोग में अंकों के रूप में प्रस्तुत तथ्यों 
को, जिनका संग्रहण किसी निश्चित उद्देश्य से किया गया हो, समंक 
(55%05708) कहते हैं। अनुसंघान या प्रयोग का उद्देश्य घटनाओं ( ७४७7१ ) 
में कारण तथा प्रभाव (८४०४९ »0वते ८८८८ ) संबंधी अध्ययन करना होता 
है ताकि दिन-प्रति-दिन होने वाली घटनाओं के परस्पर-सम्बन्ध को जाना जा 
सके | ऐसे आवेदनों (४:&:००07८7:5) को जो एक घदना और दूसरी घटना 
में कारणु-प्रभाव के सम्बन्ध को बताते हैं, नियम (2छ ) कहते हैं। इन नियमों 
को जानना ही अनुसंधान या प्रयोग का उद्दे श्य है। यहाँ यह जानना आवश्यक है 
कि निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि कोई घटना किन कारणों का प्रभाव 
है | बस्तुतः एक घटना घटने के लिए कई कारण होते हैं---कारणों का बाहुल्‍वय होता 
है | इनका प्रभाव समंक पर स्वभावतः पड़ेगा । अतएवं समंक कारणों के बाहुल्‍य 
से प्रभावित होते हैं | समंकी के अन्य गुण उसकी परिभाषा से ही स्पष्ट हो जाते हैं। 
वे ऐसे तथ्य है जो अक्लों के रूप में प्रस्तुत किये जा सकें। अगर फूलों के रंगों 
को लाल, गुलाबी, पीला आदि कहकर वर्णित किया जाय तो यह तथ्य का वर्णन तो 
हुआ पर समंक नहीं । पर अगर इन्हें प्रकाश को तरंग-लम्बान ( ऋ%ए०९०९४४१ ) 
के रूप में वर्शित किया जाय तो ये समंक कहलाएँगे । इसी प्रकार व्यक्तियों की लम्धाई 
जब अड्डों के रूप में प्रस्तुत की जायगी, तो ये तथ्य समंक कहे जाएँगे। किसी 


_सरनन्‍+पेकञकमकलमन»ं»-कान-ननगक 








#आँग्रेजी भाषा में समंक तथा सांख्यिकी दोनों ही के लिए केवल एक शब्द 
है--( 9:2080८$ )। इस शब्द ( 59050८8 ) को जब बहुबचन में प्रयोग 
करते हैं तब इसका वही अर्थ होता है जो अपनी भाषा में “समंक? शब्द का अर्थ है 
ओर जब इसे एकबचन में प्रयोग करते हैं तो इसका वही अर्थ है जो हिन्दी में 
“सांख्यिकी” का | 


परिक्तय तथा परिभाषा ३ 
निश्चित उद्देश्य से संग्रहीत आंकिक तथ्यों को ही समंक कहा जाएगा। 
समंक ऐसे होने चाहिए जिनके द्वारा घटनाओं के बीच परस्पर-सम्बन्ध जाना 
जा सके। परस्पर-सम्बन्ध तभी जाना जा सकता है जबकि वे सजातीय ( 80770- 
8०7600७ ) हों । एक व्यक्ति की आयु ओर उसके मकान की आयु सजातीय नहीं 
हैं ( उनके बीच तुलना नहीं की जा सकती ) | इसलिए इस प्रकार के तथ्यों को जिनसें 
किसी प्रकार की समानता न हो, समंक नहीं कहा जा सकता। 

समंक अड्ली के रूप में प्रस्तुत तभ्यों का समूह होता है। केवल एक अडः 
को समंक नहीं कहा जा सकता | इसके साथ-साथ समंक ऐसे होने चाहिए जो यथोचित 
रूप से परिशुद्ध ( ६८८५४४/४४ ) हों । इनके संग्रहण तथा आगणुन ( ८०॥6६८- 
0070 2०0 ४७:४79007 ) में यथोचित परिशुद्धता का होना आवश्यक है क्योंकि 
ये सांख्यिकी के विषय-वस्तु ( 5५0]८८४ 402076४ ) हैं। एक वाक्य में :- 

समंक संख्याओं के रुप में प्रस्तुत ओर कारण बाहुल्य से प्रभावित तथ्यों 
के वे समूह है जिनका आगणन या प्रगणन यथोंचित परिशुद्धता के अनुसार 
किया गया हो, जिनका संग्रहण किसी पूर्व निश्चित उद्द श्य के लिए किया गया 
हो ओर जो एक दूसरे से सम्बन्धित हों । 
सांख्यिकीय रीतियाँ ( 509087८9) (९६४०० ) 

जेसा कहा जा चुका है, समंक सांख्यिकी के विषय वस्तु हैं । अतएव 
यदि किसी विषय के बारे में हम ठीक-ठीक जानना चाहते हैं तो इनके संग्रहण, 
आगणून और प्रगणन ( ८0॥]3८007, 25070 47070, 270 20घ७०7०८2४३६०४ ) 
में विशेष सावधानी रखनी पड़ेगी ताकि इनके द्वारा ज्ञात हुआ परिणाम विश्वसनीय 
हो । जब्र सामग्री ( 5७८७ ) संग्रहीत की जाती है, तो हमें बहुत बड़ी राशि में अडूः 
मिलते हैं। इन अंकों को इस दशा में समभना सम्भव नहीं होता । अतएबव इन्हें 
इस प्रकार प्रस्तुत करना पड़ता है जिससे ये आसानी से समझ में आ जाएँ और 
इनका उपयोग परिणाम निकालने के लिए सुविधाजनक रीति से किया जा सके | 
इस उद्देश्य की ग्राप्ति के लिए सांख्यिकीय रीति ( 5८080 ९८% 776:704 ) का 
उपयोग किया जाता है | सांख्यिकीय रीतियाँ ( $&09800%]| 776८१००5 ) 
वे रीतियों हैं जिनका उपयोग करके कारण-बाहुल्‍्य से प्रभावित आंकिक 
सामग्री ( वृष्थ्या:क्रााए७ 8973 ) का संग्रहए ( ००!।6८४०7 ), वर्गीकरण 
( ०]५४३४४१८४४०7 ), सारणीयन (६४००७८४०7) निश्चित सिद्धान्तों के अनु- 





हु ु सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सार किया जा सके ताकि इच्छित सूचना आवश्यक परिशुद्धता (४८८०४४८ए) 
के साथ प्राप्त हो सके | 
सांख्यिकीय रीतियों के निम्नलिखित भाग किये जा सकते हैं :-- 

(१) उन नियमों का उपयोग जो सामग्री संग्रहण और सामग्री को सारणी, चित्र 
या रेखाचित्र के रूप में पस्तुत करने से संबंधित हैं । 

(२) उन नियमों का उपयोग जिनसे विभिन्न माध्यों (४ए०८॥०2०9) आर 
अपकिरणों (059८78009) की ठुलना की जा सके | 

(३) विभिन्न सामग्रियों के बीच परस्पर-सम्बन्ध ज्ञात करना | यह सह-सम्बन्ध 
(८०४:८]५४०४) के अन्तर्गत आता है । 

(४) प्रस्तुत सामग्री का निर्वेचन ([7०797८८७४४०४) और उसका सूचना 
प्राप्त करने के लिये उपयोग । 

(५) दी हुईं सामग्री से भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाना 
अर्थात्‌ पूर्वानुमान (0:6८99४78) | 

इन रीतियों का वर्णन आगामी परिच्छिंदों में किया गया है । 

यहाँ पर यह ध्यान रखना चाहिए कि इस कथन में कि सांख्यिको द्वारा 
कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है, कुछ भी सत्य नहीं है। अगर सामग्री का 
निश्चित उद्देश्य सामने रखकर संग्रहण किया जाय, सांख्यिकीय रीतियों के अनुसार 
उसका विश्लेषण (2772/ए7845) किया जाय तो संमकों से केवल एक ही परिणाम 
निकाला जा सकता है | सर्वसाधारण का जो अविश्वास संमकों के प्रति, और इसलिए 
सांख्यिकी के प्रति है, उसका कारण सांख्यिकीय रीतियों का ठीक-ठीक उपयोग न किया 
जाना है| अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए विज्ञापनों, राजनीति आदि में संमकों 
को बदल कर या अविश्वसनीय सामग्री का संग्रहण करके ऐसे परिणाम निकाले जाते 
हैं जिनसे किसी पक्षु-विशेष को लाभ होता है। पर इस बात पर ध्यान रखना चाहिए 
कि अगर सामग्री का प्रहस्तन सांख्यिकीय रीतियों से नहीं किया गया है तो संभक प्राप्त 
नहीं होते बल्कि केवल अंकों का समूह रह जाता है ओर अंकों के द्वारा कुछ भी 
सिद्ध किया जा सकता है। उदाहरण के लिए किसी विज्ञापन को ले लीजिए जिसमें 
यह बताया जाता है कि १०० व्यक्तियों में से जो किसी एक “द्ूथ-पेरु का प्रयोग करते 
हैं, ६९ व्यक्ति स्वस्थ दाँत वाले होते हैं। आवेदन सत्य हो सकता है | पर इसमें यह 
नहीं बताया गया है कि ये १०० व्यक्ति जिनमें से केवल एक व्यक्ति दिये हुए टूथ-पेस्ट 














परिचय तथा परिभाषा प्र 


का उपयोग नहीं करता किस प्रकार चुने गये हैं | पर आशा यह की जाती है कि लोग 
यह समझें कि ग्रत्येक १०० व्यक्तियों में ६६ व्यक्ति स्वस्थ दाँत वाले होंगे | द 

सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग, प्रयोग ओर अनुसंधान दोनों में किया 
जाता है। अनुसंधान में कारणों का पूर्ण रूप से नियन्त्रण असंभव है। यदि इस 
प्रकार का नियन्त्रण किया भी जा सके तो वह वांछुनीय नहीं होगा | इसका कारण यह 
है कि सामाजिक क्षेत्रों में कारणों को नियन्त्रित करके, प्राप्त किये गये नियम मले ही 
सिद्धान्ततः सही हों, पर उनका उपयोग व्यवहार में नहीं किया जा सकता । अतएव 
वे व्यर्थ हो जाते हैं।पर अगंर अनुसंधान पूर्ण रूप से अनियंत्रित हो तो एक घटना 
के कारण इतने अधिक हो जाएँगे कि सामग्री को ठीक-टीक समझना सम्भव नहीं हो 
सकेगा | इस कठिनाई को दूर करने के लिए उन कारणों का चुनाव करना पड़ता है 
जो मुख्यतः किसी दी हुई घटना को जन्म देते हैं और तत्सम्बन्धी सामग्री का संग्रहण 
किया जाता है | प्रयोग में कारणों को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता हैं। पर 
इसके बावजूद भी सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग अनिवार्य हो जाता हे क्योंकि संग्रहण 
से पूर्वानुमान तक का प्रत्येक भाग यदि निश्चित नियमों के अनुसार ( जो सांख्यिकीय 
रीतियों के अन्तगंत्‌ आते हैं ) न किया जाय तो प्राप्त परिणाम को ठीक और विश्वसनीय 
नहीं माना जा सकेगा | 
सांख्यिकी की परिभाषा ( 060४90४07 ० $६2४580८8 ) 

सांख्यिकी ( 5:80800८$ ) शब्द का अ्योग पहले राज्य-अंकगणित (9(४:८- 
27777760८) में किया गया | इसकी प्रगति के साथ-साथ इसका विस्तार बढ़ता गया 
ओर यह केवल राज्य-संचालन की सहायता करने वाला शास्त्र न रह कर अन्य विज्ञानों 
में भी उपयुक्त होने लगा | तदनुसार इसकी परिभाषा भी बदलती गई और आज इस 
विषय के जितने लेखक हैं उतनी ही इसकी परिभाषाएँ भी हैं । द 

डा० बाउले (07. 805]6ए) के अनुसार सांख्यिकी वह विज्ञान है जो 

सामाजिक रचना को सम्पू्णो मान कर उसके सब प्रत्यक्षीकरणों को नापता है ।' 
(58005 5 6 इटाह7066 ०6 ६76 #7648प7धणढा: 06 50८४ 
0:8475870, ४८22४7060 235 & ज्ञ0]6 ॥॥ 7 75 ॥74756874874075) 
इस परिभाषा में सामाजिक शब्द का उपयोग सांख्यिकी के क्षेत्र को सीमित बना देता 
है | इस परिभाषा के अनुसार सांखियकी के क्षेत्र में केवल वे विषय आते हैं जो मानव 
ओर उसकी क्रियाओं से सम्बन्धित हों | पर आधुनिक काल में सांख्यिकी का उपयोग 
केवल मानव और उसकी क्रियाओं तक ही सम्बन्धित नहीं है | जहाँ कहीं भी आंकिक 








दर सांख्यिकी के सिद्धान्त 


माप की समस्या होती है, सांख्यिकी का उपयोग किया जाता है। इस दोष को डा० 
बाउले ने स्वयं दूर किया है। उन्होंने कहा कि इस परिभाषा का उपयोग करने पर 
सांख्यिकी का विस्तार केवल उन क्षेत्रों तक ही सीमित हो जाता है जहाँ समाज-शास्त्र 
व अर्थशास्त्र की समस्‍्याएँ  हों। अतः 'आगे चलकर वे लिखते हैं कि 'सांख्यिको को 
सही रूप में माध्यों (8०८:०४८७) का विज्ञान कहा जा सकता है। (802050८5 
072ए 780907ए 9९ ८३]]८१ ६४७ $८५०८८ ० ४ए८:०2०७) । इस परिमाषा में 
उन सब समस्याओं का समावेश नहीं है जिनका अध्ययन सांख्यिकी के अन्तर्गत किया 
जाता है। यह सच है कि सांख्यिकी में माध्यों की गणना करने का महत्वपूर्ण स्थान है 
पर सांख्यिकी, माध्यों की गणना करना मात्र नहीं है | माध्यों का उपयोग एक समग्र या 
समूह को संक्षित और सुविधाजनक खरूप में प्रस्तुत करने के लिए. होता है ताकि 
असामान्य सदस्यों का प्रभाव कम पड़े । पर इतने पर ही सांख्यिकी का विस्तार समाप्त 
नहीं हो जाता | अन्य विधियों ओर सिद्धान्तों का उपयोग भी सांख्यिकी में किया जाता 
है जैसे रेखाचित्र या चित्रों की विधियाँ, या संभाविता (77009%0॥0ए7) या सह- 
सम्बन्ध (८०४:८४८४०४) के सिद्धान्त | यह नहीं कहा जा सकता कि सांखियकी में 
इनका महत्व माध्यों की गणना करने से कम है। इस परिभाषा के अनुसार सांख्यिकी 
का उपयोग केवल मानव और उसकी क्रियाओं तक ही सम्बन्धित नहीं रहता, पर 
इसमें यह दोष है कि यह सांख्यिकी के केवल एक भाग पर आधारित: है ओर उसके 
अन्तर्गत आने वाले अन्य विधियों और सिद्धान्तों का समावेशन नहीं करती | डा० 
बाउले द्वारा प्रस्तुत एक अन्य परिभाषा के अनुसार सांख्यिकों गणन-विज्ञान 
($26४८८ ० ८००7४) है। पर जिस प्रकार सांख्यिकी को माध्य-विज्ञान 
(3267८6 ०06 ४ए८४४४८७) नहीं माना जा सकता उसी प्रकार गशन-विज्ञान मानने 
पर इसका विंस्तार सीमित हो जाता है। बहुत बड़ी संख्याओं का गणन असंमव-सा 
है | अतएव जहाँ तक छोटी संख्याओं की गणना ( जो की जा सझती है ) की समस्या 
है, यह परिभाषा उचित कही जा सकती है, पर बड़ी संख्याओं के लिए यह उपयुक्त 
नहीं है क्‍योंकि इनकी गणना नहीं की जाती बक्कि आगणन (8४६7790407) 
किया जाता है | इन संख्याओं पर मुख्यतः विचार करते हुए बोडिज्डटन (30909 08- 
507) ने सांख्यिकी को 'आगणन और संभाविताओं (०४४0025 2700 .970)9- 
0॥865) का विज्ञान! कह कर परिभाषित किया है। इन सब परिभाषाओं का मुख्य 
दोष यह है कि ये सांख्यिकी के किसी पक्ष-विशेष पर विचार करके दी गई हैं। 
वास्तव में यदि ये सब परिभमाषाएँ एक साथ रखी जाएँ तो सांख्यिकी की एक 

















परिचय तथा परिभाषा ७ 


परिभाषा बन सकती है, पर यह परिमाषा भी सब-समावेशी ( 9|-7८।४३४०८ ) नहीं 
होगी | 


उपयुक्त परिभाषाएँ सांख्यिकी क्‍या है !? के उत्तर में दी गई हैं। कुछ ऐसी 
परिभाषाएँ भी हैं जो यह बताती हैं कि सांख्यिकी क्या करती है?” ऐसी परिमाषाओं 
के अन्तर्गत्‌ किंग (१708) और लॉविट (],0ए४37) की परिभाषाएँ आती हैं। किंग 
(६९[४९2) के अनुसार सांख्यिकी प्रगणना (८7००7८४३४(४०7) या आगणन संग्रह 
( ८0]]6८४४०४ ०६ ८४४४४४०४४८५ ) के विश्लेषण के परिणाम-रूप में प्राप्त 
सामुहिक प्राकृतिक या सामाजिक गोचर घटनाओं ([7670776709) पर 
निर्णय देने की रीतियों का विज्ञान है | (777० 5ट०४८९८ 0६ 8:908008 8 ९ 
77067700 6 [ण58898 ट०णॉव्टांए्ट, 7४प7ढ 07 5002 97/670- 
776707 ६7077 ६76 इठ5पाँ४४ 07(ंाढते फए ६76 छ7%ए9४8 04 6एप- 
77672707 0£ ८0!]5८009 ० ८5६४४४००/:८७) | लॉविट, (,0४॥0) की परिभाषा 
के अनुसार सांख्यिकी वह विज्ञन है जो आंकिक-तथ्यों के संग्रहण (००0।|८८४१००), 
वर्गीकरण ( 208$8790८४८४४०४ ) और सारणीयन ( ६४०पा५६:०9 ) को गोचर 
घटनाओं (0॥०70797०79) की व्याख्या, वर्णन और तुलना करने के लिए 
आधार मानकर उन पर विचार करता है। इन परिमाषाओं के अनुसार सांख्यिकी- 
विज्ञन (52०४0०८ ०६ 57%79709) सांख्यिकीय रीतियों का विवरण या स्पष्टीकरण 
(८5५००४४०7) है | 


इन सच परिमाषाओं को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि “सांख्यिकी 
वह विज्ञान है जो तथ्यों को आंकिक रुप में नापता है, उनका विश्लेषण करके 
उन्हें इस प्रकार प्रस्तुत करता है जिससे उनके बीच का परस्पर-सम्बन्ध 
जाना जा सके | इसी प्रकार बे सिद्धान्त जो तथ्यों की आंकिक नाप, इनके 
विश्लेषण और सह-सम्बन्ध से सम्बन्धित हैं सांख्यिकी के सिद्धान्त ( 5:8:50८%| 
[५98) कहलाते हैं | इस परिभाषा के अनुसार किन तथ्यों के विषय में जानकारी प्राप्त 
करनी है यह सांख्यिकी के अन्तर्गत नहीं आता | पर जब तथ्य निश्चित कर लिए जाते 
हैं तो उनको आंकिक रूप में किस प्रकार नापा जा सकता है, यह सांख्यिकी का विषंय 
है। इस प्रकार प्राप्त मापों को ऐसे रूप में रखना जिससे तथ्यों के बीच तुलना की जा 
सके या सम्बन्ध स्थापित किया जा सके, भी सांख्यिकी के अन्तगंत्‌ आता है। 


८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सांख्यिकी के भाग (07880970$ ०६ 9६%090205) 


सांख्यिकी के दो मुख्य भाग किये जा सकते हैं :--- 

(१) सांख्यिकीय रीतियाँ (5:2&0300०] ४(०८००$)--इसके अन्तर्गत सच 
प्रकार के सामग्रियों में व्यवहार होने वाले प्रक्रिया के नियमों (06७ ०६ 9700600३6) 
ओर तत्सम्बन्धी सामान्य सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है। जैसे सामग्री एकत्रित 
करने, वर्गीकरण करने तथा तुलना करने के नियम | 

(२) व्यावहारिक सांख्यिकी (0[०77८6 54909870८४)--इसमं सांख्यिकीय 
रीतियों का वास्तविक तथ्यों या विभय-वस्तु में उपयोग करने पर विचार किया जाता है । 
जेसे राष्ट्रीय आय तथा उत्पादन संमक । 

व्यावहारिक सांख्यिकी को दो मागों में बाँग जा सकता है| एक, वशणुनात्मक 

व्यावहारिक सांख्यिकी ([2९8८४090ए९८ 29760 50:905$00$) जिसमें भूतकाल 
या वर्तमान काल में एकन्नित सामग्री पर विचार किया जाता है। दूसरा, वैज्ञानिक 
व्यावहारिक सांख्यिकी ($०८४४६८ /397]6व4 5&0%0800८9) में सांख्यिकीय 
रीतियों से वर्णनात्मक व्यावहारिक सांख्यिकी के लिए: संग्रहीत सामग्री द्वारा उन नियमों 
का निर्धारण किया जाता है जो पूर्वानुमान (£072०4४४78) करने में सहायता 
देते हैं । 

व्यावहारिक सांख्यिकी का उपयोग प्रायः सभी विज्ञानों में किया जाता है जसे 
अथशास्न, समाजशासत्र, जीवशास्त्र आदि | 
सांख्यिकी ओर भ्रन्य विज्ञानों का सम्बन्ध 
क्‍ जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि आधुनिक युग में कदाचित्‌ ही कोई ऐसा 
विज्ञान होगा जिसका सांख्यिकी से सम्बन्ध न हो पर यहाँ हम सांख्यिकी के गणित 
ओर अथंशास्र के सम्बन्ध पर कुछ प्रकाश डालेंगे क्योंकि इन दो विज्ञानों से सांख्यिकी 
बहुत घनिष्ट रूप से सम्बन्धित है । 

सांख्यिकी और गणित (5६2४8008 &८ ॥/(५७/८708//८७)--सांख्यिकी 
का सैद्धान्तिक पक्ष व्यावहारिक गणित ( 2ए०॥०१ छाक्रं7०70%&7८8 ) का एक 
भाग है। सांख्यिकीय माध्य, माध्य से विचलन, विषमता, विभिन्न प्रकार के गुणक 
(जैसे सह-सम्बन्ध-गुणक, विचलन-गुणक आदि), बक्र अन्वायोजन, देशनांक आदि 
सारतः ( ८5४८०८४।।ए ) गणितीय बोध ( 0%:6774//02] ८07८९७४$ ) हैं। 
बिना गणित का उपयोग किए, इनको ठीक-ठीक समझना अधिकांशतः अत्यन्त कठिन 








परिचय तथा परिभाषा & 


है ओर कुछ स्थानों पर बिलकुल असम्भव है। देव निदर्शन पूर्णतः संभाविता- 
नियम (८०४ए ० 770929॥0ए) पर आधारित है और संभांविता का बोध 
गणित के बिना अत्यन्त कठिन है | इस परस्पर-सम्बन्ध के कारण ही प्रायः गणितज्ञ. 
सांख्यिक भी हुए हैं। उदाहरणार्थ बनौली (3९:7००॥), गॉस (52055) आदि 
लिए, जा सकते हैं। इस सम्बन्ध की घनिष्ठता इसी बात से प्रकट हो जाएगी कि गणितीय: 
पांख्यिकी ( ((५६।72774070८20 $६20800$ ) सांख्यिकी और गणित दोनों का एक- 
भाग है | 

पर सेद्धान्तिक स्तर में इतनी घनिष्ठता के बावजूद भी इन दोनों में एक मुख्य 
भेद है। सांख्यिकी एक प्रायोगिक विज्ञान ( ०097८७ ४८८४०८९ ) है। इसकी 
उपयोगिता केवल इसी बाते पर निर्मर करती है कि यह व्यवहार को समझाने में सहायता: 
देता है | पर गणित के लिए यह बात सच नहीं है। ओर यही इनमें मुख्य अन्तर. 
है । भले ही कोई सिद्धान्त गणित के दृष्टिकोश से कितना की उत्तम और परिशुद्ध 
परिणाम देने वाला क्‍यों न हो, पर अगर उसका उपयोग व्यावहारिक जीवन में नहीं: 
किया जा सकता है--अ्रर्थात्‌ अगर वह प्रयोग-सिद्ध न हो सके, तो सांख्यिकी में 
उसका कोई विशेष महत्व नहीं है । 

सांख्यिकी और अथेशादत्न (904050 ८९5 ठं: &८०४०77८७)--अथर्थशाद्त्र 
के लिए सांख्यिकी बहुत अधिक उपयोगी है। सांख्यिकी का उपयोग अथशाम्त्र में दो 
स्तरों पर होता है। जब किसी सिद्धान्त को व्यवहार में लाना पड़ता है और जब 
संग्रहीत सामग्री की व्याख्या करनी पड़ती है | अर्थशास्त्र मुख्यतः एक प्रायोगिक विज्ञान है 
ओर जब तक किसी सिद्धान्त की व्यवहार के द्वारा पुष्टि नहीं की जा सकती, तब तकः 
वह अर्थहीन-सा है। ओर किसी भी आर्थिक नियम या सिद्धान्त की व्यावहारिक जगत 
के लिए. उपयोगिता जानने में सांख्यिकी की शरण लेना आवश्यक है । 

केवल आर्थिक सिद्धान्तों या नियमों की पुष्टि करने के लिए ही सांख्यिकी की 
आवश्यकता .नहीं पड़ती, बल्कि, साथ ही साथ व्यावहारिक अथ्थंशास्त्र में मी इसकी 
आवश्यकता पड़ती है | व्यावहारिक अर्थशास्त्र के बारे में तो यहाँ तक कहा जा सकता 
है कि बिना सांख्यिकी के यह पूरा हो ही नहीं सकता। जहाँ भी आर्थिक नीति 
(८८०४०४०४८ 90!८ए) निश्चित करनी पड़ती है, सांख्यिकी का उपयोग अनिवार्य 
हो जाता है । बिना वस्तुस्थित का सुतथ्यतापूर्ण अध्ययन किए, बिना उसके संघटकों का 
उचित माप किए किसी भी प्रकार की आर्थिक-नीति निश्चित करना संम्भव नहीं है । 

आश्िक-आयोजन (८००४०४४८ 9]277778) में तो बिना समंकों का पूरा- 











3० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


पूरा ज्ञान हुए कुछ किया ही नहीं जा सकता । आयोजन के आरम्भ से अन्त तक 
सिवाय समंको के संग्रहण, विश्लेषण ओर निर्वेचन के कुछ भी नहीं है । 
इन्हीं बातों का ध्यान रखकर अर्थशासत्र की एक नई शाखा बन गई है जिसमें 

गणितीय अर्थशास्र और गणितीय सांख्यिकी का प्रयोग होता है। इसको “इकॉनोमैट्रिक्स! 
( 8८07४0०77०६४८७ ) कहते हैं | इसमें अर्थशात्र के नियमों ओर सिद्धान्तों को' 
गणितीय रूप सें रखा जाता है ताकि वे मापनीय (777285972076) हो सके | इन 
गणितीय रूप में रखे गए. नियमों ओर सिद्धान्तों की पुष्टि करने के लिए सामग्री का 
संग्रहण किया जाता है जो सांख्यिकी का कार्य है। इसकी बृद्धिमान प्रगति इस बात 
का संकेत करती है कि इन तीनों में कितना घनिष्ट सम्बन्ध है ओर ये एक दूसरे से 
कितनी अधिक सहायता पा सकते हैं | 

इसके अतिरिक्त सांख्यिकी का उपयोग अन्य कई विज्ञानों म॑ं होता है। समाजशास्तर 
जीवशास्र, शिक्षाशास्त्र, स्वास्थ्य-विज्ञान आदि कई ऐसे विषय हैं जो सांख्यिकीय रीतियों 
का उपयोग करके लाभ उठाते हैं । 





अरन 


(१) समंक 'संख्याओं के रूप में दिए गए ओर कारण बाहुलय से प्रभा- 
वित तथ्यों के समूह है. जिनका आगणन या प्रगणन यथोचित परिशुद्धता 
के साथ किया गया है, जिनका संग्रहण किसी पूवेनिश्चत उद्देश्य के लिए 
किया गया है और जिनको एक दूसरे से सम्बन्धित करके प्रस्तुत किया गया है |! 

उपयुक्त परिभाषा की, समंकरों के गुणों को स्पथ्ट करते हुए, व्याख्या 
कोजिए | (बी० कॉम, इलाहाबाद, १६५५) 

(२) सांख्यिकी विज्ञान के ज्षेत्र पर विचार कीजिए और इसका सम्बन्ध 
सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञानों के साथ दिखाइए 

(बी: कॉम, लखनऊ, १६४०) 

(३) उचित उदाहरणों के साथ विशिन्न प्रकार को सांख्यिकीय रीतियों 
का वरणन कीजिए । (बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४०) 

(४) सांख्यिकी प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है ओर जीवन को 
कई स्थानों में छूती है । यह विज्ञान ओर कला, दोनों, है । 

उपयुक्त कथन का अथे उचित उदाहरणों के साथ समम्काइए | 

( बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४२ ) 


परिचय तथा परिभाषा ११ 


(५) 'अनिपुण व्यक्तियों के हाथ में सांख्यिकीय रीतियाँ सबसे भयानक 
उपादान हैं | सांख्यिकी उन विज्ञानों में है जिसमें प्रवीण व्यक्तियों को कलाकारों 
सा आत्म-संचय रखना पड़ता है ।? 

उपयुक्त कथन के महत्व को अच्छी तरह समम्काइए । 

(बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४७) 

(६) सांख्यिकी की निम्नलिखित परिभाषाओं की आलोचना कीजिए:-- 

(क) सांख्यिकी माध्यों का विज्ञान है । 
(ख) सांख्यिकी आगणुन ओर संभाविताओं का विज्ञान है। 
(ग) सांख्यिकी गणन विज्ञान है । 
(७) निम्नलिखित कथनों पर विचार कोजिए :--- 
(क) समंकों से कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है । 
(ख) अंक भूठे नहीं हो सकते | 
(ग) समंकों द्वारा किसी भी बात की पुष्टि को ज्ञा सकती है । 

(८) सांख्यिकी का गणित ओर अशथेशास्त्र से क्‍या सम्बन्ध हैँ ? 

समकाइये । 


अध्याय २ 
सांख्यिकी के काये तथा महत्व 


( #ए्रटा0708 था [7900(%70०6 ०६ 8:9870$ ) 


सांख्यिकी के काये ( #िपा८पं०75 ०६ $६9809:0०४ )--आंकिक रूप 
में उपलब्ध तथ्यों की संख्या साधारणत: इतनी अधिक होती है कि उन्हें समझना 
आसान नहीं होता | अगर ये सब तथ्य प्रस्तुत कर दिए जाएँ तो मनुष्य का मस्तिष्क 
उनसे कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकता | इसका एक कारण तो उनकी संख्या है, 
ओर दूसरा उनकी विभिन्नता | पर यदि इन तथ्यों को ऐसे रूप में रखा जा सके जिससे 
उनकी संख्या न्यूनतम हो जाए. और जिससे उनके बीच की समानता स्पष्ट हो जाए, 
तो उनको समभना अरपेक्षाइत सरल हो जाएगा और उनका ग्रहस्तन भी अधिक सुविधा- 
जनक हो सकेगा | तथ्यों को बोधगम्य और सुविधाजनक रूप में प्रस्तुत करने के लिए 
सांख्यिकी में कई रीतियों का उपयोग किया जाता है जेसे माध्य की गणना करना या 
तथ्यों को चित्रों या रेखाचित्रों के रूप में दर्शाना | इन रीतियों के कारण तथ्यों को 
समभना ओर उनकी तुलना करना अधिक सुविधाजनक हो जाता है | अर्थात्‌ सांख्यिकी 
द्वारा जटिल ( ०0777!०४ ) और अधिक संख्या में प्रस्तुत तथ्यों को सरल 
ओर सुविधाजनक रूप में उपस्थित किया जाता है । 

सांख्यिकी का दूसरा कार्य सरल और सुविधाजनक रूप में प्रस्तुत की 
गई सामग्री की तलना करना ओर उसके बीच गणितीय सम्बन्ध स्थापित करना 
है। यह साधारण अनुभव की बात है कि किसी एक स्थिति को ठीक-ठीक समझने के 
लिए उसकी किसी दूसरी स्थिति से तुलना करनी पड़ती है | ऐसा करने से इनके बीच 
के अन्तर को अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है| इसी प्रकार विभिन्न तथ्यों के 
बीच सम्बन्ध स्थापित करने से उनको समभना अधिक आसान हो जाता है | कई तथ्य 
ऐसे होते हैं, जिनको यदि तुलनात्मक रूप में न रखा जाय तो उनके कोई माने नहीं 
होते जैसे देशनांक ( [7665 #प:०८४ ) | 

सांख्यिकी का तीसरा काये तथ्यों को यथार्थ ( ००7८:८८८ ) रूप में 
रखना है | सांख्यिकी का उपयोग न करने पर इस बात की सम्भावना रहती है कि तथ्य 





सांख्यिकी के कार्य तथा महत्व १३ 


संदिग्ध और अनिश्चित रहें। उनको मूतं या यथार्थ रूप में रखने से न केवल 
उनकी संदिग्घता ओर अनिश्चितता ही कम हो जाती है बल्कि वे सर्वमान्य भी हो 
जाते हैं---उन पर व्यक्तियों की अमिमति ( 998 ) और पक्तपात ( 957८|०९८०6 ) 
का प्रभाव नहीं पड़ता | 

सांख्यिकी का एक अन्य काय दूसरे विज्ञानों के नियमों का सुकाव देना 
ओर उनकी परीक्षा करना है। केवल संग्रहीत सामग्री पर विचार करने से ही किसी 
विषय सम्बन्धी नियम निकाले जा सकते हैं। जैसे टाइको ब्राहे ( ॥'ए८ट0 87%/6 ) 
द्वारा गणित ज्योतिष सम्बन्धी सामग्री से केप्लर ( [६८७5७४ ) ने ग्रहों की चाल आदि 
के बारे में नियम निकाले थे | ऐसे नियमों का जो निगमन रीतियों (680॑प८४ए८ 
470८(7009) से नहीं निकाले जा सकते, सांख्यिकी द्वारा ग्राप्त किया जा सकता हैं। 
इसके साथ-साथ निगमन-रीतियों द्वारा प्राप्त नियमों की व्यावहारिक ज्षेत्र में उपयोगिता 
देखने के लिए भी सांख्यिकी का उपयोग आवश्यक है। अर्थात्‌ सांख्यिकी का व्यवहार 
घटनाओं के बीच प्रभाव-कारण सम्बन्ध स्थापित करने के लिए होता है | 

सांख्यिकी का प्रयोग वर्तमान वस्तु-स्थिति के बारे में विश्वलनीय आगणन करने 
में तो होता ही है, ओर इसके साथ-साथ भविष्य की स्थितियों के बारे में पूर्वानुमान 
( 407८८%४77९2 ) करने के लिए भो होता है। आवर्तिक परिवतंनों को ठीक रूप 
से समभने के लिए सांख्यिकी का उपयोग किया जाता है। आवर्तिक परिवतंनों या 
अन्य परिवतनों में घटनाओं के बीच प्रमाव-कारण सम्बन्ध प्रायः जटिलि होता है । 
सांख्यिकी द्वारा यह जाना जा सकता है कि ये परिवर्तन कहाँ तक आकस्मिक ( &८८- 
१०7४७ ) या अर्थपूर्ण ( ४877८%7४ ) हैं| इनके विषय में दिएः गए आवेदनों 
या किए गए पूर्वानुमानों की विश्वसनीयता को भी सांख्यिकी द्वारा जाना जा 
सकता है। 

सांख्यिकी का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य यह है कि इसकी सहायता से यह 
जाना जा सकता है कि कोई प्रभाव अथपरों ( $४2770०7८ ) है या नहीं । ऐसे 
प्रभावों का, जो अथपूर्ण नहीं है, इसके द्वारा निर्सन ( ८!॥४0774&7:० ) इस प्रकार 
किया जा सकता है जिससे विश्रम ( ८:४0£ ) न्यूनतम हो । इसका उपयोग अनुसंधानों 
में आवश्यकीय हो जाता है । 
सांख्यिक के कार्य (?प्शाटा005 0६ ३ 50403 0८६7) 

सांख्यिकी की परिभाषा ज्ञात होने पर सांख्यिक (४८३(8024:0) के कार्यों पर विचार 

किया जा सकता है अर्थात्‌ यह जाना जा सकता है एक सांखि्यिक के क्या कार्य हैं । 








१४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


स्पष्टतः सांख्यिक का प्रथम कार्य सांख्यिकीय सामग्री का संग्रहण होगा ताकि तथ्यों 
को आंकिक रूप में रखा जा सके। सामग्री-संग्रहण यदि उचित रूप में किया जाय तो 
वह ऐसा होना चाहिये की सांख्यिक की अभिनति (999) या पक्तुपात (7:शुंप०८८) 
से प्रभावित न हो। सांख्यिक को एक रच्चे वैज्ञानिक की भाँति केवल तथ्यों का, जेसे 
वे मिलते है, संग्रहण करना चाहिये | किसी भी प्रकार से अमिनत ( 9728820 ) या 
पक्षपाती सांख्यिक, वस्तु-स्थिति के बारे में सही नहीं बता सकता | अगर सामग्री-संग्रहण 
अभिनत या पक्तपाती हो तो सांख्यिकीय रीतियों का ठीक उपयोग नहीं किया जायगा 
ओर इस प्रकार ग्राप्त समंक केवल अंक रह जाएँगे जिनसे कुछ भी सिद्ध किया जा 
सकता है। संग्रहीत सामग्री का विश्लेषण करना सांख्यिक का दूसरा कार्य है, 
सामग्री के विश्लेषण के अन्तगंत वे सब कार्य आते हैं जो सामग्री को संक्षेप में रखने, 
उनकी तुलना करने, उनमें परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने आदि से सम्बन्धित है| 
अर्थात्‌ इस कार्य के अन्तर्गत, सांख्यिक, संग्रहीत सामग्री का इस रीति से उपयोग करता 
है जिससे कुछ परिणाम निकाला जा सके | सांख्यिक का तीसरा कार्य, जो सबसे महत्व- 
पूर्ण है, इन परिणामों का निवेचन ( 47/6777८६४०7 ) करना है | विश्लेषण 
द्वारा प्राप्त परिणामों का निर्वेचन सबसे कठिन कार्य है। क्योंकि इसमें अपनी सब 
परिसीमाओं पर विचार करना पड़ता है ओर उन कारणों के प्रभाव पर ध्यान रखना 
पड़ता है जिनको प्रयोग या अनुसंधान करने में छोड़ दिया गया था। ये परिणाम 
कहाँ तक विश्वसनीय हैं ओर इन्हें आधार मान कर कहाँ तक अन्य तथ्यों को जाना जा 
सकता है, इस पर भी विचार करना पड़ता है | 

जिन परिसीमाओं ( ॥778/075 ) के साथ सांख्यिक को कार्य करना 
पड़ता है वे महत्वपूर्ण हैं, सांख्यिक प्रायः नियंत्रित प्रयोग नहीं कर सकता और इसलिए 
उसे प्रत्येक घटना वैसी ही लेनी पड़ती है जैसी वह घट्ती है | किसी घटना का कारण 
जानने के लिये वह केवल अनुमान लगा सकता है और इसी अनुमान के बल पर वह 
तथ्यों का संग्रहण, विश्लेषण ओर निर्वेचन करता है। कई दशाओओं में उसे ठीक रीति 
से अनुसंधान करने तक की सुविधा नहीं मिलती | पर इन सब असुविधाओं ओर 
कठिनाइयों के बावजूद भी वह एक सफल सांख्यिक है, यदि वह तथ्यों का संग्रहण, 
उनका विश्लेषण ओर विश्लेषण से प्राप्त परिणामों का निर्वेचन एक तटस्थ कार्यकर्ता 
की भाँति बिना किसी अभिनत या पतक्षुपात के करता है | 
सांख्यिकी का महत्व 

सांख्यिकः को, जैसा बताया जा चुका है, राज्य-अंक-गणित कहा जाता 

















सांख्यिकी के कार्य तथा महत्व १४५ 


था क्योंकि इसके द्वारा राजा राज्य की आर्थिक स्थिति ओर उसकी जनसंख्या: 
का अनुमान लगाया करते थे। आधुनिक काल में इसका क्षेत्र अधिक व्यापक 
हो गया है | अब राज्य का उद्देश्य कल्याण ( ए७८]६४४८ ) की वृद्धि करना है। जिसका: 
एकमात्र उपाय राज्य-व्यवस्था के उन दोषों को दूर करना है जिसके कारण कल्याण की. 
वृद्धि नहीं हो सकती । निर्धनता, बेकारी, अन्य देशों से ग्रतिस्पद्धा (८0007960607),, 
व्यक्तियों का स्वास्थ्य आदि ऐसी समस्याएँ हैं जिनके कारणों, जिनकी वितति: 
( ८६८०८ )) और जिनको दूर करने के उपायों के बारे में, प्रत्येक राज्य को सोचना 
पढ़ता है । इनके लिए आंकिक रूप में तथ्यों का ज्ञान आवश्यक है। राज्यों को बार- 
बार जनता की आर्थिक या सामाजिक दशा जानने के लिए. सर्वेक्षण ( $प:ए८ए ): 
करने पड़ते हैं और इनसे ग्राप्त सामग्री का विश्लेषण करके इन कारणों, इसकी विततिः 
और इनको दूर करने के उपायों का अनुमान करना पड़ता है| इसलिये अब सांख्यिकी 
को राज्य-अंकशासत्र न कह कर मानव-कल्याणु का अंकशाखत्र कहा जाता है | 

आजकल, जब्॒ राज्य आर्थिक त्षेत्र में हस्तक्ञेप करते हैं, समंकों का उपयोग. 
अधिक महत्वपूर्ण हो गया है| वास्तव सें किसी भो प्रकार की योजना विन्ा समंक्रों: 
की सहायता के सम्भव नहीं है । किन क्षेत्रों को अधिक प्रोत्साहन देना है, कहाँ. 
आवश्यकता से अधिक व्यय हो रहा है आदि समस्याओं के उत्तर, बिना समंकों के 
असम्भव हैं। इसके साथ-साथ यह जानने के लिए कि किसी विशेष क्षेत्र में किस अंश 
तक सफलता मिली है, समंकों का उपयोग करना पड़ता है। पूरी योजना अपने प्रारम्म 
से लेकर अन्त तक समंकों पर निर्मर करती है ओर यह बात कल्पनातीत है कि बिना 
समंकों के कोई योजना चल सके | पूर्ण रूप से योजित अर्थ-व्यवस्था ( ए0गरल्ते 
८८००४००७ ) में भी समंकों का उपयोग अनिवार्य है | 

पू जीवादी अर्थव्यवस्था में, जहाँ उत्पादन व्यक्तिगत रूप में होता है, 
समंकों का उपयोग अति आवश्यक है। प्रत्येक उत्पादक को वस्तु की माँग का 
अनुमान लगाना पड़ता है। इसके साथ-साथ उसे अन्य ग्रतिस्पर्दधी वस्तुओं के मूल्यों, 
व्यक्तियों के रुचियों के प्रभाव, आदि का भी अनुमान लगाना पड़ता है। अगर वह 
इन सब पर विचार न करे तो उसकी सफलता-शआ्रात्ति में संदेह किया जा सकता है| 
कोई भी ठयापार ( 9०७।7285 ) इन पर ध्यान रखे बिना सफलतापूर्वक नहीं चल 
सकता | अतएव व्यापार और वाणिज्य में भी समंकों का महत्व निर्विवाद हो जाता हैं | 
यहाँ तक कि व्यापार या वाणिज्य के दृष्टिकोण को विशेष रूप से समझने के लिए 
व्यापार-सांख्यिकी ( 209॥7693 504 08005 ) नाम का सांख्यिकी का एक अलग 























१६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


भाग है। बीमा-कम्पनियों के लिए भी सांख्यिकी अपरिहार्य है क्योंकि उनका 
पूरा कार्य सुतथ्यता ( 6८0०7 ) से किये गये आगणनों पर ही निर्भर 
रहता है। 

सामाजिक अध्ययनों सें भी सांख्यिकी का उपयोग अनिवार्य है, जैसे 
शराब पीना ओर निर्धनता का सम्बन्ध आदि सांख्यिकी की सहायता ही से अध्ययन 
किये जा सकते हैं । यह अध्ययन कानून बनाने के काम में भी आ सकते हैं। इसी 
प्रकार अच्छे राज्य-प्रबन्ध के लिए भी समंकों का उपयोग करना पड़ता है । 
राज्य का आय-व्यय, शासन की कर नीति आदि सब विप्रयों को ठीक-ठीक रूप से 
जानने के लिए समंक आवश्यक है। सड़कों की चौड़ाई, पार्किक्ष के स्थान और 
दुर्घटनाओं के सम्बन्ध सें भी सांख्यिकी के बिना नहीं जाना जा सकता । पूरी राज्य-नीति 
इस पर आश्रित है | 

समंकों के द्वारा अन्य विज्ञानों के नियमों की सच्चाई का पता लगाया जा 
सकता है। प्रत्येक विशान का नियम कुछ मान्यताओं ( 28$प००000$ ) पर 
आधारित रहता है, जिनके कारण वह सुबोध और सरल हो जाता है | पर सरलीकरण 
में इस बात की सम्भावना रहती है कि कोई महत्वपूर्ण तथ्य छूट जाय, ओर इस 
'कारण वह वास्तविकता को ठीक से न समझा सके | कोई नियम वास्तविकता को किस 
अंश तक समझाता है इसकी जाँच करने के लिए समंकों का उपयोग किया जाता है। 
यह प्रवृत्ति, कम से कम अर्थशात्र में, आजकल इतनी अधिक हो गईं है कि अर्थ- 
शात्र के लेखकों के अनुसार वे नियम, जिनकी समंकों द्वारा पुष्टि नहीं हो सकती, 
“अर्थहीन! ( 7०07778655 ) हैं। इस दृष्टिकोण को प्रधानता देकर अर्थशात्र में 
एक नया विषय बनाया गया है जिसे “इकॉनॉमेट्रिक्स” ( 80070776 57705 ) कहते 
हैं। इसमें गणितीय अरथशात्र ( (४६7९०४४०४४८४॥  8८०0४0फ%7[८5 ) और 
गणितीय सांख्यिकी ( ॥(४00677६६ ८४7 50208005 ) का उपयोग किया जाता है। 

उपयुक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाना चाहिये कि आधुनिक युग में सांख्यिकी 
कितने महत्वशाली पद्‌ पर आसीन है | पद-पद पर सांख्यिकी की (या समंकों की ) 
आवश्यकता ग्रतीत होती है। वास्तविकता को सांख्यिकीय रीतियों द्वारा समझने का 
अयत्न बढ़ता ही चला जा रहा है। इस बात की पुष्टि इतनी अधिक संख्या में संग्रहीत 
सामग्री और उनके द्वारा प्राप्त समंक करते हैं । 

सांख्यिकी की परिसीमाएँ ( ॥॥माध्रतं०75 ०६ $६४5४८६ ) 

जैसा कि परिभाषा से ही स्पष्ट है, सांख्यिकी केवल उन तथ्यों पर ही विचार 








२ सांख्यिकी के कार्य तथा महत्व १७ 


करती है जो आंकिंक रूप से प्रस्तुत किये जा सकते हैं| पर वास्तविकता केवल परि- 
माणात्मक ((प००४८(४:४८) ही नहीं होती । अ्रतणव ऐसे गुणात्मक तथ्यों के लिए 
सांख्यिकी का उपयोग नहीं किया जा सकता | वैसे शुणात्मक तथ्यों को परि- 
माणात्मक रूप दिया जा सकता है, पर उनकी इस प्रकार दी गई परिभाषा स्वेच्छाचारी 
( &:07727ए ) होगी ओर इसलिए वैज्ञानिक नहीं कही जा सकेंगी | ऐसे गुणात्मक 
तथ्यों में श्रमिकों की कुशलता, व्यक्तियों की नि्धनता, उनका स्वास्थ्य आदि है। 
सांख्यिकी वैयक्तिक विशेषताओं पर विचार नहीं करती। इसका कार्य- 
क्षेत्र केवल समूहों (27078) या समग्रों ( छा१0]6 ) तक सीमित है | सांख्यिकी 
के नियमों का उपयोग करके जो परिणाम निकाले जाते हैं उनके बारे सें यह नहीं कहा . 
जा सकता कि वे किसी पद-विशेष के लिए हैं। वे समूह या समग्र की, उसकी पूर्णता 
में, केद्रीय प्रकृत्ति (८६०:४६) ८८४०१०7४८ए) बताते हैं। जैसे अगर किसी समूह 
के सदस्यों की ओसत डँचाई ६६"४ इंच है तो यह आवश्यक नहीं है कि उसके किसी 
भी सदस्य की लम्बाई ६६.७ इंच ही हो। या यदि यह बताया जाय कि किसी सिक्के 
को उछालने में हेड ( 7८४० ) या टेल ( £%/ ) के आने की सम्भावना 3 है तो 
यह नहीं बताया जा सकता कि किसी उछाल में हेड आयेगा या ठेल। इसका अर्थ 
केवल यही है कि अगर सिक्का कई बार उछाला जाय तो आधी बार हैड (॥०७०) 
ओर आधी बार टेल (£») आने की सम्मावना है। सांख्यिकी की इस परिसीमा 
को यों मी व्यक्त किया जा सकता है कि सांख्यिकी के नियम मसाध्य पद या दीर्घकाल 
के लिये ही सही होते हैं | अन्य स्थितियों में इनका उपयोग नहीं किया जा सकता | 
सांख्यिकी “वास्तविकता' को पूर्णुरूप से अध्ययन नहीं करती, इसलिए 
सांख्यिकीय रीतियों द्वारा प्रात परिणामों को पूर्ण-रूप से विश्वसनीय नहीं माना जा 
सकता । अगर वस्तु-स्थिति का पूर्ण अध्ययन करना है ताकि उसके अनुसार कोई नीति 
निश्चित की जा सके, तो अन्य पहलुओं पर भी विचार करना पड़ेगा। जैसे, यदि दो 
श्रेणियों में सह सम्बन्ध शुशक का मूल्य १ के आस-पास है तो इसका अर्थ निश्चित 
रूप से यह नहीं होगा कि इनके बीच कोई कारणु-प्रभाव सम्बन्ध है। अगर इनके 
विषय में कोई नीति बनानी है तो अन्य सम्भावनाओं पर भी विचार करना 
आवश्यक है | हु 
सांख्यिकीय रीतियों द्वाया प्राप्त समंकों का दरुपयोग बड़ी आसानी से 
किया जा सकता है। अगर इन रीतियों से प्रात्त परिणाम को बिना संदर्भ के दिया 
जाय तो गलतफहमी भी हो सकती है। इसी प्रकार अगर एक विशेष उद्देश्य के लिए 





























श्व्य सांख्यिकी के सिद्धान्त 


संग्रहीत समंकों का उपयोग किसी दूसरे उद्दे श्य के लिए किया जाय तो परिणाम श्रामक 
ओर अविश्वसनीय होंगे । 

सांख्यिकी की अविश्वसनीयता (088000७: ०६ 5६2/8॥८8) 

सांख्यिकी में अविश्वास कई प्रचलित वाक्यों में दिया गया हैं। जेसे डिजराली 
के अनुसार “मूठ तीन प्रकार का होता है : भ्ूठ, निरा झूठ ओर समंक% या गार्दिया 
के अनुसार “समंक उन्माद-रोग के चिकित्सकों की भाँति है--वे किसी भी पत्षु का 
समर्थन करेंगे / $ इसका कारण यह है कि समंकों का या सांख्यिकीय रीतियों का 
दुरुपयोग बड़ी आसानी से किया जा सकता है ओर किया गया हैं। ग्रायः समंकों 
का प्रहस्तन ( 7477704707 ) इस प्रकार किया जाता है जिससे विशेष हितों 
का स्वार्थ सिद्ध हो सके | कई महत्वपूर्ण बातें जिनका समंकों से पर्यात प्रभाव पड़ 
सकता है, जानबूम कर छोड़ दी जाती हैं | और इस प्रकार कुछ लोगों के इस विश्वास 
का कि अंक भूठे नहीं हो सकते! अनुचित लाम उठाया जाता है। लोग यह भूल जाते हूं 
कि अंकों और समंकों में अन्तर है। समंक ऐसे अंक होते हें जिनका संकलन किसी 
विशेष उद्दे श्य के दृष्टिकोण से होता है ओर जिनके संकलन में परिशुद्धता प्राप्त करने 
के लिए यथोचित सांख्यिकीय आवश्यकताश्रों को पूरा करना पड़ता हैं। इस अज्ञान के 
कारण लोग समंकों पर अविश्वास करने लगते हैं। पर यह समंकां का दोष नहीं 
है | अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि 'समंकों से कुछ भी सिद्ध किया जा सकता 
है ? यह केवल अंकों के लिए सही है जिनको प्रस्ठुत करने में सांख्यिकीय रीतियों का 
उपयोग नहीं किया जाता | 

पर भूठे अंक केवल इसीलिए प्राप्त नहीं होते कि कुछ मनुप्य अपना स्वार्थ 
सिद्ध करना चाहते हैं | इसका कारण यह भी हो सकता है कि यस्तुतकर्ता को समंक- 
संकलन की सांख्यिकीय रीतियों का ज्ञान न हो और नहीं वह यह जानता हो कि समंकों 
से प्राप्त परिणामों की क्या परिसीमाएँ हो सकती हैं। इस प्रकार अज्ञान के कारण प्राप्त 
समंक अगर गलत है तो यह संकलनकर्ता का दोष है न कि समंकों का। वास्तव में 
इस प्रकार प्राप्त समंकों द्वारा प्राप्त परिणामों के गलत होने पर लोगों का विश्वास 














न'ह67८ 276 ६0766 छांपरते5 0६ ॥65 : 405, 02077 [80$ 400 $४(9050१८5, 
--.3. /27574४४- 

(5028080708 876 ८ &0677508---796ए छा ६८५४४४६ए ६07 ९६४९४ 506 
--८ (२8४47 474: 


सांख्यिकी के कार्य तथा महत्व श्६्‌ 


सांख्यिकी पर इसलिए कम हो जाता है कि लोग सांख्यिकीय रीतियाँ नहीं जानते और 
जो दोष उन्हें संकलन-कर्ताओं को देना चाहिए उसे समंकों को देते हैं । 

समंकों की अविश्वसनीयता का वास्तविक कारण यह है कि वे उपादान-मात्र 
(४00]9) हैं और उपादानों के उपयोग-विशेष का दोष उनकी सहायता लेने वाले का 
है । सांख्यिकी में समंकों का संकलन करने से लेकर उनसे परिणाम निकालने तक में 
व्यक्तिगत मतों (००॥77079), अमिनति और पतक्षुपात के आने की शुजाइश रहती 
है | यदि कोई व्यक्ति निष्पक्ष होकर वैज्ञानिक निरपेक्षता के साथ समंकों का संकलन 
करें तो उसमें झूठे परिणामों के निकलने की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी । अतएव 
समंकों में जो अविश्वास लोगों का है उसका कारण वे स्वतः नहीं हैं, बल्कि उनके 
संकलनकर्ता ओर उनसे परिणाम निकालने वाले व्यक्ति हैं । 








श्र्श्ति 


(१) सांख्यिकी के महत्व का वर्णन कीजिए | 
(२) अपने हित के लिए सांख्यिकीय रीतियों का दुरुपयोग किस प्रकार 
किया जा सकता है ? इस प्रकार के सांख्यिकी के दुरुपयोग के कम से कम दो 
उदाहरण दीजिए | 
(बी० कॉम, लखनऊ, १६३६) 
(३) 'सांख्यिकी का ज्ञान किसी विदेशी भाषा या बीजगणित की जान- 
कारी के समान है, यह किसी भी परिस्थिति में किसी भी समय उपयोगी सिद्ध 
हो सकती है |” समम्काइए | 
द (पी० कॉम, इलाहाबाद, १६४६) 
(४) आप सांख्यिकी विज्ञान से स्पष्टठतया क्या सममते हैं ? इसके ज्षेत्र 
ओर इसकी परिसीमाओं पर विचार कीजिए । 
(बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४४) 
(५) सांख्यिक के क्या काये हैं ? किन दशाओं में वह एक सफल सांख्यिक 
कहा जाएगा । क्‍ 
(६) सांख्यिकी के विभिन्न भागों को वर्गीकृत' कीजिए और प्रत्येक का 
बणन संक्षेप में कीजिए । 
(७) समंकों में अविश्वास का क्‍या कारण है ! यह कहाँ तक युक्ति- 
ुक्त है! 


अध्याय ३ 
सांख्यिकी अनुसंधान का आयोजन 
( ?]8978 8 509४9: %) तप ) 


किसी भी विष्य में सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग करके परिणाम निकालने 
के लिए यह ग्रावश्यक है कि उचित ओर पर्यात समंक हों आर समंकों के बिना सांख्यिवीय 
नियमों का प्रयोग नहीं किया जा सकता | वस्तुतः समंक सांख्यिको के मुलाभाए 
((पाा१047767795) हैं। अतणव किसी भी अनुसंधान से पहले इनक संकलन 
(८०४०07%707) पर विचार किया जाता है। पर सामग्री-संकलन के पूत्र कुछ बातो 
पर विचार करना अनिवार्य होता है। जिस समस्या के लिए अनुसंधान किया जा रह 
है उसके प्रत्येक पक्त पर ये बातें विचारणीय है। सवश्र॒थम इस पर विचार करना 
पड़ता है कि अनुसंधान का उद्देश्य क्या है, इस उद्देश्य की ग्राप्ति के लिए क्या सूचन 
चाहिए, और यह सूचना किस प्रकार की हो | इसका अध्ययन निम्नलिखित शीष॑क 
के अन्तर्गत किया जाता है :-- 

(१) अनुसंधान का उद्देश्य ओर उसका ज्षेत्र निश्चित करना | 

(२) अनुसंधान का आयोजन | 

(३) सांख्यिकीय इकाइयों को निश्चित करना । 

(४) परिशुद्धता-परिमाण (62272९ 0£ 2८८०:३८ए) पर विचार करना | 

इन पर आगामी परृष्ठों में एक-एक करके विचार किया जाएगा । 




















अनुसंधान का उद्श्य ओर, क्षेत्र (09]6८ &६ 5८098 ० पा6 वंश) 


अनुसंधान का उद्देश्य निर्धार्ति करना सबसे महत्वपूर्ण पद है | इनमें दी हु 
समस्या को, जिसके लिए. अनुसंघान किया जा रहा है, स्पष्ट ओर संक्षित रूप में व्यत्त 
किया जाता है। समस्या की परिमाषा ( स्पष्ट ओर संत्षित कथन ) निश्चित हो जाने 
से सामग्री-संग्रहण (००॥|६८६४०7४ 0 6 6409) ओर उसका विन्यसन सरलतापूर्वक, क्‍ 
बिना अधिक समय लगाये, किया जा सकता है। परिभाषा जान लेने पर यह निश्चित 
करना बहुत आसान हो जाता है कि किस सामग्री को संग्रहीत करना है और कोर 


हा रि के ३ 
सांख्यिकी अनुसंधान का आयोजन २९५ 


सामग्री अनावश्यकीय है, इसलिए छोड़ी जा सकती है। यह निश्चित हो जाने से 
अनुसंधान में अधिक परिशुद्धता (४८८७८४३८ए) आ जाती है । 

इसके साथ-साथ अनुसंधान का क्षेत्र जानना भी आवश्यक है। अनुसंधान 
आरम्भ करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना चाहिये कि दी हुई समस्या के हल के 
लिए. कहाँ तक समंकों का उपयोग किया जा सकता है। जो भी सामग्री संग्रहीत को 
जाती है उसका पूर्ण होना आवश्यक है। पर अगर पूर्णता पर ही विचार किया जाय 
तो यह इतनी विस्तृत हो जायगी कि विषय के बारे में भ्रान्ति हो जाय और संग्रहीत 
सामग्री, समस्या का हल निकालने के लिए अनुपयुक्त हो जाय। अनुसंघान का ज्षेत्र 
निश्चित करते समय सामग्री-पर्याप्तता, सामग्री-डपयोगिता और समय एवं व्यय पर 
विचार करना पड़ता है । 


अनुसंधान का आयोजन (0]470978 ०४96 [7ए65४४2%८07) 


समस्या का उद्देश्य ओरे क्षेत्र निश्चित करने के बाद अनुसंधान का आयोजन 
किया जाता है अर्थात्‌ यह निश्चित किया जाता है कि सामग्री-संग्रहण किस प्रकार 
किया जायगा । 

आयोजक स्ब-प्रथम यह निश्चित करता है कि दी हुई समस्या के लिए 
तत्सम्बन्धी समग्र (घ०7००८४४८) के प्रत्येक सदस्य के बारे में अलग-अलग जानकारी 
प्राप्त करनी है या इस समग्र के प्रतिनिधियों को समूह के रूप में चुन कर इन 
समूहों के प्रत्येक सदस्य के बारे में जानकर, निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं| यदि वह 
यह समभता है कि प्रत्येक सदस्य के बारे में अलग-अलग जानना आवश्यक है तो 
कहा जाता है कि अनुसंधान संगणना-अनुसंधान (८८४४८४-४४पुणाएए ) के 
अनुसार किया गया है| इसका उपयोग बहुत कम होता है, पर जन-गणना इस प्रकार 
के अनुसंधान का उदाहरण है। इसके विपरीत कुछ समूहों को प्रतिनिधि मान कर 
अनुसंधान करने की रीति को निद्शेन-अनुसंघान (82007|०-८००५०८४ए) कहते 
हैं। इस रीति में प्रशणना (८०७४7८४४६४०४) सरलतापूबंक ओर सुविधाजनक होती 
है | अतएव प्रायः इसी रीति को अपनाया जाता है। पर इसमें अमिनति (998) का 
भय रहता है जिसे कम से कम करना अनिवार्य है। 

इसके पश्चात्‌ यह निश्चित किया जाता है कि मौलिक सामग्री (0०0४847%॥ 
04204) का संग्रहण करना है या अब तक प्रकाशित या उपलब्ध सामग्री से ही काम 
चल जायगा | मौलिक सामग्री के संग्रहण की आवश्यकता उन दशाझओं में पड़ती है 




















१९२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


जब समस्या पर इससे पहले विचार न किया गया हो या जब प्रकाशित या उपलब्ध 
सामग्री पुरानी हो गई हो जिसके कारण उसका उपयोग वतेमान परिस्थितियों में न 
किया जा सकता हो | इस स्थिति में अनुसंधान का क्षेत्र ओर सांख्यिकीय इकाइयों का 
उपयोग समस्या के अनुसार किया जा सकता है| पर उपलब्ध सामग्री का उपयोग करने ' 
में यह लाभ नहीं रहता | यदि अनुसंधान में मोलिक सामग्री का संग्रहण किया गया 
है तो वह प्राथमिक-अनुसंघान (97047ए 70प४ए) कहलाता है, पर अगर 
उपलब्ध सामग्री का उपयोग किया जाय तो वह द्वितीयक-अनुसंघान ($2८0ए००४४ए 
7000४ए) कहलाता है | 

अगर किसी अनुसंधान में परिशुद्धता (३८८५४४८ए) को अधिक महत्व देना 
हो तो प्रत्यक्ष-अनुसंघान (396८८ ४ए८४४2५४07 ) किया जाता है। प्रलक्ष- 
अनुसंधान के लिए यह आवश्यक है कि वस्तु-स्थिति का अध्ययन निरीक्षण करके 
किया जाता है ओर इस प्रकार समस्या-सम्ब्रन्धी जानकारी प्रत्यक्षु रूप से उससे संबंधित 
रहती है | पर इस रीति का उपयोग केवल उन्हीं अनुसंधानों तक सीमित है जहाँ गहन 
((0:2005876) अध्ययन करना हो श्रोर जहाँ विषय-वस्तु को ठीक रूप से सांख्यिकी 
द्वारा जाना जा सके | अगर किसी समस्या का विस्तृत (८४८४8ए८) अध्ययन करना 
हो तो यह प्रायः सम्भव नहीं हो सकता कि सामग्री-संग्रहण प्रत्यक्ष-अनुसंघान की रीति 
से किया जाय और न ही इसका उपयोग ऐसी सामग्री-संग्रहण में किया जा सकता है 
जहाँ विषय-वस्तु को पूरी जानकारी सांख्यिकीय रीतियों द्वारा नहीं की जा सकती । ऐसी 
दशाओं में श्रति (8०9:59ए ) या विषय-वस्तु पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालने वाले 
ओर आंकिक रूप से मापनीय तथ्यों की सहायता से सामग्री-संग्रहण किया जाता है, 
क्योंकि इसमे अध्ययन वस्तु स्थिति का निरीक्षण करके नहीं होता बल्कि ऐसे लोगों की 
सहायता से होता है जो उससे घनिष्ठ रूप से परिचित माने जा सकते है या ऐसे तथ्यों 
की सहायता से होता है जो उससे अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है, इसलिए इस ग्रकार 
के अनुसंधान को अप्रत्यक्ष अनुसंधान (70977०८: 4740८४४ए) कहा जाता है| 
यह सम्भव है कि एक ही सर्वेक्षण (5प्राए०ए) का कुछ माग प्रत्यक्ष अ्रनुसंघान 
की रीति से किया जाय ओर शेष भाग अप्रत्यक्ष अनुसंघान की रीति से | 

इसको निश्चित कर लेने पर यह तय करना पड़ता है कि प्रश्नावली को सीधे 
समग्न के सदस्यों के पास भेजकर उनके उत्तर प्राप्त किए जाये या अन्वेषकों (0ए०४- 
08270:5 ) को सहायता को जाय | पहली स्थिति में समग्र के सदस्य स्वयं इच्छित 
उत्तर दे देते हैं। पर इसके लिए. यह आवश्यक है कि सदस्य पढ़े-लिखे हों और 








सांख्यिकी अनुसंधान का आयोजन द २३ 


प्रश्न सुबोध, सरल, ओर सीधे हों जिससे उनका उत्तर स्पष्ट रूप से दिया जा सके | 
इस प्रकार के अनुसंधान का उपयोग केवल शिक्षित ओर उत्तरदायी सदस्यों तक सीमित 
है | पर अगर कुशल अन्वेषकों द्वारा अनुसंधान किया जा रहा हो तो अनुसंधान का 
क्षेत्र अधिक विस्तृत हो जाता है क्योंकि वे किसी भी सदस्य को प्रश्न का अर्थ स्पष्ट 
रूप से समझाने में समर्थ होने ओर इसलिए आवश्यक सूचना प्राप्त करने में सफल 
होंगे । 








एक अन्य बात जिस पर विचार करना पड़ता है, निम्नलिखित है| अगर 
अनुसंधान प्रारम्मिक ( 300%/| ) है तो इसके लिए पूरा आयोजन करना पड़ेगा और 
इसके प्रत्येक पहलू पर पूर्ण रूप से विचार करना पड़ेगा | पर यदि प्रस्तुत अनुसंधान 
किसी पहले किए जा चुके अनुसंधान की पुनरावृत्ति है तो पहले के अनुसंधानों में कुछ 
संशोधन और परिवर्द्धछ, जिनकी आवश्यकता परिस्थितियों के बदलने के कारण 
पड़ सकती है, करने ही से काम चल जायगा | 














सांख्यिकीय इकाइयाँ ( 8६४58 0८% (708 ) 


समंकों का संग्रहण बिना नाप या गणना के नहीं हो सकता । अगर ये नापें या 
गणन बिना किसी इकाई के दिए जाएँ तो इनका कोई अर्थ नहीं होता | जैसे एक अंक 
६५ अर्थहीन है क्‍योंकि इससे यह नहीं जाना जा सकता कि यह किस वस्तु 
को व्यक्त करता है। अतएव सामग्री-संग्रहण प्रारम्भ करने से पहले इकाइयों को, जिनके 
द्वारा समंक व्यक्त किए जायँगे, निश्चित करना नितान्त आवश्यक है। यदि ऐसा न 
किया जाय तो श्रमात्मक निष्कर्ष निकालने की संभावना रहती है| फिर, यह जानना 
इसलिए भी आवश्यक है कि हम किस वस्तु को नाप रहे हैं या किसकी गणना कर 
रहे हैं। अनुसंधान के बीच में इकाइयाँ टीक रूप से निश्चित न होने के कारण 
गड़बड़ी हो सकती है | अतएब अनुसंधान प्रारम्भ करने के पूव इकाइयों को स्पष्ट रूप से 
निश्चित कर लेना चाहिए ओर अनुसंधान में उनका उपयोग एक ही प्रकार करना 
चाहिए ताकि बाद में किसी प्रकार का अ्रम न रहे और सामग्री से प्राप्त निष्कर्ष निर्भस्‍्ता- 
योग्य हों | इकाइयों का बोधगम्य होना भी आवश्यक है । 

इकाइयों को निश्चित करने का कार्य कठिन होता है, इसका सुख्य कारण यह 
है कि साधारणतः बोल-चाल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के अर्थ निश्चित नहीं होते । 
केवल एक शब्द का प्रयोग कई विभिन्न अर्थों के लिए. किया जाता है। अगर इन 
शब्दों को सांख्यिकी में सब प्रचलित अर्थों के साथ लिया जाय तो तत्संबंधी किसी भी 





२४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


कथन में संदिग्धता रहेगी | जिस प्रकार अन्य विज्ञानों में किया जाता है उसी प्रकार 
सांख्यिकी में इन शब्दों का उपयोग केवल विशिष्ट रूप में किया जाता है ताकि संदि- 
धता के लिए कोई गुज्लाइश न रहे | इसलिए उन्हें परिमाणित करना पड़ता है | 

सांख्यिकीय इकाई के लिए निम्नलिखित बातें श्रावश्यक हैं 

यह विशिष्ट और शभ्रम-रहित होनी चाहिए ( ॥। 5007]0 9९ 89९८८ 
270 एप॥7509:०0]2 )--इसलिए प्रत्येक शब्द की, जिसका सांख्यिकी में 
उपयोग होता है, स्पष्ट परिमाषा देनी चाहिए.। विशेषतः तब, जब उसके अथ साधारण 
बोल-चाल में कई होते हैं, इकाइयों की परिभाषाएँ असंदिग्ध, सुबोध ओर पूर्ण होनी 
चाहिए । 

यह सजातीय होनी चाहिए ( ॥( #70फ]0 96 0770 9०7९०८४६ )-- 
यह सारूप्यता (७०४६०४7/79) अपरिहार्थ है। ऐसा नहीं कि एक ही इकाई का उप- 
योग विभिन्न स्थलों या समयों में विभिन्न रूप से किया जाय | यदि इकाइयों के उपयोग 
में सारूप्यता नहीं होगी तो सामग्री द्वारा विभिन्न परिस्थितियों के बीच ठुलना नहीं 
की जा सकती और ऐसी सामग्री द्वारा ग्रात परिणाम अआान्तिमूलक हो सकते हैं। चुनी 
हुईं इकाइयों का प्रयोग सब परिस्थितियों में न किये जा सकने की कठिनाई दो प्रकार 
से दूर की जा सकती है | या तो सामग्री को समूहों या वर्गों के रूप में अन्तर्विमक्त 
( 5प708ए708 ) करके या विभिन्न इकाइयों को चुनी हुई इकाई के रूप में व्यक्त 
करके | 


























यह स्थायी ($:40]०) और प्रमापित (४:४7१%:072»60) होनी 
चाहिए--यदि इकाइयों का मूल्य बदलता हुआ है तो किसी निश्चित समय के मूल्य 
को स्थायी ओर प्रमापित इकाई मान लिया जाता है, ओर अन्य समय के मूल्यों को 
इसके रूप में व्यक्त करके स्थायित्व लाया जा सकता है । 

यह अनुसंधान के लिए उपयुक्त (४[0070007%0०) ओर सही रूप से 
नि्धारण-योग्य (88८८:६७7790]०) होनी चाहिए--अनुसंघानों के लिए अलग- 
अलग इकाइयों का विभिन्न उपयोग उनकी उपयुक्तता की दृष्टि से किया जाता है। 
इसके साथ-साथ अगर इसका निर्धारण सही-सही नहीं किया जा सकता तो परिणाम में 
गलती रहने की आशंका रहती है । 

इकाइयों को साधारणतया दो भागों में बाँठा जा सकता है :--(१) सरल 
सांख्यिकीय इकाई (आं।0]6 8४%४5घं८३) प्रणा:) और (२) संग्रहीत सांख्य- 
कीय इकाई ९०0707095॥6 ४807807८%६7 पाता) | 








सांख्यिकी अनुसंधान का आयोजन २५४, 





सरल सांख्यिकीय इकाई--इन इकाइयों को परिमाषित करना अपेक्षाकृत 
सरल होता है क्योंकि ये वस्तुओं के एक शुण की परिमाणात्मक मापें हैं। जैसे सेर या 
मन, गज, घन्टे, रुपया, एक कमरा आदि | इनका उपयोग करने में भी कभी-कभी 
सावधानी बरतनी पड़ती हे क्योंकि इनका मूल्य विभिन्न स्थानों में अलग-अलग हो 
सकता है | मारत के विभिन्न भागों में सेर का मान अलग-अलग है | 

संग्रहीत सांख्यिकीय इकाई--ये इकाइयाँ या तो सरल सांख्यिकीय इकाइयों 
में कोई विशेषण जोड़कर बनती हैं या दो से अधिक सरल सांख्यिकीय इकाइयों को 
मिलाकर । जेसे गति को इकाई मील-प्रति-घन्य है, या भार-वाहन की इकाई मन-प्रति 
मील आदि हैं । 

परिशद्ध ता-परिमाण ( 6876९ ०६ 8८८प४३४८ए ) 

किसी भी अनुसंधान में पूर्ण परिशुद्धता प्राप्त करना अ्रत्यन्त कठिन है। इसका 
कारण यह है कि निरीक्षक और उसके द्वारा उपयुक्त उपादान (498प77८7/8 ) 
अपरिशुद्धता को जन्म दे सकते हैं ओर साधारणुतः देते हैं | अतएव अनुसंधान शुरू करने 
से पहले ही इस वात पंर विचार कर लेना चाहिए कि किस अंश तक परिशुद्धता की 
. आवश्यकता है । इसको ध्यान में रखते हुए विश्रम के कारणों (30प7८९३ ० €ह70फो- 
के प्रभाव को न्यूनतम रखने के उपाय निकाल लेने चाहिए | 

परिशुद्धता का परिमाण मुख्यतः अनुसंधान की प्रकृति पर निर्मर रहता है । 
अगर अनुसंधान से ग्राप्त सामग्री में थोड़ा सा विश्रम होने पर समस्या के हल में काफी 
प्रभाव पड़ सकता है तो परिशुद्धता पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है, जैसे, वैज्ञानिक, 
प्रयोगों में । अन्यथा कम परिशुद्धता से भी काम चल जाता है | 

प्रश्न 

( ९ ) अनसंघान आरमण्भ करने से पर्व किनस-किन बातों का ध्यानः 
रखना चाहिए ? सविस्तार समम्काइए | 

(२ ) अनसंधान के उद्देश्य से आप कया सममते है ? किसी अनसंधान 
का आरम्भ करने से पं डसका उह श्य निश्चित करना क्‍यों आवश्यक है ? 

( ३ ) संगणना-अलुसंधान तथा निद्शेन अनुसंधान में क्‍या अन्तर है 
ओर यह किन-किन परिस्थितियों में उपयोग में लाये जाते हैं ? 

(४ ) सांख्यिकी इकाइयाँ क्‍या हैं ? इनका निर्धारण करने में क्‍्या- 
क्या कठिनाइयाँ होती हैं ? 

. (४ ) सांख्यिकी इकाइयों के आवश्यक गुणों की विवेचना कीजिए ? 




















अध्याय ४ 
सामग्री संकलन 


( (,06८007 ०7 729/%9 ) 








अनुसन्धान के आयोजन के पश्चात्‌ सामग्री-संग्रहण प्रारम्भ किया जाता है ) 
सामग्री-संग्रहण में किस रीति का उपयोग किया जाएगा यह इस बात पर निभर करता 
है कि ग्राथमिक सामग्री (8770797ए 0969) का संग्रहण करना है या ह्वितीयक सामग्री 
(8८००४०५४ए 0202) का | जैसा बताया जा चुका है, प्राथमिक सामग्री में मोलिक 
सामग्री ( 0४278] 029 ) का संग्रहण होता है और द्वितीयक सामग्री में अन्य 
अन्वेषकों ( 77८58४92/075 ) द्वारा संग्रहीत सामग्री का उपयोग होता है। अतएब 
इनकी संग्रहण-विधियों का अध्ययन अलग-अलग किया जाता है | 

प्राथमिक सामग्री-संग्रहण ((.0[!6८00070 6 ?07797ए 402/9) 

प्राथमिक सामग्री का संग्रहण निम्नलिखित रीतियों से किया जा सकता है :--- 

(१) यत्यक्ष स्वयं-अनुसंघान ([076८: 67807%/7 [77९४४8%007) 

(२) अप्रत्यक्ष-मोंखिक-अनुसंघान ([04]#2८८६ (27%9] 470ए८5४४५07॥ 

(३) अनुसूची-पश्नावली द्वारा (97 5८86०प७४ (१४८४४०४०५४६:०७) | 

(४) स्थानीय प्रतिवेदनों द्वारा (37 [.0८%)! १००००:४७) । 

इन पर अब अलग-अलग विचार किया जाएगा | 

(१) प्रत्यक्ष म्वयं-अनुसंघान (276८60 [?८४४०7) पघए९४६ 8५607) --- 
इस पद्धति में वस्तु-स्थिति का अध्ययन अन्वेषक स्वयं क्षेत्र में जाकर करता है। बह 
वस्तु-स्थिति का अंग बनकर उसका निरीक्षण करता है | इसके लिए यह आवश्यक है 
कि वह॒ परिस्थितियों के अनुकूल बन जाय | इस पद्धति से याप्त सामग्री अधिक 
विश्वसनीय ओर प्रामाणिक होती है, बशर्तें अन्वेषक की अमिनति या पक्षुपात से वह 
प्रभावित न हुईं हो । अधिक समय, परिश्रम और घन के व्यय होने के कारण इस 
पद्धति का उपयोग केवल उन्हीं स्थलों तक सीमित है जहाँ स्थानीय या गहन अनुसंधान 











सामग्री संकलन २७ 


(760876 ॥7ए7८5029707) की आवश्यकता हो । अगर विस्तृत अनुसंधान 
( ८ड८78772 79४८४४220709 ) करना हो तो इसका उपयोग नहीं किया जा 
सकता | 

यदि कारणवशात्‌ स्वयं-अनुसंधान सम्भव न हो तो यथार्थ परिस्थितियों से 
सम्बन्धित व्यक्तियों से प्रश्न पूछुकर और उनसे जिरहू (८४098-८हए%४77 4007) 
करके सामग्री संग्रहीत की जा सकती है.| पर इसमें पर्यात सावधानी बरतनी पड़ती है 
क्योंकि सही सूचना प्राप्त करना सूचकों (!7/0777८४5) पर निर्भर रहता है | अन्वेषक 
को ऐसा होना चाहिये कि वह उनको अनुसंधान का उद्दे शव आदि उचित रीति से 
सममभा सके जिससे वे कोई तथ्य छिपायें नहीं। यह उन स्थलों में विशेष रूप से 
उपयोगी है जहाँ अनुसंधान किसी जटिल समस्या के लिए किया गया हो या जहाँ 
ग्रश्नों का अर्थ समझाना आवश्यक हो। वैसे प्रयत्न इस बात का करना चाहिए कि 
प्रश्न सरल ओर सुबोध हो ताकि सूचकों की समझ में आसानी से आ जाय जिससे 
थे उत्तर बिना कठिनाई के दे सके | 

(२) अप्रत्यक्ष मीखिक-अनुसंघान (70760८ (0+% [7ए6४४2&07) 
--डन परिस्थितियों में जहाँ उपयुक्त पद्धति का उपयोग नहीं किया जा सकता, यथार्थ 
परिस्थिति से अप्रत्यक्ष रूप में सम्बन्धित व्यक्तियों की सहायता से सूचना प्राप्त की जा 
सकती है। क्षेत्र की विस्तृतता या सूचकों की उदासीनता के कारण ऐसा हो सकता है। 
इस पद्धति को अप्रत्यक्ष मोंखिक अनुसंधान कहते हैं | इस रीति से सामग्री का संग्रहण 
करने में कुछ सावधानी रखनी पड़ती है। पहली यह कि सूचक को वास्तविक तथ्यों का ज्ञान 
है ओर यह ज्ञान प्रामाशिक माना जा सकता है। इसके साथ-साथ इस सम्भावना पर 
भी विचार करना चाहिए कि कुछ विशेष हितों के कारण वह अमभिनतिपूर्ण या पक्तपाती 
सूचना तो नहीं दे रहा है। सूचक की मानसिक स्थिति और उसके स्वभाव का भी 
ध्यान रखना चाहिये | उन स्थितियों में जहाँ सूचक अशिक्षित या अल्प-शिक्षित है, 
इस बात का निश्चय कर लेना चाहिए कि वह अपने को ठीक-ठीक व्यक्त कर रहा है 
या नहीं | 

इस पद्धति का उपयोग राज्य द्वारा नियुक्त अनुसंधान-समितियों (4ँ0पां४ए 
८07777706८७) द्वारा विल्षेष रूप से किया जाता है। 

(३) अनुसूची-प्रश्नावल्षी द्वारा (9ए 5८४८० 6 (१प८४:077%/:८)--- 
प्रत्यक्ष स्वयं-अनुसंधान का उपयोग, जैसा बताया जा चुका है, उन स्थानों में होता है 
जहाँ विशेष परिशुद्धता की आवश्यकता होती है या जहाँ अनिच्छुक या उदासीन या 




















श्र सांख्यिकी के सिद्धान्त 


अशिक्षित व्यक्तियों से सूचना प्राप्त करनी पड़ती है | पर इसके दोप स्पष्ट हैं। इसका 
उपयोग विस्तृत अनुसंधानों में नहीं किया जा सकता | साथ ही साथ ये अन्वेपक की 
अभिनतियों से प्रभावित हो सकते हैँ। इसलिए अनुसूची-प्रश्नावली की रीति का 
उपयोग किया जाता है | इस रीति का उपयोग दो प्रकार से होता है :--- 

(क) प्रश्नावली को सूचकों के पास भेज दिया जाता है ओर वे आवश्यक यूचना 
देकर उसे अन्वेषकों को लोथा देते हैं । 

इस रीति का लाम यह है कि बहुत कम व्यय में ओर कम समय में विस्तृत 
क्षेत्र से पर्याप्त सूचना मिल सकती है | अगर अनुसंघान ठीक तरह से निर्देशित हो तो 
पर्यात परिशुद्धता मी याप्त हो सकती है। जो भी प्रश्न पूछे जायें वे छोटे, सरल, बोध- 
गम्य, क्रम संख्या में ओर संदिग्घता रहित हों। इसके साथ-साथ प्रश्नावली में ऐसे 
प्रश्न नहीं होने चाहिये जिनके उत्तर, सूचक शुत्र रखना चाहें | सांख्यिकीय इकाइयों 
की ठीक-ठीक परिभाषित करना चाहिये जिससे सामग्री-सारूप्यता बनी रहे। सन्कों को 
यह भी बता देना चाहिये कि अनुसंधान का उद्देश्य क्या है ओर उनका सहयोग कितना 
महत्वपूर्ण है । इस बात का पूरा प्रयत्न करना चाहिये कि सूचक, अनुसंधान के लाभ 
को समझे | इन बातों को प्रत्येक प्रश्नावली के साथ एक पत्र मेन कर समझाया जा 
सकता है । 

पर इस रीति में कुछ दोष भी हैं। अगर सूचक अशिक्षित हुए तो इसका 
उपयोग नहीं किया जा सकता | साधारणतः ग्योसत सूचक, अनुसंधानों के प्रति उदासीन 
रहता है। अगर उसकी सहायता उचित रूप से न मिली तो विश्रम ( ०४705 ) की 
सम्भावना रहती है | कई बार प्रश्नों के उत्तर अधूरे और संदिग्ध रहते हैं। वास्तव 
में इस रीति की सफलता, पूर्ण रूप से सूचकों की सहायता और उनकी दिलचस्पी पर 
निभर रहती है । 

(ख) दूसरी रीति यह है कि प्रश्नावली प्रणणक ( &ं7प77९८७:०४ ) द्वारा 
पहुँचाई ओर संग्रहीत की जाती है। ये प्रगणक सूचकों को उत्तर देने में सहायता 
देते हैं । 

इस रीति में प्रगशक स्वयं प्रश्नावली लेकर सूचकों के पास जाते हैं ओर उनसे 
प्राप्त उत्तरों को स्वयं लिखते हैं। वे सूचकों को अनुसंधान का उद्देश्य ओर सही सूचना 
देने का महत्व समभाते हैं ताकि सूचक प्रश्नों का उत्तर सही दे सके | अगर प्रश्न के 
समभने में कोई कठिनाई हो तो वे उस प्रश्न को सविस्तार समझा सकते हैं | विस्तृत 
अनुसंधानों में यह विशेष रूप से उपयोगी है क्योंकि इस रीति द्वारा पर्यात परिशुद्धता 
































सामग्री संकलन श्६ 


के साथ उचित सामग्री प्राप्त की जा सकती है। सामाजिक या आर्थिक स्थिति सम्बन्धी 
विस्तृत अनुसंधानों में इसी रीति का उपयोग किया जाता है। 

पर इस. रीति से किये गये अनुसंघान में प्रामाणिकता और परिशुद्धता प्राप्त 
करने में प्रगणकों का मुख्य हाथ रहता है | इसलिए इनके चुनाव में विशेष सावधानी 
बरतनी पड़ती है ओर उन्हें उचित शिक्षा भी देनी पड़ती है। प्रगण॒कों को उद्यमी, 
बुद्धिमान और स्थिर स्वभाव का होना चाहिये जिससे वह उत्तरों की प्रामाणिकता और 
विश्वसनीयता जान सकें ओर काल्पनिक या झूठे उत्तरों को पहचान सकें। वे ऐसे 
हों कि अनुसंधान, निरपेकज्षु होकर कर सके जिससे अमिनति या पक्षपात की शुज्लञाइश 
न रहे । इसके साथ-साथ उन्हें अच्छे स्वभाव का भी होना चाहिये जिससे वे सूचकों 
को अनुसंधान के विपक्षु में न करें बल्कि उन्हें फुसला कर और मना कर अपना कार्य 
सिद्ध कर लेँ। उनमें इस बात की सामथ्य होनी चाहिये कि वे थोड़ी ही देर में सूचकों 
ओर अपने बीच अपनत्व स्थापित कर लें। इसके लिए यह आवश्यक है कि बे 
स्थानीय रीति-रिवाजों, व्यवहारों ओर भाषा को जानें । 

प्रगणुकों को चुन लेने के बाद उनको उचित रूप से शिक्षित करना चाहिये | 
उन्हें अनुसंधान के उद्देश्य ऑर उसके क्षेत्र के बारे में अच्छी तरह बता देना चाहिये 
क्योंकि कई सूचक जिज्ञासु होते हैं. जिन्हें सब कुछ बताना पड़ता है। उन्हें प्रत्येक प्रश्न 
के अर्थ, क्षेत्र और महत्व को जानना चाहिये जिससे वे प्रत्येक सूचक को उसके उत्तर 
की महत्ता समझा सके | उन्हें जिरह करना सिखाया जाना चाहिये जिससे थे गलत 
ओर यालने के लिये दिये गये उत्तरों को पहचान सके ताकि सामग्री-परिशुद्धता बनी 
रहे | सिद्धान्त में ये बातें समझाने के बाद भी उन्हें एक दम अकेले क्षेत्र में नहीं 
भेजना चाहिये । कुछ दिनों तक युराने प्रगण॒कों के साथ रह कर जब वे इन सब बातों 
व्यवहार में किया जाता देख लें तो वे स्वतंत्र रूप से ज्षेत्र में भेजे जा सकते हैं । 

(४) स्थानीय प्रतिबेदनों द्वारा (57 7,०८३) ९००००:७ )--इसमें 
स्थानीय व्यक्तियों या कुछ चुने हुए संवाददाताओं (८०४:८४[०0708788) द्वारा वस्तु 
स्थिति के बारे में अनुमान लगा लेते हैं ओर उन्हें अन्वेषक के पास भेज देते हैं । 
इस रीति से ग्रात्त सामग्री अमिनत ( 85560 ), एक-पक्तीय या अधूरी हो सकती है 
अतएव उसकी प्रामाणिकता संदिग्ध रहती है। पर उन स्थलों में जहाँ लगभग सही 
परिणामों से काम चल सकता है, इसका उपयोग किया जाता है। यह अल्पव्ययी है, 
ओर, इससे परिणाम शीक्रतापूर्वक ग्राप्त किये जा सकते हैं । द 

प्राथमिक सामग्री संग्रहण में दूसरी समस्या प्रतिनिधि सामग्री ( #20768९४६4- 








३० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(ए6 6&६& ) का चुनाव करने की होती है। इसका वर्णन आगामी अनुच्छेदों में 
किया गया है । 


प्रतिनिधि-सामग्री ( १००:८४८०४४८४४८ |0209 १ क्‍ 

जैसा बताया जा चुका है, अनुसंधान का आयोजन या तो संगणना अनुसंधान 
( ०&८705प75 ॥77ए6८४:247707 ) द्वारा किया जा सकता है या निदशन-अनुसंधान 
( 3670 0]6 7650 82007 ) द्वारा। संगणना अनुसंधान में समग्र के प्रत्येक 
सदस्य के बारे में सूचना ग्रात्त की जाती है; पर निदशन-अनुसंधान में कुछ समूहों को 
समग्र का प्रतिनिधि मान लिया जाता है और उनसे यात्त सामग्री को पूरे समग्र के लिए 
प्रतिनिधि माना जाता है। अगर अनुसंधान का क्षेत्र विस्तृत है तो संगणना की रीति 
बहुत कठिन, यहाँ तक कि अव्यावहारिक हो सकती है। निदर्शन-अनुसंधान में समय, 
धन ओर परिश्रम की बचत तो होती ही है, ओर इसके साथ-साथ, पर्याप्त रूप से 
परिशुद्ध सामग्री भी प्रात की जा सकती है । कुछ कुशल ओर इच्छुक प्रगणकों के द्वारा 
संग्रहीत सामग्री भले ही राशि में कम हो ओर पूरे समग्र से न ली गई हो, पर कई 
अनिच्छुक ओर छिपाने वाले व्यक्तियों द्वारा दी गई सूचना की अपेक्षा अधिक प्रामा- 
शिक होगी | 

पतिनिधि सामग्री का संग्रहण करने के लिये पहले निदर्शन ( 8800] ) 
का चुनाव करना पड़ता है। इसको दो प्रकार से चुना जा सकता है ;-- 

(१) सविचार-निदर्शन ( [2८॥9८०४४६४ 58778 ) 

(२) देव-निद््शन ( १६000790 07 (297८८ "धाए पंप ) 
सविचार निद्शंन ( 0०॥09०:६६८ ०३॥70]708 ) 

इस रीति में अनुसंधान का आयोजक समग्र में से कुछ समूहों को सविचार 
चुन लेता है। यह चुनाव वह गुणों के आधार पर करता है। वह यह निश्चित कर 
लेता है कि किसी निश्चित गुण का एक निश्चित परिमाण पूरे समग्र के लिए प्रतिनिधि 
माना जा सकता है ओर इस परिणाम वाले समूहों को वह निदर्शन (99770]8 ) मान 
लेता है । इस निद्शन का अनुसंधान में गहन अध्ययन किया जाता है। यदि बहुत 
छोटा निद्शन लेना हो तो इसका उपयोग किया जा सकता है | 

पर इस रीति में कई दोष हैं। पहला यह कि इसमें व्यक्तिगत अमिनति या 
पक्षपात की बहुत गुन्नाइश रहती है | इसलिए इसका दुरुपयोग बड़ी आसानी से किया 
जा सकता है। हिंत-विशेष की रक्षा के लिए, कोई आयोजक ऐसे निदर्शन चुन सकता 





सामग्री संकलन ३९ 








| 2 हो । दूसरा यह कि इस प्रकार के निदशंनों से अनु- 
की 2, द्धता के परिमाण की गणना करने की कोई संतोषजनक 
ष्ज्के नर इरअेतएवु/धत परिणामों की आमाणिकता के बारे में निश्चित ओर 
दिग्पै्ऋप से, कली जाना जा सकता। फिर यदि निद्शन बड़ा हो तो इस रीति से 
छाँटने पर अभिनति के कारण उसके प्रतिनिधि होने की सम्भावना कम हो जाती है 
पर, अगर चुनाव का आधार निर्विवाद हो तो इस रीति द्वारा चुने गए निदशन भी 
पर्याप्त परिशुद्ध सामग्री दे सकते हैं | 

दैव-निदर्शन (९ि६770070 5«॥777!778) 

“ग्रगर समग्र के प्रत्येक सदस्य के चुने जाने की सम्भावना समान है तो इस प्रकार 
छाँटने की रीति को दैव-निदर्शन कहा जाता है ।” वास्तव में यह लाटरी-रीति है। इस 
प्रकार के चुनाव भें यह देखा गया है कि मले ही कितनी ही सावधानी बरती जाय, 
अगर चुनाव व्यक्तियों द्वारा किया गया है तो कुछ न कुछ अभिनति अवश्य आ जादी 
है। अतएव इसमें व्यक्तिगत चुनाव बिल्कुल नहीं किया जाता और यांचिक रीतियों, 
( 40८८7%772८% 70८८७७ ) का उपयोग किया जाता है । इसमें समग्र के प्रत्येक, 
सदस्य को एक निश्चित संख्या द्वारा जाना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य के संगत 
कोई संख्या होती है जो कागज के टुकड़ों में लिख ली जाती है । इनको अच्छी तरह 
मिला लिया जाता है और इनमें से कुछ टुकड़े ले लिए जाते हैँ, जिनके संगत सदस्य: 
निदर्शन बनाते हैं। इस रीति में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि निद्शन के. 
सदस्यों को किसी मी दशा में अन्य सदस्यों से, जो लागरी की रीति से नहीं आये हैं, 
प्रतिस्थापित ( $90890८/९ ) नहीं करना चाहिये। 

क्‍ इस रीति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि आगणुन के विश्रम्ों (७:४088 6६ 
650379007) की गणना आर परिणाम के महत्व (38077८%706 0६ +65प7६): 
को संभाविता-सिद्धान्त (77207ए ० 9:00207 ) द्वारा जाना जा सकता है । 
सविचार-निदर्शन में ऐसा अब तक नहीं किया जा सका है। इसमें व्यक्तिगत अमिनति 
की कोई गुज्ञाइश नहीं रहती क्‍योंकि निदर्शन का चुनाव यांत्रिक रीतियों से होता है। 
पर इसके बावजूद भी यह संभव हो सकता है कि निदर्शन प्रतिनिधि सा न लगे और 
न ही यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि एक निद्शन का प्रवरण (5०८८४०४) 

पूर्णतः दैव-निदर्शन की रीति से किया गया है । 
निदर्शन-प्रवरण ( 5८]८८४४०४ ०६ 8277/]6 ) की यह रीति दो आधार-भूत 
नियमों पर आश्रित है। पहला है सांख्यिकीय-नियमितता का नियम (| ० 0र् 












और सांख्यिकी के सिद्धान्त 


5(&08:८2] ४८४2५)०४॥:ए) ओर दूसरा है महांक जड़ता नियम ([४ए 0६ 
पं7र००0% 0 402८ ग्रणा77८४५)। निदर्शन सम्बन्धी सिद्धान्तों में इनका बहुत महत्व 
है | अतएव इन पर नीचे विचार किया गया है । ः द 

सांख्यिकीय नियमितता नियम ( [»ए ०0६ 80809$008॥ 7८९ प)४४॥ ) 
--यह नियम बताता है कि अगर किसी समग्र में ( जिसमे बहुत संख्या में सदस्य हों ) 
से यथोचित रूप से अधिक पदों वाले समूहों का देविक रीति से (४४ :470097) 
प्रवरण ($०८८४०४) किया जाय तो ये समूह औसतन समग्र के गुणों का प्रति- 
निधित्व करेंगे | इस नियम में दो मुख्य बातें हैं| पहली यह कि निदर्शनों ( या समूहों | 
का प्रवरण देविक रीति से (20 ४270077) किया जाय। अर्थात्‌ समग्र के यत्येक 
सदस्य के चुने जाने का अवसर (८097००) समान हो । और दूसरा यह कि चुने 
हुए सदस्यों की संख्या भी अधिक हो | इनकी संख्या जितनी अधिक होगी, उतनी ही 
अधिक प्रामाणिक, इनके द्वारा दी गई समग्र की सूचना भी होगी। इस नियम को 
संभाविता-नियम ([&४ ०६ 9:0720779ए) भी कहा जाता है क्योंकि इसमें समग्र 
के सदस्यों की चुने जाने की संभावना पर विचार किया जाता है। जैसे अगर कोई 
सिक्का १००० बार उछाला जाय तो लगमग ५०० बार हेड (7620) और ५०० 
बार ठेल (६»]) आएगा | जितनी अधिक बार यह उछाला जाएगा, उतनी ही अधिक 
सम्भावना दोनों के समान संख्या में आने की होगी । इसी नियम पर बीमा-कम्पनियों 
की गणनाएँ और जुआरियों के दाँव निभर रहते हैं। 

महांक जड़ता नियम (]2फ़ ० 706709 ०६ &86 70५7०७१७) 
“यह नियम सांख्यिकीय नियमिता नियम (4%छ 6 शद्यत5धंटन इट्शुप- 
]470ए) का उपसाध्य (०00!!87ए) है । इसके अनुसार अधिक पद-संख्या वाले 
समूह, कम पद-संख्या वाले समूहों से अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होते हैं| अर्थात्‌ अगर 
पद-संख्या बड़ी हो वो होने वाले परिवर्तन का परिमाण नगण्य होता है। कुछ पदों में 
परिवतंन एक दिशा में होगा ओर कुछ में इसकी विरुद्ध दिशा में, ओर अगर ये पद 
पर्याप्त संख्या में लिए. जाएँ तो ये परिवर्तन परिमाण में बराबर हो जाएँगे और इस 
प्रकार पूरे समूह के लिए. कुल परिवर्तन शूत्य हो जायगा । जितनी अधिक संख्या में 
पद लिए जाएँगे, उतने ही अधिक निकट एक दिशा और विरुद्ध दिशा में होने 
वाले परिवतनों के परिमाण होते जाएँगे | उनकी परिवर्तन की अबद्ृत्ति, पद्‌-संख्या अधिक 
हो जाने के कारण कम होती जाएगी अर्थात्‌ समूह की जड़ता बढ़ती चली जाएगी। 
इसका अर्थ यह नहीं है कि यह नियम कई समयावधियों (9०:४008 ०६ धर) 











३ सामग्री संकलन ३३ 


में भी लागू होता है | वास्तव में इस प्रकार के परिवर्तन जो परिस्थिति के बदल जाने 
के कारण होते हैं, उनमें यह लागू नहीं होता | पर इन दशाओं को छोड़कर, अगर 
परिस्थितियाँ समान रहें तो अधिक पद-संख्या वाला समूह अपेक्षाकृत अधिक स्थायी 
होगा । जैसे अगर किसी वस्तु के उत्पादन की मात्रा एक स्थान के लिए देखी जाय 
तो उसमें अधिक परिमाण में परिवर्तन होंगे, अगर एक देश के लिए. देखी जाय तो 
अपेज्ञाकृत कम परिवतेन होंगे, पर अगर पूरी दुनिया के उत्पादन की मात्रा देखी जाय 
तो ये परिवर्तेन नगण्य से होंगे । 


आ 


द्वितीयक सामग्री संग्रहण ((०0०0607 06 58८07427ए 42202) 





इस संग्रहण में अन्य अन्वेषकों द्वारा संकलित सामग्री का उपयोग किया जाता 
है | यह या तो किसी संस्था के वैयक्तिक प्रतिवेदनों (77ए%:6 ४6(०07/8) से ग्राप् 
किया जा सकता है या प्रकाशित सूचनाओं (.००!8760 49600%7%&८०7) से । 

प्रतिवेदनों में मुख्यतः व्यवसाय-समितियाँ, चेम्बर ऑफ कॉम (ए०7006/8 
0६ ८07070०:८८) सरकार आदि से उपलब्ध, पर अग्रकाशित सामग्री का उपयोग 
किया जाता है । ह 

प्रकाशित सूचना निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त की जा सकती है :--- 

( १) राजकीय ग्रकाशन (०भिलंत्री 90०॥0०४४0758)--केद्वीय या राज्य 
सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा, नगर-पत्चिकाओं (#रपााटं००»7768) या अन्य 
ऐसी संस्थाओं द्वारा, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा, सरकार द्वारा नियुक्त अनुसंधान समि- 
वियों या आयोगों ((00पए77/ए ८०7760685 07 ८०7777580785 ) द्वारा या 
विदेशी सरकारों द्वारा । 

( २) व्यवसाय-समितियों, चेम्बर ऑफ कॉम, बैंकों या अन्य ऐसी संस्थाओं 
के प्रकाशनों से । 

( ३ ) पत्रिकाओं, पुस्तकों या समाचार-पत्नों में प्रकाशित सामग्री से । 

( ४) अन्य वैयक्तिक अन्वेषकों ( जेसे अथशाख्रियों, शिक्षा संस्थाओ्रों आदि) 
के प्रतिवेदनों से । 


द्वितीयक-सामग्री-उपयोग (0४2 5200702#ए 724609) 


इसमें विशेष रूप से सचेत ओर सावधान रहना चाहिए। पहले संग्राहक के 
बारे में जान लेना चाहिए | अगर वह कोई राजकीय संस्था नहीं हे तो यह अच्छी 


३४७ सांख्यिकी के सिद्धान्त _ 


तरह निश्चित कर लेना चाहिए कि वे संग्राहक के अनुमान मात्र तो नहीं हैं, अर्थात्‌ 
यह निश्चित कर लेना चाहिए कि सामग्री कहाँ तक ग्रामाशिक है। यह निश्चित कर 
लेने के बाद कि प्रस्तुत सामग्री विश्वसनीय और प्रामाणिक है तथा इसमें किसी प्रकार 
की अभिनति नहीं है, यह जानना चाहिए. कि यह सूचना कहाँ से ग्राप्त की गई है 
इसके संग्रहण का उद्देश्य क्या था, किन रीतियों से अनुसंधान का आयोजन किया गया 
था ओर इसकी सांख्यिकीय इकाइयाँ क्या हैं | इसके साथ-साथ इस सामग्री के लिए 
परिशुद्धता-परिमाण ओर इसकी एकरूपता पर भी विचार करना चाहिए। अन्त में यह 
देखना चाहिए कि इस सामग्री का उपयोग वतमान परिस्थितियों में करना कहाँ तक 
उचित है और यह सामग्री दी हुई समस्या के लिए कहाँ तक अमसुकूल है । 

अगर इन सब प्रश्नों के उत्तर समस्या के दृष्टिकोण से संतोषजनक हू तो 
सामग्री का उपयोग किया जा सकता है अन्य था नहीं | 











सामग्री के आवश्यक गुण ()२९८८८४३॥ए 30५०७ ० 709/9) 


साम्ग्री में निम्मलिखित गुण होने चाहिए. :-- 

( १ ) विश्वसनीयता (८॥90॥69) । 

( २ ) अनुकूलता (5०७७ ०79) | 

( ३ ) पर्यातता (20८0०७८ए ) । 

इन पर अलग-अलग विचार किया जायगा। 

सामग्री-विश्वसलनीयता (८!७७०॥४४ए ०६ ॥09/9)--सही परिणाम 
प्राप्त करने के लिए सामग्री का विश्वसनीय होना आवश्यक है। अगर सामग्री स्वयं 
अविश्वसनीय है तो उससे प्राप्त परिणाम वस्तु स्थिति को सही रूप में प्रस्तुत नहीं कर 
सकेंगे ओर इसलिए अनुसंधान स्वतः असफल हो जाएगा। इसको प्राप्त करने के लिए 
निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए, 

( १ ) क्‍या संकलनकर्ता विश्वसनीय है १ अर्थात्‌ कोई ऐसा हित तो नहीं है 
जिसे सिद्ध करने के लिए वह जान-बूक्कर गलती करे! 

(२) सामग्री-संग्रहण में किस रीति का उपयोग किया गया है और उसके उपयोग 
में आवश्यक सावधानी और सचेतता बरती गई है या नहीं ? इसमें अमिनति या पत्तु 
पात के लिए. कितनी गुझ्लाइश है ! 


( ३ ) संग्रहण में परिशुद्धता-परिमाण कितना निश्चित किया गया था और 
उसे किस अंश तक प्राप्त किया गया था ! 














सामग्री संकलन 28 


( ४ ) जिस काल में सामग्री-संग्रहण किया गया था क्या उसे सामान्य काल 
माना जा सकता है ? अर्थात्‌ यह निश्चित करना चाहिए कि किन्ही असामान्य कारणों 
द्वारा परिस्थितियाँ विशेष रूप से प्रभावित तो नहीं थीं | 

सामग्री-अनुकूलता ($0॥2 0977 ०६ 709६8)--प्रस्तुत समस्या का्‌ 
अध्ययन करने के लिए सामग्री इस प्रकार की होनी चाहिए जो उसके अनुकूल हो। 
इसके लिए सांख्यिकीय इकाइयों को ठीक रूप से निश्चित कर लेना चाहिए और अनु- 
संधान के उद्दे श्य ओर क्षेत्र का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. ताकि बेकार की सामग्री 
जमा न हो पाए । 

सामग्री-पर्याप्रता (११८००४८ए ० 02/9)--इसके लिए भी अनुसंधान 
के ज्ञेत्र को निश्चित कर लेना चाहिए ताकि न तो अपेक्षाकृत विस्तृत अनुसंधान की 
सी सामग्री हो, और न ही सामग्री कम हो जाए। इसके साथ-साथ परिशुद्धता-परिमाण 
निश्चित कर लेना चाहिए | यह ऐसा होना चाहिए जिससे परिणामों में विश्रम यथोचित 
रहें--न तो बिल्कुल परिशुद्ध ओर न बिल्कुल गलत | 








अरश्ने 
(१) सूचना भ्राप्त करने को विभिन्न रीतियों का वर्णन कीजिए। आप 
इनमें किसे सबसे अच्छी सममते है. ओर क्‍यों ? 
(२) सांख्यिकीय अनुसंधान के परिणाम किस अंश तक सही निदर्शन 
पर निर्भर रहते हैं? प्रतिनिधि सामश्री प्राप्त करने के उपयोग में आनेवाली 


विभिन्न रीतियों की तुलना कीजिये । (बी० कॉम, आगरा? ३६) 
(३) समंक-संग्रहए की संगणना-रीति और निदर्शेन-रीति के ल्ञाभ- 
हानि की तुलना कीजिए । ( बी० कॉम, कलकत्ता? ३१) 


(४) विस्तृत अनुसंधान में देव-निद्शेन रीति की आवश्यकता को स्पष्ट 
कीजिये। आप उत्तर प्रदेश के ग्रामीण भागों के आर्थिक सर्वेक्षण में इसका 
उपयोग किस प्रकार करेंगे ? द ( बी० कॉम, इलाहाबाद” ३४ ) 

(४) निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिये :-- 

(१) सामग्री-विश्वसनीयता । 

(२) सांख्यिकीय नियमितता-सिद्धान्त । 
) दैव-निदर्शेन और सविचार-निद्शेन । 
] 


(३ 
(४) द्वितीयक सामग्री के प्राप्ति-स्थान । 


३६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(६) द्वितीयक सामग्री के उपयोग में कोन सावधानियाँ बरतनी चाहिए १ 

(७) प्रगणशकों की सहायता से अनुसंधान करने में किन बातों का 
ध्यान रखना चाहिये ? 

(८) किसी भी यृह-उद्योग के, जिसमें आपकी दिलचस्पी हो, आधिक- 
पक्ष का सवे क्षण करने के लिए प्रश्नावली बनाइये । संक्षेप में बताइये कि आप 
आवश्यक सामग्री का संग्रहण किस प्रकार करेंगे । ( बी० कॉम, लखनऊ! ४३ ) 

( ६ ) सांख्यिकीय सामग्री के संग्रहण के उपयोग में साधारणत: आने 
वाली रीतियों को वर्गीकृत कीजिये और संक्षेप में उनके लाभ ओर उनकी 
हानियाँ बताइये । ( बी० कॉम, इलाहाबाद” ४६) 

(१२) आप उत्तर प्रदेश में हाथ-करघा उद्योग के बारे में अनुसंघान का 
आयोजन किस प्रकार करेंगे ? इस उद्देश्य के लिए अनुकूल प्रश्नावली की रचना 
कीजिये । ( बी० कॉम, इलाहाबाद” ४२ ) 

(११) आप एक छोटे भारतीय राज्य के, जिसमें पाँच करें हें और एक 
हजार गाँव है, आथिक सर्वेक्षण का आयोजन किस प्रकार करेंगे ? 

( एमू० कॉम, इलाहाबाद” ४३ ) 

(१२) सामग्री में किन गुणों का होना आवश्यक है। प्रत्येक का विस्तार- 
पूृवेक बणुन कीजिए | 


अध्याय ५ 


एकत्रित सामग्री का सम्पादन 


(॥>ठा6४8 06 (0]6८6८० 22/9) 

अनुसंधान के लिए एकन्नित सामग्री का उपयोग करने से पूर्व यह आवश्यक है 
कि उसका सम्पादन किया जाय क्योंकि ब्रिना इसके इस बात की सम्भावना रहेगी कि 
अन्वेधक के निष्कर्ष अशुद्ध हों | यों तो सामाजिक शाज््रों में पूर्ण परिशुद्धत लगमग 
असम्भव ही सी है फिर भी सांख्यिकीय रीतियों के प्रयोग से साधारणतः शुद्ध निष्कर्ष 
निकाले जा सकते हैं । इसलिये यह आवश्यक है कि एकत्रित सामग्री के प्रयोग से 
पूरे यह देख लिया जाय कि वह सांख्यिकीय रीतियों के प्रयोग युक्त हैं या नहीं । 
कुछ अवसरों पर तो एकत्रित सामग्री इतनी अशुद्ध हो सकती है कि उसको फिर से 
एकत्रित करना आवश्यक हो जाय, पर बहुघा सामग्री के सम्पादन के पश्चात्‌ उसका 
उपयोग किया जा सकता है। सामग्री सम्पादन में विशेषकर तीन बातें ध्यान में रखनी 
पड़ती हैं ओर वह हैं ( १) परिशुद्धता-परिमाण (6८2:९९ ०६ ६८८प८४४८०), ( २) 
अनुसादन (99[7705772007) तथा (३ ) सांख्यिकीय विश्रम (8209८ 
27707) । इन तीनों बातों को मिन्न-मिन्न समझना आवश्यक है । अतः निम्नलिखित 
पंक्तियों में इनका विवेचन किया गया है| 











परिशुद्धता (&८०८प४३८ए) 


पूर्ण परिशुद्धता (96४८८६ ४८८०४३८ए) का अर्थ यह है कि किसी वस्तु 
को जेसी वह है वैसा ही बताया जाय । यह असम्भव है | हम कभी भी किसी वस्तु को 
पूर्ण-परिशुद्धता के साथ नहीं बता सकते | इसके दो कारण हैं--निरीक्षक और वे उपकरण 
जिनसे वह निरीक्षण करता है। चूँकि मनुष्य पूर्ण नहीं है इसलिए. वह जो निरीक्षण 
करता है या निरीक्षण के लिए जिन उपकरणों को बनाता है, वे पूर्ण नहीं होते। इन 
कारणों से निरीछण के द्वारा प्राप्त की गई सामग्री भी पूर्णतः परिशुद्ध नहीं हो सकती । 

सांख्यिकी में पूर्ण परिशुद्धता की आशा करना हास्यास्पद है। जब भोतिक 


श्च्य सांख्यिकी के सिद्धान्त 


विज्ञोनों ( 9एआ८० 8८७7८९८$ ) तक में जहाँ नियंत्रित प्रयोग किए. जा सकते 
हैं, पूर्ण परिशुद्धता संभव नहीं है, तब अगर हम सांख्यिकी में, जहाँ न तो नियन्त्रित 
प्रयोग हो सकते हैं, न ही सब जगह नापने के यन्त्रों का उपयोग किया जा सकता है 
ओर जहाँ वैयक्तिक अभिनति--ज्ञात या अज्ञात--की बहुत अधिक गुझ्लाइश हे, पूर्ण परि- 
शुद्धता प्राप्त करने के प्रयत्न किए. जाएँ तो वे अर्थ सिद्ध होंगे । वास्तव में सांख्यिकी 
में इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि परिणाम इतने अपरिशुद्ध क्‍यों हैँ-- 
क्योंकि अपरिशुद्ध होने के लिए. कारण हैं--बल्कि आश्चर्य इस बात पर होना चाहिए, 
कि परिशुद्ध परिणाम के इतने निकट के मूल्य किस प्रकार मिल गए | सांख्यिकी वास्तव 
में हमें वास्तविक जगत को उसकी अपूर्णता के साथ समभने में सहायता देती है । जब 
प्रयोग करने के स्थल की दशाएँ अपूर्ण हैं, निरीक्षक अपूर्ण है ओर निरीक्षण के उप- 
करण अपूर्ण हैं, तो परिणामों का अपूर्णतः परिशुद्ध होना स्वाभाविक ही है । 

फिर हमें पूर्णतः परिशुद्ध परिणामों की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। अगर 
. साधारणतः परिशुद्ध परिणाम मिल जाएँ, तो वस्तु स्थिति. को समझने में कोई विशेष 
कठिनाई नहीं होगी | कई स्थानों में तो पूर्ण परिशुद्धता प्राप्त करने का प्रयास निरथंक 
ओर मूखंतापूर्ण है। अगर हम एथ्वी से किसी नक्षत्र की दूरी निकव्तम इश्चों तक--अगर 
यह संभव हो--नापें तो इससे कोई लाभ नहीं होगा । अरबों मील की दूरी में इश्चों का 
क्या स्थान है १ यह एक चरम सीमा का उदाहरण है । व्यवहार में इससे कहीं अधिक 
मोटे ( ८८८१७ ) परिणाम संतोषजनक होते हैं। कोई भी व्यापारी अनाज तोलते 
समय तोलों ( /0]95$ ) का ख्याल नहीं रखता | जहाँ मनों में गिनती हो रही हो वहाँ 
सेरों का ध्यान रखना ही बहुत है | इसी प्रकार मीलों में दूरी मापने में भी गजों का 
ध्यान रखना ही कठिन और निरथंक हो जाता है, फीट ओर इश्ज तो बाद की चीजें हैं। 
वातस्व में हम कभी भी किसी वस्तु को ठीक-ठीक नहीं नापते | हम उसके सही मूल्य का 
आगशणन ( ०६४४7%007 ) करते हैं। अगर इस आगणन में यथोचित ( ॥688077- 
406 ) परिशुद्धता हो तो हम सन्तुष्ट रहते हैं| प्रश्न यह उठता है कि यथोचित 
परिशुद्धता का अर्थ क्या है ? यथोचित परिशुद्धता की निरपेक्ष परिभाषा देना सम्मव 
नहीं है| यह इस बात पर निभर करती है कि किस प्रकार की सामग्री पर प्रयोग किया 
जा रहा है ओर इस प्रयोग का उद्देश्य क्या है | इन बातों को ध्यान में रखते हुए. 
यथोचित परिशुद्धता को निश्चित करना निरीक्षुक की निर्णय-बुद्धि पर छोड़ दिया जाता 
है। उसकी निणय-बुद्धि के अतिरिक्त परम्पराएँ भी इसको निश्चित करने में सहायता 
देती हैं। अगर हम प्रथ्वी से सूर्य की दूरी नाप रहें हों तो श या २ हजार मील छोड़ 

















एकत्रित सामग्री का सम्पारल ३९ 


देने से कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ेगा, पर कपड़े' को नापते समय १ या २ इझञ्च से 
अधिक नहीं छोड़ा जा सकता है। सांखियकी में निरपेज्न परिशुद्धता की आवश्यकता नहीं 
है बल्कि सामग्री के सापेक्ष परिशुद्धता होनी चाहिए । 

उपसादन ( ४0|0705779६07 ) 

कई स्थलों में समंकों को बिलकुल ठीक देने की आवश्यकता नहीं पड़ती | 
अगर सभी स्थानों में समंकों को चार या पाँच दशमलवों तक सही दिया जाय तो 
सामग्री की उपयोगिता नहीं बढ़ती है ओर उनको समझना अधिक कठिन और भ्रम पैदा 
करने वाला हो जाता है| इसलिए अगर समंकों को इस प्रकार रखना हो जिससे उनको 
सममभना सुविधाजनक ओर सहज हो जाय, तो सब अंकों को देने के स्थान पर पहले तीन 
या चार अंक दिए जा सकते हैं, जैसे १६३२७.०२१ के स्थान पर १६३२७ रखना 
ओर इसके स्थान पर १६३०० रखना अनुचित नहीं है | बहुत सम्मव है कि जो अड्डू 
हटाए. गए हैं वे विश्वम के कारण आ गए, हों | इस प्रकार किसी एक संख्या के स्थान 
पर उसकी निकटब॒ती दूसरी संख्या रखने को, जिससे वस्तु-स्थिति को समभने 
में अधिक कठिनाई न होओर न ही वस्तु स्थिति सम्बन्धी सामग्री में कोई विशेष 
परिवतेत्र हो, उपलादन कहा जाता है | 

उपसादन की कुछ स्मान्य विधियाँ हैं, जिनके अनुसार इसे किया जाना 
चाहिए.। ये विधियाँ निम्नलिखित हैं :--- 

( १ ) पहली रीति में निकव्तम पूर्ण संख्या को वास्तविक सामग्री के स्थान पर 
रखा जाता है, जैसे, अगर कोई अड्ठू ५,३२,६७१ हैं तो इसका निकण्तम हजार में 
५१.३३,००० द्वारा व्यक्त किया जाएगा | अगर अड्छू ४, १२,२३० हो तो इसे ४,१२,००० 
से व्यक्त किया जाएगा । नियम यह है कि जो भाग छोड़ा जा रहा है वह अगर पूर्ण संख्या 
(इस उदाहरण में एक हजार) के आधे के बराबर या इससे अधिक है तो उसके स्थान पर 
पूर्ण संख्या को लिखना चाहिए, ( जैसे, पहले वाले अड्ढ में ६७१ के लिए. एक हजार 
रख दिया गया है ); और अगर यह भाग आधे से कम है तो उसे छोड़ देना चाहिए 
( जैसे, दूसरे अड्ड में २३० के स्थान पर कुछ नहीं लिखा गया है।) यही बात 
प्रतिशतताओं में भी लागू होती है। ४२.३४५६% के स्थान पर ५२% और ४३.,७८२१% 
के स्थान पर ४४% लिखा जा सकता है । क्‍ 

( २ ) दूसरी रीति में जो भाग छोड़ा जा रहा है उसके स्थान में उसके बाद 
आने वाली पूर्ण संख्या रख दी जाती है, बैसे, ( इस रीति में ) पिछले उदाहरण के 
५,३२,६७१ के स्थान पर ५,३३,००० रखा जाएगा ओर ४, १२,२३० के स्थान में भी 




















४० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


४,१३,००० रखा जायगा। ५२.३४५६% और ४३.७८२१% के स्थान पर क्रमशः १२% 
ओर ४४% रखा जायगा | 

(३ ) इस रीति में पूर्ण संख्या के रूप में सामग्री रखने के लिए कुछ भाग 
को बिलकुल छोड़ दिया जाता है | जैसे :-- 

५,३२,६७१ के स्थान पर ५,३२,००० रखा जायगा । 

४,१२,२३० के स्थान पर ४,१२,००० रखा जायगा | 

५२.३४५६% के स्थान पर ५२% रखा जायगा । 

४२,७८२१% के स्थान पर ४३% रखा जायगा | 

किस प्रकार की सामग्री में कितना उपसादन करना चाहिए यह सामग्री पर 
निर्भर करता है; सामग्री के संग्रहण में कितनी परिशुद्धता रही है यह उसमें किए जाने 
वाले उपसादन को निश्चित करता है। अगर कुछ रेखाओं की लम्बाई मिलीमीय्रों तक 
सही नापी गई है तो मिलीमीट्रों के दशमांशों को उपसादन द्वारा हटाया जा सकता है 
अर्थात्‌ ३.२१ मिलीमीयर लिखने के स्थान पर ३.२ मिलीमीगर लिखा जा सकता है। 
अगर लम्बाई इच्चों में सही नापी गई है तो इच्चों के दशमांशों को उपसादन द्वारा हटाया 
जा सकता है। 

जिन साम्तग्रियों में उपसादन किया गया है उन्हें लिखने की भी कुछ निश्चित 
विधियाँ हैं | मान लीजिये किसी रेखा की लम्बाई मिलिमीग्रों में सही नापी गई है ओर 
यह लम्बाई ४:६६ सें० मी० है| उपसादन करने पर यह लम्बाई ४ सें० मी० के बराबर 
हो गई | पर अगर इसे लिखना ओर कहना है तो केवल ५ सें० मी० नहीं लिखा 
जायगा, बल्कि ४"० सें० मी० लिखा जायगा और कहा भी जायगा | इन दोनों के बीच 
में जो अन्तर है वह स्पष्ट हो जाना चाहिये। ५ सें० मी० का अ्रर्थ यह है कि लम्बाई 
सेन्टीमीयरों में सही नापी गई है--अर्थात्‌ ४४ या इससे अधिक और ५-५४ से कम के 
बीच की लम्बाइयाँ ४ सें० मी० के बराबर मानी जाएँगी | ५० सें० मी० का अथ यह 
है कि लम्बाई मिलिमीयरों में सही नापी गई है | इस दशा में ५५० सें० मी० का अर्थ 
यह हुआ कि लम्बाई ४६५ या इससे अधिक ओर ५७०५ से कम है। इसी प्रकार 
५००० सें० मी० का अर्थ यह हुआ कि लम्बाई मिलिमीय्रों के दशमांशों तक सही नापी 
गई है। 

उपसादन किस ग्रकार किया गया है इसे हमेशा बता देना चाहिये। साधारणत: 
इसे बताने की रीति यह है कि उपसादित अंक के साथ उसके अघर और अपर 
(096४ 270 एप७०८०) सीमाएँ, भी बता दी जाती हैं| जैसे, अगर कोई अंक १६७ 











एकत्रित सामग्री का सम्पादन ४१ 


है ओर इसे दहाइयों तक सही बताना है तो इसके स्थान पर २०० लिखा जायगा |: 
चूँ कि यह दहाइयों तक सही है, इसलिए २००, १६४ से २०४ तक के किसी अंक 
के लिए लिखा जा सकता है। अतः २०४ इसकी अपर सीमा हुई ओर १६५ इसकी 
अधर सीमा | इन दोनों के साथ उपसादित अंक बताने के लिए. २००४५ लिखा: 
जाता है। उपयंक्त अनुच्छेद के उदाहरणों में जब लम्बाई सेन्टीमीय्रों में सही नापी 

है तो ५ के बदले ५--०"५ लिखा जायगा; ओर जब मिलिमीट्रों में सही नापी' 
गई है तो ५--०*०४ लिखा जायगा। 

अगर उपसादित (207057772080) अंकों का उपयोग गुणा, भाग; घात 
आर मूल निकालने के लिए. करना है तो सावधानी बरतनी चाहिये | इन दशाओं में 
उपसादन के कारण अंकों में जो विश्रम है बह गुणित, विभाजित, आदि होकर आयगा 
आर इसलिए परिणाम भ्रमात्मक हो सकते हैं | 

बढ़े अंकों के उपसादनों का, उन पर आधारित प्रतिशतताओं पर, नगण्य असर. 
पड़ता है। इस बात की परीक्षा इस प्रकार के उपसादनों द्वारा प्रतिशतता निकालकर: 
ओर वास्तविक अंकों की प्रतिशतता की गणना करके की जा सकती है | 

सांख्यिकीय विश्रम (5:80500९०॥ ६:7070 

सांख्यिकी में विश्रम (८४707) ओर गलती (77879|:6) पर्यायवाची शब्द 
नहीं हैं । गलती (77872८७) का अर्थ होता है, अशुद्ध (छ:078) रीतियों का 
उपयोग करना या गणना में भूल करना | यह जानबूक कर भी की जा सकती है और 
बिना जाने भी । पर इसे दूर किया जा सकता है | दूसरी ओर विश्रम (८६८7०7) का 
अर्थ वास्तविक मूल्य ओर आगखसित मूल्य (जो वास्तविक मूल्य का उपसादन होगा ). 
के बीच का अन्तर है। विश्रम यह बताता है कि वास्तविक मूल्य से उपसादित या: 
आगरित मूल्य कितना अधिक या कम है । 

सामग्री या समंकों में विश्रम होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :--- 

(१) मूल्न-विश्रम (77075 ०६ (00877)--इनके होने का कारण सूचना 
के विषय या इकाइयों की अनुपयुक्त परिभाषा या अभिनत (99$82८0) सामग्री-संग्रहणः 
या सामग्री की अन्तवंती (767०70) अस्थिरताएँ हैं | 

(२) प्रहस्तन-विश्रम (9#7078 ०६ ४६०४ ७०प०//07)--जानते हुए 
गणना करने में, नापने में, वर्णन करने में या उपसादन करने में होने वाले विश्रम: 
इसके अन्तर्गत आते हैं| 

(३) अपर्याप्तता-विश्वम--(0287078 0 77406८4५०७८ए)--बहुत कम 

















४२ संब्यिकी के सिद्धान्त 





संख्या में पदों का निदशनों का उपयोग करने या अपूर्ण सूचना के कारण होने वाले 
विश्रम इसके अन्तर्गत आते हैं | 
निरपेक्ष और सापेक्ष विश्रम (8980]0:० 6८ 7१८]४४४०० ८४704:9) 

सांख्यिकीय विश्रम निरपेज्षतः (8०$0]प॥८।ए) या सापेज्ञतः (ए८।४४४ए८ए) 
नापे जा सकते हैं। पहले प्रकार को निरपेक्ष विश्रम (७०80[०६८ ८४0४) कहते हैं 
ओर दूसरे को राक्तेप विश्वम (72[80/7ए० ८४४07) । जैसा कहा जा चुका है, सांख्यिकी 
में साक्षेप विश्रम अधिक महत्वपूर्ण है । 

निपेरक्ष-विश्रम--मान लीजिये किसी समूह के सदस्यों की माध्य लम्बाई ६५०" 
है ओर इसका आगणन (०४४४72/6) या उपसादित मूल्य (४9.7०हांपर॥€त 
४०/५6) ६०” हे तो निरपेक्षु विश्नम इन दोनों का अन्तर, अर्थात्‌ ६४५" -- ६०"--५/, 
हुआ । निरपेक्ष विश्रम किसी परिमाण के वास्तविक मूल्य ओर उसके आगखणित या 
उपसादित मूल्य का अन्तर है । 

सापेक्ष-विश्रम--सापेक्ष-विश्रम निरपेक्ष विश्रम ओर आगणशित या उपसादित 
मूल्य का अनुपात है | उपयंक्त उदाहरण में निरपेन्ञ विश्रम ५” के बराबर है और 
आगणन ६०" | इसलिए सापेक्ष विश्रम -- है तू बेच | 

सापेक्ष विश्रम को कभी-कभी ग्रतिशतता के रूप में भी रखा जाता है । उपर्युक्त 
उदाहरण में सापेक्ष विश्नम 2८ है। इसे ग्रतिशतता के रूप में रखने के लिए १०० से 
शुणा कर दिया जाता है | इस प्रकार जो अंक प्राप्त होगा उसे ग्रतिशतता-विम्रम 
(?67८2८7/22७ 5770%) कहते हैं। इस उदाहरण में प्रतिशतता विश्रम -- बेन >< 
१००न्-क ३२% 

अगर आगशित या उपसादित मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक है तो इन 
दोनों का अन्तर ऋणात्मक होगा | इसलिए निरपेकज्ष ओर सापेक्ष, दोनों प्रकार के, 
विश्रनम ऋशणात्मक होंगे | 

सामान्यतः अगर किसी राशी का वास्तविक मूल्य प, (५,) हो और उसका 
आगखणित मूल्य प (०) हो तो 














निरपेक्ष विश्रम 0 )080]7/6 ९/४0:: 
भ्रि>-प८ रे प९चजू-प,न-प 
ओर सापेक्ष विश्रम 270 +८[9(ए९ ८४70+ 
अर जम 
पृ छः 





एकत्रित सामग्री कः सम्प दन डरे 


अगर प५ (०५), प (५) से अधिक है तो विश्रम घनात्मक ( 90आ४ए८ ) 
होंगे, पर अगर प, (५,), प (७) से कम है तो विश्रम ऋणात्मक ( 7624/0ए८ ) 


होंगे। 
गअभिनत और अनभिनत विम्रम (8988८6 & ए४998560 57:059) 


विश्रम दो प्रकार के होते हैं। एक तो अभिनत विश्रम (8%5860 6६058) 
आर दूसरा, अनमिनत विश्रम ((90995860 87058) । 


अभिनत विश्रमों या तो सूचकों ओर आगणकों के पक्षपात या उनकी अभिनति 
के कारण हो सकते हैं, या उपकरणों की च्रुटियों के कारण | ये विश्रम संचयी 
(८पा०प)५४०७) होते हैं| अर्थात्‌ जितनी अधिक संख्या में निरीक्षण लिए जाएँगे, 
उतने ही ये बढ़ते जाएँगे | जैसे, अगर एक सेर का एक बाट टे छुटाँक कम है तो 
उससे जितनी अधिक बार तोला जायगा उतना ही निरपेक्ष विश्रम बढ़ जायगा | अगर 
सूचक अभिनत हैं तो उनसे जितनी अधिक राशि में सामग्री ली जायगी उतना ही 
विश्रम अधिक होगा | इसी प्रकार अगर आगणुक एक निश्चित धारणा को सिद्ध करने 
के उद्देश्य से कोई अनुसंघान करते हैं, तो वे इस बात में ग्रयत्नशील रहेंगे कि सामग्री 
शैसे लोगों के सम्बन्ध में हो जिनकी स्थिति उनकी धारणा को सिद्ध करती हों । ऐसे 
लोग जितनी अधिक संख्या में होंगे उतना ही निरपेक्ष विश्रम बढ़ता चला 
जायंगा | 











अनभिनत विश्रम वे विश्रम होते हैं ज्ो किसी पक्तपात या अमिनति के कारण 
नहीं होते बल्कि दैव ( 2०097८०) कारणों से होते हैं। साधारणतः अनमिनत विश्रम 
पूरक (८0770675%7782) होते हँ--अर्थात्‌ जितनी अधिक संख्या में पद लिए 
जाएँगे उतना ही कम निरपेक्ष विश्वम होगा। चूंकि ये सांख्यिकीय नियमिता नियम 
के अनुसार होते हैं, इसलिए अधिक संख्या में पदों को लेने से जितना विश्रम एक 
दिशा में होगा लगभग उतना ही विश्रम दूसरी दिशा में भी होगा। इसलिए कुल 
विभ्रम कम हो जायगा । पिछले उदाहरण में अगर बाट ठीक हो, ओर तोलने की गलती 
के कारण विश्रम हो, तो जितनी अधिक मात्रा में वस्तु तोली जायगी उतना ही निरपेक्ष 
विश्रम कम हो जायगा क्योंकि अगर कुछ तोलों में एक सेर से कम तुला हो तो कुछ 
में इससे अधिक तुलेगा, और ये दोनों एक दूसरे का अपवर्तन (०४70८०]|५४४०४) 
कर लेंगे । 











४४ सां ख्यिकी के सिद्धान्त 


यहाँ पर यह ज्ञातव्य है कि अनभिनत विश्रम हमेशा पूरक ( ८0077७7- 
59372 ) नहीं होते ओर न अमिनत विशभ्रम हमेशा संचयी होते हैं। जहाँ तक 
जोड़ने का प्रश्न है, यह सच है; पर घटाने में इसके बिलकुल विपरीत हो जाता है 
क्योंकि अगर एक ही चिन्ह वाली राशियों को ( जैसी अ्भिनत विश्रम में मिलती हैं ) 
आपस में घटाया जाय तो अन्तर वास्तविक मूल्य के अधिक निकट होगा | पर अगर 
विपरीत चिन्हों वाली शशियों को ( जैसी अनभिनत विश्रम में मिलती हैँ ) आपस 
में घटाया जाय तो अन्तर में अधिक विश्रम रहेगा। अगर दो संख्याओं को गुणा किया 
जाय तो विपरीत चिन्ह वाले विश्रम समान चिन्ह वाले विश्रमों की अपेक्षा वास्तविक 
मूल्य के अधिक निकटवर्ती परिणाम देंगे। अर्थात्‌ गुणा करने में अनमिनत विश्रर्मों 
की प्रवृत्ति पूरक होने की होती है। इसके विपरीत, भाग देने में अगर दोनों संख्याओं 
के विश्रमों के चिन्ह समान हुए तो परिणाम वास्तविक मूल्य के अधिक निकट होंगे; 
ओर अगर इन विश्रमों के चिन्ह विपरीत हुए तो परिणाम वास्तविक मूल्य से दूर 
होंगे | अतः भाग में, परिणाम में होनेवाला विश्रम अभिनत विश्रम होने पर अनभिनत 
विश्रम होने की अ्रपेज्ञा कम होगा । नीचे उदाहरण देकर इस कथन को समझाया 
गया है | 











वास्तविक मूल्य अभिनत विश्रम अनभिनत विश्रम 
के साथ मूल्य के साथ मूल्य 

(क) १०० ६६ ६६ 

(ख) २०० १६७ २०२ 


(क) के लिए निरपेज्न अमिनत विश्रम ८ १, निरपेज्ष अनमिनत विश्वम॒८> १ 

(ख) के लिए निरपेक्ष अभिनत विश्रम -- ३, निरपेक्ष अनभिनत विश्रम८- - २ 

(क-+-ख) (5३००) के लिए निरपेक्ष अमिनत विश्रम ८-४, निरपेक्ष 
अनभिनत विश्रम ८ - ६ 





(ख्‌-क) (+- १००) के लिए निरपेक्ष अमिनत विश्नरम-- २, निरपेक्त 
अनभिनत विशभ्रम ८- - हे 
(क)८ख) (+-२०,०००) के लिए निरपेक्ष अमिनत विश्रम--(२००००-- 
१८९ ०१) -- १०६६, ओर निरपेक्ष अनमिनत विश्रम८"-२। 





(ख-क) (+-२) के लिए. निरपेक्ष अमिनत विश्रम -- ००१; ओर निरपेछ 
अनभिनत विश्रम-- ०*०४ | 


एकत्रित सामग्री का सम्पादन डण्‌ 


अमिनत विश्रमों को दूर करने का यथा-शक्ति प्रयत्न किया जाना चाहिये 
क्योंकि समंकों से माध्य आदि की गणना करने में निरपेक्ष विश्रम और अधिक बढ़ 
जाता है | अनमिनत विश्रम को कम करने की रीति यह है कि जितनी अधिक संख्या में 
संभव हों, उतने पद लेने चाहिये । 


अरम 


(१) उदाहरणों सहित स्पष्ट रूप से समम्काइये कि सांख्यिकीय विश्रम, 
गलतियों से कैसे भिन्न है। आपको कितने प्रकार के विश्रमों का ज्ञान है ? इनको 
कैसे नापा जा सकता है ? (बी० कॉम, इलाहाबाद १६४६) 

(२) (क) समंकों में विश्रम के मुख्य स्रोतों और प्रभावों पर विचार 
कीजिए | 

(ख) उपसादन की मुख्य रीतियों ओर उनकी सांख्यिकी में उप- 
योगिता बताइये ? (बी० कॉम, आगरा १६४०) 

(३) परिशुद्धता से आप क्या सममते हैं। विस्तारपूर्वेक सममाइये । 

(४) सांख्यिकीय गणनाओं में परिशुद्धता के किस स्तर को आवश्यकता 
होती है ? सामान्यतः उपसादन किस भश्रकार किया जाता है? उदाहरण दीजिये ? 

(एस ० ए, इलाहाबाद १६६४) 

(५) निरपेक्ष विश्रम, सापेक्ष विश्राम और अभिनत विश्रम को 
सममा इये | 

(६) सांख्यिकीय सामग्री के संग्रहण ओर निवचन में संभवत: होने वाले 
विश्रमों के प्रकारों का उल्लेख कीजिये। इनको कम करने के लिए या इन्हें दूर 
करने के लिए आप क्या सावधानियाँ बरतेंगे ! (एम० ए, इलाहाबाद १६४०) 


अध्याय ६ 
सामग्री का वर्गीकरण ओर सारणीयन 
( (988702707 ढद ॥20प५]०४807 0६ [222 ) 
वर्गीकरण 


संकलन या संग्रहण से प्राप्त सामग्री बहुत बड़ी राशि में होती है। इसका 
अध्ययन इस दशा में किया जाना सम्भव नहीं होता क्योंकि ग्राह्मता के लिए यह आयव- 
श्यकीय है कि समान वस्तु असमान वस्तुओं से अलग ख़खे जाएँ। इस सामग्री को 
उचित रूप से समभने के लिए यह आवश्यक है कि वह संक्षिप्त रूप में व्यवस्थित दल 
से प्रस्तुत की जाय | इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामग्री का सारणीयन ((&00[460/077) 
किया जाता है। पर इससे पहले कि सामग्री का सारणीयन किया जाय उसे इस प्रकार 
अनुविन्यसित (3४797026) करना पड़ता है जिससे समान तथा एक साथ रहें और 
असमान तथा अलग-अलग रहें । इसी प्रकार सामग्री को अलग-अलग रखने को वर्गी- 
करण कहते हैं | वर्गीकरण (८१४5870८७८०7) में तथ्यों को उनके शुणों या समा- 
नता के अनुसार वर्गों में बाँठ दिया जाता है। इस प्रकार के वर्गों में एक शुण या 
समानता वाले तथ्य रखे जाते हैं, इस प्रकार अनुविन्यस्त (97797022८0) सामग्री पर- 
स्पर-सम्बन्ध स्थापित करने या तुलना करने योग्य नहीं होती, पर यह इस प्रकार सामग्री 
को प्रस्तुत करने ( सारणीयन ) की ओर पहला कदम है। वास्तव में वर्गीकरण के बाद 
सामग्री ऐसे रूप में आ जाती है कि उसे देखकर सरलतापूर्वक संदर्म जाना जा सकता है । 
इस प्रकार प्रस्तुत की गईं सामग्री सविस्तार नहीं होती, पर इससे जो सुविधा होती है वह 
इस दोष के मुकाबले अधिक है | 

व्यवहार में वर्गीकरण दो रीतियों से किया जाता है ;--- 

(१) गुणों के अनुसार (०97 &70000/८७) | 

(२) वर्गान्तरों के अनुसार (9ए ८(५४४-7767ए५5) | 








सामग्री का वर्गोद्चरण और सारणीय ४७ 


गुणों के अनुसार वर्गीकरण 


( (88४7८ ४09 8०८07व78 ६0 :70४0फ0(65 ) 





इस रीति में सामग्री को गुणों के अनुसार विभाजित किया जाता है । किसी शुरु 
की उपस्थिति जिनमें हो उन्हें एक वर्ग में रखा जाता है ओर जिनमें वह शुण न हो 
उन्हें दूसरे वर्ग में | जैसे, जन-समुदाय को दो भागों में, अंधों ओर जो अन्धे नहीं हैं- 
बाँठ जा सकता है। या इन्हीं व्यक्तियों को--पुरुष ओर ख्री--दो भागों में बाँग जा सकता 
है| इस प्रकार का वर्गीकरण, जिसमें सामग्री को दो उपवर्गों में बाँय जाता है, सरत्त- 
वर्गीकरण (59006 ०(३५४४८४४०४) या इन्द्व-भाजन-वर्गीकरण (८98509- 
+079 2८८0#+0792 ॥0 382८007077ए ) कहलाया जाता है। 

अगर एक से अधिक गुणों पर विचार किया जाता हो तो सामग्री कई उपवर्गों 
में विभाजित की जा सकती है। मान लीजिए कि ऐसे दो शुण जिनके अनुसार वर्गी- 
करण किया जा रहा हो अन्धापन ओर स्त्री या पुरुष होना हो तो पहले दो उपवर्ग, स्त्री 
और, पुरुष होंगे | यह वर्गीकरण एक शुण (खत्री या पुरुष ) होने के अनुसार किया गया 
है। अरब ख्री उपवर्ग के अन्तर्गत आने वालों को अन्घेपन के अनुसार फिर दो उपवर्मों 
में बाँय जा सकता है | एक तो वे जो ञ्ली हैं ओर अन्धी भी हें, दूसरे वे जो ह्ल्रीहें 
पर अन्घी नहीं हैं, इसी प्रकार पुरुष उपवर्ग को उन पुरुषों में जो अन्धे हैं और उनमें 
जो अन्य नहीं हैं, उपवर्मों में बाँच जा सकता है । इस प्रकार कुल चार उपवर्ग य्रात्त 
हुए । ऐसा वर्गीकरण कितने ही शुरों के अनुसार किया जा सकता है। इस तरह 
किए! गए वर्गीकरण को बहुशुण वर्गीकरण (40%760!06 ८9597090४09 ) 
कहते हैं | इस प्रकार का बहु शुण वर्गीकरण जनगणना के ग्रतिवेदनों में पाया जाता है | 
माना पहले पुरुष और ख्त्री के अनुसार वर्गीकरण किया गया। इस प्रकार के उपवर्गों 
को धरम के अनुसार विभाजित किया जा सकता है। इन धर्मों का उपजातियाँ, फिर पेशे 
के अनुसार वर्गीकरण आगे बढ़ाया जा सकता है । 

इस प्रकार के वर्गीकरण में, ( गुणों के अनुसार किए गए वर्गीकरण ) यह 
आवश्यक नहीं है कि वर्गों के बीच का अन्तर ग्राकृतिक या ठीक-ठीक निश्चित हो 
प्राय: यह वर्गीकरण स्वेच्छित होता है | जैसे लम्बे ओर छोटे व्यक्तियों में यदि वर्गीकरण 
करना हो तो किसी मी निश्चित लम्बाई से अधिक लम्बे व्यक्तियों को लम्बा ओर अन्य 
को छोटा कहा जा सकता है | जैसे यह कहा जा सकता है कि ५/ ४/ या इससे अधिक 
लम्बाई वाले व्यक्ति लम्बे माने जाएँगे ओर इससे कम लम्बे व्यक्ति छोटे माने जाएँगे । 











४८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





ऐसी दशाओं में जहाँ शुण किसी नाप के अनुसार माने जाते हैं, निश्चितता आ जाती 
है। पर यह विभाजन अनिश्चित भी हो सकता है | उन दशाश्रों में जहाँ एक गुण 
धीरे-धीरे दूसरे गुण में परिवर्तित हो जाता है, ऐसा होता है। जैसे अन्धापन ओर 

अन्धा न होने के शुण किसी निश्चित सीमा से झलग-अलग नहीं किए. जा सकते। 
जहाँ भी शुणों के अनुसार वर्गीकरण किया गया हो, इस बात पर विचार रखना चाहिए। 
'पर इस रीति से वर्गीकरण करने में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समूह का 
प्रत्येक सदस्य या तो एक शुण के अन्तगंत आएगा या उसमें वह शुण नहीं होगा । ऐसा 
'नहीं हो सकता कि एक ही व्यक्ति में एक शुण हो भी ओर नहीं भी हो। इसमें किसी 
प्रकार की द्विविधा नहीं होनी चाहिए | ' 


वर्गान्तिरानुसार वर्गीकरण 








( (.85547८407 ३८८०४०४४ ६0 (955-47/279%9$ ) 


वर्गीकरण करने की दूसरी रीति वर्गान्‍्तर के अनुसार करने की है। साधारणतः 
सांख्यिकी में जिन शुणों का उपयोग होता है, वे आंकिक रूप में रखे जा सकते हैं। 
जैसे व्यक्तियों की लम्बाश्याँ, उनकी आय, उनके वजन आदि | अतएव लम्बे या छोटे 
'कहने की अपेक्षा यह कहना अधिक अच्छा होगा कि वह ५" और ६' के बीच में है। 
'इस प्रकार दी हुईं लम्बाइयों को निश्चित वर्गों के अन्तर्गत रख दिया जाता है और 
अत्येक वर्ग में आने वाले मूल्यों को गिनकर उसके सामने रख दिया जाता है। इस प्रकार 
एक शुण को कई छोटे-छोटे भागों में बाँ- दिया जाता है। इस रीति में सरल-वर्गीकरण 
'की अपेक्षा अधिक सुतथ्यता ([97०८४$709) है। इन छोटे भागों को वर्गान्तर (0!985- 
4707ए%/| ) कहते हैं। अगर ये भाग ३-४, ४-४" ओर ४-६ हों तो इन्हें वर्गान्‍्तर 
कहा जाएगा | वर्गान्वर को निश्चित करने वाली सीमाएँ बर्ग-सीमाएँ ( ०(288-॥0055 ) 
कहलाती हैं। उपयु क्त उदाहरण में पहले वर्ग की वर्ग-सीमाएँ ३' और ४' हैं। वर्ग की 
दो सीमाओं के बीच के अन्तर को बर्गे-विस्तार ( 2[888-7782770प१० ) कहते हैं । 
दिए हुए उदाहरण में प्रत्येक वग का वर्ग-विस्तार १ है। प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत 
आते वाले पदों की संख्या को बर्गं-चारंवारता ( ०2988-77०१८०४८ए ) कहते हैं। 

वर्गान्‍्तरानुसार वर्गीकरण करने की रीति निम्नलिखित हैं :-- 

सर्वप्रथम सामग्री के लिए वर्ग विस्तार निश्चित कर लिया जाता है। अर्थात्‌ 
यह निश्चित कर लिया जाता है कि प्रत्येक वर्गान्‍्तर की अपर-सीमा (५७[००८ ॥077) 
ओर अधर-सीमा ([09०:-]7740) का अन्तर कितना रखा जायगा। इस बात का. 








सामग्री का वर्गोकरण और सारणीयन ४६ 


प्रयत्न करना चाहिए कि प्रत्येक वर्ग का वर्ग-विस्तार बराबर रहे | मले ही किसी वर्ग 
की वर्ग-वारंवारता शून्य हो अर्थात्‌ उस वर्ग के अन्तर्गत कोई पद न आए, तब भी 
उस वग को रखना चाहिए । पर अगर वर्ग-विस्तार अलग-अलग रखने में अधिक 
सुविधा हो तो ऐसा किया जा सकता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि विभिन्न- 
वर्गों की परस्पर-तुलना की जा सकती है। प्रायः वर्ग-विस्तार इकाई रखा जाता है । 
पर अगर ऐसा न किया जा सके तो वर्ग-विस्तार निश्चित करने में दो बातों का विशेष 
ध्यान रखना चाहिए.। पहला यह कि हम इस प्रकार का वर्गीकरण चाहते हैं जिसमें 
किसी एक वर्ग के अन्तर्गत आने वाले पदों के मूल्यों को बिना गण्य विश्रम के इस 
प्रकार माना जा सके जैसे वे वर्गान्‍्तर के सध्य-सूल्य ( 770-ए०|०८ ) में स्थित हों । 
ओर दूसरा यह कि वर्गीकरण के लाभ, सुविधा ओर संक्षिततता, मिल सके । इसके लिए 
वर्ग-विस्तार जितना बड़ा होगा उतनी अधिक सुविधा होगी, पर यह स्वेच्छित रूप से 
बड़ा नहीं किया जा सकता। पहली बाव का ध्यान इसमें रखते हुए. कम वर्गान्‍्तर 
हों उतनी अधिक संत्ञषितता ग्राम होगी। साधारणतः १५ से २५ के बीच वर्गों की 
संख्या लेने पर ये शर्तें पूरी हो जाती हैं। अतएव दी हुईं सामग्री के अधिकतम और 
न्यूनतम मूल्यों के अन्तर को १५ से २५ के बीच जितने वर्ग बनाने हों उनकी संख्या 
से विभाजित करके वर्ग-विस्तार का अनुमान लगाया जा सकता है । वास्तविक वर्ग- 
विस्तार इनके आस-पास का कोई पूर्णंक ( 470626£ ) या सरल मिन्न होगा | 

जेसा पहले कहा जा चुका है, वर्ग विस्तार निश्चित करने में इस बात का 
प्रयत्न किया जाता है कि एक वर्ग के अन्तर्गत आने वाले पदों के मूल्यों को वर्ग के 
मध्य-मूल्य के द्वारा पस्तुत किया जा सके | इसको वर्गान्तरों का मूल-बिन्दु ( ०४४१४ ) 
भी कहा जाता है | इसके मूल्य का स्वयं में कोई विशेष महत्व नहीं है, पर सुविधा के 
लिए; यह इस प्रकार का चुना जा सकता है जिससे या तो वर्ग-सीमाएँ पूर्णांक हो जाएँ: 
या वग का मध्य-मूल्य पूर्णा क हो जाए । 

यह निश्चित कर लेने के बाद वर्गीकरण किया जाता है। वर्गीकरण में एक 
कोने में वर्ग-सीमाएँ लिख ली जाती हैं और इसके बाद उस वर्ग के अन्तर्गत आने 
वाले प्रत्येक पद के मूल्य के लिए. एक खड़ी लकीर खींच दी जाती है| इस प्रकार की 
चार खड़ी लकीरों के बाद आने वाले पाँचवें पद के मूल्य को, इन खड़ी लकीरों को 
एक तिरछी लकीर से काटकर दिखाया जाता है। इससे गणना करने में आसानी होती 
है | कमी-कमी यह निश्चित करने में कि एक विशेष मूल्य किस वर्ग के अन्तर्गत 
आएगा, कुछ कठिनाई होती है | जैसे अगर वर्गान्‍्तर २"५-३"५ और ३"५-४“५ माना 

है. 











१० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


जाय तो ३,५ मूल्य वाले पद को किस वर्ग के अन्तर्गत रखा जायगा? इस कठिनाई 
को दूर करने की एक रीति यह है कि वर्गान्तर की अपर सीमा को उस वर्ग के 
अन्तर्गत आने वाला मूल्य न माना जाय बल्कि उसके बाद आने वाले वर्ग में गिना 
जाए । जैसे उपयु क्त उदाहरण में ३"५ मूल्य वाला पद २'४-३-५ वाले वर्गान्तर में 
नहीं रखा जायगा बल्कि उसके बाद आने वाले, अर्थात्‌ ३"४-४"५ वाले बर्ग में रखा 
जाएगा | इस रीति को अपवर्जी (८£८ॉप२८) रीति कहते हैं | इसके विपरीत दूसरी 
रीति सें, जिसे समावेशी ((7८7057ए८) रीति कहते हैं, वर्गान्‍्तर की अपर सीमा वाले 
मूल्य भी उसी वर्ग में आते हैं। पर इस रीति का उपयोग प्रायः नहीं किया जाता क्योंकि 
इससे श्रेणी में संततता (००0४7०१४ए) नहीं रह पाती। निम्नलिखित उदाहरण से ये 
बातें स्पष्ट हो जाएँगी । 
मान लीजिए. १०० बस्तुओं के दामों में निम्नलिखित प्रतिशत परिवर्तन हुए । 











छ'र १०२ ९०६ ६९*० ९६०३ €*"७ ९०"७ €६०६१ झट ६३ 
६१ ६€'ण ₹९€ ६€'शू काश ९२१० ९€शणरू ८ ₹१*७ १०७ 
व्ा० १०६ छाए श्‌र२ा७छ ८८ाछ वे ६१४३ १२० १०'ते्ा ७'७छ 
€*० ९०६ ९श"३ १९०२ ६९०४ ८७ ९९१ €'हू ९०'र ९रर 
९०६ €'६ू १९०९ ६१०७ ७छ'€६ १०९४ ९१०१० ध्'८य धदज ९०'ह 
६४ ६४ ७६ ७ ९४४२ ८४ ६७ १०४ सदाप्था १९०७ 
१५९*पू १०६ ९०३ हाथ ६४ हुए १०६ छू ९९*२र ७ 
६०९० ९०२ ८;प ै(०'८टू ९०४ १०९७ &छ€'र्‌ ९१०२ १०२ टछ*र३े 
९०"७ १००० ९(शए ९०० एछो८थ ६०९ १५९६ ९१९०३ द्ार द्प 
१५५४१ १००० ८ १०६ ४७ एछथे ९रचश हाथ ६४ 2१०९२ 


[7७ ८2०५. 


इनका वर्गान्‍्तरानुसार वर्गीकरण करने के लिए पहले वर्ग-विस्तार निश्चित 
करना पड़गा। सबसे अधिक परिवर्तन १४२४ है ओर सबसे कम परिवर्तन ४७% | 
इनका अन्तर १४"२९-- ४५९७-८५ हुआ । अगर वर्ग-विस्तार १ माना जाए. तो ६ 
वर्ग बनेंगे । अब वर्ग-सीमाएँ निश्चित करनी हैं। अगर मध्य-मूल्य पूर्णंक बनाना 
है तो ये सीमाएँ क्रमशः ४५९४-६५, ६९३-७.४,...१३"४५-१४"५ होंगी | अब प्रत्येक 
वग के लिए वारंवारता निकाली जा सकती है । यहाँ अपवर्जी रीति का उपयोग किया 
गया है | इस सामग्री का वर्गीकृत रूप निम्नलिखित हुआ : 


सामग्री का वर्घ्ोीकरण और सारणीयन ६. है. 














वर्ग सीमाएँ: . मध्य-मूल्य वारंवारता 
( (.983-[70[05 ) (0-ए०.७८) (##८0०९७7००८ए) 

४ ४-६, द्‌ र्‌ 
६४-७५ ७ र्‌ 
७ए-वार व्र € 
८४-६५ &६ २२ 
€"४-१ ०४ १० श्श्‌ 
१०"५७-९ ९९४ १९ र्र 
१५१"४५-१५२"४ श्र व्द 
१५२"४--१६-५ शड्े र्‌ 
१५३"५४-९४४ । १४ र्‌ 








सारणीयन (7४४७एणं०४०४) 


वर्गीकरण करने के पश्चात सामग्री का सारणीयन (६&०प/७४०07) किया 
जाता हैं | इसका उद्देश्य यह है कि सामग्री को घुविधाजनक, संक्षित और समभने योग्य 
दशा में रखा जाय जिससे अनुसंधान के बारे में सूचना मिल सके या निवेचन (067[076- 
2707) आसानी से किया जा सके। बाउले (805७]6ए) के अनुसार सारणीयन 
“किसी भी रूप में उपलब्ध संचित सामग्री ओर सांख्यिकी द्वारा निकाले गए अन्तिम 
तक॑-संगत परिणामों के बीच की क्रिया है!” सास्णीयन का कार्य आसान नहीं है। 
सामग्री को सारणी के रूप में रखने के लिए. कुछ सावधानियाँ (76८%प४०0४) 
बरतनी पड़ती हैं | 


सारणी परिशुद्ध (४८८५:७८:८) और स्पष्ट होनी चाहिए!। अगर स्पष्ट नहीं 

हुई तो सारणीयन का उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा | ऐसा नहीं होना चाहिये कि सारणी 

को समभने के लिए अन्य स्थलों में दी गईं व्याख्याओों को या पाद-टिप्पणियों (/00(- 
70/८8) को पढ़ने की आवश्यकता पड़े | अगर सामग्री बहुत बड़ी राशि में हो तो उसे 
एक साथ यअस्घ॒ुत करने का प्रयास नहीं करना चाहिये । इससे भ्रान्ति बढ़ सकती है ओर 
उसका अध्ययन असुविधाजनक भी हो सकता है । ऐसी सामग्री को यथोचित आकार की 
सारणियों के रूप में रखा जा सकता है, ओर इस तरह सामग्री को सुविधाजनक रूप में 
समझा जा सकता है। अर्थात्‌ सारणी इस प्रकार की हो कि सामग्री बोधगम्य हो सके । 
पर इसका अर्थ यह नहीं है कि एक ही प्रकार की सामग्री विभिन्न सारणियों में दी जाय । 





प्र सांख्यिकी के सिद्धान्त 


प्रत्येक सारणी को स्वयं में पूर्ण होना चाहिये। एक निश्चित उद्दे श्य की पूर्ति एक 
सारणी द्वारा हो जानी चाहिये। सारणी कागज के आकार के अनुकूल होनी चाहिये | 
इसलिए प्रत्येक कॉलम ओर पंक्ति की चोड़ाई पहले से ही निश्चित कर लेनी चाहिये | 
एक वर्ग के अन्तर्गत आने वाली सामग्री को दूसरे वर्ग के अन्तर्गत आनेवाली सामी 
से स्पष्टया अलग करने के लिए इनके बीछ की रेखा अधिक मोटी खींचनी चाहिये | 
उपवर्गों में विभाजित करने वाली रेखाएँ अपेक्षाकृत कम मोटी होंगी । वैसे कितने वर्ग 
ओर उपवर्ग बनेंगे यह सामग्री पर निर्मर रहेगा | इस बात का प्रयास करना चाहिये 
कि शीर्षकों (४०००७४४2) की संख्या कम रहे--भले ही उपशीषकों ($प८७- 
॥6००08029) की संख्या बढ़ जाए। इससे अपेक्षाकृत अधिक मुख्य बातें समभने में 
आसानी होगी । शीर्षक और उप-शीर्षक इस प्रकार के होने चाहिये कि वे स्वयं-स्पष्ट 
हो जायें; उनकी अन्यत्र व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिये। वे कॉलम 
जिनके अन्तर्गत आई सामग्री की तुलना करनी हो साथ-साथ रखने चाहिये | इसी प्रकार 
प्रतिशतों, औसतों या योगों को भी साथ-साथ रखना चाहिये। अगर किसी सारणी में 
प्रतिशत और अंक साथ-साथ देने हैं तो अलग-अलग प्रकार के अन्लुरों का उपयोग 
करना चाहिये | जहाँ तक हो सके उपसादन (»0705४7&707) का उपयोग करके 
सामग्री को पूर्णा कों के रूप में रखने का प्रयत्न करना चाहिए । इस प्रकार अना- 
वयश्यकीय विस्तार ( 6०:७४)$ ) कम किये जा सकते हैं । प्रत्येक कॉलम में शीर्षक के 
नीचे उसके अन्तर्गत आने बाली सामग्री की इकाई लिख देनी चाहिये जिससे यह सरलता- 
पूर्वक जाना जा सके की वे अंक कया बता रहे हैं। सारणी में लिखे जाने से पूर्व 
प्रत्येक अंक को जाँच लेना चाहिये और यह निश्चित कर लेना चाहिये कि वह ठीक 
स्थान पर लिखा जा रहा है। प्रत्येक सारणी के साथ पाद-ट्प्पिणी में विशिष्टता 
वाले अंकों के बारे में लिख देना चाहिये। और अन्त में सामग्री के संग्रहण की 
रीति, उनके प्रामतिस्थान, उनके द्वारा निकाले गये परिणाम और इन परिणामों की 
परिसीमाएँ लिख देनी चाहिये | साथ ही साथ सम्भावित विश्रम भी बता दिया जाना 
चाहिये | द 








5 


विभिन्न प्रकार के सारणीयन (07/66०॥ 77968 ० ॥'४७प४६४०४) 


विभिन्न प्रकार की सारणियाँ इस आधार पर बनाई जाती हैं कि वे कितने गुरों 
के बारे में सूचना देती हैं | इस प्रकार एक-गुण सारणीयन (9786-7'६०प7०६०7॥) 
में विभिन्न पदों के विषय में एक शुण की सूचना दी जाती है | इस गुण के बारे में अगर 


सामग्री का वर्गीकरण और सारणीयन प३ 


विभिन्न प्रश्न पूछे जाये तो इस सारणी द्वारा इनका उत्तर दिया जा सकता है | उदाहरण 


[काने 


के लिए निम्नलिखित सारणी में व्यक्तियों की लम्बाइयाँ और इनकी वारंवारता दी गई 
है| यह एक-शुण सारणीयन का नमूना है :-- 





७५ व्यक्तियों की लम्बाइयाँ 











व्यक्तियों की लम्बाइयाँ (इंचों में ) वारंवारता 
२४-४० द्‌ 
४०-४५ श्ड 
४४-५० श्ध 
प०-फ्रप २३ 
०५ ० क्‍ र्व्र 
कुल व्यक्तियों की संख्या छज 








इस सारणी से यह सूचना मिलती है कि ७४ व्यक्तियों के समूह में विभिन्न 
लम्बाइयों के वर्गों के अन्तर्गत कितने व्यक्ति आते हैं | अगर यह जानना चाहा जाय 
कि ४०-४४ इंच लम्बाई वाले कितने व्यक्ति हैं तो इसका उत्तर इस सारणी से दिया 
जा सकता है। ऐसे व्यक्ति १३ हैं। इसके साथ-साथ यह सारणी यह भी बताती है कि 
अधिकतम व्यक्ति ५०-४५ इश्च लम्बे हैं ओर न्यूनतम व्यक्ति ३५-४० इच्च लम्बे हैं। 
यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि प्रत्येक प्रश्न, जिसका उत्तर इस सारणी 
द्वारा दिया जा सकता है, एक दूसरे से स्वतन्त्र हे | 





पर अगर एक ही पद के बारे में दो प्रश्न पूछे जाएँ तो इससे काम नहीं 
चलेगा । ऐसी दशा में द्विगुण-सारणीयन (00प9!०-7'०४७पा४४४09) किया जाता 
है । द्िगुण सारणीयन के द्वारा एक ही पद के बारे में दो प्रश्नों का उत्तर जाना जा 


सकता है । निम्नलिखित सारणी, जिसमें सांख्यिकी, गणित और अर्थशास्त्र के प्राप्तांक 
दिखाये गये हैं, इसका नमूना है। 


पूछ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


५० विद्यार्थियों के कुछ विषयों में प्राप्तांक 




















प्रामांक दिए हुए अंक पाने वाले विद्यार्थियों की संख्या 
गणित में | सांख्यिकी में | अर्थश्र में 
२०-३० २ १ है 
रे 0-४० (9 कर ६ 
072 कु २७ २० 
प्‌ ए0 -द्‌ 9 २ ० १ प्र १ प्‌ 
६ ०-७० ३ (७ २ 
छ०-ट्ा० २ ३ _ 
के का 'रै,० ५० ५० 
की संख्या 

















इस सारणी से यह सूचना प्राप्त हो सकती है कि किसी विषय में एक वर्ग के 
अन्तर्गत दिये गये प्राप्तांक जिन विद्यार्थियों को मिले हैं, उनकी संख्या कितनी हैं | इस 
प्रकार यह दो प्रश्नों के उत्तर देता है। एक तो विषय के बारे में ओर दूसरा ग्रात्तांकों 
के बारे में | ये प्रश्न परस्पर-निर्भर हैं, इसलिए, यह सारणी हिगुण-सारणीयन के अनुसार 
निर्मित है । 

त्रिगुण सारणीयन उन दशाओं में किया 'जाता है जहाँ एक ही सारणी 
द्वारा तीन परस्पर-आश्रित प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। जैसे निम्नलिखित सारणी द्वारा 
मलेरिया और चेचक से विभिन्न राज्यों में होनेवाली वयस्यकों ओर बच्चों की मृत्यु का 
ब्यौरा दिया जा सकता है। इस सारणी से तीन प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं। पहला 
यह कि विभिन्न राज्यों में कितने व्यक्ति मलेरिया या चेचक से मरते हैं, “दूसरा यह कि 
इनमें कितने वयस्क हैं ओर कितने बच्चे और तीसरा यह कि पूरे भारत में कितने 
लोग मलेरिया या चेचक से मरते हैं। क्योंकि यह तीन परस्पाश्रित प्रश्नों के उत्तर देवी 
है, इसलिए इसे त्रिगुण सारणी कहा जायगा | 








सामग्री कः वर्गीकरण और सारणीयन 





मद्रास 

क्‍ उत्तर प्रदेश 
पंजाब 
उड़ीसा 
बिहार 
बम्बई 
मध्य-प्रदेश 
बंगाल 
ञ्रन्य राज्यों 


में 


मठारिया __ 





बच्चे 


कुल 


» वयस्क 


कुल 





























पूरे भारत 


शक (आन 


कं लए 














| 


है 


ल्‍ 

















जब एक ही सारणी द्वारा तीन से अधिक प्रश्नों के उत्तर दिये जा सकते हैं 
तो उसकी रचना बहुगुण सारणीयन ( (५४776 ०00 “7'४००७४०॥ ) के अनुसार 
की गई होती है । निम्नलिखित सारणी में बहुगुण सारणीयन का नमूना है : 










































































































































































पद सांख्यिकी के सिद्धान्त 
| 
ज्य ध ( थ ; 
र धरम | जा ते ट ॥ ये षट ट ल्‍ हि 
- (० (९ | 69 
आर निज ज-+ द बना य 7 
उत्तर प्रदेश | हिन्दू ट ब्राह्मण | ० हि 
र्फ््‌ है 
५० 
७५ से अधिक __ 
योग ' 
राजपूत | ० पा 
श्प 
५० 
७9 से अधिक कं 
योग 
कायस्थ | ० 
र्प्‌ 
पू० 
७४ से अधिक |. [_._......... 
योग ह 
अन्य ० 
२५ । 
पू० 
_७५ से अधिक | |... 
योग -- 7८८८ ८- 
योग | 
_(सब हिन्दू ) |... 7-०० ८ ---- 
मुसलमान ५ 
रू 
५० 
प्‌ 












































सामग्री का वर्गोकरण और सारणीयन पूछ, 


इस सारणी को कितना ही बड़ा बनाया जा सकता है। जैसा इसको देखकर 
ज्ञात होगा, इससे कई प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं । किसी राज्य में शिक्षितों की क्‍या: 
संख्या है ! किसी धर्म में कया संख्या है ? किसी जाति में क्‍या संख्या है ! स्री और 
पुरुषों में क्या संख्या है ! आदि | व्यवहार में प्रायः इसी प्रकार की सारणियाँ देखने में 
आया करती हैं । 

सारणीयन का विभाजन दूसरी प्रकार से भी किया जा सकता है। इसके अनु- 
सार सरल सारणीयन (579770]6 7'४००१०६४४०॥) में केवल एक गुण के विषय में 
बताया जाता है ओर जटिल सारणीयन ((००:7)८5 7'9०७]०४/07) में एक से 
अधिक गुणों के बारे में बताया जाता है। उदाहरण में दी गई पहली सारणी सरल! 
सारणीयन का नमूना है ओर अन्य सारणियाँ जटिल सारणीयन का । 


अश्न 


(१) वर्गीकरण और सारणीयन का अन्तर स्पष्ट कीजिए । 


(२) आप किस प्रकार किए गए निरीक्षणों का वर्गीकरण शुरू करेंगे 
ओर सारणीयन में किन बातों पर विचार करेंगे ? साधारणतया उपयोग में 
आने वाली सारशियों को बताइये । (बी० कॉम, आगरा १६४७६) 


(३) वगोन्तरानुसार वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है | निम्नलिखित 
सामग्री का वर्गीकरण १, २ और ३ इकाई का वग-विस्तार लेकर कीजिए : 

३४४, ३५७४, ३४५, ३७४, ३४५, २७४, ३४, ३६, ४४, ४२, ३४, 
३३४५, ४५४, ४५४, २७, २०, ४१, ४६, ४४, ४५, २६, २७, र८, २४४ ६३९४,. 
४७*१, २१*४, ३२३*५, ३*२, ३२, ४१, ४०१, ९३, ३१, ४१, २३, २१, ३६, २३. 
३३, ४१५, ४१, ३३, ३७४, ३४५, ४०, ३४८४ । 

(४) सारणीयन में आप क्या सावधानियाँ बरतेंगे ? एक निरंक सारणी 
के रचना करिये निससे उत्तर प्रदेश के सात महत्वपूर्ण शहरों में जनसंख्या का 
विवरण योन ओर चार धर्मो' के अनुसार ५ आयु-वर्गो' में दिखाया जा सके । 

(बी० कॉम, आगरा, १६३७) 

(४) निम्नलिखित सूचना व्यक्त करने के लिए एक उचित शीर्षक, 

विभाग और उप-विभाग वाली सारणी की रचना कीजिए : 
(१) भारत से सूती कपड़ा निर्यात । 


बूद सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२) बर्मा, चीन, जावा, इरान और ईराक के लिए । 
(३) प्रत्येक देश के लिए भेजे कपड़े की राशि। 

(४) पवत्येक देश के लिए भेजे गए कपड़े का मूल्य । 

(५) १६३६-४० से १६४४-४६ तक का प्रत्येक वर्ष । 
(६) प्रति वर्ष किया गया निर्यात । 

(७) प्रति वर्ष निर्यात का मूल्य । 


(बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४६) 


(६) निम्नलिखित सारणी का पुनविन्यास कीजिए ताकि वह अधिक 
सुबोध हो जाए : 












































ब्राह्मण राजपूत क्‍ कायस्थ हरिजन 
.... *“. 8 कक ढ़ 8 8 हढ 
के. इंहइंहहहइह्हए 
पा 
न _ |] 





(बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४०) 


(७) एकगुण, हिगुण, त्रिगुण ओर बहुगुण सारणीयन में क्‍या अन्तर 
है। नमूना देकर प्रत्येक को स्पष्ट करिये। 


(८) निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए : 
(क) गुणानुसार वर्गीकरण । 
(ख) वर्गोन्‍्तर की अपर और अधर सीमाएँ । 
(ग) वर्गान्तर का विस्तार । 
(घ) जटिल सारणीयन । 
(च) बर्ग वारंबारता | 


सामग्री का वर्गीकरण ओर सारणीयन प६ 


(६) निम्नलिखित कथन को सारणी के रूप में रखिए। शीषकों ओर 
ऐसे कॉलमों को भी दीजिए जिनमें योगों का प्रतिशत दिया जा सके। 


“४१६२० में एक देश में ताँचा ओर पीतल ४"८ लाख रुपए का, 
कोयला ५-७ लाख रु० का, लोहा भादि ६:५ लाख रुपए का, सोना ओर चोँदी 
१६ लाख रुपए का, अल्यूमीनियम ४६ लाख रुपए का और अन्य पदार्थ 
०'४ लाख रुपए के निकाले गए। १६२१ में ये क्रमश: ६'६ लाख, ६६ लाख, 
६८ लाख, १*० लाख, ४*४ लाख, और ०९६ ल्ञाख रुपए के निकलने गये थे ।? 


अध्याय ७ 
क की 
सांख्यिकीय माध्य 
( 8%087८2॥ /ए८:०268 ) 

सामग्री-संग्रहण ( ०0]6८0४079 ० १278 ) का उद्देश्य किसी विषय के बारे 
में जानकारी प्राप्त करना होता है, पर संग्रहीत सामग्री की राशि अधिक होने के कारण 
डसे समझ सकना बहुत कठिन हो जाता है । दूसरे, हम यह भी जानना चाहते हैं कि 
विभिन्न संग्रहीत सामग्रियों ( ०0॥]०८४८० १204 ) में क्‍या अन्तर है। हम उनकी : 
तुलना करना चाहते हैं | इसके लिए. इतनी अधिक राशि में प्रस्तुत सामग्री का उपयोग 
सम्भव नहीं है। अगर कोई ऐसी संख्या हो जो इस समूह ( 87007 ) या श्रेणी का. 
प्रतिनिधित्व कर सके तो इस कठिनाई से बचा जा सकता है। सांखि्यिकी में ऐसी 
संख्याओं को दिए, हुए समूह का माध्य ( ४ए०८:५४० ) कहते हैं। किसी समूह का 
माध्य उस समूह के पदों की स्थति के बारे में एक निश्चित जानकारी देता है | यह वह 
: संख्या है जिसके आसपास किसी चल ( ए५४१90!० ), ( जिसके विभिन्न मूल्यों का 
प्रतिनिधित्व करने वाली संख्या की गणना करनी है) के विभिन्न मूल्य अधिकांशतः एक- 
चित होते हैं। 
' अच्छे माध्य के गुण 

यदि माध्य किसी समूह का प्रतिनिधित्व करता है तो यह आवश्यक है कि उससें 
निम्नलिखित शुण पाये जायें :-- 

(१) वह एक निश्चित संख्या हो, अर्थात्‌ उस समूह के लिए उसका मान 
व्यक्ति-निरपेक्ष हो । 

(२) उसकी गणना करते समय समूह का कोई पद नहीं छूटना चाहिए, अन्यथा 
वह पूरे समूह का सही अर्थ में प्रतिनिधि नहीं है । 

(३) उसका व्यवहार बीज गणितीय रीतियों में आसानी से किया जा सके । यदि 
उसमें यह गुण नहीं है तो उसका उपयोग सीमित होगा | 

(४) उसकी गणना करना सुविधाजनक होना चाहिए, ओर 

(५) वह ऐसी संख्या होनी चाहिए जो आकस्मिक परिवतेनों से अपेक्षाकृत कम 
प्रभावित हो । 











सांख्यिकीय साध्य ६१ 


माथ्य के बारे में एक बात और जाननी आवश्यक है, वह यह कि वे पद 
( 402775 ) जिनका माध्य निकालना है, एक ही परिवार के हों । किसी व्यक्ति की आय 
ओर आयु का माध्य नहों निकाला जा सकता। किसी समूह के माध्य की इकाई 
( प४६ ) उसके पदों की इकाई होती है। जैसे इंचों में नापी गई लम्बाइयों का माध्य 
इंचों में, फुओों में नापी.-गई का फुछों में होगा | इसी प्रकार अगर किसी की दैनिक आय 
रुपयों में दी गईं है तो उसका माध्य पौंडों या डालरों में नहीं हो सकता । 

सांख्यिकी में निम्नलिखित माध्यों का उपयोग किया जाता है :--- 

(१) भूयिष्ठक ( 006 ) 

(२) मध्यका ( +(८०॥७४ ) 

(३) सामानान्तर माध्य या मध्यक (.0060797600 ४४९४३2९ ०४ 70627 ) 

(४) गुणोत्तर माध्य या मध्यक ( (+6०छाटाईआंए ४ए०४३९९ ०४ 777९27 ) 

(५४) हरात्मक माध्य या मध्यक ( ॥7987700770 ४४८॥३९८ 0£ 77697 ) 

उपरोक्त माधथ्यों में अंतिम तीन माध्य ( ३, ४ और ५ ) गणितीय माध्य हैं। 
समानान्‍्तर माध्य या मध्यक को कभी-कभी केवल माध्य या मध्यक भी कहा जाता है। 

भूयिष्ठिक ( 006 ) 

भूयिष्ठक चत्न का वह मूल्य है जो दिये हुए समूह में अधिकतम बार 
आता है या वह मूल्य जिसके आसपास चल के मूल्य सबसे अधिक संख्या में 
एकत्रित रहते हैं। अतः जच्र यह कहा जाता है कि किसी समूह के सदस्यों की आयों 
का भूयिष्ठ-मूल्य ( 7700%| ए०/ए८८ ) ७० २० प्रतिमास है तो यह समझा जाता है 
कि उस समूह के अधिकतम सदस्यों की आय ७० रु० प्रतिमास है। वैसे इस समूह में 
कुछ की आय २० या २५ २० प्रतिमास ओर कुछ सदस्यों की ५०० रु० या इससे 
अधिक प्रतिमास मी हो सकती है। 

भूयिष्ठक ( 77036 ) की परिभाषा से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका निर्धारण 
सबसे आसान होगा । क्योंकि किसी वारंवारता-सारणी (६760००7८ए ६५०१७ ) में 
सबसे अधिक वारंवारता वाले पद का मूल्य भूयिष्ठ-मूल्य ( 770984] ए»]८८ ) होगा । 
यह तभी सम्मव हो सकता है जब वारंवारता-सारणी (£7७(८०४८ए ५40०6 ) में 
अनियमिता (7:०2०//(ए) न हो । वास्तव में इसी प्रकार की वारंवारता-सारणियाँ 
प्राप्त होती हैं । इनके लिए. भूयिष्ठक (77048 ) का निर्धारण करने की विधि को 
वर्गण-विधि ( 8:0०778 77०:४०० ) कहते हैं । 

वर्गण विधि ( 870प7९2 77८८४०० ) में पहले समूह के पदों को क्रमानु- 





६२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सार रख लिया जाता है ओर उनके सम्मुख उनकी वारंवारताएँ लिख ली जाती है, अब 
तीसरे ओर चौथे कॉलम में, दूसरे कॉलम में दी गई वारंवारताओं को दो-दो करके जोड़े 
गए योगों का लिखा जाता है क्योंकि ऐसा दो प्रकार से किया जा सकता है। पहले और 
दूसरे, तीसरे और चौथे आदि पदों को जोड़कर और दूसरे और तीसरे, चौथे और 
पाँचवें आदि पदों को जोड़कर । फिर इन वारंवारताओं को ३-३ करके जोड़ा जाता है। 
ऐसा तीन प्रकार से किया जा सकता है, (१) पहले, दूसरे और तीसरे, चौथे, पाँचवें और 
छठे आदि पदों को जोड़कर; (२) दूसरे, तीसरे और चौथे, पाँचवें, छुठे और सातवें 
आदि पदों को जोड़ कर ओर (३) तीसरे, चौथे और पाँचवें, छुठे, सातवें और आठेें 
आदि पदों को जोड़कर | यदि आवश्यकता पड़े तो इन वारंवारताओं को चार-चार करके 
' या पाँच-पाँच करके भी जोड़ा जा सकता है। इसके बाद प्रत्येक कॉलम में अधिकतम 
वारंवारता वाले पद को अंकित ( 772: ) कर लिया जाता है। यह रीति निम्नलिखित 
उदाहरण में स्पष्ट की गई है: 
खन्डित श्रेणी का भूयिष्ठक निकालना : 
उदाहरए' १: दी हुई श्रेणी का भूयिष्ठक निकालिये : 








बन ननननागनग नए 


वारवारता ( &+८0प८४८ए ) 






























































' चल का मूल्य “--+95................... भाजज- 
( ०26 0 7677 ) _७_ (१) (२) _ ही (४) | (४) _ (६) 
। बीबी क्‍ 
" है । " ) १9 ्ि कि 
४ रु | हर | ३३ ऐप > क 
६ श४ |; रे | ४६ | ६४५ 
< र३ | ४४५ ) धि | ६६ 
बे ४१ हा रे 
हर । ३०. हक [पर थीं पे 
हक री 














सांख्यिक्रीय माध्य रे 


इस सारणी में पहले कॉलम के अनुसार भूयिष्ठक छुठा पद प्रतीत होता है, पर 
तीसरे कॉलम के अनुसार छुठे या सातवें में कोई भी हो सकता है ओर पाँचवें कॉलम 
के अनुसार वें, ६ठे और ७वें में कोई हो सकता है | इस प्रकार प्रत्येक कॉलम में 


भूयिष्ठक अलग-अलग आता है। प्रत्येक पद कितनी बार भूविष्ठक वाले समूह में 
आया, यह बात निम्नलिखित सारणी के रूप में दिखाई जा सकती है : 


विश्लेषण-सारिणी (७४०००8१3-.'५96) 


























है अधिकतम वारंवारता वा चलों का मूल्य (826 
०६ 67 ८079798 4725, ६:60[प९7८ए 
तु 
१ ६ 
२्‌ ७ दर 
र्‌ द्‌ ७ 
4 ७ प्र । 
है ४, द्‌ हि 
दे दर ७ प्र 
पदों की संख्या १ ४४ थू ३ | १ 
| 











इस सारणी से यह ज्ञात हो जाता है कि ७वाँ पद जिसका मूल्य भी ७ है सबसे 
अधिक बार अधिकतम वारंबारता वाले वर्गों (270०७) में आता है। अतएव इस 
समूह का भूयिष्ठठई (77006) ७ हुआ | पहली सारणी से ऐसा प्रतीत होता है कि 
भूयिष्ठक (77006 ) छठा पद है, जिसका मूल्य ६ है, पर ६ को इस समूह का भूयिष्ठक 
नहीं माना जा सकता क्योंकि भूयिष्ठ-मूल्य (7700%] ४०८८) को उसके आसपास के 
पदों की वारंवारता और उनके मूल्य भी प्रभावित करते हैं। केवल इसलिए कि एक: 
पद की वारंवारता एक समूह में अधिकतम है, वह भूयिष्ठ-पद नहीं हो जाता । 
संतत श्रेणी का भूयिष्ठक निकालना 

उपरोक्त उदाहरण में श्रेणी खंडित (8527०06) थी। यदि श्रेणी संतत' 
( ८०४४४००५७ ) हो तो भूयिष्ठ-पद किसी वर्ग के अन्तर्गत होगा। यदि वर्गान्‍्तर 
सब वर्गों के लिए. एक-सा हो तो वर्ग के बीच में भूयिष्ठ का मूल्य निकालने के लिए. 
निम्न सूत्र का उपयोग किया जाता है :-- 


६४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





भूयिष्ठक -- भू +# सी ५ +- | खा बे ब.बर्‌प सी.) | 


जहां, सी, भूयिष्ठक व्ग की ग्रधर सीमा है । 
सी. भूयिष्ठक वर्ग की अपर सीमा है । 
व० भूयिष्टक से पूर्व वर्ग की वारंवारता है | 
व भूयिष्ठक वर्ग की वारंवारता है। 
व, भूयिष्ठक से बाद वाले वर्ग की वारंबारता है । 


2.-], 4 -.. 27० (०-]7) 


्पिख 0, 9 
७९76, 2, 5.9700$ ६07 7700 6, 

], बाते , #श्ाते 402 76 ॥0छ67 बात प9०४ 77708 ०0 
$8 77099) 870प09. 

५ 808703 ६07 $#८वप८7८१६४ ॥7 ६06 77069] 870७. 

६. 88008 078 ५#€6तप००४८४४ 7 6 8४079 [776८९०१7४8 
॥&#76 77009/[ 27079. 

६, ४9008 $07 760प७४८68 | ॥06 270प9 87८८९८१०४४ ६6 
४0069] 27079. 

कभी-कभी इस सूत्र के बदले निम्नलिखित का उपयोग किया जाता है :-- 


म्‌ 


2<0+ ६ हद ७-४) | 
इन सूत्रों का उपयोग निम्न उदाहरण में समझाया गया है :-- 
उद्हरण २ 
निम्न श्रेणी का भूयिष्ठक निर्धारित करिये--- 


१२-१६ १६-२० २०-२४२४-र८ २८३ २३२-३६ ३६-४० 

















पद का आकार ४-८ ८-१२ 











९७ २५ ४ 

















वारवारता १० १२ | १६ १४ | १० प्र 













































































सांस्यिकीय माध्य ६ 
हल 
भूयिष्ठक निकालना 
पद का आकार वारंवारता (६४८ १०९०7८५) 
(४2० ० 7०००)) | (१) | (२ | (३) | (७ | (४४) | (६) 
ड-प्प १० फ है! 
 श२ १२ ; र्र कि ) " 
१२-१६ १६ | श्८ 
१६-२० १४ ; ३० ) | ४२ “१2० 
२०-२४ १७० | २४ | ३२२ ही 
र२४-र८ प्र | ८ || ) 
२८-३२ १७ | | २५ |) | र्‌$ ३० 
३२-३६ प्‌ | र्र (7२६ है 
३६-४० २६४४ _ ४ | ॥/ |  ै | ट क्‍ 
विश्लेषण-सारणी (&0०!7७$ 7'%०6) 
कॉलम अधिकतम वारंवारता वाले वर्ग 
हे बा द र८-३२ 
२ १२-१६ | १६-२० ' 
३ ८-१२ | १२-१६ 
ड्य पन्श्र | श्स्श्ध 
भर ८-१२ | १२-१६ | १६-२० 
६ १२-१६ | १६-२०,| २०-२४ 
_ददकिीसओा | ३ | है | $ | रे | 5 __£ की संख्या | १ रे ४ | रे १ 

















इस सारणी के अनुसार अधिकतम वारंबारता वाला वर्ग १२-१६ है। अतएव 
भूयिष्ठक इसी वर्ग में होगा। भूयिष्ठक का ठीक-ठीक स्थान निर्धारण के लिए पिछले 
पृष्ठ में दिये गये सूत्र का उपयोग किया जायगा । 

५ 


६६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





भू-सी, +( सर बा-ब- -वें ( सी२- सी )| 
-स्क [सीकर ७-९ण) 
न्‍्त्र२यययई 


ल्‍+ १४७ ( लगमग ) 

गन ( -70 __. लि 
2>प+क [कप (9-9) | 
+म्2+ 70 _- (76 - 72) | 


-+-72-+-8 क्‍ 

८ 74"7 (2[070705.) 

भूयिष्ठक निकालने की यह विधि बहुत संतोषजनक नहीं है । वास्तव में भूयिष्ठक 
का निर्धारण करना सरल नहीं है। हम ऐसे पद को चाहते हैं जिसकी वारंबारता 
अधिकतम हो । इसके लिए सबसे संतोषप्रद विधि वक्र अन्वायोजन (८प:४ए८ 40078) 
की है। वर्गण की जिस रीति का वर्शुन किया गया है वह वास्तव में व्यतिक्रमों 
((776४७५/॥:८४) को कम से कम करने से लिए है। व्यवहार में जो वारंवारता- 
वंगदन (#८०५०४८ए 988६४9प४०079) प्राप्त होते हैं उनमें एक से अधिक 
भूयिष्ठक भी हो सकते हैं | ऐसी दशाओं में अद्वितीय (५४0००) भूयिष्ठक प्राप्त करने 
का प्रयास बेकार है | भूयिष्धक का उपयोग वस्तुतः उन्हीं बंटनों (05:779प007) 
तक सीमित है जिनमें विशेष व्यतिक्रम न हों | 





भूयिष्ठक के लाभ और उसकी कमियाँ 

लाभ--भूयिष्ठक बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। वास्तव में साधारण 
बोलचाल में माध्य से भूयिष्ठक ही समझा जाता है। इसके मूल्य पर असामान्य 
(०४६८:०॥7८) पदों का प्रभाव नहीं पड़ता | अगर यह मालूम हो कि पहले और अन्त 
के पदों की वारंवासताएँ अपेक्नाइत कम है तो इसके निर्धारण के लिए, मध्यका की 
भाँति, उनको ठीक-ठीक जानना आवश्यक नहीं है। केवल बीच के पद जानने से ही 
भूयिष्ठक का मूल्य ज्ञात हो सकता है । यह निश्चित रूप सें यह बताता - है कि.किस 
पद को किसी समूह में प्रायः पाया जायगा | अगर श्रेणी सक्रम ( ॥०४०७४) ओर 


सांख्यिकीय माध्य ६७ 


संभित (3ए४0॥7८07८4!) हो तो इसके निर्धास्ण के लिए. गणना नहीं करनी पड़ती | 
केवल निरीक्षण करके इसका मूल्य जाना जा सकता है | 

कमियाँ--भूयिष्ठक व्यवहार में प्रायः कोई निश्चित जानकारी नहीं देता 
क्योंकि सक्रम ( ॥/८20०]9/ ) समूह या श्रेणियाँ अधिकांशतः नहीं मिलतीं। अतएव 
कई दशाओं में यह अनुपयोगी है। प्रायः इसका स्थान-निर्धारण नहीं किया जा सकता 
विशेषतः उन बंटनों में जिनमें व्यतिक्रम हों। सामग्री को क्रमानुसार रखना और पदों 
का वर्गण करना कई स्थानों में सुविधाजनक नहीं होता | चूँ कि इसका निर्धारण केवल 
वारंवारताओं पर निर्भर है अतणव कुछु दशाओं में यह समूह का प्रतिनिधि नहीं माना 
जा सकता | मान लीजिये किसी समूह में २० व्यक्ति हैं, जिनमें ३ व्यक्तियों की आय 
५० र० है। शेष १७ व्यक्तियों की आय २०० रु० से अधिक है पर किसी की भी एक 
दूसरे के बराबर नहीं है। इस स्थिति में भूयिष्ठक ४० हुआ, पर यह समूह का सही 
प्रतिनिधित्व नहीं करता | इसका व्यवहार गणितीय विधियों में नहीं किया जा सकता | 
भूयिष्ठक का निर्धारण पूर्ण रूप से संतोषजनक रूप में करना अत्यधिक कठिन है । 

मध्यका (/४5/।)[.8]५) 

मध्यका किसी समूह या श्रेणी के उस पद का मूल्य है जो इस समूह 
या श्रेणी के पदों को आरोही या अवरोही क्रमों ( 252८70[72 08४ १९४८९४७- 
१992 ०४१०५ ) में रखने पर बीच का पद होता है। यह मध्य पद श्रेणी को दो 
ऐसे बराबर भागों में विभाजित करता है जिनमें से एक भाग के पदों का मूल्य मध्य 
पद के मूल्य से कम तथा दूसरे भाग का मूल्य मध्य पद के मूल्य से अधिक होता है। 
मान लीजिए किसी कक्षा में २१ विद्यार्थी हैं ओर यदि उन्हें उनकी ऊँचाई के आधार 
पर एक पंक्ति में खड़ा किया जाय तो ११वाँ विद्यार्थी बिल्कुल बीच में होगा | उसके 
दोनों ओर दस-दस विद्यार्थियों के दो समूह होंगे जिनमें से एक समूह की ऊँचाई 
उसकी अपनी ऊँचाई से कम तथा दूसरे समूह की ऊँचाई उसकी डँचाई से अधिक 
होगी । इस ११वें विद्यार्थी की ऊँचाई इस समूह का मध्यका होगा । 

उपरोक्त कथन को गणितीय रूप से इस प्रकार कहा जा सकता है :--- 





द : पा 
मा (<) वें पद का मूल्य ]( -- 5]22 (६ -) [ला 
जब, मा मध्यका क्‍ रछा6/:6, 2४ ८- )४९तांधा 
स--श्रेणी के कुल पदों की -> 'पिपा0८४+ 0६ ६९775. 





. संख्या 


ध््द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उदाहरण ३ 


निम्ननिलिखित संख्याओं का मध्यका निकालिए :--- 


७, ३, ९, *, ८, ९९, ९ 


इस समूह को आरोही क्रम (88८९70स्‍792 ०४१४४) में निम्न रूप से रखा 


जायगा $--- 


७७७एाणाआआआआआआआाााणाआाआआाााणााणआआाााााााााभा आल अल नल लनलन्रबअलबक लकी 





क्रम॑ संख्या 





6 &0 #$#: ७ ><धए ८७0 “७ 


पदों का मूल्य 








“० ही &6 &€? # ७७ ७ 





ऊपर लिखे सूत्र के अनुसार, 


मार (२० वें पद का मूल्य 
>__ >-) वें 9 9 9 
र्‌ 
ज चौथे पद का मूल्य 
च्लप 





५ ' » नै- 7९७ ६४9 | 
१ -- 32९ 0६ (४77) हा 


__ (- *) प 0४ 
जज 929 93 2. 


न 9 99 477 दा 


इसलिए इस समूह का मध्यका ६ हुआ | 


उदाहरण ४ 


एक व्यक्ति की २१ सप्ताह की आय निम्नांकित है-- उसकी मध्यका आय 


निकालिए । 


आय ( रुपयों में ) ; ४०, ४१, ४७, ६०, ५३, ४२, ४८, ४६, ५४४, ६३, 
४५, ४३, ४७, ४०, ६१, ४६, ६७, ६४, ४६, २३६, ५५ | 


सांख्यिकीय साध्य ६६ 


























हल 
२१ सप्ताह की आय आरोही क्रम में 
[| पदोंका मूल्य |।..... | परदोंका मूल्य ५ पदों का मूल्य | पदों का मूः 
क्रम संख्या - न क्रम संख्या हि म न 
(साप्ताहिक आय) (साप्ताहिक आय) 

५ श्र श्र ४ 
२्‌ ४० १३ हक 
डे डर १४ १६ 

४ ४ रे १५ ७ 

प्‌ ४५, श्६ ५६ 
दर ४६ . १७ ६० 
9. ४७ श्व्य ६१ 

ट्ः है १६ घ्३्‌ 

€्‌ ० २० ६४ 

१० १ २१ ६७ 

११ ३ । 
स की | 

मार (“+) वें पद का मूल्य ( ->826 ०६ हट ४ 
२१-- -) - 59. 3) 7709 [६6॥0 
या ११वें पद का मूल्य 
( पदक ए स्त्गि5, 33 
रुपया | 


उपरोक्त उदाहरणों में पदों की संख्या अयुग्म (0०00) थी | इसलिए मध्य पद 
पाने में कोई कठिनाई नहीं हुईं | परन्तु यदि पदों की संख्या युग्म (७४०८४) हो तो 
समूह का कोई भी पद मध्य पद नहीं होगा बल्कि मध्य में दो पद होंगे । अतः मध्यका 
का मूल्य इन दो पदों के मूल्यों के बीच में कहीं भी हो सकता है। व्यवहार में इन दो 
पदों के मध्य मूल्य को पूरे समूह का मध्यका माना जाता है। 
साधारण श्रेणी क्‍ 
उदाहरण ५ 

६ व्यक्तियों की लम्बाइयाँ ६०", ६२", ६४" ६१" ६६" और ६४” हैं | इनकी 
मध्यका लम्बाई कितनी होगी १ 


७० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


& व्यक्तियों की लम्बाइयाँ आरोही क्रम में 





क्रम संख्या 


पदों का मूल्य 
(लम्बाई) 








9 अऋ ए >छ रा ७ 





६० 
६१ 
दर 
६४ 
६५ 
प्‌ 





मार रा) वें पद का मूल्य 


न्‍- (-) वे या ३५ वें पद का 





मूल्य 
--३ रे पद का मूल्य+४थे पद का. 
द र्‌ मूल्य 
__ ६२" न ६४ 


र्‌ 


>>. ८ ३ | 
वर्गित समूह या श्रेणी का मध्यका 








]( -- 352८ ० ( 7) [६० 





__ 9 9» (“>)" ०+ 
2. 


3"$५ [670 
--526 ०0६ 376 ॥६८70 --$2८ 
० 4४० (67 





ः 2. 
_ 62" 62"-- 64" 


< 





++ 65", 


किसी समूह या श्रेणी को दो प्रकार से वर्गित किया जा सकता है। या तो पदों 
का मूल्य निश्चित हो ओर उनकी वारंवारता लिख ली जाय या पदों को वर्गीकृत रूप 
में रखा जाय ओर उनकी वारंवारता लिख ली जाय, पहले प्रकार की श्रेणी को खंडित 
श्रेणी ( 682720८ 5८:८४ ) तथा दूसरे प्रकार की श्रेणी को संतत श्रेणी ( ८०४- 


४77०00$ 8८॥765 ) कहा जाता है। 
खंडित श्रेणी का मध्यका निकालना 


इस प्रकार की श्रेणी में मध्यका का मूल्य उस वर्ग का मूल्य है जिसमें मध्य पद 


सांख्यिकीय माध्य ७१ 


होता है। इसकी गणना करने के लिए पहले पदों को आरोही या अबरोही क्रमों के 
अनुसार रखा जाता है । फिर प्रत्येक पद के मूल्य की संचयी वारंवारता (टपणपा40ए८ 
(7८0(८८४८ए ) निकाल ली जाती है। मध्यका का मूल्य ( कुल वारंवास्ता+१ ) वें 





पद के मूल्य के बराबर होता है। २ 
उदाहरण ६ 

निम्नलिखित समूह को वर्मित रूप में लिखिये और उसका मध्यका निका- 
लिए. :-- 

रे, ७, 5, रे; रै। ६ ४) ९ रे ६५ %, ४५ रस 3, जे %, ५, ४) 
७, ६॥| 











हल 
संचयी वारंवारता सारणी 
है मूः बार संचयी वारंबारता 
चल का मूल्य वारंवारता हि : 
[ ( ८पणपा40४ए८ 
( $26 ० 06॥7 ) ( (7600९४०८ए ) (+८4०८४०८ए ) 
रात 
है. डे प्र 
भू ४ & 
६ ४ श्र 
७ डे । १६ 
ि २ श्ष्र 
& र्‌ २० 











मा: ( 7: ) वें पद का मूल्य | 2-८ ७26 ० (27८ प्ः 42०0० | 


+(-<-) वेंया १०९५ वें जा 39 3१9 (“--) प 

द पद का मूल्य 70'$ 9 67 

न दि न्‍्ः6 

उपयुक्त सारिणी में १०५ वाँ पद ६ वें ओर १३ वें पद के बीच में है ओर 
£ वें से १३ वें पदों का मूल्य ६ है। इसलिए इस समूह का मध्यका ६ है। 











७२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


संतत श्रेणी का मध्यका निकालना 

यदि पदों के मूल्य वर्गीकृत किये गये हों ओर हमें एक संतत श्रेणी का मध्यका 
निकालना हो तो एक विशेष कठिनाई का सामना करना पड़ता हे। मध्य पद का 
मूल्य किसी एक वर्ग में होता है और मध्यका का मूल्य मालूम करने के लिए अन्तर- 
गणना ((7(2770]2007) करनी होती है । निम्नलिखित उदाहरण से यह बात 
स्पष्ट हो जायगी :-- 



































उदाहरण ७ 
निम्नलिखित सारिणी से मध्यका निकालिए । 
चल का मूल्य वारवारता 
(8726 ० 06॥70) (4९0घ८४८ए) 
. ९०--२० | ४२ 
२०---३ ० | श्प 
३००---४० । पद 
४०---५ ० । ४० 
हल 
संचयी वारंवारता सारणी 
चल का मूल्य वारवारता संचयी वारंवारता 
१०---२० ४ डर 
२०--३० 3 ६७ 
३3०0--४० पट ५१२५ 
४०--५० ४० १६५ | 
. ' 0, 
माउ- (-+- ) वें पद मूल्य 2 -- 926 0९ से /4००)08| 
# 
मु हि |] 
ध् (--:-) वैंयादर वें | ल्‍ 5 +» 9 ( न 7) 0 
र्‌ | 2 
पद का मूल्य | क्‍ 8354 [६८७ 


८३ वें पद का मूल्य ३०--४० वर्ग में किसी मी स्थान पर हो सकता है | इस 
वर्ग का वर्गान्‍्तर १० है और इस वर्ग की वारंवारता ५८ है। अब हम यह मानकर 


सांख्यिकीय साध्य... ७३३ 


आगे चल सकते है कि यह वर्गान्तर इस वर्ग की वारंवासता पर समान रूप से वंट्ति 
है | इस कल्पना के अनुसार ८३ वें पद का मूल्य बराबर है ३०-+-ट८ (८३--६७) या 


२२.७६ | 
. उपरोक्त कथन को गणितीय रूप से इस प्रकार लिखा जा सकता है :-- 





मानस, + नि (मि-वी) | ),+ २ 2 (०-० | 
जब, सी, ->मध्य वर्ग की अधर सीमा ऋ८0/८, |, +-]07८४ ]7990 ०६ (॥6९ 

सी, 55 » 9 9» अपर सीमा 77९08927 87:00. 
व 5: » 9? वीरंवासता , नू| प०79ढ7 शाणा 6 

वी >मध्य वर्ग से पूर्व-वर्गं ' काल्तांशा 87009. 
की संचयी वारंवारता ६>-१607०7०८ए 0६ ४॥76 

मिं >मध्य-पद्‌ 7760 थ॥ 27079. 
मा- ३० -- | ४० - र० (८३ - ६७) |; ०७-८पणप्रोद्रए८ 60- 
ण प्रथ2८ए ०0... ६१6: 
न३२.७६ 076०८१॥08४ 87:००७- 
द 77 ++77003]6 4६€॥० 
(-३०+ [ (85-67) | 
नः22.76 


मध्यका के लाभ और उसकी कमियाँ 


लाभ--जैसा बताया जा चुका है मध्यका किसी श्रेणी या समूह को क्रम में 
रखने में बाद उनका मध्य-पद है | अगर यह मध्य-पद्‌ केवल क्रम में रखने से ही 
ज्ञात हो जाता है तो मध्यका समूह का ही एक पद होता है। इसका निर्धारण करना 
सरल है ओर समझना आसान, केवल क्रम में रखने पर और मध्य-पद निकालने पर 
इसका मूल्य ज्ञात हो सकता है। अगर वर्गित ( 8700/60 ) सामग्री ढैतो इसका 
मूल्य निकालने के लिए अन्तर्गणन का सूत्र मात्र जानना पड़ता है । अगर मध्यका दिया 
हो तो बड़ी आसानी से यह समझ में आ जाता है कि समूह का यह मध्य-पद है । 
इसका मूल्य मध्य-पद्‌ का मूल्य होता है, इसलिए इसके मूल्य में अन्य पदों के मूल्यों 
का प्रभाव नहीं पड़ता, यह उन स्थितियों में विशेष रूप से उपयोगी है जहाँ असामान्य: 


छ्छ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


मूल्यों के प्रभाव के कारण पिछले परिच्छेद में दिये गये माध्यों को समूह या श्रेणी का 
प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता | जैसे, माना एक समूह २, ४, ७, ६, १२ है। इनका 
मध्यका ७ है। अब जब्न तक इस श्रेणी में ५ पद रहें तब तक यदि १२ के स्थान 
पर १०० भी पद का मूल्य हो तो भी मध्यका वही ७ रहेगा | इसका निर्धारण करने के 
लिए समूह के सब्र पदों का ज्ञान होना आवश्यकीय नहीं है। केवल इतना भर मालूम 
होना चाहिए कि मध्य पद का क्‍या मूल्य है। मध्यका का उपयोग उन गुणों का माध्य 
निकालने के लिए होता है जिन्हें गणितीय रीति से नहीं निकाला जा सकता पर 
जिन्हें क्रानुसार रखा जा सकता है। अतएवं जहाँ अन्य सब माध्यों का उपयोग 
नहों हो सकता वहाँ इसके कारण माध्य-पद्‌ जाना जा सकता है । 

कमियाँ--पर यदि पदों की संख्या अपेक्षाकृत कम हो तो इस बात की संभावना 
रहती है कि मध्यका समूह का प्रतिनिधि न हो | यदि असंतत बंगन (882077प005 
58८7765) के लिए मध्यका का स्थान निर्धारण करना हो तो कई बार इसका मूल्य 
अनिश्चित आता है । इसी प्रकार यदि सामग्री वर्गित (2700०८०) हो तो इसका 
मूल्य स्थान-निर्धारण (]0८8007) ठीक-ठीक नहीं किया जा सकता है। कभी-कभी 
सामग्री को क्रमानुसार रखना कठिन हो जाता है । ऐसी स्थितियों में इसका मूल्य ज्ञात 
करना सम्भव नहीं हो पाता | इसका उपयोग करने के विरुद्ध सबसे बड़ी बाघा यह है 
कि इसका उपयोग, सिवाय समूह के प्रतिनिधि-पद बताने के, अन्य गणनाओं से नहीं 
किया जा सकता | गणितीय विधियों में प्रयुक्त होने वाले राशियों में जिस स्थिरता और 
निश्चितता की आवश्यकता होती है उसका इसमें अभाव है । इसलिए. और अन्य 
कारणों से इसका व्यवहार बीज गणितीय गणनाओं में नहीं किया जा सकता । 

चतुथंक, दशमक और दततमक 
( (2००:7।९5, [060]65 &८ [?९:८८४४४]८5 ) 

मध्यका के बारे में देखा जा चुका है कि वह क्रमानुसार रखे गये समूह को दो 
बराबर भागों में बाँग्ता है। अर्थात्‌ जो पद मध्य-पद (77607%7 0०77) होता है 
उससे अधिक और कम मूल्य वाले पदों की संख्या बराबर होती है। समूह के बारे में 
अधिक विस्तृत रूप से जानने के लिए उसे २ के बदले ४ या १० या १०० बराबर 
भागों में बाँठ जा सकता है | इस प्रकार क्रमशः ३, ६ ओर ६६ पद मिलेंगे। इन 
पदों को चतठ॒र्थक (१५७:०४॥८$), दशमक (0०८]०४) ओर शततक ([9८:८९०४॥७) 
कहा जाता है। क्‍ क्‍ 

_ यध्यका द्वारा कोई समूह दो बराबर भागों में बैंट जाता है। अब यदि प्रथम 





सांख्यिकीय माध्य' ७५ 


पद से मध्यका तक के पदों को इसी प्रकार दो बराबर भागों में बाँठ जाय तो फिर एक 
ऐसा पद मिलेगा जिससे कम मूल्य वाले पदों की संख्या ( अर्थात्‌ इसके और प्रथम 
पद्‌ के बीच के पदों की संख्या ) ओर उससे अधिक, पर मध्यका से कम मूल्य वाले 
पदों की संख्या बराबर होगी । इसी प्रकार एक अन्य पद मध्यका और अंतिम पद के 
बीच में मिलेगा | इन पदों को चतुर्थक कहा जाता है। मध्यका से कम मूल्य वाले पदों 
की संख्या को जो बराबर भागों में बाँगता है उसे प्रथम चतुर्थेक कहा जाता है ओर 
जो मध्यका से अधिक मूल्य वाले पदों की संख्या को बराबर भागों में बाँटता है उसे 
तृतीय चतुर्थक कहते हैं। मध्यका को द्वितीय चतुर्थेक भी कहा जाता है। 


जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है दशमक क्रमानुसार लगे हुए श्रेणी को दस 
बराबर भागों में बाँठने वाले पद के मूल्य को कहते हैं। ओर इसी प्रकार किसी श्रेणी 
को जो क्रमानुसार लगी हो १०० बराबर भागों में बाँटने वाले प्रत्येक पद के मूल्य को 
शततमक कहते हैं। - 


यह बात ध्यान रखने योग्य है कि मध्यका, चतुर्थक, दशमक तथा शततमक 
पद संख्याएं: नहीं बल्कि उनका मूल्य होता है। चतुर्थक, दशमक तथा शततमक की 
पद-संख्याएँ. मालूम करने के लिए. उसी सिद्धान्त का प्रयोग किया जाता है जिससे 
मध्यका की पद-संख्या मालूम की जाती है। सर्वप्रथम श्रेणी को क्रमानुसार लगाया जाता 
है, तत्पश्चात्‌ निम्नलिखित सूत्रों के अनुसार पद-संख्या मालूम की जाती है :-- 


चढ़, ८ (० वे पद का मूल्य 

चतु ३ ८८ । 3 |। वें पद का मूल्य 

दश, उ+ (+5- वें पद का मूल्य क्‍ 
श्र न- | (“5 ) | वें पद का मूल्य 
शत, -(*.) वें पद का सत्य 


शत ५ 5८ ' ६० न) | वें पद का मूल्य 


७६ सांख्यिकी के सिद्धान्त _ 
(0, -92९०६ (777८ [६८७ 
2 
(0.८८ ,, ५3 3 छत 9 ६6॥7 
4 
* 7-7 » 
क्‍2,5+- ,, » (+-)५ 49 5/%| 
[05 ,, ,, 45) [0९॥7॥ 
' 700 


ही । न | * 
9 -- ( ० 7 ॥८॥7 
है ॥ 22 शै9 ्‌ 00 


न 7 पे ; 
7, सन्त, 39 2० 55) 72]70 


जबकि; चतु,, चतु, दश,, दश.,, ४8676, (,, (९५, 0,, 0,, 


शत॥+, तथा शत, ५ क्रमश: ?, ४70 ?, ., 

प्रथम चतुर्थक, तृतीय 72596८/०९]ए 8६270 
चतुर्थक, प्रथम दशमक, 67 (6 सिए 

चतुर्थ दशमक, प्रथम पृष्थात ९, (770 
शततक, तथा नब्बेवें क्‍ १०७४४] ९, (75६ 
शततक के लिए आया है। १6९०९, ६007 





0१९९०॥९, ६#58 
- एलाटलाएं[8 276 
777607 67०८४४]८. 
अब कुछ उदाहरणों से यह स्पष्ट किया जाएगा कि साधारण श्रेणी, खंडित श्रेणी 
तथा संतत श्रेणी में चतुर्थक, दशमक तथा शततमकों का मूल्य किस प्रकार निकाला 
जाता है| 
साधारण श्रेणी : 
उदाहरण ८ : द 
निम्नलिखित सारणी में ३० विद्यार्थियों के प्राप्तांक आरोही ( 8४८८॥०ग९2 ) 
ऋमानुसार दिये गये हैं। इनका प्रथम चतु॒र्थक, तृतीय चत॒र्थल, चौथा दशमक तथा 
बीसवाँ शततमक निकालिए | द 


सांख्यिकीय भाध्य 






































99 
| । 
क्रम संख्या प्राप्तांक | क्रम संख्या प्राप्तांक | क्रम संख्या प्राप्तांक 
९ ५२ ११ ३२ २१ ४७ 
र्‌ ५७ श्र ३५ श्र इयर 
रे २१ श्रे ३७ श्३्‌ प्र 
है 4 २४ १४ श्व्य र्‌४ड ४६ 
है. २६ १, रेप र्‌्‌ पूछ 
६ २७ १६ | ४० २६ पूर्‌ 
छः ३० १७ ४२ २७ धूप 
टः ३२ स्व ४४ श्प पूटः 
&€ ३३ १€ ड . र६ ६२ 
१० ३३ २० ४५, ३० ध्द 
हल 


चूतु , ८ (पा वें या ( वे 


पद्‌ का या ७७५ वें पद का मूल्य 


 >>७ वें पद का मूल्य-- 
३/४ (८ वें पद का मूल्य -७ वें 
पद का मूल्य) 
बू३०-+-ई (३२-३०) 
“+ ३१.५ 


चतु . -- | स--१ 


शा ; वेँ या २३२५ 
ड 


वें पद का मूल्य 

-; २३ वें पद का मूल्य -+- 
है (२४ वें पद का मूल्य - 
२३ वें पद का मूल्य) 

न्‍त्डेप-+ डे (४६ - ४८) 











(२, -5७26 ० (5:27) ५ 07 
30-+ 7 
(- 
ज5 5]26 ० 768 ॥677 + 
$ ($726 0६ 800 4067 -- 
526 ० 700 06॥7) 
 :30-+$६ (22-30) 
-5+24.) 





) ध्छ 07 7.75 ४ छा 


86 | 
0-7 ०+ 


धशलकाआाभदानक 


3 थे 9426 0६ 3 


23,25 (7 ॥06॥7 
-+:926 ०६ 2370 ॥677-+ 
3 (926 ०0६ 2467 406॥7 
- 926 ०६ 2370 6677) 
 +48-+-2 (49-48) 


-- उ८श५ 
स हे 
दश., +-- | न् ) वें था 
१२४ वें पद।का मूल्य 


न्‍ १२ वें पद का मूल्य + 
ई- (१३ वे पद का मूल्य 





सांख्यिकी के सिद्धान्त 


5-48. 25. 


0, - 32० ० | (|) ) ७ 


07 72९ 4 ४7१ ॥6४7. 
-:0]26 0 720 40९८४+-- 
$0 (826 0६ 7309 ॥६८४७ 


























-- १२ पद का मूल्य) “826 ०0६ 72 0 4(६४०) 
न्‍+ १५-४७ (३७- २५) ++२४--१० (27-35) 
न्‍्न्शेभप |  +5२४. 8 
>> पा व ?, ८ 92० ०६६ (5 0) 9 
रत२० 5 (४ (प7)/ पग | 7५०5००० ४ (२०7) ) 
६.२ रे पद का मूल्य ०7 6.2 74 (९८7 
--६ वें पद का मूल्य -- --०26 ०0 6 ए। 7(७7+- 
२.० (७ वें पद का का मूल्य - 2५ (3726 ०६ 7 ४ 6७7० 
६ थे पद का मूल्य) द --5722 0६ 6 ६0 [06॥7) 
--२७-+-बं७ (२०- २७) +२27-74५ (3०- 27) 
>>: २७६ | प्प-् 274. 6 
खंडित श्रेणी 
उदाहरण ९ 
निम्नलिखित सारणी से प्रथम चतुर्थक, तथा तृतीय चतुर्थक, का मूल्य 
निकालिए। 
जूते का नाप ( इश्चों में ) वारंवारता |. संचयी वारंवारता 
पूपू ! । की 
६ प्‌ श्र 
द््ध्‌ श्ज २७ 
७ ३० पूछ 
७छ'पू ्््ि ६ ७ १ र हि 
६५ र्श्र 
८५ | व्प्र्‌ २६४ 
६ उप ३६६ 
६५ डड ४१३ 








सांख्यकीय साध्य ७ 





हल रा 
चतु ३ 5८ (- रा वें या १० र'भवें | (२३८ 2826 0 (“ रा 0 07 
पद का मूल्य द .. 704'57 [67ए, क्‍ 
बम ७"! >> 7*$ 8 
चतु. ८“रे (“४-- वे या ३१०'पवे (५ 3 नर 52८ रण 3 (--7) ॥ र 
पद्‌ का मूल्य 3707 [08॥7 
० ६ >>. 9# 





इसी प्रकार दशमक तथा शततमक का मूल्य भी निकाला जा सकता है। 
संतत श्रेणी 

संतत श्रेणी में चतुर्थल, दशमक तथा शततम निकालने में वही कठिनाई होती 
है जो मध्यका निकालने में हुईं थी । यहाँ भी हमें अंतर्गणन के सूत्र का उपयोग 
करना पड़ता है। यह सूत्र इस प्रकार है :-- 


ज।+ [-ज्ञ (ऋ,-))) 
सी, ट का (5, 7) 


. जहाँ, च वथा च.. कमशः प्रथम चतुर्थक पद तथा तृतीय चतुथ्थक पद 
के लिए है। अन्य संकेतों के अर्थ वही हैं जो मध्यका के सूत्र में थे |. 


०.० ५+ [ह7(७५-१) 
९४०७+ ६ “&(१५-० | 


ए67९, १+ थ्णते १३ #४ग्यत 67 4608: बाते (गत तृष्शाध6 
7प77796/5 768706८0ए०९ए, 200 ६06 00067 5ए700]5 5$६४7व ६0: 54॥776 
६772$ 0: ञ्ञ0०॥ ६767 50004 ॥7 ६76 £0777प9 ० 706990. . 


इसी प्रकार दशमक तथा शततमक के सूत्र भी निकाले जाः सकते हैं । 








८० 


उदाहरण २० 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


निम्नलिखित सारणी से प्रथम चतुर्थक तथा तृतीय चतुर्थक निकालिए | 


























वेतन पाने वालों की संख्या संचयी वारंवारता 
६--८ रुपये हि हि 
८२--१० ६ १० 
१०--१२ १० २० 
१२-- १४ श्र श्र 
१४--१९ ६ ६ रेप 
१६-- १८ ५, ४ 
८्य-- २० ४ ४७9 
च्चतु 4 उ- ् *) वें या शरवें (१३ "२$726 0 (77) 7 07 
पद का मूल्य 7200 06॥70. 
घन १०न॑- | आओ *(र  ई ०) |। साग०-- । जा गए0(०- 7०) |; 
५१० 70 
“८ १०--४ ++70'4 70685. 
न्‍+ १०"४ रुपये | 
चतु , -< | हा: ) | वेँ या ३६वें. (१५ ८५26 ०0 | 3 (रत ) ) पी 
पद का मूल्य ०४ 3600 0९॥70., 
( ) ) [ 76 - +( 
पड १४ >--- >> न य्य्वा4व >-+ 
१ + ६ हू (६-२ 74+ | ८ (56 52) | 
-- १५३ रुपये। ++77.3 #प6८४. 














इसी प्रकार दशमक तथा शततमक भी निकाले ज़ा सकते हैं । 

यह बात ध्यान रखनी चाहिये कि चतुर्थकों, दशमकों तथा शततमकों को वस्तुतः 
माध्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह पूरे समूह के नहीं बल्कि उनके भागों पर निर्भर 
रहते हैं| ये मध्यका के दोनों ओर चल के विचलन को बताते हैं। इनका विशेष 
उपयोग अपकिरण (075/96/807) ज्ञात करने के लिए, किया जाता है | 


सांड्यिकीय माध्य .... प्र 


-.. मध्यका, चतुर्थक, दशमक इत्यादि रेखा चित्रों द्वारा मी मालूम किये-जा सकते 
हैं। इनका वर्णन रेखाचित्र वाले अध्याय में किया जायगा। 
समान्तर माध्य (मध्यक) 
( रीपपणलाट 0ए८:०४८ ) | 
किसी समूह का समान्तर मध्यक उस समूह के पदों के मूल्यों के योग को उसके 
पदों की संख्या से विभाजित करके ग्राप्त होता है। यदि किसी समूह के व्यक्तियों की 
लम्बाइयाँ ६४", ६६”, ६२", ६०", ६५", ६८”, ६२", ६७", ७०", ६६”, और 
६१" है तो मध्यक लम्बाई ज्ञात करने के लिए पहले इनको जोड़ा जायगा। इन 
संख्याओं का योग ७१५" होता है। अब ७१५" को इस समूह के पदों की संख्या 
( जो ११ है ) से विभाजित किया जायगा | विभाजित करने पर जो संख्या प्राप्त होगी 
वही समान्तर मध्यक कहलायेगा | इन ११ व्यक्तियों की लम्बाइयों का सामान्तर मध्यक 
इस रीति के अनुसार ई३४ इड्ध अथवा ६५ इच्च हुआ । द 
साधारण श्रेणी का समान्तर मध्यक निकालना 


जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि समान्तर मध्यक पदों के मूल्यों के योग 
की पदों की संख्या से विभाजित करके य्राप्त होता है। इस रीति को गणितीय सूत्र के 
रूप में भी दिखाया जा सकता है। मान लीजिये किसी चल (ए४:/406) के विभिन्न 
मूल्य य4, यर, य3; य८ ( 53, 3> 5७ 54 ) है, इनका योग य-+य+ -+य 
न+य८ (5. 75४०-४७ ४5५ ) हुआ और इनकी पद संख्या ४ हुईं। इसलिए 








इनका समान्तर मध्यक 





य कऔ#यर२तक॑य३+ंय ( दस 075४-४५ क्‍ द 
है ५ ) हुआ । 
इस सूत्र को ओर अधिक सूक्म रूप से निम्न प्रकार लिखा जा सकता है :- 
यो | 
क्‍ स 8 | 
जबकि, म-- समान्तर माध्य ए676, 2--५7॥707602८ ॥ए८:०४० 
यो, न्‍त्य चल के विभिन्नि मूल्यों >> व्यगय़ाब्राधंगा ०. 
का योग क्‍ प्रताएंंतंप३ ए4|०९$ ०5५ 
स+>- पद-संख्या 7--ग्प067 0 4(९४॥5 


उदाहरण ११ द 
एक प्रयोग में दो वस्तुओं के बीच की दूरी नापी गईं। वे ५७०", ५६७", 
दर का 


प्र सांख्यिकी के सिद्धान्त 


पृछ८/, ४८५", ४७४", प८२", ३७६", परध८”, ४७४" ओर ५४८१" आई | इन 
संख्याओं का समान्तर मध्यक निकालिये। 





हल 
_य ब्ल्र 
मन ज् /॥ | 
8756 « 
न्‍+ ४३३5 इच्च न्‍ः. १0 . 706$. 
--५४७५"द६ इश्् नम $ 79*6 [7000८5, 
लघु रीति 


समान्तर मध्यक निकालने की एक रीति का वर्णन ऊपर के उदाहरण में स्पष्ट 
किया गया है| पर यह रीति उसी अवस्था में प्रयोग में लाई जा सकती है जबकि पदों 
की संख्या अधिक न हो ओर चल के विभिन्न मूल्य भी छोटे ही अड्ड हों क्योंकि यदि 
ऐसा न हुआ तो समान्तर मध्यक निकालने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। 


इस कठिनाई को दूर करने के लिए एक सरल रीति का प्रयोग किया जाता 
है । इसके अनुसार दिये हुए समूह या श्रेणी के किसी एक पद को 'कल्पित माध्य! 
( 255$प77८0 2ए८:०४८ ) मान लेते हैं| कल्पित माध्य को समूह या श्रेणी के अन्य 
पदों से घटाया जाता है। इस प्रकार घटने से जो संख्याएँ प्राप्त होती हैं उन्हें 'चल् 
का कल्पित माध्य से विचलन” ( 0०२४६0०75 ०6 ६86 ए५४349[6 [0%7 
६0९ 28$777८0 77८०7 ) कहा जाता है। इन विचलनों को इनकी वारंवारताश्रों 
( जो विमिन्न पदों की वारवारताएँ हैं ) से शुणा किया जाता है और इन शुणनफलों 
के योग को वारंवारताओं के योग से विभाजित करके जो संख्या आती है उसे कल्पित 
माध्य में जोड़ देने से उस समूह का समान्तर मध्यक ज्ञात हो जाता है। समूह के किस 

पद को कल्पित माध्य चुना जाय इसके लिए कोई नियम नहीं । 





ऊपर हल किये हुए उदाहरण ११ को इस रीति के अनुसार निम्न प्रकार: 
हल किया जा रुकता है ;-- 


सांख्यिकीय माध्य य्य्३्‌ 





कल्पित माध्य से विचलन 














वस्तुओं के बीच की दूरी (अर 
(इंचों में) य॒ 
05 
५७० ९५ 
६७ 6, 
प्‌ उट् रे 
प्टप्‌ ६ 
५७४ “+रे 
पर ना 
५७६ ९ 
प््ध्य -+-प्य 
प७प्‌ न्न्- 
पट? ४५ 
777_7___्फिीडणखश्खूणट पफपज्ओएऊकएफए-"णए्एः 
स-- १० चय -८ -- ४ 
तर 
यो 05 .. यो. ज्िह्क .»+एए 
चय नया: 
मनचू्य+ फ्-णा ध्त्त्स्न 


जबकि, य-- कल्पित माध्य 


यो__ --कल्पित माध्य से विचलनों 
चच्य 
का योग 


स-- पद-संख्या 
उपरोक्त सारणी में 

४ 
स-- ५७६ -- प्द््च्च 


77 १७५'६ इश्च 





एा67९, 5--955प॥76त 2ए९४३९८ 
>व5-- 5घ॥70779707 ० ६४6 
06०42६07 <7077 258प- 
7760 ४५४९८४०३ ४८, 
7:--7ए/776४ 0६ ॥€॥75 
[0 (76 20096 £47]6 


4. 
2-77 576 -- ज्ठ [0८ट786$ 
-- $ 75'6 4700769 


खंडित श्रेणी का समानन्‍्तर मध्यक निकालना 
खंडित श्रेणी में चल के विभिन्न मूल्यों को उनकी वारंवारता ((7०0००7८९) 


ट्पड' सांड्यिकी के सिद्धान्त 


से शुणा करके जो गुणनफल प्राप्त होते हैं उन्हें जोड़ लिया जाता है।इस योग को 
वारंवारताओ्ं कें योग से ( जो कि पद-संख्या के बराबर होते हैं ) विभाजित करके जो 
संख्या मिलती है वही इस समूह का समान्तर मध्यक होता है । 

खंडित श्रेणी में भी लघु रीति का प्रयोग किया जा सकता है। निम्नलिखित 
उदाहरण से दोनों रीतियाँ स्पष्ट हो जायेगी । 


उदाहरण १२ 
निम्न सारिणी से समान्तर मध्यक निकालिए | ऋजु रीति (१76८६४ 77९:70०0) 


तथा लघु रीति (58070 ८०६ 776:॥00) दोनों का प्रयोग स्पष्ट कीजिये । 





[हे 




















चल का मूल्य 

(826 ०0 406४7) ४४८२ गपि २| १० ३ | ७ ६ | ६६१ 
व्वष्वण्ण) ४३ २५३६ २३६१ | । । 

((7८0१८०४८ए) ९४ ३ २६४५४ क्‍ रद २ ३६१ 











ऋजु रीति (१४८८८ 77९/700) तथा 
लघु रीति (570: 772:700) से 

















सा | 6 / कल्किमाल दो ““॒““ण»भझे 
चल का मूल्य | वास्वारता | चल का चलन | कुल विचलन 
28 मूल्य >< के 
दया. (गव्वृष्थाटा)। वारबारता | कक पैल्प- 
ये (॥7) व) वय (प्र) प7८0 ४ए. (6) वचय (6) 
| चय (05) 
४ २ है + रे रे 
प्‌ ५ २० “+ २ न. हैँ 
प्र रे २४ २ नर 
२्‌ र्‌ ४ न ४ न प्य 
५० है. प्‌ ० “४ [२० 
>अ रे € रे ना हि. 
७ ६ ४२ 2 “5 
& २्‌ श्द “रे नि 
दर क्‍ रे र्प्य ० ० 
९ . त ३ “ 3 “४, 
स--३० यो, १६० | यो. ५ __ २१० 
__ ४) ७ (आ) | (>क5) (2.0 (5५ कट) 


























सांख्यिकीय माध्य व्यू 











ऋजु रीति 4)77९८0 १(९४४७०० 
यो बन 
ड८ 
स 
१६ ० क्‍ _790 
 इ० क्‍ .. 30 
न्‍5५' ३३ -:0.33 
लघु रीति 5॥907-८प८४ )(८८३०० 
चय #न-ह%-- 22 
मज्-य-न- ९०५४०५/४४+५७७७4« ) 
सर 
स्ल्ष््नः क् --60-- ््य 
प्-5*३३ -८०"*33 





संतत श्रेणी का समान्तर मध्यक निकालना क्‍ 

संतत श्रेणी का समान्तर मध्यक निकालने की रीति लगभग वही है जिससे 
खंडित श्रेणी का समान्तर मध्यक निकाला जाता है। संतत श्रेणी का समान्तर मध्यक 
निकालते समय विभिन्न वर्गान्तरों का मध्य मूल्यः मालूम कर लिया जाता है ओर जब 
वर्गान्‍्तरों का स्थान मध्य मूल्य ले लेते हैं तब संतत श्रेणी और खंडित श्रेणी में कोई 
अ्रन्तर नहीं रह जाता | निम्नलिखित उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायगी | 
उदाहरण १३ रा 

किसी परीक्षा में २४० विद्यार्थियों के प्राप्तांक निम्नलिखित सारणी में दिये 
गये हैं । इनका समान्तर मध्यक ऋजु रीति ( 86८४ 77०:700 ) तथा लघु रीति 
(570/70 ४767०0) दोनों से निकालिए | 








प्राप्तांक | विद्यार्थियों की संख्या 

०--- ९ ० र्प 
१०---२० द श्प्ू 
२०--र३ ० २० 
३०--४० श्र 
४०-४० ह २० 
४ ०--६० द ३० 
६०-७०. ६५ 
छ०---८० पू० 








सांख्यिकी के सिद्धाष्त 


प्र 



























































]०४2॥५)९] ५॥६) 3/)०।४)२ 


(र' पे | । 
(एड) (प्पट्‌) । ः 
००६ ३ -- कर +त5 छ ००३१ $ ८-5 £ ०»९ +- (प) ४ । 
४ (८ । 
००४४ न- ०४ +- ०फकहटे ०्फ है ०५४२-०७) 
००४8 +- ०९ -+- फट ०० फ | ०७--० ४ 
००ट१॥ट न॑- ० ०३ न-- ०फ३३ ० फक ०४-०४ 
० ० ००३ ०0७. है. 0४-०५ 
०६३ “ ०३8 - फटे ॥।| फटे ०४--० है 
0०४ -- ०0 -- ००४ ०्ऐे है 8. ०६2३--- ० ९ 
ण्फे - ०ट्टै-- ४९८ के हैः ०९--० 8 
०००६ -- ०७ - ९४ के फ ०९६--० 
(07) ४४७४ (50) ४ (9 एप) ४ & (9) & (एप) ४ 
(६६%)  (»ञञार्ृ4-गञप्प्) 
“88 '8४ प्य0वव]ु | 
(प0]3 प०णा३श ७०9०) ॥००४९।४ 
-2[4०० [४३०9) | +/७७७] 8 (४४) >< ((2प्रशा79:7]) +न्+ कत 
क्‍240/-82] के ॥2244 ॥टै|% /2/8/23। ॥22029]2 £)॥:॥॥। 
॥32 


सांख्यिकीप माध्य 





प्+ ४६५ कप 


ष्य्3 


(5%6८६ ९८४00 
227 
ए 


__१7790०0 
.. 240 
3007-८९ए०४ +(८६४००00 


जा 
2:5::5५-+- “. 05 
॥#। 





नू770० 


व््+435 
रण 240 


"८4 9-58 








इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋजु रीति ओर लघु रीति दोनों ही हमें किसी 
प्रश्न का एक ही उत्तर देती हैं। संतत श्रेणी में लघु रीति को और भी अधिक लघु 
बनाया जा सकता है। ऊपर किये हुए. उदाहरण में कल्पित माध्य से लिए हुए विचलन 
क्रमश: ०४०, >३०, “२०, -१०, ०, +१०, +२० तथा +३० हैं। 
इन्हें यदिं वर्गान्‍्तर के विस्तार से.विभाजित कर दिया जाय तो यह संख्याएँ क्रमशः 


४ ढे, 7 रे 9» “२५ 


- १, ०, +१, +२ तथा --३ रह जायँंगी। ऐसा करने से 


कुल विचलन निकालने में आसानी पड़ती है। समान्तर मध्यक निकालते समय, यदि 
इस रीति का प्रयोग किया गया है तो जिस सूत्र को हम अब तक प्रयोग में लाये हैं 
उसमें कुछ अन्तर करना पड़ेगा। उस नये सूत्र का रूप निम्नलिखित होगा :--- 


योजय 
म>-य+-+- ण्झ्ला व 


जबकि यो >> कैल्पित माध्य से विच- 


लन - वर्गान्तर का विस्तार 9८ वारं- 
वार्ता, का योग 
त-- वर्गान्तर का विस्तार 





#स्नजन (४5 ८ ०) 


७670, >6ठि5६ ४2705 ६0]: 
त6ए747075 ६7070 06 355प0- 
7760... 2ए८।:326 -+ 79270(0006 
०६ (7९ 2]85$5 ]767ए% >< (6- 
१०००८ए, (०४6७ ०?०घालाः 
८>5772277ए006 ० ९८४४5 व 
(€॥ए०॥ 


' प्र “ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उपरोक्त उदाहरण में यदि कल्पित माध्य से विचलनों का मूल्य क्रमश 
->३, “२, -१, ०,+१,+२ तथा--३ माना जाय तो विचलन और वारं- 
बारताओं के शुणनफल का योग ११०० न होकर केवल ११० होगा। अब यदि इस 
नये सूत्र का प्रयोग किया जाय तो समान्तर मध्यक निम्नलिखित रूप से निकलेगा :--.. 


यो . > >तः ) 
मच (जहा > व) #त्अना(+ 7 २८ 
स 
नत४५-+ (३३४2८ १०) “45 +(338 »८ 7०) 
तन ४६ "८ ++49*5 8 





इस रीति के उपयोग से समान्तर मध्यक निकालने का कार्य काफी सरल हो 
जाता है ओर आगे चल कर जब विचलन तथा सह-सम्बन्ध इत्यादि की विवेचना 
करनी पड़ती है तब भी इससे समय की बहुत बचत होती है । 
समान्तर मध्यक के लाभ और उतप्तकी कमियाँ 

समान्तर मध्यक अन्य सब माध्यों से अधिक प्रचलित माध्य है। जीवन के 
सभी ज्षेत्रों में इसका उपयोग होता है| इसका कारण यह है कि इसे सममभकने में 
कठिनाई नहीं होती | यदि यह कहा जाय कि एक व्यक्ति की एक सप्ताह की आय का 
माध्य ११ रु० है तो इसे समभने में कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता । दो बातें 
स्वतः स्पष्ट हो जाती हैं| पहली यह कि वह प्रतिदिन ११ रु० के आसपास कमाता 
है ओर दूसरी यह कि उसकी पूरे सप्ताह की आय ७३८ ११ रु०-+७७ रु० है। इसकी 
निश्चितता भी इसके अधिक प्रचलन का कारण है| एक समूह का समान्तर मध्यक 
एक ओर केवल एक ही संख्या हो सकती है, भले ही उसके पदों को किसी भाँति रखा 
जाय या किसी भी रीति से किसी भी व्यक्ति द्वारा इसकी गणना की जाए | यदि २, ४, 
७, ६, ८ को ६, ७, ८; २, ४, करके व्यक्त किया जाय तो समान्तर मध्यक वही 
32--६ होगा। इसकी गणना करना अपेक्षाकृत सरल है। क्योंकि इसकी गणना 
करने में किसी समूह या श्रेणी के सब पदों पर विचार करना पड़ता है, इसलिए इस 
पर उन सब पदों के मूल्यों का प्रभाव पड़ता है ओर इसे हम इस कारण समूह या 
श्रेणी का प्रतिनिधि कह सकते हैं | इसे निकालने के लिए चल के प्रत्येक मूल्य को 
जानना आवश्यकीय नहीं है। चल के मूल्यों के योग और उनकी संख्या को जानकर 
ही इसका मान निकाला जा सकता. है | यह एक ऐसी संख्या है जिसका व्यवहार अन्य 
बीजगणितीय गणनाओं में किया जा-सकता है। 





सांख्यिकीय साध्य ष्य्ह 


. समान्तर मध्यक के उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिये क्‍योंकि कई दशाएँ 
ऐसी हो सकती हैं जिनमें यह समूह या श्रेणी का प्रतिनिधित्व नहीं करता है | जैसा कहा' 
जा चुका है, इसकी गणना करने में समूह या श्रेणी के प्रत्येक पद का उपयोग किया 
जाता है| इसलिए, चल के किसी असमान्‍न्य मूल्य का इसके मूल्य में प्रभाव पड़ सकता 
है। जैसे, यदि किसी दुकानदार की आय १००० रु० श्रतिमास है ओर उस दुकान 
में कार्य करने वाले तीन अन्य व्यक्तियों की आय क्रमशः २५ रु०, ३५ रु० ओर ४० रू० 


प्रतिमास है तो इन सच्न की साध्य आय +*** गे रे४- २४-४० &० प्रतिमास-- 





२७५ ० प्रतिमास हुई | यह आय अन्य आयों का किसी भी विचार से प्रतिनिधित्व 
नहीं करती । वास्तव में ऐसी दशाओं में समान्तर मध्यक को प्रतिनिधि मानना उसका 
दुरुपयोग करना है। यह एक ऐसी संख्या हो सकती है जो समूह या श्रेणी के किसी 
पद्‌ के बराबर न हो | इसी कारण कुछ दशाश्रों में यह असम्भव परिणाम देती है। 
जैसे, एक समूह में प्रति परिवार बच्चों की संख्या निकालनी है जो निम्न सारणी में; 





दिखाया गया है :--- 
बच्चों की संख्या | १ २ ३ है प्‌ 
परिवार की संख्या है 9 १५ १३ प्‌ 


यदि प्रति परिवार बच्चों की माध्य संख्या ज्ञात की जाय तो वह छल -- ३२ 

बच्चे प्रति परिवार आएगी। यह एक बेतुका परिणाम है। इसकी गणना करने में. 
: अत्येक पद का मूल्य ठीक-ठीक ज्ञात होना चाहिए | पर कभी-कमी ऐसा नहीं होता । 
केवल यह मालूम रहता है कि कौन पद किससे बड़ा है--पदों का मूल्य मालूम नहीं 
रंहता । यहाँ समान्तर मध्यक का उपयोग नहीं किया जा सकता माध्यों का एक उपयोग 
संग्रहीत सामग्रियों की ठुलना करने के लिए होता है| समान्तर मध्यकों की तुलना करके 
कई बार सामग्रियों की तुलना नहीं की जा सकती । इन दशाओं में समूह के प्रत्येक पद 
का मूल्य अलग-अलग ज्ञात होना चाहिए। जैसे मान लीजिये की दो समूहों, जिनमें 
प्रत्येक में ४ व्यक्ति हैं, के सदस्यों की आय निम्नांकित है :-- 

















समूह क के सदस्यों की पहला | दूसरा तीसरा चौथा 
आय (रुपयों में ) ' गओ 
१,००० ९०० ७४ २श्प््‌ 
समूह ख के सदस्यों की | ३०७० छ् ५ 
आय ( रुपयों में ) ३२२४ रे रस्र . र्€ 














६ ० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


इन दोनों समूहों की अलग-अलग माध्य आय " है" -- ३०० रु० प्रतिमास 
है पर केवल इतना जानकर हम यह यहीं कह सकते कि दोनों समूहों की आर्थिक 
'सम्पंन्नता बराबर है । 


भारित समान्तर मध्यक (ए८०४॥४४०१ 3४ंघ्ाए्घ०४०८ हए०:०९०) 


साधारण समान्तर मध्यक में प्रत्येक पद को चाहे वह छोटा हो या बड़ा बराबर 
महत्व दिया जाता है। परन्तु कमी-कमी दी हुई सामग्री में विभिन्न पदों को विभिन्न भार 
देना आवश्यक होता है । ऐसी परिस्थिति में माध्य मालूम करते समय प्रत्येक पद को 
पहले उसके भार से (जो कि उसके और एक निश्चित पद के महत्वों का अनुपात 
होता है ) गुणा करते हैं ओर इन गुणनफलों के योग को भारों को योग से विभाजित 
'करके जो राशि प्राप्त होती है उसे समूह का प्रतिनिधि माना जाता है। इस प्रकार से 
गणना किये हुए माध्य को भारित समान्तर मध्यक कहते हैं। प्रायः भार और वारंबारता 
'एक ही होते हैं पर भार का उपयोग विशेषतः उन स्थानों में किया जाता है जहाँ 
वार॑वारता निश्चित रूप से ज्ञात नहीं होती बल्कि अनुमानित होती है जैसे देशनांकों 
( 47065 ग्रपा706/5 ) में | 


पहले जो सूत्र समान्तर मध्यक निकालने के लिये दिये जा चुके हैं उनमें 
वबारंवारता ( व) या ( $) के स्थान पर भार (भ)या (७) रख देने से भारित 
मध्यक के लिए सूत्र ज्ञात हो जाते हैं। यदि भा०्म०, ( झ. 2. ) भारित समान्तर 


मध्यक हो, य,, य.,..... यू (53, 5५ ...... रत ) समूह या श्रेणी के विभिन्न 


पद हो जिनके मार क्रशः भ३, भ३ ....--मह ( एय) एछ५...---ए, ) हों तो :-- 





भा० म॒ण <८ ।, 
भ.+भे...... भय 
अथवा 
यो 
भाॉ0 स्‌० धन्य मत 
यो 


सांख्यिकौयप माध्य 


६६ 





>> रएछरऊ 





एछ, 93.., “८ के रत 


यह सूत्र निम्न उदाहरण से स्पष्ट हो जायँगे । 


उदाहरण १४ 


अगर १५ पौंड चाय २ रु० ८ आ० प्रति पौंड, १० पौंड चाय ३ रु० प्रति 
पौंड और ५ पौंड चाय ३ रु० ८ आ० प्रति पौंड के भाव से खरीदी जाय तो भारित 
माध्य दाम कितना हुआ * 












































हल 
चाय का मूल्य प्रति | खरीदी चाय की मात्रा 
पौंड ( आनों में ) (भार) थभ 
_____  ख  + $अ9आफआ 9$ल्‍ कफ ए ऋ ऋअएे | य्‌ ( है ) भ्‌ ( है ) ह ( ४३८९० ) 
४० ल्‍ ९५ ६०० 
है. पल । २० डा ० 
_५४६_ | _ _ ४ रू 
यो यो 
भ_.- भ 
म्न्प २० हा ध्ञः १५३६० 
(2७) ( >णड ) 
यो, > जार 
भा० म॒० ८८ ही ० 3, सा ज्र 
भ “जन 
__ (२६० आने हा 560० 
३० त्रय्रा जन 55 2]]0 935 
नूर रु० १३ आ० ४ पा० -- 75, 2. 73 25. 4 0८8 
प्रति पौंड 96४ 9. 


ध्र्‌ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


इस उदाहरण में भार निश्चित थे पर कभी-कभी अनुसन्धान की सुविधा न 
होने या अन्य कारणों से ठीक सूचना नहीं मिल पाती। यहाँ अनुमानित ( 6४४- 
77200 ) भारों का प्रयोग किया जाता है। ये भार पूर्णरूपेण सही नहीं होते हैं। 
अगर वे लगभग ठीक हों और पदों की संख्या अधिक हो तो कुछ पदों के लिए. विश्रम 
ऋणात्मक ( 7८82//ए८ ) होगा और कुछ में घनात्मक ( [200४८ ) ये घनात्मक 
ओर ऋणात्मक विश्रम एक दूसरे का विलोपन ( ८का०्ट9४०॥ ) 
कर देंगे । 

यदि प्रत्येक पद का महत्व दूसरे से मिन्‍न है तो भारित माध्य लेना आवश्यकीय 
है अन्यथा परिंणाम गलत होंगे | निम्नलिखित उदाहरण से बात स्पष्ट हो जावेगी | 
उदाहरण १५ 


एक छात्रवृत्ति देने के लिए परीक्षा ली गई जिसमे विभिन्‍न विषयों के भार 
अलग-अलग थे | तीन ग्रतियोगियों के प्राप्तांक निम्न सारणी में दिये गये हैं : 

















विषय भार क के टीमांक ख्‌ है पाता: ग के प्राप्तांक 
/० ७ है: 
सांख्यिकी ४४ छ्रे ६० ६५ 
गणित ३ ६५ ६४ ७० 
अ्रर्थशात््र २्‌ पद ५६ ६३ 
हिन्दी र्‌ 9० ट्० पर 

















अगर अधिकतम माध्य अंक पाने वाले छात्र को छात्रबृत्ति दी जाय तो वह 
किसे दी जानी चाहिए ? 


६३. 





(८! 
"बडे न 2 
(> 


लकी 











ग्रीय साध्य 


ख्यर्क 


सा 



































६४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


कख ग के साधारण माध्य प्राप्तांक जा6 2760९ ३४०- 
-- क्रमशः जट्रे5, 3>३-> तथा 3४६ या | 728४6 ०६६06 07475 0६5, ए थ्ाते 
- क्रमशः ६४, ६४ तथा ६२०५ 2त्न्यम5, 2077 द्रणते 2३० 0: 64, 
05 270 62'5 76576८४र८० ४. 
क, ख, ग के प्राप्तांकों का भारित माध्य | 6०8॥66व4 2संए7९८८ ४ए९:००2८ 








०६ 776 7748॥05 ० 5, ए 27१4 2 
नमः थी भय यो भर , थी पल _»जह >आअजाए 2»फज़रट 
यो यो भ यार ज्ज््ज्! जज हुक 
_._ ऐर३ एपरे४ड दिड॑ _6535 0624 0648 
१०? १०? १० - बुठ?! उठ? 76 
+>परे रे , ६२९४ , ६४प्८ +६03"3 62*4 द7व 
04*"8 ॥८8966/7ए८पए 





इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि साधारण माध्य प्राप्तांक के अनुसार छात्रवृत्ति 
दी जाय तो छात्रजृत्ति ख को मिलनी चाहिए लेकिन यदि छात्रवृत्ति ग्राप्तांकों के भारित 
माध्य के अनुसार दी जाय तो छात्रवृत्ति ख को नहीं बल्कि ग को मिलनी चाहिए | 
आर यही इस समस्या का सही उत्तर है । 


भारित समान्‍्तर मध्यक निकालने की लघु रीति 


जिस अकार साधारण समान्तर माध्य को हम लथु रीति से निकाल सकते हैं 
उसी ग्रकार भारित समान्तर माध्य भी लघु रीति से निकाला जा सकता है। इस 
रीति में पहले कल्पित माध्य से प्रत्येक पद का विचलन निकाल कर उसे पद 
के भार से शुणा किया जाता है। इस प्रकार के गुणनफलों के योग को 
भारों के योग से विभाजित किया जाता है। इस संख्या को कल्पित माध्य में 
जोड़ देने से उस समूह का भारित माध्य प्राप्त हो जाता है। गणितीय रूप से यही बात 
इस प्रकार कही जा सकती है । यदि य (5£) किसी श्रेणी का कल्पित माध्य हो और च., 


च३** च (व,, ते, '।* 0, ) कल्पित माध्य से य, य ' 7 **' य्‌ 
(६, , अर 5) के विचलन हों तो 
_ यो चभ 
भा०्स० स्य-- यो >»तर 
भ्‌ छ. 2.5८" ४£ न जर्जर 





सांख्यिकोीय माध्य ६४, 


निम्नलिखित उदाहरण से यह रीति स्पष्ट हो जायगे | 
उदाहरण १६ 

निम्नलिखित सारणी से एक पौंड चाय का भारित समान्तर माध्य मूल्य 
लघु रीति से निकालिए । 


















































मूल्य प्रति पौंड १६ | २ 
: (आनों में) | २ | २६ | रझ | ३२ | ३२६ | ४० 
__ लेके [लि न चल एल ४ ४ गईं चाय की मात्रा २ ॥ 
७ ०७० ७ 
(पौडों में) २७५ [४०० [१५० | १०० | ७५ | ५ 
हल 
मूल्य प्रति पॉड | बेची गई चाय. कल्पित माध्य (र८) से 
(आनों में) की मात्रा विचलन च८भ 
(भार) (06८ए790078 
य (५) ...भ (छ) (7077 (१>८ छा) 
(98. 9५. 28) 
च्‌ (0) 

१८ २०० २ ना २४० ० 

श्र २७५ जे “ १६५४० 

श्८्‌ ४०० रे - प्य० ०७० 
 र्प८ १४० ० ०. 

३२ १०० नी ४ "न ४०० 

३६ छ न ८ न ६०० 

४० २५० १२ नी ६०० 

यो यो 
में १२५० नम ३२५० 
(2०) (20) 














६६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


यो्‌ रे हा ( >तएछ . .. 
भा० म०ल्‍ब+ (क्रय ) टः ४>र+ (5) क्‍ 

















यो 
-+ २८ ३. ( न रप) --28 -- (.. -) 
१२५७० ' उ250./. 
न्‍न २८८-- २६ आने सन 28 - 2"6 2/0025 
न्‍+ २५"४ आने सम 25 4 27795 : 


भारित समान्तर माध्य का उपयोग 

उपरोक्त उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो गई है कि जब किसी श्रेणी के विभिन्न 
पदों का महत्व बराबर नहीं होता तब यह आवश्यक है कि उस श्रेणी का माध्य निकालते 
समय सदेव मारित माध्य ही निकालना चाहिए क्योकि साधारण माध्य ऐसी अवस्था 
में सही परिणाम नहीं दे सकता | इसके अतिरिक्त और भी ऐसी परिस्थितियाँ हैं जहाँ 
साधारण माधथ्य के स्थान पर भारित माध्य का उपयोग होना चाहिए। ऐसी कुछ परि- 
स्थितियों का वर्णन नीचे किया गया है | 

यदि किसी विषय की सूचना दो समूहों या श्रेणियों, जिनकी ,पद-संख्या अलग- 
अलग है, के रूप में दी गई हो और उन दोनों से मिलकर बने हुए समूह के बारे में 
जानना हो तो भारित समान्तर मध्यक का उपयोग किया जायगा, अर्थात्‌ यदि एक 
श्रेणी दो अंग-श्रेणियों ( ०0:7/00767 38८77८५७ ) से बनी हो जिनकी पद-संख्या 
अलग-अलग हो तो इस श्रेणी का मध्यक अंग श्रेणियों के मध्यकों को उनके पदों की 
संख्या से शुणा करके प्राप्त गुशनफलों को दोनों अंग श्रेणियों के पदों की संख्या से 
विभाजित करके प्राप्त होगा । यहाँ भार अज्ग श्रेणियों के पदों की संख्याएँ हैं | 
उदाहरण १७ 

१० व्यक्तियों की झऊँचाइ्याँ ६ ओर ४ पदों के समूहों में दी गई हैं। इन 
समूहों के मध्यक निकाल कर इनसे मिले समूह का मध्यक निकालिये | 
हल 
पहले समूह के व्यक्तियों की लम्बाइयाँ ६०", ६२", ६४", ६१", ६६", ६४" । 
दूसरे समूह के व्यक्तियों की लम्बाइयाँ. ६२", ५६", ६३", ६०" | 
पहले समूह का समान्तर मध्यक-- ५7 प्रेग रैई रा शक जि अल आन 











सांख्यिकीय साध्य ६७. 





| दूसरे समूह का समांन्तर मध्यकन- + "7 ८ से रपट इज 











नाई इश्चध--६१९ | 
/,इन दोनों से बने समूह का भारित समान्तर मध्यक-- 2६ ९२) "न ४2८९९ 2६१) 
प्- र७८ रगः रथ ९६२६ ड़्झ्च 
१० १० 
क्‍  +५१२"६ इ्ख। 
अगर इन माध्यों का साधारण माध्य निकाला जाय तो वह बराबर होगा 
हू इज ६२ इज। 


यह देखने के लिए. कि इनमें से कौन माध्य पूरे समूह का माध्य होगा, हम 
दोनों अंग-समूहों ( ०077[0707670 870प७७ ) को एक समूह मानते हैं और इसका 
माध्य साधारण रीति से निकालते हैं । 


यह माध्य-- (३०7 ६२- ९५-९१--६६+६४)+(६२+४६-६३--९०) इज 





 +55६२"'६ इंच । 

स्पष्ठतः दोनों समूहों के माध्यों का. भारित माध्य ही इनसे बने समूह का 
माध्य है । क्‍ 

भारति समान्तर माध्य का उपयोग उन दशाओं में भी किया जाता है जिनमें 
अधों (४2(०७) यां अनुपातों (४४:0$) का मध्यक निकालना होता है। 
उदाहरण १८ 

पाँच समूहों के सदस्यों की लम्बाइयाँ नापी गई, पहले में ५%, दूसरे में १०%, 
तीसरे में ८४ ओर चोथे में ४% सदस्यों की लम्बाइयाँ ४० इश्च से कम थीं | तो इन 
सब समूहों को मिलाकर बने हुए समूह में कितने प्रतिशत सदस्यों की लम्बाइयाँ ५०" 
से कम होंगी इस समस्या का सही हल नहीं निकाला जा सकता क्‍योंकि इसमें यह नहीं. 
दिया गया है कि अत्येक समूह में कितने सदस्य हैं। मान लीजिये कि पहले में ५०, 
दूसरे में ७०, तीसरे में ७३७ और चौथे में ५५४ सदस्य हैं। इनका माध्य भारित माध्य 
होगा और सदस्यों की संख्या मार होगी । 


हि 


ध्प द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


५०” से कम लम्बाई वाले व्यक्तियों का प्रतिशत अनुपात क्‍ 
__ (४० ८४)-+-(७० २८ १०) -- (७५ >८८)+- (४५२८ ४) प्रतिशत ' 
४०--७०--७५+१५ 
-_ २५०--७००--६०० ०-|-७००--६००--२२० 
२५७० 
स्तददे- प्रतिशत--७-०८ प्रतिशत होगा । 
यह बात सदा ध्यान में रखनी चाहिये कि भाराबंगन ( एझ०४870 78 ) का 
प्रयोग सुतथ्यता के लिए किया जाता है, विशेषकर जबकि पदों की संख्या कम हो। 
यदि पदों की संख्या बहुत अधिक है तब भाराबंदन अधिक आवश्यक नहीं क्योंकि ऐसी 
अवस्था में साधारण और भारिंत माध्यों में अधिक अन्तर नहीं होता । 





प्रतिशत 





गुणीत्तर मध्यक 
( 5500षाफाट ]४58०५४ ) 
किसी श्रेणी के विभिन्न पदों के गुणनफल्नों का स वाँ सूज्न (700 ४000) 


उस श्रेणी का गुणोत्तर मध्यक कहलाता है । (जबकि स उस समूह या श्रेणी के पदों की 


संख्या है ) | अगर किसी समूह के स (2) पद य4, यर, य३,'“'य (>,, 








यदि किसी समूह में केवल दो ही पद ८ ओर श्८ हैं तो इनका गुणोत्तर 
मध्यक, /८>»८ १८८७-१२ हुआ । यदि ३ पद ४, १० और २७ हैं तो इनका शुणोत्तर 
मध्यक इनके शुणनफल का घनमूल ( ८पं०७ ४०0६ ) होगा । अर्थात्‌ गुणोत्तर मध्यक 
३./४२८१० ८ २५--३./१००० या १० होगा | 


समूह या श्रेणी में २ या ३ पद होने पर वर्ग या घनमूल गुणनखण्डों की रीति 
से निकाला जा सकता है। पर इससे अधिक होने पर शुणनखण्डों की रीति अव्यव- 
हारिक हो जाती है । इसलिए छेदा या लघुगणकों ( ।082700775 ) का उपयोग 
किया जाता है| गुणोत्तर मध्यक निकालने के लिए सर्व प्रथम श्रेणी के विभिन्न पदों 
का छेदा ( 0827077 ) निकाल कर जोड़ लिया जाता है और फिर उस संख्या 
को पदों की संख्या से विभाजित करके जो लब्धि या भागफल ( १००४८7६ ) ग्राप् 





सांल्यिकीय साध्य ६६ 


होता है उसका प्रतिछेदा ( 9०४-०897007 ) ही उस श्रेणी का शुणोत्तर मध्यक 
होता है | इस सिद्धान्त को सूत्र रूप में निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है : 


ग- प्रतिछेदा छे छे न+-- - -य स्‌) 
स 


8 -4पधा०8.(-2०::००४ नव 8 सम यह कण ) 








उदाहरण १५१९ : 
निम्नलिखित संख्याओं का गुणोत्तर मध्यक निकालिए : 
५५, १०, १६२, १४३७५, २०४६८, १२०६७४, १५४६१, 


























हल 
गुणोत्तर मध्यक निकालना 
चल का मूल्य द छेदा 
(8426 ० ॥(67०) (4022777707) 
करू .. ०६६६० 
१० २९"*०००० 
१६२ २२८३३ 
१४३७४ ४" शफ्ृट४ 
२०थध्य ड'र्श्श्व 
१५२०६७४ प्ग्पर्थ 
१५४६ १ ४१६०३ 
स--७ यो३ _ २१-७२५६ 
(8) (५ 085) 
_ ग>-प्र० छे० (रब. +जैय +...... छे स) 
सर 
२१९०७२५४६ 





न्न्म० छ्ले ० 


१०० . सांख्यिकी के सिद्धान्त 


नत्प्र० छे० ३११०३७ 








-्5१२७१ 
६... [02 5. +02 5.,+.««««« [02 डए 
2८-.0.7[02 ये -+>) 
27*7256 
3.१. क 
८:८0. /,, 3"7037 
सन 727 


किसी श्रेणी का गुणोत्तर मध्यक उसके समान्तर मध्यक से सदेव कम होता है, 


परन्तु यदि किसी श्रेणी के सब पदों का मूल्य समान है तो समान्तर मध्यक ओर गुणोत्तर 
मध्यक में कोई अन्तर नहीं होगा | 


भारित गुणोत्तर मध्यक ( ४८०९2४०४६४८१ (20776070 ४6४॥ ) 


किसी समूह का भारित शुणाोत्तर मध्यक निकालने के लिए पहले उसके प्रत्येक 
पद को उसी से उतनी बार गुणा करते हैं जितना कि उस पद का भार या वारंवारता 
हो | इस प्रकार प्राप्त शुणनफलों के समूह के गुणनफल का स वाँ मूल, (7५० ४000) 
जहाँ स भारों का मूल्य है, उस समूह का भारित गुणोत्तर मध्यक होता है। 

गणितीय सूत्र के रूप में व्यक्त करने के लिए. माना किसी समूह के पद य., 
य ......य स (5, , 5५ ..... ४7 ) हैं जिनके भार क्रमंशः भ.,, भ२-.--०-भ स 
(ए4, ७०५---००-७० ) हैं। यदि समूह का भारित शुणोत्तर मध्यक भा० ग० ( झ- 





भा० ग० रू यो भविक >< ये ><८,« बस 


>पफ् है है ह 
जा. 8-5 हुए 7 5, 23८... 


ऐसी परिस्थिति में छेदा या लघुगणकों का प्रयोग अनिवाये हो जाता है| प्रथम 
श्रेणी के विभिन्न पदों का छेदा निकाल कर उसे उस पद के भार से शुणा किया जाता 
है। इन गुणनफलों के योग को भारों के योग से विभाजित कर जो लब्धि प्राप्त होती है, 
उसका प्रतिच्छेदा (. .७707027077 ) ही उस श्रेणी का भारित शुणोत्तर मध्यक 
होता है। गणितीय सूत्र के रूप में इसे निम्न प्रकार लिखा जा सकता है । 





सांख्यिकीय माध्य ३ 


मा० ग०८-प्र० ३० (० 2 )+(सै 27९ )+ (व >< से) 








१-- भर ०५५... 
[ (68 5, € छा) + (0०8 5५ २ एछ३)-+ -..(0४2 ड्य १ 
छ.,2.::0..].. - द >< कऋा0) 
| ऊझ। णझ2+-... ..- ज़्च 
उदाहरण २० 


एक समूह के पदों का मूल्य ५, ६, ७, ८, ६, १० और ११ है और उनके 
भार क्रमशः २, ४, ७, १०, ६, ६ ओर २ हैं। इनका भारित गुणोत्तर मध्यक 



































मग्र० छे ० ०६०३२ 


श्य्य 00 २ 





निकालिए । 
हल 
भारित गुणोत्तर मध्यक निकालना 
चल का मूल्य | भार (छलं४00 | छेदा ये छेदा »८ भार. 
(26 ० 0677) भ (कछ्) छे. (०8 5४) | 062. 5 ०९४८) 
य (5) य्‌ क्‍ 
ध्‌ र्‌ ०६६६० १*३६८० 
द्‌ है १७७८२ शश्श्र८ 
छ ७ ०'ट्य४५ १ ४६९४७ 
ट् १० ०६०३१ ६*०३१० 
€ &€ ०६४४२ ८'फप्जप् 
५० दर १९०००० ६९*०००० 
११ २ १९०४१४ २'०वदर८ 
ञ् द 
भ 
लय ४0 यो हि ५ 
भा० ग०-प्र० छे ० (2) एज. 8.5 37धी0०8 (९7267 
| ( 


स््न् ै. क्र ॥ हि » (>* 9 ।#। 3 2 
न508९९००2. 


१०२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


गुणोत्तर मध्यक के लाभ, कमियाँ तथा उपयोग 

गुणोत्तर मध्यक एक संख्या है जिसकी गणना करने के लिए, समान्तर निश्चित 
मध्यक को भाँति, सब पदों पर विचार करना पड़ता है। क्योंकि इसकी गणना करने 
में सब पद आते हैं, इसलिए प्रत्येक का मूल्य निश्चित रूप से श्ञात होना चाहिए। 
इस पर अधिक मान वाले पदों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है । इसलिए जिन 
स्थलों में कम मूल्य वाले पदों को अधिक महत्व देना होता है वहाँ इसका उपयोग 
किया जा सकता है। अनुपातों (४४४09) या अघों (४४:८७) का माध्य निकालने के 
लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसीलिए. इसका उपयोग दशनांकों ([7065 
एप्र:776/5) में भी किया जाता है। यह बीज गणितीय रीतियों के लिए; अनुपयुक्त 
नहीं है। पर यदि किसी समूह का कोई पद शूत्य या ऋणात्मक हुआ तो इसका उपयोग 
नहीं किया जा सकता । क्योंकि पहली दशा में इसका मान शल्य होगा और दूसरी 
दशा में एक काल्पनिक (774877%:9) राशि | इसलिए यह समूह का प्रतिनिधि 
नहीं हो पाएगा ओर अन्य गणनाओं में भी इसका उपयोग नहीं किया जा सकेगा । 
इसकी गणना करना कठिन होता है और अपनी अमूतंता के कारण समझ में भी 
सरलता से नहीं आता | यह एक ऐसी संख्या हो सकती है जो दिये हुए समृह 
में न हो। 


हरात्मक मध्यक 
(2४770770 (6०70) 
क्रिसी समूह या श्रेणी के पदों की संख्या को विभिन्न पद-मूल्यों 
के व्युतक्तमों (:००।०70८७।७) के योग से विभाजित करने पर जो लब्धि प्राप्त 
होती है वह उस श्र णी का हरात्मक मध्यक होता है। 
इसी परिभाषा को दूसरे रूप में भी रखा जा सकता है। किसी समूह या 
श्रेणी के पदों का हरात्मक मध्यक उनके व्युत्कमों के समान्तर मध्यक्र का 
व्युत्तम है। 


सांख्यिकीय माध्य १०३ 


यदि २, ४ और ६ का हरात्मक मध्यक निकालना है तो पहली रीति के अनुसार 


रे 





वह 


#0-० 


+छ-+ ६ 
३ 


का व्युतक्रम हुआ | हल करने पर यह 


वल्‍्या ३$ हुआ । दूसरी रीति के अनुसार हरात्मक मध्यक-- 
हा न इ द 


का व्युत्क्रम या ईई ही हुआ | 


इन दोनों रीतियों को गणितीय रूप में निम्न रीति से लिखा जा सकता है। यदि य 4, 


य२'"'यस (5८, 5५57) चल के विभिन्न मूल्य हैं तथा स (7) पदों की संख्या 
है तो (४) या हरात्मक मध्यक (स्र&7077८ )(९७॥) सूत्र रूप में इस प्रकार 


निकाला जायगा | 








य चल के विभिन्न 
मूल्य हैं। 
स--पदों की संख्या 


उदाहरण २१ 














[-- 8 
मय | 89... 


अप 32 <34 7) 
07, 





आजा 


४. #£ 
है ॥ है| 58 
#7॥८0[00700५/[ 
छ ४ प्र 


जा276, ॥ +-(987770ए उह्था 
ऊ3$ # 2) 3:83 «५977 





[998ए40३४ ००८८४ ० 
५. *# 


( -: 70706/ 0६ 06705$ 


निम्नलिखित संख्याओ्रों का हरात्मक मध्यक निकालिए : क्‍ 
१००, १५, ४००, १४६०, २३६००, "३, "०४५ ०६४, १२४३"० तथा 


“७००६ ॥। 























१०४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 
हज 
हरात्मक मध्यक निकालना 
चल का मूल्य व्युत्क्रम .... खजलका मय... च्युक्त 
($426 ०६ 06४0) (४2८0700८4/) 
९९० १"०००० 
१५ “६६६७ 
५९०७ ४२००० 
१५*० “०६६६ 
२५४०० १००७० 
*धपू २०००० 
४०५ २०१९०००० 
“०६५ १०"४३०० 
१२४५० "०००८ 
४७0०६ ११५५९१५००० 
_ हइलछतण | छल | (0) 55 १० १४५५ दु८ ९ 
पहली रीति 77750 (८६४०0 
३० 9-5 2. 
एलन, 745 "5687: 
"८" ०४८४६ -- "06849 
दूसरी रीति 56८070 ४८८००० 
ह -- व्युत्क्रम प्लस * ]85576८970०॥।-- 47708: 
| 40 


न्‍-्व्युत्क्रम १४४५६८ ९ 
नौ ०दप्४ड६ 








नः76ट207009। 74"5 5687 
00849 


भारित हरात्मक मध्यक (श़लं870०१ %४४077८ (०४7) 


भारित हरात्मक मध्यक निकालने के लिए सर्वप्रथम पदों के व्युत्कमों को उनके 
भार से गुणा किया जाता है | ओर शुणनफलों के योग से पद-संख्या को विभाजित 


सांख्यिकीय माध्य फ १्०प 


करने पर जो लब्धि प्राप्त होती है वही इस श्रेणी का भारित हरात्मक मध्यक होता है | 
दूसरी रीति के अनुसार हरात्मक मध्यक पदों से व्युत्करमों और भारों के गुणनफल केः 
समान्तर मध्यक का व्युक्रम होता है। ये दोनों रीतियाँ निम्न उदाहरण से स्पष्ट हो 
'जायँंगी | 
उदाहरण २२ द क्‍ 

निम्न सारणी में पहले ओर दूसरे कॉलमों में दी गई सामग्री से भारित हरात्मकः 
मध्यक निकालिए : 












































पद्‌ भार पदों का व्युत्क्रम भार >< व्युत्रम 
(।(277) (८8207) | (४०८७70८४] 0 40675) | (ए९200 >< ;८८॑.) 
4 है १५९४०००० ००००० 
है. १० २"०००० २०१७०००० 
१०८० २० “१००० २"०००० 
४३० ५० “०२२२ “२२२० 
२७५४*० १५ “००४७ "०वप प्‌ 
"०२ र्‌ १५००:८०००० २००"००० (१ 
५5७९७ श्प्‌ "२५०० ३७५०० 
१५२ व्र “०य्ू६ ३ । "७१४४ 
3 क्‍ र२३१"७७१६ 
पहली रीति []75 (८६३०० 
व्प्ज्‌ .. 835 
न २३१९०७७१६ 95- 237%7779 
-- ३६६३ 53663. 
दूसरी रीति 5९००7०व ४८६४०१ 
२३१९७७१६ ु * 227.777%9 
>व्युक्रम ----- -+722070८ 4 
हैं न खत व्रर शि०८३८-द5 
#व्युत्क्रम २९७२७ 5776८970८%६| 2727 


-+*३६६३ --5'3665 


१०६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


हरात्मक मध्यक के लाभ, कमियाँ तथा उपयोग 

हरात्मक मध्यक का उपयोग विशेषकर अर्थों (४४:०5) का माध्य निकालते 
समय करना पड़ता है क्‍योंकि ऐसे में समान्तर माध्य गलत परिणाम देता है। मान 
लीजिए, एक मोटर-बस दो स्थानों, क और ख जो श्य० मील की दूरी पर हैं, के बीच 
चलती है | क से ख जाते समय उसकी गति (59८८०) ३० मील प्रति घंटा है ओर ख 
से क आते समय ६० मील प्रति घंठा। उसकी माध्य गति निकालनी है। अगर हम 
०-५० 





इन गतियों का समान्तर माध्य लें तो वह हि मील प्रति घंटा +- ४५ मील प्रति 


घंटा आएगा | इसलिए वह क से ख ओर ख से क की दूरी (१८०-- १८० ८८ ३६० 
मील) को ४५ मील प्रति घंटा के अनुसार ( 35.2 )-८ घंटे में तय करेगी। पर 
वास्तव में वह इस दूरी को ( 2$-६-->६$ ) 5-६ घंटे में तय करती है। इसलिए 
उसकी माध्य गति 3६-< मील प्रति घंण या ४० मील प्रति घंटा हुईं। समान्तर मध्यक 
निकालने से यहाँ गलत परिणाम मिला | यदि हम इन गतियों का हरात्मक मध्यक 


आन जंग र्‌ ही के देखते हें गति 
निकालें तो वह व व या ४० मील प्रति घंटा होगा | इस प्रकार हम देखते हैं. कि 
चुठ द्ब्ठ 


हरात्मक मध्यक के प्रयोग से हमें सही परिणाम मिला | 

यदि हम चाहें तो ऊपर दिये हुए उदाहरण को इस प्रकार लिख सकते हैं. कि 
हमें हरात्मक मध्यक गलत और समान्तर मध्यक सही परिणाम दे | यदि हम यह कहें 
किक से ख जाने में मोटर-बस की गति २ मिनट प्रति मील थी ओर ख से क तक 





आने में १ मिनट प्रति मील थी तो इनका समान्तर मध्यक रा या १"५ मिनट प्रति 
मील हुआ | इस हिसाब से बस की गति ४० मील प्रति घंथ हुईं जो कि सही परिणाम 
है। यदि इन संख्याश्रों का हरात्मक मध्यक निकाला जाय तो वह हमें गलत परिणाम 
देगा । 

हरात्मक मध्यक समान्तर मध्यक की भाँति एक निश्चित अंक है जिसकी गणना 
करने के लिए समूह या श्रेणी के सब पदों पर विचार करना पड़ता है। यह ऐसी संख्या 
हो सकती है जो दिये हुए समूह का कोई पद न हो। इसकी गणना करना समान्‍्तर 
मध्यक की गणना करने से अधिक कठिन होता है और अपनी अमूर्तता (805072८(- 
7८58) के कारण इसको समभकना भी कठिन है । पर इन दोनों के बावजूद भी इसका 
उपयोग कई विशेष दशाओं में आवश्यकीय हो जाता है। उन समस्याओं में जहाँ अधों 








सांख्यिकीय साध्य १०७ 


(72065 ) या अनुपातों (£2/705 ) का माध्य निकालना हो या जहाँ क्षुद्र॒तम 
( 8772]]68/ ) मान वाले पदों को अधिकतम महत्व दिया जाना हो, इसका उपयोग 
किया जाता है, क्‍योंकि छोटी संख्याओं का व्युत्कम बड़ी संख्याओं से बड़ा होता है, 
इसलिए यह दूसरी प्रकार की समस्याओं के लिए उपयुक्त है। 


साध्यों की परिसीमाएँ ( [॥070%09738 ० 0ए८:४९८०७ ) 


इस अध्याय के आरम्म में हम यह बता चुके हैं कि एक अच्छे माध्य में क्‍्या- 
क्या गुण आवश्यक हैं | यह भी बताया जा चुका है कि विभिन्न माध्यों में यह गुण कहाँ 
तक पाये जाते हैं| परन्तु इस अध्याय में दी हुईं विभिन्न माध्यों की विवेचना से यह 
निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि कोई एक माध्य दूसरे माध्यों से अधिक अच्छा है 
क्योंकि प्रत्येक माध्य की अपनी अलग विशेषताएँ हैं ओर अपने-अपने क्षेत्र में प्रत्येक 
माध्य दूसरे से अच्छा है | अतः माध्य चुनते समय हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना 
चाहिए, कि माध्य केसी श्रेणी का निकालना है तथा माध्य निकालने का उद्देश्य क्या है। 
इन दो बातों के अतिरिक्त हमें प्रत्येक माध्य की परिसीमाओं का भी ध्यान रखना 
चाहिए | इस अध्याय में यह बताया जा चुका है कि प्रत्येक माध्य की क्या. परिसीमाएँ 
हैं और किन परिस्थितियों में कौन से माध्य का प्रयोग करना चाहिए। उन विशेष 
परिसीमाओं के अतिरिक्त जिनका कि वर्णंन किया जा चुका है, सभी माध्यों की एक 
बहुत बड़ी परिसीमा यह है कि वे केवल्ल माध्य हैं। वे किसी समूह या श्रेणी के मध्य- 
पद के आसपास का मूल्य बतलाते हैं। श्रेणी में कुछ पदों का मूल्य माध्य-मूल्य से 
अधिक वथा कुछ पदों का मल्य माध्य-मल्य से कम होना अनिवाय है। यदि किसी 
मिल में काम करने वाले मजदरों का माध्य वेतन ५० रुपया मासिक है तो इसका यह 
अर्थ नहीं कि उस मिल के प्रत्येक मजदूर का वेतन इतना ही है। ऐसा होना असम्भव 
नहीं पर साधारणतः कुछ मजदूरों का वेतन ५० रुपया से अधिक ओर कुछ का वेतन 
9० रुपया से कम होगा । हमें यह न भूलना चाहिए कि माध्य किसी समूह या श्रेणी 
का प्रतिनिधित्व उसी सीमा तक कर सकते हैं जहाँ तक एक संख्या बहुत सी 
संख्याओं के समूह का प्रतिनिधित्व कर सकती है। 





प्रमापित मृत्यु और जन्म अघ 
( 5ध्थावंद्रातांड०60 [06800 थ्यते 807 ९०८68 ) 
मृत्यु-अर्घ और जन्माध॑ प्रति एक हजार के रुप में दिए जातें हैं।ये यह 


श्न्यर सांख्यिकी के सिद्धान्त 


बताते हैं कि प्रति हजार व्यक्तियों में कितनों की मृत्यु हुई या कितनों का जन्म हुआ । 
इन्हें अशोधित जन्म या मृत्यु श्रघ. (07०१८ 90४ 6: १०4८7 2८०४) कहा 
जाता है, यह प्रत्येक आयु समूह में प्रति हजार व्यक्तियों में होने वाले जन्मों या होने 
वाली मृत्युश्रों के भारित समान्तर माध्य के बराबर होता है । 


अगर इस अशोधित मृत्यु न्योर जन्म अरघ के आधार पर दो स्थानों या प्रदेशों 
की तुलना करनी है, तो परिणाम विश्रमात्मक होंगे | क्योंकि इनके आधार पर की गई 
तुलना वास्तविक तुलना नहीं कही जा सकती। इन स्थानों के आयु-संगठन (926 
८००००४६०४) (अर्थात्‌ प्रत्येक आयु समूह में कुल जनसंख्या का कौन सा भाग 
है,) अलग-अलग हो सकते हैं। किसी भी तुलना के लिए यह आवश्यक है कि जिनके 
बीच तुलना की जा रही हो वे एक प्रकार के हों, अन्यथा भ्रांतिकारी परिणामों (£०॥&- 
८०४४ 7650॥5) का मिलना अवश्यम्भावी है। प्रमापित अधों की गणना करने में 
इस बात का विचार किया जाता है। प्रमापित अ्र्घों की गणना करने में यह मान लिया 
जाता है कि एक स्थान का आयु-संगठन दूसरे के समान है| इस प्रकार विभिन्न स्थानों 
के आयु-संगठनों के अन्तर का निरसन कर दिया जाता है । जिस जनसंख्या के आयु- 
संगठन को प्रसामान्य (70777%/) माना जाता है, उसे प्रमाप जनसंख्या (४८४702:0 
7070/०४४07) कहते हैं। अब इस प्रमाप-जनसंख्या के बंदन (6॥$६४00४0॥) 
में दिये हुए स्थान के मृत्यु या जन्म-अर्धों का उपयोग करके ग्रमापित झुत्यु या जन्म-अर्घ 
की गणना कर ली जाती है| नीचे दिये गये उदाहरखों में ये बातें स्पष्ट की गई हैं। 
उदाहरण २३ क्‍ 

मान लीजिये हमें दो नगरों, क और ख, के लिए अशोधित और प्रमापित 
मृत्यु अर्थ की गणना करनी है। इनके लिए. प्रत्येक आयु-समूह की जनसंख्या और 
उसमें होने वाली मृत्युओं की संख्या निम्नलिखित है :--- 


१०६ 


सांख्यिकीय माध्य: 



































०००४३ ्श्र्य ०००५३ 40[० 
है. .॥ 
०००४ 2०% 
०७ ०३ ००फाटहि ०६) ०४६ ५०३]।& ३ ६ 
०००४ ण०्ट्ट ०९७९ ०००९१, [2 ० 8: 92 ०्छे 
०९ बुक 
फ ००८ ८टे ०५४, ०० ०००९४ ४ ०९ ऐे (४४ 
फटे है टेट 
६ चर 
है; ॥ प2 ००० है 225 ४ 
ग्फे फण ००% ३ ०३ ०५०६ 4] 
4 दि 
भ७३ ७0 व | 
(22 8) ]-9-7२26 ]४9|>)2)५ पक 7) ।॥/2 2 2722 |४०२।>)५ े 
6 मे [ हु ओ५9-४॥६ 
५० >60० 











११० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


भारित माध्य की रीति से क नगर का अशोधित मृत्यु-अधघ 


कक (६० (२३००० ) नै (४ ०२८५००० ) न ( ३०२८४०० ०) न (७ ०><२ २०० ०) 
२३०००--५०००--४०००--२००० 








| 


5४ 
हे 


०७ 


४५०७ प्रति हजार | 
भारित माध्य की रीति से ख नगर का अशोधित मृत्यु-अध 


-- ० 2 १५००)-- (२५०८ २२००)--(२० २८ २८००) --(६० 3८ २५७ ०) 
१४००--२२००-- २८०० -- २५०० 


| 
































ते 
-- ३७*३ प्रति हजार । 
इन दो अघों में, जैसा पहले बताया जा चुका है, तुलना नहीं की जा सकती | 
इसलिए प्रमापित-अर्ध॑ निकालने की आवश्यकता पड़ती है। मान लीजिये प्रमाप जन- 
संख्या का आयु संगठन निम्न प्रकार का है :-- 











आयु-समूह जनसंख्या 

५ वर्ष से कम २०० 

५--२० वर्ष २५० 
२०--४० वर्ष ४०० 
५० वर्ष से अधिक १५० 





अब इन दो नगरों के लिए प्रमापित मृत्यु-अर्ध की गणना निम्नलिखित रीति 
से की जायगी :-- 








००४०५ ०००8 08 











सांख्यिकीय माध्य 








०४ ००%०३ ०७ "के. आह ड है 88 ०५ 
० क्‍ ००००४ ३ ०हे 0०.४ .92 ०४-०८ 
है है ०००८०३ ०५ ०्फ८ 2 ०९-- 
० ०००९३ ०) ००८ जप हि पट हि 





|) (४) (४) (2) (३) 


॥२०-०२6 


( है ) 7% फेक डित 0 25-00 99-7॥& 
809] ५६ )9 2) ० ><(४)) 


५ | जार] ६६ ५४ ०० 




















११२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


“नगर क के लिए प्रमापित मृत्यु-अ्र्घ 
-- ४9+०० 
१००० 
“. नगर ख के लिए प्रमापित मृत्यु-अधघे 
३३,२५ 
जेसा इस उदाहरण की पहली सारणी को देख कर स्पष्ट होगा, क नगर में 
इन आयु-समूहों में कुल जनसंख्या के क्रमशः डैछ, ५४) ऊँ और ह लोग हैं, जबकि 
'नगर ख के लिए ये अंक क्रमशः है, हेड, 3 और ४८ हैं। इसलिए सीधे भारित 
माध्यों की तुलना नहीं की जा सकती | ' 
व्यवहार में स्त्रियों और पुरुषों के लिए मृत्यु-अ्घध॑ की गणना अलग-अलग 
'करनी चाहिये क्‍योंकि प्रत्येक आयु-समूह के लिए इनके मृत्यु-अर्घ में पर्याप्त अन्तर 
होता है । 
उपयुक्त उदाहरण में एक प्रमाप जनसंख्या मान ली गई है | इस प्रमाप जन- 
संख्या के आधार पर दिये हुए नगरों के लिए, प्रमापित मृत्यु-अर्घ की गणना की गईं 
है। ये मृत्यु-अर्घध ठुलना योग्य हैं क्योंकि इनकी गणना आयु-संगठन के परिवर्तनों 
का निरसन करके की गई है। अगर प्रमाप जनसंख्या ज्ञाव न हो और इनकी तुलना 
'करनी हो तो इन्हीं में से एक को प्रमाप जनसंख्या मान कर दूसरे के लिए मृत्यु-अर्घ 
'की गणना पहले के आधार पर की जायगी | 
जन्माधे की गणना करने में अन्य बातें समान रहती हैं। केवल इतना अन्तर 
हो जाता है कि सब आयु-समूहों पर विचार नहीं किया जाता। अगर अशोधित 
जन्मार्घ की गणना करनी हो तो दिये हुए स्थान की सब स्त्रियों की प्रति हजार संख्या 
के लिए. जन्मों की संख्या निकाल ली जाती है, पर यह स्पष्ट्तः आंतिकारी होगा | 
साधारणुतः केवल १५४ से ५४० वर्ष की आयु वाली स्त्रियों की प्रति हजार संख्या के 
लिए,, जन्मों की संख्या निकाल ली जाती है और इनके लिए ही प्रमापित जन्मार्घ 
“निकाला जाता है । 
उपयुक्त अनुच्छेदों में जिसे अर्ध कहा गया है वह केवल एक प्रकार का माध्य 
हैं और यह बताता है कि प्रति हजार व्यक्तियों .में ओसत मृत्यु या जन्म-संख्या कितनी 
है। इस रीति का उपयोग अन्य प्रकार के अ्रघों, जैसे विवाह-अर्घ, वृत्त-हीनता अर्घ 
आदि की गणना करने के लिए भी किया जा सकता है | 


++ ४४“+ प्रति हजार 





३३"'२५ प्रति हजार 


सांख्यिकोय माध्य ११३ 
प्रश्नावली 


(१) समान्तर साध्य किसे कहते हैं । समान्तर साध्य निकालने की रीतियों 
का विस्तारपूृ्वंक वर्णन करिये। 


(२) कया समान्तर साध्य आदर्श माध्य है ? इसके गुणों व अवगुयों 
की व्याख्या कीजिये । 


(३) किन प्रकार प्रश्नों में समान्तर साध्य का उपयोग लाभदायक है 
ओर किनमें नहीं ? समझा कर लिखिए। 


(४) गुणोत्तर व दृरात्मक माध्य की परिभाषा लिखिए ओर उनके विशेष 
गुणों व अवगुणों को समकाकर बतलाइए । इनका उपयोग किन परिस्थितियों 
में किया जाता है । 


( भूयिष्ठक ) 
(५) निम्नलिखित अंकों का भूयिष्ठक ज्ञात “कीजिए : 

















चल वारंवारता चल वारवारता 
(826) (+/८0०९7८ए) (842८) (:९0८८7८ए) 
प्ू ध्थय. .. १३ प्र 
द्‌ घर १४ है 
७ ६ २५ ५७ 
प्र ६० १६ ्रे 
हू ६३ १७. अर 
९० प्‌ ७ .. श्र ध्व्र 
११ ह प्‌ १६ द ४० 
5 प्‌ ० गा ' गा 











( ?24:48८४८३७)] /00]6008 47 50280800$ 7४०. 57 ) 


.._ (६) सन्‌ १६३७ ई० में पटना विश्वविद्यालय के हवाई स्कूल तथा इंटर- 


१५४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


मिडियेट (कला) की परीक्षा में सम्मिलित होने वाले परीक्षाथियों की उम्रों का 
बंटन निम्नलिखित है : 











(९- १३- 























। | ली-४+++++““““““प॒““““/”//४//“४+*+४++“ 55555 ससस कक 

उम्र (वर्षो सें) (४-९४ (६-१७- शत २-२ पा योग 
_ऋईवल ५ अल्लाह कम बल 2९ 

हाई स्कूल ५. गााओं शा 32९४३९५ ४७४ ५ | ४८११ 

_हफी्क |2 | | | ५ कण एस 8० ७५५४७१७५ 5० > | >८ | >< | ५ ४५ | ८७ १२० ९६० १९५ १२७/१७५७ ८७१ 






































हाई स्कूल की परीक्षा में सम्मिलि4 होने वाले परीक्षाथियों की मध्यका 
तथा भूयिष्ठ उम्रों की तुलना इंटरमिडियेट के परीक्षाथियों से करिये। 


(?#42८0४८९%७) ?7006775 47 98908005 २०, 55) 


(७) निम्न सारणी में वारंबारता, जिसके साथ लाभ कमाया जाता है 
दी हुई है। भूयिष्ठक निकालिये 


एा्णयणएफ८  श अशफहऋ््/॥् बात 








वारवारता 
(६£20प९7८ए) 

३००० रु० से अधिक लेकिन ४००० रु० से कम परे 
४००० 79 ११ ५००० 9) १) २७ 
७५००० भ) )१ ६००० ,; ११ र५ 
६००० )) १ ७००० + 93 ५० 
७००० )) »१ व्ू००० » ११ ७ 
८४००० १7 ११ ६००० )१ १9 रेप 
६००० ११ 3) ९०,० ०० )) ११ श्व्य 








(272०(८4] 7?00]6705 40 358205005 २०, 55) 


सांख्यिकीय माध्य ११५ 


(८) निम्न सारिणी से मध्यका तथा भूयिष्ठक निकालिये। 








_अकास्वतरिनोंकीकंल्ा..|.. विश्धेकीबला दिनों की संख्या विद्यार्थियों की संख्या 
५ से कम २६ 
१ ० 49 49 र्‌ र्‌ड 
१५ १9). 47 ४६५ 
२० ५ +# जुण८र . 
र्‌ +्‌ 5 । 77 द्र४ड 
डर ० 77 77 ; ६४४ 
र५ ,, » ६५० 
४० , 3) ६५३ 
ड५ू ., 3) ६५५ 








( 77280८00९%8॥ ॥027£076775$ 470 ण०८७७:८$8 7२०. 57 ) 
( मध्यका ) द 
(६) निम्न सारिणी में २५ विद्यार्थियों के अथशालत्र तथा राजनीति की 
किसी परीक्षा मैं, प्राप्तांक दिये गये हैं : 




















विद्यार्थियों के विद्यार्थियों के | 
विद्यार्थियों के। ,(जास्र | राजनीति विद्यार्थियों के अथशात्र | राजनीति 
क्रमांक _/ कमांक 
रए्रह ३६ श्३ ४६ ० 
२ ६घ ३० 5 ७ रद 
३ ३३ श्र १५ ६० 5 
हा ४४ श्€ १६ ३० ५३० 
पृ हे द््ड १७ ३२ डर 
मु ७२ ५० श्प प्र ९५ 
७ ध्द दर १६. ५४ 5५ 
८ ३३ श्प्‌ २७० ण्द्‌ रद 
& ४२ ४२ । २९१ ण्ष्य ५३ 
९१० र५्‌ १० दर की 5 
११ रद ७२ र३े रत दा 
१२ ३५ ३३ २४ ४० प्र 
२५ ४६ ण्प्प 




















११६ 


ज्ञान का स्तर ऊँचा है ? कारण भी दीजिए । 


सांख्यिकी के सिद्धाष्त 


उपयु क्त अड्डों से मालूम कीजिये कि किसी विषय में विद्यार्थियों के 


क्‍ ( ?72८४८४ ए४009[6॥705 ॥7 50208&70८ 8 7२०, 34 ) 
( १० ) निम्नलिखित अड्डों से जूतों का मध्यका नाप निकालिए 





77 ज्नौकानाप.. | 7 वारखासा 777 
( 82८ ० 870८5 ) 


वारवास्ता 


( 77607९४४८ए ) 


पारा. 
हि 














४'५ 
(५ २ 
प्न्ज्‌ है: 
दर प्‌ 
दा प्‌ 
की ३० 
७५ ६० 
ष्य ६५ 
प्यःफ्‌ व्यर्‌ 
€्‌ जर्‌ 
६*५ है: है. 

५१० 

१०७५ १५ 

२११ 





साथ ही प्रथम और तृतीय चतुर्थक, ७ वा दशमक, ४६ वाँ शततमक 


३ रा प्चमक तथा ५ वा अष्ठमक भी निकालिए | ५ 
० ( ?:400८ 98 0+009]6775 70 508758205 7४०, 56 ) 


(११ ) निम्न सारणी में सन्‌ १६४७१ ईं० की निदेशन संगणना के 
अनुसार, बड़ौदा राज्य में विवाहित औरतों का आयु-बंटन दिया हुआ है : 














विवाहित ओरतों राय विवाहित औरतों 

आउ की संख्या 3 जपएपगहज्जएण की संख्या 

०- ५ ३ ४०-४५ &€६६३ 

५-१० ३१ ४५-५० . ७६२ 
१०-१५ -  ढ१० प१०-णए५ ५२३१ 
१५--२० 'श्८य०६ ५५-६० ३१७ 
२०-२५. | “२४४६ ६०-६५ १५६ 
२७५०-३० २२२३ ६-७ ० . णह्‌ 
३०-३५ १७२३ ७०-७१ ३७ 
३५-०--४० १२६२ 








सांख्यिकीय साध्य श्श्ड 


विवाहित औरतों की मध्यका-ओयु निकालिए तथा साथ. ही दोनों 


. चतुर्थक भी निकालिए । 


( 79#8९००८३॥ ?/॥00]6705 ॥ 5६४478708 २०. 57) 


(१२ ) निम्नलिखित बंटन से मध्यका, ८वोँ दशमक तथा ४६वों शत- 
तमक निकालिए :-- 























: वर्गान्‍्तर वारंवारता वर्गानत्र | वारंबारता 
(९०३55-फ्राडाएथ) | (६#6तृपढा८ए) | (९००४४-ं८:ए५) | (६८व०९००८९) 

हु खो  म. सब छल ० ः रपये 

. १- ३ दि द द 
रेल 3 प्र ' १९-१३ क्‍ १६ 

हज ७ ८५ | १३-१४... ४ 

७छ- ६ ण्द्‌ . १५-१७ पर. हें 
६-११ २१ __ ६5१५१ अ अ २१३  _##३#&$ अऋ#$#£#ऑझ्<्झ़्््ख्ऊञ़£<्रऊर<ऋ<्ञ़ 

योग | २४५ 





( ए+2८(८] ?+09९॥05 80 50208008 ४०, 38 ) 


( १३ ) निम्नलिखित बंटन से समान्तर मध्यक तथा मध्यका 








ही 

















निकालिए 
किसी व॑ग्ग में ५ किसी वर्ग में . किसी वर्ग में धि 

विद्यार्थियों की तौल |. | विद्यार्थियों की तौल |. | विद्यार्थियों की तौल वी 
१००- १०४ ४ | १२५-१२६ | रह्द | १५०- १५४ | २६० 
१०५- १०६ १४ । .१३०-- १३४ स्द्य० १५५- १५०६ श्श्द्य 
११०- ११४ | ६० | १३५- १३६ | ४५० | १६०-१६४ | ६६ 
११५- ११६ | (३८ |. १४०-श्४४ | ५०० | श६५- १६६ | रद 
१२०- १२४ | २०६ | शट५- श४६ | ४३० | १७०-१७४ | १२ 





- (27400 ९० 97096975. 7 50408008 4०. 4०). 


श्श्प्र 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(१४) निम्नलिखित सारणी से समानन्‍्तर मध्यक, मध्यका और अपर 


तथा अधर चतुथंक आयु निकालिए : 





।आयाााााााभआाात ३३5 आ भा अ आता ाााााााा॥ भा ॥॥७७७७७७७७एल्‍७ल्‍७७७७७७७७४७७७७७॥७७७॥॥७७॥/ए७७७७७७७७॥७॥७॥/॥/ए/श"//॥//"श/श/श/"/"/श/श/"/श/श/श//आ/आ//आआआआआआआ 














आयु वर्ग जनसंख्या हजारों में 
श्व्य्र १६३१ 
0... ३५२० ३२८२० 
प्‌- छे ३१६० ३५०० 
१०- १६ ५३४० ७२०० 
२० - २६ ४५६० ६६४० 
३० -- ३६ ३४२० ५&८० 
४० -- ४६ २६६० ५२४० 
५०-५६ १६०० रेजटा० 
६० -- ६६ १३२० २४४० 
७० -- ७६ ६०० १२२० 
८० तथा अधिक १२० ३२० 











( समान्तर मध्यक ) 
(१५) निम्नलिखित सामग्री में दस पेसों को १०२४ बार उछालने, तथा 
' 6208 की संख्या के अनुसार (जो कि भ्रत्येक उछाल में आती है ) प्राप्त 
सामग्री दी गयी है| प्रति उछाल में [72५05 की माध्य-संख्या बतलाइये : 


(2:2८0८%] ?/009]6705 ॥0 3॥490$708 ४०. 42) 











7८908 की संख्या वारंवारता ]2208 की संख्या वारंवारता 
० * है. २४५१३ 

१ १६ धर २०६ 

र्‌ ४र्‌ ७ श्श्ष्र 

झ १२६ प्र ५३२ 

है ॥ श्६६ € डं 

१० रे 











( 2/2८008 ॥070796775 40 502057705 ३०, 6 ) 


सांख्यिकीय साध्य ११६ 


(१६) निम्नलिखित सामग्री किसी दृकान में एक सप्ताह के द्रमियान में 
बेचे गये जूतों के नापों से सम्बन्धित है। लघु-रीति के द्वारा समान्तर माध्य 
निकालिये ! 























जूतों के जोड़ों की तों जूतों के जोड़ों की 
जूतों का नाप संख्या जूतों का नाप संख्या 
४" ९ व्र 4 
प्‌ र्‌ ट्पप व्यर्‌ 
. पप ४४ & ७५ 
“प्‌ 3 ६.४. ४४ 
६५ १ १२ | श्प्‌ 
७ ३० श्ण्प श्र 
७४ ... ६० १५ ्ड 





लिन शििलमि मी मलन लि ली जीडि लोन वन क जज जज जज जज मत ल न नलल ली जा, 3 कम चुन लक ला ३ बल लक लक बल अकाल कक लुक ७ लललनुननुन तल बुला 





( ?7742०८४९१ ?709]6084 5द्वा5४05 ४०. 7) 


(१७) निम्नलिखित वारंवारता बंटन से समान्तर मध्यक निकालिये ! 











मासिक मजदूरी मजदूर मासिक मजदूरी मजदूरी 
रूु०.. रु० रू०. २० 

१२५--१७५ र्‌ २७"४---४२"४ ४ 
१७"४--२२ ४२ २२ ४२०५--४७"५ दर 
२२"१---२७"२ १६ ४७ बार |! १ 
२७"४-- ३२५ १४ ५२५--५७'५ ३ 
२२४७-२७ ५ ३ णः ना 




















(?/३८0८॥॥ 727006778 47 372050085 7२०. 8 ) 


१२० 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(१८) निम्नलिखित वारंवारता बंटन में विभिन्न खेतों में इख का उत्पादन 
मूल्य दिया हुआ है । समान्तर माध्य निकालिये ! 





जाम आल _ कल लक ३ बल मा ाु ३३४ / मम प मर ४ ॥/ं)7२३७७७७७७७७७७७७७७७७७॥४७७७७७७७७७७७७७७ए७ए७॥७७७७७७७४७७७७७७ाााााा आम ] 














वारंवारता वारवारता 

२- हु १ श्ट-२२ प्र 
६-१० ६ २२-२६ ३६ 
५०-१४ श्र २६-३० श्६ 
१४-श्प्य है $७। ३०-२४ रे 





७ए७७७एएराराणाााणाभाआआआाआ३ 9 आल लुक नम नललक पतली ली जल अमल तनीत नजर लत जज तन लक कल की न किनी की नकदी चल लक नीलक लडकी जन नज शी जज जज अमल मन आल को. जाम चलअआचुलुललुइ आल बा॥ अल बल 


( 272८0०%) 7/009]82775 ॥ 50208005 /४०. 72 ) 


(१६) दो जिलों में विभिन्न खेतों के लिए, गुड़ के उत्पादन मूल्य ( प्रति 
सन, रुपयों में) का वारंवारता बंटन नीचे दिया हुआ है। प्रत्येक जिले का 
समान्तर मध्यक मूल्य निकालिए तथा इस बात की जाँच कीजिए कि क्‍या इनमें 
अथेसूचक अन्तर है । 





88३ रुपयों में 
(प्रति मन) 





७७७४७७७७७एएााशा आता न थम अलक आधाभामताव, 


२->रे 
३-४ 
.. ४-५ 
प्‌ किकमक दर 
६-७ 





७-८ 








जिला | जिला मूल्य रुपयों में जिला | जिला 
(क) | (ख) (प्रति मन) (क) (ख) 
€्‌ २ ८- हि ५ २० 
३२ १० ६-१० २ & 
३७ ३४ १०-११ १ जे 

२१ २३ ११-१२ र्‌ २ 
१३ २१ १२-१३ हर है 
७ १४ 














( 072०४ ८६ ?709]8॥78 47 504४802८5 ०, 7० ) 


सांख्यिकीय माध्य -: 


१२९ 


(२०) निम्न सारणी में सं० १६३१ की संगणना के समय भारतवर्ष तथा 
इंगलंड को जनसंख्या विभिन्न आयु-वर्गो' में दी गई हैं 





























्ि इंगलेंड की | भारतवर्ष की द इंगलैंड की क्‍ भारतवष की 
आयु-वर्ग | जनसंख्या | जनसंख्या | वायु-वर्ग | जनसंख्या जनसंख्या 
' (लाख में) | (लाख में) (लाख में) (लाख में) 
०-५ | श(ैल, | रशय | २५-३० |. १४ १६१ 
७-१० १&€ र्ण्ष् ३०-४० २७ २५७ 
१०-१५ २० र२२ ४०-५० र५ श्व्यड 
१०-२० श्ष्य १५७ ५०-६० १€ १२० 
२०-२५ १६ १४५. ६० से अधिक १७ १०० 














.. इन दो देशों के पुरुषों की समान्तर मध्यक आयु की तुलना कीजिए। 
अगर कोई अन्तर हो तो उसका कारण बताइए । 
(7:48८०८६७॥ ?7009]6775 |7 58408008 ४०, 73) 


(२१) निम्न सारणी से एक विद्यार्थी के समान्त( मध्यक्र प्राप्तांक 














निकालिए 
प्राप्तांक विद्याथियों की संख्या 
१० से कम २५ 
७ 332 79 ८७ 
३० 7) 9) ६ 5 
5 90 9) ७५ 
७५० 9 ६५ 
६ ० ;7 २) १ २५ 
७० 4४9 शक १ ६० । 
० हक । हक २४० 











(77477८%7 ?700]60775 47 5028080८8 ०, 76 ) द 


























१२२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 
(२२) निम्नलिखित सारणी से एक मजदूर को समान्तर मध्यक मजदूरी 
निकालिए : 

मजदूरी रुपयों में | मजदूरों की संख्या | मजदूरी (रुपयों में) | मजदूरों की संख्या 

० से अधिक ६५० ५० से अधिक २७५ 
१ ०-7) 37 ५० ० ६० 77 ११ २५७५० 
२० ? !? ४२५ ७० ?  ?? १०० 
३ ० 97) 77 ३७५ 
५८७ 9» 93) ३ ०० 





(772८7८9) ॥?॥006॥05 00 5040870८8 ४०. 78) 


( २३ ) निम्नलिखित सारणी में सन्‌ १६२६ ई० में अमेरिका में 
विभिन्न आय बाले व्यक्तियों की संख्या दी गई है : 





आय ( हजार डालरों में ) 


व्यक्तियों की संख्या ( लाख में ) 





१ से कम 
श्से २ 
२ २३ 
रे+.. 5 
फतज १० 
१०- २५ 
र२्‌५- ५० 
५०-- १०० 


१००--१००० 








प्रति व्यक्ति की समान्तर मध्यक आय निकालिए | 


- (एबलांएब 97090075 0 50808008 २०. 79 ) 


सांख्यिकीय माध्य १२३ 


(२४ ) निम्नलिखित सारणी से एक पोंड चाय का समान्तर मध्यक 
मूल्य निकालिए तथा साथ ही भारित समान्तर मध्यक मून्‍्य भी निकालिए : 





ए७७४एशशशशशशशशशश"शणनशणशणशणशणणशशणशणणशणशशशशशशणणशण"णशण"ण"श"श"श/शशशशणणणण"णणणाणाणाामाभाााााााा 99 3 अमल मल 





मूल्य प्रति पौंड बेचे गये पौंड 

रू० आ० पा० 

१०७-० --- ० * २०० 
१---६-- ० २७५ 
१---१०--० ४०0०७ 
१---१ २०० १५० 
२०---०--- ० १५०० 
र्‌ नल दै+-+-- 0 छ प्‌ 
२--८२--- ० ५० 








( 772८70%8 2॥7006775 | 50808005 'च०, 25 ) 

(२४) माना कि एक सोटर बस २०० मील्न की यात्रा तय करती है, 

जिसमें से प्रथम १०० मील ४० मील प्रति घंटे के हिसाब से तथा ट्वितीय १०० 
मील ४० मील प्रति घंटे के हिसाब से तय करती है। मोटर-बस की समान्तर 
मध्यक"गति क्या है? (?8३८८८%४) ?270696770$ 40 $६808008 ०, 29) 


( गुणोत्तर मध्यक ) 
(२६) निम्नलिखित मालाओं (5८:८४) का गुणोत्तर मध्यक निरालिए : 








(अर) (ब) 
२५७४ 'ट८€ ७४ 
४७० "०७५७० 
७५ "००८१ 
प्‌ ,. “५६७७ 

नि ऋद| *०००२ 

ण्द "०68८४ 
5००५ "०5८५४ 
"०००६ “५६७२ 











(2/8८७८३) ?/09]९77$ 40 50805008 ३४०, 65) 


श्र्ड सांड्यिकी के सिद्धान्त 


(२७) निम्नलिखित सारणी निर्वाह-व्यय में आने वाले विभिन्न पदों के 
देशनांक ( 40065 7०४7०८४$ ) दिए हुए हैं । इन पदों का भारित समान्‍्तर 
' मध्यक निकाल कर निर्वाह-व्यय देशनांक बनाइए। प्रयोग में लाने के लिए 
भार भी सारणी में दिये गये है । 




















|. पद... | देशनोक |. भार... देशनांक ... भार 

१--केपड़ा | ७७" ३ १३ 

२--भोजन ७७४५ ४३ 

३---कोयज़ा (ईंघन) तथा रोशनी प््प्षष् धर 

४--मभकान द ६४"६ श्र 

ण््अन्य ह €२"५ २० 





(?:2८0८%] ?%00]6005 ॥0 5।280४5008 7२०. 66) 
... [ हरात्मक मध्यक ) 

(२८) एक आदमी अ से ब तक मोटर से जाता है। दूरी का एक बड़ा 
भाग पहाड़ी है और वह १० मील की यात्रा तय करने में १ गैलन पेट्रोल खचे 
करता है। लोटतो बार वह १४ मील के लिए १ गैलन पेट्रोल खच्चे करता है। 
मीलों का हरात्मक मध्यक निकालिये | इस तथ्य को, यह कल्पना करते हुए कि 
अ से ब तक की दूरी ६० मील है, स्पध्ट करिये कि यह उचित माध्य है । 

द (?:48८07८4] 07॥0/6775 47 50%08708 7२४०. 7०) 

(२६) निम्नलिखित पदों का भारित हरात्मक मध्यक निकालिए : 








पद्‌ भार 
ण्. १० 
१०"० २० 
४५० १७ 
१७०.० १५ 
* 68 २ । २ 

ढीा०ए ' १५ 
११२ ८ 








5. 5 (ए-बनांदबो 07096ण85 7 $008008 ०. 77). 


सांख्यिकीय साध्य श्२५्‌ 


(३०) स॒ृत्यु-अर्घो' के आधार पर, इस बात का निर्णेय करने के लिए कि 
क्या एक नगर दूसरे से अधिक स्वस्थ है, आपको दो नगरों की कुल मृत्यु-संख्या 
तथा कुल जनसंख्या के अतिरिक्त किन बातों की जानकारी करनी होगी 
आप इस जानकारी का प्रयोग, यह निश्चय करने के लिए कि एक नगर दुसरे 
नगर से अधिक स्वस्थ है, किस प्रकार करेंगे ? द 


(एस० ए०, इलाहाबाद, १६३५) 


अध्याय ८ 
अपकिरण ओर विषमता 


( 4250675707 6ट 356ए770८85 ) 
अपकिरण 


पाध्य किसी बंगदन (0॥$000/07) का अतिनिधित्व करता है। पर किसी 
भी बंव्न के सब पद्‌ उसके माध्य के बराबर नहीं होते। अगर केवल माध्य ज्ञात 
हो तो बंग्न के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलती | हम यह भी जानना चाहते हैं 
कि विभिन्न पदों के मूल्यों ओर उनके माध्य के बीच कितना अन्तर है; इन 
पदों के माध्य से विचरण ( ए०४४५७८०7$ ) कितने हैं। सांख्यिकी में इन विच- 
रणों को अपकिरण ( 0759०:»०7 ) कहा जाता है । किसी समूह का अपकिरण 
(6857०7»07 ) उसके माध्य से उसके विभिन्न पदों का विचरण (४५॥:४(07) 
है। अपकिरण का उद्दे श्य यह बताना है कि माध्य को किस हृद तक समह का प्रति 
निधि माना जा सकता है | अगर किसी समह का अपकिरण अधिक है तो माध्य को 
उसका अच्छा प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। 

वास्तव में माध्यों ओर अपकिरणों की मापों का उपयोग इसलिए किया जाता 
है कि विमिन्न वारंवारता बंगनों (££८(००४८ए 0$0709प४४0785) में क्‍या भेद है 
यह ज्ञात हो जाय । वारंवारता बंग्न दो प्रकार से एक दूसरे से मित्र हो सकते हैं : 

( १ ) उनके माध्य अलग-अलग हों पर माध्यों से उनके पदों के विचलन 
(8८९१५४०० ) एक से हों । इस प्रकार की मिन्नता उनके पदों के मूल्यों की मिन्नता 
बताती है। जैसे, दो बंदनों ३, ४, ५, ६, ७, और १५, १६, १७, १८, १६, में 
माध्यों के मुल्य विभिन्न ( क्रशः ५ ओर १७ ) हैं पर माथ्यों से विभिन्न पदों के मुल्यों 
का विचलन (-२,- १, ०; १, २ ) एक समान हैं, इन दो बंगन की आकृति एक 
सीहे। 

(२ ) या उनकी आकृति अलग-अलग हो पर माध्य एक हों। अर्थात्‌ माध्य 


अपकिरण और विषसता १ २७ 


से उनके विभिन्न पदों के विचरण अलग-अलग हों। जैसे, दो बंयनों, २, ३, ५, ६, ६ 
और ३, ४, ५, ६, ७, में माध्य तो बराबर हैं--दोनों का माध्य ५ है--पर माध्य से 
विभिन्न पदों के विचलन (क्रशः-६,+-२, ०, १, ४ ओर -:२,- १, ०, १, २) 
अलग-अलग हैं । 

यदि बंटनों की आकृति में कोई अन्तर न हो तो माध्यों की तुलना से ही इनके 
अन्तर स्पष्ट हो जाएँगे । पर यदि इनकी आकृति मिन्न-मिन्न हुईं तो केवल माध्य उनके 
बारे में पूरी जानकारी नहीं देते | ऐसी दशाओं में केवल माध्य बताना बंगन के बारे 
में गलत धारणा तक बना सकता है | इसलिए बंटन को निश्चित करने के लिए न 
केवल उसके माध्य को निश्चित करना पड़ता है बल्कि माध्य से उसके पदों के विचलनों 
(0०ए१७८४075) का भी माप देना पड़ता है । इस परिच्छेद में इन मापों की गणना 
करने की विधियाँ बतलाई जाएँगी । इस प्रकार के विभिन्न माप जिनका सांख्यिकी में 
उपयोग किया जाता है, निम्नलिखित हैं : 


( १ ) विस्तार (+97£26) 
( २ ) चतुर्थक बिचलन (0०७४०|७ १6४१४८07) या अर्ध-अन्त्च॑तुर्थक: 
बिस्तार ( 88॥7-7767-408४::॥९४ ४9728 ) । 
(३ ) माध्य विचलन ( 77050 06ए2007 ) 
( के ) समान्तर मध्यक से | 
( ख ) मध्यका से 
(ग ) भूयिष्ठक से । 
( ४ ) प्रमाप विचलन ( 50870%70 त€एंद्रतं० ) । 
विस्तार 
( १9726 ) 
अगर कोई बंदन ( ४४४४0प४०॥ ) दिया हो तो उसके माध्य के दोनों ओर 
कुछ पद होंगे | इनके पदों में दोनों ओर एक ऐसा पद मिलेगा जिसका ओर मध्यक: 
का अन्तर अधिकतम होगा | ऐसे दोनों ओर के पदों का अन्तर उस बंटन का विस्तार 
कहलाता है। अर्थात्‌ किसी बंटन का विस्तार (7208०) उसके अधिकतम ओऔर 


न्यूनतम मूल्य वाले पदों के मूल्यों का अन्तर है। किसी समूह के पद क्रमशः 
१०, १२, १५, १६, २३, १३, १७ हैं। इनमें अधिकतम मूल्य वाला पद २३ है 


श्श्य सांख्यिकी के सिद्धान्त 


ओर .न्यूनतम मूल्य वाला पद १० है| इसलिए इस समृह का विस्तार २३- १० ५-१३ 
हुआ | द 
किसी बंग्न का विस्तार (४7026) उसके अपकिर्ण (0892:54070) को 
नापने का सबसे सरल तरीका है। इसको समझना भी बहुत आसान है। इसलिए इसका 
उपयोग ऐसे स्थलों में प्रायः किया जाता है जहाँ गणना की सरलता और समभने की 
आसानी के लिए परिशुद्धता ( ४८८७४४८ए ) का त्याग किया जा सकता है। पर 
साधारणतया सुविधा के कारण परिशुद्धता का त्याग नहीं किया जा सकता | इसलिए 
जहा कहीं मी अपकिरण (05792८78707 ) के लिए सनन्‍्तोषजनक माप की आवश्यकता 
होती है, इसका उपयोग नहीं किया जाता है। इसका उपयोग न करने के पक्ष में जो तक 
है वे निम्नलिखित हैं :-- 


( १ ) इसका मान बंटन के चरम पदों ( ७४८४९४6 70७778$ ) के मल्य पर 
निर्भर रहता है । अन्य पदों के मुल्य यदि एक से रहे पर चरम पदों के मलयों में यदि 
परिवतंन हो जाय तो बंगन का विस्तार प्रभावित हो जाएगा | साथ ही साथ किसी 
बंगन के चर्म पद असामान्य उच्चावचनों (£]०८८००८४०४४ ) के कारण होते हैं, 
ओर किसी मी अनुसंधान ( 7700०४४ए ) में इनको कम-से-कम महत्व देने का प्रयत्न 
किया जाता है | उदाहरण के लिए एक बंगन ६, ७, ८, ६, १०, ११, १२ को 
लीजिए. । इसका विस्तार ६ है और समान्तर माध्य £ अब यदि आकस्मिकता के कारण 
दो अन्य पदों, जिनके मूल्य २ और १६ हैं, का इस बंटन में समावेश कर लिया जाय 
तो समान्तर माध्य वही, ६, रहेगा, पर इस बंदन का विस्तार (४272० ) १४ हो 
जाएगा । वस्तुतः किसी चल के चरम मूल्य (८5८४८४०८ ४०८८४) कम मिलते हैं 
पर यदि वे आकस्मिकता के कारण बंटन में हों तो उसका विस्तार (£2728) पर्याप्त 
रूप से प्रभावित हो जाता है । 


( २ ) दूसरा कारण जिसकी वजह से इसका उपयोग नहीं करना चाहिए यह है 
कि यह चरम मूल्यों के अतिरिक्त अन्य किसी पद के विचलन (१००१४४४०४) पर विचार 
नहीं करता । यदि किन्हीं दो बंटनों के चरम-पदों के मल्य आपस में बराबर हों तो उनका 
विस्तार बराबर होगा पर उनके अन्य पदों के विचलन एक दूसरे से मिन्न हो सकते हैं 
यहाँ तक कि उनकी आकतियों में कोई भी समानता न हो । उदाहरण के लिए दो 
बंटनों के विस्तार, जिनमें एक असंसितीय ( 28ए77776६7८५| ) हो और दूसरा 
संभितीय ( 5ए:0॥760702| ), बराबर हो सकते हैं | पर यदि इसके बल पर यह 





अपकिरण और विषमता श्श्ट्‌ 


कहा जाय कि उनके पदों के अपकिरण ( 05967:587078 ) एक से हैं, अर्थात्‌ उनकी 
आऊति एक सी है, तो गलती होगी। 
चतुथंक विचलन 
( (१८५४४:८॥४ 406742007 ) 

अपकिरण ( 0/87०:807 ) की दूसरी माप जिसका प्रयोग किया जाता है 
वह चतुर्थक विचलन है। किसी वंग्न के प्रथम और तृतीय चत॒र्थकों के बीच में उसके 
५० प्रतिशत पद होते हैं। इन पदों के (जो मध्यका के आस-पास होते हैं) चरम मूल्यों 
का अन्तर यह बता देता है कि सामान्यतः प्राप्त होने वाले चल के मूल्यों में कितना 


अन्तर है। यदि किसी वंटन के प्रथम ओर तृतीय चत॒र्थक क्रशः चठ॒, और चत॒३ 
हैं तो उस समूह के लिए चतुर्थक विचलन, च० वि० निम्न सूत्र के रूप में व्यक्त 


किया जायेगा ५ 





चतुर्थक विचलन (0५४06 ॥267%(07 
न० वि० ८८ चठ 3 रा ().2. -- (२४ - (२५ 
2 


क्योंकि इसकी गणना करने में तृतीय ओर प्रथम चतुर्थक के अन्तर को २ से 
विभाजित किया जाता है इसलिए इसे अधे-अन्तर-चतुर्थऋ-विस्तार (5९४7/-+7(९४- 
0००:०]० 7272०) भी कहते हैं | 





























उदाहरण १ 
एक स्कूल के विद्यार्थियों को उम्र के अनुसार वर्गित किया गया। इसके परि- 

णाम निम्नलिखित सारणी में दिये गये हैं : 
विद्यार्थियों ६-७ | ७-८ | ८-६ ६-१९ १५४०-११ | ११-३१ १ 

की उम्र २ (१२-१३ 
विद्यार्थियों क्‍ 

ह १४ | २० | ४२ ४ ४५ श्द ६ 

की संख्या द 

















इस सामग्री का चतुर्थक विचलन निकालिए | 
& 




















२३० सांख्यिकी के सिद्धान्त 
हल 
चतुर्थक विचलन निकालना 
विद्याथियों की उम्र विद्याथियों की संख्या संचयी वारंवारता 
६- ७ १७ १४ 
७- दर २० ३४ 
प- ६ है है ७६ 
€-१० प्‌ ४ १३० 
१०-११ ४५ १७५ 
११-१२ श्र १६३ 
५२-१३ /द्‌ श्ह्ह्‌ 
(--४ -)वें पद का मूल्य 


--५०वें पद का मूल्य 


-८-+- ॥। न (५० - ३४) | 


लन््पः रेप 


_-०-/९१६६-+१ 
चतु २ -- रे (---०>-)वे पद का मृल्य 
-+१५०वां पद का मूल्य 
--१०-- | (११-१०) /५५०-- १३० ) 
नल + स्र् (१४०- १३१० ) 
८ १०७४४ 
च० वि० -- 33 


“ चतु, 





र्‌ 


-- ० ४ं४--८+ रेप 


प्+ १०३ 


र्‌ 


अपकिरण और विषमता १३१ 


वि 799+- 7१५४ 66॥#0 
(१३ -२७2८ रण 2) 
-+98]26 07 96000 6 
(2-8 ) 
+ | (०-54) ) 
--:8*38 
(२५ 5२826 0६ 3) प्ट्ा 


-->8]2८ 0६ 7500४ 4६8॥0 


-70-- | (77 प्र 70) (750- 730) |; 














5८ 70'44 
बन (२५ -- (0। 
(९. 0.5 +*- 
__ 70*44 -- 8*38 
2 
-८ 7'03 


चत॒थक विचलन अपकिरण का निरपेकज्ष माप (४०४०प४८ :7९85०:८) है । 
सापेक्ष ( 28४ए८ ) चतुर्थक विचलन को चतुथ्थेक् अपकिरण गुणक (१००४८]८ 
८०-८४८४९४४ ०0९ 059८7507) या चतुर्थंक विचलन गुणक ( ८0-०((८८४६ 
०६ १५३४४ |४ १०४५४४०07 ) कहा जाता है। इसका मल्य चतुर्थक विचलन को 
चतुथकों के समान्तर माध्य से विभाजित करके ज्ञात होता है। उपरोक्त उदाहरण के 
लिए. चतुर्थंक अपकिरण गुणुक निम्न प्रकार ज्ञात होगा :--- 














चतुथक अपाकरण गुणक (.०९चललाः ० तृणथ7]6० ता5- 
| 7९:8407 
चतु ३ - चठ ५ (१३ - (23-५३ 
___२  चतु३-चठ, __ __ (२४-७५ 
चतु३-+चत॒, चत॒३ -पठ ५ (१३ -+(९+ (१४-९५, 
र्‌ 
. १०'४४- ८३८८ 70'44 -- 8'38 
पम्प न+पफ'श्पर क्‍ “7 [044 -- 8*38 
न ०पप्‌ न 055 





श्श्र सांख्यिकी के सिद्धान्त 


चतुर्थक विचलन के लाभ तथा कमियाँ 


विस्तार (८8786) की भाँति इसके मूल्य पर चरम पदों के मूल्यों का प्रभाव 
नहीं पड़ता | इसकी गणना करना अपेक्षाकृत सरल है । इसका समझना भी आसान 
है | यह स्पष्ट रूप से बताता है कि समृह के मध्य में स्थित समृह के ५०% पदों के 
मलयों में कितना अन्तर है। यदि किसी समह में पहला और अन्तिम पद अनिश्चित 
है तो इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग प्रायः उन स्थलों में किया जाता 
है जहाँ विस्तार का उपयोग होता है। फ 


इसकी कमी यह है कि यह प्रत्येक पद के माध्य से विचलन पर विचार नहीं . 
करता । अर्थात्‌ प्रथय और तृतीय चत॒र्थक के बीच में पद किस आकृति में है इसका 
यह कोई ज्ञान नहीं देता | यदि बंगन असंमितीय (3$9777760:77८%]) हुआ तो इसका 
उपयोग करना वांछुनीय नहीं है। 


माध्य विचलन 
( (6९०॥ 26एव4707 ) 


विस्तार (६272०) और चठ॒र्थक विचलन की गणना करने में समह के सब 
पदों के विचलनों पर विचार नहीं किया जाता है। अधिक परिशुद्धता (४८८प८३८ए) 
के लिए. समह के सब पदों पर विचार करना आवश्यक है। अपकिरण की इन मापों 
(जिनमें समृह के सब पदों पर विचार किया जाता है) में मध्यक विचलन की गणना 
करना सबसे आसान है | इसकी गणना करने के लिए किसी माध्य (समान्तर मध्यक 
मध्यका या भूयिष्ठक से समूह के पदों के विचलनों की गणना कर ली जाती है । 
इन विचलनों के निरपेक्ष ( 9080]706 ) मूल्यों का समान्तर माध्य निकाला जाता है, 
यही माध्य विचलन है | इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि श्रंणी के किसी 
माध्य (समान्तर मध्यक, मध्यका या भूयिष्ठक) से विचलनों के निरपेक्ष मूल्यों के 
समान्तर माध्य को उस श्रेणी का माध्य विचलन कहते हैं। इस बात का ध्यान 
रखना चाहिए कि विचलनों के निरपेक्ष मुल्य लिए जायें, अर्थात्‌ विचलनों के चिन्ह 
(ऋण या धन) छोड़ कर केवल धन चिन्ह मानना चाहिए क्योंकि समान्तर माध्य से 
लिए गये विचलनों का योग शूत्य होता है ओर अन्य माध्यों (मध्यका और भूयिष्ठक) 
से लिए. गये विचलनों का योग भी शृज््य के आस-पास या बहुत कम होता है । 


अपकिरण और विषमता १३३ 


गणितीय रूप से माध्य विचलन मालूम करने के सूत्र निम्न प्रकार लिखे जा 





सकते हैं : 
यो 
चम 
(१) चि. च्न्‍द्धः 
जब कि, चि--माध्य विचलन 
यो. >मध्यक से 
विचलनों का योग 
चि >मध्यक द्वारा 
माध्य विचलन 
यो 
_ चमा 
(२) चिा .. स 
जबकि, यो मा न्‍-मध्यका से 
विचलनों का योग 
चि, - मध्यका द्वारा 
माध्य विचलन 
औजसू 
(३) चिशू ल्ण्ज् 
नबकि यो... भूयिष्ठक से 
विचलनों का योग 
_भू--भूयिष्ठक द्वारा क्‍ 
माध्य विचलन 








जा67९, 8 5-४९ त60774007॥7 
34 न 59प77॥040070 
.. 0६ ठ6€सांब्रध075 (097 
77022॥7. 
82 -:70627 9त6५०१2६00 
६70॥77 7762॥7 


005- 





। _ >का 
(2) 


67९, >6ऋ<5"- 5प772/07 
०६ 067०4400075 7007 
776097., 
985707] 55 4776970 -- द 
46ए४490079 ६7207 छात्रा 


__ 095५ 
3 अलकाइ७७. 4कक/भाकापरशााभाक, 
( ) 52 प्‌ 


छ676, >0%& --35प्रात720707 
०६ त6ए4र४0798 (07 
777006 
$2:“-706927 -- 
१6२१६८४०४ ६7070 ४70१० 


ऊपर दिये हुए सूत्रों से हम निरपेक्नं माध्य विचलनों का अध्ययन कर सकते 
हैं परन्तु विभिन्‍न समूहों के माध्य विचलनों की इस रूप में परस्पर तुलना करना सम्भव 
नहीं क्‍योंकि इन समूहों की इकाइयाँ अलग-अ्रलग होंगी | तुलना करने के लिए यह 


१३४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


आवश्यक है कि या तो समूह एक ही इकाइयों में व्यक्त किये जा सकें--जैसा कि 
साधारणतया सम्मव नहीं--या उनके माध्य विचलनों को बिना इकाई के होना चाहिये | 
ऐसा करने के लिए माध्य विचलन को उस माध्य से विभाजित किया जाता है जिससे 
विचलन लिए: गये हों | यदि समान्तर माध्य से विचलन लिए. गये हों तो विचलनों 
के योग को समान्तर माध्य ही से विभाजित किया जायगा। इसको माध्य विचलन 
का गुणुक ( 6०ीलंडा: ए साल्या त6एंबध०7 ) कहा जाता है। 
सूत्रों के रूप में ऊपर दिये हुए माध्य विचलनों का शुण॒क क्रमशः इस प्रकार 


होगा । 





माध्य विचलन का गुएक | (हक 0 (९३४ ॥26ए4%00॥ 
चि , | 
(१) समान्तर माध्य से ८८ _म्‌ (7) 47077 &ए४76६0 ३ए८॥०४० 
ा -- ० 
द चिट क्‍ 4 
(२) मध्यका से- --- (2) ६000 प्राल्तीश्रध- * गी _ 
मा फ हि 
चि 
(३) भूयिषप्ठक.... सेज८ नज्न फ (3) ६0%  करा0ठत6८ १ 
प्र 


: निम्नलिखित उदाहरणों से यह सूत्र स्पष्ट हो जाएँगे ।. 
साधारण श्रेणी का माध्य विचलन निकालना 
उदाहरए २ ्ि क्‍ 
... निम्नलिखित संख्याओं का माध्य विचलन तथा माध्य विचलन गुणक 
निकालिए :-- क्‍ 
४, ६, ६, ११, १३, १८, १६, २२, तथा २४। 





अपकिरण और विषमता १२४ 



































हल क्‍ 
माध्य विचलन तथा उसका गुणक निकालना 
/ ३ अचबिनाऊ॑चिन्ह के मध्यका (१३), बिना _. चिन्ह के समान्तर (१३)। बिना + चिन्ह के समान्तर 
मूल्य से विचलन (0८ए7७८:४००8 | मध्यक (१४) से विचलन 
क्रम संख्या, (ए४]५९5७) | 77070 7760887 (73), | (86ए१५४४075 9077 4 
य (5) +582975 48707606) | 9. + ४४275 270:60) 
मा (6०) म (0५) 
१ ४ है की... १० 
२्‌ ६्‌ है ८ 
4; €्‌ २ है 
हा १९ रे 
है १३ हे १ 
दर रुप के ४ 
9 १६ रे ५ 
प् २२ १ हा ८ 
९ २४ ष १० 
यो यो कर यो 
स-६ | श्र -घ३ व घ४ 
५७0) | (»») (2:49) क्‍ (2:0५) 
(१) मध्यका (7) /॥6097 
मा -- (६-9४ या ५ वें पद 7) 55$5426 0६ (7) प्ध 
का मूल्य -- १३ 0£ 5६० ॥6775:-: 73 
साध्य विचलन (मध्यका से) ८७४ त6ए. (६07 7८०ंथ्ा) 
चि मा _ यो. _ ७३. -_ ५-६ हा 5८ 249 _ 53 >-$'9 








१३६ 
माध्य विचलन गुणुक | 
__ चिप 5 _.2य 
मा १३ 
(२) समान्तर मध्यक -- 
मत कि पढे +प्ू १४ 


माध्य विचलन (समान्तर मध्यक से) 








सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(०6६८० 0079. 6 


(2) 0.707777600 ४ए८०९८ 
अर 7 26 -- 74 
7 9 





7627 06ए. (६7077 2, 2.) 











चि तर यो... 59 पा _2492 
अन्य २००9-..>>«णमथ 7 
जे 54 
५४६ द >लठः क्‍ 56 
माध्य विचलन गुणक (०९(४८८४६ ०६ 70९97 06. 
चिप 
न्न्ज्नू- १ आई, २-५३... २.0 ज+ "43 
क्‍ 22 4 
खंडित श्रेणी का माध्य विचलन निकालना 
उदाहरण ३ 
निम्न वारंबारता वंटन से माध्य विचलन (मध्यक, मध्यका तथा भूयिष्ठक से) 
निकालिए | 
....._ चल का मूल्य । गाए 
___ (326 0३6) र्‌ रे क्‍ ड़ क्‍ ड क्‍ हे ५ क्‍ का क्‍ १४ । 
वारंवारता ह ्ा 
(४०१ एथा८टए) । रे द्‌ । दे | १०| ४ | ४ । २१ 


अपकिरण और विषमता 


>> ० 3. 3 अल सफल 8  ऋक 4 22० न अर उ्करीफत है 


5 ४जु: था प८७३ 9 «बुक, 22% 





5 ३०४६००८ अब 8 ६० ०-8 >3+ 



































|  (ऐ) 
है: है ४६ +६ 4 ५९ 
हे षटे फटे 38 ्े >] 
प्र ९ ट् प्ले न्‍५ के 
£ ९ 3०९ शटे ल्‍ है. 
० ० हे ०्फ ०३ है. 
| 4 कफ श्े ह.] ५ 
०४ ढे ह. थे छ हे 
है. ट्ट ट्टे डे ट्ट ढे 
(20 प्प0 ४०) 
प्रण]श4०9 व 5 धर द 
पा (0प३ए०थ] ) ३ (2, मे ०9 (4०79 07947 (पु ८ >) ( 3 ) 2 (5) र 
प्ह्का 5 ((5 4 
७2४७-४७] 3९ ॥2009॥७ | य ऋतएाश है | १7४] एप्प) ४८, ((०प्रशा79733) | (प्पथा 30 शा) 
॥०७ ४] के...» (॥) १९४५ ॥8/० | ।२०४)।४ ॥०> ॥0)४७।४. | ७७४१ ॥५ ।४४. 
ः (%00)4 “१७४ 




















॥५०५)२] ॥०८०७.२] ॥3॥+ 


॥28 


श्रेप 
समान्तर मध्यक ८-६६ ८५ 
मध्यका ८ ( रे या 


श्य'भ्वं पद का मूल्य 
घ्"र 
भूयिष्ठक -- ५ 
माध्य विचलन :-- 
क्योंकि म>माऊ>- भू 


माध्य विचलन शुण॒क 
__ १५ _ 
प्‌ 


"रे 


सांड्यिकी के सिद्धान्त 


377777670 2ए८।22८ 
ब्ववा -- ले () $ 


(८049॥ -- 5426 ०0९ ( ०+ गा 


बे 











67 78*500 ॥6770 -- $ 
(006 --5 














४(८०७॥ 0९०72960॥ ३--- 
58708 9:८:-॥ -- 2 
० 89 --८ 077 2: 0 2 
>>. 5 ५ 
न्‍न 5-6 न्‍+ 7") 
(८0४7९९०४ ०0६ 77०40 6९०2007 


नस्ल 7" च्ञ्ज 3 
) 





नोट :--क्योंकि उपरोक्त उदाहरण में मध्यक, मध्यका तथा भूयिष्ठक का मूल्य 
चराबर है इसलिए इन माध्यों से लिए गये विचलनों तथा उनके गशुणक में भी कोई 


अन्तर नहीं है । 


संतत श्रेणी का माध्य विचलन निकालना 


उदाहरण ३ 
द निम्नलिखित वारंवारता वंटन 


से माध्य विचलन ( मध्यक तथा मध्यका से ) 


निकालिए | माध्य विचलन का शुणक भी मालूम करिये । 





प्राप्तांक 


०-१० 


१ ०्न्च्रे ेट २०-३ 09 ४०-५७ 





३०-४० 








विद्यार्थियों की संख्या 





ही । २० 

















१३६ 


अपकिरण और विषमता 






























































| (प्प ] 
(षएट) 3) (७) 
पर णा / प्र है 
०. हफट्टे ++।। !०५ है कक 
१० 5४४ २८ 
०३३ 2. 36 है मे है है 
8 6) 3३ #. ३६ | है ०6६--०५ 
#,26) _ 
टू बम, ००४७) फडे 2 फटे ०४---० है 
0 ५्टी है नि हर 
न ०,०0० ढै १३8 0 है. फल ० है ०९ 
» है 6) छ९५० के , ६ | 
4 (०६७) ०6६ | है] ०८--० ६ 
७०.९४०६ ०००७ ५,७०३०६४६ $.०८९ । है; है "3 ०३--० 
| | [ 
(थ०) मि (प्ण 4० 
(*8 "४ प०वु | (पाए ?) # 
"१ 39]) छठ (0 नि बच न" चघाएव चः 
0 [8303 ) | (६'४ "४ "१2 7 | ( पणए०्प्प ((०पशा>०]) ((४णृष्५-नगप्प) 
श००७७)... प्पठा '*ण) | [४304) | प्प०07] * ३४) ५ अप 
)2%  ५रकोते ०9०० ।३ )22)2|2 || ०९) भर 8.. मनलेकिपेकषी 4९ (६४ | 
डे अन्य है | के है ०7 |िजस ि 
(९-४९) +स्डीत ४९) ।%/ | 
५ 


]४४७)५).] ॥०४७)२] ॥:8॥5 





१४० सांख्यिकी के सिद्धान्त . 


(१) अन्तर्गणना के सूत्र के अनुसार 
मध्यका ८८ २५ 'ए्‌ ह 
मध्यका से माध्य विचलन 


चि, _ यो __ २६४ 
ः से ४५४ 
अत७छाह क्‍ 
माध्य विचलन शुणक (मध्यका से) 





(२) समान्तर मध्यक-- २५२ 


स० म० से माध्य विचलन 


चि म__ यो __ और तय 
न्न्जटा 


माध्य विचलन गुणक (स० म० से) 


एज मे रर 
छ5*९ रे 
माध्य विचलनों के लाभ तथा कमियाँ 








(7) 3ए 770९077048007 
/८08975-- 25 *5 

धल्शा त6ए४:07 (709 
776027 ) 


_>त9 _ 5595 
“प्नन शा लक 
::7"9 


(,0९706४४ ०६ 70९27 06ए. 
(६7077 7076047) 


0 7) __ 7*9 हु 
8 2505 


(2) .0777॥70600 ४ए९:०९८ 
55273"*2 
च९श त6घ4007 (६07 ३. 2.) 


_ 33% _ 355-8 
०४न्ात्न्कु 
प- 7'8 


(६7077 2, 2.) 


माध्य विचलनों ओर माध्य विचलन गुणकों की गणना करना अपेक्षाकृत सरल 
है। इनकी गणना करने में सब पदों पर विचार किया जाता है इसलिए यह किसी 
पद विशेष के अनुचित अभाव से मुक्त हैं। इनके अधिक प्रचलित न होने का कारण 
यह है कि इनका बीज गणितीय रीतियों में प्रयोग नहीं किया जा सकता । 





अपकिरण और विषमता १४१ 


प्रमाप विचलन ( 50870270 ॥06०32007 ) 


अब तक जिन अपकिरण के मापों का वर्णन किया गया है उनका प्रचलन 
गणना की सरलता और समभने में आसानी के कारण होता है। इस बात का ध्यान 
रखना चाहिए, कि माध्य या अपकिरण के माध्य केवल उपादान (४00!8) हैं, और 
किसी भी उपादान के लिए. यह आवश्यकीय है कि उसका उपयोग सरलता के साथ 
किया जा सके | विस्तार या मध्यक विचलनों में मुख्य दोष यह है कि इनका उपयोग 
बीज गणितीय रीतियों में नहीं किया जा सकता। इसलिए ये आगे के कार्य के लिए. 
उपयुक्त नहीं हैं । इस कठिनाई. को दूर करने के लिए, प्रमाप विचलन (50200 470 
386४727४07 ) का उपयोग किया जाता है। प्रमाप विचलन सांख्यिकी में काम आने 
वाले अपकिरणों के मापों में सबसे अधिक प्रचलित है। 

ऋणज रोति ( 076८६ १(७६४00 ) 


किसी समूह का प्रमाप विचलन ($:%70270 १०४7४४०४) उस समूह 
के समान्तर माध्य से उसके विभिन्न पदों के विचलनों के वर्ग के समान्तर माध्य 
का वर्गेमूल (५१०५७४० 7000) है । यदि किसी समूह के विभिन्न पद य,, य........ 
549 5५ ------४५ ) हैं, ओर समान्तर माध्य से लिए गये विचलन क्रमशः 
च,; च२.-----व 4 (१,, १, ......% ) हैं तो प्रमाप विचलन निम्न रूप से 
व्यक्त किया जायगा :-- 
प्रमाप विचलन या 5ब्रगत47१ [0९ए48007 05 


चाल जि+- ८“ पंसर गत 2-0, “ -- ...... ते 
8] ँ 























क्‍ लघ्‌ रोति ( $780:-८८८ )४०८४४०० ) 
ऊपर दिये गये सूत्र में एक विशेष कठिनाई प्रस्तुत होती है ओर वह यह कि 
जब किसी श्रेणी का समान्तर मध्यक पूर्ण संख्या में न होकर मिन्नों या दशमलवों में 
होता है तब विचलन तथा विचलन का वर्ग दोनों ही को निकालने में कठिनाई होती 
है | इस समस्या को हल करने के लिए जिस प्रकार समान्तर माध्य की गणना करते 
समय कल्पित माध्य लिया जाता है उसी प्रकार प्रमाप विचलन की गणना करते समय 


१४२ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


भी विचलन कल्पित माध्य से लिए जाते हैं। कल्पित माध्य से लिए. गये विचलनों 
और समान्तर माध्य से लिए. गये विचलंनों में सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है, 
इसी सम्बन्ध के कारण ही प्रमाप विचलनों की गणना करने के लिए! कल्पित माध्य का 
विचलन संभव से सका है। जब कल्पित साध्य का प्रयोग होता है तब किसी समूह 
का प्रमाप विचलन किसी कल्पित माध्य से लिए गये विचलनों के वर्गों के 
समान्तर माध्य में से कल्पित माध्य ओर समान्तर साध्य के'अन्तर को घटा 
कर प्राप्त होने वाली संख्या का वर्गमूल है ! गणितीय रूप से कहा जाय तो 





५) बा> / बी 
(0) चार / व - (५ य) 


अथवा, 


(२) चार िष्य _ सब) 
स 

















अथवा, 

/ 
(३) चा+- है। योज्थ यो. २ 
सरः ( सु ) 

अथवा, 





(४) चार (कि _ (है) 3्५८त 


जबकि, चा- प्रमाप विचलन 


यो. स्य-- कल्पित माध्य से विचलनों 


के वर्गों का योग । 
मसण-मध्यक 





य >> कल्पित माध्य 














| 
07, 
। >02५ 2 
0) ०5, ॥ 7 (के) 
] 
07, 








(4) ०्घ८ ्ि -- (2%) हद ८ 
| ] 


₹७ए6८, 
०7 3729704270 067. 


>त25 - 5प्राण72007 0£ 50- 


७३४८5 ०0६ 8९४१4(/07$ (:070 (7८ 


25, 20०. 
9 ++ 977[7790660८ 47. 
४--०95. 2प. 


अपकिरण और विष समता 





१४३ 
स+-पद-संख्या 5:70. 0६ ॥06॥75 
यो रथ -_ कल्पित माध्य से विच- ग्न्किल 06ए१०/098. ५+#0॥7 
लनों- को -बर्ग विस्तार से विभाजित करने | ४76 28. 9४. कदीएत24 9ए 6 
के पश्चात्‌ उनके वर्गों का योग । ॥42पप66 0६ ८(४४$-॥६८।ए ४३, 
त+> वर्ग विस्तार इ80पद्राल्वे. 200. ०0 शील्व, 
:026॥0॥6ै:. 





९८5८८॥72277706 0६ 2955. 
[70९7:ए9) 
साधारण श्रेणी का प्रभाप विचलत निकालना 
उदाहरण ४ 
निम्नलिखित संख्याओं का प्रमाप विचलन ऋजु रीति. बथा लघु रीति दोनों से 
निकालिए : द 
४, ६, ६, १०, १५४, २५ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


है४ड४ 









































(छू ि डर 
(४५०८) + 4 - एड) (४०८) (हट) 
)०५ 2: ्ग् ७३ 5८ 
* “8 _ “छ छ 
4०९ +-८ ०%५५००टे ८८ 
रर है &ह$ न: भ०००५०२६ णन्हे $ भैटै 
» न: ४८०८ ३ भैन्दे -- है] 
९ 8 “5 गैटैन्टे भेन्ठे ४: ०६ 
हे ० ्ा ४९०३ ९ हा ० 
5 ५ चैटै००ट्ट फैन 7 ह। 
० 6 -+- भैटे-3 है.0े +“- | 
(5४५७०) ४६)५ १९ न्‍ 
("%छ *$७ प्य0परु (/ (79) ४ (७) +२ ६! (( १ 8 
'090 ० छाष्ा78) |. ) ॥ह '88 | (पण॒ष्ठा ७०२ (हा हर (5) ॥2 
फट प्पठतु पणाणु&|0)| 30 उप्र67089) प्प०73 '497) (४0797 3०0 >द9५) 
है. ७3५ ।%९]५ (३ 8 )-/०३॥+ २कटे]१ |. ॥% [००४] दे रे ) 
22%: >> 2] 40/+-5 


. अपकिरण और विषसता 











ऋजु रीति 
यो, 
समान्तर मध्यक-- -...0.. 
स्‌ 
यो_२ 
भ्रमाप विचलन -- है। 2! 
स॒ 
ह _ है। २८ ९९५० 
' दर 
+२९/८४८*२५ 
न्‍्+५* ९, 
ज्षधु रीति 
' ग्रमाप विचलन 





:909700970 ॥)6ए ., ८- है। 27 








र 
__ है। यो. भय _ यो... 
'सृू स 





5/>त -(-५+) 
द्‌ ्य 

२२९/८४८*९५ - *२५ 

--५/८४८*२५ 

न्+६*९ 





. १४३ 


[976८ (०४००० 
67077 0ए८7०९८ 
_ >> _ 07 








ब्+0*9 


| 5807-८६ (७६४०० 


52706%70 )6प. 
न -क 
जो 


 --५/48*$ - 25 




















 +२९/48*2$ 
+ 09 


उपयु क्त उदाहरण में लघु रीति के तीसरे सूत्र का प्रयोग किया गया है। यदि 
लघु रीति के पहले और दूसरे सूत्र का प्रयोग किया जाय तो यही उत्तर आएगा । 


१४६ .. सांख्यिकी के सिद्धान्त 





खंडित श्रेणी का प्रमाप विचलन निकालना : 
उदाहरण ५ 
निम्न सामग्री से प्रमाप विचलन निकालिए | 





चल का मूल्य | ६ ७ पर ६. १० ११ १२ 




















वारवारता डे द्‌ & श्र प्र है ४ 





ऋजु रीति तथा लघु रीति दोनों का ग्रयोग कीजिए । 
































हल 
ऋजु रीति (076८८ 77८:700) 
च्ठ ्- ट 
४ रु थ् न ५ यशटव ७8५७5 व>८ च*े 
0 +>४ न्न्<ः >प्ि “. चर (09 
ष न प्य ०. एं 6८३ 
न लि 9-० 
ह ३ रद ड़ ्ह््कणशझ्कापइाएएणणशएणऋहआह्मःएरहआणाए 
७ द्‌ ४२ रे है २४ 
प्र ह्‌ ७२ -- १ १ ६ 
€ १३ ११७ ० ० ० 
६० ञ ८० न १ य 
११ प्‌ फ्प नर ४ २० 
१२ ४ डर -रे 8 ३६ 
(5) ४३२ (2० 2) १२४ 











अपकिरण और विषमता 


यो 
स० म० ८-८ वि प् ४३२ ब्ल्ह्‌ 


हि इप 





यं 
प्रमाप विचलन +5. पे 


43 
4007777600८ 0 ए८४३४९ -- मै 2. 





क्‍ द 2 
णंभा6470 ॥06ए. +< (डिंडेः 


>-- ह। 724 __ 7.6 


१४७ 














सांख्यिकी के सिद्धान्त 














श्डपर 

















! >+ 
(८९2) |. (72) | (०) 
- 
*ड - 58 38 न॑- नं मर 0३ 
फ. है डे न॑- हे . फै ९ ९ 
ढेडडे है 38 -- ढेन॑- पथ ०8 
६8 डे. ६३ 7: 3 -- ६8 3 
० 0 6 ७ ३ ध्ये 
डे .. & छ - 8 - डे 6) 
2४ मर छे - है - हट छ 
पं (2 
पा रस कै | एक. | दी | 2) 8 (ही) ४ 
(42 ४(8 2९ .४) (वा। एथ्रड्टा 95 [२ " १. ((०प्रशा>उ3)) (प्पथा ]० २थ५) 
( |» >< ७) प्पठ्व] "७9 पाई: * 
[४४ के % पृछारेल] | ध्यणष्ठा0००) | सर ।20002)2.. | +्टे5 ९ ॥2७ 
0७ % [०७४६] |. अं टेक. 2०४] है (-) 
हु ं 4234 202] ५ 














 ॥00॥ ॥-५% 2४४ ॥+।२] ४ ऐ)४ 5 (७ ॥॥0४॥४६ डे 


अपकिरण और विषभमता 


लघ रीति सतन्न नं० १ 
स० म॒० >य+( जय) 








७-८ (६-८) 


"१२४ । 


कु रतमताननना.स्माम्महा॥ #बब 


लघु रीति सूत्र नं० २ 


च्च्‌ज- है। यो चोय-स (म-य)* 


से 


_ है। १७२- ४८ (६-८) 
प्र 


+-१"६ 

















- /रप 








पट “5१६ 

लघुरीति सूत्र नं० ३ 

चर / यचच्य यो जय 
* (2) 








>> ९७२ ( न बं८ ) 


5. 
ड्प ९ 


१४६ 


80727-टप0 ६0770079 700. 7 











७07-टप६ ६077790]9 700. 2 





० 42 5- 7 (9-5) 
8 | 


रा 48 (9-8) 


है। 724 


5॥076-2८प६ ६0777070!9 70. 3 


लक 
है। 772 ( -490 ) 


724 




















८-: 7*6 





48 


नोट ;--लघु रीति सूत्र नं० ४ का प्रयोग संतत श्रेणी में ही हो सकता है । 


१५० सांख्यिकी के सिद्धान्त . 


संतत श्रेणी का प्रमाप विचलन निकालना 
उदाहरण ६ 

निम्नलिखित वारंवारता वंग्न का प्रमाप विचलन ऋजु रीति तथा लघु रीति 
दोनों से निकालिए : 











प्राप्तांक विद्याथियों की संख्या 
०--१० द है 
१०-२० ट्र 
२०-३०. ११ 
२३०--४० १५, 
४०---५ ० १२ 
५०--६० ६ 


६०--- ० ३ 














१४१ 


अपकिरण और विषमता 





(57७8) 
है. (२ 


००.,४८2०४ ६५ 








००.९४८४७ ४ 
०% 6 है #ऐ 
००,८४५ 
५० है 
भ०८ ३३ 
००,९४० 


००,९४०» 





(57]) «/!%४ 


[0९ श्फ 
]% ॥|>॥९)०।२ 


के दि 


















































(रत 
०७० हे प८ (75) धु (प) 
0४ +--- 
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रर सांख्यिकी के सिद्धान्त 




















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इसी प्रश्न को यदि लघु रीति से किया जाय तो लघु रीति सूत्र नं० १, २, ३ 
अथवा ४ किसी भी सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है | सूत्र १, २ और ३ का प्रयोग 


उदाहरण न॑ ५ में दिखाया जा चुका है। अतः इस उदाहरण को लघु रीति सूत्र नं० 
४ से हल किया जायगा । 


अपकिरण और विद मता 





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पड सांख्यिकी के सिद्धान्त 




















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व. पद ८ १० न 73802 0 
चर. श्पृचथ उू5 75*8 ॥79॥7<5 





प्रमाप विचलुन का गुणक (60०पिटंश्ाए 6 #ब्रातेक्वत १९ए१६४४०॥) 
समूह के लिए, इकाई-निरपेज्ञ अपकिर्ण की माप निकालने के लिए. जिस 
भ्रकार मध्यक विचलनों को माध्यों से विभाजित किया गया था, उसी प्रकार प्रमाप 
विचलन को समूह के समान्तर मध्यक से विभाजित करके इकाई-निरपेक्ष प्रभाप विचलन 
प्राप्त किया जाता है। इन इकाई-निरपेक्ष प्रमाप विचलनों के द्वारा वंटनों की परस्पर 
तुलना की जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त ममनफल को प्रमाप विचलन का गुणुक 
( ००८मलगाई र् इ्रावेद्रात १6 एांत्र/ंणा ) कहते हैं । सूत्र रूप में प्रमाप| 





विचलन का गुणक-- ॥ आह 6. ) 
स० स० ९ 2 


उदाहरण नं० ६ में प्रमाप विचलन १५०८ है ओर वंठन का समान्तर मध्यक 
३४५ है इसलिए, इस वंटन के प्रमाप विचलन का शुणक - कप -- ४६ हुआं। 
रेट 
विचरण-गुणक (0०८८४०ं०य ० फद्नातंब्रातं०ा) 
प्रमाप विचलन के शुणक को १०० से गुणा करके प्राप्त गुणनफल को विचरण- 
गुणक कहते हैं। विचलन-गुणक माध्य से कुल विचलन दिखाता है और विचरण- 
गुणक माध्य से अ्रतिशतता विचलन ([6:८८॥८४४० १०४१४४00) | सूत्र के रूप 


:। विचरण-गुणुक म्+ १०० >< जन (ः ०० 2८ ) 
उदाहरण ६ के लिए विचरण-गुणक--प्रमाप विचलन का शुणक३८ १०० 


स्;+ ४६२८ १०० 
पड ४६ 


अपकिरण और विषमता १५५ 
प्रमाप विचलन के लाभ तथा कमियाँ 


प्रमाप विचलन सबसे अधिक प्रचलित अपकिरण का माप है | इसकी गणना 
करने में सब पदों के विचलनों पर विचार किया जाता है। इसके साथ-साथ इसका 
व्यवहार बीजगणितीय रीतियों में किया जा सकता है। इसके मूल्य पर उच्चावचनों 
((प८एप०८४०78 ) का प्रभाव भी कम पड़ता है। इसकी गणना करना अपेक्षाकृत 
कठिन है, इसलिए ऐसे स्थलों में जहाँ सरलता की अधिक आवश्यकता होती है, इसका 
उपयोग प्रायः कम होता है। विचलनों को चिहरहित करने के लिए इसमें उनका वर्ग 
लिया जाता है, अतएव चरम-पदों के विचलनों को अधिक महत्व मिलता है। इन 
दोषों के बावजूद भी जहाँ परिशुद्धता पर ध्यान रखना पड़ता है, वहाँ इसका उपयोग 
होता है । 


अपकिरण के मापों का परस्पर सम्बन्ध 

अपकिरण के मापों के बीच कोई पूर्ण रूप से निश्चित सम्बन्ध नहीं है । पर 
संमित और परिमित विषम (7700८:40८|ए ४८८७) वंठनों के लिए. निम्नलिखित 
सम्बन्ध लगभग ठीक निकलते हैं | 

(१) चत॒र्थक विचलन ८] >< प्रमाप विचलन । 

(२) मध्यक विचलन -द >< प्रमाप विचलन । 








अपकिरण के मापों की परस्पर तुलना 


विस्तार के बारे में यह बताया जा चुका है कि सिवाय गणना की सरलता के, 
इसका उपयोग करने में लाभ नहीं है। चत॒र्थक-विचलन के उपयोग के पक्ष में दो 
तक॑ हैं। (१) इसकी गणना करना सरल है और (२) इसका अर्थ स्पष्ट है ओर 
समभाना आसान । पर इसका व्यवहार बीजगणितीय रीतियों में नहीं किया जा सकता 
ओर इसके मूल्य में उच्चावचनों (£प८८०५८००७) का प्रभाव निश्चित नहीं है । 
इसका उपयोग केवल उन दशाओं में किया जा सकता है जहाँ परिशुद्धता पर विशेष 
ध्यान न दिया जाता हो । मध्यक-विचलनों. की गणना करना अपेक्षाकृत सरल होता है, 
साथ ही साथ इसका मूल्य प्रत्येक पद के विचलन पर निर्मर रहता है । पर इसका 
बीजगणितीय रीतियों में उपयोग नहीं किया जा सकता। उन दशाश्रों में जहाँ मध्यका 
आसानी से निर्धारित किया जा सकता है, इसका उपयोग अन्य अपकिरण की मापों से 





१५६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


अच्छा है। प्रमाप विचलन इन दोषों से बहुत कुछ मुक्त है। साधारणतया समूह के 
लिए समान्तर माध्य निकाला जाता है, इसलिए यह उचित ही है कि विचलन 
समान्तर माधथ्य से लिए जाएँ। पर उन दशाओं में जिनमें प्रमाप-विचलन की गणना 
कठिन और असुविधाजनक है जैसे यदि अनियमी (477८९2०/»४) वर्गान्तर हों या 
प्रथम या अन्तिम पद अनिश्चित हों, अन्य अपकिरण के मापों का उपयोग किया जा 
सकता है । 


विषमता 


( ७5४6ए7८5$ ) 


वारंवारता बंगनों को दो मुख्य भागों में बाँदा जा सकता है | एक तो वे जो संमित 
( $ए77776070%/| ) हैं ओर दूसरे वे जो असंमित ( 88ए7777607८4] ) हैं। चित्र 
सं० १ में दिखाया गया वारंबारता वक्र एक संतत संमित वक्र ( ८०7(ग्रपठ0$ 
8ण77760702] ८प४ए८ ) है। चित्र सं० २ और ३ में दिखाए गए वक्र 
संतत असंमित वक्र ( ८07#70प0०५७ 288ए77772:70८9) ८प४ए७७ ) हैं। पहला 
वक्रठ र रेखापर संमित है। दूसरे और तीसरे वक्र किसी भी रेखा पर संमित 
नहीं हैं । द 

किसी वक्र की विषमता ( ४८८७॥८४5 ) उसमें संमितता का अभाव है । 
इस परिभाषा के अनुसार चित्र सं० १ में दिया गया वक्र विषम (४६८७ ) नहीं है 
और चित्र सं० २ ओर ३ में दिए गए वक्र विषम हैं। विषम बंदनों (8&६८फ 
0॥9:700(/078 ) को दो भागों में बाँग जा सकता है| एक तो वे जिनमें वक्र का 
लम्बा सिरा चल के अधिक मूल्य वाले स्थानों को जाता है। ऐसे वंटनों को घनात्मक 
रीति से विषम कहा जाता है ( 09॥77०|ए ४६८७ ) | इसके विपरीत यदि वक्र का 
लम्बा सिरा चल के कम मूल्य वाजे स्थानों को जाता है तो वक्र को ऋणात्मक रीति 
से विषम कहा जाता है (76820 ए८ए श८८फ़ ) | चि० सं० २ में दिया गया वक्र 
 घनात्मक रीति से विषम -( 90अंधए००ए ४:०७ ) है और चित्र सं० ३ में दिया 


अपकिरण और विषमता १५७ 


गया वक्र ऋशणात्मक रीति से विषम है। चि० सं० २ और ३ की विषमताओं को 








गशीिि ७ मा० मं 
कफ 














चित्र संख्या २ 
हाण मा०ण भनु9 


चित्र संख्या ३ 

















श्प्द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


क्रमशः अनुलोम विषमता ( 9090ए८ 8:०७7८8$ ) और विलोम विषमता 
(7८82:ए6 $:०97255 ) भी कहा जा सकता है। 


विषमता के लक्षण ( (७४४5 ०६ 8६6ए७77655 ) 


किसी वक्र की असंमितता या विषमता को कई प्रकार से जाना जा सकता है। 
पहली परीक्षा भूयिष्ठ, मध्यका ओर समान्तर माध्य के मूल्यों पर निर्भर रहती है | किसी 
संमित वक्र के लिए भूयिष्ठं, मध्यका और समान्तर माध्य के मूल्य एक सम ( 66४0- 
८०] ) होते हैं| यदि वंगन असंमित या विषम है तो ऐसा नहीं होता | इसलिए यदि 
किसी वंटन के भूयिष्ठ, मध्यका ओर समान्तर माध्य बराबर नहीं है तो वह विषम या 
असंमित होगा | असंमित वढ्ों में ये माध्य, भूयिष्ठ, मध्यका और मध्यक के क्रम में 
रहते हैं | यदि अनुलोम विषमता ( [054076 8|:८णञ:7८5$ ) है तो भूयिष्ठक चल 
का कम मूल्य वाला पद होगा। इसके बाद क्रमशः मध्यका और मध्यक आएँगे। यदि 
विलोम विषमता ( 76840 7० $|:०फ7८५४ ) है तो सबसे कम मूल्य वाला पद 
मध्यक होगा, फिर क्रमशः मध्यका ओर भूयिष्ठक आएँगे । दूसरी परीक्षा मध्यका से 
अन्य पदों के विचलनों पर निर्मर रहती है। संमित बक्रों में मध्यका और समान्तर 
माध्य के मूल्य बराबर होते हैं| अरब समान्तर माध्य से लिए गए पदों के विचलनों का 
योग हमेशा शूज््य होता है । इसलिए, संमित बढ़ों में मध्यका से लिए गए विचलनों का 
योग भी ऐकात्म्येन ( 700700५|9 ) शूत्य होगा | विषम या असंमित बढ्ों में ऐसा 
. नहीं होता | यदि भूविष्ठक से बराबर दूरी में स्थित चल के मूल्यों की वारंवारता बराबर 
नहीं है तो यह वंटन विषम होगा | 
विषमता का माप ( (८६४प८८००८०६ 0६ 8[८९ए7255 ) 


कभी-कभी विषमता के माप की आवश्यकता पड़ जाती है। इसके लिए, कुछ 
मापों का उपयोग किया जाता है | ऐसे माों के लिए यह आवश्यक है कि किसी संमित 
वक्र के लिए उनका मूल्य शुत्य हो और वे इकाई-निरपेक्ष हों । इस प्रकार की इकाई- 
निरपेक्ष मापों को हम उन मापों का शुणक कह आए हैं। अ्रतर्व ये माप विषमता 
का गुणुक ( ००९८६६८८॥४ ०६ 5£6ए7८५७ ) कहलाएँगे । नीचे विषमता गुणक 
दिए, गए हैं : 

विषम वंटनों में भूयिष्चक ओर मध्यक के मूल्य अलग-अलग होते हैं । जैसे-जैसे 
विषमता बढ़ती जाती है वैसे-वैसे भूयिष्ठक ओर मध्यक के बीच का अन्तर बढ़ता जाता 
है। अतणव भूयिष्ठक ओर मध्यक के अन्तर को विषमता का माप भान्रा ज्ञा 


अपकिरण और विषमता श्पूछ 


सकता है । संकेत रूप में विषमता का माप म--भू (४- 2) हुआ । यदि बंट्न संमित 
हुआ तो भूयिष्ठक और मध्यक बराबर होंगे। और इसलिए भू--म (4-०) का मूल्य 
शून्य होगा | इसे इकाई निरपेक्षु बनाने के लिए अपकिरण के मापों से विभाजित किया 
जाता है, क्‍योंकि विषमता की माप यह बताती हैं कि चल के मूल्य किसी ओर अधिक 
मात्रा में एकत्रित तो नहीं हैं। इसलिए भूयिष्ठक ओर समान्तर मध्यक के मूल्य पर 
आधारित विषमता शुशक ( ८0९(#८९४४ 07 $|:८ए७7655 ) ष, भू--म (2-2५) 
को प्रमाप विचलन ( था ) या माध्य विचलन ( वि ) से विभाजित करके प्राप्त होगा । 


सूत्र रूप में 





या -> गन 
चि्‌ 
जबकि, प्र -- विषमता शुशक 
भू८- भूयिष्ठक 
म--समान्तर मध्यक 
चा >--प्रमाप विचलन 


चि"-माध्य विचलन 











67८ [--(,०९(४८९४६ 06 
357677255 
2:--:77006 
4 5८ थ7777600 ४ए८४३४८ 
7--52704270 8९२१9607 
8 +577627 9त60ए॥2007/ 


इस सूत्र में यदि भूयिष्ठक ठीक से निश्चित न हो तो भूयिष्ठक, मध्यका ओर . 
मध्यक के सम्बन्ध (भूयिष्ठ--मध्यक- ३ (मध्यक - मध्यका)) का उपयोग करके भूयिष्ठ, 


को हटाया जा सकता है । अर्थात्‌ 





प्र्-- ३(मध्यक - मध्यका) 
न्वा 
_. मी - मा? 
न्चा 
या 








्ड 3(2770776/70 ४९. -- 77०047) 


__ 3(2&- 77) 


0 





__ (47]060८ ४ए.-१60[॥ ) 
8 





०£ ] 


3(9-- 77) 
त्त््5 





१६० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२) दूसरा विषमता शुणक जिसका उपयोग किया जाता है, चत॒र्थवों और 
- मध्यका के मूल्य पर आधारित है | किसी विषम वंटन में मध्यका, प्रथम और तृतीय चतुर्थक 
के बीच में स्थित नहीं रहता । अब यदि तृतीय- चतुथथेंक और मध्यका के अन्तर 
में से मध्यका और प्रथम चतुथक का अन्तर घटा दिया जाय तो इस संख्या 
का उपयोग विषमना के माप के रूप में किया जा सकता है | यदि वंयन संमित 
ः हो तो इस राशि का मान शूत्य होगा । संकेत रूप में विषमता का यह माप ((चत॒३ -मा) 
- (मा-चत॒ ,)) होगा । इसे इकाई निरपेक्ष करने के लिए. तृतीय चतुर्थक और प्रथम 
“चतुर्थ के अन्तर (अर्थात्‌ अन्तर च॒तुर्थक विस्तार 47:०:-व०४ए८०|०-:०४०४०) से 
विभाजित करते हैं | सूत्र रूप में | 


घ््‌-- | (चतु३ - मा) >म। | - 7) - (7-- (१) ) 
(१५-५३ - 








(चतु 4 - चतु .) 
_. 33 पूछ रे मा नचतु,+- २ मा . हा 
(चतु३ - चतु ५) .. ((१४- ९:) 











इस माप का एक लाभ यह है कि इसका मूल्य+१ और-१ के बीच 
"रहता है । क्‍ 

विषमता सम्बन्धी समस्यात्रों को हल करते समय इस बात का ध्यान रखना 
चाहिए कि कभी-कभी वंटनों के भूयिष्ठकों का निश्चित मूल्य नहीं निकाला जा सकता । 


-अतणव ऐसे सूत्रों द्वारा इसकी गणना की जानी चाहिए जिनमें भूयिष्ठक-निर्धास्ण 
- की आवश्यकता न पड़े | 


पहले सूत्र के दो रुप( पर पज्त ) ( [5 


म्‌-मा _ 32/2--77 
क्‍ | घ-- ज्ञा ) | ली ) काले पियरसन विषमता 


“गुणक (९६7] ?297507?5$ (.0८(८८४६ 0 ७६९ए॥।८५७) कहलाते है क्‍योंकि 
: इनको काले पियरसन ने ही निकाला था। 














अपकिरण ओर विषमता १६१ 
उदाहरण ७ 
निम्नलिखित वारंवारता वंटन का विषमता शुणुक निकालिए | 
वेतन ( रुपयों में ) मजदूरों की संख्या 
०-१०. श्र 
१५०-- २० 9७ 
“२०--ह३े ० ३४ 
. ३०---४ ० ९८८० 
४०--४० १३६ 
५६०--६ ० । २३ 
६०---७ ० प््० 








हल 
उपरोक्त सारिणी का 
स० म०७-२६ रुपया 
भू०-:३७*९७ रुपया 
मध्यका --३२*६ रुपया 
चतु+-६'३२ रुपया 
चतु ८-८ ४२'८ रुपया 
माध्य विचलन -- १६ "४ रुपया 
(स० म॒० से) 
प्रमाप विचलन ८-८ १८६ रुपया 
विषमता गुणक 
-“ भू_२६- ३७७ 
(९) पर्चा पएदछ् 
म- भू _ २६- ३७९७ 
(२) ष८- द्चत दया 7 7 १३ 


(३) ष--३ ( जा) (स्व -)४- _ १६ 


न्‍्य -- "४६ 








११ 


१६२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


मा३_ _ /ए६- रब 
(0) १३ (जक्ञ)5३ (पर )5- २९ 
चतु३ -चपत॒. शर्मा 














५3) पल जह - बह, 
४२'८-६'३- २ (३२६) 
४२'८८- ६*३ 
- १३"१ 
नल्णपदृद्यू 7 रे६ 
47 ६76 200४९ ६20]6 
8. 8... +:०290 79०८5 
2. कत37य 79665 
07. 5२३2*6 ॥प[0268 


(0), 93 +प9688 
(023 +42'8 +प्र०९६७ 
और (0, ( 4077 8. 2. )-- 76.5 +7९८७ 
७. 7/2.5::78"9 +प९८5 
(.0९८६९८७7०४ ०६ $६०97255 


3-2 29-+-- 37 7 

(2) | प्रा तए पक त - 46 
8-2 29-- 37«7 

(2) ]ल्‍ ४८८ 76,$. 75 +- 33 


0० (72७ (ईह0) 








428 -- 9.3 


अपकिरण और विषमता १६३ 


उपरोक्त उदाहरण में विषमता शुणक निकालने के सभी सूत्रों को समम्माया 
गया है | यह स्पष्ट है कि इस उदाहरण में विषमता ऋणात्मक (76282४:०७) है 
क्योंकि समान्तर मध्यक का मूल्य भूयिष्क ओर मध्यका दोनों ही से कम है। यदि 
समान्तर मध्यक का मूल्य भूयिष्ठक या मध्यका से अधिक होता हे तब विषमता घनात्मक 
([0909८) होती है । 
विषमता के उपयोग क्‍ 

यह बताया जा चुका है कि विषमता से हमें यह मालूम होता है कि कोई वारं- 
वार्ता वंठन प्रसामान्य (70777%) है या नहीं । यदि बंट्न प्रसामान्य या संमित है 
तो उसके मध्यक, मध्यका ओर भूयिष्ठक का मूल्य बराबर होगा ओर मध्यका से दोनों 
च॒तुर्थक बराबर की दूरी पर होंगे । यदि यह सब बातें किसी श्र णी में नहीं पाई जातीं 
तो वह प्रसामान्य नहीं है । क्‍ 

विषमता के माप हमें यह बताते हैं कि किसी वारंवारता वंग्न में विषमता है 
अथवा नहीं और यदि है तो वह ऋयणात्मक है या घनात्मकक और इसके अतिरिक्त 
विषमता शुणक यह भी बतलाते हैं कि किसी वंटन में ऋणात्मक या घनात्मक विषमता 
की मात्रा कितनी है। 
। विषमता उन विज्ञानों में अधिक उपयोगी होती है जहाँ प्रयोगशाला में अनु- 
संधान सम्मव हों | सामाजिक शाज्रों में इसकी उपयोगिता इतनी अधिक नहीं क्‍योंकि 
इनमें प्रसामान्य या संमित वंदन (0779| 0/8/70प07) का पाया जाना लगभग 
असम्भव ही है । आर्थिक तथा सामाजिक अनुसन्धानों में विषमता का पाया जाना : 
लगभग अनिवार्य ही है। 


प्रश्न ( अपकिरण ) 


(१) अपकिरिण किसे कहते हैं? अपकिश्ण सापने की भिन्न-भिन्न 
प्रणालियों को बतल्ाइए और इससे क्‍या लाभ हैं यह भी समभ्काकर लिखिए । 

क्‍ ( बी० कॉम०, १६४४ ) 

(२) अपकिरण की परिभाषा दीजिए और बतत्लाइए कि निरपेज्ञ और 

सापेक्ष अपकिरण में कया अन्तर होता है । ( बी० कॉम०, १६४६ ) 

(३) किसी वारंबारता वंटन के लक्षण ज्ञात करने की प्रणालत्रियों का 

बर्णन कीजिए और उनमें भेद समकाइए। . (बी० कॉम ०, लखनऊ, १६३७) 

(४) मध्यक विचलन, चतुर्थक विचलन व ग्रमाप विचलन की परिभाषाएँ 


१६४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


दीजिए ओर उनके विशेष लक्षणों का भेदीकरण कीजिए । किस प्रकार की सम- 
स्याओं में किस प्रकार के विचलन को काम में लाना चाहिए, विस्तारपूर्वक 
लिखिए | 

(५) “कोई दो वारंवारता वंटन या तो माध्य के अनुसार भिन्‍न हो 
सकते हैं या अपकिरण के अनुसार या माध्य तथा अपकिरण दोनों के 
अनुसार ।” द 

सममाकर लिखिए कि किस प्रकार किसी वारंवारता बंटन के लक्षणों 
को जानने के ज्षिए अपकिरण, माध्य का अनुपूरक है। 

(६) प्रमाप विचलन के गुणों व अवगुणों की व्याख्या कीजिए | 

(७) विषमता (४८०ए7८७५) की परिभाषा दीजिए। विषमता व अप- 
किरण में क्या अन्तर है ? विषमता माप से कया व्यावहारिक लाभ होता है ? 

(८) विषमता मापने के भिन्‍न-भिन्‍न सूत्रों को लिखिए तथा यह भी 
लिखिए कि किस प्रकार के प्रश्नों में किस सूत्र को काम में लाना चाहिए। 

(६) अनुलोम विषमता व विज्ञोम विषमता से क्या मतलब सममते हैं ९ 
दोनों में भेद समझा कर लिखिए | 

(चतुर्थकु-विचलन) 

(१०) अ की एक वर्ष की मासिक आय का चतुर्थक्ष विचलन तथा 

गुणक निकालिए | 











माह । मासिक आमदनी 7 
९ श्३्६ 
रे १५० 
रे १५१ 
डे श्पूश 
पू १५७ 
दर श्प्र्प्य 
७ १६० 
८ १६१ 
६ १६२ 
१० १६२ 
११ १७३ 
१२ श्षपू 





(0748८0८७॥ 70]605 | $(4085८8 ०, 8 5) 


अपकिरण और विषमता १६५ 


(११) निम्नलिखित सारणी से, जिसमें विद्याथियों की ऊँचाइ्याँ दी 
हुई हैं, अधे-अन्तर चतुर्थंक विस्तार तथा चतुर्थक विचलन का गुणक ज्ञात 
कीजिए । 








ऊँचाई ( इंचों में ) विद्यार्थियों की संख्या 
प्र २५ 
प्र, २१ 
५७ द श्द 
प€ | २० 
६१ श्प्र 
६३ र्‌४ 
द््प्‌ २२ 
६७ श्प्प 





द्६ २३ 





(?:३८४८३४) ?2709]९775 47 9020800$ ४०. 86) 


(१२) निम्नलिखित सारणी में ५६ विद्याथियों के अथ॑ंशास्त्र में प्राप्तांक 
दिये हुए हैं । इससे अधे-अन्तर चतुर्थक विस्तार तथा गुणक निकालिए । 








प्राप्तांक-वर्ग विद्यार्थियों की संख्या 
०-१ ० डं 
१५०--२० पद 
२०--३ ० २२ 
३०---४ ० १४ 
'४०---*० । १२ 
५०---६ ० ह द्‌ 
६६००-७० डे 














(?7४ब८एं८तर 2700]6778 7 580478708 ।२०. 8 ए-क्तीए फसल एप्टशटण७ कं उल्पआमंल ए०, 87), 


शव सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(मध्यक विचलन) 


(१३) किसी मुहल्ले में १८ मकानों का किराया निम्न सारणी में दिया 
हुआ है : 


राय एकता सा काया 2 टपाधााभा पाउ >ाताय 44५५ फ्दाधदा5क्‍ 0५५ कण 2450 १८०ल्‍:ध पता पाना पा नपआवयपता पता वाक्‍। 











. रु० ञ्ा० रू० आ० 
प्‌ दध् ६ ४ 
है ० | ० 
है ४ & ९ 
है व्य है दर 
है है. है ० 
ढ़ | श२ रे ० 
४. ० ३ -श२ 
पे ० फू 0 
डं प्र ३ ० 








इस वर्ग का सध्यक बिचलन निकालिए | 
(बी० काम०, लखनऊ, १६३८) 
(2:4८४८३] ?709]67005 49 808058८४ )५०, 77) 
(१४) एक सरकारी ऋण-पत्र के निम्नलिखित मूल्यों से मध्यक विचलन 
(समान्तर मध्यक से) तथा उसका गुणुक निकालिए | 
रुपये १००३, $ है, 2, $, 2, #६, ३६, ६, ठे... 


(4०४९) ऐ709]678 क॥ 50408805 २०, 78) 


अपकिरण ओर विषमता ५१६७ 


. (१५) निम्नलिखित बंटन से मध्यक विचलन निकालिए : 











दुर्घटनाओ्रों की संख्या व्यक्ति जिनकी दु्घग्ना घटी 
बा १५ 
१ १६ 
२ २१ 
रे १० 
है + '. १७ 
फू ८ 
दर ' हुं 
७ २ 
८ १ 
€ र्‌ 
५० र्‌ 
११ जा 
१२ . रे 
योग १००७ 








(?£३८४८४ ?7:00]6775$ 40 $£409६709 २०. 8०) 
(१६) निम्नलिखित अंकों से मध्यक विचल्नन निकालिए ॥ यह्द इस वर्गे 
की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रक्राश डालता है ? 
एक वर्ग विशेष में पति तथा पत्नी को उम्रों का अन्तर : 








वर्षों में अन्तर र्््ः वारंवारता 

ह ० ५ ह ह ४४६ 
४-१० ७०५ 
९०-९४ ५०७ 
१४--२० ' सर्द 
२०-२४ १०६ 
२५-३० शशि पर 
३०-३५ ' १६ 
३४--४ ० है. 











( बी० कॉम०, बम्बई, १६३६ ) 
( ?728८४८४ ?#076708 7 508038008 7९०. 82 ) 


श्ध्ष्र सांड्यिकी के सिद्धान्त 


(१७) निम्नलिखित बंटन से मध्यक विचलन तथा गुणक निकालिए : 














सेंटीमीय्रों में ऊँचाई कालेज के विद्याथियों की संख्या 

१५००-२१ ०४ है. 
१५०५-१०६ १४ 
११०--१ १४ ६० 
११५४-१ १६ श्श्ष् 
१२०-१२४ २०६ 
१२४-१ २६ श्ध्द 
१३०--१ ३४ ३८० 
१३४-१२९ ४५० 
१९४०--१४४६ ५०० 
४३-४६. उ३० 
१५४०--१५४४ २६० 
१५४-१४६ श्स्द् 
१६०-१६४ ६६ 
१६४-१६६ र्ष्द 
१५७०-२१ ७४ १२ 

योग २६७४ 








( 0:2८00॥४ ?#00]86705 47 57%0800९$ 7२०. 84 ) 


प्रमाप विचलन 


(१८) निम्नलिखित दो मालाओं का प्रमाप विचलन निकालिए । इनमें 
से कोन सी अधिक विचरण दिखाती है ? 


अपकिरण और विषमता १६६ 











माला अर माला तब 
श्६२ व्प्रे 
श्प्व्य ट्य्छ 
२३६ ६ रे 
श्र १५०६ 
श्व्य्ड १२४ 
२६० १९२६ 
रेष्य १२६ 
२६ १ १०१ 
३३० | १०२ 
रडरे श्ण्प्प 





( पी० सी० एस०, १६३४८ ) 

( 07#2८0८%॥ 709]6778 ॥7 50%&0४87८९8 ०, 93 ) 

(१६) निम्नलिखित सारणी से, यह बताने के लिए कि क्षेत्रफल या . 

उत्पत्ति में से किसप्रें अधिक विचरण है, प्रमाप विचलनों को निकालिए । 














वर्षे क्षेत्रकल (एकड़ लाखों में) उत्पत्ति (४०० पौं० प्रति गाँठ के 
' हिसाब से लाख गाँठों में ) 
१६१४-१५ १४२ ४६ 
“१५ ११४ १ 
“९७ श्र पूठ 
बा १५४ ४३, 
“7१६. ९४४ ह ४० 
“२० १४३ और 
“२१ १४४ ६ 
“रेर श्श्छ ६० 
“रेरे १३१६ ध्रे 
१६२२-२४ क्‍ १५४ ६० 











( 772८0८३ 0:00]8778 47 $६&८50८$ ०, 92 ) 


१७० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२०) निम्नलिखित सारणी में एक फैक्टरी के विभिन्न मजदूरों द्वारा 


प्रतिदिन उत्पादित वस्तुओं की संख्या दी गई है । वस्तुओं के उत्पादन का सध्यक 
मूल्य तथा प्रमाप विचलन मालूम कीजिए तथा श्रमाप विचलन की अर्थ 


सूचकता भी स्पष्ट कोजिए । 





वस्तुओं की संख्या | मजदूरों की संख्या वस्तुओं की संख्या | मजदूरों की संख्या 














श्ध्र रे श्३्‌ | १७ 
९६ ७ २४ १३ 
२० ११ २५ प्र 
२२ *श ६ दर है 
२२ श्ट | २७ ४ 





(बी० कासम०, कलकत्ता, १६३७) 
(?+4८८४८०३] 2:00]6708 40 5/408/08 +२०. 97) 


(२१) निम्नलिखित सारणी से प्रमाप विचलन निकालिये | 





परिवार में व्यक्तियों की संख्या परिवारों की संख्या 





१६६ 
प्रषर 
पूट० 
४३३ 
श्ध्द 
श्ष्ट 

७७ 

४१ 
ह २० 
१७० ह ् 
११ ू्‌ 
१२ ह १ 


2) ॥] &छ 0 हक ७ 0 शत ७ 








योग २,२६८ 














(एम० ए०, इलाहाबाद, १६४२) 
(?72८६४८४ 709]6705 49 502080८$ ०, 97) 


अपकिरण और विषम्तता १७१ 


(२२) निम्नलिखित सारणी से, जिसमें हाउस आफ कामन्स. के ४४२ 
सदस्यों का आयु-वंटन दिया हुआ है, प्रमाप विचलन निकालिए। 























आयु | सदस्यों की संख्या 
२०- जा का 
३० -- । ६१ 
४०- श्ड२ 
५४० -- १५३२ 
६०-- १४० 
७० -- पर 
0 - र्‌ 
योग क्‍ । छूढर 





(7?/290८(॥८५) "”ै।ण-+/ण-/ण-ण- छछतकदाफकाब्यथ छापताएठ 9) 70 ७9६28009 ।५०. 5 
(२३) निम्नलिखित सारणी में दो फैक्ट्रियों के मजदूरों, (जिनकी 
आमदनी कालम न॑ १ में दी हुई है) की संख्या दी गई है। दोनों फैक्ट्रियों 





की साप्ताहिक आमदनी का समान्तर मध्यक तथा प्रमाप विचलन निकालिए | 








मजदूरों की संख्या 
साप्ताहिक आमदनी का विस्तार 
( रुपयों में ) 

फैक्ट्री अ .. फेक्ट्री ब 

४- ५ ७४ ७१ 
६- ८ २७६ ३२७६ 

. व्+>१० ' .. र०४ हु ३०२३३ 
१०-१२ ११० श्र 
१२०१४ श्ष श्व्य 
१४-१६ । ० है १ 

१६- १८८ ९ डे 
रैण-२० & &्‌ 
२०-२२ ० डे 











(एम० ए०, कलकत्ता, १९३६) 
(?९४३८४८६ 0709]९005 |॥ 5040500$ +२०. 7००) 


१७२ सांलियकी के सिद्धान्त 


(२४) निम्नलिखित सारणी में दो स्थानों के मजदूर परिवारों में प्रति 
परिवार का प्रति माह के भोजन-व्यय का वारंवारता वंटन दिया हुआ है। दोनों 
स्थानों पर व्यय का समान्तर मध्यक तथा प्रमाप विचलन निकालिए | 

















ण््ि हा परिवारों की संख्या 
व्यय का विस्तार ( प्रति माह 
रुपयों में ) 

स्थान अ स्थान ब 
रू० ३-- & सदर ३६ 
7 ६-- ६ २६२ स्प्ड 
रा ६--१२ श्८६ ४०१ 
2. १२-१४ २१२ २०२ 
१ १४-- १८ ५६ हम 
$' ९८८;-- २१ श्् २१ 
हैं २१--२४ २ प्‌ 





(पी० सी० एस०, १६४१) 


(274८८॥] 0£079]27$ 9॥ $६405005 ०. 7० 7) 
(२५) निम्न सारणी में ३०६१ धान-कटाई के प्रयोगों का परिणाम दिया 
हुआ है। समान्तर मध्यक तथा प्रमाप विचलन निकालिए । 


अपकिरण और विषसता १७३ 














प्रति एकड़ धान की पैदावार ( पौंडों में ) प्रयोगों की संख्या 

००- ४०० २३२५६ 
४०१-- ८०० डप्पर्‌ 
ट्एू०१---१२०० ६०४ 
१२०१--१६०० २७६ 
१५६०१--२० ०० | ४९६ 
२००१--२४० ० श्३३ 
२४०१---रृ८ू ० ० २१५७ 
र८ू०१--३२० ० बा 
३२०१--३६० ० ६४ 
२३६०१---४० ० ० २३ 
४००१-४४ ० ० ९४ 
४४०९---४व्य ० ० द्‌ 
डंटए२०१---४५२० ० दि १ 
.......... योग... | ३०६१ 





| (7#2८702|॥ 7700]6॥75$ ॥7 5%79708 ४०, 7०2) 
(२६) निम्नलिखित अंकों से मध्यक तथा विचरण ( एथ४9706 ) 
निकालिए । 
































फैक्ट्री अ फैक्ट्री व 
मजदूरी 
मजदूरों की संख्या | मजदूरों की संख्या 
४० २० से अधिक नहीं ३० प्‌ 
४० रु० से अधिक लेकिन ८० २० से कम २५ ३२ 
8 
१२० १६० छ५्‌ ४० 
ध्६० २०० र५ रण 
२०० . २४० ? १३ २० 
_खू श र२७लछ। 5: ४ ?? रब० + ?! २४ फू 
रण०ण ? ३२० पट धू 
योग | २० | | २० 0 





(072८002। ?700]6775 ॥7 398708 +५०., 708) 


१७४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२७) एक कॉलर (००|27) का व्यापारी नवयुवकों को लुभाने के लिए 
नये तरह के कॉलर बनाने की सोच रहा है। विद्याथियों के एक वर्ग के गले की 
परिधि निम्नलिखित हैं : 














मध्य-मूल्य (इंचों में) विद्याथियों की संख्या 
१२९५ है 
१३ १६ 
१३९५ ३० 
१४ ६३ 
१४५, ६६ 
पप्‌ र&६ 
१५४५ .. एप 
श्द्‌ ९ 
१६" १ 





प्रमाप विचलन निकालिए तथा (सूत्र स० म० -- ३ प्रमाप विचलन से) 
यह मालूम करिये कि वह सबसे बड़ा तथा सबसे छोटा कॉज्ञर किस माप कां 
बनाये ताकि उसके सब ग्राहकों की आवश्यकता पूरी हो सके। इस बात का 


ध्यान रहे कि कॉज्र गल्ले की परिधि से डे इच्च बड़ा पहना जाता है | 
(5. (079, +९४]. 7949). 


(2/4807९६ ?/00!6775 |7 50%050८8 ०, 709) 
२८) निम्नलिखित वारंबारता बंटन का प्रमाप विचलन निकाल्िए | 














वारवारता 

५५ से अधिक लेकिन ६"५ से कम है 
६५ हट छू 9) * २ 

७१ प्‌ 92 व्यः्प्‌ 22 । प्‌ 
८५ 93 े एष्पू . है॥ ] ७७ 
ध्'पू ्। १ 0 *५्‌ 97 | +घ] 
१०५ | ११४ ? ४ 

१ १ ष्पू )% १ र्ष्पू १9) २ 








(एम० ए०, आगरा, १ ६३४) 
(272८7८8 9:00]675 40 $0480९ 
(274८८८६ 0700]675 [0 $६205800$ १०, 57 7) ' 


अपकिरण और विषमता श्छ्फू 


(२६) किसी व्यवसाय के दो फर्मो के मजदूरों की मासिक मजदूरी का 
विवरण निम्नलिखित है: 








फर्मझ | फर्म ब 
मजदूरों की संख्या प८६ क्‍ द्ध्द 
आओसत मासिक मजदूरी ५२"५ रुपये ४७"'५ रुपये: 
मजदूरी-वंटन का विचरण १०० .. १२१ 











.... (अ)अया ब में से कोन सी फम अधिक मासिक मजदूरी देती हू? 

(ब)अ या ब फम में से किस फर्म की मजदूरियों में अधिक 
विचरण है ? 

(स) दोनों फर्म अ और ब के कुल्न मजदूरों की (१) माध्य मासिक आय, 
तथा (२) मजदूरियों का विचरण निकालिये | 


द (आईं० ए० एस०, १६४१) 
(?72८0७९३॥ ?7009[6775 ॥7 5&08009 २०. 777) 


( विषमतदा ) 
(३०) निम्नलिखित अंकों से ,ट्वितीय अपकिरण-घात ( 5९८०मत 
77077८77 0£ 8480०78707 ) तथा विषमतागुणक निकालिए | 








पद-मुल्य वारवारता 

३५ ३ का 
४ 'पू ७ 
जप श्र 
६५ ६० 
७५ व्य्प्‌ 
५ ३२ 

रे सी  ऊआआछआ फऋफझहह  उउ ऊ##रलस्‍ल्‍+ ४ ६५ प् 








(772८002॥ 7709/6708 ॥0 ७६2/8005$ ।२०. 777) 


१७६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(३१) निम्नलिखित की माध्य मजदूरी तथा विषमता गुणक निकालिए। 


३५ व्यक्तियों की मजदूरी ४ रु० ८ आ० प्रति व्यक्ति के हिंसाब से 
४0 99 ११) ५-८ 9» १7 क्र 
थ्द १59 १) ६--क + १3 ११ 
१०० १9 १9 ७ कफ 9 १9 ११ 
१२५ 3) १9 ८ू--क+८5क + 99 १॥ 
८७ १9 95 €-“-:ऊ 9) 77 १9 
डरे 9) 59 | १०केाक , १9 १9 
२ 9१ १9 ११ >क » १9 १7 


( 7/2८६8 ८ ?+०0]०४१७ ॥7 58500 ९०. 72० ) 

(३२) निम्नलिखित सारणी से, जिसमें २३० व्यक्तियों की मजदूरी दी 

हुई है, अपकिरण गुणक तथा विषमता गुणक निकालिए तथा उनकी अथथे- 
सूचकता भी स्पष्ट कीजिए । 




















मजदूरी व्यक्तियों की संख्या मजदूरी व्यक्तियों की संख्या 
रू० ७०-- व्य० १२ रू० ११५०--१२० ५० 
'व्य०-- ६० रद १२०--१३० प्‌ 
६०-- १० ० २५ १३०-- १४० २० 
१००--११० ४२ १४०--१४० व 














( ?772८00३ 2#809]6075 4 5(ब्र8:05 २०, 722 ) 

(३१३) निम्नलिखित सारणी में, नगर अ तथा ब॒ का आयु-वर्गो' में, 

जनसंख्या वंटन दिया हुआ है। उनकी वारंबार .ओं के विचलनन तथा विष- 
'मता की तुलना कीजिए | 





अपकिरण और विष मंता 




















१७७ 
आयु-वर्ग ___ जनसंख्या ( हजार र जनसंख्या ( हजार में ) 
श्र |. बऋष्े 
०--१० श्द् १० 
१०---२० १६ र्‌ 
२०--है ० १५ २४ 
हे ०---४ ० १२ ३२ 
४०--४० १० २६ 
५.०---६ ० फ्‌ ११ 
६०-- ७ ० र्‌ रे 
७० से अधिक २ ९ 
( बी० काम ०, आगरा, १६४७) 


( ?27३8८0८%| 72009]6775 47 5६8058008 7२०. 725 ) 


(३४) निम्नलिखित सारणी से यह बताइए कि किस कक्ष सें विषमता 
गुणक अधिक है। 














प्राप्तांक कक्ष श्र के विद्यार्थी | कक्ष ब के विद्यार्थी 
००२१० १ ० 
१०-२० १.4 प्‌ 
२०--३ ० २१० १० 
३०-४० २२ श३३े 
४०---५ ० ३० डर 
५०-६० ३ ३० 
६०---७० १० १० 
७७०--ट८:८० की ह 
८०---६ ० १ २ 








१२ 


. (?#१८८८नो ए+;00960 47 5ध४8४८४ ०, : 24) 


श्ष्ष सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(३४) निम्न सारणी में अ ओर ब दो फैक्ट्रियों के मजदूरों की साप्रा- 
हिंक मददूरी दी हुई है। पियरसन के सूत्र के द्वारा विषमता शुणक निक्रालिए | 

















कि थे मजदूरों की संख्या ___ मजदूरों की संख्या 
साप्ताहिक मजदूरी (रुपयों में) फैटी अर गण कैप व 

व्यू १२ है ३० 
१२-१६ ६, रेप 
१६-२० य्य क्‍ ४० 
२० - २४ १० ४४० 
२४- रद र ७० 
र८- ३२ ३० र५ 
३२- ३६ ४ १५ 
शेदु- ४० ५० १३ 
४० - ४ दु०ण १२ 
डं४- हेप्य ७० १० 

योग ३१० ३१० 











( 7॥40 ९६ 7/096॥78 4॥ 50808708 ०, 25 ). 


(३६) निम्नलिखित सारणी से चतुर्थक विचलन तथा विषमता गुणक 
निकालिए | 











चल... वारंवारता चल वारवारता 
४-- व ३ २४-रथद १५२ 
वर | १० | रब-३२ १० 
१२-६६ श्द् . ३२-३६ ६ 
१६-२० ३० ३६-४० २ 
२०-२४ १५ 











( 7728000९४॥ ?7096705.7 5040502८$ ०, :26) 


अपकिरण और घिषमता १७६. 


(३७) निम्नलिखित सारणी, ( जिसमें ४०० परीक्षार्थियों के प्राप्तांक 
दिए हुए हैं ) से प्रमाप विचलन निकालिए, दथा साथ ही विषमता गुणक भी 
ज्ञात करिये। 











प्राप्तांक परीक्षार्थियों की संख्या 
१० से कम ३० 
२० | ११ 3० 
३० १8. १7 १२० 
४० 9 399 श्ष्द 
५० ,) 99 १६२ 
६० ,) 397 श५४ 
3० ४9 १9 ड्द्यर्‌ 
टःछ० १9 १5 पू०० 





(?74९८:८% 2/0/0]6878 40 ७8४809008 7५०. १27) 


(३८) निम्नलिखित का प्रभाप विचलन, चतुर्थ विचलन तथा विषमता 
गुणक निकालिए | 











वर्ग क्‍ वारंवारता 

० हे ह डे 
- रे+ ६ पद 
६०-१० १० 
१०-१२ १४ 
१२-१५ ५९६ 
श्प्न्श्य २२ 
१८-२० र४ 
२०-२४ स्प्र 
२४-२५ द २० 
२५-३०. श्ड 
३०-२२ द १२ 
३२-३६ ७ 





( 772८7 7?707678 ॥7 50405005 ०, 728 ) 


श्८० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(३६) निम्नलिखित सारणी से माध्य विचलन, प्रमाप विचलन तथा 
चतुर्थेक विचलन निकालिए | साथ ही विषमता गुणक भी निकालिए | 








मजदूरी ( रुपयों में ) मजदूरों की संख्या 
० से अधिक द्‌८५ 

१० ,, 9१ 4०० 

२० 99 77 २ र 

३० ५ 399 र्द& 

४० 9). १9 २०€ 

|० 9 39) ७३ 

६० ,; १ ५० 

3० ५ 9 ० 








(77407९॥] ?700]6ा5 व॥ 5(408008 ०, 729) 


(४०) निम्नलिखित सामग्री से काल पियरसन का विषमता गुणक ज्ञात 
करिये। 











प्राप्तांक परीक्षाथियों की संख्या 

० से ऊपर १५० 
१० 9 ५ १४० 
२० 99. 49 १०० 
३० 9 #»# ह . 5० 
४० |)  +) ८० 
५० ) # 3० 
६० , # ३० 
७० ) 4) १ ढ़ 
८० ., +# ० 





(बी० काम०, इलाहाबाद, १६४३) 
(0728८0९३।| 97009]6008 $7 5:905805 ३०, ३3 ०( 





अ्रध्याय ९ 
देशुनांक 
(770065 'र५॥००७१४४) 


दो समग्रों या सामग्रियों की तुलना करने के लिए -माध्यों का उपयोग किया 
जाता है क्‍योंकि वे उनकी केद्धीय ग्रब्ृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। पर इस उपयोग 
में एक बहुत बड़ी कमी है | वह यह कि केवल उन्हीं सामग्रियों की परस्पर तुलना करना 
सम्मव है जिनकी इकाइयाँ एक हों | अगर इकाइयाँ अलग-अलग हों या समग्र 
विभिन्न प्रकार के समहों से बने हों तो ऐसी ठुलना सम्मव नहीं है । इसके साथ-साथ 
यह सामग्री कारण-बाहुल्य से प्रमावित होती है ओर बहुधा इन कारणों को जानना 
सम्भव नहीं हो पावा | इसलिए, उनमें होने वाले वास्तविक परिवतनों को भी प्रत्यक्ष 
रूप से नहीं नापा जा सकता । ऐसे स्थानों में जहाँ वास्तविक परिवर्तनों को नापना 
कठिन हो या जहाँ वे किए ही न जा सकें, सापेक्ष परिवर्तनों को नाप कर परिवर्तन 
के परिणाम का अनुमान लगाया जाता है । 

इन परिवतेनों के परिणाम का अनुमान लगाने की आवश्यकता पड़ने का 
कारण यह है कि प्राय: घटनाएँ एक समान न होने पर भी कुछ समरूपता (शंधा- 
]9070ए) रखती है। इस समरूपता के कारण हम घटनाओं को “सामान्य” (2०76:4|) 
रूप में जानने का प्रयत्न करते हैं, जैसे विभिन्‍न वस्व॒ुओं के मूल्य में होनेवाले परिवतनों 
की समरूपता के कारण हमें सामान्य-मूल्य-स्तर (8०7०४:०| 97706-०ए४८!) में होने 
वाले परिवर्तन का बोध होता है | हम यह मानने लगते हैं कि सामान्य-मूल्य-स्तर जैसी 
कोई चीज है | पर सामान्य-मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन प्रत्यक्ष रूप से नहीं नापे. 
जा सकते क्योंकि ये परिवर्तन कारण बाहुल्‍य के प्रमाव मात्र हैं ओर इसलिए इनको 
नापना असुविधाजनक ओर कभी-कभी असम्मव होता है। ऐसी दशाओं में सापेक्ष्य 
परिवर्तन (:20[80ए८ ८४५786) नापे जाते हैं। केवल सामान्य-मूल्य-स्तर के साथ 
ही यह बात हो, ऐसा नहीं है, अन्य स्थानों में जेसे निवर्हि-व्यय (८०५६ 





श्र सांख्यिकी के सिद्धान्त 


॥एंग्र8 ), औद्योगिक उत्पादन (86प्रशंडाद 97040८४०7) आदि में भी 
वास्तविक परिवर्तन नापना सम्भव नहीं हो पाता। इसलिए, सापेक्षु-परिवर्तन को नापने 
की आवश्यकता पड़ती है। 
ये परिवर्तन या अन्तर समय या स्थान, दोनों, के साथ हो सकते हैं, अर्थात्‌ 
किसी एक वर्ष में सामान्य-मूल्य-स्तर दूसरे वष से मिन्‍न हो या किसी एक स्थान का 
निर्वाह व्यय दूसरे स्थान से अज्ञग हो | यहाँ जो तुलना विभिन्‍न वर्षो या विभिन्‍न 
स्थानों के सामान्य मूल्य या निर्वाह-व्यय के बीच की जायगी, वह सापेक्ष होगी । 
प्रश्न उठता है कि ये सापेह्य परिवर्तन किस प्रकार जाने जाते हैं! इसकी 
रीति यह है कि एक साधारण हर (८0777707 ठे5709777%:07) का उपयोग किया 
जाता है | इस साधारण हर का उपयोग करके वे शशियाँ एक प्रकार की इकाइयों के 
रूप में आ जाती हैं ओर इसलिए इनकी परस्पर-ठुलना करना सम्मव हो जाता है। 
जैसे अगर सामान्य-मूल्य-स्तर में होने वाहो परिवर्तन को जानना हो तो पहले किसी 
निश्चित वर्ष में विभिन्‍न वस्तुओं के मूल्य जान लिए जाते हैं और जिस वर्ष के लिए 
परिवर्तन की गणना करनी होती है उस वष के मूल्यों को पहले के प्रतिशत के रूप में 
रखा जाता है | प्रतिशत के झूप में रखने के कारण सब मूल्य एक ही इकाइयों के रूप 
में थ्रा जाते हैं और इसलिए उनकी परस्पर ठुल्लना सम्भव हो जाती है। मान लीजिए 
किसी वस्तु का मूल्य १६५० में ४ रु० सेर था और १६५१ में उसका मूल्य ५ रु०. 
सेर हो गया | अब अगर १६५० में उत्तका मूल्य १०० माना जाय तो १९५१ में 
उसका मूल्य ३»८१००--१२५ हो गया। इस संख्या को दशनांक (70 ८5% 
ग०70८४ ) कहते हैं और यह बताता है कि १६५१ में इस वस्तु का मूल्य उसके 
१६५० के मूल्य से २५ प्रतिशत अधिक था | इस उदाहरण से यह न समझना चाहिए, 
कि देशनांकों का उपयोग एक ही वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवतेनों की सापेक्ष 
नाप है। वास्तव सें यह एक समूह में होने वाले परिवतनों का सापेन्षु नाप है। जैसे 
अगर वस्तुओं का एक समूह क, ख, ओर ग है और अगर क का मूल्य रुपये प्रति सेर, 
ख का मूल्य रुपये प्रति गैलन ओर ग का मूल्य रुपये ग्रति दर्जन के अनुसार हो और 
इस समूह के मूल्य में होने वाले परिवर्तन की गणना करनी हो तो देशनांकों का 
उपयोग होगा । पहले इनके मूल्यों में होने वाले प्रतिशत परिवर्तेन की गणना कर ली 
जायगी ओर इनका माथ्य, सामान्य-मूल्य बताएगा, जिसे देशनांक कहा जायगा । 
देशनांक की संक्षेप में सवमान्य परिभाषा देना कठिन है, क्‍योंकि व्यवहार में 
देशनांकों की गणना अनेक रीतियों से की जाती है और उन सब को एक परिमाषा 




















देशनांक १८३ 


के द्वारा सीमित क्षेत्र में नहीं रखा जा सकता। पर आरम्भिक दृष्टिकोण से देशनांकों 
को पदों के समूह की केन्द्रीय प्रयूत्ति का माप! कहा जा सकता है । इतना ध्यान 
रखना चाहिए कि दिशनांक! एक सांख्यिकीय विधि है जिसके द्वारा ऐसे स्थलों में, 
जहाँ सामग्री के वास्तविक परिवर्तन नापना कठिन होता है या जहाँ ये नापने योग्य 
नहीं होते, वहाँ इसके द्वारा सामग्री के सापेक्ष परिवर्तन सूचित किए. जा सकते हैं । 








मुल्य-देशनांक रचना 
( (.०ा8४ा0प८ट6008 64 7866 [0665 चिपश०१5 ) 
देशनांक-रचना से पहले कुछ प्रारम्मिक बातों पर विचार करना पढ़ता है। 
ये बातें निम्नलिखित हूँ 

(१) देशनाफक-रचना का उद्देश्य, अर्थात्‌ किस समूह से सम्बन्धित परिवर्तनों 
को जानकारी प्राप्त करनी 

(२) किन पढीं (८८८०७) का समावेश करना है और उनकी संख्या । 
अगर उन सब पदों का समावेश कर जिया जाय जो समस्या से किसी रूप में संबंधित 
हैँ तो कार्य अत्यधिक कठिन हो जायगा, इसलिए उनकी संख्या निश्चित करनी पड़ती 
है और सीमित संख्या में उपयोग किए, जाने के कारण विभिन्न पदों से चुनाव करना 
पड़ता है । 

(३) समस्या के साथ विभिन्न पद अलग-अलग महत्ता में सम्बन्धित होते हैं। 
इसके लिए उन्हें मार (४०270) देना पड़ता है। अतएव इस बात पर विचार करना 
पड़ता है कि प्रत्येक पद की कितना भार दिया जाय | 

(४) जैसा बताया जा चुका है, ये परिवर्तन किसी निश्चित वर्ष के मूल्यों के 
सापेक्ष नापे जाते हैं, इस वर्ष को आधार-बष ( 9286-ए०७४ ) कहते हैं। आधार- 
वर्ष चुनने में भी सावधानी बरतनी पड़ती है ओर यह निश्चय करना पड़ता है कि 
आधार-बर्ष कैसे चुना जाय । 

(४) देशनांक-रूना में क्रिस प्रकार के माध्य का उपयोग किया जायगा, 
अर्थात्‌ सापेज्ञ राशियों के लिए कोन सा माध्य अधिक उपयुक्त होगा ! 

इन पर आगामी अनुच्छेदों में एक-एक करके विचार किया गया है। 

पदों का चुनाव (5७६८४०० 05 ६८४78) 

पदों का चुनाव करने की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि सब पदों का 

समावेशन संभव नहीं हैं| इसका कारण यह है कि प्रत्येक बाजार में प्रत्येक वस्तु के मूल्य 











१८४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


जानना दुष्कर है। इस चुनाव में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि वह वस्तु 
अपनी प्रकार की वस्तुओं की माँग का प्रतिनिधित्व करे | अ्रर्थात्‌ वह प्रतिनिधि वस्तु 
(:2०7०४८7६६४४८ ००777700707) हो ऐसी वस्तु में निम्नलिखित विशेषताएँ 
होनी चाहिए. :-- 

(१) वह समाज की रुचि, आदत, रीति-रेवाज ओर आवश्यकताओं का 
प्रतिनिधित्व करे । 

(२) वह वस्तु श्रेणी-क_त (8८०१००) और प्रमापित (४270 &79260) 
हो, ताकि जब मूल्यों के बारे में सूचना दी जा रही हों तो वह वस्तु एक ही हो अलग- 
अलग प्रकार न हों, अन्यथा ऐसे मूल्य प्राप्त होंगे जो जोड़े नहों जा सकते या 
जिनके बीच ठुलना नहीं की जा सकती | 

पदों की संख्या (7077757 ०6 0867053)--जहाँ तक वस्तुओं की संख्या 
का प्रश्न है, इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है। अगर पदों की संख्या अधिक 
हो तो परिशुद्धता अधिक रहती है पर गणना आदि की कठिनाइयाँ भी बढ़ जाती है। 
इसलिए जितने पद चाहें उतनों का समावेश नहीं किया जा.सकता। अगर सूरुम- 
ग्राही (१८०४४४०) देशनांकों की स्चना करनी हो तो ऐसी वस्तुओं का चुनाव 
किया जाता है जिनके मूल्य सूछ्मआही हों | इन देशनांकों की रचना में कम संख्या 
में वस्तुओं को लिया जाता है । भारत में (८०7०० ै१ए7986४ का सूक्ष्मग्राहीं 
देशनांक केवल २३ वस्तुओं को लेकर बनता था। अन्य देशों में १४ से २० तक 
पदों को लेकर सूकछ्मग्राही देशनांक बनाए जाते हैं। सामान्य-उद्देश्य से बनाए गए 
देशनांकों में वस्तुओं की संख्या अधिक होती है। भारत में 00707772 /07ए56+ 
के सामान्य-उद्दे श्यीय देशनांक ७८ वस्तुओं का समावेशन करके बनाए गए हैं। ब्रिटेन 
में 8027/0 0६6 77906 ४४/०]०89]८ 7706 7706€5 की रचना में २०० वस्तुओं 
का समावेशन किया जाता है। अमेरिका में ॥]76 एं. 5, छेप+९४० 06 ,209०प:४ 
$02878009? [7065 ०६ ए४|४००४०८ 7?70९5 ४५० वस्तुओं पर आधारित हैं ॥ 

वस्तुओं के गुण ((०७॥ए ०६ ८077700॥068)--बस्तुओं के चुनाव 
में उनके गुणों का भी ध्यान रखना चाहिए | सामान्यतः ऐसे प्रकारों (7५:7८४6$) को 
समावेशित करना चाहिए जो सबसे अधिक प्रचलित हों। अगर ऐसे प्रकार 
(ए०॥2005) एक से अधिक हों तो उन सब का समावेशन कर लेना चाहिए । एक 
से अधिक प्रकार लेने से वस्तु को विशेष महत्व मिल जाता है। भारत में 80070/77८ 
औपैर$९३ के देशनांक में २२५ उद्धरण (१००/४४०४5) लिए जाते हैं जबकि. 





जता अनधोनजिकिफा अयाटिताए हम 5 


देदानांक श्प्प्श्‌ 


वस्तुओं की संख्या केवल ७८ है | गुणों का स्थिरीकरण भी आवश्यक है। अन्यथा 
एक ही वस्तु के विभिन्न प्रकारों के मूल्य उद्ध त किए, जा सकते हैं ओर मूल्य में परि- 
बतन न होने पर भी देशनांक परिवतन सूचित करेंगे | 


... वस्तुओं का वर्गीकरण ( ०095900९4३४४00 ०६ ८09770086$ )-- 
किसी समूह की वस्तुओं के बारे में अलग सूचना देने के लिए चुनी हुई वस्खुओं को: 
वर्गीकृत कर लिया जाता है ओर गत्येक वर्ग के लिए. अलग देशनांक बनाए जाते 
हैं । इससे किसी विशेष वर्ग की वस्तुओं में होने वाले मूल्य-परिवर्तनों का अलग से 
अनुमान लगाया जा सकता है | इस प्रकार वर्गीकृत करने से सजातिता (#077086- 
7८0ए) बढ़ जाती है | अगर एक वर्ग को उपवर्गों में बाँच जाय तो यह सजातिता 
ओर अधिक बढ़ जाएगी ओर इस उपवर्ग के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त हो 
सकेगी | (>८070०४70 &9०१56/) के देशनांकों में चुनी हुईं ७८ वस्तुओं को पाँच 
वर्गों में बाँठा गया है। ये वर्ग निम्नलिखित हैं : (१) भोज्य पदार्थ, (२) औद्योगिक 
कच्चा माल (३) अर्थ निर्मित पदार्थ, (४) निर्मित पदार्थ, और (५) विविध | मोज्य 
पदार्थों को फिर उपवर्गों के रूप में विभाजित किया गया है जो (१) अन्न (२) दाल 


ओर (३) अन्य हैं | 


प्रतिनिधि स्थानों का चुनाब ( ३6 6८एंता ०6 :6ए9768वक्‍ांब्रए2 
7!20८6९$ )--जिस प्रकार देशनांक रचना में प्रत्येक वस्तु का समावेश करना सम्भव नहीं 
है उसी प्रकार यह भी सम्भव नहीं है कि एक वस्तु के मूल्य प्रत्येक स्थान से ग्राप्त 
किए. जा सकें । इसलिए कुछ निश्चित स्थानों से वस्तुओं के मूल्य उपलब्ध करने की 
व्यवस्था की जाती है | प्रायः ऐसे स्थानों का चुनाव किया जाता है जहाँ वस्तु बहुत 
बड़ी मात्रा में बेची या खरीदी जाती हो ओर जहाँ के मूल्य अन्य स्थानों के मृल्यों को 
प्रभावित करते हों | 


मूल्यों का उद्धरण ((4०0(४707 ०£ 0४0८०८४)--प्रतिनिधि बस्तुओं ओर 
प्रतिनिधि स्थानों के चुनाव के पश्चात्‌ ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति की समस्या आती है 
जो समय-समय पर प्रचलित मूल्यों की सूचना दे सकें। यह काम या तो अपने आदमी 
नियुक्त करके किया जा सकता है या उस स्थान के किसी व्यक्ति या संस्थाओं को दिया; 
जा सकता है| इनमें एक लक्षण का होना अत्यन्त आवश्यक है। वह यह कि इनमें: 
अमिनति (/29) या पक्षपात न हो । इनके द्वारा दी गई सूचना प्रामाणिक ओर: 
विश्वसनीय मानी जा सके | इस बात की जाँच करने के लिए कि नियुक्त व्यक्ति: 





श्ट्‌ सांख्यिकी के सिद्धान्त 








या संस्था की सूचना प्रामाणिक ओर विश्वसनीय है, एक से अधिक व्यक्तियों या 
संस्थाश्रों की नियुक्ति की जा सकती है । 

इनके पश्चात्‌ इस बात का निश्चय करना पड़ता है कि मूल्य किस प्रकार 
दिए जाएँगे ओर मूल्य की क्या परिभाषा दी जाएगी । मूल्य दो प्रकार से बताए जा 
सकते हैं | एक विधि यह है कि वस्तु का परिमाण प्रति द्रव्य की इकाई ( तुषब्शताए 
0£ ८0970 4ए 96४ पत्रां। ० 770769 ) को उद्धत किया जाय आर दूससख 
यह कि द्रव्य का परिमाण प्रति वस्तु की इकाई (तुप्ऋ00/0ए 0*₹ #7076ए 96४ पा: 
०६ ००४9८ 00॥59) के रूप में बताए जाँय | इनमें दूसरे को मूल्य कहा जाता है 
ओर पहले को विज्ञोम-मूल्य (0ए८४४० 077८७) | इनके विषय में किसी प्रकार का 
अम नहीं रहना चाहिए | ये एक ही चीजें नहीं है। इन दोनों में विलोमानुपात 
([7076८788 5400) होता है | अर्थात्‌ अगर एक बढ़े तो दूसरा घटेगा। जेसे अगर 
किसी वस्तु का मूल्य ५ रु० प्रति मन माना जाय तो इसे ८ सेर प्रति रुपया भी कहा जा 
सकता है। अगर पहला मूल्य बढ़कर ८ रु० ग्रति मन हो जाय तो दूसरी दशा में वह 
५ सेर प्रति रु० हो जाएगा। देशनांकों में दूव्य का परिमाण प्रति वस्तु की इकाई के 
रूप में! मल्य का उपयोग करना चाहिए | 

जहाँ तक मूल्य शब्द की परिभाषा का प्रश्न है वह सामान्य-मूल्य-देशनांक 
की गणना में थोक-मूल्य (072546 0/06) माना जाता है| इसका कारण यह 
है कि थोक-मूल्य एक स्थान पर प्रायः समान रहते हैं, पर फुट्कर मूल्य (दाकां 
(:/028) एक ही स्थान में एक दूसरे के बराबर नहीं होते । इसके साथ थीक-मूल्य 
बस्तु की माँग ओर पूर्ति द्वारा अधिक शीघ्रता से प्रभावित होते हैं। अर्थात्‌ वे वस्तु के 
परिनाणु के लिए ग्धिक सूहि्मग्राही होते हैं । फुय्कर मूल्य थोक-मल्यों पर निर्भर 
रहते हैं, इसलिए उनमें होने वाले परिवर्तनों में समय-विलम्बना ((४06-99) रहती 
है जिस कारण वे वास्तविक आश्िक स्थिति की ठीक-टीक सूचना नहीं दे पाते । अन्य 
समस्याएँ जो मूल्य की परिभाषा निश्चित करने में आती हैं वे इससे सम्बन्धित रहती 
हैं कि थोक-मुल्य किसे माना जाय | केवल वस्तु के मल्य को या उसके साथ के अन्य 
प्रासंगिक ((7008703[ व्ययों को जोड़कर याप्र होने वाले मब्यों को ? फिर थोक 
मुल्य किस समय लिए जाय--बाजार खुलने पर या बन्द होने पर या कमी बीच में ? 
ऐसी अन्य समसस्‍्वाओं का हल इस बात पर निर्भर रहेगा कि देशनांक का उद्देश्य 
क्ष्या है | 

अन्य वात जो मृल्य-उद्धर्ण से सम्बन्धित है, वह है उद्धरणों की संख्या 











देशर्नांक . श्ट्ू७ 








(7रण7४९४ 06 तृप०:8४0४०075) | अगर साप्ताहिक-सुल्यों के देशनांकों की रचना करनी 
हो तो कितने दिन मलयों को देखा जाय । इसी प्रकार पाक्षिक ओर मासिक मूल्यों के 
देशनांकों के बारे में मी यह निश्चित करना पड़ता है कि एक पश्म म॑ या एक महीने म॑ 
कितनों दिनों, मल्य लिया जाएगा। जितने अ्रधिक दिनों के मुल्य मिलेंगे, देशनांको 
में उतनी ही अधिक परिशुद्धता आएगी | 7८090777८ 97१5४४ के देशनांकों में 
शुक्रवार के दिन के मुल्य दिए जाते हैं। केवल दिन निश्चित करना ही आवश्यक 
नहीं है बल्कि यह भी आवश्यक है कि मल्य सम्बन्धी सूचना नियमित रूप के मिलती 
रहे, नहीं तो मूल्यों का अनुमान लगाना पड़ेगा ओर देशनांक उस अंश तक 
जुट्पूण होंगे । 

अन्त में जब मूल्य प्रात होने लगते हैं तो उनका माध्य निकालना पड़ता है। 
जेसे अगर माश्मिक-मूल्यों के देशनांक की रचना करनी हो आर मूल्य-उद्धरण साप्ताहिक 
हो तो प्रत्येक मास में ४ या ४ मल्य-उद्धरण मिलेंगे | इन उद्धरणों का माध्य निकाल 
लिया जाता है। अगर केवल एक उद्धरण ( जैसे, साप्ताहिक देशनांकों में ) हो वो 
माध्य निकालने का प्रश्न नहीं उठता | इस प्रकार विभिन्न स्थानों से विभिन्न सख्या स॑ 
प्राप्त, किसी वस्तु के मूल्यों का माध्य उस वस्तु का पूरे देश या प्रदेश के लिए दी हुई 
अवधि में मूल्य को बताता है। 

















आधार का चुवाव (5०९८४०४ 6 0286) 

देशनांकों में दिये गये अंक किसी अवधि के, एक निश्चित अवधि के अनुपात 
को बताते हैं। इस निश्चित अवधि को आधार कहा जाता है। देशनांक-रचना में आधार 
का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। आधार चुनने की दो रीतियों का उपयोग किया 
जाता है। पहली को स्थिर आधार-रोति (#560 9985 ॥0०770व ) कहते 
हैं ओर दूसरी को खुूंखला-आधार रीति ( ८४७४४ 9296 ॥76/700 ) कहा 
जाता है । 

स्थिर-श्राधार रीति में एक स्वेच्छापूर्वक चुने गए वध को आधार-व्ष मान 
लिया जाता है या कई वर्षों को चुन लिया जाता है जिनके माध्यों को आधार मान 
लिया जाता है। इस आधार को अनिश्चित समय तक अपनाया जाता है। आधार के 
लिए चुना गया वर्ष यथोचित रूप से सामान्य ब्ष होना चाहिये। अगर असा- 
परान्य वर्ष चुना गया तो देशनांक ठीक-ठीक रूप में आथिक स्थिति की ओर संकेत 
नहीं करेंगे | इस असमान्यता को दूर करने के लिए ही कई वर्षो के मलयों के माध्य 











रैष८ डियकी के सिद्धान्त 


को आधार माना जाता है | इस प्रकार माध्य लेने से बहुत ऊँचे मूल्य बहुत नीचे मूल्यों 
के साथ जुड़कर सामान्य मूल्य दे देंगे । 
अंखला-आधार-रीति में जिस वर्ष के लिए सापेक्ष मूल्य निकालने हों उससे 
पहले वर्ष को आधार मान लिया जाता है और उससे सापेक्ष मल्यों की गणना की 
जाती है | इस प्रकार आधार कोई निश्चित अवधि या वर्ष नहीं रहता बल्कि बदलता 
रहता है | इस रीति का लाम यह है कि इसके द्वारा एक वर्ष और उसके आगामी 
वर्षे की प्रत्यक्ष तुलना की जा सकती है, इसलिए यह स्थिर-आधार रीति की अपेक्षा 
अधिक सूचना प्रदान करता है। एक अन्य लाभ यह है कि नए. पदों का समावेशन 
(70 ७५४००) और पुराने पदों का अपनयन (£2770४०/ ) किया जा सकता है। 
पर इनके द्वारा लम्बे अन्तर में तुलना करना सम्भव नहीं है । द 
मल्यानपात को गणना ( 0॥[०परांह07 ०0६ 7%06-२८]५४।४ ८५ ) 
मूल्यानुपात की गणना करने में आधार वर्ष या आधार-अवधि के मल्य को 
१०० मान लिया जाता है ओर अन्य वर्षों को अनुपातानुसार रख लिया जाता है | 
इस प्रकार जो अंक य्ाप्त होते हैं वे मल्यानुपात कहलाते हैं। 
(क) स्थिर आधार रीति में मूल्यानुपात की गशना--मान लीजिये किसी 
वस्तु क के विभिन्न वर्षों के मूल्य प्रति मन निम्नलिखित हों--- 
सारणी संख्या १--क वस्तु के मूल्य । 














व मूल्य 
.. रू० आल 

१६४० ७ न 
१६४१ ठ €. 
१६४२ क्‍ ६ ! 
१६४२३ €्‌ १० 
१६४४ & १५ 
१६४५ १० ६ 
१६४६ ११ ० 
१६४७ १० य्द 
१ ध्थ्प्र &€ दर 
१६४६ २० २ 
१६४० २१० द १० 

० 





देशनांक श्व्यह£्‌ द 


अगर वर्ष १६४० को आधार चुना जाय तो इस व के मूल्य १०० द्वारा 
व्यक्त किये जायँगे | अन्य वर्षों के मूल्य इसके सापेक्ष रखने के लिए एक सरल सूत्न 
का उपयोग किया जाता है। इस सूत्र के द्वारा मूल्यानुपात ज्ञात हो जाता है। सूत्र इस 
प्रकार है । 








प्रचलित वर्ष के मूल्यापात : 7/06 7696ए76 ६0% ४76 ८टप्र/८7 
प्रचलित वर्ष का मूल्य टपा767 ए८७॥5 9706 २३६ 

सन गण 7 पर [०० 
आधार वर्ष का मूल्य 2६०० | 27627 २], ५३८ ए८६8 0:0० 








इस सूत्र से प्राप्त अंक ही मृल्यानुपात हैं । इस प्रकार गणना करने से सारणी 
संख्या १ के लिए प्राप्त मूल्यानुपात सारणी संख्या २ में दिये गये हैं। कॉलम ३ में 
१६४० को आधार मानकर मूल्यानुपात दिये गये हैं ओर कॉलम ४ में १६५१ को 
आधार मानकर मृल्यानुपातों की गणना की गई है । 

सारणी संख्या २--सारणी १ में दिये गये मूल्यों के मूल्यानुपात | 























वर्ष मुल्य मृल्यानुपाव (१६४० ८५- १००) मुल्यानुपरात (१६५१८८०१ ००) 

(१) (२) (३) (४) 
रु० आ० 

१६४० ७ ५६ १५०० 3४ 

१६४१ व ९५. १५१६ प््र्‌ 

१९७४२ ९५ १ १२३ ह ९१ 

१९४२ ९ १० १३१ दर्द 

१५९४४ ९ ९२५ १३५ १९ 

१९४५ | १० १४१ १९०४ 

१६४६ | ११ ० . १४९ ११० 

१९४७ | १० ८: १४२ १०५ 

१९षप | ६ ६ १२७ ९४ 

१९४६ | १० २ १३७ ५०१ 

१६५० | १० १० १४४ १०६ 

१९९०१ [| १०७ ० १३२६ १०० 














कॉलम ३ ओर ४ में दिये गये अंकों को देखकर यह स्पष्ट हो गया होग कि 


१६० सांख्यिकी के सिद्धाम्त 





इनको देखकर मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को, कॉलम २ में दिये गये मूल्यों को 
देखने की अपेक्षा अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है| कॉलम ३ और ४ में दिए, 
गये अंक सरल प्रकार के देशनांक माने जा सकते हैं | 

(ख) खऋंखला-आधार रीति में मूल्यालुपात की गणना--इसमें मूल्यानुपात 
की गणना करने के लिए दिये हुए वर्ष से पहले के वर्ष को आधार माना जाता है। 
यदि पिछुले उदाहरण में »॒ खला-आधार रीति का उपयोग किया जाय तो १९४१ का 
मूल्यापात निकालने के लिए १६४० को आधार माना जायगा ओर १९४२ का मूल्या- 
नुपात निकालने के लिए. १९४१ को आधार माना जायगा | इन अनुपातों को श्र खल्ला 
मूल्यानुपात (॥7: 70906) कहते हैं | इनकी गणना करने के लिए निम्नलिखित 
सूत्र का उपयोग किया जाता है । 

















अडुला मुल्यानुपात क्‍ 4,7६ ८]०(।०८ 
(«५ ९ ५ 
_..+प्लित वष का मूल्य «१०० __ ्प्प्था ए८27?8 [0706 है 
पिछले वर्ष का मूल्य 776ए0प08 ए227?5 [070८ 700 


सारणी संख्या १ में दिए गये सामग्री के लिए अइछुला मूल्यानुपात नीचे 
सारणी संख्या ३ में दिये गये हैं । 


देशनांक १६१५. 





सारणी संख्या ३--»शझ्लला मूल्यानुपात निकालना । 
















































































वर्ष मूल्य श्रद्धला मूल्यानुपात 
“ रु० आ० 
१६४० | ७ ६ |] ३ ०-० 
ट:र० € झआा० 
१६४१ कर ६ ६ हुए इश्आ० १०१० | ११६ 
शध्डर | ६ | हि ० है 2० | ०६. 
हे + | पर धहआ० री ( 
श्श्ड३़ | ६ १० | है ८१०० १०६ 
| ६० १ आओ० 
१६४४ ६ १घ हे ०4१०० | १०३ 
। ६ रु० १० आ० । 
१६४५ १० ६ न ८8०० | १०४ 
६ रु० १४ आ० 
११५रू० ० आ० | 
१६४६ ११ १० रण ६आ० १९. | १०६ 
५०० ८ आ० 
श्६्४७... | १० ८ पूरक 5 दआा० १०० ९ 
हु १६४८ ६ ६ | _ ८ १०० व्य९ 
| १० रु० ८ आ० 
१० रू० २ बआा० 
१६४६ १० र रूपए ६ आ० “१० १०८८ 
ह १५० रु० १० आ० 
१६५४० १० १० | 9०० २आ०- १० १०५४ 
१५० रुू० ० आआा० 
१६४१ १० ० >( १०० क्‍ ६४ 


१९० रुू० १० आा० 
. माध्य का चुनाव ( (.80९6 ० ४८:०४6 ) 

अगर केवल एक वस्तु के मूल्य में ही परिवर्तन देखना हो तो देशनांकों की 
कोई आवश्यकता न पड़े | इनकी आवश्यकता सामान्य-मूल्य की धारणा से सम्बन्धित 
है, श्रर्थात्‌ हमें एक से अधिक वस्तुओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तन को सामान्य 
रूप से समझना है। इसके लिए एक से अधिक वस्तुएँ लेनी पड़ती हैं। जब इन 





१६२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


वस्तुओं के लिए मूल्यानुपात निकाल लिए जाते हैं तो समस्या इन मूल्यानुपातों का 
माध्य निकालने की होती है । सिद्धान्तत: किसी भी माध्य का उपयोग किया जा सकता 
है। पर व्यवहार में समान्तर मध्यक, गुणोत्तर मध्यक और मध्यका के बीच चुनाव 
'करना पड़ता है। इनमें किस माध्य को चुनना चाहिए इस पर बाद में विचार किया 
जायगा | अभी केवल माध्य निकालने की रीति का उदाहरण दिया जा रहा है। 

मान लीजिए ६ वस्तुएँ अ, ब, स, य, र, ओर ल हैं जिनके मूल्य १९४० 
१६४१ ओर १६४२ में निम्नलिखित सारणी (स० ४) में दिए गये हैं और हमें 
इनसे देशनांक बनाने हैं | पहले मूल्यों के लिए मूल्यानुपातों की गणना करनी पड़ेगी 
ओर उसके पश्चात्‌ इन मृल्यानुपातों का माध्य निकालना पड़ेगा। यह रीति सारणी 
संख्या ५ ओर ६ में स्पष्ट की गई है | 

सारणी संख्या ४७--वस्तुओं का मल्य 














वस्तु | मूल्य ( १६४० ) | मूल्य ( १९४१ ) | मूल्य (१९४२) 
तर ७३ ७७ पावर 
ब ७७ पूषपू ३"६ 
स ७१० ... ८१ ६५ 
य्‌ ६३ ७*३े ६'र 
र्‌ ] ३४१ २९८ १७३ 
ल । १७३ १७१ १४५ 








स्थिर आधार में मूल्यानुपातों का माध्य निकालना 
सारणी संख्या ५ 





























०-- १ ०० मल्यानुपात मल्यानुपात 
वस्तु १६४०-८१ (१९४१) (१६४२) 
दल आह १०० १०५ । ७९ 
तन १५००७ ७१ छ 9 
स १५०० ५११४ ६३ 
य्‌ १०० ११२ ९५ 
र्‌ १०० ८७ | भू? 
लः पा १९०० . १५०० व्प्८ 
योग (६044)) | ६०० | पद |. ४४६ 
समान्तर मध्यक (2. 8.) | १००. ६८ |. छू. 
मध्यका (06687) | १०० | १०२ | १०९ | दा 








गुणोत्तर मध्यक श्ण्णन ६७ ७२ 
(2८070607८ 77697) 


श३े देशनांक १६३ 


सारणी संख्या ६-->थ्छूला आधार में मूल्यानुपातों का माध्य निकालना । 























वस्तु 'इंखला मूल्यानुपात ( ०7०॥7 ४॥८]20ए८५ ) 
१६४० ६४१ १६४२ 
श्र १०० १०५ ७५ 
ब १०० ७१ ६ 
स १०० ११५४ ८१ 
य्‌ १०० श्श्र््‌ प्प्ष्‌ 
र १०० प्प्७ पूय् 
ल १०० १५०० य्य्५्‌ 
योग (7०४४) ६०० प्र ४४६ 
समान्तर मध्यक (७. 2.) १०० ह्ष्य ७५ 
मध्यका (92097) १०० १०२ छ्य 
शुणोत्तर मध्यक १०० ९७ .. ७२ 
(2९०760४४८ 776%7)| ्ि 





उपरोक्त उदाहरण में मध्यका, समान्तर मध्यक तथा गुणोत्तर मध्यक तीनों का 
ही प्रयोग किया गया है| यह एक संयोग ही की बात है कि इस उदाहरण में स्थिर 
आधार के मल्यानुपातों का समान्तर मध्यक तथा शुणोत्तर मध्यक सन्‌ १९४२ के लिए 
शृंखला आधार के मूल्यानुपातों के समान्तर मध्यक तथा शुणोत्तर मध्यक के 
बराबर हैं। साधारणतः स्थिर आधार तथा शंंखला आधार के मृल्यानुपातों का माध्य 
बराबर होना आवश्यक नहीं है । सन्‌ १९४० और सन्‌ १९४१ अर्थात्‌ प्रथम ओर 
द्वितीय वर्षों के लिए. स्थिर आधार और <»ंखला आधार के मूल्यानुपातों का माध्य सदैव 
बराबर होगा क्‍योंकि दोनों रीतियों के अनुसार मूल्यानुपात एक ही आएँगें । 


मूल्यानुपातों का माध्य निकालते समय मध्यका, समान्तर मध्यक ओर शुणोत्तर द 
मध्यक में से किसका उपयोग किया जाय अ्रत्र इस बात पर प्रकाश डाला जायगा । 


मध्यका का उपयोग करने के लाभ यह हैं कि इसकी गणना करना श्रपेनक्षाकृत 
सरल होता है। इसके साथ-साथ यह चरमपदों (०:८॥७।6 0८70$) के मूल्यों से कम 
प्रभावित होता है । पर साधारणतः इसका उपयोग नहीं करना चाहिए, क्‍योंकि कम संख्या 
में पदों के होने पर यह उचित प्रतिनिधित्व नहीं करता । कई स्थलों में इसकी निश्चित 
रूप से गणना करना भी सम्मव नहीं होता | ऐसी दशाओओं में अंतर्गणन का उपयोग 
करना पड़ता है जिससे गणना की सहजता भी इसके पक्ष में नहीं होती। एक अन्य 


१६४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


दोष यह है कि यह उत्क्राम्य (:०ए८४आ०८) नहीं है। उत्क्राम्यता (६०ए०८:.३०३- 
]0ए )की चर्चा आगे की जायगी । 

समान्तर मध्यक का उपयोग करने के कारण वे ही हैं जिनके कारण इसका 
उपयोग साधार्णतः सांख्यिकी में किया जाता है | यह सुबोध है ओर इसकी गणना 
करना भी अपेक्षाकृत सरल है| पर जैसा बताया जा चुका है, यह चरम पदों के मूल्यों 
से अधिक प्रमावित होता है ओर उन्हें अधिक भार देता है। अतः अगर मूल्य बढ़ 
रहे हों तो समान्तर मध्यक का उपयोग करने पर वे कम होंगे और मूल्यों की अपेक्षा 
अधिक मारित हो जायँगे | इसके साथ-साथ यह भी उत्क्राम्य नहीं है।... 

माध्य लेने में शुणोत्तर मध्यक अधिक उपयोगी होता है । जैसा कहा जा चुका 
है कि गुणोत्तर मध्यक सापेक्ष परिवर्तनों के लिए. अधिक उचित माध्य है ओर चूँकि 
देशनांकों में भी मूल्यों के सापेक्ष परिवर्तत की गणना की जाती है, इसका उपयोग 
अधिक सही होगा । इसका दूसरा लाभ यह है कि इसको माध्य मानकर बने देशनांक 
उत्क्राम्य होते हैं । 


भारित करने की विधि (१४८४४०5४ ०£ उल707१ ) 


पिछले अनुच्छेदों में दिए गये देशनांकों के विषय में यह ज्ञातव्य है कि प्रत्येक 
वस्तु के मूल्य को बराबर महत्व दिया गया है | इसको इस प्रकार भी कहा जा सकता 
है कि प्रत्येक मूल्य के लिए भार १ है। इस प्रकार के देशनांक संतोषजनक नहीं माने 
जा सकते क्योंकि अपेक्षाकत अधिक परिमाण में बिकने वाली वस्तु और बहुत कम 
परिमाण में बिकने वाली वस्तु को बराबर महत्व नहीं दिया जा सकता। इसलिए यह 
आवश्यक हो जाता है कि इन वस्तुओं को उचित रूप से भारित करने की कोई विधि 
निकाली जाय | 

भारित करने की दो रीतियाँ साधारणतः प्रयोग में लाई जाती हैं। पहली रीति 
के अनुसार जिस वस्तु को अधिक महत्व देना होता है उसके एक से अधिक प्रकारों 
( एथएं८६68 ) के मूल्यों का समावेशन अलग-अलग कर लिया जाता है। उदाहर- 
णाथ यदि किसी देशनांक में गेहूँ की ३ अकारों ( एथ४८४८७ ) का मूल्य अलग- 
अलग लिया गया हो ओर केबल एक प्रकार ही के चावल का मूल्य लिया गया हो तो 
इस देशनांक में गेहूँ का भार चावल के भार से तिगुना हो गया । इस रीति में भार 
प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिये जाते | वस्तुएँ अप्रत्यक्ष रूप से भारित की जाती हैं। इस 
प्रकार के भार अग्रत्यज्ञ भार (77ए0८६ ए०2765 ) कहलाते हैं। कलकत्ता 


देशनांक श्ध्प्‌ 


मूल्य देशनांक ((३[८प४४७ ए४700०5४॥० ?7०४ 77065४ 7रंप००6४ ) इसी 
प्रकार भारित किया जाता है । 

दूसरी रीति के अनुसार भार प्रत्यक्ष रूप से दिये जाते हैं । किसी विशेष बात के 
आधार पर वस्तुओं की सापेक्ष महत्ता मालूम की जाती है ओर उसी अनुपात में वस्तुएँ 
भारित की जाती हैं। उदाहर्णार्थ, यदि गेहूँ और चावल का सापेक्ष महत्व उनके 
उत्पादन की राशि के आधार पर मालूम करना है ओर इसी आधार पर इन्हें भारित 
करना है और यदि इनकी उत्पादन राशि का अनुपात क्रमशः ५ और २ है तो इस 
रीति के अनुसार गेहूँ का मार ५ और चावल का भार २ होगा। गेहूँ और चावल का 
एक ही एक मूल्य देशनांक में आएगा पर इनके सम्मुख क्रमशः ५ ओर २ भार रूप 
में लिखे जाएँगे | इस प्रकार के भार प्रत्यक्ष भार ( ८5८६४ क०१8708 ) कहलाते 
हैं| प्रत्यज्ञ रूप से भारित करने के लिए, निम्नलिखित रीतियों का उपयोग किया 
जाता है :-- 


(१) मूल्यानुपातों का भारित माध्य ( ए०8778०0 ४ए७४४४० ०0६ 
72207८$ ) 


इस रीति में सरल माध्य वाले देशनांक को भारित करके एक दूसरे देशनांक के 
रूप में रख दिया है जिन अंकों से सरल-माध्य देशनांक को भारित किया जाता है उन्हें 
मान ( ४००८७ ) कहते हैं । इन मानों की गणना करने की रीति यह है कि किसी _ 
वस्तु पर आधार वर्ष में होने वाले कुल व्यय के बराबर या उसकी अनुपाती संख्या 
मालूम कर ली जाय | यही संख्या मान ( ए»०८ ) है । किसी वस्तु पर होने वाला 
कुल व्यय, उसकी राशि ( (०४7४४ए ) ओर उसके मूल्य के गुणनफल के बराबर 
होता है। इसलिए यह शुणनफल या इसकी अनुपाती संख्या ही वह मान है जिससे 


सरल माध्य देशनांक को भारित किया जाता है । 
उदाहरण १ है द है 
निम्न सारणी में कुछ वस्तुओं के दो वर्षों के मूल्य ओर आधार वर्ष में बिकने 


वाली रांशि दी गई है। इस सामग्री से भारित माध्य देशनांक की रचना कीजिए | 




















ही .. | आधार वर्ष की | आधार वर्ष के | चालू वर्ष के 
वस्तुएँ. | इकाई (प्णां)। शशि . मूल्य मूल्य 
क्र सन “|. दतह्वौपै:पत्तन _पए्ह्]क्ेाएदमत्पछझद 7 कर २६ १६९६ 
ख सेर्‌ छ्‌ २ ३२ 
ग । दर्जन. १६ बा ७०. 
घर गज २१ १*५ .. १*६ 











सांख्यिकी के सिद्धान्त 





१६६ 
इस सामग्री से सर्वप्रथम प्रचलित या चालू मूल्यानुपात निकाले जायँँगे । 
“इसका सूत्र है :-- क्‍ 
द प्रचलित वर्ष के मूल्य, ,, 
आधार वर्ष के मूल्य 


इसके अनुसार प्रचलित वर्ष के मूल्यानुपात क, ख, ग ओर घ के लिए क्रमश: १२३, 


१६०, १२५, ओर ६३ हुए। 

मान ( ए»/०८ ) निकालने के लिए आधार वर्ष की राशि ओर आधार वर्ष 
के मूल्यों को गुण करना होगा | क, ख, ग, घ के लिए. क्रमशः यह मान ११२, १२, 
८६६ तथा ३१५ होंगे । इन तत्थ्यों को निम्न सारणी में प्रस्तुत कर भारित देशनांक 























की गणना की गई है। 
५ | 
| वध का मूल्या- । 
व्‌ नुपात मान अथवा भार भार >< मूल्यानुपात 
०ज70- (97006 22]40ए6 0ग (एप९५७ 07 छ९-| (ए९ा३7०६ ०९ 9702 
(८ १ 76 टप्रशाथां ए८47) 2700) 72८]296) 
[.9) 
प() अर (५) अप (7५) 
क्‌ १२३ ११२ १३७७६ 
ख १६७० १२ १६२० 
ग श्र प््६'द्‌ ११२०० 
घ्‌ हरे ३१९५ २६२६*५ 
यो यो 
ञ्र अप 
(हज॒ए)7२४७१ | हाए) -रध्व२५५ 
भारित मूल्य देशनांक शह्टर५प 


(प्रलं8080 [7065 .्रणरा०6८ ०६ >प८०३) . २४४१ 





न्न्रै२२ 


देशनांक . रै६७ 








गणितीय सूत्र रूप में :-- 
भारित देशनांक 227९0 40065 प्रपाफेटः 
यो 
सन ज्ञा ' >०>न 208 6 
य ञ्फ 
भनकि, अ--मान 
प+--मृल्यानुपात ए676, -- 07706 :८2४४८ 
न्‍्-्योग ४ -- ए2प८८ 
यो, प जप रहध८२ १ 
उपरोक्त उदाहरण में न्प इस प्रकार से 
योश्र २४५०१ 


भारित देशनांक १२२ हुआ | 

(२) भारित समूही रीति (४८४2४४०१ 9287682४४ए४० 77९८700) 

इस रीति में आधार वर्ष में बिकी हुई राशि को भार माना जाता है। आधार 
वर्ष में बिकी हुईं राशियों ओर प्रचलित वर्ष के मूल्यों के गुणनफलों के योग को आधार 
वर्ष की राशियों और आधार वर्ष के मूल्यों के गुणनफलों के योग से विभाजित करके 


प्राम होने वाली संख्या को १०० से गुणा किया जाता है। यह शुणनफल ही 
देशनांक है | 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


श्ध्द 

















("प्व्‌ट) (०७०१९) 
2,9०८ थे ७ .. 3 ०८ पा २ 
०७०४ ०१०४ 
!ः ४० 
42 ३९ 8 है “५8 ९ ढेटे #06 55 
०,९०४ ३ 3.3५ ०" 6) छ,४ 3९४ 202 ॥ 
)५४ 
०५३४ ०३९ ९६ दे डे 3: |) 
८५०४ ६ ८६8५ 3 88 है. 3 ॥9 फ 
(०6) के | (४) ० 
मिमिदकक विन 2 (74) ०४७ (489४ 
( हे ><८ ०) (्‌ त »<८ ०?) (:894 ३0937 | (4४०४ ०0४१ | २४४१ ३० (4॥7ए 
१ )८ ०३ ०३>< ०४ 30 8००छव) | ३० ४००04) | 8्शूगागपध्या) | (पा) [-०प्पप्प02) 
[8): ॥०29 ]गहै॥:.| डाफड़े 632 
५६ ४ 2१०४ | पू८ [8४ 28॥& | [४४ |६४ >७॥॥६ 























| 3308 ५जटदेई है रै) [हि09 08)॥5 % ॥४०॥७ ३॥0 [४ | ३ ॥0:8।४६ 


८ 92॥४£९ 





. देशनांक | श्ध्६ 


क्‍ देशनांक <- गहन पे » १००:-८१२२ 





४५*१ 
गणितीय रूप से [9त65 ग्रणण००६८- २१३00 ८ 70० 
बज 0 | 0 
देशनांक +- जन १ (१०० जा272, [4 ++070०८ ०६76 
कीरणमू० द ०प४:४7४ ९०८, 
जबकि, २०८-आधार वर्ष की राशि 7०८ [270९ ०0 ६४९ 
मू० -- आधार वर्ष का मूल्य 928९ ए८०॥. 
मू, प्रचलित वर्ष का मूल्य १७ *वृष्ध्ा(ए ० (7१८ 
यो - योग 09286 ए८४, 
यो, 5७,१ 
उपरोक्त उदाहरण में हर (१०० 2090 > 700 ) 
योर मे. २० मृ० ०१० 
_. ६७८ ८१ 
र४प २ 
१२२ 


इस प्रकार इस रीति से भी देशनांक १२२ हुआ । यह दोनों रीतियाँ सदैव एक 

ही उत्तर देती हैं| पहली रीति से प्रश्न हल करते समय जहाँ प्रचलित वर्ष के मूल्यानुपात 
निकाले गये हैं वहाँ पर दशमलवों को छोड़ दिया गया है ओर पूरी संख्याएँ ही ली 
गई हैं। यदि वहाँ दशमलव भी लिए गये होते तो दोनों रीतियों का उत्तर बिलकुल 
बराबर होता | इस परिस्थिति में भी जबकि दशमलवों को छोड़ दिया गया है देशनांक 
पूर्ण संख्यात्रों में (08 एछ|)0] 7५॥४०८४७) बराबर हैं। 

इन दो रीतियों का उपयोग शुणोत्तर माध्य वाले देशनांकों में भी किया जा 
सकता है । यहाँ भारित समान्तर मध्यक के स्थान पर भारित शुणोत्तर मध्यक निकाला 
जायगा | 

मल्यानपातोां और शूखलानपाता का सम्बत्य 
(९३४०० >लफ़ल्दा 2766 रिटा॥ए०5 4800 ॥.प- ह८०८२८७) 

कभी-कभी मूल्यानुपातों को शटद्डला मूल्य अनुपातों में बदलने की आवश्यकता 
पड़ जाती है | कभी-कभी इसके विपरीत “शह्लला मूल्यानुपातों को मूल्यानुपातों में बदलना _ 
आवश्यकीय होता है । यह कोई विशेष कठिनाई का कार्य नहीं। स्थिर आधार के 


२०० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


देशनांक >हछूला आधार के देशनांकों में और ःश्ज्लला आधार देशनांक स्थिर आधार 
देशनांकों में सुगमता से बदले जा सकते हैं। निम्नलिखित दो उदाहरणों से ये रीतियाँ 
स्पष्ट हो जायेगी । 


उदाहरण ३ 
निम्नलिखित स्थिर आधार देशनांकों से »छ्ूला आधार देशनांक बनाइए :-.- 





१६४प १६४६ १९५७० 





१६४६ १६४७ 


राधा 2भाातााा॥2 2० ाानाााक भतार ॥ 2२५ नाथ न्‍भाया न उ्ाा धान क भा तादाभानान पाता पदक 29३५३७७ ५५ ाकाथ2 ० धाकारनदा जाता नाक भा / 25 वा आम भा नाश का न काका पाताभाका० ७२७७७ ५७५4 कक 
थक 


१६४४ 











श१६२ ४०ण्प ३८० ३६२ ४०० 











३७६ 











स्थिर आधार देशनांकों के शछ्ुला आधार देशनांक बनाना । 









































( 








| स्थिर आधार | स्थिर आधार देशनांकों से अंखला | 'ंखला आधार 
वष देशनांक आधार देशनांकों में परिवर्तन _ देशनांक 
(ए287) | (॥560 92586. (5९0 9986 [7065 #प/०९:४| (टौाग्वा। 0295८ 
[70 65 ०४27260 ६४0 ८7967 72236 [70८5 
शक 0प7॥77८78) ्रत€च६ गणाप679)..... | ग्रपा7767:5) 
(१) (२) (३) (४) 
१६४४५ २७६ १०० 
१६४६ श्६२ जुऊह 2९ १०० १०४"रे 
१६४७ ड्ग्द उदर 2 १०० १०४१ 
श्ध्ष्प ३८० इेड्ट २८ १०० ६३२*१ 
१६४९ शहर डट3 2९ १०० १०३९२ 
१६५० ४०० | चद३ ८ १०० १०२ 
उदाहरए' ४ 
__ निम्नलिखित “डइला आधार देशनांकों से स्थिर आधार देशनांक बनाइए: निम्नलिखित श्लला आधार देशनांकों से स्थिर आधार देशनांक बनाइए : 
१९४४ | १९४६ | शृहड७ | श्ष्ड८प १६४९ १९५० 
९२ _हगर १०४ ध्प्प १.३ क्‍ १०१ 





२०६ 


£ है 8 कर का कट जश्न तिल 

















फ-थ8 ३४०३ 2९ है 0 2८७ २८ ६8 2८६३९ >< है ४०४ ०6३3 
$,४३ ६०३ 2६ 5४ >< दर 2९ है है २९ सह ६०६ 8/3% 
४.४३ ०३ >८ ६88 >< है4 0 2८ ५४ 23 22३8 
४.०३ &०३ >< दै २ २ ए +०३ 0४3४ 
्ि >.४३ ००३ >< ००३ ३४३४ 
्ि ०३ ढै३े ४३४ 
(») (है) ( ९) ( 8 ) 
: (8उवृष्पाए #०ए (98४९ ४४ ६#67 03 ($9पृष्पाप 5० (4४०८ 
नया ३४४१ ए+5प) | ए२णाएपए० झश्वृष्पाप जज्ूपा २४४१ पुष्प०) | -ण॒ २४४१ पाष्प०) पे ७ ) 


५०४४ »॥3॥& >४ब्टे] 





॥०१५४ 2१] 87४  ॥४५३३ % |५|।>।ड४ ०)|३)& ॥|> 2४ 


५०४४ >॥3॥॥& ।2 9:74 

















| ॥९]०॥ ५००४४ >8॥& >४३] है [५७०४४ »॥8॥ ॥99/7४ 


38 


२०२ द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उत्क्राम्यता परीक्षा (8०ए९०:४०१॥६ए 7०४६5) 


उत्क्रामकता दो प्रकार की होती है| पहली समय उत्क्राम्यता ( (06 #९ए८॥- 

आओंज।छ ) तथा दूसरी खएड उत्काम्बवा ( ६8207 ;०ए०:आीआ।(ए ) । 
समय उत्क्राम्यता (४776 १८ए४०:४०॥॥८ए ) 

समय उत्क्राम्यता का अर्थ यह होता है कि किसी वर्ष का किसी अन्य वर्ष को 
: आधार मान कर बनाया देशनांक, पिछले वर्ष का पहले वर्ष को आधार मानकर बनाये 
गए देशनांक का च्युतक्क्रम (762770८थ४ ) हो। अर्थात्‌ अगर किसी वर्ष, १, का 
किसी दूसरे वर्ष, ०, को आधार मान कर बनाया मूल्यानुपात प,५ ( 0०५ ) हो ओर 
चर्ष १, को आधार मानकर वर्ष० का बनाया मूल्यानुपात १५५ (95०) ही तो. 





प्‌ " ए9०7+- 
७१ छू 07““_ 7 
2) प३० 940०0 
या ु (0 
प०१ <प१०७ ३६ 9043 2४ 9070 -- 7 


अगर ऐसा हो तो यह कहा जायगा कि मूल्यानुपात समय उत्क्राम्यता परीक्षा के 
अनुसार चलता है। सूत्र ५,५ »१५०८१ (204 2(70577 ) में प्रतिशतता 
मूल्यानुपातों की गणना नहीं की गई है। अर्थात्‌ इन्हें १०० से गुणा नहीं किया गया 
है | इस बात का ध्यान रखना चाहिये | 


समान्तर माध्य देशनांक, मारित समान्तर माध्य देशनांक, साधारण गुणोत्तर 
माध्य देशनांक और भारित शुणोत्तर माध्य देशनांकों में केवल साधारण गुणोत्तर माध्य 
द्वारा रचित देशनांक ही समय-व्युत्क्रम्यता-परीक्षा को पूरा करता है। केवल इस प्रकार 
के देशनांकों के लिए. प,३>८प५५ ( 0०4 > 73० )5१ होता है। निम्नलिखित 
उदाहरण से यह स्पष्ट हो जायगा । क्‍ 















































(7९6) (पष्ट3प्प जग्मश्प्प 
3०८5० ? *$ ५३०३ नई "१ -095) ४0७४ ०३. 
(४ पते) (०) ँ ा (988392४8 >79०पप. 
६३.८5 के 08०४ 75? *$ "यू]78) फत 22072 
6 3, ० ०५%, ४ ०्यु ० (९ 
६०५ फश५० ०३ है] |! 
52.0 है है ७ है | प् कफ 
(०5 ण्कू (-. र ०३ 
ग्तं वर त/ ४९ 
+ ३ "व (व ग्वोक 
7 9584  जट्त (7 28०6 पा $9)7व) (38०४६ ० प्‌ ४9 )यवें ( (770प्प्रषा०० ) 
(920]०३ ०924) | (2७४०7 9/ञ0) को पर है व ) 22 
३»)७॥॥६ ३ .. >७॥६ ० है ९ कि ० कर । 
8४ 0720५ 0७४४ 07728 
| 4 है [४ »फक 05६] ॥0॥9 (08) ॥2॥४ 


५ /0>828: 


२०४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


समान्तर मध्यक समय उत्काम्यता परीक्षा पूरी नहीं कर पाता क्योंकि “६३ का 
व्युत्तम ( 7०८970८४ ) १११७ नहीं बल्कि १"०८ होता है। इसलिए १९१७ ३८ 
०६३, १ से अधिक होगा। यदि गुणोत्तर मध्यक का उपयोग किया जाय तो समय 
उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी हो जाती है क्योंकि “८६ का व्युत्रम १९१२ है, इसलिए “८६ »< 


१९१२-१ ( इन गणनाओं में निकट्तम का सहारा लिया गया है। ) 
पर भारित शुणोत्तर मध्यक लेने पर समय उत्क्राम्यता परीक्षा गलत परिणाम 


देती है । 


प्रोफेसर फिशर ( ?70£८550£ +१506£ ) ने देशनांक बनाने के १३४ सूत्रों 
की विवेचना करने के पश्चात्‌ एक नया सूत्र निकाला है जिसे फिशर का आदश सत्र 
( ए१5४8००$ 068] 0070० ) कहते हैं। यह सूत्र प्रत्येक दशा में समय 
उत्क्राम्यता परीक्षा को पूरा करता है। यह सूत्र इस प्रकार है : 


फिशर का आदर्श देशनांक 








न क्लजस २८१०० 
यो. २ यो मू० २५ 
जबकि, 


मू, २०- प्रचलित वर्ष का मूल्य 
» आधार वर्ष की राशि 

मू २, >+ प्रचलित वर्ष का मूल्य 
» प्रचलित वर्ष की राशि 


भू , २०-- आधार वर्ष का मूल्य 
>< आधार वर्ष की राशि 

मू० २, -- आधार वर्ष का मूल्य 
>< प्रचलित वर्ष की राशि 


योज"-योग 





7506/70$ 46392! 7077प79, 





प्य जे ८ 30” >( 700 
२6/:८, 
?, (१०८(,पथाए ए227१5 97006 
>( 0956 ए८४708 (प०7४ए 
7, (१, 5२ (प्४८7 ए2205 070९ 
>< एप्रधदा ए62१$ (पथ७॥- 
पाए 
?०५१०८-.३३३४९ ए22785 एए06 , 
>< 0986 ए22728 (प५7४ए 
200१, ८ 39856 ए22॥75 9706 
>< एपाएथा: ए22708 तृपथ7- 
7ए 
अच्न्5्प्शाधनरए0ता 


यह बताने के पूर्व कि यह देशनांक किस अकार समय उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी करता | 
है, खण्ड उत्क्राम्यता परीक्षा को भी समझ लेना आवश्यक है। 


देशनाक २०५४ 
खण्ड-उत्काम्यता परीक्षा ( 7१8८४०४ ००८:४४) 7 6४८ ) 


यह बताया जा चुका है कि समय उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी करने के लिए यह 
आवश्यक है कि समयों के अंतर-परिवर्तेन (470०0/-८7272० ) करने से परउस्पर- 
विरोधी ( 47८07085067£ ) परिणाम न मिले । खण्ड उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी करने 
के लिए, यह आवश्यक है कि अगर मूल्य और राशि में परस्पर परिबर्तन करें तो 
परस्पर विरोधी परिणाम नहीं मिलने चाहिए । अर्थात्‌ इस प्रकार का परिवतंन करने . 
से प्राप्त देशनांक को यदि पहले प्रकार के देशनांक से शुणा किया जाय तो शुशनफल 
को कुल मान (६०६४ ४०४०८ ) में होने वाले परिवततनों को नापना चाहिए | संकेत 
रूप में इसे निम्नलिखित प्रकार समझाया जा सकता है : 


अगर आधार वर्ष ०, माना जाय और प्रचलित वर्ष १, माना जाय तो प०. 
(2०7) मूल्य में होने वाले सापेज्षिक परिवर्तन (£८80ए९८ ८978०) को नापेगा । 


इसका मूल्य जैसा कि हम देख चुके हैं 








हद । 
- _ म3 ० (“77 4० ) अगर मूल्य ओर राशि में परिवर्तन किया 
योमू २० ० १० 
जाय तो नया देशनांक २०५ (१०१) 
यो 
8 (“97 7० ) इस परीक्षा के अनुसार प०, और २० 
यो र० मू० ० 7० 


का शुणनफल कुल मान ( (002 ए०।७८ ) में होने वाले परिवर्तन के बराबर होना 








क्‍ यो 
५ _ _ मू३ २१ / >?2+ १4 
चाहिए, । कुल मान में होने वाला परिवर्तेत ++ वी मू० २० ९ 5० १६ ) 
अब तक दिए गये विभिन्न प्रकार के देशनांकों में फिशर का आदर्श देशनांक 
ही खंड उत्क्राम्यता परीक्षा को पूरा करता है | निम्नलिखित उदाहरण से यह स्पष्ट हो 
चायगा कि यह सूत्र किस प्रकार उत्क्राम्यता की दोनों परीक्षाओं को पूरा करता है । 


२०६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उदाहरण ६ 
निम्नलिखित सामग्री से यह स्पष्ट कीजिये कि फिशर का आदश देशनांक किस 


प्रकार समंय तथा खण्ड उत्कराम्यता परीक्षाओं को पूरा करता है | 











बं वर्ष १६५० के | वर्ष १६५४० की | वर्ष १६५१ के | वर्ष १६५१ की 
स्ड मूल्य राशि मूल्य राशि 

कः प्र ४० १० ३० 

ख़ ९ ६० र्‌ ४० 

ग | ३ ७३ रे टर० 

















२०७ 


देवानांक - 














०्हेण है] 
० +७७ 
० ०९३ 
०#छ ००७ 
(7७ ०१) | (०9 प्व) 
०४०१३ | ४ ४ 








। ह ५०४ 














(कि 





(0) 


[224, 














4 ७ 
(१४) *# 

















(7 (67 2४३८ १0974372) 


(४४३3) 4४४ 2१||७॥ 





(०( ६7 7४०४ 9४४५ ) 


( ०४३३ ) $४ 0।७॥॥६ 








]009)2 %॥००४ ।92॥& ॥% > 


जा 


२०८ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


समय उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी करने के लिए. 
प,५ >(१, ०८१ होना चाहिए 


























पु है आर ८ न भू २०५ 
भू २७५ मूक २५ 
हि ६४० 
६०४ ४३० 
पक ५ न्‍् यो्‌ मूः कु 
" क््ि- फ 
मू २७ यो २५ 
मर ३०४ , ५२० 
७४४ ६४० 








है कक ६४० ०५ १३० 
६०५ ५४३० ७४५ ६४० 


खण्ड उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी करने के लिए 


भू ०२० 


'प०५ ऊपर निकाला जा चुका है। 





०७ ८-८ 
१ कमर, न २. र, के यो र, 


यो, र्‌० यो २७० 
प्र ३२० ८ ६४० 





अं न्‍ननन्‍सानमनाकना+मनरनक कक. 


६०४५ ७४५ 


२०६ 



































३४ देदानांक 
प्‌०५ 2९ २०५ 
न यो यो हे 
है हि मय २० च यो मृ५ २५ ८ _म० ९, ८ यो, रत 
यो सू० र्‌० यो, र५ यो सू० २७० यो मू५ २० 
> /यो यो 
री दिए १ मी >< 9 २५ 
यो मू० र० यो मृ० र्‌० 
यो 
दि _ भव १] 
यो, २० 
लपरोक्त उदाहरण में प०१ ><८२०१ 
हु हैं कद ८४१८० 4 ४० 
४ ६०५४ ३२० (६०४ ७४५ 
न ६४० र ६४० 
६०३, ६०४ 
६४० 
६०५ 
यो, २, ८ 0 
६०४ 


इस ग्रकार खण्ड उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी हो गई । 
![० ४७8६ए ४76 ६776 ॥०ए९४४० (68 
9059 [29067 __ः 
0079 ++ >> >27 ०५० «77 धुत 
>70०0 4०0 “79० १5 
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97०7 /27० १० ,(“?० १7 
“72: १५ “77 १: 
ना (60०05 ,530 
745 ” ६4० 














२१० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


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20०० १० <»7०५% <?75 १० “23 १० 
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० $४४४7ए 06 [2८४07 7८ए८१४॥४३ (8५ 























2५, !95$ 0667 ८%]८५[2(९त 200ए८. 


(१०३ ८ “2० ५7 ८ “7० १7 
2700 १७ 7: १० 








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2704 >< (१०३ 





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>7009५०0 »7?० १७ 
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१०5 06 8८005 72९९: ६] (2560 298 6९॥ 54(57 ते. 


देशनांक २११ 


इस प्रकार हम देखते हैं कि फिशर का आदर्श देशनांक दोनों उत्क्राम्यता 
परीक्षाओं को पूरा करता है। इसी कारण फिशर ने इसे “आदश” देशनांक कहा है। 
पर इसकी गणना करने के लिए प्रचलित वर्ष के लिए. भी राशि सम्बन्धी सामग्री की 
आवश्यकता होती है ओर प्रायः इसको प्राप्त करना कठिन होता है। अतणएव, इस सूत्र 
से देशनांक गणना साधारणतः नहीं की जाती | 


निर्वाह व्यय-देशनांक-रचना 
( (-07#7प0८६67 0६ (९.0४ 0६ 7.ए0778 [7065 'रं०४॥०८४६ ) 


निर्वाह-व्यय-देशनांकों की आवश्यकता पड़ने का कारण यह है कि मूल्य-देशनांक 
केवल सामान्य-मूल्य-स्तर में होने वाले परिवतनों को बताते हैं | इन परिवर्तनों से समाज 
के विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों के निर्वाह-ब्यय में क्या परिवर्तन हुए, यह नहीं जाना जा 
सकता क्योंकि विभिन्न वर्ग के व्यक्ति वस्तुओं की अलग-अलग परिमाण का उपभोग 
करते हैं ओर इसलिए! इनका उनके लिए अलग-अलग महत्व होता है। मृल्य-स्तर में 
परिवर्तन होने के कारण वर्ग-विशेष किस प्रकार प्रभावित होता है, इसके लिए कुछ 
बदलाव के साथ देशनांकों की रचना की जाती है । 
कठिनाइयाँ 

निर्वाह व्यय-देशनांक्ों की रचना की मुख्य कठिनाइयों का कारण यह है 
कि इनमें परिबतेनों का अध्ययन उपभोक्ता के दृष्टिकोण से करना पड़ता है। 
इसलिए कई ऐसी समस्याएँ और कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाती हैं जो मूल्य-देशनांकों 
की रचना में नहीं होतीं। चूँकि लोगों द्वारा वस्तुएँ फुट्कर मूल्यों (८6८४४ ७97/025) 
के रूप में खरीदी जाती हैं, इसलिए थोक-मूल्यों का संग्रहण सार्थक नहीं होगा | पर 
फुटकर मूल्य एक स्थान से दूसरे स्थान में या एक ही स्थान में एक जगह से दूसरी 
जगह अलग होते हैं, इसलिए इनका संग्रहण कठिन होता है। और इनके आधार पर 
बनाए गए देशनांक सब स्थानों के लिए काम में नहीं लाए जा सकते | इसी प्रकार 
जिन वस्तुओं को खरीदा जा रहा हो उनकी राशियाँ ओर उनके गुणों में बहुत शीघ्रता 
से परिवर्तन होता रहता है । इसलिए यह निश्चयपू्वक नहीं कहा जा सकता कि जिन 
मूल्यों का उद्धरण समय-समय पर दिया जा रहा है, वे एक ही प्रकार की वस्तु के हैं। 
अन्य कठिनाइयाँ जो निर्वाह व्यय देशनांकों से सम्बन्धित हैं वे ये हैं कि किसी वर्ग के 
सदस्य वस्तुओं पर एक ही.अनुपात में व्यय नहीं करते ओर न ही कोई सदस्य विभिन्न 
समयों में एक अनुपात में व्यय करता है। इसलिए इन देशनांकों की रचना के लिए 


२५१२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


“प्ौसत परिवार के बारे में जानना पड़ता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि 
निर्वाह-व्यय देशनांक एक ही प्रदेश में रहने वाले किसी एक वर्ग के बारे में बताते हैं । 
प्रदेश का तात्यये यह है कि वहाँ मूल्य लगभग समान रहते हैं ओर वर्ग-विभाजन आय 
के अनुसार किया जाता है। 


रचना द ः 
अब अगर किसी प्रदेश में रहने वाले किसी वर्ग के लिए नि्वहि-व्यय देश- 


नांक की रचना करनी है तो पहले यह निश्चित करना होगा कि इस वर्ग के अन्तर्गत 
कौन लोग आते हैं। इसको निश्चित रूप से परिभाषित करना अत्यन्त आवश्यक है। 
इसके बाद इस वर्ग के सदस्यों के परिवार-बजठ के बारे में अनुसंधान किया जाता 
है | यह अनुसंधान, निदर्शन ( $४777॥78 ) द्वारा किया जाता है । निदर्शन में 
पर्याप्त संख्या में परिवारों को लेना चाहिए.। इस प्रकार श्राप परिवार-बजठों से यह 
ज्ञात हो जाता है कि वर्ग-विशेष के व्यक्ति किस प्रकार की वस्तुओं ओर, सेवाश्रों में 
कितना व्यय करते हैं | इन वस्त॒ुश्नों ओर सेवाओं का वर्गीकरण किया जाता है । ये वर्ग 
बहुधा मोज्य-पदार्थ, कपड़ा, किराया, ईंधन ओर विविध होते हैं । इनको फिर उपवर्गों 
में विभाजित किया जा सकता है जैसे भोज्य पदार्थों को अन्न, दालों और अन्य भोज्य- 
पदार्थों में | इस अनुसंधान में विभिन्न वस्तुओं ओर सेवाओं के प्रदेश में प्रचलित फुट्कर 
मूल्य भी जान लिए जाते हैं । इस सामग्री से प्रत्येक वस्तु या सेवा पर किए जाने वाले 
व्यय के और कुल व्यय के अनुपात की गणना की जा सकती है | साथ ही साथ यह 
भी जाना जा सकता है कि किन वस्तुओं या सेवाओं का समावेशन इन देशनांकों में 
किया जाय | केवल ऐसी वस्तुओं और सेवाओं का चुनाव करना चाहिए जिनका 
वर्ग-विशेष के सदस्यों द्वारा सामान्यतः उपभोग किया जाता है। देशनांकों को अधिक 
विश्वसनीय बनाने के लिए. वे वस्तुएँ या सेवाएँ रखनी चाहिए. जिनके गुणों या 
राशियों में असामान्य परिवर्तन हों । ये वस्तुएँ और सेवाएँ. ऐसी होनी चाहिए, जिनके 
लिए नियमित रूप से मूल्यों के उद्धरण उपलब्ध हो सकें । चूँकि प्रत्येक वर्ग के लिए. 
ये विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों का महत्व अलग-अलग होता है, 
इसलिए फुटकर मूल्यों या उनके अनुपातों को यथोचित रूप से भारित करना पड़ता 
है। किसी वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों का निर्वाह-व्यय पर क्या प्रभाव 
पड़ेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वर्ग के सदस्य उस वस्तु को अपने परिवार- 
बजट में कितना महत्व देते हैं। भारित देशनांकों की रचना के लिए दो प्रकार की 
शैतियों का उपयोग किया जाता है । एक को सामूद्दिक व्यय. रीति ( 9287622/९ 





देशनांक २१३ 


९5००7 वए:९ 770:700 ) या समूही रोदि ( 288768 ८४७ 776070व) 
कहते हैं ओर दूसरी को परिवार बजट रीति ( £श2ग४आ)ए 9प१86४ ४76:700 ) 


या भारित मुल्यानुपात रीति ( 87६८१ :640ए2८5 7767700 ) कहा 
जाता है। 


सामूहिक-व्यय-रीति--इस रीति में आधार वर्ष में वर्ग के सदस्यों द्वारा 
वस्तुओं की राशियों के उपयोग को जान लिया जाता है और इनको या इनकी अनुपाती 
संख्याओं का भार के रूप में उपयोग किया जाता है | फिर प्रत्येक वर्ष के लिए प्रत्येक 
वस्तु पर किए जाने वाले कुल व्यय की गणना कर ली जाती है। जिस वर्ष के लिए 
देशनांक निकालना हो उस वर्ष में प्रत्येक वस्तु पर किए गए. कुल व्यय को उस वर्ष 
वस्तु की आधार वर्ष में खरीदी गई राशि या उसकी अनुपाती संख्या से शुणा किया 
जाता है। सब वस्तुओं के लिये प्राप्त इन शुणन फलों के योग को आधार वर्ष में इन 
वस्तुओं पर किए गए व्ययों और आधार वर्ष में खरीदी गई संगत राशियों के गुणन 
. फलों के योग से विभाजित करके य्रात्त हुई संख्या देशनांक बताती है । 
 परिवार-बजट रीति--इस रीति में कुछ ग्रतिनिधि परिवारों के बजट का 
सतकंतापूर्वक अध्ययन कर लिया जाता है। इन बजयें से औसत? परिवार द्वारा आधार 
ः वर्ष में वस्तुओं पर किए गए. व्यय को जान लिया जाता है। इन व्ययों के आधार 
: पर प्रत्येक वस्तु को भार दिए जाते हैं। प्रतिशतता मूल्यानुपातों ओर संगत भारों के 
गुणनफलों के योग को भारों के योग से विभाजित कर दिया जाता है। इस प्रकार 
प्राप्त भाग फल निर्वाह-व्यय-देशनांक होता है । 
द नीचे दिए गए दो उदाहरण इन रीतियों को स्पष्ट कर देगें | 




















(7० घट) | त्कण्ग्ड | | 
१ -+ ०१५० ढेटेओ-८ ०१५५ 
_ मे ___ (८ 
38 फ 9६ दे 22%) 8 +2%-+ 
# पट रे | ८५४४ ०८३ +श #2.2 4५ [ड्रीम 
2.०९ 6 "2०० ४७५० ते 8४ 298 
9.8 है शेटे ०५९ ०३ ]०४ ५2३ ।2॥% 
मी 3 ०८३०० 8५० ८६ 7९ फ+)> 
कट ०४६ 3.० ] ८ १४ [स> 
झट णेटे भेडे-टे टे ८ 3९ 42२ 
ए डे है. छठ है *ऐे ५ ॥5 
७ ०्छ है ०९ 528 (८ ट्ट [९१.2 
रपट ०्फ ५४ ०४ ३ ५६ 08॥8 
46 हम ० १.०४ ०३ 4६ 2|२५७ 
हि ४ ध४ 2४ ५३ ८८ थे हि 
4 ००६ ०७ ०टे | >26 [> ॥2॥०: 
ध् 
(?5प्व) ०५०४ | ("१?व) ०५०४ | (१७) ९४ (?6) ०४ (०७) ०५ 
(॥६ ४५) (|६ (४9) (६६ ॥809) (६६ (कक)... (2]9 ५६६ [|2%४) 
॥००४ #शेफ | ॥२)०३ ॥र्क | ॥ग्े ॥०+ (६ |॥०३॥|५ ५०४७० म59॥2 
४४ /2/9|०४॥ ० भा...» है 8 फशिल.. ६8४ 0308 |; ]४४२ >॥3॥॥& 




















| है 8 [2 ॥0७४ ४ ४[७४ ॥४०४ 2]8४९| ॥08 (70प३०प०प० 94]४897886४8 ) 
>>. थे ड्रि।७ ॥७ ( 70०प३०ण० ण्ापाएपए०प४० 9४४०7358 ) ै|३ ४०५ $१३]|7॥9 #& ४०४ ।20/२)००।२] 


बता 


फि ६ ७ 9 ]>2 9 


प्रचलित वर्ष के लिए देशनांक 
रो 


य्‌ 
थ्5 भू १२० <( १ 00 
योश्नू ०२० 





सफर ४ >( ९१५०० 
डर 


स5 २०७ 








देशनॉक २१५ 


[996४ #प॑७ए७ए0 (00 टप्र/९ा 
ए८27 
-+->27 7०. ,८0० 
-[20१० 
453 


म्न्द ><700 
42.2. 





55१707 


अब उपयुक्त सारणी में दी गई सामग्री से परिवार बजट शीति ( £977ए 
५०१४०: 77८:7०० ) या भारित मूल्यानुपात रीति ( छलं80(66 76]20२८ 
77०(7004 ) से निर्वाह-व्यय देशनांक निम्न प्रकार बनाया जायगा | 


२१६ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त क्‍ 














(४८) (छ) 
००४६ सा ९९००५ -+ हा 

००४४ ००३ % हे ए ” छ॥३ ० «४5६९ $९ ०4 ७८७५ 
०#जछे ००३ >< हे ७०४४ ० >टे३ श्र ॥2|३ ।% ।ड्र।॥] 
०५२०८ ००३ >< इहे ५२.० 9५० शोटे ड़ 
०४३ है ००३ % ह ९.३ फ «३ 222] &004 
०४३ ००३ 2८% ४४५० 8 ५० ४ ५७॥» 
००७४ ००४ »< +र 3.० ह. ०ट्ट )> 
००, ६ ईद ८३ 5९.८ है. ल्ह्े बाप 

हु | हु फ | लि 
००४ ००४ >( ५६ 
०००४ ००३४ »< 5 ण्षे +26 है 2 9 
०००७ ००३ 5६ ०6 है पट /2०]|8 
० "है ००३ 2६ ैई पं म ०६ हु रे हार 
०० ००8३ >८< ग्रे 9६ ट्ट रह 
७०००३ ००३ “56 ०2 28 ०३ 4232]% 

(५) ४४% ४ (पु) |. ०३, ( ५ (व ) हू दाद ६ 
.. भा: 5) हा 23 [203 हे 2: 
>८ (० ० 55/१९९९७8 |. कं | 0222 ४५ कर 8 

902॥०श१ ]४2॥० ५ है. 8 शत |. कुक जकयाद.।. हे कुपर अफप& 




















देशनांक २१७ 











प्रचलित वर्ष के लिए देशनांक [ए0त657प्राण)6४ (08 ८प४६८०४ 
यो, प्द्धां 
त्ज्लः मीट 
श्र »फ५ 
__ ४४२०० _47530०0 
.. ४१२ |... 4०० 
स्ा१०७ | न्ल्व्0ा 


_ बैसा कि पहले स्पष्ट किया जा चुका है इन दोनों रीतियों से देशनांक का मान 
एक ही आता है। 


विभ्रम 


निर्वाह व्यय देशनांकों में विश्रम होने के कई कारण हो सकते हैं। पहला 
कारण प्राप्त प्रतिनिधि वस्तुओं के चुनाव व उनके मूल्यों से सम्बन्धित है। इसमें इस 
बात की सम्भावना रह सकती है कि ऐसी वस्तुओं का चुनाव हो जाय जो प्रतिनिधि 
नहों या प्रतिनिधि वस्तुएँ छूट जाये । मूल्यों के उद्धरण में भी कठिनाइयाँ हो सकती 
हैं। ये कठिनाइयाँ वस्तुओं के ग्रकारों ओर उनके विभिन्न रूपों के कारण उपस्थित 
होती है। फुटकर मूल्यों में समानता न होने के कारण भी विश्रम हो सकता है। जैसा 
बताया जा चुका है, ये मूल्य एक ही स्थान में अलग-अलग हो सकते हैं। अगर वर्ण 
को निश्चित रूप से परिमाषित कर भी दिया जाय तो भी विश्रम होने का कारण यह 
है कि एक वर्ग के अन्तर्गत आनेवाले परिवार विभिन्न रूप से व्यय करते हैं। माँग 
में परिवर्तन होने के कारण भी देशनांकों में विश्रम हो जाता है। पर इनका सबसे 
बड़ा दोष यह है कि गलत भारों का उपयोग करके झूठे देशनांक बनाए, जा सकते हैं | 


इन सब विश्र्मों के कारण निर्वाह-व्यय देशनांक असंतोषजनक होते हैं। 
वास्तव में इन पर पूर्णतः निर्मर नहीं रहा जा सकता क्योंकि एक ही आय-समूह: 
((7८0706-27०५७) के सदस्यों के विभिन्न वस्तुओं पर किए. जानेवाले व्ययों का 
वितरण अलग-अलग होता है। यह वितरण परिवार के सदस्यों की संख्या, उनको 
_रुचियों, उनकी आयु, वस्तुओं आदि के मूल्य पर निर्मर रहता है और ये चीजें 
परिवर्तनशील हैं | दूसरी मान्यता इन देशनांकों को बनाने में यह है कि आधार वर्ष 
में उपयुक्त राशियाँ अपरिवर्ती हैं | अर्थात्‌ वर्ष-प्रतिवर्ष केवल मूल्यों में परिवर्तन होता 
है, वस्तुओं की राशियों में नहीं | वस्तुतः ऐसा होता नहीं है । इन राशियों: से 


श्ध्८ द सांढ्यिकी के सिद्धान्त 


साधारणत: परिवतंन होते हैं। यह कहा जा सकता है कि इन देशनांकों में निर्वाह- 
व्यय में हुए आधार वर्ष के सापेक्ष वृद्धि का अनुमान लगाया जाता है। पर 
आधार-वर्ष के रहन-सहन के स्तर को ठीक स्तर मानने का कोई कारण नहीं है | ये 
कठिनाइयाँ थोड़ी-बहुत दूर की जा सकती हैं यदि यथोचित सामग्री का संग्रहण बदलती 
हुईं दशाओं के साथ किया जाय | पर इसकी कठिनाइयाँ स्वत: स्पष्ठ हैं । 


औद्योगिक उत्पादन के देशनांक (7065 ०६ ]760%79] ?704प८४००) 


मूल्यों के निर्बाह-व्यय के देशनांकों के अलावा औद्योगिक उत्पादन के 

देशनांकों की मी स्वना की जा सकती है | ये देशनांक बतायेंगे कि किसी निश्चित 
वर्ष की तुलना में प्रचलित वर्ष के उत्पादन में कितनी बृद्धि या कितना हास हुआ है। 
स्पश्तः ये परिवर्तन औद्योगिक उत्पत्ति (77605807742| 0०प६८०प६ ) के परिमाण में 
होनेवाले परिवर्तनों से जाने जा सकेंगे | इसलिए. औद्योगिक उत्पादन के देशनांकों 
की रचना करने के लिए सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि देश के विभिन्‍न 
उद्योगों के उत्पादन का परिमाण क्‍या है । ये देशनांक राशि में हुए परिवर्तन बताएगा । 
अगर द्रव्य के रूप में देशनांक रचना करनी हो तो इन राशियों के मल्य ज्ञात किये 
जा सकते हैं | इस प्रकार ओद्योगिक-उत्पादन-देशनांकों की रचना या तो उत्पत्ति की 
राशि जान कर की जा सकती है, या उसका मल्य जान कर। 


उत्पत्ति सम्बन्धी सूचना साधारणतः निम्नलिखित शीषकों के अन्तर्गत प्राप्त 
की जाती है 

(१) खनन उद्योग ()(772 47005:४०८४)--इसके अन्तर्गत असिद्ध 
खनिजों (०:८४) और अन्य खनिजों का उत्पादन आता है, जैसे कोयला, लोहा, 
मैंगनीजू, ताँबा, अल्यूमीनियम, पैट्रोलियम आदि । 

(२) घातु-शोधन उद्योग (४८४००४८४। 490058:४४८5)--इसके 
अन्तगंत वे उद्योग आते हैं जो खजिनों को धातुओं के रूप में या अन्य रूपों में बदलते 
हैं। जैसे लोहा और इस्पात उद्योग, हवाई-उद्योग आदि | 

(३) यान्त्रिक उद्योग (४८८४4पा८शनां 7700807765)--इसके अन्तगंत 
यन्त्र या मशीनें बनाने वाले उद्योग आते हैं, जैसे जहाज, वायुयान, मोटर, रेल के 
इंजन ओर अन्य प्रकार की मशीनें बनाने वाले उद्योग । 

(४) बस्न-उद्योग (7९८४८ 70०5८४८४)--जैसे सूती कपड़ा, ऊनी 
कपड़ा, रेशम, जूट आदि से सम्बन्धित उद्योग | द 


देशर्ांक । रह 


(५) वे उद्योग जिन्हें उत्पत्तिकर देना पड़ता हो (967800805 
$77]०८४ ६० ०इटाॉ5८ 60६९५)--चीनी, दियासलाई, शराब, तम्बाकू आदि । 

(६) अन्य महत्वपूर्ण उद्योग (०७०८८ ॥79700:0%7 40008076४)-- 
साबुन, रासायनिक पदार्थ, आय-मिलें, सिमेंट, काँच के समान, तेल, आदि । 

इन उद्योगों की उत्पादन-सम्बन्धी सामग्री मासिक, त्रेमासिक या वार्षिक उत्पत्ति 
के अनुसार उपलब्ध कर ली जाती है। आधार-वर्ष के उत्पादन की राशि को १०० 
मानकर अन्य वर्षा के लिए. उसकी गणना कर ली जाती है अर्थात्‌ प्रतिशतता उत्पादन- 
अनुपात निकाल लिए जाते हैं। उत्पादन के इन प्रतिशतता अनुपातों को उचित रूप 
से चुने गए भारों द्वारा गुणा कर दिया जाता है। मारों की गणना उद्योग का देश के 
लिए महत्व, या. उत्पत्ति के मूल्य या किसी अन्य उचित आधार के अनुसार किया 
जाता है। अनुपातों का भारित समान्तर या शुणोत्तर माध्य औद्योगिक-उत्पादन होता 
है। ये देशनांक कुल उत्पत्ति (87085 ०५५०णा) या वास्तविक उत्पत्ति (760 
०7०००) के लिए, सवे जा सकते हैं । द 


व्यापारावस्था देशनांक ([79085 06 8957685 (:070॥0078) 


व्यापार की आवश्यकताएँ. कभी भी समान नहीं रहतीं | उनमें परिबतन होते 
रहते हैं | कमी मन्दी रहती है, कमी तेजी | कमी व्यापार में समृद्धि रहती है ओर 
कभी वह संकटावस्था में रहता है । इन परिवतेनों के लिए भी देशनांकों की गणना की 
जाती है | इनकी गणना करने का एक लाभ यह भी है कि इनके द्वारा व्यापारावस्थाओं 
के बारे में पूर्वानुमान ([07०८०७८) लगाया जा सकता है, क्योंकि ये परिवर्तन आवार्तिक 
(7०:४0070) होते हैं । पर चूँकि व्यापारावस्थाओं की जानकारी के लिए पूरी अर्थ- 
व्यवस्था पर विचार करना पड़ता है--उसके किसी एक पहलू पर नहीं--इसलिए 
इसके लिए जो सामग्री संग्रहित करनी होगी या जिन विषयों के बारे में सूचना प्राप्त 
करनी होगी वे बहुत विस्तृत होंगी। अन्यथा वे व्यापारावस्था को सही रूप में प्रस्तुत 
नहीं कर पाएँगी। इंगलेंड के प्रोफेसर पीगू (2706०5507 शं8००) ने निम्नलिखित 
पदों का चुनाव किया है। 


(१) अनादृत्ति प्रतिशतता (घ0०707]0ए77670 [207८८7:226) | 
(२) लोहे का उपभोग (०075प770४079 ०६ एछा8 4707) । 
(३) इंगलैंड में मूल्य (97065 7. 728[20व)। 


२२० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(४) त्रैमासिक विपन्नों पर बट्दे की दरें (:४(०४ 0६ 9]800प४( 07 ६97९९ 
77707/05?7]5) | द 
(४) निर्मित पदार्थों का परिमाण (ए०]एा४९ ०6 खश्यापिलप०त 
80008) | 
(६) कृषि से सम्बन्धित उत्पादन (32#८प:प४६ 970त0८४४07) । 
(७) नो प्रमुख फसलों की प्रति एकड़ उपज (ए3९[० 0670 2076 0९ 7॥॥6 
77८92 ८८05) | 
(८) खानों के उत्पादन के देशनांक (प्रतेल्ड 66 छ9:0वंपलांठप (09 
7777८3) | 
(६) लन्दन क्लीयरिंग हाउस के भुगतान (८९४४०28$ ०६ ॥,09467 
एं८बपए8 7075८) | द 
(१०) बैंक-साख की वृद्धि ((007०४8० ०६ >27-८ा6त0) | 
(११) अप्रात उधार (८6095 ०फाशब्ातांग8) । 
(१२) सामूहिक द्रन्यिक मजदूरी में वार्षिक वृद्धि (477प०४7 7८०८८३४४८ [9 
८06 ४887०2408 77076ए 7४४2८) | 
(१३) वास्तविक मजदूरी की दर (548 ०0 $+6४४ ए28७) । 
(१४) सामान्य सामूहिक उपभोग (2676: 982887९282/6 ८005पए9- 
४0०॥ ) | ढ 
(१५) बैंक ऑफ इंगलैंड की संरक्षित निधि और उसके दायित्व का अनुपात 
(97070:007 06 ९४६४९ ६0 ]40]]86४ ०६ (४९ 847६ 0६ +302270) | 
ये राशियाँ किसी आधार वर्ष को लेकर अनुपातों के रूप में रखी जाती हैं। 
इन अनुपातों को उचित भारों से शुणा किया जाता है | इन गुशनफलों के योग को 
भारों के योग से विभाजित करके ग्रात्त होने वाला अंक व्यापारावस्था-देशनांक होगा । 
अर्थात्‌ इन राशियों का भारित माध्य व्यापारावस्था-देशनांक होगा | द 


देशनांकों के उपयोग और उनकी परिसीमाएँ 
(888 0६ [7065 पए०55 & पाल फ्रांध्या005 ) 
पिछले अनुच्छेदों को पढ़कर यह विदित हो गया होगा कि देशनांकों का 
उपयोग ऐसे सभी स्थलों में किया जाता है जहाँ सामग्री आंकिक रूप में प्रस्तुत की जा 
सकती हो और समय के साथ परिवर्तित होती हो | इसके लिए नियमित परिवर्तन होना 


देशनांक २२१ 


ग्रावश्यक नहीं है| इसके साथ-साथ यह भी स्पष्ट हो गया होगा कि देशनांक सापेक्ष 
परिवर्तन बताते हैं। देशनांक रचना की उपयुक्त दो आवश्यकताएँ: कई प्रकार की 
सामग्रियों में पाई जाती हैं, इसलिए विविध प्रकार के देशनांक मिलते हैं, जैसे, मूल्यों 
के, निर्वाह स्तर के, औद्योगिक उत्पादन के, व्यापारावस्था के, मजदूरी के, आयात- 
निर्यात के आदि | मूल्यों के देशनांकों द्वारा मूल्यों में होनेवाले सामान्य परिवर्तन का 
ज्ञान होता है। इससे द्रव्य का मान (ए० ७८ ०६ 7707०) मालूम किया जा सकता 
है | द्रव्य के मान का तात्यय॑ उसकी क्रय-शक्ति से है | अगर इससें परिवर्तन शीम्राति- 
शीघ्र हो तो अरअ्-व्यवस्था में स्थायित्व नहीं रहेगा | इसलिए, इसे लगभग समान रखने 
का प्रयत्न किया जाता है | पर इस प्रयत्न को करने से पहले परिवर्तन का ज्ञान होना 
आवश्यक है, जो बिना देशनांकों की सहायता के नहीं हो सकता । विभिन्न देशों के 
मूल्यों का स्थायित्व ओर उनकी क्रय-शक्ति भी इन देशनांकों द्वारा जानी जाती है । 
निर्वाह-व्यय देशनांकों द्वार वास्तविक मजदूरी (6० 5५285 ) में होने वाले 
परिवर्तनों को जाना जा सकता है। ओऔद्योगिक-उत्पादन देशनांकों या ओद्योगिक- 
कर्मण्यता देशनांकों (70॥02८8 ०६ 70परश४०स 2८४४१५ए) द्वारा किसी देश के . 
ओऔद्योगीकरण का अनुमान लगाया जा सकता है । व्यापारावस्था-देशनांकों द्वारा किसी देश 
की आर्थिक अवस्था और उसकी आर्थिक अगति का अन्दाज लगाया जा सकता है। 
किसी देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में होनेवाले उच्चावचनों (#ए0८प७४४४०॥७) 
को भी जाना जा सकता है। साथ ही साथ इनकी सहायता से भविष्य में होनेवाली 
घटनाओं का पूर्वानुमान किया जा सकता है। इसी प्रकार विदेशी व्यापार के देशनांकों, 
ऋण-प्रों के मूल्यों आदि के देशनांक भी तत्संबंधी परिवतेनों के बारे में महत्वपूरा 
जानकारी देते हैं । क्‍ 
पर इन सब बातों के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए, कि ये 
केवल 'हगभग संकेतक' (9777०570%76 470८%:079) हैं। न केवल सामग्री 
ग्राप्त करने में विश्रम हो सकता है बल्कि आधार वर्ष के चुनाव, प्रतिनिधि वस्तुओं के 
चुनाव, मूल्यों ओर राशियों में स्थानानुसार बदलाव ओर मारावंदन (3%४9पस07 
०६ ०209) में भी च्रुटियाँ होती हैं | पर इसके बावजूद भी इस बात पर विश्वास 
किया जा सकता है कि देशनांक जिस दिशा में जाएँगे उसी ओर चल (ए००!०) 
की उपनति (+८॥70) होगी। अर्थात्‌ देशनांकों द्वारा उपनति जानी जा सकती है । 
इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि एक उद्देश्य से बनाए गए देशनांकों का उपयोग 
दूसरे स्थलों में न हो अन्यथा गलत निर्वचन ((708797०६०(४07) किए जाएँगे | 





र्स्र्‌ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


प्रश्नावली 


(१) “देशनांक आ्थिक बैरोमीटर है. ।” इस कथन की व्याख्या कीजिए 
तथा साथ ही यह भी बताइए कि किसी प्रकाशित देशनांक का प्रयोग करते 
समय आप किस भ्रकार की सावधानी बरतेंगे। 

( बी० कॉम०, इलाहाबाद, १६४२ ) 

(२) एक उदाहरण के द्वारा यह दिखाइए कि किस प्रकार आप देशनांक 
को एक आधार वष से दूसरे आधार वर्ष में परिवतित करेंगे। 

( बी० कॉम०, आगरा, १६४० ) 

(३) थोक-मूल्यों के भारित देशनांक की व्याख्या एक उदाहरण सहित 
कीजिए तथा उसकी विशेषता भी बताइए । 

( बी० कॉम०, नागपुर, १६४२ ) 

(४) देशनांकों की रचना करने में (अ) गुणोत्तर मध्यक तथा (ब्‌) 
अंखला आधार पद्धति की अभियुक्ति (८५॥775) बताइए | उदाहरण सहित 
इनको पुष्टि कीजिए । द द 
“( बी० कॉम०, दिल्‍ली, १६४३ ) 
(४) देशनांक को परिभाषा दीजिए । मूल्य-देशनांक की रचना में भारों 
के स्थान को भी व्याख्या कीजिए । ह 

( एस० ए०, राजपूताना, १६४० ) 

(३) मूल्य-देशनांक की रचना के लिए एक आदश सूत्र की समस्या पर 
विचार कीजिए । देशनांक की उत्काम्यता से आप क्‍या सममते हैं, अच्छी तरह 
सममाइए । ५ एस्० ए०, पटना, १६४० ) 

(७) एक औद्योगिक स्थान के मजदूरों के निर्वाह-व्यय-देशनांक की 
रचना आप किस पद्धति से करेंगे, संक्षेप में समराइए | 

( बी० कॉम०, ऑनसे, आन्ध्र, १६४४ ) 

(८) आशिक प्रभावों की व्याख्या करने में देशनांकों की विशेषता को 
उदाहरणों सहित प्रदर्शित कीजिए । ( बी० कॉम०, इलाहाबाद, १६४६ ) 

(६) निाह-व्यय-देशनांकों में भ्रमों के कौन से मुख्य कारण हैं? ये 
अम किस प्रकार से दूर किये जा सकते हैं! ( बी० कॉम०, इलाहाबाद, १६३८ ) 


देशनांक २२३ 


(१०) देशनांकों की उपयोगिता वतल्ाइए | सामान्य तथा निर्वाह-व्यय- 
देशनांकों की रचना में कौन-सा तरीका काम में लाया जाएगा ? द 
( बी० काम०, आगरा, १६४२ ) 
(११) निर्वाह-व्यय-देशनांक्ों की रचना करते समय <ाप आधार-निर्णेय 
तथा भारों की निश्चितता के लिए किन बा. को ध्यान में रखेंगे ? 

(बी० कॉम ०, आगरा, १९४३) 
(१२) निम्नलिखित सारणी में कन्षकत्ता में १६१४ से १६३० तक के. 
लिए जूट के वाषिक थोक मूल्य ( ४०० पौंड श्रति गाँठ में ) दिए हुए हैं। 

देशनांक की रचना कीजिए । द 





























वर्ष स्पये वर्ष रुपये 
१६१४ ७६ १९२२ प्य्ष्र 
१५६५५ द पड १५९२२ जिद 
१६१६ ६७ १९२४ न 
१६५७ ५६ १५९२२ १५१२ 
श्ध्श्द द ७२ १९२६ ९ 
५६१6 ५०२ । १९२७ ७६ 
१६२० । ध्ष्द १९र्प ७४ 
१६२१ । ६४ श्६२९ ७१ 

१६३२० ५० 


(?:8८४८४) 77009[6705$ 48 5६808005 7२०. 793) 

(१३) भारतवर्ष से १६३०-३१ से लेकर १६३४-३६ तक कच्चे कपास 

तथा कच्चे जूट के निर्यात में उच्चावचन ( (प८८प०७४०४०७ ) की व्याख्या 

करने के लिए एक अनुकूल देशनांक को रचना कीजिए । १६२६-३० को आधार 
बष मान ज्ञीजिए । 


२२४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





कच्चे कपास | कपास का कच्चे जूट कच्चे जूट 
वर्ष की मात्रा मूल्य _। की मात्रा का मूल्य _ 
(१००० टन) | (लाख रुपयों में) (१००० टन) | (लाख रुपयों में) 











७७७७७७७७७"ए/श७७॥७॥४७७७७ए"ए"शआआआश////श/"/"/"/"श"शआआआआआआआआआआणणणशशशएणशणणणशआेाेाआआणआआआआआएशशशणशणशणशण"णश"श"ए""श"श"श""नश"श"णशणणणशशाा 





१५९२०५--३० ६०९ १६४१ ८२६ २६ २४ 
(माध्य) 
१६€ ३ ०-३ ९ ७०४ ६४३१३ ६२०. | (रन 
१६३२६९--३२ ४२१३ २२४०५ घव्ू७ | १११९ 
१९३२--३३ २६५ २०२७ ५६ ३ ६७३ 
९६ ३२३--३४ ०४ र७भरे ७च्प १०६३ 
१९३४--३५ ६२३ ३४९५ ७५२ १५०८७ 
१९३५४--३६ ६०७ ३३७७ ७७१ १३७१ 

















(आई० सी० एस०, १६३६) 
(072८0९३॥॥ ?700]608 वं। 5408005 ०, 797) 
(१४) भारत में ओद्योगिक उत्पादन की निम्नलिखित सामग्री को 
आंखला आधार पद्धति के द्वारा औद्योगिक-कर्मर्यता की तुलना करने के लिए 
प्रयोग में लाइए : 
भारतवर्ष में औद्योगिक उत्पादन के देशनांक 

















वषं देशनांक वर्ष देशनांक 
१६ १६--२० १२० ९९२६--२७ १५४९ 
१५६२०--२ १ श्र १९९२७-- रद १५६ 
९९२१-२२ | ११६. | १९ए८--२६ १२७ 
१६२२--२३ १२० |. १९२६-३० १६२ 
१६२३--२४ १२० १९३०---३ १ १४६ 
१६२४--२५ १३७ १९३१-३२ १६० 
१९२४--२६ श्३६ | _ १९३२--३३ १६० 








(एम० कॉम०, लखनऊ, १ ९७३) 
(?:३०४०५ 2700]6775 47 502805030$ ९०. 798) 


देशनांक 


२२४ 


(१५) निम्नलिखित सारणी में सन्‌ १६४४ से लेकर १६५१ तक के 
लिए अ, ब और स वस्तुओं के माध्य थोक मूल्य दिये हुए हैं 





वस्तु 



































मय 


१६५१ 








माध्य थोक मूल्य ( रुपयों में ) 
शध्थ४.. १६४४ १ ६४६ १६४७ १६४८ १६४६ 
५०६... ६१*६ ६६८ [७१०० |७०-६ |७२*० 
द््षप् ६"४।| ४९.६ | ६९२ ६*४। ७'थ 
| ३६६ रथ ८ रि३"४ सवा रप६ ३००२ 








७२९'८ 


६*० 


ष्या० 








७५'६ 


ईद - 


३४:8६ 





उक्त सामग्री से (१) १६४४ को आधार ब्ष मान कर (२) झड्डला 
पद्धत्ति के द्वारा, देशनांक की रचना कीजिए | 


( ?074८:09 0009[8705 40 584:8005 )२०. 799 ) 


(१६) नोचे चार वस्तुओं के थोक-मूल्य देशनांक तथा इनके साध्यों 
के ऊपर आधारित एक और देशनांक, दिये हुए हैं । शृह्डला आधार पद्धति 
द्वारा £ वर्ष के लिए एक नये देशनांक की रचना कीजिये । 





वे 


१९४६ 
१६४७ 
श्ध्ष्द 
१६९४६ 
९६५० 
१६५१ 



































वस्तुओं के थोक मूल्य देशनांक 
योग माध्य 
त््र न सर द 
र्ण्प ४७६ २२० ३२४ | शरेस्थे रे३२ 
२१६ प१२ श्स्ष्य श्ष्द १३०४ २२६ 
4०० चुटीड | ४०० घ४श्द्‌ श्ध्ग्प चग्र 
३०० ६१६ श्य४ । २७२ १६७२ थश्ध 
१७२ ६६० ३५४२ | २४० १४२४ ३४६ 
१७६ ६३६ | रे*६ | २४० श्४०्य ३२५२ 





१४ 


(272८7४८३। 009]677$ 47 5020300$ 7४०. 2००) 


२२६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(१७) निम्नलिखित सामग्री से १६३४ के लिए (१६३० पर आधा- 
रित ) । मूल्य देशनांक को रचना कीजिये | समझाइये कि आप किस माध्य 
का प्रयोग करेंगे ? इसके कारण भी लिखिये । 














मल्य ( १६३० में मुल्य ( १६३४ में 
वर्ड इकाई झु० हि पा रु० ओआ ० पा: 
चावल प्रतिमन ४--१२--० ७-- २--० /»- 
गेहूँ हट गै2 ३--१ ०--- ० ५९...ह ८-६ 
अलसी १. 2) ६--- ८-० ४---१४--- ० 
शुड़ १2. 7? ६----. ४---० ६--- ४ ---० 
कपास 2. ?) १७--- ४---० १२---१५--० 
तम्बाकू १ हा! (६. ९०० ११--- ४---० 








* (2?#ब०८८४ ?700]675 0 390%750८5 २०, 2०2) 


(१८) निम्नलिखित सारणी में सन्‌ १६२७ और १६३७ ( जुल्लाई, 
१६४१-१०० ) में कुछ वस्तुओं के थोक मूल्य देशनांक दिए हुए हैं। अच्छी 
तरह सममकाइए कि आप किस प्रकार १६३७ के मूल्यों के अनुपात की तुलना 
१६२७ के मूल्यों के अनुपात से करेंगे ! यदि आप एक से अधिक पद्धति का 
प्रयोग कर सकते हों तो उनके सापेज्ञ लाभ ओर कमियों को बतलाइए | 

















मलयों का देशनांक 
वस्तु *- 
१६२७ | १६३७ 
कच्चा जूट ५ ६३ ५६ 
जूट की बनी वस्तुएं १४६ ६७ 
कच्चा कपास. १६७ -... ८६ 
कपास की बनी वस्तुएं १५६५८. ११७ 
ऊन तथा रेशम १२६ १२६ 








(शए4टाटब[ ?2709]678 0 8080800$ ०, 205) 


देदानांक २२७ 


(१६) निम्नलिखित सारणी से, जिसमें १० मुख्य वस्तुओं के माध्य 
मूल्य दिए हुए हैं, १६२६ तथा १६२८ के लिए देशनांकों की स्वना कीजिए | 
(१६२४ का माध्य सूक््य -- १००) 





नि निभी किक न अल लक ा॒ऋलललल॥॒ललअलभ॥ बम ाआाााााआ अर भभभएऊभधभभछघघणघघघ्घघ्भणणआााणाणआ॥एएर्रएएएएणशशशणणणण"णएएएएणएएणएछाए 


इ्यों ९७ माष्य सल्य ९ मल्य॑ ९ मल्य ९ 
वस्तु (इकाइयों में) [लय (१९२४) मूल्य (१९२६) | मूल्य (१९२८) 


(रुपयों में) (रुपयों में) (रुपयों में) 














चावल ग्रति मन | *--१४-२ ६-....२---० ६---८-... ० 





गेहूँ * 9) 2) थू.0हहऋह *....... ० 9-२... ० ७---६--..० 





घी 27 330 ६५--- ०>--० ६३-० .त०७ ६ १-८० 





दूब ? 2?| ध्ट | नस | नाश 22 2 | पू-- ०-० ४-१ २-३ ४--.८---० 








इंधन प्रति गट्ठा | २७-- ८-+-० २६--.४--० २५-...९--..० 






































कक गति मन| ४-३० | साथ | सेनथणण प्रति मन | ४-- ३--० ३--१५४-० । ३०-६० 
चीनी ” | शड-- ४-० १३--छ८+--० १२-- १२-० 
कपड़ा प्रति गज | ०-- ७--० ०--८---० ०--६--..० 
लाई का तेल” मन | ४-- ०--० ४ई--प--+० । ४--३--० 
दलें प्रति मन | ४-० ८-० | इ-३-० | से प्रति. मन | ४-- ८-++० ६---३--० ६-.७---० 














साथ ही १६२६ तथा १६२८ के लिए ( १६२४ पर आधारित ) एक 
सामान्य मूल्य देशनांक की भी रचना कीजिए | 
(?#३८४४८४] ?7096708 7 50%08008 ४0. 2०4) 


(२०) निम्नलिखित सामग्री से (१६३६ को आधार वर्ष मानकर) १६४६ 
में भोजन-वर्ग के लिए एक भारित देशनांक की रचना कीजिए । 

















र्र्ष् सांख्यिकी के सिद्धान्त 
। की मर मूल्य प्रति सेर | मूल्य प्रति सेर 
जन-वर्गे भार ही कक 
भोजन-र्ग की म क्‍ (१६३६ में) .। (१६४६ में) 
न्त्ग्ण्ण्ज््््च्््््ज्नजगजक्षऋ कगार कछऋ कऋग कक्षा 
गेहूँ ४० 0. ० | 6 | ५ 
चावल २० ० २ ० ७०. १७ ० 
चना १५ ० ० ०९ *#. दृ 
अरहर की दाल प्‌ ० २ ३|६ ० ६ ० 
द्ध ६ ० २६ ६|६ ० १० ० 
लाई का तेल १० ० ४ ०| २ ८ ० 
चीनी ३ 0 हा ० ० २४ ७ 
नमक १ ० रो ० ० ३ ० 
२१०० । 














(?४३८४८४) ?#00]6775 ॥7 50208005 7२०. 2०5 ) 
(२१) निम्नलिखित सामग्री में, तुलना के हेतु, आप किन देशनांकों को 
प्रयोग में लाएँगे ? कारण दीजिये । 





. वर्ष 





१६२७ 


१६३४ 























चावल गेहूँ 
मल्य | मात्रा | मल्य | मात्रा 
फ आओ 
६*३ १०० | ६४ श्श्‌ 
४*प ६० | २७ ५१० 





























उवार 

मल्य मात्रा 
११ प्‌ 
२७ रे 








मूल्य तथा मात्राएँ कल्पित-इकाइयों में दी गई है। 
क्‍ ( एम० ए०, कलकत्ता, १६३१) 


(६ 02:2८८९वा ?707608 |7 5६द08008 ०. 2०7 ) 


(२२) खण्ड-उत्कराम्यता परीक्षा से आप कया समभते हैं, स्पष्ट कीजिये। 


देशनांक 


२२९ 


निम्नलिखित सामग्री से फिशर के आ्रादर्श देशनांक की रचना कीजिये तथा 
यह भी बतलाइये कि यह किस प्रकार खण्ड उत्क्राम्यता परीक्षा को पूरा 























करता है । 
जिला सारन में कुल अनुमानित जिला सारन में फसलों के 
उत्पादन ( हजार वनों में) समय मूल्य (प्रति मन) 
६ पर | ९ र९रर | १९३ १--३२ | १र३ए-पउत्र 
रू आ० | रु०  आ»० 
शीतकालीन 
चावल १७. २६ ३ ८ ३ २ 
जौ १०७ ८३ २ ० शर्श्ड 
मकई ६२ ४८ र ९ | १ १२ 


॑ररायाभताअपाकाधकाा/ कया तर भा १०ज कान भा दादा का ॥ा भा नाता तन ला की भ ताक भाह2 ५ ३७॥७७॥॥७७०३७॥७० ३ काका त का भाक काना तनाव काका भाकक भा 

















(774० 79% 9/07]80775 48 5&४80058 ०, 208) 
(२३) निम्नलिखित सामग्री से यह सिद्ध कीजिये कि देशनांक के लिए 
फिशर के झादरश सूत्र द्वारा खण्ड उत्क्राम्यता परीक्षा पूरी हो जाती है। 





निभा 








बस्तु अधार वर्ष में 
मूल्य 

श्र दर 

ब २ 

स है. 

द्‌ ९० 

दे ८ 





आधार वर्ष में 
मात्रा 





५० 
१०० 
६० 
३० 
४० 





प्रचलित वर्ष में 











प्रचलित वर्ष में 
मूल्य मात्रा 
१० प्द्‌ 
२ १२० 
६ ६० 
१्२ र्४ 
१२ 





क्‍ (एम० कॉम०, इलाहाबाद, १९४६) 
- (एबटपंतरीं 207078 40 50४08708 २०, 209) 


२३० 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२४) निम्नलिखित सामग्री से फिशर का आदर्श देशनांक बनाइएं और 
यह दिखलाइए कि किस प्रकार समय-उत्क्राम्यता परीक्षा को पूरा करता है। 

















पर आ्राधार-वर्ष | प्रचलित-बर्ष | प्रचलित-बर्ष, 
तस्ठु इकाई | मूल्य । मात्रा |. मूल्य मात्रा 
गेहूँ प्रति मन | ८ रुपये ५० | २० ६० 
घी. प्रति सर | २. प्‌ दर १० 
इंधन प्रति मन |. १ २० र्‌ २५. 
चीनी प्रति ५सेर| २ क्‍ १० ५ ८ 
कपड़ा प्रति गज | १ क्‍ ४० ३ ३० 























वगं-भार दिए हुए हैं । भारों सहित निवहि-व्यय देशनांक की 


(72८८ ?०ाध्या5 मा 5405008 ०. 27 ०) पु 
(२५) नीचे एक श्रीसत मजदूर परिवार के बजट के वर्ग-देशनांक तथा 





वर्ग 


भोजन 


इंधन तथा रोशनी 


कपड़ा 


किराया 


. विविध 





-(70३०४८४] 7:66. 


देशनांक 


३५२ 


. २२० 


. २३० 


१६०. 


' १९० 





रचना कीजिए । 





भार 


मदशाशाकााााशाधध नाकााााक॥ 99 ॥॥0७५ कमान 











(झआाई० ए० 


४८ 


१० 


८ 
१२ 


१५ 





एस०, १९५०) 
77 5(805008 ०, 27 2) 


देशनांक २३१ 


(२६) इंगल्लेएड के एक शहर के मध्य-वर्ग परिवारों के बजटों से हमें 
निम्नलिखित सूचना प्राप्त होती है :-- 


न कनमन+ नमन न» मन जनक नम पान कप न “५-५५ 3५» > +भथ+३»७ रस ७५५५५७)५५५४३ ..3०५७०५+५० ७०० प ५५५५७ ५.५५», - 
हि 








मदों पर व्यय॒| भोजन | किराया | कपड़ा | >ईवन | विविध 
२५% १५% २०% १०% २०% 


मुल्य ( १६२८) ९५५० पौंड ३० पौंड ७५ पौंड श्५ पौंड ४० पौंड 
मूल्य (१६२६) | १४५ पौंड | ३० पौंड | ६४ पोंड | २३ पौंड. | ४५ पौंड 




















१६२८ को तुलना में १६२६ के निर्वाह-व्यय अंकों में क्या-क्या परि- 
बतेन मालूम होते हैं ? ( बी० काम० लखनऊ, १६४४ ) 
(?2:48८0९७॥ ?700]6775 40 50808008 7१०. 277) 
(२७) निम्नलिखित सामग्री से इलाहाबाद के सजदूरों के विविध-बगगे 
का निर्वाह व्यय देशनांक बनाइये। 
विविध वर्ग ( १/8८०।|३४०९०प४ (57009 ) 


























क्रम १६३६ में माध्य | १९५१ में मूल्य 

संख्या नरस्ठु इकाई भार मूल्य (रुपयों में) (रुपयों में) 
१ । नाई प्रति हजामत | १३ ०--ै--६ | ०७-- ६--० 
२ | साबुन प्रति धआारः & ०---५--३े | १-- ४-० 
३ | दवाई » गोतेल ३। ०-८--० | २--- ८-० 
४ । सुपारी ५» पौंड २५ ०--४--० १--- ५--० 
५ | बीड़ी ५ भंडल २२ ०--१---० | ०--- ४--० 
६ | यात्रा में व्यय २७ ०-+--४--६ | ०--१४---० 
७ | अखबार प्रति कापी १ ०---०--६ै | ०«०- २--० 


॥ 








(?£2३८४८४) ?7079]6797$ 40 5040570$ २०, 274) 
(२८) निम्नलिखित सामग्री से (१६३६ को आधार मान कर) १६४० के 


लिए निर्वाह-व्यय देशनांक की रचना कीजिये। सामूद्दिक-व्यय रीति को प्रयोग 
में लाइये। 


२३२ सांस्यिकी के सिद्धान्त 











चः्  /ाटग्गाए्श्मापप्य्म्म्म्म्म्म्फ्म्तम्त्म्ा 
वस्तु उपयोग की | इकाई | १६३६ में मूल्य | १६४० में मूल्य 
मात्रा है 
रु०--आा ० रु०--आ ० 
चावल ६ मन प्रति मम | ५--१२ ६-- ० 
गेहूँ ४ मन 39 3) पू-- ० |. छत ० 
प्वना १ मन 9 9) ६-- ०  ६-.. ० 
अरहर की दाल। ६ मन 39.99 पं ० १०--- ० 
घी ४ सेर ५9 सर र्--+ ० १-- ८ 
चीनी १ मन 9 मैने | २०-- ० १५--- ० 
नमक १२ सेर 9 सेरे | २०-- ८ श्ट ० 
तेल २० सेर 99. 9) ४--+ १ ४--१२ 
कपड़ा ५० गज » गज ०-- ८ ०--१२ 
इंधन १२ मन ब्ग मन | ०-- ८ ९-- २ 
मिद्दी का तेल | १ टिन 8 टिन| ४-- ० ४० २ 
मकान का द 
किराया न- 3 कीन| १०--१२ १२--१२ 














..( 02८0 ८४] :707[6775 4॥ 508080४0९$ ०, 275 ) 

(२६) निम्नलिखित सामग्री से भ्रचलित वर्ष के लिये देशनांक की 

गणना सामूहिक-व्यय रीति से और परिवार बजढ रीति से अलग-अलग 
कीजिए :--- रा 


देशनांक २३३ 


























हे आधार वर्ष में आधार वर्ष के | प्रचलित वर्ष के 
वस्तुएं इकाई भू में) | मू . 
| उपयुक्त राशि लय (० में) | मूल्य (रु० में) 
माप प मन मन ६ ८ 
ज्वार बाजरा ५ मन मन ४ ५ 
गेहूँ १ मन मन ध्‌ १० 
प्बनां १ मन मन ३ हू 
अरहर छह मन मन है ६ 
अन्य दालें २ मन मन ३ ह। 
घी ४ सेर सेर १९२५ २ 
डर २ मन म्‌न २९५० भू 
नमक १२३ सेर र्‌ है प्‌ 
ठेल २४ सेर सेर २० श्प्‌ 
कपड़ा ४० गज गज “रू ०पू 
ईंधन (लकड़ी ) १० मन | मन... ०५० ०*८ 
मिट्टी का तेल १ टिन | टिन है ६ 
मकान का किराया ००० मकान श्र श्पू 














. (बी० कॉम, इलाहाबाद १६४६) 
(३०) १६३६ को आधार वर्ष मानकर, निम्नलिखित सारणी से १६४० 
के लिए निर्वाह-व्यय-देशनांक की रचना करिये ; 














_ | हे. रू मेंदूल एन बेगूल| छाई. भार १६३६ में मूल्य | १६४० में मुल्य इकाई 

ह रू० आ्‌० | रुछ ग्रा० 

चावल ट्ड ८ ० १० | प्रति सन 
गेहूँ श्पू भू ० चर ० १9 _ 95 
दालें टू दर ० ७ ० 93 ० 99 
पीनी है ० ह।' ० ६ | प्रति सेर 
घी भू १ कर २ ० १9 95 
कपड़ा १० ० ८ ० १७० प्रति गज 
इंधन (लकड़ी) घ १ ४ / १ (१४ [प्रति मन 
सिगरेट डर ० धू ० ७ प्रति पैकेट 
कागज श्‌ ० ३ ० ५ । प्रति दस्ता 
मिट्ठी का तेल ३ ०... ४ ० ४ [प्रति बोतल 

















(एम० ए०, इलाद्वाबाद, १६५१) 


अध्याय १० 
सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपणु 


( [)827%7॥7800 रि९०765८2६07 07 4220 ) . 
यह बतलाया जा चुका है कि सांख्यिकी का एक महत्वपूर्ण कार्य सामग्री को 
चोघगम्य बनाना है। ऐसा करने की बहुत सी रीतियाँ हैँ। सामग्री का वर्गीकरण ओर 
सारणीयन इसी दृष्टिकोण से किया जाता है कि सामग्री सुगमतापूबक समभी जा सके | 
सामग्री के माध्य भी उसे सुगम तथा सरल बनाने हो के लिए निकाले जाते हैं। माध्यों 
से सामग्री की तुलना करना आसान हो जाता है। परन्तु सारणीयन और माध्यों की 
बहुत सी परिसीमाएँ हैं। सामग्री को सुबोध बनाने की एक और रीति उसे चित्रों 
ओर बिन्दुरेखों के रूप में प्रस्तुत करना है। इस अध्याय में सामग्री को चित्रों 
(११9274।75) के रूप में निरूपित करने की रीतियाँ दी गई हैं। 
सामग्री को चित्रों के रूप में प्रस्तुत करने के लाभ 
चित्रों का सब से बड़ा लाभ यह है कि वे सामग्री को बोधगम्य बना देते 
हैं। साधारणतया बड़े अंकों की महत्ता आसानी से समझी नहीं जा सकती क्योंकि 
लोगों का दैनिक काय में इनसे संबंध नहीं रहता। पर सांख्यिकी में ऐसे अ्रेकों का 
उपयोग प्रायः होता है ओर जन साधारण को उनका महत्व समभाने के लिए चित्रों 
की सहायता ली जाती है । यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चित्र हमेशा 
तुलनात्मक होते हैं। केवल एक चित्र का कोई अर्थ नहीं हाता । 
चित्रों के रूप में प्रस्तुत करने का दूसरा लाभ यह होता है कि वे सबब साधा- 
रण के लिए आकषक होते हैं। प्रायः लोग श्रेकों में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाते 
जितनी चित्रों में; अगर किसी पृष्ठ में अधिक तथ्य दिए होंगे तो वे उसे छोड़ देंगे, पर 
'तित्रों को द्व ढ़-द्व ढ़ के देखते हैं| यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसका लाभ उठाकर 
आंकिक तथ्यों को चित्रों के रूप में रखा जाता है। चित्रों को लोग ध्यानपूर्वक देखते हैं, 
इसलिए उनके द्वारा पड़ा हुआ प्रभाव स्थायी होता है। इस बात की संमावना अधिक 
है कि लोग चित्रों के रूप में प्रस्तुत तथ्यों को अधिक खमय तक याद रखें। 
क्योंकि इनके समझने में अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ता इसलिए, ये समय 
की बचत करते हैं | अगर आंकिक रूप में तथ्यों को 'प्रस्तुत किया जाय तो बस्तुस्थिति 
को सममभने में पर्यात समय लग जाएगा । पर चित्रों में यह बात नहीं दै। इन्हें देखते 
द्वी वस्तुस्थिति का ज्ञान हो जाएगा क्‍योंकि ये सापेत्तिक होते हैं | 


सामग्री का चित्रों हरा निझूषण २३४३ - 


इन सुविधाओं के कारण चित्रों का उपयोग प्रायः किया जाता है, विशेषतः 
उन स्थलों में जहाँ किसी तथ्य की महत्ता सर्ब-साधारण को समक्कानी हो। पर इस 
बात का ध्यान रखना चाहिए कि चित्रों का उपयोग केवल ऐशसी सामग्री को प्रस्तुत 
करने के लिए. किया जा सकता है जिनमें परस्पर-तुलना संभव हो अर्थात्‌ एक ही 
समुदाय के अन्तगंत आने वाले तथ्यों को, जिनको एक ही इकाई में नापा जा सके, 
इस रीति से प्रस्तुत किया जा सकता है। केवल एक चित्र का कोई काय नहीं होता, 
उससे तभी श्रथ निकाला जा सकता है जब तुलना करने के लिए कोई दूसरा चित्र भी 
साथ में दिया गया हो । 
चित्रांकन के नियम 

चित्रांकन का उद्देश्य, जैसा लिखा जा चुका है, सामग्री को सुबोध और चित्ता- 
कृषक रूप में प्रस्तुत करना है। सिवाय एक उपकरण के उनका स्वयं कोई महत्व नहीं 
है क्योंकि न तो वे अकों के रूप में दिए. गए तथ्यों के अतिरिक्त कुछ बताते हैं ओर 
न ही वे कुछ सिद्ध करते हैं। इसलिए इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उनको 
बनाने के लिए कुछ नियम बनाए गए, हैं। 

चित्र खींचने के लिए सबसे पहले स्क्रेल निश्चित कर लेना चाहिये और इसे 
स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए । शीष (ए८४४८४). स्केल बाँई ओर ओर अनु भूमिक 
(90०४४2०7६4]) स्केल दाई ओर दिखाना चाहिए. । चित्र का आकार स्केल के बदलने 
के साथ परिवर्तित हो जाता है | श्रगर दो या अधिक चित्र खींचे जा रहे हों तो उन्हें एक 
ही स्केल के अनुसार व्यक्त करना चाहिए। अलग-अलग स्केलों का प्रयोग गलत सूचना 
देगा। क्‍या स्क्रेल रखना चाहिए,, यह निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता । पर इस 
बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसको मानकर बने हुए चित्र न तो आकार में इतने 
बड़े हों कि उन्हें एक मकलक में न देखा जा सके ओर न ही इतने छोटे हों कि उन्हें 
देखने के लिए प्रयज्ञ करना पड़े | स्केल निश्चित करने में उस कागज के आकार का 
भी ध्यान रखना चाहिए जिसमें उसे बनाया जा रहा हो | चित्र का आकार ऐसा होना 
चाहिए जिसमें सब मुख्य बातें प्रदर्शित की जा सकें। अ्रच्छा चित्र होने के लिए यह 
आवश्यक है कि वह साफ-सुथरा और स्पष्ट हो, इसलिए इनको बनाने में उपकरण का 
उपयोग करना चाहिए | ठेढ़े-मेढ़े चित्र खींचने से कोई लाभ नहीं है। प्रत्येक चित्र का 
उचित शीर्षक देना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह स्वयं में 
सम्पूर्ण हो । विभिन्न तथ्यों को स्पष्टतया प्रस्तुत करने के लिए रंगों का प्रयोग करना 
चाहिए या विभिन्न कोणों में रेखाएँ खींचनी चाहिए । 


२३६ सांल्यकी के सिद्धान्त 


विभिन्न प्रकार के चित्र 

सामग्री को चित्रों के रूप में कई प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है। इनमें 
से किस चित्र का उपयोग करना चाहिए, यह सामग्री की प्रकृति पर निर्भर रहेगा। चित्रां- 
कन की ऐसी रीति चुननी चाहिए जो सामग्री को सबसे अधिक परिशुद्धता के साथ 
प्रस्तुत करे ओर जिससे वह सबसे अधिक शीघ्रता से समझ में आ जाय । विभिन्न प्रकार 
के चित्र जिनका उपयोग सामग्री प्रस्तुत करने में किया जाता है, निम्नलिखित ई : 

(१) विभा-चित्र (077०78072] 7)887975) 

के ) एकर्नवरभा-चित्र ( 07०-0/&ा80794 048872705 )--ये 
रेखाओं या दरणडों ( 9६४ ) के रूप में दिखाए, जाते हैं | इनकी लम्बाइयाँ दिए हुए, 
अकों के अनुपात में होती है। 

(ख ) द्वि-विमा-चित्र (+ज0०-१60$0797 9त448278705 )--वये 
आयतों या बृत्तों के रूव में दिखाए जाते हं । आयतों या बृत्तों के ज्षेत्रफल दिए हुए. 
अकों के अनुपात में होते हैं । 

( ग ) क्रिविभा-चित्र (६7766-0]77९८70587072] 049827977$*-ये घनों 
इष्टका ( 90८£5 ) या रंभों ( ८ए7!।0622$ ) के रूप में दिखाए जाते हैं। इनकी 
परिभाएँ ( ए०[७४४८७ ) ओकों के अनुपात में रखों जाती हैं । 

(२) चित्र-लेख ( ?000972775 )--इनमें चित्रों के रूप में सामग्री 
दिखाई जाती है। चित्रों के आकार या उनको संख्या अंकों के अनुपात में होती हैं । 

(३ ) मान-चित्र-लेख ( ००४४०४:०775 )--इसमें किसी प्रदेश का 
मान-चित्र खींच कर विभिन्न स्थानों में उपस्थित तथ्यों को दिखाया जाता है। इससे 
वतरण को जाना जा सकता है | 

(४ ) बिन्दुरेख या वक्र ( 07205 &८ ८पःए०८३ )--अ्कों को बिन्दु- 
रेखों या वक्रों के रूप में व्यक्त किया जाता है । ऐसा दो रीतियों से हो सकता है | या 
तो साधारण-स्क्रेल लेकर या लघुगणक-स्केल लेकर | ह 

चित्रों के रूप में आंकिक तथ्यों को प्रस्तुत करने की रीतियों का वर्णन 
आगामी अनुच्छेदों में किया गया है । 

विभा-चित्र ( 70777०07807४ 702878॥705$ ) 
एक-विभा-चित्र ( 076 09८7०] 098728705 ) 

इन चित्रों में, जैसा बताया जा चुका है, केवल लम्बाई पर विचार किया जाता 
है। मोयई दिखाई तो जाती है, पर उसका सामग्री से कोई संबंध नहीं रहता | इस 


सामग्री का चित्रों हारा निरूपण २३७ 


प्रकार के चित्रों को दंड-चित्र (927-088797) कहते हैं | दंड-चित्र दो तरह के दो 
सकते हैँ । एक को सरल दंड चित्र (9777७ 92४-0227277) कहते हैं। इसमें 
एक दण्ड केवल एक तथ्य को चित्रित करता है। इस प्रकार तथ्य के विभिन्न आंकिक 
मूल्यों को विभिन्‍न दण्डों द्वारा दिखाया जाता है। दंड-चित्रों के आधार पर बहुगुणु 
दंइ-चित्र (7प0]6 927 49297270) बनाए, जा सकते हैं। इनमें दो या अधिक 
प्रकार की सामग्री के दंडों को एक साथ प्रस्तुत किया जाता है। पर उन स्थानों में 
जहाँ विभिन्न प्रकार के तथ्यों को प्रस्तुत करना द्वोता है, प्रत्येक दण्ड को अन्तर्विभक्त 
($प00-04४708) कर दिया जाता है आर इसका प्रत्येक भाग अलग तथ्य को प्रस्तुत 
करता है। ऐसे दंड-चित्रों को अन्तर्विभक्त दंड-चित्र (५५०-१7740९० 9:-49 
2872775) कहते हैं। पहले सरल-दंड चित्रों की रचना पर विचार किया जाएगा और 
फिर अन्तर्विभक्त दंड-चित्रों की रचना पर | 
(क) सरल दुंड-चित्र (8॥7/]6-02/-098४477)--सरल दंड-चित्र 

बनाने के लिए, स्केल इस प्रकार निश्चित करना चाहिए कि. सबसे लम्बा दंड दिए हुए 
कागज में आ जाय | इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि चित्र के चारों ओर 
पर्याप्त स्थान छूट जाय ताकि उसका शीषक, स्केल ओर इकाइयाँ लिखी जा सके । 
इन चित्रों में मोशई पर विचार नहीं किया जाता, इसलिए, वह ऐसी होनी चाहिये कि 
चित्र मुन्दर लगे । पर इस बारे में कोई प्रतिबन्ध नहीं है | अगर पदों की संख्या बहुत 
अधिक हो तो केवल रेखाएँ खींच कर भी काम चल सकता है। पर मोदाई भले ही 
कितनी दी निश्चित क्‍यों न की जाय, एक चित्र के विभिन्न दंडों के लिए वह समान 
रहनी चाहिए | दंडों की दरी भी बराबर रहनी चाहिए । दंडों का एक सिरा अनु 
भूमिक आधार रेखा (४0:/207 9256 [7०) पर रखा जा सकता है या 

गीर्ष-आधार-रेखा (ए०४८४८७/ 996 06) पर । पहली दशा में दंड शीष॑-रूप 
में स्थित होंगे और दूसरे में अनुभूमिक रूप में। प्रायः आधार रेखा अनुभूमिक ली 
जाती है, पर आधार रेखा निश्चित करना सुविधा पर निर्भर करता है। दंडों का 
उपयोग केवल ऐसी सामग्री के लिए. किया जा सकता है जो खंडित (65८:०८८) 
हो । इसलिए उन्हेँ मिलाकर नहीं रखना चाहिए. क्‍योंकि इससे सामग्री में संततता 
प्रतीत होती है। संतत सामग्री के लिए बिन्दु रेखों का उपयोग किया जाता है। चित्र 
की चित्ताकर्षकता पर विशेष ध्यान देना चाहिये। इसके लिए चित्रों को रँगा जा 
सकता ढै या उममें रेखाएँ झींची जा सकती हैं। आगामी अनुच्छेद में ऐसा चित्र 
खींचने की विधि दी गईं है। 


२३८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सारणी नं० १ में पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत विभिन्न मर्दों पर केन्द्रीय 
सरकार द्वारा किए जाने वाले व्यय दिए, गए हैं | इसको चित्र रूप में प्रस्तुत 




















करना है। 
सारणी संख्या १ सारणी संख्या! ++ <<+|#$ | 
मद्‌ करोड़ रुपयों में 
कृषि और सामुदायिक विकास. . १८६-३ 
सिंचाई ओर शक्ति २६५-६ 
यातायात और संवाहन ४०६५ 
उद्योग १४६९७ 
सामाजिक सेवा १६१९४ 
विविध ४०९७ 
इस सामग्री में अधिक- 

तम मान ४०६*५ करोड़ रुपया हा 

है। अरब एक इंच बराबर १२० 

करोड़ रुपया के माकर इन है ु 

ओऔकों को चित्र रूप में दिखाया ३५० - पा केद्रीय सरकार का घिफास व्यय (4० व७ यो०) 


जा सकता है (देखिए चित्र न॑० 
१)। अगर यह पैमाना मान 
लिया जाय तो सारणी में दिखाए 
गये शक क्रमशः १८६”, 
२६६”, ४६7, १०४७“, १०६१“, 
ओर “४१० से दिखाए. जायँगे 
(इसमें केवल २ स्थानों तक सही 
तथ्य दिए गये हैं )। प्रस्तुत 
चित्र में ठुलना की सुविधा के 
लिए. ये तथ्य अ्रवरोही क्रम 
( 668८थातांग्रट्र 07067 ) 
में दिखाए गये हैं। ये आरोही 








सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपण २३६ 


(950९7079) क्रम में भी दिखाए, जा सकते हैं। दंडों का आधार अनुभूमिक रेखा. 


मानी गई है ओर इसके बीच की दूरियाँ बराबर हैं। इसी प्रकार इनकी मोटाई भी 
समान है । द 


अगर सामग्री बहुत अधिक परिमाण में हो तो दंडों के स्थान में रेखाओं का 
उपयोग किया जाता है | इनके खोंचने को विधि वही है जो दंडों के खींचने की है । 
अन्तर केवल इतना ही है कि इनमें मोटाई नहों होतो । सारणी संख्या २ में दी गई 
सामग्री को चित्र संख्या २ में दिखाया गया है। 


सारणी संख्या २ 





























व्यक्ति संख्या | व्यक्तियों की ऊंचाई | व्यक्ति संख्या | व्यक्तियों की ऊँचाई 

१ ४ फीट ११ इंच १७ ५, फीट ४ इंच 
र्‌ प्र 339 ० १9 श्टः प६ू 9) 9 9१9१ 
ठ्ू डे, 9 ० १9 १६ प 9 ६ 9 
ड 99 १ 9 २० पछू 9 दि 9 
६ पू 9) रे १) | २१ पू 9 छ $४ 
छ्‌ प १9) २ ०१ २२ छू 9 ७ #»# 
७ पे १99 २फक २३ फू 59 ७ १) 
प्र फै. 9 ३ 9 २७ पू 9 ७ 9४ 
& पू 9) हे 9७ २५ पू 9 ७ १ 
१७० छू 99 हू 9 श्द्द पू १) टू 99 
११ एू 9 दे 9» २७ पू 9 पट 9 
श्र $,. 9 ४४ 9 स्य्ः ६ 9 ६ 99 
श्रे प्र, 9 ४ 7० र्‌€्‌ पट 9 १० 9 
१४ फू 9 १5 ३० ५ 9) १० )?१ 
१ भू 9. ४ ० ३१ ५ ३) १० 59 
१६ पू 9 प 77 श्र दर १) "99 












































इन दोनों चित्रों में अनुभूमिक-रेखा आधार मानी गई है। चित्र संख्या३ में, 
जो सारणी सं० ३ को निरूपित करती है, आधार-रेखा शीष मानी गई है। 


४० 


सारणी संख्या ३. 


सांश्यिकी के सिद्धान्त 


पंचवर्षीय योजना में किये जाने वाले कुल व्यय का विभिन्न सरकारों के बीच 


वितरण । 





सरकार 


( करोड़ रुपयों में ) 





" जशमालााकबाभभदजताभततकषाकाका9:/ ग्रकराफ पकासायकागपिक यान, 


केन्द्रीय सरकार 
राज्य सरकारें :-- क 
ख़॒ 
ञ्र्न्य 





१,२४१ 

६१५० 
१७३ 
है 





माकारता॥भभायाताकानाकायादापात्ा७ाकाकनााक4 


ऊंचा व्यक्तियों को डँचाइयों 


६०- 


२० 


श्गा 




























































































पूं० ब०यों के व्यय का विवरण 


[ 
. नर 




















का शाह हुए २० 5५ 


- अ्यक्ति संख्या 


चित्र संख्या २ 


२५० ५७५०९ ७५० ९००० १२५७० 
(करोड़ रुपयाँ में) 
चित्र संख्या ३ 


सरल दंड-चित्रों का उपयोग बहुगुण दंड-चित्रों (770[096 59४- 
5998:2705 ) की रचना करने में मी किया जाता है । इस प्रकार के बंहुगुणु-दंड- 
चित्र बनाने की रीति का वन यहाँ किया जा रहा है। सारणी सं० ४ में भारत का 
आयात और निर्यात ( मूल्य में ) दिखाया गया है। इसको बहुगशुण-दंड चित्र के रूप 


में चित्रसंख्या ४ में दिखाया गया हैं| 


सामग्री का चित्रों हरा निरुपण २४४१ 


सारणी संख्या ४७ 




















वर्ष कुल आयात (करोड़ कुल निर्यात (करोड़ 
रुपयों में) रुपयों में) 
१६४०-५१ ६१०*३६ ६२४*६५ 
१६४१-१२ ६५३४०" ३६ ७४२"७८ 
१६५२-४३ ६६०'६४३, ४७८३६ 
. १६४२-३४ ५३.६५४"२५ १.२७'६ ८ 

















इस प्रकार के दंड चित्रों में इरसढ़ रू० मे 
विभिन्न तथ्यों को एक साथ मिलाकर *१%- 
रखे गये दंडों को एक दूसरे से स्पष्यतः 
अलग-अलग कर देना चाहिये। इसके 4 
लिये विभिन्न रंगों या अलग-अलग 
प्रकार की रेखाओं का उपयोग किया 
जाता है। 


(ख) अन्तर्विभक्त दंड-चित्र ($प्०- 
व77060 94#-49272775)--. 
उन सामग्रियों को, जिन्हें 
उपभागों के रूप में रखा जा सकता है ४ ! 
या ऐसी राशियों को जो अन्य राशियों. । थ 
के योग हों, अन्तविभक्त दंड-चित्रों के. ५! 
रूप में रखा जा सकता है। पत्येक दंड 

के भागों को अलग-अलग करने के जी । मी 
लिए उन्हें विभिन्न रंगों या रेखाओं से (88०३ पर इ इधर 
दिखाया जाता है। वास्तविक मूल्य के चित्र संख्या ४ 
बदले उसका प्रतिशत मूल्य लेकर भी चित्र बनाए, जा सकते हैं। अन्तर्विभक्त दंड- 
चित्रों को खींचने की विधि निम्नलिखित:अनुच्छेदों में दी गई दै। 

५१६ 


भारत का आयात ऑऔरानिर्यात 


आयात | 


निर्यात द 











२४२ द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सारणी संख्या ५, पंचवर्षीय योजना के श्रन्तगंत केन्द्रीय और राज्य सरकारों 
द्वारा विभिन्न विषयों पर किया जाने वाला व्यय दिखाती है । 


सारणी संख्या ५ 


विभिन्न सरकारों द्वारा विभिन्न विषयों पर किया जाने वाला व्यय (करोड़ रुपयों में) 




















विषय केद्धीय सरकार | क-राज्य सरकारें | ख-राज्य सरकारे 

“कृष और बिका 77 7 एद्धा३ पछदाइ 7 एहरघइ जप एझऋछ ख्दः 
मी ओर शक्ति २६५"६ २०६-१ ८१" 
यातायात ओर संवाहन ४०६* छ६'४ १७"४ 
उद्योग १७४६*७, १्छः६्‌ ७१ 
सामाजिक सेवा |. १६१०४ १६२*३ र्प्ः६ 

थे ५८७९७ १०९० ०३ 
कुल | १२४०* द ६१०*१ १७२'२ 





चित्र संख्या ५ में इस सामग्री का 
चित्रण किया गया है। प्रत्येक दंड को 
विभिन्न विषयों पर किये गये व्ययों के 
अनुपात में विभाजित किया गया है | यह 
चित्र न केवल इतना बताता है कि केन्द्रीय 
क राज्यों ओर ख राज्यों द्वारा किया गया 
कुल व्यय (जो पूरे दंड से दिखाया गया 
है) कितना है बल्कि यह भी बताता है 
कि प्रत्येक प्रकार की सरकारें विभिन्न 
विषयों पर कितना व्यय . करती हैं ( जो 
प्रत्येक दंड के भागों द्वारा. दिखाया गया 
है )। इस चित्र की सहायता से हम 
विभिन्न सरकारों के पूरे व्ययों की, विभिन्न 
: प्रकार की सरकारों के विभिन्न विषयों पर 
किये गये व्ययों की और एक ही प्रकार 
के राज्यों के विभिन्न विषयों पर किए गये 
व्यय की तुलना कर सकते हैं। 


विभिन्‍नजरकारों का व्यय 


727) विविध 

[][] उद्योग 

(5४५ शव गिक विकास 

'सामाजिक सेदा 

ह्ट्ट्वेसिचाई और शक्ति 
यातायाताऔर | 

संवाहुन 








हम १ 
का 
बज पा है 
मर मप 
मा 





४ 2 8 7 





ख्--श्र णी 
सरकारें 





क्र 





चित्रसंख्या ५ 


सामग्री का चित्रों हारा निरूपण २४३ 


अगर दो राशियों का अन्तर दिखाना हो तो अन्तविभक्त दंडों का उपयोग 
किया जाता है। पूरा दंड एक राशि को दिखाता है और इसके दो भागों में एक भाग 
दूसरी राशि को दिखाता है ओर दूसग भाग इन दो राशियों के अन्तर को। अगर 
अन्तर ऋणात्मक हो तो एक प्रकार के रंग का या एक प्रकार की रेखाओं का उपयोग 
किया जाता है और धनात्मक होने पर दूसरे प्रकार के | इस प्रकार की सामग्री सारणी 
सं० ६ में दी गई है जिसका चित्रण चित्र संख्या ६ में किया गया है। 


सारणी संख्या ६ 
एक योजना के लक्ष (दस लाख टनों में) - 





























खाद्य पदार्थ १६५००४१ १६५५-५६ 
गन्ना. भ*द _ द३ ___ 
चावल ५११ प्न्पू 
दस लाख बड १९५०-५१ की उलत्ति राशियों के प्रतिशत दिखाने वाले अन्त- 
सवा म. एस १९५०-५१ और हि विभक्त दंड-चित्रों में दंडों की लम्बाई समान 
' छ १९५५-५६ : का अन्तर े 


रहती है | केवल प्रतिशत दिखाने वाले भागों की 
लम्बाई धट्ती बढ़ती है। ऐसे दंड-चित्र बनाने 
के पहले किसी विषय सम्बन्धी राशि और कुल 
राशि में अनुपात निकाल लिया जाता है। इससे 
यह ज्ञात हो जाता है कि कोई राशि विशेष कुल 
राशि की कितनी प्रतिशत है। यह ज्ञात हो जाने . 
पर दंड-चित्र पिछली रीतियों के अनुसार बनाए 
जाते हैं । 
द्वि-विभाग-चित्र ( "फ़० 707०7- 
88072 72728/2708 ): ( क ) आयत 
. (र८८०४॥९८७) ; इन चित्रों में, जैसा बताया 
( जा चुका है, शशियाोँ च्षेत्रन्‍ल से निश्चित की 
'जाती है। ऋत्एव न बेब्ल इनकी लग्बाइयों पर विचार करना पड़ता है बल्कि इनकी 
चौड़ाइयों पर भी विचार किया जाता है, जब दो रा शयों को दो आयतों के क्षेत्रफल 
द्वारा दिखाना होता है तो दो रीतियाँ अपनाई जा सकती हैं। या तो उनकी चौड़ाइयों 


६ 











रुक योजना के लक्ष 


चित्र संख्या ६ 


२४४ द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


बराबर रखी जाएँ ओर उनको लम्बाइयाँ राशियों के अनुपात में बनाई जाय, या 
उनकी लम्बाइयों समान रख के उनकी चोड़ाइयाँ राशियों के अनुपात में रखी जायेँ । 
प्रत्येक दशा में दोनों आयतों के क्षेत्रफल राशियों के अनुपात में होंगे | प्रायः लम्बाई 
समान रखी जाती है और चोड़ाइयाँ अलग-अलग रखी जाती हैं और प्रत्येक आयत 
में विभिन्न विषय-संबन्धी राशियों को कुल राशियों के प्रतिशत के रूप में दिखाया जाता 
है। उदाहरण के लिए आगामी अनुच्छेदों में दी गई सामग्री का इस रीति से चित्रणु 
करना बताया गया है | 























सारिणी संख्या ७ (क ) 
पंचवर्षीय योजना के अन्तगत किये जाने वाले व्यय (करोड़ रुपयों में) 
विषय . कुल | केन्द्रीय संख्या | राज्य सरकारें 

. यातायात और संबाहन ४६७ ४०६*५ ५६९५, 
कृषि और बिकास ३६१ १८६"३ १२७९३ 
सामाजिक सेवा बाएँ ४२५ १६१९४ १६२९३ 
सिंचाई ओर शक्ति योजनाएँ ५६१ २६५*६ २०६*१ 
उद्योग... १७३ १४६७ १७९६ 
अन्य पूर ४०९७ 8०९० 
. १०६६ १२४०५ |. ६१०"१ 








अगर लम्बाई बराबर रखनी है तो इनको निरूपित करने वाले दंडों के आधार 
इन राशियों के अनुपात में होंगे । अर्थात्‌ वे २०६६० $ १२४०१: ६१०*१ में 
होंगे या ३३६ ; २०३ : १ में होंगे। आधार निश्चित हो जाने पर विभिन्न कालमों 
के अन्तगत किए हुए. व्यय का उस कालम के अन्त में दिये गये व्यय से प्रतिशत 
अनुपात निकाल लिया गया है | इस अनुपात को सारणो संख्या ७ (ख) में दिखाया 
: गया है । इन प्रतिशतों के अनुसार प्रत्येक आयत को विभाजित कर दिया जाता है। 
यही इस सामग्री का चित्रण हुआ | 


सामग्री का चित्रों हारा निरुपण २४५ 


सारणी संख्या ७ (ख ) 
विभिन्न विषयों पर किये गये व्यय (प्रतिशतों में) 





नमन: ४,इ७७७७४७४४७४७४एशआश 


संचयी | कन्द्रीय | संचयी | करराज्य | संचयी 



































[ ल॒ न र थ्‌ 
. विषय | डे । प्रतिशत | सरकार | प्रतिशत | सरकारें | प्रतिशत 
शक्ति और सिंचाई २७.१] रण ररू-४३| २१७४३ | ३३७७ रेशे७७- 
यातायात और संवाहन | २४०० | ६११ | ३३८०१| धप ४४ | धर८ | डरे ०३. 
सामाजिक सेवा २०४५ | ७१६ | *५४४ ६६'८णे | ३१२२ | ७४३४७ 
कृषि ओर विकास १७५. | ८६”? | १५६००२| ८४.६० | २०८७ | ६४४४ 
उद्योग पाछ । ६७चआ | है पुर ६६७७२ | २६३। ध्था२७ 
खझन्य $ कि २५ 2 30७"७5 इा'र्थ १ ००९० १९६३ १० ०.०० 
__ १०८०० 0०० रऔ्ररनििण:षण: १०८९० । जज] गाय |१००९ १७०"'०। | १००१७ | 
प्रतिशत प०वन्‍्यों> में विभिन्न विदयों पर किये गये व्यय 

















नल धाम 
७्ग कर ( 


दे े जज ३ क्‍ रे 





























































































































है 
३० | 
'२० | ॥टर गि ; ६०५०० 
| हो हर 
“कुल व्यय कद्रीय सरकार 
क्र् हा सकती... ता) ाहापात सप 
६.3 उच्योग, सामाजिक सेवा पाहि और 


चित्र संख्या ७ 
प्रतिशत दिखाने के स्थान पर पूर्ण राशियाँ भी दिखाई जा सकती हैं। आयतों 
की चौड़ाई और लम्बाई; दोनों, बदली जा सकती हैं| इस प्रकार के चित्रों का प्रायः . 


२४६ सांख्यिकी के सिद्धान्त॑ 


उपयोग किया जाता है क्योंकि इससे अन्तर)मी दिखाए जा सकते हैं। इनके साथ- 
साथ वर्गो' और वृत्तों का भी उपयोग द्वि-विभा-चित्र बनाने में किया जाता है । 

. (ख) वर्ग (500%7०5)--ह्विं-विभा चित्रों में कई स्थानों पर वर्गों” का प्रयोग 
करना पड़ता है, विशेषतः उन स्थानों में जहोँ एक राशि अन्य राशियों की. अपेक्षा 
बहुत बड़ी होती है । अगर इन स्थानों में दश्ड-चित्रों का उपयोग किया जाय तो बड़ी 
राशि को निरूपित करने वाला दंड अन्य की अपेक्षा बहुत बड़ा हो जायगा | यहाँ वर्गों 
को “उपयोग करने में यह लाभ रहेगा कि कोई वर्ग बहुत बड़ा नहीं हो पायेगा। 
इसकां कारण यह है कि वग-चित्रों में भी क्षेत्रफल पर विचार किया जाता है। और 
अगर दो राशियों के अनुपात के ज्षेत्रफल बनाये जाएँ तो वर्गों की लम्बाइयाँ इन 
राशियों के वर्गमूल, के अनुपात में होंगी। उदाहरण के लिए दो राशियाँ १०० और 
१६०० लीजिए,। अगर दण्ड चित्र बनाए जाएँ तो दण्डों की लम्बाइयाँ १४ १६ में 
होंगी । पर अगर वर्ग चित्र बनाए जायेँ तो लम्बाइयाँ १: ४ में होंगी और क्षेत्रफल 
१६४ १६ में । इस प्रकार क्षेत्रफल राशियों के अ्रनुपातों को व्यक्त करेंगे | 

वग-चित्रण करने के लिए, पहले राशियों का वर्गमूल ले लिया जाता है और 
इन वगमूलों के अनुपात में प्रत्येक वर्ग की लम्बाई बनाई जाती है। इन लम्बाइयों 
पर बने वर्ग राशियों का निरूपण करते हैं| सारणी संख्या ८ (क) में सामग्री दी गई . 
है जिसका चित्रण मी चित्र संख्या ८ में दिया गया है। 


सारणी संख्या ८ (क) 
विभिन्न देशों में कोयले का उद्यादन (१६५१) 








देश द उत्पादन (० ०,)००,००० य्नों में) 
से० रा० अमेरिका १३०१ 
रूस डे ४९० 
फ्रांस ह ३८९७ 
स्वीडन १७"७ 
यूनाइटेड किंग्डम..... द १६९४ 
भारत ३*३ 











. . “इन रशियों के वगमूल निकाल लिए गए, हैं और उनके अनुपात में वर्गों 
की भुज़ाओं की गयुना की गई है। ये गणनाएँ सारणी संख्या ८ (ख) में दी गई हं। 


सामझौी का चित्रों द्वारा निरूपण २४७ 


सारणी संख्या ८ (ख) 


>रशभरभारशालॉाताभ्तााइम्तापधाप/तलसारताममनानककापासमाा 





उत्पादन हिल ९ चकललाणो भव १ की संख्याओं का वर्गमूल| वग की भ्ुजाओं की लम्बाइयाँ 


























_(१) | (२) (३) 
१३०१ ११"४० १*५ ६ 
४४० ६*६३ ०६१ 
३८७ ६२२ ण्लडई |. 
१७.७ ४२१ ०*प्८्८ 
१५६*४ ७५०५, ०9५, 
शे३ श्द्यर ०२५४ 

















. वैभिन्न देशों में कोयले का उत्पादन १५५४ 
सं राण्य० 











पैमाना।-++* 
१ बगे इंच-+५४ ०००००००टन 


चित्र संख्या ८ 


तुलना में सुविधाजनक बनाने ओर स्थान की बचत करने के लिए कुल राशि 
को मागों में भी बाय जाता है, और इसे वर्ग दवा दिखाया जाता है आर उस 
सामग्री के हिस्सों को इस वर्ग के भाग करके निरूपित किया जाता है। ये भाग 
आयतों के रूप में होते हैं। आयत अनुभूमिक होंगे या शी्ष, यह इस बांत पर 
निर्भर करता है ऊि वर्ग का विभाजन किस रीति से किया गया है। सास्णी 
संख्या £ में दी गई सामग्री का इस प्रकार किया गया चित्रण, चित्र संख्या ६ में दिया 
गया है । | ्््ि हैं 


श्ष्ट..ः सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सारणी संख्या ६ (क) 
विभिन्न देशों में मेंगनीज का उत्पादन ( हजार टनों में )। 














क्श (उत्पादन 
रूस २ ३9९०० 
दक्षिण अफ्रीका व्रड्० 
गोल्ड कोस्ट ७८३ 
भारत ७४७ 
फ्रांसीसी मॉरोकों ३२१६ 
ब्राजील. १७६ 
मिश्र | १६७ 
जापान श्ष्द 
कुल ४,४९० 





अब ४४१० का वर्गमूल ले लिया गया | इसका वर्गमूल लगमग ७४.१ 
हुआ । अरब अगर ७४'१ को ३९७” से दिखाया जाय तो विभिन्न देशों के उत्पादन 
की दिखाने के लिए ३७ के भाग करने पड़ेंगे । गणना करने पर प्राप्त हुण भाग 
सारणी संख्या ६ ( ख ) में दिए गये हैं । 
सारणी संख्या ६ (ख ) 

















देश ! उत्पादन | लम्बाई | संचयी लम्बाई 
(हजार टनों में) | (इंचों में ) ( इंचों में ) 
रूस २,२०० १९४१ १९३१ 
दक्षिण अफ्रीका ट:७० ०'पूह २९१० 
गोल्ड कोस्ट ७८३ ०९३४ २*६४ 
भारत ७४७ ०९५१ ३१ ' 
फ्रांतसीसी मॉरोको ३१६ ०२२ इइ्७छ 
ब्राजील १७६ ०*१२  इनडह 
मिश्र द १६७ ०*११ ३६०. 
जापान श्ड्प ७०११० ३९७० .' 
कुल. _ ध्धछ ५४१० । ३९७० 











सामग्री का चित्रों द्वारा निरुषण २४९ 


(ग ) वृत्त (८(।706४)--हि-विमा-चित्रों में वृत्तों का भी सुख्य स्थान है, 
इप्तका कारण निरूपण में आसानी .दायककबसक या प ताप तक पापा पास 
होना है। किसी भी दृत्त का क्षेत्रकल #2 979... 5 कप कप 
अपनी त्रिज्या (४290]05) के वग का (या तक 
श्रनुलामापाती (0१56८0७ए 700+4- जज दा चर र 
0072!) होता है। अर्थात्‌ अगर एक रे ५ कर रे 
वृत्त की त्रिज्या दूसरे बृत्त की त्रिज्या “7-7 दक्षिणी अफीक़ा।----- 
की चोगुनी है तो पहले वृत्त का तेत्रफत विमान इनका इराक 
दूसरे के क्षेत्रफल का सोलह गुना 

 होगा। इसलिए वंग के स्थान पर 


वृत्तों की उपयोग किया जा सकता है। 
जिस प्रकार बर्गों के रूप में चित्र बनाने 


















































३ वर्ग मूल लि प्रेमाना।--++ “८ 
के लिए राशि का वगमृल लिया जाता १ वर्ग इंच. २६५००० टन 
है, उसी प्रकार वृत्तों के रूप में चित्र चित्र संख्या ६ 


बनाने के. लिए भी राशि का वगमूल लेते हैं। वर्गों के रूप में निरूपण में इस 
वरगमूल के अनुपात में वर्गों की भुजाएँ रखी जाती हैँ, दृत्त-निरूपण में इन बर्गमूलों 
के अनुपात में त्रिज्याओ्रं को लम्बाइयाँ होती हैं, सारणी संख्या १० में दी गई राशियों 
को वृत्तों के रूप में चित्र संख्या १० में निरूपित किया गया है। 


सारणी संख्या १० 
विभिन्न देशों में पेट्रोलियम का उत्पादन (दस लाख पौंडों में) 











देश | अाबल (कवच ( दस लाख पोौंडों में ) 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका २,२०० 
वेनेजुला ६२२ 
रूस ३०१ 
सऊदी अरब श्ध््द 
ईरान १३२ 








० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


इनके वगमूल लेने पर ओर त्रिज्याओं (४207) की लम्बाई निश्चित करने 
पर यह सारणी निम्नलिखित रूप में होगी : 





अतानााभकावानाभध्याभादाासाकातात काका मक पा पाक: फपदाापका पक बदतर पपदाप्रव दल जआाया काना धाभतापकनाजपरब फद75: 7 कद 


त्रिज्या कीलम्बाई 








ज मू 
प्पादन वगसूल ( इंचों में 
२,२०० घछ8६ह . द २९०४ 
' ६२२ २४*६ शल्य 
ह ३०१ १७४ ०*७५ 
श्ध्द  १६*४ ०*७९१ 
१३२ । १्१फ््‌ ०१५० 








हि जल पर 
कट, 88 | # ४: 
नि कई 





बढ 
हु 
कली 








; पैमाना..तहलह80त2-.तह82क्‍तहत0तनह 


है जा 
स० , ह० अ्रपरोका १ वर्ग इंच. १९५० छाख पीड, 


चित्र संख्या १० 
न इन तिज्याओं को लेकर खींचे गये वृत्तों के क्षेत्रफल राशियों के अनुपात में 
गे । वृत्त सुडोल होने के कारण वर्गों से अधिक सुन्द्र लगते हैं और इनको खींचने 


सामग्री का चित्रों द्वारा निरपण.... २५१ 


में सरलता भी होती है | इसलिए ऐसे स्थानों में जहाँ वृत्त या वग, दोनों में किसी का 
भी प्रयोग किया जा सके, वत्तों का प्रयोग करना चाहिए । 

जिस प्रकार ऐसी राशि को जो कई छोटी राशियों के योग से बनी हो, एक 
वर्ग द्वारा दिखाया जाता है और छोटी राशियों को इस वर्ग के भागों द्वारा, उसी प्रकार 
पूरे वृत्त द्वारा एक राशि दिखाई जा सकती है जिसके संघटक (०070[7076708) इस 
वृत्त के शकलों ( $2000:5$ ) द्वारा दिखाये जाएँगे | इस प्रकार के चित्रों को कोण 
चित्र (&02ए०३४ 062272775) कहा जाता है। शकलों को खींचना अ्रपेन्षाकृत 
अधिक सरल होता है और ये सुन्दर दीखते हैं, इसलिए प्रायः वर्गों" के स्थान पर 
बृत्तों का उपयोग किया जाता है । 

शकलों के क्षेत्रफल उनके द्वारा वृत्त के केन्द्र पर बनाए गये कोणों के अनुपात 
में होते हैं। बृत्त के केन्द्र पर एक कोण ३६० का होता है। यह ३६०” का कोण 
पूरी राशि को निरूपित करता है | इस राशि के संघटकों को निरूपित करने वाले शकल 
केन्द्र पर कितने अश का कोण बनाएँगे, इसकी गणना आअकगरणशित से की जा सकती 
है। इस प्रकार प्रत्येक संब॒ब्क राशि को निरूपित करने वाला शकल निश्चित कर 
लिया जाता है। सारणी संख्या ११ (क ) में विभिन्न सरकारों द्वारा विभिन्न विषयों 
पर किये जाने वाले व्यय दिये गये हैं, जिसका चित्ररूप म॑ निरूपणु चित्र संख्या ११ में 
किया गया है। 
सारणी संख्या ११ ( क ) 


विभिन्न सरकारों द्वारा पंचवर्षीय योजना के अन्तगंत किया जाने वाला व्यय 
( करोड़ रुपयों में ) 











सरकार | व्यय 

केन्द्रीय सरकार ( रेलवे सहित ) १,२४१ 
क-राज्य सरकारें... ... ६१० 
ख-राज्य सरकारें - १७३ 
ग-राज्य सरकारें... द ३२ 

. जम्मू ओर काश्मीर _ १३ 
हु . योग २०६६/ 








इसका चित्रण करने : के लिये कोई त्िज्या लेकर एक बृत्त खींचा] इस वृत्त के 
केन्द्र पप बनने वाला ३६०१. का कोश २०६६ करोड़ रुपये दिखाता है। अर्थात्‌ इस 
वृत्त का च्ेत्रफल २०६६ करोड़ रुपये दिखाता है। इसलिए १,२४१ रुपये दिखाने वाले 


२५२ सांख्यिकौ के सिद्धान्त 


शकल को बनाने के लिये पहले ३६०? को २०६६ से विभाजित किया जावेगा | इस 
प्रकार प्रात मजनफल १ करोड़ रुपये दिखाने वाले शकल द्वारा केन्द्र पर बनाये गयये 
कोण को बतायेगा | १२४१ करोड़ रुपये दिखाने वाले शकल द्वारा केन्द्र पर बनाए 
जाने वाले कोण की गणना १ करोड़ रुपये दिखाने वाले शकल के कोण को १२४१ 
से गुणा करके प्राप्त की जग्ती है | अर्थात्‌ १२४१ रु० निरूपित करने वाला शक्ल 


केंन्द्र पर -.. 2. अंश का कोण बनायेगा । इस प्रकार अन्य राशियों के लिए 


२०६ द 
गणना करके विभिन्न शकलों के केन्द्र पर बनाए जाने वाले कोण सारणी संख्या १! 
(ख) में दिये गये हैं | 
सारणी संख्या ११ (ख) 

विभिन्न राशियों को निरूपित करनेवाले शकलों के द्वारा केन्द्र पर बनाए जाने 
वाले कोण : द 



































रुपये ( करोड़ों में ) कोण 
| हशड: २१३६ 
३१० १०६" १ 
१७३ | ३०९१ 
३२ ५*६ 
१३ . २"३ 
३६०९०. 


.. प्रत्येक शकल द्वारा 
केन्द्र पर बनाए जाने वाले 
| है 'ज० कप्तरकार कोण को निश्चित करने के 
; ध् ः “97% छत ग' राज्य सरकारों बाद वृत्त में कोई त्रिज्या खींच 

के ली जातो है। इस त्रिज्या से 
२'३ का कोण बनाती हुईं 
रेखा अंतिम राशि को बताएगी । 
इस दूसरी रेखा से ५*६" का 
कोण बनाया जायगा, ओर इस 






साभग्री का चित्रों हरा निरुपण २५३ 


प्रकार तब तक बनाते जाना चाहिये जब तक राशियाँ समाप्त नहो जाये। 

अगर दो या अधिक सामग्रियों और उनके सेघटकों की परस्पर तुलना करनी 
हो तो एक से अधिक कृत्त खींचने पड़ते हैं। इन इत्तों की त्रिज्याएँ राशियों के बगमूल 
के अनुपात में होती हैं| प्रत्येक शकल को पिछली रीति से निर्धारित किया जाता 
है | सारणी संख्या १२ (क) में पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार ओर 
क-राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न विषयों पर किया जाने वाला व्यय दिया गया है, 
जिसका निरूपण चित्र संख्या १२ में किया गया है। 


सारणी संख्या १२ (क) 
केन्द्रीय और क-राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न विषयों पर किया जाने वाला व्यय 
( करोड़ रुपयों में ) ह 





























विषय केन्द्रीय सरकार क-राज्य सरकार 

कृषि ओर सामुदायिक विकास १८६९३ १२७*३ 
सिंचाई ओर शक्ति .. २६५०६ २०६*१ 
यातायात और संवाहन ४०६* भ६*५ 
उद्योग १४६*७ १७*६ 
सामाजिक सेवा १६१४ १६२*३ 
विविध | ४०७ १०९०७ 

योग १२४०*५ ६१०*१ 











१२४१ और ६१० के वगमूल क्रमशः ३५"५ और २४७ हुए। इसलिए, 
ब्तों की त्रिज्याएँ. २४०; २४०७ के अनुपात में होंगी। अगर पहले दत्त की त्रिज्या 
१८ इंच (लगभग) है तो दुसरे की १९२ इंच (लगभग) होगी। विभिन्न विषयों को 
निरूपित करने वाले शकलों द्वारा केन्द्र पर बनाए जाने वाले कोण (लगभग) 
निम्नलिखित होंगे | द 


२५६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सारणी संख्या १२ (ख) : 
विभिन्न शकलों द्वारा संगत बृत्तों पर बनाए जाने वालें कोण (श्रेशों में)। 



































विषय केन्द्रीय सरकार क-राज्य परकारें 
कृषि और विकास. प्छ । .. छह... 
सिंचाई ओर शक्ति ७७ ह १२२ 
यातायात और संबाहन १्श्६ १३ 
उद्योग ७४३ ११ 
सामाजिक सेवा फू ११३ 
विविध श्र छ 

योग ३६० ३६० 

















रे | हि 
ह! पे ्‌ः हि हे ता . | ४ गँ : | डा : 
ह ज और शक्ति ५... ' “.. 


रे रे 














'क्! राज्य सरकारें 


चित्र संख्या १२ 

वृत्तों का उपयोग उन स्थानों पर किया जा सकता है जहाँ वर्गों या आयतों का 
उपयोग सम्भव हो, पर इनके बनाने में काफी गणना करनी पड़ती है। अ्तएव ऐसी 
राशियों के लिए जिनमें संधटकों की संख्या अधिक है, इनका उपयोग कम करना 
चाहिए, वैसे कई छोटे संघटकों को एक साथ मिलाकर उन्हें एक शकल द्वारा प्रस्तुत 
किया जा सकता है। 

त्रि-विभा-चित्र ( 76९० ए][शल्ाअंग्राब 0]88:४878 ) 
घन ((प००७)-त्रि-विभा-चित्रों के श्रन्तगंत रमक (८ए॥706४8) तथा गोल 


सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपण २५५ 





( 877665 ) आते हैं, पर इनकी बनावट और उसके लिए की जाने वाली गणना 
कठिन है। अतएव इन पर विचार नहीं किया जायगा । इन चित्रों का बोध देने के लिए 
धन निर्माण का वर्णन देना पर्यात्र है। जैसा द्वि-विमा-चित्रों के अन्तशत बताया जा चुका 
है, कई राशियों में इतना अधिक अन्तर रहता है कि उन्हें दंड चित्रों से निरूपित 
करने पर आकारों में बहुत बड़ा अन्तर हो जाता है। यह बात द्वि-विभा-चित्रों के 
लिए भी सही है। मान लीजिए दो राशियाँ १: ७१६९ के अनुपात में हैं। अगर 
उन्हें दशड-चित्रों द्वारा दिखाया जाय तो एक दंड की लम्बाई अगर १” रखी 
जाय तो दुसरे की ६० फीट ६ इश्च रखनी पड़ेगी। अगर द्वि-विभा चित्रों का उपयोग 
किया जाय तो भी समस्या हल नहीं होती। क्योंकि अगर इन्हें वर्गों या दत्तों के द्वारा 
निरूपित किया जाय तो यदि एक बग की मुजा या एक वृत्त की त्िज्या १” रखी जाय 
तो दूसरे की भुजा या त्रिज्या २७” होगी । ऐसे स्थलों में घनों का उपयोग किया जाता 
है क्योंकि इसमें घनों की भुजाओं का अनुपात राशियों के घनमूलों के अनुपात में होता 
है । अर्थात्‌ अब जो घन बनेंगे उनकी भुजाएँ १३६ के अनुपात में होंगी । घनों के रूप 
में चित्रण करने का उदाहरण यहाँ दिया जा रहा है। सारणी संख्या १३ (क) में कुछ 
देशों में सोने का उत्पादन दिया गया है जिसका चित्रण चित्र संख्या १३ में किया 
गया है | 


सारणी संख्या १३ (क) 
विभिन्न देशों में सोने का उत्पादन ( हजार ओऑँसों में ) 











देश उत्पादन (हजार | उत्पादन (निकटतम्‌ 
आँखों में) लाख आऔँसों में) 
दक्षिण अफ्रीका ११,६४४ । श्र्‌ 
रूस ७,००० ७ 
कनाडा है ४)४ ३ १ है 
संयुक्त राज्य अमेरिका २, २८६ २ 











कॉलम २ में दी गई संख्याओं के धन मूल (लगभग) क्रमशः २९३, १*६ 
१६ और १*३ हुए। २३: १९६ : ११६: १३ के अनुपात में खींचे गये घन 
राशियों को निरूपित करेंगे। चित्र संख्या १३ में दिए गये घनों की भुजाओं की 
लम्बाइयाँ क्रमशः १९१५, ०६४, ०'८ ओर ०६५ इश्च है। ये लम्बाइयाँ राशियों 
के घनमूलों के अनुपात में हैं । 


२५६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


हि विभिन्न देशों में सोने छा उत्पादन 

































वैधातो ++++77 
« .. ३ बर्गइंच»८ साख ओऑंस 












कनाडा सं०रा० आ० 














चित्र संख्या १३ 


त्रि-विभा चित्रों का बनाना बहुत कठिन है ओर धनों को बनाने में धनमूल 

की गणना करनी पड़ती है जो सरल रीतियाँ से नहीं की जा सकती । अतएब इनका 
उपयोग केवल उन स्थलों में करना चाहिये जहाँ ऐसा करना नितान्त आवश्यक हो 
जाय; पर इसके बावजूद भी त्रि-विभा-चित्र अपेक्षाकृत अच्छे लगते हैं क्योंकि संसार 
में प्रत्येक वस्तु तीन विभा वाली होती है | अगर दो से अधिक प्रकार की राशियों की 
परस्पर तुलना करनी हो तो एक ही पैमाना लेकर दो प्रकार के कई घन खींचे जा 
सकते हैं। इस प्रकार के चित्रों में एक प्रकार के घनों की परस्पर तुलना तो की ही जा 
सकती है, पर इसके साथ-साथ दूसरे प्रकार के घनों से भी तुलना करना सम्भव है। 
चित्र-लेख १६ (06087%879) द 

चित्रलेखों में किसी विषय के बारे में दी गई सामग्री की सापेक्षता उसके चित्र 

खींच कर दिखाई जाती है, इन चित्रों में उस वस्तु के चित्रों की संख्या का उपयोग 
इकाइयों के रूप में किया जाता है। जैसे अगर किसी देश में १,०५० मोटरें किसी वर्ष 
में बनी हों ओर उसी वर्ष में किसी दूसरे देश में ६७५ मोटरें बनी हों तो उनका चित्र 
द्वारा निरूपण करने के पहले इकाई चुन ली जाती है। अगर यह निश्चित किया गया 


सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपण २५७ 


कि चित्र में दिखाई गई एक मोटर ५० मोट्रों के बराबर होगी तो पहले देश के लिए 
२१ मोटरें बनाई जायँगी और दूसरे के लिए. १३६ मोटर | इस प्रकार के चित्रों का 
उम्योग प्रचार या विज्ञापन के लिए प्रायः किया जाता है क्‍योंकि ये चित्र ज्यामितीय 
रीतियों से खींचे गये चित्रों की अपेज्ञा आकर्षक ओर सुन्दर होते हैं | अगर केवल 
एक चित्र द्वारा एक राशि निरूपित करनी हो तो पहले इन राशियों के वगमूल की 
अनुपाती वर्ग-भुजायें खींच ली जाती हैं ओर इन वर्गों में चित्र बनाए जाते हैं । 
सारणी संख्या १४ में भरत, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका तथा चीन की पशु-संख्या दी गई 
है। इसका. चित्रण चित्र संख्या १४ में किया गया है। 

सारणी संख्या १४ 

विभिन्न देशों की पशु-संख्या (करोड़ में) 








देश | पशु संख्या (करोंड़ में) : 
जज आर... || ऋ शुदण 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पड. 
चीन ः श्व्र 





अगर १८ करोड़ पशुओं को एक गाय द्वारा दिखाया जाय तों पशु-संख्य। 
निरूपित करने के लिए क्रमशः १०, ४६ ओर १ गायों द्वारा चित्र बनाया जायगा | 
विभिन्न देशों की पशु संख्या 





चित्र संख्या १४ 
मान-चित्र लेख ( (.६/६02/9॥708 ) 
सामग्री का प्रादेशिक वितरण दिखाने के लिए मान-चित्र लेख का उपयोग 
किया जाता है | जिस क्षेत्र में सामग्री का वितरण दिखाना हो उसका मान-चित्र. खींच 
लिया जाता है ओर. प्रत्येक प्रदेश में राशि के परिमाण को निरूपित किया जाता है। 
१७ 


२५८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


जेसे किसी देश की जनसंख्या का घनत्व दिखाना हो तो भिन्न-भिन्न शहरों या ज्षेत्रों 
में प्रति वग मील में रहने वाली जनसंख्या मालूम कर ली जाएगी और फिर १०,००० 
या १,००,०० या १०,००,००० व्यक्तियों को एक बिन्दु से निरूपित कर प्रत्येक शहर 
या ज्षेत्र में उसकी जनसंख्या के अनुसार बिन्दु रख दिए जाएँगे। चित्र संख्या १५४ , 
में भारत की जनसंख्या का घनत्व दिखलाया गया है । 


क्‍ हल हि 









































चित्र संख्या १४५--भारत में जनसंख्या का घनत्व 
उपयक्त अनुच्छेदों में सामग्री को चित्रों के रूप में प्रस्तुत करने की विधियों का 
वरणन किया जा चुका हे। सामग्री को किस प्रकार के चित्र द्वारा प्रस्तुत किया जाना . 
डचित होगा यह प्रश्न इतना सरल नहीं जितना कि साधारणत: समझा जाता है; 


सामग्री का चित्रों हरा निरूपण २५९ 


क्योंकि यदि किंसी सामग्री को अनुपयुक्त चित्र द्वारा निरूपित किया। जाय तो उससे 
विश्रमात्मक परिणाम निकल सकते हैं | ऐसी परिस्थिति में यह आवश्यक है कि चित्र 
के चुनाव में सावधानी बरती जाय। चित्रों के बनाते समय सफाई ओर सुन्दरता का भी 
विशेष ध्यान रखना चाहिए । जैसा कि बताया जा चुका. है कि कुछ सामग्री इस प्रकार 
की होती है कि जिसका निरूपण तित्रों की अपेक्षाकृत विन्दु-रेखों में अधिक उपयुक्त होता 
है जैसे कि किसी भी काल-माला ((#776 52/:८8) का निरूपण रेखा-चित्र द्वारा ही 
उपयुक्त होगा। अगले अध्याय में विभिन्न प्रकार के बिन्दु-रेखों का वर्णन किया जायगा | 
क्‍ क्‍ प्रश्नावली क्‍ 

(१) सांख्यिकी में चित्र द्वारा स्ामग्री-निरुपण की आवश्यकता 
ओर उसके महत्व पर एक लेख लिखिए । 

(२) चित्रण में प्राथः क्या गलतियाँ हो सकती हैं? इन्हें दूर 
करने के लिए आप क्या सावधानियाँ बरतेंगे ? ड़ 

(३ ) तथ्यों के चित्रीय निरूपण की उपयोगिता बताइए, और चित्र 
बनाने की विभिन्न विधियों में, जो आपको ज्ञात हैं, एक की व्याख्या 
कीजिए । द ( बी० कॉम, इलाहाबाद १६४४ ) 

( ४ ) निम्नलिखित सारणी इलाहाबाद में मकान बनाने की लागत 
के मर्दे देती है :-- क्‍ द 


| 








रू० 





. जमीन द ः 9,५०० 
सजदूर २,४०० 
इटें २,००० 
लोहा १,८०० 
लकड़ी १,४०० - 
सिमेंट ८०० 

चूना ८०० 

.. पत्थर ६०० 
बांलू २०० 
: अन्य पदार्थ १,३०० 





उपयेक्त अंकों को एक उपयुक्त चित्र द्वारा निरूपित कीज्ञिए | 
( बी० कॉम, इलाहाबाद १६७४१ ) 


२६० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(४ ) निम्नलिखित सामग्री को प्रतिशततां के आधार में शीष -दंड़ों 
द्वारा निरूपित कीजिए 
इलाहाबाद शू कम्पनी के लिए १६३६ ओर १६४० के लिए ( प्रति 





जोड़े जूते ) आय, लागत ओर लाभ या हानि 























१६४० १६३६ 
रूु० आा० रु० . आ० 
प्रति जोड़े जूते आय क्‍ १२ ८ १० ० 
प्रति जोड़े ल्ञागत | ४ ० ३ ० 
मजदूरी | ८ ० दि ० 
चसड़ा १ | ० पर 
अन्य लागत 7३ ् व प्‌ 
प्रति जोड़े लाम (+) या तहत 
हानि (-) ०-(८ आने) +(८ आने ) 











( बी० कॉम, इलाहाबाद, १६४४ ) 
( ६ ) निम्नलिखित को प्रतिशतता के आधार पर खींचे गए अन्त 


विभक्त दंडों द्वारा निरूपित कीजिये । 
१६३८, १६३६ ओर १६४० में प्रति कुर्सी लागत, आय और लाभ 
या द्वानि । 





























|. १६३८ १६३६ १६४० 
क्‍ । रू० रू० रू०..__ 
द इ 
प्रति कुसी लागत 
(१) सजदूरी _. ४9५ ७४ १०४ 
(२) अन्य लागतें ३९० ४१ ७*० 
(३) पॉलिश व्यय १ बह ३-४ 
कुल लागत ६० १४१० | २१०० 
प्रति नत्ण क्या पथ: आय । १०० | 9४९० २०० 
प्रति कुर्सी लाभ (+ )हानि(-)(+)१"०| रा (-) १९० 





( बी० कॉम, इलाहाबाद , १६४८ ) 


साभग्री का चित्रों दवरा निरूपण 





२११ 


(७) नीचे विभिन्न देशों ओर दुनियाँ की जनसंख्या के १६३१ के 









































अंकदिएंगएडे:  _|__|_|_|_|_औ३औ॥औ]औ॥]॥३ऑ़ऑ4़्््३ 
देश जनसंख्या (००० छोड़ कर) 
ः चीन ४,११,७७० घोन ...................... ४,११.5३5० "7० 
भारत ३,४५२, ३७० 
ख्स १,६१,००० 
अमेरिका १,२७,००० 
जमनी ६४,७७६ 
जापान ६७,७०० 
यू० के० * ४६,०७७ 
फ्रोॉस ४१,८६० 
इटली ४१,१०० 
ध्रन्य ७,०५४ ,०७७ 
दुनिया २०, १२,८०० 
उपयक्त सामग्री को शकलों में विभाजित वतल चित्र द्वारा निरू- 
पित कीजिए । 
(८) निम्नलिखित सूचना को निरूपित करने के लिए उपयुक्त-चित्र खींचिये 
-िज्जियय सामान. | लाभ | उत्पादित इकाइयाँ 
फेक्टरी । क्‍ रूट | रु० रु. 
| ५3००० ३,००० ल्‍ १,००० १,००० 
२,७०० २,७०० २१,००० ८०० 





साथ ही साथ प्रति इकाई लागत ओर लाभ भी दर्शाइए। 
( बी० कॉम; इलाहाबाद १६४२ ) 
(६) निम्नलिखित सामग्री को सरल दंड चित्र द्वारा निरूपित कीजिये | 
खाद्यान्नों का कुल उत्पादन (दस लाख टवनों में) 





वर्ष 


कुल उत्पादन 





१६७६-४० द ४ ०५ 

१६५४५०-४ १ ४५००२ 

१६४१-५२ ४१९९४ 

१६४२-५३ ४७'प८ 
. १६४३-५४ 





_  शऋध३े-५४४७ ै +ै ++  छह्शछ४२ _ 





२६४ सांख्यिकी के, सिद्धान्त 


(१०) निम्नलिखित सामग्री को बहुगुण दंड चित्र द्वारा निरूपित 














कीजिए 
आयात ओर निर्यात के राशि देशनांक (आधार - १६४८ - ४६ -- १००) 

वष आयात नियोत 

ध्पद-ध8 |. ३००...|. १०० 
४६-४० १६७ ५०५ 
३०-४१ . घ्य्वे ११० 
४१-४२ १०० ज् 
४२-२४ ७४ ६७ 
४३-५७ ६४ ६७ 








(११) भारत में विभिन्न वस्तुओं का आयात (करोड़ रु० में) १६४८ 
__४६- शध्शरेश8 >> अअस्‍अ>/#//#/|॥|/ | 





























भोज्य, पेय .कच्चा माल!पूर्णात: या मुख्यत ; 
जे. ः तम्बाकू |।ओर उत्पत्ति निर्मित वस्तुएं | विविध अर योग 
१६४८-४६ | ६१८ १२६६३ | २६७२ ४2४७ | ४१८०० 
४६-४० | १२२३६ १४७४७"३० श्प८' ४३ ७७5६ | ४६००३ 
४०-४१ | १३४८१ १२५७७ ३१४७८ २.६२ | ४७5८ ६८ 
४१-५२ | २६२०७ २४६०८ १५१ छछ४... | ४३४ ८७४६४ 
४२-५३ । १७४६४ १७६१६ २७६३७. | ७४३१ | ६१५"४६ 
४३-४४ | ६२७४ | १६६'४४५ २७६*०३ ३६७ | बषरर६ 


उपयेक्त सामग्री को उपयक्त चित्र द्वारा निरूपित करिये । 


(१२) निम्नलिखित सामग्री को चित्रित करिये और उनके अन्तर 
भी दिखाइये 


एक फर्म की कुल आय आंर कुल लागत (हजार रु० में) 


(१६४०-१६४४) 








ब्षे कुल आय कुल लागत 
१६४७० २२ १६९४ 
४१ . रछाई २१७७ 
हर श्ण'र ३७९० 
४३ ३०३ २५" ६ 
४४ ३२९७ २६१ 
हे ३३*३ है४२३_ | _#_#_| 




















( ये अंक काल्पनिक हैं ) 


सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपण २६३ 


(१३) निम्नलिखित सारणी में एक फर्म के लाभ-हानि दिए गए हैं । 
इन्हें दंड चित्र द्वारा निरूपित कीजिये । 


एक फर्म की लागत, आय ओर ल्ञाभ या हानि का लेखा १६४०-५३। 



































| १६४० | १६४१ | श्ध्थ्र | १६४३ 

लागत (प्रति इकाई). | ० रू० ह० । रु० 
मजदूरी ४४ ४७ ६४ जीीरी 

कच्चा माल र८ २६ ३*० श््श 

वेतन १ *( ०'८ चर ०" 

अन्य लागतें पर रे आस 

रंठछ ४ | ३ | १३५ 

आय (अश्रति इकाई) | ११० [१२४१ १२६ १३०० 
प्रतिइ० लाभ (+ )हानि (-) -१७. [+ ०७ +०६ | .-०४ 

















. इस सामग्री को अन्तर्विभक्त दंड-चित्र द्वारा प्रतिशतता के आधार 
पर दिखलाइये-- 


(१४) निम्नलिखित सारणी भारत की औद्योगिक उद्गम से राष्ट्रीय 
आय बताती है | इसे अन्‍्तर्विभक्त दंड-चित्र द्वारा निरूपित कीजिए :-- 


भारत की राष्ट्रीय आय (ओद्योगिक उद्गम से) 























(आय रु० में) 
पद्‌ १६४८-४६ | १६४६-४० | (६४६०-४१ 
कृषि द ४२४ ४४६ छ८*६ 
खनन, निर्माण ओर हस्त-वयवसाय | १४८ १४० १४३ 
वारिज्य, यातायात और संचार १६९० १६६ | १६८६ 
अन्य सेवाए १३'४ १३'८ १५2७9 
साधन-लागत पर वास्तविक देशी उत्पत्ति. ८६७ ६०३ ६४५४५ 
विदेश से अर्जित वास्तविक आय _| -०२ | -०२ | -०'२ 
राष्ट्रीय, आय ८६४ &०१ | ६५*३ 








इस सामग्री का प्रतिशतता के अनुसार भी चित्रण कीजिए । 


२६४ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


१४) निम्नलिखित. सारणी १ परिवारों का मासिक व्यय दिखाती 
है। इसका चित्रण प्रतिशतता के अनुसार उपयुक्त चित्र द्वारा कीजिए :-- 




















_ व्यय की मदें. | क परिवार | खपरिवार | ग परिवार 
हूं. द ५ (रू०) (रू०) (रु०) 

भोज्य पदाथ ४३ ८४ १२० 
कपंड़ा प्र १७ २५ 
मनोरंजन ३ १० १२ 
शिक्षा ४ ६ १४ 
मरकांन का किराया १० २१ १७ 

. अ्ग्न्य प्र १४ ११ 








(१६) निम्नलिखित को आयत के रूप में निरूपित कीजिये 


दो परिवारों का मासिक बजट 











... व्यय की मर्दे 























क परिवार ख परिवार 

- ... ऊकू० रू० रू० . रू ४ 
खाद्य-पदार्थ १८० ११० 
कपड़ा ७० ६५ 
मकान का किराया ६० ८० 
ईंधन और बिजली ३४ ३० 
विविध _ _.. ४ +/+/_/7_ः १५ 
____ ऊँल व्यय जी ४४० २०० 
ह जचत छऋऔऊ-ऋ_ऋ#ऋ#ऋ#(# ्र२र५्ू २ १० 








. (१७) उपयुक्त सामग्री को बृत्तों के रूप में भी दिखलाइये 
(१८) भारत में कपड़ा-उत्पादन ओर आयात के लिए नीचे दिए 


गए समंकों की चित्रीय रूप से तुलना कीजिए । इन अंकों से आप क्या 
परिणाम निकालते हैँ 





करोड़ गजों में 
हवा एए्छइणाण 
मित्र-उत्पादन ११६४ ४२६-६ 
हाथ करघा-उत्पादन १०६८ कक. हह२८ 





7 ए््त्रुफकक्ाइलहबाद फएत्त (बी० कॉम, इलाहाबाद, १६७६) 


सामग्री का चित्रों हारा निरूपण 


२६५ 


(१६) निम्नलिखित सारणी में भारत का त्रेमासिक विदेशी 


व्यापार दिया गया है। इसे उप्येक्त चित्र में निरूपित कीजिये ॥ 





करोड़ रु० में 
































अन्तर 
निर्यात आयत . अतिरिक्त (+) 
या कमी (-) 
१६४२-५३ ररा त्रिमास | ४८७ ३८६ | न ६८ 
श्रा +» १४७० १६७"७ | .- १०७ 
छथा + १४०१३ १३८३ ! +$र'० 
श्ध्श्श्र्छ स्ला » १३२५६ १३०६ | | २७० 
ररा » | ११६६ १६४० | +- ४४१ 
श्र $ १३०७ १५७८४ - १८० 
था 5 १४८८ १२४० न रे४च'८ 
१६४७-४५ श्ला + १३२६ १२६६ + २९७ 
| रा ११३४५ १७४९२ - ६१*७ 
(२०) निम्नलिखित को उपयुक्त रूप से चित्रित कीजिये । 
आय के मुख्य शीषक १६४८-४६ १६४६-४० १६४०-५१ 
(लाख रु०) (लाख रू०) | (लाख रु०) 
आयात-नियात कर ७२.७४ | १,२६,१६ | १,२४,७१ 
संधीय उत्पत्ति-कर ४०,६३२ ६७,८४५ ६७,४५४ 
आय-कर(निगम कर के साथ)। १,३६,६८प | १,१४,३२७ १,२५,७१ 
_अन्य कर ' | ३५१६ ३५६० ६५३१ 











रु (२१) निम्नलिखित सामग्री को अन्तविभक्त वृत्त-चित्र द्वारा 
दिखलाइये : 


भाग-क राज्यों की जनसंख्या (१६४१) (ल्ञाख व्यक्तियों में) 








आसास ६०.४०. 
उत्तर प्रदेश ६३२१६ 
उड़ीसा १४६०-४६ 
पश्चिमी बंगाल २४८१० 
पंजाब १२६४१ 
बस्बई ३४६ *४६ 
बिहार _ ४9०२"२६ 
मद्रास ४७०'१६ 
मध्यप्रदेश २१२'छ८ 








२६६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२१) नीचे दी गई सारणी में जीविका के अनुसार भारत की जन- 
संख्या दी गई है । इसे उपयुक्त चित्र द्वारा निरूपित कीजिये । 





3 पुरुष |. स्त्री में ऊुल 

जीविकालुसार वर्ग (लाखों में) (लाखों में) (त्ञाखों में) 

(१) कृषि से संबंधित १२६२१ | १२२६१ तु 
.. (क) पूर्णतः या मुख्यतः जमीन वाले कृषक 

आर उन पर आश्रित व्यक्ति ८४१९२ 

(ख) पूर्णतः या मुख्यतः ल्‍ बिना जमीन वाले 

कृषक ओर उन पर आश्रित व्यक्ति १६२८६ | १४३७ ३१६४ 

(ग) कृषक-सजदूर और उन पर आश्रित रा 

२२४८० | २२४२ छ४८ार 

(घ) जमीन के खेती न करने वाले रवामी, 

कृषि-लगान लेने वाले ओर उनके आश्रित 











परर' ३. शहछ३ 














रछ'३ , र८ा६॥ ३१ 

(२) कृषि से असम्बन्धित ४७०३ | ४०४८४ _, १०७४*७ 
(क) कृषि के अतिरिक्त उत्पादन २००२ | १८६४७ इष्द्द् 
(ख) वाशिज्य ११२९३ | १००७ २१३१ 
(ग) यातायात | ३१९१ | २४११ ४३२ 
(घ) अन्य सेवाएँ ओर विविध बृत्ति २२६६ | २०३'२ ४२६८ 

कुल जनसंख्या (कृषि सम्बन्धी 9५३७* | 
र्‌ अन्य) १८३२३ १७३४*६ ३५६६६ : 








(२२) एक सान-चित्र लेख बनाइये ओर उसमें भारत के विभिन्न 
भागों में जनसंख्या के घनत्व को निम्नलिखित सारणी के अनुसार 
दिखलाइये । 














राज्य घनत्व (व्यक्ति प्रति वर्गेमील) 
उत्तर प्रदेश क्‍ (0 
बिहार ४७२ 
उड़ीसा २४४ 
पश्चिमी बंगाल रे ८०६ 
आसाम १७६ 


मद्रास ४४६ 


“मैसूर _ ३०८ 





सामग्री का चित्रों हारा निरूपण 


२६७ 





क्‍ घनत्व (व्यक्ति प्रति वर्गमील) 





राज्य 
॥ 
बम्बई ३२३ 
सध्य प्रदेश .. १६३ 
हेदराबाद घ्र७ 
राजस्थान ११७ 
पंजाब ३३८ 
पेप ३४७ 
विन्ध्य-प्रदेश १४१ 
मध्य भारत १७१ 
ट्रावनकोर-कोचीन ९१०१५ 








(२३) निम्नलिखित सारणी में भारत की जनसंख्या धर्म के अनु 
सार दी गई है। इसको आयत-चित्र ओर वृत्त-चित्र में वास्तविक संख्या 


ओर प्रतिशतता में निरूपित करिये 



































. धर्म संख्या (लाखों में) 

हिन्दू... रह 

सिख ६२२ 

जैन १६२ 

मुसलमान ३४७०० 

इसाई . ८१*६ 

अन्य धस २०१ 

(२४) निम्नलिखित सामग्री को चित्रलेख द्वारा निरूपित करिये 
देश जनसंख्या (करोड़ों में) 

चीन ४६४ 

भारत ३५४७ 

पाकिस्तान ७६ 

सं० रा० अ० २१५१ 

यु० रा० 5 





२६८ क्‍ .. सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२४५) सन्‌ १६४४ के अन्त में नोटों के प्रचलन में सापेक्ष वृद्धि को 
चित्र रूप में दिखलाइये 


नोट प्रचलन में वृद्धि 
( राष्ट्रीय मुद्रा-इकाई के दस लाखों में ) 














देश ह । १६३६ में १६४५ के अन्त में. 
कनाडा २३३ द १,१२६ 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ७,४६८ २८,४०७ 
यूनाइटेड किग्डम ४५४ १,३८० 
आस्ट्रेलि . ४७ २०० 
भारत २,२४५ १२,१०६ 

ल्‍ 











(एम० काम०, इलाहाबाद, १६४८) 


(२६) निम्नलिखित दो परिवारों के मासिक व्यय को द्वि-विभा- 
चित्रों द्वारा दिखाइए 




















परिवार अ परिवार ब 
व्यय की मर्दे आमदनी ४५०० रु० | आमदनी ४०० रु० 
प्रति माह प्रति माह 
भोजन क्‍ १४० रुपये १२० रुपये 
कपड़ा ८० ८:० 
मकान का किराया १०० ६० 
शिक्षा . ३७० . 29० 
रोशनी तथा इंधन ... ४८ २० 
विध ४० ९0८ 











(एम० ए०, पंजाब, १६४२) 


(२७) निम्नलिखित अंक १६३१ में संसार के विभिन्न देशों की ज्न- 
संख्या तथा कुल विश्व-जनसंख्या के बारे में दिये गये हैं 


सामग्री का चित्रों द्वारा निरूपण २६९ 











देश .._| जनसंख्या (०००, छोड़ दिये गये हैं) 
चीन ४११,७७० 
भारत ३४२,३७० 
ख्स १६१,००० 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका १२४,०७० 
जम नी ६४,७७६ 
जापान ६७,५०० 
यूनाइटेड किग्डस ४६,०७७ 
फ्रास ४१,६६० 
इटली है ३ ह। १ ०9० 
दूसरे क्‍ 5०५,०७७ 
विश्व . २,० १ २,८००. 








उपयेक्त सामग्री को वृत्त-चित्र से जो कि शकलों में बटा हो, दिखलाइए । 
(२८) निम्नलिखित सामग्री से भारतवर्ष में कपड़े के आयात ओर 
उत्पादन की तुलना रेखा-चित्रीय रूप में कीजिए। आप इससे किस परिणाम 
पर पहुँचते हैं? _ _.[ ७.७७ ७ ७७़.ई3" _#_औ& 

















करोड़ गजों में. 
१६१३-१४ १६३८ ३६ 
” ज़्ल्ञ का बना हुआ कपड़ा |. ११६४ ४२६९६ 
हाथ का बना हुआ कपड़ा १०६'८ १६२९० 
आयात ३१६.७ ६४.७ 





(बी० काम०, इलाहाबाद, १६४६) 
_(२६) निम्नलिखित सामभी को एक अनुकूल चित्र हरा प्रदर्शित कीजिए : 

















।मदनी की मर्दे ! १६३८-३६ १६३६-४० 
(लाख[रुपयों में) | (लाख रुपयों में) 
महसुल ४9०४० ४४८८ 
केन्द्रीय आबकारी कर प्द्प ६४२ 
कॉरपोरेशन कर २०४ श्श्८ 
अायकर ' १३७४ १७२० 
नमक ८१२ १०८० 
अफीम हे 9० ४६ 
अन्य द क्‍ ११२ । १३० 





(बी० कॉम०, नागपुर, १६७४३) 


२७० _ साँल्यिकी के सिद्धान्त 


(३०) निम्नलिखित सारणी में सन्‌ १६३१ ईं० में संसार के कुछ 
देशों के जन्म-अधघ तथा मृत्यु-अधघ दिए हुए हैं। इन्हें एक अनुकूल चित्र 
द्वारा प्रदर्शित कीजिए | 


ैदकाशाक७७७००ाकतनककतकरकार 





दि हक + 


१३% +३+ “४४3४७ ९५१३/०/५०४३ २पवाजनाकिक 





देश जन्म-अधे मृत्यु-अघ 
सिश्र ४४ २७ 
कनाडा २४ ह ११ 
यू० एस० ए० १६ १२ 
भारत श्र २८ 
जापान . ३९ १६ 
जमंनी १६ ११ 
फ्रांस... १६ १६... 
आइरिश फ्री स्टेट २० यः 
यूनाइटेड किग्डम द १६ कभ शर 
रूस ४० || श्घप्ः 
आस्ट्रेलिया * .. द २० ६ ' 
न्यूजीलेन्ड द श्प ये 
फिल्लस्तीन.... ४३ २३ 
स्वेडन १४ १२ 
जाखे _ | ९७ ११ 











(बी० कॉम०, लखनऊ, १६३८,) 


अध्याय ११ 
सामग्री का बिन्द्रेखीय निरूपण 


(072[०77८ ९००768८7(2६07 0 22609) 

प्रचार में आकर्षण के लिए. पिछले परिच्छेद में दिए गए. चित्रों का उपयोग 
प्राय; किया जाता है, पर सांख्यिकीय दृष्टिकोण से बिन्दुरेख अधिक महत्वपूर्ण है। उन 
स्थानों में जहाँ दो या अधिक राशियों की तुलना करनी होती है चित्रों का उपयोग किया 
जाता है पर जहाँ दो चलों में संबन्ध ज्ञात करना हो, इनका उपयोग नहीं किया जा 
सकता | दो चलों में संबंध स्थापित करने का अर्थ उनकी परस्पर-निमरता या एक में 
परिवतेन होने के साथ-साथ दूसरे में होने वाले परिवर्तन दिखाना है। बिन्दुरेखों की 
विशेषता यह है कि ये अधिक स्पष्ट, परिशुद्ध ओर सुबोध होते हैं | इनका खींचना भी 
अपेच्ञाकृत अधिक सरल होता है। इसके अन्तगत कालिक-चित्रों (800787%778) 
ओरं ,वारंवारता-वंटन-चित्रों (87278 ० 4#००१प०7०7 व80४0प007) को 
खींचना आता है | द कि 

बिन्दुरेखों की स्वना करने में २ 
पहले दो सरल रेखाएँ ली जाती हैं - 
जो एक दूसरे से ६० का कोण द ष 
बनाती हैं. (अर्थात्‌ एक रेखा दूसरी 
पर लम्ब होती हे)। इन रेखाओं को क्‍ 
अच्ष (255) कहा जाता है। अन- या है हु 
भूसिक (7072070%/) रेखा को ; 
भुजाज्ष या य-अक्ष (208८888 -: 
0४ 5-2579) कहा जाता है। ओर १ मु 
शीर्ष रेखा (7०:४८०!) को कोटि- द 
अच्ष या र-अक्ष (007486 07 
ए-255)। जिस स्थान पर ये एक चित्र संख्या ० 
दूसरे को काटती है उसे मूलबिन्दु द 
(०४४77) कहा जाता है। य-अद् में मूलबिन्दु के दाहिनी ओर धनात्मक रशिययाँ 


है 








श्र. सांख्यिकी के सिद्धान्त 


आर उसकी बाँर ओर ऋशणात्मक राशियाँ दी जाती हैं। ओर २-शअ्र्ष में मूलबिन्दु के 
ऊपर धनात्मक राशियाँ और नीचे ऋणात्मक राशियाँ दी जाती हैं | इस प्रकार खींची 
गई रेखाएँ. चित्र सं० ० में दी गई हैं। ये रेखाएँ बिन्दुरेख-कागज पर खींची जाती ._ 
हैं। इनसे कागज चार भागों में विभाजित हो जाता है। दिए हुए चित्र में यय' भुजाक्ष 
या य-अक्ष है, रर' कोटिअज्ष या र-अक्ष है और म मूलबिन्दु है। इनसे कागज के चार 
भाग (१), (२), (२) और (४) हुए हैं। घनात्मक राशियाँ मय और म र में नापी 
जाती है ओर ऋणात्मक राशियाँ म य' और मर में नापी जाती हैं । अ्रतः अगर दो 
राशियों (य और र) के मूल धनात्मक है तो वे पहले भाग में अकित किये जाएँगे 
ओर अगर दोनों ऋणात्मक है तो वे तीसरे भाग में। अगर र के मूल धनात्मक हैं 
ओर य के ऋणात्मक तो इनका अकन दूसरे भाग में होगा और इसके विपरीत होने 
पर अंकन चौथे भाग में किया जाएगा । क्‍ 

प्रत्येक अक्षु के लिए सुविधानुसार स्केल निश्चित कर दिया जाता है। यह 
आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक अ्ष॒ के लिए एक ही स्केल रखा जाय । स्केल द्वारा यह 
बताया जाता है कि प्रत्येक अज्षु की एक निश्चित लम्बाई (जैसे १ इंच या १ सेंटी- 
मीटर) राशि का कितना मूल दिखाएगी । जैसे दिए हुए चित्र में य- अक्ष पर १”« 
१० इकाइयों के ओर र-अक्ष पर १४-८५ इकाइयों के माना गया है। अब अगर य 
का कोई मूल्य १९ और र का कोई मूल्य ८ हो तो उन्हें दिखाने के लिए मूलबिन्दु के 
दाहिनी ओर उससे १२” दूरी ले ली जाएँगी क्योंकि य का मूल्य धनात्मक है और 
र-अक्ष में मूलबिन्दु के ऊपर की ओर उससे १६"इंच की दूरी ले ली जायगी। 
जहाँ पर इन बिन्दुओं से खींची रेखाएँ मिलती हैं वहीं बिन्दु य-:१२ और र>८ 
होगा | इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि दूरियाँ मूलबिन्दु से नापी जाती हैं, इस- 
लिए, वह य5० ओर र--० वाला बिन्दु हुआ | किसी बिन्दु की य-अक्ष में र 
मूलबिन्दु से नापी गई दूरी को य-याम (5-०0070॥7406) और र- अक्चू पर 
नापी गई दूरी की २- याम (-००0/0706) कहते हैं । इन दोनों दूरियों को उस 
बिन्दु के याम (०0076774(28) कहते हैं । किसी बिन्दु का कागज पर स्थान बताने 
की रीति यह हे कि उसके याम बता दिए जायूँ। यामों को (य,र) के रूप में व्यक्त 
किया जाता है। (य,र) का अर्थ य -अक्ञ पर मूलबिन्दु से य की दूरी पर र-अक्ष 
की दिशा में र दूरी लेकर प्राप्त बिन्दु होता है। उदाहरण में दिए हुए बिन्दु के याम 
(१२,८) हुए । चित्र में कुछ बिन्दुओं प, फ, ब, ओर भर को अंकित किया गया है 
जिनके याम क्रमशः (१२, ८) (- १०, ६), (-६,-६) और (४, -५) हैं। 


सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण २७३ 


बिन्दुरेखा खींचने में कुछ बातों पर ध्यान रखना पड़ता है। पहली स्केल के 
बारे में है| स्केल ऐसी चुनना चाहिये जिससे दिए; हुए. कागज पर पूरी सामग्री प्रस्तुत 
की जा सके अर्थात्‌ स्केल ऐसा होना चाहिए जो पूरी सामग्री को प्रस्तुत कर सके | 
दूसरी बात इस विषय में है कि अक्ष में किस चल (ए०४42]6) को रखा जाय। 
इसके लिए परम्परानुसार स्व॒तन्त्र चल (76९5०४व670 २५४१४ ०6) को य - अक्त 
में दिखाया जाता है ओर परतन्त्र चल ( 669८7त८०४ ए६/१896) को र- अच् 
में दिखाया जाता है। प्रत्येक अक्ष के लिए जिस स्केल का उपयोग किया ज्ञा रहा हो 
उसे स्पष्टतः बता देना चाहिए। अन्तिम बात सामग्री-प्रांकण (]00078 ०६ १&६७) 
से सम्बन्धित है | जब सामग्री को बिन्दुओं के द्वारा प्रस्तुत कर दिया जाता है तो प्रश्न 
उठता है कि इन बिन्दुओं को किस प्रकार मिलाया जाय कि बिन्दुरेंख बने | इसके 
लिए. यह नियम है कि यदि राशियाँ किसी संतत चल ( ८०रपरप003 ए४77- 
206) के विभिन्न मूल हैं तो इन बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा जितनी अधिक 
सरलित-वक्र (5790007606 ८८४४८) हो सके उतनी बनानी चाहिए | संतत चल 
का अर्थ ऐसे चल से है जो दिए हुए विस्तार में कोई भी मूल्य ले सके, जैसे समय, 
व्यक्तियों की लम्बाई आदि | इस दशा में ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि वक्र के 
विभिन्न माग एक दूसरे से कोण बनाते हैं। इस प्रकार खींचे हुए वक्र यह प्रकट 
करते हैं कि चल के एक मूल्य से दूसरा मूल्य संतत रूप में लेते हैं। पर अगर चल 
खंडित ( 6!82/०6) हो तो विभिन्न बिन्दुओं को सीधी रेखाओं द्वारा मिलाना 
चाहिए, | इन सीधी रेखाओं का अर्थ यह होता है कि चल के एक के बाद दूसरा मूल्य 
लेने के बीच में कोई संततता नहीं है अर्थात्‌ उसके दो विभिन्न मूल्यों को तो ले 
सकता है पर इनके बीच के मूल्यों को नहीं लेता । इस प्रकार के दो बिन्दुरेख खींचने 
का वर्णन आगामी अनुच्छेद में दिया गया है जिन्हें चित्र संख्या २ और ३ में चित्रित 
किया गया है। सामग्री को प्रायः दूसरे प्रकार के बिन्दु रेखा के रूप में प्रस्तुत किया 
जाता है क्योंकि बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा को पूणतः सरलित-वक्र के रूप में 
रखना संभव नहीं हो पाता | पर जो वक्र गणितीय संबंध के रूप में रखे जा सकते हैं 
उन्हें सरलित-बक्र के रूप में दिखाया जा सकता है । क्‍ 
आगामी भाग में पहले कालिक-चित्रों को खींचने का वर्णन किया गया है 
और बाद में वारंवारता चलचित्रों का। 
प्राकृत और अनुपात स्केल ()४४४७४०) ७70 7२६६० $८४)०)--अगर 
चल के निरपेत्षु मूल्यों ( ४080]776 ए००6७ ) को प्रस्तुत करना हो तो प्राकृत 
श्द्र ह 


२७४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


माप श्रेणी (१७०४४) 8००४ ) का उपयोग किया जाता है। प्राकृत स्केल अक्त 
पर ली गई बराबर दूरियाँ बराबर मूल्यों को दिखाएँगी। इस प्रकार अगर स्केल 
| यश्क्ष के लिए १-५० इकाई लिया गया तो य-अक्ष में १” की कोई भी दूरी 

५० इकाइयोँ दिखाएगी। इसी प्रकार र-श्क्षु के लिए भी होगा। अगर चल 
के सापेज्षिक मूल्य (२०७४४ए८ ए००८८७) दिखाने हों तो अनुपात माप श्रेणी 
४200 3226) का उपयोग किया जाता है। पहले प्राकृत स्केल कर सामग्री 
प्रांकण की रीति का वर्णन किया जाएगा और बाद में अनुपात स्केल की रीति का। 


: प्राकृत-स्केल लेकर सामग्री-प्रांकश-कालिक चित्र (९०४४९ ०६ 
]8804492/:0779 00 78०7७) ४०४]०)--कालिक चित्रों में किसी चल के विभिन्न 
समयों में लेने वाले मूल्यों को दिखाया जाता है। अर्थात्‌ यह प्रस्तुत किया जाता है 
कि समय परिवतन के साथ चल के मूल्यों में क्या परिवतन हुआ । यदि चल के 
वास्तविक मूल्य लिए जाये तो इस प्रकार प्राप्त बिन्दुरेख निरपेत्ष कालिक-चित्र 
(2050]706 7800778£275) कहलाते हैं। अगर मूल्यों को देशनांकों के रूप 
में रखा जाय तो जो बिन्दुरेख प्रात्त होते हैं वे देशना-कालिक चित्र (!7065 
778074279॥0) कहलाते हैँ । अगर दो या श्रधिक चलों द्वारा विभिन्न समयों पर 
लिए जाने वाले मूल्यों की परस्पर-तुलना करनी है तो दो या अधिक वक्र मिलेंगे और 
इस प्रकार तुलना की जा सकती है। 

एक चल के लिए निरपेज्ष कालिक-चित्र (3०80[प/८ 57072+ 
278--0॥6 ए०३790]०)--सारणी संख्या १ में भारतवर्ष में १६४५ से १६५४२ 
तक उत्पादित इस्पात की मात्रा दी गई है । इसको एक बिन्दुरेख के रूप में रखना है। 
सारणी संख्या १ 
भारत में इस्पात का उत्पादन, (६४५-१६५२ (लाख टनों में ) 











बा तहन्ा््््््््््णज्क््त 
रध्ड्ढ ६९५४ 
१६४६ | ट:'६ ० 
१६४७ ८-६३ 
श्ह्ड्द ॒ |. ८:१७ 
१६४६ ६९३० 
१६३० १०,०४ 
१६४१ १५०७६ 
२६५२ . ११७०३ 








सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण २७५ 


इसको बिन्दुरेखी रीति से प्रस्तुत करने के लिए पहले दो अक्ष खींचे जो एक 
उसरे को य बिन्दु पर काटते हैं।य अक्षु पर व दिखाए गए. और र-अक्तु पर 
उत्पति | य-अक्ष के लिए. स्केल १--२ वष लिया गया और र अच्च के लिए १” 
-- ४ लाख टन | अब १६४५ के ऊपर २ !'३८ इंच की दूरी पर स्थित बिन्दु ५४ 
ताख टन की उत्पत्ति दिखाएगा। इसी प्रकार १६४६ के ऊपर २२२” १६४७ के 
ऊपर २२३? आदि के बिन्दु खींचे जा सकते हैं | इन बिन्दुश्रों को मिलाने वाली 
प्रीधी रेखाएँ ही इच्छित बिन्दुरेखा बनाती हैं। द 

इस चित्र में एक बात पर उत्पादन 








झाख टनें में भारत में इस्पात का उत्ादन  , 
यान देना चाहिए। वह यह | | ््न्ता 
(१ द्ू किक, ४ के एः ा [० ्ि 
कि इसमें केवल एक चरण 2 





( (१०४०४४४४ ) दिखाया गया 
है। इसका कारण यह है किजो ६ 
सामग्री प्रांकित करनी हो उसकी है 
पब राशियाँ धनात्मक हैं। अगर 
रेसा न होता तो अन्य चरणों 












































को भी दिखाना पड़ता । अप 0६ ४७ ४८ ए फ् एफाए 
इस चित्र के द्वारा यह बर्ष. 
जाना जा सकता है कि प्रत्येक वर्ष चित्र संख्या १ 


इस्पात का उत्तादन कितना था और समय के साथ बह किम प्र्ार बदला है। इस , 
चित्र की दंडचित्र की अपेज्षा प्रमावशालिता का अनुमान इस सामग्री के लिए. 
दंड-चित्र खींच कर लगाया जा सकता है। 

देशानां कालिक चित्रों (70०5 7॥8/0472£2770) और निरपेक्ष कालिक 
चित्रों (॥050]706 79800:42747) में केवल इतना अन्तर है कि पहले में 
देशनांक दिखाए, जाते हैं ओर दुसरे में वास्तविक मूल्य। इसलिए पहले प्रकार के 
चित्रों से चल के मूल्यों में होने वाले प्रतिशत परिवतन का ज्ञान होता है और दूसरे 
प्रकार के चित्रों से चल के वास्तविक मूल्य में होने वाले परिवतन का ज्ञान होता है। 
कूट-आधार रेखा ([798८ 9986 [76) 

कूटआधार रेखा वाले चित्र में पूरा शीष-स्केल नहीं दिखाया जाता। उन 
दशाओं में जब चल से होने वाले परिवर्तन चल के मूल्य की अ्रपेज्ञा बहुत कम हों और 
उन्हें दिव.जा आवश्यक हो तो इसका उपयोग किया जाता है। इस प्रका बहुतरके 





२७६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


छोटे परिवतनों को दिखाने के लिए. अगर कूट आधार रेखा का उपयोग नहीं किया 
गया तो स्केल बहुत छोण लेना पड़ेगा अर्थात्‌ बड़ी संख्याओं को दिखाने के लिए 
मूल बिन्दु से र-अ्क्ष को नापी जाने वाली दूरी बहुत बड़ी होगी आर क्योंकि परिवतन 
बहुत छोटे दें । इसलिए वक्र कागज में ऊपर ही ऊपर रहेगा। इस प्रकार चित्र 
की सुन्दरता नष्ट हो जायगी ओर साथ ही साथ बहुत बड़े कागज को भी आवश्य- 
कता पड़ेगी। सारणी संख्या २ में दी गई सामग्री ( भारत में कुल द्रव्य की कुल 
पूर्ति ) का प्रांकश चित्र संख्या २ में किया गया है । 











सारणी संख्या २ 
द भारत में द्रव्य की कुल पूर्ति (अरब रुपयों में) 

माह १६४१ . १६५२ 
जनवरी ही १६७... श्द्य"्छ 
फ्री २०२ १६०. 
माच २०६ श्प्प्ष्ह्‌ 
अप्रैल । २०*'६ १८६ 
मई ह २०'६ द १८२९७ 
जून २०४ श्प्प'प्‌ 
जुलाई क्‍ २०*१ ..... श्प३े 
अगस्त १६९४ .. शब्१ 
सितम्बर | १६९० १७९६ 
अबवटूबर १६*० १७'६ 
नवम्बर -: श्दाःछ १७'६ 
दिसम्बर श्दाप क्‍ १७"६ 











इस चित्र में स्केल १-१ अरब रुपया है। अगर कूट आधार रेखा न खींची 


जाती तो लगभग २५४” लम्बा कागज लेना पड़ता और तब द्रव्य-पूर्ति में होने वाले 
परिवतन इतनी स्पष्टता से दिखाए, जा सकते । 


कूट-आधार रेखा का उपयोग जितना कम हो सके उतना कम करना चाहिए,। 
प्रायः जगह बचाने के लिए या अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण उच्चवचनों को 'प्रमावशाली 
बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। ऐसी दशाओं में इनका अध्ययन 


सामग्री का विन्द्रेतीय निरूपण २७७ 


प्रावधानीपूवंक करना चांहिए, | प्रत्येक इस प्रकार के चित्र में कूटआधार रेखा के 
ऊपर का कुछ भाग छोड़ देना चाहिए जैसा चित्र में दिखाया गया है। 


ध््व्य की 
ख्रयें 

पति थे 
२१.० 


भारत में द्रव्य की कुछ पूर्ति 








| 





५५५ |... कफ पं 


] 


























१९५१ 


श्र 


“जाफपांत्र म जज असि अ न दि ज फेम न जूलतु अधसिगभ नि [अन्न जल असि अत ै 
त्जे २ ह 


चित्र संख्या २ 


दो या अधिक चल्ों के लिए कालिक-चित्र (800787405 : 
० 0४ 77076 ए४१790[68)-- अगर ये चल एक ही इकाइयों में दिए गए, 
हैंतो अनुभूमिक और शीष्र स्केल एक ही होंगे | अन्य बातें वैसी ही रहेंगी 
जैसी एक चल के लिए कालिक चित्र खींचने में | अ्रन्तर केबल इतना ही होगा कि 
अब एक ही कागज में एक से अधिक बिन्दु रेखा होंगे । इस प्रकार का एक चित्र 
चित्र-संख्या ३ में सारणी संख्या ३ का प्रांकष करके बनाया गया है। इस प्रकार के 
चित्रों में यद्द सुविधा रहती है कि विभिन्न बिन्दु रेखों के अन्तरों ओर उनके योगों 
के बिन्दु रेखा भी खींचे जा सकते ईं | 


२७८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सारणी संख्या ३ 
























































































































































वष आय | व्यय वि 
४६२३-४३ १६९६ . रद २ 
हु३२- ४४ २४' १ ४३"१ 
४४-४५, २२"७४ डट9 
४४-४६ ३५४*९० ४७*'३ 
उधपि-४७ | ३३९० ३३९१ 
४७--४८: श्प्ण्द्‌ १५४११ 
४८-४६ इफाह्‌ ३०८: 
४६-१० ३३*३ ३०१० 
५०-५१ « ३६”"४ ३३*४ 
११-४२ डंघ्प्य | ३६९६ 
१२-४३ शरध्।ौ. |. १४७६ 
िओ ५७ आय- व्यय_तथा!इनका अन्तर 
हक ० च्ु 
कार श्र ्॒‌ | 
छ् । * 
| है | |] हि | है 
हे / | 7] हि बता 
३० / | / | | ;॥# 
3. है] है [कि 
५ ह 
|__/ ॥  ि 
२५ य 7 ऋाक | बनना न ५ कड़ा ॥॥ ५ ानुक्रि।। टँ 
| | पे |; 
२० श्ञु प 7 
/ 
५ 
१० 
५ | ण छ् न 
| | आओ । (2 ५ 
>है० ञ् [_- ---व्यय 
। | .----- श्न्त 
न ५] ना: 
२०--- 
है है | ४ हे हे #% ३ प9 क+:+%सझेे 
# हे के हे एफ कफ रओ और. 5 % 


चित्र संख्या ३ 


कक 


सामग्रो का विन्दुरेखीय निरूपण २७९ 


इस नित्र में दो चरण (१७००:४७/॥) पहला ओर चौथा दिखाए, गए है बयोंकि 
अन्तर में जो र-अकछ्ष में दिखाया गया है, कुछ राशियाँ ऋणात्मक हैं। इस प्रकार समान 
इकाई वाले दो चलों के मूल्यों का अन्वर भी बिन्दरेख द्वारा दिखाया जा सकता हे। 

अगर इकाई एक ही न हों ता भी विभिन्न चलों के मूल्यों को एक ही कागज 
में बिन्दु रेखों द्वारा दिखाया जा सकता है। इसकी रीति भी वैसी ही है जैसे समान 
इकाई वाले चलों के मूल्यों को प्रांकित करने की है। अन्तर केवल इतना होगा कि 
र-अक्ष में अन्य चलों की इकाइयाँ भी देनी पड़ेंगी | इस प्रकार के चित्र में प्रत्येक चल 
के समय के साथ होने वाले परिवतं नों को तो जाना जा सकता है, पर इनकी परस्पर- 
तुलना नहीं की जा सकती । 

अगर चलों के मूल्यों के आनुपातिक परिब्रतन दिखाने हों तो निरपेक्ष कालिक 
चित्रों के बदले देशनां-कालिक चित्रों का उपयोग किया जाता है। अगर दो या अधिक 
चल हों ओर उनके आनुपातिक परिवतनों की तुलना करनी है तो देशनांकों के 
आधार-वष (/2982-76०7) एक ही होने चाहिये अन्यथा तुलना संभव नहीं होगी | 


विचलन का विस्तार दिखाने की रीति 

कुछ सामग्रियों में चल का अधिकतम ओर न्यूनतम मूल्य भी दिखाना पड़ता है 
जैसे हिस्सों के मूल्य या सोने का मूल्य । इन्हें दिखाने के लिए कटिबन्ध-बिन्दु रेखों 
(5270 (:90705) का उपयोग किया जाता है जो विचरण का विस्तार (£४726 
०६ ४०४४&८07) भी दिखाते हैं। सारणी सै० ४ में इस प्रकार की सामग्री दी गई 
है जिसका प्रांकण चित्र संख्या ४ में किया गया है | 
सारणी संख्या ४ 

बम्बई में सोने का मूल्य ( प्रति तोला )--१६२६-२७ से १६३८-३६ 




















वषे अधिकतम न्यूनतम 
रू० ऋ्र[० रू० ऋआा० 
१६२६-२७ २१ १२ पर जज 
-रव २१ ११ २१ 5. 
>रे० श्र ० २१ े 
ज्रेश . २१ श्र २६ ् 
-३२ .. रेश र्‌ २१ है 











२८० सांख्यिकी के सिद्धान्त 














वर .... अधिकतम न्यूनतम 
रे हे , १२  र्‌ हा १०७ 
+- ३४ ३४ श्र | श्र ११ 
“२३५ २६ १३ ३३ रे 
“२५६ ३२६ श्द्‌ ३१ ४ 
२३७ ... ४ प्द ३३ १५ 
रद . ३४ रे .. रेड ४ 
“रै६ ३७ ११ ३४. १२ 











रुपये ़थ़ 
अत्तोला बम्बई में सीने का अधिकतम और न्यूनदा मूल्य 
, हि ह 
|“ ह 





रे 


१० 














[ ३ ३ ३३ &, किए 


है | 





७. २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ 
क्षप 
. चित्र संख्या ४ द 
केवल कटिबन्ध दिखाने के स्थान पर वक्र भी दिखाए जा सकते हैं, अगर 
विचलन का विस्तार दिखाना हो तो दो वक्र मिलेंगे | पहला चल के अधिकतम मूल्य 
दिखाने वाले बिन्दुओं को मिला कर बनेगा और दूसरा चल के एक वर्ष के न्यूनतम 
मूल्यों को दिलाने वाक्ते बिन्दुओं को मिला कर | इन दो बिन्दु रेखों के बीच का 


सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण २८१ 


ध्यान विचलन का विस्तार बताएगा। सारणी संख्या.५ में एक चल के कल्पित 
ग्रधिकतम ओर न्यूनतम मूल्य दिए! गए, हैं| इसका प्रांकश चित्र संख्या ५ में किय' 
गया है। ' 
सारणी संख्या £ _ का रु है 

चल य के विभिन्न तारीखों में लिए गए. अधिकतम और न्यूनतम मूल्य 




















तारीख अधिकतम मूल्य न्यूनतम मूल्य 
4 हक ० 
र्‌ हक ११ 
रे ६ प्‌ 
है. ३ ० 
प्‌ ५२ ष्ट 
६. भर ह १ 
७ भरे ३१ 
प्र हक ४३ 
& ४६ पड 
१० प्र पड 
११ ७ प्‌ 
५२ | ५६ द प्‌ 
१३ द १ हक 
0:५ पट पड 
५१ दर ६० 
१८ दर ६२ 
१७ ६१ प्‌ 
श्द ६० प्‌ 
श्ह द ६४ पद 
२9 द्द्‌ ६्रे 
र्शः ' ६२ ... ६० 
र्‌२्‌ १६ पंप 
र्‌३ ६० द प६ 
२४ ६४ ह ६३ 
२५. | ६६ है 
२६ ६७ ६२ 
२७ ६१३ .. ६० 
रस्ण । पूप्य ५७ 
र२€ रैंप... । जद 
३० : पप पूर 











२८२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


'य' के अधिकतम और न्यूनतम मूल्य 







































































































































































































































































































































































































































































छ० 47: ह। जाओ बाबर काता हा न] था नाथ छा 
चैन -. > “पा | -- ““[7|/ - 
हा [77५7 । [7 हे [“ । आक हि 
[7 - आधा बह 8 [ 
६५+- 75 || छ् शा बा | ्क कं. 
न 44202 22 72 22222 22 27 2249 
7]7|77 [ 4 
/+4- ० है ;/ श् 
६ 77[][7([[[7[[7[7/] ः पा] 
| 7 जाओ फ्र्रा 7 [- [| 
अ अआ कर हे 
है दा | ४ , ४ | 
ष्‌ 777 दर 
पं] | [| .] 
दब [४] 
हि |] 23 
५०(- .. 
बल । 
द ।। द | गम 
(क्‍ छ् ८ 7777 
४५* [4.0[[[[[[4[//[[[[[[[ 
न “त]]य]त]/ या [7777 बाराभावआकाधिभहाल आरा लि शा 
4.+ ई “+777]7 /]777++|/7[][77+7[]777[777([77 [7 
०7]4.| //757777[77[[[7[7 7 
| ३ ७५ ७ ९ १९ १३ १५ हई७ १९ २६१ रेके ९५ २७ २९६ 
0९%, 


च्चित्र सं ख्या ४ 

अन्तर दिखाने की रीति (४०६४०१ ०06 9809778 ॥077#6767०68)-- 
जब दो ओणियों का अन्तर दिखाना हो तो उनके बीच के स्थान को रंग कर 
या विभिन्न प्रकार की रेखाएँ खींचकर दिखाया जा सकता है। इस प्रकार का चित्रण 
अधिक प्रभावशाली और हृदयग्राही होता है। अगर अन्तर ऋगणात्मक हो ( श्र्थात्‌ 
घाय हो ) तो एक :रकार के रंग का उपयोग किया जाता है, अगर धनात्मक हो 
( अर्थात्‌ अतिरेक हो ) तो दूसरे प्रकार के रंग का। इस प्रकार का चित्रण चित्र 
संख्या ६ में किया गया है जो सारणी संख्या ६ को प्रांकित करके प्राप्त हुआ हे । 
सारणी संख्या ६ द 

भारत का विदेशी व्यापार जनवरी १६५३ से अगस्त १६४४ तक 








महीना » आयात निर्यात 
( करोड़ रुपये में ) ( करोड़ रुपये में) 
१६५४३ जनवरी ४३*प छ४ प्‌ 
फरवरी ४०९४ ३६९२ 
माच ४७*१ चुट्ब्ट 
अप्रैल पद. ३८६ 
मई औ१"४ ४९१०. 
जून माप ४0०० 
| जुलाई "०९७ ४१९० 
अरस्त ४६", द ४६९७४ 
सितम्बर . ४४४५ इंप१० 








सामग्री का विन्दुरेखोय निरूपण 





























































































































२८३ 
ह आयात | निर्यात 
महाना री . 
_. | (करोड़ रुपये में) | ( करोड़ रुपये में ) _ 
। ५ 
१६५३ अ्रवदूबर २६*० ४८२७ 
नवम्बर २६*४ प्शाप्‌ 
दिसम्बर |. रै६/६ ४४६ 
१६५४४ जनवरी । ४०*१ ७०९८ 
फरवरी । ४६*६ ४६*६ 
माच । ४७*ट: ३१९० 
अप्रत्त । पर ७छ रथ ७ 
मई |. ४४७ ४३.२ 
' जून ४२९७ क्‍ '४६*७ 
जुलाई पाप ६४५२ 
| 
६० भाख का गअ्रायाव निर्याद [7 है 
चल आयात “८ 
पु निर्यात ------ “7 
/# , न्‌ 
५० (४ टॉक 7] 3 है 2 १2 
| 2 0 50 शक 2 4 श्र 4 
५ | 7277 किक ही | | / 42 | 
१ स्‍ ः | और रु है का रह 
० (/८८/८ 22/ /# /“ 
। हि ४ 
३५ ४; 
हर / 
३ ०. बॉ 
ह ज फ मा भ्रम जू जुशभ्रसि श्रन दि जफमाभअभममसम जूजुअसघ्ति 
१९५३ । १९५४ 
ह चित्र संख्या ६ 


अगर समय के साथ बदलने वाला चल अन्य चलों के योग के बराबर हो तो 
कटिबन्ध बिन्दुरेखों का उपयोग क्रिया जाता है। राशि के संधटकों को एक के ऊपर 
रख कर प्रांकित किया जाता है। इस प्रकार जितने संघय्क होंगे उतने कसिबन्ध बन 
जाएँगे । इन कटिबन्धों को एक दूसरे से अलग करने के लिए विभिन्न प्रकार के रज्जों 


२८४ 


सांख्यकी के द्वान्‍्त . 


या चिन्हों का उपयोग किया जाता है। सारणी संख्या ७ में भारत न्यूज-प्रिंट का 
विभिन्न देशों से आयात दिया गया है। 
सारणी संख्या ७ 


भारत में न्यूज-प्रिंय का आयात १६४७-४८ भे 


१६५२-४३ तक (दस लाख रुपयों में) 





देश ४७-४८ ४प्प-४६ 





७७॥॥७॥७॥७७॥७७॥७७ए्ए७७--७#/एेोस्‍एेएऐएे"ल्‍७७॥॥0७॥/८0श/ए"//"/शए"॥/ए/"शश/श#आा्््क्‍रक्ाणाणशणणशणणआआल्‍र८्७एएएशा था आशा भा. 


४६-३० । ००३ । 3१-२२ | २-५३ 


























कनाहा | ६-६ व्य्न्र ७९१ ६,२ ११९६ | १०६ 
फिनलैण्ड धूप प््ह्‌ २४ | ८० | श१रऋाह | १०९६ 
स्वेडन ४ द् ७३ ४४ | २*६ १"६ ४" 
नॉबे ६१५ | १४६ टू १९६ (१२९१ १०९७ 
अन्य ४ | ७त | ४७ | २४० रब १२*६ हि 
कुल ३१९२ डं४डयीशर (२७७१ (४३९७ ४७"७० ४६*३ 




















. इसी सामग्री को दंडों के रूप में भी दिखाया जा सकता है। ये दण्ड एक दूसरे 
से मिले हुए होंगे । पर इसमें तुलना करना कठिन होता है, इसलिए. इनका उपयोग 
प्रायः नहीं किया जाता है। 


५५. 





























६०० प्रारत में स्यूजप्रिट को आयात 




















04 | [20 । 7 दण्ड 













































































































































































































































































४९-५० 






































छु 9९ प्‌ रे * 


चित्रसंख्या ७ 

















सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण र्८ट५ 


ग्रगर प्रतिशत के रूप में सामग्री दी गई हो तो भी कटिबस्च चित्रों का उप- 
योग किया जा सकता है। इस प्रकार के चित्रों में प्रत्येक बार योग १०० रहेगा । इस 
लिए. र- श्रक्ष में नापी गई योग की दूरी सदा बराबर रहेगी | पर संघटकों के मूल्यों 
में घट-बढ़ होने के कारण विभिन्न संघटकों को दिखाने वाले वक्र अलग-अलग होंगे। 
चित्र संख्या ८ में, सारणी संख्या ८ की सामग्री, जो प्रतिशत रूप में दी गई है? 
प्रांकित की गई है | 
सारणी संख्या ८ 

भारत में हिन्दी चल-चित्रों की उत्पादन संख्या १६४०-४० 


































































वर्ष हिन्दी चल चित्र | कुल चल चित्र (१) २ के के 

बने (१) (२) प्रतिशत रूप में 
१६४० प्र १७४१ ३०३ 
१:84 एप १५७० ४६ प्‌ 
४२ ६७ १६३ ४६५ 
४३ श्व्ष्र १४६ ६८० 
४४ प्य्द्‌ १२६ द्८ार 
४५ ७३ €्‌€ ७३७. 
४६ श्प््प्‌ २०० ७७९ 
४७ श्८८ श्८३ , ६०*७ 
है. (० श्ष्प्र र्‌६फ माह 
है . १५७ श्& ५४" 
१६५० श्श्फू २४१ ४६६ 
भारत में हिन्दों चलचित्रों का उत्पादन 
१०० - दर 
८ ० 
घन ए शा ् फू 
जज 5 22 222४ हा 
४ 220 27, रे 
२० ४ हि 2 ! 
8 ५०८५८: 
2 जि 27० (2 कप ४00 4५22 
डै० ४३ - डरे ड) ४४ प्‌ 





चित्र संख्या ८ 


श्टर सांख्यिकी के सिद्धान्त 


वारवारता-चित्र 
(7760०९॥८ए-720927/9[709) 


जिन कारणों से अन्य प्रकार की सामग्री को चित्रों द्वारा निरूपित किया जाता 
है उन्हीं कारणों से वारंवारता बंगनों ([7८0प0०४८ए 9/8005प0078) को भी 
चित्रों के रूप में दिखाया जाता है। ऐसे चित्रों को वारंवारता चित्र (८०००८ 
079272779) कहा जाता है। इनको ओ्रेकित करने की रीति वैसी ही हे जैसी पिछले 
अनुच्छेद में बताई जा चुकी है। वारंवारता चित्र किप्त प्रकार का बनेगा यह इस बात 
पर निभर करता हे कि श्रेणी खंडित (082700८) है या संतत (००7/४7प00७७)। 
खंडित श्र णी का अथ ऐसी श्र णी है जिसमें चल के मूल्य किसी अन्तर (400677%/) 
में सब मूल्य नहीं लेता | इसके विपरीत संतत श्रेणी ऐसी श्रेणी है जिसमें चल के 
मूल्य दिए हुए अन्तर के सब्र मूल्य लेता है। जैंसे मकानों में कमरों की संख्या एक 
खंडित श्रेणी बनाएगी क्‍योंकि कमरे केवल पूर्ण संख्या हो सकते हैं। पर व्यक्तिय 
की लम्बाई संतत श्रे णी होगी क्योंकि व्यक्तियों की लम्बा भी मूल्य ले सकती 
है। व्यवहार में खंडित श्रे णियों का उपयोग अधिक होता है क्योंकि व्यवहार में नापी 
जाने वाली वस्तुएँ बहुधा किसी निश्चित इकाई के रूप में दी जाती हैं, इन इकाइयों 
के भिन्नों (79८४028) के रूप में नहीं | खंडित श्र णी दंड-चित्र या असंतत वक्र 


द्वारा दिखायी जाती है और संतत श्रेणी सरलिस वक्र (४700:760 ८८४४०) 
द्वारा दिखाई जाती है । 


वारवारता-चित्र बनाने में य-अक्ष पर चल का मूल्थ नापा जाता है, और 


र-अ्रक्ष में प्रत्येक मूल्य की संगत वारंवारता । इस प्रकार॒बनने वाले चित्र 
निम्नलिखित हैं--.. 


(१) दंड-चित्र (927-082/2778) $ इनका उपयोग खंडित श्रणी 
निरूपिंत करने में किया जाता है। 


(२) अखंतत-वक्र (ठ98८०रप्षाधप्ठ0प8३  ८प/ए८३) : इनमें विभिन्न 
बिन्दुओं को मिला दिया जाता है | इनका उपयोग भी खंंडित श्रे णी निरूपित करने 
के लिए किया जाता है। 

(3) संतत बक्र (८00007प0प8 ८प्र/ए2$१ $ इनमें विभिन्न विन्दुश्रों को 


मिलाने वाला बिन्दु रेख सरलित वक्र होता है। इसका उपयोग सतत श्रे णी निरूपित 
करने भें किया जाता है। 


सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण .. २८७ 


आगामी अनुच्छेदों में इन पर अलग-अलग बिचार किया गया है । 

दणड-चित्र बनाने के सिद्धांत वे ही हैँ जो पिछले परिच्छेद में दिये जा चुके हैं। 
बल के प्रत्येक मूल्य के ऊपर उसकी संगत वारंवारता दिखाई जाती है। इस प्रकारों 
विभिन्न मूल्यों के लिए विभिन्न दंड बनाए जाते हैं जिनकी लम्बाई संगत बारंवारताश्र 
को बताती है। सारणी संख्या ६ में एक मकान में कमरों की संख्या का विवरण 
दिया गया है। इसको चित्र सेख्या ६ में दंड-चित्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है । 
सारणी संख्या £ 


























प्प्रतज्ञ | मक्तनों की। कमरे की | मकानों को | कमरों को | मकानों की. । कमरों की | मकानों की | कमरों को । मकानों क 
» संख्या संख्या संख्या संख्या संख्या संख्या 
जज  बछ9 १७०  ं १४६ ९9 ४२ 

२ श्व्य्३्‌ प्र । १०५ ट्र ३० 
३ १६१ ६ छ ६ | _२४५ 


भकानों में कमरों को संख्या 











कमरों की संख्या 
सिल्वर मर्द्या £ 


२८८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


दण्ड अनुभूमिक भी बनाए जा संकते हैं। पर अनुभूमिक दंडों की अपेक्षा 
शीष-दंडों का उपयोग करना चाहिए | 

इसी सामग्री को असंतत बक्र द्वारा मी दिखाया जा सकता है। य-ओर 
र-अक्ष चुन कर बिन्दु-रेख कागज में बिन्दु अकित कर लिए जाते हें। इन 
बिन्दुओं को मिलाने वाला बक्र वारंबारता-बहुमुज (#०दपथाटए 920ए४2०ण) 
कहलाता है। चित्र संख्या १० में दिया गया चित्र इस प्रकार के वारंवारता बहुभुज को 
दिखाता है | यह चित्र सारणी संख्या १० में दी गई सामग्री को अकित करके प्राप्त 
हुआ है। वारंबारता बहुभुज (४८0 ००7८ए 90ए8०४) का उपयोग दक्ष व्यक्तियों 
को समझाने के लिए ही किया जा सकता है। 
सारणी संख्या १० 











चल के मूल्य “इलज्ञषकेमूलत्व | बास्वारता | चल के मूल्य |. वासवारता 
० दे य्र क्‍ ४२ 
१ . ११ € श्र 
२्‌ १२ .. ९० .. ३१ 
३ ४१ ,.. ११ २२ 
ड ६५४ १२ !्जू 
प्ू ० श्दे €्‌ 
& ६७ १४ का है. 
७ २ १५. २ 





























वारंवारता 
ह 
चः 
_ 
ःः 








१० हु हु किसे च्ु | 
ग्रु कि! ह 


१३३६४ ५७ ६ उ ८ ९ १०११ १२१५३ १४ १५ 
प्व्छ के मूल्य 


चित्र संख्या।१० 

















है 















































सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण रच 


:!: ” संतत वंक्रों का उपयोग ऐसे वारंबारता बंथनों को निरूपित करने के लिए 
क्रिया जाता है जिनमें चल एक अन्तर में कोई भी मूल्य ले सकता है, ऐसे -बंटने 
वर्गीकृत -होते हैं। इसलिए इस, बात का. साधारणतः , प्रयत्न करना चाहिए कि: 
वर्गान्तर बराबर हो अन्यथा चित्र वंटन का गलत बोध (66%) दे सकता है। जैसा; 
पहले बताया जा झुका है सामग्री के वर्गीकरण में १० से २५ तक वर्ग होने चाहिए. । 
पर यह कोई स्थिर नियम नहीं है। हाँ, इसका अवश्य ध्यान रखना चाहिए, कि वंयन 
जहाँ तक हो सके सरलित रहे। किसी भी वर्गान्‍्तर को इसलिए, नहीं छोड़ना चाहिए, 
कि उसके अन्तगंत चल के कोई मूल्य नहीं आते। ३ ३ 

अगर सामग्री वर्गीकृत हो तो इसको निरूपित करने वाले वारंवारता-दंड- 

चित्र या वारंवारता-बहुभुज को सरलित करना पड़ता है ताकि बक्र संतत हो जाय. ।. 
वक्र-सरलन की रीति निम्नलिखित है। पर... रर४<&्रपथ़ 
मान लीजिए सारणी संख्या ११ में दी गई सामग्री को सरलित बक्र के रूप में 

अकित करना है। लग 
सारणी संख्या ११ 
व्यक्तियों की आयु का बंठन 














आयु (वर्षों में) . व्यक्तियों की संख्या 
. 
व्य-९ै ० श्श्‌ 
९०-१२ १५ 
१२-१४ १६ 
१४-१६ र्‌६्‌ 
१६-१८ रे 
१८-२० प््प्‌ 
२०-२२ ६१ 
२२-२४ ६४ 
२४-२६ ६० 
२६-रश्ट ५३२ 
र८-३० है 
३०-३२ ३१ 
३२-३४ श्ट 
२४-३६ १० 
२६-रेप८ ७ 
३८-०८ ० प्र 








२६० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


चित्र सं० ११ (क), ११ (ख) और ११ (ग) में क्रमशः इस सामग्री के वारं- 
वारता चित्र, वारंवारता-बहुभुन और सरलित वारंवारता वक्र दिखलाए गए हैं। चित्र 
से० ११ (क) और ११ (ख) के कुल क्षेत्रफल बराबर हैं । पर प्रत्येक वर्गान्‍्तर के लिए 



























































दिया गया क्षेत्रफल दानों में बराबर अ्यक्तिया व्यक्तियों की आय 
नहीं है। वारंवारता बहुभुज से यह. 
ठीक-ठीक नहीं जाना जा सकता ०० । 
९ द द 
कि प्रत्येक वर्गान्‍्तर के अन्तगत घना 
चल के कितने मूल्य आते हैं। ४“ 
वारंवारता-बहुसुज को सरलित करके ३०] - । 
चित्र सं० श१श्ग खींची गई है। . २० 
पर साधारणतः इसको इस प्रकार १० । । विविध ग 
नहीं खींचा जाता। प्रांकित बिन्हुओं डल्फ्ज्उल्ट्ह् उड़ फछड़ 77 
से सीधे इसको खींचा जा सकता "बट थक 22502 2% 
है। चित्र संख्या ११ क 
ब्यक्तियों दे संष्या 

७०.77: /__ च्यक्तियों की संख्या : 

। 3 

___ /ै ४ 

५० जी जाओ ५५ _____/€/(_ ४ है 









































की [ हु, जाए तय एो एल वि 

६ १३ ९७ २१५ २५ २९ रे३े ३७ ५६ 9 | १ आए ७५ ऋआा। 
॥ ७ ११ १५ १६ २३ २७ ३१ ३५ ३६ / 

अगयु आयु ह ' 


चित्र संख्या ११ ख चित्र संख्या १श्ग 


सामग्री का विन्दुरेखोथ निरूपण २६१ 


कि 


ु विभिन्न प्रकार के सेद्धान्तिक बारंवारता बक्र ( [60/60८8] (+6- 
१7०7०ए (पाए6७) : 

(१) प्रसामान्य वारवारता वक्र (70779 ई7०(प९०४८ए ८ए्ाए2७); 
इस वक्र का घटाकार वक्र (02॥-879[6०0 ८ए४ए०) भा कहते हैं। यह 
बक्र अधिकतम वारंवारता वाले चल क मूल्य से खांचे गए कोटि (०70॥7206) पर 
पंमित ( 5ए्गाग्टांतंटक ) होता है । चित्र सं० १९ एक ऐसे वक्र को 
दिखाती है । 








चित्र संख्या १२ 

(२) विषम वारंबारता वक्र (४६० ६£6१पए०८ए ८7/ए०) : ये वक्र 
चल के किसी भी मूल्य से खींचे गए कोटि पर संभित नहीं होते | अधिकतम वारं- 
वारता वाले कोटि के एक ओर वारंवारता दूसरी ओर की वारंवांरता की अपेक्षा अधिक 
शीघ्रता से कम होती है। ये वक्र व्यवहार में बहुघा पाये जाते हैं। अगर अधिकतम 
वारबारता वाले कोटि के दहिनी ओर वारंवारतायें कम शीघ्रता से कम होती हैं तो वक्र 
को अनुलोम रूप से विषम ([0स्‍09096|ए 86४) कहा जाता है। इसके विपरीत 
होने पर विलोम रूप से विषम (762907ए०ए ४६०७) | चित्र सं० १३ अनुलोमतः 
विषम ओर चित्र सं० १४ विज्ञोमत+ विषम वारंवारता वक्र दिखाती है । 











चित्र संख्या १३ चित्र संख्या १४ 
(३) विषम बाहु वारंवारता वक्र (]५४7289०व१ 07% ०5४९४7८०ए 
28ए ॥0#767८%2] ६#८९(ए८८००८ए ८प्रऑए८४) : --इन वक्रों में अधिकतम वारं- 
वारता वाला मूल्य एक कोने में होता है ओर उसकी दाहिनी श्रोर ( या बाइ ओर) 
के प्रत्येक चल की वारंवारता कम होती चली जाती है। चित्र संख्या १५ ऐसे वारं- 
वारता वक को दिखाती है । 


श्ध्रः सांख्यिकी के सिद्धान्त 




















चित्र संख्या १५ चित्र संख्या १६ 
(४) अधबाहु वारंवारता वक्र (0.,59॥7०7 £#००१०००८ए ८८४४०) 
ऐसे बक्नों में अधिकतम वारंबारता कोनों में दिए. गए. चल के मूल्यों की होती हे 
और जेसे-जैसे चलों के मूल्य बीच की ओर बढ़ते हैं, वारंवारता कम होती चली जाती 
है। चित्र सं० १६ में ऐसा वक्र दिया गया है। 














चित्र संख्या १७ 
. इनके अलावा ऐसे वक्र भी हो सकते हैं जो इन वक्रों को मिलाकर बने हों । 
अर्थात्‌ जिनके विभिन्न भाग अलग-अलग प्रकार के वक्र हों । ( चि० सें० १७ ) 


संचयी वारंवारता वक्र 


((परपरी४ए९ #760१००८ए (५४6) 


अब तक जिन ववारंवारता वक्रों पर विचार किया गया वे प्रत्येक वर्गान्तर की वारं- 
वारता बताते थे । सामग्री को निरूपित करने की एक प्रचलित रीति संचयी वारं- 
वारता वक्र खींचने की है | संचयी वारंवारता की गणना करने की रीति यह है कि 
प्रत्येकक्रमानुगत वग की वारंवारता में उससे पहले के या बाद के वर्गा' की वारंवारताएँ 
जोड़ दी जाती हैं | यह योग उस वर्ग की संचयी वारंवारता बताता है। अगर वगग से.. 


सामग्रो का विन्दुरेखीय निरूपण २६३ 


पहले की वारंवारता जोड़ी जाती है तो वर्ग की संचयी वारंवरता यह बताती है कि उस 
वर्ग और उससे कम मूल वाले वर्गों में कितने पद ((६०705) हैं| इसके विपरीत 
. ग्रगर वगग के बाद के वर्गों की वारंवारताएँ जोड़ी जाती हैं तो इस वर्ग की संचयी 
बारंबारता यह बताती है कि उस वर्ग में ओर उससे अधिक मूल्य वाले वर्गों में चल 
के पदों की संख्या कितनी है । 

वारंवारता-वक्र और संचयी वारंवारता वक्र खींचने की रीतियाँ एक सी 
हैं। अन्तर केवल इतना है कि पहली दशा में प्रत्येक वर्ग की वारंबारता वग के 
मध्य-मूल्य की वारंवारता बराबर मान कर अंकित की जाती है और दूसरी दशा में 
संचयी वारंबारता वर्ग की अपर या अधर सीमा पर ओकित की जाती है। इस 
प्रकार प्राप्त बिन्दुओं को मिलाकर संचयी-वारंवारता वक्र प्राप्त होता है। सारणी 
संख्या १२ में प्रत्येक वग की वारंबारता और संचयी वारंवारता दी गई है। इसे 
चित्र संख्या १८ में प्रदर्शित किया गया है| इस सामग्रो के चतुर्थक तथा मध्यका 
भी निकाले गये हैं। 


सारणी संख्या १२ 
विद्यालय में पढ़ने वाले विद्याथियों की आयु का वंय्न 




















द आयु वारंवारता संचयी वारंबारता . 
१-६ ४0 हु0 
६-७ ५६ हक 
छ-प ६० +. १४६ 
८-६ ६६ २२२ 

६-१० प्प्ड ... ३०६ 
१०-९ ह ६६ ४०२ 
१५१५-१२ ६२. ४६४ 
१२-१३ प्प्० ५७४ 
१३-१४ ६४ | दरेण८ 
१४-१५ ४४ | क्‍ द्८र 
१४-१६ २० ७०२ 
१६-१७ दर । .. ७९० 








१६४  सॉख्यिकी के सिद्धान्त 


करंबारता 











का ] 
2 














मय 
पु अब माक कम ख््् “जा प्र जल हक 
प प ; 
है टी 























ज- + »+ +#  »४+ आ +»> | ५ +»+ + + + 
॥. आया 












































- ] बतुल्‍प मार चतु०, य 
|  (:| (६६ 
न्ट 5२९ -६० ११ न“ २ 5-६३ १४ -१५ १६ १७ 
आयु है 
चित्र संख्या १८ 


ऊपर दिए गये चित्र संख्या १८ में चतुथंक तथा मध्यका का मूल्य भी मालूम 
किया गया है। विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कुल संख्या ७१० है। इसलिए 
मध्यका ३०४ वें विद्यार्थी की आयु तथा पहला चतुर्थंक १७७"५ वें विद्यार्थी की आयु 
आर तीसरा चतुर्थेक ५३२ ५ वें विद्यार्थी की आयु होगी ( विन्दु-रेख से मध्यका 


निकलने के लिए “+ ४. (27) के सब (2) 
लए. र र ) स्थान पर स्् ( 5 ) दद का मूल्य 


ध् 


निकालना चाहिए, | इसी प्रकार चतु, है वे ओर चतु३ र 
होंगे ) | 


मध्यका निकालने के लिए शीष रेखा पर ३५७४ वें मूल्य से एक रेखा अनु- 

भूमिक रेखा के समानान्तर खींची जायगी और यह जिस स्थान पर संचयी वारंबारता 

वक्र का छुणगी उस स्थान से एक दूसरी रेखा शीर्ष रेखा के समानान्तर खींची जायगी। 

यह रेखा जिस स्थान पर अनुभूमिक रेखा को छुएगी उसी स्थान का मूल्य मध्यका का 

मूल्य होगा। प्रस्तुत चित्र में मध्यका का मूल्य इस रीति से लगभग १०५ वर्ष आता 
है | इसी प्रकार चतुर्थकों के मूल्य भी ज्ञात किए. जा सकते हैं | द 

जिस प्रकार वारंवारता वक्र बनाने के लिए, सरलन करना पड़ता है वैसे ही 


वें पद के मूल्य 


0<! 


सामग्री का बिन्दुरेखीय निरूपणं २६५ 


संचयी वारवारता वक्र बनाने के लिए भी सरल्नन करना पड़ता है। सारणी सं० १३ 
के लिए. खींचा गया संचयी वारंबारता वक्र सरलन करके बनाया गया है । 
स(रणी संख्या १३ 




























































































| ॒ 
व्यक्तियों को लम्बाई वारंवारता | चयी वारवारता 
५७-४८ ( इच ) रे ३ 
प८-४६ & १२ 
५६-६० २६ सदर 
६०-६१ ३१ ६६ 
६ १-६२ | है. 8: थे । श्ढ्ड 
६२-६ रे ५ है । श्ध्प 
२-५४ ध्प्य २४५६ 
६४-६४ | ३ ग्३१ 
६५-६६ । ६६ ४२७ 
६६-६७ । ७२ ४६६ 
६ ४-६ ८८ ६0०0 प्रणष्ह 
द्८ट-६६ ४३ ६०२ 
६६-७० :< २० ६२२ 
... ैै३औ ३ आ आआम्भथभ#भी& घ$घ ७०७०-७१ ६ द्श्व् 
संचयी सच ह 
बारंवारता - व्यक्तियों की लम्बाई का संचयीवारवारता बक़ (सरछन के परचात्‌) 
| | हि | |] 
५० [7 
६ 9 हि श्र - 
मु 
ए्‌ ७० 
० द् | 
ह कि 2“ 
२०० का 
१००७ 7. धर 
मिड | | | |." 
(धू५८ू ५३५ ६० ६९ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६९ ६७ ६८ ६५९५ ४७० 
लम्बा इयाँ 


चित्र संख्या १६ 





रध्द .. सांख्यिकी के सिद्धान्त 


अनुपात स्केल में विन्दुरेख 
 (5448078 00 ऐिव00 82८86) 

साधारण या समान्तर स्केल के अनुसार खींचे गए. बिन्दुरेख चल के मूल्यों 
के निरपेज्ष परिवतनों को निरूपित करते हैं। इनसे यह जाना जा सकता है कि चल 
के आकार (328) में क्या परिवतन हुए हैं। कई स्थानों मे केवल इतना जान लेने 
से ही काम चल जाता है, पर अगर इस परिवतन.की दर ( अघ, 7206 ) जाननी 
हो तो इस स्केल में खींचे गए, बिन्दुरेख बेकार हो जाते हैं। ऐसे सापेत्ष परिवतनों 
का महत्व दिन-प्रति-दिन बढ़ता चला जा रहा है। इन परिवतनों को बिन्दुरेख के रुप 
में दिखाने के लिए. अनुपात-स्केल का उपयोग किया जाता है। अनुपात स्केल ओर 
साधारण स्केल में यह श्रन्तर है कि दूसरे में दी गई बराबर दूरियाँ चल के बराबर 
आकारों को दिखाती हैं, पर अनुपात स्केल में बराबर दूरियाँ बराबर. आनुपाती परि- 
बतनों (8000:000748/6 ८४५70269)को बताती हैं.। सामान्तर स्केल या साधारण 
स्केल समान्तर श्रेणी के अनुसार होता है ओर अनुपात-स्केल गुणोत्तर श्रणी के 
अनुसार । सापेक्ष और निरपेक्ष परिवतनों का अ्र्थ निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट हो 
जाएगा । 


ु किसी व्यक्ति की मासिक आय निम्नलिखित है : 
' सारणी संख्या १४ ्््ि 




















एज कफक्ाबय 7 मझलसिकवृद्धे 777 

मास र० 9. प्रतिशत वृद्धि 

र्‌ १७० ००० ०० 

र्‌ २०० ">> किक 

र्‌ ३००. ...].. ९१९० ३००५ 

हा . ४०० .. १०० - पूछ 

हब पू०० १०० ३३३ 

६ ६००  ... | १५० । २५ 

छ,. 9७०० १५०० २० 

वर .. छू०० हु १0० १६३ 








अगर आय साधारण स्केल में दिखाई जाय तो बराबर दूरियों में ब्रृद्धि दिखाई 
जाएगी | अगर वृद्धि १०,००० से १०,१०० हो तब भी परिवतन बराबर माना 


जाएगा, भले ही यह केवल १४ है। अनुपात स्केल के द्वारा यह परिबतन जाना जा 
सकता है। 


सामग्री का विन्दुरेहीय निरू पण ५६७ 


छेदा-स्केल ओर छेदा-पक् 


(7.08427779॥74९ 8९86 76 [,088/707770 ((ए४ए८७) 


छेंदा स्केल में सामग्री का निरूपण दो प्रकार से किया जा सकता है ;-- 

(१) दी हुईं राशियों के छेदा या लवब॒गणक्ोंकों साधारण स्केल के अनु 
सार आअकित करके | 

(२ ) दी हुई राशियों को छेदा स्केल के अनुसार अंकित करके | 

दूसरी वाली रीति में चूँकि केवल शीष स्केल ही छेदा-स्केल के अनुसार होत- 
है, इसलिए, इस प्रकार खींचे गये बिन्दु-रेख को अध-छेदा विन्दु-रेख (3९।7-[029- 
7707770 87207) भी कहते हैं । द 

सारणी संख्या १५ में १०० रु० का १० प्रतिशत प्रति-वष चक्रवृद्धि व्याज के 
अनुसार मिश्रधन दिया गया है | इसको चित्र संख्या २० और २१ में क्रमशः साधा- 


रण स्केल और राशियों के लघुगुणकों (छेदा) का साधारणु-स्केल के अनुसार चित्रण 
किया गया है।..... द 


सारणी संख्या १४ 











बष मिश्रधन लघुगणक (छेदा) 
५ १०० २९७०७ 
र्‌ ११० २०४ 
३ श्र्श्..... श्ग्द 
है । १३३ २१२ 
५ | श्डदै.. | २१६ 
६ १६१ २२० 
७ १७७ २२४ 
ट्ट्‌ १६५ र्‌र८ 
& २१४ रबर 
१० २३६ २३६ 











श्ध्८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


राशियों १०० एपयें का १०% ब्याज से 
_ मिश्रथन[साधारण स्केल] 






































२५५० - 




























































































| 2 _ छ् 

१५ बहु ह 
१२०० )”' [ 
(]' 

है 











































































































| आ। 
१३२ ३४०५७ ६$ ४ ८ ६ १९ 
वेषे 
चित्र संख्या २० 


रशियों | १०० रुपये का १०४ ब्याज से मिश्रधन (छेदा स्केल) 


गह 

ब बिष्र्ट्र॥ 
च हा पता 
रन " 


























+ कि 
२३ 





















































२९० 



























































0? ऐ ३४ ५७६ ४ < ९ १९० 
वर्ष 
चित्र संख्या २१ 


सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण २६६ 


ऊपर दिए, गये चित्र संख्या २० और २१ में यदि हम एक और सामग्री का 
प्रांकण करते जिसमें १० रु० का १० प्रतिशत व्याज्ञ के अनुसार मिश्रधन दिलाया 
गया होता तो चित्र संख्या २१ में ( जहाँ कि अनुपातिक स्केल का प्रयोग किया गया 
है ) यद्द रेखा पहली रेखा के समानान्तर होती, क्योंकि दोनों राशियों के बढ़ने का 
अनुपात एक ही हैं, पर चित्र संख्या २० में ऐसा नहीं होगा और दोनों रेखाश्रों को 
देखने से यह प्रतीत होगा कि १०० रुपये का १० प्रतिशत के अनुसार मिश्रधन १० 
रुपये के मिश्रधन की अपेज्नाकृत अधिक तीत्रता के साथ बढ़ रहा है क्योंकि साधारण 
स्केल में १०० से ११० होना /० से *१ होने के बराबर नहीं है । 

चित्र संख्या २१ में राशियों के स्थान पर शीष रेखा में उनका छेंदा लिखा 
गया है | इसको समझना सरल नहीं, इसलिए, साधारण बिन्दु-रेख-पत्र (87207 
80०7) का प्रयोग करने के स्थान पर यदि ऐशे पत्र का प्रयोग किया जाय जिसमें 
छेदा-स्केल बना हो तो बिन्दु-रेख समझना अधिक सरल हो जार्गा क्योंकि ऐसे छेदा 
पत्रों ([028/7707770 [276/9) में शी ध्‌-रेखा पर राशियों के छेदा के स्थान पर स्वयं 
राशियाँ लिखी जाती हैं। छेदा-पत्र एक विशेष प्रकार से बनाया हुआ पत्र होता है जिसमें 
खींची हुई रेखाएँ साधारण बिन्दु-रेख पत्र (27000 727०7) से भिन्न होती हैं । 
अनुपात स्केल की विशेषताएं 

(१ ) बराबर शीष॑-दूरियाँ बराबर श्रानुषातिक परिवतनों को निरूपित करती 
हैं। चित्र संख्या २१ में १ और २, १० ओर २०, २५ ओर ५४० के बीच को दूरियाँ 
बराबर हैं क्योंकि वे बराबर आनुपातिक परिवतेनों को दिखाती हैं। 

। २) इसमें शून्य ओर ऋणात्मऊ मूल्य नहीं दिखाए जा सकते | इस स्केल 
में शूत्य नहां होता । 

( ३ ) इसमें आधार रेखा की आवश्यकता नहीं रहती ओर किसी भी बिन्दुरेख 
को ऊपर या नीचे बिना उसका मान (ए«प८) बदले हटाया जा सकता है। यह छेदा 
स्केल क बहुत बड़ा लाभ है । क्योंकि बिन्दुरेखों के मान में बिना कोई परिवतंन किए 
हुए. उन्हें समोप लाया जा सकता दे और इस प्रकार तुलना करवा सहज ही जाता है। 
द (४ ) परिवर्तन के विस्तार के बहुत बड़े होने पर भी छेदा-स्केल में उसे 
सुविधाजनक रूप से दर्शाया जा सकता है । 

( ५ ) यह पूर्ण को उसके अंशों के रूप में नहीं दिखा सकता । 

(६ ) एक ही कागज में दोया अधिक स्केल दिखाए जा सकते हैं। इसी 
प्रकार दो या अधिक इकाइयों वाली सामग्रियाँ भी इसके द्वारा दिखाई जा सकती हैं। 


३०० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


अश्न 

( १ ) बिन्दुरेखों को रचना में किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है ९ 

(२ ) कूट-आधार रेखा क्या है ? इसका उपयोग करने में किन 
बातों का ध्यान रखता पड़ता है ! 

( ३ ) लघुगणुकीय स्केल में वक्र खींचने की आवश्यकता कब पड़ती 
है ? इनको रचना करने के रीति का विस्तारपूबंक वर्शंन कोजिए । 

(४ ) निम्नलिखित की व्याख्या करने के लिए संक्षिप्त टिप्पणिय 
लिखिये : (क) संचयी वारंबारता वक्र, (ख) कालिक चित्र 
(ग ) वारंबारता-चित्र, ( घ ) वारंवारता-बहुभुज 

(४ ) निम्नलिखित सारणी में भारत के लिए मजदूरों के निर्वाह 
व्यय देशनांक दिए गए हैं| इनकी बिन्दुरेख के रूप में प्रस्तुत करिये । 

















१६४४-४४ | (आधार :,१६४७ < १००) 

४६-४७ ९०० 
४७-४८ १०६ 
४-७६ क्‍ १५२० 
४६-४० क्‍ १३४ 
४०-४१ १३७ 
ध्क्लट्र १३६ 
४२-४२ १छ५ 
४३-५४ १४२ 

१४६. 











( ६ ) निम्नलिखित सारणी में भारत का आयात-निर्यात द्यिा 
गया है, इन्हें ओर इनके अन्तर को चित्र द्वारा निरूपित करिये | 























आयात नियात 
_..__[_ (करोड़ रु०में) |_(करोड़ रु० में) 

श्ध्शर अप्रल ८११ 9७६ 
.. सईं ७६७, ४१९ 
जून . द 8३*३ श्र ० 
जुलाई ६ *र्‌ ४७०२ 
अगस्त द ४६*३ ४४५२ 
सितम्बर ४६*१ ४9७७ 
अक्तुबर ४७१ ४३ ४ 
नवम्बर द ४३६ : 9१०९ 
दिसम्बर ४9७'४ 72४५४ 











सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण ३०१ 
आयात नियत 

_ माल. माल (करोड़ रु० में) | (करोड़ रु० में) 
. १६४३ जनवरी ७३९५ ४४४ 

फरवरी 9० ० श्ध्र 

माच ४७ ९ घछ्पप 

अ प्रेत ४६४ शेप ६ 

स्ठे ५६*१ ४१० 

जून ४१४ ४०० 

जुलाई भर ७ ४१० 

ञगस्त ४० ० ४० १ 

सितम्बर भ्द द्‌ ४६४७ 

अक्तूबर ४४५ ४ ४८० 

नवम्बर शेप £€ प्रु८ ७ 

दिसम्बर ३६७ घर १ 





( ७ ) निम्नलिखित सारणी में बम्बई में चांदी के अधिकतम और 


























न्यूनतम मूल्य दिए गए हैं। इन्हें उपयुक्त रूप से चित्रित करिये_ से चित्रित करिये । 
























































सहीना | मुल्य (प्रति १०० तोला) 
उच्चतम निम्नतम 
हि रू आठ रू७ आओ० 
१६९४३ अप्रत्त १६४ १५४ ५४२ १२ 
द मई १६७ १४ १५७ १४ 
जून १६६ ७ श्श्थश ३. 
जुलाई १४७ ४ १४१ १२ 
अगस्त १४६ १० धरे २ 
सितम्बर १६१ १ १४५२ १३ 
अक्तुबर श्श्द २ श्छ्ण १४ 
नवम्बर (४ २११ श्श्र 0० 
दिसम्बर १४४ २ १४० १४ 
१६४४ जनवरी १६१ ८ ९४५१ १२ 
फरवरी १६६ ४ श्श्६ ७ 
र्माच १६६ २ १६२ १२ 
अपग्रल १७३ १४ १६५ १४ 
सड्ठ १७१ १५४ १४६ १३ 
जून १६० ६ १४७ १५ 
जुलाई १४६ १० १४०. के 
अगस्त १४७ ०  शेषण १ 
सितम्बर श्श्णप २ श्श्रे ११ 





२०२ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(८ ) निम्नलिखित सामग्री को बिर टुरेख के रूप में प्रस्तुत करिये। 


ग्यूयाक में चाँदी का मूल्य 


( सेंट प्रति औंस ) 

















'िरीलााशाशाक...... 


वष उच्चतम 

१६४४ ७० ७३४ 
४६ ६०१३ 
9७ ८६ २५ 
हेफ ७5७ ४० 
४६ ७३ २४ 
० ८० ०० 
५१ ६०१६ 
पद छ्ण८ण ०० 
४३ ८५२४ 





निम्नतम 








४४ ४४ 
७० ७५४ 
४६ ७४ 
७० ०० 
9७००० 
७१ ७४ 
प््० ०6० 
. परे७४ 
रे २४ 





। 





(६ ) निम्नलिखित सारणी में भारत में खाद्यान्नों का उत्पादन 
( हजार टनों में ) दिया गया है। इसे बिन्दुरेखीय रूप में प्रस्तुत करिये । ह 














पु 

बस्तु १६४४-४६ १६४६-४७| १६४७-४८ १६४८-४६| १६७६-४० 

चावल १६,८६२। २१,६६६| २१,२४७।| २२,५६७।| २३,१७० 
' गेहूँ ६,१३४| ४७,६७१| ४,४७० | ४,६४० | ६,२६० 
ज्वार अं २६. ४,२९४ ४,६७९ ४,०२२ ५ ,७७5७ 
'बाजरा, रप्श्श २,७१६ २,८१३ २,१७१ २,७६० 
मक्का २,३८३ २,३४६ २,४३१ २,०७२ २,०१८ 
जो २,२२२| २,४४०|। २,६४० | २,२०६। २१,२१४ 

चना ३२,०६२ ३,५६६ ७9,४०३ ४,५३० ३,६६३ 

अन्य ३,३६२ ३,०६४ ३,०६६ ३,५६६ ३,७६२ 
कुल | ४५,७३६ | ४६,१४३ | ४८,२४४ | ४७,८४६ | ७६,६०४ 




















अयापजनााक 





(१० ) निम्नलिखित सारणो में झआारत-सरकार के ऋण के 
विभिन्न मर्दों का प्रतिशत दिया हुआ है । इसको बिन्दुरेख के रूप में 
प्रस्तुत करिये । 















































सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण ०३ 
| के| बिना दूस वर्ष ५ से १०४ वर्ष से कोषागार| छोटी | अन्य 
अन्त में | तारीख सेअधिक| वर्ष तक, कम | विपत्र बचतें दायित्व 

१६४४ | १८१ | २५२ | १८० | १४६ | ५४ १०१ | ७२ 
४६ | १४७ | ३४३ | ११४ | १६६ | ४३ ११४ | ४३ 
४७ | १९१ | २५५ | 5५१ | १६२ | ३६ | २६ | ११६ 

| १२३ | ३२७ | १३७ | १३७ | ४७ | ११२ | ११७ 
४६ | ११० | ३०४५ | 5४ | १३३ | १४९ | ११६ | ०० 
४० | १०७ | *७७ | १२४ | १२० | १७४७ | १२३ | १३६२ 
४१ | १०४७ | २१० | १३६ | १२६ | १४८ | १३२ | १३६ 
४२ | १०४ | श्मंण | १८३ | ६४ [१३४५ | शहर | (४ ३ 
४३ | १०३ | १४६ | १६४ | १३६ | १२७ | १६५ | १४४५ 
४४ | १०३ | १०८ (२१८ | ११५ १३४ श्८ ० १७२ 








.. (११) अनुपात-स्केल के साधारण-स्केल की अपेक्षा क्या लाभ हे? 
निम्नलिखित सामग्री का छेदा-स्केल के अनुसार बिन्दुरेख के रूप में 


























प्रॉंकण करिये । 

|-77 जकुक्ष त्रसारित नोट कुल प्रचलित ए _7 क्ुत्ष प्रचल्चत नोट 

वर्ष ___ (करोड़ रू० में) (करोड़ रु० _(करोड़ रु० में) _ 
१६३३-३४ १७७ १६७ 
३४-३० १८६ १७२ 
३४-३६ १६६ १६७ 
३६-३७ र्व्प १६२ 
३७-रे८ २१४ श्प५ 
शेप-३े६ २०७ १८७ 
३६-४० श्र २३७ 
४०-४१ २६६ २श्८ 
४१-४२ ९२१ ४१० 
४०७२-४३ ६४० ६२० 





(१२) निम्नलिखित सामग्री क 
निर्वाह व्यय देशनांक प्रस्तुत करती 


निरूपित करिये। 





पुर; नागपुर और कलकत्ता के 
है। इन्हें बिन्दु रेखों के रूप में 





३०४ ' सांख्यिकी के सिद्धान्त 




















८ कानपुर नागपुर कलकत्ता .. 
व (१६३६८ १००) | (१६३६० १००) | (१६३६ ७ १००) 
१६७७ ३५१७ २६७ २७६ 
9५ ' शेण्प रशर8ह . श्द३्‌ 
छ६ शेर | र्णर ह शर्ट 
8७ रेष८ ३२० ... ३०६ ' 
हण . ४५१ इंडर .. देईे8 ' 
छह ४८ ३७७ शे४टण 
। 4 ४३७ .. देर क्‍ ३४६. 
५ ४२१९ ३६९ ३७०', 
हब. ७४१ ८० ह ३४५१ 
३ ४७४३ रे८७ . ३२४७६ 











... (१३) कूट आधार रेखा का उपयोग किन दशाओं में करना 
चाहिए ? निम्नलिखित सामग्री को, जो भारत में सब उद्योगों के लाभ के 
देशनांक बताती है, बिन्दुरेख के रूप में प्रस्तुत करिये। . 











वर्ष देशनांक 
हे ( आधार; १६३६ : १०० ) 
१६४१ श्८७ 
श्र श्श्र्‌ 
७३ २४६ 
8४ २३६ 
४५ २३४ 
४६ ' २२६ 
छः श्ध्य्‌ 
छ्ठफ | २६० | 
छह ' ' श्दर्‌ 
0 ह । २५०७ का 








(१४) निम्नलिखित सारणी में कुछ देशों में द्रव्य पूर्ति के देशनांक 
दिए गए हैं । इन्हें छेदा स्केल के अनुसार निरूपित करिये 
( आधार : १६४८ ; १०० ) 























२० साभग्रो का विन्दुरेखीय निरूपण २०५ 
_बर्षान्त यू० के० सं० रा० अ० फ्रांस 
१६७४५ प्पर ६२ ४७ 
४६ ६७ ६६ हर 
७ ध्प १०२ 3७ 
ध्श्ट्य १६० १०० १०० 
४६ १०१ १०० रा 
४० १०२ श्ध्फ " १४७४ 
४१ १०३ ११४५ १७० 
५२ १०४ ११६ रे 
४३ १०० ५१५२१ २१७ 
| 








काका याए्क्रााक 


(१४) निम्नलिखित सारणी में भारत के लिए उत्पादन थोक मूल्य, 
ओर निवाह-व्यय के त्रैमासिक देशतांक दिए गए हैं। इन्हें एक ही स्थान 
- पर बिन्दु रेखों द्वारा प्रस्तुत करिये : 





थोक मूल्य 

















उत्पादन देशनांक | थोक निवोह-व्यय 
वर्ष ओर त्रिमास | ( सब उद्योग ) | देशनांक (आधार! देशनांक पूरा 
५ आधार : | १६३६८ १००) | भारत) आधार 
१६४६८ १००) १६४६८: १०० 
१६४१-५२ १२ १२७३ ४५६ ६ १४४ 
र्‌ ११७७ ४३६६ १४४५ 
३ १२१-३ ४३५६ १४४ 
| १२६०० ४०७६ १३६ 
१६४२-५३ १ १२६९७ रेजर २ १४० 
र्‌ श्य्पा२ ३८३७ १४३ 
३ १३३९६ ३८१२ १७२ 
ः ४4 १३२९७ रे८१*७ १४२ 
१६५३-५४ * १३५४ ३६४५ ६. १४७ 
ु २ १३४६ ४०७३ १५३ 
३ १३७४ ३६१२ १४६ 
मर १३७-३ श्ध्श्८ +- 














४/७एएशाााााााा >> 











३०६ क्‍ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(१६) संघटकों सहित कालिक चित्र किस प्रकार बनाए जाते हैं 
विस्तारपू्वंक लिखिये। 


निम्नलिखित सारणी भारत के विभिन्न केन्द्रों में १६५३-४४ में 
चेकों का भुगतान ( रुपयों में ) दिया गया है । इसको खंघटक कालिक 
चित्र के रूप में दिखलाइये । 























( करोड़ रुपयों में ) 
|] औऊ_ा केद्रा . [7 
मास बम्बदे | कलकत्ता | दिल्‍ली | कानपुर | सद्रास 
१६५३, अप्रेल २४० रन्प | १४ १४ ३३ 
मई २२१ श्ध्८ १४५ १४ ३० 
जून २० १६३ १४ श्र ३३ 
जुलाई २२६ २१५ | १५ १२ ३५ 
अगस्त श्र १६० श्र १० ३० 
सितम्बर श्ध्प २१३ | १४ ११ ३६ 
अक्तृबर २०० श्ध्८ १४ &. श्८ 
नत्रम्बर _ २०१ २२५ १५ १२ - 2; 
दिसम्बर रछ८ २४५ | १८ १४ ३३ 
१६४४ जनवरी २२७ २२२ श्प १२ २६ 
फरवरी २२५ २२१ १४ श्र्‌ इ२ 
मार्च २४५६ २७६ १८ १३ ३६ 








(१७) निम्नलिखित वारंवारताबंटन को बिन्दु रेखीय रूप में पर रूप में प्रस्तुत 
करिये। इसके लिए दण्ड चित्र भी बनाइये । 























वगोन्तर बग-वारंवारता... 

जय ८-२. ७-रे १७ न 
२-४ ४१ 
७-६ १०४७ 
६-प८ १४० 
८-१० श्र 
१०-१२ श्दर 
१२-१४ . ३४० 
१४-१६ ३४० 
१६-१८ ३०० 
१८-२० २१० 











सामग्री का विन्वुरेत्रीय सिरूपण ३०७ 


(१८) निम्नलिखित वारंवारता-बंटन को बिन्दुरेख के रूप में 
. शखिये। प्रत्येक वर्ग के लिए बारंवारता ज्ञात करिये ओर संचयी वारंवारता 
































बक्र भी बनाइये । 
वर्गोन्तर बग्ग-वारंवार ता 
9 १३ 
५-१० छ्र्‌ 
१०-१४ १३ 
१४-२० २३७ 
२०-२४ २४० 
२४-३० २४६ 
३०-३४ २४० 
३४-४० २३७ 
9०-४४ १३५ 
४४-४० ४२ 
४०-४४ १३ 
(१६) निम्नलिखित सारणी में दिए गए वारंवारता-वंटनों को 
अलग-अलग चित्रित करिये। े 
वर्ग बारंबारता 
वबगॉन्तर (क) (खत) (ग) | 
०-९ र्‌ १२ १६० ६ 7 
१-२ म २० १२० ७ 
२-३ १४ ३० ७० १० 
३-४ ४६ ४० ४० ७ 
४-५ ११० ६० 8० र 
४-६ १६४ 4 शेर | र्‌ 
६-७ १८० ऊब्‌ सर १ 
७-प १६४५ ६० १६ २ 
८-६ ११० 2६०. १७ ् 
६-१० ४६ र्रर १० ६ 
१०-११ श्ध्‌ १७ - ७- ११ 
११-१२ ६ १० न १६ 
__ १२-१३ _| २३ “४ 5. २० 
































३०८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


: (२०) निम्नलिखित सारणी में कुछ देशों' के लिए ५ थोक मूल्य 
देशनांक दिए गए हैं। इन्हें छेदा स्केल के अलुंसार चित्रित करिये। 


. आधार वर्ष १६४८८८१५०० 


























ह न ५ । 9... ञ्य 
मास ओर वर्ष फ्रास | भारत ।युक्त राज्य अमरीका 
१६४२ जनवरी १७१ ११७ १५३ १०८ 
फरवरी १७१ ११३ १५० १०८ 

साचे १६७ १०३ १४२ १०८ 
झग्नेत्त १६५ १०३ १४० १०७ 

मई १६२ १०० १४६ १०७ 

जून १६१ १०२ १४६ १०७ 
जुलाई १६२ १०४ १४६ १०७ 
ध्यगस्त १६२ १०६ १४८ १०७ 
सितम्बर १६१ १०६ १७१ १०७ 
अक्टूबर १४७ ५१०६ १४६ १०६ 
नवम्बर १४७ १०४ श्ष्टप १०६ 

5 दिसम्बर १४७ १०३ १४७६ १०४ 
१६४५३ जनवरी श्श्घद |. १०३ १४० १५५ 
- फरवरी १४६ १०४ १४५८ १०४ 
माचे १४७ १०४ |. १४० १०४ 
अप्रेत्त १४५६ १०४ श्शर १०४ 

सईद १४७ | (१०८ १५१ १०४ 

जून १४५ ११० १५० १०४ 
जुलाई १५७ १११ १४० १०६ 

अगस्त १५७४ ११२ १७६ १०६ 
सितम्बर १४२ ११० श्षट६ १०६ 
अक्टूबर १५३ १०७ १४८ १०६ 
नवस्बर १५४ १०६ १छ६ १०५ 
द्सिम्बर १४४ १०६ १४६ १०५ 








(२१) नीचे एक वस्तु के वार्षिक उत्पादन के देशनांक (१६००७ 
१००) दिए गए हैँ। ः 








सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण ३०६ 






































'चष वार्षिक साध्य वष वार्षिक साध्य 
१६२७ ५१६५ १६३६ २७० 
ब्प श्ड्८ 9० ३४९ 
२६४. |. २१६ ४१ ३२० 
३० ब्श्र्‌ | छर ३७० 
३१ १८० रे श्र 
श्र १६२ ४४ ३६६ 
३३ १८० ०६4 र५द्‌ 
३७ श्प७ छू. . ३०४७ 
दर २१० 9७ २६१ 
इ्६्‌ २३७ छ्प २७७ 
३७ २०३३ छ्६ ७७ 
द््प २१५ ० र्डर 
इनको प्रांकित करिये ._( एस० ए०, इलाहाबाद, १६४४ ) 
(२२) निम्नलिखित सामग्री को बिन्दुरेखीय रूप में प्रस्तुत करिये। 
वर्ष जन्माघ वर्ष... जन्माघ 
१६१७ ३०९६ श्ध्य्प २६४ 
श्प ३०२ ब्६ २७७ 
१६ २६९९ ३० २४९१ 
२० ३१७ ३१ २३*१ 
२१ . ३३७ देर २३*७ 
. शर ३२०२ .. देर . २२६ 
२३ ३०७ ३७ श्द्द 
२७ द ३५१० .. ३४ . २३९० 
श्श्. . २२० . ३६ २२९० 
>६ २७६ ३७ २२*६ 
र७ड .. - . २७७ क.. रे 5“ “। ह€#र६ 
































किए शएए छन रुग इलाहाबाद, हु ) 


३१० सांख्यकौय के सिद्धान्त 


(२३) निम्नलिखित सारणी में भारतवर्ष (अविभाजित) के, १६२०- 
२१ तथा १६२१-२२ में, आयात और निर्यात का मूल्य ( करोड़ रुपयों में ) 
दिया हुआ है :-- 





























के जल कक जन फिक- _ (६९०९१ - क्‍ क्‍ १६२१-२२ 
अयात नियत | आयात नियत 
गण 
अग्रेल . . २२ श्र ९३ ८ 
मई २४ र्८ २९ २० 
जून रद २३ १६ १७ 
जुलाई श्प २१ श्८ १७ 
अगरत ३१ २० २१ २० 
सितम्बर २६ श्र रण २० 
अक्टूबर ३२ २१ रे३ श्प 
नवम्बर ३२ १६ रद २० 
द्सिम्बर ३२ २० २३ २२ 
जनवरी ३१ १६ न्‍ श्प २३ 
फरवरी २४ श्यघ. |. २०७ | २९२२ 
माक्ष २४9 १६ २१ रद 








उक्त सामग्री का एक ग्राफ-पत्र में प्रांकक कीजिए तथा व्यापार- 
आधिक्य ( 74/970८ ०£ ६८४06 ) को दिखाइए । द 
( बी० काम ०, इलाहाबाद, १६३८ ) 


(२४) निम्नलिखित सारणी का अध्ययन कीजिए, तथा भारतवर्ष 
(अविभाजित) में खाद्यानों के शुद्ध-प्रदाय (7०८ 5ए०/|ए) तथा वयरक- 
जनसंख्या को दिखाते हुए छेदा स्केल पर एक बिन्दु रेख खींचिए । 


सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण 


























३११ 

खाद्यानों का | बीज तथा | (,)या | उपयस्क 

क्षेप्यक द्व निर्यात 

वध उतपादन | (जन $६4/८) (-'! जनसख्या 

(००० टर्नों में) (०००, टनों में) (००० टर्नों में)| (००० में) 

१६३५-३६ । ४४,१७७ ६,जरर्‌  बृभ १६ । ४७,१७७ | जरुर... + ९,७६२ ।, २६०,८५४६ 
१६३६-३७ #६ ४७८ ७,४४५ -+ १,२४२ २६७,६१७ 
१६३७-३८ ४८,७३६ ७,३४२ +॑ ६३० २६८,६८७ 
१६३८-३६ | ४४,४६८ 8६,८२६ + १०४४ ३०३,०४८ 
१६३६-४० ४७,२४४ ७,१५६ + *२२१ ३०७,१ २८ 
१६७०-४१ ४७,८०८ ६,८५१ + ६६३ ३११,१६८ 
१६४१-७२ | ५६,५४० | ७,०६६ + ४३२ ३१५,२६६ 
१६७४२ ७३ भ८,७२६ | ७,३४१ + शे६२ ३१६,३६६ 
१६४३-४४ ६२,६२५ <| ७,८६५ + रध्य २२३,४१० 
_१६४४४५  धधशर७ | ७४४१ ( + देध्ये | ३२७,४८१ 

















(बी० काम०, इलाहाबाद, १६४६) 
(२५) एक प्राकृत-स्केल के ऊपर अनुपातिक स्केल के क्या लाभ हैँ. 


. निम्नलिखित सामझ्री का छेदा स्केल पर बिन्दुरेखोय रूप में प्रांकण कीजिए। 























| अल कस | नाक कुल नोटों की संख्या नोट प्रचलन में (करोड़ 
(करोड़ रुप रुपयों में) 

१६३३-१४ १७७ । १६७ 

१६३४-३५ श्८३ १७२ 
१६३४-३६ १६६ १६७ 

| १६३६-३७ २०८ १६२ 
१६३७-३८ २१७ श्पश 
१६३८-३६ २०७ १८७ 
१६३६-४० श्र २३७ 
१६४०-४१ २६६ श्श्प 
१६७१-७२ ४२१ 9१० 

१६४२-४३ ६४५० ६२५ 





(ी० काम०, नागपुर, १६४३) 











(२६) निम्नलिखित सारणी में बेंक आफ इंगलैण्ड के द्वारा वेदे 
शिक-लेखे पर बेचे गये कुल सोने का मूल्य दिया हुआ है। सामग्री का 
प्रांकेण छेदा-स्केल पर बिन्दुरेखीय रूप में कीजिए । 


३१२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





चहांधद्रातभायशाहा#/ दा 224 लक... 





























वर्ष ा ( ०००, पोंडों में ) 
१६१० १७,४८८ 
१६११ ८,२४८ 
१६१२ ६,६७० 
१६१३ ७,६४३ ' 
१६१४ ८,०२७ 
१६१४ ४२,०७६ 
५ ह्‌ ५ ६ पु र्‌, २ द्‌ 9 
६... 3 आआछआआछआछआछ छछछछछछछछछछ छः छ  #£ 
( बी० काम०, इलाहाबाद, १६३४ ) | 
(२७) भारतवर्ष (अविभाजित ) में, नं? १ रेलवे के कमंकरण | 
( ए०7:472 ) के परिणामों को बिन्दु रेख द्वारा प्रदर्शित करिये। इस पर 
अपने विचार भी ग्रकट करिये। द 
( दस लाख पौंडों में ) 
लागत पूँजी..._ | सकल आय 
१६२३-२४ ४६४ ७० 
१६२४-२५ ७७३३ द ७७ 
- १६२४-२६ ध्र८७ ७दे 
१६२६-२७ ४०३४ ७र 
१६२७-२८ ४६४ प्‌ 
१६२८-२६ ४६६ ८६ 
१६२९-३० ६१७ ८७४ 
१६३०-३१ ६२७ ७७ 
१६३१-३२ हद्र्श्‌ः ७१ 
१६३२-३३ . -दईच्छ ७० 
१६३३-३४ . छउर्ेर रा ७२ 




















( बी० काम०, आगरा, १६४० ) 





सामग्री का विन्दुरेखीय निरूपण ३१३ 


(२६) निम्नलिखित सारणी में विभिन्न वर्षों में भारत (अविभाजित) 
की जनसंख्या दी हुई हैं। जनसंख्या को एक अवधि से दूसरी अवधि में 
अनुपाती वृद्धि को एक बिन्दुरेख द्वारा दिखाइए । 














वर्ष जन-संख्या (०००,०००, छोड़ दिए गए हैं ) 
 श्एडर २१० 
. १८८१ २४० 
(८६१ २६० 
१६०१ , २६४५ 
श्ध्श्१्‌ ३१४ 
१६०२९ ३०२० 
१० ३१ ३०५० 








१६४९ २९० 
(बी० काम०, नागपुर, १६२४) 





अध्याय १२ 
काल-श्र णी का विश्लेषण 


( ॥93ए85 0 6 56768 ) 

आधिक समस्याश्रों के वास्तविक अध्ययन में काल (४77०) का बहुत 
अधिक महत्व है | किसी चल के मूल्य में काल-परिवर्तन के कारण क्‍या परिवतंन होते 
हैं, इसे जानने की आवश्यकता कई स्थलों में पड़ती है। इसका अध्ययन काल-प्रेणी 
(४77८ 5८८८४) के विश्लेषण के अन्तगंत किया जाता है। काल-श्रेणी किसी चल 
का दूसरे चल काल के साथ सम्बन्ध बताती है। जैसे, विभिन्न वर्षों में किसी वस्तु 
के मूल्य, या अलग-अलग दिनों में किसी स्थान का तापमान, या विभिन्न महीनों में 
किसी वस्तु के उत्पादन की राशि आदि | सारणी संख्या १ में एक काल्यनिक काल- 
श्रेणी दी गई है जिसका चित्रण चित्र सं० १ में किया गया है । 

इस प्रकार की जो सामग्री उपलब्ध है वह कई प्रकार के प्रभावों के कारण 
होती है । जैसे किसी वस्तु के मूल्यों में काल के साथ होने वाले परिवतन कई कारणों से 
हो सकते हैं। लोगों की रुचि बदल गई हो, जनसंख्या बढ़ गई हो, उत्पादन-लागत कम 
हो गई हो, लोगों की आय बढ़ गई हो आदि । इन प्रभावों की परस्पर-क्रिया ((7060- 
2०707) के कारण चल के मूल्य में परिवर्तन होता है। अगर ये प्रभाव अपरिवर्ती 
होते तो चल के मूल्यों में मी किसी प्रकार का परिवर्तन न होता--वह हमेशा एक 
सा रहता । अगर इनके प्रभावों के संतुलन में किसी प्रकार से एकाएक परिवितंन हो 
जाता और फिर किसी प्रकार का परिवर्तन न होता तो कुछ समय बाद जब इनकी 
'परस्पर-क्रिया प्रतिक्रिया समास हो जाती, चल के मूल्य में किसी प्रकार का परिवर्तन न 
'होता । इस प्रकार चल के मूल्य में एकाएक परिवतंन होता और फिर वह समान 
रहता । पर ऐसा होता नहीं है । वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल है। इन 
प्रमावों में होने वाले परिवर्तन कभी रुकते नहीं हैं । वे होते रहते हैं ओर इसके परि- 
णाम-स्वरूप चल के मूल्यों में मी परिवर्तन होते रहते हैं। इन प्रमावों के बारे में, 
उनकी महत्ता (777277:006) के बारे में, हम बहुधा कुछ भी नहीं जानते | इनके 
अस्तित्व का ज्ञान हमें चल के मूल्यों में होने वाले परिवततनों के कारण होता है। 
अब, अगर हम यह चाहें कि वस्तुस्थिति का व्यावहारिक रूप से अध्ययन करें, तो 
हमें इस प्रकार के चल के मूल्यों में प्रभावों की महत्ता में होने वाले परिवर्तनों के 
कारण, होने वाले परिवतनों का अध्ययन करना पड़ेगा | श्र्शासत्र में इन दो प्रकार 
की दशाओं को--एक वह जिसमें केवल उन स्थितियों का अध्ययन किया जाता है 
जिनमें प्रभावों की महत्ता में परिवर्तन नहीं होता है, ओर दूसरी वह जिसमें यह परिवर्तन 


काल-श्रेणी का विडलेषण ३१५ 


होता रहता है--क्रमशः स्वैतिक (४६४६४0) और प्रवैशिक (6977०) दशाएँ 
कहते हैं| काल-श्रेणी का अध्ययन प्रवैगिक दशा को समझने के लिए, किया जाता है। 
जैसा कहा जा चुका है, हम इन प्रभावों को, और इनकी महत्ताओं को, पूर्ण॑तः 
और ठीक-ठीक नहीं जानते । इसके श्रस्तित्व का विचार चल के मूल्यों में होने वाले 
परिवतनों के कारण आता है | इन परिवर्तनों को देखकर इन प्रभावों के परिवर्तनों 
को कुछ मुख्य भागों में रखा जा सकता है। ये भाग कुछ निश्चित स्वभाव वाले 
अमावों को बताते हैं। इन्हें काल-श्रेणी का संघटक (०००४०००7८7८७) कहा जाता 
है क्योंकि इन सब में एक साथ होने वाले परिवर्तनों के कारण ही काल-श्रेणी बनती 
है। ये संघटक निम्नलिखित हैं :-- 
। (क) दीघेकाल्नीन--सुदीर्घकालीन उपनति (56८प३४४ 5४८70) | 
(ख) अल्पकालीन-- (१) आतेव विचरण ($९५३०7५] ए०४2007) । 
(२) चक्रीय उच्चावचन (0एट८श ए]प८पढन07) | 
(ग) देव (या अनियमी ) उच्चावचन (र्ध्वात०क 07 ३0768पोछा 
]०८४प०७(४४०४७$) | ५ 
आगामी अनुच्छेदों में इन पर विस्तारपूर्वंक विचार किया गया है और इनमें 
क्या अन्तर है, यह बताया गया है । 


सारणी संख्या १--विभिन्न वर्षों में चल य के मूल्य 








वर्ष | य्‌ | वर्ष | य्‌ 

१९०१ ह ६५२ १६१६ ९०१ 
०२ ६०३ १७ १०४२ 
०३ | द्प्र्ड श्ट १००२ 
०४ ६९४ | श्ट्‌ १११३ 
०, ६७९ २० १५१५३ 
०६६ ७१६ २१ ११३६ 
०७ ७७६ २२ श्श्यड 
ण्छ ज्रर र्रे ११९५ 
०६ ८ र्‌४ १००्प 
१० प्प्प्ष्र २५ व्प४ड७ 
११ प्णर २६ द्प्ष 
१२ ८छ्प् २७ ७३५ 
भरे ८५४ सर्प ७प्प६्‌ 
शै४ व्ः्जह्‌ श्६्‌ प्प्द्‌ 
१५ ७२५ ३० १०२० 

















३१६ ' सांख्यिकी के सिद्धान्त 


















































































































































































































































































































































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१ 


चि० सं० १ 

(१) सुदोधेकाल्लीन उपनति (86८०७४ '+८४०)--सारणी सं० १ की 
पूरी सामग्री का अध्ययन करने से यह मालूम होगा कि चल य के मूल्य सामान्यतः 
बढ़ते हैं| वैसे अगर इस सारणी का छोटे-छोटे भागों में अध्ययन किया जाय तो मूल्य 
घटते भी हैं ओर बढ़ते भी हैं | इसलिए यह कहा जा सकता है कि य के मूल्यों की 
बढ़ने की उपनति या प्रवृत्ति है। सामान्यतः बढ़ने की प्रवृत्ति को दिखाने वाले संघटक 
को सुदीर्घकालीन उपनति कहा जाता है। जिस प्रकार किसी चल के मूल्यों के दीघ्घ 
काल में.बढ़ने की प्रवृत्ति हो सकती है उसी प्रकार कुछ में घटने की प्रवृत्ति दिखाने वाले 
संघव्क को भी सुदीधंकालीन उपनति कहा जाता है। सुदीर्घवालीन उपनति ऐसे 
प्रभावों के कारण होती है जो पर्याप्त समय तक एक ही प्रकार के रहते हैं। जैसे जन- 
संख्या के बढ़ते रहने का प्रभाव वस्तुओं के मूल्यों पर पड़ता है | जनसंख्या का बढ़ना 
या घटना काफी लम्बी अवधि तक चलता रहता है | 


(२) आतंब विचरण (8048०74] ए४:४५४४०४४)--ये बिचरण ऐसे 


प्रभावों के कारण होते हैं जिनकी महत्ताएँ नियमित रूप से बढ़ती और घण्ती रहती 
हैं । ये विचरण प्रति घन्टे, प्रति दिन, प्रति मास हो सकते हैं। जैसे, फसल कठने के 


काल-श्रेणी का विश्लेषण ३१७ 


समय अन्न सस्ते हो जाते हैं| इनके कारण श्रेणी में ऊपर-नीचे होने वाले परिवर्तन 
होते हैं । 

.. (३) चक्रीय उच्चावचनः (८एटा८४ 7]प८८प७४४०४५४)--ये परिवतेन 
भी आवतिक होते हैं, पर ये एक वष से अधिक के अन्तर में आते हैं। पर चूँकि 
इनकी अवधि (0०४०४) निश्चित नहीं होती इसलिए इन्हें आवतिक उच्चावचन 
न कह कर चक्रीय उच्चावचन कहा जाता है | ु 

(४) देव या अनियमी उदच्चावचन (स्िक्र7007 ०0% ॥76एपएौ7 
ए|[प०७प५८४०४७)--ऐसे सब प्रमावों को जो उपर्यक्त वर्गों के अन्तर्गत नहीं आते 
अनियमी या देव उच्चावचन कहा जाता है। चूँकि इनके ग्रकट होने की. कोई निश्चित 
अवधि नहीं होती और इनका होना आकस्मिक होता है। इसलिए इन्हें अनियमी या 
दैव उच्चावचन कहा जाता है। ऐसे आकस्मिक प्रभाव कई हो सकते हैं जैसे युद्ध, 
बाढ़ आदि | कभी-कभी ये बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं ओर चक्रीय उच्चावचनों को जन्म 
भी दे सकते हैं। पर चूँकि ये आकस्मिक और अनियम्ती होते हैं, इसलिए इन्हें बहुघा 
काल-श्रेणी से अलग नहीं किया जा सकता । इसलिए इन पर कम ध्यान दिया जाता है | 

काल-शभ्रेणी के इन संघटकों का अध्ययन अलग-अलग. करने के महत्व को 
कम नहीं किया जा सकता | उद्योगियों को न केवल अल्यकालीन परिवतनों पर ही 
विचार करना पड़ता है बल्कि दीघकालीन प्रवृत्ति को भी ध्यान में रखना पड़ता है। 
पर ऐसा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । अगर यह संभव हो 
सका होता कि प्रत्येक प्रकार के संघक के कारणों का अलग-श्रलग, व्रिना अन्य 
संघटकों के प्रभाव पड़े ही, अध्ययन किया जाय, तो कोई कठिनाई नहीं होती क्योंकि, 
तब्र सांख्यिक, अन्य वैज्ञानिकों की भाँति ऐसे प्रयोग कर सका होता जिसमें अन्य प्रभावों 
को नियन्त्रण में रखकर केवल उन प्रमावों को लगाया जाता जिनके कारण एक 
निश्चित प्रकार का संघटक बनता है | पर सांख्यिक यहाँ पर असहाय है--वह निय॑ 
त्रित पयोग कर ही नहीं सकता | अतएवं उसे निरसन (०॥॥॥772४079) के द्वारा 
संघटकों का अध्ययन करना पड़ता है। आगामी अनुच्छेदों में इसी रीति के द्वारा 

विभिन्न संघटकों को ज्ञात करने की रीतियाँ बताई गई हैं । 

सुदोीघकालीन उपनति 

( 56८प)०४४ 47600 ) 

सुदी्धकालीन उपनति का अध्ययन करने के दो. कारण हो सकते हैं। पहला 
यह कि हम यह जान सके कि चल के मूल्य दीघ-काल में किस प्रकार व्यवहार करते 


श्श्यः सांख्यिकी के सिद्धान्त 


हैं | इसमें उद्देश्य यह रहता है कि अन्य प्रकार के संघटकों का जहाँ तक हो सके 
निरसन (०॥ए३४०७//07) कर दिया जाय । दूसरा उद्देश्य यह है कि इस संघटक 
से, जो चल के मूल्य की सामान्य ग्रवृत्ति बताता है, चल के मूल्यों में होने वाले 
विचरणों को नापा जा सके, अर्थात्‌ चक्रों (८7८८5) का अध्ययन किया जा सके। 
सुदीर्धधालीन उपनति को जानने के लिए साधारणतः निम्नलिखित रीतियों का उपयोग 
किया जाता है । ॥ 

(१) निरीक्षण द्वारा उपनति-श्न्वायोजन (7५०४१ £४78 9ए 9596९०- 
१407 )। 

(२) चल-माध्य कौ रीति ( (०४78 हए०:४४८ ?९६7०० )। 

(३) अल्पतम-वर्ग-रीति ( ८६००१ ०६ ,248६ 540६%८४ ) । 


निरीक्षण द्वारा उपनति अन्वायोजन 
( ॥द्यात ॥४70₹2 72ए 77596८007 ) 
इस रीति में सामग्री प्रांकित कर ली जाती है ओर सिर्फ हाथ से इन बिन्दुओं 


पर कोई वक्र अन्वयोजित कर लिया जाता है ; इस वक्र के द्वारा अन्य संघटकों का 
निरसन किया जाता है | 


सरलता के लिए यह रीति सबसे अच्छी है । साथ ही साथ इस प्रकार उपनति- 
रेखा शीघ्रतापूवक जानी जा सकती है। अन्य रीतियों में जग्लि गणित का उपयोग 
करना पड़ता है, पर इसमें गणना की कोई आवश्यकता नहीं रहती | पर इस रीति का 
सबसे बड़ा दोष, जो इस प्रकार की सच्च रीतियों में ( जिनमें निर्णय व्यक्तिगत होता 
हे ) पाया जाता है, यह है कि उपनति रेख सांख्यिक की अभिनति (99$) से 
प्रभावित हो सकती है। इसलिए एक ही सामग्री के लिए विभिन्न सांख्यिकों द्वारा प्राप्त 
किए. गए. परिणाम अलग-श्रलग हो सकते हैं। 


चल-माध्य की. रीति 


( (८६४०० ०६ 2(०रां४४ ॥ए८:३४४८$ ) 


उपनति-श्रन्वायोजन की दूसरी सरल रीति चल-माध्य की है। चल-माध्य की 
गणना करने में सबसे पहले इसकी अवधि निकालनी पड़ती है| अवधि निकालने का 
अर्थ यह है कि कितने अनुगामी पदों का माध्य निकाला जायगा। मान लीजिए यह 


काल-श्रेणी का विश्लेषण श१श६ 


निश्चय किया गया कि पाँच अनुगामी पदों का माध्य निकाला जायगा, अर्थात्‌ चल-- 
माध्य की अवधि पाँच होगी, तो सर्वप्रथम पहले पाँच ( १ से ५ तक) पदों का 
समान्तर माध्य लिया जायगा ओर इसे तीसरे पद के आगे रख दिया जायगा; फिर २ से 
६ तक तक के पदों का माध्य लिया जायगा जिसे चौथे पद के आगे रखा जायगा। 
इसी प्रकार तब तक चल-माध्य निकालते चले जाते हैं जब तक अन्तिम पाँच पदों का: 
चल-माध्य नहीं निकाल लिया जाता। 

प्रश्न यह उठता है कि चल-माध्य की अवधि किस प्रकार निश्चित की जाय |, 
अर्थात्‌ यह कैसे जाना जाय कि दी हुई सामग्री के लिए तीन-वर्षीय चल-माध्य लिया 
जाय, या पाँच-वर्षीय चल-माध्य लिया जाय, या नौ-वर्षीय या अ्रन्य कोई | यह 
समस्या बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी पर चल-माध्य की रीति द्वारा उपनति-अन्वायो- 
जन की सफलता निर्भर रहती है । यहाँ पर यह श्ञातव्य है कि उपनति रेखा निकालने में 
इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि अन्य प्रकार के विचरण या उदच्चावचनों का 
निरसन कर दिया जाय या उन्हें न्यूनतम कर दिया जाय | वस्तुतः चल-माध्य की रीति 
में यही किया जाता है| अब ये उच्चावचन या विचरण केवल उसी दशा में न्यूनतम 
होंगे जब पूरी काल-भ्रेणी की अ्रवधि के बराबर चल-माध्य की अवधि ली जाय। 
ऐसा करने से उपनति से अधिक वाले मूल्य इससे कम वाले मूल्यों का निरसन कर. 
देंगे और उपनति रेखा ज्ञात हो जायगी । काल-श्रेणी में किसी चक्र की अवधि निकाली 
जा सकती है । किसी चक्र की अवधि उसके दो प्रकार के अनुगामी (८०075८८प४४८) 
बिन्दुओं की दूरियों के बराबर होती है| जैसे अगर हम दो ऐसे अनुगामी बिन्दुओं को 
जान लें जब काल-श्रेणी में चल का मूल्य अधिकतम था, तो इन बिन्दुओं के काला- 
न्‍्तर को चल की अवधि कहा जाता है। इसी प्रकार काल-भ्रेणी चल के मूल्य दिखाने 
वाले दो अनुगामी न्यूनतम मूल्यों के बीच के कालान्तर को भी काल-श्रेणी में चक्र: 
. की अवधि कहा जायगा। यह सच है कि किसी भी काल-प्रेणी में अवधि प्रत्येक बार 
ठीक-ठीक बराबर नहीं रहती | पर इसका उपयोग करने से बहुत बड़े अंश तक उच्चा- 
बचनों या विचरणों का निरसन किया जा सकता है। अगर काल-श्रेणी बहुत लम्बी 
हो तो दो या अधिक अवधियों का उपयोग भी किया जा सकता है। निम्नलिखित 
उदाहरण में इस रीति का उपयोग करके उपनति-रेखा निकालने; की रीति बताई 
. गई है। 
उदाहरण १ द | 
कॉलम १ और २ में दी गई सामग्री के लिए तीन-वर्षीय,. पाँच-वर्षीय सात-. 


३२ ० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


वर्षीय चल-माध्य निकाले गए हैं। ये चल-माध्य कॉलम ३, ४ ओर ५ में दिए गए हैं। 
चित्र संख्या २ में इनका ग्रांकण किया गया है । 


सारणी संख्या २ 

















ााआजएू।”त/७त७/”। गए आए ( ३ ) ( ४ 0) (५) 7 

(१) ३) तीन वर्षीय | पाँच वर्षीय सात वर्षीय 

. व वाषिक अंक |. चल-माध्य | चल-माध्य चल-माध्य 
। ६९२० श्श्५ . "०: क्‍ णा णण 
( २१ २१३ २१३ क्‍ ना ना 
 रश२ २०१ २१० |. २५१३ शा 
२ . २१४७. | २१५३१ | २१९ २२२ 
२४ र२३ २२१ २२४ :.. २२२ 
श्ए्‌ २४५ | २३४ २२९ श्र 
र्द्‌ २२४५ २३२० २३२ २३२ 
२७ २२ २३ १ २३७ २२९ 
' रद २३३ ३३६ २४१ .. - रडई 
र्€्‌ २४९ २७४६ . ९४६ २७४ 
३० २६५ २५७ २५१ २५६ 
3 रफा्९्‌ २५०७ २४२ २५२ 
श्र २४६ २४० २५६ २५६ 
३३ .. २४१ रण२ २६० २६३ 
रे४ २६५ २६४ २६३ २६३ 
३५४ र्दप २७५ २६६ २६३ 
रद. २७५ २७ . २७० २६९६ 
३२७ २६५ २६६ २७२ २७४ 

रेप .. २५९ .. रद्द २७४ रद | 
रेड २७५, २७७ २७७ २७७ 
. ४० २९७ श्थ्छ रब्य० २७७ 
४१ र्८्९ सर्द श्ष्परे रण 
. ४रे . रद! र्घर र्८७ २९० 
डरे. 9... २७५ .  र८३ रह्शः २९४ 
रड्ढ २९ २९५ २९४ न 
४५ ३१५४ ३०५ --- न्‍+ 
डंप ३०५: रे . ..... 




















११ के काल-श्रेणी का विश्लेषण ३२१ 


सास्माफ्ा््पाएउ्फ्िएट्ेडिए:िडाउएएशउएगपिएपयगएएशशए्थगएएसटाओ 

















-+ | "4 -# नल हिलबल- की 8 वन -मा "जज इुना।े 8 गगरगनानिलग नमन व के ५ न विनबनन० के 
प ; न, * बदल शो लक $ ०. बरनन्‍ामण के मथ न्क रे काल ल््नणु न ग्छ न, घर न जन. (नबी 
पक नकलकनण 5 नि है # व की रीता. बनाओ न» पूमाननम नब् कन की ह। ७. वन्‍ूथ व ।.. कुक छान, ना व | झा कमाना ढ 
बीत. की >के नचमानान पक जे लगानण नया बहन का आ मा मा का मा का क्यू पंगः ० प्रा स्ख्ः का फिनायमयाकरन 2 8 के... का हा है नक नमक इूड नमन वकननकनन, कि न] ला] हूणण बल ० को मान थम 
आदी लीलीलाओ। अर न ड़ + पद 4 न हे उन मन ीिय्का नाना जम नी ७ का हूँ ममम्नकनओ छा को नया पल "नह बह नननगन रह ह४ न फैन न « है 
१ व +-5 02८०४ पक बताये सर्च नि संग 7777 77४7 एफ: ४7:८० ८-५:-८०८८/८-... 
हि जाचान आना ओम ॥ नानक कक 4 4 ० कू५ 4०» बराएर 4 एड आल नाता सक्षा. नल निनतगसफगलआडल पुल लि न नि] कक नाथ + कमणकमन # न 

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१.३६ “5६९३४ ०-३५ 3६-६१०-3८ “१६ न्डण -इप “दर अडर३े-४४-४५ 


ञै ०.०. -+ नि 7.7२... 
कु ९२० ११०२६०२ ३ “रेड २५-२६-१७ “०८-२९ «३ 


चि० सं० २ 

उपयक्त सारणी में चल-माध्य निकालने के लिए सरल रीति का उपयोग किया 
गया है। जैसा बताया जा चुका है, अगर चल-माध्य की अवधि ७ वष है तो सवप्रथम 
पहले सात पदों के मूल्यों को जोड़ा जाता है ओर इसे ७ से विभाजित किया जाता है। 
इस प्रकार प्राप्त संख्या चोथे पद के सम्मुख रखी जाती है। फिर दूसरे से आठवें तक 
. के पदों का मूल्य लिया जाता है ओर इसे फिर सात से विभाजित किया जाता है। 
अगर इस प्रकार गणना की जाय तो चल-माध्य निकांलना बहुत कठिन और असुविधा- 
जनक हो जायगा। वास्तव में चल-माध्य की गणना इस प्रकार नहीं की जाती। इसकी 

गणना निम्नलिखित रीति से की जाती है । 
जब हम पहले सात पदों का चल-माध्य लेते हैं तो सबको जोड़कर सात से 
विभाजित करना पड़ता है। पर दूसरे सात पदों ( दूसरे से आठवें तक के पदों ) का 
चल-माध्य लेने में इन्हें जोड़ना और फिर उसे सात से विभाजित करना आवश्यक नहीं 
है क्योंकि जत्र हम दूसरे सात पद लेते हैं तो बस्तुतः हम पहले सात पदों के समूह के 
पहले पद को छोड़ रहे हैं ओर एक नया, आठवाँ, पद जोड़ रहे हैं। अब चल-माध्य में 
इस छोड़ने और जोड़ने के कारण होने वाला परिवर्तन इन दो पदों के मूल्यों से हो 
जाता है। रीति यह है कि आठवें पद के मूल्य में से पहले पद के मूल्य को घटाकर 





३२२२ सांख्यिकी के सिद्धान्त. 


प्रात्त हुए अन्तर को सात से विभाजित कर दिया जाता है। इस प्रकार प्रात 
भागफल को अगर पहले समूह के चल-माध्य में जोड़ दिया जाय तो दूसरे समूह के 
लिए चल-माध्य के मुख्य का ज्ञान हो जायगा | यह बात निम्नलिखित उदाहरण में 
स्पष्ट की गई है। द 


उदाहरण २ ' क्‍ 
सारणी संख्या २ में दी गई सामग्री के लिए सात-वर्षीय चल-माध्य ज्ञात 
करना है । 


पहले सात पदों का योग >5 १५५७ 
/. चल माध्य सन +>>--२२२ 


: दूसरे ज्ञात पदों का योग निकालने के पहले सात पदों के योग में से पहले पद 
को घट दिया जाता है और आठवें पद को जोड़ दिया जाता है। इन दो पदों का 
अन्तर कुल जोड़ में होने वाले अन्तर को बताता है। इस अन्तर को ७ से विभाजित 
करने से माध्य में होने वाला अन्तर ज्ञात हो जाएगा । 


अब आठवाँ पद - पहला पद८८२२४- २२५८८ ० 
*, चल-माध्य 5-२२२+ $5"-२२२ 


इसी प्रकार तीसरा चल-माध्य निकालने के लिए दूसरे चल-माध्य में नवें और 
दूसरे पदों के अन्तर को सात से विभाजित करके प्राप्त होने वाली राशि जोड़ दी 
'जायगी । । 





", तीसरा चल-माध्य-दूसरा चल-माध्य न. 7 रे 


+>+२२२-३८२२५ 
चल-माध्य निकालने में गुणोत्तर माध्य का भी उपयोग किया जाता है। जो 
बातें समान्तर माध्य के लिए राही हैं वे ही गुणोत्तर माध्य के लिए भी ठीक हैं। अ्रन्तर 
केवल माध्य निकालने की रीति का है। 
अगर चल-माध्य की गणना विषम-अवधि (000 #९४४००) के बदले सम- 
अवधि (८ए८४ 7८४00) के लिए करनी हो तो चल-माध्यों को बीच के दो पदों के 
मध्य में रखना चाहिए | जैसे कि यदि चल-माध्य की अवधि ६ वर्ष है तो पहले ६ 


काल-शेणी का विश्लेषण ३्२३े 


वर्षों का चल-माध्य तीसरे और चोथे वर्ष के बीच में रखा जाएगा ओर दूसरे से सातवें 
बषे का चल-माध्य चोथे ओर पाँचवें वर्ष के मध्य में रखा जायगा। इसके पश्चात्‌ 
यदि इन चल-माध्यों का समान्तर माध्य निकाला जाय तो यह माध्य चोथे वर्ष के सामने 
रखा जायगा | इसी प्रकार अन्य वर्षों के लिए भी चल-माध्य निकाले जा सकते हैं | 


चल-माध्य रीति का सिद्धान्त 


क्‍ ([४९०४ए ०£ ४००72 0४८7३2० )/८६०००) 

इस रीति के सिद्धान्तों और इसके लक्षणों को संक्षेपतः निम्नलिखित रूप में 
कहा जा सकता है :--- 

इसका सिद्धान्त यह है कि चल-माध्य उच्चावचनों का सरलन (870077798) 
करता है। पर ऐसा तब ही होगा जब इसकी अवधि काल-शभ्रेणी की अवधि के बराबर 
या उसके और किसी पूर्णाक् के गुणनफल के बराबर हो। यह बात चित्र संख्या (२) 
से स्पष्ट हो जायगी | उदाहरण (२) में दी गई काल-श्रेणी के लिए. अवधि ५ वर्ष है। 
जब चल-माध्य की अवधि काल-श्रेणी की अवधि से कम होगी तो चल-माध्य रेखा 
अपेज्षाकृत कम सरलित होगी । श्रगर यह अ्रवधि काल-श्रेणी की अवधि से अधिक, 
पर उसके किसी पूर्णाझ बहुगुण (77(6४27४ 7रपांत96 ) से कम हो (अर्थात्‌ 
दो पूर्णाह्न बहुगुणों कें बीच में हो ), तो चल-माध्य रेखा में होने वाले परिवतंन 
काल-पश्रेणी में होने वाले उच्चावचन के विलोम-क्रम ((77९४४८ ०0:06: ) में होंगे। 
चित्र सं० २ में तीन-वर्धीय पाँच-वर्षीय ओर सात-वर्षीय चल-माध्य-रेखाओं को देखकर 
यह स्पष्ट हो जायगा | पर चल-माध्य निकालने के लिए! जितने अधिक संख्या में पद 
लिए, जाएँगे, चल-माध्य-रेखा उतनी ही अधिक सरलित होगी (देखिए, चित्र संख्या २)। 
अधिक संख्या में पदों को लेने का एक नुकसान यह है कि जितने अधिक पद लिए, 
जाएँगे, उतने ही अधिक चरम-सीमाओं के पदों के लिए उपनति मूल्य (पल्यते 
४००८७) नहीं जाना जा सकेगा । जैसे पाँच-वर्षोय चल-माध्य में दो आरम्म के तथा 
दो अन्त के पदों के उपनति मूल्य मालूम नहीं होंगे, सात-वर्षीय चल-माध्य में तीन 
आरम्म के और तीन अ्रन्त के पदों के उपनति मूल्य नहीं होंगे | 


अद्यतम-वग-रीति 
( (८६४०१ ०६ [.०28४६ 50०५४८$ ) 


सुदीर्धकालीन-उपनति जानने की सबसे परि्षत रीति अल्पतम-वर्ग-रीति हे। 
इस रीति में सर्वोत्तम अन्वायुक्त रेखा (76 ०६ 9८७: 50) निकाली जाती है, 


३२४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उपनति बताती है | इस रीति द्वारा उपनति रेखा जानने के लिए निम्नलिखित बातों 
का ध्यान रखा जाता है ;-- 

(१) उपनति-रेखा से अन्य बिन्दुओं की शीर्ष-दूरियों का योग शूत्य हो । अर्थात्‌ 
उपनति रेखा से बिन्दुओं के विचरणों का योग शून्य हो। 

(२) उपनति रेखा से लिए गए विचरणों के वर्गों का योग न्यूनतम हो | 
चूँकि इसमें विचरणों के वर्गों का योग न्यूनतम किया जाता है, इसीलिए इसे अल्प- 
तम-वर्ग-रीति कहा जाता है। 

इस रीति में पहले यह निश्चित कर लेना पड़ता है कि उपनति-रेखा कौन 
सा वक्र होगी | वह सरल रेखा हो सकती है या कोई एकेन्द्रिक वक्र (747250]0 
८प४:ए८) । यह निश्चित करने के बाद उसके समीकार (७१७०८४०४) को जान लिया 
जाता है, जो उपनति रेखा को बताता है। इसके सैद्धान्तिक पक्षु को अच्छी तरह 
स्पष्ट करने के लिए, पहले निम्नलिखित उदाहरण द्वारा इसका उपयोग करने की रीति 
दी गई है। 
उदाहरण 

निम्नलिखित सारणी में विश्व का सोने का उत्पादन दिया गया है। इसलिए 
उपनति-रेखा ज्ञात करनी है। 
सारणी संख्या ३ 











वर्ष द उत्पादन ( करोड़ रुपयों में ) 
१९४५ श्स्७छ 
१५६४६ १७०१९ 
१६४७ । १३०९० 
१६४८ क्‍ क्‍ १३*२ 
१९४६ ९२"६ 
१६.३० १४*२ 
१६५१ १३९७ 








अगर उपनति-रेखा एक सीधी रेखा मानी जाय, तो इसको इस रीति द्वारा 
निम्नलिखित प्रक्रिया अपना कर जाना जाएगा। 





३२४, 


फाल-श्रेणी का विइलेषण 


























2.० ३3 -- प्य्टे 5५० 
“३, ४ ४ 7+ है» 2< है न ५2५०४ 3०४० -++ 3 हे 0 ६ ९ 4४३६ 
२8४४४ ८८५०४, >< ०“ ४०५० $ »पऐे न #, हैन॑- कक ०४०४ 
०३-४४ ०००६. ८ ४-० ४४ ७.४३ +- ) 3 न ४.४ ३ ३४३४ 
०५८2,० ३ 7२०४ »< ० न ५०.०४ ० 0 ७ ९०४९५ ५/०६ 
८४. ८ $ ++४०४६, 2< $ + ५०.९३ ०४४०८ ै 8-० ०.४३ १2३४ 
8०,९७३ ८८०६, >( ७ - ४-०३ ४.०९-- अर टैज- ३००३ . 32 3% 
५४.३४ $ 5२५०६. 2 ६ - ०.६३ 3 ०है-- है ध्णः 0८ ३ ४४३४ 
(3) (४) (») (४६) (८) (३) 
( ६ 02 (7४३/ (892प0 

(>षण30 9प०977) ><८ "0० ) (एश्थाज8 | शूएएप्प प्पठाद | 2४०१2 ए| | (:89/) 
६ ४४५... पणाणु5००) | पएण्गाणु4००) | एण१०पए०४५) | * ७ 
2७8-2|०१& >< ४ #४|५ | [80४ % |॥2/2/०2] 202०९ (॥ शान आफ) | है 

है ६४-॥४3॥१ (22४२९ _ 


























३२६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उपनति रेखा के कॉलम ६ में दिए गये मूल्य निम्नलिखित रूप से शञात किए 
गये हैं । 


(१) उत्पादन संख्याश्रों का समान्तर मध्यक निकाला गया। यह मध्यक 


८८६ *५ ५ 
+एु 5१२८ करोड़ आस । यह सर्वोत्तम अन्वायुक्त रेखा (76 0६ 9८४ 


50) का मध्य विन्दु है । द 

(२) मध्य वर्ष से अन्य वर्षों का विंचलन निकाला गया है। यह कॉलम संख्या 
३ में है। और इन विचलनों का वर्ग कॉलम संख्या ४ में दिया गया है। 

(३) कॉलम संख्या २ में दिए गये उत्पादन अंकों को कॉलम संख्या ३ में 
दिए हुए विचलनों से गुणा किया गया और उनका योग मालूम किया गया। यह 


कॉलम संख्या ५ में दिया गया है | 


(४) कॉलम संख्या ५ के योग को कॉलम संख्या ४ के योग से विभाजित 


किया गया । यह संख्या ( ्प्य ल'रे८ ) उपनति की प्रति वर्ष माध्य वृद्धि 
(४२८:०४८ 47072956) बताती है। 

(५) कॉलम संख्या २ का समान्तर मध्यक ( १२८ ) मध्य वर्ष अर्थात्‌ १६४८ 
के सामने कॉलम संख्या & में रखा गया है। उपनति की अन्य वर्षों की कोटि मालूम 
करने की रीति कॉलम संख्या ६ में स्पष्ट है। मध्य वर्ष से पहले वर्षों की उपनति कोटि 
१२८ से कम और मध्य वर्ष से बाद वाले वर्षों की उपनति कोटि १९८ से अधिक 
होगी ओर प्रति वर्ष इन संख्याश्रों में "३८ ( करोड़ औंस ) का अन्तर होगा । यदि 
माध्य वार्षिक वृद्धि (३॥070प० ३ए०४४४० 47८:८४४८) जो कि इस उदाहरण में 
-+-'रे८ है, ऋणात्मक होती तो मध्य-वर्ष से पहले वर्षों का उपनति मूल्य मध्य-वर्ष के 
मूल्य से अधिक होता ओर बाद वाले वर्षों का कम | इस श्रेणी ओर उपनति रेखा को 
चित्र-संख्या ३ में दिखाया गया है। 


काल-श्रेणी का विश्लेषण ३ २७ 


बिश्ब में सोने का उत्पादन 





-* 
८ 
| 


नल 


हर 
। 

“ 
सिह 


प्र के ४ हा ५ मद | >े वन रु यू 
है हि “आप हे ण््ड घ्‌ ्‌ प्च्चु पक १ हूँ ८ ४ द्ू हु पु है ध्व जुक न, 
श 


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ह्ोके 
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डिक 
हक 








उत्पादन(करौड़ श्रौंसों में) 


न्च्कि 
ज्टपे 








- अधन्किटक 
8 
































चि० सं० हे 
अल्पकालीन उच्चावचन 
( 8707-760700 ए]|प८४००८४०078 ) 

अल्पकालीन उच्चावचनों का प्रथक्करण करने के लिए काल श्रेणी में से 
सुदीर्घकालीन-उपनति का निरसन कर दिया जाता है | जैसा बताया जा चुका है, अत्येक 
काल श्रेणी के चार संघटक हो सकते हैं, जिनके योग से वह बनती है। अगर इसमें 
से सुदीर्घकालीन-उपनति-मूल्य घण दिए, जायेँ तो जो बच जायगा बह इस उपनति- 
मूल्य से सामग्री के अल्प-कालीन उच्चावचनों को बताएगा । 

सारणी सं० २ में दी गई सामग्री के लिए अल्पकालीन उच्चावचनों की गणना 
उदाहरण (४) में दी गई है । 
उदाहरण ४ 

निम्नलिखित सारणी में वर्षों, वार्षिक अ्रेकों ओर संगत चल माध्यों को दिखाया 
गया है ( देखिए, सा० सं० २, कॉलम, १, २ ओर ४ ) 





३२८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


























सारणी संख्या ४ 
वर्ष वार्षिक अंक पाँच वर्षीय उपनति (चल-माध्य) 
पं चल-माध्य.. सि विचलन (कॉँ २-कॉ३) 
(३) (२) (३) (४) 
१६२० ह २२४ गा 
२१ २१२५ न --+- 
२२ २०१ २१३ -+१२ 
र्रे २९५ र्श६्‌ न हें 
२४ २२३ २२४ न २ 
२५४. र्ड५ श्र६ + १६ 
२६ २३५ २३२ न रे 
२७ २२५४ २३७ जा ररे 
र्प २३३ २४९१ ने पे 
श्&६्‌ २४६ २४६ न रे 
३० . रदृ५ २५१ न १४ । 
३१ रफप्६्‌ | २५२ न ७ 
३२ .. रण २५६ -+ ७ 
डरे २४१ २६० न १६ 
रेड २६९४ २६३ जी रे 
३५ २८५ २६६ न १६ 
३६ २७५ २७० न ५ 
३७ २६५ २७२ --+ ७ 
रेप रह २७४ >--१५ 
३६ २७५ २७७ --+- २ 
' ४० २६७ २८० .. +१७ । 
हू... र्प६ जी आओ रस्टा३े न ५६ 
४२ २८१ २८७ -- ५ 
४३ .. २७५ २६१ --१६ । 
डेढ़ २६५ २६४ न १ 
४५ ३१५ न  नन्‍ीत+ 
४६ ३० न नमन 




















कॉलम (४) में दी गई संख्याएँ कॉलम (२) में दी गई राशियों में से कॉलम 
(३) की राशियों को घट कर मिली हैं| इसमें चिह्मों को. भी रखा गया है। ये संख्याएँ: 
अल्पकालीन ग्रदोलों ,09०]]20४079) को बताती हैं। इनका चित्रण चित्र सं० (४) 
में किया गया है। द 


काल-श्रेणी फा विश्लेषण ३२६ 


२० ये 















































१+-+ ००००० 














>> 
आर धया इ 
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३७०८ 
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(*०कऊ 3.०० न 











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हे! 
























































































































































“$+-+- हे +. +-+ 
शा“ जा मी आआब न ज्-हत ६-3 --- $- 




















१९३१० २२ २४ २६ रेट ३० ३२ ३४ २६ ३८ ४० ४२-४४ “४६ 
चि० सं० ४ 

यहाँ पर ज्ञातव्य है कि जो संख्याएँ कॉलम ४ में दी गई हैं या संलग चित्र में 
दिखाई गई हैं वे अल्पकालीन उच्चावचनों (590:£८ ४४8० 8० ८ए०४०४७) (आतंव 
ओर चक्रीय, दोनों) ओर अनियमी उच्चावचनों (0722प४7 £[एलपद्नत079) 
का मिश्रण है | इनमें केवल सुदीधकालीन उपनति (]0778-८6८७ ४छटथ्यते) का 
निरसन किया गया है। 

अल्पकालीन उच्चावचनों के विभिन्न संघटकों को काल श्रेणी का विश्लेषण 
करके नापने की रीतियाँ आगामी अनुच्छेदों में बतायी गयी है । 

(क) आतंब-उच्चावचन की माप (](९४४प:८०४८०४ 0 $९48074]: 
एप्रलापद्रा009).... का 

तीन मुख रीतियाँ जिनके द्वारा आतंव उच्चावचनों की माप की जाती है, 
निम्नलिखित हैं : क्‍ 

(१) आततंव-देशनांक की रचना करने की मासिक-माध्य रीति (77670व ०६ 


700707ए 3ए९722८$४ 0 ८077ए०6 2 5698079/] |7065) । 


३३० सांख्यिकी के सिद्धान्त द 


(२) आतंव-देशनांक की रचना करने की चल माध्य-रीति (6४४०१ ०६ 
४0फ0॥792 27९67928९8 [0 20709006 8 $89$5074 वंग्रत65५) | 


(३) श्ड्डूलानुपातों की रीति (800000 ०0£ ]07 7९]8४४८४) | 
(१) पहली रीति--इसकी प्रक्रिया के ४ भाग किए. जा सकते हैं । 


(श्र) प्रत्येक वर्ष के लिए एक से महीनों के लिए दी गई संख्याश्रों का योग 
मासिक योग ) ज्ञात करिये। जैसे सारणी (५) में जनवरियों, फरवरियों आदि का 
योग कॉलम (७) में दिया गया है । 

(आ) इन योगों को वर्षों की संख्या से विभाजित करिये, जिससे जनवरी 
'फरवरी आदि के लिए माध्य ( मासिक-माध्य ) ज्ञाव हो जायगा। (सारणी ५ 
कॉलम (८) )। 

(इ) मासिक योगों के माध्य की गणना करिये | इसकी गणना या तो मासिक 
योगों के योग को १२ से विभाजित करके की जा सकती है, या मासिक-माध्यों के योग 
को १२ से विभाजित करके | ( सारणी ५ अंतिम पंक्ति ) | 


(६) प्रत्येक मासिक माध्य या योग का मासिक माध्यों या योगों के माध्य से 


प्रतिशतता अनुपात ज्ञात करिये। मान लीजिए हमें जनवरी के लिए प्रतिशतता की 


जनवरी के लिए मासिक माध्य 


मासिक माध्यों का माध्य 

अ्रथवा -- जनवरी के य मासिक योग ५ १०० 
.... मासिक योगों का माध्य 

यही प्रतिशतता आतंव-देशनांक है ओर आतंव उच्चावचनों को नापती है। 


६ सारणी ५, कॉलम ६ ) 





गणना करनी दहै। यह प्रतिशतता - 


१०० 





रे३े १ 


कालू-श्रेणी का विस्लेषण 



























































०.०० 3038 | 279. | शी 

०.००८३ 5.३ 0६८ 2578 ४ (0: 
४.४३ ३४ ०४४ ३६३ ३ इउप्ना रइशा ६5४४४ 7४ | »»७ भ्शु 
3०8४३ ५०४३ ५३०8 ०3८ । ४४० | छेटेणे | ९०३3 | ४५९ 28५४० 
७००३४ 2-8३ ९ ३४५०३ ५2४ | ०६४ | १८ | है2३ | छेटे३ २०१४७) 
>%«३ ०३ #ऋ००८ ०००९५ ५) ००८ | ०३४९८ | ६०९ ०्ट्टे शलररे] । 
०,०५३ 3-४3 9४» पे | ०३0 | फे० ४ | फैठे३े | छेटेे फत< | 
४.८३ ०५८28 ०३३ ग्फेन | ३०४ | ६४४ | छैेणे | हैं)४ झाओेडि. 
2.23 #७०2३४, ०ट्टे३ ध्भणट | ऐे०्टे | हैग०्८टे | 9४३ | ४३३३ मु 
3.८४ ०६23 क३ ७ ०५ | डऐेड्रेड | ४० | ०#डे | ४३४ ड्डत 
6५ ६ ० ७७ ग26 350९३ श्र्ख ०९०८ 3०४७ ६५३४३ ३१३ ॥0[7& ! 
६०9३ #%०३४ ८४ ०्भेणे | भैषेटे | ००८ | »४३४ | ४ ८३ छत. 
४००३ ५० ७३३ ५०३ ४८ | कटे | 3३०८ | ३8४३ | ४०९४३ ४४% 
6 «33 ००6३३ भ23 ६90९ 2६८ 72०४ ४४९ ३ ६९ |;।४।०॥५ 

छः (2) (0) ५ पः (0) | (६ (७) | ५ प्र 
मी | ४ |३ है ) | 2 | ४ | ग् ; | 5४ ब ) र क्‍ 
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३३२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 























































































































































































































































































































१२० धातव_ देशेर 
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चि० सं० ५ 


कॉलम ६ में दी गई संख्याएँ आतंव उच्चावचनों के स्वभाव बताती है। इन्हें 
चित्र के रूप में रखने पर शीम्रतापूषक और सरलता से आतंव उच्चावचनों को जाना 
जा सकता है | अर्थात्‌ यहं जाना जा सकता है कि किस महीने में प्रदोलों की महत्ता 
कितनी है (देखिए चित्र सं० ५) 


इस उदाहरण में केवल ५ वर्ष लिए गए हैं, पर व्यवहार में इससे अधिक 
वर्ष लिए जाते हैं जिससे चक्रीय उच्चावचनों का. प्रभाव आतं॑व उचद्चावचनों पर 
नपड़े। 


(२) दूसरी रीति--इसकी प्रक्रिया निम्नलिखित हैं : 

(अर) सामग्री के लिए, चल माध्य ज्ञात करिये । 

(आ) वास्तविक सामग्री के प्रत्येक पद को संगत चल माध्य की प्रतिशतता के 
रूप में रखिये । 

(३) इन ग्रतिशतताओं को सारणी में विन्यसित करिये और प्रत्येक महीने के 
लिए मासिक-माध्य ज्ञात करिये । 

(३) इन मासिक माध्यों के माध्य की गणना करिये | 

(उ) मासिक माध्यों को, इनके माध्य को आधार मानकर बनाए गए प्रतिशतता- 
नुपातों के रूप में रखिये | ये प्रतिशततानुपात आतंव-देशनांक हैं । 

सारणी सं० (६) में इस रीति को स्पष्ट किया गया है 


श्३३ 


काल-श्रेणी का विदलेषण 


सारणी संख्या ६ 









































"कामना, 


/॥पृगर0प्प 53) : 
473॥9 28 42(90॥ ८४ 


हे 
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5प्राप्राध्पपरशू) -- को व को की गे टच के उाे ० 9० का हट ७ ८ 722 0४ 
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| ग 
(एग्गणूस्औ.. व्यय वाद 
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२२० 
२३७ 
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२६१ 
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२४४ 
२४० 
२५३ 
२५० 
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२६९ 
२८५ 
२९० 
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२०१ 





सांल्यिको के सिद्धान्त ' 


१९३. 
१९६ , 
१९९, 
२०२, 
२०४, 
२०६. 
२०८, 
२११. 
२१३. 
२९५. 
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२१७. 
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२२३. ५ 
२२६. 
२२८, 
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न १५,२ 
न २३.९ 
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फाल-श्रेणी का विश्लेषण ३३५ 


आतंव विचरण जानने के लिए कॉलम (४) में दी गई सामग्री को निम्नलिखित 
रीति से विन्यसित करना पड़ता है 


























































































































































































































सारणी सं० 
हि आतंव-विचरण 
उपनति से विचलन (5९2500% प4४०- 
मास ([02ए३७४008 ६£073 4+€४0) (079) 
(कोँ ० र्‌, ३, ४, हक दर 
१६३६ | १९३७ | १६३८ | १६३६ | १६४० का माध्य) 
__ (१) (२) | (३) (४) | (५४५) | (5) (७) 
जनवरी न २२ |+१४७० |+7२०"४ |+२२० + १५४०२ 
फरवरी ना 2० १३४४३ |+ १९० [7६० न ९ ३*६ 
मार्च - ६० न ७४ |+ ७"५|+ १६० न ३९ 
श्रप्रल - ११०० १४०० ०४- ६० | - ४०४ 
मई - ६० |- रे ०(- ९९० |- १७५ - ६६ 
जून “ ह३० +- रे!०- १७४ |- ७२ - ७'८ 
जुलाई (- १४४ - १३४ |- १४४ | - २५४/० - १७'१ 
अगस्त |- ६९०० |- ६४(- ६९० -- १८० “ ९१ 
सितम्बर |-- १९० [-- ३९५ - ईे*० - १०१० + ४४ 
अक्टूबर ०० नी २० नी ६० नी ४० न ३ रे 
नवम्बर |+-१०"४ + १२९० |+ ७४ न ७० न ४३ 
दिसम्बर -- १०१० न ९० +- ४० + ३*० ___ ८ 
४० || | | | कॉलि : | | । 
॥$ | | उपभति | | ५ 
ब्‌५० ड्ल ड्ु ' 
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हु भा भू सि दिमा जू सि दिमभा जू सि दिभानूू सिदिमाजूडि दे 





3३६ सांड्यिकी के सिद्धान्त 


झावव उचावचन 

























































































































































































































































































































































































































































































हांष उच्चावयन 
8 | | डर 
यि का 7 । 
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कक पाक 
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ह जय है 
श्थु है है पु हर 
ः बी ति न्‍ र हि ६ है हि ॥ हे हैक ध 
मा मु सि दिया जूफिदिशाजूपिदिमाओज्‌सिदिमायूसिदि 


'चि७०्संगछ क्‍ 
सारणी संख्या ६ में कॉलम ४, ६ ओर ७ में काल-श्रेणी के ३ संधटक दिए. 
गये हैं । चित्र संख्या ६ में काल-श्रेणी और उसकी उपनति रेखा दिखाई गई है। चित्र 
संख्या ७ में इस काल-श्रेणी के आतंव-विचरण ( 5245074| ए०४79६07 ) और 
अनियमी उच्चावचन (॥7768प४४ £ए८८प५४४०४७) दिखाये गये हैं | इसमें आत्तंव- 
श्रेणियों के आवत्तिक स्वभाव ओर शेष-उच्चावचन का स्वभाव स्पष्ट हो जाता है। 
आत्तंव-देशनांक की गणना उसी प्रकार की जाती है जैसे पिछुली रीति में । जैसे अगर 
'हमें जनवरी के लिए आर्त्तव-देशनांक को ज्ञात करना है तो पहले जनवरियों के वास्त- 
विक उत्पादन को जनवरियों के संगत चल-माध्य के प्रतिशत के रूप में रखा जायेगा | 
१४५४ 
क्‍ क्‍ ४२९५ 
अकार अन्य जनवरियों और दूसरे महीनों के लिए, मी ये प्रतिशतताएँ: निकाली जावी 
हैं। इन प्रतिशतताओं को सारणी संख्या ७ की भाँति विन्यसित कर दिया जाता है 
ओर प्रत्येक महीने की प्रतिशतताओं का माध्य निकाल लेते हैं। इन माध्यों को इनके 
साध्य की प्रतिशतता के रूप में रखने पर आत्तेब-देशनांक मालूम हो जाता है। 
(३) तीसरी रीति : इस रीति द्वारा आत्तव-देशनांक जानने की रीति निम्नलिखित है 
(साथ में सारणी संख्या ८ भी देखिये ) | 
: (क) प्रत्येक कालावधि ( मास, त्रिमास आदि ) के अंक को उससे पहले की 





यथा, जनवरी १९३७ के लिए. यह प्रतिशतता -- ४७२-५ “+ १००८१०१७ | इसी 








२१ काल-श्रेणी का विस्लेवण ३३७ 


कालावधि के अंक से विभाजित करिये ओर इस भागफल को प्रतिशतता के रूप में 
रखिये | ये प्रतिशतताएँ ही ंखलानुपात (६ 7०)४४४४८७) कहलाती हैं । 

(ख) प्रत्येक कालावधि के लिए ग्रात्त अह्डुलानुपातों का माध्य निकालिए | 

(ग) इन माध्यों के लिए. फिर प्रथम कालावधि को आधार मान कर श्छुला- 
नुपात (८09॥7 #+८!७४२८) निकालिए | 

(घ) तत्पश्चात्‌ अन्तिम कालावधि को आधार मानकर प्रथम कालावधि का 
आछूलानुपात निकालिये। इस प्रकार जो प्रथम कालावधि का श्वद्भलानुपात निकलेगा 
वह प्रथम प्रकार के शछ्ुलानुपात से मिन्न होगा | इसका कारण सुदीर्घकालीन परिवर्तन 
आदि हैं। अ्रतणव, इन शख्ञलानुपातों में कुछु संशोधन करना पड़ता है। 

(ड) संशोधन (००::४८८४०४) के लिए पहली प्रकार के, पहली कालावधि के 
श्डुलानुपात को दूसरी प्रकार के पहली कालावधि के शज्जलानुपात में से घटाया जाता 
है | घटाने से प्राम अक् को कालावधियों की संख्या से विभाजित किया जाता है और 
इस भजनफल को १ से शुणा करके दूसरी कालावधि में से, २ से गुणा करके तीसरी 
कालावधि से और इसी प्रकार अन्य कालावधियों से घवया जाता है। यही संशोवित 


अडुलानुपात हुए । 
' (च) संशोधित »इलानुपातों को इनके माध्य से विभाजित करके और १०० से 


शुणा करके आत्तव देशनांकों ($295072] 470025$) की गणना की जाती हैं। 
निम्नलिखित उदाहरण से यह रीति स्पष्ट हो जाएगी । 


सारणी संख्या ८ .॒,, 
त्रैमासिक अंक 

















त्रिमास १६४० १९४१ १६४२ १६४३ १६४४ 
१ ४ | अ् ४"९ . पत्र ६*० 
२ ५*४ ४६ ६३ ६९५ ७१० 
रे ७'२ ६* ३ ७० छष्प्‌ प्पड 
है ६९० ५*६ .. ६*५ ७'२ ७७ 










































































हे रेप सांख्यिकी के सिद्धान्त 
इनके श््जलानुपात निम्नलिखित हुए । 
यर्ष त्रिमास [.१ २ ३ ४ 
१६४० ००० १२० १३२ प्परे 
१९४१ ब्र्ण ११७ १३३ ध्यह्‌ 
१६४२ प्प्द १२६ १११ ६२ 
१९४३ ८० १२५ ११४ ६६ 
१६४४ प्य्रे ११७ १२० ७६ 
5 सा मध्यक ८२२८ १२१६ १रैंए ४ | पते वर मब्यय | दर-८घ। रा श्दाड | दा 
शय्डुलानुपात १०० (१००%१२१९६ १२१९८ ११८९४ १४२९६ ८ ८८ 
(९7५7 ९०० १००३ १५०० 
:2]2ए८8) न्+१२१*६। £-१४३*६ ++१२६'६ 
शोधित हु १०० (१२१६-१२ | १४३"६- २"४ [१२६६ - ३*६ 
(20#6८060 न्‍+१२०"४ -८5 १४१९४ न्‍्+रेरे 
८7277 ॥626ए85) 
6 देशनां ७ ०१ ४१९५ १२३९० 
आतत्तव देशनांक. | १९ रे ४ ३०० ०. 2८१०० ० ढ 
(82950709॥ १२१२ ६६ १२१२ १२१९२ 2६०० । 
90|८८8) ६६४ न्‍ूी१६"७ , 5-२१०१"३ 








उपरोक्त सारणी में संशोधन के लिए प्राप्त संख्या निम्न प्रकार निकाली गई है : 
प्रथम कालावधि के आधार पर ; क्‍ 


प्रथम कालावधि का शड्न्‍लानुपात 


घ्६१०० 


अंतिम कालावधि के आधार पर : 


पथम कालावधि का शइ्ुलानुपात 


__ पर '८><८ १२६९६ 





१०० 


| बन १०४ 'ट्य 
इस प्रकार इन दोनों “शछ्ूलानुपातों का अंतर" (१०४'८- १००) ८८४*८ 


ल्‍् है 
इनका ब्रैमासिक अन्तर ( (95 १"र। 


आत्तव देशनांक निम्न प्रकार निकाले गये है : 


काल-श्रेणी का विश्लेषण ३३९ 


संशोधित शड्ूलानुपातों का माध्य 


००-+१२०'४--१४१४-- १२३ 
_ न न्‍ १४--१ २० ३२१२ 





संशोधित श्डलानुपात >< १०० 
श्स्ए्र्‌ 








आत्तेव देशनांक +« 


चक्रोपय और अनियमी उच्चावचन 


(एटॉटब 250 7762047 गीपटाप:075$ 


चित्र सं० ७ में शेष उच्चावचन दिखाए गए हैं। ये उच्चावचन दो प्रकार के 
संघटकों से बने हैं : चक्रीय उच्चावचन और अनियमी उच्चावचन | इसलिए इन्हें 
चक्रीय-अनियमी उच्चावचन भी कहा जा सकता है। चक्रीय उच्चावचनों और आतंव 
उच्चावचनों में यह अन्तर है कि पहले की अवधि अधिक (वर्षों में) होती है। जैसा 
चित्र संख्या २ में देखकर शात होगा, इसमें लगभग ५ वध के बाद एक उच्चतम 
बिन्दु आता है | इस तरह यह जाना जा सकता है कि इस काल श्रेणी के लिए चक्र की 
अवधि पाँच वर्ष है। अगर इस काल श्रेणी के लिए मासिक अंक ज्ञात होते, तो इसमें 
से सुदीर्धकालीन उपनति ओर आतंव उच्चावचनों का निरसन करके चक्रीय अनियमी- 
उच्चावचन मिल जाते। इन चक्रीय-अनियमी उच्चावचनों में से चक्रीय उच्चावचनों को 
अलग करने की कोई भी सर्वमान्य रीति नहीं है। पर कुछ हृद तक इन अनियमी 
उच्चावचनों को चक्रीय अनियमी श्रेणी का चल माध्य लेकर कम किया जा सकता हे। 
ऐसा करने से चक्रीय-भेणी अधिक प्रधान हो जायगी | चल माध्य की अवधि दो बातों 
पर निर्भर रहेगी : (१) इस सामग्री की अनियमितता और (२) वक्र का सरलन कहाँ 
तक किया जाता है | सामग्री जितनी अधिक अनियमी होगी, चल माध्य की अवधि 
उतनी ही बड़ी होनी चाहिए.। पर अ्रगर यह अवधि बड़ी होगी तो वक्र बहुत सरलित 
हो जाएगा | समस्या इन दोनों के बीच उचित संतुलन स्थापित करने की है जिसको 
विषय वस्तु के अध्ययन के उद्देश्य से ही हल किया जा सकता है। 


जहाँ तक अनियमी उच्चावचनों की बात है, इनका अ्रध्ययन करने की कोई रीति 
नहीं है | स्वभावतः अनियमी होने के कारण इनके बारे में कुछ नहीं जाना जा सकता | 
काल-श्रेणी में से उपर्युक्त तीन प्रकार के संघटकों का निरसन करके जो कुछ शेष रहता 
है, वह अनियमी-उच्चावचन दिखाता है। चूंकि इनमें किसी भी प्रकार को निश्चिववा 


२४० द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


नहीं इसलिये वास्तविक जीवन में महत्वपूर्ण होने पर भी (क्योंकि ये अन्य नियमी परि- 
वर्तनों को जन्म दे सकते है ) इनका सैद्धान्तिक अध्ययन नहीं किया जा सकता | 


प्रश्नावली 


(१) कात्-श्रेणी विश्लेषण' के ऊपर एक संक्षिप्त निवन्ध लिखिए । 
(एम० ए०, पटना, १६४४) 
(२) काल श्रेणी के विश्लेषण से आप क्या समभते है, स्पष्टत 
समम्ाइए | इस प्रकार के विश्लेषण का व्यापार के लिए क्‍या महत्व है ? 
(बी० कॉम, लखनऊ, १६४४) 
(३) काल श्रेणी के विश्लेषण के लिए आप कोन सी सांख्यिकीय रीति 
प्रयोग में लाएंगे तथा यह भी स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार आप सुदीधकालीन 
प्रवृत्ति को अलग करेंगे । 
(एसम० ए०, पटना, १६४४) 
(४) संक्षेप में बतलाइए कि आप ४० वर्षों से अधिक के मासिक 
उल्लेख-मालाओं का विश्लेषण किस प्रकार करेंगे | 
(एस० ए०, इलाहाबाद, १६४४) 
(४) 'उपनति” से आप क्या सममते हैं ? किप्ती माला के दीघेकालीन 
उपनति पर आत्तव तथा चक्रोय उच्चावचनों का क्या प्रभाव पड़ता है ? 
( बी० काम०, बम्बई, १६३६ ) 
(६) कात्न श्रेणी के विश्लेषण के लिए चल्न-माध्यों की पद्धति की विशेष- 
. ताए तथा कमियाँ बतलाइए | 
( एम० ए०, दिल्ली, १६४३) 
(७) (अर) एक काल-समाला में आये हुए नियमी तथा अनियमो उच्चा- 
बचनों में भेदकरण कीजिए | 
(ब) काल-विचरण विश्लेषण (7०ए.$ ०६ धं्ा& एथ॥2007) 
की महत्ता पर एक छोटी सी टिप्पणी लिखिए । 
(एम०, ए० पंजाब, १६४२) 
(८) स्पष्ट कीजिए कि आप एक काल-माला पर किस प्रकार विचार 
करेंगे। अपने विचारों की पुष्टि निम्नलिखित साला, (जिसमें १६०१ से १६३० 
तक की अवधि के वार्षिक मूल्य दिए हुए हैं) से कीजिए । 








. काल-श्रेणी का विश्लेषण ३४१ 





अवधि वार्षिक मूल्य 











१९०१---१९ १० २००,२२३,२९२८,२२२,२३६,२४२,२ ३८,२५२, २५४७, २४० 





१६११--१६२० | २७३,२७०,२६८,र२८८, २८४, २८२,३००,३०३,२९८,३१३ 








१९२१--१९३० २३१७,३०६,३२६,३३३,३२२७, ३४४, ३४४, २४१२, २६२,३६० 





(आई० सी० एस०, १६३६) 
(272८0८४ 2/0/9]87058 40 350&050८5 7२०. 222) 


(६) काल माला के विश्लेषण में चल माध्यों के प्रयोग को स्पष्ट कीजिए | 
निम्नलिखित कातल्न माज्ञा का चल-माध्य निकाज्िए | 


























वर्ष मूल्य... वर्ष... मूल्य 
१५०१ ५०६ १११ १श्द्६्‌ 
१०२ ६२० ११२ प््श््य 
१०३ १०२६ | श्१२ ७४५ 
१०४ ६७३२ ११४ ८४५ 
१०५ प्रप्य्८ ११५ १२७६ , 
१८६ ६६६ ११६ ल्प्८ 
१०७ श्श्श्द्‌ . ११७ ८१४ 
श्ण्टर ज्श्द श्श्य् हध्र€ 
१०६ २६३ ११६ १३६० 
१५० 9७७ १२० ६६१९ 
१२१ ६२६ 

















(?:६८६८४ ?2४009]6705 70 9#&(8008 +४०., 222) 


(१०) निम्नलिखित सारणी में इंगलेंड तथा वेल्स में बच्चों का 
मृत्युअघ (एक वर्ष से कम उम्र के, प्रति १००० जीबित पैदा हुए बच्चों 
में से मरने वाले बच्चे) दिया हुआ है। इनका पंचवर्षीय चत्न माध्य निकालिए 
और इस प्रकार से प्राप्त चल्न साध्यों का फिर पंच-वर्षीय चल-माध्य निकालिए । 


२४२ 












































सांख्यिकी के सिद्धान्त 
हज मृत्यु अर्थ | वर्ष मृत्यु अर्ध। वर्ष मत्यु अर्घ वर्ष | मृत्यु अर्घ 

१५९२२ | ७७ | १९ए८ | ६४ | शृह्३४ | ५६ | १६४० प 9 
१६२३ । ६६ १९२६ ७४ १९२५ १७ १६४९१ ६० 
६२४ | ७५ १९३० | ६० १९३६ ५६ | १९४२ १६१ 
१६२४ , ७४ | १६३१ | ६६ | १६३७ | ५८ १६४९ ४६. 
९९२६ | ७० | १९३२ | ६४७ | १६३८ | ५३ १६४४ ४५ 
२६२७ ३० १९३३ ६४ १६३६ ९ १६४५ ४६ 

१६४६ ४३ 





(072८८८३४॥ ?700९775 ॥7 3909(500८8 +४०, 224) 


(११) निम्नलिखित सारणी में, बम्बई में सन्‌ १६१६ से लेकर १६४० 
तक के अधिकोष-निष्कासन (94277: ८८०४८४725) दिए हुए हैं। उपनति 





























बदलाहए। 

कि लक मम निष्कासन अधिकोष नि न्‍्ण 

वर्ष जी व्षे में 

| (दस लाख रुपयों में) ड़ (दस लाख रुपयों में) 
१६१६ चर १६२८ १००,७ 
१९१७ ७६४ १६२६ ६४६ 
१६१८ ७६ रे १६३० ८२३९० 
२६९१९ ६६९० १९३९१ ११०'८ 
१६२० ६८६ १९३२ १५९९६ 
१६२१ ६३९८ १६३३ . १७७*४ 
१६२२ १०४*७ १६३४ १७८९६ 
१५६२३ ८७'२ १९३५ २३५*८ 
१९२४ ७९*३ १९३६ २४३"२ 
१६२५ १०३९६ १६२७ १६४*४ 
१६२६ €७'३ १६३८ २१७*७ 
१६२७ . ६२४ १६३६ २१४९० 
१९४० २५६*७ 





(बी० कॉम०, इलाहाबाद, १६४३) 
(?72८:९३ 020776705$ 47 502/50८5$ ०. 226) 





फाल-श्रेणी का विश्लेषण .. ३४३ 


(१२) निम्नलिखित सारणी से जिसमें गेहूँ के मूल्य देशनांक (१८६३८ 
१००) दिए हुए हैं, दस-वर्षीय चल-माध्य लेकर उपनति मूल्य निकालिए और 


उपनति से अलग किए गये अल्पकाज्ीन उच्चावचनों को विन्दुरेखीय रूप में 
प्रदेशत कीजिए । 





























वर्ष वाषिक माध्य वर्ष वार्षिक माध्य 
१६०६ * १५४ « १९९८ २७० 
१६०७ श्ध्प्प १९१६ रे४१ 
१९०८८ २२६ १९९२० ३१० 
१६०९ २०३ १९२१ ३६० 
१६१० ५१७० १५९२२ ३५१५ 
१६११ श्परे १९२३ २४५८ 
१९१२ १७० १९२४ .. २४६ 
१९१३ २१७७ १५६२५ २६४ 
१६१४ २०० १६२६ र्प१ 
१६१५ ... २२७ १६२७ २६७ 
१९१६ १६३ २६२८ २६४ 
१९१७ _२०५_ १६१६ २६२ | 








(एम० कॉम ०, इलाहाबाद, १९४४) 
(?+३८प४८३ ?209]67705 0 5&05705 7४०. 227 ) 
(१३) निम्न सारणी में चीनी के मिल का उत्पादन (हजारों मर्नों में) 
दिया हुआ है । ह 








वर्ष जा ( हजार मनों में ) 
१६४१ ८८० 
१९७४२ ६० 
१६४३ ६२ 
१६७४४ प्परे 
१६४५ ६४ 
. १६४६ ६६ 








१६४७ द ध्र्‌ः 








३४४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(अर) इन अंकों से अल्पतम' वर्ग रीति से उपनति मूल्य ज्ञात करिये। 
(ब) इन अंकों को विन्दुरेखीय रूप में प्रांकित कोजिए और उपनति 


रेखा भी दिखलाइए। _ हर 
(स) इन रेखाओं की उपनति बढ़ती हुई है या घटती हुई ! आप निर्णय 


पर किस प्रकार पहुँचेगे ! (एस० कॉम०, लखनऊ, १६४०) 
(?+4८६८४स ?/07]९70705 ]7 504780८8 7६४०. 228) 


(१४) अल्पतम वर्ग रीति के द्वारा रिजर्व बेंक आफ इंडिया की पौंड 
सम्पत्ति (527]772 29556) का उपनति मूल्य ज्ञात कीजिए | 








जज पोंड सम्पत्ति (हजार रुपयों में) 
१६३६--३ ७ < रे 
१४३७---२३८ । ९२ 
१६३८--३६ 9९१ 
१६३६--४ ० ९०७ 
१९४०---४ ९ ५६६ 
१६४१--४२ १६१ 











(72८0९४॥ 0700]67098 .[0 508/9005 ४0., 229) 

(१४) निम्नलिखित सारणी में एकानामिक एड्वाइजर (77८00707/70० 

007२१5८४) के वस्तु-वर्ग (भोजन तथा तम्बाकू) का मासिक देशनांक दिया 

हुआ है । अल्पतम-वर्ग रीति के द्वारा उपनति ज्ञात कीजिए । १६ अगस्त, 
_१६३६ के साधाहिक मल्य+-१०० ______ 





























माह देशनांक माह देशनांक 
१६४१ १६४२ 
अक्टूबर १२७४ जुलाई १५५ 
नवम्बर १२७६ अगस्त १५८८७ 
दि्सिम्बर १२७'५ सितम्बर १६१*० 
१६४२ अक्टूबर १६७'२ , 
जनवरी 47० नवम्बर १७२४ 
फरवरी १३२३ द्सिम्बर १७८४ 
माच १३०९५ १६७४२ 
अपल १३६'५ जनवरी | शध्गाद 
मई १४४०७ फरवरी २७०*० 
जून १४२*३ 


























काल-श्रेणी का विश्लेषण 


३४५, 


अल्पतम बे रीति द्वारा उपयुक्त सामग्री का उपनति मूल्य ज्ञात कोडिए , 
तथा इस उपनति मूल्य को विन्दुरेख में प्रदर्शित कीजिए 
(एस० कॉम ०, लखनऊ, १६४४ ) 
(?#१८४८॥ ?+079]6778 470 50808008 7२०. 230) 

(१६) निम्नलिखित तापमानों (फारेनहाइट में नापे गये) से अल्प- 
कालीन उच्चावचनों का अध्ययन कोजिए | 




















दिन तापमान द्नि तापमान 
हे १ ४० ११ ७८ 
र्‌ ५० १२. ८० 
डरे डे १३ ६० 
हि ७० १४ ६४ 
कु पर ५५ जु२ 
६ डड १६ ६८ 
७ ३६ १७ ८६ 
प्र ड० १८ हद्‌ 
&्‌ ५६ १&€ ९४ 
१० ६८ २० ७८ 




















किस प्रकार एक काल श्रेणी में आत्तेव उच्चाव 


वर्ष 


>फो #६ छा ्प न्क । 








( बी० कॉम ०, इलाहाबाद, १६४२ ) 
( ?72८0८४ ?709]2005 470 5६04787९८$ २०. 237 ) 
(१७) निम्नलिखित सामग्री का प्रयोग करते हुए स्पष्ट कीजिए कि आप 


चनों को ज्ञात करेंगे। 








३० 
३३ 
डर 
मर 
६७ 








ग्रीष्म मानसून 


ध्शा 


१०४ 
१४१ 
१७२ 
२०१ 

















हेमन्त जाड़ा 

६२ ११९ 

८६ १७१ 

६६ २२१ 

१२६ २२५ 

श्३ेद्‌ ! ३०२ 





(आई० सी० एस०, १६४०) 
(0:4८मंट्ग ?:09]6778 थ॥ 50208008 7०. 232 ) 








३४६ क्‍ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(१५) नीचे सारणी में इंगलंड में कोयले के उत्पोदन-अंक दिए गये 
हैं। इनसे स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार आप (१) आरत्तव विचरण (3८४३०४५/] 
700 72767) तथा (२) अनियमी उच्चावचनों, को ज्ञात करेगे । 

















कोयले के उत्पादन की मात्रा 
उत्पादन (दस लाख यनों में | 
बष भिमास 

का | 8 २ ६८'३ 

र्‌ ६२६ 

रे ६१५९१ 

ड ६३१३ 
१६२८ २ ६५*४ * 

र्‌ ५७६ 

डे ७५६०४ 

४ ६१५, 

१९२६ १ ६८'१ 

र्‌ ६२"७ 

. के ६२*८ 

है ६७१० 

१६३० / ३ ७०७१९ 

रे ५६*१ 

रे ५६*२३ 

है ६९'६ 

१६३९१ १ ९५ 

रे ५४'८ 

३ पे घ१ 

डे पू८० 











( एम० कॉम, श्ल्ाहाबाद, १६४७ ) 

( 2?:8०४८४ ?0709]07058 47 508050८$ )०, 253 ) 

(१६) निम्नलिखित सारणी में १६१६-२० से १६२३-२४ तक भारत से 

निर्यात की गई वस्तुओं का मूल्य दिया गया दै। इस सामग्री से आर्त्तव- 
विचरण देशनांक की गणना फीजिए | 








काल-श्रेणी का विश्लेषण ३४७ 
































माह | 
रे न्‍ 
अप्रेल २० २७ १७ र्रे २९ 
मई २० २६ श्र २६ श्र 
जून १६ २१ १५ र्ष २९ 
जुलाई... २६ १६ १७ २३ २५४. 
अगस्त : रू १६ र्प् २४ २२ 
सितम्बर ३० २१ १६ २० २३ 
अक्टूबर र्८ १६ १७ २१ २५ 
नवम्बर श्र १७ १६ २७ २६ 
. दिसम्बर २६ १८ २१ २६ ३० 
जनवरी २६ श्ष्र २२ सर्द ३६ 
। फरवरी २६ १७ २१ ३० रेप, 
मान्‍्चें ३० श्ष्य २६ ' श१ । ४० 





























( 7४2८४८॥) ९700]6778 0 5६2080८$ ४०. 23 ) 
(२०) एक वस्तु के वाषिक उत्पादन के देशनांक (१६००-१००) नीचे . 
दिए गए हैं : 






































वर्ष वार्षिक माध्य वर्ष ;वार्षिक माध्य 
१६२७ .. १६५ १९३९ र्द्र० 
२८ १७८ ४० ३५१ 
२९ २३६ ४१ ३२० 
३० २१३ ४र ३७० 
३१ १८० द ४३ । ३२५ 
३२ १६२े डड४ड २६६ 
३३ १८० च५्‌ र्६्‌ 
इ्४ड १८७ ४६ ३०४ 
शेर २१० ४७ २९१ 
 रे६ २३७ प्र २७७ 
३७ २०३ ४९ २७४ 
३८ २१५४ ५० २७२ __ 








३४८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


इनका प्रांकणश करिये। दस-वर्षीय चल्न मानकर, चल माध्य की रीति 
से उपनति-मुल्य प्राप्त करिये । 


(२१) निम्नलिखित सारणी पाँच वर्ष के लिए अमेरिका के लिए सीमैन्ट 
के माध्य देनिक उत्पादन के शद्भलानुपातों को देती है : 





























मास १९२४ | १९२६ | १९२७ | १९श८ | १९२९ 
कह ८५, ७४ ७७ ८१ ८१ 
फरवरी/जनवरी १०२३ | १०८ ९९ ९६ ९६ 
मार्च फरवरी ९२१ | १२१५ [१४० | १०९ | १०६ 
अप्रेल/माचे १२९ | १र४ [१२७ | श३६ | १४२ 
मई, अग्रैल १०९ | श्शय | ११५ | १२४ | ११४ 
जूत/मई (०२ [१०६ | १०७ | १०४ | १०७ 
जुलाई/जून ९८ | ९८ ९८ ९७ | १०० 
अगस्त /जुलाई १०४, ९९ (१०५ १०७ | १०७ 
सितम्बर/अगस्त १०० | १०१ ९९ ९९ ९६ 
अक्तूतबर/सितम्बर ९७ ९७ ९५ ९्फ्ू्‌ ९४ 
नवम्बर/अकक्‍्तूबर ८८ प्प्८ ८७ प्र ८७ 
द्सिम्पर/नवम्बर ७६ ७३े ८० ७५ ७७ 





























आतेव देशनांकों की गणना करिये और उपलब्ध परिणामों का 
निर्वाचन करिये। द 
द ( एस० ए०, इलाहाबाद, १६४६ ) 
(२२) निम्नलिखित सामग्री को बिन्दुरेख के रूप में रखिये और तीन 


वर्षीय चल साध्य का उपयोग करके, श्रेणी की उपनति को बिन्दुरेख में 
द्खिाइये । 





काल-श्रेणी का विस्लेषण ३४९ 


























वर्ष जन्मा् वर्ष जन्मार्ध 
१९१७ ३०९९ १९ए८ क्‍ २६९४ 
पद ३०२ २९ २४७ 
१९ २९*१ ३० २४'१ 
२० ३१४ ३१ २३*१ 
२१ ३२३"४ ३२ २३९७ 
र्र ३०२ ३३ २२"६ 
र्‌३े ३०"४ ३४ २३६ 
२४ ३१९० श्र २३१० 
२५ २९१० ३६ २२*० 
२६ २७९ ३७ २२६ 
२७ २७७ श्र २२*९ 











क्‍ (एस० ए०, इलाहाबाद १६४१) 
(२३) निम्नलिखित काक्ष श्रेणी का बिन्दुरेख खींचिये और इसकी 
उपनति का अध्ययन करिये : 



































| मूल्य वर्ष मूल्य 

१९२० ५०५ १९३१ ८२० 
२१ ६१० ३२ ७४३ 
श्र श३े० रैरे ७९८ 
र्रे ६७० , रे४ ९१९९ 
रढं ५७४, रे५ ८८३ 
२४ ६८० रे६ ८०पू्‌ 
२६ पप९५ ३७ ९०० 
२७ ७२४ शेप १०५७० 
स्ष्प ६५२ ३९ ९३५ 
२९ ७५० ० ९३० 
३० .. ९६० 




















(इलाहाबाद, बी० काम०, १६४४ ) 


३५० 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२४) अल्पतम-वबर्गं-रीति से निम्नलिखित समंकों में सरत् रेखा उपनति 
अन्वायोजन करिये 

















हर 7उत्चत्ति 7-३ 
व (१०००) 
१९१०--११ कफ कत्््् | छई 
१९--१२ ३६३ 

१२--१ ३ डरे 
३--९४ रे७प । 
१४-- १५४ ५२४ 
१५०- १६ ४६० . 

१६-- १७ पर 

१७-- एप ३६३ 

श्प--१६ २३५ 

१६--२० २२५ 








(एस० कॉम०, इलाहाबाद १६४८) 


२५) अच्छी तरह समम्काइये कि सुदीघकालीन उपनति से आप क्या 


सममते हैं ? 
भारत में गेहूं के फुटकर मूल्यों के देशनांकों (१८७३८१००) की श्रेणी 


के लिए दस-वर्षीय चल मानकर, उपनति मूल्यों को बतलाइये और उपनति 
को हटाकर अल्पकालीन 5च्चावचनों को विन्दुरेख के रूप में प्रस्तुत करिये। 














वर्ष | वाषिक माध्य | वर | माध्य 
१६०६ १४, १६ १७ २०५ 
०७ १६८ श्र २७० 
०८ २२६ १& ३४९१ 
०९ २०३ २० ३१० 
१० १७० २१ ३६० 
११ १५३ र्र२ ३१५ 
१२ १७० २३ ३५६ । 
१३ १७७ २४ . २४६ ! 
र्ड २०० २ २६४ | 
१५ २२७ २६ २८१ । 
रद. १९३ २७ २६७ 
व २८ २६४ 
२६ रृर 

















(एम० कॉम०, इलाहाबाद, १६४४) 


अध्याय १३ 
सहसंबंध का सिद्धान्त 


( [79607ए ०६ (५077209007 ) 


अब तक जिन समूहों पर विचार किया गया है उनके सदस्य केवल एक चल 
के विभिन्न मूल्य लेते थे । इन समूहों के माध्य ( प्रतिनिधि-संख्या ) और उनके अप- 
किरण ( माध्य से विचलन ) की माप की गणना करने की रीति का वर्णन किया जा 
चुका है। इस प्रकार ऐसे समूहों को उचित ओर सुविधाजनक रूप में समझा जा सकता 
है| पर समूह या श्रेणियाँ इस प्रकार की भी हो सकती हैं कि उनके प्रत्येक पद दो 
या अधिक चलों के मूल्य लें। जैसे यदि एक समूह के व्यक्तियों की लम्बाइयाँ और, 
उनके वजन नापें जाएँ जो इस प्रकार प्राप्त सामग्री में प्रत्येक पद के दो मूल्य होंगे ॥ 
यदि इसके साथ प्रत्येक व्यक्ति के सीने की चोड़ाई भी नापी जाय तो प्रत्येक पद तीन 
: विभिन्न मूल्य लेगा। विभिन्न चलों के मूल्यों के रूप में तीन श्रे णियाँ प्राप्त होंगी जिनके 
. लिए माध्यों और अपकिरण की मापों की गणना पिछले परिच्छेदों में बताई गई रीतियों 
के अनुसार की जा सकती है | ु 
द पर कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि ये चल ( अर्थात्‌ इनके विभिन्न मूल्यों 
वाली श्रेणियाँ ) आपस में संबंड्धित हैं | जैसे यदि किसी वस्तु के दाम और उसकी 
माँग की सामग्री संग्रहित की जाए, तो दो श्रेणियाँ प्राप्त होंगी। एक के पद विभिन्न 
दाम ( दाम यहाँ चल है ) होंगे ओर दूसरी के उन दामों में खरीदी गई उस वस्तु 
की राशियाँ ( यहाँ वस्तु की राशि चल है ) | इन दो श्रेणियों के बारे में यह साधा- 
रण निरीक्षण से ही कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे उस वस्तु के दाम बढ़ते हैं वैसे-वैसे 
. उसकी माँग कम होती जाती हैं | अतः इस परिणाम में स्वभावतः पहुँचा जाएगा कि 
माँग और दाम संबंधित हैं | इस प्रकार के संबंध कई चलों के बीच मिलते हें, जैसे 


३५२ सांख्यिकी के सिद्धान्त. 


दाम और पूर्ति, व्यक्तियों की लम्बाइयाँ ओर उनके वजन, चीनी के दाम ओर गयने 
के दाम आदि । | 


यदि एक चल के मूल्यों में परिवर्तेत होने पर दूसरे चल (या अन्य 
चलों ) के मूल्यों में भी परिवर्तेन होता है ( या परिवतेन की भ्रवृत्ति होतो है) 
तो इन चलों के सम्बन्ध को सहसम्बन्ध (८०::८।७:४०४) कहते हैं। यहाँ संबंध 
शब्द का उपयोग परस्पर-आश्रितता के अर्थ में किया गया है। अगर एक चल के 
परिवर्तन ओर दूसरे चल के मूल्यों के परिवर्तन एक ही दिशा में होते हैं अर्थात्‌ 
यदि एक के मूल्य बढ़ें तो दूसरे के भी बढ़े, ओर यदि एक के धर्टे तो दूसरे के भी 
घट तो उनके बीच के सहसंबंध को अनुलोम या घनात्मक सहसम्बन्ध ([0[#९८ 
0: 0087:76 ०077०॥07) कहा जाता है। इसके विपरीत यदि इन चलों के 
परिवर्तन विपरीत दिशाओं में होते हैं, अर्थात्‌ यदि एक चल के मूल्य बढ़ें और दूसरे 
के घटें, तो इनके बीच के सहसम्बन्ध को विज्ञोम या ऋणात्मक ([0ए८:४९ 07 
70220 ए८) सहसम्बन्ध कहते हैं । जैसे माँग ओर दाम के बीच का सहसम्बन्ध 
विलोम या ऋणात्मक है और दाम ओर पूर्ति के बीच का सहसम्बन्ध अनुलोम या 
धनात्मक है । 


विक्षेप-चित्र ( $2४६06८ 7098:2॥7 ) 


सहसम्बन्ध के विषय में अधिक स्पष्ट रूप से समभने के लिए रेखाचित्रों का 

उपयोग किया जाता है। रेखाचित्र खींचने की रीति का वर्णन दसवें परिच्छेद में किया 
जा चुका है। मान लीजिने कि किसी समूह के पद दो चलों,य ओर र, के विभिन्न 
मूल्य लेते हैँ । प्रत्येक पद के लिए. चल य ओर चल र का मूल्य रेखाचित्र में एक 

' बिन्दु से दिखाया जा सकता है। इसी प्रकार समूह के प्रत्येक पद के मूल्य रेखाचित्र में 
विभिन्न बिन्दुओं से दिखाए जाएँगे | यदि रेखाचित्र में अंकित इन बिन्दुओं का कुण्ड 
किसी प्रकार की उपनति (८४८००) दिखाता है तो चल य ओर चल र के बीच में सह- 
सम्बन्ध है अन्यथा नहीं | सहसम्बन्ध का अर्थ यह हुआ कि यदि एक चल का मूल्य 
ज्ञात हो तो दूसरे चल के मूल्य के बारे में जाना जा सकता है। यहाँ यह ध्यान रखनां 
चाहिए, कि दूसरे चल के मूल्य को निश्चित रूप से जानना सम्मव नहीं है क्‍योंकि ये 
जिन्‍्दु किसी निश्चित सम्बन्ध के अनुसार नहीं हैं; केवल इनकी उपनति-रेखा (४लात- .. 
]876) मात्र जानी जा सकती हैं। ऐसे चित्रों को विक्षेप चित्र (5०४८८ छा) द 


सहसंबंध का सिद्धान्त ३५३ 


कहते हैं इनके द्वारा यह जाना जा सकता है कि आया दो चलों में सहसम्बन्ध है या 
नहीं। चित्र सं० १ में इस प्रकार के विज्ञेप चित्र दिखाए गए हैं। 


हर 

















' के कु है] हि ई 





चि० सं० १ क्‍ 

चित्र १ (क) में जत्र य का मूल्य बढ़ता है तो र का भी बढ़ता है। इसलिए 
य ओर र के बीच अनुलोम सहसम्बन्ध (90अंपर८ ८0:४८&४०7४) है। चित्र १ 
ख में य के मूल्य के घटने पर र का मूल्य बढ़ता है। इसलिए इनके बीच विलोम 
सहसम्बन्ध (762 40ए7९ ८0770]४४०४) है। चित्र १ (ग) में कोई भी उपनति 
रेखा नहीं खींची जा सकती | इसलिए य ओर र के बीच सहसम्बन्ध नहीं है। इन 
चित्रों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जब दो. चलों के बीच सहसम्बन्ध अनुलोम होता 
है तो उपनंति रेखा (००० ]76) बाएँ से दाहिनी ओर को उठती चली जाती 
है। इसके विपरीत यदि सहसम्बन्ध विलोम होता है तो उपनति रेखा (६८70 ]76) 
बाएँ से दाहिनी ओर को गिरती चली जाती है । 

विज्ञेप चित्रों द्वारा केवल विन्दुओं को अंकित करके सहसम्बन्ध का अन्दाज 
लगाया जा सकता है | इसके साथ-साथ इसका एक लाभ यह है कि सामग्री में न 
दिए, हुए किसी चल के मूल्य के लिए दूसरे चल का संगत मूल्य निकालना हो तो 
उपनति रेखा द्वारा इसकी गणना की जा सकती है। 

._ सहसम्बन्ध-विन्दुरेख 
((.0772]80[07 (79|97) 

सहसम्बन्ध के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए बिन्दुरेव का भी उपयोग 
किया जाता है । बिन्दुरेख से यह मालूम पड़ सकता है कि दो श्रेणियों में. यदि 
सहसम्बन्ध है तो वह धनात्मक है या ऋणात्मक | यदि दोनों श्रेणियों के बिन्दुरेख 
.झंमान प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं तो सहसम्बन्ध धनात्मक होता है और यदि दोनों वक्र 
विपरीत दिशाओं में जाते हैं तो सहसम्बन्ध ऋणात्मक होता है| निम्नलिखित सारणी 
संख्या १ में दी गई सामग्री चित्र संख्या २ में अंकित की गई है |. 

रे 





३५४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





























सारणी संख्या १ 
क वस्तु की माँग तथा. मूल्य ग्रति मन 
|... मो. कद कप हल नें) हिलवेग एम क वस्तु की माँग (मनों में) [मूल्य प्रति मन (रुपये में) 
१९२८ २२,००० ३२ 
१९३९ २९,००० ४५ 
१९४० २२,००० ३२ 
१९४१ १९,००० २९ 
१९४२ २७,००० व 
१९४३ ४३,००० ६९ 
१९४४ २४,०० ० ४० 
१९४५ १८,००० २९ 
१९४६ २०,००० ३१ 
१९४७ २३,००० ३७ 
१९४८ ३२,००० रे 
१९४९ २६,००० ४३ 
साध्य २५,४०० ४०*३ 





विन्दुरेखीय चित्र 'बनाने में शीष रेखा पर दो प्रकार के स्केल होंगे | एक तो 
वह जो उत्पादन प्रति* मन दिखलाएगा और दूसरा जो कि मूल्य प्रति मन। दोनों 
भ्रेणियों के स्केल लेते समय इस ब्रात का ध्यान रखना चाहिए कि शीर्ष रेखा पर इन 
दोनों के माध्य लगभग एक ही स्थान पर होंगे। इसके लिए. यदि कूट-आधार रेखा 
((2/8८ 0256 ]76) लेनी पड़े तो कोई नुकसान नहीं । 


चित्र संख्या २ को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है; कि माँग की मात्रा तथा 
“मूल्य प्रति मन में बहुत घनिष्ट सम्बन्ध हे ओर यह सम्बन्ध घनात्मक है क्‍योंकि दोनों द 
बक्रों के परिवर्तन की प्रवृत्ति समान है | यदि एक बढ़ता है तो दूसरा भी और यदि 


सहसंबंध का सिद्धान्त ३५५ 


एक धव्ता है तो दूसरा भी । इसी प्रकार यदि दो श्रेणियों में ऋणात्मक सह-सम्बन्ध 
होता तो दोनों वक्रश्विभिन्न प्रवृत्ति प्रदर्शित करते । 


चित्र संख्या २ में दिया गया बिन्दू रेख निरपेक्ष परिवर्तन ( 2०६० ७४८ 
(727268 ) नापता है। यदि द्रो भ्रेणियों में वास्तव में सह-सम्बन्ध है तो एक के 





बाकि जल्यः भाँव ५ : : 
श मनी | | 4 ३" ड़ ड़ हे है थु 








प़््ु है | |] 
फूड हऋक0,09कक घ् ५ । डक कु पु ध् 
६ ३५.००० पु [| का " जा 


“नफरत कि नर 
सा अ स कि 




















कु 

20 ४॥ । श्ि्‌ 
हैरे रै७ २० -. ॥ जे है व व अ विमिजिमन आल [ + + | ५/“ 

[ पका 0 मई, 

के पक 
३२४ १५,०००» 
५9 पु १०, पी के 8.5 हा न खत रत पिन ज किन न नल हू हु पे नरनन न चूहे (न वा न नि चुका तननानन. भान्‍नन्‍णकन शा की... नया“ ५०१ नि आर 
;(क्‍ 

# ५,०७ 
































४ |] 
१६६८ ३९ ४७ न ४है ज४ए९ 'डहुडे आड़ नह नह इफ अर्क जहर, 


दर्द 

















चित्र संख्या २ 


सापेक्ष बदाव और और सापेक्ष घठावों का सम्बन्ध दूसरी श्रेणी के सापेक्ष बढ़ाव व 
घटावों से होना चाहिए। इस प्रकार की विवेचना करने के लिए या तो अनुपातिक 
स्केल ( 7240 5८४८ ) का प्रयोग किया जा सकता है ओर या दोनों श्रेणियों को 
देशनांकों के रूप में परिवर्तित कर प्राकृत स्फेल (9200:०| 522/6 ) पर उनका 
प्रांकण किया जा सकता है । 


विन्दुरेख से सहसम्बन्ध का अध्ययन करने में इस बात का ध्यान रखना 
चाहिए कि इस प्रकार से हम केवल सहसम्बन्ध की दिशा का ही अनुमान लगा सकते 
हैं, उसकी मात्रा का नहीं । 


३५६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सहसंबंब गुणक (0०७४४ि८००४ ०६ 007० ४०४) 


क्‍ दो चलों के बीच के सहसंबंध का परिमाण (6०87००) जानने के लिए. 
सहसंबंध गुणक की गणना की जाती है-। जैसा बताया जा चुका है, दो चलों के बीच 
में सहसंबंध होने का अर्थ यह नहों है कि उनके बीच में हमेशा एक निश्चित संबंध 
है (अर्थात्‌ एक चल का मूल्य जानने पर दूसरे चल का उस मूल्य के संगत मूल्य को 
निश्चित रूप से हमेशा जाना जा सकना संभव नहीं है।) चलों के बीच यदि ह्स 
प्रकार का संबंध हो कि एक के मूल्य और दूसरे के मूल्य में एक निश्चित अनुपात 
है तो इन दो चलों के बीच का सहसंबंध पूर्ण है| यदि इन चलों में एक के मूल्य 
घटने पर दूसरे का मूल्य बढ़े तो इनके बीच का सहसंबंध पूर्ण-विलोम सहसंबंध 
(7९९८६ ॥6240ए९ ८0770400# ) हुआ आर. यदि परिवर्तन एक ही 
दिशा में हों तो सहसंबंध पूण-अनुलोम सहसंबंध ' ( 966८९ 908/07७ 
००:7८4007 ) हुआ। ऐसा मी हो सकता है कि दो चलों के मूल्यों 
में कोई परस्पर-संबंध नहो। ऐसी “दशशाओं में इनके बीच कोई सहसंबंध नहीं 
हुआ।| नि न आओ 
पिछले अनुच्छेद में वर्णित दशाएँ साधारणतया आर्थिक और सामाजिक 
सांख्यिकी में नहीं मिलतीं । प्रायः सहसंबंध अंशों में मिला करता है। जैसे, यदि किसी 
वस्तु के दाम बढ़ें तो उसकी माँग घंटेगी। पर यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा 
सकता कि यह माँग ठीक कितनी घटेगी। इंस दशा में सहसंबंध तो है पर दोनों चल 


ला 














रे सर. 
.: चित्र संख्या ३. 


पूर्ण रूप से परस्पर-निर्भर नहीं हे। वस्तुतः पूर्ण सहसंबंध और गखणित में प्रयुक्त 
परस्पराधीन संबंध एक ही चीज है। चित्र संख्या ३ में दिखाये. गये. विक्तेप-चित्रृ 


सहसंबंध का सिद्धान्त ३५७ 


(3८४८(८८ 04879॥7) क्रमशः पूर्ण अनुलोम सहसंबंध और पूर्ण-विलोम सहसंबंध 
दिखाते हैं। इन चित्रों को ध्यान से देखने पर विदित होगा कि सब बिन्दु उपनति 
रेखा ( ६८7०व ]76 ) में स्थित हैं | 


इस तथ्य को जानने के बाद इस बात का प्रयत्न करना उचित ही होगा कि 
हम सहसम्बन्ध की ऐसी माप बना सके जो इन दशाओं को ठीक रूप से परिमाणात्मक 
ढंग में व्यक्त कर सके | इस माप के दोनों चरम कोनों द्वारा क्रमशः पूर्ण-अनुलोम 
सहसम्बन्ध ओर पूर्ण विलोभ सहसम्बन्ध व्यक्त किए जा सकें और इनके मध्य में एक 
ऐसा परिमाण हो जो. सहसम्बन्ध के अभाव का द्योतक हो। ऐसी माप सहसम्बन्ध 
गुणक द्वारा दी जाती है। 


आगामी अनुच्छेदों में जिस सहसम्बन्ध शुणक का वर्णन किया जा रहा है 
उसका मूल्य+- १ ओर- १ के बीच में रहता है । जब पूर्ण-अनुलोम सहसम्बन्ध होता 
है तो इसका मूल्य-१ हो जाता है । इसके विपरीत पूर्ण-विलोम सहसम्बन्ध होने पर 
इसका मूल्य - १ होता है | इसके मध्य में शूत्य आता है। जब इसका मूल्य शून्य होता 
है तो चलों के बीच कोई सहसम्बन्ध नहीं होता । जैसे-जैसे इस गुणक का मूल्य--१ से 
कम होता जाता है वैसे वैसे दो चलों के बीच अनुलोम सहसम्बन्ध कम होता 
जाता है| जब इसका मूल्य शून्य हो जाता है तो चलों के बीच में किसी भी प्रकार 
का सहसम्बन्ध नहीं रहता | फिर जैसे-जैसे इसका मूल्य शल्य से कम होता जाता है 
( अर्थात्‌ ऋणात्मक होता जाता है) वैसे वैसे चलों के बीच विलोम-सहसम्बन्ध 
बढ़ता जाता है ओर अ्रन्त में, इसका मूल्य - १ होने पर, दोनों चलों में पूर्ण-विलोम 
सहसम्बन्ध हो जाता है । द द 


इस तथ्य को चित्रों के रूप में देखा जा सकता है। जब पदों के मूल्यों के 
बिन्दु विक्षेप चित्र में ३(क) की भाँति रहते हैं तो इसके बीच में पूर्ण-अनुलोम 
सहसम्बन्ध होता है ( इस समय सहसम्बन्ध शुणक-- --१ ) | यदि सहसम्बन्ध गुणक 
१ से कम कोई घनात्मक भिन्न (00०आं४४९ £728८८४००) होता है, वो विक्षेप-चित्र 
का रूप चि$ सं० १ (क) सा होगा । सहसम्बन्ध शुणक के शत््य होने पर विज्ञेप-चित्र 
चि० सं० १ (ग) की भाँति होगा। सहसम्बन्ध गुणक का मान यदि कोई ऋणात्मक 
भिन्न (7८2247० ६72०००४) है तो विशेष चित्र चि० सं० १ (ख) के रूप में होगा 
और पूर्ण-बिलोम सहसम्बन्ध होने पर ( सहसम्बन्ध शुशकत--१) विक्षेप चित्र 
चि० सं० ३ (ख) के रूप में होगा। 


३५८ क्‍ सांख्यिको के सिद्धान्त 


सहसम्बन्ध गुणक की गणना (0४०परब्राणा ० पाठ 0००ीलंल्व 
०६ (.0:72८2007) ु 

काले पियरसन का सूत्र ((४४)] 72९७४807?8 70£779)--सहसम्बन्ध 

का परिणाम मालूम करने के लिए काले पियरसन ने एक सूत्र दिया है। इसके अनुसार 
दो चलों का सहसम्बन्ध गुणक उनके माध्यों से लिए गये विचलनों के गुणनफलों 
के योग को उनके अवलोक युग्मों (99775 0६ ०0०8८:ए०//078) की सख्या और 

उनके प्रमाप विचलनों के गुणनफल से विभाजन करके प्राप्त होने वाली संख्या है। 
इस प्रकार यदि य,, य३ *यछ (53, 5५ -«-# ॥) थम चल के विभिन्न 


पदों से मध्यक के विचलन हैं और र,, २२ *'** र _ (7५, 7२***ए7) द्वितीय चल के 
विभिन्न-पदों के मध्यक से विचलन हैं और यदि यो, . (५४5७) दोनों चलों के माध्य 


से विचलनों के गुणनफल का योग है और यदि चा, और चा. (०८:०,) क्रमश: उनके 
प्रमाप विचलन हैं और स (7) अवलोक युग्मों की संख्या है तो कार्ल पियरसन का 
सह-सम्बन्ध गुणक ब (४) 


योर ५ >>. 
जता 2 विमरणपरनननना ण 
स>चा, >८ चार 26 ० 2६ ९५ 
इस सूत्र से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए. कि सहसम्बन्ध का अनुलोम (90»४ २८) 


होना या विलोम (7०2907८) होना यो, (>59) के घनात्मक या ऋणात्मक. 


होने पर निर्भर रहता है | क्‍योंकि इस सूत्र का हर सदैव घनात्मक ही रहेगा। 
साधारण श्रेणी में पियरसन का सहसम्बन्ध गुणक निकालना 
उदाहरण १ 

पिता ओर पुत्र की ऊँचाई के बीच सहसम्बन्ध की गणना कीजिए । 
सारणी संख्या २ 











वि न न न नि न नि नस | 
पिता की ऊँचाई | ६५" | ६६” | ६७” | ६७" | ६८7 | ६९० 














७७-७८ ७७७७७ 


पुत्र की ऊँचाई | ६७" | दृ८/ | ६५९ | ६८९ | ७२९ ७२" 



































ह्ल 


सहसंबंध का सिद्धान्त 


३२५९ 


पिता ओर पुत्र की ऊँचाइयों का कार्ल पियरसन से सहसम्बन्ध शुणक निकालना : 


ऋज रीति >:०८६ १(९८४४००) 


सारणी संख्या ३ 





































































































पिता की ऊँचाई पुत्र की ऊँचाई | का 
गुशनफल 
| | 
पिता की ऊँचाई। माध्य(६८/) | विचलनों | पुत्र की माध्य (६९०) विचलनों (५ 06ए३- 
। के, से विचलन | का वर्ग | ऊँचाई से विचलन | का वर्ग | 099) 
(79). [9067-07 कर । 6ए. 500०८ यर (5५) 
2. (687) 07)6ए- (003) | 507 ०06९! 
य (5५) [४४075 5 (697) -2:807$ 
य* (४) २५०) रे (9१ 
६५ न रे है ६७ रे ड़ न ९ 
६६ + रे ४ ६८ “२१ १ रे 
६७ “१ २ दर जाए १६ बी 
६७ - १ ६८ बा १ न? 
६८ ० ० र न रे ९ ० 
६९ +१ १ ७२ नौरे ९ परे 
७० -+२ डे ६९ ० ० ० 
७२ न ढ १६ ७१ नर है +८ 
कि कर यो,२ [यो कर योर योर 
यू ५४४ नल्रे६ | 7२५५२ ननेंढे जन रे 
(2707) (»5) | (०70) (०9१) | («श। 
स (0) 5-८ (0 
ह । 
































३० 


क, का समान्तर मध्यक ८८-४६ 
प्‌ 


कर 9 9... 9 . 
क, का प्रमाप विचलन 











चा५+ू ।यो ये 
स 
नल है। _े ्_ जल २ १२ 
८ 
कफ. का प्रमाप विचलन 
0 रो 
चार ++ 





कि ह। डंडे २३ हि द 


सहसम्बन्ध गुणक 


(१) ब ८८ है यी य्र 








स>चा, >चा३ 
० +२४ 


ध्््य 
द् ९ ॥! 











“ ८&>८२१२०२३४ 
पन्ना 


सांड्यिफी के सिद्धान्त 


#7076९ ३ए९८:०४८ 0६ ७. 


_544_ ७ 
अजय 58 


0600 #ए९६३९९ ०६ 9, 
552. 59 0 ' 


5पबातबात ९३६०० 6 कर. 








गत 3. /2० 
8 | $ 
-:2.72. 
8502702४0 0९४7०(07 ०0६ 774, 
__ />ए* 44 
शा हा 
5-:०.24: 
(0०९४८९८४६४ ०६ ०0::7८4(095 
(7) पं ध्यय २3 
9/2<०] 2४ ०५ 
न 24 
. 8%८ 2.72 » 2.34 
न्‍न्न 9 


' उपरोक्त उदाहरण में दोनों भ्रे णियों का प्रमाप विचलन निकाला गया है| यदि 
. सहंसम्बन्ध शुणक के सूत्र में प्रमाप विचलन के स्थान पर प्रमाप विचलन निकालने का 


सूत्र समावेशित कर दिया जाय तो गणना सरल हो जाती है। ऐसा करने पर सहसम्बन्ध 
गुणक का सूत्र निम्नलिखित होगा 





(रब +- 





४9 





(2) ४5 

2 जु्सड 

) <* ४५ /ड0 
गे 73 


सहसंबंध का सिद्धान्त : ३६१ 


. इस सूत्र के अनुसार उपरोक्त उदा- | औ०८०709%४8 ६० पए३ #0:59प्रौ& 
शरण में । न 24 


+रशट_. | £ 77 








36 


है। ४ 8 8 
ट््<ः 








- अ॑|रन-.6 
[४९ 5007९ ६407790]2 
९४27 >6 *८तप9८९त 35 ६00]0 9$: 


जी: 
वास्तव में इस सूत्र को. लघुरूप में 
निम्न प्रकार लिखा जा सकता है 


























यो | ट 
(३) ब ... यर | (3) ४ ह+ - 
झ है 2 
यो, यो २ ... धऑस्ट 
बे कऋरेद है च्म कि 
५८३६ २८ ४४ /36 > 44 
>-'६ | न्‍ःन ० 


उपरोक्त तीनों रीतियाँ सहसम्बन्ध गुणक की एक ही संख्या देती हैं । यह तीनों 
ऋणजु रीतियाँ हैं ओर इनमें एक बहुत बड़ी कठिनाई है वह यह कि यदि समान्तर 
मध्यक पूर्णांक न हो कर भिन्नों में आए तो गणना में बहुत कठिनाई होगी .क्योंकि. 
ऐसी परिस्थिति में विचलन और उनके वर्ग दोनों हों मिन्नों में आएँगे | इस कठिनाई 
को दूर करने के लिए लघु रीति का प्रयोग किया जाता है । द 


लघु रीति (890:७-८ए६ (८६08) 


इस रीति से यह सम्बन्ध गुणक निकालने के लिए कल्पित माध्य का उपयोग 
होता है। दोनों श्रेणियों में समान्तर मध्यक से विचलन :निकालने के स्थान पर कल्पित 
माध्यों से विचलन निकाले जाते हैं। दोनों श्रेणियों के विचलनों के गुणनफलों को 


जोड़ने से यो यर (५59) निकाला जाता है और इस संख्या को संशोधित 
करने के लिए इसमें से दोनों श्रेणियों के समान्तर मध्यक और कल्पित माध्यों के. 
अन्तर के ,शुखनफल को पद-संख्या से शुणा कर घटाया जाता है। इस सूत्र में 
दोनों श्रेणियों का प्रमाप विचलन भी लघु रीति से निकाला जाता है। इस अकार से 





३६२ 
यो 
य र-स[(म.-य 4 )(म२-य २) ] 
(१) ब>८ 
स>चा, >< चा२ 

जब कि, मे 4८>-प्रथम चल का 
| वास्तविक माध्य 
कल्पित माध्य 


म + ८द्वितीय चल का 

वास्तविक माध्य 

य . >द्वितीय चल का 

कल्पित माध्य 

ओर शेष चिन्ह उन्ही चीजों के लिए हैं 
जिनके लिए वे प्रथम सूत्र में हैं | 


अथवा 


*ैल्‍ब १ 


स॒ सर 











व ब) 


स॒ 











सांख्यिकी के सिद्धान्त 


7) पः >5ए (84 -54 )(2, -5 ५) 
02०4 2८०० 





छ८7९, 94 + ए6८ 2४ए८४३९८ 
0६ #78 ४०॥9)]८ 

5। ८5 255प77९त ४ए८:३९८ 

0९ 75 ४०720] 
प८ ४ए८१०९९ 
०६ $९८०४० १०५११०)0[6 

5, 5६ ३5$प7८त0 ४ए८:३४८ 

0६ ४$८८००000 ४०।१40!6 

बाते पा 067. $8ए7700]8 


52700 ६07 (6 $॥76 (25५ 
985 470 ६6 7750 £00777/42, 


2ण-ग)() 


"/कु-()2/४- 
(5) 
/ 6 


ट प #*/ जोकानाध्भाकणक 























07 
(3) $४ ८८ द 
/(>- कर) छा 
29) ) 
ऐ& 


सहसंबंध का. सिद्धान्त ३६३ 


अथवा 


यो यू२०८स-- (गो य< यो र्‌ ) 











(४) बन 
०६ ४ 
»डुए 2८0 - (25 ८ ५०) 
(4) ४ 











डहषड) ८7]- (55५)2 /5ए१+7- (हजए)* 
इस चारों रीतियों से सहसम्बन्ध गुणक एक ही आएगा । 
निम्नलिखित उदाहरण से यह रीतियाँ स्पष्ट हो जाएँगी | 
उदाहरण २ : 
निम्नलिखित सामग्री से काले पियरसन का सहसम्बन्ध शुणक निकालिए | 
सारणी संख्या ४ | 














मजदूरों की संख्या (प्रति दिन) | कपास की खपत 
वर्ष के है 

(हजारों में) (लाख गाँठी में ) 
१६२५ रेद्प् २२ 
शध्रदू. रेप | २१ 
१६२७ ३८५ ह २४ 
श्ध्य्ष्र रेघिर २० 
१६२६ ३४९ २२ 
श्ह्‌३० ' ३८४ २६ 
१९३१ ३९५ २६ 
१९३२ क्‍ ४०३ *' २९ 
१९३३ ४०० । र्ष् 
१६३४ ः ३८५ २७ 














उपरोक्त उदाहरण को ऊपर दी हुई चारों लघु रीतियों ही हल किया गया है: 





सांस्यिकी के सिंदधान्त 


३६४ 










































































| छ्त्ठ (ता छत्ता7 एज हा 
०; कमा 6०9४८ जिन दा: ०2६0० उन ४६४ घ८ 
डर * हर " हे टप नि ०३ - (८) ४७ 
__ # _ रैः _ ४० + शैं: हज क्‍ 
०३ +- +. ८+- कटे भें... $% -॑- फट है. » ६५३ 
०४ -- » ै ] ००५७ ०९ -॑- ००५. ६६३३ 
८३ 98 न ्एे ३०४ ६ ९-८ ६०४ ०९३९ 
शेड पा ९ ३ -+ १०] भैटे बड़े पी... हे ९ ६४३४३ 
»& ३ रकः 30 ५8 » न +2 ०४५४३ 
४३+- ५ ६- ष्टे ३2०३ ध्ध्- ० ४८७३ 
५ न-॑- फटे है की ०ऐ $ 9 है ७६ - 8४ 20०38 
के था ै $ ४ श्र्टे भेटे ० नी "2४ 0९३४ 
98 + 98 पा $ ९ 968 & न - 2४ 30०३९ 
६ न $ ६“ टेट श्र ८४- -. 273६ ४८७३ 
(७) २७ | (०४) ४४ | (6) + [(प्प) ४७ (४४) «० (५) 4. [('प्एप) *% द 
।०/2>/९| (६६ [92) 2 ॥४४९| | ( वृधाप्ड) | (48०४). 
% शी | [७॥७ | (है "०े) फ्गेफे ]% ऐ (००४ [४१४ $४२ 
]४ [2७2] | 38॥0 0९]५ | _४ [2] [2७४]. $8॥8 202॥५ | ४ |02/:॥॥ 
[०२४०६] 90] [४ 9]0% रे ७४)२४ ४ 0250५ 
9२ पे 
22]%-] ६७६ 82030) 238 ॥% ४४>०३ १2% रे 
4०2 





सहसंबंध का सिद्धान्त 


पहली रीति 
समान्तर मध्यक क , का 
म45०३८०-+बढ तु ३८१.२.. 
समान्तर मध्यक क. का 
म +- २५-६४ न्‍+ २४९५ 
क, का प्रमाप विचलन 


चा ८८ है २८३० (5 र्‌ 
१० 


क., का प्रामप विचलन 


सन /९१ ( ४) +२-६७ 


सहसस्‍म्वन्ध गुणुक 
३९०- १०[(३८१.२-३८०) 
(२४.५- २५) | 





-+१६९०७९ 











कूउरछएरउ््रनुछ 
"८ 
दूसरी रीति : 





२६५ 
छाए ैलांा09: . 
2.777600 २४ए८।३2९८ ०६ 79. 
72. । 
5:3280---- ८:53 8 7" 
24 5:280+- कर 72 


24070॥720[0 ४ए४९॥:३९९८ ०६ ॥0५ 


>िकमप, 


“3 2 5:24. 3 
70० 


5श्राग020त 86ए2007 ०६ 90. 


धॉहु- (7) - ॥6 79 


"भ्यातंब्राःत 62ए४(४079 ०६ 9. 


__ [97 शक सै 
वन ी6- (7 न्त227 | 


(0०6४ ट6४४ ०६ ०07704707 
39०0-7० (387.2 - 38०0) 


_ (24.57-25| 
70>< 70.79 *< 2.97 


८८ --,$ 














दूसरी, तीसरी और चोथी रीतियों में समान्तर मध्यक तथा प्रमाप विलन निकालने 


की आवश्यकता नहीं है | 





) 











०-७ (३) ( 
बच १०/ ९ १९० 
१० /रिप्परे० 


७ (७०) 


__ २६६ _ २६६ __ 
३१० >< १६"७९ »८ २'६७ 
ब्झ चन ८ 











३६६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


5€८०070 +८४7१०0 : 
चि धरा 5६८०४०, ऐांहते गाते [0प४0 प्राढ7005$ फ्रश८ ॥5 ॥0. 

7660 (६० ८2८०४४९ पी इ८ए०) 20706(४८ 47८००९८ 200 ऐ€ द 

#शातव 0९०]2007 द 


५_ 39०0-7० 7) ) 
० (७) /७ (७) 





























.. 396 
73 ८ 76:79 ८ 2:97 
जल 
तीसरी रीति : 
न १२२८ +- ५ 
€०-- 
रे | [ १० ] 
रथ ( वि 
(वर -५+१९) ) (६ कर “7 -) 
२० १० 
्-_ रेे६ | 
हक > प८ ५ 
अ्ः न ८ 


१7४ १९८६४४०० $ 


नल 722< + 
 39०- ( ) 


(०-फ्ण) ७-५) 











सहसंबंध का सिद्धान्त ३६७ 














>> - 220७ 396 
९८28 72'.62८88'.5 -- 
. 5-8 
सौथी रीति: _ 
बच >> २३६० ८१० (+१२०८ -- ५) 











“२८२० २८ १०-(-+१२) /९५१२८६१०-(-५)' 
३९६० 








२/”२८१५६ >< ८८५ 
न न 


0755४४४ ८६7०0 : 


3590 %: 70 (+72 > - 5) 











९८2830 >(0 - (+ 72): ५४93 9८70- (9) » 70- ( ... 5) 
_3260०___ द 








९/28756 > 385 
श्य्थ् न * 8 क्‍ 
-+'८ से यह मालूम पड़ता डै-कि मजदूरों की संख्या और रुई की खपत सें 
काफी घनिष्ठ सह सम्बन्ध है। यह सम्बन्ध धनात्मक (2050ए८) है । क्‍योंकि इसमें 


यो (55ए) धनात्मक संख्या है। इसका अर्थ यह हुआ मजदूरों की संख्या में बृद्धि 


के साथ-साथ कपास की खपत में भी वृद्धि होती है ओर मजदूरों की संख्या कम होने 
पर कपोस की खपत मीं कंम हो जाती है | 


कर्क सांख्पिक्री के सिद्धान्त _ 


 काल-श्रणी में सहसम्बन्ध का अध्ययन (5:ए०ए ०६ 
०0776]80047 ॥7 2 ४॥776 5८77८5) 


पिछले अ्रध्याय में यह बतलाया जा चुका है कि काल-श्रेणी में मुख्यतः दो प्रकार 
के परिवर्तन प्रधान होते हैं। एक तो दी्घकालीन परिवर्तन और दूसरे अल्पकालीन 
प्रसिवर्तन | दो काल-भ्रेणियों में जब परस्पर सहसम्बन्ध का अध्ययन करना होता है-तत 
यह आवश्यक है कि इनके विभिन्न संघटकों के सहसम्बन्ध का अलग-अलग अध्ययन 
किया जाय | इसका कारण यह है कि यह सम्मवं है कि दो काल-श्रे णियों के दीए-. 
'कालीन परिवतंनों में घनात्मक सहसम्बन्ध हो ओर उनके अल्पकालीन परिवर्तनों में 
सहसम्बन्ध ऋणात्मक हो या इसके विपरीत दीर्घकालीन परिवर्तनों में ऋणात्मके सह- 
सम्बन्ध ओर अल्पकालीन परिबरतनों में घनात्मक सहसम्बन्ध हो। ऐसी परिस्थिति में 
यदि काल-श्रेणी का विश्लेषण किए बिना सहसम्बन्ध का अध्ययन किया गया तो 
अमात्मक परिणाम निकल सकते हैं। इसलिए यथा सम्भव पहले दोनों काल-श्रे णियों 
में दीत्रकालीन परिवर्तन अथवा अपनति और अल्पकालीन परिवरतनों को अलग-अलग 
कर लिया जाय, इसके पश्चात्‌ दोनों श्रेणियों के दीर्घकालीन परिवर्तनों का सहसम्बन्ध 
आर अल्पकालीन परिवतंनों का सहसम्बन्ध का अलग-अलग अध्ययन करना चांहिए। 








दीघंकालीन परिवतनों का सहसम्बनन्ध (0०ए०ब्रपं0ा ०६ 
]0782 ४॥76 ८५272 28) 


दीर्घकालीन परिवतनों का सहसम्बन्ध अध्ययन करने के लिए [सर्व प्रथम दोनों 
अं णियों के अपनति मूल्य (7९70 ए०]०८४) मालूम कर लिए जाते हैं। अ्पनति 
मूल्य या तो चल-माध्य की रीति से या अल्पतम-बर्ग-रीति (7८700 0 [्वढ 
'50027८$) से निकाले जा सकते हैं। इसके पश्चात्‌ दोनों श्रेणियों के अपनति 
मूल्यों का सह-सम्बन्ध-गुणक निकाला जाता है। सहसम्बन्ध गुशक निकालने के लिए. 
किसी विशेष रीति का आवश्यकता नहीं पड़ती | जिन रीतियों का श्रत्र तक वर्णन किया 
जा चुका है, उनमें से किसी भी रीति से सहसम्बन्ध गुशक की गणना की जा सकती है ।' 


श्रल्पकालीन प्रदोलों का सहसम्बन्ध (०ऋलेब्रांगप ०६... 
$50070 (76 052[]20078 ) 


दो काल-श्रे णियों के अ्रल्पकालीन प्रदोलों का सहसम्बन्ध का अध्ययन करने के 
लिए श्रावश्यक है कि दोनों श्रेणियों से अपनति-मूल्य घटा कर अल्पकालीन प्रदोल 


श्ड सहसंबंध का सिद्धान्त १६९ 


मालूम कर लिए जाएँ। ऐसा करने से हमारे पास दो ऐसी श्रेणियाँ बन जाएँगी 
जिनमें केवल अल्पकालीन प्रदोल ही हैं, अपनति नहीं; इन प्रदोलों को आपस में गुणा 


करने से जो संख्याएँ मिलती हैं. उन्हीं का योग यो य र (५४ए) होता है । अतएव 
साधारण श्रेणी और ऐसी श्रेणियों के सहसम्बन्ध शुणक निकालने के सूत्र में यह 
अन्तर हुआ कि ऐसी श्रेणियों में विचलन माध्य से न लेकर चल-माध्य या उपनति- 
मूल्यों से लिया जाता है। इन्हीं विचलनों के वर्ग को पद-संख्याओं से विभाजित कर 
वर्गमूल निकालकर जो संख्या ग्राप्त होती है वही इस श्रेणी का प्रमाप विचलन होता 
है | निम्नलिखित उदाहरण से यह रीति स्पष्ट हो जाएगी | 
उदाहरण ३ : 

निम्नलिखित सारणी से पंचवर्षीय चल-माध्य लेते हुए. अल्पकालीन ग्रदोलों 
का सहसम्बन्ध गुणक निकालिए (दशमलवों को छोड़ दीजिए) । 


सारणी संख्या ६ 

















वर्ष माँग देशनांक मूल्य देशनांक 
१९३७ ' १०१ ११७ 
११३८ १०८ ६७ 
१९३९ १०५ द १०२ 
१९४० १४५ क्‍ ११८ 
श्९्४शू भरे. २०५, 
. ११४२ १८६ १६६ 
११४२ २०२ १७७ 
१९४४ २०७ . शष्टष् 
१९४५ २०४ १७७ 
१९४६ १९८ ५१७० 
१९४७ २०० श्दद५ 
१९४८ ह ह २०८ १७० 
१९४९ श्३२ १७५ 
१९५० श्श्द १८० 
१९५१ । २२२ | १६० 








(यह संख्याएँ: काल्पनिक हैं।) 


सांख्यकी के सिद्धान्त 


२७० 




















































































































। 228 न॑- बईे [9/४३/ न रण | (७5 
(<5ट) | (४ & 2) हक अर 
५ २ ..> , ९ 
४ | (| _- --- -_-+ज- (० _ 
०३६ ण्ण्ट है ०५ 
०५०४ ह प्ल्णे ०४०४ 
७8 7 | ४९ 8 ५5 3७१४ ५०९ 5५७४ & ४ न-न॑- "४८ | देट्वेटे 3/38 
०3न- | ण०े ८ ८०७४ ०9३ फटे फ - है४५ | ४०८ 2259 $ 
>2#+ | डै४ छे ना ६०३ ४४ डे ०७ - | ४०४ | ००८ -  श/०६ 
० ० ० ०60 ०6९ है. # न“ ००७ ०३३ 3/३॥ 
८४ + | ४४ छ न ०३ 69 3 ३ हे न ५०८ | #०८ फऋ33 
००७ “- | ००४ ०३ - ४26३ “है 3 न ३७४ 0०८ 8०९. 
५४ “ | ०४ 7 “5 ०२९ 60 $ श्जड ९४ +- ०३४ | ७०टे ६2३६ 
0०ट८-- | उहेढेगे धऐ-+॑- ६०३४ ५७३ ४४० 3+-+- | ७०३ | 828 ०२४७३ 
फृषेटे " | गऐे०टे न ०२३ फण्टे फट भे ५2४6 2४४ 32346 
४०३ “5 | 30४ ४७ - £» ३ ०४ ४ पे ४५ न॑- | 3६४३४ | ४५३४ ०४३४ 
डेअऔन॑-े | 30४ ९ -- "2८०३ ०३०६. ३०८ 6३ + ८०३ ५०३४ 3६8३५. 
03 | || 2०38 [2४33 ' 
6३ । ४०४ 6६३६ 
(25) से (६4) ब| (0+ |. क्थ (६४) थम | 0० ४ । 
]२५ ७०५ ०02) ॥ी+ ९० ५) ]09 ०/२०!०॥०] क+ ० ५ | 
| शा है... यू ४ | थे * ५ 8. यूड४ के न अत. कै 
2०४) ०६] | 809 /2० पृ का | -ः 
2): । ॥त ि 
]929%९] कॉणडि हररीलपेजेरे (४. ]क्‍के ०0२४)३६ 5६ ्भाध्यपत.. नकि वफििफे.. *« ॥22 


सहसंबंध का सिद्धान्त ई७१ 





























सहसम्बन्ध गुणक (०6#लंदाएर 66 ०0060|9000 
(आजुरीति सूत्र नं ० ३) ता7ढ९८६ 7760000 
_ यो क्‍ (£0:7704 70.3) 
ब-८ नीम 2:2 4 
यो ये 3८ यो रे ९/अ5* ८ अफ 4 
_.__!४८ _. 748 
९८६४४ 2 ४१४७ द ५/944 ८ 4747 
नल न ००७ 5 +- ०7 


+ «०७ से यह परिणाम निकाला जा सकता है कि दोनों भे णियों के अल्प- 
कालीन प्रदोलों में सहसम्बन्ध लगभग नहीं फे बराबर है।. क्ष्योंकि सारणी सं० ६ में 
दी गई संख्याएँ काल्पनिक हैं इसीलिए ऐसा परिणाम निकला है अन्यथा माँग ओर 
मूल्य देशनांकों के अल्पकालीन ग्रदोलों में साधारणतः घनिष्ट घनात्मक सहसम्बन्ध 
की आशा की जा सकती है। क्‍ 


वर्गित श्रेणियों में सहसम्बन्ध गुणकु निकालना (८क४०ए४स०ा- 
०६6 ८0९4८ ०॥४६ ०0६6 ८077९४४07 47 8 8:0०.८० 8८४८8) 
यदि चल के मूल्य वर्गित किये गये हों ओर प्रत्येक वर्ग के लिए; वांरारता 
दी गई हो तो सामग्री का दिगुण-सारणीयन ( 00076 ४«४पा४४०॥ ) किया 
जाता है। मान लीजिए दो चलों य और र को क्रमशः ५ और १० वर्गान्तर लेकर 


वर्गित किया गया है और उनसे प्राप्त सारणी निम्न प्रकार की है : 
सारणी संख्या ८: 




















पुत्रियों की आयु-य श्रे णी ( ड 8८:28 ) 
|: जाल क का पुत्रियों की संख्या 

जज ६ 

१०-- ६. २९ 

१४--२० " शेर 
. २०--२४* २१ 

| हु २५-- ३ ७ ॒ १ _ ३ छः ७9छछछ ७ 9 ह है न्‍ 

्ाः . - . योग . | 9 #... + १००... ७. - 











. ३२७२ 


सारणी संख्या ९ : 


सांड्ियकी के सिद्धान्त द 


माताओं की आयु -र भ्रेणी (ए 8९४८५) 




















वर्ष माताओं की संख्या 
१५४--२५, ....... (१४-२५ | . «९६३. रा 
२४-- ३५ श्६्‌ 
२३४--४* ३२ 
४४--१२५० २१ 
५५---६५ &९ 
योग | रररररयआः योग | १०० ४ 





इन सारणियों में दी गई सूचनाओं को द्विंगुण-सारणी में रखने के लिए यह 
जानना भी आवश्यक हे कि समूह का एक पद «चलों के इन मूल्यों में किस-किस 


मूल्य को लेता है। मान लीजिए कोई एक तीन पद, चल य का मूल्य ५-१०“वर्ग में 
ओर चल र का मूल्य २४-३५ वर्ग में लेते हैं| इन पदों की वारंवारता ३ हुई | मान 
लीजिए ४५-५५ आयु की १० माताओं की पुत्रियों की आयु २०-२५ वर्ष हैतो , 
द्विगुण सारणी में इन वर्गों की वारंवारता १० होगी । इस प्रकार हम यह जान सकते 
हैं कि इन चलों के मूल्यों में से दो निश्चित मूल्य लेने वाले पदों की संख्या कितनी 


| 


है। मान लीजिए हमें यह सूचनाएँ प्राप्त हैं तो इनको हिगुण-सारणी के रूप में . 


दिखाया जा सकता है| इस प्रकार की सारणी को सह सम्बन्ध सारणी (020:8८॥4- 















































६07 ६2)]८) भी कहते हैं | 
सारणी संख्या १० : 
माताश्रों और पुत्रियों की आयु 
| माताओं की आयु |..." 
वर्षों मे. उजेतेयों की आयु ब्ों में-य (+ पुत्रियों की आयु वर्षों में--य (5) थोग 
२ (५५) ५--१० १०--१४१५--२०२०--२५२५-३० 
मा 3. र्‌२ २१ | ६ १०० ! 














सहसंबंध का सिद्धान्त ३७३ 


इस सारणी में पिछली दो सारणियों की अपेक्षाकृत अधिक सूचना दी गई है। 
पिछली सारणियों में केवल यह बताया गया था कि चलों के विभिन्न मूल्यों की वार्॑- 
बारता कितनी है। इसमें यह भी बताया गया है कि चलों के निश्चित मूल्य लेने वाले 
पदों की संख्या कितनी है, जैसे य चल के १५-२० मूल्य ओर र चल के २५-३५ 
मूल्य लेने वाले पदों की संख्या १० है। इसी प्रकार य चल के २५-३० और र चल 
४५-५५ मूल्य लेने वाले पदों की संख्या ४ है। चलों के कुछ मूल्यों को लेने वाले पदों 
की संख्या शून्य है, अर्थात्‌ ऐसे पद समूह में नहीं हैं | उपयुक्त सारणी संख्या १० में 

: यह मूल्य प्रास (6950) से दिखाए गये हैं । 


द्विगुण-सारणी में वर्गित श्रेणियों के लिए. भी सहसम्बन्ध शुणुक पिछले प्रष्ठों 
में दी गई रीति के अनुसार निकाला जा सकता है। सूत्र में कोई विशेष अन्तर की 
आवश्यकता नहीं होती । केवल यो यर (५5०) निकालते समय वारंबारताओं का भी 
ध्यान रखना पड़ता है , निम्नलिखित उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाएगा । 
उदाहरण ४ : 

ऊपर सारणी संख्या १० में दी गई सामग्री से माताओं ओर पुत्रियों की आयु 
का काले-पियरसन-सहसम्बन्ध शुणक निकालिए । 
हल : 
सारणी संख्या ११: 

य श्रेणी का प्रमाप विचलन निकालना 
































डा, वारवारता कल्पित माध्य| विचलनों कुल बिचलन | विचलन 

(परांते- (($८०प८- | (१७५) से | का वर्ग | (॥00४ का कुलवर्गं 

पुत्रियों की आउ ०५]०८७) ००7८ए) | विचलन | चय* | 067) वे व>चय 
य (४) | ब (३ |चय (65)।| (व) > चय(64%)| (£क%*) 

५-१० ७५ ६. “१० १०० न६.० ९०० 
१०-१५ | १२९५ श्ह्‌ --++ २५ “+ १४५ 3७२५ 
१५-२० १७५ ३२ ० ० ० ० 
२०-२५ २२४ २१ न ५ २५ न+१०५ ५२५ 
२५-३ ० २*५ ७ & न+१० १०० __7 ६० ६०० 
कि यो«य थोचक्यर 

>> १०० न्यू +आ 0७ प्था ३०५० 

(205) (2055) 

















३७४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


समान्तर मध्यक...| 
' १७५ न॑- ( 


न्‍| १७१ यपुं 
प्रमाप विचलन 


है. 








-,गिव्व_/ 











_. ६०५० _ (5५) 

२१०० १५००८ 

57९/२०* ३४ | । 
«5 वर्ष 








077॥7760[0 ४ए८४१३४८ 





सा 777 ए८०॥:8 
5(०034270 829०4207 








_ ढ/ जतर्ः "का 








__ 20०20 _ । 7] 
७४४ १0० 70०0 


२+-९/२2०३१+ 
-5'5 ए695. 





२३७५ 


सिद्धान्त 


सहसंबंध का 







































































ब्जएट) (हुए) 
0००९००६॥ ८ ८ ०2“ पय ००३ -- (०) + 
2. 
८२ ६ ः ४ ५ रा 
००४ ४ ०५३४ -+- ७००५४ ०6 है. ०), 5३-४४ 
००३ ०३ है न: ००३ ०३ +- ५९ ० शैधा शेर: 

० ० 0 ० ट ०८, फूड नि है 
००३७८ ०३७ -- ००३ ०३ “ ०्छे ० फैगे 
००४६ रे ०००३४ -- ००५ ०९७-- ० ०्ट फ८- ४३ 

(५४ त्कोडड्प्रड ्ञ्र्छ ३ ० (%&०) ४ ० ््र 
टे 73) ही 73) ( ६ ) टे ५ ई ) जहा (]) छः (5) 
४४ 2 २ 5 ।22।>।2] मु ै ८ 
ब (69027) | (श[्‌४*नजप्प) 48 ४ ॥&॥209 
08 के ॥९ (४909 [४१09) | ४ ४ है (०५४) ॥09)४ १४ ० 0-8300 * 
[0०% ४| | +2>२] ।०५ | % ।॥:)2०।२] ते सटए |. रा 
2/0%९| /२/२/०४९ जा % [ए४ 3 


३७६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


समान्तर मध्यक : 0777770600९८ 2ए९८।०९2८ ; 
सं ८८ ४० न “5० ष्ल८ -:40+६::: ) ++39 2>984275 
0 


प्रमाप विचलन 








5६200270 0९79007 


चास+ चस्य (- च ये हल (9) 
ग्स्च्य (5) -227०- (5-8) 


70० 









































 ८5९८१२१९३६ >> ा2य उद 





न ११ वर्ष द बन. 77] ए८25 
अब सहसम्बन्ध शुणक शात करने के लिए दोनों श्रेणियों के विचलनों के 


शुणनफल का योग अथवा यो.२्‌ (55ए) मालूम करना है। इसके लिए सारणी 
संख्या ११ और १२ में कल्पित माध्यों से लिए हुए. विचलनों को सारणी संख्या १३ 
में लाया गया है | द 





३७७ 



















































































सिद्धान्त 























भ््के 

















सहसंबंध का 




















००३ ० ००९ 6 ००४8३ 
०0 -+ भू गँ 
००& _ जया 
हे ०३४ न 22 
०5४ छ , 
९ ०३ । ७ भैली- है 
ह। ७ ७ ह 
5 8. हि ०३- ५ टै-फेंटे 
2 6555 ००८ 
००ट्रे ००४४ कि 
्िज-++भ।/। घ ःः 
है ० कै ०६३- €-+२ > 
|. ०2७६] 4 
द ॥29७ 
ऐे-०्८े. | ० | ४४००३ ०३-४५ द €-]:६-शि॥& 




















॥2/9%!:१| ॥0-7 ४ /2%-४ थू८ [१४०] 
४ ३8 79४ ॥|॥४ 





क्ज्ट .. सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उपर्यक्त सारणी में जो संख्याएँ. प्रत्येक खाने के बाई ओर ऊपर के सिरे में . 
मोटे अंकों में दी गई हैं. वे य और र श्रेणी के कल्पित माध्यों से विचलनों ओर 
बारंवारताओं के गुशनफल के बराबर हैं, जैसे य श्रेणी के १- १० वर्ग के मध्य-मूल्य 
का कल्पित माध्य से विचलन - १० है। ओर इसी प्रकार र श्रेणी के १४६- २० वर्ग के 
मध्य-मूल्य का विचलन- २० है। इन दोनों वर्गों में आने वाले पदों की संख्या 
६ है। अब दोनों विचलनों और इस वारंवारता का युदुनकत (- १००८ --२०»८ ६) 
१२०० हुआ | यही संख्या सारणी में दिखाई गई है। इसी प्रकार अत्येक खाने में 
विचलनों और वारंवारता का गुणनफल दिया हुआश्ना है | इस प्रकार के कुल गुणनफलों 


का योग ४६०० हुआ | यही कल्पित माध्य से यो 4२ ( >हए ) का मूल्य हुआ । 






































सहसम्बन्ध शुणक (९००ल०४६ ०६ ८007९02007 
यो क्‍ __ >छहऋए - ए (9१"“ | 25 - 5४2 
७ बर- स[(म,- य,) (मे ब३) | “2 मर, ऋ ० (00: 29)(8 “7२ 3] 
लजनणट प्>न्‍36६),३्३]्३आ्ै]ै]ै_ः 7]9><८०., 2६००५ 
स>चा, ><चा२ क्‍ 
४६००-१००[(१७.१- १७.५) 490० - 7०० (77.7 - 7.5) 
ब-- (३६.२ - ४०) ] +-> _  (?-2-4०)/ (39.2 - 4०) 
१०००८ ५४,३४५ ८ १९ नत 50%57>८ 77 
__४८६८ 5908 द 
६०४० 60०5० 
चतन्नीब८ नल न «8 





इस प्रकार हम देखते हैं कि माताश्रों आर पुत्रियों की आयु में धनिष्ठ धनात्मक 
सहसम्बन्ध है। द | 


“लघु रीति : 


उपरोक्त रीति से सहसम्बन्ध गुणक निकालने में बहुत समय लगता है, क्‍योंकि 
इस रीति के अनुसार दोनों श्रेणियों का समान्तर मध्यक तथा प्रमाप विचलन निकालना 
पड़ता है| यह संख्याएँ अधिकतर मिन्नों में आती हैं और इसलिए गणना में कठिनाई 
होती है | इन कठिनाइयों को दूर करने के ज्िए. लघु रीति का प्रयोग किया जाता हे। 
इसमें कल्पित माध्य से लिए. गये विचलनों को वर्ग विस्तार से विभाजित कर दिया 
जाता है और सहसम्बन्ध निकालने में इन्हीं का प्रयोग किया जाता है। इसके सह- 
. अम्बन्ध शुणक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्‍योंकि इससे अंश ( 2पा7८४४८०४ ) 













































































































































































सह सम्बन्ध के सिद्धान्त ३७९ 
माताओं ओर पुत्रियों की आयु का सहसम्बन्ध गुणक निकालना 
ः | पुत्रियों की आयु वर्षों में 
७-१० १०-१५१४-२०/२०-२५॥२५-३० 
मध्य मूल्य | (२.५ १७४ [२२९५ | २७५ 
9५, 
+-५ | +१०।| योग 
(70६४)| व २८२ वि ८ २| व >८ य 2८ २ 
चार | पर । व (9) (9?) + ९) 
(६) 
६ |“ १८ ध्ध ८ 
२१५४-२५ ह 
मंडे २४३४ ३० हर १० -' ५ । र६ -२६ |. २६ २२ 
६०] डरे १६| _ १० झा 
! वि ७ ७ 
हू १५-४५ ४० || । छ् ३२ ० ७ ० 
१० . २ ु। 
थ्‌ढ् 5 
१० शक 
कि (प-ब्| ५० +१०+१ ' २२ कर१ | २१। श्झ 
ञ ९8 १०. है. 
2 6 
५५-६५ ६० (२० +-२ | ६ (+१८। ३६| रशुर 
। ५ 
यो्‌ पीर 
योग - 5 + 
ब( 70०६४! ६) (०9) (०9) 
ह्‌ २६ ३२ २१ ६ १००८८ -- ८१२२ ८८ 
| . भय 
ब><य (0) हु शेप - २६ +रे१३ (+१८ | (५०) 
मम “ज ८ 
यो २ 
ब>(य* (०). ३६ | २६ २१ | ३६ | (४४”) 
. ह प्-्+२२ 
है. 
घर (४7: 
ब> १२८२ (६ >८» >< पक्‍) ३० श्र श्र रेप स्ट् 


























रेदण सांख्यिकी के सिद्धान्त 


और हर ( 0९7077/7407 ) दोनों एक ही अनुपात में कम होते हैं। इस रीति 
के अनुसार केवल एक सारणी से ही सहसम्बन्ध शुणक निकाला जा सकता है। पिछली 
रीति की तरह सारणियों कि आवश्यकता नहीं पड़ती | सहसम्बन्ध शुणक के सूत्र वही 
रहते हैं जिनका पिछले पृष्ठों में वर्णन किया जा चुका हे। सारणी संख्या १४ में 
ऊपर दिए हुए, उदाहरण नं० ४ को लघु रीति से हल किया गया है । 


उपरोक्त सारणी में सहसम्बन्ध गुणक मालूम करने के लिए. जिन-जिन पद-मूल्यों 
की आवश्यकता पड़ती है वे सब ही निकाल लिए गये हैं । क्योंकि इस प्रश्न में य ओर 
२ श्रेणी के विभिन्न वर्गों की वारंवारता समान है, इसलिए सारणी संख्या १४ में 
( ४5) और योर ( »ए ) का ओर यो ,.२ ( »5? ) और यो २९ ( >पए* ) 

के मूल्य बराबर हैं। यह कोई आवश्यक नहीं कि सदेव ऐसा ही हो । 
शअ्रव पहले दिए. गये लघु रीति के दूसरे, तीसरे या चोथे किसी भी सूत्र का 
उपयोग कर सहसम्बन्ध शुणक निकाला जा सकता है । उत्तर एक ही आएगा। नीचे 


चोथे सूत्र का उपयोग किया गया है | गणना में सरलता के लिए छेदा तथा प्रतिच्छेदा 
का प्रयोग भी किया जा सकता है। 


सहसम्बन्ध गुणक 
यो. २ >स- (यो, >< यो, 


क्‍ रबर ऋस- (0५) हे 0 >स- (२) है 


६८०८१००-(-८>८- ८) 














चला्ाम 








4५८१२२५७१००-(-८)* /१२२७१००-(-८&)* 
९८००-६४ 








५/१२१३६ ०८ १२१३६ 


६७२६ 
१२१३६ 


ध््च पा 


सहसंबंध का सिद्धान्त ३८१ 
(.0९77067६ ०0६ ८2077/82609 
है ८८ अडए %- (०5४ २८ »ए) 


अल २7- छ5)2 /७72%7- (७9)? 
>> 98 2, 700- (- 8 » - 8) 




















९/:222८700- (-- 8 ) १22%7०00-(- 38) ९८१22 2 700 - ( + 8) 
>- 2800-64 । 


२/72726 ><८ 72436 


_ 9736 द 
727306 


सदन «0 


इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि माताओं और पुत्रियों की आयुआ्रों में 
घनिष्ट धनात्मक सहसम्बन्ध है। यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि यदि पूर्ण धनात्मक 
सहसम्बन्ध होता है तो काल पियरसन का गुणक +-१ होता है और इसी प्रकार पूर्ण 
ऋषणात्मक सहसम्बन्ध में इसका शुणक -१ होता है । 








सहसभ्बन्ध गुणक्र का संभाव्य विभ्रम 
( 2:09 406 €0707 ०0 ६86 ८0८ 2टॉथ7६ ०६ ८0776|8६07 ) 


सहसहम्बन्ध गुणक की गणना करने के बाद इस पर भी विचार करना होता: 
है कि यह किस अंश तक विश्वसनीय है । इस को जानने के लिए सहसम्बन्ध गुणक 
के संभाव्य विश्रम की गणना की जाती है | संभाव्य विश्रम ( 970920]6 ७६0: ) 
का सिद्धान्त निदेशन सिद्धान्त ( (९0०7ए ०६ $४४7॥7९ ) के अन्तर्गत आता 
है, अतएव इस पर यहाँ विचार नहीं किया जाएगा | यहाँ इतना ही जानना पर्याप्त 
होगा कि संभाव्य विश्रम को संगणित सहसंबंध-गुणक में जोड़ने से ओर घटने से प्रात 
संख्याएँ, सहसंबंध गुणक के लिए वे सीमाएँ हैं जिनके बीच (यदि एक समग्र 
(५०४ए८:४८) से निदर्शन ( $2०7]6 ) लिए जाँय ) सहसंबंध-गुणक के मूल्य हो . 
सकते हैं श्र्थात्‌ इस सीमाओं से बाहर समग्र से लिए. गए निदशनों के सहसंबंधों का 


३८२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


मूल्य नहीं जा सकता । सहसम्बन्ध गुणक के संभाव्य-विश्रम की गणना करने के लिए 
निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है : 
सहसम्बन्ध गुण॒क ब का सम्माव्य विश्वम 











_ ०७४५-२7 7/0920]९ ९:६०: ०0 ६८ 
/ह्व ८0९9ल८९४६ ०९ ८07८%0707 
वि 7-4£ 
जबकि, ब--सहसम्बन्ध शुणक -: 0.6745 _.__. 

स॒-- पदों की संख्या ९ट 9छ के 
₹)८॥८, 4--00८770८6९7४ ०६ 
८077809707 

0--॥परए7८। ० 
06775५ 





सहसम्बन्ध गुण॒क में सम्माव्य विश्रम को जोड़ने से एक सीमा ओर घटाने से 
दूसरी सीमा ज्ञात हो जाती है । उपरोक्त उदाहरण ने० ४ में दी गई सामग्री से संभाव्य 
विश्रम निम्न प्रकार.निकलेगा : 














सम्भाव्य विश्रम ः 

.- ०.६७४५ *- (८) )६ ?+052०6 €ढाा07 

हैः -०.6745 2-(.8) 
-- ० “६७४५ ><८ .०३६ </ १०० 
ञ- «०२४ --0,6747 »< .०26 
| का ०24 
. अब उपरोक्त उदाहरण का सहसम्बन्ध गुणक निम्न प्रकार लिखा जाना चाहिए; 

ब-८,८ -:००२४ | ॥55 8 --'024 का 


छा 


| उपरोक्त सहसम्बन्ध गुणक की सीमाएँ .८ + ०२४ या .८२४ और .८-.०२४ 
या .७७६ हुई । माताओं और पुत्रियों का यदि एक अन्य समूह देव निदर्शन ( ६27- 
१०७ $47/7£ ) से लिया जाय तो यह आशा की जा सकती है कि उस समूह 

में माताओं और पुत्रियों की आयु का सहसम्बन्ध गुणक इन दो सीमाश्रों के बीच 

होगा। न का 
यह जानने के लिए कि सहसम्बन्ध गुणक अर्थपूर्ण ($87700८॥70 है या 
नहीं निम्नलिखित बांतों का ध्यान रंना चाहिए। द ता 


सहसंबंध का सिद्धान्त ३८३े 


. (१) यदि सहसम्बन्ध शुणक अपने सम्भाव्य विश्रम से कम है तो सहसम्बन्ध 
. बिल्कुल भी अर्थपूर्ण नहीं है । 


(२ ) यदि सहसम्बन्ध गुणक सम्भाव्य विश्रम के ६ शुने से अधिक है तो वह. 
अर्थपूर्ण समझा जाता है। 


(३ ) साधारणतः यदि सम्भाव्य विश्नम अविक न हो और सहसम्बन्ध गुणक 
“५ या उससे अधिक हो तो वह शअ्रर्थपूर्ण माना जाता है। 

उपरोक्त उदाहरण में सहसम्बन्ध गुणुक सम्भाव्य विश्रम के ३० शुने से भी 
अधिक है, इसलिए यह श्रर्थपू्ण है। इसका यह अर्थ हुआ कि साधारणत: अधिक 
आयु वाली माताओं की पुत्रियों की मी आयु अधिक है, ओर कम आयु वाली माताओं 
की पुत्रियों की मी आयु कम | इसका यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक अधिक आयु वाली माता 
की पुत्री की आयु भी अधिक होगी। यह हो सकता है कि किसी अधिक आयु वाली 
माता की पुत्री की आयु सापेक्षुतः कम हो या किसी कम आयु वाली माता की पुत्री की 
आयु सापेक्षतः अधिक हो । यह याद रखना चाहिए, कि सहसम्बन्ध दो समूहों के 
सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है, उनके विभिन्न पदों के सम्बन्ध को नहीं | 


क्रमान्तर-रीति द्वारा सहसंबंब-गुणक की गणना 
- (एब्वॉटण[बलठा ठ 6067रसंलाई 06 <०घाटाबरा07 फ रिश्वांट 0८९00), 


कभी-कभी ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनमें समूह के.विभिन्न 

पदों को एक निश्चित क्रमानुसार तो रखा जा सकता है पर उन्हें परिमाणात्मक (१पथ- 
४४८०८ए८) रूप में नापना संभव नहीं होता, जैसे कोई अध्यापक कक्षा के विद्यार्थियों 
की योग्यता को क्रमानुसार रख सकता है अर्थात्‌ वह यह कह सकता है कि एक विद्यार्थी 
दूसरे से अधिक योग्य है या कम, पर वह यह नहीं बता सकता कि पहला दूसरे से 
कितना अधिक योग्य है, वैसे विद्यार्थियों की परीक्षा लेकर उनके प्रात्तांकों के अनुसार 
योग्यता मानी जा सकती है | पर इस विधि को सही नहीं माना जा सकता | ऐसे कई 
गुण (१००॥४४८७) हैं जिनके लिए निश्चित परिमाणत्मक माप नहीं हैं-उदाहरणार्थ 
योग्यता, कुशलता ईमानदारी, सचरित्रता आदि । इसके साथ-साथ उन स्थानों में मी 
क्रमानुसार विन्यस्त सामग्री का उपयोग करना पड़ता है जहाँ समय, द्रव्य या उपादानों 

. (ह50:७४7८7४9) के. अभाव के कारण बिलकुल सही परिमाणात्मक श्राप लेना संभव 
नहीं होता-। संगणना (००००००५४४॥०7) के श्रम से बचने के लिए. भी इस विधि का, 


:इप्य४ड सांख्यिकी के सिद्धान्त 


उपयोग किया जाता है । जैसे यदि समूह के प्रत्येक सदस्य की लम्बाई नापी जाय तो श्रम 
अधिक करना पड़ेगा | पर सदस्यों को क्रमानुसार आसानी से रखा जा सकता है| 


मान लीजिए किसी समूह में एक चल (लम्बाई ) के मूल्य ७०”, ६६", ६५7, 
६३”, ७३/ हैं | इन्हें यदि क्रमानुसार रखा जाय तो पहला क्रम-संख्या ७३ की होगी ओर 
“इसका क्रम-स्थान (7%7:) १ होगा, दूसरी ७०” होगी, इसका क्रम स्थान २ होगा, इस 
प्रकार ६६, ६५ और ६३ के क्रम-स्थान क्रमशः ३, ४ ओर ५ होंगे | इसी रीति से 
दूसरे समूह के सदस्यों का भी क्रम-स्थान निर्धारित किया जा सकता है। अधिकतम मान 
वाले पद का क्रम-स्थान १ है, इससे कम वाले का २ और इसी प्रकार प्रत्येक पद के 
लिए | यदि किसी क्रम-स्थान के लिए. दो पद्‌ एक साथ हों तब उन दोनों के क्रम- 
स्थान निकालने में साधारण सी कठिनाई होती है। मान लीजिए दो पदों का मूल्य 
समान है और उनकी क्रम-संख्या तीसरी है तो उन्हें उन क्रम-संख्याओं की माध्य-क्रम 
'संख्या दी जाएगी जो कि उन्हें तब मिलती जब्र क्लि उनमें थोड़ा सा अन्तर होता | इस 
नियम के अनुसार इन दोनों पदों की क्रम-संख्या व २.५ होगी ओर अगले 
'पद की क्रम-संख्या ५ होगी। 


द इस प्रकार दोनों श्रेणियों की कुल सामग्री की क्रम-संख्यायें निर्धारित करने के 
- पश्चात्‌ क्रम संख्याओं का अन्तर मालुम किया जाता है। सहसम्बन्ध गुणक निकालने 
'के लिए. निम्नलिखित सून्न का प्रयोग किया जाता है। 














ब्‌ _ ५_ ६( चर) जा कि 
.. सास*े- १) न) 
श ३८7९, 77-८८ (0०८४[८०८४६ ०६ 
-जब कि, २८-संहम्बन्ध ०077९]40007 
गशुणक >82 +--76 4003] ०६ 
॒ यो. २ >> क्रम-संख्याओं के 76 0787670८83 
गन्तर के वर्ग का ० (6 427:5 
योग $0प४7८त पछ 
-स॒ -पद-संख्या घ८- प्रपापर०6: 0६ 
06॥78 





२५ सहसंबंध का सिद्धान्त ३८५ 


निम्नलिखित उदाहरण से यह रीति स्पष्ट हो जाएगी । 
उदाहरण ५: | | 
निम्नलिखित श्रेणियों के लिए क्रम-स्थान निर्धारण रीति (४ध४7८72- 
7772:700) से सहसम्बंन्ध गुणक की गणना कीजिए, । 
सारणी संख्या १५ 











क्‍ य| ६० | ३४ | ४० 





५० | २४ | ४१ २२ | ४३ ४२ ६६ | ६४ | ४६ 








६ | ७४ | ३२ | ३४ | ४० | ४५ | ३३ | १२ | ३० | ३६ | ७२ | ४६ | ५७ 5 । 











र | ७५ | इ२ | ३४ 


हल : 











४५ | ३३ १२ | ३० | ३६ ७२ | ४१ | ५७ 





क्रम-स्थान निर्धारण रीति से सहसम्बन्ध शुणक निकालना 
सारणी संख्या १६: 



































| क्रम-स्थानों 
य्‌ क्रम-स्थान र्‌ क्रम-स्थान | का अन्तर चि (6)) 
__ ४) [(छथए० _ (९०॥) (ए) (१५४४८) व (0) द 

६० डे ७५ १ र्‌ ४ 
३४ ११ ३२ १० रे १ 
४० १० ३४ ष्र र्‌ ४ 
पूछ है ७० ६ - रे ड 
है. ६ ४9, है २ है 
है & शेर ९, ० ० 
२२ श्र १२ ५१२ ० ० 
डरे ७ ३० ११ न- ढें १६ 
४र्‌ प्र ३६ ७ रे ५ 
६६ १ ७२ २ “+ १ 
६४ र्‌ ४१ फू -- रे € 
४५ है पूछ रे र्‌ है 

। गो यी _.२* 
च्च्‌ न्च्‌ 

|. | |; (0) 5१२ घन ० -- धप्र 
_ (५9) ((59ः) | 


























श्प 


सहसम्बन्ध गुणक : 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


77 


सारन्‍पय्मनानाक 

















कभी-कभी एक श्रेणी के दो या अधिक पदों को एक ही क्रम स्थान दिया जाता 
है। ऐसे स्थानों में उस पदों को दिए. गए क्रम स्थान माध्य क्रम स्थान होते हैं । जैसे 
यदि एक श्रेणी में दो पदों के क्रम स्थान ५ हैं तो प्रत्येक को ५ और ६ की माध्य संख्या 
क्रम-स्थान के रूप में दी जाएगी अर्थात्‌ प्रत्येक का क्रम-स्थान ५३ होगा ओर इसके 
बाद आने वाली संख्या का क्रम-स्थान ७ होगा । ऐसी दशाओं में क्रम-स्थान सहसंबंध 
शुणक के मूल्य में कुछ संशोधन करना पड़ता है क्‍योंकि इसका सूत्र इस कल्पना 
(28४०777/307) पर आधारित है कि किसी समूह या श्रेणी के दो पदों का एक ही 


क्रम-स्थान नहीं हो सकता । 


यदि किसी .समूह में इस प्रकार संयुक्त की हुई संख्याओ्रों के एक. वर्ग 





- 


(2 ) एप्व्ः 








न 


(.0227070067६0 ०६ (६07729.0५ 


6 (५09) 

9 (052 - 7) 
" 6 (48) 

|. व० (722 - 3) 
286 

व776 

7420 

7776 











"82. 


॥ै तने 


जे अभआ--+ाा भय 5 


(87००७) में 'म! : (०9) : सदस्य हैं तो च के मूल्य में दए (मं 3-म ), 


सहसंबंध का सिद्धान्त 


रे८७ 


[ ३, (775 - 90) ) जोड़ दिया जाता है और फिर पिछुली रीति से सहसंबंध शुणक 
की गणना कर ली जाती है। अगर इस प्रकार संयुक्त वर्ग एक से अधिक हैं तो इस 


सूत्र (अर्थात्‌ बौइ (म३ -म) को उतनी ही बार जोड़ना पड़ेंगा। 
उदाहरण ६: 


निम्नलिखित श्रेणियों का क्रम-संख्या निर्धारण रीति से सहसम्बन्ध गुणक 






























































निकालिए | 
सारणी संख्या १७ 
ये | ४४ | ३३ | ४० | ६ | १६ [१६ ६५ | २ ४८ | ३३ ४० | ९ | १६ | १६ | ६५ | २४ | १६ | ५७ 
र | १३ १३२४ ६ ५ | ४ २० | ६ १३ | २४ | ६ [१५ | ४ [२० | ६ | ६ | १६ 
हल: 
क्रम-संख्या निर्धारण रीति से सहसम्बन्ध शुशुक निकालना । 
सारणी संख्या १८ द 
गम य्‌ | र | अम-स्थान | का हि द 
(5) (९ ७॥:) (9) (९५7) च(०) च"(0*) 
थ्ष्य रे १३ ४ - २.५ ६.२४ 
३३ ण्‌ १३ ५.५ -+ ०.४ "२५ 
४० है. २४ ॥ न २०० ६.०० 
९ १२० ६्‌ प्प्भ न+१.५ | २.२४ 
१६ ८ श्ष्‌ ४ + ४.० १६.०० 
श्ध्‌ ८ है. | १० ** २५० ७,0०० 
६५ १ २० र्‌ - ९,० १५,०० 
२४ दर ९ ७ - ९५० १.०० 
१६ ८ छ्‌ ८.५ |. “०.*, रेप, 
पर र्‌ | १६ डे ९.० - १,०० ० न क- 
स (9) 55१० ब्० ५ ८5++४१९०० 
(>0) (502) 




















श्ष्प्प सांख्यिकी के सिद्धास्त 


य श्रेणी में १६ तीन बार आता है इसलिए इनके क्रम-स्थान ८ लिखे गये हैं 
(- है ्््ख पे -) | र श्रेणी में १३ और ६ दो-दो बार आते हैं। इनके क्रम-स्थान 





क्रमशः ५.५ और ८.५ लिखे गये हैं ( ओर व्यू) इनके कारण सहसम्बन्ध 
शुणक निकालने में संशोधित सूत्र का उपयोग करना पड़ेगा । 


संशोधन के लिए यो च * (५02) में ५ (म  - मे) [दब (77-77) | 
के मूल्य जोड़ने पड़ेगें | य श्रेणी के लिए 4६ (मर -म) बराबर ३६ (३२ - ३) 
हुआ, (क्योंकि इस श्रेणी में १६ तीन बार आया है। र श्रेणी में दो संयुक्त वर्ग आये 
हैं। पहले के लिये इसका मूल्य 3६ (२२ -२ ) हुआ (क्योंकि १३ दो बार आया है) 
ओर दूसरे के लिए. भी इसका मूल्य ३६ (२३ - २) हुआ (क्योंकि ६ भी दो बार 
आया है) । अब | 




















ब_५_ ६योच*+३३ (सम -म) 
सउ-_-स 
_.३_ न बेइ (हरे) बेड (7२) (रे) 
टः ६०८०-१० 
- १-६ (४१- २-५४) 
६९० 
१-१ 
् 
व्यू न «७३े 
॥7 6[ (202-+,3 (777 - ॥7) न 32 | (77) 
॥ 8 । 8 
7 - *[47+42(37-35)+72(27-2)+ 7 2(22- 2) ] 
707 -.. १0 
6(47+-2+-.5+.5) 
990 : 
., 77 
नल्ग्णुदु 


मनन न. 73 


सहसंबंध का सिद्धान्त - ३८९ 


संगामी विचलन गुणक 
((.०९ग८टा४7६४ 0६ (६08८प४९४६ 6ए72078) 


कभी-कभी दो श्रेणियों के मध्य सहसम्बन्ध की एक बहुत साधारण सी गणना 
की आवश्यकता पड़ जाती है, जहाँ पर कि सुतध्यता ओर परिशुद्धता का विशेष ध्यान 
रखना आवश्यक नहीं होता । ऐसी परिस्थिति में संगामी विचलन शुण्क निकाल लेना 
पर्याप्त होता है। इसके द्वारा दो श्रेणियों में विचलनों की दिशाओं का सहसम्बन्ध 
निकाला जाता है। इससें विचलनों की मात्रा की गणना नहीं की जाती केवल उनकी 
दिशा ही का ध्यान रखा जाता है । 


यह पहले बताया जा चुका है कि यदि दो काल-श्रेणियों के अ्ल्पकालीन परि- 
वर्तन में धनाव्मक सहसम्बन्ध है, अर्थात्‌ यदि उनके विचलन संगामी (००४८७४::८॥४) 
हैं तो उनके वक्त एक ही दिशा में होंगे ओर यदि उनके विचलन संगामी नहीं हैं 
तो उनके वक्र विभिन्न दिशाओं में होंगे ओर इस बात का संकेत करेंगे कि उनमें 
ऋषणात्मक सहसम्बन्ध है, संगामी विचलन शुण्क इसी आधार पर निकाला जाता है 
ओर साधारणतः यह अल्पकालीन परिवतेनों का ही सहसम्बन्ध बतलाता है । 





संगामी विचलन शुणुक निकालने के लिए विचलन, माध्य या चल-माध्य की 
रीति से नहीं निकाले जाते, विचलन पिछली कालावधि से लिए जाते हैं। यह ध्यान 
रहे कि विचलनों की मात्रां नहीं लिखी जाती केवल दिशा ही लिखी जाती है। संगामी 
विचलन शुणक का जो सूत्र नीचे दिया जा रहा है उसका अधिकतम मूल्य -: १ ही 
होता है । 


संगामी विचलन गुणक 


वि + ४ 








जबकि, वि संगामी विचलन 
शुशुक 
गा >5- संगामी विचलन 


युग्मों की संख्या 
स -- अ्वलोक युग्मों 
की संख्या 


३९० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(!0९(४९९०६ 0६ (/07८प॥:/6९7४ 


]027360॥8 


का, 


ए6॥९, ६--००८मिलंला: 0 








०07९प४८7 

962०440078$ 
८५--४प॥३०९४ ०६ 
02/॥5 0६ 
007८7॥7९०॥६४ 
067442/0775 

75+]07796॥ ० 
02/45 


निम्नलिखित उदाहरण से, उपरोक्त सूत्र स्पष्ट हो जायगा । 


उदाहरण ७ : 


निम्नलिखित सामग्री से संगामी विचलन शुणुक निकालिए | 


सारणी संख्या १९ : 




















का पूर्ति-देशनांक मूल्य-देशनांक 
१९४३ १६० रह्‌र२ 
१६४४ १६४ २८० 
१६४५ १७२ २६० 
१६४६ १८२ २३४ 
१६४७ १६६ २६६ 
१९४८ १७० २५४ 
१६४६ १७८ २३० 
१९५० १९२ १९० 
१६४१ १८६ २०० 











सहसंबंध का सिद्धान्त 


३९१ 
































पूर्ति और मूल्य देशनांकों का संगामी विचलन गुणक निकालना 
सारणी संख्या २० 
हद मूल्य | 

वर्ष. क हशान पिछले वर्ष |. .. [पिछलेवर्ष | ...२ 
(००४) पूति देशानांक| से विचलन | मूल्य देशनांक। से विचलन (5:2८ ए) 
४ य (5) र (५) 
१६४३ १६० २९२ 
१६४४ १६४ हु २८० ना ना 
१६४५ १७२ न २६० ना "ः 
१६४६ १८२ न २३४ ना “5 
१६४७ १६६ - २६६ न जा 
१६ ४्ट १७० न २५४ ना ध् 
१९४६ श्ड्ष्द न २३० न ना 
१६४० १९२ न १६० पा ना 
१६५१ १८६ एे | २०० गा ण 





. संगामी विचलन गुणक 


उपरोक्त उदाहरण में; 


सर 








वि: +- है + (5 र्गाय्स सं ) 


--८ ( क्योंकि सन्‌ १६४४से १९४१ 





तक के विचलन ही लिए जा 

सकते हैं ) 
गा--० ( क्योंकि किसी भी अवलोक 
युग्म के विचलन संगामी 

नहीं हैं ) 











| 


| 

















(.06/8ट2600 0६ (०॥7८टप४:०४६ 
[267]4078$ 


 */7 (*|) 


॥7 ६76 20096 65०४॥०6 








75:98 ( 285 07!ए ए6४85 
7944 ॥0 7957 या 
96 ६2६९४ [700 
..._ 8००0 प्रत्मा) 











३६२ सांड्यकी के सिद्धान्त 


उपरोक्त उदाहरण में संगामी विचलन शुण॒क - १ आया है, इसका अर्थ यह 
हुआ कि इन दोनों श्रेणियों में पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध ( 0277८८८ 7684 ए८ 
८0:7०]2:07 ) है । जन्न-जब पूर्ति देशनांक बढ़ा है तब-तब मूल्य देशनांक धय है, 
इसीलिए, य/८२ ( £ ८ ए ) सदैव ऋणात्मक रहा है। यदि दो श्रेणियों में संगामी 
विचलन होते हैं ( चाहे वे धनात्मक हों या ऋणात्मक ) तब य < २ (5 >< 9) धनात्मक 
होता है ओर जितनी बार ऐसा होता है वही गा (८०) का मूल्य होता है । 


प्रश्नावली 


(१) आप सहसम्बन्ध से क्या समभते हैं? क्‍या यह दो विचरणों 
(ए०४9)]८8) के मध्य कारणु-प्रभाव की घनिष्टता को प्रकट करता है ? 
(एम० काम०, राजपूताना १६४२) 
(२) सहसम्बन्ध का क्‍या अर्थ है ? इसके गुणक के निवेचन के साधारण 
नियम बतलाइए । (एम० काम ०, इलाहाबाद, १६५४४) 
(३) सहसम्बन्ध से आप कया सममते'हैं ? उसकी. अथे सूचकता को 
स्पष्ट कीजिए । सांख्यिकीय दृष्टि से इसकी गणना आप किस प्रकार करेंगे ! 
(एम० काम०, आगरा, १६४५) 
(४) सहसम्बन्ध किसे कहते हैं ? स्पष्ट कीजिए कि सहसम्बन्ध ज्ञात 
करने के लिए आप निम्तरीतियों का प्रयोग किस प्रकार करेंगे ; 
(१) विन्दुरेख (२) सहसम्बन्ध सारणी (३) काले पियरसन का सह- 
सम्बन्ध गुणक । ( बी० काम ०, आगरा (१६४०) 
(५) निम्नलिखित सारणी से सहसम्बन्ध गुणक निकालिए | 





न ननल ननन सन्त रत -“-१०००|-८४०० -४०० कमा -६०० |-१००० 








अल 


- २६०० + २३०० -न- २४० ०।--१२०० 


“ २६०० 




















“- २१०० न--१८००+-३००० 














(274८८) 0709]6775 47 564080208 ०, 732) 

(६) निम्नलिखित सारणी में १६२४७ से १६३१ तक इंगलैण्ड के. 

२३४७० उत्पादन तथा पंजीकृत (:०25६०7:८०) बेकारों की संख्या के देशनांक 
दिये गये दे । द 





सहसंबंध का सिद्धान्त ६३ 











वर्ष ओद्योगिक-उत्पादन पंजीकृत बेकार व्यक्तियों को 
देशनांक संख्या (लाखों में) 

हःः ६२४ १०० ॒ ह ११९३ ।क्‍ 

5६२५ १०२ १२४ 

शहर १०४ १४६० 

१६२७ १०७ १५११ 

श्ध्स्प १०५ १२*३ 

१९२६ ११२ १२२ 

5६३० १५०३ १९२ ४ 

१९३१ ९४ २६"४ 














उत्पादन तथा बेकारों की संख्या का सहसम्बन्ध गुणक निकालिए । 
(बी० काम ०, लखनऊ, १६४४) 
(274८८८४स ?:४00]९705 48 584/858005 ०. 7535) 


(७) निम्नलिखित सारणी में सन्‌ १६१३-१४ से १६३१-३२ तक भारत 
से कच्चे कपास का निर्यात तथा सूती कपड़ों के आयात का मूल्य दिया 
हुआ है: 











वर्ष कच्चे कपास के निर्याव | सूती कपड़ों के आयात 
१९१३-१४ ४२ ५६ 
१९१७-१८ ४४ ४६ । 
१९१९-२० प्र भूरे । 
१९२१-२२ प्५ पूपर 
१९२३-२४ ८६ ६४ । 
१६२९-३० ९्ध ७६ । 
१६३१-३२ ६६ प८ । 














कच्चे कपास के निर्यात तथा सूती कपड़ों के आयात का सहसम्बन्ध 
गुणक निकालिए | 


(बी० काम, नागपुर, १६४४) 
( ए?:4८४ ८४४ ?/006775 ]7 5080800$ २०, 734 ) 


ले ६४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(८) निम्नलिखित सामग्री से निर्बाह-ठयय तथा साप्ताहिक मजदूरी का 
सहसम्बन्ध गुणक॑ निकालिए । द 














तिथि निवहि-व्यय देशनांक | साप्ताहिक मजदूरी-देशनांक द 
१६२० १४१ १४५५ 
१६२१ ११० १२० 
(६२२ १०२ ९९ 
१९२३ १०१ ९८ 
१६२४ १०२३२ १०१ 
१९२४ १०० १०१ 
१६२६ १५०० १०२ 
१६२७ ६६ ९१०० 
श्ध्य्द ६५ ६९ 
१६२९ ९५ ९९ 
१६३० व्य्छ ब्ट 
१६३१ क्‍ प्य्ड ९६ 
१६३२ प्र ९४ 











(एम० ए०, इलाहाबाद, १६३१८) 

(?४३८0८४ ?0707967758 ॥] 504087८5 ४०, 776) 

(६) निम्नलिखित सारणी से यह मालूम कीजिए कि भात्त में, कहाँ 

तक, मूल्यों में उच्चावचनों का द्रव्य-प्रचलन की मात्रा से सम्बन्ध है क्‍ 











वा ओ रुपया तथा नोट प्रचलन सें। मूल्यों के देशनांक 

__ है (करोड़ों में) (१८७३५७-० १००) 
१६१२ र्ष्८ ५२७ 
१६१३ २५६ १४२३ 
१९१४ २४८ १४७ 
१६१५ २६६ १५२ 
१६१६ २६७ श्प्ड 
१९ १७ रेरेप १९६ 
श्ध्श्द द ४०७ २२५ 
१६१६ ४६३ २७६ 
१६२० ४११ र्८र्‌ 
१६२१ ३९३ २६० 

















(?74८०८३॥ ?7006005 ॥0 50805020८8 ०. 740) 


सहसंबंध का सिद्धान्त २६५ 


(१०) निम्नलिखित सारणी में कलकत्ता तथा कराची में १६२७-२६४१९ 
की अवधि के लिए थोक-मूल्य देशनांक दिए हुए हैं । 





गा कलकत्ता देशानांक कराची देशनांक 


(आधार : जुलाई, १६१४) | (आधार :; जुलाई, १६१ ४) 

















१६२७ श्ष्द १३७ 
श्ध्य्ष्य १४५ १३७ 
श्ध्र€्‌ १४१ १३३ 
५६३० ११५६ श्ण्ष्र 
१६३१ ९३ ९्प् 
१५९३२ ९१५ ९९ 
१५९३३ व्य्छ ९७ 
१६३४ ह प्प६्‌ ९६ 
१५६३५ ९२ ९९ 
१६२६ ९१ १०२ 
१६३७ १०२ श्ण्प्र 
श्र्श्प्८ | ९्प्ू १०४ 
१९३९ १०८ १०८८ 
. १६४० १२० ११६ 





१६४१ १३९ १२० 








(अ) उपरोक्त दो श्रेणियों से सहसम्बन्ध गुशक की गणना कीजिए तथा 
रपष्ट कीजिए कि यह क्या दिखाता है । 


(ब) मालूम कीजिये कि क्या कल्कत्ता देशनांकों में, कराची-देशनांकों 
से अधिक विचरण है (बी० काम ०, इलाहाबाद, १६४४) 


( 2+28८४८% ?2/7079]6775 47 5020800$ २०. 747) 


(११) निम्न सारणी में सन्‌ १६३६ में हुई हाई स्कूल परीक्षा के परिणाम 
दिये हुए हैं. । 


३६६ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 





न की आयु १३---१४ 


हक लत-नलल 8७७33 लनननीनीन-ननीनीनीनननी न न+-+लन-नलीीननननीनननन नल नमन न न$++ननननन++++ न न न न न नननननलनना नाना न ननन न न नम भला ++ननंन-५-3४+वकननननन-नभ« ५५५>भ+८३+> 


(४-१५ १५--१६|१६-- १७१७-१८ रा 





असफल होने वालों 
__काप्रशत | _ || 





२९२ 


४०"६ ४३४ | ३४२ | ३६-६ 


/3->त+७४७००-म नव 








परीकज्षाथियों की आ्रायु १८--१९ 





१६-२० 





२०--११२१--२२ 





असफल होने वालों 
का प्रतिशत 





३९*२ ४८९ | ४७१ | पड़ 














सहसम्बन्ध गुणक की गणना कीजिए तथा सम्भाव्य विश्रम भी निकालिए। 
अपने परिणामों से क्या आप निश्चयरूप से कह सकते हैं कि असफलता का 
आयु से सहसम्बन्ध है 
(748८-९७ 707009[6775 व 54078008 ०, 744) 
(१२) बम्बई और कलकत्ता में सब वस्तुओं के मृल्य-दे शनांक निम्न 


(पी० सी० एस, १९४०) 

















प्रकार से हैं । 
वस्तु मूल्यों के देशनांक | वस्तु मूल्यों के देशनांक 
है (कलकत्ता में) (बम्बई में) 
मई, १९४२ - १६६ २०४ 
जून, १९४२ १८२ २२५४ 
जुलाई, १६४२ श्पर २२५ क्‍ 
शअ्रगस्त १६४२ १६२ श्स्८ 
सितम्बर १६४२ १६८ २२९ 
अक्टूबर १६४२ २०६ २३३ 
नवम्बर, १९४२ २२७ २४९ 
दिसम्बर, १९४२ र्शे८ २६६ 
जनवरी, १९४३ २४० २५५ 
| फरवरी १६४२३ २घ३ रफ्प 











क्या आप सोचते हैं कि बम्बई तथा कलकत्ता के मूल्यों में सहसम्बन्ध है ? 


(?:4०पं८4व 0709]९075 का 8008प08 ९०, ३45 ) 


. (एम० ए०, आगरा, १६४४७) . 


सहसंबंध का सिद्धान्त 


३९७ 


(१३) निम्नलिखित सारणी में कुल जनसंख्या, तथा उनमें से वे जो 
पूर्णतः या कुछ हद तक अन्धे हैं, का वंटन दिया हुआ है। क्‍या आयु तथा 
अन्येपन में कोई सम्बन्ध है ? चतलाइए। 


(बी० कोम०, आगरा, १६२६ ) 
(?४३८४०३४॥ ?7009]6700$ 47 50&08008., ४0. 746) 




















लय ाजजानाइहढडहईफ्खकचचल्चचखचचचचा 

व्यक्तियों की संख्या | > 

ताज (हजारों में) अन्य 
०-- ६० १०० हु 
प्ः > 
२०-- ३ ० ४० ४० 
है ०---४ ० ३६ ४० 
४०---१० २४ रेप 
५०--६५६० ११ २२ 
६६००-७० दर १८ 
७०---प्य० रे १५ 





(१४) निम्नलिखित सारणी से सहसम्बन्ध गुणक ज्ञात कीजिए । 































































































् >> 
५ १० १५ २० २५, ३० , योग 
१० १ १ र२्‌ ष्य १२ र्४ड 
१५ २्‌ ५ है ८० ११ | १०प् 
२० २ १५ | ४२ ध्च्र ३६ ८ | २०१ 
२५ ४ ५ । २० १ ३२७ १० २ १२५ 
३० ८ १६ | ८ | ४५ | ४ १ ४१ 
|. योग १६ | ५४ | ६९०७ १४१ | १३८ रेड | ४०० 























(एम० ए०, कलकत्ता, १६३७) 
(?:४०६४८३७) ९४०0]6075  802805003 ०. 748) 





र२े६८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(१४) निननलिखित सारणी से पति तथा पत्नियों की आयुओों के मध्य 
सहसम्बन्ध गुणक की गणना कीजिए तथा सम्भाव्य-विश्रम निकालिए | 





























पति को आय 
पत्नी की आयु एएछछण कण 
२ ०-३० ३ ०-7४ ०४०--*४०९ (५०--६५ ० ६०--४७ ० योग * ; 
१४--२४५ है € रे ० ९ १७ 
२४-- ३२४५ ० १० २५ २ ० ३७ 
३४--४५ ० १२ २ ० १५ 
४५---५५ ० है १६ ५ श्५ 
५५--६५ ० ० है २ ६ 
५ २० द ४४ २४ ७ १०० 




















(पी० सी० एस, १६३८) 

(ए:३४८०८३] ?:009608 47 5६20990८४ ०, 750) 

(१६) निम्नलिखित सारणी में प्राप्तांकों का बंटन दिया हुआ है। सह- 
सम्बन्ध गुणक तथा उसके सम्भाव्य विश्रम की गणना कीजिए । 














भूगोल में प्राप्तांक 

प्राप्तांकों का विस्तार | ०-१० | २०--४० ४०--६०|६०--८०| भोग 
पर ०--२० ३२ ८्द १५ | ... | १३५ 
२०---४ ० चण्‌ ३६ २०० है:4 ६८५ 
गंडर ४०---६० १६ ४०० शेध्य | २५ ६२६ | 
च् ६०--८० «० | १०५ | ५३१२ | ४० ६७७ | 
व 'ट०---१ ०० ००० ८ ४० १६ . दिए । 
योग तक ९३ १,१३७ | १,१८५ | ८५ | २,३०० 


























(एम० ए०, कलकत्ता, १६३४). 
(?74८0८३॥॥ -0?70796॥75 थ॥ 8980800८5 0. 75 7) 


सहसंबंध का सिद्धान्त ३६६ 


(१७) निम्नलिखित सारणी में विद्यार्थियों के विभिन्न ऊँचाइयों तथा 
बजनों की मात्रा दी गई है : 



































वज्ञ में 
ऊँचाइयाँ न पोड़ों में जग 
इंचों म॑ | 
८०--६०| ६०--१०० [१००--११०/११०--१२० १३ ०-१३ ० 
४०--५४ | १२ ३ ७. र पा 
४ ३--६५० र्‌ है १० .. ७ है २७ | 
३०-१४ | १ प्‌ १२ १० ७ ३५ | 
६४---७ ० ३ _पू द्‌ ३ २० 
योग हा श्पू ३७ श्द १६ १९२ | 























क्या आप उऊँचाइयों ओर वजनों में कोई सम्बन्ध पाते हैं ? 
(बी० काम ० इलाहाबाद, १६४०), 
(?742८0८९४ ?700]877$8 470 50205008 २०.३३ ०) 
(१८) निम्नलिखित सारणी में ६७ विद्यार्थियों द्वारा एक बुद्धि-परीक्षा 
में प्राप्त अंक, उनके आयु-वर्गो' के अनुसार दिए हुए हैं. । 



































क्‍ आयु वर्षों सें | 

परीक्षा में प्राप्तांक । 

१८ १६ | २० २१ योग 

२००--२४० | ४ है २ र्‌ ११ 

२५ ०---३ ० ० ३ पू है.4 २ १४ 

३००--३ ५० २ ६ प्र ५ २१ 

३५४०---४० ० र है ६्‌ ६. १० _ रू 
योग १० १९ २० श्ष ६७ 














क्या आयु तथा बुद्धि में कोई सम्बन्ध है ? (बी० काम० आगरा, १६४२) 

(?:4८0०१ ?+0फ९४75 40 5(408008 ०. 755) 

(१६) निम्नलिखित सारणी में मेरठ जिले के ६६ चुने हुए ग्रामों की कुल 

खेती-योग्य भूमि तथा वह भूमि : जिसमें गेहूँ बोया है, दी हुई है। सहसम्बन्ध 
गुणक की गणना कीजिए:। . 








(9६7 '9]ए ४्ण्उभष्व5 णु ध्प्पभृ१०्त [४०३०ध्75) 


(४४७३४ “०४ ०४ ०३॥४७) 






















































































्त 
॥4क्‍ 


क्‍ ' 2: । 
$ 33 ३८ कै द 
रे ७४७ री प्3 थ क्‍ 
कक 989 कक 09060 अब ० पक ह 
ए ६ ८ ४ ०2 
फि ह २ है कक 0 8 कक 599 यु हट 
कप ४ ८ ध्ा 
ट ः | कक है. 5 न्‍ि जता ००३--० ०५ 
बट | | 
€ ढी 
रे है है] हे ४३९ है ००/४--०० ७९ 
प्र 6९ ण 
१०० यु ०९ ००९०--० 
०28 क्छल 
_[_ | ८ परत | 
दर व... शु ऋजन्‍्णकब्क० है.) 
००भ८०:े-+०००९|०० ०६४--० ०४५३ | ० ०४९०-९९ ९ € ०००४--००४ ००४ 
_____ |  ्पपारनननतनप/।भ हैः ___ 
।॥ गा 
द (६ [७0)) शो धम्‌ ऐहे जा 





२६ 


सहसंबंध का सिद्धान्त 


४०१ 


(२०) निम्नलिखित सारणी में विवाहित स्त्री-पुरुषों के ५३ जोड़ों की 
आयु दी हुई हैं। पतियों तथा पत्नियों की आयु में सहसम्बन्ध गुणक की गणना 



































कीजिए | 
पत्नी की आयु 

पति की आयु योग 

ह 

१५--२ ५२ ५--३ ५ ३५ __«५ ५५-५५ ५५---६५/६५--७५ 
१५५--२५४ 4 ९ जाना 
- २५--३४५ र्‌ १२ २ * श्पू्‌ 
| ३५--४५ स्का डं २ 9 २ थ १५ 
४ ४-५ ३# कर्क डे ्‌ ५ ही ॥ 9 
| २-६५ ५०० २ | २ थ 
॒ ६४--- ७४ कक कक हक ५ र्‌ रे 
|" | |" || | ३ १७ १४ ९, ६ ४ | ५३ 

















(आई० ए० एस०, १६४५०) 


(?7१८४८६ ?707006005$ 47 350945८$ २०. 755) 


(२१) निम्न सामग्री से, परीज्षाथियों के एक बगे द्वारा एक परीक्षा के 
विषय अ तथा घ में प्राप्ताकों का सहसम्बन्ध गुणक निकालिए : 





डं०रे सांड्यिकी के सिद्धान्त . 


ता ख्र- 
प्राप्तांक ० १ 





. विषय ब--अधिकतम प्राप्तांक ५० 


__ ््््् [  न्‍क्‍ीयायए 
१--१५१६--२०११- ५२६--३०३१- ॥ 


















हुए हैं। सहसम्बन्ध गुणरू निकालिए। 

















२२ ३९ 


योग 





७ औी ०६ “७ ४» 


तब 

६०-९० १ १ ष् छ 

११-- १५ १ र्‌ ड़ १२४ 

२१--२५ २ डे 

२६--३ ० ५ 

३१--३२५ १ 
_..्लल न न्‍ज++ 7 विमिनिमिनििनिनिकिक न मत मा _ जन फिड-णणण+ 
| २ डे 





१३ ७९ | 


(बी० काम०, बम्बई, १६३६) द 
(0:2८०४८४ ?7०%6०8 | 5६2048008 ०. 750) 


(२२) निम्नलिखित सारणी में विद्यर्थियों की आयु तथा प्राप्तांक दिए 

























































































रे व _५- | १८-२० | २०--२ __४ | से भ्रेणी की 
र श्रेणी (प्राप्ताको ६--१८ | ८7२९ | ३०-३९ | ९९--* बारंवास्ताओं 
५ __| _ट्््यायपएपएपएएणएणा ओर का योग 
१०--२० २ हु ,०० द् 
२०--र ९ डरे रे २ १० 
३०---४ ० ' हे प्‌ धर १८ 
४0००-६० २ ड्ठे ड ११ 
५७५०--६० ५०० र्‌ २ फू 
६००७० | ०“. ___ २३३ १ ढ 
बारताओं का योग... रा ५ | ६ 
कक ._-. (एम० ए०, अलीगढ़, १९४१) 





(९४३८स८४ी ए:०- ९5 7 5६808008 ९०. 757) 


सहसंबंध का सिद्धान्त ड०३ 


: (२३) निम्नलिखित सारणी , ( जिनमें पिताओं तथा पुत्रों की आयु 
दी हुई हैं ), से सहसम्बन्ध गुणक की गणना कीजिए ओर साथ सम्भाव्य 
विश्रम भी निकालिए । ह 









































चप की पुत्रों की आयु 

वर्ष २| ६ | १० श्८ | २२ | २६ | ३० | योग 
५५---६० ६।| ५ ३ श्ड 
५०--५५ ८े।१०। ६(६ २ २६ 
४५०--५० २१३ ८| ४ २७. 
४००---४५ श्ष | एप दे ३५ 
३५०--४० क्‍ १५ | २० | ८ ४३ 
३०--३५ | ६ | १२ | २५ | १६ ५६ 
० १५ | २६ [२० | १ ६२ 
२०७०-२५ | २२ | १० २्‌ ३४ 
योग. | छश | डेट | ६२ | १३ | ४७ [२७ | १४ | ५६ ३०० 



































(?:2८घ८४ ?:00]673 7 5६8४580८$ ऐ०, 759) 


(२४) निम्नलिखित सारणी से कच्चे कोयले के उत्पादन ( उपनति- 
प्रतिशत, १६६७-१६१३ ) तथा औद्योगिक उत्पादन (उपनति-प्रतिशत, १८९७) , 
में सहदसम्दन्ध गुंणक की गणना कीजिए । क्‍ 





सांख्यिकी के सिद्धान्त 


४०४७ 


( ४४३) ॥0.%/४५ “०१ ०+४ ) 


०97 *0][च 809शण7घ36 एा ४्प्परभ्षण्त [६०१3>०50) 






























































#०|. 3४ ०्ल्‍ ध्य ३०५ श्टे ०६ #. ऐै 48: 
प्र टे $ ०१--० ४ 
टटै 8 ढे ०6--० 3 
है. ९ 6) ०2--०० 
३८ ट्ट शर्ट टे ०३-०४ 
हे ३ 5] पट ००३४-०७ 
हि | है है] ०३ 6-० ०६ 
35. 4 श्र छ ०2०९--० ६ ६ 
है भैे ०६४३--०४१ 
०६४--९४३|१९४--०४)|०१ 8 ००7००३ ००३०-०७» ०५ --- ०६2 [००-०७ ०6--० ३ |० 3 ० +»॥० 
(2 मी (2£ 
॥०४)॥22 ५ है॥२ (६५% ५22|॥0॥2)72 














सहसंबंध का सिद्धान्त ४०५ 


(२४ ) निम्नलिखित सामग्री से संगामी विचलन गुणक निकालिए:--- 
स अथवा अवलोक-युग्मों की संख्या ८:६६. 
गा अथवा संगामी .विचलन-युग्मों की संख्या -:३२ 
( ?४42८८४ ?॥009]6775 ॥7 5028४8728 ४०. 768 ) 


क्‍ (२६) निम्नलिखित सारणी में १२ विद्याथियों के इतिहास तथा भुगोल 
में क्रमशः प्राप्तांक दिए हुए हैं । संगामो विचलन कोर ति से सहसम्बन्ध गुणक 
_निकालिए | 








विद्यार्थी इतिहास में प्राप्तांक भूगोल में प्राप्तांक 
कृ ६५ द ३० 
य्व ४० ६.३ 4 
ग ३५ घ्प 
चध््‌ ७५ * २८ 
डः « छरे ७६ 
न्च ८८० र्ष 
लु ३२५ प्प० 
ज २० प्५्‌ 
भर प्प्ष | २० 
धन ६५ २४ 
ट्‌ ५४ ४५ 
ठ शैरे ६५, 

















( ?774८४०॥ ?70०6005 ॥7 5405708 ४०, 77० ) 

(२७) निम्नलिखित सारणी, (जिसमें इस्पात व्यवसाय में १२ मद्दीनों के 

इस्पात उत्पादन तथा बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या दी हुई दे) से संगामी 
विचलन गुणक निकालिए | 


डग्द.... सांख्यिकी के सिद्धान्त 

















ए्न्‍ाभा इसतका उत्तानन | बेरोजगारों की संख्या की संख्या 
माह . (हजार टनों में ) (हजारों में) _ 

जनवरी >> ६० 

फरवरी 8.२ ६५ 

मार्च. ९,३ ६१ 

अप्रेल ष्पप्‌ ७४ 

मई है ७.२ ९२ 

जून क्‍  पू६ १५७ 

जुलाई ' धूश १३० 

अगस्त ६,६ १०६ 

सितम्बर. ७.९ . ५८ 

अक्टूबर ७.६ द ८० 

नवम्बर . ८.२ | ....पू० 

द्सिम्बर ९,३ द ४५, 











( 72०८३ ?0:09]८778 47 : 9090800$ 7४०. 772 ) 
(२८) संगामी विचलन रीति से चावल के मूल्य तथा वर्षा में सद्द- 
संबन्ध गुणक निकालिए | 














चावल का मुल्य म 

वर्ष (प्रति मन रुपयों में) वार्षिक वर्षा (इंचों में) 
१९३६ . २४.५ १२७ 

१९४० .. २३.६ १२६ 
क१ ९४१ २२.६ १२६ 

१६४२ ३३.४ १३९ 

१९४३ ३३५१ द श्३्२ 

१९४४ ३२.७ १३५४ 

१९४५ ३३,० श्डण 

१९४६ ३२५० श्रेरे 

१९४७ ३२.३ ' १४९ 

१९४८ ३३.१ १२६ 

१६४९ रे२.२फ. “. १४४ 

१६५० ३३.८ . श्र... 











(074८ए८३) 0:00]2700$ 40 5६20500८5 ०. 773) 


(२६) निम्नलिखित सारणी से अल्पकालीन प्रदोल्ों का सहसम्बन्ध 
गुणक निकालिए। दशमलवो को आप छोड़ सकते हैं । 


: सहसंबंध. का सिद्धान्त ४०७ 


























हर ह छू ... शर्म ”.पपपवपपपपिपिपिपए।ए/ प::भभपपभपैद-_--++- १४६ 
१६२२ परे | पी 
१६२३ पद कल 
श्ध्र्ड ह् . १३६ 
१६२५ । प्परे क्‍ श्शे३ 
१६२६ ते ११५ 
१६२७ न पा 
श्ध्र्द ध्द . का 
१६२९ धरे ००० 


. बी० काम०, इलाहाबाद, १६७३) 
(?:72०४८४ ?2700॥2005 47 902050८8 २०, 774 ), 
(३०) निम्नलिखित सारणी में १६२७-४१ की अवधि के लिए कलकत्ता 
तथा कराची के थोक मूल्य देशनांक दिए हुए हैं । 








| कलकत्ता देशनांक कराची देशनांक 

आधार:(जुलाई १९१४) | (आधारःजुलाई ९११४) 

१६२७ श्ष्प १३७ 

श्ध्र्८ १४५ १२७ 

१६२९ १४१ १३३ 
ह १६३० श्श्६दू [.[. श्०्प्प 
१६३१ ६६ .. ९पू 

.. #ह#ह३र ..... ध्‌ ९९ 
. १९३३ | ८७ ९७ 
१९३४ ८६ ६६ 

१९३५ ९१. ९६ 

१६३६ ६१ १०२ 

.. १६३७ १०२ ., रण्८ 
१९३८ हे ९५ १०४ 

१९३९ द र०प्ए ..[ ' श्ण्प 

१९४० १२० ११६ 

१९४१ १३९ १२० 

















पंच वर्षीय चल-माध्य लेते हुए उपरोक्त देशनांकों में अल्पकालीन 
भ्रदोलों का सहसम्बन्ध गुणक निकालिए । दशमलवों को आप छोड़ सकते हैं । 
(072४८४८४) ?:006775 ॥7 5८208005 .२०. गए3) 


छ०्ष .._ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(३१) निम्नलिखित सामग्री से निर्वाह व्यय तथा साप्ताहिक मजदूरियों 
में अल्पकालीन प्रदोलों का सहसम्बन्ध गुणक निकालिए 

















7 निर्वाह व्यय देशनांक । साप्ताहिक मजदूरी ९शनांक 
१९२० १५१ श्प्षू 
१९२१ २१९१० १२० 
१९२२ १०२ ९६ 
१९२३ . १०२१ ९८ 
१९२४ १०३ १०१ 
१९२४, कर ५१०० १०१ 
'१९२६ द १०० १०२ 
१९२७ ६६ १०० 
१६२८ ... ६५ ६६ 
१६२९ ६५ ६६ 
१९३० द ८७ ६८ 
. १६३१ ८४ ९६ 
१६२२ ८१ ९४. 














(कल्पना कीजिए कि इसमें पंचवर्षीय चक्र हैं।दशमलवों को आप 
छोड़ सकते हैं क्‍ 


(?:३८घ८४॥ ?2709]6705 7 5:909800$ २०. 776) 


(३२) परीक्षाथियों के दो परीक्षाओं में प्राप्तांकों के क्रमस्थान ( 720: ) 
इस प्रकार हैं । 


(१, १), (२. १० ), (३.३), (४:४ ), (५.५), (६.७ ) 
(७, २ |» (८, ६ ), (६. ८ ) (१०, ११), (११ १४) $ (१२.९) 
(१३.१४), (१४. १२), (१५-१६), (१६. १३). 


क्रमस्थान सहसम्बन्ध गुणकऋ ज्ञात कीजिए 


४ (३३) बारह परीक्षाथियों के अंकगणित व वीजगणित में प्राप्तांक इस 
अकार है, | 


सहसंबंध का सिद्धान्त ४०९ 


अंक गणित (य) धीज़ गणित (र) 
६० ३५ 
३४ ३२ 
४० डरे 
४6 8४० 
डर है 
५9० ३३ 
र्र १२ 
४३ ३० 
छ२ ३७ 

' ढद ७र्‌ 
६४ 782 
४६ . ' ७ 


क्रमस्थान सहसम्बन्ध गुणक ज्ञात कीजिए । 


(३४) नीचे दिये हुए य और र चलराशियों में क्रम स्थान सहसम्बन्धा 
गुणक ज्ञात कीजिए | 


य । य्‌्‌ 
उप... १२४ 
प८९ १३७ 
९७... १५६ 
६९ ११२ 
कि १०७ 
७९ १३६ 
श्८ १२३ 
३१५ श्ग्प 


(३५) निम्नलिखित सामग्री से राष्ट्रीय आय व अखबारों की बिक्री में 
क्रमस्थान सहसम्बन्ध गुण॒क ज्ञात कीजिए । 


९० 


बे 


१९३० 
१९३१ 
१९३२ 
१९३३ 
१६३४ 
१९३५ 
१९३६ 
१६३७ 
१६३८ 
१६३६ 
१६४० 


य्‌ 


७४ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


. * अखबारों को बिक्री 
(द्श ज्ञाख अंकों में) 


ट८ 


३९.६ 
श्णाप 
३६.४ 
३५.२ 
२६.७ 
८.२ 
४०.३ 
४१.७ 
३६.६ 
३६.७ 
४१.१ 


ढ्षू 











रू 





(३४ 





१५० 


' ७० 


| ६७ 


राष्ट्रीय आय 
(द्श लाख अंकों में) 


६८.९ 
४४.५ 
| ४०.० 
४२.३ 
४९.५ 


०.७ 
६४.६ 


७२.४ 
. ६७-२ 
 जदाप 
७७.४ 


<७० 


ष्प््‌ 








(११५ 





(११० 


१४० 




















१४२ 





. (३६) निम्नलिखित सामग्री में क्रस्थान सहसम्बन्ध गुणक निकालिए 


प्‌ 0 


१०० 


(?2798८(९३) [2£09]075 |0 $६280$0८$ )०, 764 ) 





निम्नलिखित सामभ्री से क्रमस्थान सहसंबंध गुणक निकालिए ; 


[| 


२२ 











२९ 


८० 


७७ >> 





श्र 


३३ 


पं 


प्‌ 








५२ 





४६ 


३७ 











डप्प 


( शिब८ंल्थं 07079९पराड उधर 5६5८5 २०. 765 ) 





७८ | ७५ 


हनन ६७ ह ६ बा 


कक 


_ (३८) निम्नलिखित सामप्री से क्रमस्थान सहसम्बन्ध गुणक निकालिए : 


५६ 














| श्र | १३ | १४ | (४ 





१४ १६ १५ 








१७ 


(2:2८(९॥। ?7006775 470 5६28४$0८8 ]५०. ३ 66) 


सहसंबंध का सिद्धान्त ४११ 


(३६) सुन्दरता प्रतियोगिता में भाग लेने वाले १० प्रतियोगियों को तीन 
निर्णायकों ने निम्न क्रमस्थान दिए : 











पा १ ६ ५७ | ३| २| ४| *| ५ | १० 

















द्वितीय निर्णायक | ३ ५| ८| ४ न्च्गन १० 
तृतीय निर्णायक | ६ | ४ ९. ८ छह | ४ १ २ ३ | १० | ५ ऐ; 


क्रमस्थान सहसम्बन्ध गुणक से ज्ञात कीजिए कि कोन से दो निर्णायक्ों 

के विचार सुन्दरता के बारे में सबसे अधिक समान है। 
क्‍ ( एम० ए०, इलाहाबाद, १९४५२ ) 
(?:१८तं८श 00००5 47 94080४८७ 7२०, 7७7 ) 
































अध्याय २१४ 
अन्तगेणन 


([7८:०0290४07) 
अन्तगेणन का अथे 


दो परस्पर-संबंधित चलों के विभिन्न मूल्यों की सामग्री एक संतत श्रेणी के रूप 
में नहीं दी जाती और न ही ऐसे मिलती है, बल्कि खंड़ित अंणी के रूप में दी जाती 
है | अर्थात्‌ कि एक चक्र, य, (5) के कुछ चुने हुए मूल्यों .के संगत एक दूसरे र, चल 
(9) के मूल्य दे दिए जाते हैं। कमी-कमी इस बात की आवश्यकता प्रतीत होती है कि 
पहले चल के किसी ऐसे मूल्य के, जो सामग्री में नहीं दिया गया है, संगत र (५) 
चल का मूल्य निकाला जाय। इस प्रकार मूल्य निकालने को श्रन्तर्गणन (॥7८४ 
70०१9४४०7) कहते हैं । जैसे, मान लीजिए दो चल, य ओर र के, जो परस्पर-संबंधित 
हैं, विभिन्न मूल्यनिम्नलिखित हैं : 


य (5) र(9) 
श्र 


0) $६ ७( आआ #छ ७ 
नव 
(चु 


क्‍ ७.६ 

इस सारणी में य (४) के कुछ मूल्यों, १,२,......। ६, के संगत र (7) के 
मूल्य दिए. गए हैं। इस सामग्री से य (£) के ३.४ वाले मूल्य के संगत र (ए) 
के मुल्य को निकालने को अन्तर्गणन कहा जाएगा | अतएवं कुछ मान्यताओं 
(955770078) के अनुसार अन्तगेंणन का अर्थ सबसे अधिक संभावित 
मूल्य का आगणन करना है। अन्तर्गयन में जिस मूल्य के संगत मूल्य का आगणन 


अन्तगंणन ४१३ 


करना द्वोता है वह सामग्री की चरम-सीमाओं के भीतर ही रहता है। उपयुक्त उदाहरण 
में आगणन को केवल तभी अन्तंगणन कहा जाएगा जब य (5) चल का मल्य १ से 
अधिक और ६ से कम हो | इस सीमाओं से बाहर के मूल्य के लिए, संगत मूल्य का 
आगणन करना बाह्मगणन (०८८:४००१४४४07) कहा जाता है। 


अन्तगणन का उपयोग 


अन्तर्गंणन की रीति का उपयोग मध्यका और भूमिष्ठक की गणना करे में 
किया जा चुका है| जब वर्गान्‍्तर ओर वर्ग-बारंबारताएँ: दी रहती हैँ तो इनका मूल्य 
निकालने में अन्तगंणन का उपयोग अनिवार्य है। पर इसका उपयोग इतना ही नहीं 
है। जहाँ कहीं भी रिक्तस्थानों की पूर्ति करनी होती है, अन्तर्गणन का उपयोग आव- 
श्यक है। ये रिक्त स्थान कई कारणों से हो सकते हैं। पहला कारण तो यह है कि सब 
विषयों के बारे में पूरी सामग्री का संग्रहण करना संभव नहीं है | ऐसा करने में न केवल 
प्रबन्ध-सम्बन्धी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि, साथ ही साथ, बहुत 
अधिक परिमाण में द्रव्य का व्यय भी करना पड़ता है, इनको सामने रख कर अगर 
पर्यात ओर परिशुद्ध सामग्री की उपयोगिता पर विचार किया जाय तो यह स्पष्ट हो 
जाता है कि ऐसा करना लाभप्रद नहीं है । इस कारण प्रायः सामग्री अ्रपर्याप्त रहती है। 
इस संबंध में जनसंख्या का उदाहरण दिया जा सकता है। जनगण ना प्रति दसवें वर्ष 
की जाती है, पर दशक के बीच के वर्षों की जनसंख्या जानने की आवश्यकता पड़ 
सकती है। इसके लिए जनगणना करना संभव नहीं है। ऐसी दशा में अ्न्तर्गंणन 
का उपयोग करना पड़ता है | फिर, यह भी संभव हो सकता है कि कुछ कारणवश 
किसी वर्ष या मास या सप्ताह विशेष के लिए सामग्री-संग्रहण न किया गया हो या 
संग्रहित सामग्री नष्ठ हो गई हो | उस सामग्री के बारे में केबल कल्पना की जा सकती 
है | पर इस प्रकार की हवाई कल्पना करने की अपेक्षा यह कहीं अधिक अच्छा ओर 
विश्वसनीय है कि उस सामग्री का अन्तर्गंणन द्वारा अनुमान या आगणन किया जाय। 
इसी प्रकार भविष्य के लिए या ऐसे अतीत के लिए जब सामग्री संग्रहण नहीं किया 
जाता रहा हो, बाह्मगण न (०:५5::200)4007) का उपयोग करना पड़ता है। 


अन्तर्गंणन करने की दो रीतियाँ हैं विन्दुरेलीय रीति (879[00 ॥7०९00700) 
झोर बीज गणितीय रीति (४/2००८४८ 7८८॥00) आगामी अनुच्छेदों में इन पर 
विचार किया गया है । 


४१४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


बिन्दु रेखीय रीति (0:2977८ )४९४7०० ) 


अगर पर्यात परिमाण में सामग्री उपलब्ध हो तो इस सामग्री को बिन्दुरेख- 
कागज में प्रांकित किया जा सकता है। इस प्रकार प्रांकित बिन्दुप्रों से होता हुआ कोई 
संतत वक्र खींचा जा सकता है। यह वक्र दोनों चलों के परस्पर सम्बन्ध को बताएगा। 
झगर हमें एक चल का मूल्य ज्ञात हो तो दूसरे ( उस पर निर्मर ) चल का मूल्य भी 
जात किया जा सकता है। यह रीति निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट हो जायगी। 

निम्नलिखित सारणी में इंगलेंड और वेल्स को जनसंख्या दी गई है। जनसंख्या 


प्रति बीस वर्ष बाद की है । 
वर्ष जनसंख्या 
( करोड़ों में ) 
१८११ १.०२ 
३१ १.३९ 
५१ १७९ 
रू २.२७ 
६१ २.९० 
१९११ ३.६१ 
३१ ४७० 




















स्त्त्ल्ग के न्यास का आंक ऋकामए, मी बृृका पक शिलाँ जज 

रा से ; 

| शा है ाओ * * हु ञ्क् 

रत [7४] [/77“7]]+*"+77]7 

... १८११ १८३१ रै८५१ १८७१ १८९१ १९११ १९३१ १९५१ 
वर्ष रा 


चित्र सं ० है 

















०७७. >कैः बयै गये> 2करर अमान नयुक अयकी बयान 





हे अर 


अन्तगेणन ४१५ 


इस सामग्री को चित्र सं १ में दिया ग्रया है। प्रांकित बिन्दु चिन्ह (५४) द्वारा 
दिखाए, गए हैं| अब मान लीजिए. हमें १८६१ और १८८१ की जनसंख्या शात करनी 
है, य- कक्ष में इनी बिन्दुओं का स्थान शात कर लिया और और इन बिन्दुओं से 
कोटि ( 0:0720० ) खींचे | ये कोटि जहाँ पर वक्र में मिलते हैं, उन बिन्दुओं से 
र- कक्ष पर लम्ब खींचे, र-कक्चष ओर इस लम्बों के कटान बिन्दु पर लिखी गई संख्या 
ही क्रमशः इन वर्षों की जनसंख्या बतातीं है। चित्र द्वारा १८६१ ओर १८८१ की 
'ज्ञनसंख्याएँ क्रमशः २ करोड़ ओर २.६ करोड़ निकलती हैं। इन वर्षों के लिए. जन- 
गणना द्वारा प्रात्त जनसंख्याएँ. क्रमशः २.००७ करोड़ और २.४६७ करोड़ हैं, अगर 
१८६१ और १८८१ के लिए! अन्तगंणन में आगणित जनसंख्याओ्रों ( क्रमशः २ 
करोड़ और २.६ करोड़ ) की तुलना इन वर्षों की जनगणना द्वारा प्राप्त जनसंख्याशओ्रों 
( क्रशः २००७ करोड़ और २.५९७ करोड़ ) से की जाय तो स्पष्ट हो जाएगा कि 
इसमें विश्वम बहुत कम हैं । 


चित्र में दिया गया वक्र गणितीय रीतियों से भी खींचा जा सकता है। ये 
. रीवियाँ अपेक्षाकृत कठिन हैं, इसलिए इनका वर्णन यहाँ नहीं किया गया है। 


अगर इस परिमाण में सामग्री न दी गई होती, बल्कि केवल दो वर्षों के लिए 
जनसंख्या दी गई हो, तब भी अन्तर्गणन द्वारा किसी बीच के वर्ष की जनसंख्या 
निकाली जा सकती है। मान लीजिए, केवल दो वर्षों १६११ और १६३१ की जनसंख्या 
दी गई है। ये जन संख्याएँ क्रमशः ३.६१ करोड़ ओर ४.०० करोड़ हैं | इस दशा में 
चूँकि हम अन्य वर्षों को जनसंख्याएँ नहीं जानते, इसलिए इन दो बिन्दुओं को मिलाने 
वाला वक्र एक सरल रेखा होगा। सरल रेखा होने का अथ यह हुआ कि जनसंख्या 
१९११ से १९३१ तक समान दर से बढ़ती है| अब यदि हमें १९२१ की जनसंख्या 
शात करनी है तो इस बिन्दुओं की बीच की दूरी को दो बराबर भागों में बाँठ दिया 
जाएगा | इस मध्य बिन्दु पर जो जनसंख्या होगी वही १९२१ की जनसंख्या है। 





साधारण अंकगणित से ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह जनसंख्या  रै-९१ रोड़ 


__७६१ 


करोड़ -+ ३-८० ४ करोड़ होगी। इस वर्ष के लिए जनगणना द्वारा प्रात जन- 





संख्या ३,७८६ करोड़ है। ठुलना करने पर शात द्ोगा कि विश्रम का परिमाण बहुत 
कम (लगभग ०.४३%) दे । रा 


४१६ सांड्यिकी के सिद्धान्त 


बिन्दुरेखीय रीतियों का उपयोग उन स्थलों में भी किया जा सकता है जहाँ सामग्री 
/किसी प्रकार की आवर्तिता (9०:४04|८८ए) दिखाती है । आवतिता का श्रर्थ यह है 
कि चल के मल्य एक निश्चित समय के बाद फिर उसी प्रकार बदलते हैं जेसे इस 
निश्चित समय से पहले । खाद्यात्नों के मल्य हमेशा फसल कटने के दिनों में कम होने 
लगते हैं। इस प्रकार की आवर्तिक श्रेणियों में अगर बीच की कोई सामग्री शात नहीं 
हो तो अन्तर्गणन का उपयोग किया जाता है | चूँकि हमें यह जात है कि सामग्री एक 
निश्ि- चत प्रकार से परिवर्तित हो रही है, इसलिए अप्रात सामाग्री को पर्यात परिशुद्धता 
से जाना जा सकता है । 


अगर दो प्रकार की सामग्रियों में सहसंबंध हो ओर इनमें एक सामग्री अ्रपूर्ण हो 
'तो अन्तर्गणन द्वार निकाला गया मूल्य अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय और परिशुद्ध 
'होगा | इन दोनों श्रेणियों को, जिनके बीच सहसंबंध हे, बिन्दुरेख-कागज मे प्रांकित 
'कर लिया, स्पष्ट है कि अपूर्ण सामग्री का वक्र अपूर्ण होगा। इस अपूर्ण भाग को, 
सहसम्बन्ध के अनुसार, दूसरी श्रेणी को देखकर पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार 
सहसम्बन्ध-बिन्दुरेखों के द्वार भी श्रन्तगेणन किया जा सकता है। 


बीज-गणितोीय रीतियाँ ("$8००7४४८ )॥(6६४००8) 


शबीजगणितीय रीतियों में बीजगणित की सहायता से ऐसे सूत्र प्राप्त कर लिए. 
जाते हूँ जिनसे अन्तग्गंणन किया जा सके | ऐसा कहा जा चुका है, अन्तर्गणन में दो 
प्रकार की सामग्रियाँ दी रहती हैं, जिनमें कुछ मूल्य शात नहीं रहते। इन अज्ञात मूल्यों 
'को जानना ही अन्तर्गणन का उद्दं श्य है | 


अम्तगंणन को मान्यताएँ 


अन्तर्गणन करने में दो मान्यताएँ हैं| पहली यह कि ये सामग्रियाँ संतत रूप 
में परिवर्तित होती हैं| परिवर्तन में किसी प्रकार की अनियमितता नहीं होती और 
'दूसरी यह कि इस परवर्तन की दर भी सन्तत है अर्थात्‌ एक चल दूसरे चल के बीच 
'की परस्पर निर्मरता,संतत है | 


.... बीज गणितीय रीतियों के अन्तर्गत तीन मुख्य रीतियाँ आती हैं। ये रीतियाँ 
निम्नलिखित हैं : 


२७ अन्तर्ग णन ४१७ 


(१ ) बक्र-अन्वायोंजन-रीति ( 7८700 ०६ ८प्र:ए८-॥४४४ ) 
(२ ) परिमितान्तर रीति या न्यूटन की रीति (77ल्‍:000 ०६ 87६० 
१4(67९४८28 07 )३८५६००*४ ४7०८४०0 ) । 
( ३ ) लैग्रान्ज की रीति ( ,987278०'$ 076८704 ) 
वक्-अन्वायोजन रोति; ( ,४८८४०१ ०६ एफर स्य्तंपढ ) 


सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अगर दो चल, य॑ और र (5 20वैं 
ए ) परस्पर-निभर हैं तो उन्हे निम्नलिखित बीज गणितीय सम्बन्ध द्वारा व्यक्त किया 
जा सकता है 


रज-क--ख य+ग य*+घ य3 4 ......+स ये | 


ए-52-+- >5+ ८हु) + त53 -- + जे 
इस पद-सहन्ति ( ८४7655$07 ) में क,ख आर स (2 >5,,.270 7) 
अचल ( ८०075६%87६ ) हैं । 
अब अमर कोई सामग्री दी गई हो जिसकी पद संख्या स (7) है तो कोई भी 


सर्वे प्रात (॥ प 5625०८) की पद-सन्हति ऐसी प्राप्त की जा सक्रती है जो इस सामग्री 
के प्रत्येक पद से होकर जाए। इस पद सनन्‍्हति में अचलों के मूल्य दी हुईं सामग्री से 
शात हो जाएँगे, इस प्रकार की पद संहति में य या २ (5 0: 9 ) का मूल्य रख देने 
से क्रमशः संगत रया य (ए 0: 5 ) का मूल्य ज्ञात हो जाएगा। निम्नलिखित उदा- 
हरणु इस रीति के स्पष्ट कर देंगे। 
उदाहरण १ 

निननलिखित सारणी में भारत की जनसंख्या दी गई है। 
सारणी संख्या १--- भारत की जनसंख्या 











वर्ष जनसंख्या 
. (करोड़ों में) 
१९११ ३०.३ 
१९२१ ३०.५ 
१५६३१ ३३५८ 
१९४१ । ३८.९ 











इस सामग्ी से भारत की १९२६ की जनसंख्या ज्ञात करनी है । 


४१८, सांख्यको के सिद्धान्त 


इस सामग्री में चलों के शञात मूल्य चार हँ। इसलिए इसमें एक त्रिधातीय 
बक्र अन्वायोजित किया जा सकता है। ऐसा वक्र निम्नलिखित प्रकार का द्वोगा 
रूक+खय +ग य१+घ यरे 
एनन्बन 25 +०5१ +त5३ 


इस बक्र में यदि क, ख, ग ओर घ के मूल्य शात हो जाँय तो वक्र द्वारा पूर्णत 
निश्चित (१०८८४४।76) किया जा सकता है ओर इस प्रकार शात वक्र द्वारा भारत की 
१९२६ की जनसंख्या निकाली जा सकती है। 


इस सामग्री में वर्षों को य (४) - चल ओर जनसंख्या कोर (9)- चल 
माना जाएगा। अब, वर्ष बराबर-दूरी में स्थित हैं। अगर १९२६ को मूल बिन्दु माना 
जाए तो १६११, १९२१, १९३१, १९४१ के बदले क्रमशः--१५, - ५,--५, + १४ 


रखना पड़ेगा । १९२६ के स्थान पर शून्य रखना होगा | इसलिए उपयक्त सामग्री निम्न 
लिखित रूप में लिखी जा सकती है 




















सारणी संख्या २: 
मा (5) र (9) 
“१५ द ३०.३ । 
कक ण्‌ ३०.५ 
० र 
५ ३३.८ | 
१५ ३८,९ 
गणना की सरलता के लिए य (५) के स्केल को छोण किया जा सकता है । 
माना ५ वर्ष १ के। तो - १५, / ५, १५ के स्थान पर क्रमशः - ३, - १, 


१, ३, लिखे जाएँगे । इसलिए उपय॑क्त सामग्री का अन्तिम रूप निम्न प्रकार का होगा, 
सारणी संख्या रे 














य (5) र(9) 

- रे ३०.३ 

२ ३०५५ 
० र्‌ 
4 ३२.८ 
डे . श८,९ 











अन्तगंणन,.... ४१९ 


. अ्रब् चूकिशये,सब बिन्दु वक्र (>कर+ख यक+ गयी +घ ये (ए-+०+ 952 
०१-05 ) में हैं, इसलिए य (४) और र (ए) के बदले इसको रखा जा सकता 
है | इस प्रकार रखने से, निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होंगे; 

३०.३-5क+ख (-है )+ग (- ३ )?+घ (-३ )ह 
३०.४स्क+ख (-१)+ग (-१)*१+घ (- १३ )३ 

रचतत्क+ख( ० )क+ंग.( ०) कऊ+॑ंष ( ० ) 
शेश्.८्थ्ूक+ख ( १) न+ग( १) >अऋघ( १)? 
३०९--क+ख ( ३े )+ग (३ )*+घ (हे )२ 


या ३०.३ --क- ३ ख+६ ग-२७ -( १) 
३०,५७-के->खन-- ग-घ . “+(२) 

रन्क “(३ ) 

श३.८त्कन- ख+ गंन- घ -“(४) 

इ८.६ -क-+३े ख+६ ग+२७ घ -“ (५) 


जैसा समीकरण ३ से ज्ञातहोगा, र का मूल्य क के बराबर है | अ्रर्थात्‌ १९२६ 
की जनसंख्या क के मूल्य के बराबर है | अब क का मूल्य निकालने के लिए हमारे 
पास चार समीकरण ( १, २, ४ ओर ५ ) हैं। अ्रज्ञात संख्याएँ. ( क, ख, ग और घ ) 
भी चार हैं। इसलिए हम क का मूल्य शात संख्याओं के रूप में निकाल सकते हैं। 
इसका हल निम्नलिखित रीति से होगा :--- 


समीकरण ( २) और ( ४ ) को जोड़ देने से; 

६४. रेचनर क+ रंग... “(६ ) 
समीकरण ( १) ओर (५ ) को जोड़ने से; 

६६.२८७४२ क+ रैफंग द “(७) 


.. समीकरण (६) ओर ( १) से क॒ का मूल्य निकाला जा सकता है । (६ ) 
को ६ से शुणा करने पर 
९८६४-३८ १८ क+श्प ग - 


या ५७८,७-- रैघध क+ (झूग -(८) 
समीकरण (८) में से समीकरण ( ७ ) को घटाने से 
"०९.५ शध के. 

या क ५०.४. ३१.८ करोड़ 





२६ 


४२० ... सांख्यिकी के सिद्धान्त 


इस लिए, अन्तंगंणन द्वारा भारत की १६२६ की जनसंख्या ३१.८ करोड़ थी। 

5प78000:792 (76 प्रशप85 0९ 5 थाते ए 40 ४6 €तृप४.:00. 
ए-:०+ ०5-०४? + 659, एझ० 260: 
30,.35:3- 30 +9 ०-- >7 6..... (१) 


30.85:5:9- >+०-व _ ..... (2) 

ए८59 ००१०००००००० ००० ०००९ 2 ) 
33,8--28-+7+0०+०0 . .....०.- (4) 
38.9--2+-39-+9 ८+ 27 4...... (5) 


0, 38 ए--०, 30 ज़९ 72ए6 (० #76 070 ४९ ए५प९ ०६ 2, 
24072 705.( 2 ) थ्याते (4) 

64.3-:2 2-2 ०......::०..- ०«* (6) 

30078 ( 7 ) 200 ($ ) 

69,352 8+ 78 ८,...०.००००००( 7 ) 

प१८७)ए॥78 ( 6 ) 9ए 9 

$78,7-:78 28 +-78 ८0...... .«« (8) 

5प0772८८४९ ( 7 ) 57070 ( 8 ) 

$09.65::76 & 


509.7 
76 


06 छ0फुपाबा0त 04 वधतां॥ 288 7677002(०0 48 34.8 
2707658 60: (76 ए८७४॥ 7926 

इसी प्रकार अन्य प्रश्नों को भी इसी रीति के द्वारा हल किया जा सकता है। 
इस रीति का एक सबसे बड़ा दोष यह हैं कि अगर यह संख्याएँ अधिक हों तो 
बहुत सारे समीकरणों को हल करना पड़ता है। ओर यह बहुत कठिन और समय 
लेने वाला काम है। अतएव इस रीति का उपयोग उन स्थानों पर करना चाहिए 
जहाँ पदों की संख्या कम (५ से कम ) हो । अन्यथा अनन्‍्तर्गणन की यह रीति अन्य 
सब रीतियों की अपेक्षा अधिक उत्तम हे क्‍योंकि यह किसी भी प्रकार कीं संतत श्रेणी 
में काम में लाई जा सकती है। 


07 4८5५८ -:-3१.8 ८2॥0$. 





अस्तगंणन २१ 


परिमितान्तर रीति या न्यूटन की रीति : 
(१॥९८६४०० ० 970० 9[8९:८४८०७४ 05 '८ज्ञ०778 76000) 
मान लीजिए कोई सामग्री निम्नलिखित रूप में दी गई है । 


सारणी संख्या ३ 











य (5) र (9) 
० २७५ ४० 
र्‌ २५ 95५ 
र्‌ २२ ४2५ 
ईे २३ 9१३ 
हि २५ ५६ 
५ २५ १६ 














अब २, -- २५ (ए:-79०) की प्रथम क्रम के अन्तर ( (८८८८४ 
०६ ६५४४६ ०:१०: ) कहा जाता है। इसके लिए संकेत रूप में ता३ (७३) का 
उपयोग किया जाता है। ता (७) के ऊपर कोने में लिखा गया अंक अन्तर का 
क्रम बतलाता है। इस प्रकार की संख्याओं को प्रथमान्तर ( (08: 076९:९४८८$ ) 
* भी कहते हैं | इसी प्रकार र,-२५ (7५-9३) के लिए ता। (03) लिखा 
जाता है। ता (0५) के निचले सिरे में लिखा गया अंक घटाई जाने वाली संख्या 
बताता है | इस प्रकार ता) (/५ ») का अर्थ २-२५ (79:-9०) ओर ता३ (0३) 
का २२-२१ (४५८ ॥7 ) हुआ | ' 


अगर प्रथमान्तरों का अन्तर लिया जाय तो इस प्रकार प्राप्त होने वाले अंक 
द्वितीयान्तर (5४०००० 0!(/८:८०८०५) कहलाते हैं। ता३-वा३ (0३-४5) 
द्वितीयान्तर है| इसे ताई (७५१) के द्वारा व्यक्त किया जाता है । इसी प्रकार 
ता३-ता) (७३-03) >-ताई (0३) सामान्यतः इन अन्तरों को निम्नलिखित 
रूप में रखा जाता है। इस सारणी में उपयुक्त सामग्री सारणी संख्या ३ में दी जा 
चुकी है । 



































४२२- सांडियकी के सिद्धान्त 
बयायाकाभााराालालाधापाासकाााााधाकाकााक न्क््ल्ल्ल्ल्ंः£्लड्बः, ्णथणफकअइडिअइ्हुट्टड लक््नड:़::क),सडसससससस स्ंचंचोच७क्‍_क०- हल 
छिं 
। | 
| 2०१ 
ि कि 
| [.' 
4 फ्ण्ता 
पं 
प्र प्र्न 
सं पं 
| ॥| 
#) ० |. कक 
४ 
पट |. | 
9) ०7 | । 
छिं छि 
फ्ी 0 9०" है (व 
िं छि 
|| | ॥ 
ह | 0 छिँ पी 
फि ्ि सं 
क्‍ [ |... | 
डर 7४ । 
हि च् 
0 कफ कि ् फ 
एि छि. 
| | || जी 
फ््ःछ "ते 4 ण्न्कः 
छि... छठिः. कि 
|। | हू... | 
बात 6७" 00- क- 4 
छि ि छिं छिं 
..  * बस - दर 6* छपी #" का | 
(५ लिए - कि रक्त 
7 |. ॥ कक _॥ . _॥. 
० | 
5. छ फ्ी टी कट पा 
. |... .]. | | | 
* क् हा प्र 
| ४ ही तन शा | लॉ टी 











४२३ 














892प97]ाए 
पृ प 





899प979/]गा0 
पृ+आरग0प 





- 899पशशाएं 


श्मपत 














96 
द श्र न्‍+4- 248 

#एनसए-ए ४ 
१ए५7०५-१/-. 7 

टुएल्टए- रण हा 
णजज़्ष्य 5/(..28,( 

एज ए-ए१ए हा 
०८ ४-४ 

१०-९ए०-६ए हा 
९ 5-5 0 / बज 7 

| ०५ 

89०7० शगाए $२०प०»पाए | ८ 

एप्र029४ बेध्नावु 














४२४ सांख्यिकों के सिद्धान्त 


न्यूटन की रीति में श्रन्तेगणन के लिये निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया 
जाता है : क्‍ 
र 








१ .. २ >> न+ 3 

बन ०+यता + अ(य-शता _प (य- १) (य- २) ता, + 
जबकि 

र 


८२ १२८२ २८ ३ 
य -आन्‍न्तरगण्य अक 


९, _.२ क प्रथम पद 


ता: अन्तर 
य--य का वह मूल्य जिसके लिये श्रन्तेगणन करना है--य का प्रथम मूल्य 
वर्गान्‍्तर 
ि९ज्ञा0728 7077 72 07 772८7902007. ! 
-<ए०+४5४/५? ४ (5४- 7) 2 , £(४- 7)(5- 2 
॥5< ८-४० के करन न 7%2 (2२ “« 7)<2 3 
57)८८ 


ए5-- (6 (2फ076 (0 9०6 477स्‍0770]2/९0 
7०८८ (780 70670 0६ ए 5८:2८5 
८७ --07/070९27८6 
>> (06 एथपट 05% 67 जगंटा 7009570॥४०ा 3 
०९€08 0076९--776 एश|प९ ० (6 (05६ 40८४१ ०६ 5५ 
. प22गरपते& 06 0985 77067ए०.- 
उपरोक्त सूत्र निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट हो जायगा | 
उदाहरण २: 
निम्नलिखित सारणी में किसी स्थान के विभिन्न आयु के जीवित पुरुषों की 
संख्या दी गई है : ह 








0.०8  /-«» 

















सारणी संख्या५: द 

आयु | जीवित पुरुषों की संख्या 

२० ६०० ः 
३० ५५० 

छ० डर 

५० र्छप 

६० १०० 

० २५ 








. ३४ वर्ष की आयु के पुरुषों की संख्या का अन्तंगणन .._ ३४ वर्ष की आयु के पुरुषों को सस्या का अगणन कीजियू | | 


४२४ 


० ह 


अन्तगणन 








|० ६३ -+- 






































[व> 20 








82 
(६०% 








| है॥2 ००६ न 
. है।७ | घेढे ८ 
हर [० 
20 | शैै ८ 
4।“ 3 
। हैएं | फैश ८ 
बाज हवा 
।थरर 2028] 
32204 


रैशिढे 




















"| भेद | फ | ०७ 
2.५ ००३3 | +% ।| ०३४ 
६४५ फिणटे | | ०४ 
०) ढेर: व्छ ०, 
० ० "है | ० हे 
०१, (५०५ १ | ०८ 

पे |. लि 
(& (8५४ 





: $ ॥09॥> ॥॥0>॥9 





डर ५ सांख्यिकी फे सिद्धान्त 








 इिड+२० 

अध्यट 7: 7४ घ्द १०४ | 

अब न्यूटन के सूत्र के अनुसार 

र्र्‌ (य- १) य(य- १) (य- २) 

चल श्नवता।क ३ प्र गन्के  इऋतछऋ३ गे के 


(ड(श४-१) . ४ 
सन ६०० के (१४०८-५० का दे उदा प्र  एणज्म्क 





१"४ (१"४- १) (१"४- २) 








ऋरड्र  . 7४ 
हक १४(१०४-१) (१*४- २) (१४-२३) 
की १५८२२८३२८४ 7 ३० 


१४ (१९४-१) (१९४-२) (१*४-३) (१:४- ४) 
४ ्णशणणयय मय ॒ाएणएणणा 


य्7३१०० - ७०-२१-२८- १९११२- २० रे८४ 
| कहपण्३ 
डस प्रकार ३४ वर्ष के पुरुषों की संख्या लगभग ५०३ हुई । 





४२७ 


|. 


. अस्तराणन . 




































































050]|एप्रप्ें्रययात 





क्‍ प्रादफ़ाखग 
४ ६०: 
इए (दाना +. ४8०४७ ०907 + # | 007 रे ०09 : 
ड्र्ए ८६ब्+- | ह द एहधप- 
एडप+: | कए | ० | ए बब्- ०४ ६८7 िफ ०६ 
क्‍ ;ए| ० क्‍ | एणा- 
8फ ० पी ए| (4३- 5(| (ब्क | ह | कु 
हु ए(बा- क्‍ 
व्ए। (४८ द क्‍ 76 08६ हु ०६ 
ह ५ द ०३ 
हि | | ००9. "जर| ठ5 
कच फए 7 क्त कर ष प्फ़ छा) 
प्रशरंध | प+704 णएगप।, ए00296. +. 3शातव|ऋ पश्ण.।. (७) 
30 ०5्प् 








४२८ सांख्यकी के सिंद्धान्त 


34-20 
्््् भ्र्य्य्य 
70 


रू १04 





.. वा वप०ज्मा0778 ४0:7079, 





























कक ऋजिनेना ४(४- 7 (४-०2) , ५ 
फ्लए०+४8३+ 08 + सनक / “० 
(ऋण) (४-2) ४-5) , 
की प७आ5ऋ्तबा 2० 
४(४- १) (४-2) (४-3) (४ -4) , ५ 
फ 72225 (4 »< 5 हें 
द 74 (7"4 - 7) 
6०00 + (749८ - 50) + ज्थ्र3 2८ - 7४ 
7*4(7:4-- 7) (7'.4- 2) 
32८ 2 2८ 2 265० 
74 (7:4-- 7) (74 - 2) (74 - ३) 
72८2 2८3 4 % - ० 
(4770 472) (727 20 7475) 7) (7 4- 2 ) (११2 - 3 ) (7'4--4 ) ८१75 


32< 2 ८ 3 ८4 >< 5 
८:600- 70 - 27 -- 2'8 -- 7'32 -- 2"0384 
55१०३ 
पफ्प$ ६0४ 34 ए&ब08 0६ 326 प6 ग्रपण्फैढ: रण गला 45 505 
न्यूटन के सूत्र का प्रयोग करने में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि चल + 
(5) के मूल्यों में होने वाली बद्धियाँ (६7८7०:77९705) बराबर हों, श्रर्थात्‌ जहाँ 
(य,--य ० ) 55 (य२--य 4) । इस सूत्र का प्रयोग उन दशाओं में करना चाहिये जहाँ 


अन्तर्गणन, सामग्री के प्रारम्भ में करना हो । क्‍योंकि जैसा सूत्र से स्पष्ट है इसमें पहले 
के पदों पर शअ्रपेक्षाकृत अधिक जोर दिया जाता है। 


अन्तगंंणन द ४२९ 
लेग्रॉज़ की रीति (,887272०8 77९८0००): 


.. जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि न्यूयन की रीति की सत्न से बड़ी परिसीमा यह 
है कि इसमें चल य (£ ) के मूल्यों में होने वाली वृद्धि बराबर होनी चाहिये । अगर 
ऐसा न हो तो न्यूटन के सूत्र का उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसी अ्रवस्था में 
लैग्रॉज के सूत्र का उपयोग किया जाता है। 


अगर य (5) श्रेणी के विभिन्न पद क्रमशः य,, य4, य३ ... --यस (&., 5. 
5५)-०-००-४४०) हो और इनके संगत र (9) श्रेणी के पद क्रमशः २०, २५, २३... 
(ए०, 733 ए५)------४४) हों ओर अगर हमें य (5) श्रेणी के किसी पद य (5) के 
संगत र (9) का मूल्य निकालना हो, ओर यदि यह मूल्य रय (ए५४) हो तो लैग्राँज के 
सूत्र के अनुसार 








स्य--२० (य-य ५) (य-य,) (य-य>)......-०-..५०००-«- (य-यस) 
(य०-य,) (य०-य२) य०-य३).......«५-०५००००-- (०-यस) 
+र, (य-य०) (य-य+) (य-य)......-------- --' ... (य-यस) 


(य+-य०) (य-य२) (य३-य ३)... ... ... «० - -.*-०---य१-यंस) _ 


न रस (य-य०) (य-य,) (य-य- ) ... ... ... -.« «०० --- (4-यस-4) 
(य >य०) (य०-य4) (यु “य२)....--... ०-००» नये 





(हऋ-डऋ न ) (-5% | ) (ऋ-5४ 3 ) 8 के के के को के क के का को को से से के के सी था कर (ड़ ही) ) 
&::59४0०0 सम कानमभाश लक >५० ५ ५५६०७०७५५५५७०..ट "अककाका 
९4 ॥ 4 (2० ब्रा ॥ | ) (छ ७०--% 9, ) (छू कि शा... 3 ) 5१७ ३०१७ ००७ ७७० कै कफ ००० ०० (ड़ कि । ल्न्कपनु ) 





(5-5०) (ह5-5४५) (5-5५) .....०.- ०-०... ... *--. ५०० (-हा) 
(४३-5४०) (57-४५) (६१-२७)--...०-: ल्‍०५५०००००० (5४,-5४) 


नै श कक लत केक क 4 ७ कक कक तप केक कफ के के थे क क की से या के से की से $े के की क ३ के के के के हक का थे ॥ की १ ७ के | के ॥ कक $% % के के ह 9 कीफे. 





9१ 


(ऋ-5०) (४-57) (|)... (->7-3 ) 





-+एएछ 


(7-5४ ०) 5४ऋ]-5%, ) (४3-४ ३) .५००००००००००००० | (&०-%४-+ ) हब िवनडिए-3) 


निम्नलिखित उदाहरण से यह रीति स्पष्ट हो जाएगी ) 


४२० 


उदाहरण ३ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


लैग्राँज सूत्र का प्रयोग कर ३५ वर्ष से कम आयु के अ्रपराधियों की प्रतिशत संख्या 


का अनुमान निम्नलिखित सामग्री से लगाइए । 












































सारणी संख्या ७ 
श्रायु अपराधियों की प्रतिशत संख्या 
|  आ | २५ वर्ष से कम ५२१० 
३० १9 ११ 9) ६७१३ 
' ४० 9१ ११ ११  प्ार४११ 
५० १) ११ ११ ९४०४ 
हल : द 
सारणी संख्या ८ 
आयु य (5) अपराधियों की प्रतिशत संख्या र (9) 
हाय हे | वध से कम ०, ६७३ क्‍ २५ (2 
३० ,.. ..« «* य (४7 ७८ २५ ( 9] 
४७ य (5५ ) <४५ १ रर्‌ (५५) । 
५० ,,., ००० ००«* य३ (5५ ) ६४५४ २३ (५५) द 





य (£) ३५, इसके संगत र (9) का मूल्य मालूम करना है । 
लैग्राँज के सूत्र के अनुसार 

॥॒ तय तरल गत हप ३०) (३५-४०) (३५-५०) 

. (२५-३० ) (२५-४०) (२५-५० ) 

(३५-२४) (३५-४०) (३५-००) . 

२५) (३ ० +- ४०) (३ ०- ५० ) 


सर एप ्ापने २५) (३५-३०) (३०-५० 
(४० २५) (४० “ये ०) (४० “+ ५० 


बे 573) ₹५२ 


+६७.३ हु; 


३ कं: 














.. अन्तर्गंणन | ४३१ 


६४.४ (३५-- २५१ (३५-३०) (२५-४०) 
६४.४ (५० >+ २५) (५० -+ दे ०) (५० ++ 0 ) ' 
र्‌ ५२३४ ५५0 (१५) (१०) (_५)(- १५ 
ये ० ०त५पफर््छतण। ०5 छू 
(१०) (५) (१५) ७ (१० (५) (-५) 
+5* (छठहत ३) 5७ प््र्मछक 
पा “7१०. ४नी५१०-५न-४२.०५ - ४-७२ 
ख्य ७७, ४३ 


इस प्रकार २५ वर्ष की आयु से कम अपराधियों की प्रतिशत संख्या लगभग 
७७.४३ हुई। 


उपयुक्त उदाहरणों में केवल अन्तर्गंशन किया गया है। बाह्यगणन (०८६४०- 
702६0०४) के लिए भी इन्हीं सूत्रों का उपयोग किया जाता है और बाह्मगणन की' 
गणना रीति भी ऐसी ही है। 


परिसीमाओं के होते हुए भी इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि: 
अन्तर्गणन ओर बाह्यगणन कितना महत्वपूर्ण है। इनकी परिसीमाएँ उन मान्यताओं 
( 255५7)0४07$ ) में निहित हैं जो बीजगणितीय रीतियाँ बताने के पहले दी' 
जा चुकी हैं ! इनके पक्ष में कम से कम इतना तो निर्विवाद है कि बिना तथ्यों को 
ध्यान में रख कर किए गये अनुमान की अपेक्षा इन तथ्यों पर विचार करके और 
इनकी सहायता से किया गया आगणन, सदेव अधिक विश्वसनीय और सत्य के: 
निकट होगा | 

















द प्रश्नावली 
(१) अन्तगंणन और वाह्मगणन को आवश्यकता पर विचार कीजिए | 
इस प्रकार आगरित परिणाम कहाँ तक प्रामाणिक होते हैं । 
(२) बिन्दु रेखीय रीति द्वारा अन्तर्गणन किस श्रकार किया जाता है ॥ 
विस्तारपूषक बताइए । 
(३) अन्तगेणन करने में सामग्री के बारे में क्या मान्यताएँ की जातीः 
हैं? उदाहरण देकर सममाइए। 


है डेरे से रियकी के सिद्धान्त 


(४) निम्नलिखित जीवन-सारणी (6 ६००]० ) द्वारा २५, ३४ 


और ४७ व की आयु में जीवित रदने वाले लोगों की संख्या की गणना 
कीजिये :--- 


आयु जीवितों को संख्या 
(वर्षों में) 

२० ४२ 

३० ४४ 

४० ३५ 

४० २४ 


(इलाहाबाद, एम० ए०, १६४२) 


(५) नीचे दी गई सारणा में ३० वे से कम आयु वाले लोगों की 
संख्या की अन्तगंणन लैग्रान्ज के सुत्र का उपयोग करके कीजिए । 


आयु प्रति १०,०८०० में अनुपात 
१०-१४ बर्षे १६३५ 
१४-२० ५ प्प८० 
२०-२५ » ६३३ 
२५-२५ ,;, १,६३६ 
ह रेशय५५ १? १,२०१ 
४५-४४ ,, ८३० 


( इलाहाबाद, एम० ए०, १६४१) 
(६) एक सारणी में निम्नलिखित मूल्य दिए गए हैं :-- 


य र्‌ 

१ २१६,००० 
२ २२६,६८९१ 
३ रत 
४ २४५४०,०४७ 
4 


२६२, १४४ 


२८ क्‍ अन्तर्ग णन ४३३ 


किसी उपयुक्त बीज गणितीय रीति का उपयोग करके यज"-३ के लिए 
र का मूल्य ज्ञात करिये | साथ ही साथ उपरिलिखित बिन्दुओं को एक बिन्दु- 
रेख-कागज पर प्रॉकित करिये; और इस बिन्दुरेख से य-४,४ के लिए र का 
मूल्य ज्ञात करिये। द 


(७) नीचे दी गई सामग्री से क्‍ १६१३ में आयात के मुल्य का श्रागणन 
करिये। बीज गणितीय रीति का उपयोग करिये: 


न 


बष आयात का सुल्य 
(रुपये) 

१६१० ३,६२,०२,००० 

१६११ २,६५, १०,००० 

१६१२ २,६१,६३,००० 

१६९३ ध्ग्ा 

१६१४ ३,३७,५५,००० 

१६१४५ २३,२६,८७,००० 

१६१६ २,७७४,३ १,००० 


(इलाहाबाद एम० ए०, १९४५२) 


(८) निम्नलिखित सारणी में कुछ संख्याओ्रों के बगें मूल दिए गए हैं। 
अन्तर्गणन द्वारा ८८.७४ का वर्ग मूल निकालिये । 


संख्या... वर्ग मूल 
८5 ६.२७४ 
प्ऊ ६.३२७ 
फ८ ६ ४८१ 
८५९ ९.४३४ 
९० ६,४८७ 
ध्र्ः ६,४२६ 


धरे द ६४६२ 


४२३४ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(९) नीचे दी गई सारणी में माताओं की आयु और प्रति माता बच्चों 
की औरत संख्या दी गई है, ३०-३४ वष की माताओं के जल्िए बच्चों की 
ओसत संख्या का अन्तगंणन करिये 





वर्षों में माता की आयु 


आसत बच्चों की संख्या 











१४-९६ 
२०-२४ 
२४-२९ 
३०-३४ 
३५-३९ 
ड0नन हुँ 





ध्प्ल्ट ० 
| ज >2 ७9 


है है| ढं 


३, 
है 








इलाहाबाद, एम० काम १६४६) 


.. (१०) अन्तगंणन के अथ की व्याख्या कीजिए। निम्नलिखित सारणी 
विभिन्‍न आयु की वधुओं के लिए वरों की संभावित आयु बताती है। 




















१.७७७७४एएररए्७॥७७७७७७७७७४७७७७/७ए्एल्‍रएए७॒०७७७७७४७७७७७७शशए७्एश७/७७४७्एरत्रशरणशश७७७॥्७्ल्‍रणाणणण्ााशाआ 9982३ _३ुु 3 नरक 


वधू की वर की वधू की वर की 

आयु संभावित आयु आयु संभावित आयु 
रा ५ २५१० प्‌ . २७१०. |; 
१६ ५ २५२ २६*५ २७*५ 

१७५ २५१४ २७'५ रस्धा० 

१८५ २४५ २८५ २६० 
१९५ २४०५ २€*५ ३०१० 

२०५ र२५-५ ३०"५ ३२१० 

२१५ २५:८ ३ १९५ ३३ ७ 

२२५ २६० ३२५ ३३*५ 
२३*"५ २६९०० ३३५ ३४०१० 

२४०५ र्६८ ३४५ ३४६५ 














इन अंकों को विन्दुरेख द्वारा निरूपित करिये, और इस बिन्दुरेख द्वारा 
२४ वष की वधू के लिए वर की संभावित आयु ज्ञात करिये। 


(एस० ए०, आगरा, १९४४) 


अन्तर्गणन ४१५ 


(११) निम्नलिखित सारणी पिछली छः: जनगणनाओं में इन्दौर की क्‍ 
जनसंख्या बताती है :; 


१८८१ क्‍ ७५,४०१ 
१८६१ ' ८२,६८७ 
१६०१ ८६,६८६ 
१६११ ८४,६४७ 
१९२१ ९३ 3९९ १ 
१९३१ १२७,३२७ 


(आगरा, बी० कॉम, १९४०) 
(१२) निम्नलिखित सारणी में अज्ञात अ्छु को मालूर करिये 


य ' र्‌ 
२० ७दे 
श्र | +-+- 
श्र १९८ 
5 ३० भ३ 
३५ ११९८ 


(लखनऊ, बी० कॉम १९५१) 


(१३) निम्नलिखित सारणी में उत्तर प्रदेश के एक जिले में तपेदिक से 
मरने वाले व्यक्तियों के मृत्यु-अघे (प्रति १००,०००) दिए हुए हैं। 











बंधे मृत्यु-अधे 
१९४६ १६० 
श्ध्ष्८ क्‍ १७ 
१६५३० १८० 





सन्‌ १९४९ के लिए सृत्यु-अ्घ का अनुमान लगाइये । 
(?72०४८४ ?700]6775 7 90205008 ३०. 242) 
(१४) निम्नलिखित सारणी में एक भारतीय रियासत में १९०१, १९११, 


१९२१ ओऔर १९३१ की जनगणना दी हुई दै। अपनी रीति को स्पष्ट करते 
हुए सन्‌ १९२४ की जनसंख्या का अनुमान लगाइये । 


. ४३६ 











सांख्यिकी के सिद्धान्त 
झश्ू छह जनसंख्या (हजारों में) 
१६० १ २,७६७ 
१९११ २,६२४ 
१९२१ २,०४७ 
१९३१ ३,३५४ 








(१५) एक थोक 


(पी० सी० एस०, जय ॒र॒ख॒ख_॒_३_|_ [पी० सी० एस०, १९३९) 


(?:॥८स८४ ?+00]6078 । 50908 ९०,243) 
व्यापारी के निम्नलिखित लेखों से १९४२ के लिए 


पेंसिलों को वार्षिक बिक्री मालूम कीजिए । 











मल अमल सील बन म तीज नल कनक न जल जल बा नमक आफ जी ककक अल लक 3 मे मा भ्ुनन॥ मा आााााा७७०००७७३७७७७७७७७७७७॥७७७७७॥७७॥/७७॥/ए्आ७॥७७॥७४७७७॥/७७७॥७/७/७७एशएरर७७०७४ 








वर्ष गा की बिक्री (लाख दछ्नों में) 
१९३२ २५ 
१९३२३ ३० 
१६४० ४० 
१९४५ ५५ 
१९४८ ६० 





( ?:2०:८४ ?070/]6775 40 809095005$ २०. 244) 


(१६) न्‍्यूटन का अन्तर्गंणन सूत्र, मान्यताओं सहित सममाइये इसका 
प्रयोग, निम्नलिखित सारणी में २४५ वर्ष की अवस्था में; वार्षिक शुद्ध बीमा- 
किस्त निकालने के लिए कीज़िए। | 








जज ह्ञ वार्षिक शुद्ध बीमा किस्त 
ाओ "०१४२७ 
२४ "०९१५८ 
२८ “०१७७२ 
श्र "०१६६६ 











...._( आई० ए० एस०, १६४० ) 
(९:260०% ९६00]6075 7 5६40$8८8 ९०. 245) 








अन्तगं गन ४३७ 


( १७ ) निम्नलिखित सारणी में किसी नगर की १८९१, १९०१, १९११ 


१९२१, तथा १९३१ की जनसंख्या दी हुई हैं। अपनी रीति को स्पष्ट करते हुए 
१९२५ के लिए जनसंख्या मालूम कीजिए 

















वषे जनसंख्या 
१६९१ ६८,७४४ 
१६०९१ ' १,२२,२८५ 
१६११ १,६९८, ४७६ 
१९२१ १,६५,६६० 
१९३ १ र्‌ कि ६,०४० 
| 





( एस० ए०, कल्लकत्ता, १६३७) 
(?7३८४८थ ?2:09]6095 4 5॥08008 7२०. 246) 
( १८ ) निम्नलिखित सारणी में एक बीमा कंपनी के ५०० रुपये की 
पालसी के लिए वाषिंऋ बीमा-किस्तें दी हुई हैं; 








आने वाले जन्मदिन में आयु वाषिक बीमा किस्त 
रु०--आ ० 
२५ २७४--९ ० 
३० २७--१ १ 
३५ ३१-- ६. 
४० ' ३६-- ६ 
४५ ढ४ढ२- ५ 




















३६ वर्ष की आयु के लिए बीमा किस्त निकालिये । 
(?:4०7४८६आस ?7079]67078 47 5020800$ २०. 247) 
(१९) निम्नलिखित सारणी में एक विशेष प्रकार की चाय की मात्राओं 
(उनके मूल्य भी साथ-साथ दिए गये हैं) की माँग दी गई है। १ ० १४ झभा० 
प्रति पोंड मूल्य पर चाय की संभावी माँग की गणना कीजिए | 


४३८ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 





चाय का मूल्य (प्रति पौंड) 


चाय की माँग (हजार पौंडों में) 


अराारातासाकाााधातनाय्राभारताग्कााधा॥ा दाल काश काना कबालाक 








र्ृ आा० 
४ 
द् 
१२ 
० 


रण #त 02 59 ४०७ 9० 





पर" 
७०८ 
६३११ 
५ प्‌ * ५३ 
४८६ 








(एम० ए०, इलाहाबाद, १९४२) 
(?7३८८८॥] 27800]6775 ॥0 5/47.9008 ३०, 248) 


(२०) निम्नलिखित सारणी में बुलन्द शुगर कम्पनी लिमिटेड का 
कुल लाभ दिया हुआ है। १९४२-४३ और १९४४-४४ के लिए लाभ 








निकालिये | 
| छू हा कुल ् (लाख रुपयों में) 
१६३५-३६ ४ प्प६्‌ 
१६३७-२८ १२६४ 
१६३९-४० १३६८ 
१६४१-४२ १६९६५ 
१६४३-४४ २३९२९ 














का भी वर्णन कीजिए । 


(बी० कॉम०, राजपूताना, १९४९ 
(274८४८३ 2700]6775 40 584809870८$ ०, 249) 


(२१) न्यूटन अन्तेंगणन की रीति द्वारा २२ वर्ष की आयु में जीवन 
आशा को गणना कौजिए । इस सूत्र में की गई कल्पनाओं (955077[0007) 





| जब बन बस 


ही 


१० 


१५ 





जीवन की आशा (वर्षों में) . 








३५९४ 


२० 


>33+->>अ«न्‍क्ञ नामक नक्ब ७ 





३२२ । २€* १ 





२५४ 


रस्म पक अमन ५ ४०भ न पम्रक 


२६*० 


३० 





न्‍ श 








२३ १ 





२०४ 





(आई० ए० एस0, १९४९) 
(?7200८4 7009]6775 0 90208005 ४०, 250) 


अन्तगंणन ४३६ 


(२२) निम्नलिखित सामग्री से ६० रु० और ७० रुपये के बीच मन्रदूरी 
पाने वाले व्यक्तियों की गणना कीजिए । 








मजदूरी रुपयों मं) ||  कआक्तियों की संख्या हजारों म) 
४० से कम २५० 
४ ०---६० १२७ 
६०---८्८० । १७० 
<८०-+ २१००७ 9० 
१००---२१२० ' ५७० 








॒॒॒ .॒...॒....॒... (एएम० काम० आगरण, ररशा 
(74८0८ /00]6005 47 5027500८$ ५०. 252 ) 


(२३) निम्नलिखित सारणी से, अ और ब वर्ग के, १००० रूु० और 
१४०० रु० की आमदनी वाले व्यक्तियों की गणना कीजिए | 








आमदनी (रुपयों में) अ वर्ग में व्यक्तियों | ब वर्ग में व्यक्तियों 
को संख्या की संख्या 
५०० से कम ६००० ५००० 
प६ू०0०-०-२१०००७ ४२५० णए्४०७ 
१७०००---२०० ० ३६०० डटइ00 
२०००-३० ०० ह १७५०० २२०० 
३०००---४०० ० ६७५० १५०० 











(बी> काम ०, आगरा, १९४७) 
(7/28८00९%) 7?/00[6008 47 50205005 7९२०. 2535) 
(२४) निम्नलिखित सारणी में मजदूरों के एक वर्ग भी सासिक आम- 
दनी दी हुई है: 








7 प्रतिमाहआमदनी छूपयों में) |... मजदूरों की संख्या... 
१५० रु० तक पूछ ' 
२० ... ... १५० 
३० ... ... ३०० 
४० ,,, «»«»» ७५०० 
७५० .,.- «०० ७०० 
६० ... -«- प्य०० 








(अ) २४-३० रुपये की आमदनी-बर्ग तथा (ब) ४२ रु० से अधिक 
आमदनी वाले मजदूरों की संख्या ज्ञात कीजिए | 
(?2:2८४८९४ ?70/0]6775 47 502८8४0८8 २०. 255) 





है?) *आ 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(२५) निम्नलिखित सारणी में, किसी परीक्षा में, ४६२ परीक्षाथियों के 
प्राप्तांक दिए हुए हैं, ४२ अड्डों से अधिक लेकिन ४४ अड्'डी से कम पाने वाले 


परीक्षार्थियों की संख्या मालूम कीजिये। 





प्रातंक.... |... परीक्षार्थियों की संख्या... 


परीक्षार्थियों की संख्या 





४० से अधिक नहीं 9) 


' श१॥ 


४४, 99 99 १9 
४० १9 9३ 9१ 
बे इ औ १3 99 १) 
६० 9१ १3 39 
६५ 

99 99 हु 
। इक । | है हक है है 
प्‌ 99 9१ ५ 





२१२ 
२९६ 
२३६८ 
डर६्‌ 
४६5० 
डंट १ 
४8० 
डर 





(एस० ए०, कल्नकत्ता, १९३५) 


(?077070%॥ //0002705 47 5020950८8$ ०, 256) 


(२६) लैगरेन्जी के सूत्र द्वारा ३५ वर्ष से कम आयु वाले अपराधियों 


की प्रतिशत संख्या मालूम कीजिए । 











हुलनी हू अपराधियों की प्रतिशत संख्या 
. २७ वर्ष से कम .../ पर... 7 
३२० 99 ६७.५ 
४० ,, १) ८४.१ 
प्‌ ७9 


2) 29 


६४५४ 


(एस० ए०, आगरा, १९३४) 


(772८004] 70920975 ॥0 9090500८8 ९०. 284) 


(२७) निम्नलिखित सारणी में उत्तर 


व्यक्तियों की संख्या दी हुई है। 


प्रदेश के आय-कर देने वाले 


अन्तगंणन 








४४९ 
(आमदनी रुपयों में) आयकर देने वाले व्यक्तियों की संख्या 
.. २५०० से अधिक नहीं छू... 
३००० १» +) +१ १०,५७६ 
4००० १) 9) १5 १७,२०० 
७१०० ११ १) १7 २०,३०४, 
१००० १) के )१ २१,६७४ __२०० »#/ #/ऋ/ध ?  $&& 'ऑ ऑफ8फह08झ9० 5 








४००० रुपये तक आय-कर देने वाले व्यक्तियों की संख्या क्लात 


कीजिये । 


(?:74०८४८४ ?६079]6705 40 50405008 ।४0. 285) 


(२८) एक विश्वविद्यालय के १९५१ की एम० काम० परीक्षा के सांख्यिकी 
में, ६५ विद्यार्थियों द्वारा, प्राप्तांक निम्नलिखित हैं : 


विन मिलन निशििभिश भिभि मिमी शी निलफि कील न नकल जल जला ७-७ 











जमओ (१०० में से) विद्यार्थियों की संख्या 
२५ से अधिक ६५ 
२६ + 9 द्रे 
डरे, )) 39 ४० 
फ् 97 १9 १८ 
३० ,» १ हद 











सांख्यिकी में प्रथम श्रेणी (६० या इससे अधिक अछ्छ) के अड्डू पाने 


वाले विद्यार्थियों की संख्या ज्ञात कीजिये । 


(2:३०८४८४] ?:076॥8 40 50६0970$ ४0. 287) 





ग्रध्याय १५ 


सामग्री निवेचन 

गरफरश5587"00थ४ 028678 
पिछले अध्यायों में सामग्री संग्रहण ओर उसके विश्लेषण की रीतियाँ बताई गईं 
हैँ | इन परिच्छुदों में आंकिक तथ्यों का विश्लेषण किया गया है और उन रीतियों को 
जिन्हें सांड्यिकिक रीतियाँ कहते हैं। समझाया गया है, जिनके द्वारा संग्रहण ओर विश्ले- 
'घण सम्भव हो पाता है। पर सांख्यिक का कार्य यहीं समाप्त नहीं हो जाता | उसे इस 
प्रकार प्राप्त सामग्री से परिणाम निकालने होते हैं। परिणाम निकालने में पर्यात सावधानी 
'की आवश्यकता होतों है, अन्यथा गलत परिणाम प्राप्त होंगे, जिससे सामग्री संग्रहण, 
और विश्लेषण का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। परिणाम निकालने में किन साव- 

घानियों का उपयोग किया जाय इसका अध्ययन प्रस्तुत अध्याय में किया जाएगा। 
सामग्री निवंचन सांख्यिकी का वह भाग है जो संग्रहित सामग्री के वैश्लेषिक अध्ययन 
से परिणाम निकालने से सम्बन्धित है। सांख्यिकी में इसके बारे में जानना नितान्त 
आवश्यक है क्योंकि सामग्री का स्वतः कोई उपयोग नहीं है । किसी भी विज्ञान में जहाँ 
'आगमन (760८५४०४) का उपयोग किया जाता है, सांख्यिकी एक महत्वपूर्ण साधन 
है | पर यंह केवल साधन है ओर जेसा अन्य साधनों के लिए सच है, इस के द्वारा 
निकाले गए परिणाम की प्रकृति इसके उपयोग पर निर्भर होगी। अगर इसका दुरुपयोग 
किया गया तो स्वमावत: गलत परिणाम निकालेंगे, जों लोगों को जिन्हें सांख्यिकी का 
ज्ञान नहीं है, बहका सकते हैं। ये गलतियाँ बिना किसी अमिप्रांय के हो सकती हैं 
और जान-बूक कर भी की जा सकती हैं। एक वैज्ञानिक होने के नाते सांख्यिक का 
'सबंदा यह प्रयत्न रहना चाहिए. कि बिना जानी हुई गलतियाँ ओर जानबूक कर 
'की गई गलतियाँ जो अ्मिनति और पक्षपात के कारण होंती हैं, कम से कम हों । 
पिछले परिच्छेदों में, जहाँ सामग्री संग्रहण और विश्लेषण तथा सांख्यिकीय रीतियों का 
उपयोग बताया गया है; प्रत्येक स्थान पर उन कारणों को दे दिया गया है जिनसे गलती 
होने की संभावना रहती है | पर यह विदित होना चाहिए कि नियमों को दे देने से ही 








सत्मग्री-निवंचन ४४३ 


गलतियाँ कम नहीं हो जातीं वे पूर्णतः सांख्यिक पर निर्मर करती हैं। उसका शान, 
अनुभव ओर अमिनप्ति अमाव ही इन्हें कम कर सकता है। जो बात सामग्री के संग्रहण 
ओर विश्लेषण तथा साख्यिकीय रीतियों के उपयोग के लिए. सच है, वही, उससे 
अधिक परिमाण में, सामग्री-निर्वंचन के लिए भी सच है । भले ही सामग्री का संग्रहण 
ओर उसका विश्लेषण निर्दोष रूप में किया गया हो, पर निर्ववन के दोषपूर्ण होने 
के कारण, परिणाम गलत निकल सकते हैं | अगर परिणामों में किसी वर्ग विशेष का 
स्वार्थ हो तो वे स्वभावतः अपने हितों को सिद्ध करने के लिए जानबूक कर दोषपूर्ण 
रूप में निर्वंचन करेंगे, जिससे उनको लाम हो सके | अतएव अगर सही और प्रामा- 
शिक परिणाम प्राप्त करने हों तो यह आवश्यक है कि निर्वचचन का काये ऐसे लोगों को 
दिया जाय जिन्हें न केवल सांख्यिकीय रीतियों का ज्ञान हों और उनका उपयोग करने 
का अनुभव हो, बल्कि साथ ही साथ, जिनमें पक्तषुपात या अमिनति का अभाव हों 
अर्थात्‌ ऐसे लोग जो विषय वस्तु का अध्ययन वैज्ञनिक दृष्टिकोण से कर सकते हैं 
ओर वस्तु-स्थिति को सही रूप से समभने की चेष्य करते हैं | 





निर्बंचन करने से पहले सांख्यिक को निम्नलिखित बातों पर विचार कर लेना 
चाहिये :-- 


(१) संग्रद्ठित सामग्री विषय वस्तु का अध्ययन करने के लिये उपयुक्त दै 
ओर प्रामाणिक है। सामग्री की उपयुक्तता ओर ग्रामाणिकता, किसी भी प्रकार का मत 
या निर्णय देने के लिये आवश्यक है | 


(२) सामग्री विषय-वस्तु का अध्ययन करने के लिये पर्याप्र है। भले ही 
सामग्री प्रामाणिक और उपयुक्त हों, पर जब तक वह पर्याप्त नहीं है, उसके आधार पर 
दिया गया मत या निर्णय मान्य नहीं हो सकता । 


(३) सामग्री सजञातीय है। अन्यथा किसी भी प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन: 
नहीं हो पाएगा । विजातीय सामग्रियों की तुलना करने से सम्मवतः गलत परिणाम 
आाप्त होंगे । 


(४) सामग्री का विश्लेषण सांख्यिकीय रीतियों द्वारा वैज्ञानिक ढंग से 
किया है। उन सब बातों पर पूर्ण रूप से विचार कर लिया गया है जिनके कारण 
विश्वम हो सकता है, ओर साथ ही साथ जहाँ तक सम्भव है; इन विश्रमों को दूर या 
कम कर दिया गया है । 


छ४ड४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सांख्यिक को इन सब बातों के बारे में अपने को संतुष्ट कर लेना*चाहिये | ये बातें 
सामग्री के संग्रहण और विश्लेषण तथा रीतियों के उपयोग से संबंधित है। निर्ब॑ंचन में 
विश्रम निम्न कारणों से हो सकता है :-- 
(१) मिथ्या सामान्यकरण के कारण (07९ ६0 £256 8९7८:७)54007) 
(२) देशनांकों, सहसम्बन्ध गुणकों आदि के गलत निवचन के कारण (006७ 
00 ज्ञाःणाएु 49 6797९0४(09 ०6 गर्ते*्द )प70९05, ००८ईटाड76 ०0६ 
८0772]80079) | 
(६93८ 260९:५/]548007) मिथ्या सामान्य करण : द 
इस प्रकार की गलतियों का कारण यह है कि लोग एक भाग (27४०) का. 
अध्ययन करके पूर्ण (%0|6) के बारे में बताने लगते हैं | पर यह आवश्यक नहीं 
है कि जो बात एक भाग के लिए, सच हो वह पूर्ण के लिए. भी सब हो। संभव हो 
सकता हैं कि एक भाग में होने वाले परिवर्तन कभी-कभी पूर्ण में होने वाले परिवर्तनों 
के अनुसार हों, पर ऐसा सदैव होना आवश्यक नहीं है। फिर यह कहने के लिए 
कि पूर्ण के परिवतनों का श्ञान भाग में होने वाले परिवर्तनों के समरूप हैं, यह जानना 
आवश्यक है कि अन्य भागों के परिवर्तन किस प्रकार के हुए हैं। अगर ये परिवतंन 
विपरीत दशा में हुए हों ओर इस परिमाण में हुए हों कि पहले भाग वाले परिवर्तनों 
को संतुलित कर दिया हो या उससे अधिक परिमाण में हुए हों, तो ऐसी दशाओं में 
भाग के परिवतेन पूर्ण में होने वाले परिवर्तेनों के समरूप नहीं होंगे। अगर ये 
परिवर्तन समरूप भी हों तो यह आवश्यक नहीं है कि जिस परिमाण में भाग में 
परिवर्तन हुए. हों उसी परिमाण में पूर्ण में भी परिवर्तन हुए हों। अतएवं अगर 
ऐसी दशाओं में जो बहुधा रहती हैं, किसी प्रकार का सामान्यकरण किया जाय तो 
वह गलत होगा। इस प्रकार के सामान्यकरण का उपयोग बिज्ञापकों, वर्गों या दलों 
के द्वारा प्रायः किया जाता हैं। इस प्रकार वे भाग के द्वारा पूर्ण में होने वाले 
परिवर्तनों को बताते है । ऊपरी तौर पर देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि ये परिमाण 
सच हैं। पर अगर कुछ गहरे तोर पर देखा जाय तो यह स्पष्ट हो जाता है कि 
वास्तव में पूर्ण में ऐसे कोई परिवर्तन नहीं हैं। उन्हें केवल मिथ्या मास दिया 
गया है। क्‍ 
मिथ्या सामान्यकरण किस प्रकार किए जाते हैं इसके कुछ उदाहरण नीचे दिए 
गए. हैं | मान लीजिए कि किसी देश में वस्तुओं का आयात एक वर्ष की अपेक्षा 
दूसरे वर्ष बढ़ जाता है | यह एक तथ्य हो सकता है। पर यदि इसका सामान्यकरण 


सामग्री-निर्वंचन ४४५ 


इस रूप में किया जाय कि चूँकि दूसरे वर्ष देश के आयात का परिमाण बढ़ गया 
है इसलिए देश पहले की अपेकज्ञा अधिक संपन्न है, तो यह एक मिथ्या सामान्य करण 
होगा क्योंकि यह एक माग पर आधारित है। यह सामान्य करण तभी सही माना जा 
सकता है जब अन्य भागों का भी अध्ययन किया गया हो और उनमें परिवतनों को 
जान जिया गया हो । द 

.. यह सच है कि देश के आयात का प्रिमाश बढ़ गया है; पर केवल इसका 
निर्बचन, कि इसलिए. देश की संपन्नता बढ़ गई है, गलत विश्लेषण पर आधारित 
है। इस निर्वचन में समस्या के सत्र पहलुओं पर विचार नहीं किया गया है| अगर 
समस्या का सही हल जानना हो तो उसका सही रूप में विश्लेषण करना पढ़ेगा। 
स्पष्यतः पहला प्रश्न यह पूछा जा सकता है कि आयात के साथ-साथ निर्यात भी 
बढ़ा है या नहीं, अगर निर्यात भी उसी परिमाण में बढ़ा है जिस परिमाण में आयात, 
तो संपन्नता में बृद्धि नहीं हुईं। यह भी संभव है कि निर्यात बढ़ गया है। उस दशा 
में संपन्नता में कुछ कमी हो सकता है। अगर यह मान लिया जाए कि आयात में 
वृद्धि अधिक हुई है, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि संपन्नता में वृद्धि हुई है। 
क्योंकि इस आयात की बृद्धि के साथ देशी वस्तुओ्रों के उपभोग के परिमाण घट, बढ़ 
या समान रह सकते हैं। अगर ये बढ़ जाते हैं या समान रहते है तो यह कहा जा 
सकता है कि संपन्नता में इृद्धि हुई है, पर अगर ये कम हो जाते हैं तो संपन्नता की 
चूद्धि आयात की इद्धि और देशी वस्तुओं के उपयोग के हास के सापेज्षिक परिमाणों 
पर निर्भर रहेंगी, पर बात यहीं पर तय नहीं हो जाती | इस बात पर भी विचार करना 
पड़ेगा कि इन वर्षों में देश वी जनसंख्या कितनी थी। अगर दूसरे वर्ष में पहले की 
अपेक्षा अधिक जनसंख्या है तो संभव हो सकता है कि आयात की वृद्धि इसके कारण 
हुई हो और प्रति व्यक्ति उपमोग में कोई अन्तर न होने के कारण संपन्नता में बृद्धि 
न हुई है | इसलिए जनसंख्या के परिवर्तनों पर भी विचार करना पड़ेगा इसके साथ 
वस्तुओं के उपभोग के विवरण पर भी विचार करना पड़ेगा । अगर देश में विलासिता 


5 


की वस्तुओं का परिमाण आवश्यक वस्तुओं की लागत पर बढ़ा तो भी संपन्नता में 
वृद्धि नहीं होगी। क्योंकि देश के लोगों में अधिकांश को आवश्यक बस्तुएँ पहले की 
अपेक्षा कम परिमाण में मिलेंगी। विलासिता की वस्तुओं का उपमोग कुछ ही लोगों 
द्वारा किया जाता है । इसलिए मले ही देश के लोगों में कुछ की । एक छोटे वर्ग की । 
सम्पन्नता बढ़ गई हो, पर अधिकांश लोगों की विपत्ता के बढ़ जाने के कारण पूरे देश 


के लिए सम्पन्नता नहीं बढ़ेगी । 


४४६ क्‍ सांडियकी के सिद्धान्त 


इस प्रकार के नमूने बढ़ाये जा सकते हैं | पर उपर्युक्त उदाहरण से यह स्पष्ट हो 
गया होगा कि मिथ्या सामान्यकरण किस प्रकार सही लगते हुए, भी वस्तुस्थिति के बारे 
में गलत धारणा बना देते हैं| साथ ही साथ यह भी स्पष्ट हो गया होगा कि निर्बंचन 
के लिए किस प्रकार विश्लेषण किया जाता है। वास्तव में निवंचन एक सहज काये 
नहीं है । पूर्ण के प्रत्येक पक्ष के विषय में जानना पड़ता है ओर उन सब का एक साथ 
संतुलित अध्ययन करना पड़ता है। केवल इसी दशा में सही परिणाम निकाले जा 
सकते हैं, अन्य था ये परिणाम मिथ्यामास मात्र होंगे । 


देशनांकों का गलत निर्बेचन 
(प्राए70ा8 [767976(4007 ० [7065 'पपण6१७) 


देशनांकों के विषय में पहले कहा जा चुका है कि ये एक प्रवृत्ति को बताते हैं। 
साथ ही साथ यह भी बताया जा चुका है कि एक उद्देश्य से बनाए. गए देशनांकों का 
उपयोग अन्य स्थानों पर नहीं किया जा सकता । देशनांकों के निवंचन संबंधी गलतियाँ 
दो प्रकार से हो सकती हैं। या तो देशनांकों की परिसीमाएँ न जाने बिना कोई सामान्य 
कथन कह दिया जाय । या फिर, एक प्रकार के देशनांकों का उपयोग अन्य स्थलों पर 
किया जाय । जैसे, अगर यह कहा जाय कि सामान्य.मूल्य स्तर बढ़ जाने के कारण मज- 
दूरों का निर्वाह व्यय बढ़ गया है तो यह देशनांकों का गलत निवंचन कह जाया जायगा | 
जैसा बताया जा चुका है, ये दोनों प्रकार के देशनांक विभिन्न वस्तुओं, विभिन्न प्रकार के 
मूल्यों, अलग-अलग भारों को लेकर बनाये जाते हैं| इसलिए एक में होने वाले परि- 
वर्तन दूसरे के परिव्तनों को सही सही रूप में नहीं बता सकते | इसी प्रकार यह कहना 
कि सामान्य-मूल्य-स्तर बढ़ गया है इसलिये देश में द्रव्य की राशि भी बढ़ गई है, 
देशनांकों के गलत निवंचन के कारण होगा । सामान्य-मूल्य-स्तर का बढ़ना द्रव्य की 
राशि पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि वस्तुओं के परिमाण पर भी निर्भर रहता है। 
इसलिये जब तक दूसरे के बारें में निश्चित रूप से शात न हो, इस प्रकार का निर्वचन 
गलत होगा | 
सहसंबंध गुणक ओर संबंध गुणक का गलत निवंचन 
(४४:078 7700679764007 0६ (0०6#0०6ा 


०६ (८077227070 270 :0850८2077) 


सहसंबंध-गुणक के परिच्छेद में यह बताया जा चुका है कि यह केवल प्रवृत्ति बताता 
है--इसके लिये उपनति-रेखा भी खींची गई थी | साथ ही साथ यह भी बताया गया 


सामप्रो-निर्व चन ४ ४७- 


है कि सहसंबंध-गुणक के मानों को देखकर परिमाण निकालने में बहुत सावधानी बरतनी 
व्वाहिये क्योंकि यह दो या अधिक चलों के बीच की परस्परनिर्भरता को पूर्ण रूप से नहीं 
दिखाता । फिर सहसंबंध-गुणक होने का अर्थ यह नहीं है कि दो चलों में कार्य-कारण 

संबंध हो | ऐसे स्थलों में अगर केवल सहसंबंध-गुशक को देखकर परिणाम निकाले: 
जाएँगे तो वे भ्रामक होंगे | एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी | मान लीजिए. 
उत्तर प्रदेश में गन्ना बोए. जाने वाले और अन्न बोए जाने वाले खेतों केः क्षेत्रफल में. 

ऋषात्मक सहसंबंध है। अर्थात्‌ ऋणात्मक सहसंबंध गुणक प्राप्त होता है, अगर इससे 
बिना अन्य बातों पर विचार किए हुए यह परिणाम निकाला जाय कि गन्ने की खेती 
अज्न की खेती के मूल्य पर बढ़ रही है, तो यह सहसंबंध शुणक का गलत निर्वंचन 

हुआ | इससे अगर यह परिणाम निकाला जाय कि लोग चीनी के प्रति अन्न की. 
अपेक्षा अधिक आसक्त हैं, तो भी यह गलत निरवंचन हुआ । क्योंकि यह सम्भव हो 
सकता है कि विदेशों से सस्ते मूल्य में अन्न के आने के कारण उसका उत्पादन गन्ने की 
अपेक्षा कम लाभदायक हो गया हो | या फिर चीनी की मिलों के खुल जाने के कारण 

भी गन्ने के दाम बढ़ सकते हैं, इसलिए अन्न का उत्पादन कम हो गया हो । सम्मव है 
कि नहरों के खुल जाने के कारण जो लोग पहले गन्ने का उत्पादन नहीं कर सकते थे, 
वे ऐसा करने लगे हों | प्रदेश की जलवायु में परिवर्तन होने के कारण भी ऐसा हो 
सकता है । इससे पहले, कि सहसंबंध गुणक का किसी प्रकार निवंचन किया जाय, उनः 
सब पन्नों पर विचार कर लेना चाहिये जो सामग्री को प्रभावित कर सकते हैं। एक: 
दूसरा उदाहरण लीजिए. । किसी प्रदेश में जिन स्थानों में पाक है वहाँ बाल-दु्घेटना कम. 

है और जहाँ पार्क नहीं है वहाँ अधिक | इस प्रकार का निवंचन पार्कों की संख्या 
और बाल-दुर्घटनाओं की संख्या के सहसंबंध से निकाली जा सकती है। सहसंबंध 
गुणक ऋणात्मक होगा। पर इससे यह परिणाम निश्चयात्मक रूप से नहीं निकाला 
जा सकता कि बाल-दुर्घटनाओ्ों को कम करने के लिए पार्को' की संख्या बढ़ा दी जाय | 

यह भी सम्भव हो सकता है कि उस स्थान में बच्चों की संख्या अपेक्षाइत कम हो और 

नौकरों की अधिक | या यह भी हो सकता है कि मकानों के साथ-साथ बगीचे भी हों. 
और बच्चों को बाहर जाने की आवश्यकतां अपेक्षाकृत कम पड़ती हो। इससे यह स्पष्ट 

हो जाना चाहिये.कि सहसंबंध गुणक के मान के निर्ब॑ंचन में न केवल सावधानी बर- 

तना आवश्यक है बल्कि, साथ ही साथ, अन्य तथ्यों का ज्ञान होना भी आवश्यक है ६ 
इसके बिना किए गए, निव॑चन भ्रमात्मंक ओर गलत परिणाम देंगे। 


इसी प्रकार संबंध-गुणक के निर्वचन में भी सावधानी बरतनी पड़ती है। यह 


४४८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


सम्भव है कि दो श्रेणियों में किसी प्रकार का संबंध न हो,पर ऐसा प्रतीत होता हो कि संबंध 
है । जिस प्रकार सहसंवंध शुण॒क का निर्वबन करने के लिये अन्य बातों पर भी विचार 
करना पड़ता है, उसी प्रकार संबंध-गुणक के निबंचन के लिए भी यह आवश्यक है कि 
उन सब प्रभावों की जानकारी हो जो संबंध शुण॒क को प्रभावित कर सकती हैं। फिर 
जब संबंध शुणक निकाला जाता है तो केवल दो गुणों की उपस्थिति मानी जाती है। 
पर अन्य शुणों के होने के कारण यह सम्भव हे कि वास्तव में सम्बन्ध के न होते हुए 
भी ऐसा प्रतीत हो कि सम्बन्ध हे | 

इन उदाहरणों से स्पष्ट हो गया होगा कि समंकों या सामग्री पर पूर्ण रूप से 
'निर्भर करके निवंचन नहीं किया जा सकता। ये समस्या के एक पहलू को सही रूप में 
समभा देते हैं। पर जहाँ तक अन्य बातों का प्रश्न है, केवल अनुभव ओर ज्ञान द्वारा ही 
'डचित निर्वंचन किया जा सकता है। जब कभी भी निवंचन करना पड़े, इन बातों का 
ध्यान रखना चाहिये ओर तदनुसार सावधानी बरतनी चाहिए । 


प्रशनावली 
(१) समंको के निवेचन से आप क्या समभते हैं? इसके महत्व पर 
विघ्तारपू्वक लिखिये। 
(२) निरवेचन में साधारणतः क्या गलतियाँ की ज्ञाती हैं ? इनसे बचने 
के लिए क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए ? 
(३) निम्नलिखित सारणी में दिए गए समंकों का अध्ययन करके आप 
'रूस-निवासियों की आथिक कर्मण्यता के बारे में क्या परिणाम निकालेंगे :-- 









































१६२८८-८ १०० 
___१६२९१९३०१९३१९९३२१९३३ - 
ओऔद्योगिक उत्पादन १२६ १६४ २०३| २३१| २५४७० ३००, २६९ 
'विनियोग-पदार्थों का द | 
। उत्पादन १३१ १८५७ २४० २६४ २३०७| रे८घर। २८१ 
॥ डपभोग-पदार्थों' का ध 
कह पल । २२ | १७२ ६१९०| २०० २३० २७४ 
:। वास्तविक आयात ..। +३| २४१| श१६७ ७४ रे७छ र४े २५ 
| वास्तविक निर्यात ११५ १२८० १०० ७१| ६१ ४२| ४८ 























। 


| 











२९ सामग्री-निर्वेचन ४४६, 
(४) निम्नलिखित सामग्री का निबेचन करिये। 
भारत में औद्योगिक कलह 
(१६३६ ८० १००) 
|_ वर्ष |... कलह संज्या । मजदूर की संख्या । बेकार हुवे मनुष्य दिन 
१९३९ १०१ १०० १०० 
४० छ्ट १७१ श्ध्र 
९ ८ष्य ७१ ६७ 
४२ १७१ १८६ १९६ 
४३ १७६ श्सय्ष्र ४७ 
ढढ १६२ १५२७ ६९ 
४५ २०२ १८३ प्र 
४ ४०१ ४७९ रभ५ 
४७ ४७४६ ४५० १३२ 
४८ ३१० रण६ १५७ 
७४९ २२७ | १६८ १३६ 
४० २१ _ 'ग० २०१ १७६ २५७ 




















(५) निम्नलिखित सामग्री में माँगों के अनुसार कल्नह-संख्या ( प्रतिशत 
में ) दी गई है। इसका निर्वेचन करिये । 
























































माँगें (परतिशत ) 
कुल काम| मजदरी  लुट्टी और | [| अज्ञात 
वर्ष | ब्दी और मेसे पोल | वैवकिक काम के घंडे। अल्य | माँग 
१६३९ | ४०६ पर | ७६ | ५७३।७ ०५| श्य२| २६ २१*१ ++ 
४०. 3२२ ६२७ २८ | १६-८ ३१ १४६ ्ा 
४१ २५६ ६०"७ २५ | १५३ ४२ १७३ +- 
४२ ६९४ ५१९८६ | १५५१"३ ६१ १*० | २६९७ ना 
४३ (७१६ ४७'प्य ७७ ७४ १९९ ३४२ न 
४४ | ६४८ ६*३ ७"६ | १२०५ ५३ १७*९ न 
प्‌ ८5२० ४३४ १३४ २१७'७ ६८ श्टरः ० ०*७ 
४६ (१६२६ ३७१ ४'€ । १७'२ ८० ३२८ “” 
४७ (श्प्११ २१०७ | १०८ ।| १६३ पर ३२१ ०६! 
४८ १६ ३०५ | ९० | रदप | ८७ २२"१ ०६ |; 
| ५० ४ सर ६ रश३ | ८३ ८६ ६२० ३०११ ५७ | २३६ ६१ २५" ६० 
० ८5१४ २७*३ ६९ २२५"'८ ट्प'३ २८६ ४९९ 








(६) निम्नलिखित सामग्री का निर्वेचन करिये और किन्हां दो श्रेणियों 


छू 


को उपयुक्त चित्र द्वारा प्रद्शित करिये। 


४५० सांख्यिकी के सिद्धान्त 
















































































ीाएजज"”णपषणश/”शणश।््ा पहिशतमाग | 
महाद्वीप या देश | दुनिया का | हनिया का | दुनिया का दुनिया को 
भूमि-क्षेत्र | कृषि-चेत्र | खाद्यान्न उत्पादन _ जनसंख्या _ 
एशिया 
. (रूस को छोड़कर) |. श्८६ ३२*६ ३१० ५३-१ 
उत्तरी अमेरिका १७' रे २१२ २१५ दर 
ख्स १६' १ श्ष्प्प २२० ७ ई्‌ 
यूरोप 
(रूस को छोड़कर) |. ३७ | १६३ १६९० १७९ 
मध्य ओर दक्षिणी | १३*२ ५७ प्‌ 
अमेरिका | ५० 
अफ्रीका २४*१ ५*६ ४*० ७७ 
आस्ट्रेलिया .. ७९० १५ ११० ०५ 
कुल १००० | १००९० । १५००"० १००१० 





(एस० ए०, इलाहाबाद, १६५२) 


(७) नीचे दिए गए दो कॉलेजों, क ओर ख, के परीक्षाफलों से बतलाहये 
कि कौन अच्छा है ओर क्‍यों ? 





क कॉलेज ख कॉलेज 














परीक्षा में बैठने वाले| उत्तीण परीक्षा में बेठने वाले। उत्तीर्ण 

















एम० ए.० ३० २५ १०० ष्प० 
एम० कॉम ० ण्‌७ ४५३ १२०. ६५ 
बी० ए७ २०० १५० १०० ७० 

. बी० कॉम० १२० ७५ ट्० ५० 
४०० २६४ ४०० .. २६५ 








७७७एएल्‍ए्ए्रल्‍७७७७७॥७७७//७/७/शश//शशआआआआआआशआआशशआशआआआआआआाााशाशााणाभाााााणााााआाााआकआ का इइ इन ॒॒न॒ु नम मल लाद लक लक कल नि ली जल दी लीन लिन निगल लि नि मि कि जिन कल १ 





. (८) निम्नलिखित .सारणी एक क्षेत्र में १० वर्ष के लिए औद्योगिक 
उत्पादन के मूल्य सम्बन्धी अंक ओर उसी क्षेत्र के लिए सामान्य-मूल्य देशनांक 


देती दे : 


सामग्री-निर्वे चन ४५१ 











वर्ष "(शास र » में) सामान्य मूल्य देशनांक 
१९३१ ६० १०० 
३२ ३६ ९१ 
३३ ४५ प्प७ 
३४ ण्प ८६ 
श्प क्‍ प्प्ड ६१ 
३६ ९३ ६६ 
३७ प्‌ १०२ ' 
स्पष्ट ८४ दप 
२९... | <२ क्‍ १०८ 
४० ८० १२० 











इन अझ्लों पर टीका लिखिये; इसका उल्लेख करते हुए कि, मूल्य 
परिवर्तन पर विचार करने के बाद, उत्पादन वस्तुत: कहाँ तक वर्ष प्रति वर्ष 
बढ़ा या घटा, और १६४० की स्थिति १६३६ की अपेक्षा कैसी है ! 


(६) निम्नलिखित सारणी देशनांकों की दो श्रेणियाँ देती हैं; एक श्रेणी 
(क) उस बस्तुओं के मूल्य स्तर को दिखाती है जिन्हें. उत्तर प्रदेश का ओसत 
कृषक बेचता है, और दूसरी श्रेणी (ख्र) उन बस्तुओं के मूल्य-स्तर को बतादी है 
जिन्हें वह खरीदता है। किसी रीति से जसि आप सबसे अच्छी समझें, इन 
अछ्लों का विश्लेषण कीजिए--इन बातों को आँकते हुए कि (१) इन अज्लों को 
देखते हुए उत्तर प्रदेश के क्मक की आ्िक स्थिति १६४८ में सास श्रतिमास 
उसके अनुकूल या प्रतिकूल हुई ओर (२) १६४८ के अन्त में वह () १६३६ 
(॥) १६४८ के आरम्भ की अपेक्षा कैसा था ? 


४५२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 





 प्दकेमाल | अर आओ. क्‌ श्रेणी ख 


















































१९४८ के मास १६३९-१०० १९३९--१०० 

जनवरी शा. [|| ३१० 

फरवरी ४२० ररेरे 

माचे ३७४ ३१२ 

अप्रेल ३८४ द ३५१ 

मदद ४१५१७ ३९० 

जून ४३८ रेप्प७ 

जुलाई ४७४ ३९५, 

अगस्त ४९५ ४०५५, 

सितम्बर ५०० ३९२ 

अक्टूबर ४९९ ३९३ 

नवम्बर ' थ्ध्य्‌ . ३९२ 

दिसम्बर ४५ | रे े७प्य 

(१०) निम्नलिखित अछ्लों का सावधानी से अध्ययन करिये 
“गाता. प कर ८८०: 

मौसम [६5 कि पी हि | ट री -म 
कक. फि: दि क्र [7 है हक पट 0 एररि 
्रः रण,  श ध् हा छः 24 प्र 9 ५4 ।ए 
न ए। लिंक मिित ड लि, ह 
मं प्ञ 7 हि, ्ध ्ि जि ह्न वि क्द्र | (६ ४ 
| 4 दि ४5ड फू: ि हे 0" ट. 
छः । पे ्पूफ़ गैर 9 

7६३१-३२ | १५.६ | २२२.५ पइह्-्र। शप६॥ | २२२.५ | छा. | ०.७ | २.०७ -- 

३२-३ रे १७,९ २६ १.५ १६.४ १४ २.२ ++ 

३३--३४ १७.३ २४७,० ३०.२ २.७ १.६ पा 

३४-३५ | रैट.४ | र७भ.८ | ३६.६ | ३.२ | १.२ १७२ 

३४-३६ | २२.५ | ३३३,६ ५५.३ | ५.३ | १.० २०४ 

३६-३७ | २५.२ | ३८०.२ ६३६८५ ६.१ ०.प। २४.१ 

३७-रे८ | २२.२ | ३१९.४ ५७.९ | ५.१ १०| १८.८ 

रे८प-३९ | १६९०५ १४५.४ ३५.१ ३.२ १.० ७३ 

३९-४० | १९.१ २१७ ४ ७०.३ ६.६ १० ६२ 

४०-४१ | २५६४ २८६,४ ५२,२ ५.१९ ९.२ १५.५ 

४-४२ | १७.५ १५४.० रेट ३.८ ०.८ ७. 




















उपरिलिखित सारणी के आधार पर १६३७ से १६४२ तक उत्तर 
प्रदेश की चीनी अथे-व्यवस्था की अवस्था पर संज्षित समालोचना करिये। 


अध्याय २६ 
भारतीय संमक 


([00270 530278708 ) 

पिछले अध्यायों में बताया गया है कि किस प्रकार संमक प्राप्त होते हैं, और 
इनका विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है, ओर अन्त में यह भी बताया गया है कि इन 
संप्कों से किस प्रकार परिणाम निकाले जाते हैं। प्रस्तुत अध्याय में यह बताया जायगा 
कि भारत में इस प्रकार के संमक किस प्रकार ज्ञात किए जाते हैं, वे कहाँ मिलते हैं, 
उनमें क्‍या दोष ओर कमियाँ हैं । 
ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि (57070%] 82८०:287४००४०) 

भारत में संमकों का संग्रहण, राजाओं के द्वारा, शासन-व्यवस्था को सुचारु रूप 
से चलाने के लिये किया जाता रहा है। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि आज से 
लगभग २५४०० वर्ष पहले भारत में मजदूरी, मूल्य, भूमि आदि सम्बन्धी संमक जमा 
किए जाते थे । अकबर के काल में भी संमक जमा किये गये थे । पर इनका उद्देश्य 
निर्वेचन करना या आर्थिक नीति निश्चित करना नहीं रहा | इनका संग्रहण इसलिए 
किया जाता था जिससे राजाओं को शासन-प्रबन्ध में सुविधा हो ओर वे अपनी शक्ति 
का अनुमान लगा सकें। चूँकि भारतवर्ष सदा से क्ृषि-प्रधान देश रहा है, अतः ये संमक 
भारतीय-अर्थ-व्यवस्था के इस पहलू पर प्रकाश डालते हैं । 

ईस्ट इंडिया कम्पनी के आने के बाद भी संमक-संग्रहण का स्थान गौण रहा। 

इस काल के लिए जो समंक उपलब्ध हैं वे आयात-निर्यात सम्बन्धी हे या कृषि 
सम्बन्धी हैं। कम्पनी को अपनी अवस्था जानने के लिये आयात-निर्यात-संमकों की 
आवश्यकता पड़ती थी। कृषि सम्बन्धी संमकों का संग्रहण मालशुजारी निश्चित करने के 
उद्देश्य से किया गया था। इस काल में भी संमकों का संग्रहण शासन या प्रबन्ध की 
सुविधा के लिये किया गया । इन दोनों कालों में किसी प्रकार का सांख्यिकीय संगठन 
(5६४/50 ८4] 0722778%007) नहीं था। जो कुछ संमक संग्रहित किये गए, वे 
फुटकर रूप में या तो कम्पनी के द्वारा या मालगुजारी अफसरों (६८ए८४०७४ ०६7८9/9) 
द्वारा किये गये थे | 














पड सांख्यिकी के सिद्धान्त 


१९वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ट में संमक संग्रहण की ओर कुछ ध्यान दिया जाने 
 लगा। इसका मुख्य कारण उस समय पड़ने वाले अकाल थे | १८६८ में सब-प्रथम 
ब्रियिश भारत से सम्बन्धित एक सांख्यिकीय-संक्तेप ( 508080 20%) 3 ०४::०८६ ) 
प्रकाशित किया गया, जो इसके बाद प्रति वर्ष प्रकाशित होता रहा | भारतीय अकाल- 
कमीशन ( [7947 ए2077० (00ए775807 ) की सिफारिश के अनुसार एक 
सांख्यिकीय-अफसर की कृषि विभाग में नियुक्ति की गई पर बाद में यह विभाग बन्द 
कर दिया गया । भारत की सर्व-प्रथण जनगणना १८७२ में की गई थी, पर चंकि 
इसमें पूरे देश को नहीं लिया गया था इसलिये इसे छोड़ दिया जाता है। पहली, पूरे 
देश के लिये की जाने वाली जनगणना १८८१ की है। १८८१ में ही “इम्पीरियत 
गजेटियर ऑफ इंडिया! ([77767ए%&) (5226:/८८४ ०६ ॥70|2) का पहला संस्करण 
प्रकाशित हुआ जिसमें भारत संबन्धी आर्थिक सांख्यिकी दी गई थी। इसके बाद, 
अकाल कमीशन (१८८०) की सिफारिशों के अनुसार कई प्रान्तों में कृषि-विभाग 
खोले गए | फसल संबंधी पूर्वानुमान और पशुगणना का प्रारम्भ क्रशः १८९४ और 
श्यू७-प्प्य में हुआ । 


इस शताब्दी के आरम्म में सांख्यिकीय-संगठन में कुछ सुधार हुए। १६०५ 
में (डिपाय्मेन्ट ऑफ कमर्शियल इन्टेलिजेन्स एँड स्टेटिस्टिक्स' ( 057थए८॥/ 
०६ (०शणटाटांबो राट287८6 गत 55805005 ) स्थापित किया गया। 
इसने १६०६ में “इंडियन ट्रेड जनेल' (7)090 7४०७ [००:7० ) प्रकाशित करना 
शुरू किया। रॉयल कमीशन आन एग्रीकल्चर ( रि0एथॉ (०ठ्शाण्रा$307 07 
/07८५६प४८७) की सिफारिशों पर इंडियन काउन्धिल ऑफ एप्रीकल्चरल रिसर्च! 
के अन्तर्गत एक सांख्यिकीय विभाग भी खोला गया। बाउले-रॉबट्सन कमेटी की 
सिफारिश को अंशतः कार्यान्वित करके श्ह३े८ में ऑफिस ऑफ दे इकॉ्नॉमिक 
एडव्हाइजर ठु द गवनमेण्ण ऑफ इंडिया? ( 0806 ०0६ ६४6 8८००८ 
/१ए567 ६0 776 (50ए6एग्रग्रध्यः ०६ [7079 ) खोला गया। इसका काय 
भारत के आ्िक पहलू संबंधी सूचना का संग्रहण ओर अध्ययन करना और तदनुसार 
भारत सरकार को सलाह देना. है। १६४२ में “इंडस्ट्रियल स्टेव्स्टिक्स एक्ट 
( [70058079] $02/5005 2८६ ) पास किया गया । इसके अनुसार भारत सरकार 
को कुछ ओद्योगिक समंकों को राज्यों द्वारा जमा करवाने का अधिकार है। १९४६ में 
नेशनल इनकम कमेटी” (र५८७०४०४६ [70000 (०४॥7:६6८) नियुक्त की गई । 
आजकल अधिकांश राज्यों और केद्धीय सरकार के विभागों में सांख्यिकीय अ्रध्ययन 





भारतीय-संमक ४०५ . 


के लिए. अलग विभाग हैं। १६४६ में सांख्यिकीय क्रियाओं का समन्वय करने के 
लिए एक सांख्यिकीय एकक ( 8६0 900%)] पं ) बनाया गया | सन्‌ १९५४३ में 
कलेक्शन ऑफ स्टैेटिसटिक्स ऐक्ट! ((0]6८स00० ०६ 90808008 ै८) पास 
किया गया। इसके अन्तर्गत भारत सरकार को बहुत से ज्षेत्रों में संमक संग्रहण करने 
का अधिकार मिज्ञ गया | इस ऐक्ट के अनुसार अब भारत सरकार किसी भी प्रयोग, 
व्यापार-संख्या अथवा अ्रम-सम्बन्धी समंक संग्रह कर सकती है। सन्‌ १९४२ का 
“इणडस्ट्रियल स्टेटिसटिक्स ऐक्ट! ([7005987789] $8%05005 ८४) भी अब इस नये 
ऐक्ट में मिला दिया गया है। मारत में यह पहला ही अधिनियम है जिसने भारत सरकार 
को इतने अधिकार दिए हैं। यह आशा की जा सकती है कि भविष्य में उद्योग, 
व्यापार तथा अम-सम्बन्धी समंक पर्याप्त मात्रा में परिशुद्धता के साथ संग्रहित किए 
जाएँगे । 

भारतीय संविधान की धारा २४६ के अनुसार कुछ ऐसे विषय हैं जो केन्द्रीय 
सरकार के अन्तर्गत आते हैं ओर कुछ राज्य क और ख सरकारों के अन्तर्गत । जो 
विषय केद्धीय सरकार के अन्तर्गत हैं उनसे सम्बन्धित समंक केनद्रीय सरकार एकत्रित 
करती है ओर जो विषय राज्य सरकारों के अन्तर्गत आते हैं उनके समंक राज्य सरकारें 
संग्रहित करती हैं। कुछ विषय ऐसे भी हैं जो केन्द्रीय तथा राज्य सरकार, दोनों ही के 
अन्तर्गत हैं | इनसे सम्बन्धित समंक संग्रहण के अधिनियम बनाने का अधिकार केद्रीय 
आर राज्य सरकार दोनों ही को है। भारत में रेलवे, अधिकोष तथा मुद्रा, विदेशी 
व्यापार और जनसंख्या आदि से सम्बन्धित समंक केन्द्रीय सरकार एकत्रित करती है 
तथा कृषि, वन, शिक्षा, इत्यादि से सम्बन्धित समंक राज्य सरकारें एकत्र करती हैं। 
वास्तव में केन्रीय और राज्य सरकारों में समन्वय ( ८०0-०070॥7%007 ) रहता है 
आर समंक संग्रहण की रीतियाँ तथा अधिनियम एक-दूसरे की सलाह से ही बनाये 
जाते हैं | 

जहाँ तक अ-राजकीय ओर अधे-राजकीय समंकों का प्रश्न है वह, अन्य 
देशों की भाँति, भारत में भी अपेक्षाकृत कम हैं। भारत में इस प्रकार के समंक 
चेम्बस ऑफ कॉमर्स ( (.8/07०९४8 ०६ (:070776706 ), विश्वविद्यालयों, उद्योग- 
पतियों, व्यापार संघों, स्टक इक्सचंज तथा आशिक पत्रिकाओं द्वारा प्रकाशित किए. 
जाते हैं । 


आगामी पृष्ठों में कुछु प्रमुख मारतीय समंकों का संक्तिप्त विवरण दिया 
गया है । 








४५६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


जनगणना ( ?05०५४०० (०४४५५ ) 


जनगणना का महत्व--जनगणना की उपयोगिता न केवल शासन- 
प्रबन्ध के लिए है, बल्कि, साथ ही साथ, अन्य विषयों के अध्ययन में भी है। 
यह ठीक है कि उचित शासन व्यवस्था के लिए राज्य को अपने नागरिकों के बारे 
में जानना चाहिये। इसे जाने बिना वर्तमान सामाजिक, आर्थिक ओर राजनंतिक 
व्यवस्था में सुधार करना सम्भव न हो सकेगा और नही किसी प्रकार का आयोजन 
सहज हो पाएगा । सुरक्षा, इत्ति हीनता, प्रवास आदि की समस्याओं को सही रूप 
से हल करने में इन संमकों को जानना आवश्यक है। अगर जनगणना को 
उपयोगिता केवल यहीं तक सीमित रहती, तब भी इसको करना उचित समझा जाता । 
पहले की जनगणनाएँ इसी उद्देश्य से की गई हैं । पर, इससे अतिरिक्त, जन-गणना 
का महत्व अन्य विषयों में भी निर्विवाद है। श्रर्थशासत्र में जनसंख्या का अध्ययन 
अपना अलणश स्थान रखता है। किसी भी वास्तविक आर्थिक अध्ययन में जनसंख्या को 
उचित स्थान देना अनिवार्य है। अर्थशात््र का विद्यार्थी यह जानना चाह सकता है 
जनसंख्या की उपनति किस प्रकार की है, देश का व्यवसायिक वंदन (0८८प.५०/70709)] 
१5ए८स0८४०४) क्या है, उपलब्ध साधनों और जनसंख्या में क्या सम्बन्ध है, आदि । 
अर्थशास्त्री के लिये जनगणना किंवनी महत्वपूर्ण है इसका ज्ञान केवल इस बात से 
हो जायगा कि १६वीं शताब्दी के बाद में जब जनसंख्या बहुत शीघ्रता से बढ़ रही थी, 
तब माह्थस ने इस बढ़ती हुईं जनसंख्या का भविष्य की आ्िक स्थिति पर पड़ने वाले 
प्रभावों का विश्लेषण किया था, ओर आज, जब कुछ पाश्चात्य देशों में जनसंख्या की 
वृद्धि की दर अचल है या कम हो रही है, वे अथशास्त्री इसके परिणामों पर विचार में 
व्यस्त हैं। व्यापारियों और उद्योगपतियों को भी जनगणना के संमकों से लाम पहुँच 
सकता है। इन संमकों से वे यह जान सकते हैं कि जनतंख्या का धनत्व कहाँ अधिक है 
ओर इससे वे सम्भावी माँग का अनुमान लगा सकते हैं। व्यावसायिक वंटन से वे यह 
जान सकते हैं कि किसी स्थान विशेष में उनकी वस्तुओं की माँग हो सकती है या बढ़ 
सकती. है-या नहीं। उद्योगों के स्थान-निर्घारण में भी जनगणना के संमकों से लाम 
उठाया जा सकता है। समाजशास्त्रियों के लिये मी जनगणना का महत्व कम नहीं है, 
इससे वह देश की साम्राजिक स्थिति जान सकते है और उसमें सुधार करने के-लिये' 
व्यावहारिक सुझाव दे सकते है | नगर-निवासियों और ग्राम निवात्षियों की संख्याओं के: 
भारे में जानकर वह सामाजिक व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों का अन्दाज लगा 


भारतीय-पं सक डपू $ 


सकते हैं | इसी भाँति स््री-पुरुष-अनुपात ( 8८४5-:७८० ), विधुरों और विधवाओं' 

सम्बन्धी संमकों से लाम उठा सकते है। बाल मृत्यु, मृत्यु ओर जन्म अधे आदि का 

शान भी उनके लिए लाभदायक है | जनगणना के इन पत्चों पर अधिक विंस्तारपूर्वक 

विचार न करके हम जनगणना से सम्बन्धित सांख्यिकीय समस्याओं और भारत के 
जनगणना के संम॒कों पर विचार करेंगे । 


जनगणना का उद्देश्य और उसकी रीतियाँ--सांख्यिकीय दृष्टिकोण से 
संगणना (८८०5८५) का उद्दे श्य किसी प्रदेश या क्षेत्र के प्रत्येक सदस्य के बारे में: 
परिशुद्ध सूचना प्राप्त करना होता है । वह सूचना केवल लोगों की संख्या जानने तक ही 
सीपित नहीं रहती बल्कि, साथ ही साथ, लोगों के बारे में अन्य प्रकार के तथ्य जाने 
जाते हैं । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ती है, अन्यथा 
जनगणना करने का कोई तात्पय नहीं रहता । 

ज॑ंनगणना करने की दो रीतियाँ हैं| पहली में किसी निश्चित कालावधि में 
या समय में जीवित व्यक्तियों की संख्या गिन ली जाती है। दूसरी में मृत्यु और जन्मों 
की संख्या गिन ली जाती है ओर इस प्रकार जनसंख्या में होने वाले परिबतनों को जान: 
लिया जाता है। पहली प्रकार की रीति से यह लाभ है कि इससे लोगों के बारे में अन्य 
प्रकार की सूचनाएँ भी एकब्रित की जाती हैं | दूसरी में यह लाम है कि इसमें मृत्यु ओर. 
जन्म अर्थ, उनके कारण आदि के बारे में जानकारी मिलती है। पहली के द्वारा प्राछ्ति 
संमक संगणना-संमक कहलाते हैं और दूसरी द्वारा प्रात जीबन-मरण संमक 
(ए३७४] 5:90800८७) आजकल, प्राय: प्रत्येक देश में, दोनों प्रकार के संमकों का संग्रहण 
किया जाता है | इस भाग में केवल संगणना पर बिचार किया जाएगा। जीवन-मरण 
संमकों पर आगामी प्रष्ठों में लिखा जायगा | 








भारत में जनगणना की पद्धति 


भारतीय जनगणना प्रत्येक दशक में की जाती है | सबसे पहली मारतीय जन- 
गणना १८८९१ में की गई थी । इससे पहले एक और जनगणना श८७२ में हुईं थी, 
पर इसमें एकरूपता न होने के कारण ओर सब स्थानों में न ली जाने के कारण, इसे 
प्रायः, छोड़ दिया जाता है। अन्तिम जनगणना, जो भारत की आठवीं जनगणना है, 
१६५१ में ली गई है। 

प्रत्येक भारतीय जनगणना से पहले एक संगणन-अधिनियम ((+८४5ए८७ ८८) 
पास किया जाता है | इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जिलाधीश या राज्य-सरकार के 





४५८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


आदेश पर जनगशणना-अफसर बनने या जनगणना में सहायता पहुँचाने के लिए 
कानून बाध्य होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति को जनगणना-अफसर या प्रगणक 
(2०प०३९०४३:००) को प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों का उत्तर सही-तही देना पड़ता 
है और तत्सबंन्धी जो कुछ सूचना माँगी जाती है उसे देना पड़ता है| इसके अनुसार 
प्रगणक या जनगणना-अफसर को यह अधिकार है कि वह मकानों में जनगणना संबंधी: 
चिन्ह अंकित करे, ओर लोगों के मकानों के भीतर जा सके । अगर जनगणना में 
'कोई व्यक्ति सहयोग नहीं देता या गलत सूचना देता है या अगर कोई प्रगणक या 
जजनगणना-अफसर अपना कार्य उचित रूप से नहां करता तो उन्हें जुर्माना देना 
पड़ता है । 
इसके बाद केन्द्रीय सरकार एक जनगणना-आयुक्त (८८75प75$ ८०709 
38076/) की नियुक्ति करती है जिसका कार्य जनगणना का संचालन होता है। इसके 
साथ-साथ प्रत्येक राज्य के लिए एक जनगणवा निरोक्षक्न (८७085 $प930[7- 
६८706॥४) की नियुक्ति की जाती है जिसके अन्तगत, प्रत्येक जिले के लिए, एक जिला 
जनगणना अधिकारी (088:7८८ ८००४०४ ०८००) होता है । प्रत्येक जिल्ले को 
जनगणना ज्षेत्रों में बांय जाता है जिनकी जनगणना का कार्य क्षेत्र निरीक्षक 
(८०४६६४५ $०००४7:७११८०४) के द्वारा किया जाता है | इन के अन्तर्गत पर्यवेज्ञक 
(5०[०८:०१४८४७) होते है जो एक बृत या उपन्षेत्र (0४८]०) के अधिकारी होते हैं । 
कार्यकर्ताओं की इस श्रेणी के अन्त में प्रशणक् आते हैं जिनका कार्य जनगणना में 
सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सूचना-प्राप्ति का कार्य इन्हीं पर रहता है। इनमें क्‍या गुण 
होने चाहिए, इसे दुहराने की आवश्यकता नहीं क्योंकि सामग्री संग्रहण के परिच्छेद में 
यह बताया जा चुका है। साधारणतः सरकारी अधिकारी, अध्यापक या अम्य इस प्रकार 
'के लोग इन सब कार्यों को बिना किसी प्रतिफल के करते हैं। केवल पर्यवेज्ञण ओर 
सारणीयन के लिए व्यय करना पड़ता है। आवश्यक प्रश्नावली बनाई जाती हैं जिसमें 
उन सब विषयों पर प्रश्न रहते हैं जिनके बारे में सूचना प्राप्त करनी होती है। इन 
प्रश्नावलियों के प्रगणना-पत्र (७००४०४:७८:07 $॥9) कहते हैं। ये प्रत्येक प्रगणक 
को बाँठ दिए जाते हैं जो इन्हे भर कर (यह खानापुरी अकों ओर चिन्हों के रूप में 
की जाती है) पयवेक्षकों को देते हैं जो इनकी जाँच कर के इन्हें जनगणना-निरीक्ष॒ुक 
को भेज देते हैं। यहाँ इनका सारणीयन होता है और इस प्रकार प्रत्येक राज्य के 
लिए. जनगणना अंक ज्ञात हो जाते हैं। अन्त में जनगणना-शआ्रायुक्त के पास अंक 
भेजे जाते हैं, जहाँ पूरे भारत के लिए. जनगणना-अंक श्ञात किए. जाते हैं। यहाँ से 





भारतोप-प्ंमक । ४५९ 


अत्येक जनगणना के लिए प्रतिवेदन ( 727075 ) प्रकाशित होते है। ये बहुत लम्बे 
होते हैं ओर यहाँ इन पर पूर्णतः विचार करना संभव नहीं है । 

दूसरी ओर पूरे देश के लिए एक गह-सूची ( 7005० 45६ ) बनाई जाती है 
जिसमें एक नम्बर दिया जाता है। इस गह-सूची में प्रत्येक घर के प्रसामान्यत: 
निवासियों ( 90:774|]7 ४०50०7६$ ) के बारे में जानकारी रहती है । 

नीचे १६५१ की जनगणना सम्बन्धी मुख्य तथ्य संक्तेप में दिए गए हैं। 
१९५१ को जनगणना: 

१९५१ की जनगणना भारत की आठवीं जनगणना, और स्वतन्त्र भारत की 
पहली जनगणना है, प्रगणन कार्य £ फरवरी १९५१ को प्रारम्भ हुआ और ३ मार्च 
१६५१ को समात हुआ | चूँकि जनसंख्या काज्ञावधि अरणाली (9०४00 3ए80०४७०) 
के अनुसार की गई इसलिए, जनगणना का आधार प्रसामान्य निवास (00774 
76506706) था। कालावधि गप्रणाज्ञी का उपयोग स्वथम १६४१ में किया गया 
था। इसके पहले जनगणना एक साथ एक निश्चित रात्रि को पूरे देश में की जाती थी । 
प्रत्येक प्रणणक ने तीन बार घरों में जाकर सूचना प्राप्त की । पहले गहू-सूची की जाँच 
करने के लिए, फिर ९ फरवरी से १ मार्च के सूर्योदय तक, जनंगरणना करने के लिए, 
ओर अंत में १ मार्च से ३ मार्च तक, अंकों की अन्तिम जाँच करने के लिए । प्रणणन 
. की समाप्ति पर पूरे देश में खोले गए. ५२ सारणीयन दफ्तरों(६४०प ४४०४ ०६८८४ 
में अंकों को विन्यसित किया गया और ये समंक १६५२ में प्रकाशित किए गए | 


इस जनगणना का क्षेत्र सिवाय जम्मू ओर काश्मीर तथा कुछ भाण (ख) के 
आदिवासी प्रदेशों के, पूरा भारत, (जिससें सिक्किम भी समावेशित है) था। उन सब 
व्यक्तियों की गणना की गई है जो १ मार्च के सूर्योदय के समय जीवित थे | इसकी 
प्रश्नावली में १४ प्रश्न थे जिसके उत्तर लोगों को देने थे । 


ये प्रश्न इस प्रकार थेः 
(१) नाम ओर ग्रह-स्वामी से सम्बन्ध 
(२) (अ) राष्ट्रीयता 
(ब) धर्म 
(स) विशेष समुदाय (5०८८४४] 2700७5) 
(३) विवाह सम्बन्धी सूचना 


४६० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


$ 


(४) आयु 

(४) जन्म स्थान द 

(६) विस्थापितों के आने की तिथि, पाकिस्तान में निवास स्थान ( जिला) 
७) मातृ भाषा 

८) अन्य भाषाएँ 

९) पराश्रयता (4०9८70०४८) ... .-------बैति (८००0097767६) 
(१५) जीवन निर्वाह के मुख्य साधन 

(११) जीवन-निर्वाह के अन्य साधन 

(१२) साक्षस्ता और शिक्षा 
(१३, 
(१ 


( 
( 
का 


बृतिहीनता (प८४7०।09॥70670) 
४) योन (४८5५) 
तेरहवाँ प्रश्न प्रत्येक राज्य सरकार ने अपनी इच्छावुसार निश्चित किया। 
उत्तर प्रदेश में यह प्रश्न इृतिहीनता के बारे में था। 


१९५१ को गणना और पहले को जन-गणनाएँ 


भारत की प्रत्येक जन-गणना में पहले की जन-गणना से सुधार किया गया 
है । १९४१ की जन-गणना के लिए मुख्य परिवर्तन निम्नलिखित हैं ( यह १६४१ 
और पहले की जन-णणुनाओं का तुलनात्मक विवरण है )। 





(१) यह जनगणना काल्ावधि-प्रणाली के अनुसार को गई है । पूरी जन- 
गणना की अवधि २० दिन की थी। १९४१ से पहले की जनगणनाश्रों में एक 
निश्चित रात्रि में जो जहाँ मिलता था, वहीं गिन लिया जाता था | इस प्रकार प्रग- 
खुन-व्यय में कमी हुई ओर जनगणना गह-सूची और प्रसामान्य-निवास के आधार पर 
की गईं | 


(२) इस जनगणना में जाति-संबंधी प्रश्न हटा दिया गया ओर विस्थापित 
व्यक्तियों से संबंधित भ्श्न जोड़ दिया गया। पहले का कारण भारत-सरकार का 
जाति-भेद को निरुत्साहित करने का प्रवत्न है और दूसरे का कारण विस्थापितों की 
विशेष समस्याएँ हैं | केवल चार विशेष समुदायों, परिगणित जातियों, परिगणित 
पिछुड़ी जातियों ओर एग्लोइंडियनों, के बारे में प्रश्न था। इसका कारण उनको संबि- 
घान में दी गई सुविधाएँ थीं। 





भारतीय-सं मक ४६१ 


(३) व्यवसायिक वंटन (०८८ए०थ०४०। वी8070फ0/707) अधिक वैज्ञा- 
निक और सरल बनाया गया। पूरी जनसंख्या को दो बड़े मारगों--कृषषि से सम्बन्धित 
ओर अकृषि से सम्बन्धित (38४0०पोप्पानों बयत 7707-28 270ण7०१५)) में बॉटा 
गया है। इन मागों में प्रत्येक को चार उप-विभागों में बाँच गया है | पहले के लिए ये 
चार उपभ्विभाग निम्नलिखित हैं : 

(अ) वे कृषक जो जमीन के पूर्णतः या सुख्यतः स्वामी हैं ओर उन पर 
आशित लोग | 

(आ) वे कृषक जो जमीन के पूर्णतः या मुख्यतः स्वामी नहीं हैं झोर उन पर 
आशित लोग । 

(३) कृषक-मज़दूर और उन पर आश्रित लोग। 

(६) जमीन के अ--कृषक स्वामी, लगान लेने वाले ओर उन पर आश्रित 
लोग | 

दूसरे के उपविभाग निम्नलिखित हैं :-- 

(अ) कृषि के अतिरिक्त उत्पादन 

(आ) वाणिज्य 

(इ) यातायात । 

(६) अन्य सेवाएँ ओर विविध उद्गम । 

(४) १६५१ में णह-सूची के आधार पर पहली बार “नागरिकों का राष्ट्रीय 
रजिस्टर! (४०0०7%) १०४४67 ०६ (।६2679) बनाया गया जो प्रत्येक गाँव 
आर नगर के लिए, रखा गया है। 


(५) पूरे भारत को ६ जनसंख्या कटिबंधों (207०5) मैं बाँटा गया है | ये 
किबन्ध उत्तरी भारत, पूर्वी भारत, दक्षिणी भारत, केन्द्रीय भारत ओर पश्चिमी थारत 
है । इसके अतिरिक्त देश को पाँच प्राकृतिक प्रदेशों--हिमालय प्रदेश, उत्तरी-मैदानी- 
भाग, दक्षिणी प्रायद्वीप और जे हू, परिचिमी घाट और तट-प्रदेश, और पूर्वी घाट ओर 
तट प्रदेश--में बाँठ गया है। इस प्रकार जनसंख्या का आर्थिक और भोगोलिक अध्य- 
यन सम्भव हो सकेगा । 

(६) जन-गणनाओं के बीच में संतता रखने के लिये जनगणना-अआआयुक्त 
और रजिस्ट्रार जनर् का स्थान स्थाई बना दिया गया है। इससे पहले पूरा 
जनगणना सद्भधठन जनगणना के बाद समाप्त कर दिया जाता था। 





४६२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


भारतीय जनगणना के तथ्यांक 


(१) भारत की कुज्ञ जनसंख्या--भारत की जनसंख्या जिसमें सिक्किम की 
जनसंख्या व जम्मू ओर काश्मीर की आगशित (2$0४740८0) जनसंख्या (४४ लाख) 
शुमार है ओर आसाम के भाग (ख) प्रदेशों की जनसंख्या अपवजित है, १ मार्च १६५१ 
के दिन ३६:१२ करोड़ थी। उन प्रदेशों की जहाँ जनगणना की गईं थी, जनसंख्या 
३५४-७ करोड़ है। यह जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का लगभग & वाँ भागहै । पूरे 
भारत में जनसंख्या का घनत्व ३०३ व्यक्ति प्रति वर्ग मील है | 


(२) इस जनसंख्या का लगभग ८३% भाग ग्रामीण है । 


भारत में ७८ शहर ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है। 
राज्यानुसार इन शहरों का वंटन निम्न प्रकार से है : उत्तर प्रदेश - १६६, बम्बई - ८, 
बज्भाल - ६, बिहार - ५, मद्रास -४, पत्माब, मध्य भारत, मैसूर, राजस्थान और 
सौंराष्ट्र (प्रत्येक में) - ३, अन्य में इससे कम है| 


(४) मुख्य धर्मो' के अनुसार जनसंख्या निम्नलिखित रूप में है : 





पड ३०*३ करोड़ 
मुसलमान | ३-४५ करोड़ 
ईसाई ०८ करोड़ 


मिक्ख ०६ करोड़ 

















भाग क राज्य 


भाग ख राज्य 


भाग ग राज्य 


भाग घ राज्य 


अन्य 





भारतीय-पं मक 





(५) राज्यों की जनसंख्या ओर घनत्व निम्नलिखित हैं । 


जनसंख्या 
| ०६० करोड़ 
उत्तर प्रदेश ६३२ ,॥ 
उड़ीसा १४६ 9 
पश्चिमी बड़ाल र्डेंप $ 
पश्चाब १२६ 3, 
बम्बई ३८६० ,॥ 
बिहार ४०२ ,$ 
मध्य-प्रदेश २१२ 
मद्रास पू.७० ,) 
ट्रावनकोर-कोीचीन | ०९३ ,, 
पेप्सू ०रे५ 77 
| मेसूर्‌ ७९० 3३) 
मध्य भारत ०८० ११ 
सौराष्ट्र ०४१ ,) 
हेदराबाद न्‍ श्ष्य७ ,, 
ग्रजमेर ०६९ $3$ 
कच्छ ०५४७ 9१ 
कुग ०२२ ,॥ 
र्‌ “9४ 7! 
त्रिपुरा ०दि४ड 9 
बिलासपुर ०१३ $ 
भोपाल ०्प्य्ड ,) 
मणिपुर ०परप ७ 
विन्ध्य प्रदेश ३.४७ 3३; 
हिमाचल प्रदेश ०८ # 
डमान ओऔरनिकोबारं ३१ हजार 
पिक्किम १३७ करोड़ 




















घनत्व 
(व्यक्ति संख्या, 
वर्गमील) 
१७६ 
णए्५७छ 
२४४ 
८०५ 
शेरेप८ 
श्२रे 
पर 
१६३ 
४४५ 


१०१५४ 
३४७ 
३०८ 
१७१ 
११७ 
१६३ 
२२७ 


२८७ 
ट्रेड 
१४५, 
३०१७ 
श्ण्द 
र्ष्द् 
१२२ 
६७ 
१४१ 
६४ 


२३७ 
३५० 








डद्ड सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(६) ग्राम ओर नगरों की संख्या--भारत में कुल गाबों की संख्या ५,५८ 
०८६१२ थी जिनमें २६ करोड़ ५० लाख व्यक्ति रहते थे, और नगरों की संख्या 
३,०१८ थी जिनमें ६ करोड़ १६ लाख व्यक्ति रहते थे। नगरी का जनसंख्या के 





अनुसार वितरण निम्नलिखित हैं : 














ध्यना हि ख्या कुल निवासी | रद--गनसख्या 
| संख्या कुल निवासी का प्रतिशत 
। शहर (१ लाख वा अधिक जनसंख्या) | ७३ | रक० ३घ्ला० ३८०० 
बड़े नगर (२०,०००-१ लाख | ४८9५ | श्क० ८६ला० ३०१ 
छोटे नगर ( ४,०००--२०,०० ०) १,८४८ | श्क० ७८ला० २८'६ 
| कस्बे ( ४,००० से कम) ६१२ २०ला० ३*३ 








(७) ख्री-पुरुष अनुपात--१६५१ की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों 
में समंकों की संख्या ६४७ थी। नगरों में यह अनुपात ८६० स्त्रियाँ प्रति हजार पुरुष हैं 
ओर गाँवों में ६६६ स्त्रियाँ प्रति हजार पुरुष है। 

(८) विभिन्न व्यवसायों में लोगों की संख्या निम्नलिखित हैं : 

(स्पष्टीकरण के लिए पिछुले पृष्ठ देखिए) : 


कुल ऋषक वर्ग २४६ करोड़ (लगमग) 
जिसमें १ (अ्र) में १६७ »3 ४» 

१ (आ) हि द श२र२ ,॥, १5 

१ (३) में ४४ 9. 9 

९ (३) सं ० १) डर 

ऋुल अक्ृषक वर्गे . १०८ करोड़ (लगभग) 

जिसमें २ (अ्र) में ३८ » 3, 

२ आ) में २९१ »+ ५») 

२(३) मे ०६ ,) 

२७) में ४३ , 99 


(६) कुल भारत में १६*६% व्यक्ति शिक्षित हैं । पुरुष-२४६% और 
स्रियाँ ७६% 


३० . भारतीय -पंमक ४६५, 


भारतीय जनगणना की कमियाँ 

भारतीय जनगणना की एक सत्रसे बड़ी कमी यह है कि प्रत्येक जनगणना के 
लिये नई प्रश्नावली बनाई जाती है जिसमें न केवल पुराने प्रश्न छोड़ दिये जाते हैं 
ओर नये प्रश्न जोड़ दिये जाते हैं--यह मुख्य बात नहीं है--बल्कि पुराना वर्गीकरण 
बदल दिया जाता है| इसलिये दो जनगणना के तथ्याकों कौ तुलना करना बहुत कठिन 
हो जाता है। ऐसा व्यवसायों के वर्गीकरण के लिए हमेशा हुआ है। व्यावसायिक 
संमकों से यह भी ज्ञात नहीं होता कि कितने लोग स्वतंत्र रूप से काम करते हैं ओर 
कितने अन्य लोगों के लिए. । १६५४१ की जनगणना में इस कमी को दूर करने का कुछ 
प्रयास किया गया है, पर अभी तक कोई सुव्यवस्थित वर्गीकरण नहीं बना है और नहीं 
इस समस्या के सच्च पत्चों (३8०८८७) के बारे में संमक उपलब्ध हैं । 

सही जानकारी प्राप्त करने में प्रगणकों का स्थान महत्वपूर्ण है। भारतीय जन- 
गणना में काम करने वाले प्रगणकों को प्रायः उचित शिक्षा नहीं मिल पाती | साथ ही 
साथ उनकी योजनायें अलग-अलग और उनके हित मित्र-मिन्न होते हैं। बहुघधा वे 
अमिनत (9988८0) और अनभिनत (पण्णा०095860) विश्रमों के बीच विवेचन नहीं 
कर पाते । 

भारतीय आयु-संगठन सम्बन्धी संमक भी पूर्णतः विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते | 
इसका एक कारण तो लोगों का अज्ञान है, वे स्वयं यह नहीं जानते कि उनकी आयु 
ठीक-टीक क्या है, इसके साथ, साथ आयु को गलत बताने की भी प्रवृत्ति होती है | 
अविवाहिंत लड़कियों की आयु, परम्परा और रीति-रिवाज के कारण अधिकांशत: कम 
चताई जाती है। इसी प्रकार विधुर भी अपनी आयु कम बताते हैँं--प्रायः जब उनकी 
इच्छा पुनर्विवाह करने की होती है। विवाहित स्त्रियाँ और वृद्ध व्यक्ति अपनी आयु 
अधिकांशतः अधिक बताते हैं। आयु की ० या ५ में समाप्त होने वाली संख्याञओं के रूप 
में बताने की साधारण श्रभमिनति है | अगर प्रगणुक जिरह करें तो आयु का कुछु हद तक 
सही पता लगाया जा सकता है, पर स्त्रियों के लिए. जब तक महिला-प्रगणक नियुक्त 
नहीं किए जाते, ऐसा करना सम्भव नहीं है । 

विवाह सम्बन्धी समंक भी ग्रामाणिक नहीं होते, विवाह में आयु-सम्बन्धी प्रतिबरन्धों 
के कारण लोग वास्तविक आयु प्रायः छिपा लेते हैं । इसी प्रकार शारीरिक या मानसिक 
अयोग्यता (जैसे अंघापन, बहरापन आदि) सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर भी प्रायः सच-सच 
नहीं बताए, जाते | इसलिये १६४१ और १९५१ की गणनाओं में यह प्रश्न पूछा ही 
नहीं गया । क्‍ 


४६६ सांस्पिकी के सिद्धान्त 


जनगणना के समय की परिस्थितियाँ भी लोगों को गलत उत्तर देने की ओर 
प्रवृत्त करती हैं। पहले की जनरणना में, जब विधान सभाओं में स्थान ओर राजकीय 
सेवाओं में नियुक्ति धम के आधार पर होती थी, लोग प्रायः गलत सूचना दिया करते थे । 
१६३१ में शारदा-अधिनियम के पास होने के कारण लोगों द्वारा दी गई विवाहित 
सम्बन्धी सूचनायें गलत थीं । 

इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी हैं जिनकी वजह से विश्रम हो सकता है। 
जैसे, लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना, कुछ लोगों को दुहराने और कुछ 
को छोड़ने के कारण आदि । पर ये कारण इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। अगर पर्यात 
सावधानी के साथ जनगणना की जाय तो ये कम किए जा सकते हैं। 





१६५१ की जनगणना के बाद किए निद्शेन-सर्वे क्षण ($00.]6 $पाए०५) 
से की गई जाँच से ज्ञात हुआ कि जनगणना में १११% के बराबर अल्प-प्रगणन 
(पत87-270प77९/8:07) हुआ । 


जीवन-समंक (ए।६ 8:4080८8) 


जीवन समंकों के अन्तर्गत मृत्यु और जन्म सम्बन्धी अड्ढः संग्रहित किए जाते 
हैं | इसके साथ-साथ मृत्यु के कारण, बीमारियों के स्वभाव और उनके आपात 
((72८06९7८८) और उपचार व्यवस्था सम्बन्धी समंक भी होते हैं। विवाह सम्बन्धी 
समंक भी इसी के अन्तगंत आते हैं। 


भारत के जीवन-समंक बहुत ही असंतोषजनक हैं। किसी भी प्रकार की 
बाध्यता न होने के कारण ओर सूचना देने की अनुपयुक्त प्रणाली के कारण इनको 
पूर्णतः विश्वसनीय नहीं माना जा सकता | गांवों में यह अंक पटवारी, चौकीदार या 
प्रधान को दिए जाते हैं ओर नगरों में म्यनिसिपेलिटी, टाउन एरिया आदि को। 
जन्म, सत्य, मृत्य के कारणों, ओर मृत्य के समय की आयु सम्बन्धी अछ सावधानी से 
आर सही रूप से नहीं बताए जाते। अधिकांश जनसंख्या विवाह की कोई सूचना 
नहीं देती । 
इस समंकों के महत्व को देखते हुए इनके प्रति दिखाई गई उदासीनता बहुत 
अनुचित लगती है | ये समंक देश की स्वस्थता के बारे में बताते हैं। इसके साथ- 
साथ इनके द्वारा बीमारियों के बारे में भी ज्ञान होता है । श्रगर कोई भी ऐसी योजना 
बनानी हो जिसमें देश के स्वास्थ्य को अच्छा करने का कार्यक्रम हो तो इनको जानना 


भारतीय-सं मक ४६७ 


अनिवाये है, अन्यथा इसमें किसी प्रकार का घुधार करना सम्भव न हो सकेगा। 
वे कारण, जिनकी वजह से गलत जीवन-समंक प्राप्त होते हैं, नीचे दिए गये हैं। 
भारत में इस बात का प्रयत्न किया जाना चाहिए इन्हें कम से कम किया जाय | 


(१) सूचक की सावधानी ओर अभिनति : इसको दूर करने के लिए, 
यह आवश्यक है कि जीवन-समंक-संग्रहण के लिए. एक अलग विभाग हो जिसके 
शन्तगंत प्रत्येक स्थान के लिए. एक सूचक हो | सूचना देने का काये अन्य संस्थाओं 
था व्यक्तियों को न सौंपा जाय । लोगों को आवश्यक सूचना देने के लिए कानूनन 
बाध्य कर दिया जाय । 

(») बीमारियों का वर्गीकरण और उनके निदान (588297095) की 
कठिनाइयाँ : उपचार की उचित व्यवस्था न होने की वजह से ओर बीमारियों के 
अप्रमापित होने की वजह से भी जीवन समंकों में गलतियाँ हो सकती हैं। इसे दूर 
करने का एकमात्र उपाय उपचार सुविधाओं में वृद्धि करना और बीमारियों को प्रमापित 
करना है। 

(३) कुछ बीमारियाँ छिपाने की इच्छा : इसको दूर करने के लिए भी 
अलग सूचकों की, जो अपना पूरा समय इस काम में लगा सकें, नियुक्ति करना 
आवश्यक है । 


१६४ १-से-१६५१ तक की कालावधि के लिये भारत का जन्मअर्ध (प्रतिहजार) 
४०, और मृत्यु अर्घ (प्रतिहजार) २७ है। 


औद्योगिक समंक्‌ ([76709807%  502:8005 ) 


आज के युग में जब आर्थिक प्रति ओर ओद्योगीकरण पर्यायवाची शब्द हो 
गए, हैं, किसी मी देश में उद्योगों का महत्व निर्बिवाद है। ओद्योगीकरण के लिए 
यह आवश्यक है कि वर्तमान उद्योगों के बारे में भी पूरी-पूरी जानकारी हो। इसलिए, 
ओद्योगिक-समंकों का महत्व भी निर्विवाद हो जाता है। भारत के ओद्योगिक क्षेत्र में 
पिछड़े होने के कारण यहाँ औद्योगिक समंकों को एकत्रित करने का प्रयास प्रायः 
नहीं के बराबर किया गया, और जो कुछ थोड़े से समक उपलब्ध भी हैं वे अपनी 
अपर्याप्ता, अशुद्धता और अप्रामाणिकता के कारण असंतोषजनक स्थिति में हैं । 

श्रौद्योगिक समंक निम्नलिखित विषयों से सम्बन्धित हो सकते हैं | 

(१) निर्माण (77270£4८(०::६७) 

(२) ड्चि (००५७०६) 


ध्द्व् सांड्यकी के सिद्धान्त 


इसके अतिरिक्त पूँजी, श्रम, उत्पादन की लागत ओर शक्ति सम्बन्धी समंक 
भी इसके अन्तर्गत आते हैं। आने वाले अनुच्छेदों में इन पर अलग-अलग विचार 


किया गया है। 


(१) निर्माण-उद्योगों की संगशना (०7878 ० /४/0ए४९०पा॥३९ 


[7पप87768 ) --- 


संगणना के लिये मारत के सज्भठित निर्माण-उद्योगों को ६३ शीर्षकों के अन्तर्गत 
वर्गोकृत किया गया है | इनमें से २९ बड़े उद्योग हैं। इनकी संस्थायें और नाम निम्नां- 
कित सारणी में दिये गये हैं : (फैक्टरी के अन्तर्गत वे उत्पादक इकाइयाँ आती हैं 


जिनमें २० या अधिक व्यक्ति काम करते हैं।) 
उद्योग 


रजिस्टड फैक्टरियों की संख्या 





(१) आदा-मिलें (गेहूँ) (४690 #007) 
(२) चावल-मिलें (:08 ४78) 
: (३) बिस्कुट (078८ण0( 702४78) 
(४) फल ओर शाक (यो: ढै८ ए८8८८४०।० 
070९८९६७।४8 
(५) चीनी . 
(६) का बनाने के स्थान (087[[८7[65 076 ए०९- 
... $68 
(७) स्टा्च ($४7८॥) 
(८) वनस्पति-तेल 
. (९) रज्ग और वानिश (92/7/8 6८ ए७॥77825) 
(१०) साबुन 
(११) चमड़ा ((४0/7£) 
(१२) सीमेंट (९८067) 
(१३) कांच ओर काँच का सामान (8]485 6८ 2]958- 
| ए००7८) 
(१४) कुम्हारी (८८ाव7708) 
(१५) ज्ञाइवुड और चाय के बस (|]एच्0००0 & 
(69 ०८८४($) 
(१६) कागज और दफ़्ती (947०0 श्याते 92०6८ 
7097/0) 


(१७) दियासलाई (77%:०॥८$) 








१९४८ श्ष्प्र 
७५६ ९१ 
१४उप्य १,४२६ 
ही ९३ 
र२ 03 थी 
१६३ प्र 
२० पथ 
१७ प्‌ 
९९१ १,१२३ 
. रै८ ४६ 
८ ५५ 
जिप्ड ६९ 
२१७४ श्ट 
१६५ १२७ 
६० ६८ 
३२५ ४२ 
३६ ४३ 
४२ ' ४६ 





भारतीय-संमक ४६९ 














उद्योग रजिस्टर्ड फेक्टरियों की संख्या 
१९४८८ २१५१ 
(१८) सूती कपड़ा (८0(:07 ६८5५४४।८७) ह्ष १३० 
(१६) ऊनी कपड़ा (क्०0)॥८7 ८८४५४६७) ४३ ड्प्र 
(२०) जुट ([०७६८ +65४॥८$) ६९ १०९, 
(२१) रासायनिक पदार्थ (८४८४०८५७/४ ) २०३ २६२ 
(२२) अ्ल्मूनियम, ताँबा और पीतल (श्लपाआग्राफाए 
८०976: 6८ 072955 ) २०२ २६४ 
(२१) लोहा और इस्पात (4:07 6८ 87८6] ) श्श्ण्‌ १५३ 
(२४) साइकिल (5८ए८।८४ ) ११ | ३१ 
(२५) सीने की मशीन (86७94792 772८7॥768) कै ९, 
(२६) प्रोड्यूसर गेस ज्ञान्ट (97007०८४ 885 
09775 ) ३ १ 
(२७) विद्युत लैम्प (७[८८८४४८ 798) ले & 
(२८) विद्युत-पंखें (2|८८६:९ (905) २९ ३४ 


(२९) जनरल इंजीनियरिज्ञ और इलेक्ट्रिकल इज्जीनियरिज्ठ 
(860८ 6027९6778 6८ ९९८६४४८%&॥ 
९७९76८॥ ४8 ) १,४७३ १,६३० 





१९४२ में एक अधिनियम पास किया गया जिसके अनुसार फैक्टरियों को 
वार्षिक निर्माण संए्णना के प्रश्नों के बारे में सूचना देनी पड़ती है | सूचना न देने पर 
जुर्माना होता है । यह अधिनियम व्यवहार में १९४५ में आया जब केन्द्र में डाइरेक्टो- 
रेट ऑफ इंडस्ट्रियल स्टेटिस्टिक्स ([)#62८07806 0 [700] 5/4057८8 ) 
की स्थापना की गई | उसके द्वारा प्रत्येक उद्योर से निम्नलिखित विषयों पर सूचना 
माँगी जाती है : 

(१) फैक्टरी के मालिक और फैक्टरी का नाम, पता शआादि 


(२) पूँजी सद्भठन प्रदत्त (9429-८७) और “उत्पादक (70व0प् ८२८) 


पूजी। 


(३) अधियुक्त व्यक्ति-संख्या, कार्य (मनुष्य-घन्ठों में) ओर मजदूरी तथा वेतन । 
(४) ईंघन की राशि और उसका मूल्य, बिजली, गैस, लुब्रिकेयिज्ञ (|पजा०३- 
(४४2) पदार्थ और पानी--खरीदा हुआ और काम में लाया गया । 


(३) अन्य पदार्थों की राशि और उनका मूल्य--खरीदा हुआ और काम में 
लाया गया । 


४७० सांख्यिकी के सिद्धान्त 


. (६) उत्पादों (97000८७) और सह-उतादों (9777०0प८५७) की राशि 
ओर उनका मूल्य । क्‍ 


इस अधिनियम को कार्यान्वित करने के लिए राज्य-सरकारों ने सांख्यिक-अधिकारी 
नियुक्त किए हैं जो विभिन्न फैक्टरियों को प्रश्नावल्ली भेजते हैं और उनसे प्राप्त 
सूचना का निरीक्षण करते है। इसके पश्चात्‌ ये उत्तर डाइरेक्टरेट! को भेज दिये 
जाते हैं जहाँ इनका फिर निरीक्षण किया जाता है। इसके बाद प्रत्येक राज्य की फैक्ट- 
रियों के लिये नीचे दिएः गए रूप में तथ्यांक प्रकाशित किये जाते ह जिन्हें “संन्सस 
ऑफ मैन्यूफैक्चर' में प्रकाशित किया जाता है। यहाँ जो सूचना दी गईं है बह पूरे 
भारत के लिए. सब निर्माण-उद्योगों के बारे में है। कॉलम (१) में दी गई सूचनाएँ 
प्रत्येक राज्य की विभिन्न वर्गों' की फैक्टरियों के लिए भी प्रकाशशत की जाती है। 


निर्माण उद्योगों की संगणना 


((६४8१३ 0 एशश्ापरबिटाप्एंवीए 4000887768) 





























(२) 
(६) !६४७ | १६५१ 
. (१) विद्यमान रजिस्ट्ड फेक्टरियों की संख्या 00. 07 [| 
72८20. ६9८004428 4॥ €हां४7270८) ५,६२२ ६,९७८ 
(२) फैक्टरियाँ जिनसे उत्तर मिले ((8८:0768 (॥000 
_ एशएगंणाी एलपाएा ७7८7१ +८पघा7)$ ए2॥।6 7॥८00.) ४८7७२ ६,२६० 
(३) अश्रधियुक्त अचल पूजी (#560 ८७0॥4) 
2८77[0ए८१) (करोड़ रु० में) १७७,२ | २७५७२ 
(४) अधियुक्त चालू पू जी (07078 ८०॥) 
८7000ए760)_ २२६३ उर्जा 
(५) कुल अधियुक्त पूंजी (६00४ ८०[00०] 
870]70ए760 ) ४०२३-पू ७१३०० 
, (६) अधियुक्त बेयुक्त मजदूरों की संख्या (70, 67 जझठफओ- |] गण की संख्या (70, 0६ ७छ07- 
..._£८75 ८770]0ए०0) (लाखों में) १४८८७ १४९७८ 
(७) मजदूरों के अतिरिक्त अन्य अधियुक्त व्यक्तियों की 
दी क िका ०६ का ए कक 90:98 | 
फट ८४5 ८४77!0760) (लाखों में * " 
(८) कुल अधियुक्त व्यक्तियों की संख्या (छा | ॥0. 
०६ 98678078 2779]0760) १६८३९ | श६३२ 








भारतोप-संमक 


(९) मजदूरों को दी गई मजदूरी (०8०5 9४0 ६० 
४077678) (करोड़ रु० में) 

(१०) मजदूरों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों को दिया गया 
वेतन (52]4870605 9शथ0 (० 96॥507$8 
0:0८+ ॥097 074८४) (करोड़ रु० में) 

(११) अन्य हितों और रियायतों का द्रव्यार्थ (07076ए 
००७७९ ०६ 00080 9267670 00 97707[6- 
265) (करोड़ रु० में) 

(१२) कुल दिया गया वेतन ओर दी गई मजदूरी (८०६४ 
89]97]65 6८ छ9225 9५/0) (करोड़ र० में) 





१०८९९ 


. २१९३ 


और 





१३०९७ 








(१३) काम में लाइ गई सामग्री, इंधन आदि का फैक्टरी 
मूल्य (००७८ &0 62८(८07ए ०६ ॥902/८74/8, 
(७४], 2८६८. 2075079८0) (करोड़ रु० में) 

(१४) फैक्टरियों के लिए अन्य धन्षों द्वारा किये गए कार्य 
का अर्थ (ए2पघ८ ० जछ०7६ १076 (07 
६2८८०४९०$ 9ए 0॥067 2070८6॥78) 

(करोड़ रू० में) 

(१५) मूल्य-हास (6607०८8007) करोड़ २० में 


(१६) काम में लाई गई सामग्री, ईंधन ओर मूल्य-हास का 


योग (४0»] ७[+ एछ बाल्एंश5 00. ०८) 


८09$प7000 400 0०८०:०८५४१०४) (करोड़ रु० में) | 





डप्पज ४ 











(१७) उत्पादों और सह-उत्पादों का फैक्टरी-मूल्य 
६(4८८०0:ए ए४प६ ०0६ छाठ0तैपटा5 20व ए9५- 
77009८५) (करोड़ रु० में) 

(१८) आहकों द्वारा किए गए काम का मूल्य (ए०/८८ 
०६ छ०४६ 0076 9ए ८प४0॥76/5 ) 

(करोड़ रू० में) 

(१६) बिक्री के लिये निर्मित उत्पादों और सह-उत्पादों का 
योग (६ठ2 ० ज०ठ्वंपल बाते फए- 
?704ंपघ८८ ६0: 526) (करोड़ रु० में) 


१३०२२ 


४७ 





७४२९९ 


ज्श्न्दर 





(२०) निर्माण द्वारा बढ़ाया गया अर्घ (४४०८ 
20069 9ए ॥72%0पए2८८ए:८) (करोड़ रु० में) 
(१९-१६ ) 





२४२१ 


३४७" 








इनके अतिरिक्त उत्पादक पूजी की प्रतिशतता के रूप में बढ़े हुए. अर्घ, प्रति 
अधियुक्त व्यक्ति बढ़े हुए अर्ध और कुल उत्पत्ति (००७०) की प्रतिशतता के रुप में 


बढ़े हुये अर्थ के बारे में भी यह सूचना देता है। 


४७२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


कुछ प्रमुख उद्योगों के बारे में कुछ विषयों की १९४० की सूचना निम्नांकित सारणी 
में की गई हे फ 





एआाजत"७ैणषपपयूउत_>3३]ऐफह्क््अपियुक्त | अप्रनवृद्ि 
अचल पूंजी चालू पँजी | व्यक्तियों को | (४०७६ | 
(लाख र० में) (लाख रु० में) संख्या 20080। | 


फैक्टरियों 
उद्योग की संख्या 





























(१९५४१ म) | (लाखों में) (लाख रु० में)| 
(रक्त एफ रग्ग्न्पा एर्र्ख्टा 7 एक २चहच्रट (१) चीनी रद्धा २००४५ | २०९४८ १९२० | २,२६२*८ 
(२) वनस्पति 
तन १,१२३ | २,०८९'८ | २,७४४ प८ ० ४७ पू२८ ७ 
(३) सूती- 
कपड़ा ५३० | ७,०२७'८ (१,६१९६*४ ६६० (१४,३७६*० 
(४) लोहा और 
इस्पात १५२ | २,६६१"९ | २,९७५६ ०७६ | २,६५११ 

















ओद्योगिक-निर्माण संभकों के संग्रहण का उद्दे श्य उनके द्वारा राष्ट्रीय आय में की 
गई वृद्धि जानना, उनके संगठन को जानना, और सरकार को ओद्योगिक नीति बनाने में 
सहायता देना है। भारत के ओऔद्योगिक-निर्माण-संभकों की मुख्य कमियाँ यह है कि इनमें 
केवल २० से अधिक व्यक्तियों को काम में लगाने वाली उत्पादन इकाइयों के बारे में 
जानकारी ग्राप्ति की जाती है। इसलिए छोठे-पैमाने के उद्योग ओर घरेलू उद्योग-घन्षे 
इसके क्षेत्र से बाहर हैं| भारत में, जहाँ अरब तक छोटे पैमाने के उद्योग ओर घरेलू 
उद्योग-धन्धे देश के वस्तु-निर्माण ज्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, इस प्रकार की कमी 
होना अनुचित है। पर यह कमी कुछ हद तक निद्शन-सर्वेज्षण करके पूरी की जा 
रही है। क्‍ 
ओयोगिक उतत्ति-संमक (50905008 0 ितेप४४० 0प:०प/:) 

निर्माण-उद्योगों की संगणना वार्षिक होती है। इसके द्वारा निर्माण॒-उद्योगों के 
बारे में वार्षिक सूचना मिलती है | दीघ॑काल के लिए. इनकी उपयोगिता बहुत है, पर 
अल्पकालीन अवस्था जानने के लिक यह आवश्यक हो जाता है कि हम देश के उद्योगों 
की दशा अल्पावधि में जानें। इस उद्देश्य को ध्यान में रख कर “डाइरैक्टरेट आफ 
इंडस्ट्रियल स्टेटिस्टिक्स” उत्पत्ति विषयक संमक मासिक रूप में संग्रहित करता है | इनके 
बारे में सूचना देने की कोई बाध्यता नहीं है। अतएव इनकी पूर्णता ओर पर्यासता 
मुख्यतः उत्पादन-इकाइयों के सहयोग पर निर्मर रहती है। इससे प्राप्त सूचना 'मन्थली 
स्टेटिस्टिक्स आफ दी प्रॉडकशन ऑफ सलेक्टैड इंडस्ट्रीज़ ऑफ इंडिया! (प7077ए 





भारतीय-सं मक ४७२ 


84800$ 06 घ6 एः0वेप८पं०० ० इढ|९८८९१ पतेप४४४०8 0 7079 ) 
में प्रकाशित की जाती हैं। ६० से अधिक उद्योग, जिनके बारे में सूचना प्रात्त होती है, 
३ वर्गों' में बाँटे गये हैं। ये वर्ग है-- (क) खनन और पत्थर निकालना (फ्रां008 
8८ वण्शाएएंग8), (ख) निर्माण ( एिक्रागपाबिटप।09) और (ग) विद्युतः 
प्रकाश और शक्ति (०!८८८४० [870 &८ 90०८) निम्नलिखित सारणी में कुछ 
उद्योगों का मासिक उत्पादन दिया गया है । 














|. हाल... ७ | हल | १६५१ १६५२ १९५२ 
(रा झती कपड़ा (करोड़ गज) झंडे ० हर त“५“भ”>॒इटगा इहट्शा कऋछऋ॒ 
(२) सूती धागा (करोड़ पौंड) १०*६ १२१ १२५ | 
(३) जूट का सामान [हजार टन] ७३ ७६ ७२ | 
(४) इस्पात [हजार टन | १२-५ १३२ श्र६द्‌ | 
(५) कागज ओर दफ्ती [इन] १९६६३ १३४५६ हे 











उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो गया होगा कि भारत में औद्योगिक संम॒कों का 
सुचारु रूप से संग्रहण कुछ ही वर्षो' से आरम्म हुआ है | यह बतलाया जा चुका है कि 
इस सम्बन्ध में पहला अधिनियम “इश्डस्ट्रियल स्टैटिसटिक्स ऐक्ट! (वा तप्र४एंश 
5६405008 ॥८८) सन्‌ १६४२ में पास हुआ था। यह अधिनियम सन्‌ १६४६ में कार्या- 
ज्वित किया गया | पर इसके अन्तर्गत संग्रहित संमक सन्‌ १६४८ तक भी छापे न जा सके 
क्योंकि उनमें बहुत सी अशुद्धियाँ थीं। इसका एक-कारण यह भी है कि हमारे देश में 
बड़े-बड़े मिल मालिक शुद्ध सूचनायें जानबूक कर नहीं देते । सन्‌ ९६४२ का अधि- 
नियम केवल ओऔद्योगिक कम्पनियों पर ही लागू होता था। ब्यापार तथा अ्रम-सम्बन्धी 
संमक जिनका औद्योगिक संमकों से विशेष सम्बन्ध है इस अधिनियम के अन्तर्गत नहीं 
थ्राते थे । इस कठिनाई को दूर करने के लिये तथा अन्य सम्बन्धित विषयों पर संमक 
. एकत्र करने के लिए मारत सरकार ने सन्‌ १६५३ में एक आर अधिनियम पास किया। 
इसका नाम 'कलक्शन आफ स्टैदिसटिक्स ऐक्ट! (८0]6८प०४ ० 5(9॥9705 
०) है। इसके अनुसार भारत सरकार को यह अधिकार है कि वह निम्नलिखित 
विषयों पर संमक संग्रहण कर सकती है। द 

१--किसी उद्योग से सम्बन्धित कोई भी विषय । 


२--किसी व्यापार अथवा उद्योग-संस्था अथवा फैक्ट्री से सम्बन्धित कोई 
भी विषय । 


४७४ सांख्यिफी के सिद्धान्त 


३--वस्तुओं के मूल्य, वेतन, काम का समय, बृति, बतिहीनता तथा श्रप्न- 
'कल्याण सम्बन्धी कोई विषय । 


इस प्रकार हम देखते हैं कि अनत्र भारत सरकार को श्रोद्योगिक संमक संग्रह करे 
के वृहद कानूनी-अधिकार प्राप्त हैं । 


कृषि-समंक (8270पप४४) 5028/502८5) 
कृषि संमेकों के अन्तगत उन सब विषय के संमक आते हैं जो कृषि से किसी न 
किसी रूप में प्रत्यक्षतः सम्बन्धित हैं। ये समंक क्षेत्र ( ४7८७ ), पैदावार ( 9०0) 
'फसल आदि के बारे में होते हैं । 
्षेत्र-समंक्त (3८७ 502097८8) 


किसी भी राज्य या देश के लिए क्षेत्र समंक बहुत महत्वपूर्ण हैं। देश की, 
'विशेषतः कृषि प्रधान देश की सम्पत्ति ओर आय के बारे में जानने के लिए या एक 


राज्य की दूसरे राज्य से ओर एक देश की दूसरे देश से तुलना करने के लिए इन्हें 
जानना आवश्यक है । 


भारत में ज्षेत्र समंक सम्बन्धी रीतियों को दो बड़े भागों में बाँठ जा सकता है | एक 
'तो वह रीति जिसका उपयोग श्रस्थाई बन्दोबस्त (६०४9ए0747ए $८ए९ग्र०्या) 
वाले प्रदेशों में होता है ओर दूसरा वह जिसका उपयोग स्थाई बन्दोबस्त 06४ 
7967 $८६:८४767() वाले प्रदेशों में होता है। अस्थाई बन्दोबस्त वाले राज्यों 
में उत्तर प्रदेश, मद्रास, पंजाब आदि हैं, ओर स्थाई बन्‍्दोबस्त वाले राज्यों में बिहार, 
बंगाल आदि | सुविधा के लिए पहले हम अस्थाई बन्दोबस्त वाले प्रदेशों के क्षेत्र 
समंकों पर विचार करेंगे ओर फिर स्थाई बन्दोबस्त वाले प्रदेशों के | 


अस्थाई बन्दोबस्त में मालशुनारी जमीन के उपयोग और फसल पर निर्मर 
रहती है, इसलिए, इन स्थानों में क्षेत्र-समंक, सरकार के/ मालगुजारी अधिकारी ही 
इकट्ठा करते हैं। ये अधिकारी लेखपाल (उत्तर प्रदेश में), करमचारी (बिहार में) आदि 
हैं। इन स्थानों में सब गाँवों का सर्वेक्षण ओर मानचित्रीयकरण किया जा चुका है। 
लेखपालों का काय प्रत्येक खेत का निरीक्षण करके सूचना देना भी है। वह विभिन्न 
अन्नों के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों के सम्बन्ध में भी प्रत्येक फसल के अवसर पर 


सूचना देता है। चूँकि इसमें प्रत्येक खेत का सर्वेक्षण किया रहता है इसलिए इसे 
पूणु प्रगणन रीति भी कहा जा सकता है । 


भारतोय-संमक . ४७ 


इस प्रकार से प्राप्त समंकों में गलतियाँ आने के तीन कारण हो सकते हैं | 
पहला, लेखपाल की असावधानी है । प्रायः लेखपाल स्वयं जाकर निरीक्षण नहीं 
करते | इसको अच्छे पर्यवेक्षक अधिकारियों की नियुक्ति करके दूर किया जा सकता है। 
दूसरा लेखपाल् को अन्य काये करने पड़ते हैं जिनके कारण वह इस कार्य को 
एकनिष्टत्व के साथ नहीं कर सकते। और तीसरा यह है कि मिश्रित फसप्त्नों 
(705८८ ८४098) के बारे में समंक्र ठीक-ठीक प्राप्त नहीं हो सकते | 


स्थाई बन्दोबस्त में मालगुजारी के लिए इस ग्रकार के क्षेत्र- समंकों की आव- 
श्यकता नहीं पड़ती | इसलिए इस प्रकार के समंक एकजित करने के लिए कोई अधि- 
कारी नियुक्त नहीं है | गाँव का चोकीदार व प्रधान आदि लोग इन तथ्याकों को जमा 
करते हैं। चूंकि इनके ऊपर कोई अधिकारी पर्यवेक्षण के लिए. नहीं रहता है, इसलिए 
ये समंक प्रायः अनुमान मात्र होते हैं। इन समंकों को चौकीदार या प्रधान परगनाधीश 
(5प0-0[ए]807% ०११८८४) को भेज देता है जहाँ से ये जिंलाधीश के पास 
भेज दिए जाते हैं | परगनाधीश ओर जिलाधीश अपने अनुभवों के आधार पर इन 
समंकों में परिवततन कर देते हैं । 


इस विवरणु से यह स्पष्ट हो गया होगा कि इस प्रकार के समंकों में गलती 
की गु जाइश कितनी अधिक रहती है। इस बीच इस व्यवस्था में सुधार करने के कुछ 
प्रयत्न किए गए हैं, ओर स्थाई बन्दोबस्त वाले ग्रदेशों में भी अस्थाई बन्दोबस्त वाले 
प्रदेशों की तरह के संगठन बनाकर तथ्यांक-संग्रहणु का काम सौंपा जा रहा है। 


इन दोंनों प्रकार के प्रदेशों के ज्षेत्र-समंक संग्रहण के संगठनों में कुछ अन्य 
दोष भी हैं, शिक्षित और प्रवीण अधिकारियों के न होने के कारण प्रायः ये समंक त्र॒टि- 
पूण होते हैं | फिर, जिले में ऐसा कोई कार्यालय नहीं होता जहाँ इन समंकों का सार- 
णीयन और विश्लेषण उचित रूप से किया जा सके | समंकों की जाँच करने का कोई 
प्रयत्न नहीं किया जाता । अतएव इन्हें पूर्णतः प्रामाणिक नहीं माना जा सकता | 


पैदाबार-समंक (४८।९ 5(2६50८४8) 


पैदावार के समंकों को जानने के लिए मारत में दो रीतियों का उपयोग किया 
जाता है। एक को पुरानी रीति कहा जा सकता है ओर दूसरी को दैव-निदर्शन 
( 72700073 5870 ]0£2 ) रीति। इनमें से पहली का उपयोग उसके अवैज्ञानिक 


४७६ सांस्यिको के सिद्धान्त 


होने के कारण, कम होता जा रहा है, पर चूँ कि कुछ स्थानों में उसका उपयोग अरब 
भी किया जाता है, इसलिए यहाँ दोनों रोतियाँ दी गई हैं । क्‍ 
पुरानी रीति--इस रीति के अनुसार पैदावार जानने के लिए तीन बातों का जानना 
आवश्यक है पहली, फसल के अन्तर्गत क्षेत्र, दूसरी, प्रसामान्य पैदावार (70070 
7०८]0) और तीसरी, वास्तविक दशा (८070॥007 £2८४०५) क्षेत्र के विषय में 
जानने की प्रचलित रीतियाँ पिछले शीर्षक के अन्तर्गत बताई जा चुकी हैं। यहाँ हम 
केवल प्रसामान्य पैदावार ओर वास्तविक दशा पर विचार करेंगे । 

प्रसामान्य पैदावार की जो परिभाषा दी जाती है उसके अनुसार यह “औसत 

मिट्टी में, किसी औसत लक्षण बाले वर्ष के लिए औसत पैदावार! (४ए८7०१८ 
०पापप९४॥, 07 ३एट:486 80, 0 9. एटश7 06 ॥ए८:४०९ ०7४72४८८८४ ) 
है | जैसा इस परिभाषा से ही मालूम हो जाएगा, यह एक बहुत ही संदिग्घतापूर्ण कथन 
है। प्रश्न उठता है यहाँ श्रोसत का क्या अर्थ है। वस्तुतः प्रसामान्य (7०८०) 
और ओसत (४०८:४४०) दो अलग-अलग चीजे हैं| और एक का उपयोग करके 
दूसरे को स्पष्ट करना गलत है। इस असंदिग्धता के कारण प्रायः प्रसामान्य के अर्थ 
के बारे में गलत कथन कहे जाते हैं | इस बात का प्रयत्न किया गया है कि प्रसामान्य 
को अधिक वस्तु-सापेक्ष (00]४८४४८) बनाया जाय जिससे इसकी संदिग्धता कम हो 
जाए, | तदनुसार प्रसामान्य दशा ऐसी दशा बताई गई है जो औसत से अच्छी हो, न 
तो वह किसी असाधारण पैदावार को बताती है जिसमें बहुत अधिक राशि में बहुत 
अच्छी किस्म का अन्न पैदा हुआ हो और न ही वह इसके विपरीत दशा बताती है। 
वह पैदावार किसी पर्याप्त साधन वाले निषुण किसान द्वारा पैदा की गई राशि नहीं है। 
वस्तुतः बह एक ऐसी पैदावार है जो अधिकतम और ओसत के बीच में हो, प्रसामान्य 
पैदावार उसे कहा गया है जिसकी उम्मीद प्राकृतिक परिस्थितियों के अनुकूल होने पर 
साधारणतः की ज्ञा सकती है । जैसा इस. व्याख्या को पढ़कर ज्ञात होगा, इसमें और 
परिभाषा में कोई विशेष अन्तर नहीं है। दोनों कथन व्यक्ति-सापेक्ष हैं जिस कारण 

से वैयक्तिक अमिनति या पक्षुपात की बहुत अधिक गुन्जाइश है| 

प्रसामान्य पैदावार का आगशणन-कार्य राज्य का कृषि-विभाग करता है| इसके 

लिए पहले फसल काटने के प्रयोग किए जाते हैं । ये प्रयोग कुछ जिलों में किए' जाते 
हैं। इन प्रयोगों में कृषि विभाग के अधिकारियों या रेव्हेन्यू अफसरों के द्वारा औसत 
खेत चुने जाते हैं | इन खेतों में बुवाई और कठाई इन अफसरों के सामने की जाती 
है | पाँच वर्ष तक इस प्रकार किए गए प्रयोगों के आधार पर कृषि-विभाग प्रसामान्य 


भारतीप-संमक ४७७ 


पैदावार की आगणना करता है, और पिछली प्रसामान्य पैदावार के स्थान पर, पाँच 
वर्ष बाद, नई प्रसामान्य पैदावार के अनुसार फसल की आगणना की जाती है। 

इस प्रणाली की बहुत कड़ी आलोचनाएँ की गई हैं। व्यक्ति-सापेक्षता इसका 
मुख्य दोष है | प्रयोग करने के लिए. खेत स्थानीय-अफसरों द्वारा चुने जाते हैं । ये प्रति 
रूप (६ए८४।) खेत का चुनाव अपनी धारणाओं के अनुसार करते हैं, जो प्रायः 
अभिनति और पक्तपात के कारण सांख्यिकीय दृष्टिकोश से प्रति रूप नहीं कहे जा 
सकते । जिन स्थानों में ये प्रयोग किए. जाते हैं वे हमेशा के लिए. निश्चित रहते हैं 
और इनके चुनाव में कालान्तर में बदलने वाली परिस्थितियों पर विचार नहीं किया 
जाता । बहुत कम संख्या में ऐसे प्रयोगों का किया जाना, खेतों के टुकड़ों का चेत्रफल 
निश्चित न रहना और ऐसे व्यक्तियों को कार्य सौंपा जाना जो अन्य प्रकार के कार्यों के 
लिए मुख्यतः नियुक्त हैं ओर जो इस कारण इसमें अधिक मनोयोग से कार्य नहीं कर 
सकते--इस प्रणाली के अन्य दोष हैं । 

फसल की वास्तविक दशा यह जानने के लिए, ग्राप्त की जाती है कि किसी वर्ष 
की फसल प्रसामान्य फसल की तुलना में कैसी है। प्रसामान्य फसल को १६ या १२ आना 
फसल कहा जाता है । इसकी तुलना में अन्य वर्षों की फलल का अनुमान लगाया जाता 
है और यह अन्‍न्दाज भी आनों के रूप में व्यक्त किया जाता है--मैसे, आठ आना 
फसल या दस आना फसल | इस प्रकार फसल की तुलना आनों के रूप में करने के 
कारण इसे आनावारी-आगणना (2707& एफ 2/:-257709(6) भी कहते हैं। इसकी 
आगरणना करने की रीति बहुत ही असंतोषजनक है। क्‍योंकि प्रत्येक गाँव के लिए 
इसका अनुमान उसका चौकीदार या पटवारी लगाता है। ये अनुमान तहसीलदार के 
पास भेजे जाते हैं, जो या तो इनका समान्तर माध्य लेके या सबसे अधिक संख्या में 
आने वाले आगणनों के आधार पर, या अपने अनुभव के आधार पर पूरी तहसील के 
लिए. एक आगणन (८४४००४/०) निकालता है, जिसे वह जिलाधीश के पास भेज 
देता है। यहाँ से पूरे जिले के लिए. आगणन उपयुक्त आधारों में किसी को मानकर, 
कृषि-विभाग को मेज दिए जाते हैं । 

इस प्रकार प्रत्येक वर्ष के लिए. फसल की वास्तविक दशा का आगणन करना 
पूर्णतः आपत्तिजनक है। प्रसामान्य की उपयुक्त परिभाषा न होने के कारण उससे अन्य 
वर्षों की तुलना ठीक-ठीक नहीं की जा सकती | किसी वर्ष की पैदावार कई बातों पर निर्भर 
करती है जैसे, वर्षा, तापमान आदि । इन सबके प्रभावों की सही जानकारी प्रात्त करना 
बहुत कठिन कार्य है. ओर कोई ऐसा व्यक्ति जो इन सबके बारे में बहुत अच्छी तरह 


४७८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


नहीं जानता, ठीक आगणन नहीं कर सकता | जिन लोगों को यह कार्य सौंपा जाता है, 
वे कहाँ तक ठीक अनुमान लगा सकते हैं, यह संदेहापर है। अपनी अभिनति के 
कारण वे प्रायः अल्प-आगणन (०७००८६-०४८४:०५४६०7 ) करते हैं। उचित पयवेक्कों 
का अभाव-इस गलती में अधिक बृद्धि कर देता है | बहुत कम संख्या में सूचनाएँ प्राप्त 
होने के कारण परिणामों को बहुत प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। औसत निकालने की 
अलग-अलग रीतियों के उपयोग के कारण मी गलती हो जाती है। एक अन्य दोष, 
जो इस प्रवार के अनुसंधानों में अवश्य होता है, यह है कि इन आगणनों में कितना 
विश्रम हुआ है, यह नहीं जाना जा सकता । 

इन तीन बातों--ज्षेत्रफल, प्रसामान्य-पैदाबार ओर वास्तविक दशा--को 
जानने पर पूरी पैदावार का अनुमान निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करके लगाया जा 
जा सकता है। 


स्तविक अं 
पैदावार - क्षेत्रफल »८ प्रसामान्य पैदावार ८ + * विंके अंक 


प्रसामान्य अंक 

देव-निदर्शन रीति : उपयुक्त रीति के अधिकांश दोष देव-निदर्शन रीति से 
हटाए जा सकते हैं। यह रीति ठोस सांख्यिकीय शिद्धान्तों पर आधारित होने के 
कारण अधिक वैज्ञानिक है, और इसमें आगणन के विम्नम (७४४०४ ०६ ९३६ 772//07) 
की जाना जा सकता है। इस रीति में राज्य की प्रत्येक तहसील में से कुछ गाँव दैव- 
निदर्शन की रीति से चुन लिए जाते हैं | गाँवों की संख्या फसल के अन्तर्गत क्षेत्र के 
अनुपात में होती है | इस प्रकार चुने हुए प्रत्येक गाँव में फिर देव-निदर्शन की रीति 
के द्वारा बोए हुए खेतों में से कुछ खेत चुन लिए जाते हैं जिनमें से फिर इसी प्रकार, 
कुछ टुकड़े (लगभग ८ एकड़ के) चुन लिए जाते हैं। प्रत्येक ठुकड़े को बाड़े (27८65) 
से बन्द कर दिया जाता है | कटाई के समय इस ठुकड़े में पैदा हुई फ़लल को नमी 
को ध्यान में रखते हुए. तोल लिया जाता है | इस प्रकार पूरे्तेत्र के लिए. फसल की 
पैदावार जान ली जाती है । इस रीति में प्रसामान्य पैदावार और वास्तविक दशा के 
अनुसार पैदावार के आगणन का भंभट नहीं रहता। मिट्टी की दशा, थ्िचाई के 
प्रबन्ध और खाद के उपयोग आदि को प्रत्येक निदर्शन में उचित स्थान दिया जाता 
है | जैसा कहा जा चुका है, इस रीति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें, दैव 
निदर्शन का उपयोग होने के कारण, आगणन के विश्रम को जाना जा सकता है। 

भारत में प्रत्येक फसल के लिए साधारणतः तीन पूर्वानुमान ( [072८45४8 ) 
लगाए जाते हैं । पहला पूवर्यनुमान पहली बुआई के समय क्षेत्र के बारे में होता है। 


भारतीय-मंमक ४७९ 


दूसरा पूर्णनुमान बाद की बुआई के क्षेत्र और सम्मावित (9700206) पैदावार के 
बारे में होता है, तीसरा और अन्तिम पूर्वानुमान कुल बोए हुए क्षेत्र ओर आंशसितः 


( ८५००८:८० ) पैदावार के बारे में आगणन देता है । 


निम्नलिखित सारणी में खाद्यानों के बारे में १९५२-५३ के और १९५३-५७ 
के खाद्यानों-सम्बन्धी आगणुन दिए गए हैं | 

































































क्षेत्र (हजार एकड़ | उत्पादन (हजार टन) 
१६५३-५४ १६५२-५३ १९५३-५४ १९५२-४३ 
खाद्यान अन्तिम आगणुन (अंशतः दुहराए अन्तिम आगणन| (अंशतः दुहराए 
हुए आगरणन) हुए आगणन) 
खरीफ: या 
चावल ७६,६४६ ७४,२०६ २७,०७६ २२,४९५ 
ज्वार ४२,९६० ४३, ३३ ९ ७,९६५ १,२६० 
बाजरा २८,८२० २६,५३० ४,२४६ ३,१५० 
मक्का ८,६८२ ८5,८९७ २,८५९ २,८२३ 
रागी 728! +,४७२ "रगरप 5,55६ _ १,२३८. 
छोटे खाद्यान्न | १२३१९७ १२,४६१ २,६१८ १,६०५ 
कुल खरीफ के 
खीः ह १७९,०७७ ९७०,८५४ ४५,६१७ रेप,८७१ 
गेहूँ २६,०९८ २४,२८५ ७,७६२ ७,३८३ 
जौ ८,१६८ ८,०१० २७२१ २,८४९ 
कुल रत्री के । इस्रधद | ३२,२६५ | १०,५१३ १०,२१२ 
खाद्यान्न. (चपपएणयययएण 
कुल खाद्यान | रश०रेक४ | रेप ल पर या टरे ३,१४६ | ४६,१३० ४६,१०३ 

















ये आगणनाएँ- केवल खाद्यात्रों ही के लिए नहीं की जाती, बल्कि, साथ ही साथ 
अन्य प्रकार की फसलों, जैसे तिलहनें, दालें, कपास, जूट आंदि, के लिए भी की 


जाती हैं । 


मृल्य-समंक (?:706 5&08705) 
कटाई के समय कृषि मूल्य (497ए63* ?/065) 

कटाई के समय क्ृषि-बस्तुओं के मूल्यों का जानना अत्यन्त आवश्यक है, इससे 
न केवल सरकार अपनी नीति निश्चित करती है और व्यापारी लाभ उठाते हैं, बल्कि, 
साथ ही साथ, यह किसानों के लिए भी बहुत लाभप्रद है । देश की विशेषतः ऐसे देश 


४८० सांख्यिको के सिद्धान्त 


की जो मुख्यतः कृषि पर निमेर करता है, आर्थिक स्थिति जानने में इनका महत्वपूर्ण 
स्थान है । फार्म-मूल्य ((0700 806) या कठाई के समय का मूल्य (00ए७॥ 
770०) सिद्धान्त दृष्टिकोण से वह मूल्य हे जो किसान को कठाई के समय उतत्ति 
के लिए मिलता है। भारत में इन मूल्यों की परिभाषा के बारे में समानता नहीं है। 
छ राज्यों में तीन या चार मुख्य बाजारों के थोक मूल्यों को फाम-मूल्य मान लिया जाता 
है | केवल कुछ ही स्थलों में ये चुने हुये गाँवों के किसानों के आ्राप्त मूल्य के बराबर 
होता है । इस प्रकार इनमें दो दोष हैं : समानता का अभाव और फार्म मूल्य का गलत 
अर्थ। इन दोषों को दूर करने के लिए १९५० से एक नई योजना चलाई गई है। 
इसके अनुसार कटाई के समय का मूल्य उन मूल्यों का समान्तर माध्य है जिनकों किसान 
'कठाई की निश्चित अवधियों में, गाँव के व्यापारी से प्राप्त करता है । ओसत थोक मूल्य 
निकालने की रीति निम्नलिखित है । जिले के कुछ गाँव जिन्हें प्रतिनिधि गाँव कहा 
जाता है, चुन लिये जाते हैं | प्रत्येक प्रतिनिधि गाँव में मूल्य सम्बन्धी तथ्यांक जमा 
किये जाते हैं। ये मूल्य वस्तु के सबसे अधिक प्रचलित प्रकार के होते हैँ | इनको जमा 
करने का दिन भी निश्चित किया गया है : यह है प्रत्येक सप्ताह का शुक्रवार । इन अंकों 
का साधारण समान्तर माध्य जिले के लिए माध्य-मूल्य बताता है। जिलों के माध्य-मूल्यों 
को प्रत्येक जिले द्वारा उत्पादित राशियों के अनुपात से भारित करके पूरे राज्य के लिए 
'फ़ार्म-मूल्य या कटाई के समय का मुल्य ज्ञात कर लिया जाता है । 
उपयुक्त विवरण को पढ़कर ज्ञात हो गया होगा कि इस दूसरी रीति का उपयोग 
करने के बावजूद भी विश्रम होने की बहुत गुझ्लाइश है | इसका पहला दोष यह है कि 
कृषि-वस्तुओं के प्रमापीकृत (४:७004707560) न होने के कारण यह नहीं कहा जा 
-सकता कि हमेशा एक ही वस्तु के लिए उद्धरण दिए जा रहे हैं। इसलिए विभिन्न 
स्थानों और विभिन्न समयों के मूल्य-उद्धरणों में पर्याप्त परिशुद्धता के साथ तुलना नहीं 
“की जा सकती । दूसरा दोष यह है कि जिस महत्ता (7887:५१४) में सामग्री 
संग्रहित की जाती है उसके अनुरूप कोई ऐसा सद्भठन नहीं है जहाँ इसका सारणीयन 
आर विश्लेषण किया जा सके | तीसरा दोष यह है कि जो उद्धरण प्राप्त होते हैं वे 
“नियमित नहीं होते, और नही सब प्रकार के मल्यों के उद्धरण प्राप्त होते हैं। 
तीसरी कमी के कारण यह सम्भव नहीं हो पाता कि कृषि-वस्तुओं के क्रय-विक्रय से 
सम्बन्धित लोगों के लाभ का सही पता चल सके | इन अन्तिम दो कमियों के कारण 


"सही मू ल्य-देशनांक बनाना भी सम्मव नहीं है । मूल्य-उपनति का अध्ययन करने के 
लिए. इनका होना आवश्यक है । 


श१ भारतोय-संमक ४८१ 
अन्य मुल्य 

कृषि-मू ल्यों के अतिरिक्त अ्रन्य वस्तुओं के मूल्य मारत सरकार द्वारा प्रकाशित, 
विभिन्न पत्रिकाश्रों में काफी मात्रा में मिलते हैं । बहुत सी अराजकीय तथा अर्थ राज- 
कीय संस्थाएँ भी विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों को पत्रिकाओं में प्रकाशित करती हैं। 
मनन्‍्थली सर्वे आफ बिजनेस कन्डीशंस इन इंडिया? (](०४पएए $प:ए८ए 0६ 
5प576585 (+0700078 47 ॥7904) में बहुत सी वस्त॒श्नों जैसे, कपास, जूट, 
लोहा ओर इस्पात, चीनी, कोयला, खाद्यान्न, तिलहन और चाय इत्यादि के मूल्य-समंक 
प्रकाशित होते थे | सन्‌ १९४१ में यह पत्रिका (दि जरनल ऑफ इन्डन्ट्री एन्ड ट्रेड! 
(340९ [0प४४४ ०६ [7005६४ए 900 7५906) जो कि वाणिज्य तथा उद्योग 
मंत्रालय से हर महीने प्रकाशित होती है, में मिला दी गई | इसमें कृषि ओर अक्ृषि 
सम्बन्धी मुख्य वस्तुओं के साप्ताहिक मूल्य दिये जाते हैं ओर इन्हीं के आधार पर 
इकनामिक एडवाइजर का बहुशो मूल्य देशनांक बनाया जाता है। इस देशनांक का 
वर्णन आगे चलकर किया जाएगा | 


द्वितीय महायुद्ध के समय जबकि अधिकतर वस्तुओं के मूल्य पर नियन्त्रण था, 
सरकार वस्तुओं का नियन्त्रित मूल्य प्रकाशित किया करती थी। वह मूल्य, जिन पर, 
सरकार सामान खरीदती थी तथा वह मूल्य, जिस पर वह सामान जनता को बेचा 
जाता था, दोनों ही सरकार द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं में समय-समय पर मुद्रित किए. 
जाते थे | द 

. सोने, चाँदी तथा प्रतिभूतियों (६८८००४४४८७) से मूल्य प्रति सप्ताह रिजवं बैंक 

द्वारा प्रकाशित बुलेटिन में छापे जाते हैं । 

इसके अतिरिक्त कुछु समय से विभिन्न राज्य-सरकारें साप्ताहिक तथा मासिक 
पत्रिकाएँ निकालती हैं जिनमें उन राज्यों के विभिन्न शहरों में मुख्य वस्तुओं के थोक और 
फुटकर मूल्य मिलते हैं । क्‍ 

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि पिछले कुछ वर्षों में देश के मूल्य संमकों 
में काफी सुधार हुआ है | भारत के मूल्य संमक अधिकतर “आफिस आफ दि इकानामिक 
एडवाइजर! (005८८ ०६६०९ 74८070770 2१०48८7) और “डाइरेक्टोरेट आफ 
इकानामिक्स एण्ड स्टैटिसटिकक्‍्स! ( 0[6८८0:5806 06 &८०7०फछां८३8 छशाते 
5(4080८5 ) द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं। ये मूल्य-संमक राज्य-सरकारों द्वारा तथा 
कुछ अराजकीय संस्थाश्रों द्वारा एकत्रित किये होते हैं| राज्य-सरकारों ने भी मूल्य-संमक 


है सांश्यिकी के सिद्धान्त 


एकत्रित करने में काफी सुधार किये हैं| पटवारी तथा कानूनगों के स्थान पर यह कार्य 
अरब विशेष निरीक्षुकों (892८०५०४७) द्वारा किया जाता है जिनको इस कार्य के शिए 
विशेष रूप से शिक्षा दी जाती है । 
मूल्य-संमर्कों की कमियां 

काफी सुधार होने पर भी भारतीय मूल्य-संमकों में बहुत सी कमियाँ हैं । सबे- 
प्रथम तो यह कि वस्तुओं के प्रमापित (६६४7027045८0) न होने के कारण विभिन्न 
कालावधियों के मूल्य तुलनात्मक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त मूल्य- पक सदैव निश्चित 
अवधि पर प्रकाशित भी नहीं होते हैं। मूल्य-संमक इस प्रकार क »« '"े ज़नसे 
मूल्य-देशनांक सुविधाजनक रूप से बनाये जा सकें | विदेशों में विभिन्न प्रकार के मूल्य 
देशनांक प्रचलित हैं ओर इनसे बहुत से लाभ भी हैं, परन्तु अपने देश में जब तक मूल्य- 
संमकों की सब कमियाँ दूर न हो जायें तब तक इस प्रकार के देशनांकों का बनाया जाना 
_ सम्भव नहीं । 
मूल्य-देशनांक 


मूल्य-उपनति के अध्ययन के लिये यह आवश्यक है कि मूल्य देशनांक बनाये 
जायें। थोक-मूल्यों की विवेचना के लिये बहुशो-मूल्य-देशनांक (|0]2846 [706 
0065% एपण7९:७) और फुट्कर मूल्यों के लिये अल्पशो-मूल्य-देशनांक (#८(श्षी 
70006 47065 #पा70०:5) की आवश्यकता पड़ती है । 


निम्नलिखित अनुच्छेदों में 'इकानामिक एडवाइजर' के बहुशो-मूल्य-देशनांक 
का संज्ञिप्त विवरण दिया गया है | 


एकानामिक एडवाइजर का बहुशो-मूल्य-देशनांक (2८००४०फ० 
209052703 9]0082/6 070८$ 470 ८5५) ; 


भारतवर्ष में मूल्य-स्थिति के अ्रध्ययन के लिए. पिछुले वर्षों में एकनामिक 
एडवाइजर के बहुशो मूल्य-देशनांको की रचना की गई। इनका आधार अगस्त, १६३९ 
को अंत होने वाला वर्ष है। इन देशनांकों को निम्नलिखित ५ भागों में बाँय गया है : 

(१) भोजन की बस्तुयें ((000 27४८८७) 

(२) ओद्योगिक कच्चे माल ((7608८24] ६4 7740०9]5) 

(३) अध॑-निर्मित बस्तुयें (३९४४-॥200(8०६०६८३) 

(४) निर्मित वस्तुयें (प्रश्यापा8८८७:८8) 


भारतीय-संमक ४८३ 


(५४) विविध (7778८2]97९009) 


प्रत्येक वर्ग को पुनः कुछ अ्रध: वर्गो' (५५०७४2:०ए८७७) में बाँठ गया है ओर 
प्रत्येक अधः वर्ग के अन्तर्गत कुछ सम्बन्धित वस्तुयें ली गई हैं। यह हमें निम्नलिखित 
सारणी से स्पष्ट हो जायेगा-- 

















वर्ग _| अप |[ उस्म्रोंकीसंस्या अध: वर्ग वस्तुओं की संख्या 

(१) भोजन की बस्व॒यें ३ ११ 

(२) ओऔद्योगिक कब्चे माल ४ १९ 

(३) अध निर्मित बस्तुरये ७ २३ 

(४) निर्मित वस्तुयें ३ १९ 

(५) विविध १ ६. 
योग श्र ७८ 











इस प्रकार दम देखते हैं इन पाँच मुख्य वर्गो-को १८ अ्रघः वर्गों में बाँटा 
गया है ओर कुल ७८ वस्तुयें इसके अन्तर्गत ली गई हैं। इन ७८ वस्तुओं में से 
प्रत्येक के लिये विभिन्न संख्याश्रों में मूल्य-उद्धरण ((7706 (००५०४४०४$) लिये गये 
हैं | इस देशनांक में लिये गये कुल मूल्य-उद्धरणों की संख्या २२५ है। 
द इन पाँच मुख्य वर्गों को मिला कर एक संग्रथित देशनांक बनाया गया है जिसे 
एकानामिक एडवाइजर का बहुशो-मूल्य देशनांक (20८070770 /१ए78८४४ 
2९7८48] 70065 ०६ ७70]2520८ 77८2$) कहते हैं। 


यह देशनोंक प्रत्येक सप्ताह बनाया जाता है और साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक 
रूप में प्रकाशित किया जाता है । इसके लिये सप्ताह में एक दिन (लगभग शुक्रवार) के 
मूल्य लिये जाते हैं जो कि विभिन्न साधनों से ग्राप्त होते हैं। यह देशनांक एकनामिक 
एडवाइजर के साप्ताहिक बुलेटिन “भारतवर्ष में बहुशो-मुल्य देशनांक? (7065 
प्रपा79९८ ०६ ज्ञ0252स्‍6 970०5 ॥7 7704) में प्रकाशित किया जाता है। _ 


सर्वप्र थम प्रत्येक वस्तु के साप्ताहिक मूल्य-उद्धरणों का मूल्यानुपात लिया जाता है। 
तत्पश्चात्‌ उस वस्तु के विभिन्न मूल्यानुपातों का साधारण गुणोत्तर मध्यक लिया जाता है 
ओर इस प्रकार वस्तु देशनांक (००००००00॥८ए 470८5) बनाया जाता है। अधः 
वर्ग देशनांक (५००-87००ए० 7706%) बनाने के लिये अ्रधः-वर्ग में आने वाले वस्तु 
देशनांकों का भारित गुणोचरं मध्यक लिया जाता है। इसी प्रकार अधः-वर्ग देशनांकों 








इंटर द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


का भारित गुणोत्तर मध्यक लेकर वर्ग- देशनांक (87००० 77065) बनाया जाता है। 
अन्त में इन वर्ग-देशनांकों को मिलाकर संग्रथित-देशनांक की रचना की जाती है। यहाँ 
भी भारित गुणोत्तर मध्यक का प्रयोग किया जाता है। 


इस देशनांक में विभिन्न वस्तुश्नों के भार उनके १९३८-३९ में बेची गई राशि 
के मूल्यों के अनुपात में है, विभिन्न वर्गो' के मार मी इसी रीति से निकाले गये हैँ। 
ये भार निम्नलिखित हैं-- 


(१) भोजन की वस्तुयें ३१ 

(२) ओऔद्योगिक कच्चा माल श्प 

(३) अर्ध-निर्मित बस्तुयें १७ 

(४) निर्मित वस्तुयें ३० 

(५) विविध डे 

0०0 
इस देशनांक को कमियाँ 
(१) इसमें लिये गए. भार (०४४27५$) पुराने हैं ओर वे इस समय की 

परिस्थिति के लिये विशेष उपयोगी नहीं हैं । 


(२) कुल भारों में से आधे से अधिक भार भोजन की वस्तुयें तथा अधे 
निर्मित बस्तुओं को दिये गये हैं। द्वितीय महायुद्ध तथा उसके पश्चात्‌ भारतवष में 
निर्माण उद्योगों की इृद्धि हुई है, लेकिन फिर भी उन्हें सापेक्षतः कम भार दिये गये हैं | क्‍ 


(३) जिस रीति से भारों को चुना गया है वह भी दोषपूर्ण है | 


(४) देशनांक की रचना में लिए गये मूल्य उद्धरण की संख्या तथा उनका 
चुनाव भी संपूर्ण वस्तुओं का प्रतिनिधित्व नही करता जैसे, चावल के लिए. उद्धरणों 
की संख्या ३ है ओर जूतों, जो कि तुलनात्मक रूप में कम उपयोगी हैं, के उद्धरणों 
की संख्या ८. है | इसी प्रकार गेहूँ को कम भार दिया गया है लेकिन ययर और य्यूबों 
को अधिक भार दिया गया है | 


(५) इसी प्रकार भोजन वर्ग देशनांक भी पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं दै। भोजन 
शब्द का अर्थ विभिन्न रूप में लिया जाता है। यास्तव में इसके अन्तर्गत अनाजों को 
ही आना चाहिए था लेकिन चना, अरहर की दाल, चाय, काफी, चीनी, गुण 'तथा नमक 
भी इसमें लिए गये हैं। द 


भारतीय-सं समक्ष क्‍ 'इप्प५ 


उपयु क्त कमियों को ध्यान में रखते हुए, इस देशनांक में संशोधन की आब- 
श्यकता है । उद्धरणों की संख्या को बढ़ाना चाहिए तथा भारों का चुनाव भी पुनः 
होना चाहिए. । आधार वर्ष में भी संशोधन होना चाहिए ओर देशनांक का किसी 
निकट वर्ष पर आधारित होना ठीक होगा । इस देशनांक का वास्तविक ध्येय सामान्य 
मूल्य स्तर को मापना होना चाहिए | पिछले कुछ वर्षों में भारत तथा विदेशों के 
आर्थिक संघ्रठन में कुछु अदलाव हो गया है, इसका भी ध्यान रखना आवश्यकीय है। 
अल्पशो-मुल्य देशनांक (रि०८४व ए706 [7665 चिपातं6) 

कुछ शहरों तथा कुछ गाँवों के लिए. श्रम मंत्रालय, (]490७४ 77758:9 ) 
अ्रल्पशो-मूल्य-देशनांक प्रकाशित करता है। १८ शहर तथा १२ गाँवों के यह देशनांक 
“इन्डियन लेबर गजद' ([70%0 ॥,900०८ (४2०८८) में प्रतिमास छापे जाते हैं । 
इनका आधार वर्ष १६४४ है। इनके लिए मूल्य उद्धरण प्रति सप्ताह एकनत्रित किए 
जाते हैं और इन देशनांको के बनाने में "किसी वस्तु को कोई भार (फ़०2४00 नहीं 
दिया जाता | जिन वस्तुओं से यह देशनांक बनाए. जाते हैं वे साधारणतः दिन प्रतिदिन 
उपभोग की जाने वाली वस्तुएँ हैं जैसे, खाद्यान, ईंधन और रोशनी, कपड़े आदि 
इन देशनांकों के अतिरिक्त कयई के समय कृषि मूल्यों का देशनांक डाइरेक्टोरेट 
आफ इकानमिक्स एन्‍्ड स्टेटिसिटिक्स से प्रकाशित किया जाता हैं । 


मजदूरी-संमक (पए५26९ 50205६८8 ) 
आधुनिक समय मे ज़ब प्रत्येक देश का लक्ष्य जनसाधारण के कल्याण में वृद्धि 
करना है, मजदूरी-समंक बहुत महत्वपूर्ण है। इनका उद्देश्य मजदूरों की आय, आय का 
वितरण, आयों की तुलना आदि करना है। इनके द्वार यह ज्ञात होता है कि मजदूर 
क्रय-शक्ति (9प:८००808 9०७८7) के रूप में क्‍या अर्जन कर रहे हैं। बिना इन 
समंकों के श्रम-कल्याण की कोई भी योजना सम्भव नहीं है | 
... मजदरी संमकों का अध्ययन दो शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है 

(१) ओद्योगिक मजदूरी-संमभक (59%05008 0 [7तप८४५ ४४०३४८७) 

(२) कृषि-मजदूरी-संमक ($8808008 ०६ /87700५7४) ४8९७) 

(१) औद्योगिक मजदूरी संमक : मजदूरी दरों से सम्बन्धित संमक राज्य 
सरकारों और केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रकाशित किए “जाते हैं। इन संमकों का संग्रहण 
करने में पर्यात कठिनाई द्वोती है। पहली कठिनाई तो यह है कि अधियोजकों 


४८६ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(९८77009०४७) की मजदूरी-सूचियाँ (27 :08), जो मजदूरी-संभकों को प्राप्त 
करने के मुख्य खोत हैं, अपूर्ण ओर एकरूप नहीं हैं। मजदूरी-सूचियों को भरने की ओर 
कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। प्रामाशिक सूचना देने के बदले इनसे जो सूचना 
प्राप्त होती है वह अप्रामाणिक और अविश्वसनीय भी है। एकरूपता न होने का मुख्य 
कारण यह है कि मजदूरी देने के समयों (997-0999) के बीच का अ्रन्तर एक स्थान 
से दूसरे स्थान या एक काल से दूसरे काल में वही नहीं रहता। फिर वेतनों के समया- 
नुसार ((706-225) ओर कार्यानुसार (06८९८ ४20०5) होने के कारण भी 
एकरूपता नहीं आ पाती । कभी-कमी एक ही फर्म में एक ही काम करने वालों में कुछ 
को मजदूरी समयानुसार मिलती है ओर कुछ कार्यानुसार | यह भी देखा गया है कि कुछ 
व्यक्तियों को मजदूरी का एक अंश समयानुसार मिलती हे ओर शेष कार्यानुसार। 
व्यवसायों का नामकरण. (70०४76४८]४७४८ ) और उनका अश्रेणी-करण 
(87207£8) भी दोषपू्ं है। यह किसी भी दृष्टि से तक॑सम्मत नहीं कहे जा 
सकते । नामों के प्रमापीकृत न होने के कारण गड़बड़ दोने की बहुत गुज्लाश्श रहती है। 
एक ही कार्य के लिये दो या अधिक नाम प्रायः मिलते हैं, और कमी-कमी एक ही नाम 
का उपयोग दो या अधिक ब्रिलकुल अलग-अलग कार्यों के लिये किया जाता है। दृत्ति 
का नियमित और संतत न होना भी मजदूरी-संमकों के संग्रहण में बाधा डालता है | 
अगर ओऔद्योगिक-मजदूरी संमकों को परिशुद्धता के साथ वैज्ञानिक रीतियों से जमा 
करना है तो यह आवश्यक है कि व्यवसायों के नाम प्रमापीकृत हों, मजदूरी-सूची ठीक 


तरह से भरी जाय ओर मजदूरी देने की विधियों और उनके बीच के कालान्तर को उचित 
रूप से परिभाषित किया जाय | 


फेक्ट्रीमजवूरों की आय का अनुमान लगाने के लिये तथा उसकी उपनति 
अध्ययन करने के लिए लेबर ब्यूरो ( ॥.400प४ ठिप7८४० ) ने प्रथम बार फैक्ट्री- 
मजदूरें की आय का देशनांक ( ॥7065 छा ्यापंगरटु४ 0६ (28८०7ए 
४७०7१८४७) फरवरी सन्‌ १६५३ में (इंडियन लेबर गज”? में प्रकाशित किया। इस 
देशनांक ने वेतन संमकों की एक बहुत बड़ी कमी को पूरा किया | यह वार्षिक देशनांक 
है ओर इसका आधार सन्‌ १९३६ हे । तीन प्रकार के देशनांक निम्नलिखित के लिये 
बनाये जाते हैं : 

(ञ्र) प्रत्येक राज्य के “सब उद्योगों के लिए” | 

(ब)सब राज्यों के “प्रत्येक उद्योग के लिये?।॥ 


भारतीय-पंमफ ४८७ 


(स) “सब राज्यों के सब उद्योगों के लिए” | 


इन देशनांकों को बनाने के लिये सामग्री लेबर ब्यूरो एकत्रित करता है। यह 


सामग्री १९३६ के 'पेमेंट आफ वेजेज्ञ ऐक्ट! (?2ए४7०70 ०# ४६8०४ 2०) के 
अनुसार एकन्न की जाती है। 


फैक्ट्री मजदूरों के निर्वाह-व्यय का अनुमान लगाने के लिए हमारे देश में बहुत 
से नि्वाहिज्यय-देशनांक (८०४४ ०६ ०789 70065 एपा7०८॥७) प्रचलित हैं। 
“इन्डियन लेबर ग़ज़ट? में निम्नलिखित देशनांक प्रकाशित किये जाते हैं : 


(१) १४ केद्धों के लिये ब्यूरों द्वारा बनाये गये मजदूर-वर्ग के निर्वाह-व्यय- 
देशनांक | 

(२) १३ केद्धों के लिए राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए मजदूर-वर्ग के निर्वाह- 
व्यय-देशनांक | 

इन देशनांकों के अतिरिक्त, जो कि, सरकार द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं 
बहुत से देशनांक ऐसे भी हैं जिन्हें मजदूर संस्थायें प्रकाशित करती हैं । विभिन्न 
प्रदेशों के इन देशनांकों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इसके आधार- 
वर्ष, वस्तुओं कीसख्या तथा शुण और बनाने की रीतियाँ भिन्न-मिन्न हैं| इन सब 
देशनांकों में “म्बई लेबर ऑफिस? द्वार बनाए गए देशनांक सर्वोत्तम समझे जाते हैं । 


(३) कृषि-मजदूरी संमक : इन समंकों की दशा ओद्योगिक-मजदूरी संमक 
से भी अधिक शोचनीय है । जो थोड़े-बहुत संमक उपलब्ध भी हैं वे अपनी अ्रपर्यासता, 
अपूर्यता, अप्रामाणिकता और अ्परिशुद्धता के कारण अत्यन्त असन्तोषजनक हैं । 
ओद्योगिक-मजदूरी-संमकों के संग्रहण की कठिनाइयाँ और उनकी कमियाँ, जो पिछले 
शीर्षक के अन्तर्गत बताई गई हैं, यहाँ उनसे भी अधिक परिमाण में विद्यमान हैं। 
कृषि-मजदूरों की दशा को देखते हुये उनकी आय से सम्बन्धित संमकों का अभाव होना 
बहुत खलता है | इस कमी को कुछ हद तक दूर करने के लिए १९४० में खाद्य और 
कृषि मंत्रालय (7006 & /8४८प्रॉप्पा० )४४४ए) ने एक योजना बनाई 
थी । इस योजना के अनुसार क्ृषि-मजदूरों का वर्गीकरण निम्नलिखित रूप से किया 
गया था : 


(१) निपुण मजदूर (४060 [४७9०0००) : 
(क) बढ़ुई (८४४[००70639), 


४८प्ए सांध्यिकी के सिद्धान्त 


(ख) लोहार (98८६५४०६05$), 
(ग) चर्मकार (८००7!८४) । 

(२) खेत में काम करने वाले मजदूर (६60 [270८४) । 

(३) श्रन्य कृषि-मजदूर (0006: 3870परपए७। 48000: ) 

(४) चरवाहे (6:05870767) । है 

इनकी दैनिक मजदूरी का संग्रहण किया जाता है चाहे वह द्रव्य के रूप में दी 
जाती हो या वस्तु के रूप में । वस्तु के रूप में दी जाने वाली मजदूरी को द्रव्य के रूप में 
रखा जाता है। ये मजदूरियाँ प्रत्येक जिले के एक चुने हुये गाँव की, जो मजदूरी 
ओर कृष्ि-दशाओं का प्रतिनिधि माना जाता है, होती हैं। चूँकि मजदूरी सम्बन्धी 
सामग्री के संग्रहण का आधार, महीना है, इसलिए किमी मास में सर्वाधिक प्रचलित 
मजदूरी को लिया जाता है । इन जिलों के मजदूरियों के आधार पर पूरे राज्य के लिये 
मजदूरी निश्चित की जाती है और यह अह्क “केन्द्रीय डाइरेक्टोरेट” को भेज दिए जाते हैं 
जहाँ से इनका प्रकाशन होता है । 
कृषि-सजदूर अनुसंघान (887८पपए:थ॒- ००५४ थिवृपाएए ) 

सन्‌ १९४२ में सरकार, अधियोजकों (७४०.0ए7०:5) तथा अमिकों की एक 
सभा हुई थी, जिसकी सिफारिश के अनुसार सरकार, कृषि-मजदूरों से सम्बन्धित एक 
सर्वेक्षण करने वाली थी, पर इसके प्रारम्भ होने के पहले ही सन्‌ १६४८ में "न्यूनतम 
बेतन अधिनियम? (एणाएपात ए४2८४ 2८४) पास हो गया और इसके अनुसार 
न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रश्न उठा | इसके लिए सन्‌ १९४९ में, केन्द्रीय 
सरकार ने राज्य-सरकारों के सहयोग से, एक अनुसंधान आरम्म किया | इसका उद्देश्य 
कृषि-मजदूरों की आय, निर्वाह-व्यय, ऋण इत्यादि के बारे में संमक एकत्रित करना ह 
था ताकि उनकी स्थिति में सुधार किया जा सके और न्यूनतम वेतन भी निश्चित हो 


सके । यह सामग्री एकत्रित कर ली गई है ओर धीरे-धीरे प्रकाशित भी हो चुकी है। 
इसमें कृषि-मजदूर सम्बन्धी बहुत है संमक मिलते हैं। 


राष्ट्रीय आय (४४074 7000776) 
किसी देश की राष्ट्रीय आय उसके निवासियों के लिए एक कालावधि में 


उत्पादित वस्तुओं ओर सेवाओं की राशि का द्रव्य-मूल्य है। इसमें केवल वास्तविक 
उत्पत्ति (7८८ 07060८८) की गयना की जाती है | किसी भी वस्तु या सेवा की दुहरो 


भारतीय-संमक द डप्पर, 


गणना नहीं होनी चाहिए | इसमें उन सब उत्पत्ति का समावेशन (राढपआंठा ) 
होता है जिसे देश के निवासी विदेशों में उत्पादन इकाइयों के स्वामित्व के कारण: 
प्रा्त करते हैं, ओर उन सब उत्पत्ति का अपवर्जन ( ०८८ो०७७४07 ) होता है जिसे 


श्रन्य देशों के निवासी इस देश में उत्पादन इकाइयों के स्वामित्व के कारण प्राप्त 
करते हैं। 


राष्ट्रीय-आय के आ्रागणन पूरे देश के सामान्य आर्थिक स्वर से सम्बन्धित 
समंकों को देते हैं | इतना ही नहीं, इनमें देश के विभिन्न उत्पादक-वर्गों द्वारा दिए 
गए हिस्से की भी गणना रहती है । राष्ट्रीय आय सम्बन्धी समंक पूरे देश की आर्थिक. 
स्थिति का सर्वा गीण परिचय देते हैं। इनके द्वारा सरकार यह जान सकती है कि देश' 
में उत्पादन और वितरण की स्थिति क्या है। देश के विभिन्न वर्गो' द्वारा दिए गए 
उत्पादन में सहयोग और इसके बदले उन्हें मिलने वाले प्रतिफल का इसमें विवरण 
रहता है। अतएव किसी भी ऐसी आशिक नीति के लिए जो देश के उत्तादन और 
विवरण को प्रभावित करती हो, इसका ज्ञान होना आवश्यक है। 


'गष्ट्रीय आय को नापने की रीतियाँ (76&07005 ०६ ४6457 8. 
7२०(८07%) 0८0776) 


राष्ट्रीय आय को नापने की दो रीतियाँ हैं| पहली को उत्पादन संगणना रीति 
(८८0४०$ 0६ 97006070८४8 776:7008) कहा ज्ञाता है और दूसरी को आय-संगणना 
रीति (८८४5०७३ ०६ 72८077025 7८000) । इन रीतियों को छुज्ञ उत्पादन रीति 
(६008) 70तप7८६४ 7720700) और साधन प्रतिफल्न रीति (६६८८०: 92४ए०/९०६ 
702:700) भी कहा जाता है । 


त्पादन संगशना रीति : इस रीति में सब उत्पादक उद्यमों के द्वारा किए 
गए, वास्तविक उत्पादन (०६ 9700प८८४०४) और सेवाओं का मूल्यांकन किया 
जाता है। उत्पादक उद्यमों के अन्तर्गत वे सब उद्यम आते हैं जो किसी न किसी रीति 
से वस्तुओं की उपयोगिता में वृद्धि करते हैँ जैसे कृषि, उद्योग, व्यवसाय, यातायाय, बन 
मत्स्य-व्यवसाय,खनन आदि । इनके श्र (०८०८) में से निर्यात के अर्ध को घटा: 
दिया जाता है और आयात के अर्घ को जोड़ दिया जाता है | साथ ही साथ, घरेलू 
उद्योगों की उत्पत्ति, वैयक्तिक सेवाएँ आदि जोड़ दी जाती हैं। उत्पत्ति का जो भाग: 
आदेयों (985८६) की वृद्धि करता है, वह भी जोड़ दिया जाता है । सरकार को मिलने 
वाला उत्पत्ति का भाग भी जोड़ा जाता है। विदेशों में स्वामित्व के अधिकारों के 


४६० सांब्यिकी के सिद्धान्त 


कारण ग्राप्त होने वाली आय जोड़ दी जाती है ओर विदेशियों को देश में स्वामितर 
के अधिकारों के कारण मिलने वाली आय घट दी जाती है। 


इस प्रकार वास्तविक देशीय उत्पत्ति का पता चल जाता है। आय संगणना 
शैति .इस रीति में व्यक्तियों की आयों का योग राष्ट्रीय आय माना जाता है, देश के 
प्रत्येक नागरिक की द्रव्य आय के साथ उन सब उत्पत्ति के मूल्य को भी जोड़ा जाता 
है जिसका लोग स्वयं उपभोग कर लेते हैं, इसके साथ वस्व॒शओ्ओं ओर सेवाओं के रूप 
में प्रास होने वाली आय का मूल्य भी जोड़ दिया जाता है। जो आ्राय देश के निवाधियों 
को विदेशों से प्रास होती है वह जोड़ दी जाती है ओर विदेशियों को देश से मिलने 
वाली आय घटा दी जाती है। 

इस प्रकार जोड़ने धटाने से जो परिणाम आता है वह राष्ट्रीय आय है । 


क्‍ इन दोनों रीतियों में सारत: कोई अन्तर नहीं है क्योंकि देश में बिभिन्न वर्गो' 
द्वारा जो कुछ भी उत्पादित किया जाता है वह किसी न किसी की आय है-भले ही 
यह उत्पत्ति, स्कन्ध (870८2) के रूप में क्यों न रहे एक ही चीज को देखने के ये 
दो दृष्णिकोंण हैं | 

राष्ट्री-आय निकालने की एक तीसरी'रीति भी है जिसे सामाजिक-लेखा 
(80०४ ४०८०घ7४४१९) रीति कहते हैं। इस रीति में व्यक्तियों के लेन-देन की 
प्रणाली का अध्ययन किया जाता है जिसके आधार पर उन्हें वर्गो' के रूप में विभाजित 
किया जाता हैं । प्रत्येक वर्ग में एक प्रकार का लेन-देन ((72788८007) करने वाले 
व्यक्ति रहते हैं। इन वर्गों के लेन-देने से राष्ट्रीय आय या अन्य समूहों (३287०22:6७) 
की गणना कर ली जाती है। चू कि भारत में इस रीति का प्रयोग अभी नहीं किया जा 
सकता इसीलिए इस पर अधिक विचार नहीं किया जाएगा। 


राष्ट्रीय-आय सामग्री की परिसीमाएं ([्रा४007$ ०६ ग्रशा०7थ 
[000776 0209) : द 

राष्ट्री-आय की परिसीमाओं के मुख्य दो कारण हैं | पहला तो है उत्पादन या 
आय की ठीक परिमाषा करने का | इनकी परिमाषाओ्रों का विषय बहुत विवादास्पद है । 
दूसरा, सामग्री-संग्रहण की कमियों के कारण राष्ट्रीय आय का आगणन ठीक-ठीक नहीं 
किया जा सकता । 

परिभाषा-संबंधी विवाद पर यहाँ विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि विवाद 
का विषय मुख्यतः यह है कि राष्ट्रीय आय देश की अवस्था के बारे में कहाँ तक सही- 


भारतोय-संसक ४६ १ 


बात बताता है | यह मानते हुए मी कि परिमाषाश्रों में कोई गलती नहीं है, स्वयं राष्ट्रीय 
आय के आगणन में सांख्यिकीय दृष्टिकोण से गलतियाँ होती हैं । 

पहली समस्या दुह्दरी-गणना (90प०!८-८०प५४४४४) की है। सिद्धान्ततः यह 
कहना बहुत सहज है कि अगर किसी पदार्थ की एक बार गणना कर दी गई हो तो 
उसके उस अंश की गणना नहीं करनी चाहिए, जिससे कोई अन्य पदा्थ बनता हो । 
पर व्यवहार में ऐसा करना कठिन है । दुहरी-गणना की समस्या विशेषतः सरकार द्वारा 
की गई सेवाओं के सम्बन्ध में है । राज्य द्वारा बहुत कम मजदूरी या वेतन में काम 
करने के लिए जबदस्ती भर्ती के कारण राष्ट्रीय आय का अल्पानुमान 
(पम्रत&:2800047707) होगा । अवैधानिक कार्यों द्वारा प्राप्त आय या अवैधानिक 
उत्पादन की राष्ट्रीय आय में गणना “नहीं की जाती। यह मान लिया जाता 
है कि इस प्रकार की आय या उत्पत्ति नगण्य होगी। पर यह मान्यता कहाँ तक 
सच है, यह नहीं कहा जा सकता। प्रायः राष्ट्रीय आय की गणना बारह मद्दीने के लिए. 
की जाती है | इस कारण कुछ आयों को विशेषतः लाम को किसी निश्चित वर्ष के 
अन्तर्गत रखने में कठिनाई होती है । राष्ट्रीय आय में प्रकृति-दतत पदार्थों का आगणन 
नहीं किया जाता | कई कार्य, जो देश के लिए. अत्यन्त महत्वपूर्ण ओर पर्यात्त महत्ता 
वाले हैं, छोड़ दिए जाते हैं, जैसे णहणियों के कार्य, एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को की गई 
सेवा आदि । विशेषकर, राजनैतिक ओर वैज्ञानिक कार्यों का इनमें उल्लेख नहीं रहता। 
जब उत्पादक स्वयं अपनी उत्पत्ति के कुछ अंश का उपयोग करता है, तो इस अंश का 
मूल्यांकन करना भी एक बहुत बड़ी समस्या है, वैसे इसका राष्ट्रीय आय आगणन में 
ध्यान रखा जाता है। पर सामग्री की अ्रपर्यात्तता के कारण राष्ट्रीय आय का अल्पानुमान 
किया जाना--मुख्यतः कृषि-प्रधान देशों में--संभव है। 

भारत में राष्ट्रीय-आय-आगणन की कठिनाइयाँ (29८0०0४6७ ०६ 
४५६७००० [7८0776 रिह772007 7 ॥709) 


राष्ट्रीय आय की गणना द्रव्य के रूप में होती है। इसलिए, अगर राष्ट्रीय-आय 
का आगणन करना हो तो यह मान लिया जाता है कि देश में केवल द्वव्य-विनिमय 
प्रचलित है । आर्थिक रूप से विकसित देशों में इस मान्यता के कारण राष्ट्रीय-आय के 
आगणन में नगर्य प्रभाव पड़ता है। पर भारत में, जहाँ अब भी वस्तु विनिमय 
( 9५:८८८ ) काफी प्रचलित है, इस प्रकार की मान्यता के कारण राष्ट्रीय आय के 
आगशन में पर्याप्त विश्रम हो जाएगा। लोगों के लेखा न रखने के स्वभाव के कारण 


डं६२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


वस्तु-विनिमय के मूल्य को ठीक-ठीक आँकना संभव नहीं है। अतएव यहाँ के राष्ट्रीय- 
आय-आगणन में बहुत अधिक अ्रनुमान लगाना पड़ता है | दूसरी समस्या घरेलू-उद्योगो 
की है। यहाँ की अर्थ-व्यवस्था में इनका मुख्य स्थान है। घरों के सदस्य प्रायः कई ऐसे 
कार्य करते हैं जिन्हें अलग-अलग उद्योगों के श्रन्तर्गत रखा जा सकता है। अतएव 
लोगों का उद्योगों के अनुसार वर्गीकरण करना मी अ्रत्यन्य कठिन है । 

इसके अतिरिक्त भारत में सांख्यिकीय सामग्री का अभाव, यहाँ के राष्ट्रीय- 
आगरणन को मुख्य समस्या है। जेसा पिछले प्ृष्ठों को पढ़कर ज्ञात होगा, यहाँ के समंक 
अपर्याप्त, अपूर्ण और अप्रामाशिक हैं। आर्थिक किया के किसी भी क्षेत्र के समंकों के 
बारे में यह कथन सच है। अगर समंक ही प्राप्त न हों तो राष्ट्रीय आय के आगणन 
में पर्याप्त परिशुद्धता प्राप्त करना संभव नहीं है । जहाँ तक पहली कठिनाइयों का प्रश्न 
है, उसके बारे में शीघ्रतापू्वंक कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि वे आर्थिक विकास के 
स्तर पर निर्भर रहती है। पर इस सामग्री की अनुपलब्धता दूर की जा सकती है और 
इसकी ओर प्रयत्न किए जाने चाहिए | 


भारत की राष्ट्रीय आय 


भारतीय राष्ट्रीय आय के अनुमानों तथा उन रीतियों के बारे में जिनके द्वारा 
राष्ट्रीय आय का अनुमान किया गया, कुछ भी कहने से पूर्व, यह समझ लेना आवश्यक 
है कि यह समझ लिया जाय कि अपने देश में राष्ट्रीय आय अनुमान की रीतियाँ सामग्री 
की उपलब्धता पर निर्भर रही है। समय-समय पर जो राष्ट्रीय आय के अनुमान किये 
गये हैं वह उस समय उपलब्ध सामग्री की परिसीमाओ्रों को ध्यान में रुख कर तथा उन 
परिस्थितियों में सम्मव रीति द्वारा किये गये हैं| अधिकतर अनुमानों में ऊपर दी गई 
दोनों मुख्य रीतियों का साथ-साथ प्रयोग किया है । सन्‌ १६३४ में बाउले रात्रटेसन 
कमेटी (80ल्‍6ए र००670800 (८०007777066) ने भी यही सुकाव दियां था कि 


भारत की राष्ट्रीय आय मालूम करने के लिये दोनों रीतियों का साथ-साथ प्रयोग 
किया जाय। 


दादा भाई नोरोजी ने सर्व प्रथम सन्‌ श्८६८ में मारत की राष्ट्रीय आय का 
अनुमान लगाया था | तत्पश्चात्‌ क्रामर और बारर ((+0070% बात 53790प:), 
लाड्ड कंजन ([.,070 (७८2००), डिग्बी, ([08//), शिराज (509799), शाह और 
खंबट (5॥4870 20व ॥:04770॥259), वाड़िया ओर जोशी (ऐ४०0॥9 270 
]०8%7), बकील और मुरंजन ( उ४८ा। ब्यते पाथा]27 ) तथा बी० के० 





भारतीय-संमक्त बह. 


आर० वी० राव (५. ६. ४. ५. १४०) ने भारतीय राष्ट्रीय आय के अनुमान 
लगाये | इन अनुमानों में डा० वी० के० आर० बी० राव के अनुमान कुछ समय पूर्व 
तक सबसे अधिक प्रचलित थे | डा० राब ने भी दोनों रीतियों का एक साथ प्रयोग 
किया था। 


अगस्त १९४६, में भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय आय समिति (4४०४० 
700776 (.0०0077::6४) बनाई ताकि मारत की राष्ट्रीय आय का सही-सही अनुमान 
लगाया जा सके | इस समिति ने भी उत्पादन-संगणना रीति तथा आय-संगणना रीति, 
दोनों का प्रयोग साथ-साथ किया | 


सर्वश्रथम इस समिति ने देश की कुल कार्य करने वाली शक्ति ( फ०0:६378 
६07८6 ) की गणना की । इसके पश्चात्‌ इस संख्या को विभिन्न व्यवसायों के अनुसार 
वर्गकृत किया । तत्पश्चातू उत्पादन-संगणना रीति द्वारा कृषि, उद्योग, चन, खनन, 
इत्यादि वर्गों की आय का अनुमान लगाया । यातायात, व्यवसाय, सरकारी*कर्मचारी 
तथा अन्य पेशों की आय का अनुमान आय-संगणना द्वारा लगाया | 


राष्ट्रीय आय समिति ने, जो उद्योगों के अनुसार वर्गीकरण किया उसके मुख्य 
तथा उप-विभाग निम्नलिखित हँ--.- 
(१) कृषि (3 277८ए८६प८८) 


(क) कृषिपशुपालन और सहायक काम (शाला भरमाणान्नों 
शप्र४09707ए बाते 2प5७॥|५४ए 2८0४॥:65) 


(ख) वन-उद्योग (80:०50:ए) । 
(ग) मछली-उद्योग (£8067ए) 
(२) खनन, निर्माण ओर घरेलू घन्वे (१(॥0/78, ऐ(0०६३८४प४ 7१९ 
6८ िंगणवे 74065) 
_(क) खनन (एमए) . 
(व) फेक्टरी-अद्ष्ठान (2८६०५ए 48020]9970८7/5 ) 
_(ग) छोटे पैमाने के उद्यम (5908 ८४८४०४5०$) । 


(३) वाणिज्य, यातायात और सवाइन ((८०7707८:८०, [89070 
बायव (०फ्ाष््रपणंटद्ा07) | 


डह ४ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(क) संवाहन-डाक, तार ओर टेलीफोन (००ण्रप्णं८४00, 908, ६26- 
2720॥ 270 ॥6]697076) 

(ख) रेलवे ( £2[५०५9) 

(ग) संगठित अधिकोषण और बीमा ( ०ाइ्चथ्णां5०१ फयोरगरह 00 
780979706) 

(घ) अन्य वाणिज्य और यातायात (0006४ ८07र77९7८९ 6८ :79/8]007:) 
(४) अन्य सेवाएँ (()06८ 8८:ए१८९७) : 

(क) पेशे और कला (970(०४४075 5८ [.०४७) ४705) । 

(ख) राजकीय सेवाएँ: (शासन) (8०ए०पप००ए $९:ए३८९४ ( #वफ्ां- 
70487207) । 

द (ग) घरेलू सेवाएँ (60776900 8९८:४१८७७) । 

(घ) गह-सम्पत्ति (0056 9707०70५) । 

इन वर्गो में पहले दो के लिए, जो राष्ट्रीय आय का लगभग ६६% है, आ्रागणन 
उत्पादन-संगणना रीति के अनुसार किया गया और शेष दो के लिए * आय संगणना 
रीति के अनुसार | 

नीचे दी गई सारणी में राष्ट्री-आय-समिति द्वारा अनुमानित, १६४८-४६ से 
१९५१-५२ तक की भारत की राष्ट्रीय आय दी गई है : 

आओद्योगिक मूल से भारत के राष्ट्रीय आय आगणन १९४८-४६से १६५१-४२ 
पिन्ना07 [0९076 €४072065 07 [009, एए क्‍70प05एस॥) 0:887--- 














7948 49 [0 7957-52 #( अब्ज रुपये में ) 
उद्योग १६४८-४६ १६४९-५० | १६४०-५१ | १९४१-४२ 
कृषि : 
कृषि, पशुपालन ओर सहायक 
काम ४१९६ ४डरेप्प डेप हि 
वन-उद्योग ०९६ ०७ ०*७ ०७ 
मछली-उद्योग ०३ ०४ ०४ ०४ 
द कुल-कृषि ४२५ ४४०९ ४८१९ ४९,९ 
खनन, निर्माण और घरेलू। ०६ [८-६ ०७ ०.९ 
... घधम्घे 




















# अब्ज-- १०० करोड़ 


खनन 
फैक्टरी अधिष्ठान 
छोटे पैमाने के उद्यम 
कुल खनन, निर्माण 
ओर परेलू धन्धे 
वाणिज्य, यातायात और 
संवाहन 
संवाहन (डाक,वार टेलीफोन) 
रेलवे 
संगठित बैंकिंग ओर बीमा 
अन्य वाशिज्य और यातायत 


कुल-वारिज्य, ० 


ओर संचार है 

धन्य सेचाए 

पेशे ओर कला 

राजकीय सेवाएँ 

घरेलू सेवाएँ 

गह-सम्पत्ति 

कुल अ्रन्य सेवाएँ: 

साधन लागत पर वास्तविक 
देशी उत्पादन (४८४ 00- 
77८806 (97000८(६ ४ 
(980(07 ८058 

विदेशों सेश्र जिंत वास्तविक 
आय (४४८८ ९३४720 
[7007976 (70700 297090 
साधन लागत पर वास्तविक 
राष्ट्रीय उतपत्ति (२८४ 
720072]| ०0प्रा०9प 2६ 
2८0०: ८००४) _  _: 9 स $७फ ७ ७क्‍ उ 0 उीऋ 


भारतोय-संमक 












































४६५ 
बा फ््ड मा ज्‌ ६.६ 
प्‌ ७ ५० ५'र्‌ ९,प, 
१४८ १५१० १५३ १७.३ 
०*३३ ०'ये ०९४७ ०, ४ 
९७ श्ष श्य्र २.१ 
०'फप्रू ० ० 9 ०.८ 
१३५ १३६ १४.० १४.६ 
२६० | (९९ १६९ २७.९ 
४ रे है. ४ प्ूू 5 
४९० हो ४९३ ५ 
१९२ श्र १.३ १.४ 
३.६ ४१० ४.९ छह. 
१३५ १३ ८ (४६५ १५.० 

८६०७ ९०'३. | _६*४ | १००, 
“० र्‌ “-+०'र “०९२ “० रे 
प्प६*५ २९०*१ ६५.३ ६९.९ 





४६६ सांस्यिकी के सिद्धान्त 


राष्ट्रीय आय के लिए. पहले जो मुख्य आगणन किए. गए थे इसको सूचना 
निम्नलिखित सारणी में आगणन करने वालों के नाम, वह वर्ष जिसके लिए. आगणन 
(किए. गए थे, ओर प्रति व्यक्ति राष्ट्र आय (9०८ ८४०408 04079 4९0776) के 
'साथ दिए गए हैं। 























|... आगण वर्ष, जिसके लिए, प्रति प राष्ट्रीय 
। ट आगणन किया गया आय (र में) 
| (१) दादा भाई नौरोजी श्थष्प २० 
4 (२) क्रामर और बाबर १८८२ २७ 
। (३) ए फ़डी. अटर्किस्सन श्ध्पण ३५२ 
| (४) ला्ड कर्जन १८९७-९८ ३० 
| (५) विलियम डिग्बी श्प९६ १७५ 
(६) वाडिया ओर जोशी १६१३-१४ ड४ड ५ 
। (७) शाह और खम्बादा १६२१ ६७ 

(८) फिन्डले शीराज १६२२ ११६ 
। (९) वकीले ओर मुरंजन १६२५ ह 'छ४ 
(१०) व्ही, के. आर. १६३१-३२ ६५ 
व्ही. राव 
(११) 9५ की १९४२-४२ द ११४ 











राष्ट्रीय आय के समंकों की आपस में तुलना करते समय बहुत सावधानी बरतने 
की आवश्यकता है अ्रन्यथा विश्रमात्मक परिणाम निकल सकते हैं| किन्ही दो वर्षो, की 
राष्ट्रीय आय की तुलना करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इन दो वर्षो' 
में देश के सामान्य मूल्यों में अन्तर रहा होगा । यदि एक व से दुसरे वर्ष में राष्ट्रीय 
आय <दुगनी हो गई है ओर इसी समय में मूल्यों का स्तर भी दुगना हो गया है तो यह 
परिणाम नही निकाला जा सकता कि देश की आथिक अवस्था में कोई विशेष सुधार 
हुआ है। इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि विभिन्न समयों में 
राष्ट्रीय आय अनुमान की रीतियों तथा ज्षेत्रों में भी अन्तर हो सकता है। इन बातों 
को ध्यान में रखकर ही राष्ट्रीय आय से देश की आशिक परिस्थिति का अश्रनुमान लगाया 
जा सकता है। 


श्२ . भारतीय-संमक ४६७ 
राष्ट्रीय-निदशन-अधीक्षण (४४८07 4] 952॥70]6 5पा४८५9) 


भारत में समंकों की कमी को दूर करने के लिए, सन्‌ १६४९ में प्रधान मन्त्री 
पं० नेहरू ने यह इच्छा प्रकट की कि निदर्शन-अ्रधीक्षण द्वारा आवश्यक समंक संग्रहित 
किए. जाँय | तदनुसार सन्‌ १६५० में वित्त मंत्रालय ( £77%708 7775079) के 
अन्तर्गत राष्ट्रीय निदर्शन-अधीक्षण का दफ्तर खोला गया। इसका उद्देश्य दैवनिद्शन 
द्वारा विभिन्न आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित समंक एकत्रित करना है। 
तब से अब तक इस संस्था ने दैवनिदर्शन रीति द्वारा बहुत से अनुसंधानों का आयोजन 
किया है और इस प्रकार उपलब्ध समंकों का पंचवर्षीय योजना तथा अन्य योजनाओं 
में प्रयोग भी किया गया है। भारत में रहने वाली लगभग ७ करोड़ ग्रहस्थियों के 
बारेनमें सामग्री एकत्र करने के लिए दैवनिदर्शन रीति का अपनाया जाना स्वाभाविक 


ही है। 


इस संस्था के अन्तर्गत ३०० से अधिक शिक्षित तथा योग्य कार्यकर्ता देश 
भर में फैले हुए हैं और वे विभिन्न अनुसंधानों से सम्बन्धित समंक एकत्र किया करते 
हैं | एकत्रित सामग्री का विश्लेषण इंडियन स्टैयिसटिक्ल इन्सटिट्यूट ([70]20 5&8- 
(८४ [75::प८) कलकत्ता, में किया जाता है। अब तक इस प्रकार बहुत से 
आर्थिक तथा सामाजिक प्रश्नों के तत्सम्बन्धी समंक एकन्नित किए जा चुके हैं । 





इस संस्था के पहले अधीक्षण में १,८३३ गाँव चुने गये थे, जिनमें से ११८९ 
गाँवों में रहने वाले गहस्थियों के बारे में समंक राष्ट्रीय-निद्शन अधीक्षण संस्था को 
तथा ६४४ गाँवों के बारे में गोखले इन्स्ट्ट्यूट( 50]702]6 09760/6 ) पूना को 
एकत्रित करने ये । राष्ट्रीय-निदर्शन-अधीक्षण संस्था ने वास्तव में ११११ गाँवों का ही 
अधीक्षण किया। इस प्रकार प्राप्त सामग्री का प्रकाशन किया जा चुका है! 


क्‍ यह संस्था भारतीय समंकों की एक बहुत बड़ी कमी को पूरा कर रही है, देव- 
निदर्शन की रीति से कम समय तथा कम व्यय करके ही विभिन्न आर्थिक समस्याओं 
के बारे में समंक संग्रहित किए. जा रहे हैं ताकि देश की आर्थिक योजनाएँ समंकों के 
अभाव के कारण किसी प्रकार की कठिनाई का अनुमव न करें | यह आशा की जा 
सकती है कि भविष्य में हमें बहुत से ऐसे विषयों पर आसानी से समंक ग्रात्त हो सकेंगे 
जिनके बारे में इस समय हमारे पास किसी प्रकार की सांख्यिकीय सामग्री नहीं है । 


४९८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 


भारत में समंकों की सायान्य कमियाँ 
(6ललाब 5009#00777828$ ०६ 7087 5020 97८७) 


भारत में सांख्यकीय सामग्री की कमियाँ स्वोतोमुखी हैं। पिछले अनुच्छेद 
में दिए गए विवरण में प्रत्येक शीर्षक के अन्तगंत यह कहा गया है कि उपलब्ध 
समंक अपरिशुद्ध, अप्रामारिक, अपर्याप्र, अपूर्णो और असंगत हैं. । ये तो मारतीय 
समंकों की मुख्य कमियाँ हुई । इसके अतिरिक्त सामग्री के'संग्रहण में और उसे 
प्रस्तुत करने में किसी प्रकार का समन्वय नहीं है । प्रकाशित सामग्री स्वयं अपने 
को स्पष्ट नहीं करती । सामप्री के प्रकाशन में भी अनावश्यक देर की जाती है। 


जहाँ तक अपरिशुद्धता का प्रश्न है, यह मुख्यतः कृषि सम्बन्धी समंकों के लिए 
सही है । जैसे कृषि समंकों के अन्तर्गत बताया गया है, प्रायः प्रत्येक राज्य में ये सरमक 
ऐसे लोगों के द्वारा जमा किए जाते हैं जो अन्य कार्यों के भार के कारण सामग्री 
संग्रहण में कोई दिलचस्पी नहीं रखते | समंक भेजने में, ऐसा माना जाता है कि, ये 
न केवल दीलढाल ही करते हैं, बल्कि, साथ ही साथ, स्वयं उस स्थान पर जाकर 
तथ्यों का अध्ययन नहीं करते ओर अनुमान से समंको को भेज देते हैं। ये साँख्यिकीय 
रीतियों से अपरिचित रहते हैं, इसलिए, ये उचित रूप से समंक संग्रहण नहीं करते, 
इन कारणों की वजह से भारतीय समंक अ्रप्रामाशिक भी हैं। इसके अतिरिक्त समंकों 
की अपरिशुद्धता का कारण ऐसी रीतियों का उपयोग करना भी है जिनमें अमिनति की 
बहुत गुंजाइश रहती है। आजकल इस बात के प्रयत्न किए. जा रहे हैं कि अपरिशुद्धता 
के इन खोतों को हटा दिया जाय । पर अब भी कई राज्यों में (वस्तुतः भाग क राज्यों को 
छोड़ कर लगभग सब में) ये दोष विद्यमान हैं | जीवन संमकों में तो अभी बहुत 
अधिक सुधार करने की आवश्यकता है । 


सामग्री की अपर्याप्तता भी भारतीय संमकों का मुख्य दोष है। सामग्री की अपर्या- 
प्तता का उपयोग दो अर्थों में किया जा सकता है | एक किसी विष्रय-विशेष के सम्बन्ध 
में कोई सामग्री उपलब्ध न हो, दूसरे, किसी विषय के किसी भाग के बारे में संमक 
उपलब्ध न हो। भारत में दोनों प्रकार की अपर्याप्तता है। अ्रपर्यातता के सम्बन्ध में 
“इकॉनॉमिक्‌ एनक्वाइरी कमीटी! (8607०फ्रं८ फ्रावुणं:ए (८००77६८००) ने 
१९२५ में तीन प्रमुख विषयों सम्बन्धी संमकों को रखा था। ये निम्नलिखित हैं 


(१) उत्पादन के अतिरिक्त अन्य सामान्य संमक जो वित्त, जनसंख्या, व्यवसाय, 
यातायात संवाहनं) शिक्षा, जीवन-संमक ओर प्रवास से सम्बन्धित हैं। 


भारतीय-सं मक ४६६ 


(२) उत्पादन के संमक जो कृषि, चरागाह, डेरीफार्मिज्ञ, वन, मछली उद्योग 


खनिज-पदार्थों, बड़े पैमाने के उद्योगों, घरेलू उद्योग-धनन्‍्धों और छोटे पैमाने के 
उद्योगों के सम्बन्ध में हैं । 


(३) आय, धन (ए८७६/), निर्वाह-व्यय, कर्जदारी, मजदूरी और मूल्य आदि 
आगरशणन से सम्बन्धित है। 

कमेटी के अनुसार पहले भाग के समंक अधिकांशतः पर्यात हैं। दूसरे के संमक 
कुछ मामलों में तो पर्याप्त हैं, कुछ में अपर्यात्त ओर कुछ में पूर्णतः: असन्तोषजनक हैं 


. और तीसरे प्रकार के संमकों को प्राप्त करने के लिए कोई सनन्‍्तोषजनक प्रयत्न नहीं किया 
गया है। 


यह मानना पड़ेगा कि १९२५ के बाद इस दिशा में प्रयत्न किया गया है और 
संम॒कों की पर्यातता पर ध्यान दिया गया है। पर विषय की महत्ता (778877:70८०) और 
उसके महत्व और विस्तार को देखते हुये ये प्रयत्न नगण्य हैं| अब भी भारत में 
तीसरे विषय सम्बन्धी संमक उस परिमाण में “उपलब्ध नहीं हैं जिसमें उनकी आवश्य- 
कता है । 


भारतीय संमक न केवल इस मामले में अपूर्ण हैं कि वे भारत के सब स्थानों से 
सम्बन्धित सूचना नहीं देते हैं, बल्कि, साथ ही साथ, इस मामले में भी अपूर्य हैं कि 
इनसे किसी भी विषय के बारे में पूरी सूचना नहीं मिलती । स्वतन्त्रता के पूर्व पहली 
प्रकार की अपूर्णता का कारण यह था देश के दो भाग--ब्रिटिंश भारत और देशी 
राज्य थे। स्वतन्त्रता के बाद इस बात की ओर यथेष्ट ध्याव दिया गया है और लगभग 
सब राज्यों के बारे में संमक कुछ हद तक उपलब्ध हैं | इस अपूर्णता का एक कारण 
यह है कि अब तक विषयों की परिभाषा, क्षेत्र ओर स्वमाव के बारे में एकमतता नहीं 
आई है। प्रायः संमकों का नई परिभाषा ओरे क्षेत्र के अनुसार संग्रहण किया जाता है, 
इस कारण सामग्री तुलना योग्य नहीं रह पाती, और संमक समय के अथः में भी 
अपूर्ण हो जाते हैं | पहले किसी समन्वयकारिणी (८0-0707%0778) संस्था के अभाव 
की वजह से सामग्री प्रायः असद्भधत (7८07»8:67॥) होती थी | आजकल इस के 
लिए पूर्ण प्रयास किए. जा रहे हैं ओर आशा है कि उनके परिणाम शीघ्र उपलब्ध हो 
जाएँगे । 


प्रकाशित संम॒कों की अस्पष्टता भी उनका मुख्य दोष है | जैसा पहले बताया जा 
चुका है, सामग्री इस प्रकार प्रस्तुत की जानी चाहिये कि वह अपनी व्याख्या स्वयं कर 





५०० द सांख्यिकी के सिद्धान्त 


दे | पर भारतीय संमकों को उचित रीति से प्रस्तुत नहीं किया जाता रहा है। अतएव 
उनके क्षेत्र की परिभाषाएँ, सड्डलन की रीतियाँ, ओर उनकी परिसीमाएँ ठीक-ठीक 
ज्ञात नहीं हो पाती हैं| इस कमी को दूर करने के लिए कुछ समय से भारत सरकार 
द्वारा गाइड ठु करेन्ट ऑफोशियल स्टैटिसटिक्स (5४48 00 (फा८ए४ (॥- 
लंब!ं 55208008) प्रकाशित किये गए हैं। इसके अतिरिक्त आजकल प्रायः 
सब सांख्यिकीय प्रकाशन परिशिष्ट में संमकों के क्षेत्र, उनकी परिभाषाएँ और उनकी 
परिसीमाओं के बारे में आवश्यक सूचना देते हैं । 


.. संमकों के प्रकाशन में होने वाली देरी केवल लापरवाही का परिणाम है। प्राय: 

यह देखा गया है कि संमकों का प्रकाशन तब होता है जब उनकी व्यावहारिक उप- 
योगिता बिल्कुल समाप्त हो जाती है और उनमें केवल भूत काल की अवस्था के संमक 
होने के. कारण ही दिलचस्पी ली जा सकती है। प्रकाशन में होने वाली देरी का एक 
कारण तो यह है'कि प्रश्नावलियों के उत्तर या अन्य सांख्यिकीय प्रतिबेदनों (:८[०0705) 
_ को भेजने में बहुधा लापरंवाही के कारण अनावश्यक देरी कर दी जाती है। इसलिए 
उनका देर में प्रकाशित होना स्वाभाविक ही है। पर प्रकाशन में और अधिक देरी होने 
का कारण सरकारी विभागों द्वारा की जाने वाल्ली .देरी है । इस बात का हमेशा ध्यान 
रखना चाहिये कि अगर संमकों का प्रकाशन बहुत देरी से किया गया तो वे व्यावहारिक 
उपयोग के लिए व्यर्थ हो जाते हैं ओर इसलिये अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफ़ल 
नहीं हो पाते | सरकारों की ओर से संमकों का शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशन करने की व्यवस्था 


की जा चुकी है ओर की जा रही है। यह आशा की जा सकती है कि कुछ समय बाद 
प्रकाशन में बिलकुल भी देरी नहीं होगी । 


 प्रश्नावली 


(१) १६५१ को जनगणना पर एक संक्षिप्त आलोचनात्मक टिप्पणी 


(बी० कासम०, इलाहाबाद, १६४२) 
(२) जनगणना के उद्देश्य का वन कीजिए | 


लिखिये 


्ि (बी० ए०, आगरा, १९३०) 

(३) “इंडियन सेन्सस रिपोर्ट' (7020 (८४5७७ ७७००) में 
'विश्नम के मुख्य स्रोतों को बतल्ाइए ओर भविष्य में इन विश्रमों को दूर करने 
की रीतियों का सुझाव भी दीजिए । (बी० काम ०, इलाहाबाद, १६३३) 


भारतीय-संमक ५०९१ 


(४) जनगणना प्रतिवेदनों (८००४५४ ४८००:४५७) के उत्पादकों, निर्माण 
कर्ताओं ओर व्यापारियों के लिए संभव सहत्व (05४7!७ ४००८) पर विचार 
कीजिए | भारतीय जनगणना प्रतिबेनों (770|४0 (८००३४०४ 7८००7४७) को इन 
लोगों के लिए अधिक उपयोगी किस प्रकार बनाया जा सकता है ? 


(बी० कॉम ०, नागपुर, १९४५) 
(४) भारत में उपलब्ध कृषि-संमक निम्नलिखित बातों में अपूर्ण और 
अपर्याप्र है : (क) सूचना देने वाले प्रदेशों के लिए क्षेत्र और उत्पादन सम्बन्धी 


सामग्री प्राप्त नहीं है, (ख्व) स्थायी बन्दोब॒स्त वाले प्रदेशों से सम्बन्धित सूचना - 


सन्तोषज्ञनक नहीं है, ओर (ग) उत्तत्ति-अंकों की परिशुद्धता-स्तर में अभी बहुत 
कुछ करना है !! 


प्रत्येक दिशा सें सुधारों के लिये सुझाव देते हुये इस कथन की टीका 


करिये । क्‍ (बी० कॉम०, एलाहाबाद, १९४१) 
(६) भारतीय ओद्योगिक संमकों के स्वभाव और-त्षेत्र पर एक स्पष्ट नोट 
लिखिए । (बी० काँम०, इलाहाबाद, १९४३) 


(७) भारत में निम्नलिबित विषयों के सम्बन्ध में कया सूचना 
उपलब्ध हैं . क्‍ 
(क) आयात और निर्यात (ख) मूल्य, (ग) कृषि-संमक | 
इनकी यथे५्टता 'की परीक्षा करिये | 

(बी० कॉम ०, इलाहाबाद, १९४३) 
(८) भारतीय जनसंख्या-संमकों के मुख्य लक्षणों पर विचार कीजिए । 
इनको अधिक प्रामाणिक और उपयोगी बनाने के लिए आप क्या सुमाव 
देंगे ? द (एम० ००, इलाहाबाद, १९५१) 
९) १९५१ की भारतीय जनगणना की रीति के दोषों पर विचार 
कीजिए । आप इसमें क्‍या सुधार करेंगे ! (एम० ए०, इलाहाबाद, १९४२). 
(१०) भारत में कषि-संमक किस प्रकार संग्रहित ओर संकलित किए जाते 
हैं? सुधार के लिये सुझाव दीजिए । . (एम० ए०; इलाहाबाद, १९४५३) 


(११) भारत में निम्नलिखित विषयों पर उपलब्ध सांख्यिकोय सूचना 
पर एक आलोचनात्मक नोट लिखिए । ' 


५० २ सांख्यिको के सिद्धान्त 


(क) बारणिज्य-फसलें । (ख) आयात और निर्यात । (ग) औद्योगिक 

उत्पादन । (घ) अन्तर्देशोय व्यवसाय । (छः) जीवन-संमक । 
(एम० ए०, इलाहाबाद, १९५४ ) 

(१२) कालिक संभकों का क्‍या महत्व है? ये भारत में कहाँ तक 
उपलब्ध हैं (एस० ए०, इलाहाबाद) 

(१३) कृषि-उत्पत्ति के कुशल विपणन के लिये यह आबश्यक है कि क्रेता 
ओर विक्रेता, दोनों के पास परिशुद्ध ओर पर्याप्त उपपादन सम्बन्धी, स'मक, 
उत्पत्ति के चलन (7707०77८700) सम्बन्धी समक, ओर विभिन्न बाजारों में 
प्रचलित मूल्य सम्बन्धी समक बिना काल-विलम्बना (६77८-०४) के रहें । 
कृषि-विपणन-संमक कहाँ तक इसे सन्तुष्ट करते हैं । इसके सुधार के लिये उपायों 
का सुझाव दीजिए । (एम० ए०, इलाहाबाद, १९५१) 

(१४) निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियों लिखिए : 
... (क) भारत की राष्ट्रीय-आय । (ख) १९४१ की भारतीय जनगणना। 
(ग) भारतीय फसल्-पूर्वानुमान । (एम० ए०, इलाहाबाद, १६५४१) 

(१४) हाल में भारत की राष्ट्रीय-आय की गणना करने की रीति पर 
संक्षेप में विचार करिये। इसमें किन कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ा। 

(एम० ए०, इलाहाबाद, १९४५३) 

(१६) उत्पादन-सगणना का क्या अथे है? ऐसी संगणना क्‍यों की जाती 
हैं? इस सगणना को भारत में करने के दृष्टिकोण से औद्योगिक-संमक 
अधिनियम कहाँ तक पर्याप्त है ? (एसम० काम ०, इलाहाबाद 

(१७) मूल्य संमकों के महत्व की व्याख्या करिये और भारत में इस 
सम्बन्ध में उपलब्ध सामग्री के स्वभाव और क्षेत्र की परीक्षा कीजिए । 
क्‍ (एम० काम०, इलाहाबाद, १९४७) 

(१८) भारत में राष्ट्रीय-आय-आगणन की कया विशेष समस्‍्याएँ हैं ? 
भारत की आय के गणना करने में काम में लाई जाने वालो रीतियों का संक्षेप 
में वर्शन करिये । (एम० काम०, इलाहाबाद, १९४२) 

(१९) निर्माण-उद्योगों की संगणना पर विस्तार पूर्वक लिखिए । 


(२०) भारत में पैदावार संमकों की गणना करने की रीतियाँ दीजिये। 
इनके लाभ ओर इनकी हानियाँ भी बतलाइए । 


(२१) राष्ट्रीय-निदशन-अधीक्षण (१4४०४४ 380779]० $7:ए०ए) के 
बारे में आप क्या जानते है? संक्षिप्त विवरण दीजिए । 


सांख्यिकीय शब्दावली 


इस शब्दावली में हिन्दी पर्याववाची शब्द अधिकतर वही हैं जो आचाये 
रघुबीर, आचार्य अधोलिया तथा आचार्य बल्दुआ ने वर्धा से प्रकाशित “सांख्यिकी- 


शब्दकोष” में दिये हैं। 
0.90707779) 
2.9825594 
3.080प6 
2 ८८प४०३०ए 
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2 $5पागटते 
2) 5ए॥7776770%9) 
3 8००१०९ ००० 
477 प]65 
0 ए८7292० 

0 7:776(८ 2« 


असामान्य 

भुज 

अचल, निरपेक्षु, प्रकेवल, परम 
परिशुद्धता 
वास्तविक, तथा भूत 
संकलन, योग 
समूह 

प्रतिच्छेदा 

परिशिष्ट 
व्यावहारिक 
उपसदन, उपसादन 
समान्तर वृद्धि 
विन्यसन 
अनुविन्यसन 
आरोही 

सम्बन्ध 
शुण-सम्बन्ध 
कल्पित 

विषम, असंमितीय 
असम्मिति 

गुण 

माध्य 

सम्तान्तर माध्य 


पृ०४ 


055प॥7९० 4. 
0. (6९०449407॥ 
0. ४॥70॥: 
0.. ०६ 7200 
6. एथ ८ 
4288८790ए४ 2. 
(०८०77207९८ 9, 
[१97770॥0 9. 
४077९ 9. 


7%09॥658ए८ 2," 


५७0९४ 2. 
१४४८४४६८० 9, 
2 5व5 
डिद्रा। 8982:थ7 
(,070[0079८7( 9. 
(.0770/008706 9. « 
0020709)| 9. 
पा ४96 9. 
?87८९7/३26 0. 
७॥77]6 9. 
5प7-9647]060 9, 
८४४८४ 9. 
3286 
.. 5. ॥986 
72॥86९ 0. ]]06 
2670 9. ]॥7८ 
.3980 
356-592960 टप्+प८ 
3680 (60, 776 0६ 
.325 द 


सांख्यिकी शब्दावली 


कल्पित-माध्य 
माध्य-विचलन 
माध्य-विश्रम 
मूल्यानुपात-माध्य 
माध्य-अर्हा 
बर्ण॑नात्मक माध्य 
गुणोत्तर माध्य 
हरात्मक माध्य 
चल-माध्य 

प्रगामी माध्य 
प्रारूपिक माध्य 
भारित माध्य 

श्र््तु 

दण्ड-चित्र 

घटक दण्ड 
संग्रथित दण्ड 
क्ैतिज दश्ड 
बहुगुश दशड 
प्रतिशतता-द्‌ण्ड 
एकी दण्ड, सरल दण्ड 
अन्तविभक्त-दश्ड 
उदग्र दण्ड 

आधार 

आधार रेखा 

कूट आधार-रेखा 
शून्य आधार-रेखा 
आधार भूत 
घंटाकार वक्र 

उत्तम अन्वा युक्त रेखा 
अमिनति (पक्ुपात) 


95998960 

3. 2४॥0+ 

3. 8$९०।९८७०४ 
8]70774/ 

8. 088॥न9000407 

3. (607:6॥7 
8084708$ 80978[4८5 
(9]0५]०/(:८ 
(.20५20707 
(205८ 200 ९९८४ 
(८7805 

(... 00 9720$पोका07 

(.. 0 [700प0८009 
(.90 

(.., 225८ 

(., 72८]20२८ 

(.. 70!८ 
(.]2708९ $2[2८007 
(.9720[८॥8705 

70९800[900ए6 ८. 

िपा76॥0००७) ८. 


(272८0९८॥750८$ (०६ 087707775$) पूर्णांश 


(.(%77 
(४70 ८. 
७॥79१6 ८. 
(+८पा 27 
(9585... 
(.. ४८०१०८८०८५ए 
(.. [76709 
(.. [77(5 


सांख्यिकी के सिद्धान्त ५०० 


अभिनत 

अमिनत विश्रम 
अभिनत प्रवरणु 
द्विपद 

द्विपद वंव्न . 
द्विपद प्रमेय 
व्यापार सांख्यिकी 
गणन 

गणना 


' कारण तथा ग्रभाव 


संगणुना-गणना 

जन-गणुना 

उत्पाद-गणुना 

श्र खला 

श्र खला-आधार 

श्र खला-मूल्यानुपात 

श्रं खला-नियम 

देव-प्रवरण 

लक्षुशु 

वर्णनातव्मक लक्षण 

सांख्य लक्षण, अंकात्मक लक्षुण्णु 
चित्र 

अनुपात-चित्र 

सरल चित्र (अननुपात-चित्र) 
वृत्ताकार 

बगे 

वर्ग-वारंवारता 

वर्गान्‍्तर 

वर्ग-सीमा 


३०६ सांरिपषकीय शब्दावली 


(.. 7222777:70 ० 
(]2855704007 


वर्ग-विस्तार 
वर्गीकरण 


(.. 22८070॥7029 (0 ४/४४00०(८$ गशुणानुसार वर्गीकरण 


( 3९८८07:008 ६0 ८985 
[70८:ए 95 


(.. 0६ 624 
(.0०-28८6४४ 
(, ०0६ 385002007 


(:, 0६7 2000८777९70 66९०|49007 


(2. 0६ ८0770]90007 

(.. 0६ 6९४20807 

(.. 0९ $६८०७०॥८55 

(., 0६ ए३॥9/07 
(.0]]8८007 
(.07770076॥६ 
(0777ए ४070 
(.070034070 
(,07८7:८६+८ 
(,00८प४/९7६४ 

(. 0€र!४८0०0 
(:0786८प07८ 
(07#77प7005 $8८728 
(.0-07004॥2, 20-070[7%/0007 
(077८८ 

(.. 06207 42:८ 
(.0772]4097 

(0०-6मिटाथगध 0६ ८. 
(.प्राआप्र॥0५४८ 

(., 4760८९४८ए 


|; वर्गान्‍तरानुसार वर्गीकरण 


(. 20८0707098 ६0 0800070709 


इन्द्र-भ'जन-वर्गकिरणु 
सामग्री वर्गीकरण 
गुणक 
सम्बन्ध गुणक 
संगामी विचलन गुणक 
सहसम्बन्ध गुणक 
विचलन गुणक 
विष्रमता-गुणुक 
विचरण-गुणक 
संग्रहण. 
अ्रंग, संघटक, 
संगणुन 
परिणाम 
मृत, यथार्थ, 
संगामी 
संगामी विचलन 
अनुगामी 
संतत माला, संतत श्रेणी 


. समन्वय 


संशोधित 

संशोधित मृत्यु-अर्घ 
सहसम्बन्ध 
सहसम्बन्ध-गुणुक 
संचयी 

संचयी वारंवारता 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


(.. ८९705 
(पाए 
]-४7996 ८. 
[,0602 ८. 
(22ए6 ८,-:८८पा|एपा॥-ए८ 
ध८्वृष्बगटए ०... 
(.ए0॥0 ह 
(ए८[०४] ६[]0८:प०४४078 
[2302 
[ै07708०7९07ए 65: 6. 
?/7747ए 0. 
र्ि९०7686.90ए८ 0. 
8९८070697ए 0. 
50७790]ए ०६ 4. 
5820॥0ए ० 6. 
ए+॥60:09707ए ० 6. 
[0९2(0-72:८ 
[222/6९८ 


[0. ०६ ३८८पा2८ए 
[)68८7977ए6 ४४९:०९८ 
70274%6007 

4७950]प0५९ 779025776 ०0६ त. 
ए८7०2०8 0. 

(:0-८४१८९०४ ०६ 0. 
(.0-८४४८७४६८ ०६ 7769॥ 0. 
(20-०४८४०६ ०६ वृषरा06 0. 
(06#%लंल्य: ०६ ४ग्यतेग्वाते 
](९०॥) 0. 

(2०७०॥४6 0. 

502702970 8. 


५०७ 
संचयी विश्रम 
बक्र. 


विषमवाहु वक्र 
अपकिरणु-वक्र 


|; संचयो-वारंवारता वक्र 


चक्रीय 
चक्रीय उच्चावचन 


सामग्री, संमक 


सामग्री सिजातिता 
प्राथमिक सामग्री 
प्रतिनिधि-सामग्री 
द्विंतीयक सामग्री 
सामग्री-अनुरूपता 
सामग्री-स्थायित्व 
सामग्री-सारूप्यता 
मृत्यु अध 

घात, परिणाम, अंश 
परिशुद्धता-परिमाण 
वर्ण॑नात्मक माध्य 
विचलन 

निरपेन्ष विचलन-माप 
म/ध्य-विचलन 
विचलन-गुणुक 
मध्यक विचलन गुणुक 
चतुर्थक विचलन शुणक 
प्रमाप विचलन गुणक 
मध्यक विचलन 
चतुर्थक विचलन 
प्रमाप विचलन 


ण्‌ ०्ट 


092/4॥7 
3497 0. 
3[0८६ 0. 
(.[7070!47 0. 
4,76270 0. 
९८४७० ४७०४ 0. 
७८३६९: 0, 
७००५८ 0. 
5प्र०90740806 0. 
[2827९2/6 -- 370६67 
70. 5८7725 -5 070 %8८7 $८77८5 
7/288967580# 
0 ०980!7॥6 4. 
(.0-८२१८९९४॥६८ ०0 0, 
[2800090007 
जिवुपाए ८ गाए९४१2५7.407 
छित्मपपा८ट।4(07 
777॥776॥:9:2 
90पफए776॥:28007 
704 
0०980] प6 ८. 
3]495$$८0 ८. 
(.प्र7प]90ए८ ८. 
5. 0६ 478060702०ए 
9. 0६ रा 9पँ4007 
3, 06 077$580॥: 
ज, 07 07877 
72+070976 ८. 
१९४४८ ८. 
[7709498$८0 ८. 


सांख्यिकीय दाब्दावली 


चित्र 
दशणड-चित्र 
दष्य्का- चित्र 
वतुल चित्र 
रेखीय चित्र 
आयत-चित्र 
विज्ञेप चित्र 
वर्ग-चित्र 
अन्तर्विभक्त चित्र 
खंडित 
खंडित माला 


अपकिरण 
निरपेत्ष अपकिरण 


अपकिरण गुणक 
वंय्न 

अनुसंधान 
सअगणुना 

प्रगशन 

प्रगणक 

विश्रम्‌ 
निरपेक्ष-विश्रम 
अमिनत-विश्रम 
संचयी विश्रम 
अपसयोप्तिता विश्रम 
प्रहस्तन विश्रम 
लोप-विश्रम 
मूल-विश्रम 
सम्भाव्य विश्रम 
सापेक्ष विश्रम 
अनभिनत विश्रम 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


7808709/0९, 280772[25 
णिड्ालाा 
डाए9०0०2007 ( 9005. ) 
5.5%076॥7८ 
£20(07 
£990[005 
#, 207टप88078 
7700८ 
7 [६६९:९7८०८५ 
घा072, 0 
(.प।ए७ ६. 
घछाइटत 
7, 95८ 
पर [पटप००075 
.0.0॥70777%ऑ ई. 
0) ०८८0367709| ६. 
(.ए०॥८४। ६. 
,072 ६८४7 ६. 
३४०॥79] ६, 
(९४००४ ६. 
95225070% ६. 
8707४ ८८४४7 ६. 
7707९0८95007 82 
70777) 94 
६760 प८7८ए 
(,प/०प)०७०४८ ई. 
(प्रग्रप[20ए९ ६, ८०।ए४८ 
(.पाणएपा०४(४८ ६. ६92]6 
&, ८टप०४ए८ 
#, 98797 


४०९ 


आगणन (अनुमान) 
वितति 
बाह्यगणुन 
चरमसीमा 
खंड 
आंतिकारी 
आंतिकारी परिणाम 
परिमित 
परिमित अन्तर 
अन्वाया जन 
वक्र-अन्वायोज़न 
स्थिर 
स्थिर आधार 
उच्चावचन 
असामान्य उच्चावचन 
आकस्मिक उच्चाववन 
अनियमी उच्चावचन 
दीघंकालीन उच्चावचन 
सामान्य उच्चावचन 
नियमी उच्चावचन 
आतंब उच्चावचन 








 लघुकालीन उच्चावचन 


पूर्वानुमान 

सूत्र 

वारवारता 

संच्यी वारंवारता 
संचयी-वारंवारता-वक्र 
संचयी वारंवारता सारणी 
वारंवारता वक्र 
वारंवारता चित्र 


५१० सांख्यिकीय शब्शावली 


ह, ठताडए7णपातठता वारंबारता वंटन 
9, 90ए807 वारंवारता बहुभ्ुज 
7, ६20]6 वारंवारता सारणी 
(०67८7222007 सामान्यकरण 
(>८0॥76070 55 £९07767८%) रैखिकीय 
(>. 77647 गुणोत्तर मध्यक 
(52070406, 87:44प407 प्रसरलन 
( 97000777॥8 ०६ ८एपए6 ) | 
(7477 बिन्दुरेख 
(>79[0८ बिन्दुरेखीय 
(79777 #767700 बिन्दुरेखीय विधि 
(57079९0 8९८:68 वर्गित माला 
(०70५५ वर्ग 
 7727770770 #847 हरात्मक मध्यक 
[76८०४०2९४९00$ .. विजातीय 
ति॥08प्श्ाय | वन ) वारंबारता-चित्र 
[ा88077८॥] कालिक 
छत. 274 ए875 कालिक विश्लेषण 
प्राहकराशाबाण कालिक चित्र 
न्रि0708०7०ए सजातीयता 
[097092०76० ५३ सजातीय 
[720८प४०३८ए अपरिशुद्धता 
]720८प।०(९० अयथार्थ, अपरिशुद्ध 
[#टप्४ए४८ 7760000 समावेश रीति 
क्‍70665-7प४70675 ... देशनांक 
(08: 0६ ए778 4. निर्वाह-व्यय-देशनांक: 
]. ०६ 977068 मूल्य देशनांक 


770025 ( 47665 ॥07706९४ ) देशनांक 
[. 0६ फप»॥658 ०0700079 व्यापारावस्था-देशनांक: 


7. 67 प्रतपणांत बलाएए 


4, 0६ 970वपरट/07 
770#76८0 


3, 0727 77९70700 


[76709 ०07 9॥26 70प0700८१$ 
पातृपाए ७ १9ए९४४३४०८४07 


(.,९70805 [. 
7296८ (. 
(0:277%. - 
रि९०८४४४४ . 
382770]]6 (. 
[70९700]2:09 
[7067976:2707 
, ०६ 02% 
एक्ञा रु (, 
[76९॥ए%/ 
(255 [. 
[7ए२८४४24707 


[07८८८ 9९:8074%/ , 


>िडह्ा८ात8ए८ , 
छ6ात7. 
[_0४%6टा: 07%३ [. 
[770:278706 ॥. 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


-उद्योग-कर्मण्यता-देशनांक 


उत्पाद-देशनांक 
अप्रत्यक्ष 

अप्रत्यक्ष मौखिक रीति 
महांक-जड़ता 
अनुसन्धान 


' संगणना-अनुसन्धान 


प्रयक्ष -अनुसन्धान 
मोलिक अनुसन्धान. 
पुनरावर्ती अनुसन्धान 
निद्शंन-अनुसन्धान 
आन्तर-गणुन 
निर्वंचन 
सामग्री-निबंचन 
निर्बंचन-एकक 

अन्तर 

वर्गान्‍्तर (वर्ग-अन्तर) 
अनुसन्धान 
प्रत्यक्षु-स्वयं अनुसन्धान 
विस्तृत अनुसन्धान 
क्षेत्र-अनुसन्धान 





अयत्यक्त मौखिक द अनुसन्धान: 
गहन अनुसन्धान 


]778०2५2: अनियमी 
[067 पद 
[.98 बिलम्बना 
[,9ए +२ ३५१९ नियम 

[,. ०0६ 76709 ०६ ।9426 


| महॉँक जड़ता नियम, 
संभाबिता नियम 


70०॥7765 
[., ०६ 7४००००॥ ५ 


५१९ 


२१२ 


सांड्यिक्षीय शब्दावलो 


[.,, 0६ $080800९०| 42८2 प907ए. सांख्यिकीय-नियमिता-नियम 


. 3547500४ ै, 
8,22072 082८76706 


[,2950 $0027०, ४7670व4 ०६ 


।.777[2/0770 
4.776 
[., ० 0850 50 


[., ०६ €तप%) 970700700074) 
ए9720070 


47८ 72[80765 
4,029777॥7 क्‍ 
4,02920770[0 567]65 
..072 


[९773 +[प्टाप 27075 


सांख्यिकीय नियम 
प्रमुख अन्तर 
अल्पतम-वर्ग-रीति 
परिसीमा 

रेखा 


'उत्तम-अन्वायोजन रेखा 
; सभानुपाती-विचरण रेखा 


*्खला-मूल्यानुपात 
छेदा, लघुगणु क 
छेदा-माला 


दीध 


दीघध कालीन उच्चावचन 


[0पऋ6: वृष्थात ८ ((78 वृषश्ा०) अघर चतुर्थक (प्रथम चतुर्थक) 


7१227[7006 


(, 0६ ८!3985 4776/792] 


9760]0 
(, ०0[०958702007 
७, 900७|200 
४690 
कैएग!गयलाट 7... 
(72८07020070 07. 
[79/77070 700. 
0, 606792007 
(, 60707 
७ 022007ए 
४(6९25प4८ 
३, 0 ंडऊलाञ्ंतता 
४ ०0६ 5६९ए॥८58. 


महत्ता, विस्तार 
वर्गान्‍्तर-विस्तार 
बहुगुणा 

बहुगुण वर्गीकरण 
बहुगुण सारणीयन 
मध्यक 

समान्तर मध्यक 
गुणोत्तर मध्यक 
हरात्मक मध्यक 
मध्यक विचलन 
मध्यक विशभ्रम 
मध्यक छेदा 

माप 
अपकिरण-माप 
विषमता-माप 


रे३े 


१॥९८०१]90 
00८ 
च८2५७प८ 


, 2077९]27700 


०१४१०) 


या त80फ5प007 
चै, 0०४७प०(070$ - 
४, £८१८९७7८ए ८पाप९ 


चंपात०९/ 
चिपा)0॥9707: 
चिप्0९४९५७) 

. 029 
(0(80०! $09080॥८$ 
(22[ए८ टप्४ए८ 
()0[009॥:6 
(27200 
(208८॥|9(07$ 

[,002 +८४73 0. 

७.07 46॥77 0. 
79949920]92 
02/:200)82 ८प/प८ 
72479] 2] 

797४ 
०96४ 2070॥90 
76४ ०८९॥१ 
7८:८८७४० ९४० 
9 १6४१4४07 


ए 8[8779प7070 


7, 67707: 


ए6+०९८४४७ 7०0०: 7४४९ 


सांस्पिकीय शब्दावली 


मध्यका 

भूयिष्य्क 
नास्ति, विलोम, ऋण 
विलोम सहसम्बन्ध 
प्रसामान्य 

प्रसापान्य वंन 


क्‍ प्रसायान्य उच्चावचन 


प्रसामान्य वारंबारता वक्र 
संख्या 

अंश 

स॑ ख्यात्मक, अंक 
ग्रंक-सामग्री 
राजक्लीय संमक 
संचयी वारंवारता वक्र 
विपरीत 

मूल बिन्दु 

प्रदोल 

दीधकालीन प्रदोल 
लघुकालीन प्रदोल 
एकेन्द्र 

एकेन्द्र वक्र 
सप्तानान्तर 

युग्म, हव 

प्रति वर्ष 

प्रतिशत 
प्रतिशतता 
प्रतिशतता-विचलन 
प्रतिशतवा-बंय्न 
प्रतिशतता-विश्रम 
शततमक 


५१३ 


१५१४ 


?6700॥८, 9९:॥00/८%) 
29९८002:477 
20078 

7, (06 098 
720!ए2079 
?09ण०८07 
70५0ए८ 

7, ८07762007 

7. 8६९ ए7८55 
ए70फ्र८४: 
7?7९८८8८ 
276८587888 55 [2720807 
7:7947ए 02/9 
72770020!॥[0ए 
770876387ए6 2४०९।३2८ 
770070070 
7700070074%॥7 
(2७०७0[॥48[ए८ 
(2५५६८: ए 
(20७५॥/:|2 

7४ 0-& [06% 0. 

१. 687446079 

7 770 0. प०७: 0, 
(१०९४४४०४॥94:2 
(2प५०४४८४४६ 
(रतप5 
(४7 4070 8$977077£2 
०८८ 

3700 ६६ 

[26200 ६. 


सांख्यिकी के सिद्धान्त 


आवबर्तिक 

चित्र लेख 

प्रांकण 

सामग्री प्रांकश 

बहुभुज 

जन-संख्या 

अनुलोम,घन 

धनात्मक सहसम्बन्ध 
अनुलोम विष्रमता 

घात 

सुतध्य, यथार्थतम 
घुतष्यता 

प्रार्थनक सामग्री 
संभाविता 

प्रगामी माध्य 

अनुपात 

अनुपाती 

इयत्तात्मक, परिमाणात्मक 
त्ैमासिक 

चतुर्थक 

प्रथम चतुथक, अधर चतुर्थक 
चतुर्थक विचलन 

तृतीय चतुर्थक, उत्तर चतुर्थक 
प्रश्नावली 

लब्धि, भागफल 

अर, विज्या, अध-ब्यास 
देव निदर्शन 

अधघ्‌ 

जन्म-अध् 

मृत्यु-अ्घ 


सांड्यकीय शब्दावली 





९:4० निष्मति, अनुपात 
हि, 6६ ए॥7%00॥ विचरण-अनुपात 
०0 3$८9]९ अत॒पात भाष श्रेणी 
2005 5८ 706 46[#ए८ मूल्यानुपात 

रि८९८70८%) व्युक्रम 

]7८|9(६ए८ सापेक्ष 
[२ ८0082 सापेक्ष परिवर्तन 
हि, त0०9007 सापेक्ष विचलन 
[९., 8]89९:8800 सापेक्ष अपकिरण 
है. &४707 सापेक्ष विश्रम 
20ए९७ 55 [07८6 ॥:.. मूल्यानुपात 
(.20॥7 ॥. 5 7४ (४. श्र खजल्ञा मृल्यानुपात 

७७॥७5८७:७॥.ए७ 090& प्रतिनिवि-सामग्री 

ह85[0020ए९|ए क्रमशः 
ि०ए४४१७।०।८ उत्काम्य 
रिप]|७-२०ए ( 0 82८67८८) नियम 

७9॥700|८ निदर्शन 


5७ टाणुपाएपए 





निदर्शन-अनुसन्धान 


5277 |0[0 2 निदर्शन 
जट्याडएः तीएावए विज्ञेप-चित्र 
5५३तेप३ अनुसूची 
७९००४०३१ ५ आत्तव 


5७ ६7८6७१53॥075 
5 ए०१।7/0/7$ 





आत्तव उच्चावच्न 
| का 
दइप्ाततव वरुण 





56८०7त 4579 ते द्वितीयक सामग्री 
52/९5 माला; श्रेणी 
5[07 ८७४ 77670 व लघु॒रीति 
3]70[7॥ समरूप 
5704/0ए समख्पता 


9१५ 


५१६ सांख्यकोी के सिद्धान्त 


5[7८ए770८5$ 
5६200420 


(.0-878060६ 0६ $, 6672(0॥ 


७. 6९०]207 

8 ०0६ 8८९८०+३०फए 
$50870270260 069/77 #9/6 
940९7706॥ 

50450090 

9020787:[08 ( $207८6 ) 

5६48058008 ( ८0]6८४०४ ०0: 
720०७॥८$ ) 

3. 2760 5. 

0)878050  र् 5. 
5फ0>-वाजात660 9885 082/9007 
997777607८॥४ 
'['90[७ 

77€१प०८८९ ६४ 
व्‌र0७०७//07 

(.077[/८5 ६. 

ए9०प%6४. 

8770!0 ६. 

94796 ६. 

७४72]6 ६. 

|५८96 ६. 
प्‌ृ0९०7670 
.0607ए ०६ 97/0940॥॥॥ए 
प।76 

|. 8९४65 
प्ंव्णव 


7.,072 96:॥00 ६. 


विषमता, वैषम्य 
प्रमाप 

प्रभाप विचलन शुणुक 
प्रमाप विचलन 
परिशुद्धता प्रमाप 
प्रमापित मृत्यु अर 
खावेदन 

सांख्यिक 

सांख्यिकी 


। संमक 


व्यावहारिक सांखि्पिक 
सांख्यिकी-अविश्वास 
अ्रन्तविभक्त दण्ड चित्र 
संमितीय, संमित 
सारणी 
वारंवारता-सारणी 
सारणीयन 

जट्लि सारणीयन 
द्विंगुणु सारणीयन 
बहुगुण सारणीयन 
सरल सारणीयन 
एकशुण सारणीयन 
जिशुण सारणीयन 
प्रमेय 

संभावित नियम 
काल 


काल्माला, काल-शभ्रेयी 


उपनति, प्रवृत्ति 


दीष॑कालीन प्रवृत्ति (उपनति) 


सांशियिकीय शब्दावलो ५१७ 


35८०५0709/| [.. 
56€०८७!४४ (६ 
[7.00]985520 2770: 
(7॥८ 
पपाए2756 ( 9090६707 
८007० 87००७ ) 
एप्ए290/:60 
09ए०४ वृषथ्प्ण० ( ते 


0००७॥॥८ ) 


“0? 50906 ८टप+ए6 
५५०८ 
ए५८॥१७०65 
९५०0०007 
रिध्रा00 0६ ए. 
एछा८३20६ 
ए८०४००॥०० 
एए, ३9ए८।०९० 
जा ए९८०शल्ाएएर एल 
एज, [0065 ए0०७४7०८॥5 


₹७]0]९-82/6 07065 40त 65% 
70प07770675 


2९70 
200९८ 


। सम्तश्र 


आतर्व प्रवृत्ति (उपनति) 
सुदी्घकालीन प्रवृत्ति 
अनभिनत विश्रम 
एकक, इकाई 


अभारित 


| उत्तर चतुर्थकः (तृतीय ऋतुर्थक) 


ऊध्बे,-बाहु वक्र 

अहाँ मूल्य, मान, 
चल 

विचरण 
विचरणु-अनुपात 

भार 

भारित 

भारित माध्य 

भारित शुणोत्तर-मध्यक 
भारित देशनांक 


| बहुशोमूल्य देशनांक 


श्ज््य 
कथ्बिन्ध 














































































































५१८ सांख्यिकी के सिद्धान्त 
[.0297700708$ 

0 |+ |2 |383 |4$ |$ | 6 7 |$। | 9 [[28 [4 56[7889 
| 40 ॥ 0000 [0043 [0086 | ०१28 | ०7० ' । 77 २ 20 30 34 35 
022 02५3 | 0294 902 0374 45 246 20 24 | 28 32 36 

॥ ठवाव जिप3[0949-5[055 [0509[. 4072 0 20 23 | 27 3 35 
| 44 [उ5 हैं ०० 004 ः 0०9007:55 (47 7[75६ 86 2220 20 १३ 
82 | 0792 | 0826 [0804 | 059?) [0934 ०७ 3757|743 88 :| 25 26 ३७ | 
' [0०969 7004 [7038 | 7072| 8706 | 770 4 77 70 | 24 27 35 
+१3 [739 [7773|7209|239 [4277 २७३० ३३१040 २३ 20 <0 
| |7303 का /207 (899 7430 [5 7 7० 6: 7. 79 2225 20 | 
4 75 ॥467 [492 |523|7९53 | 584 8० 9245 9 22६ 268 [६ 
' 706 044073| 7038 72030 0 2त 7 [20 7320 
॥$]8॥75 [700[766|7047 |787$ । 37 “43 44 7 [2020 ४० 
! ' ! | 9957 959 927 20403 ध[विवद 7 विद 
38 ॥ 204॥ ॥ 2006 | 70905 2722 [240 30 ०|47 ३3५ 40|0 2४ ८4३ $ 

। ४775[220] 22027 2१3 279 ३ ६65 (4:40 घन हल 5 ठडे । 
| 37 ' सि्थ 2330 2354 | 2300 | 2/०0५ 34 ४ ४ (४३१५3 3465 30 2 
। 243० 2455 [ 2504 25208 8 0 वए 72 756 7 20 228 
78 | 255382577 | 20072025 । 2040४ 23 %| 0१०५१ 3779 ५। 
। (2७7० 2605 [278 2742 27058 84 | ०वा 74088 27 
॥ 49 ॥ 2758 280 2033 | 2850 ।287+ देह. 7 ]43040 /0 । 
! 2000 | 2023 प्ऐको 204 26 के ४7 | ।5358077 0 
॥ ६0 ॥ 3040 ।3032 3054 | 3075 | 3090 । 3778 | %330 | 300 0 3200 [24 ०। 6875|5 7 0 
24 [3222 3243 203 [3254 3304 | 3324 | 3345 | 3305 | 3365 | 3404 24 0| #02 [4 0 |# 
22 ॥3424 444 3404 | 3483 3502 3522 [384 3500 [७५79 | 3799 (24 ७। 870 82 [44 8 77 
28 307 । 3030 [305६ | 3074 ।3092 | 377 | 3720 | 3747 | ॥770, 3704 । 8 4 6। 7 97(738 १४ 
284 ॥ 3003 | 3820 | 3935 | 3850 3674 | 3892 | 3909 | 3927 3045: 3002 24 5| 7 974[7274 6 

4 6 307963907 | उ05! 40408 [400६ 4052 | 4099 40  4773/2 4 4।| 7 970(82 74 ५ 
40 दाल [व 009 ०293 ह:30 43270 |4232 [4249 [4203 | 4267 [6292 |23 5| 7 870|773 5 
8३ 7 दे वि 3० व3 70 54322 4370 4393 [4400 [4425 4440 [450 (23 5| ७ 8 977 73 4 
23 4472 4487 [4502 | 4576 [45433 [4546 4704 4579 [4594 [4009 | 253 8४$| 6 8 907 2 4 
£9 ॥ 4024 | 4039 [4054 | 4009 [4083 | 4096 |4773[4746 [4742 [4757 83 4| 0 7 9|702 3 
397 8777 [4776 4800  28/ 8020 48.5 4847 | 4077 (48856 4900।73 | 6 7 0[704] ॥3 
कई, | दवा |5725% ८042 0३३ ' [60 (७: ५  4997 | ६0॥7 | ६024. ४036 |4 $ 4 6 7 8(408॥ ॥7 
33 ॥5057 5:0२ देश, 2:02 पा |[ददात ढाउड 845 |8779 572 |73 4| 5 7 8| 974 2 
98 [58685 503 ६24 ६22५0 , ६-८7 43258० 8203 5270 | 8259 (5302 (43 4 5 60 8| 9705 
34 | 5375 5326 | 5340 | 5353 |5300 | 5375 | 5397 | ६403 | 546 5428 73 4| 5 6 86 970॥7 
उ5 | 5454 |5453 | 5405 | 478 | 5490 | ६६०2 554 | 5527 5539 5657 |72 4| 5 6 7| 9०या 
89 [5703 5575 [7587 [5599 | $077 | ६023 | ६035 | 5047 | 5058 | 5070 8 2 4| 5 6 ४ 803 
47 ॥5002 5094 | 5705 5777 (5729 | $740 | 5752 | $703 | 5775 [5700 [72 3| 5 6 7| 8 970 
88 | 58795 | 5809 | $82। | ६832 | ६8॥ ३ 5885 | 5806 ।$877 [5886 | ६५309 [॥2 3| $ 6 १ 8 970 
। 39 | 5977 | 5922 | 5933 | 5944 | 5955 | 5906 [5977 शक 5999 /770 |72 3| 4 8 76 8 97०| 
| 4.६) ॥ 602] | 0037 [6042 | 6053 [6064 6075 | 6068 [6096 (6007 677 ॥# 3| 4 ६ ७| 8 ०97०|. 
4. ॥0728 [638 | 0749 |6१00 [6770 [680 | 6897 620॥ | 6272 (6222 |4 2 3 4 ॥$ 6 7 8 ०४ 
॥ &8 ॥0232 0243 [0253 [0205 ९274 0224 0209% 6304 |03॥4 । 7: 3| 4 $ 6। 7 8 ०४६. 
। %&3 ॥ 0335 ॥0345 [0355 [0365 गा 0390 |॥0405।0478 (425 [72 3| 4 ६ 6/ 7 8 9६ 
44 [0435 0444 0454 [0404 [0474 [0404 (0495 [6503 6573 6522 72 3|। 4 $ 6. 9 8 9 
465 | 0532806५42 | 049746563 6573 [6590 | 6:90 5५509 [6600|6678 :8 2 3। 4 $ 6/9 8 ०६ 
58 6628 | 6037 6046 |6056 [6965 6675 |6584 [66936703 | 6072 42 3| 4 ६ 67% 3 
| 47 | ०727 [69739 0739 074946758 [6707 [677८ (678५ | 69% ७605]82 3|]| 4 $ ४ 69 $ 
५58 | 282 65827 |6830|68 39 | 6848 | 68५7 6866 (6875 | 688॥ 08034]72 3| 4 4 $, 90 7 9 
| 9 (0003 0974 [6920 [6928 5937 6040 [6955 / ७994 |65972.095 ॥2 3| 4 4 5|[ 6 ५ 8 । 

















गणितीय सारणी 





















































€्‌ 


4 








५१ 
2,02977/ 0 035 

।0[|५१ | 4 | 3 |$ | ४ | 9 | 04॥: 7 | 8 | 9 [28(458( ४89 

86 | 6990 | 0996 | 7007 | 706 | 7024 | 7033 | 7042 | 7070 7059 | 7007 733 345 |097 8 
है. |[7076047084 [7003 |7707770 | 9778 | 7726 ।7735 7743 7752 ]72 3 34 ४ 07 # 
52 |7700 [7768 | 7777।748547793 7202 7270 |720 | 4220 723९0 [7 2 2/(34 4|67 ४ 
58 ॥7243 | 7257 [7259 7207 | 7275 [7294 | 7292 ।7300|7308 7370 [72 2 (34 5 ।006 7 
84 | 7324 | 7332 [7340 | 7349 | 7350 | 7304 | 7379 | 7380 7369 7390 ।2 2 (34 5 (06 7£ 
द6 7404 | 7472 | 7479 7427 | 7435 | 7443 | 7457 ।7459 | 7400 7474 | 72 2 34 5।507 
58 | 7492 | 7400|7497 7505 | 7573 | 7520 | 7726 ।7530 [7543 | 7577 | 7 2 2 (34 5507 
87 ॥7559 |7506 | 7574 [7582 | 7589 | 7९97 / ४90. 7072 7079 7027 ।7 2 2 (34 5।45 07 | 
88 ॥7934 [7042 | 7049 | 7057 ।7004 | /072 | 7079 | 7086 [7694 | 770 [77 2 (34 4 |50 7: 
59 ॥7709 | 7770 | 7723 | 7737 |7733 77540 | 7752 [7700 7707 | 7774 |77 2 (344|507 
650 | ०४३० | 77809 7796 7803 (7870 [788 | 782९ [7532 | 7839 | 7840 |7 2[44 4 [500 
8] ॥7853 | 7900 [70605 | 7875 [7882 [70689 2600 [7903 70:0।[7977|7 29 34 4 [506 
62 7924 ।7937 [7935 [7945 7952 7059 | 7900 । 7973 | 7960 70987 |8 2 (3 34|[50 6 
83 ॥ 7093 | 8000 [8007 [504 | 8027 [8020 | 8035 ।8047 [60॥8 | 80:55 ॥7 2(334855 06 
68% | 8002 | 8000 | 80745 8082 ।॥86069 ।8099 [502 /8009 [879 | 822 [] 2स्‍334 [5509 
886 ॥|8720 ।8830|[842 840 | 8750 | 8702 [009 (8776 8782 8789 व 7 2 434[5 5 0 
889 ॥[890$ [8202 [8200 [824 |6222 [0226 [8235 ।8247] [0248 | 602६4 ।77 2 (33 4|5506 
87 ॥826॥ ।8207 [8274 | 8280 । 6287 [6203 | 9209 (8१325 |8272 |8379 |।|| 2 (8934 [550६ 
88 [832९ ।833॥ [8339 [8344 |035|8357 [8303 0370: 370 ।|0362 [742334[450 
09 ॥ 8386 | 8395 | 8407 [8407 ।840|8420 | 8426 ।8432 | 5439 [0445 | 77 2[/23 4 [450 
४285 | 84५7 [8457 [8463 [8470 [8476 8482 8॥68 8404 [68६00।8500 ।] 2 (2 34 [45 0 
४73 (853 [68579 [8525 [6537 8537 [6543 [0549 6555 [8594 | 8:07॥77 2 234 [455 
7४ ॥ 8573 8579 [855६ |86597 ।08597 [8003 [60969 | 695 (002 [8027 / 7 72 (2 34 [4 5 $ 
78 ॥ 8033 [8030 |864९ [804॥ । 86६7 [86043 86609 |0075|8687 | 8080 [। 2/3 34 /4 5 5 
96 8902 ।80605 8704 |97704870:0722 60727 (68723 |09739|0874९ [[] 2 (234 ।4 5 5 
70 | 8757 [8756|8782 | 67068 ।8774।0799 | 8785 (8797 | 0797 | 82502 | 8 8 2 23 3[45 58 
78 8808 | 884 | 8820 | 8828 ।8837 [8837 [88.2 6846 [8654 | 65879 [7 7 4 23 3[4 5 $ 
77 | 0865 | 6877 | 8876 | 5882 (8897 [8893 [8999 १9904; 0979 8075 []7 32 33445, 
४78 ॥802] | 8927 [8932 [5936 [8943 [5949।6954 ५0०१८ : 6705 597: |7]2233|[44 5 
7४०9 ॥ 8076 (8982 | 89087 [8993 | 9998 | 9004 | 00009 4907६ | 00209025 [77 2, 2 3 3[44 ६ 
80 | 9037 [9030 | 9042 | 9047 | 9053 | 9056 [9003 [9009 [9074 |9079 77 2 8 3344 5| 
8॥ ॥ 0084 । 9090|9096 [90 [9700 |9772 | 9777 9722 9728 9733 77 2/23 3(44 5 
88 ॥9736 |9743 [9749 |9754 ।9759 |9705 [9770 [9775 9780 9700 [ 7 2 /2 3 3 [44 5 
39 | 9797 [990 |9207 [9200 | 9272 | 9277 (9222 9227 | 9232 9236 |772 (2 3 4।4 4 $ 
84 9243 | 9246 | 9253 9259 | 9203 | 9209 9279 |9264 [9289 [4 2 (23 3 [44 5 
8छ& 9294 ।9299 | 9304 | 930०9 | 9375 [9220 | 9325 | 9330 | 9335।9340 [7 2/ 2 3 3/ 44 5 
80 | 9345 9350 | 9355 | 9300 | 9305 | 9370 9375 | 9300 | 9305 |93970 7 72 (23 3।44 5 
87 9395 9400 [9405 | 940 । 9475 [9420 [9425 ५550 9435 [9440 07 7 [22 3 [34 4 
88 ॥ 9445 9450 | 9455 | 9400 9405 | 9409 9474 : ०479 [9434 9409 ॥0 7 | 22 334 4 
89 | 9494 [9499 | 9504 | 9509 |9573 |9576 | 9523 [9528 [9533 9530 [07|2०29 334 4 
90 | 9542 । 9547 | 9552 9557 9502 | 9500 | 9577 |9570|958 | 906 ।07:7[9 2334 4 
94 [9590 |9595 | 9000 | 9005 | 9009 [904 [909 | 0024 [9928 9033 |०077|[22 3 (344 
99 |0038 | 0043 | 9047 9052 9057 |9967 9066 |9077 9075 [9080407 [2 2 334 4 
98 [90605 [90809 | 9094 | 9099 9703 [9708 |9773 [97779722[9727[047 (22 334 4 
94 | 9737 (9730 | 9747 9745 ।9750 9754 [9759 [9703 9708 (9773 [०77|2 3 3।3 4 4 
झ8 | 9777 [9782 | 9796 9797 [9795 9800 | 9805 [9809 984 [9878 (07|22 3 (34 4: 
99 | 9923 |9327 | 9032 9836 | 984 9345 [9850 9854 | 9859 ।99863 |०0 [223 34% 
(7 ॥ 0368 ॥9872 | 9977 |989। 9886 | 9890 9894 [9899 9903 (9906 (044 92 3 (344 
08 | 9972 | 9977 | 9927 9926 | 9930 | 9934 [9939 | 9943 [9940 [9952 [077(22 3344 
99 9956 [996 9965 9969 | 9974 | 9978 [9953 [9987 (9997 (9990 |[07[2 2 3334 











४५५२० सांख्यिकी के सिद्धान्त 
0.000827ध0008 
 ॥[0[]7 (2 |[8($ | [6 | 6 | 7 | 8 | 9 [28|466[289 
4006 |7000 002|4005 [ 007 | 7009 [7072 | 704 [7006 [7079  7027 [004(7|2 2 2 
॥ *0] ॥7023 | 7026 [7028 7030|7033|7035$ | 7038 | 7040 | 7044 [7045 (00 7[777[22 2 
॥ 08 ॥047 | 70९0 7052 7054 [70९7 059 | 7002 [7064 [7007 ।009 [0०0|[7[22 2 
08 ॥072 [7074 [7075[70०79 (7067 [004 | 7086 | 7089 7097 7094 [00 7[37|22 ४ 
"04 |॥ 7099 702 704 |7707 [709 ॥72 [[734 [77 ([7779 [0[77 2 22 2 
५06 | 722 72$ 727 [९730 |732 735 8738 | 7740 7743 7740 |07 ][7 2 / 22 2 
-08 [748 7९7|703 7006 |709 70 404 |7767 7779 [7772 [07 7[72 [२२०४ 
-07 |॥77587778[480 7703 [786 789 | १707 ।704 7797 7770 |[07 7[7 229 2 
08 | 202 [20$ | 7208 727 [4273[[570[279 [7222 | 7228  7227 [07[]7 222 3 
५ 09 ॥|72307233|7230|7239 [7242 | 7265 | 247 / 7250 | 4253 7206407 7[74 2 22 4 
"0|72९9 [262 [7265 (१:68 | 277|274| 72760 | 7279 | 7202 | 72065 |०77[479[2 2 ३ 
] ॥288 |7297 | 7204 [7297 [7300|7403 | १३०6 [7309 7572/3९ [07 7[7 2 २(३ «६ ३ 
-38 ॥38 ॥32 [324 | 7327 [330।733० | 337 [7340  7343 ध340 [07 5 |72 9 | 2 2 3 
'8 ॥349 352 73९५९ [7358 [307 [7305 | 308 7377 7374| 7377 |०77[7० 2 23 3 
34 | 380।7334 | 7387 [7390 |7393 390 [7400 | 7403 [7406 | 409 (07 7[[72 22 3 3 
*6 |43 [746|409 422 |[7426|429 | १432 |7435 [ 7439 ( 442 |[०077|42 2(।23 3 
"38 ॥44९ | १44१ | 74९2 74९5 6९9| १462 | 7406 [7409 7472 ( 7470 [077[42 2 23 4 
॥]7[479483|]496 7459 | १493 7496 500॥7503 | १507 | 7070 [|07||[7.2 2 23 3 
॥ 48 |[6074 7077 ९27 [024 [7528 | 5537|8535 [7535 | 7542 7045 |07 व72 2 (23 3 
"329 ॥549 :52 ९56 7760553  १६57।757०0|7574 7578 7588॥ [07 ]।72 2(33 3 
"20 |58६ 7089 | 092  7796 ]600603 | 7607 ॥॥0 7674।7078 |07[7 2 233 3 
शी [622 |7020 029।7633 |7037[7647 | 0644 [7048 702 [7076 ै|0]|[2 2 2 (333 
-22 ॥660 ]663|667 767] |675 | 7679 |7683 |॥687 [7690 7094 | 07 [22 २ | ३3 3 
'28 ॥[698 [4702[।706।7770 |7774|7775 | 722 677250 | 7730[7/34 (077[2 2 2 334 
'84 | 7738 [[742 746 | 7750|77५4 | 7708 | 702 [7706 | 7770|7774|07 7[|2 2 २ 334 
4265 |778 [782[786| १००॥ [7790९(7799 87803 807 | 87 78760 |07 72 2 2 (33 4 
॥ "26 ॥820|।824 | 7823 | 832 [837 784॥ [76845 ।7849 7854 (8ए8 [|07 7[2 2 3[33 4 
॥ 27 ॥862 |7866|8:]|4875 [879 | 7824 | 886 892 7897 [7907 ।0||2 2 3 33 4 
3 28 ॥770९ |970|7974 | 07५ [7023|9208 | 932 [930।947|4945 [0। [2 2 334 4 
॥ 29 [0९0|7054 7959 70963 4]006 4972 | 977 [982[4986 [7997 [0||2 2 334 4 
॥30 | 00$ | 2000। 2004 | 2009 | 20॥ & | 2083 | 2023 | २028 | 2032 | 2037 ।|07 8 [2 2 3 34 4 
॥ -8] ॥ 2042 | 2046 | 2057 | 20९6 | 206॥ (206६ | 2070 [| 2075 | 20680 [2084 ।|07 7|2 2 3 [34 4 
॥ "32 | 2080 [2094 | 2099 | 2704 । 27009|23| 25११ | 2723 2728 (2733|08 ] [| 2 2 3 34 4 
॥ 88 ॥ 2738 [243|248 | 203 | 2755 | 27603 / 2768 ,273[2778283 |07|23 3।34 4 
"84 | 2॥ 88 2093 | 298 | 2203 | 2208 | 2273 | 2278 | 2223 | 2228 | 2234 |7 ॥ 2/2 3 3([44 $ 
"38 ॥ 2239 | 2244। 2249 | 22९4 ॥22९9| 2265 | 2270 | 2275 (2280 2286 [॥ । 2[2 3 3[44 5 
-86 ॥ 229 | 2290 | 230। | 2307 | 2२72 | 237 | 2323 | 2326 2333 2339 |[॥॥ 223 3[44 5 
“37 | 2344 | 2350 | 2355 | 2300 | 2306 | 2377 | 2१77 । 2352 | 23538 | 2393 ।8 7 22 3 3|44 5 
"88 | ३399 | 2404 | २4५0 | 245 [2427 | 2427 | 2432 | 2438 | 2443 [2449 |! 8 2/2 3 3(44 5 
39 | 2455 | 2400 | 2406 | २472 | 2477 | 2453 [2459 | २495 | 2500 (२६४०० । २(2३33|455 
“40 [2९॥2 [268 | 2523 | 2529 | 2535 | 2547 | 3547 | 2553 | 2559 [2004 |]7 2(/234|45 5 
-4] ॥ २६7०0 [25760 2५९82 | 2058 ॥ 2094 | 20600। 2606 [20672 2078 2024 [| 2 2 34455 
॥ "49 | 2030 | 2636 | 2042 | 2049 | 205९६ | 266। | 2667 । 2073 [2079 (208६ | 2723 4।[45 0 
4 -48 । 2092 | 2098 | 2704 | 2770 | 2770 | 2723 | 2729 | 2735 | 2742 [2745 [॥ 7 2(334[4506 
॥ “44 | 27५4 | 270 | 2767 | 2773 [2780 | 2786 | 2793 | 2799 [2805 (2872 [7 7 3(334[45 0 
("4.8 | 288 | 282 | 2838 [ 2838 | 2844 | 28५ 2858 | 2804 | 287] | 2877 ॥ 7 2[334|55 0| 
॥ *46 ॥ 2884 | 280! | 2897 | 2904 [2977 | 2977 | 2924 | 2937 2038 2944 [7 7 2(/334(5$506 
47 ॥ 2905] | 2958 | 2960६ | 2972 | 2979 | 2985 | 2092 | 29009।3000।303 |7 72|33 4 55 6 
॥ 48 || 3020 | 3०27 | 3034 | 3047 [3०45 | 3०55 | ३०62 | 3०69 | 3076 | 3083 [77 2 (344|50 6 
| "३9 ॥ 3०9० | 3097 |3705 3772 [3779 3720 |333 | 3747 37485 | 370१ [7 7 234 4 [56 6 

































































गणितोय सारणी 


2 000247709775 





रद 


3357 
3430 
3९५6 
3597 
3०8। 
370०7 
3855 
3945 
4036 
430 
4227 
4325 
44.20 
4520 
4034 
4742 
4953 





| 2०७ - 

















608 60 ८०६८३ ४१०३ «३ 5३ «३ (७ ७६ > ७ (७, 35९०५ (०६ ९+॥ इआ३ एतय (३ ६आ ९ एन नील ने यु क+ ने नें>  कं+ कं - दब 


०७92० ४2 055000060 00 005754 5-3 ३2 ५3५३ ७5, ७ ७६ > 6 > ७६ प्प्प्वरपआ एफ एल पार्क + 65 





प्र्१्‌ 


[० 


४) 0७0 606० 65 6०03 5३33 | ३ छ ७ 5 0६ (5 


5० 02609 60 व 53 53 53 3 (७ 0५ 5: >ऊ 6 5 ८६ (७६ <# - «3 


7077 83 


7077 73 8 


7072 33 8 
8।2 74 ॥ 


॥72 84 
[773 54 
[743 ६ 
72453 7६ 
72 73 ॥5 
॥24 76 
72 4 76 
3 74 १0 
7375 १7 
73 75 ॥7 
845$ 39 


॥4 760 8 $. 
!74 76 78 ६ 


75 77 29 


60४५9 २ ४०७ ७ ४७ 08 65055 05 55 च्यनचचयअ चयूचचछ अजय 


६ 2 2 








५२२ सांख्यिकी के सिद्धान्त 
ए0ए2०९8, +0075 ७८ हि2८7[9702928 








8 | 9 |. #2 रड । इक रु 
ह 7 ॥ | रु पु 
2 रथ. 8 ्काव, 7:260 + ४000 
धर 9 27 | 7732 | * 44४ | '3333 
थ्‌ 76 64 | 2 7-:887 | "2500 ॥ 
8।4॥ 725 72६ | 2239 | -970 + "2000 
४] 90 2760 | ०4409 | ४'687 | "667 
; 49 343 | 20७ | 793 | "429 ! 
5 64. 80 | 26888 | 2000 | "४2३50 ।! 
3; 87 729 | 3०000 | 2080 | "777 
/8$। 700 7000 | 4.03 | ७"54 | *7000 


॥॥ वहा |. 337 | #377 | ४274 | '60007 
38 ॥ 44. 7728 | 3404 | 9280 | *0083433 
छे 700 2797 | ३०060 | »&'357 | "07602 
44 |. 790 श44 3742 । 2'470 | '07४7453 | 
368 | 225 3375 | 3873 | 2400 | "06607 
6॥| 256 4090 | &"000 | 9-.5६20 | "06780 
7 || 289 49073 | 4१०३ | »'४7१ | 05982 | 
38 | 324 | 56332 | 4243 | ४0८7 | 05559 | 
79 | 3067 0359 | 4359 | 20608 | “5६203 
80 | 400 8000 | 4472 | ४974५ | "0६00 
दे।। बा 92607 | & 803 | 9780 | “04762 
॥ 28 ॥ 484 | 70648 | 4-590 | 2२03 | 04९4५ 
व5िछे | ६20 ]207 | 4४96 | 2'500/ 
8% | 570 3624, | 4890 | 2664 | "04॥07 
28 ॥। 62 75025 | 5000 | 2924. | "0400 ॥ 
दी । 070। 77576 | 5०00 | 2952 | “03846 । 
डि7 [729 70083 | $"798 | ३-०000 | “05704 |. 
89 ॥ 704 | 2४952 | ६४02 | 3037 | "०357४ | 
29 ॥ 847 | 24359 | 5355 | 3०72 | "03448 
| 900 | 27000 | ६477 | 33०7 | "०3333 
३ 9657 | 2079 | 5 :६508 | +१4॥ | "03226 
है8 | 7024 । 32706 | 5057 | 337६ | *०03725 
89 | 70509 | 35937 | 5745 | 32४06 | *०3030 | 
७५ | इ59 | 39304 | 583] | ३४4० | *0204 
0 । 7225 । 42078 | ६१०76 | +श7 “02657 । 
/ | 7200 | 40056 | 6:000 | 3302 | "02798 


जल क] 
आन 3 
कं 5-४ 


४ | 45900 । 50053 | 06:083 | 3:332 | "००7०३ 
5४ | ग444 | 54072 | 6764 | 3302 | "02632 
४९ | 7827 | 5939 | 0245 | 3'39 | "02504 
४0 ॥ 7000 | 04000 | 0320 | 3420 | "०2६०0 
5 | 7087 | 68927 | 6-403 | 34408 "02439 
५8 ॥ 77060 | १4008 6.45॥ | ३470 | "*02387 
59 | 7049 | 7950 | ०557 | 3503 | *02326 
४8 | 7930 । 85784 | 6-633 | ३४30 | “००००३ 


8 | 2०25६ | 97725 | 6708 | 3-६४7 | "02222 
89 | शावत0 | 97330 | 6-782 | 3583 | "०274 
5४ ॥ 2200 | 703823 | 68९6 | ३009 | *0228 
28 | 2304 | 770892 | 6:928 | 5-634 "02083 । 
99 । 2405 | 777049 | 7*००0०0 | 3659 ५0204॥ 
| 50 ॥ 2500 | 726000 | #०7 | ३684 | 020 





























ए०0ज़९ा5, हि0005 & ि९८टा9४002०8 


गणितरीसा रणी 























८ ४? शा नर टन टी व्ञु 

॥।867 2007 | 7326587 | रचा | 3४०४ | *07967 
58 2704 | 740008 । 92707 | 3733 | "07923 
58 2300 । 748877 | 9-2३8०0 | ३-६6 '07887 
54 2970 | 757404 | 7348 | 3750 | 07852 " 
85 3025 | 706037६5 | 7476 | ३-803 | '0788 ॥ 
फ्छे 3730 | 775676 | 74983 | ३826 | "07786 
57 3249 | 765793 | 7६50 | 3:849 | "07754 
58 3304 | 799782 | 7:076 | ३87॥ | 0724 
59 ॥ 3407 | 205379 | 768॥ | ३893 | "07695 

+ 90 3०0०0 | 27000०0 | 7१४40 | 3:975 | 07667 ॥ 
७ ॥ 372 | 220987 | ५-870 | 3936 | '0639 । 
(4/2. 38644 | 238328 | 7874 | 3-:958 | 0673 | 
68 39०09 | 250047 | 7937 | 3'979 | "०587 
84 4090 | 202744. | 8000 | 4000 | *0562 
88 4225 | 274028 | 8:003 | 4०27 | *07533 
66 4359 । 287490 | 8324 | ८०47 | 'णादाड 
87 4409 | 300703 | 8-8६ | 4002 | '"07493 
88 4024 । ३374433 | 98-240 + $#'-0982 | "0477 
89 4707 | 3258509 | $-30०7४ | 4'702 | “07449 

॥ ४0 4900 । 343000 | 8-3507 | 4&727 | '07429 ॥ 

| 80०47 | 357977 | 8426 | 4747 | "07409 ॥ 

पी बट 58704 | 37345 | 8285 | 4760 | "07380 
४४0 ६४329 | 35900 । 8 84% | 47790 | '07370 
५4 5470 । 405224. | 8602 + 4"700 । *0357 
79 ६624६ 27675 | 8660 | 4&'श7 | 07333 
५छ 5770 | 430970 | 8778 | 4230 | "073१6 

| ४४ 5929 । 450533 | 877६ | 4254 + *07299 

॥ 78 ॥ 0084 | 474552 | 8:53% | 4०73 | *07282 

॥ 79 0247 | 403030 | 6-86868 । 4:297 | *07266 ॥ 
80 06400 | ४72000 | 6984 | 4309 | "07250 
84॥' 656 | इउवका | 9-000 | 43297 | "0235 ! 
8४ 6724 | 557308 | 9-055 | 4344 | *07220 
88 6869 | 577787 | 9770 | 4303 | '07205 
84 47056 | 592704 | 09"798 | 4380 ।+ *07790 
85 7225 | 0०4725 | 9220 | 4397 | *07776 
86 ॥ 7390[| 036056 | 9274 | 4'का4 | "07763 

॥ 87 ॥ 7509 | 050503 4 93» | 4432 | '0740 £ 
88 774५ | 08472 | 0०-39॥7 | दब॑45 | *0756 
83 7927 । 70०॥909 | 9438 | 4405 | *0724 | 
90 8700 |. 729000 | "'बरफ। | ब9/ | 'छावाव 

39॥] 828 | 7535077 | 9539 | 4490 | "०१009 

॥ 98 8464 | 7720063 | 9-.592 | 4574 | "07087 
98 86049 | 404357 | 90944 | 4537 | '००7५ 
94 8836 । 330564 | 97095 | <'547 | *०7004 

है 98 ॥ 9025 | 65793 | 9४47 | 4503 | "००053 

898 9270 । 6800736 | 9705 | &'5१9 | "07042 

॥ 97 ॥ 9409 | 972073 | 97559 | ८595 | *07037 
95 96504 | 94792 | 0500 | 4:'0670 | *07020 
99 8807 । 970209 | 90६० | <"0720 | *07070 
3.00 १0000 | 7050000 + 70500 । &'562 4 "*0700 








' ५२३ 


५२४ सांख्यिकीय के सिद्धान्त 


7087 ,9& 0४७ &£ 8) *;? 














हि <€ 9५ 
छ627९८९४ ०६ |.“ र ाशणशओ 

ज्व्व्वे७.. ए९085 शा 7ए१088॥77९४ 
29 *07 07 “07 
॥ 3'84 65.04 2 77 53.66 
2 599 9,2. 4.30 9-92 

5 7'82 77 34 348 384 
4. 949 33,28 >'78 460 
5 '07 75$,09 257 403 
6 72'59 76'87 2 45 377] 
7 34-0०7 78 48 236 3-50 
8 १5 .5[ 2009० 237 3'36 
9 30'92 27.67 2206 325 
70 78-57 23'27 223 3१7 
प्रा 79:.68 24 72, 220 377 
72 27'02 2022 2'8 3*06 
73 22'36 27 09 2'70 3"67 
१ 23:68 29*-34 >' 74 298 
5 25-00 30 58 . >१3 2"95 
76 36:30 3200० 272 2 92. 
प्रा 2799 . 33 47 “98%, 2"90 
१8 28*87 34'8० 240 288 
79 30:१4 56"49 2'09 2'86 
20 37*47 37:57 2 09 284 
27 32 67 39,935 2'"00 283 
22 335"92 4029 207 2982 
. 23 35ऋ77 . ८६१'04 207 2"87 
"24 36'42 42*239 2"06 2 8० 
25 37:65 44 3 7 20०6 2'72 

















ााणणणणणणण्णणणाााणाआआणाणाआ%णणा७णणाणआणााआआआआ ७ णााणाआआआआआ७७७७आआणणणणणाणाणााणाआआाा अब 


सांख्यिकी के सिद्धान्त